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विश्वास की छलांग लगाने में आप झिझक रहे हैं? तो यह लेख आपके लिए है।
पांच साल पहले, मेरे तत्कालीन प्रेमी (जो अब मेरे पति बन चुके हैं) और मैं गंभीरता से डेटिंग कर रहे थे, जबकि हम एक दुसरे से दूर रह रहे थे। मैं टेनेसे के नैशविले में रहती थी और वह उत्तरी डकोटा के विलिस्टन पर रहते थे, जो 1,503 मील दूर था। पैंतीस के आसपास की उम्र वाले दो लोग, जिनके मन में प्रेम और विवाह हो, उनके लिए यह दूरी व्यावहारिक नहीं थी। लेकिन हम इन अलग-अलग राज्यों में अच्छी तरह से स्थापित हो चुके थे। डेटिंग के दौरान, हमने अपने भविष्य के बारे में अलग-अलग और एक साथ प्रार्थना की, खासकर दूरी के बारे में। जब हमने आत्म-समर्पण की नौरोज़ी प्रार्थना की, तो अचानक उनकी कंपनी ने उन्हें वापस अपने गृह राज्य वाशिंगटन में स्थानांतरित कर दिया, और जल्द ही मैंने भी वाशिंगटन जाने का फैसला किया, जहां हम अंततः एक ही शहर में रहते हुए डेट कर सकते थे।
एक नया रोमांचक साहस
एक दोपहर, मेरी एक दोस्त के साथ बातचीत करते हुए मैंने उससे कहा कि मैं ने वाशिंगटन जाने का निर्णय लिया है। जब उसने कहा, “तुम बहुत बहादुर हो!” यह सुनकर मैं दंग रह गयी। मैं अपने फैसले का वर्णन करने के लिए सौ शब्दों का इस्तेमाल कर सकती थी, लेकिन ‘बहादुर’ शब्द उनमें से एक नहीं होता। मुझे नहीं लगता कि मेरा यह निर्णय बहादुरी का था; यह निर्णय सिर्फ इसलिए सही लगा क्योंकि यह चिंतन और विवेक पर आधारित था। मैं अपने भविष्य के बारे में लम्बी और गहरी प्रार्थना कर रही थी, और जब मैंने प्रार्थना की, तो मैंने महसूस किया कि ईश्वर न केवल मेरे दिल को बदल रहां है, बल्कि मुझे इस नए साहसिक कार्य के लिए तैयार भी कर रहा है।
मैं जिस शहर में पिछले लगभग दस वर्षीं से रहती थी, और समय के साथ उस शहर से मेरा बेहद प्यार हो गया था और जिन चीजों ने मुझे उस शहर से बांधे रखा था, इस निर्णय को लेते ही अचानक उन चीज़ों ने मुझ पर अपनी पकड़ छोड़ दी। एक के बाद एक, मेरे दायित्वों को मैं ने बड़े करीने से लपेटना शुरू कर दिया या पूरी तरह से पुनर्निर्देशित किया। जैसे ही मैंने उन परिवर्तनों का अनुभव किया, मैं अपने उस व्यस्त जीवन से दूर हो गयी और मैं ने अपने भविष्य के बारे में प्रार्थना करना जारी रखा। मैंने एक नई स्वतंत्रता का अनुभव किया जिसने मुझे कुछ हद तक आज्ञाकारी घूमंतू जैसे बनने की अनुमति दी जिससे पवित्र आत्मा की प्रेरणाओं का पालन करने में मुझे आसान हो गया था।
जो सही है वही करें
जैसा कि मैंने कहा, ‘बहादुर’ होना मेरे दिमाग में कभी नहीं आया था। जब मैंने लोगों को अपनी योजनाएँ बताईं, तब उनके चेहरों पर आश्चर्य की नज़र दिखाई देने लगे। इस के बावजूद और अज्ञात की परवाह किए बिना, मुझे लगा कि मैं अपने जीवन के लिए अगला सही कदम उठा रही हूं। बाद में यह स्पष्ट पता चला कि मैं अपने जीवन के लिए सही कदम ही उठा रही थी। यह मेरे द्वारा किए गए सबसे सही कामों में से एक था।
इसके तीन वर्ष बाद मेरे प्रेमी और मैंने अंततः शादी कर ली। शादी के दो साल बाद मैंने अपनी पहली प्यारे बेटे को गर्भ में धारण किया, जिसे मैं ने गर्भाशय में खो दिया, और फिर अगले साल हमारी खूबसूरत बच्ची का जन्म हुआ।
हाल ही में, मेरे दोस्त के द्वारा बहादुर कहे जाने के बारे में मैं बराबर सोच रही थी। उसकी टिप्पणी पवित्र ग्रन्थ के एक अंश के साथ मेल खाती है जो मेरे दिमाग में लगातार गूँज रही है: “… ईश्वर ने हमें भीरुता का नहीं, बल्कि सामर्थ्य, प्रेम तथा आत्मसंयम का मनोभाव प्रदान किया।” (2 तिमथी 1:7)
पवित्र आत्मा ने मुझे जो साहस दिया है, उसके स्थान पर यदि मैं भय को चुनी होती, तो मैं उस भविष्य को नष्ट कर देती जिसकी योजना परमेश्वर ने मेरे लिए बनाई थी। मेरे लिए पति के रूप में ईश्वर के मन में जो व्यक्ति था, मैं शायद उस आदमी से शादी नहीं कर पाती। मेरे पास मेरी बच्ची नहीं होती या हमारा पहला बेटा स्वर्ग में नहीं होता। मेरे पास वह जीवन नहीं होता जिसे मैं अभी जी रही हूं।
डर सड़ा हुआ है। डर विचलित करने वाला है। डर झूठ बोलता है। डर चोर है। परमेश्वर ने हमें डर की आत्मा नहीं दी है।
मैं आपको अपने जीवन के लिए एक स्वस्थ दिमाग और पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के साथ साहसपूर्वक, और प्रेमपूर्वक बहादुरी का मार्ग चुनने के लिए प्रोत्साहित करती हूं। आत्मा की प्रेरणाओं को सुनने की क्षमता बढावें और भीरुता को दूर करें। भीरुता प्रभु का नहीं है। निष्क्रिय रूप से अपने जीवन को अपने पास से गुजरते देखते हुए, कायरता की भावना के साथ यात्रा न करें। इसके बजाय, सामर्थ्य, प्रेम और आत्म-संयम के मनोभाव लेकर, पवित्र आत्मा के साथ एक सक्रिय भागीदार बनें। साहसिक बनें। बहादुर बनें। वह जीवन जिएं जिसकी योजना ईश्वर ने आपके लिए, सिर्फ अकेले आपके लिए बनाई है।
'मैंने सर उताकर नानी के चेहरे की ओर देखा, उनके पैरों का आलिंगन किया, उनके एप्रन पर अपने चेहरे को दबाया जिसमें से सेब की पकौड़ी की गंध आ रही थी, फिर खुशी से मैं ने उनको धन्यवाद दिया। इसके तुरंत बाद मैं अपने भाई को नानी द्वारा दिया गया खजाना दिखाने के लिए भागी।
वह घर पुराना था और मेरे परनाना का था। यह एक छोटा सा पक्का घर था जहाँ उन्होंने कई बच्चों की परवरिश की। विरल भाग और मटमैली महक के कारण, ताज़ी पेंट की गई लकड़ी से बने इसके सुन्दर आकार लोगों का आकर्षण नहीं खींच पा रहा था। इस घर की अपनी पारिवारिक यादें, कहानियाँ और विरासत का इतिहास था। जब मेहमान मिलने आते थे, तो पीछे के भूरे रंग की लकड़ी के दरवाजे से होकर रसोई की मेज पर से ताज़ा पके हुए सेब के पकौड़े की अलौकिक सुगंध निकलती थी। यह एक ऐसा घर है जो मुझे मेरी नानी की प्यारभरी याद दिलाता है। यह दिलचस्प बात है कि कैसे एक साधारण स्मृति दूसरी स्मृति की, और फिर तीसरी स्मृति की कड़ी बनाती है और तब तक कड़ियाँ बनाती रहती है जब तक कि पूरी कहानी मेरे दिमाग को न भर दे। कुछ ही मिनिटों में, मुझे दूसरी जगह और समय पर वापस ले जाया जाता है जो मेरे जीवन की नींव का हिस्सा था।
