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जीवन में संकट और विपत्तियाँ थका देने वाली हो सकती हैं… लेकिन जीवन हमें लड़ने और जीवित रहने में मदद करने के लिए संकेत प्रदान करता है।
आत्मिक निदेशन के क्षेत्र में वर्षों से सेवा करने के दौरान, जैसा कि मैंने लोगों को अपने संघर्षों को साझा करते हुए सुना है, एक बात अक्सर दोहराई जाती है कि जब वे संकटों से गुज़र रहे होते हैं तो उन्हें लगता है कि ईश्वर ने उन्हें त्याग दिया है या उनसे दूरी बनाए रखने या अलग-थलग रहने का निर्णय लिया है। “मैं क्या गलत कर रहा हूं? ईश्वर ने मुझे इस स्थिति में क्यों डाला है? इन सब विपत्तियों के बीच वह कहाँ है?” अक्सर लोग सोचते हैं कि एक बार जब उनका गंभीर मनपरिवर्त्तन हो जाएगा और वे येशु के करीब आ जाएंगे, तो उनका जीवन समस्या-मुक्त हो जाएगा। परन्तु प्रभु ने कभी इसका वादा नहीं किया। वास्तव में, परमेश्वर का वचन इस पर स्पष्ट है।
कांटे और ऊँट कटारे
प्रवक्ता ग्रन्थ 2:1 में, यह कहा गया है, “पुत्र, यदि तुम प्रभु की सेवा करना चाहते हो, तो विपत्ति का सामना करने के लिए तैयार हो जाओ” (वैसे, वह पूरा अध्याय पढ़ने लायक है)। प्रेरितों ने सुसमाचार का प्रचार प्रसार करते समय नए मसीहियों को इस सत्य के लिए तैयार करने का भी प्रयास किया। हम प्रेरित चरित 14:22 में पढ़ते हैं, “वे शिष्यों को ढारस बंधाते और यह कहते हुए विश्वास में दृढ रहने के लिए अनुरोध करते कि हमें बहुत से कष्ट सह कर ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना है।'”
जैसे-जैसे हम परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते में आगे बढ़ते हैं और उसके वचन का पालन करने के बारे में अधिक गंभीर होते जाते हैं, हमें कुछ गंभीर चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। हमें ऐसे निर्णय लेने और ऐसे रुख अपनाने होंगे जो हमें अलोकप्रिय बना सकते हैं। लोग हमें गलत समझने लगेंगे। हर कोई हमें पसंद नहीं करेगा।
यदि आप चाहते हैं कि हर कोई आपको पसंद करे, तो येशु का अनुसरण करने का प्रयास छोड़ दीजिये। क्यों? क्योंकि सुसमाचार का जीवन जीना – जैसा कि येशु ने हमें उपदेश दिया था – हमारी संस्कृति के विरुद्ध जाना है। येशु स्वयं हमें इस बारे में चेतावनी देते हैं “यदि संसार तुम लोगों से बैर करें, तो याद रखो कि तुम से पहले उस ने मुझ से बैर किया। यदि तुम संसार के होते, तो संसार तुम्हें अपना समझकर प्यार करता; परन्तु तुम संसार के नहीं हो, क्योंकि मैं ने तुम्हें संसार में से चुन लिया है, इसलिए संसार तुम से बैर करता है” (योहन 15:18-19)।
तो हाँ, हमें इस जीवन में कई संकटों और कठिनाइयों से गुजरना होगा। लेकिन जैसा कि मैं आत्मिक निर्देशन में लोगों को याद दिलाती हूं, ईश्वर हमें उन कठिन क्षणों में कभी भी अकेला नहीं छोड़ता है। वह हमें संकट के मार्ग पर प्रोत्साहन और सहायता देना चाहता है ताकि हम दृढ़ रहें और जीवन के तूफ़ानों से अधिक मजबूत होकर गुजरें और हमारे प्रति उसके गहरे और स्थायी प्रेम के प्रति हम अधिक आश्वस्त हों। ईश्वर भरोसेमंद है!
संकेतों की समझ
पुराने नियम में भविष्यवक्ता एलियाह के उदाहरण के बारे में सोचें। जब उसने बाल देवता के झूठे भविष्यवक्ताओं का सामना किया तो वह भीड़ के विरुद्ध गया और मूर्तिपूजा के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया। नाटकीय और बेतहाशा सफल टकराव के बाद, रानी इज़ेबेल क्रोधित हो गई और उसने एलियाह को मारने की ठान ली। अपनी जान लिए जाने के डर से एलियाह जल्दबाजी में मरुभूमि की ओर भाग गए। वे थकावट से चूर होकर और उदास होकर एक झाड़ू के पेड़ के नीचे गिर गए और वे वहीँ मरना चाहते थे। तभी ईश्वर ने उनके लिए भोजन और पानी लाने के लिए एक दूत भेजा। देवदूत ने कहा, “उठिए और खाइए, नहीं तो रास्ता आप केलिए अधिक लम्बा हो जाएगा” (1 राजा, 18 और 19)।
ईश्वर ठीक-ठीक जानता है कि हमें क्या चाहिए। वह जानता था कि एलियाह को एक तनावपूर्ण घटना के बाद सोने, खाने और ठीक होने की जरूरत थी। प्रभु जानता है कि आपको क्या चाहिए। ईश्वर हमारी आवश्यकताओं को पूरा करना और हमें प्रोत्साहित करना चाहता है। हालाँकि, हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि वह ऐसा कैसे करना चाहता होगा। मुझे लगता है कि कई बार हम अपने साथ संवाद करने के प्रभु के प्रयासों को चूक जाते हैं। प्रभु ने एलियाह से आँधी, भूकम्प, या अग्नि में बात नहीं की। लेकिन “निरंतर मंद समीर की ध्वनि” में, एलियाह ने ईश्वर के दर्शन प्राप्त किये।
हर जगह लिली का पुष्प
कुछ वर्ष पहले, मैं कठिन परीक्षाओं और अकेलापन के दौर से गुज़र रही थी। जिंदगी बहुत भारी और बोझिल लग रही थी। एक शनिवार, मेरा एक युवा मित्र घुड़सवारी करते हुए बाहर गया और उसे रेगिस्तान में एक सफेद लिली जैसा फूल मिला और उसने उसे वापस लाकर मुझे दे दिया। अगले दिन, मैं एल पासो में सड़क पर चल रही थी और मैंने जमीन पर एक कृत्रिम सफेद लिली पड़ी देखी। मैंने उसे उठाया और अपने साथ घर ले गयी।
अगले दिन मुझे फुटपाथ के पास एक और सफेद लिली जैसा फूल उगता हुआ दिखाई दिया। तीन दिनों में तीन सफेद लिली। मैं जानती थी कि इसमें प्रभु की ओर से एक संदेश है, लेकिन मैं ठीक से नहीं जानती थी कि प्रभु क्या कहना चाह रहा था।
जैसे ही मैंने इस पर विचार किया, एक स्मृति अचानक मेरे सामने आ गई। कई साल पहले, जब मैं हमारे समुदाय में एक नयी मिशनरी थी, हम अपने युवा केंद्र में मिस्सा बलिदान में भाग ले रहे थे। परमा प्रसाद ग्रहण करने के बाद, मैं आँखें बंद करके प्रार्थना कर रही थी। किसी ने मेरे कंधे को थपथपाया। अपनी प्रार्थना से चौंककर, मैंने ऊपर देखा और पुरोहित को वहाँ खड़ा देखा। उन्होंने मुझसे कहा, “प्रभु चाहता है कि आप यह जान लें कि उसकी दृष्टि में आप एक लिली हो।” और फिर, पुरोहित वेदी पर वापस गये और बैठ गये। मैं वास्तव में अभी तक उस पुरोहित को नहीं जानती हूँ, और उन्होंने फिर कभी मेरे साथ इस तरह का कोई अन्य संदेश साझा नहीं किया। लेकिन मुझे प्रोत्साहित करने के लिए प्रभु के एक विशेष शब्द के रूप में मैंने इसे अपने दिल में संग्रहीत किया।
अब, इतने वर्षों के बाद, वह स्मृति मेरे पास वापस आ गई, और अब मैं लिली को समझ गयी हूँ। मैं जिस कठिन समय से गुज़र रही थी, उस दौरान प्रभु मुझे प्रोत्साहित करना चाहता था। वह मुझे याद दिला रहा था कि मैं उसकी लिली हूं और वह मुझसे बहुत प्यार करता है। इसने मेरे दिल को बहुत आवश्यक शांति और इस आश्वासन से भर दिया कि तूफानों के बीच में से मैं अकेली नहीं गुजर रही थी। ईश्वर बड़ी विश्वस्तता के साथ उन तूफानों के बीच में से मुझे देखना चाह रहा था।
ध्यान दें
ईश्वर आपको नाम से जानते हैं. आप उनकी प्यारी संतान हैं. वह आपको देखता है और जिस मुश्किल से आप गुजर रहे हैं, वह सब जानता है। वह आपसे अपने प्यार का संचार करना चाहता है, लेकिन आम तौर पर संकेत धीरे-धीरे आते हैं। अगर हम ध्यान नहीं देंगे तो वह संकेत आपसे चूक जा सकता है।
मैं लिली के साथ प्रेम के उस संदेश को भूल सकती थी। मैं सोच सकती थी कि वे महज़ एक संयोग थे। लेकिन मैं जानती थी कि यह एक संयोग से कहीं अधिक था, और मैं संदेश जानना चाहती थी। जब मैंने अपने दिल में सोचा कि इसका अर्थ क्या हो सकता है तो ईश्वर ने इसे मेरे सामने प्रकट किया। और जब मैंने इसे समझा, तो इससे मुझे सांत्वना और सहने की शक्ति मिली।
इसलिए मैं आपको प्रोत्साहित करती हूं — संकटों के दौरान दृढ़ बने रहें। जीवन से न भागें! और रास्ते में ईश्वर के प्यार और प्रोत्साहन के उन छोटे संकेतों को खोजें। मैं आपको गारंटी देती हूं कि वे संकेत उन्हीं मार्गो पर हैं। हमें बस अपनी आंखें और कान खोलकर ध्यान देने की जरूरत है।’
'मुझे तब तक कभी भी “बोझ” का वास्तविक अर्थ समझ नहीं आया था…
आज सुबह भारीपन महसूस करती हुई, मुझे पता था कि यह प्रार्थना में लंबा समय बिताने का स्पष्ट आह्वान है। यह जानते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति सभी बुराइयों के लिए औषधि है, मैं अपनी “प्रार्थना कोठरी” में बैठ गयी। आज के लिए मेरी “प्रार्थना कोठरी”, मेरे सामने बरामदे पर थी। अकेले, लेकिन पक्षियों की चहचहाहट और पेड़ों के बीच से गुजरती शांत हवा के साथ, मैंने अपने फोन से आने वाले सौम्य भक्ति संगीत के स्वर के बीच में विश्राम किया। मैंने अक्सर उस आज़ादी का अनुभव किया है जो खुद से, अपने रिश्तों से, या दुनिया की चिंताओं से नज़रें हटाने से मिलती है। ईश्वर की ओर ध्यान आकर्षित करने पर मुझे भजन 22 का श्लोक याद आया: “यद्यपि तू मंदिर में विराजमान है, इस्राएल तेरा स्तुतिगान करता है” (3)। वास्तव में, ईश्वर अपने लोगों के स्तुतिगान में निवास करता है।
मैं एक बार फिर आत्मा में केंद्रित महसूस करने लगी, और अपने देश और दुनिया पर मंडरा रहे बोझ से मुक्त हो गयी। शांति लौट आई क्योंकि मैंने महसूस किया कि ईश्वर मुझे उन बोझों को उठाने के लिए नहीं बुला रहा था, बल्कि संत मत्ती के सुसमाचार में येशु द्वारा दिए गए जूए को गले लगाने के लिए था: “हे थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो, तुम सभी मेरे पास आओ, और मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो, और मुझ से सीखो; मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूं। इस तरह तुम अपनी आत्मा केलिए विश्राम पाओगे।” (11:28,29).
