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अक्टूबर 27, 2021
Encounter अक्टूबर 27, 2021

फादर ताओ फाम अपनी विकलांगता के बावजूद तूफानों के बीच में से अपनी विस्मयकारी यात्रा का वर्णन करते हैं ।

पुरोहित बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए मुझे बहुत सारी चुनौतियों और मुश्किलों को पार करना पड़ा। कई बार, जब दर्द असहनीय लग रहा था, मैंने प्रार्थना की कि येशु की दु:ख पीड़ाओं के साथ मेरे कष्ट भी एक किये जाएं। मैं जानता था कि येशु कुछ भी कर सकते हैं, इसलिए अगर उनकी इच्छा है कि मैं उनका पुरोहित बनूं, तो एक दिन मैं पुरोहित ज़रूर बनूंगा।

मेरा जन्म वियतनाम के उत्तरी प्रांत में हुआ था। 8 बच्चों में मैं 7-वें स्थान पर था। हम सभी भाई बहन एक गरीब गाँव में पले-बढ़े जहाँ नौ वर्षों में मेरी स्कूली शिक्षा समाप्त हुई। लेकिन मुझे लगा कि मसीह मुझे पुरोहित बनने के लिए बुला रहे हैं। यदि मुझे हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त हो तभी मेरा पुरोहित बनना संभव था। जब मैं १४ साल का था, तब मैंने और मेरे भाई ने दू:खित मन से अपने परिवार से विदा ले ली ताकि हम हाई स्कूल जा सकें।

उन दिनों, उत्तरी वियतनाम की कम्युनिस्ट सरकार ने सभी सेमिनरियों को बंद कर दिया था। इसलिए हाई स्कूल पूरा करने के बाद, मैंने अपने पल्ली पुरोहित की पूर्णकालिक सहायता करने में चार साल बिताया, विश्वविद्यालय में चार साल और अंत में दक्षिणी वियतनाम में सेमिनरी प्रशिक्षण शुरू करने से पहले चार साल मैंने अध्यापन में बिताए। मेरा सपना आखिरकार सच हो रहा था, लेकिन यह तो बस शुरुआत थी। जब मैंने दर्शनशास्त्र के तीन वर्ष पूरे किए, तो मेरे पास ऑस्ट्रेलिया में पुरोहिताई का अपना प्रशिक्षण पूरा करने के लिए एक बुलावा आया।

अप्रत्याशित

धर्मशास्त्र का अध्ययन करने के तीन और वर्षों के बाद मैंने और एक साल ग्रामीण आंचल में अनुभव प्राप्ति में समय बिताया। इस के बाद, मुझे आखिरकार यह खुशखबरी मिली कि बिशप ने एक डीकन के रूप में मेरे अभिषेक के लिए तारीख तय की थी। जिस बड़े दिन की मैं बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था, उस से कुछ ही दिन पहले, जब मैं कार से अपना सामान निकाल रहा था, तो कार की डिग्गी मेरे पैर पर गिर गयी। उस छोटी सी दुर्घटना में मेरी पदांगुलियाँ कुचल गयीं। सेमिनरी के मेरे साथियों ने मेरे पैर की उँगलियों में मलहम पट्टी बाँध ली, लेकिन उंगलियां इतनी सूज गई और दर्द बढ़ती गई कि तीन दिनों के बाद,  आखिरकार मुझे अस्पताल जाना पड़ा। मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ जब डॉक्टरों ने मुझे बताया कि मेरे पास सामान्य रक्त की मात्रा का 50% से कम रक्त था क्योंकि आंतरिक रूप से पेट से मेरा खून नष्ट हो रहा था। उन्होंने मेरे पेट में अल्सर ढूंढ निकाला, जिसके लिए एक आपातकालीन ऑपरेशन की आवश्यकता थी।

ऑपरेशन के बाद जब मैं जागा तो अपने आप को बिस्तर से बंधा हुआ देखकर मैं चकित रह गया। डॉक्टर ने कहा कि ऑपरेशन के दौरान मैं इतना कांप रहा था कि उन्हें मुझे बांधना पड़ा ताकि मुझे रक्तदान दिया जा सके। उन्होंने बताया कि मुझे टिटनेस है, लेकिन ४० दिनों के उपचार के बाद, मैं सेमिनरी वापस जाने के लिए स्वस्थ हो गया था, ताकि पुरोहिताई अभिषेक से पहले मैं गहन अध्ययन शुरू कर सकूं। कई हफ्तों के बाद, बिशप ने मुझे उनके साथ रहने के लिए कहा। उनके साथ पवित्र मिस्सा बलिदान में उपस्थित होना एक अद्भुत अनुभव था, लेकिन एक दिन मैं अचानक गिरजाघर में गिर गया और मुझे वापस अस्पताल ले जाना पड़ा।

