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एक पुरोहित रोम का दौरा कर रहा था। उन्हें संत पापा जॉन पॉल द्वितीय से निजी मुलाक़ात करने की अनुमति मिल चुकी थी। अपने रास्ते में, उन्होंने रोम के कई सुन्दर महागिरजाघरों में से एक का दौरा किया। हमेशा की तरह, गिरजाघर की सीढ़ियों पर भिखारियों की भीड़ लगी रही, लेकिन उनमें से एक पर उनकी दृष्टि पडी और वे रुक गए। “मैं तुम्हें जानता हूं। क्या हम एक साथ सेमिनरी में नहीं थे?” भिखारी ने पुष्टि में सिर हिलाया। “तो आप का पुरोहिताई अभिषेक हुआ था, है ना?” उस पुरोहित ने उससे पूछा। लेकिन उस भिखारी ने गुस्से से जवाब दिया “अब और कुछ मत बोलना! मुझे अकेला छोड़ दो!” संत पापा के साथ अपनी आसन्न मुलाक़ात को ध्यान में रखते हुए, वह पुरोहित उसके लिए प्रार्थना करने का वादा देकर चलने लगे, लेकिन भिखारी ने उनका उपहास किया, “वाह, तुम्हारी प्रार्थना से बहुत अच्छा परिणाम निकलेगा क्या, जाओ यहाँ से।”
आम तौर पर, संत पापा के साथ निजी भेंट बहुत कम लोगों को ही मिलती है – संत पापा अपना आशीर्वाद और एक आशीष की गयी रोज़री माला प्रदान करते हैं, इस दौरान बहुत कम शब्दों का आदान-प्रदान किया जाता है। जब इस पुरोहित की बारी आई, उस भिखारी-पुरोहित के साथ आकस्मिक मुलाक़ात अभी भी उनके दिमाग में चल रही थी, इसलिए उन्होंने संत पापा से अपने उस मित्र के लिए प्रार्थना करने की याचना की, फिर पूरी कहानी सुनाई। संत पापा चिंतित और परेशान थे, और अधिक विवरण मांग रहे थे और उनके लिए प्रार्थना करने का वादा कर रहे थे। इतना ही नहीं, उन्हें और उनके भिखारी-मित्र को संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के साथ अकेले रात में भोजन करने का निमंत्रण मिला। भोजन के बाद, संत पापा ने भिखारी के साथ एकांत में बात की।
भिखारी आँसुओं के साथ कमरे से बाहर निकला। “क्या हुआ भीतर?” पुरोहित ने उस भिखारी से पूछा। सबसे अप्रत्याशित और अचंभित करनेवाला उत्तर आया। “संत पापा ने अपना पाप स्वीकार सुनने के लिए मुझसे कहा,” बोलते बोलते भिखारी पुरोहित का गला अवरुद्ध हो गया। कुछ देर बाद पुनः आत्मसंयमित होकर, उन्होंने बोलना जारी रखा, “मैंने उनसे कहा, ‘परम पावन संत पिता, मुझे देखिये। मैं एक भिखारी हूं, पुरोहित नहीं।’” “संत पापा ने कोमलता से मेरी ओर देखा और कहा, ‘मेरे बेटे, एक बार पुरोहित के रूप में अभिषिक्त व्यक्ति हमेशा केलिए अभिषिक्त होता है। और हम में से कौन भिखारी नहीं है? मैं भी अपने पापों की क्षमा मांगने के लिए एक भिखारी के रूप में प्रभु के सामने आता हूं।'” एक पाप स्वीकार को सुने हुए इतना लंबा समय बीत चुका था कि पाप मुक्ति की आशीष की प्रार्थाना पूरा करने के लिए संत पापा को भिखारी पुरोहित की मदद करनी पड़ी। सब सुनाने के बाद पुरोहित ने संदेह प्रकट किया, “लेकिन आप इतने लंबे समय से वहां थे। निश्चित रूप से संत पापा को अपना पाप स्वीकार करने में इतना समय तो नहीं लगा होगा।” “नहीं”, भिखारी ने कहा, “जब मैंने उनका पाप स्वीकार सुन लिया, उसके बाद मैंने उनसे मेरा पाप स्वीकार भी सुनने के लिए कहा।” दोनों के पाप स्वीकार के उपरांत, एक दूसरे से विदा लेने से पहले, संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने इस उडाऊ पुत्र को एक नए मिशन का दायित्व सौंप दिया – जिस गिरजाघर की सीढ़ियों में बैठकर वे भीख मांगते थे, उसी जगह जाकर वहां जानेवाले बेघरों और भिखारियों के बीच में सेवा कार्य का दायित्व।
'प्रश्न: मैं कुछ महीनों में शादी करने की तैयारी में लगा हूं, लेकिन इस प्रकार की आजीवन प्रतिबद्धता के विचार से मेरे मन में उत्कंठा और आशंका हो रही है। मैं ऐसे कई विवाहों को जानता हूं जो तलाक या दुखभरी दुर्गति में समाप्त होते हैं – मैं कैसे सुनिश्चित कर सकता हूं कि मेरा विवाह मजबूत होगा और खुशियों से भरा रहेगा?
उत्तर: आपकी सगाई हुई है, यह जानकार ख़ुशी हुई। बधाई! यह आपके जीवन का एक रोमांचक समय है, और साथ साथ तैयारी के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण समय है – न केवल शादी के लिए, बल्कि शादी के कई वर्षों के लिए जिन्हें ईश्वर आपको आशीर्वाद के रूप में देगा!
मानवीय दृष्टिकोण से देखें तो, विवाह एक कठिन सच्चाई है, क्योंकि यह दो बहुत ही अपूर्ण और अपरिपक्व लोगों को उनके शेष जीवन के लिए एक परिवार में एक साथ बाँध देता है। लेकिन शुक्र है कि विवाह केवल एक मानवीय वास्तविकता नहीं है: इसे मसीह द्वारा एक संस्कार के रूप में स्थापित किया गया था! इस प्रकार, यह उन सभी के लिए अनुग्रह का स्रोत है जो इसमें प्रवेश करते हैं – ऐसी कृपा जिसे हम हर क्षण प्राप्त कर सकते हैं!
इसलिए, एक सुखी विवाह के लिए पहला कदम है: ईश्वर को वैवाहिक जीवन के केंद्र में रखना। पूजनीय धर्माध्यक्ष फुल्टन शीन ने “थ्री टू गेट मैरिड ” (तीन व्यक्ति विवाह बंधन की ओर) नामक एक पुस्तक लिखी, क्योंकि विवाह केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच नहीं है, इसमें एक तीसरा व्यक्ति भी शामिल है – ईश्वर। और ईश्वर को ही केंद्र में रहना चाहिए। इसलिए एक जोड़े के रूप में एक साथ प्रार्थना करें और अपने जीवनसाथी के लिए प्रार्थना करें।
जितना अधिक समय आप ईश्वर के साथ बिताएंगे, उतना ही आप उसके जैसे बनेंगे – यही अच्छा है, क्योंकि आपको अपने वैवाहिक जीवन में सद्गुणों को विकसित करने की आवश्यकता होगी! धैर्य, दया, क्षमा, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और आत्म-बलिदान से भरपूर प्रेम अपरिहार्य सद्गुण हैं। अपनी शादी से पहले ही इन सद्गुणों को अपने अन्दर विकसित करने का काम करें। नियमित रूप से पाप स्वीकार संस्कार में जाइए, क्योंकि आप मसीह की तरह बनते हुए जीवन में प्रगति पाना चाहते हैं। इन गुणों के लिए प्रार्थना करें; प्रतिदिन उनका अभ्यास करें—विशेषकर क्षमा के गुण के लिए।
