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जनवरी 29, 2024
Engage जनवरी 29, 2024

प्रश्न: मेरे प्रोटेस्टेंट मित्र कहते हैं कि कैथलिक लोगों की यह मान्यता  है कि हमें अपना उद्धार अर्जित करने या मेहनत करके खरीदने की ज़रुरत है। वे कहते हैं कि उद्धार केवल विश्वास से होता है, और जिसे येशु ने क्रूस पर हमारे लिए पहले ही कर दिया है हम उस बात में कुछ भी नहीं जोड़ सकते। लेकिन क्या हमें स्वर्ग जाने के लिए अच्छे काम नहीं करने चाहिए?

उत्तर: यह प्रोटेस्टेंट और कैथलिक दोनों समुदायों की एक बहुत बड़ी गलतफहमी है। यह छोटी-छोटी ईश शात्रीय मुद्दे लग सकते हैं, लेकिन वास्तव में इसका हमारे आध्यात्मिक जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। सच्चाई यह है: हम विश्वास का जीवन जीने से मुक्ति पाते हैं, अर्थात येशु मसीह में हमारा विश्वास जो हमारे शब्दों और कार्यों में व्यक्त होता है, उसे जीने से हमें मुक्ति मिलती है।

हमें स्पष्ट मालूम होना चाहिए – हमें अपने उद्धार को अर्जित करने या खरीदने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ऐसा नहीं है कि उद्धार कोई पुरस्कार हो जिसे हम अच्छे कर्मों को करने के एक निश्चित स्तर तक पहुँचकर पा सकते हैं। इस पर विचार करें: सबसे पहले किसकी रक्षा हुई? येशु के अनुसार, वह भला डाकू था। जब उसे उसके बुरे कर्मों के लिए सही तरीके से सूली पर चढ़ाया जा रहा था, तो उसने येशु से दया के लिए पुकारा, और प्रभु ने उससे वादा किया: “मैं तुमसे यह कहता हूँ, तुम आज ही परलोक में मेरे साथ होगे।” (लूकस 23:43) तो, उद्धार उस मज़बूत विश्वास, भरोसे और समर्पण में निहित है जो येशु ने ईश्वर की दया मोलने के लिए क्रूस पर किया था।

यह क्यों महत्वपूर्ण है? क्योंकि कई कैथलिक लोग सोचते हैं कि हमें बचाए जाने के लिए बस इतना करना है कि ‘हम अच्छा इंसान बनें’ – भले ही उस व्यक्ति का वास्तव में प्रभु के साथ कोई जीवंत संबंध न हो। कितने लोग मुझसे ऐसा कहते हैं: “ओह, मेरे चाचा कभी मिस्सा में नहीं गए या प्रार्थना नहीं की, लेकिन वे एक अच्छे इंसान थे जिन्होंने अपने जीवन में कई अच्छे काम किए, इसलिए मुझे पता है कि वे स्वर्ग में हैं।” जबकि हम निश्चित रूप से आशा करते हैं कि चाचा ईश्वर की दया से बच जाएंगे, यह हमारी दयालुता या अच्छे कार्य नहीं हैं जो हमें बचाते हैं, बल्कि क्रूस पर येशु की मुक्तिदायी मृत्यु हमें बचाती है।

क्या होगा अगर किसी मुज़रिम पर किसी अपराध के लिए मुकदमा चलाया जाए, लेकिन वह न्यायाधीश से कहे, “महोदय, मैंने अपराध किया है, लेकिन यह भी देखिये कि मैंने अपने जीवन में कितने अच्छे काम किए हैं!” क्या न्यायाधीश उसे छोड़ देंगे? नहीं—उसे अभी भी अपने किए गए अपराध की कीमत चुकानी होगी। इसी तरह, हमारे पापों का कर्ज है —और येशु मसीह को उन पापों का कर्ज चुकाना पडा। पाप के कर्ज का यह भुगतान हमारी आत्माओं पर विश्वास के माध्यम से लागू किया जाता है।

लेकिन, विश्वास केवल एक बौद्धिक अभ्यास नहीं है। इसे जीना चाहिए। जैसा कि संत याकूब लिखते हैं: “मनुष्य केवल विशवास से नहीं, बल्कि कर्मों से धार्मिक बनता है” (2:24)। यह कहना गलत होगा: “ठीक है, मैं येशु पर विश्वास करता हूँ, इसलिए अब मैं जितना चाहूँ उतना पाप कर सकता हूँ।” इसके विपरीत, क्योंकि हमें क्षमा कर दिया गया है और हम ईश्वर के राज्य के वारिस बन गए हैं, ठीक इसलिए हमें ईशराज के वारिसों की तरह, राजा के बेटे और बेटियों की तरह व्यवहार करना चाहिए।

यह हमारे उद्धार को खरीदने या कमाने की कोशिश करने से बिलकुल भिन्न है।  चूंकि  हमें माफ़ी मिलने की उम्मीद है – इसलिए हम अच्छे काम नहीं करते, बल्कि इसलिए कि हमें पहले ही क्षमा कर दिया गया है। हमारे अच्छे काम इस बात का संकेत हैं कि येशु की क्षमा हमारे जीवन में जीवित और सक्रिय है। आखिरकार, येशु हमें बताते हैं: “यदि तुम मुझे प्यार करोगे, तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे।” (योहन 14:15) यदि कोई पति अपनी पत्नी से प्रेम करता है, तो वह उसे प्यार का तोहफा देने के लिए ठोस तरीके खोजेगा – उसे फूल देगा, बर्तन धोएगा, उसे प्रेम पत्र लिखेगा। वह कभी नहीं कहेगा: “ठीक है, हम शादीशुदा हैं, और वह जानती है कि मैं उससे प्यार करता हूँ, इसलिए अब मैं जो चाहूँ कर सकता हूँ।” इसी तरह, एक आत्मा जिसने येशु के दयालु प्रेम को जाना है, वह स्वाभाविक रूप से उसे प्रसन्न करना चाहेगी।

 तो, आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए, कैथलिक और प्रोटेस्टेंट वास्तव में इस मुद्दे पर जितना वे जानते हैं, उससे कहीं ज़्यादा करीब हैं! हम दोनों का मानना है कि हम विश्वास से बचाए गए हैं – एक जीवंत विश्वास से, जो उद्धार के भव्य, मुफ़्त उपहार के लिए धन्यवाद के संकेत के रूप में अच्छे कार्यों के जीवन में व्यक्त होता है जिसकी जीत मसीह ने क्रूस पर हमारे लिए हासिल की थी। 

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By: फादर जोसेफ गिल

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जनवरी 24, 2024
Engage जनवरी 24, 2024

मेरे काम से थोड़ा सा भी परिचित कोई भी व्यक्ति जानता है कि मैं धार्मिक सत्य की ओर से जोरदार तर्कों की वकालत करता हूं। मैंने लंबे समय से उस चीज़ को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है जिसे शास्त्रीय रूप से धर्मशास्त्र तार्किक मंडन के रूप में जाना जाता है, जो संशयवादी विरोधियों के खिलाफ आस्था के दावों के मंडन  का तरीका है। और मैंने बार-बार मूर्खतापूर्ण कैथलिकवाद का विरोध किया है। इसके अलावा, मैंने कई वर्षों से सुसमाचारीकरण की सेवा में सुंदरता के महत्व पर जोर दिया है। सिस्टाइन चैपल की छत्त, सैंटे चैपल, डांटे की  डिवाइन कॉमेडी, बाख द्वारा संत मत्ती रचित पीड़ा-वर्णन की संगीतमय प्रस्तुति, टी.एस. एलियट की चार चौकियाँ, और कैथेड्रल ऑफ़ चार्ट्रेस सभी में कला के माध्यम से सुसंचार के सन्देश को असाधारण तरीके से समझाने की शक्ति है, जो कई मायनों में औपचारिक तर्कों से भी आगे निकल जाती है। इसलिए मैं सत्य के मार्ग और सौंदर्य के मार्ग की पुष्टि करता हूं। लेकिन मैं विश्वास को प्रचारित करने के साधन के रूप में, पारलौकिक तत्वों में से तीसरे, अर्थात्, भलाई की भी सिफारिश करता हूं। नैतिक शुद्धता, मसीही तरीके से ठोस जीवन जीना, खासकर जब यह वीरतापूर्ण तरीके से किया जाता है, यहां तक कि सबसे कठोर अविश्वासी को भी विश्वास में ले जा सकता है, और इस सिद्धांत की सच्चाई सदियों से बार-बार साबित हुई है।

ईसाई आंदोलन के शुरुआती दिनों में, जब यहूदी और यूनानी दोनों ही नवजात विश्वास को या तो निंदनीय या तर्कहीन मानते थे, यह येशु के अनुयायियों की नैतिक अच्छाई और सेवा थी जो कई लोगों को विश्वास में लाई। कलीसिया के आचार्य तेर्तुलियन अपनी प्रसिद्ध कहावत में प्रारंभिक कलीसिया के प्रति गैर विश्वासियों की आश्चर्यजनक प्रतिक्रिया व्यक्त की: “ये ईसाई एक दूसरे से कैसे प्यार करते हैं!” ऐसे समय में जब विकृत शिशुओं को तिरस्कृत किया जाना आम बात थी, जब गरीबों और बीमारों को अक्सर उनके हाल पर छोड़ दिया जाता था, और जब जानलेवा प्रतिशोध या बदला लेना स्वाभाविक बात थी, प्रारंभिक ईसाई अवांछित बच्चों की देखभाल करते थे, बीमारों और मरनेवालों को सहायता देते थे, और विश्वास के उत्पीड़कों को माफ करने का कार्य करते थे। और यह अच्छाई न केवल उनके अपने भाइयों और बहनों तक फैली, बल्कि आश्चर्यजनक रूप से, बाहरी लोगों और दुश्मनों तक भी फैली। नैतिक शालीनता के इस विशिष्ट रूप से अत्यधिक रूप ने कई लोगों को आश्वस्त किया कि येशु के इन शिष्यों के बीच कुछ अजीब और अनोखी बात चल रही थी, कुछ शानदार और दुर्लभ। इस भलाई की सेवा कार्य ने उन्हें इसाई धर्म को गहराई से देखने और समझने के लिए मजबूर किया।

रोमन साम्राज्य के पतन के बाद सांस्कृतिक और राजनीतिक अराजकता के दौरान, कुछ आध्यात्मिक वीर  ईसाई जीवन का एक क्रांतिकारी रूप जीने के लिए गुफाओं, रेगिस्तानों और पहाड़ियों पर चले गए। इन प्रारंभिक तपस्वियों से, मठवासी जीवन का उदय हुआ, जो एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक आंदोलन था जिसने समय के साथ यूरोप की पुन: सभ्यता की अगुवाई की। बहुत से लोगों को जो बात आकर्षक लगी वह थी मठों के तपस्वियों की प्रतिबद्धता की बड़ी तीव्रता, गरीबी को अपनाना और ईश्वरीय विधान में उनका अटूट विश्वास। एक बार फिर, यह सुसमाचार के आदर्श को जीने का तरीका ही था जो ठोस साबित हुआ। ऐसा ही कुछ तेरहवीं शताब्दी में सामने आया, जब कलीसिया में, विशेषकर पादरियों के बीच बड़े घोटालों और भ्रष्टाचारों का समय था। फ्रांसिस, डोमिनिक और उनके सहयोगियों ने भिक्षुक धर्मसंघों की शुरुवात की, जो भीख मांगने वाले धर्मसंघ कहने का एक आकर्षक तरीका है। डोमिनिकन और फ्रांसिस्कन के विश्वास, सादगी, गरीबों की सेवा और नैतिक निष्कलंकता ने कलीसिया में क्रांति ला दी और  ईसाइयों को जो अपने विश्वास में ढीले और उदासीन हो गए थे, उन्हें प्रभावी ढंग से फिर से सुसमाचार से मज़बूत करने में ये भिक्षुक धर्मसंघ कामयाब हुए।

