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योहन के सुसमाचार के अध्याय 2 में येशु द्वारा यरूशलेम मंदिर जाने के बारे में और येरूशलेम मंदिर की सफाई के बारे में नाटकीय विवरण मिलता है, जहां येशु व्यापारियों को बैल, भेड़, और कबूतर बेचते हुए और पैसे बदलने वाले साहूकारों को अपनी मेज पर बैठे हुए पाते हैं। रस्सियों से एक कोड़ा बनाकर, येशु उन्हें मंदिर परिसर से बाहर निकालते हैं, साहूकारों की मेजों को उलट देते हैं और उन्हें आदेश देते हैं कि “मेरे पिता के घर को बाज़ार मत बनाओ” (पद.16)।
येशु ने किसी को नहीं मारा, लेकिन पास्का पर्व के इतने करीब की इस नाटकीय कार्रवाई ने निश्चित रूप से भीड़ का ध्यान आकर्षित किया और धर्माधिकारियों से और उन लोगों से एक प्रतिक्रिया को जन्म दिया जिनके आर्थिक हितों को खतरा था।
इस वृत्तांत में येशु का व्यवहार हमें चुनौती देता है कि हम अपने फायदे और स्वार्थी हितों की नहीं, बल्कि उस परमेश्वर की महिमा की तलाश करें जो वास्तव में प्रेम है। येशु के साहसिक हस्तक्षेप ने मंदिर को “कबाड़ के धर्म” से मुक्त कर वास्तविक धर्म के लिए जगह बनाने का कार्य किया। आज के दौर में कबाड़ का धर्म क्या है और कैसा दिखता है?
सीधे शब्दों में कहें तो कबाड़ धर्म कैथलिक परंपरा के वे तत्व हैं, जो हमारे व्यक्तिगत और स्वार्थी परिपाटी का समर्थन करने वाले हैं, और जो कैथलिक तत्व हमारे स्वार्थी एजंडा में नहीं हैं, उन पर पर्दा डालते हैं। हम उन सारी सही कार्य कर सकते हैं – नियमित रूप से मिस्सा में भाग लेना, अच्छी धर्मविधि की सराहना करना, उदारता से दान देना, पवित्र ग्रन्थ को उद्धृत करना, और यहां तक कि ईशशास्त्र के कुछ हिस्से को भी समझ लेना – लेकिन अगर हम सुसमाचार को अपने दिल की गहराई तक नहीं जाने देते हैं, तो हम कैथलिक विश्वास को पालतू बना लेते हैं, और इसे “कबाड़ धर्म” के रूप में सीमित और छोटा बनाते हैं। उस गहरी प्रतिबद्धता के बिना, धर्म सुसमाचार के बारे में कम, बल्कि अपने बारे में और अपने व्यक्तिगत विचारधारा के बारे में अधिक हो जाता है – चाहे हम खुद को किसी भी राजनीतिक परिदृश्य में पाते हैं।
सुसमाचार हमारा आह्वान करता है कि स्वयं को दास का रूप देनेवाला और क्षमाशील येशु के मार्ग को हम अपनावें। हम अहिंसक बनने और न्याय और भलाई को बढ़ावा देने के लिए बुलाये गए हैं। और हमें उन कार्यों को अनुकूल और प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में करने की जरूरत है चाहे वह आसान हो या कठिन हो। जब इस्राएली कनान देश की ओर जा रहे थे और जब यात्रा कठिन हो गई, तो वे मिस्र में अपने पुराने जीवन के आराम और सुरक्षा की ओर लौटना चाहते थे। उनकी तरह, हम धर्म को हमें पहचान देनेवाले एक ऐसे परिधान के रूप में पहनने के प्रलोभन में पड़ सकते हैं, जबकि धर्म एक ऐसा ख़मीर बने जो हमें भीतर से बदल देता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि हम ईश्वर के उदार और सुरक्षापूर्ण प्रेम के साधन हैं; हम अपनी इस पुकार के प्रति दृढ़ रहें।
हमारे अनुष्ठान और भक्ति अभ्यास हमें याद दिलाएंगे कि ईश्वर की सच्ची आराधना करना है, जीवन के लिए निरंतर धन्यवाद देना है और दूसरों के साथ अपने जीवन को साझा करके कृतज्ञता व्यक्त करना है। यदि हम ऐसा करते हैं, तो यहां और वर्त्तमान में मौजूद पुनर्जीवित मसीह के देहधारण में हम भी शामिल हो जायेंगे, हम भी उस देह्धारण को अपने जीवन में साकार करेंगे। हम अपने समुदाय में न्याय के साथ शांति की शुरुआत करेंगे। संक्षेप में, हम सच्चे धर्म का पालन करेंगे, अपने आप को एक ऐसे ईश्वर से जोड़ेंगे जो केवल हमसे प्रेम करना चाहता है और बदले में प्रेम पाना चाहता है।
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”मैं क्षमा करता हूँ‘ यह कहना और वास्तव में क्षमा करना आसान नहीं है…”
“मसीह ने स्वतंत्र बने रहने केलिए हमें स्वतंत्र बनाया है।” (गलाती 5:1)
मुझे यकीन है कि अधिकांश लोग इस बात से अवगत होंगे कि क्षमा क्रिश्चियन संदेश के मूल में है, लेकिन बहुतों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि किसी को क्षमा न करने से शारीरिक पीड़ा हो सकती है। मैं इसे अपने निजी अनुभव से जानता हूं। कई बार, मैंने इस भयानक, अक्सर अपंग करनेवाली बीमारी को चंगा करने में पवित्र आत्मा की शक्ति को अनुभव किया है।
क्षमा आसान नहीं
क्रूस पर मरते समय येशु ने जो पहले शब्द कहे थे, वे क्षमा के शब्द थे (लूकस 23:34)। मानव जाति को पाप और मृत्यु से मुक्त करने के लिए येशु का प्रेममय बलिदान वह क्षण था जिसकी प्रतीक्षा मानव को लम्बे अरसे से थी। जब येशु मृतकों में से जी उठने के बाद अपने शिष्यों से मिले, तब क्षमा फिर से उनके होठों पर थी, और उन्होंने अपनी ओर से इस क्षमा को देने की शक्ति शिष्यों को दी (योहन 20:19-23)। जब प्रेरितों ने येशु से प्रार्थना करने का तरीका पूछा, तो उस ने एक प्रार्थना के माध्यम से इसका जवाब दिया, इसी प्रार्थना के द्वारा ईश्वर को ‘हमारे पिता’ कहकर संबोधित करने और और जिस तरह हमारे विरुद्ध अपराध करनेवालों को हम क्षमा करते हैं, उसी तरह ‘हमारे अपराधों (पापों) को क्षमा करने के लिए उस से निवेदन करने की अनुमति हमें मिली (मत्ती 6:12)। यदि हम स्वयं क्षमा की अपेक्षा करते हैं, तो हमें दूसरों को क्षमा करना चाहिए (मत्ती 5:23-26; 6:14)।
क्षमा न करने की तुलना बंद मुट्ठी से की जा सकती है। बंधी हुई मुट्ठी तनी हुई होती है, और अक्सर क्रोध में जकड़ी और तनाव से पूर्ण रहती है। बंद मुट्ठी वास्तव में केवल एक ही कार्य के काम में आ सकती है; किसी को मारने के लिए, या कम से कम मारने के लिए तैयार होने के काम में। अगर वह मुट्ठी किसी पर लग जाती है, तो वापस मार खाने और अधिक शत्रुता पैदा करने की उम्मीद करना गलत नहीं होगा। अगर मुट्ठी बंद है, तो वह खुली नहीं है। खुला हाथ उपहार या कोई भी वस्तु प्राप्त करने में सक्षम है, लेकिन अगर वह बंद और जकड़ा हुआ है तो जो भेंट दी जा रही है उसे स्वीकार करना संभव नहीं है। दुसरे शब्दों में कहें तो, जब हम अपने हाथ खोलते हैं, तभी हम प्राप्त कर सकते हैं, तभी जो हम प्राप्त करते हैं उसे दूसरों को देने में भी हम सक्षम होते हैं।
जब वह स्वतन्त्र करता है
जब मैंने इस बारे में मिस्सा बलिदान में प्रार्थना की, तो मेरे दिमाग में एक छड़ी की छवि आयी, और मैंने यह महसूस किया कि जब हम क्षमा नहीं करते हैं, तो हमारे जीवन में चलने में दिक्कत आती है। मिस्सा के बाद, जब हम बाहर बातें कर रहे थे, एक आदमी आया, जिसने गिरजाघर के बाहर उसका फोटो लेने के लिए हमसे कहा। जब मैंने देखा कि वह छडी के सहारे चलता है, तो मुझे लगा कि उस की बीमारी क्षमा न करने के कारण हुई है। -जैसे बातचीत जारी रही, उसने मुझे अपने अतीत के बारे में बताना शुरू कर दिया, और अंत में उसने मुझसे मेरी प्रार्थनाओं का अनुरोध किया, क्योंकि वह भयंकर पीठ दर्द से परेशान था।
तुरंत मैंने उसे मेरे साथ प्रार्थना करने के लिए आमंत्रित किया और मैं ने कहा कि येशु उसे चंगा करना चाहता है, लेकिन इसके लिए कुछ कार्य करना पड़ेगा। उत्सुक और खुले दिल से वह सहमत हो गया, और मुझ से पूछ रहा था कि क्या कार्य करना होगा। मैंने उससे कहा कि उन्हें उन लोगों को माफ करना होगा जिनका उल्लेख उन्होंने अभी अभी बातचीत में मुझसे किया है और अन्य किसी भी व्यक्ति को माफ़ करना होगा जिसने उसे चोट पहुंचाई है। मैं उस व्यक्ति को देख पा रहा था कि वह आंतरिक रूप से संघर्ष कर रहा है, इसलिए मैंने उसे इस आश्वासन के साथ प्रोत्साहित किया कि क्षमा करने के लिए उसे अपनी ही ताकत पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। यदि वह येशु के नाम से क्षमा करता, तो येशु उसे सामर्थ्य देता, उसकी अगुवाई करता और उसे स्वतंत्र करता। फुसफुसाते हुए उसकी आँखें चमक उठीं, “हाँ, अपने प्रभु की शक्ति से मैं क्षमा कर सकता हूँ।”
मैंने प्रार्थना में उसकी अगुवाई की, और उसकी पीठ पर हाथ रखकर उसे ठीक होने की चंगाई प्रार्थना के साथ (मारकुस 16:15-18) वह प्रार्थना सत्र समाप्त हुआ मैंने उससे कहा कि जो कुछ येशु ने कहा है वह सब करे और उसने जो माँगा उसे प्राप्त कर लिया है, ऐसे विश्वास के साथ परमेश्वर का धन्यवाद करे (मारकुस 11:22-25), और इस तरह वह येशु से चंगाई की प्राप्ति कर सकता है। यह शुक्रवार की शाम को था।
रविवार को, उसने मुझे मोबाइल पर एक संदेश भेजा, “प्रभु की स्तुति हो, येशु ने मेरी पीठ को चंगा कर दिया। मैं ने प्रभु की स्तुति की, और पूरे मन से उसका धन्यवाद किया। मैं इस पूरी घटना से विशेष रूप से प्रभावित था। हमने शुक्रवार को क्रूस की शक्ति और गुणों से चंगाई के लिए प्रार्थना की थी। और तीसरे दिन, रविवार को अर्थात पुनरुत्थान के दिन उस प्रार्थना का जवाब मिल गया।
