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एक पुस्तक जो आपकी जिंदगी बदल सकती है
हिप्पो के संत अगस्तीन अब तक के सबसे महान संतों में से एक माना जाता है। हालाँकि, वे अपनी युवावस्था में बड़े पापी रहे और नव-अफ्लातून-वाद और मैनिकेयन-वाद जैसे ख्रीस्तीय विश्वास विरोधी दार्शनिक विचारधाराओं को उन्होंने अपना लिया था। उनके पश्चाताप के लिए उनकी माँ की उत्कट आग्रह के बावजूद, विवाह किये बिना उन्होंने एक महिला के साथ रहना जारी रखा, और परिणामस्वरूप उन दोनों का एक बच्चा भी पैदा हुआ।
तो, अब तक के सबसे महान संतों में से एक, जो बाद में कलीसिया के आचार्य बने, अपने पाप से कलंकित जीवन से निकलकर सच्चे विश्वास में कैसे परिवर्तित हुए ?
इसका उत्तर है: परमेश्वर का वचन।
‘कन्फेशन्स’ नामक अपने ग्रन्थ में, संत अगस्तीन बताते हैं कि कैथलिक धर्म में उनका रूपांतरण अचानक नहीं हुआ था। हालाँकि कैथलिक बनने की उन्हें तीव्र इच्छा थी, लेकिन कलीसिया की कुछ शिक्षाओं का पालन करने में उन्हें बहुत अधिक संघर्ष करना पडा – विशेष रूप से ब्रह्मचर्य की। उन्होंने लिखा कि उन्हें पवित्र बनाने के लिए वे ईश्वर से प्रार्थना करते रहे, लेकिन ऐसा बहुत सालों तक ऐसा हुआ नहीं।
एक दिन, अगस्तीन की हताशा सिर चढ़ गई। उन्होंने अपने दिल को पूरी तरह से बदल देने के लिए ईश्वर से तीव्रता से विनती की। वह कैथलिक बनना चाहता था और कलीसिया की शिक्षाओं को पूरी तरह से अपनाना चाहता था, लेकिन खुद को शरीर की वासना के पापों से अलग करना उन्हें असंभव जैसा लगा। अगस्ती गहरे चिंतन और साधना के लिए एक बगीचे में चले गए। वे ‘कन्फेशन्स’ में लिखते हैं कि उन्होंने एक बच्चे की आवाज़ सुनी जो उन्हें पवित्र धर्म ग्रन्थ, जिसे वे अपने साथ बगीचे में लाए थे, उसे उठाकर पढने के लिए प्रेरित किया। तुरंत, अगस्तीन ने ग्रन्थ में रोमियों के नाम पौलुस का पत्र 13:13-14 को खोला और पढ़ा:
“हम दिन के योग्य सदाचरण करें। हम रंगरेलियों और नशेबाजी, व्यभिचार और भोगविलास, झगड़े और ईर्ष्या से दूर रहें। इसके बदले आप लोग प्रभु येशु मसीह को धारण करें और शरीर की वासनाएं तृप्त करने का विचार छोड़ दें।”
उन वचनों को पढ़ने के बाद, अगस्तीन को लगा कि उनके जीवन को बदलने का यही उपयुक्त समय है।
हम सभी हृदय परिवर्तन के लिए बुलाये गए हैं, लेकिन हम में से अधिकांश के लिए यह आसान नहीं है। हालाँकि, हम संत अगस्तीन के जीवन से सीख सकते हैं कि परमेश्वर का वचन हमारे बेचैन दिलों से सीधे बात करता है और हमें अपने प्रभु के पास पहुँचने के मार्ग का मानचित्र प्रदान करता है।
'विश्व-प्रसिद्ध जादूगर और बाजीगर डेविड ब्लेन ने 2 सितंबर 2020 की सुबह कुछ ऐसा कार्य किया, जिसका दूसरे लोग केवल सपने देख सकते हैं। वास्तव में जब वह 5 साल का था, उन दिनों अपनी मां के साथ बैठकर एक फिल्म में ख़्वाब देखा था, वह ख़्वाब डेविड का अपना ख़्वाब बन चुका था। जबसे उसकी बच्ची डेसा का जन्म हुआ था, तब से किसी प्रकार की डरावनी हरकतें नहीं करने का वादा डेविड ने किया था| लेकिन अब वह कुछ खूबसूरत कार्य करके अपनी बच्ची को प्रेरित करना चाहता था। उसने अपने आप को 52 बड़े हीलियम गुब्बारों से बांधा और आकाश की ओर उड़ गया।