अस्पताल वालों ने मुझे गहन निगारानी और देखभाल में रखा क्योंकि मुझे एक भयावह रक्त संक्रमण हो गया था और मेरे जीने की उम्मीद नहीं थी। मेरी सांस रुक गई और मुझे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखना पड़ा। चूंकि डॉक्टरों को यकीन था कि मैं मर जाऊंगा, उन्होंने मेरे परिवार को सन्देश भेजा और मेरा भाई वियतनाम से आ गया। मुझे अंतिम संस्कार देने के बाद, जीवन समर्थन बंद कर दिया गया था, लेकिन मैं नहीं मरा। कुछ घंटों के बाद भी मुझे जिंदा देखकर, उन्होंने फिर से मशीनों को चालू कर दिया। कुछ हफ़्ते बाद, उन्होंने मशीनों को फिर से बंद कर दिया, लेकिन मैं अभी भी ज़िंदा रहा। मैं 74 दिनों तक कोमा में रहा और मेरा 18 बार ऑपरेशन किया गया।

कटा हुआ अलग थलग   

जब मैं कोमा से उठा, तब भी मैं बहुत दर्द में था। मैं बात नहीं कर सका क्योंकि मेरे गले में एक ट्यूब थी। ट्यूब हटा दिए जाने के बाद भी मैं बोल नहीं पा रहा था। धीरे-धीरे और दर्द के साथ फिर से बातचीत करना सीखने में महीनों लग गए। मेरी हालत अभी भी गंभीर थी इसलिए डॉक्टरों ने मुझे एक और सर्जरी के लिए तैयार किया, जिसके लिए मेरे भाई ने पहले ही सहमति दे दी थी, लेकिन जब मैंने पढ़ा कि वे मेरा पैर काटने की योजना बना रहे हैं, तो मैंने मना कर दिया। डॉक्टर ने मुझसे कहा कि अगर वे इसे नहीं काटते तो मैं मर जाऊंगा। लेकिन मैं नहीं चाहता था कि एक पैर कट जाने की वजह से मैं पुरोहिताई अभिषेक से वंचित रह जाऊं। पुरोहित बनने के अपने सपने को मैं नहीं छोड़ सकता था, भले ही मेरा परिवार और कई अच्छे दोस्त मुझसे कह रहे थे कि मेरे स्वास्थ्य की स्थिति बहुत ही निराशाजनक है, इसलिए उन्होंने मुझे सलाह दी कि बाद में चंगा होकर मैं वियतनाम जाकर शादी कर लूं। मानसिक और शारीरिक रूप से यह बहुत चुनौतीपूर्ण था, लेकिन मैंने ईश्वर में अपनी आशा और भरोसा रखा।

एक महीने तक मुंह में ट्यूब के साथ रहने के बाद, परम पवित्र संस्कार में प्रभु येशु को प्राप्त करने के लिए मैं बेताब था। मैं जानता था कि अगर मुझे येशु के बहुमूल्य रक्त की एक बूंद भी मिल जाती, तो मैं चंगा हो जाऊंगा। अगले दिन फादर पीटर पवित्र संस्कार में बहुमूल्य रक्त मेरे पास लाए। जैसे ही उन्होंने मेरे मुंह में कुछ बूंदें डालीं, मैंने देखा कि प्रभु का पवित्र रक्त मेरे शरीर में जा रहा है और मेरे संक्रमण को छूकर मुझे चंगा कर रहा है। अगले दिन, मुझे बहुत अच्छा लगा। जांच किए गए और संक्रमण चला गया था।

अस्पताल में एक साल से अधिक समय बिताने के बाद, मेरे भविष्य पर चर्चा करने के लिए अस्पताल के अधिकारियों के साथ एक बैठक हुई। मेरे परिवार की ओर से बिशप ने बैठक में भाग लिया। डॉक्टर ने बताया कि मैं फिर कभी नहीं चल पाऊंगा और जीवन भर 24 घंटे उच्च स्तरीय देखभाल की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि मैं खुद की देखभाल नहीं कर पाऊंगा, स्वयं स्नान नहीं कर पाऊंगा या यहां तक कि बिना मदद के बिस्तर पर या बिस्तर के बाहर नहीं निकल पाऊंगा। यह सुनना बिलकुल दू:खद था और बिशप के निर्णय को सुनना और भी विनाशकारी था कि वे मुझे एक डीकन या पुरोहित के रूप में अभिषिक्त नहीं करेंगे। इतने सालों की पढ़ाई और इंतजार के बाद मेरा सपना चकनाचूर होता दिख रहा था।