मेरी परवरिश केंटकी के एक ऐतिहासिक इलाके के एक साधारण जगह और आम समय में हुई। यह एक ऐसा दौर था जब प्रतिदिन की सांसारिक दिनचर्याओं को पारिवारिक परंपराओं की तरह संजोया जाता था। रविवार का दिन गिरजाघर जाने, आराम करने और घर परिवार में बिताने का दिन था। हमारे पास क्रियात्मक चीजें थीं और हम साधारण कपड़े पहना करते थे। उन कपड़ों के फट जाने पर अक्सर मरम्मत की जाती थी। जब हम दुर्भाग्यवश अपने लिए पर्याप्त भोजन या चीज़ें नहीं जुटा पाते थे, तब रिश्तेदारों और दोस्तों पर निर्भर रहते थे। जब तक दुसरे द्वारा प्रदत्त सहायता यदि जल्द से जल्द चुकाया जाना संभव नहीं था, तब तक हम इसे स्वीकार नहीं करते थे। दूसरे के बच्चों की देखभाल करना जीवन की आवश्यकता मानी जाती थी और ज़रुरी हुई तो इसका आग्रह दोस्तों या पड़ोसियों के सम्मुख रखने से पूर्व निकटतम रिश्तेदारों से कहा जाता था।
माँ और पिताजी, अभिभावक होने की अपनी जिम्मेदारियों को अपना प्राथमिक कर्तव्य मानते थे। उन्होंने हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए त्याग किया और शायद ही कभी स्वयं के लिए समय निकाला। हालांकि, कभी कभार, उन दोनों ने किसी शाम का वक्त बाहर गुज़ारने की योजना बनाई और वे दोनों इसका इंतज़ार करते थे। मेरी नानी, जिन्हें हम नोना कहते थे, उस पुराने घर में रहती थीं, उन्होंने बहुत ही स्वादिष्ट पकौड़े बनाए और जब मेरे माता-पिता दोनों एक साथ घर से बाहर थे, उस दौरान उन्होंने खुशी-खुशी मेरी और मेरे भाई-बहनों की देखभाल की।
एक शाम मेरी माँ, पिताजी के साथ बाहर जाने के लिए तैयार बैठी थी, पिताजी की कमीज़ से स्टार्च किया हुआ मांड की ताज़ी गंध आ रही थी, और शाम को जब वे दोनों एक साथ बाहर गए, तो हमारे घर की प्रतिदिन की दिनचर्या में परिवर्त्तन झलक रही थी और घर और आँगन उत्साह की भावना से भर गए। हम पड़ोस में नानी के घर गए; जैसे ही नानी का पुराना धूसर लकड़ी का दरवाजा खुला और फीके रंग का एप्रन पहनी हुई मेरी नानी ने हम सबका अभिवादन किया, तब मुझे लगा कि मैं एक पुराने दौर में वापस कदम रख रही हूँ। पहले नानी के साथ एक संक्षिप्त बातचीत हुई, अनुशासित व्यवहार करने की सख्त चेतावनी सबको देने के बाद, उन्होंने हम सबको स्वागत का चुम्मा दिया, जिसके कारण हमारे कपड़ों पर उनके एप्रन के इत्र की खुशबू और और हमारे गालों पर उनकी लिपस्टिक रह गयी। जब नानी की रसोई का दरवाजा अन्दर से बंद हुआ, तो हम बगल के कमरे में हमारे घर से लाए गए खिलौनों के एक बैग के साथ खेलने के लिए छोड़ दिए गए थे। जब तक नानी ने रसोई घर की सफाई की और एक बुजुर्ग बहन की सेवा-शुश्रूषा की, जो उनके साथ रहती थी, तब तक हम इस शाम के लिए खरीदी गई नई तस्वीरवाली कापियों में रंग भरने में संतुष्ट थे।
नया माहौल और खेल की उत्तेजना की भावना खत्म होने में बहुत समय नहीं लगा और खिलौनों में अब ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। हमारा मनोरंजन करने के लिए नानी के घर टेलीविजन भी नहीं था और उनके पुराने पार्लर रेडियो में केवल स्थानीय लोक गीत ही बजाया जा रहा था। घर की पुरानी साज-सज्जा, आवाज़ और महक ने मेरा ध्यान बस कुछ ही देर के लिए आकर्षित किया। फिर, मैंने नानी के चप्पलों को लकड़ी के फर्श पर रगड़े जाने की आवाज़ सुनी। नानी यह देखने के लिए दरवाजे पर आ गई कि हम ठीक हैं या हमें किसी चीज की जरूरत है। शाम की बढ़ती आलस्य के कारण मैं ने पुकारा, “नानी, मेरे लिए कुछ ढूंढो”।
“तुम्हारा क्या मतलब है?” उन्होंने पूछा।
मैंने जवाब दिया, “माँ ने कहा था कि जब वह एक छोटी लड़की थी, उन दिनों जब कभी वह ऊब जाती थी, तो वह आपकी बहन से कहती थी कि उन केलिए “कुछ ढूंढें”। तब आपकी बहन उनके लिए एक खजाना ढूंढ़ लेती थी”। मेरे शब्दों पर विचार करने के लिए नानी ने दूर की ओर नज़र डाली। बिना ज्यादा देर किए वह पीछे मुड़ी और इशारा किया, “मेरे पीछे चले आओ”।
मैं उनके पीछे एक अंधेरे, ठंडे, बासी कमरे की ओर तेजी से चली, जिसमें कुछ पुराने फर्नीचर थे, और एक प्राचीन और सुंदर लकड़ी की अलमारी भी थी।
नानी ने एक बत्ती जलाई और तब अलमारी के दरवाजे पर लगे कांच की घुंडी चमकने लगी। मैं ने नानी के घर के इस हिस्से में कभी प्रवेश नहीं किया था, और मैं कभी भी अकेली उनके साथ नहीं रही थी। मुझे कोई अनुमान नहीं था कि क्या अपेक्षा की जाए। मैंने अपने उत्साह को नियंत्रित करने की कोशिश की, और सोच रही थी कि उस दरवाज़े के पीछे कौन सा खजाना हमारा इंतजार कर रहा है, जो हमें उसे खोलने के लिए प्रेरित कर रहा था। यह अनियोजित पल, सात साल की छोटी लड़की के लिए बहुत अधिक था, और मैं अपनी नानी के साथ के इस विशेष यादगार पल को बर्बाद नहीं करना चाहती थी।
नानी ने एक कांच की घुंडी घुमाई, दरवाजा चरमराते हुए खुल गया और लकड़ी के छोटे दराजों के ढेर दिखाई दिए। नानी ने एक दराज में हाथ डाला, एक हल्के से इस्तेमाल किए गए भूरे रंग के चमड़े के पर्स को बाहर निकाला, मुझे दे दिया और इसे खोलने के लिए मुझसे कहा। एक अजीब उम्मीद के कारण मैं घबराई हुई थी, इसलिए मेरे नन्हे हाथ कांपने लगे, और मैंने उस पर्स को खोला। चमड़े के पर्स के नीचे में कोने में चांदी के क्रूसित प्रभु की छोटी मूर्ति से जुड़ा हुआ सफेद मोतियों की एक छोटी जपमाला थी। मैंने बस इसे देखा। फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या यह एक अच्छा खजाना है? मैंने अपनी माँ की जपमाला देखी थी, लेकिन मेरे पास मेरी अपनी जपमाला नहीं थी और इसका उपयोग करना मैं नहीं जानती थी। हालांकि, किसी कारणवश, मुझे लगा कि यह अब तक का सबसे अच्छा खजाना है! मैंने ऊपर नानी के चेहरे की ओर देखा, उनके पैरों का आलिंगन किया, उनके एप्रन पर अपने चेहरे को दबाया जिसमें से सेब की पकौड़ी की गंध आ रही थी, फिर खुशी से मैं ने उनको धन्यवाद दिया। इसके तुरंत बाद मैं अपने भाई को नानी द्वारा दिया गया खजाना दिखाने के लिए भाग गयी।