जैसे ही वह धीरे-धीरे ऊंचाई हासिल कर रहा था, वह चढ़ाई को नियंत्रित रखने के लिए अपने पर रखे गए भार को एक एक कर गिराता रहा। वह अंततः 24,900 फीट की ऊँचाई पर पहुँच गया (कुछ छोटी हवाई जहाज इतनी उंचाई तक उड़ान भरती है)। वहां से, उसने खुद को गुब्बारों से अलग किया और कूद गया। जब वह 7000 फीट तक पहुंच गया, तो उसने अपना पैराशूट खोला और जल्द ही सुरक्षित नीचे ज़मीन पर उतरा। जैसे ही वह अपने शारीरिक संतुलन में वापस आ गया, तो उसने अपनी बेटी से बात की जो लगातार वायरलेस रेडियो पर उसे सुन रही थी| उसने डेसा को बताया कि उसने यह सब उसी केलिए किया है और वह डेसा से बहुत प्यार करता है। और डेसा ने कहा, “धन्यवाद पिताजी, आपने यह किया, धन्यवाद”।
एक पिता और उसकी बेटी के बीच की यह प्यार भरी कहानी, हमें अपने स्वर्गीय पिता के प्यार की याद दिलाती है, जो हमारे प्रति अपने प्यार के कारण अपने इकलौते बेटे को त्याग देता है, जो न केवल हमारे नीच अवस्था में हमारे बीच रहा, बल्कि स्वेच्छा से दुख और घावों को स्वीकार किया, ताकि आप और मैं चंगा हो सकता हूँ। वह सूली का भारी बोझ लिए कलवारी पहाड़ की ओर बढ़ा, सूली पर चढ़ गया, मर गया और हमारे लिए फिर से जी उठा, ताकि हम अनंत काल तक उसके साथ रह सकें। वह आज भी हमें उसी तीव्रता से प्यार करता है, अब भी करता है। यह कैसा प्यार है ?!
डेविड ने अपनी छोटी लड़की के लिए जो किया, उसे देखकर कोई भी आश्चर्य चकित, दंग, अवाक, भौचक, विस्मित, सम्मोहित, स्तंभित और अभिभूत हो सकता है । लेकिन हमारे स्वर्गिक पिता ने हमारे लिए जो किया है, उस पर हमें कितना अभिभूत, विस्मित और आश्चर्य चकित होना चाहिए। हम भी खुशी से पुकार सकते हैं, “धन्यवाद पिताजी! आपने यह किया! धन्यवाद!”
'क्या कोई अपने दुश्मन से कोई सबक सीखना चाहेगा? आइये जानते हैं कि कैसे जीवन की कठिनाइयां ही हमें बहुत कुछ सिखा जाती हैं – चाहे वो छोटी छोटी आज़ादी का छीन जाना हो, या घर छोड़ने को मजबूर होना या किसी अपने को खो देने का गम हो|
क्या हम पवित्र मिस्सा को “एक लौकिक अद्भुत” या “दुनियावी चमत्कार” कह सकते हैं? शायद यही कैथलिक विरोधाभासी शब्द सुन्दर यूखरिस्त संस्कार को ठीक तरह से वर्णित करने में सक्षम है। आखिरकार, इसी संस्कार के द्वारा ही तो हम दैनिक रूप से परम प्रसाद के रूप में अपने पुनर्जीवित येशु को ग्रहण कर पाते हैं। कैथलिक लोग, ईश्वर की कृपा से सिर्फ एक घंटा उपवास करने के बाद, परम प्रसाद के द्वारा इस बहुमूल्य भेंट को ग्रहण कर पाते हैं। इसे ग्रहण करने के लिए ना ही कोई एडमिट कार्ड लगता है, ना ही कोई प्रमाण पत्र, बस खुद की अंतरात्मा की रज़ामंदी लगती है कि हमने कोई बड़ा पाप नहीं किया है। इस प्रकार ईश्वर का यह बलिदान हम बड़ी आसानी से ग्रहण कर पाते थे। पर फिर कोरोना ने हमारी ज़िंदगियों में प्रवेश किया।