अच्छी शादी कभी भी अपने समुदाय से हटकर नहीं हो सकती है, इसलिए अपने सफल दाम्पत्य जीवन हेतु समुदाय के अनुभवी लोगों से सलाह लें – ऐसे लोगों के साथ जुड़ जाएँ जिनकी शादी कुछ वर्षों पहले हुई हो और उन्होंने अपने दाम्पत्य जीवन में कुछ तूफानों का सामना किया हो, लेकिन वे और उनके दाम्पत्य जीवन इससे मजबूत हो गए हो। आपके वैवाहिक जीवन में संकट के दौर आने पर आप सलाह और प्रेरणा के लिए उन लोगों की मदद ले सकते हैं। ज़रूरी नहीं है कि ये सभी परामर्शदाता जीवित हो: कुछ महान संतों ने विवाहित जीवन जिया, जैसे संत लुइस और ज़ेली मार्टिन, या संत मोनिका, जिनके कठिनाई से भरपूर विवाह ने उन्हें महान संत बना दिया।
आपके विवाह पर हमला होगा – दुष्टात्मा अच्छे वैवाहिक जीवन से घृणा करता है, क्योंकि विवाह पृथ्वी पर पवित्र त्रित्व का सबसे स्पष्ट प्रतीक है। जिस तरह पवित्र त्रित्व प्रेम पूर्ण जीवन देने वाला समुदाय है, जैसे तीन दिव्य व्यक्ति एक-दूसरे को अनंत काल के लिए समर्पित कर देते हैं, उसी तरह एक अच्छा विवाह पृथ्वी पर इस त्रित्व का दृश्यमान और जीवंत नमूना होना चाहिए – दो व्यक्ति जो स्वयं को दूसरे को यानि अपने जीवनसाथी को देते हैं, पूरी तरह से इतना देते हैं कि उनका प्रेम नए लोगों (बच्चों) के सृजन में परिणत होता है। इसलिए दुष्टात्मा शादी से खास नफरत करता है। तब आत्मिक युद्ध के लिए स्वयं को तैयार कीजिए। आमतौर पर दुष्टात्मा का हमला प्रारम्भ में एक प्राकृतिक मानवीय असहमति का रूप ले लेता है, जिसे अनुपात से अधिक बड़ा बनाया जाता है। हो सकता है कि आपके बीच एक छोटी सी असहमति हो और अचानक तलाक के विचार आपके मन में कौंधने लगे; हो सकता है कि आपके विवाहित होने के कुछ समय बाद, अन्य पतियों या पत्नियों के बारे में आप दिवास्वप्न देखने के प्रलोभन में आप पड़ जाएँ; शायद आप अन्य कार्यों में व्यस्त रहकर अपने जीवनसाथी के साथ संवाद करने में चूक जाएँ।
इन हमलों का मुकाबला करें! जैसा कि प्रोटेस्टेंट लेखक जॉन एल्ड्रेज कहते हैं, विवाह में दो लोग शामिल होते हैं “एक दूसरे को पीठ दिखाकर तलवार से लड़ रहे दो लोग” दुश्मन कभी भी आपका जीवनसाथी नहीं होता है – आप दोनों वैवाहिक प्रतिज्ञा और ईश्वरीय कृपा से बंधे हुए एक टीम हैं, जो अपने वैवाहिक जीवन को बचने के लिए एक साथ, अपने असली दुश्मन दुष्टात्मा से लड़ रहे हैं।
और हमारे पास कई हथियार हैं! संस्कार, परमेश्वर का वचन, प्रार्थना, उपवास … ये सभी आपके विवाह का एक नियमित हिस्सा होना चाहिए। निश्चिंत रहें कि चाहे कुछ भी हो जाए, ईश्वर आपको अपनी शादी में ली गयी प्रतिज्ञाओं को पूरा करने की कृपा देंगे। जो उसके साथ उदार हैं, उन लोगों के साथ वह हमेशा उदार रहता है; वह अपने वफादार लोगों के लिए वफादार है। विवाह और परिवार पर कलीसिया की शिक्षाओं का अध्ययन करें, जैसे कि संत पापा का परिपत्र “शरीर का धर्मशास्त्र” (ह्यूमने विते) और “प्रेम और जिम्मेदारी” (फमिलियारिस कन्सोर्शियो ) । अपने विवाह को, वैवाहिक प्रेम के लिए कलीसिया द्वारा प्रस्तावित इस सुंदर दर्शन के अनुरूप बनाएं।
सबसे बढ़कर, कभी हार मत मानो! एक बार जब मैं धर्म शिक्षा कक्षा में पढ़ा रहा था, मैं उस कक्षा में एक ऐसे जोड़े को लाया, जिनकी शादी 50 से अधिक वर्ष पहले हुई थी। उन्होंने बच्चों के सामने अपनी शादी के बारे में एक शानदार प्रस्तुति दी, और फिर उन्होंने बच्चों से पूछा कि क्या तुम लोगों के कोई प्रश्न हैं। 12 साल के एक अधपके लड़के ने एक सवाल उठाया, “क्या आपने कभी अलग होने के बारे में सोचा?”
कमरे में बड़ी बेचैनी थी। अनिच्छा से, पत्नी ने कहा, “हाँ, मैं तो ऐसे बहुत बार सोचा करती थी…”। उसके पति ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और पूछा, “सच में? क्या तुम भी मेरी तरह सोचा करती थी?”
वे लगे रहे – और 50 साल से अधिक वर्षों तक लगे रहे। मैं प्रार्थना करता हूं कि आप का विवाह बंधन भी ऐसा ही हो!
'क्या आप अपने प्रिय जनों के लिए प्रार्थना कर रहे हैं? यह कहानी आप में आशा का नया संचार करेगी।
कल की ही बात है
ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो, मैं अपने घर की बैठक में मेरे होने वाले ससुर जी के साथ बैठी हुई थी। यह पहली बार था जब मैं अपने बॉयफ्रेंड के माता पिता से मिल रही थी और मैं काफी घबराई हुई थी। रात को भोजन करने के बाद परिवार के बाकी लोग इधर उधर चले गए थे, तो कमरे में मैं और मेरे होनेवाले ससुरजी ही थे। मैंने उनके बारे में काफी कुछ सुन रखा था, इसीलिए मैं उनसे बात करने का यह अवसर पाकर काफी उत्साहित थी। हैरी बड़े ही लाजवाब इंसान थे, और बहुत मज़ाकिया भी। वे छह बच्चों के पिता थे, वे मेहनती थे, उन्होंने कई पुरस्कार जीते थे और वे सेना में भी रह चुके थे। मैं उनके सबसे बड़े बेटे से शादी करने वाली थी।
मैंने उनके बारे में जितना भी सुना था, अच्छा ही सुना था, इसीलिए मैं चाह रही थी कि उनसे मेरी अच्छी मुलाक़ात हो और मैं उन्हें पसंद आऊं। मैं भी उन लोगों की तरह एक बड़े कैथलिक परिवार से थी, और मुझे उम्मीद थी कि उन्हें यह बात पसंद आएगी। मैं जानती थी कि हैरी कैथलिक विशवास में बड़े हुए थे, पर फिर उन्होंने कैथलिक चर्च छोड़ कर शादी कर ली थी और अपना पारिवारिक जीवन शुरू किया था। उनके बारे में एक यही बात थी जो मुझे हज़म नहीं हुई थी। मैं जानना चाहती थी कि ऐसा क्या हुआ होगा, जिसकी वजह से उन्हें अपनी युवावस्था में उस विश्वास से मुंह मोड़ना पड़ा जो उन्हें इतना प्रिय था। इसीलिए बातें करते करते जब हम धर्म के बारे में बात करने लगे तब मैंने उन्हें बताया कि कैसे मेरा विश्वास मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उन्होंने बिना कोई रुचि दिखाए मुझे बताया कि कभी वे भी कैथलिक हुआ करते थे और वेदीसेवक के रूप में पुरोहित की मदद भी किया करता था, पर अब उन्हें शायद प्रभु की प्रार्थना भी याद नहीं थी। उन्हें बुरा ना लगे इसीलिए मैंने उनसे बस इतना कहा कि यह बड़े ही दुख की बात थी। तब से उनसे की गई बातें मैंने अपने दिल में सहेज कर रख ली थीं।
झिलमिलाती रौशनी
उस बात को अब कई साल गुज़र गए थे। मैं और मेरे पति अक्सर हैरी के लिए प्रार्थना किया करते थे, इस उम्मीद में कि एक दिन वह कैथलिक विश्वास में वापस लौट आएंगे। हैरी ने हमारी शादी के मिस्सा में भाग लिया था। उन्होंने हमारे बच्चों के संस्कारों के मिस्सा में भी भाग लिया था, और उन्होंने उस मिस्सा बलिदान में भी भाग लिया था जिसमें मेरे पति ने कैथलिक विश्वास को अपनाया था।
