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अक्टूबर 28, 2023
Engage अक्टूबर 28, 2023

वर्तमान विश्व की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक यह गलत धारणा है कि विज्ञान और धर्म के बीच युद्ध होना ही है…

मैंने अपने प्राथमिक और माध्यमिक पढ़ाई का पूरा समय सरकारी स्कूलों में बिताया है जहां आस्था और धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के बीच टकराव है। वर्षों से, मैंने बार बार यह घोषणा सुनी है कि आस्था और वास्तविक दुनिया एक साथ नहीं चल सकते। आस्था उन लोगों के लिए है जिन्हें गुमराह किया गया है, जो दिवास्वप्न देखते हैं और जो जीवन को उसके वास्तविक रूप में देखने से इनकार करते हैं। कई लोगों की नज़र में धर्म पुराने ज़माने का विचार है, जिसकी अब कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि हमारे पास यह सब समझाने के लिए आधुनिक विज्ञान और दर्शनशास्त्र है। यह टकराव मेरे विज्ञान पाठ्यक्रमों में हमेशा सबसे अधिक दिखाई देता था। शिक्षकों तथा छात्रों द्वारा यह बताया गया है कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर और विज्ञान दोनों में विश्वास नहीं कर सकता है। दोनों बस परस्पर अनन्य हैं। मेरे लिए, सत्य से बढ़कर कुछ भी नहीं हो सकता। मेरी नज़र में, प्रकृति की हर चीज़ ईश्वर के अस्तित्व को साबित करने का काम करती है।

ईश्वर की उत्तम योजना

जब हम प्राकृतिक दुनिया को देखते हैं, तो सब कुछ बहुत ही उत्तम तरीके से या अभियांत्रिक तरीके से निर्मित किया गया है। पृथ्वी पर जीवन का समर्थन करने के लिए सूर्य एकदम सही दूरी पर है। बिना किसी उद्देश्य के समुद्र में रहने वाले जीव वास्तव में पृथ्वी को अन्य प्रजातियों के लिए रहने योग्य बनाए रखने के लिए हमारे समुद्र और वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने का काम करते हैं। अंतरिक्ष में कई मील दूर चंद्रमा का चक्र हमारे ठीक सामने ज्वार-भाटा बदलने का कारण बनता है। जब हम करीब से देखते हैं तो प्रकृति में प्रतीत होने वाली यादृच्छिक घटनाएं भी इतनी यादृच्छिक नहीं होती हैं।

जब मैं उच्चविद्यालय में एक कनिष्ट छात्रा थी, मैंने पर्यावरण विज्ञान में पाठ्यक्रम लेने का निर्णय लिया। यह मेरी पसंदीदा विषय था और हम ने प्रकृति के चक्रों के बारे में सीखा। नाइट्रोजन चक्र ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया। नाइट्रोजन पौधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, फिर भी नाइट्रोजन, अपने वायुमंडलीय रूप में, उस उद्देश्य के लिए उपयोग योग्य नहीं है। नाइट्रोजन को वायुमंडल से उपयोगी रूप में परिवर्तित करने के लिए मिट्टी में जीवाणु या बिजली की चमक की आवश्यकता होती है। बिजली की चमक, जो इतना यादृच्छिक और महत्वहीन लगता है, वह कहीं अधिक बड़े उद्देश्य को पूरा करता है!

हमारे जीवन के लिए ईश्वर की योजना की तरह, प्रकृति पूरी तरह से एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। यहां तक कि छोटी सी छोटी चीज़ में भी कारणों और प्रभावों की एक शृंखला होती है, जो एक अंतिम उद्देश्य को पूरा करती है, जो अपनी जगह से गायब हो जाने पर दुनिया के भाग्य को बदल देगी। चंद्रमा के बिना, अनगिनत जानवर और पौधे जो भोजन के लिए ज्वार भाटा के उतार-चढ़ाव पर निर्भर हैं, मर जाएंगे। बिजली के उन “यादृच्छिक” गाज के बिना, मिट्टी की उर्वरता कम होने के कारण हमारे पौधे बढ़ नहीं पाएंगे।

इसी तरह, हमारे जीवन की हर घटना, चाहे वह कितनी भी भ्रामक या महत्वहीन क्यों न लगे, पहले से ही अनुमानित और हमारे लिए ईश्वर की तैयार की गई योजना में शामिल हो जाती है, बर्शते हम अपनी इच्छाओं को उसकी इच्छा के अनुरूप बनाते हैं। यदि प्रकृति में हर चीज़ का एक उद्देश्य है, तो हमारे जीवन में भी हर चीज़ का बड़ा अर्थ होना चाहिए।

सृष्टि में सृष्टिकर्ता

मैं हमेशा सुनती आई हूँ कि हम ईश्वर को तीन चीजों में पाते हैं: सत्य, सौंदर्य और अच्छाई।

प्रकृति के कार्य का तार्किक विश्लेषण सत्य के प्रमाण के रूप में  और ईश्वर उस सत्य को कैसे मूर्त रूप देता है इसके बारे में सबूत के तौर पर काम कर सकता है। लेकिन ईश्वर न केवल सत्य का प्रतीक है, बल्कि सौंदर्य का सार भी है। इसी तरह, प्रकृति न केवल चक्रों और कोशिकाओं की एक प्रणाली है, बल्कि बेहद खूबसूरत भी है, जो ईश्वर के कई पहलुओं का एक और प्रतिनिधित्व है।

प्रार्थना करने के लिए, समुद्र के बीच में मेरे सर्फ़बोर्ड, मेरी पसंदीदा जगहों में से एक रही है। ईश्वर की रचना की सुंदरता को चारों ओर देखने का अवसर मुझे सृष्टिकर्ता के बहुत करीब लाता है। लहरों की ताकत का एहसास और विशाल समुद्र के बीच अपनी लघुता की पहचान हमेशा मुझे ईश्वर की अपार शक्ति की याद दिलाती है। पानी हर जगह है और हर चीज़ में मौजूद है, यह हमारे भीतर है, समुद्र के भीतर है, आकाश के भीतर है, और प्रकृति में पौधों और जानवरों के भीतर है।

जब यह पानी ठोस, तरल, गैस में परिवर्तित होता है, तब भी यह पानी ही रहता है। यह हमें याद दिलाता है कि ईश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के रूप में मौजूद है। सभी जीवित चीज़ें अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए पानी पर निर्भर हैं। हमें न केवल पानी की आवश्यकता है, बल्कि हमारे शरीर में भी बड़ी मात्रा में पानी होता है। ईश्वर भी सर्वव्यापी है; वह समस्त जीवन का स्रोत और जीवन को कायम रखने की कुंजी है। वह हमारे भीतर है और हमारे चारों ओर मौजूद हर चीज़ में मौजूद है।

जब मैं संसार को देखता हूँ तो मुझे इसका रचयिता दिखाई देता है। जब मैं नरम घास और फूलों के बीच धूप में लेटी रहती हूँ तो मैं ईश्वर के दिल की धड़कन को महसूस करती हूँ। मैं देखती हूँ कि उसने कितनी अच्छी तरह से जंगली फूलों को चित्रित किया, किसी चित्रकार की रंग मिलाने की पटिया के समान ज्वलंत रंगों के साथ। सृष्टिकर्ता जानता है कि वे रंगबिरंगे फूल मुझे खुशी देंगे। प्राकृतिक जगत का सौंदर्य अथाह है। मनुष्य सुंदरता की ओर आकर्षित होता है और कला और संगीत के माध्यम से इसे स्वयं बनाने की कोशिश करता है। हम ईश्वर की छवि और सादृश्य में बने हैं और सौंदर्य के प्रति उसका प्रेम हम मानव की सृष्टि से अधिक रूप में स्पष्ट नहीं हो सकता है। हम इसे अपनी चारों ओर हर जगह देखते हैं। उदाहरण के लिए, हम पतझड़ के पत्ते के जटिल योजना में ईश्वर की कला देखते हैं, और हर सुबह समुद्र की टकराती लहरों और पक्षियों के गायन की आवाज़ में उसका संगीत सुनते हैं।

अनंत रहस्य

दुनिया हमें यह बताने की कोशिश कर सकती है कि ईश्वर का अनुसरण करना, बाइबिल के प्राचीन ज्ञान पर ध्यान देना या आस्था पर ध्यान केंद्रित करना सत्य की अज्ञानतापूर्ण अस्वीकृति है। हमें बताया गया है कि विज्ञान सत्य है, और धर्म सत्य नहीं है। फिर भी कई लोग यह नहीं देख पाते कि येशु सत्य के मूर्तिभाव बनकर आया था। ईश्वर और विज्ञान परस्पर अनन्य नहीं हैं; बल्कि एक सम्पूर्ण सृष्टि की रचना इस बात का और अधिक सबूत है कि एक सम्पूर्ण और आदर्श रचनाकार या सृष्टिकर्त्ता अवश्य होना चाहिए। धार्मिक परंपरा और वैज्ञानिक खोज दोनों ही सच्ची और अच्छी हो सकती हैं। हमारे आधुनिक समय में आस्था अप्रचलित नहीं हो रही है; हमारी वैज्ञानिक प्रगति हमारे प्रभु के अनंत रहस्यों पर और अधिक सुंदर दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

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By: Sarah Barry

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अक्टूबर 28, 2023
Engage अक्टूबर 28, 2023

“हम सब अपना-अपना रास्ता पकड़ कर भेड़ों की तरह भटक रहे थे… ।” (इसायाह 53:6)

मेरी वर्तमान मोटर कार में लेन से भटक जाने पर एक चेतावनी प्रणाली है। हर बार जब मैं गाड़ी चलाते समय अपनी निर्धारित लेन से बाहर चली जाती हूं, तो कार मुझे चेतावनी का संकेत देती है।

पहले तो इससे परेशानी होती थी, लेकिन अब मैं इसको पसंद करती हूँ। मेरी पुरानी कार में इतनी उन्नत तकनीक नहीं थी। मुझे इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि गाड़ी चलाते समय मैं कितनी बार सीमा से बाहर चली गयी।

पिछले कुछ महीनों में, मैंने मेल-मिलाप या पाप स्वीकार के संस्कार में भाग लेना शुरू कर दिया है। दशकों तक मैंने इस अच्छी रिवाज़ को नजरअंदाज किया था।

मुझे ऐसा लगता था जैसे यह समय की बर्बादी है। मैं मन में सोचती थी: जब कोई व्यक्ति सीधे ईश्वर से बात कर सकता है तो उसे अपने पापों को पुरोहित के सामने स्वीकार करने की आवश्यकता क्यों है? नियमित रूप से अपनी अंतरात्मा की जाँच करना असुविधाजनक है। अपने पापों को सार्वजनिक रूप से, ज़ोर की आवाज़ में स्वीकार करना अपमानजनक है। लेकिन विकल्प तो और भी बुरा है। यह वर्षों तक दर्पण में देखने से इनकार करने जैसा है। हो सकता है कि आपके चेहरे पर हर तरह की चीज़ें चिपकी हों, लेकिन आप इस ग़लत धारणा में रहते हैं कि आप ठीक दिखते हैं।

इन दिनों, मैं साप्ताहिक रूप से पाप स्वीकार संस्कार में जाने का प्रयास करती हूँ। मैं आत्म-चिंतन और अपनी अंतरात्मा की जांच के लिए समय निकालती हूं। मैंने अपने अंदर एक बदलाव देखा है। अब, जैसे-जैसे मैं हर दिन आगे बढ़ती हूं, मेरी आंतरिक चेतावनी प्रणाली फिर से सक्रिय हो गई है। जब भी मैं लक्ष्यहीन प्रयास और अंतहीन खोज के कारण अच्छाई के मार्ग से भटक जाती हूं, तो मेरी अंतरात्मा मुझे संकेत देती है। इससे मुझे खतरे के क्षेत्र में बहुत दूर भटकने से पहले रास्ते पर वापस आने की अनुमति मिलती है।

