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महामारी के कारण पाबन्दी के शुरुआती दिनों में जब मेरे लिए पवित्र मिस्सा बलिदान में भाग लेने का एक मात्र तरीका सीधा प्रसारण था, तो मुझे कुछ कमी महसूस हुई…
पवित्र आत्मा हमेशा हमारे दिलों में काम करता है, इसलिए मुझे आश्चर्य नहीं होना चाहिए था कि, कोविड-19 महामारी के शुरुआती दिनों की विश्वव्यापी उथल-पुथल के बीच, उसने मेरे दिल को मसीह के रहस्यमय शरीर के पूर्ण अनुभव केलिए खोल दिया।
जब मैंने यह खबर सुनी कि रेस्तरां, दुकानें, स्कूल और कार्यालय के साथ-साथ गिरजाघर भी बंद हो जाएंगे, तो मैंने सदमे और पूर्ण अविश्वास में प्रतिक्रिया व्यक्त की: “यह कैसे हो सकता है?” हमारे पल्ली से पवित्र मिस्सा बलिदान का सीधा प्रसारण देखना एक ही समय में परिचित भी था और परेशान करनेवाला अनुभव था। वहाँ टी.वी. पर हमारे पल्ली पुरोहित थे, जो सुसमाचार का पाठ कर रहे थे, अपने धर्मोपदेश दे रहे थे, रोटी और दाखरस पर अभिषेक प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन बेंचें खाली थीं। हमारी आवाज़ें कमज़ोर लग रही थीं, और हमारे कमरों से निकल रहे प्रार्थनाओं के जवाब उपयुक्त नहीं लग रहे थे। और यह परेशानी कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा हमें बताती है कि धर्मविधि “समुदाय के नए जीवन में विश्वासियों को शामिल करती है और इसमें सभी की ‘जागरूक, सक्रिय और फलदायी भागीदारी शामिल होती है” (सी.सी.सी. 1071)। हम अपनी पूरी क्षमता से भाग ले रहे थे, लेकिन समुदाय और सभी की भागीदारी गायब थी।
परम प्रसाद वितरण के समय कॉफी टेबल के पास घुटने टेक कर, मैंने आध्यात्मिक परमप्रसाद केलिए प्रार्थना पढ़ी जो टी.वी. के स्क्रीन पर थी, लेकिन मैं विचलित और अस्थिर थी। मैं जानती थी कि समर्पित रोटी वास्तव में येशु का शरीर है और परमप्रसाद का सेवन मुझे उसके साथ एकजुट कर सकता है और मुझे बदल सकता है। और मुझे यकीन था कि यह मेरे कमरे में सीधा प्रसारण देखने से नहीं होने वाला था। परम प्रसाद, येशु की वास्तविक उपस्थिति, पूर्ण रूप से अनुपस्थित थी।
मैं आध्यात्मिक परमप्रसाद के बारे में कुछ नहीं जानती थी। बाल्टीमोर की धर्मशिक्षा मुझे बताती है कि आध्यात्मिक परम प्रसाद उन लोगों केलिए है जिन्हें “परम प्रसाद ग्रहण करने की वास्तविक इच्छा है जब इसे संस्कारिक रूप से प्राप्त करना असंभव है।” यह इच्छा हमें इच्छा की शक्ति के अनुपात में परमप्रसाद की कृपा प्राप्त कराती है। (बाल्टीमोर कैटेचिज्म, 377) हालांकि यह दर्दनाक सच था कि संस्कारिक रूप से परम प्रसाद ग्रहण करना असंभव था, मुझे यह कहते हुए खेद है कि उस सुबह मेरी इच्छा केवल परिचित दिनचर्या केलिए थी। मैं विचलित, अस्थिर और असंतुष्ट थी।
पहले रविवार ने दूसरे और तीसरे का स्थान ले लिया, और फिर पुण्य बृहस्पतिवार और पुण्य शुक्रवार का। यह एक विलक्षण नाटकीय चालीसा काल था, जिसमें इतने सारे परहेज थोप दिए गए थे, ऐसे परहेज जिनकी मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। इन परहेजों को मैंने कुछ ज्यादा ही अनिच्छा से स्वीकार किया। हालाँकि, ईश्वर अच्छा है, और मेरे अपूर्ण परहेजों का भी कुछ फल प्राप्त हुआ। इन धार्मिक अनुष्ठानों में जो कमी लग रही थी था उस पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, मैंने उन लोगों के बारे में सोचना शुरू कर दिया जो “सामान्य” समय में भी इनमें शामिल नहीं हो पाते थे। नर्सिंग होम निवासी, कैदी, बुजुर्ग, बीमार और विकलांग लोग जो अकेले थे और दूरदराज के स्थानों में रहनेवाले लोग जहां कोई पुरोहित नहीं है। उन काथलिक लोगों केलिए, पवित्र मिस्सा बलिदान का प्रसारण भर देख पाना शायद एक आशीर्वाद था, येशु और उसकी कलीसिया के साथ एक सेतु। मैं जल्द ही फिर से मिस्सा बलिदान में भाग लेने केलिए उत्सुक थी; पर उनके लिए यह संभव नहीं था।
इन अन्य काथलिकों केलिए यह कैसा था, जो संस्कार प्राप्त करते भी थे तो, केवल कभी-कभार ही प्राप्त कर पाते थे। वे कलीसिया के सदस्य हैं, ईसा मसीह के रहस्यमय शरीर के, मेरे जैसे ही, फिर भी एक पल्ली समुदाय से काफी हद तक अलग हैं। जैसे-जैसे मैं उनके बारे में अधिक सोचने लगी, और अपनी निराशाओं के बारे में कम सोचने लगी, मैंने उन केलिए प्रार्थना करना भी शुरू कर दिया। और पवित्र मिस्सा के दौरान, मैंने उनके साथ प्रार्थना करना आरम्भ किया। एक तरह से वे, मेरे आसपास के लोग, मेरे रविवारीय मिस्सा बलिदान के समुदाय बन गए, कम से कम मेरे विचारों में। अंत में, मैं सचेत रूप से और सक्रिय रूप से पवित्र मिस्सा बलिदान के सीधा प्रसारण में भाग ले सकी। मसीह के रहस्यमय शरीर के सदस्यों के साथ एकजुट होकर, मैं वास्तव में येशु के साथ एक होना चाहती थी, और आध्यात्मिक भोज अनुग्रह का एक शांतिपूर्ण, फलदायी क्षण बन गया।
सप्ताह दर सप्ताह बीत गए, और यह नई असमान्य स्थिति पास्का काल में बदल गई। एक रविवार को, पवित्र मिस्सा बलिदान के सीधा प्रसारण के बाद, हमारे पल्ली पुरोहित ने घोषणा की कि एक स्थानीय भोजन भंडार लोगों की मदद की सख्त जरूरत में थी। जब गिरजाघरों ने अपने दरवाजे बंद कर दिए तो भोजन दान में कटौती कर दी गई, फिर भी हर हफ्ते भोजन की आवश्यकता वाले परिवारों की संख्या कई गुना बढ़ रही थी। मदद करने केलिए, हमारी पल्ली शुक्रवार को ड्राइव-अप भोजन संग्रह आयोजित करेगी। “पल्ली छह सप्ताह केलिए बंद कर दी गयी है।” मैंने सोचा, “क्या कोई आएगा?”
लोग ज़रूर आये। मैंने उस शुक्रवार को स्वेच्छा से मदद की, और जैसे ही मैंने गाड़ी चालकों को पार्किंग स्थल के पीछे ड्रॉप-ऑफ साइट पर निर्देशित किया, तब उन सारे परिचित, मुस्कुराते चेहरों को देख कर बहुत अच्छा लगा। इससे भी बेहतर कार्य यह हुआ कि दान का अंबार किसी की अपेक्षा से कहीं अधिक बढ़ रहा है। उस भोजन संग्रह का हिस्सा बनना उत्साहजनक था; मेरा मानना है कि यह पवित्र आत्मा के कार्य करने का परिणाम था। पवित्र आत्मा ने हमारे बिखरे हुए पल्ली समुदाय को एकत्रित किया था कि वे स्वयं जरूरतमंद लोगों की देखभाल करनेवाले येशु मसीह के जीवित शरीर बन जाएँ। जैसे ही पवित्रात्मता ने मेरे व्यक्तिगत प्रार्थना-जीवन को मसीह के रहस्यमय शरीर के साथ एक बड़ी एकजुटता विकसित करने केलिए प्रेरित किया, उसने स्वयं को, जरूरत मंद लोगों की सेवा करने की इच्छा के साथ, जब हम एक साथ इकट्ठा नहीं हो सके, तब भी इस तरह हमारे पल्ली समुदाय में काम करते हुए प्रकट किया।
'मेरे बच्चों की आया के ताड़ना भरे शब्दों को सुनकर मैं स्तब्ध होकर अविश्वास भरी दृष्टि से देख रही थी। उसके निराशाजनक रूप और लहजे से मेरा उलझन तथा घबराहट और अधिक बढ़ गया।
मानवीय अनुभव में अस्वीकृति या आलोचना के दंश का एहसास सब केलिये सामान है। किसी भी समय हमारे व्यवहार या चरित्र के बारे में चापलूसी भरे शब्दों को सुनना आसान है, और कडवी बातों को सुनना कठिन है, लेकिन विशेष रूप से यह और कठिन होता है जब आलोचना अनुचित या गलत होती है। जैसा कि मेरे पति अक्सर कहते थे, “धारणा वास्तविकता है; “मैं बार-बार उस बयान की सच्चाई देख चुकी हूं। इस प्रकार, जब हमारे कार्यों पर दूसरों के द्वारा प्रकट किये गए फैसले हमारे दिल के इरादों को प्रतिबिंबित नहीं करता है, तब आरोप सबसे अधिक गहरा घाव करते हैं। कुछ वर्ष पहले, मैं ऐसे एक व्यक्ति के कृत्यों की भुक्तभोगी थी जिसने मेरे इरादों को गलत समझा था ।
चमत्कार की प्रतीक्षा में
उस समय, मैं लगभग 30 वर्ष की माँ थी, जो दो शिशुओं को पाकर बहुत खुश और आभारी थी। गर्भधारण के लिए पूरे इरादे के साथ, सही समय पर प्रयास करने के बावजूद, पूरे एक साल तक माता-पिता बनना मेरे पति और मेरे लिए केवल एक सपना ही बनकर रह गया था। स्त्री रोग विशेषज्ञ से एक और मुलाकात के बाद उनके कार्यालय को छोड़ते वक्त, मैंने अनिच्छा से अपरिहार्य लग रही सच्चाई को स्वीकार कर लिया था| अब हमारा एकमात्र विकल्प प्रजनन दवाओं का उपयोग करना था। कार की ओर बढ़ते हुए मैंने निराशाजनक टिप्पणी की, “हमें घर जाते समय दवा लेने केलिए फार्मेसी में रुकना चाहिए क्या?” तभी मैंने अपने पति को यह कहते हुए सुना, “परमेश्वर को एक और महीने की मोहलत दे कर देखते हैं।” क्या?? हमने पहले ही उसे एक साल की मोहलत दे दी थी और अब हमारी शादी को दो साल हो चुके हैं। हमारा वैवाहिक और पारिवारिक जीवन का पौधा फलने-फूलने में समय ले रहा था। साल जुड़ते गए और अब मैं 33 साल की हो गयी थी और अपनी “जैविक घड़ी” की लगातार टिक-टिक सुन रही थी। अब घर जाते हुए, मुझे लगा कि मैं उस दवा को शुरू करने के लिए एक महीना और इंतजार कर सकती हूं…