जब मैं अपने पति को मेरी आंखों के सामने बपतिस्मा लेते देख रही थी तब मेरे आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसी वक्त मुझे अपने ससुरजी से की हुई वह बात याद आई, और हालांकि उस बात को अब दस साल गुज़र चुके थे, फिर भी मेरा मन गुस्से से भर गया। मुझे गुस्सा इस बात पर आ रहा था कि इतने साल मेरे ससुरजी ने मेरे पति को विश्वास से दूर रखा था। मेरे पति बच्चों को नमूने के माध्यम से सिखाने में विश्वास रखते थे। उन्होंने मेरे विश्वास को बढ़ावा देने के साथ ही बच्चों की ठोस परवरिश के लिए खुद भी कैथलिक विश्वास में कदम रखा। ताकि हमारे बच्चे हम दोनों से धार्मिक बातें सीख सकें।
इसी विश्वास की झिलमिलाहट मैंने कहीं ना कहीं हैरी की आंखों में भी झिलमिलाती हुई देखी थीं। और मुझे विश्वास था कि उनके दिल में दबा हुआ ही सही, पर उनका विश्वास आज भी सांस ले रहा था। जब मेरे पति को कैंसर की बीमारी ने जकड़ा, तब मेरे ससुरजी ने मुझसे अकेले में यह स्वीकार किया कि वे मेरे पति के लिए मां मरियम से प्रार्थना कर रहे थे, क्योंकि उनकी हमेशा से मां मरियम में श्रद्धा रही है। उन्होंने कभी इस बारे में किसी को भी नहीं बताया था, लेकिन उन्होंने मेर साथ यह राज़ साझा किया। उनका यह राज़ सुनकर मैं बहुत खुश हुई थी क्योंकि मेरी प्रार्थना सच साबित हुई थी, उनमें आज भी विश्वास की किरण मौजूद थी। इसके बाद मैं और मेरे पति मेरे ससुरजी की कैथलिक विश्वास में पूरी तरह वापसी के लिए और भी ज़ोर शोर से प्रार्थना करने लगे।
एक बहुमूल्य तोहफा
साल 2020 कई लोगों के लिए बड़ा ही बुरा साल साबित हुआ, और मेरे ससुरजी के लिए भी वह साल तकलीफ भरा रहा। पीठ के बल गिरने की वजह से उन्हें काफी चोट आई थी, और उन्हें हफ्तों तक सबसे दूर रहना पड़ा था। उनकी तबियत खराब होने लगी थी, और हम बस उनके मज़बूत शरीर को दिन पर दिन कमज़ोर होता देख रहे थे। उनकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि अब उन्हें पागलपन के दौरे आना शुरू हो गए थे। इन सब के बीच मेरे पति ने मेरे ससुरजी से जा कर पूछा कि क्या वह किसी कैथलिक पुरोहित से मिलना चाहेंगे? उनकी हां ने हमें बड़ा आश्चर्यचकित किया, इसके साथ ही उन्होंने मुझसे येशु की सिखाई प्रार्थना की एक कॉपी भी मांगी ताकि वह ईश्वर की प्रार्थना को याद कर सकें। एक बार फिर से मुझे उनके साथ पहली मुलाकात याद आई, पर इस बार मैं उत्साहित थी।
आने वाले दिनों में मेरे पति एक कैथलिक पुरोहित को मेरे ससुरजी से मिलाने ले गए क्योंकि मेरे ससुरजी अब चल फिर नहीं पा रहे थे। हैरी ने पाप स्वीकार संस्कार लिया फिर अपने बेटे के हाथों परम प्रसाद ग्रहण किया। हैरी का साठ साल बाद यह दोनों संस्कार ग्रहण करना उनकी आत्मा के लिए किसी बहुमूल्य तोहफे से कम नहीं था। हैरी को रोगी विलेपन संस्कार दिया गया, और इन्हीं संस्कारों की बदौलत उनके जीवन के आखिरी हफ्ते शांति से गुज़रे।
मेरे ससुरजी के आखिरी दिनों में मेरे पति उनके लिए एक रोज़री माला ले आए और हमारा पूरा परिवार मेरे ससुरजी के बिस्तर के पास बैठ कर रोज़री माला बोला करता था, क्योंकि हम जानते थे कि अब वह अनंत जीवन के बहुत करीब आ चुके थे। क्योंकि मेरे ससुरजी की मां मरियम में हमेशा से श्रद्धा रही थी, इसीलिए हमने रोज़री माला कह कर उन्हें अलविदा कहना ठीक समझा। इन सब के बाद हैरी सुकून से स्वर्ग सिधार गए और इस कृपा के लिए हमारा पूरा परिवार दिल से प्रभु ईश्वर और मां मरियम का शुक्रगुज़ार रहेगा। क्योंकि उन्हीं की बदौलत हैरी मरने से पहले कैथलिक विश्वास में लौट सके। हमें इस बात से शांति मिलती है कि हैरी की आत्मा अब शांति में, प्रभु के सानिध्य में स्वर्गदूतों के बीच निवास कर रही है। हां यह बात सच है कि मेरे ससुरजी को अपने विश्वास को फिर से अपनाने में कई साल लग गए, और हमें भी उनके लिए प्रार्थना करते हुए, उन्हें मनाते हुए कई साल लग गए। पर हम इस बात को झुठला नहीं सकते कि इन सब के बीच उनके अंदर उनका विश्वास कहीं ना कहीं हमेशा से झिलमिला रहा था। और यह हमारे लिए ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा थी।
'एक शाम, मेरी पत्नी ने मुझे बताया कि उसने एक मालाविनती समूह को हमारे घर में आमंत्रित किया है। वे माँ मरियम की एक मूर्ति लाएंगे और माला विनती की प्रार्थना करेंगे। मैंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया, क्योंकि मुझे प्रार्थना में कोई विश्वास नहीं था। मेरी बुद्धि यह स्वीकार करने को तैयार नहीं थी कि कैसे कुछ शब्दों के उच्चारण से ईश्वर के साथ एक अर्थपूर्ण संबंध स्थापित हो सकता है।
माँ मरियम की मूर्ति को भव्य और सुन्दर रूप से प्रतिष्ठित करने के लिए, मेरी पत्नी ने चमकदार लाल गुलाब के दो फूलदान खरीदे। प्रार्थना समूह माँ मरियम की सुंदर प्रतिमा लेकर आया। जब वे पहुंचे, तो मैं घर के पिछवाड़े की ओर भाग गया। लेकिन जैसे ही माला विनती की प्रार्थना चल रही थी, मैं उस कमरे के दरवाजे पीछे खड़े होकर मूर्ति को देख रहा था और माला विनती प्रार्थना के बारे में सोच रहा था। “क्या वास्तव में ये लोग एक मूर्ति से प्रार्थना कर रहे हैं?” ऐसे प्रश्न मेरे दिमाग में उभरने लगे। लेकिन मैं अपने आप से यह भी सवाल पूछ रहा था, “क्या तुम सच में यहाँ मौजूद हो? सच्चाई को जानना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है!” मुझे यह कहने की इच्छा हुई, “तू यहाँ है, यह साबित करने केलिए मुझे तेरी ओर से एक चिन्ह की आवश्यकता है”।
मेरी नज़र चमकीले लाल गुलाबों पर पड़ी और मैंने प्रार्थना की, “काश तू उन गुलाबों में से एक या दो का रंग बदल देती …” अगली सुबह, मैं अपने काम पर निकल पड़ा। जब मैं शाम को घर आया, तो मेरी पत्नी ने दरवाजे पर ही बड़े उत्साह से मुझसे कहा, “गुलाबों को देखो … किसी ने चिन्ह या संकेत मांगा होगा।” जब मैंने उनकी जाँच करने के लिए नज़र डाली, तो मैं चमकीले लाल गुलाबों के बजाय गुलाबी रंग के गुलाबों को देखकर चकित रह गया। मैं अवाक था। अपने संयम को पुनः प्राप्त करते हुए, मैंने अपनी पत्नी से कहा, “जानेमन, मुझे लगता है कि किसी व्यक्ति ने चिन्ह मांगा … और वह ‘किसी व्यक्ति’ मैं ही हूं।” मेरी पत्नी खुशी से झूम उठी, “वाह! चमत्कार!”