अगले वर्ष एक कैथलिक प्राथमिक विद्यालय में मेरा नाम लिखा गया, जहाँ मैंने येशु और उसकी माँ मरियम के बारे में बहुत कुछ सीखा। मैंने जब अपना पहला परम प्रसाद ग्रहण किया, तब जपमाला की विनती करनी सीखी। जैसे-जैसे मैं रोज़री की प्रार्थना करती रही, मेरे अन्दर येशु और मरियम के प्रति प्रेम के बीज पनपने लगे। वक्त गुजरता गया, और कुछ वर्षो बाद वह छोटी सफेद मोती की माला मेरे हाथों के लिए बहुत छोटी हो गई और मैंने एक साधारण लकड़ी की जपमाला प्राप्त कर ली। मैं हमेशा अपनी जेब में लकड़ी की बनी वह जपमाला रखती हूं, और यह भी मेरे लिए एक खजाना बन गया है। वर्षों प्रार्थना में समय बिताने पर, धन्य माँ मरियम और उसकी रोज़री माला के प्रति मेरे अन्दर एक अपार प्रेम विकसित हुआ।
इन दिनों, मेरी माला विनती शुरू करने से पहले, मैं चुपचाप धन्य माँ से “मेरे लिए कुछ ढूँढने” के लिए कहती हूं। हर कहानी कोई न कोई अच्छे गुण को प्राप्त करने का आदर्श देती है। इसलिए, मैं अक्सर माँ मरियम से रोज़री प्रार्थना के दैनिक रहस्यों में निहित विवरणों और कहानियों की व्याख्या करने और अपने जीवन में उन गुणों को विकसित करने के लिए कहती हूं। अपने बेटे, येशु के दरवाजे मेरे लिए खोलने में माँ कभी असफल नहीं होती, ताकि मैं उसके करीब आ सकूं। कृपापूर्वक वह जो कुछ प्रकट करती है, उस पर मनन करने के बाद, मैंने पाया है कि “खजाने” वहीं पाए जाते हैं।
जीवनचक्र तेजी से आगे बढ़ गया। आज, मैं नानी की उम्र के बराबर हूँ जब उसने मुझे उन छोटी सफेद मोतियों की जपमाला दी थी। मुझे उस दिन की याद आती है, जब उसने “मेरे लिए कुछ ढूँढा” था। मेरे मन में सवाल उठता है कि जब वह मेरे अनुरोध पर विचार करने के लिए रुकी थी, तो क्या वह मुझे दिए जा रहे उस खजाने के भविष्यगामी प्रभाव को जानती थी? क्या वह जानती थी कि वह मेरे लिए पुराने अलमारी के दरवाजा मात्र नहीं, बल्कि और बहुत कुछ खोल रही है? उस चमड़े के बटुए में, उन्होंने आध्यात्मिक खजाने की एक पूरी दुनिया खोल दी थी। मैं सोचती हूँ कि क्या वह पहले से ही अपने लिए माला के खजाने को ढूंढ ली है और इसे मुझे देना चाहती है? जब उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम स्वयं बटुए को खोलो और भीतर के खजाने को ढूंढो तब क्या वह जानती थी कि उसके ये शब्द भविष्यसूचक हैं? नानी को स्वर्ग में येशु के साथ रहते हुए अब काफी समय हो चुका है। मेरे पास अभी भी वह भूरे रंग का चमड़े का बटुआ है जिसके अंदर मोती की छोटी जपमाला है। मैं समय-समय पर इसे निकालती हूं और नानी के बारे में सोचती हूं। मुझे अभी भी उसके सवाल सुनायी देता है: “क्या यह एक अच्छा खजाना है?” मैं अब भी खुशी-खुशी उसे जवाब देती हूं, “हां नानी, यह अब तक का सबसे अच्छा खजाना है!”
'यह है आपके साहस को परखने का पैमाना…
कैलिफ़ोर्निया के ऊंचे रेगिस्तान में छिपे एक मठ में भर्ती लेने से पूर्व, मैं स्किड रो की सीमा, लॉस एंजिल्स शहर के मुख्य मार्ग पर पांचवीं गली में रहता था। लॉस एंजिल्स शहर की एक अप्रिय खासियत यह है कि यहाँ बड़े पैमाने पर लोग बेघर हैं। अपनी बदकिस्मती से भागकर बहुत से लोग दूर-दूर से आते हैं। यहाँ सर्दियां कम प्रतिकूल होती हैं, इसलिए सड़कों पर घूम फिरकर ज़िन्दगी बसर करने के लिए और भीख मांगकर अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठने के लिए लोग अक्सर ग्रे हाउंड बस के एक तरफ़ा टिकट के माध्यम से यहाँ पहुँचते हैं। इन व्यक्तियों के दैनिक जीवन की निराशा को देखे बिना शहर के कुछ हिस्सों को पार करना असंभव है। लॉस एंजिल्स शहर में बेघरों की संख्या बड़ी होने के कारण आर्थिक और सामाजिक तौर पर अधिक भाग्यशाली लोगों के अन्दर ऐसी भावना रहती है कि वे कभी भी इस समस्या को दूर नहीं कर सकते हैं, इसलिए वे शहर के 41,290 की बेघर आबादी के अस्तित्व को ही नकारने की रणनीति को अपनाकर अपनी आंखों के संपर्क से उनसे बचने की कोशिश करते हैं।
एक व्यक्ति अपने मिशन पर
एक दिन मैं ग्रैंड सेंट्रल मार्केट में एक दोस्त के साथ दोपहर का भोजन कर रहा था। हमारे भोजन के दौरान उन्होंने अप्रत्याशित रूप से मुझे आलिशान और विलासी बोनावेंचर होटल के एक कमरे की चाबी सौंप दी, और मुझसे बोला कि यह कमरा अगले कुछ हफ्तों तक आनंद लेने के लिए तुम्हारा होगा! बोनावेंचर लॉस एंजिल्स का सबसे बड़ा होटल था, जिसमे एक आकाशकीय रेस्तरां था जो उस होटल के सबसे ऊपरी मंजिल पर घूमता रहता था। यह मेरे कार्य स्थल के स्टूडियो अपार्टमेंट से केवल दस मिनट की पैदल की दूरी पर था। मुझे एक फैंसी होटल के कमरे की कोई ज़रूरत नहीं थी, लेकिन मैं जानता था कि शहर में ऐसे 41,290 व्यक्ति हैं जिनको रात बिताने के लिए बिस्तर की ज़रूरत थी। मेरी एकमात्र दुविधा यह थी कि मेरे लिए दिए जा रहे उस कमरे में आश्रय प्राप्त करने वाले एकल व्यक्ति का चयन मुझे कैसे करना चाहिए? मैं सुसमाचार के उस सेवक की तरह महसूस कर रहा था, जिसे उसके स्वामी ने “शीघ्र ही नगर के बाज़ारों और गलियों में जाकर कंगालों, लूलों, अंधों और लंगड़ों को यहाँ बुला” लाने के लिए नियुक्त किया था (लूकस 14:21)।
जब मैं उस दिन की ड्यूटी करके निकला था, तो आधी रात बीत चुकी थी। मेट्रो स्टेशन के बाहर खाली सड़क पर स्केटिंग करते हुए निकलते ही मैंने अपना “शिकार” शुरू किया। मैं ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि वह जिस व्यक्ति को इस सौभाग्य का आशीर्वाद देना चाहता है उस व्यक्ति को चुनकर मुझे दिखावे। गली-मोहल्लों में झाँकते हुए, मैं अपने स्केटबोर्ड पर शहर में घूमता रहा, और कोशिश कर रहा था कि लोग मुझे किसी रहस्यमय मिशन पर निकला आदमी की तरह नहीं पहचानें । मैं लॉस एंजिल्स कैफे की ओर रवाना हुआ, मुझे विश्वास था कि मुझे वहां कोई ज़रूरतमंद मिल जाएगा। निश्चित रूप से मैंने दुकान के सामने फुटपाथ पर बैठे एक आदमी को देखा। वह बूढ़ा और दुबला पतला था, दाग से सना हुआ सफेद टी-शर्ट के अन्दर उनके कन्धों की हड्डियां साफ़ झलक रही थी। मैं कुछ फीट दूर बैठ गया। “नमस्कार”, मैंने उनका अभिवादन किया। उन्होंने जवाब दिया: “हाय”। मैंने पूछ लिया: “सर, क्या आप आज रात सोने के लिए जगह ढूंढ रहे हैं?” उन्होंने पूछा: “क्या?” मैंने दोहराया: “क्या आप सोने के लिए जगह ढूंढ रहे हैं?” अचानक वह चिढ़ गया और पूछने लगे: “क्या तुम मेरा मज़ाक उड़ाने की कोशिश कर रहे हो? मैं यहाँ जैसा हूँ, वैसा ठीक हूं। मुझे अकेला छोड़ दो!”
