Home/Encounter/Article

अगस्त 20, 2021 3629 0 Shalom Tidings
Encounter

एक कोरियाई शहीद जो कुछ नहीं जानता था

किम ए-गी अगाथा और उनके पति का ख्रीस्तीय धर्म या कैथलिक संप्रदाय से कोई संपर्क नहीं था। वे कन्फ्यूशीवाद धर्म का पालन करते थे। लेकिन अगाथा की बड़ी बहन, जो एक धर्मी कैथलिक थी, एक बार उससे भेंट करने आई। उन्होंने देखा की अगाथा के घर में चावल रखने का एक बड़ा पैतृक बक्सा था, जिस  पर कन्फ्यूशीवाद धर्म से सम्बंधित परम्परागत उद्धरण लिखे हुए थे| उनकी पारंपरिक आस्था के इन कर्मकांड के इन साज सामान को देखते हुए, उसने अपनी छोटी बहन से पूछा, “तुम ने इन चीजों को क्यों पकड़ का रखा है? ये सब अंधविश्वास के अलावा कुछ नहीं हैं!”

उसकी बहन ने घोषणा की कि दुनिया का एक सच्चा शासक येशु मसीह है। उसने अपनी बहन से कहा: “अपने अंधेरे से जागो और सत्य के प्रकाश को स्वीकार करो।”

अपनी बहन के आग्रह से अगाथा में एक बड़ी लालसा पैदा हुई। यह जानते हुए भी कि उसके पति और उसके परिवार की परंपरा के खिलाफ जाना मुश्किल होगा, फिर भी उसने मसीह को स्वीकार करने और जो भी कठिनाइयाँ आ सकती हैं, उन्हें सहन करने की ठान ली।

अगाथा बहुत बुद्धिशाली नहीं थी। उसने बहुत कोशिश की, लेकिन वह प्रात:कालीन और संध्या प्रार्थना को याद करने में असमर्थ थी। आखिरकार, लोग उसे “येशु और मरियम के अलावा कुछ नहीं जाननेवाली महिला” कहने लगे। विश्वास की शिक्षा और प्रार्थना सीखने में असमर्थता के कारण, किम ए-गी अगाथा को शुरू में बपतिस्मा नहीं दिया गया था।

सितंबर 1836 में अगाथा और दो अन्य महिलाओं को उनके कैथलिक विश्वास के लिए गिरफ्तार किया गया। जब अगाथा से पूछताछ की गई तो वह दृढ़ता के साथ अपने उत्पीदकों के सामने खड़ी होकर कहती रही कि, “मुझे येशु और मरियम के अलावा कुछ नहीं पता। मैं उन्हें अस्वीकार नहीं करूंगी।” उसके साहसी गवाह के कारण, वह उत्पीड़न के दौरान जेल में बपतिस्मा लेने वाली पहली व्यक्ति बन गयी।

दोषी ठहराए गए अन्य ख्रीस्तीयों के साथ, अगाथा के हाथ और बाल को एक विशाल क्रूस पर बांध दिया गया और उसे एक बैलगाड़ी के ऊपर खड़ा कर दिया गया। एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर, सिपाहियों ने  बैलों को ऊपर से नीचे ढलान तक दौड़ने के लिए मजबूर किया। सड़क उबड़-खाबड़ थी, जिसमें कई पत्थर थे। गाड़ियां लड़खड़ा गईं जिससे गाड़ियों के  ऊपर खड़े किये गए सूली पर लटके उन साहसी कैदियों को बड़ी पीड़ा हुई। इस क्रूर कार्य के बाद, पहाड़ी के तल पर, जल्लादों ने हिंसक रूप से प्रत्येक संत शहीदों का सिर काट दिया।

जिस प्रकार येशु ने दोपहर के तीन बजे अंतिम सांस ली, उसी प्रकार ठीक उसी समय अगाथा और आठ अन्य शहीदों ने अपनी महिमा का मुकुट प्राप्त किया। लगभग एक सौ साल बाद 5 जुलाई, 1925 को किम ए-गी अगाथा को अन्य शहीदों के साथ धन्य घोषित किया गया। संत पापा  जॉन पॉल द्वितीय द्वारा 6 मई, 1984 को कोरिया देश में ही आयोजित समारोह में उन्हें संत घोषित किया गया।

Share:

Shalom Tidings

Shalom Tidings

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Neueste Artikel