क्या कभी कोई सोच सकता था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब हमारी सरकार गिरजाघरों को बंद करने का आदेश निकालेगी, या एक ऐसा समय आएगा जब दैनिक मिस्सा तो छोड़िए रविवार का मिस्सा तक बंद करवा दिया जाएगा? लेकिन ईश्वर को धन्यवाद उस टेक्नोलॉजी के लिए जिसकी वजह से हमारे पुरोहित इंटरनेट पर ऑन लाइन लाइव मिस्सा चढ़ा पाए। मेरे लिए मेरी रसोई मेरा गिरजाघर बन गयी जहां मैं अपने फोन पर ईश्वर का वचन सुन पाई हूं। हमारे पुरोहित इंटरनेट पर ही मिस्सा चढ़ा कर परम प्रसाद बांट दिया करते थे और लोग अपने घरों में, अपने प्रार्थना कक्ष में ही बैठे बैठे आध्यात्मिक रूप से ईश्वर को ग्रहण कर पा रहे थे।
लेकिन फिर दिन महीनों में बदलने लगे और सभी के मन में एक आध्यात्मिक भूख पैदा हुई। यह भूख खुद गिरजाघर में जा कर अपने हाथों से परम प्रसाद ग्रहण करने की थी, जो पूरी नहीं हो पा रही थी। शायद यह हम सब की ज़िन्दगी में पहली बार था, जब हमें इस बात का एहसास हुआ कि यूखरिस्त संस्कार की अनुपस्थिति हमें किस तरह प्रभावित करती है। हमारा लौकिक चमत्कार अब एक खोया हुआ चमत्कार बन कर रह गया था।
उन दिनों रेस्टोरेंट बंद थे, लेकिन फोन पर खाना मंगवाने की सुविधा फिर भी चालू थी। धीरे धीरे कड़े दिशा निर्देशों के बीच रेस्टोरेंट भी खोले जाने लगे। सबसे खुशी की बात यह थी कि सरकार ने नियमित मिस्सा और रविवार का मिस्सा फिर से चालू करने की इजाज़त दे दी। लेकिन इन सब में भाग लेने के लिए लोगों को मास्क पहनने और दो गज़ दूरी बनाए रखने के कड़े निर्देश मिले थे। लगभग 88 दिन यूखरिस्त संस्कार ग्रहण ना करने के बाद मैं जीवित येशु को ग्रहण करने के लिए भूखी थी। इतने दिनों बाद जब मैंने और मेरे पल्ली के लोगों ने भीगी पलकों से यूखरिस्त संस्कार ग्रहण किया, तभी हमारी यह आध्यात्मिक भूख शांत हुई। परम प्रसाद ग्रहण करते हुए मेरा दिल फूला नहीं समा रहा था कि आखिरकार मैं अपने उस प्यारे दोस्त से फिर से मिल पा रही थी जिसने मेरे लिए अपनी जान दी। यूखरिस्त संस्कार ग्रहण करने के बाद के वो कुछ पल, जिसमें मैंने ईश्वर के इस बहुमूल्य भेंट पर मनन चिंतन किया, इन्हीं पलों ने इतने दिनों की जुदाई के ग़म को पूरी तरह मिटा दिया।
तभी मुझे यह समझ आया कि कोरोना काल हमें यह सिखाने आया है कि यूखरिस्त हमारी आत्मा का भोजन है। जब हम पवित्र मिस्सा के दौरान परम प्रसाद को ग्रहण करते हैं तब हमारा वह भूखा दिल तृप्त होता है जो मिस्सा के बाद इस दुनिया में वापस जाता है। हमारी दुनिया को परम प्रसाद रूपी इस भोजन की ज़रूरत है। मैं हर रोज़ प्रार्थना करती हूं कि मैं ईश्वर को दूसरों तक पहुंचा पाऊं। और इसी तरह हमें लगातार अपनी भूखी दुनिया के लिए ईश्वर को ग्रहण कर के उसे वितरित करने का काम जारी रखना है।