एक दिन जब मैं बाथरूम में थी और जैसे ही मुझे एहसास हुआ कि मेरे कोख में बच्चा है, वैसे ही एक अनोखी उत्तेजना ने मुझे जकड़ ली, और मैं बेतहाशा चिल्लाती हुई बाथरूम से बाहर भागी, “मै गर्भवती हूँ!!” 10 दिन बाद मैंने अपने प्रार्थना समुदाय या यूँ कहें “विश्वासी परिवार” के सामने खड़ी होकर इस खुशखबरी की घोषणा की, यह जानते हुए कि इनमें से कई दोस्त इस बच्चे के अस्तित्व के लिए महीनों से हमारे साथ प्रार्थना कर रहे थे।
झूलता हुआ लोलक
अब, चार साल बाद, लंबे समय से प्रतीक्षित हमारी बच्ची क्रिस्टन, और हमारा मिलनसार एक वर्षीय बेटा टिम्मी दोनों थे, और मैं एक दिन कार्यालय से अपने बच्चों के डे केयर सेंटर पर पहुंची, तब मैंने अचानक बच्चों की आया, “मिस फीलिस” के कडवे शब्दों को सुना। “इन बच्चों के विद्रोह को कुचलने की ज़रूरत है”, उसका यह वाक्यांश, मेरे तरीकों की स्पष्ट त्रुटि के परिणामों को रेखांकित करता हुआ, लंबे समय से लिखे गए पवित्र धर्मशास्त्र के समान प्रतीत हो रहा था। उसके निराशाजनक रूप और लहजे ने मेरे उलझन और घबराहट को और अधिक बढ़ा दिया।
मैं अपना बचाव करना चाहती थी, यह बताना चाहती थी कि कैसे मैंने एक के बाद एक अच्छी परवरिश देने की किताबें पढ़ीं थीं और मैंने “विशेषज्ञों” के सुझाव के अनुसार सब कुछ करने की कोशिश की थी। मैं हकलाती हुई बोली कि मैं अपने बच्चों से कितना प्यार करती हूँ और एक अच्छी माँ बनने के लिए पूरे दिल से कोशिश कर रही हूँ। अपने आंसुओं को रोकते हुए, मैं अपने बच्चों को लेकर मिस फीलिस के उस सेंटर से निकल गयी।
घर पहुँचकर, मैंने टिम्मी को सुलाने के लिए लिटाया और क्रिस्टन को उसके कमरे में एक किताब देकर बिठाया, ताकि जो कुछ हुआ था उस पर विचार करने के लिए मेरे पास कुछ समय हो। मेरे जीवन में कोई भी संकट या समस्या आने पर मेरी सामान्य प्रतिक्रिया तुरंत प्रार्थना करना होता है। इसी के अनुसार, मैंने प्रार्थना शुरू की और अच्छी समझ के लिए प्रभु की सहायता मांगी। मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास दो विकल्प थे: या तो मैं उस महिला के शब्दों को अस्वीकार करूं जो अब तक मेरी 13 महीने की बेटी के लिए एक धैर्यवान, प्यार करने वाली अच्छी आया थी।
दूसरा विकल्प यही था कि मैं अपने कार्यों को सही ठहराने की कोशिश करने का प्रयत्न करूं, अपने इरादों पर फिर से जोर दूं और अपने बच्चों के लिए एक नयी आया खोजने की प्रक्रिया शुरू करूं। या मैं इस बात की जांच करूं कि किस वजह से उस महिला को अस्वाभाविक रूप से प्रतिक्रिया करनी पड़ी और यह देखती कि क्या वास्तव में उसकी तीखी चोट में सच्चाई का अंश था। मैंने यही विकल्प चुना, और जैसे ही मैंने प्रभु की मदद की खोज की, मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपने बच्चों के प्रति प्रेम और दया की दिशा में अपनी ममतारूपी लोलक को बहुत दूर तक झूलने दिया है। मैंने अपने बच्चों की अवज्ञा का बहाना बनाने के लिए उनकी कम उम्र का सहारा लिया था, यह विश्वास करते हुए कि अगर मैं उन पर प्यार उंडेल दूंगी, तो वे मेरी आज्ञानुसार ही कार्य करेंगे।
गिरने से पहले
मैं यह दिखावा नहीं कर सकती थी कि फीलिस के शब्दों से मुझे कोई ठेस नहीं पहुंची थी। उसके शब्दों ने मुझे गहरा घाव दिया था। मेरे पालन-पोषण के बारे में उसकी धारणा वास्तव में सच थी या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इस बात का महत्त्व था कि क्या मैं खुद को विनम्र बनाने और इस स्थिति से सीखने को तैयार थी या नहीं। कहा जाता है कि “गिरने से पहले अभिमान चला जाता है”, और यह सच है कि मैं पहले से ही आदर्श पालन-पोषण के उस पायदान से काफी दूर गिर चुकी थी जो मैंने अपने लिए निर्धारित किया था। मैं निश्चित रूप से अपने अभिमान और चोट पर टिके रहकर एक और पतन बर्दाश्त नहीं कर सकती थी । यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि किताबें लिखने वाले “विशेषज्ञ” लोगों को हमेशा सुनने की ज़रुरत नहीं है। कभी-कभी अनुभव की आवाज़ को ही ध्यान देने की ज़रुरत है।
अगली सुबह, मैंने बच्चों को गाडी में बिठाया और क्रिस्टन और टिम्मी की देखभाल करने वाली फीलिस के घर तक के उस परिचित रास्ते पर चल पड़ी। मुझे पता था कि भविष्य में उनसे मिलने वाली सलाह से हर बार मैं सहमत नहीं हो पाऊंगी, लेकिन मैं यह जानती थी कि हमारे परिवार की भलाई के लिए, मुझे चुनौती देने का जोखिम उठाने वाली एक बुद्धिमान और साहसी महिला की जरूरत होगी। आख़िरकार, “शिक्षण” शब्द “शिष्य” शब्द से आया है, जिसका अर्थ है “सीखना।” मैं कई वर्षों तक येशु की शिष्य रही, उनके आदर्शों और सिद्धांतों को जीने का प्रयास करती रही। जब मैंने अपने जीवन में बार-बार उसके स्थायी प्रेम का अनुभव किया तो मैं उस पर भरोसा करने लगी। मैं अब इस अनुशासन को स्वीकार करूंगी, यह जानते हुए कि यह प्रभु के प्यार का प्रतिबिंब है जो न केवल मेरे लिए, बल्कि हमारे परिवार के लिए भी सर्वश्रेष्ठ चाहता है ।
कार से बाहर निकलते हुए, हम तीनों सामने के दरवाजे के पास पहुंचे, मेरी आंखों के सामने लकड़ी पर, हाथ से बनी हुई पट्टी लगी थी, जिसे मैं एक बार फिर से पढ़ने के लिए रुकी, “मैं और मेरा परिवार, हम सब प्रभु की सेवा करेंगे।” हाँ, फिलिस ने यही किया था। अगर हमारे पास सुनने के लिए कान हो तो प्रभु हमारे लिए हर दिन ऐसा ही करते हैं, वह “उन लोगों को अनुशासित करते हैं जिनसे वह प्यार करते हैं।” येशु, हमारे शिक्षक, उन लोगों के माध्यम से काम करते हैं जो दूसरे व्यक्ति की भलाई के लिए अस्वीकृति का जोखिम उठाने को तैयार हैं। निश्चित रूप से, फीलिस उनके नक्शे-कदम पर चलने का प्रयास कर रही थी। यह पहचानते हुए कि इस आस्थावान महिला का इरादा हमारे गुरु प्रभु येशु से सीखी गई बातों को मेरे लाभ के लिए मुझ तक पहुंचाने का था, मैंने सामने का दरवाज़ा खटखटाया। जैसे ही हमें अन्दर प्रवेश करने की इजाजत देने के लिए वह दरवाज़ा खुला, वैसे ही मेरे दिल का दरवाजा भी खुला।
'जब आपकी आत्मा थक जाती है और आप नहीं जानते कि अपने मन को कैसे शांत करें…
आप शायद इस बात से परिचित होंगे कि कैसे असीसी के संत फ्रांसिस ने एक बार पूछा था: “हे ईश्वर, तू कौन है, और मैं कौन हूँ?” उन्होंने समर्पण के रूप में अपने हाथों को ऊपर उठाया, और जब उन्होंने कहा: “हे ईश्वर, मैं कुछ भी नहीं हूं, लेकिन यह सब आपका है”, तब उन हाथों में से एक सुनहरी गेंद ऊपर की ओर उठी।
उपरोक्त घटना का वर्णन मैं ने पहली बार एक आत्मिक साधना के दौरान सुना था जहाँ हमें इसी प्रश्न पर विचार करने का काम सौंपा गया था: हे मेरे ईश्वर, तू कौन है, और मैं कौन हूँ? प्रार्थनालय में, पवित्र संस्कार के सामने, मैंने अपने घुटनों पर गिरकर और वह प्रार्थना की।
परमेश्वर ने मेरे हृदय को मेरे सामने प्रकट किया, जो पुराने खून से लथपथ पट्टियों की परतों से ढका हुआ, घायल और कड़ा हो चुका था। मैं ने महसूस किया कि इन वर्षों में, मैं ने अपने हृदय की सुरक्षा केलिए उसके चारों ओर दीवारें बना ली थीं। उस प्रार्थनालय में, मुझे एहसास हुआ कि मैं खुद को ठीक नहीं कर सकती; मुझे बचाने केलिए ईश्वर की ज़रूरत थी। मैंने उसे रोते हुए कहा: “मेरे पास तुझे देने केलिए कोई सुनहरी गेंद नहीं है, मेरे पास बस मेरा घायल दिल है!” मैंने महसूस किया कि ईश्वर ने उत्तर दिया: “मेरी प्यारी बेटी, तुम्हारा दिल ही वह सुनहरी गेंद है। इसे मैं लूंगा।”
आंसुओं में भीगे हुए, मैंने अपने दिल को अपने सीने से निकालने का अभिनय किया, और अपने हाथ आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा: “हे ईश्वर, मैं कुछ भी नहीं हूं, लेकिन यह सब तेरा है।” मैं प्रभु की उपस्थिति से भर गयी थी, और मुझे पता था कि जिस पीड़ा ने मुझे जीवन भर बंधन में रखा था, मैं उससे पूरी तरह से ठीक हो गयी हूं। मेरे बगल की दीवार पर मैं ने रेम्ब्रांट की “रिटर्न ऑफ द प्रोडिगल सन” (उडाऊ पुत्र की वापसी) की एक प्रति देखी और तुरंत मुझे लगा कि मेरे स्वर्गिक पिता ने अपने घर में फिर से मेरा स्वागत किया है। मैं गरीबी और संकट में, अयोग्य और पश्चाताप महसूस करते हुए लौटी उड़ाऊ बेटी थी, जिसे उसने अपनी बेटी के रूप में स्नेहपूर्वक अपनाया।
अक्सर, प्रेम के बारे में हमारी अपनी सांसारिक समझ बनती है। इस के कारण, ईश्वर हमारे लिए क्या कर सकता है इस बात की हमारी समझ सीमित और भ्रमित हो जाती है। मानव प्रेम, चाहे कितना भी नेक नीयत का क्यों न हो, वह शर्तयुक्त है, बेशर्त नहीं। परन्तु ईश्वर का प्रेम अटल और असाधारण है! उदारता में ईश्वर कभी भी मात नहीं खाता; वह अपने प्रेम से हमें कभी भी वंचित नहीं रखेगा।