और हम अपने समय में भी वही गतिशीलता पाते हैं। जॉन पॉल द्वितीय बीसवीं सदी के दूसरे सबसे शक्तिशाली सुसमाचार प्रचारक थे, लेकिन निर्विवाद रूप से पहली सुसमाचार के प्रचारक एक महिला थीं, जिन्होंने कभी भी ईश मीमांसा या धर्मशास्त्र मंडन का कोई बड़ा काम नहीं लिखा, जिन्होंने कभी भी सार्वजनिक बहस में संशयवादियों को शामिल नहीं किया, और जिन्होंने कभी भी धार्मिक कला का कोई सुंदर कलाकृति का निर्माण  नहीं किया। निस्संदेह, मैं कोलकाता की संत टेरेसा की बात कर रहा हूँ। पिछले सौ वर्षों में किसी ने भी इस  साधारण साध्वी से अधिक प्रभावी ढंग से ईसाई धर्म का प्रचार नहीं किया। वे बेहद गरीबी में रहती थी और उसने हमारे समाज में सबसे उपेक्षित लोगों की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया था।

ग्रेगरी नामक युवक के बारे में एक अद्भुत कहानी बताई गई है, जो ईसाई धर्म के मूल सिद्धांतों को सीखने के लिए अलेक्सांद्रिया के महान ओरिजिन के पास आया था। ओरिजन ने उससे कहा, “पहले आओ और हमारे समुदाय के जीवन को साझा करो और तब तुम हमारे सिद्धांतों को समझोगे।” युवा ग्रेगरी ने उस सलाह को माना, समय आने पर उसने ईसाई धर्म को उसकी संपूर्णता में अपना लिया, और अब इतिहास में वह चमत्कार करनेवाले संत ग्रेगरी के नाम से जाना जाता है। ईसाई धर्म की सच्चाइयों को स्वीकार करने के लिए संघर्ष कर रहे एक पादरी को जेरार्ड मैनली हॉपकिंस ने जो शब्द कहे, उसके पीछे भी कुछ ऐसा ही आवेग छिपा था। उस येशुसंघी कवि ने अपने सहकर्मी को कोई किताब पढ़ने या बहस करने का निर्देश नहीं दिया, बल्कि “भिक्षा दो” कहा। ईसाई आस्था को जीने से बड़ी प्रेरक शक्ति उपजती है।

हम हाल के कलीसियाई इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक से गुज़र रहे हैं। पुरोहितों द्वारा यौन शोषण घोटालों ने अनगिनत लोगों को कैथलिक धर्म से दूर कर दिया है, और धर्मविहीनता का ज्वार लगातार बढ़ रहा है, खासकर युवाओं के बीच। मेरे गुरु, दिवंगत महान कार्डिनल जॉर्ज, इस दृश्य का सर्वेक्षण करते हुए कहा करते थे, “मैं धर्मसंघों की तलाश में हूं; मैं आन्दोलनों की तलाश कर रहा हूं।” मुझे लगता है कि उनका मतलब संकट के समय में, पवित्र आत्मा पवित्रता में उत्कृष्ट पुरुषों और महिलाओं को ऊपर उठाती है जो आत्यंतिक या अतिवादी और सार्वजनिक तरीके से सुसमाचार को जीने का प्रयास करते हैं। एक बार फिर, मेरा पक्का मानना है कि, इस समय, हमें अच्छे तर्कों की आवश्यकता है, लेकिन मैं और अधिक मानता हूं कि हमें संतों की आवश्यकता है।

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By: बिशप रॉबर्ट बैरन

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जनवरी 24, 2024
Engage जनवरी 24, 2024

एक विजयी संयोजन भीतर पक रहा है। क्या आप उसका स्वाद चखना चाहते हैं?

1953 में, बिशप फुल्टन शीन ने लिखा, “पश्चिमी सभ्यताओं में अधिकांश लोग धन संपत्ति और दौलत  प्राप्त करने के कार्य में लगे हुए हैं।” इन शब्दों में आज भी उतनी ही सच्चाई है।

हम ईमानदारी से विचार करें। इन दिनों, प्रभावशाली लोगों की एक पूरी उपसंस्कृति है, और जिन विशेष उत्पादों की वे वकालत करते हैं, उन्हें खरीदने केलिए उनके अनुयायियों को सफल रूप से प्रेरित करने हेतु उनकी भव्य और अति महंगी जीवन शैली को प्रायोजित किया जाता है।

आज प्रभाव, उपभोक्तावाद और लालच प्रचुर मात्रा में है। हम स्मार्टफ़ोन के नवीनतम मॉडल की चाहत उसके बाज़ार में आने से पहले ही रखते हैं। हम सबसे आधुनिक वस्तुओं पर, प्रचलन में आने से पूर्व ही,  अपना हाथ जमाना चाहते हैं। हम जानते हैं कि लगातार बदलते रुझान के पैटर्न को देखते हुए, इन्हीं उत्पादों को ‘उत्कृष्ट प्रयुक्त स्थिति में’ या इससे भी बदतर, ‘टैग के साथ बिल्कुल नया’ लेबल वाले वैकल्पिक मीडिया के माध्यम से विज्ञापित किए जाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

शीन कहती है, “धन का संचयन आत्मा पर एक अजीब प्रभाव डालता है; यह और अधिक पाने की इच्छा को तीव्र करता है।” दूसरे शब्दों में, जितना अधिक हम प्राप्त करते हैं, उतना ही अधिक हम बटोरना चाहते हैं। धन के माध्यम से संतुष्टि की यह अंतहीन खोज हमें थका देती है और हमारे अस्तित्व में थकान पैदा कर देती है, चाहे हमें इसका एहसास हो या न हो।

तो फिर, अगर धन इकट्ठा करना अनिवार्य रूप से एक निर्विवाद इच्छा है, तो जिस उपभोक्तावादी दुनिया में हम रहते हैं उसमें हमें खुशी, आत्म-सम्मान और संतुष्टि कैसे मिलेगी?

धैर्य और कृतज्ञता

संत पौलुस हमें निर्देश देते हैं, “आप लोग हर समय प्रसन्न रहें, निरंतर प्रार्थना करते रहें, सब बातों केलिए ईश्वर को धन्यवाद दें; क्योंकि येशु मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है” (1 थेसलनीकी 5:16-18)। हममें से अधिकांश लोग यह स्वीकार करेंगे कि यह कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि यह असंभव है?

जोखिम और संघर्ष का जीवन जीने के बावजूद, मसीही धर्म के पूर्वजों में से एक, संत पौलुस ने नमूना पेश किया। क्या उन्हें मसीही धर्म का प्रचार करने के लिए जेल में डाल दिया गया था? बिल्कुल सही। क्या उसकी जान ख़तरे में थी? निरंतर खतरे में थी। क्या उनका जहाज़ पोतभंग होकर नष्ट किया गया, उन पर पथराव किया गया और उनको ताना मारा गया? जी बिलकुल, बिना किसी संशय के।

और इन सब के, और अधिक चुनौतियों के बावजूद, संत पौलुस नियमित रूप से मसीहियों को प्रोत्साहित करते थे, “किसी बात की चिंता न करें। हर ज़रुरत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ ईश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करें और ईश्वर की शांति, जो हमारी समझ से परे है, आपके हृदयों और विचारों को येशु मसीह में सुरक्षित रखेगी” (फिलिप्पियों 4:6-7)।

वास्तव में, ईश्वर के प्रति कृतज्ञता और उचित धन्यवाद और प्रशंसा करना, कलीसियाओं के साथ पौलुस के पत्राचार का एक आवर्ती और निरंतर विषय था। रोम से कुरिंथ, एफेसुस से फिलिप्पी तक, प्रारंभिक ईसाइयों को सभी परिस्थितियों में – न कि केवल अच्छे परिस्थितियों में – धन्यवाद देने यानी आभारी होने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

फिर, जैसा कि अब है, यह प्रोत्साहन सामयिक और संघर्षपूर्ण दोनों है। हालाँकि, सभी परिस्थितियों में आभारी होने के लिए प्रार्थना, प्रयास और दृढ़तापूर्ण निरंतरता की आवश्यकता होती है।

आभारी और उदार परोपकार

यदि हम संत पौलुस के उदाहरण का अनुसरण करें और जो हमारे पास है उसकी कृतज्ञता के साथ जांच करें, तो वह कैसा दिखेगा? हमारे सिर के ऊपर छत है , बिलों का भुगतान करने और परिवार को खिलाने के लिए पैसा है, और रास्ते में छोटी-छोटी सुविधाओं पर खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा है – क्या हम इसके लिए आभारी होंगे? क्या हम अपने परिवार और आसपास मौजूद अन्य परिवारों, मित्रों, व्यवसायों और ईश्वर द्वारा हमें प्रदान की गई प्रतिभाओं के प्रति आभारी होंगे?

क्या हम अब भी जो चलन में है उसका आंख मूंदकर अनुसरण करना चाहेंगे और अपना पैसा, ऊर्जा और खुशियां उन चीजों पर बर्बाद कर देंगे जिनकी हमें जरूरत नहीं है और जिन्हें हम नहीं चाहते हैं? क्या हमारे पास जो कुछ है और जिस पर हम अपना पैसा खर्च करते हैं, उसके प्रति अधिक व्यवस्थित और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है?

बेशक, कृतज्ञता के अभ्यास में हमारी सफलता का माप हमारे द्वारा इसमें लगाई गई ऊर्जा से तय होता है। किसी भी आध्यात्मिक प्रयास की तरह, हम रातोंरात कृतज्ञता में कुशल नहीं बनने जा रहे हैं। इसमें समय और प्रयास लगने वाला है।

धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, कृतज्ञता दुनिया को देखने के हमारे तरीके को बदल देगी। हमारे पास जो कुछ भी है उसकी सराहना करने और उसके लिए आभारी होने और जरूरत से ज्यादा चीज़ों के पीछे न भागने से, हम खुद को अपने लिए चीज़ें बटोरने या पाने के बजाय दूसरों को देने के लिए बेहतर तरीके से प्रवृत्त होते हैं। कृतज्ञता और उदारता से दूसरों को देने का यह संयोजन एक विजयी संयोजन है।

एक बार फिर, बिशप फुल्टन शीन सहमत हैं, “लेने की तुलना में देना अधिक धन्य है क्योंकि यह आत्मा को भौतिक और लौकिक से अलग करने में मदद करता है ताकि उसे परोपकारिता और दान की भावना से जोड़ा जा सके जो कि धर्म का सार है।” अपनी भलाई में आनंदित होने की अपेक्षा दूसरों की भलाई में आनंदित होने में अधिक खुशी है। लेने वाला अपनी भलाई से आनन्दित होता है; दाता दूसरों की खुशी में आनन्दित होता है, और इस तरह के लोगों को  ऐसी शांति मिलती है जो दुनिया की कोई भी चीज़ नहीं दे सकती है।”

कृतज्ञता को आगे बढ़ाएँ

आभार व्यक्त करने में आगे बढ़ने की मानसिकता शामिल होती है। कृतज्ञता में बढ़ने का अर्थ है आत्म-ज्ञान, ईश्वर के ज्ञान और हमारे लिए उनकी योजना में आगे बढ़ना। धन इकट्ठा करने की चक्रीय प्रकृति और खुशी की व्यर्थ खोज से खुद को अलग करके, हम जहां हैं वहीं खुशी खोजने के लिए खुद को खोल देते हैं।