मिस्सा के बाद जब हमारे पुरोहित कहते हैं “आप लोग विदा लें” तब हमें यह याद रखना है कि हम “ईश्वर के साथ विदा लें”, और साथ ही साथ अपने दिल में उस आध्यात्मिक भोजन को साथ ले चलें ताकि हम उसे औरों को भी दे सकें। चाहे वह भोजन एक मुस्कान, एक भले वचन, एक दिलासा, एक मदद के रूप में ही क्यों ना हो। ईश्वर खुद हमारा मार्गदर्शन करेंगे और हमें बताएंगे कि कहां और किसे उसके आध्यात्मिक भोजन की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। कितनी अजीब बात है कि कोरोना जैसी बीमारी भी हमें इस तरह का कुछ सिखा सकती है। या शायद ज़िन्दगी के सबसे अंधियारे भरे दिनों में ही हम रौशनी को पूरी जी जान से खोजते हैं और उसी समय ईश्वर हम पर अपनी समझ बरसाते हैं।
'मैं एक बड़े परिवार में पली बढ़ी हूँ| हम दस भाई बहन हैं और व्यवहार में एक दूसरे से काफी अलग| इसलिए हमारा घर हमेशा शोर शराबे और शरारतों से भरपूर रहा है| लेकिन इस शोरगुल के बीच ढेर सारा प्यार और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास भी रहा है| मुझे अक्सर वे दिन याद आते हैं जब मैं और मेरे भाई-बहन रोज़ कोई ना कोई लड़ाई या किसी ना किसी बात को लेकर माँ को घेर लेते थे और उन्हें बेवजह तंग करते थें|
अक्सर, माँ हमारे इन रोज़मर्रा के लड़ाई-झगड़ों के जवाब में, अपनी शांत आवाज़ में बस येशु के पर्वत प्रवचन को धीमे से दोहरा देती थीं: “धन्य है वे जो शांति स्थापित करते हैं, वे ईश्वर की संतान कहलाएंगे|” उनकी ये बातें सुनते ही हम झगड़ना छोड़ देते थे और एक दूसरे को माफ़ कर आपस में सुलह कर लेते थे| समय के साथ साथ माँ की कही हुई कईं ऐसी ज्ञान भरी बातें अब मेरी अंतरात्मा की आवाज़ बन गई हैं| और ख़ास तौर पर जिन मुश्किल हालातों और उलझी हुई परिस्थितियों में हम इन दिनों जी रहे हैं, उस में यह आवाज़ और उभरकर मुझे राह दिखाती है|
लेकिन हैरानी की बात यह है, कि यह दुनिया उस माहौल से ज़्यादा अलग नही है, जिस मे मैं पली बढ़ी हूँ| यह दुनिया भी उतनी ही शोर शराबे और उथल पुथल अव्यवस्था से भरी है| लेकिन साथ ही साथ इस में ढेर सारा प्यार और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास भी है| हालांकि मैं यह समझती हूँ कि इस दुनिया में सबके मिज़ाज, सबकी सोच, सबका चाल-चलन, सबकी ज़रूरतें मेल नही खाती, फिर भी, मेरा मानना है कि सामूहिक रूप से कहीं ना कहीं एक दूसरे के प्रति प्रेम और शांति की भावना है|
मेरे पापा की पसंदीदा प्रार्थना बड़ी ही सहज और सुन्दर प्रार्थना थी | यह संत फ्रांसिस की प्रार्थना है, और समय के साथ इस प्रार्थना का मतलब मेरे जीवन में और भी गहरा होता गया है| हम आजकल जिन हालातों में जी रहे हैं, उनके लिए यह प्रार्थना बहुत मददगार है| यह सिर्फ शांति की प्रार्थना ही नही बल्कि यह एक ऐसी प्रार्थना है जो उस राह को खोजती है जिससे हम शांति फैलाने का माध्यम बन सकते हैं|
यह प्रार्थना हमें दूसरों की सेवा करने केलिए खुद को त्यागने की मांग करती है, और अपनी इस दर्द भरी, घायल दुनिया को चंगा करें| जब भी मैं इस प्रार्थना के हृदय स्पर्शी शब्दों पर मनन-चिंतन करती हूँ, मेरा दिल उन लोगों केलिए करुणा और सांत्वना से भर जाता है जो किसी भी रूप में घायल हैं| और मेरे मन में उन्हें ठीक करने, उन्हें सहारा देने, और उन्हें मानसिक शांति दिलाने की इच्छा जागती है|