“आप लोग भेड़ों की भटक गए थे, किन्तु अब आप अपनी आत्माओं के चरवाहे तथा रक्षक के पास लौट आए हैं।” (1 पेत्रुस 2:25)

मेल-मिलाप का संस्कार एक ऐसा उपहार है जिसकी मैंने बहुत लंबे समय तक उपेक्षा की थी। मैं उस भेड़ की तरह थी जो भटक ​​गयी थी। लेकिन अब मैं अपने चरवाहे, मेरी आत्मा के रक्षक की ओर मुड़ गयी हूं। जब मैं भटक जाती हूँ तो वह मेरी आत्मा की जाँच करता है। वह मुझे अच्छाई और सुरक्षा के मार्ग पर पुन: ले आता है।

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By: Nisha Peters

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अक्टूबर 28, 2023
Engage अक्टूबर 28, 2023

इस जीवन में आनंद की कुंजी क्या है? जब आप उस कुंजी को प्राप्त करेंगे, तब आपका जीवन कभी भी पहले जैसा नहीं रहेगा।

येशु मसीह द्वारा दस कोढ़ियों को चंगा करने का वृत्तांत मुझे गहराई तक प्रभावित करता है। कुष्ठ रोग एक ऐसी भयानक बीमारी थी जो पीड़ितों को उनके परिवारों से दूर और अलग-थलग कर देती थी। “हम पर दया करो”, वे उसे पुकारते हैं। और वह उन्हें चंगा कर देता है। वह उन्हें अपना जीवन वापस देता है। वे अपने परिवारों के पास लौट सकते हैं, अपने समुदाय के साथ आराधना कर सकते हैं और फिर से काम कर सकते हैं और भीख मांगने से और भीषण गरीबी से बच सकते हैं। उन्होंने जो आनंद अनुभव किया वह अविश्वसनीय होगा। परन्तु धन्यवाद प्रकट करने केलिए सिर्फ एक ही व्यक्ति लौटता है।

उपहार के पीछे

मेरा इरादा उन नौ लोगों को आंकने का नहीं है जो वापस नहीं आये, लेकिन जो येशु के पास लौटा उसने “उपहारों” के बारे में कुछ बहुत महत्वपूर्ण बात समझी। जब ईश्वर कोई उपहार देता है, जब वह किसी प्रार्थना का उत्तर देता है, तो यह व्यक्तिगत होता है। ईश्वर सदैव उस उपहार में समाहित रहता है। उपहार प्राप्त करने की आवश्यक क्षमता उस व्यक्ति से प्राप्त करनी है जो इसे देता है। प्यार से दिया गया कोई भी उपहार देने वाले के प्यार का प्रतीक है, इसलिए उपहार प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति को प्राप्त करता है जिसने इसे दिया है। उपहार अंततः टूट सकता है या ख़राब हो सकता है, लेकिन देने वाले के साथ उसका बंधन बना रहता है। चूँकि ईश्वर शाश्वत है, उसका प्रेम शाश्वत है और कभी भी वापस नहीं लिया जाएगा। एक कृतघ्न बच्चे को प्यार करने वाले माता-पिता की तरह, वह निरंतर देता रहता है, कब उड़ाऊ पुत्र उसके पास वापस आ जाता है, माता पिता उस पल की प्रतीक्षा करते हैं। किसी को उपहार के लिए धन्यवाद देने से इंकार करना एक बिगड़ैल बच्चे का कार्य है, और वह चोरी के समान है। उत्साह में लौटा हुआ कोढ़ी यह बात नहीं भूला।
कृतज्ञता की भावना ही धार्मिक और आध्यात्मिक भावना का मूल है। हमारा पूरा जीवन, हर पल, एक सरासर उपहार है। एक क्षण रुकें और विचार करें कि आपको कितने आशीर्वाद के उपहार प्राप्त हुए हैं। वह हममें से प्रत्येक शख्स से व्यक्तिगत रूप से क्या कह रहा है? “मुझे तुमसे प्यार है।” प्रत्येक आशीर्वाद उसके प्रेम को साझा करते हुए उसके उपहार का उपयोग करके उसके प्रेम को वापस करने का निमंत्रण है। यदि हम उस व्यक्ति को खोजने में विफल रहते हैं जो हमारे उपहारों का स्रोत है, तो कुछ समय बाद उनका हमारे जीवन में कोई खास मतलब नहीं रहेगा। वे “बूढ़े या पुराने हो जाएंगे” और एक तरफ रख दिए जाएंगे जबकि हम व्याकुल रहते हुए और अधिक की तलाश करेंगे।
मेरे पुरोहिताई अभिषेक के बाद, मुझे एक मनोरोग अस्पताल और पास की जेल में जाकर आत्मिक निदेशक का कार्य करने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी । जेल में सुरक्षा जांच के लिए अक्सर लंबा इंतजार करना पड़ता है। अंततः बैरक जहां कैदी मेरा इंतजार करते हैं, वहां अक्सर एक और थकाऊ विलम्ब होता है। इतना सब होने के बाद, मैं कांच की दीवार के माध्यम से कैदी से केवल चालीस मिनट तक फोन पर बात कर सकता था।

बंद द्वार और अवरुद्ध दीवारें

इससे बिलकुल विपरीत मानसिक अस्पताल के प्रत्येक विभाग बंद होने के बाद भी मुझे उसमें प्रवेश करने और अन्दर जाने के लिए एक चाबी दी जाती थी। सिज़ोफ्रेनिक विभाग में सबसे खतरनाक रोगियों के लिए एक अपवाद था। इसकी कोई चाबी नहीं थी। इसके बजाय, सुरक्षा गार्ड एक कैमरे के माध्यम से मेरी पहचान करते हैं और रिमोट से एक दरवाज़ा खोल देते हैं। मेरे पीछे वाला दरवाजा बंद हो जाने पर दूसरा दरवाजा खुल जाता ताकि मैं मरीजों को देखने के लिए अंदर जा सकूं। पूरा सप्ताहांत लोहे के बंद दरवाज़ों और राख भरी दीवारों से घिरे रहने, सुरक्षा गार्डों और कैमरों की निगरानी में बिताने के बाद, वहाँ से निकलकर घर जाना मेरे लिए बड़ी राहत की बात थी। दीवारों से मुक्त, सुंदर नीले आकाश को देखते हुए, मैं तीव्र आनंद की गहरी अनुभूति से अभिभूत हो जाता। पहली बार, मैंने अपनी आज़ादी की पूरी सराहना की। मैंने मन में सोचा, मैं कोई भी रास्ता चुन सकता हूँ और जहाँ चाहूँ रुक सकता हूँ; दुकान से कॉफ़ी या शायद डोनट खरीद सकता हूँ। मैं स्वतंत्र रूप से चुन सकता हूं और कोई भी मुझे रोकने, मेरी तलाशी लेने, मेरा पीछा करने या मुझ पर नजर रखने की कोशिश नहीं करेगा।
इस उत्साहपूर्ण अनुभव के बीच, मुझे एहसास हुआ कि मैंने कितना कुछ हल्के में लेता था। यह एक दिलचस्प अभिव्यक्ति है: “हलके में लेना”। इसका मतलब है कि जो “दिया गया है” उस पर ध्यान न देना तथा देने वाले को नज़रअंदाज़ करना और धन्यवाद देने में असफल होना। इस जीवन में आनंद की कुंजी यह महसूस करना है कि सब कुछ एक सरासर उपहार है, और उस व्यक्ति के बारे में, जो हर उपहार का स्रोत है, अर्थात् ईश्वर के बारे में जागरूक होना है।

अधूरी समझ

दस कोढ़ियों के चंगा होने के बारे में अगला महत्वपूर्ण बिंदु उनके चंगे होने के तरीके से संबंधित है। येशु ने उनसे कहा: “जाओ और खुद को याजकों को दिखाओ” (केवल याजक ही थे जो प्रमाणित कर सकते थे कि वे संक्रमण से मुक्त थे ताकि वे घर लौट सकें)। लेकिन सुसमाचार कहता है कि वे “रास्ते में ही चंगे हो गये”। दूसरे शब्दों में, जब येशु ने उनसे कहा कि जाकर अपने आप को याजकों को दिखाओ, तब तक वे ठीक नहीं हुए थे। वे “रास्ते में” ठीक हो गये। दुविधा की कल्पना कीजिए. “मैं खुद को याजक को क्यों दिखाऊं, आपने अभी तक कुछ नहीं किया है? मुझे अभी भी कुष्ठ रोग है”। और इसलिए, उन्हें भरोसा करना पड़ा। उन्हें पहले आज्ञा माननी होगी और कार्य करना होगा। तभी वे ठीक हो सके।
ईश्वर के साथ इसी तरह सब काम होता हैं। हम वास्तव में प्रभु को तभी समझ पाते हैं जब हम पहले उनका अनुसरण करके उस विश्वास को जीना चुनते हैं – ऐसा कहा जा सकता है कि यह अंधेरे में उसकी आज्ञा का पालन करना जैसा होता है। जो लोग कार्य करने के पूर्व पूरी तरह से समझने पर जोर देते हैं, वे लगभग हमेशा असफल हो जाते हैं।

हम जानते हैं कि उसने हमसे क्या कहा: आज्ञाओं का पालन करो। अंतिम भोज में, उसने अपने प्रेरितों को “मेरी याद में ऐसा करने” की आज्ञा दी। उसने यह उपदेश भी दिया कि हमें अपने वस्त्र, भोजन या पेय के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रभु परमेश्वर हमारी ज़रूरतों को जानता है। “पहले ईश्वर के राज्य की तलाश करो और ये सभी बातें तुम्हें यूँ ही प्रदान की जाएंगी”। यदि हम विश्वास में आगे बढ़ते हैं और उनके वचन के अनुसार कार्य करते हैं, तो हम अंततः अनुग्रह के प्रकाश के माध्यम से समझेंगे। लेकिन आज बहुत से लोग ऐसी चीज़ों से डरते हैं जो उनके आराम में खलल डालती है और जब तक कि उन्हें आश्वस्त नहीं किया जाता है कि ईश्वर की आज्ञाओं के अनुसार कार्य करना उनकी अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए यह कोई जोखिम नहीं है, तब तक वे आज्ञाओं का पालन करने से सख्त इनकार करते हैं । और इसलिए वे ईश्वर को वास्तव में जानने के आनंद के बिना, अंधेरे में जीवन गुजारते हैं। परन्तु इससे पहले कि हम समझें कि ऐसा क्यों है, उसकी आज्ञाओं के अनुरूप हमारे कार्यों को करने के निर्णय के बाद हमें चंगाई मिलती है; हमें प्रभु की आज्ञा का पालन बिल्कुल छोटे बच्चों की तरह करना होगा जो अपने माता-पिता पर भरोसा करते हैं और उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।

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By: Deacon Doug McManaman

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अक्टूबर 20, 2023
Engage अक्टूबर 20, 2023

जीवन में सफलता का अनुभव करना चाहते हैं? आप जिसे ढूंढ रहें हैं वह यहाँ है!