इस जवाब से मैं हतप्रभ था। उन्हें अपमानित करने के लिए खेद महसूस करते हुए, मैंने माफी मांगी और निराश होकर वहां से खिसक गया। यह मिशन मेरी अपेक्षा से कहीं अधिक कठिन होगा। आखिरकार, यह आधी रात के बाद का वक्त था, और मैं इस मिशन से पूरी तरह से अजनबी था। शायद मैं असंभव जैसी बात को संभव होने का दावा कर रहा था। लेकिन, मैंने सोचा कि हालात मेरे पक्ष में है। मेरा प्रस्ताव ठुकराया जा सकता है, ठीक उसी तरह जैसे उस महान भोज के दृष्टांत में नौकर के साथ हुआ था। लेकिन देर-सबेर कोई न कोई मेरे निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए बाध्य होगा। एकमात्र सवाल यह था कि इसमें कितना समय लगेगा? पहले ही देर हो चुकी थी, और मैं सुबह से आधी रात के काम के बाद थक गया था। मैंने सोचा कि शायद मुझे कल फिर से कोशिश करनी चाहिए।
अज्ञात जगह पर
स्केटिंग और प्रार्थना करते हुए, मैंने विभिन्न शरणार्थियों को निहारते हुए, उस कंक्रीट के जंगलनुमा शहर से अपने रास्ते पर आगे बढ़ रहा था। रास्ते में एक नुक्कड़ पर व्हीलचेयर में अकेले बैठे हुए एक आदमी की छाया आकृति मैंने देखी। वह आधा सोया हुआ और आधा जागता हुआ दिखाई दिया, जैसा कि सड़कों पर रहनेवाले कई लोग करते हैं। उसे परेशान करने में मैं हिचकिचा रहा था, इसलिए मैं उसके पास पहुँच कर सावधानी से तब तक खडा रहा जब तक उसने अपनी थकी हुई आँखों से मेरी ओर नहीं देखा। “क्षमा करें सर,” मैंने कहा, “मेरे पास बिस्तर के साथ एक कमरा उपलब्ध है। मुझे पता है कि आप मुझे नहीं जानते हैं, लेकिन अगर आप मुझ पर भरोसा करते हैं तो मैं आपको वहां ले जा सकता हूं।” बिना भौंह उठाए उसने ‘हाँ’ करते हुए अपना सिर हिलाया। “बहुत अच्छा। आपका नाम क्या है?” मैंने पूछ लिया। उसने जवाब दिया, “जेम्स” ।
मैंने जेम्स को मेरा स्केटबोर्ड पकड़ने के लिए कहा, और उसे उसकी व्हीलचेयर में धकेलते हुए साथ साथ हमने बोनावेंचर के लिए प्रस्थान कर लिया। जैसे-जैसे हमारा परिवेश सभ्य होता गया, उसके चेहरे पर सतर्कता के भाव आने लगे। उसे अंधेरे के बीच में से धकेलते हुए, मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उसकी पीठ रेत से ढका हुआ है। तब मुझे एहसास हुआ कि रेत आगे पीछे बह रही थी। लेकिन प्रकाश में आते ही मैं ने पाया कि यह रेत बिल्कुल नहीं था, बल्कि हजारों छोटे छोटे कीड़े थे।
पञ्च सितारे होटल लॉबी में प्रवेश करते हुए, सारे के सारे लोग जेम्स और मुझे स्तब्ध और सदमे के भाव से देख रहे थे। उन सब से नज़रें मिलाने से बचते हुए, हम एक आलीशान फव्वारे के बगल से गुजरे, एक शीशे की लिफ्ट में सवार हुए, और कमरे में पहुँचे। जेम्स ने पूछा कि क्या वह स्नान कर सकता है। मैंने उसे बाथरूम के अंदर ले जाकर स्नान करने में उसकी मदद की। एक बार सफाई होने के बाद, जेम्स आराम से सफेद चादरों के बीच लेट गया और तुरंत सो गया। उस रात जेम्स ने मुझे एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया: परमेश्वर का निमंत्रण अक्सर अप्रत्याशित रूप से आता है , और वह निमंत्रण हमसे विश्वास के एक ऐसा अनुपात की मांग करता है जो आमतौर पर हमें असहज करता है। कभी-कभी हम उसके निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए तैयार होने के पहले, हमें स्वयं को ऐसी स्थितियों में ढालना चाहिए जिसमें खोने के लिए कुछ भी न हो। और अक्सर, दूसरों के लिए आशीषें लाने में ही हम वास्तव में आशीष पाते हैं।
'मैं डर गया था और डर के कारण बर्फ की तरह जम गया था, हिलने-डुलने या शोर करने में असमर्थ था।
वह एक ठंडी और भयानक रात थी। मैं बड़े आराम से बिस्तर पर सो रहा था कि अचानक एक विशाल, भूरे रंग का भेड़िया मेरे बेडरूम की खिड़की से अंदर आ गया। वह तेजी से फर्श को पार करके मेरे बिस्तर के नीचे छिप गया, अपने थूथन को मेरे गद्दे के बीच में से निकाल दिया। वास्तव में मेरी पीठ के मुलायम हिस्से पर भेड़िये के थूथन द्वारा दबाया जाना मैं महसूस कर रहा था। मैं डर गया था, डर से बर्फ की तरह जम गया था, हिलने-डुलने या शोर करने में असमर्थ था।
जैसे-जैसे समय बीतता गया कुछ भी नहीं हुआ, और मैंने मन ही मन सोचा, “मुझे कुछ करना होगा!” एक बच्चे के नाते मैं जानता था कि सबसे अच्छा काम जो मैं कर सकता था, वह है माँ को बुलाना। और इसलिए मैंने माँ को फोन करने की कोशिश की, लेकिन मेरे मुंह से जो कुछ निकला वह एक छोटी, कमजोर आवाज थी। माँ मुझे सुन नहीं सकती थी, लेकिन दूसरी तरफ भेड़िया भी बिस्तर के नीचे से जाने का नाम नहीं ले रहा था। मैं अब थोड़ा साहसी और धीर महसूस कर रहा था, इसलिए मैंने फिर से कोशिश की, “माँ!” यह आवाज़ अभी भी मेरी माँ को सुनने के लिए पर्याप्त नहीं थी, लेकिन भेड़िया अभी भी नहीं हिल रहा था। इसलिए मैंने एक गहरी सांस ली और जितनी जोर से चिल्ला सकता था, चिल्लाया, “माँ!”
बचाव अभियान
जल्द ही मैंने अपनी माँ को सीढ़ियों से ऊपर की ओर दौड़कर आती हुई सुना, उसके बाद मेरे पिताजी की जोरदार गड़गड़ाहट हुई। वे चिल्लाते हुए कमरे में घुसे, “डेविड, डेविड, क्या बात है?” “मेरे बिस्तर के नीचे एक भेड़िया है” धीमी आवाज में बड़बड़ाते हुए मेरी आवाज में अभी भी कम्पन था। मेरे पिताजी चौंक गए और उन्होंने मुझे आश्वस्त करने की कोशिश की कि इस देश में, और विशेषकर हमारे इलाके में कोई भेड़िया नहीं हैं। लेकिन मैंने उन्हें जल्दी जल्दी बताया कि कैसे एक बड़ा भूरा भेड़िया खिड़की से चढ़कर कमरे में घुसा और मेरे बिस्तर के नीचे छिप गया। मैंने फुसफुसाते हुए निष्कर्ष निकाला “मैं महसूस कर सकता हूं कि भेड़िये का थूथन अभी भी मेरी पीठ के मुलायम हिस्से को दबा रहा है”। मेरे पिताजी ने स्थिति पर नियंत्रण कर लिया, जबकि मेरी माँ हैरान सी खड़ी रही। पिताजी ने घोषणा की, “मैं तीन तक गिनने जा रहा हूं। तीन की गिनती पर, बिस्तर से लुढ़क कर नीचे आओ और मैं भेड़िये को पकड़ लूंगा।” मेरी माँ हांफने लगी, लेकिन मैं मान गया।
तीन की गिनती होने पर, मैं तुरन्त अपने बिस्तर से लुढ़ककर नीचे आ गया। मेरे पिताजी न हिले और न ही भेड़िया हिला। हम दोनों ने घुटने के बल से फर्श पर बैठकर बिस्तर के नीचे झाँका। कोई भेड़िया नहीं दिख रहा था। हमने दरवाजे के नीचे, और कमरे के कोने कोने पर तलाशी ली लेकिन कहीं कोई भेड़िया नहीं था। हतप्रभ होकर, मैंने वापस बिस्तर की ओर देखा और अचानक देखा कि एक छोटा बटन उस तरफ पड़ा हुआ है, ठीक उसी स्थान पर, जहाँ मैं लेटा हुआ था। एक जबरदस्त अहसास ने मुझे हिला दिया … मैं अपने बिस्तर पर पड़ा था, डर के कारण बर्फ की तरह जम गया था, हिलने-डुलने या शोर करने में असमर्थ …. सिर्फ एक बटन की वजह से आतंकित!