सब लोग असीसी के संत फ्रांसिस की प्रार्थना के शब्दों को अपने जीवन का हिस्सा बना लेंगे तो यह दुनिया कितनी अलग, अनोखी और कितनी प्यारी होगी |
हे प्रभु, मुझे अपनी शान्ति का माध्यम बना|
जहां घृणा हो, वहाँ मैं प्रेम के बीज बोऊँ
जहां चोट हो, वहां मैं क्षमा का भाव उपजाऊँ
जहां संदेह हो, वहाँ मैं विश्वास ला सकूं
जहां निराशा हो, वहाँ आशा लाऊँ
जहां अंधेरा हो, वहाँ रौशनी फैलाऊँ
जहां दुःख हो, वहाँ ख़ुशियाँ ला सकूं|
हे मेरे स्वर्गीय स्वामी, मेरी मदद कर कि मैं
दिलासा पाने की नहीं, देने की कोशिश करूँ|
समझे जाने की नहीं, समझ पाने की कोशिश करूँ
प्यार पाने की नहीं, प्यार देने की कोशिश में रहूँ
क्योंकि जब हम बांटते हैं, तभी हमें दिया जाता है
जब हम क्षमा करते हैं तभी हमें क्षमा मिलती है
और जब हम मरते हैं तभी हम अनंत जीवन प्राप्त करते हैं|
'क्या ईश्वर को सच में कोई फर्क पड़ता है कि हमारी ज़िंदगी में क्या चल रहा है? यह कहानी, चाहे सच्ची हो या झूठी, यह आपके नज़रिए में कुछ बदलाव तो ज़रूर लाएगी। दूसरे विश्व युद्ध की बात है, एक सिपाही लड़ाई करते करते अपनी सेना की टुकड़ी से बिछुड़ गया। लड़ाई बहुत ही ज़्यादा भयानक हो चली थी, जिसकी वजह से धुएं और गोलियां की बौछार से गुमराह हो कर वह सिपाही अपने साथियों के सम्पर्क से काफी दूर निकल गया। तभी घने जंगल में अकेले भटकते हुए उसने शत्रु सैनिकों के आने की आहट सुनी। खुद को बचाने की जल्दी में वह एक पहाड़ी पर पहुंचा जहां उसे कुछ छोटी छोटी गुफाएं दिखाई दीं। वह जल्दी से रेंगता हुआ उनमें से एक के अंदर जा छुपा।
कुछ समय के लिए उसने खुद को दुश्मनों से सुरक्षित समझा, फिर उसे डर लगने लगा कि अगर दुश्मन भी इस पहाड़ी पर पहुंच गए तो उन्हें उसे खोज निकालने में ज़्यादा समय नही लगेगा। इसी घबराहट में बैठे बैठे उसने प्रार्थना की “हे प्रभु मेरी जान बख़्श दीजिए। अब आगे मेरे साथ जो भी हो, मैं आपसे प्यार करता हूं और आप पर विश्वास करता हूं। आमेन।” इन सब के बीच उसे दुश्मन सिपाहियों की टुकड़ी के बूट की आवाज़ प्रतिपल नज़दीक आती सुनाई दे रही थी।
“लगता है कि इस बार शायद ईश्वर मेरी मदद नहीं करेंगे”, उसने दुखी हो कर सोचा। इसी उदासी में बैठे बैठे वह एक मकड़ी को गुफा के द्वार पर जाल बुनते हुए देखने लगा। परेशान हो कर उसने कहा, “मुझे इस वक्त बचने के लिए ईंट की एक मज़बूत दीवार की ज़रूरत है, और प्रभु ने मेरे लिए मकड़ी के जाले भेज दिए। ईश्वर के मज़ाक करने का तरीका भी निराला है।” अब दुश्मनों की टुकड़ी उस गुफा के काफी नजदीक आ चुकी थी। एक दुश्मन सिपाही उस गुफा की तलाशी लेने ही वाला था, तब दूसरे दुश्मन सिपाही ने उसे रोक कर कहा, “उस गुफा की तलाशी में समय बर्बाद करने की कोई ज़रूरत नहीं है… क्योंकि उसके सामने इतने मकड़ी के जाले हैं, अगर कोई सिपाही इसमें घुसा हो तो इन मकड़ी के जालों को तोड़कर ही अंदर घुस पाता!”