महान लेखक सी.एस. लुइस ने एक बार लिखा था, “जब तक कि लोगों के पास क्षमा करने के लिए कुछ न हो, तब तक वे सोचते हैं कि क्षमा एक सहज चीज है।” यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्षमा इच्छा शक्ति का कार्य है; जिसे हम चुनते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि यह निर्णय लेना आसान है, जितनी बार क्षमा करें, उतनी बार यह दुनिया में सबसे कठिन, सबसे दर्दनाक निर्णय की तरह लग सकता है, लेकिन जब हम येशु के नाम पर ‘उन्हीं के द्वारा, उन्हीं के साथ, और उन्हीं में सब कुछ का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं’, तब हम सीखते हैं कि ‘परमेश्वर के साथ कुछ भी असंभव नहीं है’ (लूकस 1:37)। यह आवश्यक है कि हम अपने आप से पूछें कि क्या हमारे जीवन में ऐसा कोई है जिसे हमें क्षमा करने की आवश्यकता है। येशु हमें सिखाते हैं, “जब तुम प्रार्थना के लिये खड़े हो, और तुम्हें किसी से कुछ शिकायत हो तो क्षमा कर दो, जिससे तुम्हारा स्वर्गिक पिता तुम्हारे अपराध क्षमा कर दे” (मारकुस 11:25)। इसलिए, हमें येशु के पास सब कुछ लाना चाहिए और उसे हमें स्वतंत्र करने की अनुमति देनी चाहिए, क्योंकि “यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र बना देगा, तो तुम सचमुच स्वतंत्र होगे (योहन 8:36)।
'मुझे पुरानी फिल्में देखना पसंद है। पिछले कई महीनों में, मैंने अल्फ्रेड हिचकॉक के कई थ्रिलर, तीस और चालीस के दशक के कुछ कॉमेडी और क्लासिक्स देखा, उनमें कुछ फिल्म दुबारा देखा। पिछले हफ्ते, तीन शामों के दौरान, मैं 1956 में बनी चार्लटन हेस्टन की फिल्म “टेन कमांडमेंट्स” को देखा, जिसे देखने में तीन घंटे चालीस मिनिट लगे। मैंने वह पुराना अद्भुत टेक्नीकलर, जो आज भी आकर्षक है, खूबसूरत वस्त्र विन्यास, शानदार शेक्सपियरियन संवाद, और जबरदस्त अभिनय, सब कुछ को बड़ी ख़ुशी के साथ आत्मसात कर लिया, क्योंकि कोई भी इसे अच्छा ही कहेगा। लेकिन जिस चीज़ ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया, वह थी फिल्म की लंबाई। यह जानते हुए कि दर्शकों को इतनी लम्बी देर की फिल्म पर लम्बी अवधि तक ध्यान देना एक असाधारण कार्य रहा होगा। इसके बावजूद, यह याद रखना आश्चर्यजनक है कि यह फिल्म बेतहाशा लोकप्रिय थी, अनायास ही अपने समय की सबसे सफल फिल्म थी। यह अनुमान है कि, मुद्रास्फीति के लिए समायोजित, इस फिल्म ने लगभग दो अरब डॉलर की कमाई अर्जित की। मैंने सोचा, क्या “टेन कमांडमेंट्स” जैसी फिल्म को आज के दौर में फिल्म देखने वाले, उतना ही लोकप्रिय बनाने के लिए आवश्यक धैर्य जुटा पाएंगे? मुझे लगता है कि सवाल का जवाब उसी सवाल में ही है।
फिल्म की लंबाई और लोकप्रियता के संगम पर सोचते हुए मुझे सांस्कृतिक इतिहास से इस संयोजन के कई अन्य उदाहरण याद आ गए। उन्नीसवीं शताब्दी में, चार्ल्स डिकेंस के उपन्यासों की इतनी मांग थी कि साधारण लंदनवासी एक एक अध्याय के लिए लंबी लाइनों में प्रतीक्षा करते थे क्योंकि वे धारावाहिक, अध्याय दर अध्याय बनकर प्रकाशित होते थे। और इसको समझना ज़रूरी है: डिकेंस के उपन्यासों में नाटकीय रूप से आकर्षक बातें बहुत कुछ नहीं होती हैं; मेरा मतलब है कि बहुत कम चीजें दिमाग को अप्रत्याशित रूप से प्रभावित करती हैं; कोई विदेशी आक्रमण नहीं हैं; बुरे लोगों को जान से उड़ाने से पहले नायकों द्वारा बोले गए कोई तेज़ वन-लाइनर संवाद नहीं। अधिकांश हिस्सों में, उनमें आकर्षक और विचित्र पात्रों के बीच लंबी बातचीत होती है।
दोस्तोवस्की के उपन्यासों और कहानियों के बारे में भी यही कहा जा सकता है। यद्यपि ‘द ब्रदर्स करमाज़ोव’ के कथानक के केंद्र में वास्तव में एक हत्या और एक पुलिसिया जांच है। उस प्रसिद्ध उपन्यास के अधिकाँश हिस्से के लिए, राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मामलों पर लम्बे लम्बे संवाद के लिए बहुत सारे पन्नों को भरते हुए, दोस्तोवस्की विभिन्न पात्रों की व्यवस्था उनके ड्राइंग रूम में करता है। उसी अवधि के दौरान, अब्राहम लिंकन और स्टीफन डगलस ने अमेरिका में गुलामी के जटिल मुद्दे पर बहस की एक श्रृंखला में भाग लिया। वे घंटों बात करते थे—और बौद्धिक रूप से उन्नत तरीके से बहस करते थे। यदि आप मुझ पर संदेह करते हैं, तो ग्रंथों को ऑनलाइन देखें। उनके दर्शक सांस्कृतिक रूप से अभिजात वर्ग या राजनीतिक दर्शन के छात्र नहीं थे, बल्कि अमेरिका के इलिनोई राज्य के सामान्य किसान थे, जो खेत के कीचड़ में खड़े थे, उन्होंने बहस पर अपना पूरा ध्यान दिया, और वक्ताओं की अनमनी आवाजों को सुनने के लिए अपने कान खड़े कर के बड़े ध्यान से सुन रहे थे। क्या आज ऐसी एक अमेरिकी भीड़ की कल्पना करना संभव है, जो आज इस तरह इतनी लम्बी अवधि के लिए खड़े होने और सार्वजनिक नीति पर जटिल प्रस्तुतियों को सुनने के लिए तैयार है – और उस मामले के लिए, क्या आप किसी भी अमेरिकी राजनेता की कल्पना कर सकते हैं, जो लिंकन की तरह इतनी लंबाई और गहराई से बोलने के लिए तैयार या सक्षम है? एक बार फिर सवालों के जवाब अपने आप मिल जाते हैं।
बीते युग के इस तरह के संचार के तौर-तरीकों और शैलियों को क्यों देखना है? क्योंकि उस युग की तुलना में हम इतने गरीब लगते हैं! मैं निश्चित रूप से सोशल मीडिया के मूल्य को समझता हूं और मैं अपने सुसमाचार के प्रचार के कार्य में उसका आसानी से उपयोग करता हूं, लेकिन साथ ही, मैं इस बात से पूरी तरह अवगत हूं कि कैसे सोशल मीडिया ने परिष्कृत बातचीत के लिए हमारे ध्यान अवधि और क्षमता को कम किया है और सच्चाई की ओर वास्तविक प्रगति करने में हमें कमज़ोर किया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और विशेष रूप से ट्विटर आकर्षक सुर्खियों, भ्रामक शीर्षकों, प्रतिद्वंद्वी के तर्कों के विरुद्ध सरलीकृत लक्षण वर्णन, तथ्यों पर आधारित बहस के स्थान पर ध्वनि बढाने और काटने और विद्वेष से भरपूर बयानबाजी के विशेषज्ञ हैं। बस इनमें से किसी भी साइट पर कमेंट बॉक्स में डुबकी लगाएँ, और आप तुरंत देखेंगे कि मेरा क्या मतलब है।
किसी व्यक्ति के तर्क का एक वाक्यांश या एक शब्द को उठाकर इसे संदर्भ से बाहर निकालना, इसे सबसे खराब संभावित व्याख्या देना, और फिर पूरे इंटरनेट पर अपनी नाराजगी फैलाना आदि सोशल मीडिया का एक प्रचलित तकनीक है। सोशल मीडिया मानती है कि सब कुछ तेज गति से होना चाहिए, आसानी से पचने वाला हो, समझने में आसान हो, दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए- क्योंकि उन्हें अपनी साइट पर क्लिक प्राप्त करने होते हैं, और यह दुनिया कुत्तों की जैसी है, जहाँ एक कुत्ता दुसरे कुत्ते को मार खाने के लिए तैयार बैठा है। मेरी चिंता इस बात पर है कि संचार के इस तरीके से एक पूरी पीढ़ी को पालन पोषण करके वयस्क बना चुके हैं और इसलिए यह पीढ़ी जटिल मुद्दों के बुद्धिमान जुड़ाव के लिए आवश्यक धैर्य और ध्यान पाने में काफी हद तक असमर्थ हो गयी है। वैसे, मैंने सेमिनरी में अपने लगभग बीस वर्षों के अध्यापन में इस पर ध्यान दिया। उन दो दशकों में, मेरे छात्रों को संत अगस्टिन के “कन्फेशंस” या प्लेटो के “रिपब्लिक” के सौ पृष्ठों को पढ़ने के लिए कहना मुश्किल हो गया। विशेष रूप से हाल के वर्षों में, वे कहते हैं, “फादर, हम अभी इतना अधिक ध्यान नहीं दे पाते।” ठीक है, लिंकन-डगलस बहस पर कम पढ़े लिखे किसान ध्यान दे सकते थे, और ऐसा ही डिकेंस के पाठक भी कर सकते थे, और ऐसा ही वे भी कर सकते थे जो साठ साल पहले सिनेमा थिएटर में “द टेन कमांडमेंट्स” देखने केलिए बैठे थे।
निराशाजनक टिप्पणी से मैं इस चिंतन को समाप्त न करूँ, इसलिए मुझे आपका ध्यान उस ओर आकर्षित करने की अनुमति दें जिसे मैं आशा का वास्तविक संकेत मानता हूं। पिछले कुछ वर्षों में, लम्बी अवधि के पॉडकास्ट की दिशा में एक प्रचालन बढ़ रहा है जो बड़ी तादाद में युवा दर्शकों को आकर्षित कर रहा है। देश में सबसे लोकप्रिय शो में से एक की मेजबानी जो रोगन करता है, वह अपने मेहमानों से तीन घंटे से अधिक समय तक बात करता है, और उस पॉडकास्ट को लाखों लोग देखते हैं। पिछले एक साल में, जॉर्डन पीटरसन के साथ दो पॉडकास्ट पर मुझे भी आमंत्रित किया गया, प्रत्येक एपिसोड दो घंटे से अधिक समय का बहुत उच्च-स्तरीय चर्चा का कार्यक्रम रहा और दोनों पॉडकास्ट को करीब दस लाख लोगों ने देखा है।
शायद हम एक बड़े मोड़ पर हैं। टेलीविज़न शो में ध्वनि बढाकर प्रतिद्वंदी को हराने की सतही छद्म-बौद्धिकता से भरपूर चैट शोज और त्वरित संतुष्टि की खोज में लगे सोशल मीडिया से युवा लोग शायद थक चुके हैं। सोशल मीडिया के प्रति इस उदासीनता की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने के लिए, मैं आप सभी को आमंत्रित करना चाहता हूं कि आप सोशल मीडिया का बहुत कम उपयोग करें – हाँ, आप शायद “द ब्रदर्स करमाज़ोव” को चुनेंगे तो बेहतर होगा।
'अपनी समस्याओं के समाधान के लिए सदियों पुरानी विधि को फिर से खोजें!
राजनीतिक और सामाजिक सक्रियता, निरंतर बनी रहने वाली घटना बन गई है। बहुत ज़रूरी बदलाव लाने के उद्देश से अपने अच्छे आदर्शों से उत्साहित होकर, लोग पूरे विश्व की बेहतरी और कल्याण के लिए पहल करते हैं और विभिन्न प्रकार के अभियान एवं आन्दोलन चलाते हैं|
सोशल मीडिया के सन्देश हमसे आग्रह करते हैं: “जो बदलाव तुम दुनिया में देखना चाहते हो, तुम स्वयं वह बदलाव बन जाओ।”
लेकिन हम यह निर्णय कैसे लें कि अपना समय और पैसा किस सामाजिक कार्य में निवेश करना है? किन किन अभियानों का समर्थन किया जाए? दुनिया में इतनी सारी सेवा संस्थाएं या धर्मार्थ संगठन हैं जो हमारे समय, हुनर, प्रतिभा और धन के अनुदान का उपयोग कर सकते हैं।
वास्तव में, हमारी परिस्थितियों में, हमारे समुदायों में, हमारी कलीसियाओं में और हमारे देशों में बहुत सारी ऐसी बातें हैं जिनमें हम बदलाव देखना चाहते हैं |
मेरा मतलब है, ठण्ड के दिनों में जूते और गरम कपडे जुटाना बहुत ज़रूरी है, लेकिन यही बात अपने बच्चों को समझाना मेरे लिए टेढ़ी खीर है, ऐसे में मैं प्रभावशाली विश्व नेताओं के दिमाग को कैसे बदल सकती हूं?
