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अगस्त 20, 2021 1346 0 Brother Josin Thomas O.P, India
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क्रूस का रहस्य

मैंने ईश्वर से पूछा, “हमारे जीवन पर क्रूस क्यों निर्धारित किया गया है?” और उसने मुझे एक अद्भुत उत्तर दिया!

सिरीन के सिमोन की तरह हर ईसाई व्यक्ति मसीह के क्रूस को ढोने के लिए बुलाया गया है। इसीलिए संत जॉन मेरी वियनी ने कहा, “हर बात हमें ईश्वर के क्रूस का स्मरण दिलाती है। यहां तक कि हम खुद क्रूस के आकार में बनाए गए हैं।” देखा जाए तो इस सरल प्रवचन में बहुत गहरा ज्ञान छुपा हुआ है।

हम जो दुख तकलीफें झेलते हैं, उनके द्वारा हम ईश्वर के दुखभोग में भाग लेते हैं। जब तक हमारे अंदर ईश्वर की पीड़ा को सहने की इच्छा नही होगी तब तक हम इस धरती पर अपने ईसाई मिशन को पूरा नहीं कर पाएंगे। देखा जाए तो ईसाई धर्म दुनिया का एकलौता ऐसा धर्म है जो दुख तकलीफों को मुक्ति से जोड़ता है और हमें यह सिखाता है कि हम अपनी परेशानियों के सहारे अनंत मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं – अगर हम ख्रीस्त के दुखभोग में भाग लें।

परम सम्माननीय बिशप फुल्टन शीन ने कहा है कि जब तक हमारे जीवन में कोई क्रूस नही है, तब तक हमारा पुनरुत्थान मुमकिन नहीं है। येशु खुद हमें बताते हैं कि उनका शिष्य बनने के लिए किस बात की ज़रूरत है “जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करें और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले” (मत्ति 16:24)। मत्ति 10:38 में येशु फिर से कहते हैं, “जो शिष्य अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरे योग्य नहीं”।

येशु दुनिया के उद्धार के लिए क्रूस पर मर गए। अपनी मृत्यु के बाद वे स्वर्ग में उठा लिए गए पर वे धरती पर अपना क्रूस छोड़ गए। येशु जानते थे कि जो कोई उनके साथ स्वर्ग में शामिल होना चाहता है वह उनके पीछे पीछे क्रूस की राह पर चल पड़ेगा। संत जॉन वियनी हमें इस बात का भी स्मरण कराते हैं कि “क्रूस स्वर्ग की ओर ले जाने वाली सीढ़ी है।” क्रूस को अपनाने की हमारी तत्परता ही हमें इस सीढ़ी पर चढ़ने के योग्य बनाती है। क्योंकि खुद को बर्बाद करने के तरीके तो कई सारे हैं, पर स्वर्ग का रास्ता केवल क्रूस की राह है।

मेरे हृदय की गहराई

साल 2016 में, जब मैं अपने मास्टर्स की पढ़ाई कर रहा था, तब अचानक मेरी मां की हालत बिगड़ने लगी। डॉक्टरों ने हमें उनकी बायोप्सी कराने की सलाह दी। पवित्र सप्ताह के दौरान हमें डॉक्टरों के द्वारा बताया गया कि मेरी मां को कैंसर है। मेरा पूरा परिवार इस खबर से हिल गया। उस शाम, मैंने अपने कमरे में बैठे बैठे येशु की क्रूसित मूर्ति को निहारना शुरू किया। धीरे धीरे मेरी आंखों से आंसू बहने लगे और मैंने येशु से शिकायत की “दो साल से मैं हर दिन पवित्र मिस्सा में भाग लेता आया हूं। मैंने हर दिन रोज़री माला की प्रार्थना की है और मैंने अपना ज़्यादा से ज़्यादा समय ईश्वर के राज्य की सेवा में दिया है (उस वक्त मैं चर्च की युवा सभा में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया करता था)। मेरी प्यारी मां माता मरियम की बहुत बड़ी भक्त हैं। इसीलिए मैंने अपने दिल की गहराई से येशु से सवाल किया, “क्यों? आखिर हमारे जीवन में यह क्रूस क्यों?”

उस पवित्र सप्ताह, मैं बड़ी अंदरूनी पीड़ा से गुज़रा था। उस वक्त जब में अपने कमरे में बैठ कर येशु की क्रूसित मूर्ति को देख रहा था, तभी मेरे मन में एक खयाल आया। येशु अकेले अपना क्रूस ढोते हैं। कुछ समय बाद मुझे मेरे दिल में एक आवाज़ सुनाई दी, “जोसिन, क्या तुम क्रूस ढोने में मेरी मदद करोगे?” उस समय मुझे इस बात का अहसास हुआ कि येशु मुझे किस कार्य के लिए बुला रहे थे, और मेरे लिए मेरी बुलाहट और स्पष्ट हो गई। मुझे भी सिरीनी सिमोन की तरह क्रूस ढोने में येशु की सहायता करनी थी।