मैंने उन गुलाबों की सावधानीपूर्वक जांच की कि क्या गुलाबी रंग के गुलाब, लाल रंग के गुलाब से भिन्न किस्म के हैं? लेकिन रंग को छोड़कर बाकी सब मामलों में वे दोनों रंग के गुलाब स्पष्ट रूप से समान थे। वास्तव में यह माँ मरियम की ओर से चिन्ह था जो मुझसे कह रही थी, “मैं यहाँ हूँ। मैं यहाँ तुम्हारी सहायता के लिए हूँ। मुझ से बातें करो”।
तब से, मैंने माला विनती को “कहने” के बजाय “प्रार्थना” करना शुरू कर दिया। हर बार जब मैं पूरे मन से माला विनती की प्रार्थना करता हूं, तो हमारी स्वर्गीय माँ का एक बहुत ही शक्तिशाली अनुभव मुझे होता है। वह हमेशा मेरे साथ है, मेरा हाथ थामी हुई, जीवन की यात्रा पर वह मेरे साथ चल रही है।
'मेरे परिवार का जीवन सुख और दु:ख दोनों का एक संगम रहा है। प्रिय लोगों के गुज़र जाने से, परीक्षा में असफल होने से, बार बार स्कूल बदलने से और आवास की परेशानियों से प्यार और खुशी पर अक्सर दुःख का बदल मंडराता रहा। इन सभी परीक्षणों के दौरान मैंने बहुत दुख और अकेलेपन का अनुभव किया है, लेकिन इसके बावजूद, मैं माँ मरियम से लिपटी रहकर उनसे मदद लेती थी और वह मेरा समर्थन और सांत्वना देती थी।
हाई स्कूल की पढ़ाई शुरू करते ही मेरे जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। प्राथमिक विद्यालय के दिनों के मेरे कई मित्र और सहपाठी दूसरे विद्यालयों में चले गए थे इसलिए मुझे नए लोगों के साथ जुड़ने और मेरे मित्र बनने के लिए नए लोगों को खोजने की कोशिश करनी पड़ी। मेरे नए स्कूल में अधिक काम और लगातार समीक्षा का कार्य होता था. जो मेरे लिए किसी करीबी दोस्त के बिना यह कार्य मुश्किल था।
जैसे-जैसे महीने बीतते गए, मैंने सोचा कि क्या इन कठिनाइयों और परीक्षण का दौर कभी समाप्त होगा। मैंने इस मुश्किल दौर के दौरान सांत्वना पाने के लिए माँ मरियम से प्रार्थना की और मरियम के सम्मुख समर्पण की तैयारी के लिए फादर माइकल ई. गैटले द्वारा तैयार किया गया “महिमा की सुबह हेतु 33 दिन” नामक एक ‘स्व निर्देशित आत्मिक साधना’ शुरू किया। उस साधना के प्रत्येक दिन में संतों की जीवनी से दैनिक पाठ शामिल हैं। मुझे संत लुइस डी मोंटफोर्ट, संत मैक्सिमिलियन कोल्बे, कोलकत्ता की संत टेरेसा और पोप संत जॉन पॉल द्वितीय की शिक्षाओं के प्रमुख अंशों से प्रेरणा मिली। इस पुस्तक ने माँ मरियम के साथ मेरे रिश्ते को मज़बूत किया और प्रतिदिन माला विनती करते समय पाठों पर मनन चिंतन करते हुए माँ मरियम की मातृ सेवा पर मेरा भरोसा बढ़ता रहा।
इन दिनों, जब तनाव या चिंता मेरे ऊपर हावी हो जाते हैं, तब मैं केवल मालाविनती की प्रार्थना करती हूं और मैं अपने कंधे पर माँ मरियम का सांत्वना भरे हाथ का स्पर्श महसूस करती हूं। “जब मैं मालाविनती का पाठ करता हूं, मैं पवित्र माता का हाथ थामे रहता हूं। मालाविनती के बाद पवित्र माता मेरा हाथ थाम लेती है” (संत पापा जॉन पॉल द्वितीय)। जैसे-जैसे साधना के प्रत्येक दिन के दौरान माँ मरियम के लिए मेरा प्यार और विश्वास गहराता गया, मुझे अब स्कूल में उदासी और अकेलापन महसूस नहीं होता था। मालाविनती और मरियम की अन्य भक्ति प्रार्थनाओं से मेरे आध्यात्मिक जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। समर्पण के आखिरी दिन, समर्पण की प्रार्थना करने के लिए मैं भोर में जल्दी उठी। जैसे ही समर्पण प्रार्थना के शब्द मेरे होठों से निकले, मेरा दिल बहुत खुशी और उल्लास से भर गया, क्योंकि मुझे इस ज्ञान में आनंद आया कि मैं आखिरकार मरियम को समर्पित हो गयी।
हम में से कई लोग, जो अपने जीवन में इसी तरह की कठिनाइयों का सामना करते हैं, अक्सर नहीं जानते हैं कि उन्हें क्या करना है या कहाँ जाना है। आइए हम इस अवसर पर माँ मरियम की मध्यस्थता पर भरोसा करें। हमें यह याद रखने की आवश्यकता है कि मरियम ने पृथ्वी पर रहते हुए कई दुखों और कठिनाइयों का अनुभव किया और हम किस अनुभव से गुज़र रहे हैं यह वही ठीक से समझ सकती हैं। उसका हाथ पकड़ना और उसे हमारे कष्टों में साथ देने के लिए माँ मरियम से कहने पर हमें ‘गुलाब के पुष्पों और मधु जैसे मधुर मार्ग’ की ओर चलें अका मीठा अनुभव होगा।
आइए हम अपने जीवन की कठिनाइयों के दौरान इस शक्तिशाली प्रार्थना को करते हुए मरियम की मदद मांगे:
ईश्वर की प्यारी माँ और हमारी प्यारी माँ,
हमारे दयालु पिता ईश्वर से हमारे लिए प्रार्थना कर, ,
ताकि यह बड़ी पीड़ा समाप्त हो जाए और वह आशा और शांति फिर से जाग उठें।
आमेन ।
'मैं मिस्सा बलिदान में बैठकर पुरोहित को लूकस के अनुसार सुसमाचार (6: 12-19) पढ़ते हुए सुन रही थी। मैंने उन वचनों को नए सिरे से सुना और नए तरीके से समझा, और इस तरह मैंने पहले कभी नहीं किया था।
सुसमाचार का संदेश: येशु ने बारहों को चुना। हाँ, बारह! अपने बहुत से अनुयायियों में से, येशु ने केवल बारह को चुना। उन बारहों की टोली में एक बन जाना, उनके लिए इसका मायना क्या था? मैं सोच रही थी कि येशु ने पिछली रात को पहाड़ पर क्या प्रार्थना की होगी? क्या शिष्यों की सूचि पर निर्णय लेना उनके लिए मुश्किल था या उन्होंने तुरंत फैसला लिया था? क्या एक-एक प्रेरित को चुनना एक सटीक चयन था? येशु ने अपना फैसला करने के लिए किन मापदंडों का उपयोग किया?
फिर, अचानक, मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा और मैं परेशान होने लगी। कुछ घबराहट आ गई क्योंकि मैंने सुसमाचार की कहानी के अंदर अपने आप को रखा। अन्य शिष्यों के बीच, चुने हुए बारह नाम ईश्वर के पुत्र के मुंह से उच्चरित होने की प्रतीक्षा में वहाँ चुपचाप खड़े होने की कल्पना करते हुए मैं ने मेरी बगल में खड़े लोगों को देखा।
अचानक, मेरे द्वारा किए गए हर फैसले और हर कार्य और मेरे द्वारा बोले गए प्रत्येक शब्द की गंभीरता से मैं घबरा गयी। येशु अपने अनुयायियों के मूल समूह का चयन कर रहे थे – और ये अनुयायी ही उनके कार्यों को पूरा करेंगे। अपने जीवन के बारे में मैंने मन में विस्तार से छान-बीन की और मैं खुद से यह सवाल पूछ रही थी, “क्या मैं ऐसा जीवन जी रही हूं जिसे देखकर येशु मेरा चयन करते?” क्या मैंने अपने आप को इस योग्य बनाया था? ”
निश्चित रूप से, कई शिष्य ऐसे भी थे, जिन्होंने प्रभु के नाम पर अविश्वसनीय कार्य किए, लेकिन उनके नाम बारह प्रेरितों की सूचि में नहीं थे। अच्छे काम सिर्फ उन बारहों तक ही सीमित नहीं थे, लेकिन हम जानते हैं कि प्रेरितों ने येशु के सबसे करीबी दोस्तों और अनुयायियों के रूप में एक बहुत ही अंतरंग, अभिन्न भूमिका निभाई थी। चयनित होना एक अनूठा सम्मान था। इसके अतिरिक्त, येशु ने यूदस इस्करियोती को बारहों में शामिल करके अपने अविश्वसनीय प्रेम और दया की एक झलक हमें दी। हालाँकि यूदस ने बाद में येशु के साथ विश्वासघात किया था, इस के बावजूद इस बात पर बहस करने की ज़रुरत नहीं है कि बारह शिष्य येशु के अनुयायियों का एक बहुत ही विशेष समूह था।
बारह में से एक होना क्या मायना रखता है?
शायद प्रेरित येशु के प्रति कृतज्ञ थे और उत्साहित भी थे, लेकिन ईश्वर के द्वारा उनके लिए चुने गए रास्ते के बारे में सोचकर वे घबराये हुए भी थे। उन बारहों में अन्य शिष्य नहीं चुने गए थे, इसलिए क्या उन्होंने निराशापूर्ण प्रतिक्रिया दी थी, या मसीह के प्रेरितों के सामने निश्चित रूप से कठिन मार्ग निर्धारित होगा, यह जानते हुए उनमें क्या राहत की भावना थी ?
बस चुना जाना अपने आप में एक त्यागपूर्ण बलिदान था। प्रेरित बनना एक भारी क्रूस साबित होगा। चुना जाना आगे के कठिनाई भरे जीवन की सिर्फ शुरुआत थी।
ईसाई जीवन आसान नहीं है, लेकिन इसका पुरस्कार स्वर्गिक है।
क्या आप “चुने जाने” के लिए अपना जीवन जीते हैं या आप जीवन को बस गुजारने के लिए अपना जीवन जीते हैं?