निश्चित रूप से यह जानने के लिए किसी रॉकेट वैज्ञानिक की आवश्यकता नहीं है कि प्रार्थना प्रत्येक मसीही के जीवन का केंद्र है। उपवास के महत्व के बारे में कम ही बात की जाती है, इसलिए यह अज्ञात या अपरिचित हो सकता है। कई कैथलिक लोग यह विश्वास करते हैं कि वे राख बुधवार और गुड फ्राइडे पर मांसाहार से परहेज़ करके अपनी भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन जब हम वचन में देखते हैं, तो हमें यह जानकर आश्चर्य होगा कि हम सिर्फ परहेज केलिए नहीं, बल्कि उससे अधिक के लिए हम बुलाए गए हैं। येशु से पूछा गया कि जब फरीसी और योहन बपतिस्ता के चेले उपवास करते हैं, तो उनके चेले उपवास क्यों नहीं करते हैं। येशु ने उत्तर दिया कि जब वह उनके पास से उठा लिया जाएगा, तो ‘वे उन दिनों में उपवास करेंगे’ (लूकस 5:35)।

लगभग सात साल पहले मैंने एक शक्तिशाली तरीके से उपवास के बारे में जाना, जब मैं मेडगास्कर में भूखे बच्चों के बारे में ऑनलाइन एक लेख पढ़ते हुए अपने बिस्तर पर लेटा था। मैंने एक हताश माँ द्वारा उस दु:खद स्थिति का वर्णन पढ़ा, जिसमें वह और उसके बच्चे फँसे हुए थे। वे सुबह भूखे उठते। बच्चे भूखे स्कूल जाते और इसलिए वे स्कूल में जो भी सीखते, उस पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते।

वे स्कूल से भूखे घर आते और भूखे ही सो जाते। स्थिति इतनी खराब थी कि वे घास खाने लगे थे ताकि अपने दिमाग को यह सोचने पर मजबूर कर दें कि वे जीवन निर्वाह के लिए कुछ खा रहे हैं, और यह सब केवल भूख के विचारों को दूर करने के लिए था। मैंने सीखा था कि एक बच्चे के जीवन के पहले कुछ वर्ष महत्वपूर्ण होते हैं। उन्हें जो पोषण मिलता है या नहीं मिलता है, वह उनके शेष जीवन को प्रभावित कर सकता है। जिस बात ने वास्तव में मेरा दिल को तोड़ा, वह मेडगास्कर में तीन छोटे बच्चों की पीठ की तस्वीर थी, जिनपर कोई कपड़े नहीं थे, साफ़ और स्पष्ट रूप से पोषण की अत्यधिक कमी दिखाई दे रही थी। उनके शरीर की एक-एक हड्डी साफ नज़र आ रही थी। मेरे दिल पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा।

‘मैं क्या करूं?’

इस लेख को पढ़ने के बाद, मैं इतने भारी मन और आँसुओं से भरी आँखों के साथ, नीचे चला गया। मैंने अलमारी से नाश्ते का अनाज निकाला, और जैसे ही मैं दूध निकालने के लिए रेफ्रिजरेटर के पास गया, मैंने रेफ्रिजरेटर पर कोलकत्ता की संत तेरेसा की तस्वीर का एक चुंबक देखा। मैंने अपने हाथ में दूध पकड़ा और जैसे ही मैंने दरवाजा बंद किया, मैंने फिर से मदर तेरेसा की तस्वीर को देखा, और अपने दिल में कहा, ‘हे मदर तेरेसा, आप इस दुनिया में गरीबों की मदद करने आई थीं। मैं उनकी मदद के लिए क्या कर सकता हूँ?’ मैंने अपने दिल में एक तत्काल, सौम्य और स्पष्ट उत्तर महसूस किया; ‘जल्दी !’।

मैंने दूध को वापस फ्रिज में रख दिया, और अनाज को वापस अलमारी में रख दिया, और ऐसी स्पष्ट दिशा प्राप्त करने में मुझे बहुत खुशी और शांति महसूस हुई। फिर मैंने प्रण लिया, कि अगर मैं उस दिन भोजन के बारे में सोचूंगा, या जब कभी मुझे भूख लगेगी , या मैंने खाने की खुशबू भी लूंगा, या यहां तक कि खाने को देखूंगा, उन सारे मौकों पर मैं उन गरीब बच्चों और उनके माता-पिता, और दुनिया भर में सभी भूखे लोगों के प्रति मेरा छोटा सा आत्म-त्याग समर्पित करूंगा। ।

इतने सरल, स्पष्ट और शक्तिशाली तरीके से ईश्वर के दिव्य हस्तक्षेप में बुलाया जाना एक सम्मान की बात थी। रात में जब मैंने पवित्र मिस्सा में भाग लिया, तब तक मैंने भोजन के बारे में सोचा भी नहीं था और न ही मुझे उस पूरे दिन कोई भूख महसूस हुई थी। परम प्रसाद ग्रहण करने से पूर्व मुझे अत्यंत भूख का अनुभव हुआ| यूखरिस्त ग्रहण करने के बाद जब मैंने घुटने टेके, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ भोजन ग्रहण किया हो। निश्चित तौर पर मैं ने जीवन का सर्वश्रेष्ठ भोजन ग्रहण किया था; मैंने ‘जीवन की रोटी’ को ग्रहण किया था (यूहन्ना 6:27-71)।

यूखरिस्त न केवल हम में से प्रत्येक को व्यक्तिगत रूप से येशु से जोड़ता है, बल्कि बदले में एक दूसरे के साथ भी जोड़ता है, और एक शक्तिशाली तरीके से ‘हमें गरीबों के लिए प्रतिबद्ध करता है’ (सी.सी.सी 1397)। संत अगस्टिन इस रहस्य की महानता को ‘एकता का चिह्न’ और ‘दान के बंधन’ (सी.सी.सी. 1398) के रूप में वर्णित करते हैं। संत पौलुस हमें इसे समझने में मदद करते हैं, ‘क्योंकि रोटी तो एक ही है, इसलिये अनेक होने पर भी हम एक हैं; क्योंकि हम सब एक ही रोटी के सहभागी हैं’ (1 कुरिन्थी 10:17)। इसलिए ‘मसीह में एक शरीर’ होना हमें ‘एक दूसरे के अंग’ बनाता है (रोमी 12:5)।

एक दिशा

मैंने हर सप्ताह प्रार्थना करनी शुरू की, और उस प्रार्थना में मैं प्रभु से कहने लगा की वह मुझे बताए कि किसके लिये उपवास और प्रार्थना करूं। इससे पहले कि मैं उपवास करना शुरू करता, मेरा किसी तरह किसी से मेल हो जाता; एक बेघर व्यक्ति, एक वेश्या, एक पूर्व-कैदी आदि। मुझे लगा कि वास्तव में मुझे स्पष्ट निर्देश दिया जा रहा है। हालाँकि, एक विशेष सप्ताह में, मैं इस बात को लेकर अनिश्चितता में था कि प्रभु मुझसे किस उद्देश्य के लिए उपवास और प्रार्थना करवाना चाहता है। उस रात जब मैं सोने गया, मैंने उचित दिशा जानने के लिए प्रभु से प्रार्थना की। अगली सुबह जैसे ही मैंने अपनी सुबह की वन्दना समाप्त की, मैंने देखा कि मेरे मोबाइल फोन पर एक सन्देश आया था। मेरी बहन ने मुझे यह दुखद समाचार भेजा था कि उसकी एक सहेली ने आत्महत्या कर ली है। मुझे मेरा जवाब मिल चुका था।

फिर मैंने उस लड़की की आत्मा के लिए, इसके अलावा, उन लोगों के लिए जिन्होंने उसे उस स्थिति में पाया, उसके परिवार, और सभी आत्महत्या के शिकार लोगों के लिए और कोई भी जो वर्तमान में अपनी जान लेने पर विचार कर रहा था, उन सब के लिए उपवास और प्रार्थना करनी शुरू की। जब मैं उस दिन काम से घर आया, तो मैंने अपनी दैनिक रोजरी माला विनती की। जैसे ही मैंने आखिरी मनके पर आखिरी प्रार्थना की, मैंने अपने दिल में इन शब्दों को स्पष्ट रूप से महसूस किया, ‘जब तुम उपवास करते हो…’ (मत्ती 6:16-18)। जैसे ही मैंने इन शब्दों पर विचार किया, स्पष्ट रूप से ‘जब’ पर ज़ोर था, ‘अगर’ पर नहीं।

विश्वासियों के रूप में हमसे जितनी प्रार्थना करने की अपेक्षा की जाती है, वात्सव में उपवास के लिए भी उतना ही अपेक्षा की जाती है कि ‘जब तुम उपवास करते हो’। जैसे ही मैंने रोजरी माला विनती समाप्त की और खड़ा हुआ, मेरा फोन तुरंत बजने लगा। एक खूबसूरत बुजु़र्ग महिला, जिसे मैं गिरजाघर में देखता और पहचानता हूँ, उस ने हताश अवस्था में मुझे फोन किया और मुझे कुछ ऐसी बातें बताईं जो उसके जीवन में चल रही थीं। उसने मुझे बताया कि वह आत्महत्या करने के बारे में सोच रही थी। मैंने घुटने टेके और हमने फोन पर एक साथ प्रार्थना की और परमेश्वर की कृपा से प्रार्थना और बातचीत के अंत में उसे शांति महसूस हुई। यह प्रार्थना और उपवास की शक्ति है! परमेश्वर की महिमा हो।

उठो और लड़ो

मुझे अपने जीवन में कई बार मेडजुगोरे की माँ मरियम के तीर्थस्थल पर जाने की महान कृपा मिली है और बुराई के खिलाफ इस सबसे खूबसूरत हथियार की पक्की समझ मुझमें और अधिक बढ़ गयी है। धन्य कुवाँरी मरियम वहाँ अपने बच्चों को पश्चताप और उपवास के लिए बुलाती है और उनसे बुधवार और शुक्रवार को केवल रोटी खाने और पानी पीने का अनुरोध करती है।

एक बार मेडजुगोरे के स्वर्गवासी पुरोहित, फादर स्लावको ने कहा था कि ‘प्रार्थना और उपवास दो पंखों की तरह हैं’। हम निश्चित रूप से केवल एक पंख के साथ बहुत अच्छी उड़ान भरने की उम्मीद नहीं कर सकते। यह विश्वासियों के लिए सही मायने में पूरे सुसमाचार संदेश को अपनाने, येशु के लिए मौलिक रूप से जीने और वास्तव में उड़ने का समय है।

बाइबिल स्पष्ट रूप से हमें बार-बार उपवास के साथ प्रार्थना की शक्ति दिखाती है (एस्तेर 4:14-17; योना 3; 1; राजा 22:25-29)। ऐसे समय में जहाँ युद्ध की रेखाएं स्पष्ट रूप से खींची गई हैं, और प्रकाश और अंधेरे के बीच का अंतर साफ दिखाई देता है, तो यह समय दुश्मन को पीछे धकेलने का है, येशु के शब्दों को याद करते हुए, कि कुछ बुराइयाँ ‘प्रार्थना और उपवास के सिवा और किसी उपाय से नहीं निकाली जा सकतीं’ (मारकुस 9:29)।

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By: Sean Booth

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अक्टूबर 20, 2023
Engage अक्टूबर 20, 2023