ईश्वर को अपने सर्वश्रेष्ठ में से केवल जिनका हम अवमूल्यन करते हैं, उन हिस्सों को अर्पित करने केलिए हमारा अहंकार या भय हमें प्रेरित करता है, और इस तरह का अर्पण ईश्वर को हमारे उन हिस्सों को परिवर्तित करने से रोकता है जिनका हम अवमूल्यन करते हैं। उसकी चंगाई प्राप्त करने केलिए, हमें अपना सब कुछ उसे सौंप देना चाहिए और उसे निर्णय लेने देना चाहिए कि वह हमें कैसे बदलेगा। ईश्वर का उपचार या चंगाई अक्सर अप्रत्याशित होती है। इस केलिए हमारे पूर्ण विश्वास की आवश्यकता है। इसलिए, हमें ईश्वर की बात सुननी चाहिए जो हमारे लिए सर्वोत्तम चाहता है। ईश्वर को सुनना तब शुरू होता है जब हम अपना सब कुछ उसे समर्पित कर देते हैं। अपने जीवन में ईश्वर को प्रथम स्थान देकर, हम उसके साथ सहयोग करना शुरू करते हैं। ईश्वर हमारा संपूर्ण अस्तित्व चाहता है – अच्छा, बुरा और कुरूप, क्योंकि वह इन अंधेरी जगहों को अपनी उपचारात्मक रोशनी से बदल देना चाहता है। ईश्वर हमारी लघुता और टूटेपन में उसे खोजने केलिए धैर्यपूर्वक हमारी प्रतीक्षा करता है।
आइए हम ईश्वर के पास दौड़ें और उसे गले लगा लें जैसे खोया हुआ बच्चा अपने पिता के पास घर लौटता है, यह जानते हुए कि पिता उसे खुली बांहों से स्वीकार करेगा। हम संत फ्रांसिस की तरह प्रार्थना कर सकते हैं: “हे ईश्वर, मैं कुछ भी नहीं हूं, लेकिन यह सब तेरा है” यह भरोसा करते हुए कि वह हमें परिवर्तनकारी आग से शुद्ध कर देगा और कहेगा: “मैं यह सब ले लूंगा, और तुम्हें बिल्कुल नया बना दूंगा।”
'एक जहरीली मकड़ी के काटने के बाद अर्ध-लकवाग्रस्त मारिसाना अरम्बासिक को लगा कि उसका जीवन समाप्त हो रहा है। वह किसी चमत्कार के इंतज़ार में रोजरी माला का सहारा ली हुई थी|
मैं बहुत लंबे समय से पर्थ, ऑस्ट्रेलिया में रह रही हूं, लेकिन मैं मूल रूप से क्रोएशिया की हूं। जब मैं आठ साल की थी तब मैंने एक चमत्कार देखा। माता मरियम की शक्तिशाली मध्यस्थता से अपंग पैरों वाला एक 44 वर्षीय व्यक्ति ठीक हो गया। हम में से कई लोगों ने यह चमत्कार देखा। मुझे अभी भी याद है कि उस आदमी के ठीक होने के बाद मैं उनके पास दौड़कर गयी थी और आश्चर्यचकित होकर उनके पैर छू रही थी। इस अनुभव के बावजूद, जब मैं बड़ी हुई तो मैं परमेश्वर से दूर हो गयी। मुझे विश्वास था कि यह दुनिया और यहाँ की सांसारिकता मेरी सीप है। मुझे केवल अपने जीवन का आनंद लेने की परवाह थी। मेरी माँ चिंतित थी क्योंकि मैं गलत तरीके से जीवन का आनंद ले रही थी। वह नियमित रूप से मेरे लिए प्रार्थना करती थी। उन्होंने माता मरियम से मेरी लिए प्रार्थना की। हालाँकि मेरी माँ ने 15 वर्षों तक उत्साहपूर्वक प्रार्थना की, फिर भी मेरे व्यवहार में कोई सुधार नहीं हुआ। जब मेरी माँ ने मेरे बारे में स्थानीय पुरोहित को बताया, तो उन्होंने कहा, “वह इस समय पाप में जी रही है। एक बार जब वह पाप करना बंद कर देगी, तो परमेश्वर उसे उसके घुटनों पर लाएगा, पवित्र मिस्सा के माध्यम से सभी अनुग्रह बरसाए जाएंगे, और चमत्कार होंगे |”
वह विषैला दंश
जब मैं 33 वर्ष की हुई तो यह भविष्यवाणी सच हो गई। मैं अपने बच्चे का पालन पोषण अकेली कर रही थी। एक अकेली माँ के रूप में, मैं जीवन के सबसे निचले तह पर पहुंच चुकी थी। धीरे-धीरे, मैं वापस परमेश्वर की ओर मुड़ गयी। मैंने कठिन समय में माता मरियम की सहायता का अनुभव किया। एक दिन, एक सफेद पूंछ वाली मकड़ी ने मेरे बाएं हाथ पर काट लिया। यह ऑस्ट्रेलिया में ख़ास पायी जानेवाली जहरीली मकड़ी थी। हालाँकि मेरा स्वास्थ्य अच्छा था, फिर भी मेरा शरीर इस मकड़ी के काटने से उबर नहीं सका। वह दर्द भयानक था| मेरे शरीर का बायाँ हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था। मैं अपनी बायीं आँख से नहीं देख सकती थी। मेरी छाती, मेरा दिल और मेरे सभी अंगों में मैं ऐसे महसूस कर रही थी, जैसे उनमें ऐंठन हो रही हो। मैंने विशेषज्ञों से मदद मांगी और उनकी बताई दवाएं लीं, लेकिन मेरी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।
अपनी हताशा के समय में, मैंने अपनी रोज़री माला उठाई और ऐसी प्रार्थना की जैसे पहले कभी नहीं की थी। सबसे पहले, मैं प्रतिदिन घुटनों के बल बैठकर माला विनती की प्रार्थना करती थी। जल्द ही मेरी हालत और अधिक खराब हो गई और मैं अब घुटनों के बल नहीं बैठ पा रही थी। मैं ने बिस्तर पकड़ लिया था| मेरे पूरे चेहरे पर छाले पड़ गये थे और लोग मेरी ओर देखने से भी कतराते थे। इससे मेरा दर्द और बढ़ गया. मेरा वजन भारी मात्रा में कम होने लगा। एकमात्र चीज़ जो मैं खा सकती थी वह सेब था। अगर मैं कुछ और चीज़ खाती थी तो मेरे शरीर में ऐंठन होने लगती। मैं एक बार में केवल 15-20 मिनट ही सो पाती थी, और ऐंठन के साथ जाग जाती थी। मेरे स्वास्थ्य का इस तरह बिगड़ना मेरे बेटे के लिए कठिन था, जो उस समय 15 वर्ष का था। उसने वीडियो गेम खेलकर इस मुसीबत से अपने आप को दूर कर लिया। हालाँकि मैं अपने माता-पिता और भाई-बहनों के संपर्क में थी, लेकिन वे सभी विदेश में रहते थे। जब मैंने उन्हें अपनी स्थिति के बारे में बताया, तो मेरे माता-पिता तुरंत मेडजुगोरे गए, जहां वे एक पुरोहित से मिले जिन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की।
उस समय, मैं अपनी रसोई के फर्श पर एक गद्दे पर लेटी हुई थी, क्योंकि एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। अचानक, उठने और चलने में मैं सक्षम हो गई, हालाँकि मुझे अभी भी कुछ दर्द हो रहा था। मैंने अपनी बहन को फोन किया और तब पता चला कि एक पुरोहित ने मेरे ठीक होने के लिए माता मरियम की मध्यस्थता के लिए प्रार्थना की थी। मैंने सोचना बंद नहीं किया। मैंने तुरंत मेडजुगोरे जाने के लिए टिकट खरीदे। मैं चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह के विरुद्ध जा रही थी। मेरी रोग-प्रतिरोधक-क्षमता कम थी और मेरा शरीर कमजोर था। फिर भी, मैंने जाने का फैसला किया।
पहाड़ी पर
जब मैं क्रोएशिया पहुंची, तो मेरी बहन ने मुझसे हवाई अड्डे में मुलाकात की और हम उसी शाम मेडजुगोरे पहुंचे। मैं उस पुरोहित से मिली जिसने मेरे माता-पिता के साथ प्रार्थना की थी। उन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की और मुझे अगले दिन उस पहाड़ी पर चढ़ने के लिए कहा जिस पर माँ मरियम ने दर्शन दिए थे। उस समय भी, मैं सेब के अलावा कुछ भी नहीं खा पा रही थी और अगर खाती तो मेरा गला बंद हो जाता। उस समय भी मेरे पूरे शरीर पर छाले थे। फिर भी जहां माता मरियम प्रकट हुई थीं, उस पहाड़ी पर चढ़ने के लिए मैं अपने आप को रोक नहीं सकी। मेरी बहन मेरे साथ आना चाहती थी, लेकिन मैं अकेली जाना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि कोई मेरा दुःख देखे। जब मैं ऊपर पहुंची तो बर्फबारी हो रही थी।
वहां ज्यादा लोग नहीं थे। मैंने माता मरियम के साथ एक खास पल बिताया। मुझे लगा कि वह मेरी प्रार्थना सुन रही है। मैंने माँ से अपने लिए जीवन की दूसरी पारी माँगी और अपने बेटे के साथ अधिक समय बिताने का अवसर मांगा। मैंने प्रार्थना की, “येशु, मुझ पर दया कर।”
जैसे ही मैं पहाड़ी से नीचे आयी, मैं ‘हे हमारे पिता’ की प्रार्थना कर रही थी। जैसे ही मैंने ‘हमारी प्रतिदिन की रोटी आज हमें दे’ कहा तो मुझे दुख हुआ, क्योंकि मैं रोटी नहीं खा सकती थी। मैं परम प्रसाद की रोटी प्राप्त करने के लिए बहुत उत्सुक थी, लेकिन मैं उसे नहीं खा सकती थी। मैंने प्रार्थना की कि मैं फिर से रोटी खा सकूं। उस दिन मैंने कुछ खाने का निश्चय किया और खाना खा लिया। खाने के बाद मेरे शरीर में किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं थी| उसके बाद, मैं लगातार दो घंटे तक सोयी। दर्द और मेरे शरीर में बीमारी के अन्य लक्षण कम हो चुके थे। ऐसा लगा मानो धरती पर स्वर्ग हो।
अगले दिन मैं वापस गयी और ‘येशु की पहाड़ी’ पर चढ़ गयी जिसकी चोटी पर एक बड़ा क्रूस है। वहां मुझे अत्यधिक शांति का अनुभव हुआ। मैंने परमेश्वर से मेरे पापों को दिखाने के लिए कहा। जैसे-जैसे मैं चढ़ती गयी, परमेश्वर ने धीरे-धीरे उन पापों को प्रकट किया जिन्हें मैं भूल गयी थी। जैसे ही मैं पहाड़ी से नीचे उतरी, मैं पाप स्वीकार के लिए जाने को उत्सुक थी। मैं खुशी से भरी हुई थी। भले ही बीमारी से मुक्ति पाने में थोड़ा समय लगा, लेकिन अब मैं पूरी तरह ठीक हो गयी हूं।
पीछे मुड़कर देखने पर मुझे एहसास होता है कि मेरे सभी कष्टों ने मुझे एक बेहतर इंसान बना दिया है। मैं अब अधिक दयालु और क्षमाशील हूं। जीवन में कष्ट और दुःख पीड़ा, किसी भी व्यक्ति को अकेलापन और हताशा का अनुभव करा सकता है। आपकी आर्थिक स्थिति, विवाह, पारिवारिक जीवन सहित सब कुछ बिखर सकता है। ऐसे समय में, आपको आशा रखने की ज़रूरत है। विश्वास आपको अज्ञात क्षेत्र में कदम रखने की ताकत देता है और तूफान के गुजर जाने तक अपने क्रूस को ढोते हुए, अपरिचित राह पर चलने की अनुमति देता है।