हम ईश्वर की भलाई के परिणामस्वरूप अपने और अपने लाभों की सही प्राथमिकता भी सुनिश्चित करते हैं। संत पौलुस की तरह, हम पहचान सकते हैं, “ईश्वर सबकुछ का मूल कारण, प्रेरणा स्रोत तथा लक्ष्य है। उसी को अनंत काल तक महिमा! आमेन!” (रोमी 11:30)

कृतज्ञता का यह रवैया – जो जीभ से लयबद्ध और काव्यात्मक रूप से निकलता है – हमें उन चीजों में उम्मीद की किरण देखने में भी मदद करता है जो हमेशा उस तरह से नहीं बनती हैं जैसा हम चाहते हैं। और यह कृतज्ञता का सबसे मार्मिक और सुंदर पहलू है, यह आभार का आध्यात्मिक पहलू है। जैसा कि संत अगस्तीन बताते हैं, “ईश्वर इतना अच्छा है कि उसके हाथ में बुराई भी अच्छाई लाती है। यदि वह अपनी संपूर्ण अच्छाई के कारण इसका उपयोग करने में सक्षम नहीं होता, तो वह कभी भी बुराई घटित नहीं होने देता।”

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By: Emily Shaw

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जनवरी 24, 2024
Engage जनवरी 24, 2024

प्रश्न – पवित्र यूखरिस्त में मसीह की वास्तविक उपस्थिति में अधिक विश्वास को प्रेरित करने के प्रयास में इन दिनों  संयुक्त राज्य अमेरिका तीन साल कायूखरिस्तीय पुनर्जागरणअभियान चला रहा है। ऐसे कौन से पारंपरिक तरीके हैं जिनसे मेरा परिवार यूखरिस्त के प्रति अधिक श्रद्धा का अभ्यास कर सकता है?

उत्तर  – एक कैथलिक अध्ययन में कहा गया है कि केवल एकतिहाई कैथलिक विश्वास करते हैं कि येशु मसीह वास्तव में पवित्र यूखरिस्त में मौजूद हैं। इसलिए इस के प्रत्त्युत्तर में, कलीसिया वह बात फिर से जागृत करने की कोशिश कर रही है जिसे संत जॉन पॉल द्वितीययूखरिस्तीय विस्मयकहते हैंवास्तविक उपस्थिति में एक विस्मय और आश्चर्य: येशु, यूखरिस्त में छिपा हुआ फिर भी वास्तव में मौजूद है।

हम एक परिवार के रूप में यूखरिस्त के प्रति श्रद्धा कैसे विकसित कर सकते हैं? यहाँ कुछ सुझाव हैं:

पहला, उपस्थिति

यदि हमें पता होता कि कोई व्यक्ति किसी निश्चित स्थान पर हर सप्ताह एक हजार डॉलर मुफ्त में दे रहा है, तो हम निश्चित रूप से वहां मौजूद रहेंगे। हमें इससे कहीं अधिक मूल्यवान चीज़ यूखरिस्त में प्राप्त होती है स्वयं परमेश्वर। वह ईश्वर जिसने ब्रह्मांड का सारा सोना बनाया। वह ईश्वर जिसने आपको प्रेम करके आपके व्यक्तित्व को अस्तित्व में लाया। वह परमेश्वर जो आपके लिए शाश्वत उद्धार को खरीदने के लिए क्रूस पर अपनी जान दी। वह ईश्वर जो अकेले ही हमें अनन्त जीवन में खुश रख सकता है।

यूखरिस्तीय जीवन के लिए पहला कदम कम से कम साप्ताहिक (या यदि आवश्यक हो तो और अधिक बार) मिस्सा बलिदान तक पहुंचने के लिए आवश्यक त्याग उठाना है। स्काउट में कैंपआउट के बाद मेरे पिता अक्सर मुझे और मेरे भाइयों को मिस्सा में ले जाने के लिए हर संभव कोशिश करते थे। मेरा भाई एक विशिष्ट बेसबॉल टीम के ट्रायल  में भागीदारी नहीं कर सका क्योंकि ट्रायल रविवार की सुबह था। हम जहां भी छुट्टियों पर जाते थे, मेरे मातापिता निकटतम कैथलिक चर्च का पता लगाना सुनिश्चित करते थे। यह देखते हुए कि यूखरिस्त कितना मूल्यवान है, वह प्रभु हर त्याग और बलिदान से भी बढ़कर है!

दूसरा, पवित्रता

यह सुनिश्चित करना कि हमारी आत्माएँ गंभीर पापों की अशुद्धता से विरत हैं, यह यूखरिस्तीय भोज की एक शर्त है। कोई भी व्यक्ति बड़े भोज में अपने हाथ धोए बिना नहीं बैठेगान ही किसी मसीही को पाप स्वीकार द्वारा अपने आप को शुद्ध हुए बिना यूखरिस्त या परम प्रासाद के पास जाना नहीं चाहिए।

तीसरा, जुनून

पूरे इतिहास को पढने से पता चलता है कि कैथलिक लोगों ने मिस्सा बलिदान में भाग लेने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली है। आज भी दुनिया में, चीन, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे कम से कम 12 देश ऐसे हैं जहां कैथलिकों पर कड़े प्रतिबंध हैं। इन चुनौतियों के बावजूद कैथलिक लोग अभी भी मिस्सा बलिदान में भाग लेने के इच्छुक हैं। क्या हमारे अंदर भी उसके लिए वही भूख है? इस भूख को अपने दिल में जगाओ! एहसास करें कि हमें राजा के सिंहासन कक्ष में बुलाया गया है; हमें कलवारी के बलिदान के लिए अग्रिम पंक्ति की सीट मिलती है। हमें वास्तव में प्रत्येक मिस्सा बलिदान द्वारा  स्वर्ग के पूर्वाभास में भाग लेने की अनुमति है!

चौथा, प्रार्थना

एक बार जब हमने प्रभु को ग्रहण कर लिया, तो हमें प्रार्थना में महत्वपूर्ण समय व्यतीत करना चाहिए। रोम के महान प्रचारक, संत फिलिप नेरी, परम प्रसाद प्राप्त करने के बाद, मिस्सा समाप्ती से पहले गिरजाघर से बाहर निकलने वाले किसी भी व्यक्ति के पीछे जलती हुई मोमबत्तियों के साथ दो वेदी सेवकों को भेजते थे  – इस सत्य को पहचानते हुए कि मसीह को प्राप्त करने के बाद वह व्यक्ति सचमुच एक जीवित मंजूषा है ! प्रभु को ग्रहण करने के तुरंत बाद, उसके साथ अपने दिल की बात साझा करने का सौभाग्यशाली समय हमारे पास होता है, क्योंकि वह काफी हद तक हमारे दिल से केवल कुछ इंच नीचे, हमारे शरीर में रहता है!

लेकिन मसीह की यूखरिस्तीय उपस्थिति के लिए प्रार्थना मिस्सा समाप्त होने के बाद भी लंबे समय तक चलनी चाहिए। एक बार एक संत थी जो यूखरिस्तीय जीवन जीना चाहती थी, लेकिन केवल रविवार को ही मिस्सा बलिदान  में जा पाती थी। उन्होंने गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को पवित्र भोज की आध्यात्मिक तैयारी के लिए समर्पित किया। फिर रविवार को, उन्हें खुशी हुई कि वे प्रभु को ग्रहण कर सकीऔर सोमवार, मंगलवार और बुधवार को उसे प्राप्त करने के लिए धन्यवाद देने में बिताया! इसलिए, हमें प्राप्त यूखरिस्त के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने और इस उपहार को दोबारा प्राप्त करने के लिए अपने दिलों को तैयार करने के लिए पूरे सप्ताह प्रार्थना में समय बिताना चाहिए!

पांचवां, आराधना

यूखरिस्तीय जीवन यूखरिस्तीय आराधना के साथ जारी रहता है, जो हमारे यूखरिस्तीय ईश्वर की पूजा को जारी रखता है। जितनी बार संभव हो, आराधना में जाएँ। जैसा कि धन्य कार्लो अक्यूटिस ने कहा, “जब हम सूरज का सामना करते हैं, तो हम भूरे हो जाते हैं, लेकिन जब हम खुद को यूखरिस्तीय येशु के सामने रखते हैं, तो हम संत बन जाते हैं।वह जानता था कि केवल परमेश्वर ही है जिसने हमें पवित्र बनाया है, और उसकी उपस्थिति में रहकर, येशु कार्य करेगा!

मैं इसकी गवाही दे सकता हूं. जब मैं किशोर था तब मेरे पल्ली ने सतत या अनवरत आराधना (प्रति दिन 24 घंटे, सप्ताह के सातों दिन) शुरू की और मैंने साप्ताहिक आराधना में एक घंटा बिताना शुरू कर दिया। वहां मुझे एहसास हुआ कि प्रभु मुझसे कितना प्यार करते हैं और वहीँ मैं एक पुरोहित के रूप में अपना जीवन उन्हें देने के लिए बुलाया गया था। यह मेरे अपने मन परिवर्त्तन का एक बड़ा हिस्सा था। वास्तव में, मेरी गृह पल्ली में, 160 से अधिक वर्षों से किसी युवा पल्लीवासी को धर्मसंघी बुलाहट प्राप्त नहीं हुआ था। सतत आराधना के केवल 20 वर्षों के बाद, हमारी पल्ली से 12 से अधिक धर्मसंघी बुलाहट हुए हैं !

धन्य कार्लो अक्यूटिस हमें फिर से याद दिलाते हैं, “यूखरिस्त स्वर्ग के लिए मेरा राजमार्ग है।

हमें यह जानने के लिए दूर तक देखने की ज़रूरत नहीं है कि ईश्वर कहाँ रहता है और उसे कैसे खोजा जाएवह दुनिया के हर कैथलिक गिरजाघर के हर पवित्र मंजूषा में रहता है!

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By: फादर जोसेफ गिल

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जनवरी 24, 2024
Engage जनवरी 24, 2024

जीवन में संकट और विपत्तियाँ थका देने वाली हो सकती हैं… लेकिन जीवन हमें लड़ने और जीवित रहने में मदद करने के लिए संकेत प्रदान करता है।

आत्मिक निदेशन के क्षेत्र में वर्षों से सेवा करने के दौरान, जैसा कि मैंने लोगों को अपने संघर्षों को साझा करते हुए सुना है, एक बात अक्सर दोहराई जाती है कि जब वे संकटों से गुज़र रहे होते हैं तो उन्हें लगता है कि ईश्वर ने उन्हें त्याग दिया है या उनसे दूरी बनाए रखने या अलग-थलग रहने का निर्णय लिया है। “मैं क्या गलत कर रहा हूं? ईश्वर ने मुझे इस स्थिति में क्यों डाला है? इन सब विपत्तियों के बीच वह कहाँ है?” अक्सर लोग सोचते हैं कि एक बार जब उनका गंभीर मनपरिवर्त्तन हो जाएगा और वे येशु के करीब आ जाएंगे, तो उनका जीवन समस्या-मुक्त हो जाएगा। परन्तु प्रभु ने कभी इसका वादा नहीं किया। वास्तव में, परमेश्वर का वचन इस पर स्पष्ट है।

कांटे और ऊँट कटारे

प्रवक्ता ग्रन्थ 2:1 में, यह कहा गया है, “पुत्र, यदि तुम प्रभु की सेवा करना चाहते हो, तो विपत्ति का सामना करने के लिए तैयार हो जाओ” (वैसे, वह पूरा अध्याय पढ़ने लायक है)। प्रेरितों ने सुसमाचार का प्रचार प्रसार करते समय नए मसीहियों को इस सत्य के लिए तैयार करने का भी प्रयास किया। हम प्रेरित चरित 14:22 में पढ़ते हैं, “वे शिष्यों को ढारस बंधाते और यह कहते हुए विश्वास में दृढ रहने के लिए अनुरोध करते कि हमें बहुत से कष्ट सह कर ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना है।'”