कठोर वास्तविकता यह है कि यह काम मैं नहीं कर सकती। लेकिन यह मुझे शक्तिहीन या नपुंसक नहीं बनाती है।
और अधिक बनने की ओर बदलें
मैं दुनिया में जो बदलाव देखना चाहती हूं, उसके बजाय मुझे उसी बदलाव केलिए प्रार्थना करने की जरूरत है। लेकिन रुकिए, मैं आप को शायद यह कहते हुए सुन रही हूँ कि क्या प्रार्थना निष्क्रियता का कार्य नहीं है? क्या हमें इससे बेहतर कोई कुछ और अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए… मतलब… कोई सक्रिय कार्य?
प्रार्थना में कोई निष्क्रियता नहीं है। बहुत सी बातें प्रार्थना में हैं – प्रार्थना चिंतनशील, व्यवस्थित, अव्यवस्थित, नियमित, ध्यान परक हैं – लेकिन निश्चित रूप से निष्क्रिय नहीं। यह सही है कि हमारे समुदायों में बहुत सी सक्रिय सेवायें हैं। लेकिन हमारे कार्यों को बढ़ावा देने के प्रार्थनामय मनन-चिंतन के इंधन के बिना, हमारे सेवा कार्य कमजोर पड़ जाते हैं और इसी तरह, यदि हमारे द्वारा सक्रिय सेवा कार्य न हो, तो हमारी प्रार्थना भी कमज़ोर हो सकती है।
कुरिंथियों के नाम अपने पत्र में संत पौलुस बताते हैं कि जब हमारे पास आध्यात्मिक आधार नहीं होता है, तब हमारे सक्रिय सेवाओं की नियति क्या होती है:
मैं भले ही मनुष्यों तथा स्वर्गदूतों की सब भाषाएँ बोलूँ, किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो मैं खनखनाता घड़ियाल या झनझनाती झांझ मात्र हूँ। मुझे भले ही भविष्यवाणी का वरदान मिला हो, मैं सभी रहस्य जानता होऊँ, मुझे समस्त ज्ञान प्राप्त हो गया हो, मेरा विश्वास इतना परिपूर्ण हो कि मैं पहाड़ों को हटा सकूं, किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो मैं कुछ भी नहीं हूँ। मैं भले ही अपनी सारी संपत्ति दान कर दूं और अपना शरीर भस्म होने के लिए अर्पित करूँ, किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो इस से मुझे कुछ भी लाभ नहीं। (1 कुरिन्थी 13:1-3)
यदि विश्वास के मामले में, वर्तमान-संत पापा, बिशप या पुरोहित के प्रति मेरे अन्दर क्रोध है और यदि उनके प्रति मेरे मन में उचित उदारता नहीं है, तो उनके खिलाफ असहमति द्वारा बिखराव और फूट फैलाने के बदले, मुझे उनके लिए प्रार्थना करने की आवश्यकता है। यही बात नेतृत्व पद पर बैठे किसी के लिए भी कहा जा सकता है जिससे हम असहमत हैं, या जब हमारी परिस्थितियां हमारे नियंत्रण से बाहर हैं, जिनके कारण हमारे जीवन में कहर बरपा है। दूसरे लोग क्या सोचते हैं, क्या कहते हैं या क्या करते हैं, इसे मैं नियंत्रित नहीं कर सकता, लेकिन मैं अपनी प्रतिक्रिया को नियंत्रित कर सकता हूं। और प्रार्थना के बारे में सबसे सरल बात यह है कि यह हमारे लिए हमेशा एक अच्छा विकल्प है।
तलाश करें
यदि आप एक उत्कृष्ट तकनीकी जानकार हैं, तो आप ऑनलाइन सर्च इंजन के बारे में सब कुछ जानते हैं। और मैं लगभग गारंटी दे सकती हूं कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं या आप जिस तकलीफ से गुज़र रहे हैं – उस हर एक बात के लिए कोई न कोई प्रार्थना है और/या कोई संरक्षक संत है। बस आप ऑनलाइन सर्च इंजन से तलाश कर लें |
पूरी ईमानदारी से कह रही हूँ, वहाँ आप के कंप्यूटर में प्रार्थनाओं का खजाना है। कभी-कभी केवल आराधना, विनती और याचिका के संकलन को पढ़ने से बड़ा सुकून मिलता है। हमारे पीडाओं और संघर्षों के बीच अकेलापन महसूस होना आम बात है, यह भूल जाना भी आसान है कि दूसरों को भी हमारे जैसे संघर्ष और अकेलापन के अनुभव हुए हैं।
अवसाद और चिंता से पीड़ित इस तरह के अप्रत्याशित दौर में संत डिम्फना के पास आप ज़रूर मदद लेने जाएँ। क्या आप सभी जातियों और पंथों के लोगों के बीच वैश्विक समानता देखना चाहते हैं? जोसेफिन बखिता जैसे संतों को देखें। क्या आप सामाजिक सक्रियता, या शरणार्थियों की दुर्दशा और हमारे पर्यावरण के बारे में सोचकर चिंतित हैं? डोरोथी डे, संत फ्रांसिस जेवियर कैब्रिनी या असीसी के संत फ्रांसिस की मध्यस्थता से ईश्वर के सम्मुख अपनी चिंताओं को प्रकट करें, प्रार्थना करें।
सेवा कार्य से पहले थोड़ी देर रुक कर मंथन द्वारा समझदारी पावें
उपरोक्त बातों को सुनकर, शायद आप तर्क देंगे कि वर्त्तमान दौर में और आज की दुनिया में बहुत सारी परेशानियाँ हैं। कुछ परेशानियां छोटी हैं, कुछ बड़ी हैं और हम अपनी तत्काल शक्ति से उन्हें बदल सकते हैं। अन्य समस्याएं वैश्विक स्तर पर हैं और हमारे प्रयास, बस समुद्र में एक बूंद की तरह होगा।
किसी भी कार्य को करने का निर्णय लेने से पहले, उस मुद्दे पर विवेचना केलिए प्रार्थना और मनन-मंथन में समय बिताना विवेकपूर्ण कार्य होगा। शायद भूखों के बीच सेवा दे रही स्थानीय खाद्य वैन को देखकर उन भूखों और बेघरों के लिए स्वयंसेवक बनने की प्रबल इच्छा आपके दिल में उमड़ रही होगी, लेकिन आप छोटे छोटे जुड़वे शिशुओं की माँ हैं, और घर पर उनकी देखभाल में लगे रहना आपकी मजबूरी है और आप केलिये समय एक ऐसी वस्तु है जो अभी आपके पास नहीं है।
ऐसी परिस्थिति में, समय मिलते ही, प्रार्थना करें, मंथन कर समझदारी पावें और पुनर्मूल्यांकन करें। हो सकता है कि आप भविष्य में पर-सेवा के किसी दौर में शामिल हों, उस मार्गदर्शन पर भरोसा करें जो ईश्वर आपको प्रार्थना में देता है।
प्रार्थना में अपनी चिंताओं, सपनों और इच्छाओं को येशु के पास ले जाएं। माइकल जैक्सन अपने गीत के द्वारा आप को प्रोत्साहित कर सकता है: “यदि आप दुनिया को एक बेहतर जगह बनाना चाहते हैं, तो खुद को देखें और वह बदलाव लावें”। लेकिन सच में, यह उतना आसान नहीं है।
अगर आप दुनिया को एक बेहतर जगह बनाना चाहते हैं: प्रार्थना करें। और बाकी बातें वहीं से आएंगे।
'माल्टा महाधर्मप्रांत के प्रसिद्ध फादर एलियास वेला ओ.एफ.एम. के साथ एक विशेष साक्षात्कार, जो अपनी अविश्वसनीय सेवकाई-यात्रा का वर्णन कर रहे हैं।
माल्टा के सूबा के लिए एक एक्सोर्सिस्ट या अपदूत निरासक के रूप में और दुनिया भर में रोग मुक्ति और दुष्टात्मा से छुटकारे की साधना में सेवकाई के द्वारा, मुझे कई आत्माओं की चंगाई का तथा दुष्ट शक्तियों के आधिपत्य, उत्पीड़न और प्रलोभन से मुक्ति का गवाह बनने का आशीर्वाद मिला है।
मैं भूमध्य सागर में स्थित एक छोटे से कैथलिक देश, माल्टा द्वीप का निवासी हूँ। 24 वर्षों तक सेमिनरी में ईशशास्त्र व्याख्याता का कार्य करते हुए, मैं शैतान के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता था, क्योंकि मैं डच और जर्मन ईशशास्त्रियों से प्रभावित था, जिन्होंने शैतान की वास्तविकता पर संदेह किया था। हालाँकि, जब मैं कैथलिक करिश्माई नवीनीकरण में शामिल हुआ, तो लोग मेरे पास जादू-टोना, शैतान की पूजा, और शैतान से जुड़ी समस्याओं को लेकर आने लगे। मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मैं स्पष्ट रूप से देख पा रहा था कि यह सब उनके दिमाग की कपोकल्पना नहीं थी, और मैं उनकी मदद करना चाहता था, इसलिए मैं अपने धर्माचार्य के पास गया और पूछा कि क्या उन लोगों को धर्माचार्य के पास ही मुझे भेज देना चाहिए। उन्होंने मुझसे कहा: “जाकर इस विषय का अध्ययन करो और यह समझो कि परमेश्वर आपको क्या करने के लिए बुला रहा है”। जितना अधिक मैंने इस मुद्दे की जांच की, उतना ही मैं शैतान के कार्य को देख पा रहा था और मुझे अब संदेह नहीं हुआ। मुझे इस सेवा में रुचि थी, अपने लिए नहीं, बल्कि इसलिए कि लोगों को इस सेवा की ज़रूरत थी, इसलिए धर्माचार्य ने मुझ से पूरे सूबा के लिए अप्दूत निरासक बनने के लिए कहा।
शैतान का आधिपत्य तब होता है जब कोई दुष्टात्मा किसी को अपने नियंत्रण में ले लेता है, ताकि वह व्यक्ति अब अपने लिए सोचने के लिए स्वतंत्र न रहे। उस व्यक्ति की इच्छा, भावना और बुद्धि दुष्टात्मा के प्रभाव के अधीन हो जाती है। हालाँकि, एक दुष्टात्मा, मानव की आत्मा पर पूरा अधिपत्य नहीं कर सकता है और किसी को पाप करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है, क्योंकि आप तभी पाप कर सकते हैं जब आप अपनी इच्छानुसार पाप करने के लिए स्वतंत्र हैं, तथा आप को मालूम है कि आप क्या कर रहे हैं और इसे करने की इच्छा या चाहत आप रखते हैं। भूत या अपदूत को भगाने के दौरान, कोई व्यक्ति पाप पूर्ण इशारे कर सकता है, उदाहरण के लिए ईश निन्दा करना या रोजरी माला को तोड़ना, लेकिन ये पाप नहीं हैं, क्योंकि उस व्यक्ति के पास अपने शरीर पर नियंत्रण की क्षमता नहीं है।