'वर्तमान विश्व की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक यह गलत धारणा है कि विज्ञान और धर्म के बीच युद्ध होना ही है…
मैंने अपने प्राथमिक और माध्यमिक पढ़ाई का पूरा समय सरकारी स्कूलों में बिताया है जहां आस्था और धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के बीच टकराव है। वर्षों से, मैंने बार बार यह घोषणा सुनी है कि आस्था और वास्तविक दुनिया एक साथ नहीं चल सकते। आस्था उन लोगों के लिए है जिन्हें गुमराह किया गया है, जो दिवास्वप्न देखते हैं और जो जीवन को उसके वास्तविक रूप में देखने से इनकार करते हैं। कई लोगों की नज़र में धर्म पुराने ज़माने का विचार है, जिसकी अब कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि हमारे पास यह सब समझाने के लिए आधुनिक विज्ञान और दर्शनशास्त्र है। यह टकराव मेरे विज्ञान पाठ्यक्रमों में हमेशा सबसे अधिक दिखाई देता था। शिक्षकों तथा छात्रों द्वारा यह बताया गया है कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर और विज्ञान दोनों में विश्वास नहीं कर सकता है। दोनों बस परस्पर अनन्य हैं। मेरे लिए, सत्य से बढ़कर कुछ भी नहीं हो सकता। मेरी नज़र में, प्रकृति की हर चीज़ ईश्वर के अस्तित्व को साबित करने का काम करती है।
ईश्वर की उत्तम योजना
जब हम प्राकृतिक दुनिया को देखते हैं, तो सब कुछ बहुत ही उत्तम तरीके से या अभियांत्रिक तरीके से निर्मित किया गया है। पृथ्वी पर जीवन का समर्थन करने के लिए सूर्य एकदम सही दूरी पर है। बिना किसी उद्देश्य के समुद्र में रहने वाले जीव वास्तव में पृथ्वी को अन्य प्रजातियों के लिए रहने योग्य बनाए रखने के लिए हमारे समुद्र और वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने का काम करते हैं। अंतरिक्ष में कई मील दूर चंद्रमा का चक्र हमारे ठीक सामने ज्वार-भाटा बदलने का कारण बनता है। जब हम करीब से देखते हैं तो प्रकृति में प्रतीत होने वाली यादृच्छिक घटनाएं भी इतनी यादृच्छिक नहीं होती हैं।
जब मैं उच्चविद्यालय में एक कनिष्ट छात्रा थी, मैंने पर्यावरण विज्ञान में पाठ्यक्रम लेने का निर्णय लिया। यह मेरी पसंदीदा विषय था और हम ने प्रकृति के चक्रों के बारे में सीखा। नाइट्रोजन चक्र ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया। नाइट्रोजन पौधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, फिर भी नाइट्रोजन, अपने वायुमंडलीय रूप में, उस उद्देश्य के लिए उपयोग योग्य नहीं है। नाइट्रोजन को वायुमंडल से उपयोगी रूप में परिवर्तित करने के लिए मिट्टी में जीवाणु या बिजली की चमक की आवश्यकता होती है। बिजली की चमक, जो इतना यादृच्छिक और महत्वहीन लगता है, वह कहीं अधिक बड़े उद्देश्य को पूरा करता है!
हमारे जीवन के लिए ईश्वर की योजना की तरह, प्रकृति पूरी तरह से एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। यहां तक कि छोटी सी छोटी चीज़ में भी कारणों और प्रभावों की एक शृंखला होती है, जो एक अंतिम उद्देश्य को पूरा करती है, जो अपनी जगह से गायब हो जाने पर दुनिया के भाग्य को बदल देगी। चंद्रमा के बिना, अनगिनत जानवर और पौधे जो भोजन के लिए ज्वार भाटा के उतार-चढ़ाव पर निर्भर हैं, मर जाएंगे। बिजली के उन “यादृच्छिक” गाज के बिना, मिट्टी की उर्वरता कम होने के कारण हमारे पौधे बढ़ नहीं पाएंगे।
इसी तरह, हमारे जीवन की हर घटना, चाहे वह कितनी भी भ्रामक या महत्वहीन क्यों न लगे, पहले से ही अनुमानित और हमारे लिए ईश्वर की तैयार की गई योजना में शामिल हो जाती है, बर्शते हम अपनी इच्छाओं को उसकी इच्छा के अनुरूप बनाते हैं। यदि प्रकृति में हर चीज़ का एक उद्देश्य है, तो हमारे जीवन में भी हर चीज़ का बड़ा अर्थ होना चाहिए।
सृष्टि में सृष्टिकर्ता
मैं हमेशा सुनती आई हूँ कि हम ईश्वर को तीन चीजों में पाते हैं: सत्य, सौंदर्य और अच्छाई।
प्रकृति के कार्य का तार्किक विश्लेषण सत्य के प्रमाण के रूप में और ईश्वर उस सत्य को कैसे मूर्त रूप देता है इसके बारे में सबूत के तौर पर काम कर सकता है। लेकिन ईश्वर न केवल सत्य का प्रतीक है, बल्कि सौंदर्य का सार भी है। इसी तरह, प्रकृति न केवल चक्रों और कोशिकाओं की एक प्रणाली है, बल्कि बेहद खूबसूरत भी है, जो ईश्वर के कई पहलुओं का एक और प्रतिनिधित्व है।
प्रार्थना करने के लिए, समुद्र के बीच में मेरे सर्फ़बोर्ड, मेरी पसंदीदा जगहों में से एक रही है। ईश्वर की रचना की सुंदरता को चारों ओर देखने का अवसर मुझे सृष्टिकर्ता के बहुत करीब लाता है। लहरों की ताकत का एहसास और विशाल समुद्र के बीच अपनी लघुता की पहचान हमेशा मुझे ईश्वर की अपार शक्ति की याद दिलाती है। पानी हर जगह है और हर चीज़ में मौजूद है, यह हमारे भीतर है, समुद्र के भीतर है, आकाश के भीतर है, और प्रकृति में पौधों और जानवरों के भीतर है।
जब यह पानी ठोस, तरल, गैस में परिवर्तित होता है, तब भी यह पानी ही रहता है। यह हमें याद दिलाता है कि ईश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के रूप में मौजूद है। सभी जीवित चीज़ें अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए पानी पर निर्भर हैं। हमें न केवल पानी की आवश्यकता है, बल्कि हमारे शरीर में भी बड़ी मात्रा में पानी होता है। ईश्वर भी सर्वव्यापी है; वह समस्त जीवन का स्रोत और जीवन को कायम रखने की कुंजी है। वह हमारे भीतर है और हमारे चारों ओर मौजूद हर चीज़ में मौजूद है।
जब मैं संसार को देखता हूँ तो मुझे इसका रचयिता दिखाई देता है। जब मैं नरम घास और फूलों के बीच धूप में लेटी रहती हूँ तो मैं ईश्वर के दिल की धड़कन को महसूस करती हूँ। मैं देखती हूँ कि उसने कितनी अच्छी तरह से जंगली फूलों को चित्रित किया, किसी चित्रकार की रंग मिलाने की पटिया के समान ज्वलंत रंगों के साथ। सृष्टिकर्ता जानता है कि वे रंगबिरंगे फूल मुझे खुशी देंगे। प्राकृतिक जगत का सौंदर्य अथाह है। मनुष्य सुंदरता की ओर आकर्षित होता है और कला और संगीत के माध्यम से इसे स्वयं बनाने की कोशिश करता है। हम ईश्वर की छवि और सादृश्य में बने हैं और सौंदर्य के प्रति उसका प्रेम हम मानव की सृष्टि से अधिक रूप में स्पष्ट नहीं हो सकता है। हम इसे अपनी चारों ओर हर जगह देखते हैं। उदाहरण के लिए, हम पतझड़ के पत्ते के जटिल योजना में ईश्वर की कला देखते हैं, और हर सुबह समुद्र की टकराती लहरों और पक्षियों के गायन की आवाज़ में उसका संगीत सुनते हैं।
अनंत रहस्य
दुनिया हमें यह बताने की कोशिश कर सकती है कि ईश्वर का अनुसरण करना, बाइबिल के प्राचीन ज्ञान पर ध्यान देना या आस्था पर ध्यान केंद्रित करना सत्य की अज्ञानतापूर्ण अस्वीकृति है। हमें बताया गया है कि विज्ञान सत्य है, और धर्म सत्य नहीं है। फिर भी कई लोग यह नहीं देख पाते कि येशु सत्य के मूर्तिभाव बनकर आया था। ईश्वर और विज्ञान परस्पर अनन्य नहीं हैं; बल्कि एक सम्पूर्ण सृष्टि की रचना इस बात का और अधिक सबूत है कि एक सम्पूर्ण और आदर्श रचनाकार या सृष्टिकर्त्ता अवश्य होना चाहिए। धार्मिक परंपरा और वैज्ञानिक खोज दोनों ही सच्ची और अच्छी हो सकती हैं। हमारे आधुनिक समय में आस्था अप्रचलित नहीं हो रही है; हमारी वैज्ञानिक प्रगति हमारे प्रभु के अनंत रहस्यों पर और अधिक सुंदर दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
'“हम सब अपना-अपना रास्ता पकड़ कर भेड़ों की तरह भटक रहे थे… ।” (इसायाह 53:6)
मेरी वर्तमान मोटर कार में लेन से भटक जाने पर एक चेतावनी प्रणाली है। हर बार जब मैं गाड़ी चलाते समय अपनी निर्धारित लेन से बाहर चली जाती हूं, तो कार मुझे चेतावनी का संकेत देती है।
पहले तो इससे परेशानी होती थी, लेकिन अब मैं इसको पसंद करती हूँ। मेरी पुरानी कार में इतनी उन्नत तकनीक नहीं थी। मुझे इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि गाड़ी चलाते समय मैं कितनी बार सीमा से बाहर चली गयी।
पिछले कुछ महीनों में, मैंने मेल-मिलाप या पाप स्वीकार के संस्कार में भाग लेना शुरू कर दिया है। दशकों तक मैंने इस अच्छी रिवाज़ को नजरअंदाज किया था।
मुझे ऐसा लगता था जैसे यह समय की बर्बादी है। मैं मन में सोचती थी: जब कोई व्यक्ति सीधे ईश्वर से बात कर सकता है तो उसे अपने पापों को पुरोहित के सामने स्वीकार करने की आवश्यकता क्यों है? नियमित रूप से अपनी अंतरात्मा की जाँच करना असुविधाजनक है। अपने पापों को सार्वजनिक रूप से, ज़ोर की आवाज़ में स्वीकार करना अपमानजनक है। लेकिन विकल्प तो और भी बुरा है। यह वर्षों तक दर्पण में देखने से इनकार करने जैसा है। हो सकता है कि आपके चेहरे पर हर तरह की चीज़ें चिपकी हों, लेकिन आप इस ग़लत धारणा में रहते हैं कि आप ठीक दिखते हैं।