जैसे-जैसे हम परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते में आगे बढ़ते हैं और उसके वचन का पालन करने के बारे में अधिक गंभीर होते जाते हैं, हमें कुछ गंभीर चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। हमें ऐसे निर्णय लेने और ऐसे रुख अपनाने होंगे जो हमें अलोकप्रिय बना सकते हैं। लोग हमें गलत समझने लगेंगे। हर कोई हमें पसंद नहीं करेगा।

यदि आप चाहते हैं कि हर कोई आपको पसंद करे, तो येशु का अनुसरण करने का प्रयास छोड़ दीजिये। क्यों? क्योंकि सुसमाचार का जीवन जीना – जैसा कि येशु ने हमें उपदेश दिया था – हमारी संस्कृति के विरुद्ध जाना है। येशु स्वयं हमें इस बारे में चेतावनी देते हैं “यदि संसार तुम लोगों से बैर करें, तो याद रखो कि तुम से पहले उस ने मुझ से बैर किया। यदि तुम संसार के होते, तो संसार तुम्हें अपना समझकर प्यार करता; परन्तु तुम संसार के नहीं हो, क्योंकि मैं ने तुम्हें संसार में से चुन लिया है, इसलिए संसार तुम से बैर करता है” (योहन 15:18-19)।

तो हाँ, हमें इस जीवन में कई संकटों और कठिनाइयों से गुजरना होगा। लेकिन जैसा कि मैं आत्मिक निर्देशन  में लोगों को याद दिलाती हूं, ईश्वर हमें उन कठिन क्षणों में कभी भी अकेला नहीं छोड़ता है। वह हमें संकट के मार्ग पर प्रोत्साहन और सहायता देना चाहता है ताकि हम दृढ़ रहें और जीवन के तूफ़ानों से अधिक मजबूत होकर गुजरें और हमारे प्रति उसके गहरे और स्थायी प्रेम के प्रति हम अधिक आश्वस्त हों। ईश्वर भरोसेमंद है!

संकेतों की समझ

पुराने नियम में भविष्यवक्ता एलियाह के उदाहरण के बारे में सोचें। जब उसने बाल देवता के झूठे भविष्यवक्ताओं का सामना किया तो वह भीड़ के विरुद्ध गया और मूर्तिपूजा के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया। नाटकीय और बेतहाशा सफल टकराव के बाद, रानी इज़ेबेल क्रोधित हो गई और उसने एलियाह को मारने की ठान ली। अपनी जान लिए जाने के डर से एलियाह जल्दबाजी में मरुभूमि की ओर भाग गए। वे थकावट से चूर होकर और उदास होकर एक झाड़ू के पेड़ के नीचे गिर गए और वे वहीँ मरना चाहते थे। तभी ईश्वर ने उनके लिए भोजन और पानी लाने के लिए एक दूत भेजा। देवदूत ने कहा, “उठिए और खाइए, नहीं तो रास्ता आप केलिए अधिक लम्बा हो जाएगा” (1 राजा, 18 और 19)।

ईश्वर ठीक-ठीक जानता है कि हमें क्या चाहिए। वह जानता था कि एलियाह को एक तनावपूर्ण घटना के बाद सोने, खाने और ठीक होने की जरूरत थी। प्रभु जानता है कि आपको क्या चाहिए। ईश्वर हमारी आवश्यकताओं को पूरा करना और हमें प्रोत्साहित करना चाहता है। हालाँकि, हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि वह ऐसा कैसे करना चाहता होगा। मुझे लगता है कि कई बार हम अपने साथ संवाद करने के प्रभु के प्रयासों को चूक जाते हैं। प्रभु ने एलियाह से आँधी, भूकम्प, या अग्नि  में बात नहीं की। लेकिन “निरंतर मंद समीर की ध्वनि” में, एलियाह ने ईश्वर के दर्शन प्राप्त किये।

हर जगह लिली का पुष्प

कुछ वर्ष पहले, मैं कठिन परीक्षाओं और अकेलापन के दौर से गुज़र रही थी। जिंदगी बहुत भारी और बोझिल लग रही थी। एक शनिवार, मेरा एक युवा मित्र घुड़सवारी करते हुए बाहर गया और उसे रेगिस्तान में एक सफेद लिली जैसा फूल मिला और उसने उसे वापस लाकर मुझे दे दिया। अगले दिन, मैं एल पासो में सड़क पर चल रही थी और मैंने जमीन पर एक कृत्रिम सफेद लिली पड़ी देखी। मैंने उसे उठाया और अपने साथ घर ले गयी।

अगले दिन मुझे फुटपाथ के पास एक और सफेद लिली जैसा फूल उगता हुआ दिखाई दिया। तीन दिनों में तीन सफेद लिली। मैं जानती थी कि इसमें प्रभु की ओर से एक संदेश है, लेकिन मैं ठीक से नहीं जानती थी कि प्रभु  क्या कहना चाह रहा था।

जैसे ही मैंने इस पर विचार किया, एक स्मृति अचानक मेरे सामने आ गई। कई साल पहले, जब मैं हमारे समुदाय में एक नयी मिशनरी थी, हम अपने युवा केंद्र में मिस्सा बलिदान में भाग ले रहे थे। परमा प्रसाद ग्रहण करने के बाद, मैं आँखें बंद करके प्रार्थना कर रही थी। किसी ने मेरे कंधे को थपथपाया। अपनी प्रार्थना से चौंककर, मैंने ऊपर देखा और पुरोहित को वहाँ खड़ा देखा। उन्होंने मुझसे कहा, “प्रभु चाहता है कि आप यह जान लें कि उसकी दृष्टि में आप एक लिली हो।” और फिर, पुरोहित वेदी पर वापस गये और बैठ गये। मैं वास्तव में अभी तक उस पुरोहित को नहीं जानती हूँ, और उन्होंने फिर कभी मेरे साथ इस तरह का कोई अन्य संदेश साझा नहीं किया। लेकिन मुझे प्रोत्साहित करने के लिए प्रभु के एक विशेष शब्द के रूप में मैंने इसे अपने दिल में संग्रहीत किया।

अब, इतने वर्षों के बाद, वह स्मृति मेरे पास वापस आ गई, और अब मैं लिली को समझ गयी हूँ। मैं जिस कठिन समय से गुज़र रही थी, उस दौरान प्रभु मुझे प्रोत्साहित करना चाहता था। वह मुझे याद दिला रहा था कि मैं उसकी लिली हूं और वह मुझसे बहुत प्यार करता है। इसने मेरे दिल को बहुत आवश्यक शांति और इस आश्वासन से भर दिया कि तूफानों के बीच में से मैं अकेली नहीं गुजर रही थी। ईश्वर बड़ी विश्वस्तता के साथ उन तूफानों के बीच में  से मुझे देखना चाह रहा था।

ध्यान दें

ईश्वर आपको नाम से जानते हैं. आप उनकी प्यारी संतान हैं. वह आपको देखता है और जिस मुश्किल से आप गुजर रहे हैं, वह सब जानता है। वह आपसे अपने प्यार का संचार करना चाहता है, लेकिन आम तौर पर संकेत धीरे-धीरे आते हैं। अगर हम ध्यान नहीं देंगे तो वह संकेत आपसे चूक जा सकता है।

मैं लिली के साथ प्रेम के उस संदेश को भूल सकती थी। मैं सोच सकती थी कि वे महज़ एक संयोग थे। लेकिन मैं जानती थी कि यह एक संयोग से कहीं अधिक था, और मैं संदेश जानना चाहती थी। जब मैंने अपने दिल में सोचा कि इसका अर्थ क्या हो सकता है तो ईश्वर ने इसे मेरे सामने प्रकट किया। और जब मैंने इसे समझा, तो इससे मुझे सांत्वना और सहने की शक्ति मिली।

इसलिए मैं आपको प्रोत्साहित करती हूं — संकटों के दौरान दृढ़ बने रहें। जीवन से न भागें! और रास्ते में ईश्वर के प्यार और प्रोत्साहन के उन छोटे संकेतों को खोजें। मैं आपको गारंटी देती हूं कि वे संकेत उन्हीं मार्गो पर हैं। हमें बस अपनी आंखें और कान खोलकर ध्यान देने की जरूरत है।’

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By: एलेन होगार्टी

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जनवरी 10, 2024
Engage जनवरी 10, 2024

मुझे तब तक कभी भी “बोझ” का वास्तविक अर्थ समझ नहीं आया था…

आज सुबह भारीपन महसूस करती हुई, मुझे पता था कि यह प्रार्थना में लंबा समय बिताने का स्पष्ट आह्वान है। यह जानते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति सभी बुराइयों के लिए औषधि है, मैं अपनी “प्रार्थना कोठरी” में बैठ गयी। आज के लिए मेरी “प्रार्थना कोठरी”, मेरे सामने बरामदे पर थी। अकेले, लेकिन पक्षियों की चहचहाहट और पेड़ों के बीच से गुजरती शांत हवा के साथ, मैंने अपने फोन से आने वाले सौम्य भक्ति संगीत के स्वर के बीच में विश्राम किया। मैंने अक्सर उस आज़ादी का अनुभव किया है जो खुद से, अपने रिश्तों से, या दुनिया की चिंताओं से नज़रें हटाने से मिलती है। ईश्वर की ओर ध्यान आकर्षित करने पर मुझे भजन 22 का श्लोक याद आया: “यद्यपि तू मंदिर में विराजमान है, इस्राएल तेरा स्तुतिगान करता है” (3)। वास्तव में, ईश्वर अपने लोगों के स्तुतिगान में निवास करता है।

मैं एक बार फिर आत्मा में केंद्रित महसूस करने लगी, और अपने देश और दुनिया पर मंडरा रहे बोझ से मुक्त हो गयी। शांति लौट आई क्योंकि मैंने महसूस किया कि ईश्वर मुझे उन बोझों को उठाने के लिए नहीं बुला रहा था, बल्कि संत मत्ती के सुसमाचार में येशु द्वारा दिए गए जूए को गले लगाने के लिए था: “हे थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो, तुम सभी मेरे पास आओ, और मैं तुम्हें विश्राम  दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो, और मुझ से सीखो; मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूं। इस तरह तुम अपनी आत्मा केलिए विश्राम पाओगे।” (11:28,29).