'मुझे क्या पता था कि एक पारिवारिक चढ़ाई मुझे जीवन जीने की एक नायाब तरकीब सिखा जाएगी।
पिछले साल मेरे बेटे की इच्छा थी कि हम उसके कॉलेज कैंपस आएं। हालांकि मैंने उसकी महंगी यूनिवर्सिटी और उसके आसपास के पहाड़ देखे थे, मेरे पति और बाकी बच्चे उस कैंपस में अभी तक नही गए थे। क्योंकि हमारा रेस्टोरेंट का बिज़नेस था, इसीलिए हमारे लिए समय निकाल कर पांच घंटे गाड़ी चला कर बेटे के कैंपस जाना मुश्किल ही था, फिर भी बेटे की ज़िद पर मैंने समय निकाल कर सारी तैयारियां की। चूंकि हमारे पास एक पूरे दिन रुकने का ही समय था, मैंने बेटे से कहा कि वह एक दिन के अंदर ही सारे घूमने फिरने के इंतज़ाम कर ले। इसीलिए बेटे ने हाइकिंग या पर्वतारोहण का प्रोग्राम बनाया।
काबिलियत से बढ़ कर संकल्प
मेरा मानना है कि उनचास साल की उम्र में अब मैं थोड़ी कमज़ोर हो चली हूं। मेरे पास कसरत करने का वक्त नही रहता है, क्योंकि मैं कपड़े धोती, बिखरे सामान को समेटती और अपने तीन मंज़िला घर की साफ सफाई करती करती थक जाती हूं। इसीलिए जब मैंने पहाड़ की चढ़ाई करना शुरू किया, तभी मुझे समझ आ गया था कि हाइकिंग पूरी करने के लिए मेरी काबिलियत नही बस मेरी हिम्मत काम आएगी।
जैसे जैसे हम आगे बढ़ने लगे, वे लोग जो मुझसे ज़्यादा ताकतवर और फुर्तीले थे आगे निकलने लगे और मैं पीछे रह गई। कुछ दूर आगे बढ़ने पर मेरी सांस थमने लगी और मुझे थकान होने लगी। मेरे पैरों में तेज़ दर्द शुरू हो गया। तब मुझे समझ आ गया कि इस चढ़ाई को पूरा करने के लिए मुझे कोई विशेष रणनीति बनानी पड़ेगी।
मैंने लक्ष्य से ध्यान हटा कर छोटी छोटी बातों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। तीन मील की चढ़ाई के लक्ष्य से ध्यान हटा कर मैंने बस अगले कदम के बारे में सोचना शुरू कर दिया। कई बार ऐसे बड़े लक्ष्य मुझे भयभीत कर देते हैं। पर जब मैं उन लक्ष्यों की बारीकियों पर ध्यान देती हूं तब मैं खुद को वर्तमान समय में स्थिर कर पाती हूं। मैंने इस बात से डरना छोड़ दिया कि मैं इस चढ़ाई को पूरा कर भी पाऊंगी या नही। मैंने बस हर छोटे छोटे कदम और आस पास की छोटी छोटी बातों पर ध्यान देना शुरू कर दिया।
वह अनदेखा नज़ारा
धीरे धीरे मेरा मन प्रकृति की खूबसूरती में डूबने लगा, और मैं पूरी तरह अपने लक्ष्य को भूल गई। मुझे हवाओं की मीठी धुन, और पत्तों की सरसराहट मोहने लगी, जो बच्चों की खिलखिलाहट से मिल कर जैसे एक नया गीत बुन रही थीं। जैसे जैसे मैं कदम बढ़ाने लगी, मेरी सांसे मेरा साथ देने लगीं और मेरे पूरे शरीर में खुशी की लहर दौड़ गई। मैं पहाड़ी ज़मीन पर खिले फूलों और कलियों, और उनके आस पास की हरियाली को, और पेड़ों की टहनियों से छनती धूप की किरणों को निहारने लगी। मेरे मन की आंखें उस अनदेखे नज़ारे के मोह में खो गई जो मेरे आगे, पीछे, और मेरे आसपास था। उस पथरीली ज़मीन पर चलते हुए मेरे मन में कीड़े मकौड़ों की सेना की टुकड़ियों की छवि आने लगी। मैं चिड़ियों से ले कर चूहों, गिलहरियों, यहां तक कि मधुमक्खियों के बारे में सोचने लगी। मैंने ईश्वर को इन सब छोटी बड़ी जिंदगियों के लिए धन्यवाद दिया, और इस पहाड़ी जगह के लिए भी धन्यवाद दिया जहां ईश्वर ने मुझे यह दोपहर बिताने का सौभाग्य दिया था।
जीवन जीने का नुस्खा
कुछ समय के लिए मैं रुक कर एक कटे पेड़ के तने की तस्वीर लेने लगी, ताकि मैं यह याद रख सकूं कि इस पेड़ के मरने में भी कहीं ना कहीं ईश्वर की मर्ज़ी थी। समय के साथ यह तना भी गायब हो जाएगा और इस पेड़ की जड़ें पहाड़ की ज़मीन से जा मिलेंगी। यही सब सोच कर जब मैं तस्वीर खींच रही थी तभी मेरे आगे आसमान पर एक इंद्रधनुष का नज़ारा छा गया। इंद्रधनुष से मुझे ईश्वर का मानव जाति के साथ किया गया वादा याद आया। मुझे याद आया कि ईश्वर का वह वादा आज भी जीवित है, और इसीलिए मैंने ईश्वर को उनकी वफादारी के लिए धन्यवाद दिया।
धीरे धीरे मैंने अपने कदमों को गिनना बंद कर दिया जिससे मुझे काफी आसानी हुई। मेरा सफर तब और आसानी से कटने लगा जब मैंने अपनी चिंताओं का भार ख्रीस्त पर डाल दिया और उन्हें अपने साथ चलने का बुलावा दिया। जब मुझे प्रलोभन ने जकड़ा तब मैंने येशु को खुद के और करीब कर लिया। चुनौती से भागने या उससे डर जाने की जगह, मैंने आत्मसमर्पण की प्रार्थना कही और अपने इस सफर को ईश्वर के हवाले कर दिया।
साल 2021 की शुरुआत में उस पर्वत की चढ़ाई करते वक्त मैंने जो कुछ सीखा, उस सीख की आज दुनिया को ज़रूरत है। आज भी जब दुनिया नए खतरों, नई मुसीबतों से लड़ रही है, तब मुझे वर्तमान काल में जीने के महत्व का एहसास है। और हालांकि बड़े लक्ष्य को समझ कर उसके हिसाब से फैसले लेना कई मामलों में ज़रूरी है, फिर भी भविष्य की चिंता हमें आज की खूबसूरती, शांति और प्रेम से दूर कर सकती है।
आज़ादी राह ताकती है
अगर मैंने चढ़ाई की तकलीफों और अपनी नाकाबिलियत पर ध्यान दिया होता, तो शायद मैं वह चढ़ाई कभी पूरी नहीं कर पाती। पर अपना ध्यान आज और वर्तमान में लगा कर मैंने प्रकृति के सौंदर्य और आशीषों का अनुभव किया। इसीलिए अब से मैं भविष्य के भय के बजाय आज की आशीषों को चुनती हूं। चाहे वह किसी अपने के साथ समय गुज़ारना हो, या अपनी कोई पसंदीदा किताब पढ़ना, या अपने लिए एक प्याली कॉफी बना कर उसकी महक के मज़े लेना, या किसी दोस्त से बातें करना, उनके साथ मुस्कुराना। मैं अब आज में ज़्यादा केंद्रित हूं और रोज़ ईश्वर के प्रेम को अलग अलग रूप से प्रकट करने की कोशिश करती हूं।
पहाड़ पर एक छोटी सी चढ़ाई ने मुझे जीवन जीने का यह बहुमूल्य नुस्खा दे दिया: कि हमें वर्त्तमान में उपस्थित रह कर रोज़ ईश्वर को उनकी आशीषों के लिए धन्यवाद देना चाहिए।
इस नुस्खे ने मेरा सफर आसान कर दिया है, (चाहे वह पहाड़ पर चढ़ाई का सफर हो या कोई दैनिक कार्य करने की मुश्किल हो, या ईश्वर के दिए क्रूस को उठाने की कठिनाई हो या एक वैश्विक महामारी के बीच जीवन जीने का संघर्ष)। वर्तमान में जीना ही उस आज़ादी की चाभी है, जिस अलौकिक आज़ादी को दुनिया की कोई ताकत नहीं दबा सकती है। ख्रीस्त वर्तमान काल में ही निवास करते हैं। आइये, हम उन्हें वर्त्तमान में ढूंढें, और भरोसा रखिए कि वे हमें ज़रूर मिलेंगे।
'क्या आप दुनिया बदलना चाहते हैं? अगर आपका जवाब हां में है, तो इन सुझावों को अपना कर देखिए।
हमारी सेमिनरी में कलीसिया का इतिहास पढ़ाने वाले शिक्षक ने एक दिन पहले वर्ष के छात्रों से पूछा कि उनके हिसाब से कलीसिया के इतिहास में सबसे अच्छा वर्ष कौन सा रहा होगा? इस सवाल को सुनते ही प्रथम वर्ष के उत्साहित छात्र मन ही मन घबराने लगे।
धीरे धीरे छात्र सवाल का जवाब देने की कोशिश करने लगे, पर जब सबों के जवाब गलत होने लगे तो छात्र सोचने लगे कि जो सवाल उनसे पूछा गया था, क्या उसका कोई ठोस जवाब है भी या नही? आखिर में शिक्षक ने छात्रों के अंदेशों को सच साबित करते हुए कहा कि पूछे गए सवाल का कोई ठोस जवाब इसीलिए नही हैं क्योंकि कलीसिया ने आज तक कभी भी कोई सर्वश्रेष्ठ काल नही देखा है।
हर एक काल अपने साथ ख्रीस्तीय विश्वास के लिए नई चुनौतियां लाया है। चाहे वह संतों का कत्ल हो या किसी तरह चर्च की बदनामी, या कलीसिया के अंदर लड़ाई झगड़े, या कोई खतरनाक विचारधारा, या अपधर्मी प्रवचन, या आज के समय का नास्तिकवाद।