मैं लुयिसिआना के कोविंगटन में सेंट जोसेफ मठ में था, जो न्यू ऑरलियन्स से ज्यादा दूर नहीं था। मैं वहाँ देश भर के लगभग तीस बेनेडिक्टिन मठाधीशों को संबोधित करने के लिए गया था जो कुछ दिनों के लिए चिंतन और एकांतवास के लिए एकत्रित हुए थे। सेंट जोसेफ मठ के गिरजाघर और भोजनालय की दीवारों पर फादर ग्रेगरी डी विट द्वारा चित्रित अद्भुत कलाकृतियाँ हैं। फादर ग्रेगरी डी विट बेल्जियम में मोंट सीज़र के एक मठवासी थे, जिन्होंने 1978 में निधन से पूर्व हमारे देश में इंडियाना में सेंट मेनराड और सेंट जोसेफ में कई वर्षों तक काम किया। मैं लंबे समय से, ईश शास्त्र के दृष्टिकोण से धनी उनकी विशिष्ट और विचित्र कला का प्रशंसक था। मठ के गिरजाघर के अर्द्धवृत्ताकार कक्ष में, फादर डी विट ने शानदार पंख वाले स्वर्गदूतों की एक श्रृंखला को चित्रित किया, जो सात घातक पापों की छवियों पर मंडराते हैं, जो इस गहन सत्य को व्यक्त करते हैं कि ईश्वर की सही उपासना हमारे आध्यात्मिक शिथिलता पर काबू पाती है। लेकिन डी विट के चित्रित कार्यक्रम की एक नवीनता यह है कि उन्होंने आठवां घातक पाप के रूप में गपशप को जोड़ा जो उनके विचार से मठ के भीतर विशेष रूप से विनाशकारी कार्य करती है।

बेशक, मठों के बारे में फादर डी विट सही थे, लेकिन मैं कहूँगा कि यह बात लगभग किसी भी प्रकार के मानव समुदाय के बारे में सही होता: परिवार, स्कूल, कार्यस्थल, पल्ली, आदि। गपशप ज़हर है। डी विट की पेंटिंग हमारे वर्तमान संत पापा की शिक्षाओं की पूर्वानुमान या भविष्यवाणियां थीं, क्योंकि संत पापा फ्रांसिस ने अक्सर गपशप को विशेष निंदा का विषय बना दिया है। संत पापा फ्रांसिस के एक हालिया प्रवचन को सुनें: “भाइयो और बहनो, कृपया, गपशप न करने का प्रयास करें। गपशप कोविड से भी बदतर महामारी है। उससे भी ज़्यादा बुरा! आइए एक बड़ा प्रयास करें। कोई गपशप नहीं!” और हम किसी तरह चूक न जाएँ इसलिए, संत पापा स्पष्ट करते हैं, “शैतान सबसे बड़ा गपशप करने वाला है।” यह अंतिम टिप्पणी केवल रंगीन बयानबाजी नहीं है, क्योंकि संत पापा अच्छी तरह से जानते हैं कि नए नियम में शैतान के दो प्रमुख नाम डायबोलोस (तितर बितर करनेवाला) और सेटनस (अभियोग लगानेवाला) हैं। इन शब्दों में गपशप के बेहतर लक्षण का वर्णन है; हमें पता चलता है कि गपशप क्या करती है और यह अनिवार्य रूप से क्या है।

अभी कुछ समय पहले, एक मित्र ने मुझे व्यवसाय और वित्त सलाहकार, डेव रैमसे की बातचीत का एक यू-ट्यूब वीडियो भेजा था। संत पापा फ्रांसिस की तरह, उसी उग्रता के साथ, रैमसे ने कार्यस्थल में गपशप के खिलाफ बात की, यह निर्दिष्ट करते हुए कि गपशप के संबंध में उनकी नीति शून्य सहिष्णुता की है। उन्होंने गपशप को इस प्रकार परिभाषित किया: “गपशप उस व्यक्ति के साथ नकारात्मक चर्चा है जो समस्या का समाधान नहीं कर सकता।“ चीजों को थोड़ा और स्पष्ट बनाने के लिए उन्होंने उदहारण दिया: “आपके संगठन का एक व्यक्ति गपशप कर रहा होगा, यदि वह आई.टी. मुद्दों के बारे में किसी ऐसे सहयोगी के साथ शिकायत कर रहा था जिसके पास आई.टी. मामलों को हल करने की कोई योग्यता या अधिकार नहीं था। या कोई अपने बॉस के अधीन या नीचे के लोगों के सामने अपने बॉस के प्रति गुस्सा व्यक्त करती है, जो उसकी आलोचना का रचनात्मक जवाब देने की स्थिति में नहीं है।“ रैमसे अपने अनुभव से एक सुस्पष्ट उदाहरण प्रदान करते हैं। वह याद करता है कि उसने अपनी पूरी प्रशासनिक टीम के साथ एक बैठक की थी, जिसमें एक नए दृष्टिकोण की रूपरेखा दी गई थी, जिसे वह अपनाना चाहता था। उसने सभा छोड़ दी, लेकिन फिर महसूस किया कि वह अपनी चाबियां भूल गया था और इसलिए कमरे में वापस चला गया। वहाँ उन्होंने पाया कि “बैठक के बाद एक दूसरी बैठक” हो रही थी, जिसका नेतृत्व उनके एक महिला कर्मचारी कर रही थी, जिसकी पीठ दरवाजे की तरफ थी, ज़ोर-ज़ोर से दूसरों के सामने बॉस की निंदा कर रही थी। बिना किसी हिचकिचाहट के, रैमसे ने महिला को अपने कार्यालय में बुलाया और गपशप के प्रति अपनी शून्य-सहिष्णुता की नीति के अनुसार, उसे निकाल दिया।

आप ध्यान दें, इसका मतलब यह नहीं है कि मानव समाजों के भीतर समस्याएं कभी उत्पन्न नहीं होती हैं, यह बिल्कुल भी नहीं है कि शिकायतों पर कभी भी आवाज नहीं उठानी चाहिए। लेकिन वास्तव में यह कहना ज़रूरी है कि उन्हें हिंसात्मक या युद्ध स्तर पर नहीं, बल्कि उचित अधिकारी के सम्मुख व्यक्त किया जाना चाहिए, जो उन शिकायतों के साथ रचनात्मक व्यवहार कर सकते हैं। यदि इस प्रक्रिया का पालन किया जाता है, तो गपशप का खेल नहीं होगा। रैमसे की अंतर्दृष्टि की पूरक के रूप में मेरे पूर्व शिक्षक जॉन शी एक सूत्र देते हैं। वर्षों पहले, जॉन शी ने हमसे कहा था कि हमें किसी अन्य व्यक्ति की आलोचना करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्रता महसूस करना चाहिए, ठीक उसी मात्रा में और उस हद तक कि हमने उस व्यक्ति की समस्या को पहचाना है, उस से निपटने में मदद करने को तैयार हैं। अगर हम पूरी तरह से मदद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो हमें जितनी जोरदार आलोचना करनी चाहिए उतनी करनी चाहिए। अगर हमारे पास मदद करने की उदार इच्छा है, तो हमारी आलोचना को कम किया जाना चाहिए। अगर, जैसा कि आम तौर पर होता है, अगर हमें मदद करने की थोड़ी सी भी इच्छा नहीं है, तो हमें अपना मुंह बंद रखना चाहिए।

किसी शिकायत को बिना सौम्य तरीके से अधिकारियों के सम्मुख रखना सहायक होता है; इसे नीचे के कर्मचारियों के बीच ले जाना और उद्देशय शुद्धि के बिना बहस करना नीचता है, और यही गपशप है — और यह शैतान का काम है। क्या मैं एक दोस्ताना सुझाव दे सकता हूँ? हम चालीसा के मुहाने पर हैं, यह कलीसिया के लिए पश्चाताप और आत्म-अनुशासन का महान समय है। इस चालीसा में मिठाई या धूम्रपान छोड़ने के बजाय, गपशप करना छोड़ दें। चालीस दिनों तक कोशिश करें कि उन लोगों के साथ नकारात्मक टिप्पणी न करें जिनमें समस्या से निपटने की क्षमता नहीं है। और यदि आप को इस संकल्प को तोड़ने के लिए प्रलोभन होता हैं, तो डी विट के स्वर्गदूतों को अपने ऊपर मंडराते हुए सोचें। मेरा विश्वास करें, आप और आपके आस-पास के सभी लोग बहुत खुश होंगे।

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By: बिशप रॉबर्ट बैरन

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अक्टूबर 20, 2023
Engage अक्टूबर 20, 2023

अपने प्रार्थनामय जीवन में एक नया उपमार्ग खोजने के लिए इस लेख को पढ़ते रहें |

कुछ सालों पहले, मेरी बहन के घर के नल से कहीं पानी का लगातार रिसाव की बड़ी समस्या थी। घर पर कहीं भी पानी के रिसाव का पता नहीं चल रहा था, लेकिन उसका पानी का बिल 70 डॉलर प्रति माह से बढ़कर 400 डॉलर प्रति माह हो गया। उन्होंने रिसाव के स्रोत का पता लगाने की कोशिश की, उसके बेटे ने बहुत खुदाई की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

कई दिनों की निरर्थक खोज के बाद, एक मित्र को एक उपाय सूझा। उसका विचार था कि रिसाव को खोजने की कोशिश करनी बंद की जाये। बजाय इसके, पानी के पाइप के सिरे पर जाया जाये, नई पाइपिंग की जाये, और नए पाइप को किसी उपमार्ग से अर्थात नए रास्ते पर बिछाया जाये और पुरानी पाइपलाइन को पूरी तरह से छोड़ दिया जाये।

उन्होंने वैसा ही किया। एक दिन की कड़ मशक्कत और बहुत सी खुदाई के बाद, उन्होंने उस योजना को पूरा किया और देखो! समस्या ठीक हो गई, और मेरी बहन के पानी का बिल फिर से सामान्य हो गया |

जैसा ही मैंने इस पर विचार किया, मेरे विचार अनुत्तरित प्रार्थनाओं पर गया। कभी-कभी हम लोगों के लिए या कुछ परिस्थितयों को बदलने के लिए प्रार्थना कर रहे होते हैं और उन प्रार्थनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता। परमेश्वर के कान तक पाइप लाइन में लगता है कि “रिसाव” है। या हम लगातार प्रार्थना करते हैं जिससे कि किसी का मन परिवर्त्तन हो, किसी का गिरजाघर में वापसी हो जाए, या हम किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं जो कुछ समय से बेरोजगार हो, या हम गंभीर स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से जूझ रहे किसी व्यक्ति के उपचार के लिए प्रार्थना करते हैं। स्थिति कैसी भी हो, हमें कोई प्रगति दिखाई नहीं देती और हमारी प्रार्थनाएँ व्यर्थ या बेकार लगने लगती हैं।

मुझे याद है कि मैं जिस मिशनरी संगठन के साथ काम करती हूँ, उसमें एक बहुत ही कठिन व्यक्तिगत संघर्ष के लिए मुझे प्रार्थना करनी थी। यह एक ऐसी स्थिति थी जो बहुत तनावपूर्ण थी और मेरी भावनात्मक और शारीरिक ऊर्जा को खत्म कर रही थी। प्राकृतिक स्तर पर मैंने जो कुछ भी करने की कोशिश की,मानो ऐसा लग रहा था कि उसका कोई हल ही नहीं है , और समाधान के लिए मेरी प्रार्थनाओं का कोई असर नहीं दिख रहा था। एक दिन अपनी प्रार्थना में, मैंने हताशा में फिर से परमेश्वर को पुकारा और अपने दिल में एक शांत, सौम्य आवाज़ सुनी, “इसे मुझे सौंप दो। मैं इसका हल करूंगा| “

मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है, बिलकुल एक प्लंबिंग बाईपास के सामान। इस बिंदु तक मेरा रवैया ही मेरे प्रयासों से स्थिति को हल करने की कोशिश कर रहा था: मध्यस्थता करना, बातचीत करना, विभिन्न प्रकार के समझौते करना और उसमें शामिल विभिन्न पक्षों को शांत करना। लेकिन चूंकि कुछ भी काम नहीं आया था और चीजें केवल बदतर होती गईं, मुझे पता था कि परमेश्वर को इन्हें संभालने की अनुमति देने की जरूरत है। इसलिए मैंने उसे अपनी स्वीकृति दी। “हे प्रभु, मैं यह सब तुझे सौंप देती हूं। तुझे जो कुछ भी करना है वह कर, और मैं सहयोग करूँगी।”

प्रार्थना के लगभग 48 घंटों के भीतर ही स्थिति पूरी तरह से सुलझ गई। जितनी तेजी से मेरी सांसें रुकी हुई थी, उतनी ही तेजी से उनमें से एक पक्ष ने अच्छा निर्णय लिया, जिसके कारण सब कुछ पूरी तरह से बदल गया, और तनाव और संघर्ष भी समाप्त हो गया। मैं विस्मित थी और जो हुआ था उस पर विश्वास नही कर पा रही थी।

मैंने क्या सीखा? अगर मैं किसी चीज या किसी के लिए एक निश्चित तरीके से प्रार्थना कर रही हूं और मुझे कोई सफलता नहीं दिख रही है, तो शायद मुझे प्रार्थना करने के तरीके को बदलने की जरूरत है। पवित्र आत्मा से पूछने की ज़रुरत है कि “मुझे इस व्यक्ति के लिए प्रार्थना करने की क्या कोई और तरीका है? क्या मुझे कुछ और माँगना चाहिए, कोई विशिष्ट अनुग्रह जो उन्हें अभी चाहिए?” शायद हमें “नल का कोई उपमार्ग ” जैसे कोई दूसरा मार्ग मिल जाए।

रिसाव का स्रोत या प्रतिरोध के स्रोत को खोजने की कोशिश करने के बजाय, हम प्रार्थना कर सकते हैं कि हे परमेश्वर इसे दरकिनार कर दे। परमेश्वर बहुत रचनाशील है (वही रचनात्मकता का स्रोत या मूल निर्माता है) और अगर हम उनके साथ सहयोग करना जारी रखते हैं, तो वह मुद्दों को हल करने और अनुग्रह लाने के लिए अन्य तरीकों के साथ आएगा जिनके बारे में हमने सोचा भी नहीं होगा। परमेश्वर को परमेश्वर रहने दो और उसे चलने और चलाने के लिए जगह दें।

मेरे मामले में, मुझे रास्ते से हटना था, विनम्रता से स्वीकार करना था कि मैं जो कर रही थी वह व्यर्थ था, और उसे प्रभु को और अधिक गहराई से समर्पण करना था जिससे प्रभु को कार्य करने का अवसर मिले। लेकिन प्रत्येक स्थिति अलग होती है, इसलिए परमेश्वर से पूछें कि वह आपसे क्या चाहता है और उसके निर्देशों को सुनें। अपनी क्षमता के अनुसार उनका पालन करें और परिणाम उसके हाथों में छोड़ दें। और याद रखें कि येशु ने क्या कहा: “जो मनुष्यों के लिए असंभव है, वह परमेश्वर के लिए संभव है।“ (लूकस 18:27)

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By: Ellen Hogarty

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अक्टूबर 20, 2023
Engage अक्टूबर 20, 2023

शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया । हमने उसकी महिमा देखी| वह पिता के एकलौते की महिमा- जैसी है – अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण । (योहन 1:14)

पहली बार ऐनी को पवित्र मिस्सा के दौरान देखा था। सप्ताहांत के दिनों में, मैं एक छोटे से प्रार्थनालय में जहाँ केवल दो पंक्तियों रहती हैं, मिस्सा बलिदान में भाग लेती हूं। आप हर दिन कम लोगों को देखते हैं, इसलिए आप सभी से परिचित हो जाते हैं। मुझे लगा कि ऐनी को कभी-कभी झटके के दौरे लगते हैं। सबसे पहले, मुझे लगा कि उसे पार्किंसंस रोग है। हालांकि, करीब से अवलोकन के बाद, मैंने देखा कि परम प्रसाद ग्रहण करते समय उसे इसकी समस्या थी। जैसे ही वह पुरोहित से परम प्रसाद को स्वीकार करती, उसका शरीर, विशेष रूप से उसके हाथ, हिलते थे। कंपन कुछ मिनटों के लिए जारी रहती थी।

एक दिन, मैंने ऐनी से कम्युनियन के दौरान उसके साथ हो रहे झटकों के बारे में पूछने का फैसला किया। ऐनी ने शालीनता से इस असामान्य ‘उपहार’ के बारे में समझाया। उसके झटके किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधित विषय नहीं था, हालांकि कई लोग सोचते थे कि यह कोई बीमारी है। वह अपने शरीर की प्रतिक्रिया से थोड़ी शर्मिंदा थी, क्योंकि इसके कारण उस पर लोगों का अवांछित ध्यान पड़ जाता था। यह प्रतिभास कई साल पहले शुरू हुई जब उसने अचानक पहचान लिया कि येशु ख्रीस्त के शरीर को ग्रहण करने का मतलब क्या है। येशु, परमेश्वर का पुत्र, हमारे लिए एक मनुष्य बना। अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण, वह हमारे बीच रहा। वह हमारे पापों के लिए बलि चढ़ गया। ऐनी का कहना है कि विश्वास के इस सत्य के प्रति जागरूकता के बाद, जब भी वह परम प्रसाद को स्वीकार करती है तो उसका शरीर अनैच्छिक रूप से कांपता है। परम प्रसाद के प्रति ऐनी की श्रद्धा ने इस संस्कार के प्रति मेरे मन में भी बड़ा आदर और सम्मान बढ़ गया ।

संत अगस्टीन के अनुसार संस्कार की परिभाषा है ‘आंतरिक और अदृश्य अनुग्रह का बाहरी और दृश्य संकेत’। हम कितनी बार अनुग्रह के संकेतों को पहचानते हैं? जब हम संस्कारों को केवल अनुष्ठानों तक सीमित कर देते हैं, तो हम परमेश्वर की प्रेमपूर्ण उपस्थिति को महसूस नहीं कर पाते हैं। जो लोग चौकस और जागरूक हैं, वही लोग संस्कारों में विद्यमान पावन वास्तविकताओं की सराहना कर सकते हैं।

हे प्रभु येशु, मैं प्रार्थना करती हूं कि जो कुछ पवित्र है, उन सब के प्रति तू मुझे गहरी श्रद्धा दें । मैं जो कुछ भी हूँ और जो कुछ भी करूं उसमें मसीह को मूर्त रूप दे सकूं। मुझे एक जीवित संस्कार में ढाल ताकिमैं आपके आंतरिक और अदृश्य अनुग्रह का एक बाहरी और दृश्य संकेत बन जाऊं। आमेन।

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By: Nisha Peters

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अक्टूबर 20, 2023
Engage अक्टूबर 20, 2023

जीवन में आने वाली आकस्मिक घटनाएँ और बदलाव अक्सर दिल दहला सकती हैं l लेकिन हिम्मत न‌ हारें ! आप अकेले नहीं हैं।

परमेश्वर और मेरे बीच सम्बन्ध के बारे में मेरे एहसास के बारे में व्याख्या करना मुझे यह स्मरण कराने जैसा है कि मैंने कब सांस लेनी शुरू की; यह मेरे लिए संभव नहीं l मैं अपने जीवन में हमेशा परमेश्वर के बारे में अवगत रही हूँ। ऐसा कोई विशेष चमात्कारिक क्षण नहीं है जिसने मुझे परमेश्वर के प्रति जागरूक किया हो, परन्तु ऐसे अनेक अनगणित क्षण हैं जो मुझे याद दिलाते हैं कि वह हमेशा मेरे साथ मौजूद है। भजन 139 इसे खूबसूरती से कहता है: “तूने मेरे शरीर की सृष्टि की, तूने माता के गर्भ में मुझे गढ़ा l मैं तेरा धन्यावाद करता हूँ – मेरा निर्माण अपूर्व है l तेरे कार्य अद्भुत हैं, मैं यह अ‌‍च्छी तरह जानता हूँ ” (स्तोत्र ग्रन्थ 139:13-14)।

एकमात्र उत्तर

हालाँकि परमेश्वर हमेशा मेरे जीवन में निरंतर उपस्थित रहा है, पर कई बार अन्य चीजें उतनी सुसंगत नहीं रही हैं। उदाहरण के लिए, दोस्त, घर, स्वास्थ्य, विश्वास और भावनाएँ समय और परिस्थितियों के साथ बदल सकते हैं।

कभी-कभी परिवर्तन नया और रोमांचक लगता है, लेकिन कई बार यह डरावना होता है और मुझे कमजोर और असुरक्षित महसूस कराता है। घटनाएँ ऐसे प्रतीत होती हैं मानो मेरे पैर एक हवादार, रेतीले समुद्र तट के किनारे पर गाड़े गए हैं जहाँ ज्वार लगातार मेरी नींव को हिला देता है और पुनः मुझे अपना संतुलन बनाए रखने के लिए बाध्य करता है l हम कैसे उन दैनिक परिवर्तनों का प्रबंधन करते हैं जो हमारे संतुलन को बिगाड़ देते हैं? मेरा उत्तर केवल एक है, और मुझे लगता है कि आपके लिए भी वही सच है: अनुग्रह – स्वयं परमेश्वर का जीवन हमारे अन्दर विद्यमान है , परमेश्वर का अनर्जित उपहार जिसके हम योग्य नहीं हैं, जिसे हम कमा या खरीद नहीं सकते, और वही उपहार जो हमें इस जीवन से अनन्त जीवन की ओर अग्रसर करता हैl

राहत के बिना निवास परिवर्त्तन

औसतन, लगभग हर पांच से छः सालों में एक बार मेरा निवास परिवर्त्तन होता आ रहा है। कुछ तो अधिक स्थानीय और अस्थायी थीं; अन्य मुझे बहुत दूर और अधिक समय तक ले चलीं। लेकिन वे सभी निवास परिवर्त्तन और बदलाव एक जैसे थे।

पहला बड़ा बदलाव तब आया जब मेरे पिताजी की नौकरी के कारण हमें देश के एक कोने से दुसरे कोने जाना पडा। जिस राज्य में हमारा परिवार पहले से था, वहां हमारी गहरी जड़ें थीं, और नए राज्य की तुलना में भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से हमारा पुराना राज्य बहुत ही अलग और अनोखा था। कुछ नया करने की उत्तेजना ने अपरिचित और अनजान के प्रति मेरे डर को अस्थायी रूप से कम कर दिया। हालाँकि, जब हम अपने नए घर पहुँचे, तो मेरा घर, हमारे रिश्तेदार, दोस्त, स्कूल, चर्च और वह सब जो परिचित था – उन सारी वास्तविकता को जिसे मैंने छोड़ दिया था और जिससे मैं परिचित थी – उस वास्तविकता ने मुझे भारी उदासी और खालीपन से भर दिया।

निवास परिवर्त्तन ने हमारे परिवार को गतिशील बना दिया। जैसे जैसे हर कोई परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठा रहा था, वैसे ही वे अपनी व्यक्तिगत जरूरतों में लीन हो गए। हमें नहीं लग रहा था कि हमारा वही पुराना परिवार है। कुछ भी सुरक्षित या परिचित नहीं लग रह था । एकाकीपन घर करने लगा था।