एक ईसाई की पहचान
मेरे दोनों माता-पिता खेतीबारी करते हुए पले-बढ़े। शायद उन्होंने दो जानवरों को उनके कंधे पर लकड़ी के पट्टे से बंधे हुए देखा होगा, लेकिन मैंने नहीं देखा था। मैंने हमेशा उस वाक्य की व्याख्या येशु को हमारे साथ जीवन में साझेदारी करते हुए चित्रित करके की थी। वह, बोझ का भार उठाते हुए, और मैं, साथ-साथ चलती हुई, उनकी मदद और मार्गदर्शन से जो कार्य मुझे करना था उसे पूरा करती हुई।
लेकिन हाल ही में, मुझे पता चला कि “जुआ” पहली सदी का यहूदी मुहावरा था जिसका मतलब गर्दन से जुड़े बैलों की कृषि संबंधी छवि से बिल्कुल अलग था।
“जुआ”, जैसा कि येशु ने प्रयोग किया था, रब्बी, अर्थात यहूदी गुरु की शिक्षाओं के संग्रह को संदर्भित करता है। किसी विशेष रब्बी की शिक्षाओं का पालन करने का निर्णय लेकर, एक व्यक्ति उसका शिष्य बन जाता है और उसके साथ चलने का फैसला लेता है। वास्तव में, येशु कह रहे हैं, “मैं तुम्हें दिखा रहा हूँ कि परमेश्वर के साथ चलना कैसा होता है।” यह कोई कर्तव्य या दायित्व नहीं, बल्कि एक विशेषाधिकार और उपहार है! हालाँकि मैंने येशु के “जूए” को एक विशेषाधिकार और उपहार के रूप में अनुभव किया था, लेकिन “दुनिया की परेशानियों” का अनुभव करने के बारे में उसने वादा किया था। लेकिन मुझे डर था कि इससे अक्सर मेरी खुशी मुझसे छीन ले जायेगी जो एक ईसाई की पहचान है।
आज सुबह की प्रार्थना के दौरान, मैंने लगभग पच्चीस साल पहले एक फ्रांसिस्कन पादरी द्वारा लिखी गई एक किताब खोली, और उस पृष्ठ को देखा जिसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यह आज ही लिखा गया हो:
‘जब अनुग्रह एक अनुभवी वास्तविकता नहीं रह जाती है, तो ऐसा लगता है कि स्वतंत्रता का क्षेत्र भी खो गया है… दूसरे पक्ष को राक्षसी बनाना बहुत आसान है। हम इस देश में चुनावों में इसे बड़े पैमाने पर लिखते हुए देखते हैं। कोई भी पक्ष जानता है कि दूसरे पक्ष पर हमला कैसे करना है। हमारे पास विश्वास करने के लिए कुछ भी सकारात्मक नहीं है, कोई भी ऐसी चीज़ जो प्रबुद्ध या समृद्ध या गहरी हो। नकारात्मक पहचान, भले ही वह उथली हो, समर्पित निर्णय की तुलना में अधिक आसानी से आती है। सच कहूँ तो, पक्ष की अपेक्षा विपक्ष में होना कहीं अधिक आसान है। यहां तक कि कलीसिया में भी, कई लोगों के पास आगे बढ़ने का कोई सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं है, इसलिए वे आरोप को पीछे या विपरीत दिशा में ले जाते हैं। ध्यान दें कि येशु की ‘ईश्वर के राज्य’ की अवधारणा पूरी तरह से सकारात्मक है – भय-आधारित या किसी व्यक्ति, समूह, पाप या समस्या के प्रति विरुद्ध नहीं।’ (एवरीथिंग बिलॉन्ग्स, 1999)
तिल तिल मसीह की छवि में
मैं जो भारीपन महसूस कर रही थी, वह न केवल हमारे देश में विभाजन के कारण हुआ, बल्कि मेरे अपने वृत्त में उन लोगों के बीच भी था, जो मेरे जैसे, येशु को “प्रभु” पुकारते हैं, फिर भी वे दूसरे व्यक्ति की अलग बुलाहट और पथ का सम्मान करने में असमर्थ मालूम पड़ते हैं। यह जानते हुए कि येशु ने उन लोगों की गरिमा बहाल की जिन्हें समाज ने शर्मिंदा किया था, क्या यह वही नहीं होना चाहिए जो हम, उनके अनुयायियों के रूप में, एक दूसरे के लिए करना चाहते हैं? हमारा काम बहिष्कृत करना नहीं, सम्मिलित करना है; मुंह मोड़ना नहीं , बल्कि हर व्यक्ति के पास पहुँचना है; आरोप लगाना नहीं, परन्तु सबको सुनना है।
मैंने स्वयं इससे संघर्ष किया। यह समझना कठिन था कि दूसरे लोग चीजों को इस तरह से कैसे देख सकते हैं जो मुझे मसीही संदेश के विपरीत लगती है, फिर भी उन्हें उस दृष्टि के माध्यम से देखने में वही कठिनाई हुई जिसके माध्यम से मैं अब येशु के “जूए” को देखती हूं। मैंने वर्षों पहले “सिखाने योग्य” भावना रखने का मूल्य सीखा था। हमारे लिए यह महसूस करना आसान है कि हमारे पास एकमात्र सत्य है, फिर भी, यदि हम दृढ़ शिष्य हैं, तो हम न केवल प्रार्थना के माध्यम से बल्कि पढ़ने, पवित्र धर्मग्रन्थ पर मनन करने और अपने से अधिक बुद्धिमान लोगों को सुनने के माध्यम से लगातार अपनी दृष्टि का विस्तार करेंगे। हम किसे अपने ऊपर प्रभाव डालने की जगह देना चाहते हैं, यह सर्वोपरि है। परखे हुए विश्वास और सत्यनिष्ठा वाले व्यक्ति, जिन्होंने “अपनी बुलाहट के योग्य जीवन” जीया है, हमारे ध्यान के पात्र हैं। सबसे बढ़कर, जो प्रेम को आदर्श बनाते हैं, सभी की भलाई की तलाश करते हैं, उन लोगों की मिसाल हमें वर्षों तक बढ़ने और बदलने में मदद करेगी। हमारा चरित्र धीरे-धीरे परिष्कृत होता जाएगा, क्योंकि हम “मसीह की छवि में परिवर्तित” हो रहे हैं।
अगर हम, अपने पूरे ज्ञानोदय में, अभी भी महसूस करते हैं कि हमें सच बोलना चाहिए जैसा कि हम इसे समझते हैं, यहां तककि उस प्यार के साथ भी जो इसके साथ जुड़ा हुआ है, तो यह सोचने में गलती करना बहुत आसान है कि हम किसी की ज़िंदगी में पवित्र आत्मा की आवाज़ हैं! केवल ईश्वर ही उसके लिए जीए गए जीवन के हृदय, मन और आज्ञाकारिता को जानता है। उसकी आत्मा का कार्य और दूसरे की प्रतिक्रिया हमारे अधिकार क्षेत्र नहीं हैं।
निश्चित रूप से, अच्छे माता-पिता एक छोटे बच्चे पर उंगली नहीं उठाएंगे और इस बात पर ज़ोर नहीं देंगे कि वह बच्चा एक वयस्क की तरह व्यवहार करें। अच्छे माता-पिता समझते हैं कि बच्चे को परिपक्व होने में कई साल, बहुत सारी शिक्षा और एक अच्छे नमूने की ज़रुरत है। शुक्र है, हमारे पास एक बहुत अच्छे माता-पिता हैं! भजन 22 फिर याद आया। वही भजन जिसे येशु ने अपने दर्द और पीड़ा की गहराई में क्रूस से उद्धृत किया था, इस अनुस्मारक के साथ समाप्त होता है कि प्रत्येक पीढ़ी अपने बच्चों को प्रभु द्वारा किए गए अच्छे कामों के बारे में बताएगी। अनुग्रह प्रचुर मात्रा में है, और स्वतंत्रता आती है। मैंने फिर से फैसला किया कि जिन्हें मैं नहीं समझती और जो मुझे नहीं समझते उनके प्रति मैं अनुग्रह और स्वतंत्रता दोनों को समर्पित करूंगी।
जिसके साथ जीवन भर मेरा जूआ जुड़ा है, वही मुझे रास्ता दिखाता है।
'शालोम टाइडिंग्स के नियमित स्तंभकार फादर जोसेफ गिल अपने जीवन की कहानी साझा करने के लिए अपने दिल की बातें खुलकर रखते हैं और बताते हैं कि उन्हें कैसे प्यार हुआ
मैं मानता हूं कि मेरी बुलाहट को बुलाहट कम माना जाना चाहिए, बल्कि जिस व्यक्ति ने मुझे बनाया और मेरे दिल को उसने अपनी ओर आकर्षित किया, यह बुलाहट उस व्यक्ति के साथ मेरी प्रेम लीला मानी जानी चाहिए। जब मैं बहुत छोटा था, तभी से मैं प्रभु से प्रेम करता था। मुझे याद है जब मैं आठ या नौ साल का था, तब मैं अपने कमरे में बैठकर बाइबल पढ़ता था। मैं परमेश्वर के वचन से इतना प्रेरित हुआ कि मैंने बाइबल की मेरी अपनी किताब लिखने की भी कोशिश की (कहने की जरूरत नहीं है, यह कोशिश सफल नहीं हुई!)। मैंने मिशनरी या शहीद होने का, उदारतापूर्वक अपना जीवन मसीह को देने का सपना देखा।
फिर मेरी किशोरावस्था आ गई और मसीह के प्रति मेरा जुनून सांसारिक चिंताओं के नीचे दब गया। मेरा जीवन बेसबॉल, लड़कियों और संगीत के इर्द-गिर्द घूमने लगा। मेरी नई महत्वाकांक्षा एक अमीर और प्रसिद्ध रॉक संगीतकार या खेल उद्घोषक बनने की थी।
आत्मा पर आघात
शुक्र है, प्रभु ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। जब मैं चौदह वर्ष का था, तो मुझे अपने युवा समूह के साथ रोम की तीर्थयात्रा पर जाने का सौभाग्य मिला। कोलोसियम में खड़े होकर मैंने सोचा, “इस स्थान पर दस हजार से अधिक पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने येशु मसीह के लिए अपना खून बहाया है। मुझे अपने विश्वास की अधिक परवाह क्यों नहीं करना चाहिए?” सिस्टाइन गिरजाघर ने मुझे प्रभावित किया – सुन्दर चित्रों से भरपूर उस छत के कारण नहीं, बल्कि दूर की दीवार पर बनी उस कला के कारण: माइकल एंजेलो द्वारा “अंतिम न्यायविधि” का सुन्दर चित्र वहां अंकित था। वहाँ, जीवन भर लिए गए फैसलों के परिणाम को अर्थात स्वर्ग और नरक को सशक्त रूप से दर्शाया गया है। यह सोचकर मुझे अंदर तक आघात लगा कि मैं उन दो स्थानों में से एक में अनंत काल बिताऊंगा, मैंने सोचा… “तो मैं कहाँ जा रहा हूँ?”