यह मेरे लिए बहुत कठिन था, हालांकि मैं प्रार्थना करता रहा। मैं फिर से चलने के लिए दृढ़ था, इसलिए मैंने उन सभी दर्दनाक अभ्यासों के लिए कड़ी मेहनत की, जो मुझे बताये गए थे। मैं ने अपनी प्रार्थनाओं में उन सभी लोगों के लिए अपने दुखों को येशु मसीह के दुखों के साथ जोड़कर समर्पित किया, जिन सब को मेरी प्रार्थनाओं की आवश्यकता थी। पुनर्वास में वर्षों लग गए। अक्सर मेरा मन करता था कि मैं हार मान लूं, लेकिन मैं अपने सपने पर कायम रहा और इसी सपने ने मुझे आगे बढ़ने का साहस दिया।

चमकती आँखें

इन सभी चुनौतियों और बाधाओं के बावजूद, मैंने अभी भी महसूस किया कि ख्रीस्त मुझे अपनी कमजोरी में भी, अपने लोगों की सेवा करने के लिए पुरोहित बनने के लिए बुला रहे हैं। इसलिए, एक दिन मैंने मेलबर्न के आर्चबिशप को एक पत्र भेजा, जिसमें मैं ने उनसे मुझे पुरोहिताई अभिषेक देने के लिए निवेदन किया। मेरे आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही, क्योंकि उन्होंने मुझसे तुरंत मिलने और मेरी क्या ज़रूरतें हैं इस पर चर्चा करने की व्यवस्था की। उन्होंने मुझसे कहा कि भले ही मुझे बिस्तर पर लेटना पड़े या व्हीलचेयर पर बैठना पड़े, वे मेरा अभिषेक करेंगे। उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि मेरा स्वास्थ्य सुधरेगा और मैं बेहतर हो जाऊंगा और एक दिन अपने पैरों पर चलूंगा। उस समय मैं व्हीलचेयर में था, लेकिन मैंने अपनी पढ़ाई पूरी करते हुए अपने अभ्यास पर काम करना जारी रखा। इसलिए जब अभिषेक का दिवस आया तो मैं चलते हुए अन्य लोगों के साथ जुलूस में शामिल हो सका।

हर्षित चेहरों वाले मित्रों से गिरजाघर खचाखच भरा हुआ था। उनमें से कई मुझसे तब मिले थे जब मुझे अस्पताल में उनकी सेवा की आवश्यकता थी, इसलिए वे जानते थे कि यह कितना आश्चर्यजनक था कि मैं इस दिन को देखने के लिए जीवित था। मेरी आंखों में खुशी के आंसू भर आए और मैं उनकी आंखों की चमक देख सकता था। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह दिन आखिरकार आ ही गया था, अपने सपने को पूरा करने के लिए अपने गांव से निकलने के 30 साल बाद।

अब, मैं एक व्यस्त पल्ली में दो अन्य पुरोहितों के साथ काम कर रहा हूँ। इस पल्ली के अंतर्गत चार गिरजाघर, कई विद्यालय और छह नर्सिंग होम हैं। हर दिन जब मैं मिस्सा पूजा अर्पित करने जाता हूं, तो यह एक नए चमत्कार की तरह है। मुझे नहीं लगता कि मैं इससे कभी ऊब जाऊंगा। फिर, पवित्र मिस्सा बलिदान से मजबूत होकर, मैं स्कूलों में बच्चों और नर्सिंग होम में बुजुर्गों से मिलने जाता हूं। मैं प्रभु येशु की उपस्थिति को उनके सामने लाने में अपने आप को धन्य महसूस करता हूं। मसीह की पुरोहिताई में हिस्सा लेने का लंबा इंतजार खत्म हो गया है और मैं येशु के साथ अपने दुखों का फल उन लोगों के साथ साझा कर सकता हूं।

अपनी सभी कठिनाइयों को झेलते हुए लोगों की विपत्तियों को समझने और उनकी मदद करने की क्षमता मुझे मिली है। मैंने सीखा है कि दूसरों की ज़रूरतों के बारे में सोचने और उनके लिए मुस्कुराता हुआ चेहरे लेकर कार्य करने से मैं अपने दुखों से दूर रहता हूँ और मेरे सभी दुख आनंद में बदल जाते हैं। जब लोग सहायता के लिए मेरे पास आते हैं, तो मैं अपनी बीमारियों से प्राप्त ताकत का लाभ उठा सकता हूं ताकि उन्हें अपने परीक्षणों के दौर में दृढ़ रहने के लिए मैं प्रोत्साहित कर सकूं। क्योंकि वे देख सकते हैं कि मैं विकलांगता से ग्रस्त व्यक्ति हूँ, इसलिए उनके लिए मुसीबत के समय में मुझसे संपर्क रखना आसान हो जाता है, ताकि वे अपने संकट के समय में आशा बनाए रखने के लिए कलीसिया का समर्थन प्राप्त कर सकें।