क्रूस से टपकती आशीष

हमारे निवास परिवर्त्तन के बाद के हफ्तों के दौरान हमने अपने सामानों को खोला और छांटा। एक दिन जब मैं स्कूल में थी, मेरी माँ ने उस क्रूसित प्रभु की मूर्ती को बक्से से निकाला जो मेरे जन्म के समय से ही मेरे बिस्तर के ऊपर दीवार पर लटकी हुई थी। माँ ने उसे निकालकर मेरे नए बेडरूम में लटका दिया।

बात छोटी सी थी, लेकिन इससे बहुत फर्क पड़ा। क्रूसित प्रभु की मूर्ती मेरे लिए परिचित और प्रिय थी। इससे मुझे याद आया कि मैं परमेश्वर से कितना प्यार करती थी और कैसे मैं अक्सर अपने पिछले घर में उससे बातें किया करती थी। वह बचपन से मेरा दोस्त रहा, लेकिन किसी तरह, मैंने सोचा कि मैंने उसे पीछे छोड़ दिया है। मैंने क्रूस को दीवार से उठा लिया और उसे हाथ में कस कर पकड़ कर रोने लगीI मुझमें कुछ बदलाव आने लगा। मेरा सबसे अच्छा दोस्त मेरे साथ था, और मैं उससे फिर बात कर सकती थी। मैंने उसे बताया कि वह नई जगह कितनी अजीब लग रही थी और मैं घर वापस जाने के लिए कैसे तरस रही थी। घंटों तक मैंने उसे बताया कि मैं कितनी अकेली हो गयी थी, उस डर के बारे में भी बताया जिसने मेरे दिल को जकड़ रखा था, और मैंने उससे मदद माँगी।

थोड़ा-थोड़ा करके, मेरे गालों पर बहने वाले आँसुओं ने मेरे दिल को जकड़े हुए घने अँधेरे को धो डाला। शांति मेरे दिल में बस गयी, जिसे मैंने काफी लम्बे अरसे से महसूस नहीं किया था। आँसू धीरे-धीरे सूख गए, आशा ने मेरे दिल में प्रवेश किया और यह जानकर कि परमेश्वर मेरे साथ है, मैं फिर खुश हो गयी। उस दिन मेरे कमरे में परमेश्वर की उपस्थिति ने मेरे स्वभाव, मेरे हृदय और मेरे दृष्टिकोण को बदल दिया। अपने ही दम पर मैं ऐसा नहीं कर सकती थी। यह मेरे लिए परमेश्वर का उपहार था … उसकी कृपा।

जीवन की एकमात्र स्थिरता

वचन में परमेश्वर हमें कहता है : “डरो मत क्योंकि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ”। मेरे पसंदीदा वचनों में से एक मुझे परिवर्तन के डर से निपटने में मदद करता है: “प्रभु तुम्हारे आगे-आगे चलेगा और तुम्हारे साथ रहेगाl वह तुम्हें निराश नहीं करेगा और तुम को नहीं छोड़ेगा l भयभीत न हो और मत डरो।” (विधि-विवरण ग्रन्थ 31:8)

जब से मैं छोटी लड़की थी, तब से मैं ने कई बार स्थान परिवर्त्तन किया और बदलाव लाया, लेकिन मुझे एहसास हुआ है कि मैं ही स्थान परिवर्त्तन करती हूँ और बदलती हूँ, परमेश्वर नहीं। वह कभी नहीं बदलता। चाहे मैं कहीं भी जाऊं और मेरे जीवन में कई बदलाव आया हो, वह हमेशा मेरे साथ रहता है। हर स्थान परिवर्त्तन, हर नयेपन और रेत में हर बदलाव के बाद परमेश्वर ने मेरा संतुलन बहाल किया है। वह सदैव मेरे जीवन का हिस्सा रहा है। कभी-कभी मैं उसे भूल जाती हूँ, लेकिन वह मुझे कभी नहीं भूलता। उसने ऐसा कैसे किया? वह मुझे इतने करीब से जानता है कि “(मेरे) सिर के बाल भी गिने हुए हैं”(मत्ती 10:30-31)। यह भी उसकी कृपा है।

जिस दिन मैंने उस क्रूस को अपने बेडरूम की दीवार से उतारकर कस कर पकड़ लिया, उसी दिन यह उस रिश्ते का प्रतीक बन गया जिसे मैं अपने शेष जीवन में उसके साथ रखने वाली थी। मुझे उसकी निरंतर उपस्थिति की आवश्यकता है ताकि वह अँधेरे को हटा सके, मुझे आशा दे सके, और मुझे रास्ता दिखा सके। वह “मार्ग, सत्य और जीवन” है (योहन 14:6)l प्रार्थना करना, वचन पढ़ना, पवित्र मिस्सा में भाग लेना, पवित्र संस्कारों को प्राप्त करना, और दूसरों के साथ उनके द्वारा दिए गए अनुग्रह को साझा करना, इसी के माध्यम से जितना हो सके मैंने उसे मजबूती से पकड़ रखा है। मैं चाहती हूँ कि मेरा दोस्त हमेशा मेरे साथ रहे जैसा उसने वादा किया था। मुझे उसकी सभी अद्भुत कृपाओं की आवश्यकता है और मैं उन्हें प्रतिदिन माँगती हूँ। मुझे यकीन है कि मैं इस तरह के उपहारों के लायक नहीं हूँ, लेकिन वह उन्हें वैसे भी मुझे देता है क्योंकि वह प्यार है और ‘मुझ जैसी नीच’ को बचाना चाहता है।

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By: Teresa Ann Weider

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अक्टूबर 20, 2023
Engage अक्टूबर 20, 2023

इसका अभ्यास करें और आपको कभी इस पर पछतावा नहीं होगा …

बीते आगमन काल के अंतिम दिनों में एक अग्रसूत्र ने मुझे आकर्षित किया: “आइए हम उसका चेहरा देखें और हम मुक्त किये जाएंगे।” हां, मैंने प्रार्थना की, हे येशु, मुझे आपका चेहरा देखने दें। मैं मरियम और जोसेफ के बारे में सोचती हूं जैसे वे पहली बार तुझे अपने गोद में लिए हुए हैं, बड़ी कोमलता से तुझे पकडे हुए हैं, तेरे चेहरे को देख रहे हैं और उस चेहरे को चूम रहे हैं, फिर वे तुझे पुआल पर लिटाकर गरम कम्बल से तुझे ढक रहे हैं। तू कितना सुंदर है, तुम्हारी आंखें खुलने के पहले ही तू मुझे देख रहा है।

अपने प्रेम को प्रज्वलित करें

उन दिनों मैंने कार्मेल मठ की साध्वी, सिस्टर इम्माकुलाता द्वारा लिखित एक किताब “द पाथवेज ऑफ प्रेयर: कम्युनियन विथ गॉड” (माउंट कार्मेल हर्मिटेज द्वारा 1981 में प्रकाशित) पढ़ी, और यह मेरे दिल को भी छू गया। उन्होंने लिखा कि, येशु, हम तेरे लिए जिस प्यार को औपचारिक प्रार्थना के समय में और मिस्सा बलिदान के समय, तुझे अपने शरीर और आत्मा में प्राप्त करते हैं, अनुभव करते है, उस प्यार को हम कैसे बनाए रख सकते हैं। मैंने इस बारे में उत्सुकता से पढ़ा, क्योंकि मैं इस इच्छा से जूझ रही थी कि पास की रसोई में खाने या पीने के लिए कोई चीज़ मिल जाए। जैसे ही मैं अपने प्रार्थना कक्ष में बैठी, मुझे उस कहावत की सच्चाई का एहसास हुआ जो किसी ने अपने रेफ्रिजरेटर पर पोस्ट की थी: “आप जो खोज रहे हैं वह यहाँ नहीं है।” हां, मैं अपने फ्रिज में जाने के बजाय तेरी ओर मुड़ सकती हूं, है ना? इसलिए मैं पढ़ना चाहती थी कि मेरे प्यार को फिर से जगाने के बारे में सिस्टर इम्माकुलाता का क्या विचार है।

उन्होंने पुष्टि की: “ईश्वर के साथ उनकी जीवित उपस्थिति में लगातार बातचीत करना आत्मा को बड़ी ऊर्जा देती है। यह आत्मा में गर्मी और रक्त प्रवाहित करता है … विश्वास में ईश्वर के साथ इस प्रेमपूर्ण स्मरण के अभ्यास के लिए एक बड़ी समर्पित निष्ठा होनी चाहिए। उन्होंने दिखाया कि कैसे “इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि ईश्वर पर यह आंतरिक नज़र, चाहे वह कितना भी थोड़े समय के लिए हो, हर बाहरी क्रिया से पहले होनी चाहिए और उसी से अंत भी होना चाहिए”। उन्होंने यह साझा करना शुरू किया कि कैसे महान रहस्यदर्शी, अविला की संत तेरेसा ने अपनी साध्वी बहनों के साथ इस बारे में बात की:

यदि वह कर सकती है, तो उसे प्रतिदिन कई बार मनन चिंतन करने दें।” संत तेरेसा ने समझा कि यह पहली बार में आसान नहीं होगा, लेकिन “यदि आप इसे एक वर्ष के लिए अभ्यास करते हैं, या शायद केवल छह महीने के लिए, तो आप इस बड़े लाभ और खज़ाने को प्राप्त करने में सफल होंगे।” संत लोग हमें सिखाते हैं कि “ईश्वर के साथ यह निरंतर एकात्मकता पवित्रता के उच्च स्तर पर शीघ्रता से पहुंचने का सबसे प्रभावशाली साधन है।” ये प्रेमपूर्ण कार्य आत्मा को पवित्र आत्मा के स्पर्श की जागरूकता के लिए व्यवस्थित करते हैं और इसे आत्मा में ईश्वर के उस प्रेमपूर्ण संचार के लिए तैयार करते हैं जिसे हम मनन चिंतन कहते हैं … जो हमें हर जगह और हमेशा प्रार्थना करते रहने के ख्रीस्तीय दायित्व को पूरा करने में सक्षम बनाता है।

आदत के चक्र में

ये कुछ तरीके हैं जिनसे मैं इस अभ्यास को शामिल करती आ रही हूँ। सीढ़ियों से ऊपर और नीचे जाते समय, या यहाँ तक कि कुछ रास्तों पर चलते समय, मैं अपने कदमों की लय में कहती हूँ: “येशु, मरियम और यूसुफ, मैं तुमसे प्यार करती हूँ। आत्माओं को बचाओ।“ जब मैं भोजन के लिए बैठती हूं, तो मैं येशु से मेरे साथ बैठने के लिए कहती हूं। अपना भोजन समाप्त करते समय, मैं उन्हें धन्यवाद देती हूँ। सबसे कठिन अभ्यास जब किसी भी पकवान मुंह में रखने से पहले प्रार्थना करना था, और जब मैं भोजन नहीं कर रही थी, या भोजन के लिए तैयारी कर रही थी, तब प्रार्थना करना कठिन था; मैंने इसे चैसा काल के लिए एक त्यागपूर्ण अभ्यास के रूप में लिया, और अंत में इसे एक नई आदत बना रही हूं।

जब मैं किसी गिरजाघर या प्रार्थनालय से गुजरती हूं, तो मैं कहती हूं “हे येशु, परम प्रसाद में तेरी उपस्थिति के लिए धन्यवाद। कृपया इस पवित्र स्थान से सभी को आशीर्वाद दे। चालीसे के दौरान या शुक्रवार को किसी को मिठाई देते समय, मैं किसी व्यक्ति के लिए या बड़ी विपत्ति में पड़े किसी देश के लिए प्रार्थना करती हूं।