जब मैं लौटा, तो मुझे पता था कि मुझे अपने जीवन में कुछ परिवर्त्तन लाने की ज़रूरत है… लेकिन ऐसा करना कठिन हो सकता है। मैं किशोरावस्था में बहुत सारे पाप, गुस्से और नाटकबाजी में फंस गया था। मैंने आधे-अधूरे मन से प्रार्थना जीवन विकसित करने की कोशिश की, लेकिन यह जड़ नहीं जमा सका। मैं यह नहीं कह सकता कि मैं वास्तव में पवित्रता के लिए प्रयासरत हूँ। प्रभु को मेरा दिल जीतने के लिए और अधिक मुठभेड़ों की जरूरत पड़ी।
सबसे पहले, मेरी पल्ली ने सतत आराधना शुरू की, जिससे लोगों को परम प्रसाद के पवित्र संस्कार के सामने प्रार्थना करने का 24 x 7 अवसर प्रदान किया गया। मेरे माता-पिता ने आराधना के एक साप्ताहिक घंटे के लिए साइन अप किया और मुझे आने के लिए आमंत्रित किया। पहले तो मैंने मना कर दिया; मैं अपने पसंदीदा टीवी कार्यक्रम छोड़ना नहीं चाहता था! लेकिन फिर मैंने तर्क दिया, “अगर मैं वास्तव में पवित्र परम प्रसाद के बारे में जो कहता हूं और उस पर विश्वास करता हूं – कि यह वास्तव में यीशु मसीह का शरीर और रक्त है – तो मैं उस संस्कार के साथ एक घंटा क्यों नहीं बिताना चाहूंगा?” इसलिए, अनिच्छा से, मैंने आराधना में जाना शुरू किया… और मुझे उससे प्यार हो गया। मौन मनन-चिंतन, धर्मग्रंथ का पाठ और प्रार्थना आदि के उस साप्ताहिक घंटे ने मेरे लिए परमेश्वर के व्यक्तिगत, और भावुक प्रेम का एहसास कराया… और मैं अपने प्यारे प्रभु को अपने पूरे जीवन के माध्यम से वह प्रेम लौटाने की इच्छा करने लगा।
केवल सच्ची ख़ुशी
लगभग उसी समय, ईश्वर मुझे कुछ आत्मिक साधनाओं में ले गया जो बहुत परिवर्तनकारी थी। एक साधना ओहियो में थी, जो कैथलिक फ़ैमिली लैंड नामक एक ग्रीष्मकालीन कैथलिक पारिवारिक शिविर था। वहाँ, पहली बार, मुझे मेरी ही उम्र के लड़के मिले जिनके मन में येशु के प्रति गहरा प्रेम था, और मुझे एहसास हुआ कि एक युवा व्यक्ति के रूप में पवित्रता के लिए प्रयास करना संभव (और अच्छा भी!) था। फिर मैंने क्रूस वीर के द्वारा आयोजित हाई स्कूल के लड़कों के लिए सप्ताहांत साधना में भाग लेना शुरू किया, और मैंने और भी अधिक दोस्त बनाए। येशु मसीह के प्रति उनके प्रेम को देखकर मेरी आध्यात्मिक यात्रा में वृद्धि हुई।
अंततः, हाई स्कूल के एक वरिष्ठ छात्र के रूप में, मैंने एक स्थानीय सामुदायिक कॉलेज की कक्षाओं में जाना शुरू कर दिया। तब तक, मेरी पढ़ाई घर पर ही हुआ करती थी, इसलिए मुझे घर का सुरक्षा कवच और आश्रय मिला हुआ था। लेकिन इन कॉलेज की कक्षाओं में, मेरा सामना नास्तिक प्रोफेसरों और सुखवादी साथी छात्रों से हुआ, जिनका जीवन अगली पार्टी, अगली तनख्वाह और अगले हुकअप के इर्द-गिर्द घूमता था। लेकिन मैंने देखा कि वे बहुत दुखी लग रहे थे! वे लगातार अगली सुखदायक चीज़ के लिए प्रयास कर रहे थे। वे कभी भी अपने स्वार्थ की पूर्ती से बड़ी किसी चीज़ के लिए नहीं जी रहे थे। इससे मुझे एहसास हुआ कि दूसरों के लिए और मसीह के लिए अपना जीवन अर्पित करने में ही एकमात्र सच्ची खुशी है।
उस समय से, मुझे पता था कि मेरा जीवन प्रभु येशु और उसके इर्द गिर्द होना चाहिए। मैंने फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई शुरू की और मैरीलैंड में माउंट सेंट मैरी के सेमिनरी में दाखिला लिया। लेकिन एक पुरोहित बनाने के बाद भी मेरी यात्रा जारी है। हर दिन प्रभु अपने प्रेम का और अधिक प्रमाण दिखाता है और मुझे अपने हृदय की गहराई में ले जाता है। यह मेरी प्रार्थना है कि आप सभी, मेरे प्रिय शालोम टाइडिंग्स के पाठको, आप अपने विश्वास को “हमारी आत्माओं के महान प्रेमी” के साथ एक क्रांतिकारी, सुंदर प्रेम संबंध के रूप में देखें!
'जब आपके आस-पास सब कुछ उथल पुथल हो जाता है, तो क्या आपने कभी पूछा है, “परमेश्वर मुझसे क्या चाहता है?”
मेरा जीवन, अन्य सभी की तरह, अद्वितीय और अपूरणीय है। ईश्वर अच्छा है, और मैं अपने जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद भी ईश्वर के प्रति आभारी हूं। कैथलिक माता-पिता ने मुझे जन्म दिया और मैंने ख्रीस्त राजा पर्व के दिन बपतिस्मा लिया। मैंने एक कैथलिक प्राइमरी स्कूल में और एक वर्ष कैथलिक हाई स्कूल में पढ़ाई की। दृढीकरण संस्कार पाकर येशु मसीह के लिए एक सैनिक बनने की बड़ी तीव्र इच्छा मेरे अन्दर थी। मुझे याद है कि मैंने येशु से कहा था कि मैं प्रतिदिन मिस्सा बलिदान में भाग लेने जाऊंगी। मैंने एक कैथलिक पुरुष से शादी की और अपने बच्चों को कैथलिक विश्वास में पाला। हालाँकि, मेरा विश्वास सिर्फ मेरे दिमाग में था और अभी तक मेरे दिल तक नहीं पहुँचा था।
पीछे मुड़कर एक खोज
अपने जीवन के मार्ग में कहीं पर, मैं येशु को अपने मित्र के रूप में पहचानना छोड़ दिया। मुझे याद है कि एक नवविवाहित युवा महिला के रूप में, कुछ दिन मैं मिस्सा बलिदान में भाग नहीं ले पायी थी क्योंकि मैंने सोचा था कि मैं अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ सुख प्राप्ति के लिए काम करूंगी। मैं बहुत गलत थी. मैं अपनी सास के अनजाने हस्तक्षेप के लिए धन्यवाद देती हूं: उन रविवारों में से एक रविवार को, उन्होंने मुझसे पूछा कि मिस्सा बलिदान कैसा था। मैं उनके सवाल को नजरअंदाज करने और विषय बदलने में कामयाब रही, लेकिन ईश्वर उनके सवाल के माध्यम से मुझ तक पहुंचा। अगले रविवार, मैं मिस्सा में गयी और फिर कभी मिस्सा न चूकने का संकल्प लिया।
कई माताओं की तरह, मैं पारिवारिक जीवन, स्कूल में स्वयंसेवा, धार्मिक शिक्षा का अध्यापन, अंशकालिक काम करना आदि में व्यस्त थी। सच कहूँ तो, मुझे नहीं पता था कि किसी को “नहीं” कैसे कहना है। इसका परिणाम यह हुआ कि मैं थककर चकनाचूर हो चुकी थी। हां, मैं एक अच्छी महिला थी और अच्छे काम करने की कोशिश करती थी, लेकिन मैं येशु को अच्छी तरह से नहीं जानती थी। मैं जानती थी कि वह मेरा दोस्त था और हर हफ्ते मिस्सा बलिदान में उसको मैं ग्रहण करती थी, लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि मैं बस कुछ रस्मों की पूर्ती करती थी।
जब मेरे बच्चे जूनियर हाईस्कूल में थे, तो मुझे फाइब्रोमायल्जिया रोग का पता चला और मुझे लगातार दर्द का अनुभव होता था। मैं काम से घर आती और आराम करती थी। दर्द के कारण मुझे कई काम बंद करना पड़ा। एक दिन एक दोस्त ने फोन करके पूछा कि तुम्हारा हाल क्या है। मैंने उससे बस अपने बारे में और अपने दर्द के बारे में शिकायत की थी। तब मेरे मित्र ने मुझसे पूछा, “ईश्वर तुमसे क्या चाहता है?” मैं असहज हो गयी और रोने लगी. फिर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने तुरंत फोन रख दिया. मैंने सोचा, “ईश्वर को मेरे दर्द से क्या लेना-देना है।” बस मुझे इतना ही याद है कि मेरे मित्र के प्रश्न ने मुझे परेशान कर दिया था।
हालाँकि आज तक, मुझे यह याद नहीं है कि मुझे महिलाओं के सप्ताहांत बैठक में किसने आमंत्रित किया था, जैसे ही मैंने अपनी पल्ली में “ख्रीस्त अपनी पल्ली का नवीकरण करता है” (सी.आर.एच.पी.) नामक एक साधना के बारे में सुना, मैंने तुरंत उसमें भाग लेने की हामी भर दी! मेरी बस इच्छा थी की मैं सप्ताह के अंत में घर से दूर रहूँ, खूब आराम करूं और दूसरों से अपनी मदद करा लूं। मैं गलत थी। व्यावहारिक रूप से सप्ताहांत के हर मिनट की योजना बनाई गई थी। क्या मुझे आराम मिला? मुझे कुछ मिला, लेकिन जैसा मैंने सोचा था वैसा नहीं।
मैं ने अपने “मैं, मैं और मैं” पर केन्द्रित होने की प्रवृत्ति पर ध्यान दिया। वहां ईश्वर कहाँ था ? मुझे नहीं पता था कि पवित्र आत्मा द्वारा संचालित सप्ताहांत में मेरी हामी मेरे दिल का दरवाज़ा खोल देगी।
जबरदस्त उपस्थिति
उस साधना के बीच, एक प्रवचन सुनने के दौरान मेरी आंखों में आंसू आ गए। मुझे लगा कि ईश्वर मुझसे कह रहा है “ठहरो”। और मेरे जीवन को बदलने वाले शब्दों को सीधे ईश्वर को सुनाने के लिए मैं ने अपने दिल में एक प्रेरणा महसूस की। जो शब्द मैंने पूरे दिल से ईश्वर से कहे थे, उन शब्दों ने मेरे दिल में येशु के प्रवेश के लिए द्वार खोल दिया और ईश्वर के बारे में मेरे दिमाग के अन्दर से उतारकर मेरे दिल के अन्दर रखने का काम शुरू हुआ!