कलीसिया और विश्वासियों ने कई आंधियों का सामना किया है, हमने चोटें खाई पर हम डंटे रहे। कई संत, शहीद, पवित्र स्त्री-पुरुषों ने बड़ी बहादुरी के साथ इन आंधियों का सामना किया है। शायद आज हमें ऐसा लग रहा हो कि वर्तमान काल कलीसिया के लिए बड़ा भारी है, और जिस कलीसिया को हम अपने दिलो-जान से प्यार करते हैं वह इन दिनों लगातार हमले, अत्याचार और धोखेबाज़ी का शिकार है। लेकिन हमें यह याद कर के हौसला रखना चाहिए कि जैसे बीते वक्त में कलीसिया ने सारी बाधाओं का सामना किया है, उसी तरह आने वाले वक्त में हम फिर से विजयी होंगे।
लेकिन विश्वास और सहनशीलता की इसी कशमकश के बीच हमें उन उपायों के बारे में भी गौर करना चाहिए जिसके सहारे हम अपने आस पास के वातावरण को बदल सकते हैं और उस राह पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जो हमें पवित्रता की ओर ले चलता है। शायद दुनिया हमें कभी संत की उपाधि ना दे, पर फिर भी हम संत बन कर अनंत काल ईश्वर के सानिध्य में बिता सकते हैं। आइए पवित्रता की इस यात्रा में हमारी सहायता करने योग्य पांच सुझावों को हम देखते हैं:
1. साधारण आचरण अपनाएं
हमें अक्सर ऐसा लगता है कि हमें कोई बहादुरी का काम करना चाहिए, पर अंदर ही अंदर हम अपने आप को दुनिया के विश्वास को सशक्त करने के काबिल नही पाते। लेकिन हम में से ज़्यादतर लोग ख्रीस्त की तरह बहादुर कार्य करने के लिए बुलाए ही नहीं गए हैं। हम में से कइयों पर जो भार या दायत्व है, वह हमारी समझ और हमारे अंदाज़े से कहीं ज़्यादा छोटा और आसान है। संत थॉमस मोर, जो कि कलीसिया और उसकी शिक्षाओं के बहुत बड़े रक्षक थे, उन्होंने इस सिद्धांत को बड़ी अच्छी तरह समझ लिया था। उन्होंने कहा, “हम अपने परिवार, अपने घर में जो मामूली कार्य हर रोज़ करते हैं, वह साधारण आचरण हमारी आत्मा के लिए हमारी सोच से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है।”
हमारे छोटे छोटे, सहज और सादगी भरा आचरण, और हर दिन ईश्वर पर विश्वास रखना ही आध्यात्मिक रूप में हमें उन बीजों को बोने में मदद करता है जिनके फल हम कभी देख भी ना पाएं। इन्हीं छोटे छोटे कार्यों द्वारा हम अपने घरों, अपनी पल्ली, अपने समुदाय में विश्वास बोते हैं, वह विश्वास जो आगे चल कर दूसरों को और आखिर में ख्रीस्त के शरीर रूपी कलीसिया के स्वास्थ्य को सशक्त करता है।
2. असाधारण से जुड़े
विश्वास पर निर्भर जीवन शैली हमारे आज के समाज की समझ के परे है। कई लोग अलौकिक बातों को समझ नही पाते और धर्म को बीते ज़माने की परियों की कहानी की शैली में डाल देते हैं। इसीलिए आज के समय में एक सच्चा कैथलिक जीवन जीने के लिए असाधारण विश्वास, ईश्वर पर भरोसा और इन सब से बढ़ कर ईश्वर के प्रति एक ऐसे प्रेम की ज़रूरत है जो हमें ईश्वर पर आश्रित होने पर मजबूर करे। मदर एंजेलिका ने इस सिद्धांत को बड़ी खूबसूरती से शब्दों में पिरो कर कहा है, “ईश्वर पर विश्वास हमें इस बात की तसल्ली देता है कि जब हम प्रार्थना करते हैं तब ईश्वर हमारे बीच उपस्थित रहता है, और ईश्वर पर आशा हमें आश्वस्त करती है कि वह सुनता है, पर सिर्फ ईश्वर के प्रति प्रेम ही हमें उससे तब भी प्रार्थना करने की प्रेरणा देता है जब हमारे जीवन में अंधियारा और हमारी आत्मा में निराशा भरी होती है।” इसीलिए आइए हम प्रार्थना करें, भरोसा रखें, प्रेम रखें, और फिर प्रार्थना करें। देखने में यह कार्य थोड़ा भारी है, लेकिन यही छोटी छोटी बातें हमें ईश्वर के असाधारण व्यक्तित्व से जोड़ती हैं और हमें स्वर्गिक पिता और उनके मुक्तिदाता पुत्र येशु की भव्य और अलौकिक उपस्थिति के करीब लाती है। जब हम ईश्वर के करीब होते हैं तभी पवित्र आत्मा भी हमें समझदारी के तोहफे देते हैं।
3. पवित्र दृढ़ता को अपनाएं
हममें से कोई भी पूर्ण नही है, और हम सब पापी हैं, इसीलिए हम कई सारी गलतियां करते हैं। यहां तक कि हम कई बार अपनी गलतियों को दोहरा बैठते हैं। लेकिन यह ज़रूरी है कि इन उलझनों के बीच हम खुद पर निराशा को हावी ना होने दें।
संत जोसे मारिया एस्क्रीवा ने कहा है: “यह कभी ना भूलें कि संत वे नहीं होते जो कभी गलतियां नहीं करते, बल्कि संत वे होते हैं जो गलतियों में गिर कर भी फिर खड़े होने का साहस करते हैं। संत जन बड़ी विनम्रता के साथ पवित्र दृढ़ता का पालन करते हैं।” इसीलिए गलतियों में गिरने के बाद खुद को वापस खड़ा कीजिए, अपने ऊपर लगी धूल को झाड़िए और पवित्र दृढ़ता से भर कर पवित्रता की राह की ओर एक नया कदम बढ़ाइये। क्योंकि पवित्रता का मार्ग कोशिश करने योग्य है।
4. समाज का पवित्रीकरण
“खुद को पवित्र करो जिससे समाज पवित्र हो सके”, ऐसा असीसी के संत फ्रांसिस कहते हैं। मेरे लिए, यह कथन बस सुनने में आसान लगता है, पर अपनाने में बड़ा ही मुश्किल। क्योंकि मेरे पापी स्वभाव के लिए ऐसा कर पाना किसी पहाड़ तोड़ने से कम नही है। लेकिन क्योंकि यह सुझाव दिखने में मुश्किल लगता है, इसका मतलब यह नहीं है कि हम इसे पूरा नहीं कर सकते। येशु ने हमसे बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा है कि जो मनुष्यों के लिए असंभव है वह ईश्वर के लिए संभव है। (मत्ती 19:26)
कोशिश करें कि आप दैनिक प्रार्थनाएं बिना भूले किया करें। अच्छे कार्य किया करें और हर रात अपने अंतर्मन की जांच करके सोएं ताकि आप खुद को और खुद की आध्यात्मिक प्रगति को समझ सकें।
5. उम्मीद को थामे रहें
संत पाद्रे पिओ लोगों को हमेशा उत्साहित करते हुए कहते थे, “प्रार्थना करो, आशा रखो, और चिंता मत करो।” हमारी दुनिया पूर्ण नहीं है। यह मुसीबतों और चिंताओं से भरी पड़ी है। लेकिन इस सच्चाई से हमारी आत्मा विचलित न हो।
पाद्रे पिओ ज़िंदगी की आंधियों से जूझ रहे लोगों को सांत्वना देते हुए कहते हैं, “ईश्वर हमारे साथ ऐसा कुछ भी नही होने देंगे जो हमारी भलाई के लिए ना हो। जो आंधियां आपके आसपास उठ रही हैं वह अंत में ईश्वर की महिमा, आपकी प्रगति और कई आत्माओं की भलाई का मार्ग बनेगी।”
इसीलिए जब आप अपने जीवन और दुनिया की आंधियों से घिरे रहते हैं, तब आशा ना खोएं। ईश्वर ने ही हमें इन हालातों में डाला है, और इन्हीं के द्वारा ईश्वर हमारा पवित्रीकरण करते हैं। हमें बस बहादुरी के साथ डटे रहना है, और इन सब से तब तक गुजरते जाना है जब तक हम आखिर में ईश्वर के स्वर्गिक निवास ना पहुंच जाएं।
'“येशु मसीह मृतकों में से जी उठा है”, यही सुसमाचार का मूल सन्देश है| उस घोषणा से यह विश्वास भी पूरी तरह जुड़ा हुआ है कि ईश्वरीय व्यक्तित्व में कार्य करने और बोलने के येशु के अपने दावे सही हैं। और येशु की ईश्वरीयता से ही ख्रीस्तीय धर्म के आत्यंतिक मानवतावाद का सिद्धांत शुरू होता है।
इस लेख के द्वारा मैं इसी तीसरे सुसमाचारीय सिद्धांत के बारे में संक्षेप में बताना चाहता हूँ। कलीसिया के आचार्यों ने हमेशा देहधारण के अर्थ को इस सूत्र का उपयोग करके अभिव्यक्त किया: “ईश्वर मानव बन गए, ताकि मानव ईश्वर बनें”। उन्होंने देखा कि हमारी मानवता में ईश्वर का प्रवेश, यहां तक कि व्यक्तिगत मिलन के बिंदु तक, मानव के सबसे बड़े प्रतिज्ञान और उन्नयन के लिए ही है। दूसरी शताब्दी के महान धर्मविज्ञानी, संत इरेनियस, ख्रीस्तीयता का सार इस अर्थगर्भित कहावत के माध्यम से व्यक्त करते हैं: “जीवन से परिपूर्ण मानव के द्वारा ईश्वर की महिमा होती है!”