भूत भगाने की प्रक्रिया में, अपदूत निरासक (जो एक विशेष रूप से प्रशिक्षित पुरोहित होता है) दुष्टात्मा को आदेश देता है की वह ईश्वर के नाम पर और कलीसिया की सामर्थ्य से उस व्यक्ति के शरीर को छोड़ दे। यह अक्सर बड़े संघर्ष का कार्य होता है, क्योंकि दुष्टात्मा उस शरीर को नहीं छोड़ना चाहता जहां उसने घर बनाया है, लेकिन ईश्वर शैतान से अधिक शक्तिशाली है, इसलिए अन्ततोगत्वा उसे छोड़ना होगा। सभी भूत प्रेत के हमलों में आधिपत्य शामिल नहीं है।
हालाँकि, मैंने व्यक्तिगत रूप से भूत-प्रेत के आधिपत्य के कई मामलों का सामना किया है, जिनमें अपदूत निरासन या भूत भगाने की आवश्यकता पडी थी। मैं एक अपदूत निरासक या ओझा हूं, इसलिए वे मेरे पास आते हैं। यह वास्तव में बहुत दुर्लभ है। बहुत से लोग जो सोचते हैं कि उन्हें भूतप्रेत से मुक्ति के लिए किसी अपदूत निरासक या ओझा के पास जाना चाहिए, लेकिन वास्तव में उन्हें इसकी ज़रुरत नहीं है। उन्हें अन्य आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक सहायता की आवश्यकता है। हालांकि मैं अक्सर अन्य देशों का दौरा करता हूं, फिर भी मैं अपने सूबा के बाहर, केवल स्थानीय धर्माचार्य की अनुमति लेकर ही भूत भगाने का कार्य कर सकता हूं। अगर मेरे पास वह अनुमति नहीं है, तो मैं एक उद्धार प्रार्थना कर सकता हूं, लेकिन अपदूत निरासन की धर्मविधि नहीं कर सकता। हर भूत-प्रेत या अपदूत एक दूसरे से भिन्न है। शैतान बुद्धिमान और चालाक है, इसलिए हमें छलने और धोखा देने के लिए वह अपनी तकनीक बदलता रहता है।
चेक गणराज्य में रोग मुक्ति के मिस्सा बलिदान के दौरान, मैंने उपस्थित विश्वासियों को उनके चेहरे को पवित्र जल से धोने के लिए आमंत्रित किया ताकि उन्हें शुद्धीकरण की आवश्यकता की याद दिलाई जा सके। एक लड़की ने अपना चेहरा धोने के बाद, एक क्रूस लिया और मुझे उस क्रूस से पीटना शुरू कर दिया। मैं ने किसी प्रकार की हिंसक प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन दूसरे लोगों द्वारा उसे रोका गया, उसके बाद हमने उस पर अपदूत निरासन की धर्मविधि शुरू कर दी। यह बहुत कठिन था क्योंकि उसके पिता ने एक शैतानी पूजा समारोह के दौरान उसे शैतान को समर्पित कर दिया था, जहाँ उस पर जानवरों के खून छिड़काया गया था।
ब्राजील में, एक 16 वर्षीय दुर्बल लड़की मिस्सा बलिदान के दौरान होश खोकर उच्छल कूद करने लगी। जब हमने उसके लिए प्रार्थना की, तो वह इतनी हिंसक हो गई कि वह बिना किसी प्रयास से एक कुर्सी तोड़ सकती थी और कोई मजबूत आदमी भी उसे पकड़ नहीं सकता था। उस पर दुष्टात्मा का अधिपत्य मूर्तियों के अंधविश्वास पूर्ण भक्ति से शुरू हुआ था, लेकिन अच्छा हुआ कि काफी कठिनाई के बावजूद, प्रभु येशु के परम संस्कार की शक्ति से उसे छुटकारा मिल गया।
हम सभी लोग प्रलोभनों या उत्पीड़नों के दौर से गुज़रते हैं। यहां तक कि हमारे प्रभु येशु को और माँ मरियम को भी कई बार स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी न करने का प्रलोभन दिया गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उत्पीड़न तब होता है जब शैतान हमारी दुर्बलताओं को निशाना बनाकर हमला करता है। यह शैतानी आधिपत्य के बराबर नहीं है। अक्सर, जिस व्यक्ति पर आध्यात्मिक हमला किया जाता है, वह मनोवैज्ञानिक समस्याओं से भी पीड़ित हो जाता है। आध्यात्मिक समस्या से क्या उत्पन्न होता है और मनोवैज्ञानिक समस्या क्या है, यह समझना हमेशा आसान नहीं होता है।
अक्सर, इसे बहुआयामी प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। शैतानी प्रपंचों से पूरी तरह से ठीक होने के लिए प्रार्थना, संस्कारों की कृपा, थेरेपी और उचित चिकित्सा सहायता की आवश्यकता हो सकती है। मैं चंगाई और दुष्ट शक्तियों से छुटकारा, दोनों के लिए प्रार्थना करता हूं। कलीसिया के संस्कार, शैतान के हमलों के खिलाफ सबसे शक्तिशाली हथियार हैं। शैतान संस्कारों से डरता है, विशेष रूप से मेलमिलाप या पाप स्वीकार के संस्कार से, क्योंकि यह सीधे पाप के खिलाफ और पाप के प्रलोभन के खिलाफ लड़ता है। जब पश्चाताप से पूर्ण पापी लोग अपने पापों को स्वीकार करते हैं और पाप को त्याग देते हैं, और एक प्रेमपूर्ण परमेश्वर से क्षमा मांगते हैं, तब वे उस शैतान के धोखे को अस्वीकार करते हैं जो हमें यह सोच देकर लुभाने की कोशिश करता है कि हमारे पाप गलत नहीं हैं; या कि हमें क्षमा किये जाने की आवश्यकता नहीं है; या यह कि परमेश्वर हम से प्रेम नहीं रखता; या यह कि वह हमें दयापूर्वक क्षमा नहीं करेगा। पाप क्षमा प्राप्त करने से हमारे ऊपर शैतान की पकड़ को घातक आघात पहुँचता है। इसलिए हमें नियमित पाप स्वीकार संस्कार की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
पवित्र यूखरिस्त शैतान के खिलाफ एक शक्तिशाली हथियार है क्योंकि हमारे प्रभु बड़ी विनम्रता और प्रेम के साथ स्वयं को हमें दे रहे हैं। ये दो बातें हैं जिनसे शैतान को पीड़ा होती है। शैतान प्रभु के विपरीत है, घमंड और घृणा से भरा हुआ है। क्योंकि शैतान के पास शक्ति प्राप्त करने की एक अतृप्त इच्छा है, वह कभी नहीं समझ पाएगा कि परमेश्वर स्वयं को हमारे लिए कैसे अर्पित कर देता है। इसलिए, जब हम पवित्र यूखरिस्त में अपने प्रभु को प्राप्त करते हैं, या यूखरिस्त के सामने रहकर उसकी पूजा करते हैं, तो शैतान भाग जाता है, क्योंकि वह इसे सहन नहीं कर सकता और इससे बचना चाहता है। इसलिए, जब परेशान लोगों की मदद करने के लिए कोई अपदूत निरासक नहीं है, तो उन्हें यूखरिस्त में प्रभु की उपस्थिति की तलाश करनी चाहिए।
सुरक्षा प्रार्थना
हे सर्वशक्तिमान ईश्वर, तेरे प्रिय पुत्र, हमारे प्रभु येशु मसीह के दुखभोग, मृत्यु और पुनरुत्थान के गुणों के द्वारा मुझे अपनी कृपा प्रदान कर। मैं येशु को अपने प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करता हूं। येशु के बहुमूल्य लहू से मेरी, मेरे परिवार की और मेरे आस-पास के सभी परिवेश की रक्षा कर। मैं येशु के शक्तिशाली नाम और उसके बहुमूल्य रक्त की शक्ति से मुझे परेशान कर रहे उन सभी बुरे प्रभावों का त्याग करता हूँ और उनका बंधन करता हूं और उन्हें येशु के क्रूस के पाँव में बांध देता हूँ। आमेन।
'प्रश्न – मुझे पता है कि हमें मरियम के प्रति भक्ति करनी चाहिए, लेकिन कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि येशु के साथ मेरे रिश्ते को यह भक्ति विचलित कर देती है। मैं माँ मरियम को अपने बहुत करीब अनुभव नहीं कर पाता हूँ। मैं येशु के प्रति अपने प्रेम से वंचित हुए बिना, माँ मरियम के प्रति गहरी भक्ति कैसे प्राप्त कर सकता हूं?
उत्तर – कभी मैं भी अपने जीवन में, इसी प्रश्न से जूझता था। मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के एक ऐसे क्षेत्र में पला-बढ़ा हूं जो ज्यादतर प्रोटेस्टेंट था, और मेरे किसी भी प्रोटेस्टेंट मित्र ने कभी भी माँ मरियम के प्रति भक्ति नहीं की थी। एक बार जब मैं किशोर था, वॉल-मार्ट में चेकआउट लाइन में किसी महिला के साथ मेरी बातचीत हुई, और जब उसे पता चला कि मैं कैथलिक पुरोहित बनने के लिए पढ़ाई कर रहा हूं, तो उसने मुझसे पूछा कि कैथलिक लोग मरियम की पूजा क्यों करते हैं!
बेशक, कैथलिक लोग माँ मरियम की आराधना या पूजा नहीं करते हैं। केवल ईश्वर ही आराधना और पूजा के योग्य है। बल्कि, हम मरियम को सर्वोच्च सम्मान देते हैं। चूँकि वह पृथ्वी पर येशु के सबसे निकट थी, इसलिए अब वह स्वर्ग में येशु के सबसे निकट है। वह येशु की सम्पूर्ण अनुयायी थी, इसलिए उसका अनुकरण करने से हमें येशु का अधिक विश्वासपूर्वक अनुसरण करने में मदद मिलेगी। जिस तरह हम अपने माता-पिता या किसी मित्र या पुरोहित से हमारे लिए प्रार्थना करने के लिए कहते हैं, उसी तरह हम माँ मरियम से हमारे लिए प्रार्थना करने के लिए कहते हैं – और मरियम की प्रार्थनाएं कहीं अधिक प्रभावी हैं, क्योंकि वह मसीह के बहुत करीब है!