“हे ईश्वर, मैं तुझसे प्यार करती हूँ,” मैंने कहा, “मैं पूरी तरह तेरी हूँ। तू मुझसे जो कुछ भी कहेगा मैं वह करूँगी, और जहाँ भी तू मुझे भेजेगा, मैं वहाँ जाऊँगी।”
मेरे दिल का विस्तार करने की ज़रूरत थी ताकि जिस तरह ईश्वर मुझसे प्यार करता हैं, उस तरह मैं प्यार करना सीख सकूं। “ईश्वर ने संसार से इतना प्रेम किया कि उस ने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस पर विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त कर सके।” (योहन 3:16)।
उस वार्तालाप ने एक रूपांतरण, एक मेटानोइया थापित किया यानी मेरे हृदय को ईश्वर की ओर मोड़ दिया। मैंने ईश्वर के बिना शर्त प्यार का अनुभव किया था, और अचानक ईश्वर मेरे जीवन में सबसे प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण बन गया। इसका वर्णन करना बहुत कठिन है, सिवाय इसके कि मैं इसे कभी नहीं भूलूंगी। मुझे ऐसा लगा जैसे ईश्वर ने अंधेरे में मेरा हाथ थाम लिया हो और मेरे साथ दौड़ा हो। मैं जोश में थी और खुश और आश्चर्यचकित थी कि ईश्वर मेरे जीवन में क्या कर रहा था और क्या कर रहा है।
मेरे रूपांतरण के कुछ ही समय बाद और लाइफ इन द स्पिरिट सेमिनार के बाद, मैं अपने फाइब्रोमायल्जिया से ठीक हो गयी। मैंने अपने जीवन को देखा और प्रभु से प्रार्थना की कि वह मुझे उसके जैसा बनने में मदद करे। मुझे एहसास हुआ कि मुझे क्षमा करना सीखने की आवश्यकता है, इसलिए मैंने ईश्वर से यह दिखाने के लिए कहा कि मुझे किसे क्षमा करने या किससे क्षमा माँगने की आवश्यकता है। उसने ऐसा ही किया, और धीरे-धीरे, मैंने सीखा कि क्षमा कैसे करें और क्षमा कैसे स्वीकार करें। मैंने अपने सबसे महत्वपूर्ण रिश्तों में से एक – अपनी माँ के साथ अपने रिश्ते में सुधार का अनुभव किया। आख़िरकार मैंने सीख लिया कि ईश्वर की तरह उससे कैसे प्यार करना है। मेरे परिवार को भी उपचार का अनुभव हुआ। मैं और अधिक प्रार्थना करने लगी। प्रार्थना मेरे लिए रोमांचक थी. मैंने मौन प्रार्थना में समय बिताया, मौन ही वह जगह थी जहाँ प्रभु से मेरी मुलाक़ात हुई। 2003 में मुझे लगा कि ईश्वर मुझे केन्या बुला रहा है, और 2004 में, मैंने तीन महीने के लिए एक धर्मशाला के अनाथालय में स्वेच्छा से काम किया। सी.आर.एच.पी. के बाद से, मुझे लगा कि मुझे एक आध्यात्मिक निदेशक बनने की बुलाहट मिल रही है और मैं एक प्रमाणित आध्यात्मिक निदेशक बन गयी। प्रभु ने मेरे जीवन में और भी बहुत कुछ किया है। जब आप येशु मसीह को जानते हैं तो हमेशा बहुत कुछ होता है।
पीछे मुड़कर अपने जीवन पर नजर डालूँ तो मैं कुछ भी नहीं बदलूंगी, क्योंकि इस जीवन ने हे मुझे वह बनाया है जो मैं आज हूं। हालाँकि, मुझे आश्चर्य है कि अगर मैंने जीवन बदलने वाले वे शब्द न कहे होते तो मेरे साथ क्या होता।
ईश्वर आपसे प्यार करता है। ईश्वर आपको पूरी तरह से जानता है – अच्छा और बुरा – लेकिन फिर भी आपसे प्यार करता है। ईश्वर चाहता है कि आप उसके प्रेम के प्रकाश में रहें। ईश्वर चाहता है कि आप खुश रहें और अपना सारा बोझ उस पर लाएँ। “हे सब थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो, तुम सब मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।” ( मत्ती 11:28) मैं आपको अपने हृदय की गहराइयों से यह प्रार्थना कहने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ: “प्रभु, मैं तुमसे प्यार करती हूँ। मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ। तुम मुझसे जो कुछ भी कहोगे मैं वह करूँगी, और जहाँ भी तुम मुझे भेजोगे मैं वहाँ जाऊँगी।” मैं प्रार्थना करती हूं कि आपका जीवन कभी भी पहले जैसा न हो और चाहे आपके आसपास कुछ भी हो रहा हो, आपको आराम और शांति मिलेगी क्योंकि आप ईश्वर के साथ चलते हैं।
'इस साल नव वर्ष में सबसे अच्छा संकल्प लेने की खूबसूरती को जानें
जब हम एक नए साल की दहलीज पर खड़े होते हैं, तो हवा प्रत्याशा और एक नई शुरुआत के वादे से भरी होती है। कई लोगों के लिए, यह बदलाव अतीत के बोझ को पीछे छोड़ने और विकास और स्वस्थ जीवन की यात्रा शुरू करने का मौका दर्शाता है। मैं भी इस रास्ते पर चली हूँ – जीवन की जटिलताओं के बीच जीवन नौका का संचालन करती हुई, प्रार्थना की परिवर्तनकारी कृपा के माध्यम से सांत्वना, शक्ति और आनंद पा रही हूँ।
आधी रात की चेष्टा
कुछ साल पहले, मैंने खुद को मेरे दिल पर भारी पड़ रहे अतीत के दर्द के अवशेषों से जूझती हुई पाया। निराशाओं और नुकसानों के चोट के निशान मेरे दिल पर छा गए थे, इसलिए मैं एक नई शुरुआत के लिए तरस रही थी। इसी आत्मनिरीक्षण के क्षण में मैंने एक संकल्प लिया – एक ऐसा संकल्प जो मुझे अनुग्रह और चंगाई की राह पर ले जाएगा।
जैसे ही घड़ी ने आधी रात बजाई, मैंने प्रार्थना की परिवर्तनकारी शक्ति के लिए खुद को समर्पित करने का संकल्प लिया। यह संकल्प बदलाव की क्षणभंगुर इच्छा से नहीं, बल्कि मेरी आत्मा के टूटे हुए तिनकों को जोड़ने और उस खुशी को पाने की गहरी ज़रूरत से पैदा हुआ था जो ख़ुशी मुझे बहुत लंबे समय से नहीं मिली थी।
नए साल के शुरुआती दिनों में, मेरे पिछले दर्द की पीड़ा ने मेरे संकल्प को बनाए रखने की यात्रा को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया। विकर्षणों और संदेहों ने मेरी प्रतिबद्धता को पटरी से उतारने की कोशिश की, लेकिन मैं अपने विश्वास और दृढ़ संकल्प पर अड़ी रही। लगातार प्रार्थना के माध्यम से, मैंने अपने भीतर सूक्ष्म बदलावों का अनुभव करना शुरू कर दिया – अनुग्रह की फुसफुसाहट मेरी घायल आत्मा को छू रही थी।
जैसे-जैसे महीने बीतते गए, अनुग्रह और कृपा मेरे जीवन में एक हल्की बारिश की तरह बरसने लगी, मेरे दिल की सूखी ज़मीन को सुकून देने लगी। मुझे उन लोगों को माफ़ करने का साहस मिला जिन्होंने मेरे साथ गलत किया था और यह समझने में कृपा मिली कि माफ़ी एक उपहार था और मैंने खुद को माफ़ी का उपहार दिया था। यह मुक्तिदायक थी, एक दिव्य अनुग्रह जिसने मुझे कड़वाहट की बेड़ियों से मुक्त किया, जिससे मुझे प्यार और खुशी को गले लगाने की अनुमति मिली।
अपने संकल्प पर अडिग रहें
यह रास्ता बिना कांटों वाला नहीं था, लेकिन प्रार्थना की कृपा ने मुझे दृढ़ रहने की शक्ति और लचीलापन दिया। मुझे एहसास हुआ कि यह यात्रा केवल संकल्प पर अडिग रहने के बारे में नहीं थी – यह विश्वास की उज्ज्वल रोशनी से प्रकाशित जीवन को अपनाने के बारे में थी।
प्रार्थना में निरंतरता ने मेरे उपचार और नवीनीकरण की यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुझे अक्सर जीवन के संघर्षों और विकर्षणों के बीच इस नई आदत को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण लगता था। यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं जिन्होंने मुझे उस राह पर बने रहने और अपने संकल्प को जीवित रखने में मदद की:
1. पवित्र समय निर्धारित करें: दिन का एक ऐसा विशिष्ट समय खोजें जो आपके लिए अविरोध प्रार्थना करने के लिए सबसे अनुकूल हो। यह सुबह में दिन की उथल-पुथल शुरू होने से पहले, या मध्यान्ह भोजन के लिए अवकाश के दौरान या शाम को हो सकता है, जब पूरे दिन की गतिविधियों पर चिंतन करने का अवसर हो। यह समर्पित समय एक दिनचर्या स्थापित करने में मदद करेगा।
2. पवित्र स्थान बनाएँ: प्रार्थना के लिए एक विशेष स्थान निर्धारित करें, चाहे वह आपके घर का एक आरामदायक कोना हो, गिरजाघर हो या बाहर कोई प्राकृतिक स्थान हो। एक समर्पित स्थान होने से पवित्रता और शांति की भावना पैदा करने में मदद मिलती है।
3. प्रार्थना में सहायक सामग्री का उपयोग करें: कोई पत्रिका, जपमाला या आध्यात्मिक पुस्तकों जैसी प्रार्थना में सहायक सामग्री को शामिल करें। ये उपकरण आपके प्रार्थना अनुभव को बढ़ा सकते हैं और आपको केंद्रित रख सकते हैं, खासकर जब विकर्षण आपको प्रार्थना से दूर ले जाने की धमकी देते हैं।
4. जवाबदेही की तलाश करें: अपने संकल्प को किसी भरोसेमंद दोस्त या परिवार के सदस्य के साथ साझा करें जो आपकी यात्रा में आपका उत्साहवर्धन कर सके और आपको जवाबदेह बनाए रख सके। अपनी प्रगति और संघर्षों को साझा करने के लिए किसी का होना अच्छा है और वह व्यक्ति आप केलिये प्रेरणा का स्रोत हो सकता है।
तूफान के बीच
आज, जब मैं उस महत्वपूर्ण वर्ष और उसके बाद के वर्षों के बारे में सोचती हूँ, तो मैं खुशी की गहरी भावना से भर जाती हूँ। जिस दर्द ने मुझे एक बार कैद कर लिया था, वह शक्ति, करुणा और ईश्वर के साथ एक गहरे रिश्ते के स्रोत में बदल गया है। निशान अभी भी बने हुए हैं, लेकिन वे अब उस अनुग्रह के प्रमाण हैं जिसने मुझे तूफान से बाहर निकाला।
जब हम एक नए साल की दहलीज पर खड़े हैं, तो मैं आपको अपने जीवन में प्रार्थना की शक्ति को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ। यह आशा की किरण है, आराम का स्रोत है, और सबसे बुरे समय में हमारी जीवन रेखा है। आपके संकल्प जो भी हों, वे प्रार्थना में डूबे हुए और विश्वास से पोषित होने चाहिए, यह जानते हुए कि ईश्वर की कृपा आपको हर कदम पर मार्गदर्शन करेगी।