उन्ही दिनों, मैं युवा सभा के अपने गुरु से मिलने गया। मैंने उन्हें मां के कैंसर ग्रस्त होने और अपनी अंदरूनी पीड़ा के बारे में बताया। मेरी दुख तकलीफों के बारे में सुनने के बाद उन्होंने मुझे एक सलाह दी: “जोसिन, जब तुम अपनी इन तकलीफों के लिए प्रार्थना करोगे, तब तुम्हें या तो यह जवाब मिलेगा कि ईश्वर तुम्हारी मां को पूरी तरह ठीक कर देंगे, या फिर यह जवाब मिलेगा कि उनका ठीक होना ईश्वर की योजना में शामिल नही है, और यह एक तरह का क्रूस है जो तुम्हें ढोना पड़ेगा। पर एक बात हमेशा याद रखना, कि अगर यह एक क्रूस है जो तुम्हें ढोने दिया जा रहा है, तो फिर ईश्वर तुम्हें और तुम्हारे परिवार को इसे ढोने की शक्ति और अनुग्रह भी प्रदान करेंगे।”

धीरे धीरे मुझे यह समझ आने लगा कि ईश्वर ने मुझे एक क्रूस ढोने के लिए दिया था। लेकिन मेरे गुरु के कहे अनुसार ही ईश्वर ने ना केवल मुझे, बल्कि मेरे पूरे परिवार को अपना क्रूस ढोने के लिए शक्ति और अनुग्रह प्रदान किया। जैसे जैसे समय बीतता गया, मुझे इस बात का अहसास होने लगा कि कैंसर का यह क्रूस धीरे धीरे मेरे परिवार को शुद्ध कर रहा था। इसने हमारे विश्वास को बढ़ाया, इसने मेरे पिता को एक धार्मिक इंसान बनाया। इसने मुझे मेरी बुलाहाट को पहचानने और अपनाने का साहस दिया। इसने मेरी बहन को येशु के सानिध्य में आने में मदद की। इसी क्रूस के द्वारा मेरी मां शांतिपूर्ण तरीके से स्वर्ग सिधार पाईं।

याकूब के पत्र (1:12) में लिखा है, “धन्य है वह, जो विपत्ति में दृढ़ बना रहता है! परीक्षा में खरा उतरने पर उसे जीवन का मुकुट प्राप्त होगा, जिसे प्रभु ने अपने भक्तों को देने की प्रतिज्ञा की है।” जून 2018 के आते आते मेरी मां की तबियत हद से ज़्यादा बिगड़ने लगी। वे बहुत तकलीफ में थी, पर अपनी इस हालत में भी वह हमेशा खुश दिखती थीं। एक दिन उन्होंने मेरे पिता से कहा, “अब बस हो गया यह इलाज, बंद करो यह सब, आखिरकार मैं स्वर्ग ही तो जा रही हूं।” इसके कुछ दिनों बाद, उन्होनें एक सपना देखा। सपने से जागकर उन्होंने मेरे पिता से कहा, “मैंने एक अद्भुत सपना देखा!” पर जब तक वह उस सपने के बारे में कुछ कह पाती, मेरी मां सेलीन थॉमस इस दुनिया को छोड़ स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर चुकी थी।

दो साल, तीस कीमो थेरेपी और दो बड़े ऑपरेशनों के बीच मेरी मां ने लगातार पीड़ा सहते हुए भी, पूरे विश्वास के साथ अपने क्रूस को ढोया। इसीलिए मुझे पूरा भरोसा है कि आज वे ईश्वर को उनकी पूरी महिमा में देख रही होंगी।

वह रहस्य

क्या हम इस बात कि कल्पना कर सकते हैं कि ईश्वर हमसे कह रहे हैं, “मेरी मेज़ पर मेरे कई दोस्त मौजूद हैं, पर मेरे क्रूस के पास बहुत कम।” येशु को क्रूसित किए जाते वक्त मरियम मगदलेना बड़ी बहादुरी के साथ क्रूस के पास खड़ी रही। उसने ख्रीस्त के दुखभोग में उनका साथ देने की कोशिश की। और उसके इसी कार्य के फल स्वरूप तीन दिन बाद येशु के पुनर्जीवित होने पर मरियम मगदलेना को ही येशु के सबसे पहले दर्शन पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस सौभाग्य ने उसके दुख को आनंद में बदल दिया और उसे प्रेरितों से भी ऊंचा दर्जा प्रदान किया। कार्मेल के महान संत योहन कहते हैं, “जो लोग ख्रीस्त के क्रूस को नहीं खोजते, उन्हें ख्रीस्त की महिमा भी नही मिलती।” ख्रीस्त की महिमा उसके दुखभोग में छिपी है। यही क्रूस का अद्भुत रहस्य है। संत पेत्रुस हमें याद दिलाते हैं, “यदि आप लोगों पर अत्याचार किया जाए, तो मसीह के दुखभोग के सहभागी बन जाने के नाते आप प्रसन्न हो जाएं। जिस दिन मसीह की महिमा प्रकट होगी, आप लोग अत्याधिक आनंदित हो उठेंगे (1 पेत्रुस 4:13)। संत मरियम मगदलेना की तरह ही, अगर हम भी अपनी इच्छा से क्रूस के नीचे खड़े रह कर ईश्वर के दुख में भाग लेते हैं, तब हम भी उस पुनर्जीवित ईश्वर को देखेंगे। वह ईश्वर जो हमारी समस्याओं को समाधान, हमारी परीक्षाओं को साक्ष्य और हमारी चुनौतियों को जीत में बदल देता है।

हे प्रभु येशु, मैं मां मरियम के माध्यम से  स्वयं को तुझे समर्पित करता हूं। मुझे जीवन भर तेरे पीछे पीछे अपना क्रूस ढोकर चलने की शक्ति दे। आमेन।

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Brother Josin Thomas O.P

Brother Josin Thomas O.P has been an active member of the Jesus Youth movement and passionately involved in various activities of Shalom Media. Currently he is a Novice with the Dominicans in Goa, India.

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