एक ईसाई की पहचान

मेरे दोनों माता-पिता खेतीबारी करते हुए पले-बढ़े। शायद उन्होंने दो जानवरों को उनके कंधे पर लकड़ी के पट्टे से बंधे हुए देखा होगा, लेकिन मैंने नहीं देखा था। मैंने हमेशा उस वाक्य की व्याख्या येशु को हमारे साथ जीवन में साझेदारी करते हुए चित्रित करके की थी। वह, बोझ का भार उठाते हुए, और मैं, साथ-साथ चलती हुई, उनकी मदद और मार्गदर्शन से जो कार्य मुझे करना था उसे पूरा करती हुई।

लेकिन हाल ही में, मुझे पता चला कि “जुआ” पहली सदी का यहूदी मुहावरा था जिसका मतलब गर्दन से जुड़े बैलों की कृषि संबंधी छवि से बिल्कुल अलग था।

“जुआ”, जैसा कि येशु ने प्रयोग किया था, रब्बी, अर्थात यहूदी गुरु की शिक्षाओं के संग्रह को संदर्भित करता है। किसी विशेष रब्बी की शिक्षाओं का पालन करने का निर्णय लेकर, एक व्यक्ति उसका शिष्य बन जाता है और उसके साथ चलने का फैसला लेता है। वास्तव में, येशु कह रहे हैं, “मैं तुम्हें दिखा रहा हूँ कि परमेश्वर के साथ चलना कैसा होता है।” यह कोई कर्तव्य या दायित्व नहीं, बल्कि एक विशेषाधिकार और उपहार है! हालाँकि मैंने येशु के “जूए” को एक विशेषाधिकार और उपहार के रूप में अनुभव किया था, लेकिन “दुनिया की परेशानियों” का अनुभव करने के बारे में उसने वादा किया था। लेकिन मुझे डर था कि इससे अक्सर मेरी खुशी मुझसे छीन ले जायेगी जो एक ईसाई की पहचान है।

आज सुबह की प्रार्थना के दौरान, मैंने लगभग पच्चीस साल पहले एक फ्रांसिस्कन पादरी द्वारा लिखी गई एक किताब खोली, और उस पृष्ठ को देखा जिसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यह आज ही लिखा गया हो:

‘जब अनुग्रह एक अनुभवी वास्तविकता नहीं रह जाती है, तो ऐसा लगता है कि स्वतंत्रता का क्षेत्र भी खो गया है… दूसरे पक्ष को राक्षसी बनाना बहुत आसान है। हम इस देश में चुनावों में इसे बड़े पैमाने पर लिखते हुए देखते हैं। कोई भी पक्ष जानता है कि दूसरे पक्ष पर हमला कैसे करना है। हमारे पास विश्वास करने के लिए कुछ भी सकारात्मक नहीं है, कोई भी ऐसी चीज़ जो प्रबुद्ध या समृद्ध या गहरी हो। नकारात्मक पहचान, भले ही वह उथली हो, समर्पित निर्णय  की तुलना में अधिक आसानी से आती है। सच कहूँ तो, पक्ष की अपेक्षा विपक्ष में होना कहीं अधिक आसान है। यहां तक कि कलीसिया में भी, कई लोगों के पास आगे बढ़ने का कोई सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं है, इसलिए वे आरोप को पीछे या विपरीत दिशा में ले जाते हैं। ध्यान दें कि येशु की ‘ईश्वर के राज्य’ की अवधारणा पूरी तरह से सकारात्मक है – भय-आधारित या किसी व्यक्ति, समूह, पाप या समस्या के प्रति विरुद्ध नहीं।’ (एवरीथिंग बिलॉन्ग्स, 1999)

तिल तिल मसीह की छवि में 

मैं जो भारीपन महसूस कर रही थी, वह न केवल हमारे देश में विभाजन के कारण हुआ, बल्कि मेरे अपने वृत्त में उन लोगों के बीच भी था, जो मेरे जैसे, येशु को “प्रभु” पुकारते हैं, फिर भी वे दूसरे व्यक्ति की अलग बुलाहट और पथ का सम्मान करने में असमर्थ मालूम पड़ते हैं। यह जानते हुए कि येशु ने उन लोगों की गरिमा बहाल की जिन्हें समाज ने शर्मिंदा किया था, क्या यह वही नहीं होना चाहिए जो हम, उनके अनुयायियों के रूप में, एक दूसरे के लिए करना चाहते हैं? हमारा काम बहिष्कृत करना नहीं, सम्मिलित करना है; मुंह मोड़ना नहीं , बल्कि हर व्यक्ति के पास पहुँचना है; आरोप लगाना नहीं, परन्तु सबको सुनना है।

मैंने स्वयं इससे संघर्ष किया। यह समझना कठिन था कि दूसरे लोग चीजों को इस तरह से कैसे देख सकते हैं जो मुझे मसीही संदेश के विपरीत लगती है, फिर भी उन्हें उस दृष्टि के माध्यम से देखने में वही कठिनाई हुई जिसके माध्यम से मैं अब येशु के “जूए” को देखती हूं। मैंने वर्षों पहले “सिखाने योग्य” भावना रखने का मूल्य सीखा था। हमारे लिए यह महसूस करना आसान है कि हमारे पास एकमात्र सत्य है, फिर भी, यदि हम दृढ़ शिष्य हैं, तो हम न केवल प्रार्थना के माध्यम से बल्कि पढ़ने, पवित्र धर्मग्रन्थ पर मनन करने और अपने से अधिक बुद्धिमान लोगों को सुनने के माध्यम से लगातार अपनी दृष्टि का विस्तार करेंगे। हम किसे अपने ऊपर प्रभाव डालने की जगह देना चाहते हैं, यह सर्वोपरि है। परखे हुए विश्वास और सत्यनिष्ठा वाले व्यक्ति, जिन्होंने “अपनी बुलाहट के योग्य जीवन” जीया है, हमारे ध्यान के पात्र हैं। सबसे बढ़कर, जो प्रेम को आदर्श बनाते हैं, सभी की भलाई की तलाश करते हैं, उन लोगों की मिसाल हमें वर्षों तक बढ़ने और बदलने में मदद करेगी। हमारा चरित्र धीरे-धीरे परिष्कृत होता जाएगा, क्योंकि हम “मसीह की छवि में परिवर्तित” हो रहे हैं।

अगर हम, अपने पूरे ज्ञानोदय में, अभी भी महसूस करते हैं कि हमें सच बोलना चाहिए जैसा कि हम इसे समझते हैं, यहां तक​कि उस प्यार के साथ भी जो इसके साथ जुड़ा हुआ है, तो यह सोचने में गलती करना बहुत आसान है कि हम किसी की ज़िंदगी में पवित्र आत्मा की आवाज़ हैं! केवल ईश्वर ही उसके लिए जीए गए जीवन के हृदय, मन और आज्ञाकारिता को जानता है। उसकी आत्मा का कार्य और दूसरे की प्रतिक्रिया हमारे अधिकार क्षेत्र नहीं हैं।

निश्चित रूप से, अच्छे माता-पिता एक छोटे बच्चे पर उंगली नहीं उठाएंगे और इस बात पर ज़ोर नहीं देंगे कि वह बच्चा एक वयस्क की तरह व्यवहार करें। अच्छे माता-पिता समझते हैं कि बच्चे को परिपक्व होने में कई साल, बहुत सारी शिक्षा और एक अच्छे नमूने की ज़रुरत है। शुक्र है, हमारे पास एक बहुत अच्छे माता-पिता हैं! भजन 22 फिर याद आया। वही भजन जिसे येशु ने अपने दर्द और पीड़ा की गहराई में क्रूस से उद्धृत किया था, इस अनुस्मारक के साथ समाप्त होता है कि प्रत्येक पीढ़ी अपने बच्चों को प्रभु द्वारा किए गए अच्छे कामों के बारे में बताएगी। अनुग्रह प्रचुर मात्रा में है, और स्वतंत्रता आती है। मैंने फिर से फैसला किया कि जिन्हें मैं नहीं समझती और जो मुझे नहीं समझते उनके प्रति मैं  अनुग्रह और स्वतंत्रता दोनों को समर्पित करूंगी।

जिसके साथ जीवन भर मेरा जूआ जुड़ा है,  वही मुझे रास्ता दिखाता है।

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By: करेन एबर्ट्स

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जनवरी 10, 2024
Engage जनवरी 10, 2024

शालोम टाइडिंग्स के नियमित स्तंभकार फादर जोसेफ गिल अपने जीवन की कहानी साझा करने के लिए अपने दिल की बातें खुलकर रखते हैं और बताते हैं कि उन्हें कैसे प्यार हुआ

मैं मानता हूं कि मेरी बुलाहट को बुलाहट कम माना जाना चाहिए, बल्कि जिस व्यक्ति ने मुझे बनाया और मेरे दिल को उसने अपनी ओर आकर्षित किया, यह बुलाहट उस व्यक्ति के साथ मेरी प्रेम लीला मानी जानी चाहिए। जब मैं बहुत छोटा था, तभी से मैं प्रभु से प्रेम करता था। मुझे याद है जब मैं आठ या नौ साल का था, तब मैं अपने कमरे में बैठकर बाइबल पढ़ता था। मैं परमेश्वर के वचन से इतना प्रेरित हुआ कि मैंने बाइबल की मेरी अपनी किताब लिखने की भी कोशिश की (कहने की जरूरत नहीं है, यह कोशिश सफल नहीं हुई!)। मैंने मिशनरी या शहीद होने का, उदारतापूर्वक अपना जीवन मसीह को देने का सपना देखा।

फिर मेरी किशोरावस्था आ गई और मसीह के प्रति मेरा जुनून सांसारिक चिंताओं के नीचे दब गया। मेरा जीवन बेसबॉल, लड़कियों और संगीत के इर्द-गिर्द घूमने लगा। मेरी नई महत्वाकांक्षा एक अमीर और प्रसिद्ध रॉक संगीतकार या खेल उद्घोषक बनने की थी।

आत्मा पर आघात

शुक्र है, प्रभु ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। जब मैं चौदह वर्ष का था, तो मुझे अपने युवा समूह के साथ रोम की तीर्थयात्रा पर जाने का सौभाग्य मिला। कोलोसियम में खड़े होकर मैंने सोचा, “इस स्थान पर दस हजार से अधिक पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने येशु मसीह के लिए अपना खून बहाया है। मुझे अपने विश्वास की अधिक परवाह क्यों नहीं करना चाहिए?” सिस्टाइन गिरजाघर ने मुझे प्रभावित किया – सुन्दर चित्रों से भरपूर उस छत के कारण नहीं, बल्कि दूर की दीवार पर बनी उस कला के कारण: माइकल एंजेलो द्वारा “अंतिम न्यायविधि” का सुन्दर चित्र वहां अंकित था। वहाँ, जीवन भर लिए गए फैसलों के परिणाम को अर्थात स्वर्ग और नरक को सशक्त रूप से दर्शाया गया है। यह सोचकर मुझे अंदर तक आघात लगा कि मैं उन दो स्थानों में से एक में अनंत काल बिताऊंगा, मैंने सोचा… “तो मैं कहाँ जा रहा हूँ?”