'सुबह साढ़े छह बजे, जब सूरज की रोशनी बिलकुल नहीं थी, उस अँधेरे में और बर्फ जमा देने वाली ठंड में, जोशुआ ग्लिक्लिच ने एक फुसफुसाहट सुनी, ऐसी फुसफुसाहट जिसके द्वारा उन्हें नया जीवन मिला।
उत्तरी इंग्लैंड के अन्य ज़्यादतर कैथलिक लड़कों की तरह, मेरा बचपन बहुत ही साधारण तरीके से बीता। मैं एक कैथलिक स्कूल में गया और पहला परमप्रसाद ग्रहण किया। मुझे कैथलिक विश्वास की शिक्षा दी गई और हम अक्सर गिरजाघर जाते थे। जब मेरी उम्र 16 वर्ष की हुई, तो मुझे आगे की पढाई केलिए विद्यालय चुनना था, और मैंने कैथलिक विद्यालय में नहीं, बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष स्कूल में पढ़ाई करने का निर्णय लिया। वहीँ से मैंने अपना विश्वास खोना शुरू कर दिया।
ईश्वर प्रेम में और विश्वास में और गहरा उतरने के लिए शिक्षकों और पुरोहितों का वह निरंतर दबाव अब नहीं रहा। मैं विश्वविद्यालय पहुंचा और यहीं पर मेरे विश्वास की वास्तव में परीक्षा हुई। अपने पहले सेमेस्टर में, मैं पार्टियों में जाता रहा। मैं हर प्रकार के अलग-अलग कार्यक्रमों में जा रहा था, और अच्छे और सही मार्ग को नहीं चुन रहा था। मैंने वास्तव में कुछ बड़ी गलतियाँ कीं। मैं बाहर शराब पीने जाता अथा और न जाने सुबह किस समय कमरे में मैं वापस आता था। मैं ने ऐसा पापपूर्ण जीवन जीना शुरू किया जिसका कोई मतलब नहीं था। उस जनवरी में, जब छात्रों को अपने पहले सेमेस्टर की छुट्टी से लौटना था, मैं अन्य छात्रो के पहुँचने से थोड़ा पहले लौट आया।
मेरे जीवन का वह अविस्मरणीय दिन था। मैं सुबह लगभग साढ़े छह बजे उठा। घना अंधेरा और बर्फ जमा देने वाली ठंड थी। यहाँ तक कि वे लोमड़ियाँ भी नहीं दिख रही थीं जिन्हें मैं अपने कमरे के बाहर देखा करता था – वह हालात इतनी ठंडी और भयानक थी। मुझे अपने भीतर एक अश्रव्य आवाज का आभास हुआ। यह कोई धक्का देने वाली आवाज़ नहीं थी, और यह मेरे लिए असहज भी नहीं थी। ऐसा लगा जैसे ईश्वर ने धीमी फुसफुसाहट में कहा हो, “जोशुआ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तुम मेरे बेटे हो…मेरे पास वापस आओ।” मैं आसानी से इससे दूर जा सकता था और इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर सकता था। मुझे याद आया कि ईश्वर अपने बच्चों को नहीं छोड़ते, चाहे हम कितनी भी दूर क्यों न भटक गए हों।
हालाँकि ओला की बारिश हो रही थी, मैंने उस सुबह गिरजाघर की ओर चल दिया। जैसे ही मैंने एक कदम दूसरे कदम के सामने रखा, मैंने मन में सोचा, “मैं क्या कर रहा हूँ? मेँ कहाँ जा रहा हूँ?” फिर भी ईश्वर मुझे आगे बढ़ाते रहे, और मैं उस ठंडे, और अत्यधिक सर्द दिन में आठ बजे के मिस्सा बलिदान के लिए गिरजाघर पहुँच गया। 15 या 16 साल की उम्र के बाद, पहली बार मैंने मिस्सा बलिदान के शब्दों को अपने अन्दर आत्मसात कर लिया। मैंने सुना – “पवित्र, पवित्र, पवित्र, सेनाओं के प्रभु ईश्वर……।“ उससे ठीक पहले, पुरोहित ने कहा, “स्वर्गदूतों और संतों की गायक मंडली के साथ जुड़कर …………..” मैनें अपना दिल इसमें लगा दिया और अपना पूरा ध्यान हर शब्द पर केन्द्रित किया। मैंने परम प्रसाद में येशु मसीह की वास्तविक उपस्थिति के लिए स्वर्गदूतों को वेदी पर उतरते हुए महसूस किया। मुझे याद है कि मैंने परम प्रसाद ग्रहण किया और ऐसे सोचने लगा, “मैं अब तक कहाँ था, और प्रभु केलिए मेरा जीवन नहीं तो मेरा यह पापपूर्ण जीवन क्या केलिए था?” जैसे ही मैंने परम प्रसाद ग्रहण किया, मेरी आँखों से आंसुओं की बाढ़ बहने लगी। मुझे एहसास हुआ कि मैं मसीह का शरीर प्राप्त कर रहा हूं। वह मेरे भीतर है और मैं उसका पवित्र मञ्जूषा बन गया हूँ —उसका विश्राम स्थल।
तब से मैं नियमित रूप से छात्रों केलिए प्रतिदिन आयोजित मिस्सा बलिदान में भाग लेने लगा। मैं कई कैथलिकों से मिला जो अपने विश्वास से प्यार करते थे। मुझे अक्सर सिएना की संत कैथरीन का यह कथन याद आता है, “परमेश्वर ने तुम्हें जैसा बनाया है वैसा बनो और तुम दुनिया में आग प्रज्वलित कर दोगे।” मैंने इन छात्रों में यही देखा। मैंने देखा कि प्रभु ने इन लोगों को वैसा ही रहने दिया जैसा उन्हें होना चाहिए था। ईश्वर ने एक पिता की तरह धीरे से उनका मार्गदर्शन किया। वे दुनिया में आग प्रज्वलित कर रहे थे – वे कैंपस में दूसरों को अपना विश्वास की गवाही देकर, सुसमाचार की घोषणा कर रहे थे। मैं इसमें शामिल होना चाहता था, इसलिए मैं विश्वविद्यालय के धार्मिक सेवा दल का हिस्सा बन गया। इस दौरान, मैंने अपने विश्वास से प्यार करना और इसे दूसरों के सामने ऐसे तरीके से व्यक्त करना सीखा जो दिखावा नहीं बल्कि येशु मसीह का जैसा था।
कुछ साल बाद, मैं कैथलिक छात्र संघ का अध्यक्ष बन गया। मुझे छात्रों के एक समूह को उनके विश्वास के विकास में नेतृत्व देने का सौभाग्य मिला। इस दौरान मेरा विश्वास बढ़ा. मैं एक वेदी सेवक बन गया. तभी वेदी के करीब होने के कारण मुझे मसीह के साथ निकट रिश्ते का अनुभव हुआ पुरोहित तत्व-परिवर्तन के शब्द कहते हैं, और रोटी और दाखरस मसीह के सच्चे शरीर और रक्त में बदल जाते हैं। एक वेदी सेवक के रूप में यह सब मेरे सामने ही हो रहा था। मेरी आँखों ने उस परिपूर्ण चमत्कार के दर्शन कर लिए, जो हर जगह, हर मिस्सा बलिदान में, हर वेदी पर होता है।
ईश्वर हमारी स्वतंत्र इच्छा और हमारे द्वारा की गई जीवन यात्रा का सम्मान करता है। हालाँकि, सही मंजिल तक पहुँचने के लिए हमें ईश्वर को चुनना होगा। याद रखें कि चाहे हम ईश्वर से कितनी भी दूर क्यों न भटक गए हों, वह हमेशा हमारे साथ है, हमारे बगल में चल रहा है और हमें सही जगह पर ले जा रहा है। हम सिर्फ स्वर्ग की यात्रा पर निकले तीर्थयात्रियों के अलावा और कुछ नहीं हैं।
'दुनिया भर में विभिन्न कारागार में कैद एक करोड़ लोगों में से किसी से भी मुलाक़ात करना किसी भी समय संभव है। आप आश्चर्यचकित होंगे कि यह कैसे संभव होगा? पढ़ते रहिये…
“जब मैं कारागार में था, तब तुम मुझसे मिलने आये।” ये वे लोग हैं जिन्हें येशु ने न्याय दिवस पर पुरस्कृत करने का वादा किया था। कैदियों से मुलाकात को नियंत्रित करने वाले नियम हैं, लेकिन क्या ऐसे तरीके हैं कि कोई दुनिया भर में कैद किसी एक या सभी एक करोड़ लोगों से मुलाकात कर सके? हाँ!
सबसे पहले सभी कैदियों के लिए नियमित रूप से प्रार्थना करें, किसी ऐसे व्यक्ति का नाम लेकर प्रार्थना करें, जिसे आप व्यक्तिगत रूप से नाम से जानते हों। इस प्रार्थना के समय मोमबत्ती जलायें: यह परमेश्वर तक प्रार्थना के उठने और कैदी के जीवन के अंधेरे में रोशनी लाने का प्रतीक भी हो सकता है। जब मुझे जेल में डाल दिया गया तो मेरे परिवार और दोस्तों ने, विशेष रूप से, मेरे लिए, सर्वशक्तिमान ईश्वर को अर्पित करने की जीवित लौ के रूप में मोमबत्तियाँ जलाईं। मुझे यह बहुत प्रभावी लगा. यह आश्चर्यजनक था कि सामान्य जेल जीवन की निराशा में अचानक खुशी की किरण चमकती थी। कुछ छोटा, लेकिन इतना सार्थक कि मैं एक पल के लिए भूल जाऊँगा कि मैं कहाँ था और किन परिस्थितियों में था, जिसने मुझे ‘आखिरकार यहाँ भी एक परमेश्वर है” ऐसा सोचने के लिए प्रेरित किया।
लेकिन मेरा मानना है कि जेल में बंद लोगों का या प्रार्थना की अत्यधिक आवश्यकता वाले किसी भी व्यक्ति की मदद करने का सबसे शक्तिशाली तरीका उन पवित्र अनमोल घावों पर विचार करना है जो हमारे प्रभु ने पुण्य बृहस्पतिवार की रात को उनकी गिरफ्तारी से लेकर पुण्य शुक्रवार तीसरे पहर को उनकी मृत्यु तक अपनी दुःख पीड़ा के दौरान झेले थे।
अटल प्रतिज्ञा
प्रभु के शरीर पर हुए सभी प्रहारों और हमलों पर विचार करें, जिसमें क्रूर कोड़े और कांटों के मुकुट के घावों का निरंतर दर्द भी शामिल है, लेकिन विशेष रूप से उसके हाथों, पैरों और बगल पर लगे पांच सबसे कीमती घावों पर।
संत फॉस्टिना हमें बताती हैं कि जब हम येशु के घावों पर विचार करते हैं तो इससे प्रभु को ख़ुशी होती है, और जब हम ऐसा करते हैं तो वह हम पर करुना की वर्षा बरसाने की प्रतिज्ञा करते हैं। इस दयालु, उदार प्रस्ताव का लाभ उठाएँ जो उसने इस युग के लिए आरक्षित रखा है। अपने लिए, उन लोगों के लिए जिन्हें आप नाम से जानते हैं, और उन सभी एक करोड़ कैदियों के लिए, जो न्यायसंगत और अन्यायपूर्ण, सभी प्रकार के कारणों से जेल में बंद हैं, उन पर अनुग्रह और दया के लिए प्रार्थना करें। वह हर एक आत्मा को बचाना चाहता है, हर एक को उसकी दया और क्षमा प्राप्त करने के लिए अपने पास वापस बुलाता है।
पददलितों, हाशिये पर रहनेवाले लोगों, गरीबों, बीमारों और अपाहिजों तथा उन मूक पीड़ितों के लिए भी प्रार्थना करें जिनके लिए बोलने वाला कोई नहीं है। उन सभी के लिए प्रार्थना करें जो भूखे हैं –ताकि उन्हें भोजन और ज्ञान मिलें, या अपनी ईश्वर प्रदत्त प्रतिभाओं का उपयोग करने के अवसर उन्हें मिलें। अजन्मे और ईश्वरविहीनों के लिए प्रार्थना करें। हम सभी किसी न किसी प्रकार के कैदी हैं, लेकिन विशेष रूप से, हम पाप के सभी घातक रूपों के कैदी हैं।