अब मुझे एहसास होता है कि इसमें से बहुत कुछ सहज ज्ञान से युक्त नहीं है। कई लोगों के लिए, कैथलिक ख्रीस्तीयता मानवतावाद-विरोधी है, या एक ऐसी प्रणाली है जिसमें आत्म-अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने वाले (विशेष रूप से कामुकता से सम्बंधित) कानूनों की एक व्यूह रचना होती है। आधुनिक कथा वाचन के मानक के अनुसार, मानव प्रगति के समान ही मानव की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की वृद्धि भी है, और इस प्रगति का दुश्मन (यदि कथा वाचन के उप-पाठ के काले पक्ष को उभरने की अनुमति है तो) कुछ ऊधम मचाती है, तो वह नैतिकता को थोपने वाली ईसाइयत है। संत इरेनियस के अति उदारवाद ख्रीस्तीय मानवतावाद से आगे बढ़कर ईसाई धर्म को आधुनिक ज़माने में संदेह की धुरी पर लाकर मानव प्रगति के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में हमने कैसे पहुंचा दिया? बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि हम स्वतंत्रता को कैसे परिभाषित करते हैं।
स्वतंत्रता के जिस दृष्टिकोण ने हमारी वर्त्तमान संस्कृति को आकार दिया है, उसे हम उदासीनता की स्वतंत्रता कह सकते हैं। इसे पढ़ने पर, बस अपने झुकाव के आधार पर और अपने निर्णय के अनुसार “हां” या “नहीं” कहने की क्षमता को स्वतंत्रता कह सकते हैं, । यहां, व्यक्तिगत पसंद सर्वोपरि है। हम समकालीन आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में पसंद के इस विशेषाधिकार को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। लेकिन इस से बढ़कर स्वतंत्रता की एक शास्त्रीय समझ है, जो उत्कृष्टता के लिए स्वतंत्रता के रूप में जाना जाता है । इस पठन पर, इच्छा पर अनुशासन करना स्वतंत्रता है, ताकि अच्छे की उपलब्धि हो, पहले कोशिश द्वारा, फिर सहज रूप से। जिस तरह, जितना अधिक मेरा दिमाग और मनो-शक्ति भाषा के नियमों और परंपरा में प्रशिक्षित किये जायेंगे, उतना ही अधिक मैं भाषा के अपने उपयोग में स्वतंत्र हो गया हूं। यदि मैं भाषा की दुनिया से पूरी तरह से जुड़ा हुआ हूं, तो मैं भाषा का पूरी तरह से मुक्त उपयोगकर्ता बन जाता हूं, मैं जो भी कहना चाहता हूं, जो कुछ भी कहना है, कह सकता हूं।
इसी तरह, यदि बास्केटबॉल खेल की चालों को व्यायाम और अनुशासन के माध्यम से मेरे शरीर में डाल दिया जाता है, तो मैं बास्केटबॉल खेलने में स्वतंत्र हो जाता हूं। अगर मैं बास्केटबॉल की दुनिया से पूरी तरह से प्रशिक्षित किया जाता, तो मैं माइकल जॉर्डन से भी बेहतर खिलाड़ी बन सकता था, क्योंकि जो भी खेल की मांग है, उसे मैं आसानी से कर पाता। उदासीनता की स्वतंत्रता के लिए, उद्देश्यपूर्ण नियम, आदेश और अनुशासन समस्या बन जाती हैं, क्योंकि उन्हें वर्जिश या प्रतिबन्ध के रूप में महसूस किया जाता है। लेकिन दूसरे प्रकार की स्वतंत्रता के लिए, इस तरह के कानून मुक्तियुक्त हैं, क्योंकि वे कुछ महान अच्छाई की उपलब्धि को संभव बनाते हैं। संत पौलुस ने कहा, “मैं येशु मसीह का दास हूं” और “इस स्वतंत्रता के लिए ही मसीह ने तुम्हें स्वतंत्र किया है।” उदासीनता की स्वतंत्रता के पैरोकार के लिए, इन दो दावों का आमने सामने द्वन्द बिलकुल समझ में नहीं आता है। किसी का गुलाम होना, जरूरी है कि यह स्वतंत्र न होने की बात है। लेकिन उत्कृष्टता की स्वतंत्रता के भक्त के लिए, पौलुस का बयान पूरी तरह से सुसंगत हैं। जितना अधिक मैं येशु मसीह के सामने आत्मसमर्पण करता हूं, जो स्वयं सबसे बड़े भले हैं, जो स्वयं ईश्वर का अवतार भी हैं, जितना ही स्वतंत्र मुझे होना चाहिए, उतना ही स्वतन्त्र मैं होने वाला हूं। जितना अधिक मसीह मेरे जीवन का स्वामी बन जाता है, उसकी नैतिकता की माँगों को जितना अधिक मैं पूरा करता हूँ, उतना ही मैं परमेश्वर की संतान बनूँगा, ताकि मैं पिता की ओर से आ रही बुलाहट का तुरंत जवाब दे सकूं।अंत में, मनुष्य को चुनने की भूख नहीं है; वह अच्छाई को चुनने के लिए भूखा है। वह लम्पट लोगों की स्वतंत्रता नहीं चाहता है; वह संत की स्वतंत्रता चाहता है। और सुसमाचारीकरण वास्तव में इस संत की स्वतंत्रता को ही प्रदान करता है, क्योंकि यह मसीह को प्रदान करता है। यह कहना अजीब लगता होगा कि नए नियम के महानतम प्रचारकों में से एक पोंतियुस पिलातुस है। उन्होंने कोड़ों की मार खाए येशु को भीड़ के सामने पेश करते हुए कहा, “देखिये इस मनुष्य को।” योहन के सुसमाचार की स्वादिष्ट विडंबना में, पिलातुस अनजाने में ही इस तथ्य पर ध्यान आकर्षित कर रहा है कि येशु अपने पिता की इच्छा को पूरी तरह सहमती देते हैं, यहां तक कि यातना और मृत्यु को भी स्वीकार करने की सीमा तक, वास्तव में वह “मनुष्य” है, अर्थात मानवता अपने पूरे दम पर और सबसे मुक्त है । सुसमाचार के प्रचारक आज भी यही काम करते हैं। कलीसिया मसीह को घोषित करती है – मानवीय स्वतंत्रता और ईश्वरीय सत्य, दोनों को पूर्ण सामंजस्य में रखती है – और वह कहती है, “देखो मानवता को; तुम सबसे अच्छे यही बन सकते हो।”
'क्या आप की पीड़ाओं से आशीर्वाद मिल सकता है?