बचपन से इस घटना की स्मृति मेरे मन में गहराई से अंकित है। जैसे-जैसे मैं बड़ा और समझदार होता गया, मुझे एहसास हुआ कि ज्यादातर चीजें जो मुझे डराती हैं, वास्तव में मात्र “बटन” हैं, मुझ पर झपटने के लिए इंतजार कर रहे उस शक्तिशाली भेड़िये की तरह। और अब मैं निश्चित रूप से “बटनों” से नहीं डरता।
जरा देखो तो
पूरी बाइबल में बार-बार एक संदेश पर जोर दिया गया है: “डरो नहीं।” निश्चय ही यह एक प्रश्न खड़ा करता है। हमें डरने की जरूरत क्यों नहीं है? हमारी चारों ओर, भयानक परिदृश्य बन रहे हैं, और डरना सही लगता है। लेकिन ईश्वर कहते हैं, “डरो नहीं”। क्या इसका मतलब यह है कि जब हम डरते हैं तो हम कुछ गलत कर रहे हैं? नहीं, “डरो नहीं” यह सन्देश केवल हमें प्रोत्साहित करता है कि डर हमारे व्यक्तित्व को बाधित न कर सके या हमें वह व्यक्ति बनने से न रोकें जिसे बनने के लिए हम बनाये गए थे।
डर एक प्राकृतिक मानवीय प्रतिक्रिया है। जिन परिस्थितियों पर हमें तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता होती है, उन पर डर हमारे शरीर और हमारे दिमाग को केंद्रित करता है। इसलिए, जिस समय मुझे पता है कि मेरे बिस्तर के नीचे एक भेड़िया है, उस समय मेरे दिमाग में जो डर आता है वह अच्छा है और स्वस्थ भी है। लेकिन यदि वह डर किसी ऐसी चीज पर आधारित हो जो सच नहीं है, तो इसका वास्तव में नकारात्मक प्रभाव होता है। परिणाम स्वरूप हम ऐसी स्थिति में फंस सकते हैं, कि हिलने-डुलने या प्रतिक्रिया करने में हम असमर्थ हो जाते हैं। इसलिए जब हम भयभीत हों तो हमें रुककर नए सिरे से सोचना चाहिए। हमें इसके बारे में प्रार्थना करनी चाहिए, सुनना चाहिए, चिंतन करना चाहिए और सोचना चाहिए, “क्या यह ऐसी चीज है जिससे मुझे डरने की जरूरत है?” शायद मैं इसे धकेलकर बाहर कर सकता हूं। हो सकता है कि यह मेरे भेड़िये की तरह हो। ऐसे मामले में मुझे मदद माँगने की ज़रूरत है, ताकि एक भयानक भेड़िये की अपनी त्रुटिपूर्ण धारणा को एक हानिरहित बटन की वास्तविकता में बदल जाए।
तो हमें डरने की जरूरत क्यों नहीं है? सरल उत्तर है: हम ईश्वर की संतान हैं। आप कितनी भी बुरी स्थिति में क्यों न हों, ईश्वर आपको अपनी मजबूत बाहों में सुरक्षित रखता है। वह आज आपसे बात करता है। उसे यह कहते हुए सुनें, “डरो मत” और उसकी शक्ति को अपनाएँ।
प्रार्थना:
प्यारे पिता, हमें इतना प्यार करने के लिए धन्यवाद। तू हमारे बारे में तू सब कुछ जानता है – हमारी सारी ताकतें, हमारी सभी कमजोरियां, और वे सभी चीजें जो हमें डराती हैं। प्रभु, तू हमारी चारों ओर अपनी शांतिपूर्ण उपस्थिति का अनुभव करने में हमें मदद कर, जिससे हमें अपने डर का सामना करने की शक्ति मिले। जब हम महसूस करते हैं कि हम चिंता में फंसे हुए हैं, तो हमें अपनी घबराहट को दूर करने और भय के बंधन से बचने की कृपा प्रदान कर। हम इस प्रार्थना को तेरे पवित्र नाम में मांगते हैं, आमेन।
'जब मैं बहुत छोटा था, मुझे याद है कि एक दिन मैंने अपने पिता से पूछा कि अपनी बहन से प्यार करना क्या वाकई जरूरी है (उस समय अपने दुश्मन से प्यार करना, मुझे अपनी बहिन से प्यार करने से अधिक आसान और उचित लगता था)। मेरे पिता ने जोर देकर कहा कि बेशक, बहिन से प्यार करना जरूरी था। और मुझे याद है कि मैं ने उन्हें विस्तार से समझाने का परयास किया कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह बहुत मुश्किल – यहां तक कि असंभव – भी होगा, और शायद हमें उसे छोड़ने या किसी और के द्वारा गोद लिए जाने पर विचार करना चाहिए। मेरे पिता ने मुझसे कहा, “बेटे, तुम्हें इस सत्य पर विश्वास करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन किसी दिन, तुम पाओगे कि तुम अपनी बहन से प्यार करते हो। और जब वह दिन आएगा, तब तुम वास्तव में उसके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहोगे। इस बीच, किसी तरह … प्यार का … स्वांग (दिखावा) करो।”
उस समय, यह भयानक रूप से निरर्थक सलाह की तरह लग रहा था, लेकिन अगर मसीह हमसे सुसमाचारों में मांग रहे कार्य को हमें लागू करना है, – अगर हमें वास्तव में अपने पड़ोसियों से प्यार करना है, जैसे हम अपने आप से प्यार करते हैं – तो हमें उस भावना के प्रति बहुत संवेदनशील होना होगा। चलिए, इस सत्य का सामना करें: कुछ लोगों से प्यार करना बहुत मुश्किल होता है। कई बार हमें लगता है कि ईश्वर भी हमसे बहुत दूर है, लेकिन अगर आप पडोसी के साथ जबरदस्ती प्यार का “दिखावा” करेंगे, तो यह प्यार अक्सर प्यार का सबसे ईमानदार मिसाल बन जाता है, क्योंकि यही वह समय होता है जब हम बदले में प्यार पाने की उम्मीद के बिना प्यार दे सकते हैं। और अगर ज्ञानी लोगों का कहना सही है, तो इस दिखावे के प्यार का परिणाम यह है कि इसमें से एक असली प्यार विकसित होना शुरू हो जाता है।
इसलिए जब तक हर किसी से प्यार करना स्वाभाविक रूप से नहीं हो पाता है, तब तक सबसे अच्छा यह है कि हम इसका दिखावा करें, यानी हम उस व्यक्ति से प्यार करते हैं इसका अभिनय करें, चाहे हम वास्तव में इसे महसूस करें या नहीं, और आशा रखिये, इस बीच, किसी दिन हम उन्हें विश्वास और प्रेम की आँखों से देख सकेंगे।
हे स्वर्गीय पिता, अपने जीवन में कुछ लोगों को सहन करने में मैं अपनी परेशानी और संघर्ष को तुझे समर्पित कर देता हूं। जब मेरा हार मानने का मन हो, तब भी मुझे प्यार और सौम्यता से उन्हें सहन करने की शक्ति और साहस दे। मुझे धैर्यवान, दयालु, क्रोध न करनेवाला, और करुणावान बनने में मदद कर। जब भी मेरा दूसरों से दूर भागने का मन हो, तो मुझे उस अनुग्रह की याद दिला, जो तूने मेरी बुराई की गहराई में मुझ पर बरसाया था। जैसे तू मुझसे प्यार करता है, वैसे ही मुझे भी सबसे प्यार करने दे। येशु के मधुर नाम में मैं प्रार्थना करता हूँ। आमेन।
'मैंने अपने कॉलेज के एक अध्यापक के माध्यम से धन्य चार्ल्स डी फुकॉल्ड द्वारा लिखित “परित्याग की प्रार्थना” (प्रेयर ऑफ़ अबान्डेन्मेंट) की परिवर्तन शक्ति को जाना। उन दिनों मैं और मेरे पति अस्थाई रूप से तीन छोटे बच्चों की देखरेख कर रहे थे। मैं मातृत्व की इस नई ज़िम्मेदारी के बोझ से जूझ रही थी, जब मेरे शिक्षक ने मुझे इस प्रार्थना को करने का सुझाव दिया। उनका मानना था कि यह प्रार्थना मुझे मानसिक शांति प्रदान करेगी।