वह हमसे अपने बहुमूल्य रक्त से भिगोये गए क्रूस के चरणों में आने के लिए कहता है, उसके सामने अपनी याचिकाएँ रखें, और हमारे निवेदन जो भी हो, वह दया उर करुना के साथ हमें जवाब देगा।
आइए हम उस अथाह खज़ाने की भीख माँगने का कोई अवसर न चूकें जिसका वादा हमारे दयालु प्रभु ने हमसे किया है। जब हम दुनिया भर में उन एक करोड़ कैदियों के लिए प्रार्थना करते हैं, तो उनमें से हर एक को हमारी प्रार्थना का 100 प्रतिशत लाभ मिलता है, क्योंकि जिस तरह हमारा अच्छा ईश्वर पवित्र परम प्रसाद में खुद को पूरी तरह से हम में से प्रत्येक को देता है, वह हमारी एक अकेली प्रार्थना को मेगाफोने की तरह कई गुना बढ़ा देता है, जो उनमें से प्रत्येक के दिल तक पहुंच रहा है।
कभी मत सोचो “मेरी एक अकेली प्रार्थना इतने सारे लोगों के लिए क्या करेगी?” रोटियों और मछलियों के चमत्कार को याद रखें और अब संदेह न करें।
'महामारी के कारण पाबन्दी के शुरुआती दिनों में जब मेरे लिए पवित्र मिस्सा बलिदान में भाग लेने का एक मात्र तरीका सीधा प्रसारण था, तो मुझे कुछ कमी महसूस हुई…
पवित्र आत्मा हमेशा हमारे दिलों में काम करता है, इसलिए मुझे आश्चर्य नहीं होना चाहिए था कि, कोविड-19 महामारी के शुरुआती दिनों की विश्वव्यापी उथल-पुथल के बीच, उसने मेरे दिल को मसीह के रहस्यमय शरीर के पूर्ण अनुभव केलिए खोल दिया।
जब मैंने यह खबर सुनी कि रेस्तरां, दुकानें, स्कूल और कार्यालय के साथ-साथ गिरजाघर भी बंद हो जाएंगे, तो मैंने सदमे और पूर्ण अविश्वास में प्रतिक्रिया व्यक्त की: “यह कैसे हो सकता है?” हमारे पल्ली से पवित्र मिस्सा बलिदान का सीधा प्रसारण देखना एक ही समय में परिचित भी था और परेशान करनेवाला अनुभव था। वहाँ टी.वी. पर हमारे पल्ली पुरोहित थे, जो सुसमाचार का पाठ कर रहे थे, अपने धर्मोपदेश दे रहे थे, रोटी और दाखरस पर अभिषेक प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन बेंचें खाली थीं। हमारी आवाज़ें कमज़ोर लग रही थीं, और हमारे कमरों से निकल रहे प्रार्थनाओं के जवाब उपयुक्त नहीं लग रहे थे। और यह परेशानी कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा हमें बताती है कि धर्मविधि “समुदाय के नए जीवन में विश्वासियों को शामिल करती है और इसमें सभी की ‘जागरूक, सक्रिय और फलदायी भागीदारी शामिल होती है” (सी.सी.सी. 1071)। हम अपनी पूरी क्षमता से भाग ले रहे थे, लेकिन समुदाय और सभी की भागीदारी गायब थी।
परम प्रसाद वितरण के समय कॉफी टेबल के पास घुटने टेक कर, मैंने आध्यात्मिक परमप्रसाद केलिए प्रार्थना पढ़ी जो टी.वी. के स्क्रीन पर थी, लेकिन मैं विचलित और अस्थिर थी। मैं जानती थी कि समर्पित रोटी वास्तव में येशु का शरीर है और परमप्रसाद का सेवन मुझे उसके साथ एकजुट कर सकता है और मुझे बदल सकता है। और मुझे यकीन था कि यह मेरे कमरे में सीधा प्रसारण देखने से नहीं होने वाला था। परम प्रसाद, येशु की वास्तविक उपस्थिति, पूर्ण रूप से अनुपस्थित थी।
मैं आध्यात्मिक परमप्रसाद के बारे में कुछ नहीं जानती थी। बाल्टीमोर की धर्मशिक्षा मुझे बताती है कि आध्यात्मिक परम प्रसाद उन लोगों केलिए है जिन्हें “परम प्रसाद ग्रहण करने की वास्तविक इच्छा है जब इसे संस्कारिक रूप से प्राप्त करना असंभव है।” यह इच्छा हमें इच्छा की शक्ति के अनुपात में परमप्रसाद की कृपा प्राप्त कराती है। (बाल्टीमोर कैटेचिज्म, 377) हालांकि यह दर्दनाक सच था कि संस्कारिक रूप से परम प्रसाद ग्रहण करना असंभव था, मुझे यह कहते हुए खेद है कि उस सुबह मेरी इच्छा केवल परिचित दिनचर्या केलिए थी। मैं विचलित, अस्थिर और असंतुष्ट थी।
पहले रविवार ने दूसरे और तीसरे का स्थान ले लिया, और फिर पुण्य बृहस्पतिवार और पुण्य शुक्रवार का। यह एक विलक्षण नाटकीय चालीसा काल था, जिसमें इतने सारे परहेज थोप दिए गए थे, ऐसे परहेज जिनकी मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। इन परहेजों को मैंने कुछ ज्यादा ही अनिच्छा से स्वीकार किया। हालाँकि, ईश्वर अच्छा है, और मेरे अपूर्ण परहेजों का भी कुछ फल प्राप्त हुआ। इन धार्मिक अनुष्ठानों में जो कमी लग रही थी था उस पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, मैंने उन लोगों के बारे में सोचना शुरू कर दिया जो “सामान्य” समय में भी इनमें शामिल नहीं हो पाते थे। नर्सिंग होम निवासी, कैदी, बुजुर्ग, बीमार और विकलांग लोग जो अकेले थे और दूरदराज के स्थानों में रहनेवाले लोग जहां कोई पुरोहित नहीं है। उन काथलिक लोगों केलिए, पवित्र मिस्सा बलिदान का प्रसारण भर देख पाना शायद एक आशीर्वाद था, येशु और उसकी कलीसिया के साथ एक सेतु। मैं जल्द ही फिर से मिस्सा बलिदान में भाग लेने केलिए उत्सुक थी; पर उनके लिए यह संभव नहीं था।
इन अन्य काथलिकों केलिए यह कैसा था, जो संस्कार प्राप्त करते भी थे तो, केवल कभी-कभार ही प्राप्त कर पाते थे। वे कलीसिया के सदस्य हैं, ईसा मसीह के रहस्यमय शरीर के, मेरे जैसे ही, फिर भी एक पल्ली समुदाय से काफी हद तक अलग हैं। जैसे-जैसे मैं उनके बारे में अधिक सोचने लगी, और अपनी निराशाओं के बारे में कम सोचने लगी, मैंने उन केलिए प्रार्थना करना भी शुरू कर दिया। और पवित्र मिस्सा के दौरान, मैंने उनके साथ प्रार्थना करना आरम्भ किया। एक तरह से वे, मेरे आसपास के लोग, मेरे रविवारीय मिस्सा बलिदान के समुदाय बन गए, कम से कम मेरे विचारों में। अंत में, मैं सचेत रूप से और सक्रिय रूप से पवित्र मिस्सा बलिदान के सीधा प्रसारण में भाग ले सकी। मसीह के रहस्यमय शरीर के सदस्यों के साथ एकजुट होकर, मैं वास्तव में येशु के साथ एक होना चाहती थी, और आध्यात्मिक भोज अनुग्रह का एक शांतिपूर्ण, फलदायी क्षण बन गया।
सप्ताह दर सप्ताह बीत गए, और यह नई असमान्य स्थिति पास्का काल में बदल गई। एक रविवार को, पवित्र मिस्सा बलिदान के सीधा प्रसारण के बाद, हमारे पल्ली पुरोहित ने घोषणा की कि एक स्थानीय भोजन भंडार लोगों की मदद की सख्त जरूरत में थी। जब गिरजाघरों ने अपने दरवाजे बंद कर दिए तो भोजन दान में कटौती कर दी गई, फिर भी हर हफ्ते भोजन की आवश्यकता वाले परिवारों की संख्या कई गुना बढ़ रही थी। मदद करने केलिए, हमारी पल्ली शुक्रवार को ड्राइव-अप भोजन संग्रह आयोजित करेगी। “पल्ली छह सप्ताह केलिए बंद कर दी गयी है।” मैंने सोचा, “क्या कोई आएगा?”
लोग ज़रूर आये। मैंने उस शुक्रवार को स्वेच्छा से मदद की, और जैसे ही मैंने गाड़ी चालकों को पार्किंग स्थल के पीछे ड्रॉप-ऑफ साइट पर निर्देशित किया, तब उन सारे परिचित, मुस्कुराते चेहरों को देख कर बहुत अच्छा लगा। इससे भी बेहतर कार्य यह हुआ कि दान का अंबार किसी की अपेक्षा से कहीं अधिक बढ़ रहा है। उस भोजन संग्रह का हिस्सा बनना उत्साहजनक था; मेरा मानना है कि यह पवित्र आत्मा के कार्य करने का परिणाम था। पवित्र आत्मा ने हमारे बिखरे हुए पल्ली समुदाय को एकत्रित किया था कि वे स्वयं जरूरतमंद लोगों की देखभाल करनेवाले येशु मसीह के जीवित शरीर बन जाएँ। जैसे ही पवित्रात्मता ने मेरे व्यक्तिगत प्रार्थना-जीवन को मसीह के रहस्यमय शरीर के साथ एक बड़ी एकजुटता विकसित करने केलिए प्रेरित किया, उसने स्वयं को, जरूरत मंद लोगों की सेवा करने की इच्छा के साथ, जब हम एक साथ इकट्ठा नहीं हो सके, तब भी इस तरह हमारे पल्ली समुदाय में काम करते हुए प्रकट किया।
'मेरे बच्चों की आया के ताड़ना भरे शब्दों को सुनकर मैं स्तब्ध होकर अविश्वास भरी दृष्टि से देख रही थी। उसके निराशाजनक रूप और लहजे से मेरा उलझन तथा घबराहट और अधिक बढ़ गया।
मानवीय अनुभव में अस्वीकृति या आलोचना के दंश का एहसास सब केलिये सामान है। किसी भी समय हमारे व्यवहार या चरित्र के बारे में चापलूसी भरे शब्दों को सुनना आसान है, और कडवी बातों को सुनना कठिन है, लेकिन विशेष रूप से यह और कठिन होता है जब आलोचना अनुचित या गलत होती है। जैसा कि मेरे पति अक्सर कहते थे, “धारणा वास्तविकता है; “मैं बार-बार उस बयान की सच्चाई देख चुकी हूं। इस प्रकार, जब हमारे कार्यों पर दूसरों के द्वारा प्रकट किये गए फैसले हमारे दिल के इरादों को प्रतिबिंबित नहीं करता है, तब आरोप सबसे अधिक गहरा घाव करते हैं। कुछ वर्ष पहले, मैं ऐसे एक व्यक्ति के कृत्यों की भुक्तभोगी थी जिसने मेरे इरादों को गलत समझा था ।
चमत्कार की प्रतीक्षा में
उस समय, मैं लगभग 30 वर्ष की माँ थी, जो दो शिशुओं को पाकर बहुत खुश और आभारी थी। गर्भधारण के लिए पूरे इरादे के साथ, सही समय पर प्रयास करने के बावजूद, पूरे एक साल तक माता-पिता बनना मेरे पति और मेरे लिए केवल एक सपना ही बनकर रह गया था। स्त्री रोग विशेषज्ञ से एक और मुलाकात के बाद उनके कार्यालय को छोड़ते वक्त, मैंने अनिच्छा से अपरिहार्य लग रही सच्चाई को स्वीकार कर लिया था| अब हमारा एकमात्र विकल्प प्रजनन दवाओं का उपयोग करना था। कार की ओर बढ़ते हुए मैंने निराशाजनक टिप्पणी की, “हमें घर जाते समय दवा लेने केलिए फार्मेसी में रुकना चाहिए क्या?” तभी मैंने अपने पति को यह कहते हुए सुना, “परमेश्वर को एक और महीने की मोहलत दे कर देखते हैं।” क्या?? हमने पहले ही उसे एक साल की मोहलत दे दी थी और अब हमारी शादी को दो साल हो चुके हैं। हमारा वैवाहिक और पारिवारिक जीवन का पौधा फलने-फूलने में समय ले रहा था। साल जुड़ते गए और अब मैं 33 साल की हो गयी थी और अपनी “जैविक घड़ी” की लगातार टिक-टिक सुन रही थी। अब घर जाते हुए, मुझे लगा कि मैं उस दवा को शुरू करने के लिए एक महीना और इंतजार कर सकती हूं…