मरियम के प्रति एक स्वस्थ भक्ति में बढ़ने के लिए, मैं तीन चीजों की सिफारिश करता हूं।
सबसे पहले प्रतिदिन रोज़री माला का जाप करें। संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने कहा कि रोज़री माला के माध्यम से हम “मरियम की आंखों से येशु के जीवन को देखते हैं।” यह एक ख्रीस्त-केंद्रित प्रार्थना है, जिस सबसे अच्छे ह्रदय (निष्कलंक हृदय) से येशु से प्यार किया जाता है, उसी हृदय से येशु से प्रेम करने की महत् प्रार्थना है यह। रोज़री माला ने मेरी ज़िंदगी बदल दी- जब मैं किशोर था तब मैंने इसे चालीसा काल की तपस्या के रूप में लिया था… और मुझे हर दिन इसके प्रति डर लगता था। मेरे लिए, वे सभी दोहराव वाली प्रार्थनाएँ बहुत उबाऊ लग रहा था …। लेकिन एक बार जब चालीसा काल खत्म हो गया, तो मैंने पाया कि मैं इस रोज़री माला को नीचे नहीं रख सकता। दोहराव अब उबाऊ नहीं, बल्कि शांत करने और सांत्वना देने वाला था। मैंने मसीह के जीवन के दृश्यों में स्वयं की कल्पना की और उन दृश्यों में येशु से मुलाक़ात की।
दूसरा, अपने आप को मरियम को समर्पित करें। संत लुइस डी मोंटफोर्ट ने माँ मरियम के प्रति एक समृद्ध 33-दिवसीय समर्पण प्रार्थना बनायी है, या आप हाल ही के “33 डेज़ टू मॉर्निंग ग्लोरी” प्रार्थना का उपयोग कर सकते हैं। जब हम मरियम को अपना जीवन समर्पित करते हैं, तो वह हमें शुद्ध करती और निर्मल बनाती है, और फिर हमारे जीवन को अपने पुत्र के सामने खूबसूरती से प्रस्तुत करती है।
“मरियम के प्रति सच्ची भक्ति, पूर्ण समर्पण की तैयारी के साथ” प्रार्थना पुस्तिका के द्वारा संत लुइस डी मोंटफोर्ट आपके प्रश्न का उत्तर देते हैं:: “यदि तब, हम अपनी धन्य माँ मरियम के प्रति ठोस भक्ति स्थापित करते हैं, तो यह येशु मसीह के प्रति अधिक पूर्ण भक्ति स्थापित करना है, और येशु मसीह को खोजने के लिए एक आसान और सुरक्षित साधन प्रदान करना है। अगर आपको लगता है कि माँ मरियम की भक्ति ने आपको येशु मसीह से दूर कर दिया, तो आपको इसे शैतान द्वारा लाया गया भ्रम मानकर अस्वीकार करना चाहिए; लेकिन इस से से विपरीत, येशु मसीह को पूरी तरह से खोजने, उसे कोमलता से प्यार करने, ईमानदारी से उसकी सेवा करने के साधन के रूप में माँ मरियम के प्रति भक्ति हमारे लिए आवश्यक है …।”
अंत में, अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए माँ मरियम की ओर मुड़ें। एक बार मैं एक बहुत ही पवित्र दम्पति के विवाह के रस्म के पूर्वाभ्यास का नेतृत्व कर रहा था। अचानक हमें एहसास हुआ कि वे अपने विवाह का सिविल लाइसेंस लाना भूल गए हैं! हम सभी मामले की गंभीररा भांपते हुए आतंकित थे। मैं सिविल लाइसेंस के बिना उनके विवाह की धर्मविधि नहीं करा सकता था, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी, अगले दिन शादी से पहले इसे पाना संभव नहीं था। मैं दूल्हा-दुल्हन को गिरजाघर के गर्भगृह के पीछे के कक्ष में लाया और मैं ने उन्हें यह खबर दी- जब तक कोई चमत्कार नहीं होता, मैं उनकी शादी नहीं करा पाऊंगा। वे बिलकुल टूट गए! इसलिए, हमने माँ मरियम से प्रार्थना की, जो खुद शादीशुदा थीं और जिन दम्पतियों की सगाई हो चुकी है उन के प्रति मरियम के दिल में विशेष प्यार है। हमने यह समस्या उसे सौंपी थी—और उसने एक चमत्कार किया! पता चला कि हमारी पल्ली का एक सदस्य उस कार्यालय के एक महिला लिपिक को संयोग से जानता था, जो उस दिन छुट्टी पर थी, इसके बावजूद, वह महिला बड़े सबेरे अपने कार्यालय गयी, और लाइसेंस तैयार करके दिया और विवाह का रस्म पूर्व योजना के अनुसार संपन्न हुआ। मरियम सबकी माँ है – हमें अपनी सभी समस्याओं और चिंताओं को अपनी उस माँ के सम्मुख लाना चाहिए!
कभी न भूलें- मरियम की सच्ची भक्ति हमें येशु से दूर नहीं ले जाती है, यह हमें मरियम के माध्यम से येशु तक ले जाती है। हम कभी भी मरियम का ज़रुरत से ज्यादा सम्मान नहीं कर सकते क्योंकि हम कभी भी उनका उतना सम्मान नहीं कर सकते जितना येशु ने उनका सम्मान किया। मरियम के पास आवें—और भरोसा रखें कि वह आपको अपने पुत्र के पास ले जाएगी।
'किसी की तस्वीर को बनाने का एक विशेष तरीका होता है। उस व्यक्ति के चेहरे की विशेषताओं का अध्ययन करना, सूक्ष्म विवरणों की खोज करना और एक तरह की विशेष अभिव्यक्ति को संवेदनशील रूप से कैद करना इस प्रक्रिया का हिस्सा है। चेहरे की पहचान की आधुनिक तकनीक इस बात की गवाही देती है कि प्रत्येक व्यक्ति का चेहरा कितना अनूठा है। डी.एन.ए. या फिंगरप्रिंट की तरह, आपकी छवि बस आपकी और आपकी ही है। जबकि प्रत्येक व्यक्ति की छवि पूरी तरह से अद्वितीय है, फिर भी, हम सभी एक नमूने के आधार पर प्रतिरूपित या प्रतिबिंबित होते हैं। उत्पत्ति की पुस्तक कहती है कि परमेश्वर ने नर और नारी को अपनी प्रतिछाया में बनाया। परमेश्वर एक कलाकार है। पवित्र ग्रन्थ में हम सबसे पहले परमेश्वर के बारे में यही बात सीखते हैं। ईश्वर चित्र बनाता है। वह अपने स्वयं का चित्र बनाता है।
यदि प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर की प्रतिछाया में बना है, तो हम सब इतने भिन्न क्यों दिखते हैं और इतने भिन्न प्रकार के व्यवहार क्यों करते हैं? ईश्वर असीम है। ईश्वर की असीम संपूर्णता पर किसी भी व्यक्ति की पकड़ संभव नहीं है। इसलिए उसने बहुत से मनुष्यों की सृष्टि की है। पाब्लो पिकासो ने अपने जीवनकाल में अपने कम से कम 14 स्व-चित्रों को बनाया। उनके प्रत्येक स्व-चित्र निर्विवाद रूप से अलग है। हालाँकि, पाब्लो पिकासो के व्यक्तित्व की कुछ झलक उनके सभी चित्रों में व्यक्त की गई है। इसी तरह, प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर के उदार चरित्र का एक अनूठा लेकिन सच्चा प्रतिनिधित्व है।
विश्वास के विरुद्ध किये गए कार्य ही पाप है। जब आदम और हेवा ने अदन वाटिका में परमेश्वर की आज्ञा की अवहेलना की, तो परमेश्वर-प्रदत्त उनकी छवि बिगड़ गयी। इसी तरह, जब भी हम ईश्वर या दूसरों के खिलाफ रुख करते हैं तो हमारी छवि बिगड़ती है। साफ़ कैनवास पर पड़े गीले बदरंग धब्बे को पाप कहा जा सकता है। अर्थात् पाप ईश्वर की सुंदर कलाकृति का विरूपण है। परमेश्वर की प्रतिछाया में सृष्ट किये गए हम मानव में परमेश्वर की पह्चान होनी चाहिए। जो परमेश्वर को हममें पहचानने में कम योग्य बनाता है, वह पाप है। और इसलिए वही पाप हमें स्वयं को पहचान देने में कम योग्य बनाता है। लेकिन शुक्र है कि परमेश्वर भी, हर कलाकार की तरह, अपनी कलाकृति को बचाने के लिए हठपूर्वक समर्पित हैं। यही कारण है कि परमेश्वर की सबसे सिद्ध छवि, पुत्र ईश्वर ने देह का माध्यम धारण किया।
हमारी विकृत छवि को फिर से रंग देकर सुन्दर बनाने और नवीनीकरण करने केलिए येशु मसीह आये। प्रेम, प्रज्ञा और क्षमा पूर्ण जीवन का नमूना बनकर, मसीह हमें याद दिलाते हैं कि परमेश्वर का स्वरूप कैसा है। अपने लहू से मसीह हमारे दोषों और धब्बों को मिटाते हैं, हमारे दागों को मिटाकर चिकना-चुपड़ा करते हैं, और हमारी खाइयों को भरना आरंभ करते हैं। पवित्र आत्मा के आंतरिक परिकल्पना के माध्यम से, ईश्वर द्वारा रचित हमारी मूल कृति एक बार फिर स्पष्टता प्राप्त करती है। एक ईसाई का जीवन एक निरंतर चल रही कला-पुनरुद्धार की प्रक्रिया है। हर कलाकार जानता है कि रचनात्मक प्रक्रिया कितनी कठिन हो सकती है, लेकिन परिणाम हमेशा सुखदायक होता है।
वाशिंगटन डी.सी. से गुजरते समय, राष्ट्रीय कला वीथिका का दौरा करना ज़रूरी है। वहां एक विशेष कलाकृति के आसपास दुनिया भर से आये लोगों की भीड़ उस तस्वीर की प्रशंसा करते हुए मिलेंगे । यह लियोनार्डो दा विंची द्वारा चित्रित एक रहस्यमयी युवती के मामूली आकार का चित्र है। दा विन्ची की बहुत कम मूल कृतियाँ उपलब्ध हैं, यह तस्वीर आज कला की दुनिया की सबसे कीमती कृतियों में से एक मानी जाती है। चित्र के पीछे की तरफ लातीनी भाषा में लिखा हुआ है, “विर्चुतेम फ़ोर्मा डेकोरात” यानी “सौंदर्य सद्गुणों को सुशोभित करता है”। ईश्वर की छवि एक आध्यात्मिक वास्तविकता है। यह छवि हमारे चरित्र के आचरण से प्रकट होता है। जब हम अपने जीवन को परमेश्वर की तूलिका के स्पर्श के अनुरूप होने देते हैं, तो सुंदरता अपने सबसे वास्तविक और स्थायी वैभव में आ जाती है। ईश्वर सबसे उत्कृष्ट चित्रकार है। उसकी आँखें दा विंची की तुलना में अधिक गहरी हैं, और उसके हाथ सुप्रसिद्ध चित्रकार कारवागियो की तुलना में नरम हैं। आपकी सुंदरता लूवर कला वीथिका में रखी गयी हर कलाकृति से बढ़कर है, क्योंकि आप ईश्वर की मूल कलाकृति हैं। अगली बार जब आप क्रूस का चिन्ह बनाते हैं, तो याद रखें कि आप अपने ऊपर परमेश्वर की तूलिका से उसका हस्ताक्षर बना रहे हैं । †
'जब चिंता का आप पर हमला होता है, तो उसका सामना करना आसान नहीं होता है, लेकिन यकीन करें, आप अकेले नहीं हैं …
जैसे ही मैंने अपने सीने के अंदर धड़कन की आवाज़ सुनी, हर धडकन अगले धड़कन की तुलना में तेज़ थी, तब मुझे पता था कि आगे क्या होने वाला है। मैं याद करने की कोशिश कर रही थी कि मुझे साँस निकालने के लिए प्रयास करना चाहिए। मेरे पेट में दर्द की एक गाँठ बन गई, मानो उस गाँठ को पता था कि मुझे कुछ करने की जरूरत है, उथली सांस के बाद उथली सांस। मेरे शरीर में इस का भयानक परिवर्त्तन मेरे लिए परिचित लेकिन अवांछित अतिथि था। यहाँ चिंता फिर से सब कुछ अपने काबू में लेने की कोशिश कर रही थी। ऐसा लगता है कि जितना अधिक मैं उससे लडती हूँ, वह उतनी ही मजबूत होती जाएगी। मेरा ध्यान उसे तब तक भड़काता रहा जब तक मुझे एहसास हुआ कि जिस अतिथि का मैं स्वागत करना चाहती थी, यानी शांति, वह पहले ही मुझ से दूर जा चुकी थी।
एक तेज बुखार
चिंता एक ऐसा विषय है जिसके बारे में लिखने में मुझे झिझक होती है। मैं मानसिक स्वास्थ्य की विशेषज्ञ नहीं हूं। मैं इन मामलों पर सलाह देने की योग्य नहीं हूँ। लेकिन मेरे पास अपना अनुभव है, और मैं अपनी कहानी साझा करने के लिए योग्य हूं। मेरे लिए, चिंता एक बुखार की तरह रही है … वह एक लक्षण है जो मुझे कहीं कुछ संकेत देने के लिए दिखाई देता है, उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कभी-कभी, तेज बुखार जैसे लक्षण को बीमारी की स्थिति से उबरने के लिए सीधे मदद की आवश्यकता होती है, लेकिन दूसरी बार, “यह भी बीत जाएगा” ऐसे सोचने से मुझे बेचैनी में बैठने और सांत्वना पाने हेतु ईश्वर की प्रतीक्षा करना ही पर्याप्त है। बार-बार, प्रभु ने मेरे दिल के उन हिस्सों में प्रकाश और उपचार लाया है जो हिस्से उससे अलग-थलग महसूस करते थे।