और इसी तरह, सिपाही के देखते ही देखते, उसके दुश्मन उस गुफा पर एक सरसरी निगाह दौड़ा कर आगे बढ़ गए। उस नाज़ुक से मकड़ी के जाले ने ही आखिरकार उसकी जान बचाई। “माफ कीजियेगा प्रभु” उसने कहा। “मैं भूल गया था कि आप एक मकड़ी के जाले को भी एक ईंट की दीवार से कहीं ज़्यादा मज़बूत बना सकते हैं।”
“ज्ञानियों को लज्जित करने केलिए ईश्वर ने उन लोगों को चुना है जो दुनिया की दृष्टि में मूर्ख्हाई| शक्तिशालियों को को लज्जित करने केलिए उसने उन लोगों को चुना है जो दुनिया की दृष्टि में दुर्बल है |” (1 कुरिन्थी 1:27)
'एक दोपहर की बात है। धर्मगुरु पादरे पिओ, अपने कमरे के बाहर बरामदा में अकेले बैठे थे। उनके सहयोगी फादर अलेसियो को लगा कि लोगों ने पादरे पिओ से सलाह-मशविरा मांगते हुए जो ख़त भेजे हैं, उन का जवाब मांगने का सही अवसर है। लेकिन पादरे पिओ के जवाब ने उन्हें आश्चर्य-चकित कर दिया। उन्होंने कहा, “मैं अभी काफी व्यस्त हूं। मैं इस समय इन सवालों का जवाब नहीं दे सकता।”
यह बात सुन कर फादर अलेसियो सोच में पड़ गए। इस बात में कोई शक नहीं था कि पादरे पिओ उस समय व्यस्त नहीं थे। वे बस रोज़री हाथ में लिए अकेले बैठे थे, पर वे तो हमेशा ही रोज़री हाथ में लिए रहते थे। बाद में पादरे पिओ ने समझाया: “आज मेरे लिए मेरी आध्यात्मिक संतानों के सन्देश लेकर कई रखवाले दूत आए थे।” आने वाले सालों में फादर अलेसियो ने खुद कई बार अपने दरवाज़े पर रहस्यमय आहटें सुनी। जिन दिनों पादरे पिओ अपने आप बिना किसी सहारे के चल-फिर नहीं पाते थे उन दिनों कभी कभी फादर अलेसियो को अपने कानों में पादरे पिओ के रखवाले दूत की फुसफुसाहट सुनाई देती थी, जो उन्हें तब पादरे पिओ की मदद करने के लिए उनके पास जाने को कहते थे।
हर इंसान को ईश्वर की ओर से एक रखवाला दूत मिला है, और यह दूत हर वक्त ईश्वर के चेहरे को देख पाता है। इन दूतों का काम है हमें ईश्वर की उपस्थिति की ओर मार्गदर्शित करना, ताकि हम अंत में स्वर्ग में अपना स्थान प्राप्त कर सकें। जब भी आप किसी ज़रूरत में हो, तो अपने रखवाले दूत को अपनी मदद करने के लिए पुकारें। अपने रखवाले दूत को अपने दोस्त को उनके निराशा के समय में सांत्वना देने के लिए भेजें। और याद रखें, आप जो कुछ भी करते हैं, आपका रखवाला दूत आपके हर अच्छे और बुरे काम को देखता है।
ईश्वर के दूत, मेरे रखवाले दूत, जिसे ईश्वर का प्रेम मुझसे बांधे रखता है; हर दिन मेरे साथ रहो, मेरे पास रहो, और मुझे ईश्वर की रोशनी में चलने के लिए मार्गदर्शित करो। आमेन।
'प्लास्टिक? धूल से ढका हुआ? तो यह वह आदमी नहीं |
एक अजीब आभास
एक समय था जब मैंने संतों की बहुत सारी पुरानी मूर्तियों को देखा था तब मुझे लगता था कि संत लोग प्लास्टिक के बने हुए हैं और वे धूल से ढंके हैं। वे मुझे और मेरी दुनिया के बारे में क्या जानते या क्या परवाह कर सकते थे? समय के साथ-साथ, मुझे एक आंतरिक ‘आभास या संकेत’ मिलने लगा कि संत जोसेफ मेरा ध्यान चाह रहे हैं। मुझे पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है। लेकिन यह आभास मेरे मन से दूर नहीं जा रहा था। मैं कभी-कभी गिरजाघर में उनकी मूर्ती के सामने घुटने टेकती थी और कुछ संवादात्मक बातें छेड़ा करती थी, जैसे, “हैलो जोसेफ, मैं आप को नहीं जानती। क्या आप सच में मेरा ध्यान चाह रहे हैं?” मैंने कभी जवाब नहीं सुना। फिर भी मैं इस धारणा को हिला नहीं सकी कि वे मुझसे जुड़ने की कोशिश कर रहे थे ।