एक दिन जब मैं बाथरूम में थी और जैसे ही मुझे एहसास हुआ कि मेरे कोख में बच्चा है, वैसे ही एक अनोखी उत्तेजना ने मुझे जकड़ ली, और मैं बेतहाशा चिल्लाती हुई बाथरूम से बाहर भागी, “मै गर्भवती हूँ!!” 10 दिन बाद मैंने अपने प्रार्थना समुदाय या यूँ कहें “विश्वासी परिवार” के सामने खड़ी होकर इस खुशखबरी की घोषणा की, यह जानते हुए कि इनमें से कई दोस्त इस बच्चे के अस्तित्व के लिए महीनों से हमारे साथ प्रार्थना कर रहे थे।
झूलता हुआ लोलक
अब, चार साल बाद, लंबे समय से प्रतीक्षित हमारी बच्ची क्रिस्टन, और हमारा मिलनसार एक वर्षीय बेटा टिम्मी दोनों थे, और मैं एक दिन कार्यालय से अपने बच्चों के डे केयर सेंटर पर पहुंची, तब मैंने अचानक बच्चों की आया, “मिस फीलिस” के कडवे शब्दों को सुना। “इन बच्चों के विद्रोह को कुचलने की ज़रूरत है”, उसका यह वाक्यांश, मेरे तरीकों की स्पष्ट त्रुटि के परिणामों को रेखांकित करता हुआ, लंबे समय से लिखे गए पवित्र धर्मशास्त्र के समान प्रतीत हो रहा था। उसके निराशाजनक रूप और लहजे ने मेरे उलझन और घबराहट को और अधिक बढ़ा दिया।
मैं अपना बचाव करना चाहती थी, यह बताना चाहती थी कि कैसे मैंने एक के बाद एक अच्छी परवरिश देने की किताबें पढ़ीं थीं और मैंने “विशेषज्ञों” के सुझाव के अनुसार सब कुछ करने की कोशिश की थी। मैं हकलाती हुई बोली कि मैं अपने बच्चों से कितना प्यार करती हूँ और एक अच्छी माँ बनने के लिए पूरे दिल से कोशिश कर रही हूँ। अपने आंसुओं को रोकते हुए, मैं अपने बच्चों को लेकर मिस फीलिस के उस सेंटर से निकल गयी।
घर पहुँचकर, मैंने टिम्मी को सुलाने के लिए लिटाया और क्रिस्टन को उसके कमरे में एक किताब देकर बिठाया, ताकि जो कुछ हुआ था उस पर विचार करने के लिए मेरे पास कुछ समय हो। मेरे जीवन में कोई भी संकट या समस्या आने पर मेरी सामान्य प्रतिक्रिया तुरंत प्रार्थना करना होता है। इसी के अनुसार, मैंने प्रार्थना शुरू की और अच्छी समझ के लिए प्रभु की सहायता मांगी। मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास दो विकल्प थे: या तो मैं उस महिला के शब्दों को अस्वीकार करूं जो अब तक मेरी 13 महीने की बेटी के लिए एक धैर्यवान, प्यार करने वाली अच्छी आया थी।
दूसरा विकल्प यही था कि मैं अपने कार्यों को सही ठहराने की कोशिश करने का प्रयत्न करूं, अपने इरादों पर फिर से जोर दूं और अपने बच्चों के लिए एक नयी आया खोजने की प्रक्रिया शुरू करूं। या मैं इस बात की जांच करूं कि किस वजह से उस महिला को अस्वाभाविक रूप से प्रतिक्रिया करनी पड़ी और यह देखती कि क्या वास्तव में उसकी तीखी चोट में सच्चाई का अंश था। मैंने यही विकल्प चुना, और जैसे ही मैंने प्रभु की मदद की खोज की, मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपने बच्चों के प्रति प्रेम और दया की दिशा में अपनी ममतारूपी लोलक को बहुत दूर तक झूलने दिया है। मैंने अपने बच्चों की अवज्ञा का बहाना बनाने के लिए उनकी कम उम्र का सहारा लिया था, यह विश्वास करते हुए कि अगर मैं उन पर प्यार उंडेल दूंगी, तो वे मेरी आज्ञानुसार ही कार्य करेंगे।
गिरने से पहले
मैं यह दिखावा नहीं कर सकती थी कि फीलिस के शब्दों से मुझे कोई ठेस नहीं पहुंची थी। उसके शब्दों ने मुझे गहरा घाव दिया था। मेरे पालन-पोषण के बारे में उसकी धारणा वास्तव में सच थी या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इस बात का महत्त्व था कि क्या मैं खुद को विनम्र बनाने और इस स्थिति से सीखने को तैयार थी या नहीं। कहा जाता है कि “गिरने से पहले अभिमान चला जाता है”, और यह सच है कि मैं पहले से ही आदर्श पालन-पोषण के उस पायदान से काफी दूर गिर चुकी थी जो मैंने अपने लिए निर्धारित किया था। मैं निश्चित रूप से अपने अभिमान और चोट पर टिके रहकर एक और पतन बर्दाश्त नहीं कर सकती थी । यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि किताबें लिखने वाले “विशेषज्ञ” लोगों को हमेशा सुनने की ज़रुरत नहीं है। कभी-कभी अनुभव की आवाज़ को ही ध्यान देने की ज़रुरत है।
अगली सुबह, मैंने बच्चों को गाडी में बिठाया और क्रिस्टन और टिम्मी की देखभाल करने वाली फीलिस के घर तक के उस परिचित रास्ते पर चल पड़ी। मुझे पता था कि भविष्य में उनसे मिलने वाली सलाह से हर बार मैं सहमत नहीं हो पाऊंगी, लेकिन मैं यह जानती थी कि हमारे परिवार की भलाई के लिए, मुझे चुनौती देने का जोखिम उठाने वाली एक बुद्धिमान और साहसी महिला की जरूरत होगी। आख़िरकार, “शिक्षण” शब्द “शिष्य” शब्द से आया है, जिसका अर्थ है “सीखना।” मैं कई वर्षों तक येशु की शिष्य रही, उनके आदर्शों और सिद्धांतों को जीने का प्रयास करती रही। जब मैंने अपने जीवन में बार-बार उसके स्थायी प्रेम का अनुभव किया तो मैं उस पर भरोसा करने लगी। मैं अब इस अनुशासन को स्वीकार करूंगी, यह जानते हुए कि यह प्रभु के प्यार का प्रतिबिंब है जो न केवल मेरे लिए, बल्कि हमारे परिवार के लिए भी सर्वश्रेष्ठ चाहता है ।
कार से बाहर निकलते हुए, हम तीनों सामने के दरवाजे के पास पहुंचे, मेरी आंखों के सामने लकड़ी पर, हाथ से बनी हुई पट्टी लगी थी, जिसे मैं एक बार फिर से पढ़ने के लिए रुकी, “मैं और मेरा परिवार, हम सब प्रभु की सेवा करेंगे।” हाँ, फिलिस ने यही किया था। अगर हमारे पास सुनने के लिए कान हो तो प्रभु हमारे लिए हर दिन ऐसा ही करते हैं, वह “उन लोगों को अनुशासित करते हैं जिनसे वह प्यार करते हैं।” येशु, हमारे शिक्षक, उन लोगों के माध्यम से काम करते हैं जो दूसरे व्यक्ति की भलाई के लिए अस्वीकृति का जोखिम उठाने को तैयार हैं। निश्चित रूप से, फीलिस उनके नक्शे-कदम पर चलने का प्रयास कर रही थी। यह पहचानते हुए कि इस आस्थावान महिला का इरादा हमारे गुरु प्रभु येशु से सीखी गई बातों को मेरे लाभ के लिए मुझ तक पहुंचाने का था, मैंने सामने का दरवाज़ा खटखटाया। जैसे ही हमें अन्दर प्रवेश करने की इजाजत देने के लिए वह दरवाज़ा खुला, वैसे ही मेरे दिल का दरवाजा भी खुला।
'जब आपकी आत्मा थक जाती है और आप नहीं जानते कि अपने मन को कैसे शांत करें…
आप शायद इस बात से परिचित होंगे कि कैसे असीसी के संत फ्रांसिस ने एक बार पूछा था: “हे ईश्वर, तू कौन है, और मैं कौन हूँ?” उन्होंने समर्पण के रूप में अपने हाथों को ऊपर उठाया, और जब उन्होंने कहा: “हे ईश्वर, मैं कुछ भी नहीं हूं, लेकिन यह सब आपका है”, तब उन हाथों में से एक सुनहरी गेंद ऊपर की ओर उठी।
उपरोक्त घटना का वर्णन मैं ने पहली बार एक आत्मिक साधना के दौरान सुना था जहाँ हमें इसी प्रश्न पर विचार करने का काम सौंपा गया था: हे मेरे ईश्वर, तू कौन है, और मैं कौन हूँ? प्रार्थनालय में, पवित्र संस्कार के सामने, मैंने अपने घुटनों पर गिरकर और वह प्रार्थना की।
परमेश्वर ने मेरे हृदय को मेरे सामने प्रकट किया, जो पुराने खून से लथपथ पट्टियों की परतों से ढका हुआ, घायल और कड़ा हो चुका था। मैं ने महसूस किया कि इन वर्षों में, मैं ने अपने हृदय की सुरक्षा केलिए उसके चारों ओर दीवारें बना ली थीं। उस प्रार्थनालय में, मुझे एहसास हुआ कि मैं खुद को ठीक नहीं कर सकती; मुझे बचाने केलिए ईश्वर की ज़रूरत थी। मैंने उसे रोते हुए कहा: “मेरे पास तुझे देने केलिए कोई सुनहरी गेंद नहीं है, मेरे पास बस मेरा घायल दिल है!” मैंने महसूस किया कि ईश्वर ने उत्तर दिया: “मेरी प्यारी बेटी, तुम्हारा दिल ही वह सुनहरी गेंद है। इसे मैं लूंगा।”
आंसुओं में भीगे हुए, मैंने अपने दिल को अपने सीने से निकालने का अभिनय किया, और अपने हाथ आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा: “हे ईश्वर, मैं कुछ भी नहीं हूं, लेकिन यह सब तेरा है।” मैं प्रभु की उपस्थिति से भर गयी थी, और मुझे पता था कि जिस पीड़ा ने मुझे जीवन भर बंधन में रखा था, मैं उससे पूरी तरह से ठीक हो गयी हूं। मेरे बगल की दीवार पर मैं ने रेम्ब्रांट की “रिटर्न ऑफ द प्रोडिगल सन” (उडाऊ पुत्र की वापसी) की एक प्रति देखी और तुरंत मुझे लगा कि मेरे स्वर्गिक पिता ने अपने घर में फिर से मेरा स्वागत किया है। मैं गरीबी और संकट में, अयोग्य और पश्चाताप महसूस करते हुए लौटी उड़ाऊ बेटी थी, जिसे उसने अपनी बेटी के रूप में स्नेहपूर्वक अपनाया।
अक्सर, प्रेम के बारे में हमारी अपनी सांसारिक समझ बनती है। इस के कारण, ईश्वर हमारे लिए क्या कर सकता है इस बात की हमारी समझ सीमित और भ्रमित हो जाती है। मानव प्रेम, चाहे कितना भी नेक नीयत का क्यों न हो, वह शर्तयुक्त है, बेशर्त नहीं। परन्तु ईश्वर का प्रेम अटल और असाधारण है! उदारता में ईश्वर कभी भी मात नहीं खाता; वह अपने प्रेम से हमें कभी भी वंचित नहीं रखेगा।