सिस्टर इम्माकुलाता हमें आश्वस्त करती हैं: “परमेश्वर स्वयं को प्रकट करेंगा। वह ऐसा करने के लिए प्यासा है, परन्तु वह तब तक नहीं प्रकट कर सकता जब तक कि हृदय और मन उसे प्राप्त करने के लिए तैयार न हों। हमारा प्रार्थना का जीवन वास्तव में तब तक शुरू नहीं होता जब तक कि हम एक शुद्ध अंतरात्मा की, वैराग्य की और उनकी उपस्थिति में रहने के अभ्यास की नींव नहीं डालते हैं

“सच्ची स्वतंत्रता स्वार्थ से मुक्ति है। ईश्वर की उपस्थिति में निरंतर स्मरण और निरंतर प्रार्थना की आदत स्वयं और स्वार्थ के प्रति मर जाने के उस डर का इलाज है जो हममें इतनी गहराई से समाया हुआ है … प्रार्थना और आत्म-त्याग इतने अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं … क्योंकि येशु का प्रेम एक व्यक्ति को खुद को तुच्छ समझने केलिए उसे तैयार करता है। यह अध्याय इमीटेशन ऑफ़ क्राइस्ट किताब के एक उद्धरण के साथ समाप्त होता है: “विनम्र और शांतिपूर्ण बनो और येशु तुम्हारे साथ रहेगा। भक्ति और शान्ति में रहें और येशु आपके साथ रहेगा … आपको नग्न होना चाहिए और एक शुद्ध हृदय को परमेश्वर के पास ले जाना चाहिए, यदि आप आराम से ध्यान देंगे तो आप देखेंगे कि प्रभु कितना प्यारा है” (पुस्तक II, अध्याय 8)।

जैसा कि मैं उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती हूं जहां मैं पहले प्रार्थना किए बिना काम में लिप्त हो रही हूं, मैं खुद को प्रभु के करीब लाने के लिए एक प्रार्थना खोजने के लिए प्रेरणा महसूस करती हूं जिस प्रभु को मैं प्यार करती हूं, सेवा करती हूं और हर दिन पहले से ही घंटों तक प्रार्थना करती हूं। येशु, हां, कृपया मुझे तेरी उपस्थिति में रहने के अभ्यास में बढ़ने, तेरे चेहरे को अधिक से अधिक देखने की कोशिश में बढ़ने में मदद कर ”।

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By: Sister Jane M. Abeln SMIC

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अक्टूबर 20, 2023
Engage अक्टूबर 20, 2023

प्रश्न – मैं हमेशा अपने परिवार, अपने स्वास्थ्य, अपनी आर्थिक स्थिति, अपनी नौकरी आदि के बारे में चिंता से ग्रसित रहता हूँ। मुझे इस बात की चिंता भी होती है कि मेरा उद्धार हुआ है या नहीं। इतने सारे भयों के बीच, मैं हृदय की शांति कैसे पा सकता हूँ?

उत्तर – यह महत्वपूर्ण है कि बाइबिल में “डरो मत” वाक्यांश 365 बार आता है – वर्ष के प्रत्येक दिन के लिए एक! परमेश्वर जानता था कि हमें प्रतिदिन स्मरण दिलाने की आवश्यकता होगी कि वही मालिक है और हम अपना भय उस पर डाल सकते हैं!

यह विश्वास करना कठिन हो सकता है कि हमारे जीवन की प्रत्येक परिस्थिति पहले से ही एक सर्वशक्तिमान और प्रेमी ईश्वर के हाथों में है। लेकिन जब हम अपनी समस्याओं को नहीं, बल्कि परमेश्वर की विश्वसनीयता को देखते हैं तब अचानक हमें एहसास होता है कि वह कैसे हर चीज़ में अच्छाई निकाल सकता है।

उदाहरण के लिए, धर्म ग्रन्थ को पढ़ें और देखें कि कैसे परमेश्वर बाइबल के महान नायकों के प्रति विश्वासयोग्य था! पुराने नियम में, यूसुफ को मिस्र में गुलामी के लिए बेच दिया गया था और फिर उसे कारागार में डाल दिया गया था। लेकिन परमेश्वर ने इस त्रासदी को अवसर में बदल दिया: पहले यूसुफ मिस्र की सरकार में ऊंचे पद पर पहुँच गए और फिर जब देश में अकाल पड़ा, तब उसे अपने परिवार को बचाने का अवसर मिला। या, नए नियम में, पौलुस को कैद किया गया था, और उसका जीवन कई बार खतरे में डाला गया था, लेकिन हर बार, परमेश्वर ने उसे उसके शत्रुओं से बचाया।

संतों के जीवन को देखें – क्या ईश्वर ने कभी उन्हें त्याग दिया था? संत जॉन बोस्को के बारे में सोचें – कई लोगों ने इस पवित्र पुरोहित की जान लेनी चाही, लेकिन हर बार ईश्वर ने चमत्कारिक रूप से उन्हें एक विशेष अभिभावक प्रदान किया – एक बड़ा धूसर कुत्ता जो उसकी रक्षा के लिए मौके पर दिखाई देता है! संत फ्रांसिस के बारे में सोचिए, जिसे युद्ध में बंदी बना लिया गया और एक वर्ष के लिए कैद कर लिया गया – और उसी वर्ष उसे रूपांतरण का अनुभव प्राप्त हुआ। संत कार्लो एक्यूटिस के बारे में सोचें, वह युवा किशोर जो 2006 में 15 साल की उम्र में ल्यूकेमिया से गुज़र गया और कैसे ईश्वर ने इतनी कम उम्र की मौत से बहुत अच्छा कल्याण का कार्य किया है, क्योंकि लाखों लोग उसकी जीवन कहानी से और उसे आदर्श मानकर पवित्रता के लिए प्रेरित हुए हैं।

मैं आपको बता सकता हूं कि मेरे जीवन का सबसे कठिन क्षण तब था जब मुझे स्कूल से बाहर निकाल दिया गया था और पुरोहिताई के लिए अपनी योजनाओं को त्यागने के लिए कहा गया था। यह मेरे जीवन के सबसे गौरवशाली और धन्य अनुभवों में से एक बन गया, क्योंकि इसने मेरी पुरोहिताई केलिए दूसरे बेहतर द्वार खोल दिये – एक बेहतर धर्मप्रांत, जहाँ मैं अपनी क्षमताओं और प्रतिभाओं का उपयोग ईश्वर की महिमा के लिए कर सकता हूँ। यह केवल दूरदर्शिता थी कि मैंने अपने जीवन में ईश्वर के हस्तक्षेप को पहचाना। लेकिन जिस तरह से ईश्वर ने मुझे सुरक्षित रखा है और अतीत में मुझे उसके करीब लाया है, यह मुझे विश्वास दिलाता है कि जो उस समय विश्वसनीय था वह भविष्य में भी विश्वसनीय रहेगा। और अब अपने जीवन के बारे में सोचें। आपने ईश्वर को अपने जीवन में आते हुए कैसे देखा?

पवित्र धर्मग्रन्थ में किए गए परमेश्वर के वादों पर ध्यान दें। उसने हमसे कभी आसान जीवन का वादा नहीं किया – उसने वादा किया कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा। उसने वादा किया कि “परमेश्वर ने जो तैयार किया है, उसे न तो कोई आँख देख सकती है और न ही कोई कान सुन सकता है।” उसने कभी भी यह वादा नहीं किया कि जीवन हमेशा सुचारू रूप से चलेगा, लेकिन उसने वादा किया कि “जो लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं और उसके विधान के अनुसार बुलाये गए हैं, परमेश्वर उनके कल्याण केलिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है” (रोमी 8:28) ये वे वायदे हैं जिन पर हम अपने जीवन का निर्माण कर सकते हैं!

अंत में भरोसे की स्तुति विनती करें। न्यूयॉर्क में सिस्टर्स ऑफ लाइफ की बहनों ने यह सुंदर स्तुति विनती लिखी है जो हमें अपनी चिंताओं को ईश्वर को समर्पित करने के लिए आमंत्रित करती है। यह विनती कहती है:

भविष्य की चिंता से, मुझे मुक्त कर, येशु।
वर्तमान क्षण में बेचैन स्वार्थ से, मुझे मुक्त कर, येशु।
तेरे प्यार और तेरी उपस्थिति में मेरे अविश्वास से, मुझे मुक्त कर, येशु।

इस संक्षिप्त प्रार्थना को निरंतर करते रहें: “येशु मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ!” और वह आपके ह्रदय को ऐसी शांति से भर सकता है जो समझ से परे है।

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By: फादर जोसेफ गिल

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अक्टूबर 20, 2023
Engage अक्टूबर 20, 2023

क्या आपको लगता है कि आपका संघर्ष कभी खत्म न होने वाला है? जब हताशा आपके दिल को जकड़ लेती है, तो आप क्या करते हैं?

मैं मनोचिकित्सक के कमरे में एक बड़ी कुर्सी पर हाथ मलते हुए बैठी थी और उनके आने का इंतज़ार कर रही थी। मैं उठकर भागना चाह रही थी। मनोचिकित्सक ने मेरा अभिवादन किया, कुछ साधारण से प्रश्न पूछे और फिर परामर्श की प्रक्रिया शुरू हुई। उनके पास एक डिजिटल टैबलेट और कलम थी। हर बार जब मैंने कुछ कहा या हाथ का इशारा किया, तो वे टैबलेट पर कुछ लिखते रहे। मैं अपने दिल की गहराई से जानती थी कि थोड़े समय के बाद वे निर्धारित करेंगे कि मेरी मानसिक हालत ऐसी है कि मैं मदद से परे हूं।

वह सत्र इस सुझाव के साथ समाप्त हुआ कि मैं अपने जीवन की गड़बड़ी से निपटने में मदद के लिए ट्रैंक्विलाइज़र लूं। मैंने उनसे कहा कि मैं इसके बारे में सोचूँगी; लेकिन सहज रूप से मुझे पता था कि यह कोई समाधान नहीं था।

हताश और अकेली

एक और अपॉइंटमेंट लेने के लिए, मैं स्वागत कक्ष में बैठी महिला से अपने जीवन की गड़बड़ी के बारे में बात करती रही। उसके पास सुनने वाला दयालु कान था और उसने पूछा कि क्या मैंने कभी ‘अल-अनॉन’ की बैठक में जाने पर विचार किया था। उसने समझाया कि ‘अल-अनॉन’ उन लोगों के लिए है, जिनका जीवन परिवार के किसी सदस्य के अत्यधिक शराब पीने से प्रभावित हो रहा है। उसने मुझे एक नाम और फोन नंबर दिया और मुझे बताया कि यह ‘अल-अनॉन’ महिला मुझे एक बैठक में ले जायेगी।

अपनी कार में बैठकर, बहते हुए आंसुओं के साथ, मैंने नाम और फ़ोन नंबर को देखा। मनोचिकित्सक से और अपने जीवन की परेशानियों से कोई राहत नहीं मिलने के बाद, मैं कुछ भी आजमाने के लिए तैयार थी। मैंने यह भी निष्कर्ष निकाला कि मनोचिकित्सक ने दवाइयों के अलावा कोई दूसरा हल न होने की बात पहले ही मुझसे कही थी। इसलिए, मैंने अल-अनॉन महिला को फोन किया। उसी क्षण मेरे जीवन की गड़बड़ी में ईश्वर ने प्रवेश किया, और मेरे ठीक होने की यात्रा शुरू हुई।