जब मैं लौटा, तो मुझे पता था कि मुझे अपने जीवन में कुछ परिवर्त्तन लाने की ज़रूरत है… लेकिन ऐसा करना कठिन हो सकता है। मैं किशोरावस्था में बहुत सारे पाप, गुस्से और नाटकबाजी में फंस गया था। मैंने आधे-अधूरे मन से प्रार्थना जीवन विकसित करने की कोशिश की, लेकिन यह जड़ नहीं जमा सका। मैं यह नहीं कह सकता कि मैं वास्तव में पवित्रता के लिए प्रयासरत हूँ। प्रभु को मेरा दिल जीतने के लिए और अधिक मुठभेड़ों की जरूरत पड़ी।

सबसे पहले, मेरी पल्ली ने सतत आराधना शुरू की, जिससे लोगों को परम प्रसाद के पवित्र संस्कार के सामने प्रार्थना करने का 24 x 7 अवसर प्रदान किया गया। मेरे माता-पिता ने आराधना के एक साप्ताहिक घंटे के लिए साइन अप किया और मुझे आने के लिए आमंत्रित किया। पहले तो मैंने मना कर दिया; मैं अपने पसंदीदा टीवी कार्यक्रम छोड़ना नहीं चाहता था! लेकिन फिर मैंने तर्क दिया, “अगर मैं वास्तव में पवित्र परम प्रसाद के बारे में जो कहता हूं और उस पर विश्वास करता हूं – कि यह वास्तव में यीशु मसीह का शरीर और रक्त है – तो मैं उस संस्कार के साथ एक घंटा क्यों नहीं बिताना चाहूंगा?” इसलिए, अनिच्छा से, मैंने आराधना में जाना शुरू किया… और मुझे उससे प्यार हो गया। मौन मनन-चिंतन, धर्मग्रंथ का पाठ और प्रार्थना आदि के उस साप्ताहिक घंटे ने मेरे लिए परमेश्वर के व्यक्तिगत, और भावुक प्रेम का एहसास कराया… और मैं अपने प्यारे प्रभु को अपने पूरे जीवन के माध्यम से वह प्रेम लौटाने की इच्छा करने लगा।

केवल सच्ची ख़ुशी 

लगभग उसी समय, ईश्वर मुझे कुछ आत्मिक साधनाओं में ले गया जो बहुत परिवर्तनकारी थी। एक साधना ओहियो में थी, जो कैथलिक फ़ैमिली लैंड नामक एक ग्रीष्मकालीन कैथलिक पारिवारिक शिविर था। वहाँ, पहली बार, मुझे मेरी ही उम्र के लड़के मिले जिनके मन में येशु के प्रति गहरा प्रेम था, और मुझे एहसास हुआ कि एक युवा व्यक्ति के रूप में पवित्रता के लिए प्रयास करना संभव (और अच्छा भी!) था। फिर मैंने क्रूस वीर के द्वारा आयोजित हाई स्कूल के लड़कों के लिए सप्ताहांत साधना में भाग लेना शुरू किया, और मैंने और भी अधिक दोस्त बनाए। येशु मसीह के प्रति उनके प्रेम को देखकर मेरी आध्यात्मिक यात्रा में वृद्धि हुई।

अंततः, हाई स्कूल के एक वरिष्ठ छात्र के रूप में, मैंने एक स्थानीय सामुदायिक कॉलेज की कक्षाओं में जाना शुरू कर दिया। तब तक, मेरी पढ़ाई घर पर ही हुआ करती थी, इसलिए मुझे घर का सुरक्षा कवच और आश्रय मिला हुआ था। लेकिन इन कॉलेज की कक्षाओं में, मेरा सामना नास्तिक प्रोफेसरों और सुखवादी साथी छात्रों से हुआ, जिनका जीवन अगली पार्टी, अगली तनख्वाह और अगले हुकअप के इर्द-गिर्द घूमता था। लेकिन मैंने देखा कि वे बहुत दुखी लग रहे थे! वे लगातार अगली सुखदायक चीज़ के लिए प्रयास कर रहे थे। वे कभी भी अपने स्वार्थ की पूर्ती से बड़ी किसी चीज़ के लिए नहीं जी रहे थे। इससे मुझे एहसास हुआ कि दूसरों के लिए और मसीह के लिए अपना जीवन अर्पित करने में ही एकमात्र सच्ची खुशी है।

उस समय से, मुझे पता था कि मेरा जीवन प्रभु येशु और उसके इर्द गिर्द होना चाहिए। मैंने फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई शुरू की और मैरीलैंड में माउंट सेंट मैरी के सेमिनरी में दाखिला लिया। लेकिन एक पुरोहित बनाने के बाद भी मेरी यात्रा जारी है। हर दिन प्रभु अपने प्रेम का और अधिक प्रमाण दिखाता है और मुझे अपने हृदय की गहराई में ले जाता है। यह मेरी प्रार्थना है कि आप सभी, मेरे प्रिय शालोम टाइडिंग्स के पाठको, आप अपने विश्वास को “हमारी आत्माओं के महान प्रेमी” के साथ एक क्रांतिकारी, सुंदर प्रेम संबंध के रूप में देखें!

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By: फादर जोसेफ गिल

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जनवरी 10, 2024
Engage जनवरी 10, 2024

जब आपके आस-पास सब कुछ उथल पुथल हो जाता है, तो क्या आपने कभी पूछा है, “परमेश्वर मुझसे क्या चाहता है?”

मेरा जीवन, अन्य सभी की तरह, अद्वितीय और अपूरणीय है। ईश्वर अच्छा है, और मैं अपने जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद भी ईश्वर के प्रति आभारी हूं। कैथलिक माता-पिता ने मुझे जन्म दिया  और मैंने ख्रीस्त राजा पर्व के दिन बपतिस्मा लिया। मैंने एक कैथलिक प्राइमरी स्कूल में और एक वर्ष कैथलिक हाई स्कूल में पढ़ाई की। दृढीकरण संस्कार पाकर येशु मसीह के लिए एक सैनिक बनने की बड़ी तीव्र इच्छा मेरे अन्दर थी। मुझे याद है कि मैंने येशु से कहा था कि मैं प्रतिदिन मिस्सा बलिदान में भाग लेने जाऊंगी। मैंने एक कैथलिक पुरुष से शादी की और अपने बच्चों को कैथलिक विश्वास में पाला। हालाँकि, मेरा विश्वास सिर्फ मेरे दिमाग में था और अभी तक मेरे दिल तक नहीं पहुँचा था।

पीछे मुड़कर एक खोज

अपने जीवन के मार्ग में कहीं पर, मैं येशु को अपने मित्र के रूप में पहचानना छोड़ दिया। मुझे याद है कि एक नवविवाहित युवा महिला के रूप में, कुछ दिन मैं मिस्सा बलिदान में भाग नहीं ले पायी थी क्योंकि मैंने सोचा था कि मैं अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ सुख प्राप्ति के लिए काम करूंगी। मैं बहुत गलत थी. मैं अपनी सास के अनजाने हस्तक्षेप के लिए धन्यवाद देती हूं: उन रविवारों में से एक रविवार को, उन्होंने मुझसे पूछा कि मिस्सा बलिदान कैसा था। मैं उनके सवाल को नजरअंदाज करने और विषय बदलने में कामयाब रही, लेकिन ईश्वर उनके सवाल के माध्यम से मुझ तक पहुंचा। अगले रविवार, मैं मिस्सा  में गयी और फिर कभी मिस्सा न चूकने का संकल्प लिया।

कई माताओं की तरह, मैं पारिवारिक जीवन, स्कूल में स्वयंसेवा, धार्मिक शिक्षा का अध्यापन, अंशकालिक काम करना आदि में व्यस्त थी। सच कहूँ तो, मुझे नहीं पता था कि किसी को “नहीं” कैसे कहना है। इसका परिणाम यह हुआ कि मैं थककर चकनाचूर हो चुकी थी। हां, मैं एक अच्छी महिला थी और अच्छे काम करने की कोशिश करती थी, लेकिन मैं येशु को अच्छी तरह से नहीं जानती थी। मैं जानती थी कि वह मेरा दोस्त था और हर हफ्ते मिस्सा बलिदान में उसको मैं ग्रहण करती थी, लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि मैं बस कुछ रस्मों की पूर्ती करती थी।

जब मेरे बच्चे जूनियर हाईस्कूल में थे, तो मुझे फाइब्रोमायल्जिया रोग का पता चला और मुझे लगातार दर्द का अनुभव होता था। मैं काम से घर आती और आराम करती थी। दर्द के कारण मुझे कई काम बंद करना पड़ा। एक दिन एक दोस्त ने फोन करके पूछा कि तुम्हारा हाल क्या है। मैंने उससे बस अपने बारे में और अपने दर्द के बारे में शिकायत की थी। तब मेरे मित्र ने मुझसे पूछा, “ईश्वर तुमसे क्या चाहता है?” मैं असहज हो गयी और रोने लगी. फिर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने तुरंत फोन रख दिया. मैंने सोचा, “ईश्वर को मेरे दर्द से क्या लेना-देना है।” बस मुझे इतना ही याद है कि मेरे मित्र के प्रश्न ने मुझे परेशान कर दिया था।

हालाँकि आज तक, मुझे यह याद नहीं है कि मुझे महिलाओं के सप्ताहांत बैठक में किसने आमंत्रित किया था, जैसे ही मैंने अपनी पल्ली में “ख्रीस्त अपनी पल्ली का नवीकरण करता है” (सी.आर.एच.पी.) नामक एक साधना के बारे में सुना, मैंने तुरंत उसमें भाग लेने की हामी भर दी! मेरी बस इच्छा थी की मैं सप्ताह के अंत में घर से दूर रहूँ, खूब आराम करूं और दूसरों  से अपनी मदद करा लूं। मैं गलत थी। व्यावहारिक रूप से सप्ताहांत के हर मिनट की योजना बनाई गई थी। क्या मुझे आराम मिला? मुझे कुछ मिला, लेकिन जैसा मैंने सोचा था वैसा नहीं।

मैं ने अपने “मैं, मैं और मैं” पर केन्द्रित होने की प्रवृत्ति पर ध्यान दिया। वहां ईश्वर कहाँ था ? मुझे नहीं पता था कि पवित्र आत्मा द्वारा संचालित सप्ताहांत में मेरी हामी मेरे दिल का दरवाज़ा खोल देगी। 

जबरदस्त उपस्थिति

उस साधना के बीच, एक प्रवचन सुनने के दौरान मेरी आंखों में आंसू आ गए। मुझे लगा कि ईश्वर मुझसे कह रहा है “ठहरो”। और मेरे जीवन को बदलने वाले शब्दों को सीधे ईश्वर को सुनाने के लिए मैं ने अपने दिल में एक प्रेरणा महसूस की। जो शब्द मैंने पूरे दिल से ईश्वर से कहे थे, उन शब्दों ने मेरे दिल में येशु के प्रवेश के लिए द्वार खोल दिया और ईश्वर के बारे में मेरे दिमाग के अन्दर से उतारकर मेरे दिल के अन्दर रखने का काम शुरू हुआ!

“हे ईश्वर, मैं तुझसे प्यार करती हूँ,” मैंने कहा, “मैं पूरी तरह तेरी हूँ। तू मुझसे जो कुछ भी कहेगा मैं वह करूँगी, और जहाँ भी तू  मुझे भेजेगा,  मैं वहाँ जाऊँगी।”

मेरे दिल का विस्तार करने की ज़रूरत थी ताकि जिस तरह ईश्वर मुझसे प्यार करता हैं, उस तरह मैं प्यार करना सीख सकूं। “ईश्वर ने संसार से इतना प्रेम किया कि उस ने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस पर विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त कर सके।” (योहन 3:16)।

उस वार्तालाप ने एक रूपांतरण, एक मेटानोइया थापित किया यानी मेरे हृदय को ईश्वर की ओर मोड़ दिया। मैंने ईश्वर के बिना शर्त प्यार का अनुभव किया था, और अचानक ईश्वर मेरे जीवन में सबसे प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण बन गया। इसका वर्णन करना बहुत कठिन है, सिवाय इसके कि मैं इसे कभी नहीं भूलूंगी। मुझे ऐसा लगा जैसे ईश्वर ने अंधेरे में मेरा हाथ थाम लिया हो और मेरे साथ दौड़ा हो। मैं जोश में थी और खुश और आश्चर्यचकित थी कि ईश्वर मेरे जीवन में क्या कर रहा था और  क्या कर रहा है।