इन दिनों, मैं साप्ताहिक रूप से पाप स्वीकार संस्कार में जाने का प्रयास करती हूँ। मैं आत्म-चिंतन और अपनी अंतरात्मा की जांच के लिए समय निकालती हूं। मैंने अपने अंदर एक बदलाव देखा है। अब, जैसे-जैसे मैं हर दिन आगे बढ़ती हूं, मेरी आंतरिक चेतावनी प्रणाली फिर से सक्रिय हो गई है। जब भी मैं लक्ष्यहीन प्रयास और अंतहीन खोज के कारण अच्छाई के मार्ग से भटक जाती हूं, तो मेरी अंतरात्मा मुझे संकेत देती है। इससे मुझे खतरे के क्षेत्र में बहुत दूर भटकने से पहले रास्ते पर वापस आने की अनुमति मिलती है।
“आप लोग भेड़ों की भटक गए थे, किन्तु अब आप अपनी आत्माओं के चरवाहे तथा रक्षक के पास लौट आए हैं।” (1 पेत्रुस 2:25)
मेल-मिलाप का संस्कार एक ऐसा उपहार है जिसकी मैंने बहुत लंबे समय तक उपेक्षा की थी। मैं उस भेड़ की तरह थी जो भटक गयी थी। लेकिन अब मैं अपने चरवाहे, मेरी आत्मा के रक्षक की ओर मुड़ गयी हूं। जब मैं भटक जाती हूँ तो वह मेरी आत्मा की जाँच करता है। वह मुझे अच्छाई और सुरक्षा के मार्ग पर पुन: ले आता है।
'इस जीवन में आनंद की कुंजी क्या है? जब आप उस कुंजी को प्राप्त करेंगे, तब आपका जीवन कभी भी पहले जैसा नहीं रहेगा।
येशु मसीह द्वारा दस कोढ़ियों को चंगा करने का वृत्तांत मुझे गहराई तक प्रभावित करता है। कुष्ठ रोग एक ऐसी भयानक बीमारी थी जो पीड़ितों को उनके परिवारों से दूर और अलग-थलग कर देती थी। “हम पर दया करो”, वे उसे पुकारते हैं। और वह उन्हें चंगा कर देता है। वह उन्हें अपना जीवन वापस देता है। वे अपने परिवारों के पास लौट सकते हैं, अपने समुदाय के साथ आराधना कर सकते हैं और फिर से काम कर सकते हैं और भीख मांगने से और भीषण गरीबी से बच सकते हैं। उन्होंने जो आनंद अनुभव किया वह अविश्वसनीय होगा। परन्तु धन्यवाद प्रकट करने केलिए सिर्फ एक ही व्यक्ति लौटता है।
उपहार के पीछे
मेरा इरादा उन नौ लोगों को आंकने का नहीं है जो वापस नहीं आये, लेकिन जो येशु के पास लौटा उसने “उपहारों” के बारे में कुछ बहुत महत्वपूर्ण बात समझी। जब ईश्वर कोई उपहार देता है, जब वह किसी प्रार्थना का उत्तर देता है, तो यह व्यक्तिगत होता है। ईश्वर सदैव उस उपहार में समाहित रहता है। उपहार प्राप्त करने की आवश्यक क्षमता उस व्यक्ति से प्राप्त करनी है जो इसे देता है। प्यार से दिया गया कोई भी उपहार देने वाले के प्यार का प्रतीक है, इसलिए उपहार प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति को प्राप्त करता है जिसने इसे दिया है। उपहार अंततः टूट सकता है या ख़राब हो सकता है, लेकिन देने वाले के साथ उसका बंधन बना रहता है। चूँकि ईश्वर शाश्वत है, उसका प्रेम शाश्वत है और कभी भी वापस नहीं लिया जाएगा। एक कृतघ्न बच्चे को प्यार करने वाले माता-पिता की तरह, वह निरंतर देता रहता है, कब उड़ाऊ पुत्र उसके पास वापस आ जाता है, माता पिता उस पल की प्रतीक्षा करते हैं। किसी को उपहार के लिए धन्यवाद देने से इंकार करना एक बिगड़ैल बच्चे का कार्य है, और वह चोरी के समान है। उत्साह में लौटा हुआ कोढ़ी यह बात नहीं भूला।
कृतज्ञता की भावना ही धार्मिक और आध्यात्मिक भावना का मूल है। हमारा पूरा जीवन, हर पल, एक सरासर उपहार है। एक क्षण रुकें और विचार करें कि आपको कितने आशीर्वाद के उपहार प्राप्त हुए हैं। वह हममें से प्रत्येक शख्स से व्यक्तिगत रूप से क्या कह रहा है? “मुझे तुमसे प्यार है।” प्रत्येक आशीर्वाद उसके प्रेम को साझा करते हुए उसके उपहार का उपयोग करके उसके प्रेम को वापस करने का निमंत्रण है। यदि हम उस व्यक्ति को खोजने में विफल रहते हैं जो हमारे उपहारों का स्रोत है, तो कुछ समय बाद उनका हमारे जीवन में कोई खास मतलब नहीं रहेगा। वे “बूढ़े या पुराने हो जाएंगे” और एक तरफ रख दिए जाएंगे जबकि हम व्याकुल रहते हुए और अधिक की तलाश करेंगे।
मेरे पुरोहिताई अभिषेक के बाद, मुझे एक मनोरोग अस्पताल और पास की जेल में जाकर आत्मिक निदेशक का कार्य करने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी । जेल में सुरक्षा जांच के लिए अक्सर लंबा इंतजार करना पड़ता है। अंततः बैरक जहां कैदी मेरा इंतजार करते हैं, वहां अक्सर एक और थकाऊ विलम्ब होता है। इतना सब होने के बाद, मैं कांच की दीवार के माध्यम से कैदी से केवल चालीस मिनट तक फोन पर बात कर सकता था।
बंद द्वार और अवरुद्ध दीवारें
इससे बिलकुल विपरीत मानसिक अस्पताल के प्रत्येक विभाग बंद होने के बाद भी मुझे उसमें प्रवेश करने और अन्दर जाने के लिए एक चाबी दी जाती थी। सिज़ोफ्रेनिक विभाग में सबसे खतरनाक रोगियों के लिए एक अपवाद था। इसकी कोई चाबी नहीं थी। इसके बजाय, सुरक्षा गार्ड एक कैमरे के माध्यम से मेरी पहचान करते हैं और रिमोट से एक दरवाज़ा खोल देते हैं। मेरे पीछे वाला दरवाजा बंद हो जाने पर दूसरा दरवाजा खुल जाता ताकि मैं मरीजों को देखने के लिए अंदर जा सकूं। पूरा सप्ताहांत लोहे के बंद दरवाज़ों और राख भरी दीवारों से घिरे रहने, सुरक्षा गार्डों और कैमरों की निगरानी में बिताने के बाद, वहाँ से निकलकर घर जाना मेरे लिए बड़ी राहत की बात थी। दीवारों से मुक्त, सुंदर नीले आकाश को देखते हुए, मैं तीव्र आनंद की गहरी अनुभूति से अभिभूत हो जाता। पहली बार, मैंने अपनी आज़ादी की पूरी सराहना की। मैंने मन में सोचा, मैं कोई भी रास्ता चुन सकता हूँ और जहाँ चाहूँ रुक सकता हूँ; दुकान से कॉफ़ी या शायद डोनट खरीद सकता हूँ। मैं स्वतंत्र रूप से चुन सकता हूं और कोई भी मुझे रोकने, मेरी तलाशी लेने, मेरा पीछा करने या मुझ पर नजर रखने की कोशिश नहीं करेगा।
इस उत्साहपूर्ण अनुभव के बीच, मुझे एहसास हुआ कि मैंने कितना कुछ हल्के में लेता था। यह एक दिलचस्प अभिव्यक्ति है: “हलके में लेना”। इसका मतलब है कि जो “दिया गया है” उस पर ध्यान न देना तथा देने वाले को नज़रअंदाज़ करना और धन्यवाद देने में असफल होना। इस जीवन में आनंद की कुंजी यह महसूस करना है कि सब कुछ एक सरासर उपहार है, और उस व्यक्ति के बारे में, जो हर उपहार का स्रोत है, अर्थात् ईश्वर के बारे में जागरूक होना है।
अधूरी समझ
दस कोढ़ियों के चंगा होने के बारे में अगला महत्वपूर्ण बिंदु उनके चंगे होने के तरीके से संबंधित है। येशु ने उनसे कहा: “जाओ और खुद को याजकों को दिखाओ” (केवल याजक ही थे जो प्रमाणित कर सकते थे कि वे संक्रमण से मुक्त थे ताकि वे घर लौट सकें)। लेकिन सुसमाचार कहता है कि वे “रास्ते में ही चंगे हो गये”। दूसरे शब्दों में, जब येशु ने उनसे कहा कि जाकर अपने आप को याजकों को दिखाओ, तब तक वे ठीक नहीं हुए थे। वे “रास्ते में” ठीक हो गये। दुविधा की कल्पना कीजिए. “मैं खुद को याजक को क्यों दिखाऊं, आपने अभी तक कुछ नहीं किया है? मुझे अभी भी कुष्ठ रोग है”। और इसलिए, उन्हें भरोसा करना पड़ा। उन्हें पहले आज्ञा माननी होगी और कार्य करना होगा। तभी वे ठीक हो सके।
ईश्वर के साथ इसी तरह सब काम होता हैं। हम वास्तव में प्रभु को तभी समझ पाते हैं जब हम पहले उनका अनुसरण करके उस विश्वास को जीना चुनते हैं – ऐसा कहा जा सकता है कि यह अंधेरे में उसकी आज्ञा का पालन करना जैसा होता है। जो लोग कार्य करने के पूर्व पूरी तरह से समझने पर जोर देते हैं, वे लगभग हमेशा असफल हो जाते हैं।
हम जानते हैं कि उसने हमसे क्या कहा: आज्ञाओं का पालन करो। अंतिम भोज में, उसने अपने प्रेरितों को “मेरी याद में ऐसा करने” की आज्ञा दी। उसने यह उपदेश भी दिया कि हमें अपने वस्त्र, भोजन या पेय के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रभु परमेश्वर हमारी ज़रूरतों को जानता है। “पहले ईश्वर के राज्य की तलाश करो और ये सभी बातें तुम्हें यूँ ही प्रदान की जाएंगी”। यदि हम विश्वास में आगे बढ़ते हैं और उनके वचन के अनुसार कार्य करते हैं, तो हम अंततः अनुग्रह के प्रकाश के माध्यम से समझेंगे। लेकिन आज बहुत से लोग ऐसी चीज़ों से डरते हैं जो उनके आराम में खलल डालती है और जब तक कि उन्हें आश्वस्त नहीं किया जाता है कि ईश्वर की आज्ञाओं के अनुसार कार्य करना उनकी अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए यह कोई जोखिम नहीं है, तब तक वे आज्ञाओं का पालन करने से सख्त इनकार करते हैं । और इसलिए वे ईश्वर को वास्तव में जानने के आनंद के बिना, अंधेरे में जीवन गुजारते हैं। परन्तु इससे पहले कि हम समझें कि ऐसा क्यों है, उसकी आज्ञाओं के अनुरूप हमारे कार्यों को करने के निर्णय के बाद हमें चंगाई मिलती है; हमें प्रभु की आज्ञा का पालन बिल्कुल छोटे बच्चों की तरह करना होगा जो अपने माता-पिता पर भरोसा करते हैं और उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।
'जीवन में सफलता का अनुभव करना चाहते हैं? आप जिसे ढूंढ रहें हैं वह यहाँ है!