हाल ही में मेरे पति और मुझे हमारे छह साल के बेटे अशर के स्कूल में जाना पड़ा। मेरे बेटे की एकाग्रता की कमी और पढ़ाई से सम्बंधित अन्य मुद्दों का आंकलन करने के लिए स्कूल के अधिकारियों के साथ एक बैठक के लिए हम लोग बुलाये गए थे। आंकलन दो घंटे से अधिक देर तक चला और इसमें मेरे और मेरे पति के लिए अलग-अलग परामर्श और सवाल-जवाब के सत्र शामिल थे। अशर की चुनौतियों को समझने और उसकी गतिविधियों में सुधार लाने और उसके बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करने के लिए हमें इस मूल्यांकन की बड़ी आवश्यकता थी।
मैं अपनी बेटी को गोद में लिए मूल्यांकन कक्ष में बैठी थी और मेरा बेटा खिलौनों से भरे दूसरे कमरे में खेल रहा था। मूल्यांकनकर्ता एक लम्बी प्रश्नावली साथ लाई थी और वे मुझसे प्रश्न पूछने लगी। उन्होंने मेरे परिवार का इतिहास, गर्भावस्था की जटिलताओं, चिकित्सा, घर की चुनौतियों, घर और स्कूल में आशेर की गतिविधियों, उसकी विभिन्न मुसीबतों, परिवार का समर्थन आदि के बारे में पूछा। उन्होंने मेरे सभी जवाबों को अपने नोटबुक में दर्ज किया।
प्रश्नावली को पूरा करने के बाद, शायद मेरी भावनात्मक स्थिति की गहराई की एक झलक पाने के कारण, उस काउंसलर ने कहा कि वे मुझसे एक बहुत ही व्यक्तिगत सवाल पूछना चाहती है – “आप कैसे भावनात्मक रूप से इन सारी चुनौतियों से मुकाबला कर रहीं हैं? आपकी ताकत का स्रोत क्या है?” मैंने कहा कि मुझे ईश्वर पर विश्वास है और मुझे भरोसा है कि वह मुझे हर दिन का सामना करने की शक्ति देता है।
मुझे नहीं पता था कि मेरी ताकत का यह रहस्य उस काउंसलर के लिए कितना मायने रखता है। मेरे बारे में वह जितना जानती थी बस यही कि मेरी ज़िंदगी पूरी तरह से गड़बड़ थी: १. अपनी गोद में एक चार साल की बेटी को पकड़ी हुई, जो लगभग एक निष्क्रिय और नीरस अवस्था में है; २. एक और संतान जो खुद को एक ऐसी दुनिया में उपयुक्त पाने के लिए संघर्ष कर रहा है, जो उस दुनिया की उम्मीदों के मुताबिक़ कार्य नहीं कर पाता है; ३. और मैं थकी-हारी और टूटी हुई एक माँ जो मूल्यांकन कक्ष में इस उम्मीद से बैठी हुई हूँ कि वे मेरे बेटे की खामियों को नहीं बल्कि उसकी विशिष्टता को खोज निकालें और मुझे एक अच्छे अभिभावक होने के कुछ उपयोगी नुस्खे बताएँगे।
लेकिन मुझे बड़ा आश्चर्य तब हुआ जब उस काउंसलर ने मुस्कराते हुए अपना सिर हिलाया और मेरी ताकत के स्रोत ईश्वर होने की बात पर उन्होंने आंसू भरी आँखों से मेरे साथ सहमति जताई।
मैं सोचती थी कि येशु में अपने विश्वास की गवाही देने में मेरा जटिल और टूटा जीवन मुझे अयोग्य बना देगा। लेकिन मैंने पाया कि मेरी टूटी ज़िंदगी के द्वारा अपने विश्वास को साझा करने से मेरे जीवन में ख्रीस्त की शक्ति प्रकट होती है, जैसा कि संत पौलुस ने ठीक ही कहा है: हमारी दुर्बलता में उसका सामर्थ्य पूर्ण रूप से प्रकट होता है (2 कुरिं 12: 8)।
आमतौर पर, हम अपनी ताकत और सफलताओं के माध्यम से ईश्वर को महिमान्वित करना चाहते हैं और इसलिए हम गवाही देने से पूर्व उस वक्त की प्रतीक्षा करते हैं जब हमारे जीवन में सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा हो। लेकिन परमेश्वर भी अपनी महिमा के लिए हमारी टूटी ज़िन्दगी का उपयोग करना चाहता है। वह चाहता है कि हम अपने विश्वास को अपनी परीक्षाओं के बीचो-बीच में साझा करें।
अपनी पुस्तक “द पर्पस ड्रिवेन लाइफ” में लेखक रिक वॉरेन ने मुझे बहुत सुकून देनेवाले इन शब्दों को लिखा है: “आपकी कमजोरियाँ कोई अप्रत्याशित संयोग नहीं हैं। आपके माध्यम से परमेश्वर की शक्ति का प्रदर्शन करने के उद्देश्य से उसने जानबूझकर आपके जीवन में इन कमजोरियों को होने की अनुमति दी। आपके जख्मों में दुसरे लोग उपचार पाएंगे। आपका सबसे बड़ा जीवन संदेश और आपका सबसे प्रभावी सेवाकार्य आपकी गहरी चोटों से बाहर निकल आयेगा।”
यदि आप अपने आप को दर्द और अंधेरे के बीच में पाते हैं, तो उन अनुभवों को नष्ट न करें। ईश्वर की महिमा के लिए उनका उपयोग करें। सब कुछ सुधर जाने की प्रतीक्षा न करें या “देखो कैसे मैं ने इस पर जीत पाई है!” ऐसा कहने की नौबत का इंतज़ार न करें। परमेश्वर आपकी अव्यवस्था और अराजकता के माध्यम से दूसरों की सेवकाई में आपका उपयोग करें, इस पर विचार करें। आप उस परमेश्वर के कन्धों पर अपना सिर रखकर धैर्य और साहस प्राप्त करते हुए आपकी जर्जर स्थिति में उसकी ताकत प्रकट होने दीजिए। जिस चीज को आप अपने विश्वास की गवाही देने में आपको अयोग्य करनेवाली मानते हैं, वह एक ऐसी चीज हो सकती है, जो आपकी आस्था को और ईश्वर के प्रेम के प्रति आपकी गवाही को स्पष्ट रूप से बताती है। मुझे उम्मीद है कि मेरा अनुभव आज आपको प्रोत्साहित करेगा।
'मेरा मठ एक स्कूल चलाता है। पिछले साल सातवीं कक्षा के छात्रों को धर्मशिक्षा पढ़ाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। सप्ताह के हर दिन अंतिम पीरियड में बाईस छात्र मेरी कक्षा में बैठते थे। आमतौर पर कोई भी अध्यापक, चाहे कोई भी विषय हो, दिन के आखिरी पीरियड में पढ़ाने में हिचकिचाता है। और सातवीं कक्षा के छात्र स्कूल की हर दूसरी कक्षा के छात्रों को मात्र उत्तेजनीयता के लिए पछाड़ देते हैं। इसलिए,हमने “स्टंप द मंक” (सन्यासी को पटकना) नामक खेल का आविष्कार किया। यदि पूरा कक्षा समूह सहयोग करने और रुचि रखने के शर्त पर इसे क्लास के अंतिम पाँच मिनट के दौरान खेलते थे।
खेल के दौरान मैंने देखा कि सबसे अच्छा “सन्यासी को पटकने वाला” चाड नाम का एक छोटा सा तेजतर्रार लड़का था। उसने कहा: “यदि येशु हमसे बहुत प्यार करता है,तो फिर वह नीचे आकर खुद को हमारे सामने प्रकट क्यों नहीं करता?”
मैंने उससे कहा,”हर बार जब हम परमप्रसाद या यूखरिस्त ग्रहण करते हैं, तब येशु हमें खुद को प्रकट करता है।”
“ठीक, ठीक।” उसने आहें भरकर जवाब दिया, “लेकिन मैं जो पूछ रहा हूं वह यह है: वह व्यक्तिगत रूप से, शारीरिक रूप से नीचे आकर और हमसे क्यों नहीं मिलता है?”
“वह ऐसा करता है!” मैंने जवाब दिया, “पवित्र परम प्रसाद में वह व्यक्तिगत रूप से, शारीरिक रूप से नीचे आते हैं और हमसे मिलता है।”
उसने कहा, “मेरा मतलब यह नहीं है; मैं जानना चाहता हूं कि वह मेरे जैसे लोगों से व्यक्तिगत रूप से, आमने-सामने क्यों नहीं प्रकट होता है।”
“जी हाँ, वह वैसा भी करते हैं | तुम्हें सब्र रखना चाहिए|” मैं ने कहा |
मैं जानता था कि चाड आसानी से पीछे हटने वाला नहीं है। उसने फिर कहा: “तो आप मुझे बता रहे हैं, आप व्यक्तिगत रूप से, शारीरिक रूप से, येशु मसीह से आमने-सामने मिले हैं। आपने उसे देखा है, आपने व्यक्तिगत रूप से ईश्वर से मुलाकात की है। ”
मैंने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा, “हाँ, चाड, मैंने मुलाकात की है।”
“ठीक!” उसने कहा, “तो वह कैसा दिखता है?”
कक्षा में एक घबराहट भरा सन्नाटा था, क्योंकि वह और अन्य छात्र मेरे उत्तर की प्रतीक्षा में थे। और एक या दो पल के लिए मुझे थोड़ा डर था कि मेरी हार होगी। लेकिन मुझे स्वर्ग से उपहार की तरह जवाब मिला। मैंने कहा,”चाड,मैं येशु से मिला हूं। आमने – सामने। और क्या तुम्हें पता है? वह तुम्हारी तरह दिखता है।”
“इसलिए ईश्वर ने मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनाया; उसने उसे ईश्वर का प्रतिरूप बनाया।” (उत्पत्ति 1:27)
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