“अगर तुम अपने जीवन में परिवर्तन लाना चाहती हो,” उन्होंने कहा, “तो फिर इस प्रार्थना को रोज़ किया करो… और अगर तुम अपने वैवाहिक जीवन में परिवर्तन लाना चाहती हो, तो इस प्रार्थना को अपने पति के साथ बोला करो!” यह सुन कर उत्साहित मन से मैंने उनके हाथों से वह प्रार्थना की पर्ची ली और जा कर उसे अपने बाथरूम के शीशे पर चिपका दिया। फिर मैं हर सुबह उस प्रार्थना को इस प्रकार ज़ोर ज़ोर से बोला करती थी:
स्वर्गिक पिता, मैं अपने आप को आपके हाथों में सौंपती हूं;
आपकी इच्छा मुझ में पूरी हो।
आपकी जो भी इच्छा है, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूं:
मैं आपके हर फैसले के लिए तैयार हूं, मुझे सब मंज़ूर है।
आपकी इच्छा मुझ में और सारे जीव जंतुओं में पूरी हो।
इससे बढ़ कर मैं आपसे और कुछ भी नहीं मांग रही हूं, मेरे पिता।
मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में सौंपती हूं:
मैं प्रेम भरे दिल से आपको यह भेंट चढ़ाती हूं,
क्योंकि मैं आपसे प्रेम करती हूं, इसी लिए मैं खुद को समर्पित करती हूं,
बिना किसी झिझक, बिना किसी मजबूरी के, मैं खुद को समर्पित करती हूं,
अटूट और अनंत विश्वास से भर कर, मैं खुद को समर्पित करती हूं,
क्योंकि आप मेरे पिता हैं।
इस प्रार्थना ने बीस साल से हमारा साथ दिया है, हमारा मार्गदर्शन किया है। यह प्रार्थना येशु की दी गई प्रार्थना (हे हमारे पिता) पर आधारित है, और इस प्रार्थना ने तब हमारे रास्तों को रोशन किया जब हम उन बच्चों की देखरेख कर रहे थे। आखिर में हम ने उन में से दो बच्चों को साल 2005 में गोद ले लिया। हमारे जीवन की सारी दुख तकलीफों में मैंने इस प्रार्थना में आश्रय पाया, और अब जब मेरी मां हमारे साथ रहने लगी हैं, तब फिर से इस प्रार्थना ने मुझे सहारा दिया है। मेरी मां को जब भी डिमेंशिया या मनोभ्रंश घेर लेती है, तब इसी प्रार्थना के द्वारा मैं बहादुरी के साथ उनकी मदद कर पाती हूं। क्योंकि इस प्रार्थना ने मुझे ईश्वर के प्रेम पर अनंत विश्वास रखना सिखाया है। ईश्वर हम सब से बहुत प्रेम करते हैं।
'यह सच है कि किसी भी क्षण हम में से कोई भी दुखी और निराश होने की हज़ार वजहें सोच सकता है। हमारी ज़िंदगी कभी हमारी उम्मीदों के हिसाब से चलती ही नही। लेकिन अगर हम तथ्यों की ओर ध्यान दें – वासना के प्रलोभन की कल्पनाओं का विरोध करते हुए, हम देखते हैं कि हमारी आंखें किसी और दुनिया, किसी और नौकरी, किसी और ज़िंदगी की चाह में लगी होती हैं जो हमारी असल ज़िंदगी से बिल्कुल अलग है, और तब हमें यह अहसास होता है कि खुश रहना एक आंतरिक फैसला है। खुशी एक चयन है। मठों में बुज़ुर्ग साधुओं में एक कथन काफी प्रचलित है: “वह साधु दीवार के उस पार झांक रहा है।” एक दुखी साधु हमेशा मठ के बाहर रहने वाले लोगों के जीवन में झांकता रहेगा और सोचता रहेगा कि वे लोग असीम आनंद भरा जीवन बिता रहे हैं।
लेकिन योहन के सुसमाचार में इस प्रलोभन का एक तोड़ छिपा है। योहन के सुसमाचार के नौवें अध्याय में बाइबिल के एक कम प्रसिद्ध नायक की कहानी है: जन्म से अंधे व्यक्ति की कहानी। वह एक कम प्रसिद्ध नायक इसलिए नहीं है कि वह जन्म से अंधा था, बल्कि इसलिए कि कहानी में हम उसे आलसी, हठी, अवज्ञाकारी, अनादर करने वाला और बेअदबी से पेश आने वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं। जब फरीसी लोग उससे उसकी चंगाई के बारे में सवाल करते हैं, तब वह कहता है, “तुम लोग मेरी बात नहीं सुन रहे हो, या बात यह है कि तुम लोग भी उसके शिष्य बनना चाहते हो?” वह जन्मांध बड़ा ही चालाक था और मुझे पूरा भरोसा है कि वह अपनी किशोरावस्था में रहा होगा। (स्कूलों में बीस साल गुज़ारने के बाद मैं यह कह सकता हूं कि मैं अपने आप को आलस्य, हठ, अवज्ञा, अनादर और अपमान के मामले में ज्ञानी समझता हूं। और तो और, यहूदियों के वे प्राधिकारी जन उस जन्मांध के माता पिता की राय लेने क्यों जाएंगे? और उसके माता-पिता को यह बताने की आवश्यकता क्यों होगी कि वह अपने लिए बोलने के लिए परिपक्व है)।
देखा जाए तो पूरी कहानी में सिर्फ येशु ही उस जन्मांध से परेशान नहीं होते दिखाई देते हैं। लेकिन अगर हम धार्मिक दृष्टिकोण से उसे देखें तो इस नवयुवक में एक अच्छा गुण है – चाहे वह नवयुवक अपमानित हो या अड़ियल, परंतु “वह तथ्यों पर कायम रहता है”।
“तुम्हें अपनी दृष्टि कैसे वापस मिली?” प्राधिकारियों ने पूछा।
“मुझे नहीं पता। उसने मेरी आंखों पर मिट्टी लगाई और अब मैं देख पा रहा हूं।”
“लेकिन वह मनुष्य पापी है।”
“हो सकता है। मुझे नहीं पता। पहले मैं अंधा था और अब मैं देख सकता हूं।”
“पर हमें कोई अंदाज़ा नहीं है कि यह व्यक्ति कहाँ से है।”
“किसे पड़ी है? पहले मैं अंधा था और अब मैं देख पा रहा हूं। मैं एक ही बात कितनी बार और दोहराऊं?”
ध्यान दीजिए कि वह कहीं पर भी विश्वास की बात नहीं करता है। और अथक पूछताछ के बाद ही वह अंत में स्वीकार करता है कि यह व्यक्ति येशु (जो कोई भी है) ईश्वर की ओर से होगा। वह तो आखिर में येशु को धन्यवाद भी नहीं कहता है। येशु ही उसे खोजते हैं।
“क्या तुम मानव पुत्र पर विश्वास करते हो?” येशु उससे पूछते हैं।
“वह कौन है?”
येशु जवाब देते हैं, “तुम उसी से बात कर रहे हो।”
अब मैं इस कहानी के वैकल्पिक अंत की कल्पना कर सकता हूँ जहाँ वह युवक कहता है, “ओह! अच्छा ठीक है। आपको हर बात के लिए धन्यवाद। लेकिन मेरा मानना हैं, कि शायद वह आप नहीं थे जिन्होंने वास्तव में मुझे चंगा किया था। शायद यह सब महज एक इत्तेफाक था। शायद मेरा अंधापन शुरुआत से ही मनोवैज्ञानिक था। शायद उस कीचड़ में कुछ था। मैं काफी सोच विचार के बाद ही इस बारे में ठीक तरह से कुछ कह पाऊंगा।”
लेकिन याद करें : यह युवक व्यवहारवादी है। इसे उसकी अच्छाई समझे या बुराई, पर वह हमेशा तथ्यों पर कायम रहता है।
संत योहन अपने सुसमाचार में हमें बताते हैं कि उस युवक ने जवाब में बस इतना कहा, “मैं विश्वास करता हूं, प्रभु।” और फिर उसने येशु की आराधना की।
एक बार मैंने अपने धार्मिक गुरु से सवाल किया कि मैं किस प्रकार निश्चित रूप से यह जान सकता हूं कि ईश्वर ने मुझे संत लुइस मठ में साधु बनने के लिए बुलाया है?