मेरे रूपांतरण के कुछ ही समय बाद और लाइफ इन द स्पिरिट सेमिनार के बाद, मैं अपने फाइब्रोमायल्जिया से ठीक हो गयी। मैंने अपने जीवन को देखा और प्रभु से प्रार्थना की कि वह मुझे उसके जैसा बनने में मदद करे। मुझे एहसास हुआ कि मुझे क्षमा करना सीखने की आवश्यकता है, इसलिए मैंने ईश्वर से यह दिखाने के लिए कहा कि मुझे किसे क्षमा करने या किससे क्षमा माँगने की आवश्यकता है। उसने ऐसा ही किया, और धीरे-धीरे, मैंने सीखा कि क्षमा कैसे करें और क्षमा कैसे स्वीकार करें। मैंने अपने सबसे महत्वपूर्ण रिश्तों में से एक – अपनी माँ के साथ अपने रिश्ते में सुधार का अनुभव किया। आख़िरकार मैंने सीख लिया कि ईश्वर की तरह उससे कैसे प्यार करना है। मेरे परिवार को भी उपचार का अनुभव हुआ। मैं और अधिक प्रार्थना करने लगी। प्रार्थना मेरे लिए रोमांचक थी. मैंने मौन प्रार्थना में समय बिताया, मौन ही वह जगह थी जहाँ प्रभु से मेरी मुलाक़ात हुई। 2003 में मुझे लगा कि ईश्वर मुझे केन्या बुला रहा है, और 2004 में, मैंने तीन महीने के लिए एक धर्मशाला के अनाथालय में स्वेच्छा से काम किया। सी.आर.एच.पी. के बाद से, मुझे लगा कि मुझे एक आध्यात्मिक निदेशक बनने की बुलाहट मिल रही है और मैं एक प्रमाणित आध्यात्मिक निदेशक बन गयी। प्रभु ने मेरे जीवन में और भी बहुत कुछ किया है। जब आप येशु मसीह को जानते हैं तो हमेशा बहुत कुछ होता है।

पीछे मुड़कर अपने जीवन पर नजर डालूँ तो मैं कुछ भी नहीं बदलूंगी, क्योंकि इस जीवन ने हे मुझे वह बनाया है जो मैं आज हूं। हालाँकि, मुझे आश्चर्य है कि अगर मैंने जीवन बदलने वाले वे शब्द न कहे होते तो मेरे साथ क्या होता।

ईश्वर आपसे प्यार करता है। ईश्वर आपको पूरी तरह से जानता है – अच्छा और बुरा – लेकिन फिर भी आपसे प्यार करता है। ईश्वर चाहता है कि आप उसके प्रेम के प्रकाश में रहें। ईश्वर चाहता है कि आप खुश रहें और अपना सारा बोझ उस पर लाएँ। “हे सब थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो, तुम सब मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।” ( मत्ती 11:28) मैं आपको अपने हृदय की गहराइयों से यह प्रार्थना कहने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ: “प्रभु, मैं तुमसे प्यार करती हूँ। मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ। तुम मुझसे जो कुछ भी कहोगे मैं वह करूँगी, और जहाँ भी तुम मुझे भेजोगे मैं वहाँ जाऊँगी।” मैं प्रार्थना करती हूं कि आपका जीवन कभी भी पहले जैसा न हो और चाहे आपके आसपास कुछ भी हो रहा हो, आपको आराम और शांति मिलेगी क्योंकि आप ईश्वर के साथ चलते हैं।

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By: कैरल ऑसबर्न

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जनवरी 01, 2024
Engage जनवरी 01, 2024

इस साल नव वर्ष में सबसे अच्छा संकल्प लेने की खूबसूरती को जानें

जब हम एक नए साल की दहलीज पर खड़े होते हैं, तो हवा प्रत्याशा और एक नई शुरुआत के वादे से भरी होती है। कई लोगों के लिए, यह बदलाव अतीत के बोझ को पीछे छोड़ने और विकास और स्वस्थ जीवन की यात्रा शुरू करने का मौका दर्शाता है। मैं भी इस रास्ते पर चली हूँ – जीवन की जटिलताओं के बीच जीवन नौका का संचालन करती हुई, प्रार्थना की परिवर्तनकारी कृपा के माध्यम से सांत्वना, शक्ति और आनंद पा रही हूँ।

आधी रात की चेष्टा

कुछ साल पहले, मैंने खुद को मेरे दिल पर भारी पड़ रहे अतीत के दर्द के अवशेषों से जूझती हुई पाया। निराशाओं और नुकसानों के चोट के निशान मेरे दिल पर छा गए थे, इसलिए मैं एक नई शुरुआत के लिए तरस रही थी। इसी आत्मनिरीक्षण के क्षण में मैंने एक संकल्प लिया – एक ऐसा संकल्प जो मुझे अनुग्रह और चंगाई की राह पर ले जाएगा।

जैसे ही घड़ी ने आधी रात बजाई, मैंने प्रार्थना की परिवर्तनकारी शक्ति के लिए खुद को समर्पित करने का संकल्प लिया। यह संकल्प बदलाव की क्षणभंगुर इच्छा से नहीं, बल्कि मेरी आत्मा के टूटे हुए तिनकों को जोड़ने और उस खुशी को पाने की गहरी ज़रूरत से पैदा हुआ था जो ख़ुशी मुझे बहुत लंबे समय से नहीं मिली थी।

नए साल के शुरुआती दिनों में, मेरे पिछले दर्द की पीड़ा ने मेरे संकल्प को बनाए रखने की यात्रा को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया। विकर्षणों और संदेहों ने मेरी प्रतिबद्धता को पटरी से उतारने की कोशिश की, लेकिन मैं अपने विश्वास और दृढ़ संकल्प पर अड़ी रही। लगातार प्रार्थना के माध्यम से, मैंने अपने भीतर सूक्ष्म बदलावों का अनुभव करना शुरू कर दिया – अनुग्रह की फुसफुसाहट मेरी घायल आत्मा को छू रही थी।

जैसे-जैसे महीने बीतते गए, अनुग्रह और कृपा मेरे जीवन में एक हल्की बारिश की तरह बरसने लगी, मेरे दिल की सूखी ज़मीन को सुकून देने लगी। मुझे उन लोगों को माफ़ करने का साहस मिला जिन्होंने मेरे साथ गलत किया था और यह समझने में कृपा मिली कि माफ़ी एक उपहार था और मैंने खुद को माफ़ी का उपहार दिया था। यह मुक्तिदायक थी, एक दिव्य अनुग्रह जिसने मुझे कड़वाहट की बेड़ियों से मुक्त किया, जिससे मुझे प्यार और खुशी को गले लगाने की अनुमति मिली।

अपने संकल्प पर अडिग रहें

यह रास्ता बिना कांटों वाला नहीं था, लेकिन प्रार्थना की कृपा ने मुझे दृढ़ रहने की शक्ति और लचीलापन दिया। मुझे एहसास हुआ कि यह यात्रा केवल संकल्प पर अडिग रहने के बारे में नहीं थी – यह विश्वास की उज्ज्वल रोशनी से प्रकाशित जीवन को अपनाने के बारे में थी।

प्रार्थना में निरंतरता ने मेरे उपचार और नवीनीकरण की यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुझे अक्सर जीवन के संघर्षों और विकर्षणों के बीच इस नई आदत को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण लगता था। यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं जिन्होंने मुझे उस राह पर बने रहने और अपने संकल्प को जीवित रखने में मदद की:

1. पवित्र समय निर्धारित करें: दिन का एक ऐसा विशिष्ट समय खोजें जो आपके लिए अविरोध प्रार्थना करने के लिए सबसे अनुकूल हो। यह सुबह में दिन की उथल-पुथल शुरू होने से पहले, या मध्यान्ह भोजन के लिए अवकाश के दौरान या शाम को हो सकता है, जब पूरे दिन की गतिविधियों पर चिंतन करने का अवसर हो। यह समर्पित समय एक दिनचर्या स्थापित करने में मदद करेगा।

2. पवित्र स्थान बनाएँ: प्रार्थना के लिए एक विशेष स्थान निर्धारित करें, चाहे वह आपके घर का एक आरामदायक कोना हो, गिरजाघर हो या बाहर कोई प्राकृतिक स्थान हो। एक समर्पित स्थान होने से पवित्रता और शांति की भावना पैदा करने में मदद मिलती है।

3. प्रार्थना में सहायक सामग्री का उपयोग करें: कोई पत्रिका, जपमाला या आध्यात्मिक पुस्तकों जैसी प्रार्थना में सहायक सामग्री को शामिल करें। ये उपकरण आपके प्रार्थना अनुभव को बढ़ा सकते हैं और आपको केंद्रित रख सकते हैं, खासकर जब विकर्षण आपको प्रार्थना से दूर ले जाने की धमकी देते हैं।

4. जवाबदेही की तलाश करें: अपने संकल्प को किसी भरोसेमंद दोस्त या परिवार के सदस्य के साथ साझा करें जो आपकी यात्रा में आपका उत्साहवर्धन कर सके और आपको जवाबदेह बनाए रख सके। अपनी प्रगति और संघर्षों को साझा करने के लिए किसी का होना अच्छा है और वह व्यक्ति आप केलिये प्रेरणा का स्रोत हो सकता है।

तूफान के बीच

आज, जब मैं उस महत्वपूर्ण वर्ष और उसके बाद के वर्षों के बारे में सोचती हूँ, तो मैं खुशी की गहरी भावना से भर जाती हूँ। जिस दर्द ने मुझे एक बार कैद कर लिया था, वह शक्ति, करुणा और ईश्वर के साथ एक गहरे रिश्ते के स्रोत में बदल गया है। निशान अभी भी बने हुए हैं, लेकिन वे अब उस अनुग्रह के प्रमाण हैं जिसने मुझे तूफान से बाहर निकाला।

जब हम एक नए साल की दहलीज पर खड़े हैं, तो मैं आपको अपने जीवन में प्रार्थना की शक्ति को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ। यह आशा की किरण है, आराम का स्रोत है, और सबसे बुरे समय में हमारी जीवन रेखा है। आपके संकल्प जो भी हों, वे प्रार्थना में डूबे हुए और विश्वास से पोषित होने चाहिए, यह जानते हुए कि ईश्वर की कृपा आपको हर कदम पर मार्गदर्शन करेगी।

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By: Sharon Justine

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नवम्बर 03, 2023
Engage नवम्बर 03, 2023

सुबह साढ़े छह बजे, जब सूरज की रोशनी बिलकुल नहीं थी, उस अँधेरे में और बर्फ जमा देने वाली ठंड में, जोशुआ ग्लिक्लिच ने एक फुसफुसाहट सुनी, ऐसी फुसफुसाहट जिसके द्वारा उन्हें नया जीवन मिला।

उत्तरी इंग्लैंड के अन्य ज़्यादतर कैथलिक लड़कों की तरह, मेरा बचपन बहुत ही साधारण तरीके से बीता। मैं एक कैथलिक स्कूल में गया और पहला परमप्रसाद ग्रहण किया। मुझे कैथलिक विश्वास की शिक्षा दी गई और हम अक्सर गिरजाघर जाते थे। जब मेरी उम्र 16 वर्ष की हुई, तो मुझे आगे की पढाई केलिए विद्यालय चुनना था, और मैंने कैथलिक विद्यालय में नहीं, बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष स्कूल में पढ़ाई करने का निर्णय लिया। वहीँ से मैंने अपना विश्वास खोना शुरू कर दिया।

ईश्वर प्रेम में और विश्वास में और गहरा उतरने के लिए शिक्षकों और पुरोहितों का वह निरंतर दबाव अब नहीं रहा। मैं विश्वविद्यालय पहुंचा और यहीं पर मेरे विश्वास की वास्तव में परीक्षा हुई। अपने पहले सेमेस्टर में, मैं पार्टियों में जाता रहा। मैं हर प्रकार के अलग-अलग कार्यक्रमों में जा रहा था, और अच्छे और सही मार्ग को नहीं चुन रहा था। मैंने वास्तव में कुछ बड़ी गलतियाँ कीं। मैं बाहर शराब पीने जाता अथा और न जाने सुबह किस समय कमरे में मैं वापस आता था। मैं ने ऐसा पापपूर्ण जीवन जीना शुरू किया जिसका कोई मतलब नहीं था। उस जनवरी में, जब छात्रों को अपने पहले सेमेस्टर की छुट्टी से लौटना था, मैं अन्य छात्रो के पहुँचने से थोड़ा पहले लौट आया।