मैं एक अविवाहित महिला हूं जो अपने आसपास तकनीकी या डिजिटल खराबी आने पर अक्सर बेतहाशा निराश हो जाती है। एक प्रयोग के रूप में, मैंने संत जोसेफ से इन स्थितियों के बारे में पूछना शुरू किया और मैंने देखा कि वे कई तरह के रचनात्मक तरीके से जवाब दे रहे थे। इसका मेर ऊपर बहुत असर हुआ। कुछ वर्षों के बाद, मुझे विश्वास हो गया कि संत जोसेफ वास्तव में मेरी टीम में है। मैं मुस्कुराती हुई दोस्तों से कहने लगी, “वह मेरा मुख्य आदमी है!” संत जोसेफ बड़े और छोटे मामलों में मेरी देखभाल करते थे। लेकिन हाल ही में उन्होंने मेरे कहने से पहले ही मेरी सुरक्षा की, जबकि मुझे पता ही नहीं था कि मुझे सुरक्षा की जरूरत है।
मेरी दोस्त कैथी ने एक संदेश छोड़ दिया था कि अगले दिन आराधना की घड़ी पर उसके बदले मुझे प्रार्थना की अगुवाई करनी होगी। चूंकि मैं समय पर उसे जवाब नहीं दे सकी, इसलिए जैसी उसकी मांग थी, वैसे मैं अगले दिन गिरजाघर में पहुँच गयी। मैं आमतौर पर अपनी गाड़ी को पार्किंग स्थल की उत्तरी छोर पर पार्क करती थी | उस दिन अकस्मात मैं ने पार्किंग स्थल के दक्षिणी हिस्से में गाडी पार्क किया। गिरजाघर के अन्दर, जैसे ही मैंने घुटने टेका, मैंने अपने दोस्त एंडी को आते हुए देखा। लेकिन वह आगे नहीं जा रहा था। वह मेरे पास आकर झुक गया और फुसफुसाया कि मेरे कार के ड्राइवर साइड के पीछे के टायर से हवा निकल गयी है। मैं कुछ हैरान हुई, एंडी को धन्यवाद दिया, संत जोसेफ से स्थिति संभालने केलिए एक त्वरित प्रार्थना की, और टायर को दिमाग से बाहर कर दिया और प्रार्थना में बनी रही। जब मैं अपनी आराधना का वह घंटा पूरा कर रही थी, तब एंडी अचानक फिर से दिखाई दिया। इस बार उसकी आवाज़ में तीव्रता थी: “उस टायर के सहारे तुम गाडी बिल्कुल नहीं चला पाओगी। मेरे पास एक उपकरण है जो तुम्हारे टायर में हवा भर सकता है। मैं अभी दौड़कर जाता हूँ और लेकर आता हूँ। दस मिनट में आ जाऊंगा। ”
जब मैं एंडी की वापसी का इंतजार कर रही थी, तब एक दोस्त आई। हम दोनों ने मिलकर मेरे टायर की जांच की और हम दोनों को लग रहा था की टायर में कुछ हवा रह गयी है। मुझे यकीन था कि अगर मैं दो मील दूर अपनी टायर की दुकान केलिए कार से निकल जाती तो आराम से पहुँच जाती। लेकिन मेरे पास एंडी से संपर्क करने का कोई तरीका नहीं था, जबकि मैं उसे छोड़ नहीं सकती थी, क्योंकि वह मेरी मदद के लिए मेहनत कर रहा था। इसके अलावा मेरे दिमाग में एक और विचार आया कि एंडी पेशे से “कार वाला” है| उसके पास मुझ से बेहतर “कार आंख” हो सकती है| जब एंडी पहुंचा और उसने अपने उपकरण को टायर पर लगाया तो टायर की हवा 6 पाउंड दिखा रहा था जबकि कार चलाने के लिए 30-35 पाउंड की ज़रुरत थी। यदि मैं एंडी के आने से पहले गाडी आगे ले जाती तो मैं उस टायर को बर्बाद कर देती। ओह! जब एंडी टायर में हवा भर रहां था, मैंने उसे बताया कि मैं कैथी के अनुरोध पर उस सुबह वहां थी। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जब एंडी ने कहा कि वह भी कैथी के कहने पर आया था| शायद कैथी मुझ से संपर्क नहीं कर पा रही थी इस लिए उसने एंडी को भी आराधना की घड़ी संभालने के लिए कहा था । कौन जानता था कि हम दोनों एक ही कार्य के लिए एक साथ प्रकट हो जायेंगे !