“तुम ही सोचो” उन्होंने कुछ सोच विचार के बाद कहा, “इस समय तुम कहीं और ना हो कर संत लुइस मठ में हो। क्यों हो?”
तुम कहीं और ना हो कर यहां हो। ईश्वर में आनंद मनाने के लिए यह एक वजह काफी है।
'अक्सर हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो अधम, असभ्य, अप्रिय या परेशान करनेवाले होते हैं । हालाँकि हमें एक-दूसरे से प्यार करने के लिए कहा जाता है, लेकिन यह बहुत मुश्किल कार्य है। कोई चिंता नहीं! चिड़ेचिड़े और मुश्किल लोगों से येशु की तरह प्यार करने के लिए लिस्यु की संत तेरेसा हमें तीन सुंदर नुस्खे बताती है।
“समूह में एक बहन है जो मुझे हर बात पर उसके तौर तरीकों से नाखुश करने की क्षमता रखती है| उसके शब्द, उसके चरित्र, सब कुछ मुझे बहुत असहनीय लगता है। फिर भी, वह एक पवित्र धर्मसंघी है जिसे ईश्वर बहुत चाहता होगा।”
तो संत टेरेसा ने इस धर्मबहन का कैसा मुकाबला किया ?
१. परोपकार के द्वारा जो भावुकता द्वारा नहीं, बल्कि कार्यों में प्रदर्शित जिए गए
मैं जिस नैसर्गिक विद्वेष को अनुभव कर रही थी, उसकी शिकार होने से बचने के लिए, मैं इस धर्म बहन के प्रति वे सारे कार्य करने लगी जिन्हें मैं अपने सबसे प्रिय व्यक्ति केलिए करती !”*
२. प्रार्थना द्वारा
“मैंने उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना की, प्रभु को उस बहन के सभी गुणों और अच्छाइयों को समर्पित किया। मुझे लगा कि यह यीशु के लिए प्रिय था, क्योंकि ऐसा कोई कलाकार नहीं है जो अपने कामों के लिए प्रशंसा प्राप्त करना पसंद नहीं करता है!” *
3. बहस करके नहीं, बल्कि मुस्कुराकर और विषय बदलकर।
“जिस बहन ने मुझे बहुत सारी परेशानी खड़ी कर दी, उसके लिए बहुत प्रार्थना करने से मैं संतुष्ट नहीं थी, लेकिन मैंने उसे जितनी सेवायें सम्भव हैं उन्हें प्रदान करने का हरसंभव ध्यान रखा| जब मुझे असहनीय तरीके से जवाब देने का प्रलोभन हुआ, ऐसे समय में मैं उसे अपनी सबसे अनुकूल मुस्कान देने, और बातचीत के विषय को बदलने में संतुष्ट थी।”*
मनोरंजन के दौरान एक दिन उस बहन ने लगभग इन शब्दों में मुझ से सवाल पूछा: “बालक येशु की सिस्टर तेरेसा, आप मुझे बताएंगे कि वह क्या चीज़ है जो आपको मेरी ओर इतना आकर्षित करती है? हर बार जब आप मुझे देखती हैं, तो मैं आपको मुस्कुराती हुई देखती हूँ|“*
उस बहन के प्रति संत तेरेसा को आकर्षित करनेवाली बात होने वाले यीशु को उस बहन की आत्मा की गहराई में छिपा हुआ येशु था जो सबसे कड़वी बात को भी मीठा बनाता है। आइए हम शिथिलता, अशिष्टता, गपशप, और अपमानजनक बातों को सक्रिय दया और आंतरिक करुणा के साथ प्रतिक्रिया करने की कला सीखें।
'एक पुस्तक जो आपकी जिंदगी बदल सकती है
हिप्पो के संत अगस्तीन अब तक के सबसे महान संतों में से एक माना जाता है। हालाँकि, वे अपनी युवावस्था में बड़े पापी रहे और नव-अफ्लातून-वाद और मैनिकेयन-वाद जैसे ख्रीस्तीय विश्वास विरोधी दार्शनिक विचारधाराओं को उन्होंने अपना लिया था। उनके पश्चाताप के लिए उनकी माँ की उत्कट आग्रह के बावजूद, विवाह किये बिना उन्होंने एक महिला के साथ रहना जारी रखा, और परिणामस्वरूप उन दोनों का एक बच्चा भी पैदा हुआ।
तो, अब तक के सबसे महान संतों में से एक, जो बाद में कलीसिया के आचार्य बने, अपने पाप से कलंकित जीवन से निकलकर सच्चे विश्वास में कैसे परिवर्तित हुए ?
इसका उत्तर है: परमेश्वर का वचन।
‘कन्फेशन्स’ नामक अपने ग्रन्थ में, संत अगस्तीन बताते हैं कि कैथलिक धर्म में उनका रूपांतरण अचानक नहीं हुआ था। हालाँकि कैथलिक बनने की उन्हें तीव्र इच्छा थी, लेकिन कलीसिया की कुछ शिक्षाओं का पालन करने में उन्हें बहुत अधिक संघर्ष करना पडा – विशेष रूप से ब्रह्मचर्य की। उन्होंने लिखा कि उन्हें पवित्र बनाने के लिए वे ईश्वर से प्रार्थना करते रहे, लेकिन ऐसा बहुत सालों तक ऐसा हुआ नहीं।
एक दिन, अगस्तीन की हताशा सिर चढ़ गई। उन्होंने अपने दिल को पूरी तरह से बदल देने के लिए ईश्वर से तीव्रता से विनती की। वह कैथलिक बनना चाहता था और कलीसिया की शिक्षाओं को पूरी तरह से अपनाना चाहता था, लेकिन खुद को शरीर की वासना के पापों से अलग करना उन्हें असंभव जैसा लगा। अगस्ती गहरे चिंतन और साधना के लिए एक बगीचे में चले गए। वे ‘कन्फेशन्स’ में लिखते हैं कि उन्होंने एक बच्चे की आवाज़ सुनी जो उन्हें पवित्र धर्म ग्रन्थ, जिसे वे अपने साथ बगीचे में लाए थे, उसे उठाकर पढने के लिए प्रेरित किया। तुरंत, अगस्तीन ने ग्रन्थ में रोमियों के नाम पौलुस का पत्र 13:13-14 को खोला और पढ़ा:
“हम दिन के योग्य सदाचरण करें। हम रंगरेलियों और नशेबाजी, व्यभिचार और भोगविलास, झगड़े और ईर्ष्या से दूर रहें। इसके बदले आप लोग प्रभु येशु मसीह को धारण करें और शरीर की वासनाएं तृप्त करने का विचार छोड़ दें।”
उन वचनों को पढ़ने के बाद, अगस्तीन को लगा कि उनके जीवन को बदलने का यही उपयुक्त समय है।
हम सभी हृदय परिवर्तन के लिए बुलाये गए हैं, लेकिन हम में से अधिकांश के लिए यह आसान नहीं है। हालाँकि, हम संत अगस्तीन के जीवन से सीख सकते हैं कि परमेश्वर का वचन हमारे बेचैन दिलों से सीधे बात करता है और हमें अपने प्रभु के पास पहुँचने के मार्ग का मानचित्र प्रदान करता है।
'विश्व-प्रसिद्ध जादूगर और बाजीगर डेविड ब्लेन ने 2 सितंबर 2020 की सुबह कुछ ऐसा कार्य किया, जिसका दूसरे लोग केवल सपने देख सकते हैं। वास्तव में जब वह 5 साल का था, उन दिनों अपनी मां के साथ बैठकर एक फिल्म में ख़्वाब देखा था, वह ख़्वाब डेविड का अपना ख़्वाब बन चुका था। जबसे उसकी बच्ची डेसा का जन्म हुआ था, तब से किसी प्रकार की डरावनी हरकतें नहीं करने का वादा डेविड ने किया था| लेकिन अब वह कुछ खूबसूरत कार्य करके अपनी बच्ची को प्रेरित करना चाहता था। उसने अपने आप को 52 बड़े हीलियम गुब्बारों से बांधा और आकाश की ओर उड़ गया।
जैसे ही वह धीरे-धीरे ऊंचाई हासिल कर रहा था, वह चढ़ाई को नियंत्रित रखने के लिए अपने पर रखे गए भार को एक एक कर गिराता रहा। वह अंततः 24,900 फीट की ऊँचाई पर पहुँच गया (कुछ छोटी हवाई जहाज इतनी उंचाई तक उड़ान भरती है)। वहां से, उसने खुद को गुब्बारों से अलग किया और कूद गया। जब वह 7000 फीट तक पहुंच गया, तो उसने अपना पैराशूट खोला और जल्द ही सुरक्षित नीचे ज़मीन पर उतरा। जैसे ही वह अपने शारीरिक संतुलन में वापस आ गया, तो उसने अपनी बेटी से बात की जो लगातार वायरलेस रेडियो पर उसे सुन रही थी| उसने डेसा को बताया कि उसने यह सब उसी केलिए किया है और वह डेसा से बहुत प्यार करता है। और डेसा ने कहा, “धन्यवाद पिताजी, आपने यह किया, धन्यवाद”।
एक पिता और उसकी बेटी के बीच की यह प्यार भरी कहानी, हमें अपने स्वर्गीय पिता के प्यार की याद दिलाती है, जो हमारे प्रति अपने प्यार के कारण अपने इकलौते बेटे को त्याग देता है, जो न केवल हमारे नीच अवस्था में हमारे बीच रहा, बल्कि स्वेच्छा से दुख और घावों को स्वीकार किया, ताकि आप और मैं चंगा हो सकता हूँ। वह सूली का भारी बोझ लिए कलवारी पहाड़ की ओर बढ़ा, सूली पर चढ़ गया, मर गया और हमारे लिए फिर से जी उठा, ताकि हम अनंत काल तक उसके साथ रह सकें। वह आज भी हमें उसी तीव्रता से प्यार करता है, अब भी करता है। यह कैसा प्यार है ?!