पहली बार जब मैंने महसूस किया कि उसका उपचार करने वाला हाथ मेरे डर को दूर कर रहा है, तो मुझे लगा कि मैं ठीक हो गयी हूं; मैंने सोचा कि मुझे फिर कभी उस भयावह आतंक का अनुभव नहीं करना पड़ेगा। इसलिए जब यह फिर से हुआ, तो मैं उलझन में थी। क्या मैंने प्रभु को अपना अनुग्रह वापस लेने के लिए कुछ गलत किया? क्या मैं परीक्षा पास करने में असफल रही? नहीं… अभी और भी बहुत कुछ है जिसके चंगा होने करने की जरूरत है। हर बार जब मैं चिंता का अनुभव करती हूं, तो यह मेरी मदद करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने का अवसर बन जाता है। हर बार, मैं येशु को अपने दिल में शासन करने और मुझ में उनकी शांति लाने के लिए आमंत्रित करती हूं।
एक बड़ा झूठ
उन में से एक अवसर पर, मैंने सीखा कि कैसे मेरी आत्मा का दुश्मन मेरे खिलाफ मेरे डर का इस्तेमाल कर रहा था। हर बार जब मैं अपने जीवन में पाप के एक प्रतिमान की पहचान करने के करीब पहुंचती, तो डर अंदर प्रवेश करता था। डर इतना भयानक था कि मैं अपने दिमाग से उस झूठ को भी नहीं सुन पाती थी, जिस पर विश्वास करने का निर्णय मैं लेने वाली थी। जब तक मैं भागने के बजाय शांत नहीं हुई तब तक यह एक स्वचालित प्रतिक्रिया की तरह लगा। माँ मरियम के लिए शिमोन की भविष्यवाणी मुझे याद आ गई: “…. इस प्रकार बहुत से हृदयों के विचार प्रकट होंगे और एक तलवार आपके ह्रदय को आर पार बेधेगी” (लूकस 2:35)। मरियम के माध्यम से, मैंने येशु से मेरे ही हृदय के विचारों को मुझ पर प्रकट करने के लिए कहा।
हवा चलने लगी, और मेरे मन की भावना में, मैंने देखा कि रेत से बनी बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ एक-एक करके बिखरने लगी हैं। प्रत्येक झूठ शून्य से और ईश्वर की सच्चाई के खिलाफ बना था, वे झूठ ईश्वर के सम्मुख खड़ा नहीं हो पा रहे थे। लेकिन दूसरी तरफ मुझे क्या मिला? कोई खुशी नहीं, दिल में गहरा दर्द। मैं ने अपने पाप का सामना किया, छिपा हुआ गहरी जड़ वाला एक पेड़, लेकिन उसके बुरे फल मेरे पूरे जीवन में दिखाई दे रहे थे। जो चीज़ें अलग थलग लग रही थीं, वे सब मिलकर इस एक बड़े झूठ कह रही थी: “परमेश्वर तुम्हारा ख्याल नहीं करता; तुम इस जीवन में अकेली हो।”
इस एक झूठ से जो पाप निकला था, उसे देखकर दुख हुआ, लेकिन डर नहीं लगा। मन फिराव और पश्चाताप का अनुग्रह हर आंसू के साथ उँडेला… ”जहाँ पाप की वृद्धि हुई, वहाँ अनुग्रह की उससे कहीं और वृद्धि हुई” (रोमी 5:20)। पवित्र ग्रन्थ के एक वचन के बाद दूसरे वचन ने मेरे दिमाग को भर दिया, क्योंकि पवित्र आत्मा ने मेरे लिए हस्तक्षेप किया, और सत्य ने मेरे दिल को भर दिया। मैंने महसूस किया, कि मेरा ख्याल किया जा रहा है। मुझे प्रेम का एहसास हुआ। मुझे पता था कि मैं हूँ और कभी अकेली नहीं रहूंगी।
जैसा कि मैंने शुरुआत में कहा, मैं कोई मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं हूं, इसलिए मुझे नहीं पता कि आपको अपने डर का सामना करने में मदद करने के लिए क्या करना चाहिए। लेकिन मुझे पता है कि ईश्वर हम में से हर एक से प्यार करता है। परमेश्वर के प्रेम के साथ इस मुलाकात ने मुझमें कुछ और ही भर दिया। चिंता के सबसे भयानक पहलुओं में से एक तब होता है जब हम चिंता से ही डरते हैं। यह अनुभव इतना परेशान करने वाला और असहज करने वाला होता है कि हम हर संभव कोशिश करते हैं कि हमें फिर कभी इसका सामना करना न पड़े। लेकिन मुझे पता है कि अब डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि यह हमारे सबसे अंधेरे क्षणों में ही हमें सबसे चमकीला प्रकाश देगा। उसने मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है। उसका प्यार हमारे डर से बड़ा है।
किन्तु इन सब बातों पर हम उन्हीं के द्वारा सहज ही विजय प्राप्त करते हैं, जिन्होंने हमें प्यार किया। मुझे दृढ विश्वास है कि न तो मरण या जीवन, न स्वर्गदूत या नरकदूत, न वर्त्तमान या भविष्य, न आकाश या पाताल की कोई शक्ति और न समस्त सृष्टि में कोई या कुछ हमें ईश्वर के उस प्रेम से वंचित कर सकता है, जो हमें हमारे प्रभु येशु मसीह द्वारा मिला है (रोमी 8:37-39)।
'चमत्कार हर दिन होते हैं लेकिन हम शायद ही ध्यान देते हैं …
मैं आपको अनुग्रह की दो कहानियाँ बताना चाहता हूँ, अद्भुत अनुग्रह की घटनाएं, जो वास्तव में मेरी ज़रूरत के समय, मेरे मांगने पर घटित हुई थी। मुझे लगता है कि अनुग्रह के ये अनुभव चमत्कार पूर्ण थे, और इससे पहले कि मैं इन्हें आपके साथ साझा करूं, मैं चमत्कारों पर थोड़ा चिंतन करना चाहता हूं।
लोग आपको बताएंगे कि चमत्कार मांगने पर नहीं आते… और वे सही हैं। मांगने पर चमत्कार नहीं आते। परन्तु येशु हमें माँगने के लिए कहते हैं, और प्रतिज्ञा करते हैं कि यदि हम माँगें, तो हमें मिलेगा (मत्ती 7:7)। मेरा दृढ़ विश्वास है कि जब हम माँगते हैं, तो ईश्वर हमारी सुनता है और जिस बात की हमें वास्तव में ज़रूरत होती है, ईश्वर हमें वही देता है।
हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि चमत्कार एक ऐसा रहस्य है, जो मानवीय समझ से परे है। हमें रहस्यों की कुछ झलक मिल सकती है, हमारे पास अंतर्ज्ञान हो सकता है, लेकिन हम “चमत्कार” के रूप में प्रकट ईश्वर की कृपा के कार्यों को पूरी तरह से समझ नहीं पायेंगे या व्याख्या नहीं कर पायेंगे।
मुझे कुछ नहीं मिला!
कई लोग इस धारणा का उपहास उड़ाते हैं कि “अगर हम मांगेंगे” तो हम “प्राप्त करेंगे।” कुछ लोग कहेंगे कि “मैंने माँगा और मुझे कुछ नहीं मिला”। यह चमत्कार के रहस्य को और अधिक बढाता है। येशु चमत्कार करनेवाला व्यक्ति था, परन्तु उसने इस्राएल के सभी लोगों को चंगा नहीं किया। लूर्द्स में लाखों लोग जाते हैं, लेकिन कुछ ही चमत्कारों का दस्तावेजीकरण किया जाता है। क्या हम कह सकते हैं कि लोग “सही” बात के लिए नहीं मांगते हैं या जिस बात के लिए वे मांग रखते हैं उसकी उन्हें वास्तव में ज़रूरत नहीं है? नहीं! दिल को सिर्फ ईश्वर पढ़ता है; हम न्याय नहीं कर सकते।
लेकिन मेरा अनुभव और कई अन्य लोगों का भी अनुभव इस बात की पुष्टि करता है कि येशु का यह कथन बिलकुल सही है, जब उसने हमें अपने पिता परमेश्वर से उत्तर मांगने और उत्तर की अपेक्षा करने के लिए कहा था। इसलिए, मैं चमत्कारों में विश्वास करता हूं। यह केवल ईश्वर की कृपा की अभिव्यक्ति हैं- कभी नाटकीय अंदाज में और कभी-कभी इस तरह के किसी अंदाज के बिना; कभी-कभी इतना स्पष्ट कि कोई भी उन्हें पहचान सकता है; और कभी-कभी इतना सूक्ष्म और “संयोग” के रूप में वह प्रच्छन्न होता है कि केवल विश्वास की आंखें उन्हें अनुभव कर सकती हैं।
चमत्कारों की अपेक्षा करनी चाहिए… जैसे बच्चे अपेक्षा करते हैं कि भूख लगने पर उनकी माताएँ उन्हें खिलाएँगी। लेकिन क्या खाएं क्या न खाएं इस पर बच्चों का नियत्रण नहीं रहता। माँ तय करती है कि बच्चे क्या खायेंगे; नहीं तो बच्चे हर रात नूडल्स और पिज़्ज़ा खायेंगे। मां लोग अपने बच्चों को खाना खिलाते कभी थकती नहीं हैं। इसी तरह ईश्वर के साथ भी है। वह हमारे अनुरोधों से कभी नहीं थकता और हमारी माताओं की तरह वह हमें वही देता है जिसकी हमें ज़रुरत होती है, न कि वह जंक फूड जिसकी हम चाहत रखते हैं।
चमत्कार ईश्वर का किया गया कोई जादू नहीं है, जिस पर हम डींग मारें, “देखो ईश्वर ने मेरे लिए क्या किया!” परमेश्वर के चमत्कार हमारे दिलों की गहरी लालसाओं का जवाब हैं जो हमें हमेशा उस पर भरोसा करने की याद दिलाते हैं। जब परमेश्वर हमें चमत्कार देता है, तो वह उसका उपयोग उस अनुग्रह की ओर इंगित करने के लिए करता है जो जीवन के सामान्य क्षणों में हमारे चारों ओर विद्यमान है – प्रत्येक दिन का सूर्योदय, क्षमा की याचना करते हुए बढ़ा हुआ कोई हाथ, माफ़ी का आलिंगन, निस्वार्थ सेवा का कोई कार्य। अगर हम जीवन के उन साधारण चमत्कारों को पहचानते हैं तभी हम असाधारण चमत्कारों को देखने और पहचानने की उम्मीद कर सकते हैं।
चमत्कार विश्वास का निर्माण करते हैं, वे इसे प्रतिस्थापित नहीं करते हैं। जब हम लगातार चमत्कार देख रहे हैं, तो हमें ज्यादा विश्वास की जरूरत नहीं है। लेकिन जब ईश्वर मौन रहता है और साफ तौर पर दिख रहे उसके आशीर्वाद से हम वंचित रह जाते हैं, तो हमारे पास अपने विश्वास को और अधिक गहराई से जीने का अवसर होता है। इसलिए विश्वास में परिपक्व होने के समय की अपेक्षा, विश्वास में नए होने पर, हम अधिक चमत्कार देख सकते हैं।
कहानी – एक
सालों पहले, मैं और मेरी पत्नी नैन्सी एक बड़े कैथलिक शहरी विश्वविद्यालय में ग्रीष्मकालीन सेवा संस्थान में पढ़ाते थे। प्रत्येक गर्मी में हम नृत्य नाटिका का मंचन किया करते थे, जिस केलिए हम छह सप्ताह के ग्रीष्मकालीन सेवा के दौरान आलेख,गीत लिखकर और निर्देशन देकर अभ्यास कराते थे। हमारे कलाकार संस्थान के ही छात्र थे, जो पूरे देश और दुनिया भर से आते थे। इस तरह पांच साल गतिशील और रोमांचक कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक संपन्न कराने के बाद हम दोनों संस्थान के छात्रों और शिक्षकों के बीच समान रूप से प्रसिद्ध हुए और उनसे बहुत सम्मान और आदर के पात्र बने थे। हमने दुनिया भर में सेवाकार्य करने वाले पेशेवर कार्यकर्ताओं को प्रभावित करने के इस अद्भुत अवसर को संजोया, क्योंकि उन्होंने हमसे सीखा कि कैसे सेवकाई और अध्यापन के लिए नृत्य और नाटक की कलाओं को एक शक्तिशाली संसाधन के रूप में उपयोग करना है।
लेकिन हमारी छठी गर्मियों से पहले हमें बताया गया था कि हम अपने ग्रीष्मकालीन कला प्रदर्शन को अब और निर्देशित नहीं करेंगे और इसके बजाय हमें एक पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए निमंत्रण दिया गया। हमने स्वीकार किया, और अपनी कक्षा को पढ़ाया, आराधना विधि को कलात्मक रूप से आयोजित करने में हमने योगदान दिया, और जितना हो सके हर जगह अपनी सेवा द्वारा उपस्थित रहने की कोशिश की, लेकिन यह पहले के पांच वर्षों जैसा नहीं था। पिछले पांच गर्मियों में से प्रत्येक में किए गए सारे काम, आपसी प्रेमपूर्ण संवाद, रचनात्मकता और अद्वितीय योगदान से हम चूक गए।
एक दिन पूरे परिसर में टहलते हुए, अपनी घटती भूमिका के बारे में सोचकर मैंने पीड़ा का अनुभव किया। मैंने उस विश्वविद्यालय के एक भवन में दक्षिण छोर से प्रवेश किया और प्रभु से विलाप करते हुए कहा कि मुझे कुछ सबूत चाहिए कि हमारी उपस्थिति मायने रखती है या नहीं, कि हमने इस संस्थान पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है या नहीं। मैं भवन के प्रांगण से गुजरा और जब तक मैं भवन के उत्तरी दिशा से बाहर निकला तब तक मेरी प्रार्थना का उत्तर मुझे दिया गया। सीढ़ियों के एक लम्बी कतार के शीर्ष पर खड़े होकर मैंने देखा कि एक कार अचानक नीचे सड़क पर रुक गई। कार का इंजन चालू था, लेकिन एक महिला ने कार से बाहर निकलकर मेरा नाम पुकारा।
“ओह, ग्राज़”, वह बोली, “मैं आपको देखकर बहुत खुश हूं। मैं आपको बताना चाहती थी कि मुझे कितनी खुशी है कि आप यहां संस्थान में हैं। आप और नैन्सी इतना प्रभाव डालते हैं कि आपके बिना यहाँ का ग्रीष्मकालीन कार्यक्रम अधूरा है। आपने जो कुछ किया उन सबके लिए धन्यवाद।” इतना कहकर वह वापस अपनी कार में बैठी और चल दी। मैंने सोचा,”वाह, प्रभु, इतनी तेजी से तू ने जवाब दिया!”