एक स्वर्गीय योजना?
गेराज पर मैकेनिक ने मेरे टायर से एक कील निकाल ली और टायर की मरम्मत कर ली। मुझे पैसे का कोई भुगतान नहीं करना पडा| जब मैं कार चलाती हुई घर की ओर जा रही थी और मैं ईश्वर को उसकी देखभाल के लिए धन्यवाद दे रही थी, तब अचानक संत जोसेफ मेरे दिल-ओ-दिमाग में प्रकट हए। और मेरे दिमाग में सवाल उठने लगे: क्या संत जोसफ उस दिन मुझे बचाने के लिए एक स्वर्गीय योजना का हिस्सा था … या बाद में जब मैं राजमार्ग पर यात्रा करती, तब मुझे किसी संभावित विस्फोट से बचाने के लिए संत जोसफ की यह अजीब स्वर्गीय योजना थी ?
क्या यह सिर्फ संयोग था कि एंडी और मैं, हम दोनों आराधना के लिए आये थे, और मैंने उस दिन उत्तरी छोर में कार पार्क किया था, जबकि मैं आमतौर पर दक्षिणी छोर में पार्क किया करती थी। और उस विशाल पार्किंग में एंडी, अपने उत्सुक मैकेनिक की आंख के साथ, बस मेरे कार के ठीक सामने पहुँच गया, जहां वह आसानी से मेरे हवा विहीन टायर को देख सकता था।
क्या ये सभी संयोग थे? यकीनन, स्वर्ग की बातें मैं नहीं जानती। लेकिन मैं यह निश्चित तौर पर जानती हूं कि संत लोग हमसे बहुत दूर नहीं हैं और कभी-कभी वे वास्तव में हमारे रोज़मर्रा के छोटे मोटे मामलों में दखल देते हैं। और कभी-कभी हमारी मांग किये बिना ही – उनके अदृश्य स्वर्गीय उंगलियों के निशान सबसे अनजान या अभिशप्त स्थानों में भी दिखाई देते हैं। मुझे पता है कि संत जोसेफ प्लास्टिक, प्लास्टर ऑफ़ पेरिस या लकड़ी के बने नहीं है, निश्चित तौर पर दूर तक नहीं। यह शक्तिशाली आदमी अपने स्वर्गीय संबंधों और ताकत के साथ मुझे दिखाते हैं कि वास्तव में मेरे ऊपर उसकी दृष्टि रहती है। न केवल वह मुझे कभी भी मेरे निवेदन पर, अनजान व भयंकर सड़कों पर चलने के लिए दिशा निर्देश देते हैं, बल्कि कभी जब मुझे उसकी मदद की ज़रुरत के बारे में पता ही नहीं, ऐसे में भी वह मेरी सक्रिय देखभाल करते हैं।
हे संत जोसेफ तेरा संरक्षण इतना बड़ा, इतना मजबूत, इतना शीघ्र है, परमेश्वर के सिंहासन के सम्मुख तुझमें मैं अपने सभी हितों और इच्छाओं को रखता हूं। अपनी शक्तिशाली मध्यस्थता के द्वारा मेरी सहायता कर कि मैं हमेशा ईश्वर की पवित्र इच्छा की तलाश करूँ। मुक्ति के मार्ग में तू मेरा रक्षक और मेरा मार्गदर्शक बन। आमेन ।
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