ईश्वर को अपने सर्वश्रेष्ठ में से केवल जिनका हम अवमूल्यन करते हैं, उन हिस्सों को अर्पित करने केलिए हमारा अहंकार या भय हमें प्रेरित करता है, और इस तरह का अर्पण ईश्वर को हमारे उन हिस्सों को परिवर्तित करने से रोकता है जिनका हम अवमूल्यन करते हैं। उसकी चंगाई प्राप्त करने केलिए, हमें अपना सब कुछ उसे सौंप देना चाहिए और उसे निर्णय लेने देना चाहिए कि वह हमें कैसे बदलेगा। ईश्वर का उपचार या चंगाई अक्सर अप्रत्याशित होती है। इस केलिए हमारे पूर्ण विश्वास की आवश्यकता है। इसलिए, हमें ईश्वर की बात सुननी चाहिए जो हमारे लिए सर्वोत्तम चाहता है। ईश्वर को सुनना तब शुरू होता है जब हम अपना सब कुछ उसे समर्पित कर देते हैं। अपने जीवन में ईश्वर को प्रथम स्थान देकर, हम उसके साथ सहयोग करना शुरू करते हैं। ईश्वर हमारा संपूर्ण अस्तित्व चाहता है – अच्छा, बुरा और कुरूप, क्योंकि वह इन अंधेरी जगहों को अपनी उपचारात्मक रोशनी से बदल देना चाहता है। ईश्वर हमारी लघुता और टूटेपन में उसे खोजने केलिए धैर्यपूर्वक हमारी प्रतीक्षा करता है।
आइए हम ईश्वर के पास दौड़ें और उसे गले लगा लें जैसे खोया हुआ बच्चा अपने पिता के पास घर लौटता है, यह जानते हुए कि पिता उसे खुली बांहों से स्वीकार करेगा। हम संत फ्रांसिस की तरह प्रार्थना कर सकते हैं: “हे ईश्वर, मैं कुछ भी नहीं हूं, लेकिन यह सब तेरा है” यह भरोसा करते हुए कि वह हमें परिवर्तनकारी आग से शुद्ध कर देगा और कहेगा: “मैं यह सब ले लूंगा, और तुम्हें बिल्कुल नया बना दूंगा।”
'एक जहरीली मकड़ी के काटने के बाद अर्ध-लकवाग्रस्त मारिसाना अरम्बासिक को लगा कि उसका जीवन समाप्त हो रहा है। वह किसी चमत्कार के इंतज़ार में रोजरी माला का सहारा ली हुई थी|
मैं बहुत लंबे समय से पर्थ, ऑस्ट्रेलिया में रह रही हूं, लेकिन मैं मूल रूप से क्रोएशिया की हूं। जब मैं आठ साल की थी तब मैंने एक चमत्कार देखा। माता मरियम की शक्तिशाली मध्यस्थता से अपंग पैरों वाला एक 44 वर्षीय व्यक्ति ठीक हो गया। हम में से कई लोगों ने यह चमत्कार देखा। मुझे अभी भी याद है कि उस आदमी के ठीक होने के बाद मैं उनके पास दौड़कर गयी थी और आश्चर्यचकित होकर उनके पैर छू रही थी। इस अनुभव के बावजूद, जब मैं बड़ी हुई तो मैं परमेश्वर से दूर हो गयी। मुझे विश्वास था कि यह दुनिया और यहाँ की सांसारिकता मेरी सीप है। मुझे केवल अपने जीवन का आनंद लेने की परवाह थी। मेरी माँ चिंतित थी क्योंकि मैं गलत तरीके से जीवन का आनंद ले रही थी। वह नियमित रूप से मेरे लिए प्रार्थना करती थी। उन्होंने माता मरियम से मेरी लिए प्रार्थना की। हालाँकि मेरी माँ ने 15 वर्षों तक उत्साहपूर्वक प्रार्थना की, फिर भी मेरे व्यवहार में कोई सुधार नहीं हुआ। जब मेरी माँ ने मेरे बारे में स्थानीय पुरोहित को बताया, तो उन्होंने कहा, “वह इस समय पाप में जी रही है। एक बार जब वह पाप करना बंद कर देगी, तो परमेश्वर उसे उसके घुटनों पर लाएगा, पवित्र मिस्सा के माध्यम से सभी अनुग्रह बरसाए जाएंगे, और चमत्कार होंगे |”
वह विषैला दंश
जब मैं 33 वर्ष की हुई तो यह भविष्यवाणी सच हो गई। मैं अपने बच्चे का पालन पोषण अकेली कर रही थी। एक अकेली माँ के रूप में, मैं जीवन के सबसे निचले तह पर पहुंच चुकी थी। धीरे-धीरे, मैं वापस परमेश्वर की ओर मुड़ गयी। मैंने कठिन समय में माता मरियम की सहायता का अनुभव किया। एक दिन, एक सफेद पूंछ वाली मकड़ी ने मेरे बाएं हाथ पर काट लिया। यह ऑस्ट्रेलिया में ख़ास पायी जानेवाली जहरीली मकड़ी थी। हालाँकि मेरा स्वास्थ्य अच्छा था, फिर भी मेरा शरीर इस मकड़ी के काटने से उबर नहीं सका। वह दर्द भयानक था| मेरे शरीर का बायाँ हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था। मैं अपनी बायीं आँख से नहीं देख सकती थी। मेरी छाती, मेरा दिल और मेरे सभी अंगों में मैं ऐसे महसूस कर रही थी, जैसे उनमें ऐंठन हो रही हो। मैंने विशेषज्ञों से मदद मांगी और उनकी बताई दवाएं लीं, लेकिन मेरी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।
अपनी हताशा के समय में, मैंने अपनी रोज़री माला उठाई और ऐसी प्रार्थना की जैसे पहले कभी नहीं की थी। सबसे पहले, मैं प्रतिदिन घुटनों के बल बैठकर माला विनती की प्रार्थना करती थी। जल्द ही मेरी हालत और अधिक खराब हो गई और मैं अब घुटनों के बल नहीं बैठ पा रही थी। मैं ने बिस्तर पकड़ लिया था| मेरे पूरे चेहरे पर छाले पड़ गये थे और लोग मेरी ओर देखने से भी कतराते थे। इससे मेरा दर्द और बढ़ गया. मेरा वजन भारी मात्रा में कम होने लगा। एकमात्र चीज़ जो मैं खा सकती थी वह सेब था। अगर मैं कुछ और चीज़ खाती थी तो मेरे शरीर में ऐंठन होने लगती। मैं एक बार में केवल 15-20 मिनट ही सो पाती थी, और ऐंठन के साथ जाग जाती थी। मेरे स्वास्थ्य का इस तरह बिगड़ना मेरे बेटे के लिए कठिन था, जो उस समय 15 वर्ष का था। उसने वीडियो गेम खेलकर इस मुसीबत से अपने आप को दूर कर लिया। हालाँकि मैं अपने माता-पिता और भाई-बहनों के संपर्क में थी, लेकिन वे सभी विदेश में रहते थे। जब मैंने उन्हें अपनी स्थिति के बारे में बताया, तो मेरे माता-पिता तुरंत मेडजुगोरे गए, जहां वे एक पुरोहित से मिले जिन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की।
उस समय, मैं अपनी रसोई के फर्श पर एक गद्दे पर लेटी हुई थी, क्योंकि एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। अचानक, उठने और चलने में मैं सक्षम हो गई, हालाँकि मुझे अभी भी कुछ दर्द हो रहा था। मैंने अपनी बहन को फोन किया और तब पता चला कि एक पुरोहित ने मेरे ठीक होने के लिए माता मरियम की मध्यस्थता के लिए प्रार्थना की थी। मैंने सोचना बंद नहीं किया। मैंने तुरंत मेडजुगोरे जाने के लिए टिकट खरीदे। मैं चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह के विरुद्ध जा रही थी। मेरी रोग-प्रतिरोधक-क्षमता कम थी और मेरा शरीर कमजोर था। फिर भी, मैंने जाने का फैसला किया।
पहाड़ी पर
जब मैं क्रोएशिया पहुंची, तो मेरी बहन ने मुझसे हवाई अड्डे में मुलाकात की और हम उसी शाम मेडजुगोरे पहुंचे। मैं उस पुरोहित से मिली जिसने मेरे माता-पिता के साथ प्रार्थना की थी। उन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की और मुझे अगले दिन उस पहाड़ी पर चढ़ने के लिए कहा जिस पर माँ मरियम ने दर्शन दिए थे। उस समय भी, मैं सेब के अलावा कुछ भी नहीं खा पा रही थी और अगर खाती तो मेरा गला बंद हो जाता। उस समय भी मेरे पूरे शरीर पर छाले थे। फिर भी जहां माता मरियम प्रकट हुई थीं, उस पहाड़ी पर चढ़ने के लिए मैं अपने आप को रोक नहीं सकी। मेरी बहन मेरे साथ आना चाहती थी, लेकिन मैं अकेली जाना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि कोई मेरा दुःख देखे। जब मैं ऊपर पहुंची तो बर्फबारी हो रही थी।
वहां ज्यादा लोग नहीं थे। मैंने माता मरियम के साथ एक खास पल बिताया। मुझे लगा कि वह मेरी प्रार्थना सुन रही है। मैंने माँ से अपने लिए जीवन की दूसरी पारी माँगी और अपने बेटे के साथ अधिक समय बिताने का अवसर मांगा। मैंने प्रार्थना की, “येशु, मुझ पर दया कर।”
जैसे ही मैं पहाड़ी से नीचे आयी, मैं ‘हे हमारे पिता’ की प्रार्थना कर रही थी। जैसे ही मैंने ‘हमारी प्रतिदिन की रोटी आज हमें दे’ कहा तो मुझे दुख हुआ, क्योंकि मैं रोटी नहीं खा सकती थी। मैं परम प्रसाद की रोटी प्राप्त करने के लिए बहुत उत्सुक थी, लेकिन मैं उसे नहीं खा सकती थी। मैंने प्रार्थना की कि मैं फिर से रोटी खा सकूं। उस दिन मैंने कुछ खाने का निश्चय किया और खाना खा लिया। खाने के बाद मेरे शरीर में किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं थी| उसके बाद, मैं लगातार दो घंटे तक सोयी। दर्द और मेरे शरीर में बीमारी के अन्य लक्षण कम हो चुके थे। ऐसा लगा मानो धरती पर स्वर्ग हो।
अगले दिन मैं वापस गयी और ‘येशु की पहाड़ी’ पर चढ़ गयी जिसकी चोटी पर एक बड़ा क्रूस है। वहां मुझे अत्यधिक शांति का अनुभव हुआ। मैंने परमेश्वर से मेरे पापों को दिखाने के लिए कहा। जैसे-जैसे मैं चढ़ती गयी, परमेश्वर ने धीरे-धीरे उन पापों को प्रकट किया जिन्हें मैं भूल गयी थी। जैसे ही मैं पहाड़ी से नीचे उतरी, मैं पाप स्वीकार के लिए जाने को उत्सुक थी। मैं खुशी से भरी हुई थी। भले ही बीमारी से मुक्ति पाने में थोड़ा समय लगा, लेकिन अब मैं पूरी तरह ठीक हो गयी हूं।
पीछे मुड़कर देखने पर मुझे एहसास होता है कि मेरे सभी कष्टों ने मुझे एक बेहतर इंसान बना दिया है। मैं अब अधिक दयालु और क्षमाशील हूं। जीवन में कष्ट और दुःख पीड़ा, किसी भी व्यक्ति को अकेलापन और हताशा का अनुभव करा सकता है। आपकी आर्थिक स्थिति, विवाह, पारिवारिक जीवन सहित सब कुछ बिखर सकता है। ऐसे समय में, आपको आशा रखने की ज़रूरत है। विश्वास आपको अज्ञात क्षेत्र में कदम रखने की ताकत देता है और तूफान के गुजर जाने तक अपने क्रूस को ढोते हुए, अपरिचित राह पर चलने की अनुमति देता है।
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