मेरे जीवन का वह अविस्मरणीय दिन था। मैं सुबह लगभग साढ़े छह बजे उठा। घना अंधेरा और बर्फ जमा देने वाली ठंड थी। यहाँ तक कि वे लोमड़ियाँ भी नहीं दिख रही थीं जिन्हें मैं अपने कमरे के बाहर देखा करता था – वह हालात इतनी ठंडी और भयानक थी। मुझे अपने भीतर एक अश्रव्य आवाज का आभास हुआ। यह कोई धक्का देने वाली आवाज़ नहीं थी, और यह मेरे लिए असहज भी नहीं थी। ऐसा लगा जैसे ईश्वर ने धीमी फुसफुसाहट में कहा हो, “जोशुआ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तुम मेरे बेटे हो…मेरे पास वापस आओ।” मैं आसानी से इससे दूर जा सकता था और इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर सकता था। मुझे याद आया कि ईश्वर अपने बच्चों को नहीं छोड़ते, चाहे हम कितनी भी दूर क्यों न भटक गए हों।

हालाँकि ओला की बारिश हो रही थी, मैंने उस सुबह गिरजाघर की ओर चल दिया। जैसे ही मैंने एक कदम दूसरे कदम के सामने रखा, मैंने मन में सोचा, “मैं क्या कर रहा हूँ? मेँ कहाँ जा रहा हूँ?” फिर भी ईश्वर मुझे आगे बढ़ाते रहे, और मैं उस ठंडे, और अत्यधिक सर्द दिन में आठ बजे के मिस्सा बलिदान के लिए गिरजाघर पहुँच गया। 15 या 16 साल की उम्र के बाद, पहली बार मैंने मिस्सा बलिदान के शब्दों को अपने अन्दर आत्मसात कर लिया। मैंने सुना – “पवित्र, पवित्र, पवित्र, सेनाओं के प्रभु ईश्वर……।“ उससे ठीक पहले, पुरोहित ने कहा, “स्वर्गदूतों और संतों की गायक मंडली के साथ जुड़कर …………..” मैनें अपना दिल इसमें लगा दिया और अपना पूरा ध्यान हर शब्द पर केन्द्रित किया। मैंने परम प्रसाद में येशु मसीह की वास्तविक उपस्थिति के लिए स्वर्गदूतों को वेदी पर उतरते हुए महसूस किया। मुझे याद है कि मैंने परम प्रसाद ग्रहण किया और ऐसे सोचने लगा, “मैं अब तक कहाँ था, और प्रभु केलिए मेरा जीवन नहीं तो मेरा यह पापपूर्ण जीवन क्या केलिए था?” जैसे ही मैंने परम प्रसाद ग्रहण किया, मेरी आँखों से आंसुओं की बाढ़ बहने लगी। मुझे एहसास हुआ कि मैं मसीह का शरीर प्राप्त कर रहा हूं। वह मेरे भीतर है और मैं उसका पवित्र मञ्जूषा बन गया हूँ —उसका विश्राम स्थल।

तब से मैं नियमित रूप से छात्रों केलिए प्रतिदिन आयोजित मिस्सा बलिदान में भाग लेने लगा। मैं कई कैथलिकों से मिला जो अपने विश्वास से प्यार करते थे। मुझे अक्सर सिएना की संत कैथरीन का यह कथन याद आता है, “परमेश्वर ने तुम्हें जैसा बनाया है वैसा बनो और तुम दुनिया में आग प्रज्वलित कर दोगे।” मैंने इन छात्रों में यही देखा। मैंने देखा कि प्रभु ने इन लोगों को वैसा ही रहने दिया जैसा उन्हें होना चाहिए था। ईश्वर ने एक पिता की तरह धीरे से उनका मार्गदर्शन किया। वे दुनिया में आग प्रज्वलित कर रहे थे – वे कैंपस में दूसरों को अपना विश्वास की गवाही देकर, सुसमाचार की घोषणा कर रहे थे। मैं इसमें शामिल होना चाहता था, इसलिए मैं विश्वविद्यालय के धार्मिक सेवा दल का हिस्सा बन गया। इस दौरान, मैंने अपने विश्वास से प्यार करना और इसे दूसरों के सामने ऐसे तरीके से व्यक्त करना सीखा जो दिखावा नहीं बल्कि येशु मसीह का जैसा था।

कुछ साल बाद, मैं कैथलिक छात्र संघ का अध्यक्ष बन गया। मुझे छात्रों के एक समूह को उनके विश्वास के विकास में नेतृत्व देने का सौभाग्य मिला। इस दौरान मेरा विश्वास बढ़ा. मैं एक वेदी सेवक बन गया. तभी वेदी के करीब होने के कारण मुझे मसीह के साथ निकट रिश्ते का अनुभव हुआ पुरोहित तत्व-परिवर्तन के शब्द कहते हैं, और रोटी और दाखरस मसीह के सच्चे शरीर और रक्त में बदल जाते हैं। एक वेदी सेवक के रूप में यह सब मेरे सामने ही हो रहा था। मेरी आँखों ने उस परिपूर्ण चमत्कार के दर्शन कर लिए, जो हर जगह, हर मिस्सा बलिदान में, हर वेदी पर होता है।

ईश्वर हमारी स्वतंत्र इच्छा और हमारे द्वारा की गई जीवन यात्रा का सम्मान करता है। हालाँकि, सही मंजिल तक पहुँचने के लिए हमें ईश्वर को चुनना होगा। याद रखें कि चाहे हम ईश्वर से कितनी भी दूर क्यों न भटक गए हों, वह हमेशा हमारे साथ है, हमारे बगल में चल रहा है और हमें सही जगह पर ले जा रहा है। हम सिर्फ स्वर्ग की यात्रा पर निकले तीर्थयात्रियों के अलावा और कुछ नहीं हैं।

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By: Joshua Glicklich

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नवम्बर 03, 2023
Engage नवम्बर 03, 2023

दुनिया भर में विभिन्न कारागार में कैद एक करोड़ लोगों में से किसी से भी मुलाक़ात करना किसी भी समय संभव है। आप आश्चर्यचकित होंगे कि यह कैसे संभव होगा? पढ़ते रहिये…

“जब मैं कारागार में था, तब तुम मुझसे मिलने आये।” ये वे लोग हैं जिन्हें येशु ने न्याय दिवस पर पुरस्कृत करने का वादा किया था। कैदियों से मुलाकात को नियंत्रित करने वाले नियम हैं, लेकिन क्या ऐसे तरीके हैं कि कोई दुनिया भर में कैद किसी एक या सभी एक करोड़ लोगों से मुलाकात कर सके? हाँ!

सबसे पहले सभी कैदियों के लिए नियमित रूप से प्रार्थना करें, किसी ऐसे व्यक्ति का नाम लेकर प्रार्थना करें, जिसे आप व्यक्तिगत रूप से नाम से जानते हों। इस प्रार्थना के समय मोमबत्ती जलायें: यह परमेश्वर तक प्रार्थना के उठने और कैदी के जीवन के अंधेरे में रोशनी लाने का प्रतीक भी हो सकता है। जब मुझे जेल में डाल दिया गया तो मेरे परिवार और दोस्तों ने, विशेष रूप से, मेरे लिए, सर्वशक्तिमान ईश्वर को अर्पित करने की जीवित लौ के रूप में मोमबत्तियाँ जलाईं। मुझे यह बहुत प्रभावी लगा. यह आश्चर्यजनक था कि सामान्य जेल जीवन की निराशा में अचानक खुशी की किरण चमकती थी। कुछ छोटा, लेकिन इतना सार्थक कि मैं एक पल के लिए भूल जाऊँगा कि मैं कहाँ था और किन परिस्थितियों में था, जिसने मुझे ‘आखिरकार यहाँ भी एक परमेश्वर है” ऐसा सोचने के लिए प्रेरित किया।

लेकिन मेरा मानना है कि जेल में बंद लोगों का या प्रार्थना की अत्यधिक आवश्यकता वाले किसी भी व्यक्ति की मदद करने का सबसे शक्तिशाली तरीका उन पवित्र अनमोल घावों पर विचार करना है जो हमारे प्रभु ने पुण्य बृहस्पतिवार की रात को उनकी गिरफ्तारी से लेकर पुण्य शुक्रवार तीसरे पहर को उनकी मृत्यु तक अपनी दुःख पीड़ा के दौरान झेले थे।

अटल प्रतिज्ञा

प्रभु के शरीर पर हुए सभी प्रहारों और हमलों पर विचार करें, जिसमें क्रूर कोड़े और कांटों के मुकुट के घावों का निरंतर दर्द भी शामिल है, लेकिन विशेष रूप से उसके हाथों, पैरों और बगल पर लगे पांच सबसे कीमती घावों पर।

संत फॉस्टिना हमें बताती हैं कि जब हम येशु के घावों पर विचार करते हैं तो इससे प्रभु को ख़ुशी होती है, और जब हम ऐसा करते हैं तो वह हम पर करुना की वर्षा बरसाने की प्रतिज्ञा करते हैं। इस दयालु, उदार प्रस्ताव का लाभ उठाएँ जो उसने इस युग के लिए आरक्षित रखा है। अपने लिए, उन लोगों के लिए जिन्हें आप नाम से जानते हैं, और उन सभी एक करोड़ कैदियों के लिए, जो न्यायसंगत और अन्यायपूर्ण, सभी प्रकार के कारणों से जेल में बंद हैं, उन पर अनुग्रह और दया के लिए प्रार्थना करें। वह हर एक आत्मा को बचाना चाहता है, हर एक को उसकी दया और क्षमा प्राप्त करने के लिए अपने पास वापस बुलाता है।

पददलितों, हाशिये पर रहनेवाले लोगों, गरीबों, बीमारों और अपाहिजों तथा उन मूक पीड़ितों के लिए भी प्रार्थना करें जिनके लिए बोलने वाला कोई नहीं है। उन सभी के लिए प्रार्थना करें जो भूखे हैं –ताकि उन्हें भोजन और ज्ञान मिलें, या अपनी ईश्वर प्रदत्त प्रतिभाओं का उपयोग करने के अवसर उन्हें मिलें। अजन्मे और ईश्वरविहीनों के लिए प्रार्थना करें। हम सभी किसी न किसी प्रकार के कैदी हैं, लेकिन विशेष रूप से, हम पाप के सभी घातक रूपों के कैदी हैं।

वह हमसे अपने बहुमूल्य रक्त से भिगोये गए क्रूस के चरणों में आने के लिए कहता है, उसके सामने अपनी याचिकाएँ रखें, और हमारे निवेदन जो भी हो, वह दया उर करुना के साथ हमें जवाब देगा।

आइए हम उस अथाह खज़ाने की भीख माँगने का कोई अवसर न चूकें जिसका वादा हमारे दयालु प्रभु ने हमसे किया है। जब हम दुनिया भर में उन एक करोड़ कैदियों के लिए प्रार्थना करते हैं, तो उनमें से हर एक को हमारी प्रार्थना का 100 प्रतिशत लाभ मिलता है, क्योंकि जिस तरह हमारा अच्छा ईश्वर पवित्र परम प्रसाद में खुद को पूरी तरह से हम में से प्रत्येक को देता है, वह हमारी एक अकेली प्रार्थना को मेगाफोने की तरह कई गुना बढ़ा देता है, जो उनमें से प्रत्येक के दिल तक पहुंच रहा है।

कभी मत सोचो “मेरी एक अकेली प्रार्थना इतने सारे लोगों के लिए क्या करेगी?” रोटियों और मछलियों के चमत्कार को याद रखें और अब संदेह न करें।

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By: सीन हैम्पसी

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