मैं कहना चाहूंगी कि अल-अनोन के 12-चरणों वाले चंगाई कार्यक्रम की प्रक्रिया की शुरुआत के बाद यह सुचारू रूप से चल रहा था, लेकिन रास्तें में बड़ी पहाड़ियाँ तथा अंधेरी और सुनसान घाटियाँ खड़ी थीं, हालांकि वे हमेशा आशा की किरण के साथ खड़ी थीं।

मैं प्रति सप्ताह दो अल-अनोन बैठकों में ईमानदारी से भाग लेती थी। अल-अनॉन के 12-चरणीय कार्यक्रम मेरी जीवन रेखा बन गया। मैंने अन्य सदस्यों के साथ खुल कर अपने बारे में बात की। धीरे-धीरे मेरे जीवन में प्रकाश की एक किरण आई। मैं फिर से प्रार्थना करने लगी और ईश्वर पर भरोसा करने लगी।

दो साल की अल-अनोन बैठकों के बाद, मुझे पता था कि मुझे अतिरिक्त पेशेवर मदद की ज़रूरत है। एक दयालु अल-अनोन मित्र ने मुझे 30-दिवसीय अन्तरंग-रोगी उपचार कार्यक्रम में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया।

मेरा दिल नरम हुआ

क्योंकि मुझे शराब पर गुस्सा था, मैं इस उपचार कार्यक्रम में किसी भी ‘शराबी’ के आसपास नहीं रहना चाहती थी। उस गहन कार्यक्रम के दौरान, मैं वास्तव में शराब और नशीली दवाओं के लत में डूबे कई लोगों से घिरी हुई थी। ऐसा लगता है कि ईश्वर को पता था कि मुझे क्या ठीक करने की आवश्यकता है: जब मैंने अपने लत में डूबे साथियों के व्यक्तिगत दर्द और उनके कारण उनके परिवारों को हुए गहरे तकलीफों को देखा तो मेरा दिल नरम होने लगा।

इस समर्पण के दौरान ही अपनी ही शराब की लत पर मैंने काबू पाया। मुझे पता चला कि मैं अपना दर्द छुपाने के लिए शराब पीती थी। मुझे पता चला कि मैं भी शराब का दुरुपयोग कर रही थी और यह सबसे अच्छा होगा कि मैं पूरी तरह से शराब से दूर रहूँ। उस महीने मैंने अपने पति के प्रति अपने क्रोध को दूर किया और उन्हें ईश्वर के हाथों में सौंप दिया। मेरे ऐसा करने के बाद, मैं उन्हें क्षमा कर सकी।

मेरे 30 दिनों के उपचार कार्यक्रम के बाद, ईश्वर की कृपा से, मेरे पति ने भी शराब की लत के उपचार कार्यक्रम में प्रवेश किया। मेरा और मेरे पति का और हमारे दो किशोर बेटों का जीवन बेहतर हो रहा था। हम कैथलिक चर्च में वापस आ गए थे और एक एक दिन हमारा वैवाहिक जीवन दुरुस्त किया जा रहा था।

दिल दहला देने वाला दर्द

तब जीवन ने हमें एक अकल्पनीय झटका दिया जिसने हमारे दिलों को एक लाख टुकड़ों में तोड़ दिया। हमारा सत्रह वर्षीय बेटा और उसका दोस्त एक विनाशकारी कार दुर्घटना में मारे गए। यह हादसा गाड़ी के तेज रफ्तार और उन दोनों के शराब पीने के कारण हुआ। हम हफ्तों तक सदमे में रहे। हमारे बेटे के इस तरह हिंसात्मक ढंग से छीन जाने के कारण चार लोगों का हमारा परिवार अचानक तीन में सिमट गया। मेरे पति, मैं और हमारा 15 साल का बेटा एक-दूसरे से, अपने दोस्तों से, और अपने विश्वास से लिपटे रहे। इस दर्द को एक दिन में भी सहना मेरी सहनशक्ति के बाहर था, पर मुझे इसे हर मिनट, हर घंटे तक सहना था। मुझे लगा यह दर्द हमें कभी नहीं छोड़ेगा।

ईश्वर की कृपा से, हमने मनोवैज्ञानिक परामर्श की एक विस्तारित अवधि में प्रवेश किया। दयालु और हमारी अच्छी परवाह करने वाले वह सलाहकार जानता था कि परिवार का प्रत्येक सदस्य किसी प्रियजन की मृत्यु से अपने तरीके से और अपने समय में निपटता है। इसलिए हमें अपने दुःख का सामना करने के लिए उन्होंने हममें से प्रत्येक के साथ व्यक्तिगत रूप से काम किया।

मेरे बेटे की मौत के महीनों बाद भी, मैं गुस्से और रोष से भरी हुई थी। मेरे लिए यह जानना डरावना था कि मेरी भावनाएँ इतनी बेतहाशा नियंत्रण से बाहर हो गई थीं। मैं अपने बेटे के छीन जाने पर ईश्वर से नाराज नहीं थी, लेकिन अपने बेटे की मृत्यु की रात ही उसके गैर-जिम्मेदाराना फैसले के लिए उससे मैं नाराज थी। उसने शराब पीने का निर्णय लिया और एक ऐसी गाड़ी में सफ़र करने का निर्णय लिया जिसे किसी शराबी व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा था। मैं शराब पर और उसके विभिन्न रूपों और परिणामों पर क्रोधित थी।

एक दिन हमारे स्थानीय सुपरमार्केट में, मैंने गलियारे के अंत में एक बियर की प्रदर्शनी देखी। हर बार जब भी मैं प्रदर्शनी के पास से गुजरती, तब मैं गुस्से से भर जाती। मैं प्रदर्शनी को तब तक ध्वस्त करना चाहती थी जब तक कि उसमें कुछ भी न बचा हो। इससे पहले कि मेरा गुस्सा बेकाबू होकर फूट पड़ता, मैं दुकान से बाहर निकल गयी।

मैंने अपने पारिवारिक परामर्शदाता के साथ इस घटना को साझा किया। उन्होंने मुझे निशानबाज़ी के मैदान में ले जाने की पेशकश की, जहां मैं उनकी राइफल का इस्तेमाल निशाना लगाने, गोली मारने और अधिक से अधिक बीयर के खाली बोतलों को ध्वस्त करने के लिए कर सकती थी, ताकि मुझ पर हावी हो रहे शक्तिशाली क्रोध को सुरक्षित रूप से मैं मुक्त कर सकूं।

प्यार जो चंगा करता है

लेकिन ईश्वर के अपने अनंत ज्ञान में मेरे लिए अन्य कोमल योजनाएँ थीं। मैंने काम से एक सप्ताह की छुट्टी ली और एक आध्यात्मिक साधना में भाग लिया। साधना के दूसरे दिन, मैंने एक आंतरिक चँगाई वाले मनन चिंतन में भाग लिया जिसमें मैंने रंगीन फूलों, समृद्ध हरी घास और चहचहाने वाले नीले कोमल पक्षियों से भरे, शानदार पेड़ों से घिरे एक सुंदर बगीचे में येशु, अपने बेटे, और खुद को पाया। यह शांतिपूर्ण और निर्मल अनुभव था। मैं येशु की उपस्थिति में होने और अपने अनमोल बेटे को गले लगाने में सक्षम होने के लिए बहुत खुश थी। येशु, मेरा बेटा, और मैं इत्मीनान से हाथ में हाथ डाले, चुपचाप हमारे बीच में बहते अपार प्रेम को अनुभव करते हुए टहल रहे थे।

ध्यान के बाद, मुझे गहन शांति का अनुभव हुआ। साधना से वापस घर लौटने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि मेरा गुस्सा और रोष ख़तम हो चुका था। येशु ने मेरे बेकाबू क्रोध से मुझे चंगा किया था और उसके स्थान पर अपने अनुग्रह से भर दिया था। क्रोध के बजाय मुझे अपने अनमोल बेटे के लिए केवल प्यार महसूस हुआ। मेरे बेटे ने अपने बहुत छोटे जीवन में मुझे जो प्यार, खुशी और आनंद दिया है, उसके लिए मैं आभार महसूस कर रही थी। मेरा भारी बोझ हल्का होता जा रहा था।

जब किसी परिवार में दु:खद मौत आती है, तो हर सदस्य की दिल में शोक भर जाता है। नुकसान को संभालना चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसके लिए हमें अंधेरी घाटियों से गुजरना पड़ता है। लेकिन ईश्वर का प्रेम और उसकी अद्भुत कृपा हमारे जीवन में धूप और आशा की किरणें वापस ला सकती है। ईश्वर के प्रेम से संतृप्त होने पर दुःख हमें अंदर से बाहर तक बदलता है, हमें धीरे-धीरे प्रेम और करुणा से भरे लोगों में परिवर्तित करता है।

स्थिर आशा

नशे की लत के प्रभावों और उसके साथ आने वाले मानसिक विभ्रांति के प्रभावों से और साथ साथ मेरे बेटे की मौत के शोक से भी निपटने के कई वर्षों के दौरान, मैं येशु मसीह, मेरी चट्टान और मेरे उद्धारकर्त्ता से जुड़ी हुई हूं।

हमारे बेटे की मौत के बाद हमारे वैवाहिक जीवन को काफी नुकसान हुआ। लेकिन ईश्वर की कृपा से और उससे और मदद मांगने की हमारी इच्छा के कारण, हम प्रतिदिन एक-दूसरे से प्यार करते हैं और एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं। हमारे उद्धारकर्ता और हमारे प्रभु येशु मसीह में आशा रखने के लिए यह दैनिक समर्पण, विश्वास, स्वीकृति और प्रार्थना आवश्यक है।

हम में से प्रत्येक के पास दूसरों के साथ साझा करने के लिए अपने जीवन की एक कहानी है। अक्सर यह आनंद और आशा के मिश्रण के साथ दिल के दर्द, चुनौती और दुख की कहानी होती है। चाहे हम इसे स्वीकार करें या न करें, सच्चाई यह है कि हम सभी ईश्वर को खोज कर रहे हैं। जैसा कि संत अगस्टिन ने कहा है: “हे ईश्वर, तूने हमें अपने लिए बनाया है, और हमारा दिल तब तक बेचैन है जब तक यह तुझ में विश्राम नहीं पाता।”

ईश्वर की खोज में हम में से बहुत से लोगों ने ऐसे रास्ते निकाले हैं, जो अंधेरी और सुनसान जगहों की ओर हमें ले जाते हैं। हममें से कुछ लोगों ने उस मार्ग से भटक जाने से अपने आप को बचाकर रखा है और येशु के साथ गहरे संबंध की हमने तलाश की है। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपने जीवन के किस दौर से गुजर रहे हैं, क्योंकि आगे आशा और चंगाई ज़रूर है। हर पल ईश्वर हमें खोज रहा है। हमें बस इतना करना है कि हम अपना हाथ आगे बढ़ाएँ और उसे थामने दें और उसे हमारी अगुवाई करने दें।

“यदि तुम समुद्र पार करोगे, तो मैं तुम्हारे साथ होऊँगा। जलधाराएं तुम्हें बहा कर नहीं ले जायेंगी। यदि तुम आग पार करोगे, तो तुम नहीं जलोगे। ज्वालाएँ तुम को भस्म नहीं करेंगी; क्योंकि मैं, प्रभु, तुम्हारा ईश्वर हूँ; मैं इस्राएल का परम पावन उद्धारक हूँ। (इसायाह 43:2-3)

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By: Connie Beckman

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