कहानी – दो
उस घटना के बाद एक दर्जन साल आगे की ओर बढ़ते हैं। मैं शिकागो महाधर्मप्रांत के एक कार्यालय का निदेशक हूँ। मैं एक कठिन सप्ताह से गुज़र रहा हूं, निराश महसूस कर रहा हूं, मेरे मन में सवाल उठ रहा है कि क्या मैं वही कर रहा हूं जो ईश्वर मुझसे चाहता है? मैं अपने कार्यालय भवन की रसोई में हूं, अपने दोपहर के भोजन के बाद टिफ़िन बॉक्स धो रहा हूं और मैं प्रार्थना करता हूं, “हे ईश्वर, तू मुझे छोटे छोटे संकेत दिया करता था कि तू मेरी देखभाल कर रहा था, कि मैं तेरी इच्छा के अनुसार कार्य कर रहा था … अब ऐसे ही एक संकेत की मुझे ज़रुरत है।”
अगली सुबह। मैं अभी भी निराश हूँ, मैं काम छोड़ने का फैसला करता हूं। गर्मी का मौसम है, बच्चे स्कूल से बाहर हैं, इसलिए मैं घोषणा करता हूँ: “सुनो, तुम्हारा पापा आज काम पर न जाकर, मस्ती करेगा। ‘शिकागो कब खेल’ में कौन जाना चाहता है?” मुझे यह भी नहीं पता था कि ‘शिकागो कब’ शहर में हैं या नहीं, लेकिन जांच करने के बाद पता चला कि खेल उपलब्ध है, और हम सभी चले जाते हैं।
हम बच्चों को टिकट के लिए पहले प्रवेश द्वार के बगल में लाइन में खड़े होने केलिए छोड़ देते हैं और गाडी पार्क करने के लिए आगे बढ़ जाते हैं। वृग्ली मैदान में पार्किंग हमेशा बड़ी चुनौती का काम होता है। या तो आप बहुत दूर पार्क करते हैं, लेकिन आपको बहुत दूर पैदल चलना पडेगा, नहीं तो आप पार्किंग में मोटी रकम देकर भुगतान करते हैं। कोई भी विकल्प हमारे लिए व्यावहारिक नहीं है – लंबी देर पैदल चलने के लिए हमारे पास समय नहीं है और पार्किंग शुल्क की मोटी रकम का भुगतान करने से मेरा बजट चरमरा जाएगा। मैं सड़क किनारे, भुगतान किये बिना, पार्किंग की तलाश करने का विकल्प ढूँढता हूं, जिसका सौभाग्य मेरे लिए करीब करीब असंभव है।
प्रवेश द्वार के सीधे सामने मीटर के आधार पर पार्किंग करने की एक जगह है। दो डॉलर का भुगतान करने पर मुझे अधिकतम दो घंटे पार्किंग का अवसर मिलेगा, जिसका मतलब है कि मुझे खेल को बीच में छोड़ना होगा, मीटर के अनुसार पैसा का भुगतान करना होगा, और खेल में वापस जाना होगा (मुझे यह भी नहीं पता था कि खेल के बीच में छोड़ने और लौटने की अनुमति नहीं रहती है)। जैसे ही मैं अपनी कार से बाहर निकलता हूं, मैं देखता हूं कि सड़क की विपरीत दिशा में एक महिला पार्किंग स्थल से बाहर निकलने के लिए तैयार हो रही है। उस तरफ कोई मीटर नहीं है! मैं उसके पास दौड़ता हूं, उस महिला को अपनी स्थिति समझाता हूं और पूछता हूं कि क्या वह मेरे बाहर निकलने तक इंतजार करेंगी, ताकि मैं उसकी जगह ले सकूं। वह खुशी से मुझे अनुमति देती है।
वाह, मुझे वृग्ली फील्ड के प्रवेश द्वार के सीधे सामने, सिर्फ एक मिनट की दूरी पर मुफ्त में स्ट्रीट पार्किंग का मौक़ा मिल गया है। अविश्वसनीय! नैन्सी और मैं बच्चों के पास जाते हैं जहाँ और भी बड़ा आश्चर्य हमारा इंतज़ार कर रहा है। हमारी बेटी उत्साह से पुकारती है, “पापा,” वह कहती है, “हमें मुफ्त में टिकट मिल गया।”
“क्या?” अविश्वास और हैरानी के साथ मैं पूछता हूं।
वह हमें समझाती है: “एक आदमी ने मुझसे और क्रिस्टोफर से पूछा कि क्या तुम लोग खेल में जा रहे हो। मैंने कहा, हाँ; और उस आदमी ने कहा कि वे यहाँ एक बड़े दल के साथ आये थे और उनके दल के कुछ लोग नहीं पहुँच पाए, इसलिए उन्होंने मुझे दो टिकट दिए। फिर मैंने कहा, ‘मेरी माँ और पिताजी को टिकट कैसे मिलेंगे?’
‘ओह, तुम्हारे माता-पिता भी यहाँ हैं? ये लो, और दो टिकट, पकड़ो।”
वाह, अविश्वसनीय! खेल के लिए मुफ्त पार्किंग और मुफ्त टिकट! ईश्वर ने मुझे संकेत दिया जिसे पिछले दिन मैंने माँगा था।
तथ्यपरक विशलेषण करते हुए, आप कहेंगे कि मुझे केवल एक बार थोड़ा सा पुष्टिकरण मिला था और अगली बार मुझे कुछ मुफ्त उपहार मिला होगा। हालाँकि, सच्चाई यह है कि ईश्वर ने कृपापूर्वक मुझे वही प्रदान किया जिसकी मुझे आवश्यकता थी, और मैं ने इसकी मांग की थी, और वही चमत्कार है।
'“यह दुनिया आपका जहाज है, आपका घर नहीं”। यह लिस्यू की संत तेरेस का एक प्रसिद्ध उद्धरण है। वास्तव में, हम सभी अपने अंतिम गंतव्य की यात्रा पर हैं…
जब मैं बच्ची थी, मेरी माँ ने एक बार मुझे आश्वासन दिया था कि ईश्वर किसी आत्मा को अपने घर तभी ले जाता है, जब वह उस यात्रा के लिए बिलकुल तैयार हो जाती है। यह मेरे लिए एक ऐसा सुकून देने वाला विचार था कि मैंने इसे अपने दिल में बैठा लिया, और जब कभी मेरे अपने प्रियजन ने इस दुनिया से विदा ले लिया, तब इस आश्वासन को मैं ने कसकर पकड़ लिया, ताकि मैं कुछ सांत्वना पा सकूं। जब मेरा प्रिय पति अपने जीवन के अंतिम दिनों में था, तब इस उत्साहजनक कथन का मैंने सबसे अद्भुत नमूना देखा।
अंत का प्रारंभ
क्रिस तीन साल से अधिक समय से मस्तिष्क के कैंसर से जूझ रहा था – यह एक भयानक बीमारी थी और उसे केवल एक वर्ष जीने की उम्मीद थी। उपचार के दौरान वह लगभग असहनीय पीड़ा का अनुभव कर रहा था। यह तीन साल की एक आनंदमय और दर्दनाक यात्रा थी – आशान्वित ऊंचाइयों और उतनी ही तादाद में विनाशकारी उतार चढ़ावों से भरी हुई यात्रा। जब क्रिस का कैंसर फैलने लगा, उसे काबू में लाने की कोई उम्मीद नहीं थी, तथा सभी विकल्प समाप्त हो गए, तब क्रिस ने इलाज बंद करने और अपने बचे हुए समय का आनंद लेने का निर्णय लिया, जो हम लोगों के लिए दिल दहला देने वाला निर्णय था। उसने सब कुछ ईश्वर के हाथों में समर्पित कर दिया। क्रिस के इस निर्णय ने उसके अंत की शुरुआत को चिह्नित किया। उसे खोने के बारे में सोचकर मैंने अपने दिल में असह्य दर्द महसूस किया। इतने साहस पूर्ण संघर्ष के बाद हम उम्मीद कर रहे थे कि वह लड़ना जारी रखेगा, लेकिन उसका यह नया फैसला मेरे बर्दाश्त के बाहर था। मैंने इस संकल्प के साथ क्रिस को अस्पताल में रखा कि हमारे बच्चे और मैं उसकी इस इच्छा का सम्मान करेंगे और घर पर उसकी देखभाल अंत तक करेंगे।
क्रिस के अंतिम दिनों के बारे में सोचकर मैं भयभीत थी। इस परिस्थिति का मुझे कोई प्रशिक्षण या अनुभव नहीं था, इसलिए मैंने ईश्वर पर अपना पूरा विश्वास रखा, और मैं ने उसकी दया और मार्गदर्शन की याचना की। इस हताशा भरी याचना के कारण, हमारे परिवार ने क्रिस के जीवन के अंतिम सप्ताहों में स्वर्गीय अनुग्रह और आशीषों की वर्षा का अनुभव किया।
सिर्फ एक फुसफुसाहट
इलाज बंद करने के बाद, क्रिस के अनमोल मस्तिष्क में तेजी से फैलने वाली बीमारी के प्रभाव दिखाई पड़ने लगे। पहले मामूली स्मृति हानि होने लगी, जो बाद में बड़ी स्मृति हानि में बदल गई, और फिर कुछ हफ्तों के भीतर ही उसे दौरे पड़ने शुरू हो गए। एक शाम, बिना किसी चेतावनी के, क्रिस एक गंभीर दौरे का शिकार हो गया। एक बार ऐसे एक दौरे के बाद उसे सोफे पर बैठाया गया, मैं और मेरे बच्चे सोफे के चारों ओर इकट्ठे हो गए, क्योंकि हमें लगा कि कुछ गड़बड़ है। मैंने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया और जैसे ही मैंने ऐसा किया, मुझे लगा कि उसका पूरा शरीर अकड़ने लगा है। उसकी भूरी आँखें अन्दर की ओर वापस लुढ़क गईं और वह अनियंत्रित रूप से काँपने लगा – फिर उसने दर्द की एक ज़ोरदार चीख निकाली।
इस दृश्य को देखकर बड़े अविश्वास और भयावह स्थिति में, मैंने अपने बच्चों को शांत करने और अपने पति के लिए शक्ति और ईश्वरीय सहायता प्राप्त करने का प्रयास किया। मुझे बस एक ही तरीका मालूम था – प्रार्थना। जैसे ही मैंने क्रिस को पकड़ रखा, मैं अपने बच्चों के साथ प्रभु की प्रार्थना बोलने लगी – उसके बाद हम लोगों ने माँ मरियम से प्रार्थना की। क्रिस माँ मरियम के प्रति बहुत समर्पित था। कुछ क्षण बाद क्रिस का दौरा कम होने लगा। वह वहीं पड़ा रहा, गतिहीन, अपने आस-पास के भयभीत और आंसुओं से सने चेहरों को देखने में असमर्थ। पूरी तरह से होश में आने के बाद जब उसने अपनी आँखें खोलीं, तो उसने अपने आस-पास को बड़े आश्चर्य की नज़र से देखना शुरू किया। उसकी नज़र मेरी आँखों से टकरायी और मैंने धीरे से उसे आश्वासन दिया कि वह ठीक है – और तुरंत मैंने यह पता लगाने की कोशिश की कि वह उस क्षण हमसे किस तरह की मदद चाहता है।
बातचीत करने में वह सक्षम नहीं था, और एक फुसफुसाहट के अलावा कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। क्रिस ने इन शब्दों में फुफुसाया, “मैं …ईश्वर को… चाहता हूं ।” मुझे पता था, यही वह क्षण था। मैं जानती थी कि परमेश्वर उसे तैयार कर रहा है, और मैं जानती थी कि विश्वास से भरा मेरा पति घर जाने के लिए और अपने अनन्त जीवन को प्राप्त करने के लिए तरस रहा था। हालाँकि इस अहसास से कि उसका अंत निकट आ रहा था, वह मेरे लिए एक तबाही जैसी थी, फिर भी मेरे मन में इस क्षण को स्वीकार करने, और इस अनमोल कृपा के लिए, अत्यधिक कृतज्ञता का भाव महसूस हुआ। इस दुनिया में अपने परिवार को पीछे छोड़ने के दर्दनाक विचार से क्रिस का मन अब बोझिल नहीं था। वह उस भारी जंझीर से मुक्त हो गया था, और उसे शांति का एक अथाह उपहार दिया गया था, और साथ ही साथ अगले जीवन में क्या महिमा और भव्यता है, इसकी गहरी समझ दी गई थी। मेरा अनमोल, वफादार पति तैयार था। अगले सप्ताह के अंत में, शांति से बिस्तर पर आराम करते हुए और परिवार से घिरे हुए, हमारे द्वारा मंद स्वर में माला विनती की प्रार्थना के दौरान, हमारे प्यारे क्रिस ने हमसे विदा लिया। वह प्रभु का दिन था, और मरियम के पवित्र नाम का पर्व था। और वह सुंदर आत्मा उस यात्रा के लिए बिलकुल तैयार थी।
'जब आप को नींद नहीं आती और आप बिस्तर पर करवटें लेते रहते हैं, तब क्या आपने कभी महसूस किया है कि ईश्वर आप से कह रहा है, “हमें आपस में बात करने की ज़रूरत है और क्या अब तुम्हारे पास इस केलिए समय है”?