निश्चित रूप से यह जानने के लिए किसी रॉकेट वैज्ञानिक की आवश्यकता नहीं है कि प्रार्थना प्रत्येक मसीही के जीवन का केंद्र है। उपवास के महत्व के बारे में कम ही बात की जाती है, इसलिए यह अज्ञात या अपरिचित हो सकता है। कई कैथलिक लोग यह विश्वास करते हैं कि वे राख बुधवार और गुड फ्राइडे पर मांसाहार से परहेज़ करके अपनी भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन जब हम वचन में देखते हैं, तो हमें यह जानकर आश्चर्य होगा कि हम सिर्फ परहेज केलिए नहीं, बल्कि उससे अधिक के लिए हम बुलाए गए हैं। येशु से पूछा गया कि जब फरीसी और योहन बपतिस्ता के चेले उपवास करते हैं, तो उनके चेले उपवास क्यों नहीं करते हैं। येशु ने उत्तर दिया कि जब वह उनके पास से उठा लिया जाएगा, तो ‘वे उन दिनों में उपवास करेंगे’ (लूकस 5:35)।
लगभग सात साल पहले मैंने एक शक्तिशाली तरीके से उपवास के बारे में जाना, जब मैं मेडगास्कर में भूखे बच्चों के बारे में ऑनलाइन एक लेख पढ़ते हुए अपने बिस्तर पर लेटा था। मैंने एक हताश माँ द्वारा उस दु:खद स्थिति का वर्णन पढ़ा, जिसमें वह और उसके बच्चे फँसे हुए थे। वे सुबह भूखे उठते। बच्चे भूखे स्कूल जाते और इसलिए वे स्कूल में जो भी सीखते, उस पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते।
वे स्कूल से भूखे घर आते और भूखे ही सो जाते। स्थिति इतनी खराब थी कि वे घास खाने लगे थे ताकि अपने दिमाग को यह सोचने पर मजबूर कर दें कि वे जीवन निर्वाह के लिए कुछ खा रहे हैं, और यह सब केवल भूख के विचारों को दूर करने के लिए था। मैंने सीखा था कि एक बच्चे के जीवन के पहले कुछ वर्ष महत्वपूर्ण होते हैं। उन्हें जो पोषण मिलता है या नहीं मिलता है, वह उनके शेष जीवन को प्रभावित कर सकता है। जिस बात ने वास्तव में मेरा दिल को तोड़ा, वह मेडगास्कर में तीन छोटे बच्चों की पीठ की तस्वीर थी, जिनपर कोई कपड़े नहीं थे, साफ़ और स्पष्ट रूप से पोषण की अत्यधिक कमी दिखाई दे रही थी। उनके शरीर की एक-एक हड्डी साफ नज़र आ रही थी। मेरे दिल पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा।
‘मैं क्या करूं?’
इस लेख को पढ़ने के बाद, मैं इतने भारी मन और आँसुओं से भरी आँखों के साथ, नीचे चला गया। मैंने अलमारी से नाश्ते का अनाज निकाला, और जैसे ही मैं दूध निकालने के लिए रेफ्रिजरेटर के पास गया, मैंने रेफ्रिजरेटर पर कोलकत्ता की संत तेरेसा की तस्वीर का एक चुंबक देखा। मैंने अपने हाथ में दूध पकड़ा और जैसे ही मैंने दरवाजा बंद किया, मैंने फिर से मदर तेरेसा की तस्वीर को देखा, और अपने दिल में कहा, ‘हे मदर तेरेसा, आप इस दुनिया में गरीबों की मदद करने आई थीं। मैं उनकी मदद के लिए क्या कर सकता हूँ?’ मैंने अपने दिल में एक तत्काल, सौम्य और स्पष्ट उत्तर महसूस किया; ‘जल्दी !’।
मैंने दूध को वापस फ्रिज में रख दिया, और अनाज को वापस अलमारी में रख दिया, और ऐसी स्पष्ट दिशा प्राप्त करने में मुझे बहुत खुशी और शांति महसूस हुई। फिर मैंने प्रण लिया, कि अगर मैं उस दिन भोजन के बारे में सोचूंगा, या जब कभी मुझे भूख लगेगी , या मैंने खाने की खुशबू भी लूंगा, या यहां तक कि खाने को देखूंगा, उन सारे मौकों पर मैं उन गरीब बच्चों और उनके माता-पिता, और दुनिया भर में सभी भूखे लोगों के प्रति मेरा छोटा सा आत्म-त्याग समर्पित करूंगा। ।
इतने सरल, स्पष्ट और शक्तिशाली तरीके से ईश्वर के दिव्य हस्तक्षेप में बुलाया जाना एक सम्मान की बात थी। रात में जब मैंने पवित्र मिस्सा में भाग लिया, तब तक मैंने भोजन के बारे में सोचा भी नहीं था और न ही मुझे उस पूरे दिन कोई भूख महसूस हुई थी। परम प्रसाद ग्रहण करने से पूर्व मुझे अत्यंत भूख का अनुभव हुआ| यूखरिस्त ग्रहण करने के बाद जब मैंने घुटने टेके, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ भोजन ग्रहण किया हो। निश्चित तौर पर मैं ने जीवन का सर्वश्रेष्ठ भोजन ग्रहण किया था; मैंने ‘जीवन की रोटी’ को ग्रहण किया था (यूहन्ना 6:27-71)।
यूखरिस्त न केवल हम में से प्रत्येक को व्यक्तिगत रूप से येशु से जोड़ता है, बल्कि बदले में एक दूसरे के साथ भी जोड़ता है, और एक शक्तिशाली तरीके से ‘हमें गरीबों के लिए प्रतिबद्ध करता है’ (सी.सी.सी 1397)। संत अगस्टिन इस रहस्य की महानता को ‘एकता का चिह्न’ और ‘दान के बंधन’ (सी.सी.सी. 1398) के रूप में वर्णित करते हैं। संत पौलुस हमें इसे समझने में मदद करते हैं, ‘क्योंकि रोटी तो एक ही है, इसलिये अनेक होने पर भी हम एक हैं; क्योंकि हम सब एक ही रोटी के सहभागी हैं’ (1 कुरिन्थी 10:17)। इसलिए ‘मसीह में एक शरीर’ होना हमें ‘एक दूसरे के अंग’ बनाता है (रोमी 12:5)।
एक दिशा
मैंने हर सप्ताह प्रार्थना करनी शुरू की, और उस प्रार्थना में मैं प्रभु से कहने लगा की वह मुझे बताए कि किसके लिये उपवास और प्रार्थना करूं। इससे पहले कि मैं उपवास करना शुरू करता, मेरा किसी तरह किसी से मेल हो जाता; एक बेघर व्यक्ति, एक वेश्या, एक पूर्व-कैदी आदि। मुझे लगा कि वास्तव में मुझे स्पष्ट निर्देश दिया जा रहा है। हालाँकि, एक विशेष सप्ताह में, मैं इस बात को लेकर अनिश्चितता में था कि प्रभु मुझसे किस उद्देश्य के लिए उपवास और प्रार्थना करवाना चाहता है। उस रात जब मैं सोने गया, मैंने उचित दिशा जानने के लिए प्रभु से प्रार्थना की। अगली सुबह जैसे ही मैंने अपनी सुबह की वन्दना समाप्त की, मैंने देखा कि मेरे मोबाइल फोन पर एक सन्देश आया था। मेरी बहन ने मुझे यह दुखद समाचार भेजा था कि उसकी एक सहेली ने आत्महत्या कर ली है। मुझे मेरा जवाब मिल चुका था।
फिर मैंने उस लड़की की आत्मा के लिए, इसके अलावा, उन लोगों के लिए जिन्होंने उसे उस स्थिति में पाया, उसके परिवार, और सभी आत्महत्या के शिकार लोगों के लिए और कोई भी जो वर्तमान में अपनी जान लेने पर विचार कर रहा था, उन सब के लिए उपवास और प्रार्थना करनी शुरू की। जब मैं उस दिन काम से घर आया, तो मैंने अपनी दैनिक रोजरी माला विनती की। जैसे ही मैंने आखिरी मनके पर आखिरी प्रार्थना की, मैंने अपने दिल में इन शब्दों को स्पष्ट रूप से महसूस किया, ‘जब तुम उपवास करते हो…’ (मत्ती 6:16-18)। जैसे ही मैंने इन शब्दों पर विचार किया, स्पष्ट रूप से ‘जब’ पर ज़ोर था, ‘अगर’ पर नहीं।
विश्वासियों के रूप में हमसे जितनी प्रार्थना करने की अपेक्षा की जाती है, वात्सव में उपवास के लिए भी उतना ही अपेक्षा की जाती है कि ‘जब तुम उपवास करते हो’। जैसे ही मैंने रोजरी माला विनती समाप्त की और खड़ा हुआ, मेरा फोन तुरंत बजने लगा। एक खूबसूरत बुजु़र्ग महिला, जिसे मैं गिरजाघर में देखता और पहचानता हूँ, उस ने हताश अवस्था में मुझे फोन किया और मुझे कुछ ऐसी बातें बताईं जो उसके जीवन में चल रही थीं। उसने मुझे बताया कि वह आत्महत्या करने के बारे में सोच रही थी। मैंने घुटने टेके और हमने फोन पर एक साथ प्रार्थना की और परमेश्वर की कृपा से प्रार्थना और बातचीत के अंत में उसे शांति महसूस हुई। यह प्रार्थना और उपवास की शक्ति है! परमेश्वर की महिमा हो।
उठो और लड़ो
मुझे अपने जीवन में कई बार मेडजुगोरे की माँ मरियम के तीर्थस्थल पर जाने की महान कृपा मिली है और बुराई के खिलाफ इस सबसे खूबसूरत हथियार की पक्की समझ मुझमें और अधिक बढ़ गयी है। धन्य कुवाँरी मरियम वहाँ अपने बच्चों को पश्चताप और उपवास के लिए बुलाती है और उनसे बुधवार और शुक्रवार को केवल रोटी खाने और पानी पीने का अनुरोध करती है।