डेविड ने अपनी छोटी लड़की के लिए जो किया, उसे देखकर कोई भी आश्चर्य चकित, दंग, अवाक, भौचक, विस्मित, सम्मोहित, स्तंभित और अभिभूत हो सकता है । लेकिन हमारे स्वर्गिक पिता ने हमारे लिए जो किया है, उस पर हमें कितना अभिभूत, विस्मित और आश्चर्य चकित होना चाहिए। हम भी खुशी से पुकार सकते हैं, “धन्यवाद पिताजी! आपने यह किया! धन्यवाद!”
'क्या कोई अपने दुश्मन से कोई सबक सीखना चाहेगा? आइये जानते हैं कि कैसे जीवन की कठिनाइयां ही हमें बहुत कुछ सिखा जाती हैं – चाहे वो छोटी छोटी आज़ादी का छीन जाना हो, या घर छोड़ने को मजबूर होना या किसी अपने को खो देने का गम हो|
क्या हम पवित्र मिस्सा को “एक लौकिक अद्भुत” या “दुनियावी चमत्कार” कह सकते हैं? शायद यही कैथलिक विरोधाभासी शब्द सुन्दर यूखरिस्त संस्कार को ठीक तरह से वर्णित करने में सक्षम है। आखिरकार, इसी संस्कार के द्वारा ही तो हम दैनिक रूप से परम प्रसाद के रूप में अपने पुनर्जीवित येशु को ग्रहण कर पाते हैं। कैथलिक लोग, ईश्वर की कृपा से सिर्फ एक घंटा उपवास करने के बाद, परम प्रसाद के द्वारा इस बहुमूल्य भेंट को ग्रहण कर पाते हैं। इसे ग्रहण करने के लिए ना ही कोई एडमिट कार्ड लगता है, ना ही कोई प्रमाण पत्र, बस खुद की अंतरात्मा की रज़ामंदी लगती है कि हमने कोई बड़ा पाप नहीं किया है। इस प्रकार ईश्वर का यह बलिदान हम बड़ी आसानी से ग्रहण कर पाते थे। पर फिर कोरोना ने हमारी ज़िंदगियों में प्रवेश किया।
क्या कभी कोई सोच सकता था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब हमारी सरकार गिरजाघरों को बंद करने का आदेश निकालेगी, या एक ऐसा समय आएगा जब दैनिक मिस्सा तो छोड़िए रविवार का मिस्सा तक बंद करवा दिया जाएगा? लेकिन ईश्वर को धन्यवाद उस टेक्नोलॉजी के लिए जिसकी वजह से हमारे पुरोहित इंटरनेट पर ऑन लाइन लाइव मिस्सा चढ़ा पाए। मेरे लिए मेरी रसोई मेरा गिरजाघर बन गयी जहां मैं अपने फोन पर ईश्वर का वचन सुन पाई हूं। हमारे पुरोहित इंटरनेट पर ही मिस्सा चढ़ा कर परम प्रसाद बांट दिया करते थे और लोग अपने घरों में, अपने प्रार्थना कक्ष में ही बैठे बैठे आध्यात्मिक रूप से ईश्वर को ग्रहण कर पा रहे थे।
लेकिन फिर दिन महीनों में बदलने लगे और सभी के मन में एक आध्यात्मिक भूख पैदा हुई। यह भूख खुद गिरजाघर में जा कर अपने हाथों से परम प्रसाद ग्रहण करने की थी, जो पूरी नहीं हो पा रही थी। शायद यह हम सब की ज़िन्दगी में पहली बार था, जब हमें इस बात का एहसास हुआ कि यूखरिस्त संस्कार की अनुपस्थिति हमें किस तरह प्रभावित करती है। हमारा लौकिक चमत्कार अब एक खोया हुआ चमत्कार बन कर रह गया था।
उन दिनों रेस्टोरेंट बंद थे, लेकिन फोन पर खाना मंगवाने की सुविधा फिर भी चालू थी। धीरे धीरे कड़े दिशा निर्देशों के बीच रेस्टोरेंट भी खोले जाने लगे। सबसे खुशी की बात यह थी कि सरकार ने नियमित मिस्सा और रविवार का मिस्सा फिर से चालू करने की इजाज़त दे दी। लेकिन इन सब में भाग लेने के लिए लोगों को मास्क पहनने और दो गज़ दूरी बनाए रखने के कड़े निर्देश मिले थे। लगभग 88 दिन यूखरिस्त संस्कार ग्रहण ना करने के बाद मैं जीवित येशु को ग्रहण करने के लिए भूखी थी। इतने दिनों बाद जब मैंने और मेरे पल्ली के लोगों ने भीगी पलकों से यूखरिस्त संस्कार ग्रहण किया, तभी हमारी यह आध्यात्मिक भूख शांत हुई। परम प्रसाद ग्रहण करते हुए मेरा दिल फूला नहीं समा रहा था कि आखिरकार मैं अपने उस प्यारे दोस्त से फिर से मिल पा रही थी जिसने मेरे लिए अपनी जान दी। यूखरिस्त संस्कार ग्रहण करने के बाद के वो कुछ पल, जिसमें मैंने ईश्वर के इस बहुमूल्य भेंट पर मनन चिंतन किया, इन्हीं पलों ने इतने दिनों की जुदाई के ग़म को पूरी तरह मिटा दिया।
तभी मुझे यह समझ आया कि कोरोना काल हमें यह सिखाने आया है कि यूखरिस्त हमारी आत्मा का भोजन है। जब हम पवित्र मिस्सा के दौरान परम प्रसाद को ग्रहण करते हैं तब हमारा वह भूखा दिल तृप्त होता है जो मिस्सा के बाद इस दुनिया में वापस जाता है। हमारी दुनिया को परम प्रसाद रूपी इस भोजन की ज़रूरत है। मैं हर रोज़ प्रार्थना करती हूं कि मैं ईश्वर को दूसरों तक पहुंचा पाऊं। और इसी तरह हमें लगातार अपनी भूखी दुनिया के लिए ईश्वर को ग्रहण कर के उसे वितरित करने का काम जारी रखना है।
मिस्सा के बाद जब हमारे पुरोहित कहते हैं “आप लोग विदा लें” तब हमें यह याद रखना है कि हम “ईश्वर के साथ विदा लें”, और साथ ही साथ अपने दिल में उस आध्यात्मिक भोजन को साथ ले चलें ताकि हम उसे औरों को भी दे सकें। चाहे वह भोजन एक मुस्कान, एक भले वचन, एक दिलासा, एक मदद के रूप में ही क्यों ना हो। ईश्वर खुद हमारा मार्गदर्शन करेंगे और हमें बताएंगे कि कहां और किसे उसके आध्यात्मिक भोजन की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। कितनी अजीब बात है कि कोरोना जैसी बीमारी भी हमें इस तरह का कुछ सिखा सकती है। या शायद ज़िन्दगी के सबसे अंधियारे भरे दिनों में ही हम रौशनी को पूरी जी जान से खोजते हैं और उसी समय ईश्वर हम पर अपनी समझ बरसाते हैं।
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