मैं एक बार ग्रामीण इलाके के दौरे पर था, तब एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में, कक्षा पांच की एक बालिका ने मुझसे कहा कि वर्त्तमान महामारी के संबंध में उसे एक वयस्क व्यक्ति ने बताया था कि “ईश्वर छुट्टी पर चला गया है”। हालाँकि इस दावे में कुछ उम्मीद की बात है – छुट्टियां कभी समाप्त भी हो जाती हैं और छुट्टी पर गया व्यक्ति वापस आ जाता है और अपने व्यवसाय को संभाल लेता है – लेकिन मैं निश्चित रूप से इसे इस दृष्टिकोण से नहीं देखूँगा। इस तरह का दावा करना काफी खतरनाक है, क्योंकि ईश्वर हमें एक पल के लिए भी अकेले नहीं छोड़ता। वास्तव में, हमारे अस्तित्व के हर पल में हमारे ऊपर ईश्वर का अविभाजित ख्याल है, और सबसे बढ़कर बच्चों को इसे समझने की जरूरत है। एक सीमित मनुष्य के लिए एक ही समय में एक से अधिक व्यक्तियों पर अविभाजित ध्यान देना संभव नहीं है, लेकिन ईश्वर सभी को अपना अविभाजित ध्यान एक साथ दे सकता है, क्योंकि ईश्वर असीमित है।
एक शुद्ध उपहार
इसका क्या अर्थ है कि हमारे अस्तित्व के प्रत्येक क्षण में हमारे पास परमेश्वर का अविभाजित ध्यान है, इस पर विचार करना आवश्यक है; इसका मतलब है कि वह हम में से हर एक से प्यार करता है, मानो कि इस दुनिया में आप ही एक मात्र व्यक्ति हैं जिसे वह प्यार करता है। ऐसा लगता है कि ब्रह्मांड में सब कुछ अंततः आपके लिए ही बनाया गया था, यह सब आपके पोषण केलिए और आपकी सेवा करने के लिए मौजूद है – ग्रह का सम्पूर्ण वातावरण, गुरुत्वाकर्षण का नियम और भौतिकी के अन्य सभी नियम, प्रकृति का ऋतु चक्र और क्रम, इत्यादि। दरअसल, यदि आप या मैं वास्तव में जानते हैं कि परमेश्वर हमसे कितना प्यार करता है, तो हम खुशी से झूमते। प्यार किये जाने के बारे में ठीक उसी प्रकार सीख लेना ही इस जीवन का उद्देश्य है।
इसका मतलब है कि अपने आप को उस तरह से प्यार किये जाने की अनुमति देना; चूंकि हमारे पास अपने लिए न्याय की एक बहुत ही अडिग और संकीर्ण भावना है, इसलिए इस प्यार को पाने के लिए हम अपने को अनुमति नहीं देते हैं, और इस तरह हम खुद को उस प्यार के योग्य नहीं समझते हैं, इसलिए हम इसके लिए अपना दिल खोलकर रखने का निर्णय नहीं ले पाते हैं। परन्तु हमारे लिए उसका प्रेम न्याय या अधिकार का विषय नहीं है; बेशक, कोई भी इस तरह प्यार पाने का हकदार नहीं है; क्योंकि यदि कोई अस्तित्व में नहीं है तो उसे अस्तित्व में लाने का अधिकार अर्जित नहीं किया जा सकता है। और इसलिए यद्यपि मेरे लिए ईश्वर का प्रेम न्याय और अधिकार का विषय नहीं है, यह शुद्ध उपहार की बात है। आखिरकार, मसीह के व्यक्तित्व में परमेश्वर का न्याय पूर्ण दया के रूप में प्रकट हुआ है।
उस ईश्वरीय प्रेम और अपने बारे में हमारी समझ के बीच एक रिश्ता है। ईश्वर के द्वारा किसी व्यक्ति को कितना प्यार किया जाता है, उस हिसाब से वास्तव में वह व्यक्ति अपने आप को जानता है, और इसलिए जितना अधिक हम खुद को “उस तरह से प्यार किये जाने” की अनुमति देते हैं (मानो कि हम में से यह प्यार पाने वाला सिर्फ “मैं” अकेला ही हूँ), हमारी खुद की समझ उतनी ही गहरी होगी; क्योंकि जैसा ईश्वर हमें देखता है, वैसे ही हम अपने आप को देखने लगेंगे। यदि हम स्वयं को उसकी आँखों से नहीं देखते हैं, तो हम स्वयं को वैसा ही देखने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जैसा दूसरे लोग हमें देखते हैं।
हालाँकि, इसके साथ समस्या यह है कि दूसरे शायद ही कभी हमें वैसे ही देखते हैं जैसे हम वास्तव में हैं – खासकर, अगर हमारे जीवन में वे हमें ईश्वर की नज़र से नहीं देखते हैं – और अगर वे हमें वैसे नहीं देखते हैं जैसे हम वास्तव में हैं, तो जिस प्रकार हमें प्यार किया जाना चाहिए, उस प्रकार वे हमसे प्यार नहीं कर पाते हैं। जब दुनिया आपको देखती है, तो उसे आप में एक महान और अद्भुत रहस्य नहीं दिखाई देता; बल्कि, उसे एक वस्तु दिखाई देती है, जिसका मूल्य उसकी उपयोगिता के अनुसार लगाया जाता है। लेकिन वस्तुओं के बारे में रहस्यमय कुछ भी नहीं है। दूसरी ओर, जब ईश्वर आपको देखता है, तो वह एक वास्तविक रहस्य देखता है, क्योंकि प्रत्येक मानव ईश्वर की प्रतिछाया और ईश्वर के प्रतिरूप में बनाया गया है और ईश्वर अवर्णनीय भेद है। इसलिए, प्रत्येक मानव व्यक्ति एक महान और अद्भुत भेद है, जिसका रहस्य ईश्वर के महान और अद्भुद भेद की गहराइयों में छिपा हुआ है।
आतंरिक ब्रह्मांड
हमारे दो अंदरूनी भाग हैं: 1) एक भौतिक आंतरिक भाग, और 2) एक आध्यात्मिक आंतरिक भाग। कोई सर्जन भौतिक आंतरिक भाग तक पहुंच सकता है, लेकिन वह आध्यात्मिक आंतरिक भाग तक पहुंच नहीं सकता है। केवल आप और ईश्वर ही आपके आध्यात्मिक आंतरिक भाग तक पहुँच सकते हैं। वास्तव में, ईश्वर हमेशा उस आंतरिक हिस्से के सबसे गहरे क्षेत्र में रहता है। ईश्वर आपको अच्छी तरह जानता है; इस अवधारणा को प्राप्त करने का तरीका है उस “ब्रह्मांड” में प्रवेश करना। अपने को ईश्वर की उपस्थिति में स्थापित करने का यही अर्थ है। उस स्थान के भीतर किसी शब्द की ज़रुरत नहीं है; केवल बार-बार यह दोहराना पर्याप्त है: “प्रभु येशु ख्रीस्त, ईश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कर”।
जितना अधिक समय हम उस स्थान के भीतर, बिना विचलित हुए बिताएंगे, उतना ही हमें यह एहसास होगा कि हमारा ख्याल किया जा रहा है, कि हम पर किसी का ध्यान है। यह एक बहुत ही सकारात्मक और ज्ञानवर्धक अनुभव है; क्योंकि हम स्वयं को ध्यान देने योग्य या ख्याल किये जाने लायक व्यक्ति के रूप में देखने लगते हैं। हम स्वयं को व्यक्तित्व के रूप में देखना शुरू करते हैं, न कि केवल निरे भौतिक वस्तु के रूप में। लेकिन यह शुरू होता है, “आतंरिक ब्रह्मांड” में प्रवेश करने के साथ, और यह अनुभव हमें इस दुनिया का सबसे अच्छा और अनोखा एहसास दिलाता है, क्योंकि हम में से अधिकांश लोग अपने जीवन के ज्यादतर समय वस्तुओं में सिमट गए हैं, लेकिन हम जानते हैं कि हम वस्तु नहीं, बल्कि मूल्यवान व्यक्तित्व हैं – आंतरिक मूल्य के व्यक्तित्व। यह “वस्तुकरण” कई मायनों में व्यक्तिगत क्रोध और अलगाव की भावनाओं का बड़ा कारण बनता है, लेकिन जैसे-जैसे हम उस अन्तरंग हिस्से में अधिक समय बिताते हैं जहां ईश्वर हमारी प्रतीक्षा करता है, वैसे वैसे हम अपने अन्दर कम अकेलापन महसूस करना शुरू करेंगे और हमारा जीवन और अधिक शांतिपूर्ण बन जाता है।
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