एक बार मेडजुगोरे के स्वर्गवासी पुरोहित, फादर स्लावको ने कहा था कि ‘प्रार्थना और उपवास दो पंखों की तरह हैं’। हम निश्चित रूप से केवल एक पंख के साथ बहुत अच्छी उड़ान भरने की उम्मीद नहीं कर सकते। यह विश्वासियों के लिए सही मायने में पूरे सुसमाचार संदेश को अपनाने, येशु के लिए मौलिक रूप से जीने और वास्तव में उड़ने का समय है।
बाइबिल स्पष्ट रूप से हमें बार-बार उपवास के साथ प्रार्थना की शक्ति दिखाती है (एस्तेर 4:14-17; योना 3; 1; राजा 22:25-29)। ऐसे समय में जहाँ युद्ध की रेखाएं स्पष्ट रूप से खींची गई हैं, और प्रकाश और अंधेरे के बीच का अंतर साफ दिखाई देता है, तो यह समय दुश्मन को पीछे धकेलने का है, येशु के शब्दों को याद करते हुए, कि कुछ बुराइयाँ ‘प्रार्थना और उपवास के सिवा और किसी उपाय से नहीं निकाली जा सकतीं’ (मारकुस 9:29)।
'मैं लुयिसिआना के कोविंगटन में सेंट जोसेफ मठ में था, जो न्यू ऑरलियन्स से ज्यादा दूर नहीं था। मैं वहाँ देश भर के लगभग तीस बेनेडिक्टिन मठाधीशों को संबोधित करने के लिए गया था जो कुछ दिनों के लिए चिंतन और एकांतवास के लिए एकत्रित हुए थे। सेंट जोसेफ मठ के गिरजाघर और भोजनालय की दीवारों पर फादर ग्रेगरी डी विट द्वारा चित्रित अद्भुत कलाकृतियाँ हैं। फादर ग्रेगरी डी विट बेल्जियम में मोंट सीज़र के एक मठवासी थे, जिन्होंने 1978 में निधन से पूर्व हमारे देश में इंडियाना में सेंट मेनराड और सेंट जोसेफ में कई वर्षों तक काम किया। मैं लंबे समय से, ईश शास्त्र के दृष्टिकोण से धनी उनकी विशिष्ट और विचित्र कला का प्रशंसक था। मठ के गिरजाघर के अर्द्धवृत्ताकार कक्ष में, फादर डी विट ने शानदार पंख वाले स्वर्गदूतों की एक श्रृंखला को चित्रित किया, जो सात घातक पापों की छवियों पर मंडराते हैं, जो इस गहन सत्य को व्यक्त करते हैं कि ईश्वर की सही उपासना हमारे आध्यात्मिक शिथिलता पर काबू पाती है। लेकिन डी विट के चित्रित कार्यक्रम की एक नवीनता यह है कि उन्होंने आठवां घातक पाप के रूप में गपशप को जोड़ा जो उनके विचार से मठ के भीतर विशेष रूप से विनाशकारी कार्य करती है।
बेशक, मठों के बारे में फादर डी विट सही थे, लेकिन मैं कहूँगा कि यह बात लगभग किसी भी प्रकार के मानव समुदाय के बारे में सही होता: परिवार, स्कूल, कार्यस्थल, पल्ली, आदि। गपशप ज़हर है। डी विट की पेंटिंग हमारे वर्तमान संत पापा की शिक्षाओं की पूर्वानुमान या भविष्यवाणियां थीं, क्योंकि संत पापा फ्रांसिस ने अक्सर गपशप को विशेष निंदा का विषय बना दिया है। संत पापा फ्रांसिस के एक हालिया प्रवचन को सुनें: “भाइयो और बहनो, कृपया, गपशप न करने का प्रयास करें। गपशप कोविड से भी बदतर महामारी है। उससे भी ज़्यादा बुरा! आइए एक बड़ा प्रयास करें। कोई गपशप नहीं!” और हम किसी तरह चूक न जाएँ इसलिए, संत पापा स्पष्ट करते हैं, “शैतान सबसे बड़ा गपशप करने वाला है।” यह अंतिम टिप्पणी केवल रंगीन बयानबाजी नहीं है, क्योंकि संत पापा अच्छी तरह से जानते हैं कि नए नियम में शैतान के दो प्रमुख नाम डायबोलोस (तितर बितर करनेवाला) और सेटनस (अभियोग लगानेवाला) हैं। इन शब्दों में गपशप के बेहतर लक्षण का वर्णन है; हमें पता चलता है कि गपशप क्या करती है और यह अनिवार्य रूप से क्या है।
अभी कुछ समय पहले, एक मित्र ने मुझे व्यवसाय और वित्त सलाहकार, डेव रैमसे की बातचीत का एक यू-ट्यूब वीडियो भेजा था। संत पापा फ्रांसिस की तरह, उसी उग्रता के साथ, रैमसे ने कार्यस्थल में गपशप के खिलाफ बात की, यह निर्दिष्ट करते हुए कि गपशप के संबंध में उनकी नीति शून्य सहिष्णुता की है। उन्होंने गपशप को इस प्रकार परिभाषित किया: “गपशप उस व्यक्ति के साथ नकारात्मक चर्चा है जो समस्या का समाधान नहीं कर सकता।“ चीजों को थोड़ा और स्पष्ट बनाने के लिए उन्होंने उदहारण दिया: “आपके संगठन का एक व्यक्ति गपशप कर रहा होगा, यदि वह आई.टी. मुद्दों के बारे में किसी ऐसे सहयोगी के साथ शिकायत कर रहा था जिसके पास आई.टी. मामलों को हल करने की कोई योग्यता या अधिकार नहीं था। या कोई अपने बॉस के अधीन या नीचे के लोगों के सामने अपने बॉस के प्रति गुस्सा व्यक्त करती है, जो उसकी आलोचना का रचनात्मक जवाब देने की स्थिति में नहीं है।“ रैमसे अपने अनुभव से एक सुस्पष्ट उदाहरण प्रदान करते हैं। वह याद करता है कि उसने अपनी पूरी प्रशासनिक टीम के साथ एक बैठक की थी, जिसमें एक नए दृष्टिकोण की रूपरेखा दी गई थी, जिसे वह अपनाना चाहता था। उसने सभा छोड़ दी, लेकिन फिर महसूस किया कि वह अपनी चाबियां भूल गया था और इसलिए कमरे में वापस चला गया। वहाँ उन्होंने पाया कि “बैठक के बाद एक दूसरी बैठक” हो रही थी, जिसका नेतृत्व उनके एक महिला कर्मचारी कर रही थी, जिसकी पीठ दरवाजे की तरफ थी, ज़ोर-ज़ोर से दूसरों के सामने बॉस की निंदा कर रही थी। बिना किसी हिचकिचाहट के, रैमसे ने महिला को अपने कार्यालय में बुलाया और गपशप के प्रति अपनी शून्य-सहिष्णुता की नीति के अनुसार, उसे निकाल दिया।
आप ध्यान दें, इसका मतलब यह नहीं है कि मानव समाजों के भीतर समस्याएं कभी उत्पन्न नहीं होती हैं, यह बिल्कुल भी नहीं है कि शिकायतों पर कभी भी आवाज नहीं उठानी चाहिए। लेकिन वास्तव में यह कहना ज़रूरी है कि उन्हें हिंसात्मक या युद्ध स्तर पर नहीं, बल्कि उचित अधिकारी के सम्मुख व्यक्त किया जाना चाहिए, जो उन शिकायतों के साथ रचनात्मक व्यवहार कर सकते हैं। यदि इस प्रक्रिया का पालन किया जाता है, तो गपशप का खेल नहीं होगा। रैमसे की अंतर्दृष्टि की पूरक के रूप में मेरे पूर्व शिक्षक जॉन शी एक सूत्र देते हैं। वर्षों पहले, जॉन शी ने हमसे कहा था कि हमें किसी अन्य व्यक्ति की आलोचना करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्रता महसूस करना चाहिए, ठीक उसी मात्रा में और उस हद तक कि हमने उस व्यक्ति की समस्या को पहचाना है, उस से निपटने में मदद करने को तैयार हैं। अगर हम पूरी तरह से मदद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो हमें जितनी जोरदार आलोचना करनी चाहिए उतनी करनी चाहिए। अगर हमारे पास मदद करने की उदार इच्छा है, तो हमारी आलोचना को कम किया जाना चाहिए। अगर, जैसा कि आम तौर पर होता है, अगर हमें मदद करने की थोड़ी सी भी इच्छा नहीं है, तो हमें अपना मुंह बंद रखना चाहिए।
किसी शिकायत को बिना सौम्य तरीके से अधिकारियों के सम्मुख रखना सहायक होता है; इसे नीचे के कर्मचारियों के बीच ले जाना और उद्देशय शुद्धि के बिना बहस करना नीचता है, और यही गपशप है — और यह शैतान का काम है। क्या मैं एक दोस्ताना सुझाव दे सकता हूँ? हम चालीसा के मुहाने पर हैं, यह कलीसिया के लिए पश्चाताप और आत्म-अनुशासन का महान समय है। इस चालीसा में मिठाई या धूम्रपान छोड़ने के बजाय, गपशप करना छोड़ दें। चालीस दिनों तक कोशिश करें कि उन लोगों के साथ नकारात्मक टिप्पणी न करें जिनमें समस्या से निपटने की क्षमता नहीं है। और यदि आप को इस संकल्प को तोड़ने के लिए प्रलोभन होता हैं, तो डी विट के स्वर्गदूतों को अपने ऊपर मंडराते हुए सोचें। मेरा विश्वास करें, आप और आपके आस-पास के सभी लोग बहुत खुश होंगे।
'अपने प्रार्थनामय जीवन में एक नया उपमार्ग खोजने के लिए इस लेख को पढ़ते रहें |
कुछ सालों पहले, मेरी बहन के घर के नल से कहीं पानी का लगातार रिसाव की बड़ी समस्या थी। घर पर कहीं भी पानी के रिसाव का पता नहीं चल रहा था, लेकिन उसका पानी का बिल 70 डॉलर प्रति माह से बढ़कर 400 डॉलर प्रति माह हो गया। उन्होंने रिसाव के स्रोत का पता लगाने की कोशिश की, उसके बेटे ने बहुत खुदाई की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
कई दिनों की निरर्थक खोज के बाद, एक मित्र को एक उपाय सूझा। उसका विचार था कि रिसाव को खोजने की कोशिश करनी बंद की जाये। बजाय इसके, पानी के पाइप के सिरे पर जाया जाये, नई पाइपिंग की जाये, और नए पाइप को किसी उपमार्ग से अर्थात नए रास्ते पर बिछाया जाये और पुरानी पाइपलाइन को पूरी तरह से छोड़ दिया जाये।
उन्होंने वैसा ही किया। एक दिन की कड़ मशक्कत और बहुत सी खुदाई के बाद, उन्होंने उस योजना को पूरा किया और देखो! समस्या ठीक हो गई, और मेरी बहन के पानी का बिल फिर से सामान्य हो गया |
जैसा ही मैंने इस पर विचार किया, मेरे विचार अनुत्तरित प्रार्थनाओं पर गया। कभी-कभी हम लोगों के लिए या कुछ परिस्थितयों को बदलने के लिए प्रार्थना कर रहे होते हैं और उन प्रार्थनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता। परमेश्वर के कान तक पाइप लाइन में लगता है कि “रिसाव” है। या हम लगातार प्रार्थना करते हैं जिससे कि किसी का मन परिवर्त्तन हो, किसी का गिरजाघर में वापसी हो जाए, या हम किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं जो कुछ समय से बेरोजगार हो, या हम गंभीर स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से जूझ रहे किसी व्यक्ति के उपचार के लिए प्रार्थना करते हैं। स्थिति कैसी भी हो, हमें कोई प्रगति दिखाई नहीं देती और हमारी प्रार्थनाएँ व्यर्थ या बेकार लगने लगती हैं।
मुझे याद है कि मैं जिस मिशनरी संगठन के साथ काम करती हूँ, उसमें एक बहुत ही कठिन व्यक्तिगत संघर्ष के लिए मुझे प्रार्थना करनी थी। यह एक ऐसी स्थिति थी जो बहुत तनावपूर्ण थी और मेरी भावनात्मक और शारीरिक ऊर्जा को खत्म कर रही थी। प्राकृतिक स्तर पर मैंने जो कुछ भी करने की कोशिश की,मानो ऐसा लग रहा था कि उसका कोई हल ही नहीं है , और समाधान के लिए मेरी प्रार्थनाओं का कोई असर नहीं दिख रहा था। एक दिन अपनी प्रार्थना में, मैंने हताशा में फिर से परमेश्वर को पुकारा और अपने दिल में एक शांत, सौम्य आवाज़ सुनी, “इसे मुझे सौंप दो। मैं इसका हल करूंगा| “
मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है, बिलकुल एक प्लंबिंग बाईपास के सामान। इस बिंदु तक मेरा रवैया ही मेरे प्रयासों से स्थिति को हल करने की कोशिश कर रहा था: मध्यस्थता करना, बातचीत करना, विभिन्न प्रकार के समझौते करना और उसमें शामिल विभिन्न पक्षों को शांत करना। लेकिन चूंकि कुछ भी काम नहीं आया था और चीजें केवल बदतर होती गईं, मुझे पता था कि परमेश्वर को इन्हें संभालने की अनुमति देने की जरूरत है। इसलिए मैंने उसे अपनी स्वीकृति दी। “हे प्रभु, मैं यह सब तुझे सौंप देती हूं। तुझे जो कुछ भी करना है वह कर, और मैं सहयोग करूँगी।”
प्रार्थना के लगभग 48 घंटों के भीतर ही स्थिति पूरी तरह से सुलझ गई। जितनी तेजी से मेरी सांसें रुकी हुई थी, उतनी ही तेजी से उनमें से एक पक्ष ने अच्छा निर्णय लिया, जिसके कारण सब कुछ पूरी तरह से बदल गया, और तनाव और संघर्ष भी समाप्त हो गया। मैं विस्मित थी और जो हुआ था उस पर विश्वास नही कर पा रही थी।
मैंने क्या सीखा? अगर मैं किसी चीज या किसी के लिए एक निश्चित तरीके से प्रार्थना कर रही हूं और मुझे कोई सफलता नहीं दिख रही है, तो शायद मुझे प्रार्थना करने के तरीके को बदलने की जरूरत है। पवित्र आत्मा से पूछने की ज़रुरत है कि “मुझे इस व्यक्ति के लिए प्रार्थना करने की क्या कोई और तरीका है? क्या मुझे कुछ और माँगना चाहिए, कोई विशिष्ट अनुग्रह जो उन्हें अभी चाहिए?” शायद हमें “नल का कोई उपमार्ग ” जैसे कोई दूसरा मार्ग मिल जाए।
रिसाव का स्रोत या प्रतिरोध के स्रोत को खोजने की कोशिश करने के बजाय, हम प्रार्थना कर सकते हैं कि हे परमेश्वर इसे दरकिनार कर दे। परमेश्वर बहुत रचनाशील है (वही रचनात्मकता का स्रोत या मूल निर्माता है) और अगर हम उनके साथ सहयोग करना जारी रखते हैं, तो वह मुद्दों को हल करने और अनुग्रह लाने के लिए अन्य तरीकों के साथ आएगा जिनके बारे में हमने सोचा भी नहीं होगा। परमेश्वर को परमेश्वर रहने दो और उसे चलने और चलाने के लिए जगह दें।
मेरे मामले में, मुझे रास्ते से हटना था, विनम्रता से स्वीकार करना था कि मैं जो कर रही थी वह व्यर्थ था, और उसे प्रभु को और अधिक गहराई से समर्पण करना था जिससे प्रभु को कार्य करने का अवसर मिले। लेकिन प्रत्येक स्थिति अलग होती है, इसलिए परमेश्वर से पूछें कि वह आपसे क्या चाहता है और उसके निर्देशों को सुनें। अपनी क्षमता के अनुसार उनका पालन करें और परिणाम उसके हाथों में छोड़ दें। और याद रखें कि येशु ने क्या कहा: “जो मनुष्यों के लिए असंभव है, वह परमेश्वर के लिए संभव है।“ (लूकस 18:27)
'शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया । हमने उसकी महिमा देखी| वह पिता के एकलौते की महिमा- जैसी है – अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण । (योहन 1:14)
पहली बार ऐनी को पवित्र मिस्सा के दौरान देखा था। सप्ताहांत के दिनों में, मैं एक छोटे से प्रार्थनालय में जहाँ केवल दो पंक्तियों रहती हैं, मिस्सा बलिदान में भाग लेती हूं। आप हर दिन कम लोगों को देखते हैं, इसलिए आप सभी से परिचित हो जाते हैं। मुझे लगा कि ऐनी को कभी-कभी झटके के दौरे लगते हैं। सबसे पहले, मुझे लगा कि उसे पार्किंसंस रोग है। हालांकि, करीब से अवलोकन के बाद, मैंने देखा कि परम प्रसाद ग्रहण करते समय उसे इसकी समस्या थी। जैसे ही वह पुरोहित से परम प्रसाद को स्वीकार करती, उसका शरीर, विशेष रूप से उसके हाथ, हिलते थे। कंपन कुछ मिनटों के लिए जारी रहती थी।
एक दिन, मैंने ऐनी से कम्युनियन के दौरान उसके साथ हो रहे झटकों के बारे में पूछने का फैसला किया। ऐनी ने शालीनता से इस असामान्य ‘उपहार’ के बारे में समझाया। उसके झटके किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधित विषय नहीं था, हालांकि कई लोग सोचते थे कि यह कोई बीमारी है। वह अपने शरीर की प्रतिक्रिया से थोड़ी शर्मिंदा थी, क्योंकि इसके कारण उस पर लोगों का अवांछित ध्यान पड़ जाता था। यह प्रतिभास कई साल पहले शुरू हुई जब उसने अचानक पहचान लिया कि येशु ख्रीस्त के शरीर को ग्रहण करने का मतलब क्या है। येशु, परमेश्वर का पुत्र, हमारे लिए एक मनुष्य बना। अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण, वह हमारे बीच रहा। वह हमारे पापों के लिए बलि चढ़ गया। ऐनी का कहना है कि विश्वास के इस सत्य के प्रति जागरूकता के बाद, जब भी वह परम प्रसाद को स्वीकार करती है तो उसका शरीर अनैच्छिक रूप से कांपता है। परम प्रसाद के प्रति ऐनी की श्रद्धा ने इस संस्कार के प्रति मेरे मन में भी बड़ा आदर और सम्मान बढ़ गया ।
संत अगस्टीन के अनुसार संस्कार की परिभाषा है ‘आंतरिक और अदृश्य अनुग्रह का बाहरी और दृश्य संकेत’। हम कितनी बार अनुग्रह के संकेतों को पहचानते हैं? जब हम संस्कारों को केवल अनुष्ठानों तक सीमित कर देते हैं, तो हम परमेश्वर की प्रेमपूर्ण उपस्थिति को महसूस नहीं कर पाते हैं। जो लोग चौकस और जागरूक हैं, वही लोग संस्कारों में विद्यमान पावन वास्तविकताओं की सराहना कर सकते हैं।
हे प्रभु येशु, मैं प्रार्थना करती हूं कि जो कुछ पवित्र है, उन सब के प्रति तू मुझे गहरी श्रद्धा दें । मैं जो कुछ भी हूँ और जो कुछ भी करूं उसमें मसीह को मूर्त रूप दे सकूं। मुझे एक जीवित संस्कार में ढाल ताकिमैं आपके आंतरिक और अदृश्य अनुग्रह का एक बाहरी और दृश्य संकेत बन जाऊं। आमेन।
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