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यह लेख शालोम वर्ल्ड कार्यक्रम “ट्रायम्फ” के माध्यम से साझा की गई उनकी गवाही पर आधारित है। एपिसोड देखने के लिए shalomworld.org/show/triumph में  जाएं।

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By: Father Tao Pham

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अक्टूबर 27, 2021
Encounter अक्टूबर 27, 2021

जब मैं पंद्रह साल की थी तब मेरे पिताजी का देहांत हुआ  और मैंने खुद को बड़ी ही निराशाजनक अवस्था में पाया। एक रात जब मैं प्रार्थना कर रही थी, तब मैंने ईश्वर को बड़ी गहराई से पुकारा, क्योंकि मुझे उनकी मदद की ज़रूरत थी। और ईश्वर ने मेरी प्रार्थना का उत्तर दिया। मैंने ईश्वर को एक दर्शन में देखा। पहले तो मैं आश्चर्यचकित रह गई क्योंकि इससे पहले मैंने कभी कोई दैविक दर्शन नही देखा था। येशु ने मेरी प्रार्थना का उत्तर इस दर्शन द्वारा दिया, जिसमे मैंने उन्हें बाहें खोले, कांटों का मुकुट पहने, प्रज्वलित हृदय के साथ देखा। उन्होंने ना कुछ कहा, ना कुछ किया, फिर भी उनकी उपस्थिति ने मुझे बहुत प्रभावित किया। यह पहली बार था जब मैंने येशु को अपने इतना करीब महसूस किया।

अब मैं पीछे मुड़ कर देखती हूं तब मुझे यह अहसास होता है कि उस दर्शन में मैंने जो कुछ देखा था, वह मेरे ही जीवन को दर्शाता था। कांटो का वह मुकुट उस पीड़ा को दर्शाता था जिससे मैं उस वक्त गुज़र रही थी, और येशु का प्रज्वलित हृदय, ईश्वर का मेरे प्रति महान प्रेम का चिन्ह था। अब जब भी मैं उस दर्शन को याद करती हूं, येशु की खुली बाहों वाली छवि मुझे इस बात का स्मरण कराती हैं कि अंत में सब ठीक हो जाएगा क्योंकि येशु हमेशा मेरे साथ हैं।

क्योंकि मैं एक कैथलिक परिवार में पली बढ़ी थी, इसीलिए मेरे लिए इस विश्वास के साथ जीना आसान था। रोज़ मिस्सा बलिदान में भाग लेना हमारी दिनचर्या का हिस्सा था। लेकिन जब मैं अंग्रेज़ी पढ़ाने के लिए दक्षिणी अफ्रीका गई, तब मुझे ग्रामीण क्षेत्रों में रहना पड़ा जहां रविवार का मिस्सा भी उपलब्ध नही होता था। इस परिस्थिति ने मुझे इस बात का अहसास दिलाया कि मुझे यूखरिस्त की उपस्थिति और परम प्रसाद ग्रहण करने के अवसरों के लिए कितना आभारी होना चाहिए।

जब मैं अंग्रेज़ी पढ़ाने अल्बानिया गई, तब वहां मुझे एक कॉन्वेंट में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जहां पवित्र संस्कार की आराधना हर रोज़ हुआ करती थी। इस दिनचर्या ने यूखरिस्त की आराधना के प्रति मेरे प्रेम को स्थापित किया और पवित्र यूखरिस्त के प्रति मेरे प्रेम को और भी गहरा किया। आराधना के इन्हीं पलों में मैंने अपना हृदय ईश्वर के लिए खोला और उनसे अपनी सारी भावनाओं को साझा किया।

लोग मुझसे अक्सर यह सवाल करते हैं कि मैं इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकती हूं कि येशु पवित्र यूखरिस्त में उपस्थित है? मैं उनसे कहती हूं कि मैं ईश्वर की उपस्थिति को महसूस कर सकती हूं। ईश्वर की उपस्थिति, उनकी गर्माहट और उनका प्रेम मुझे चारों ओर से घेर लेता है। आराधना मेरे जीवन का एक अहम भाग है, क्योंकि यह मुझे ईश्वर की बातों और उनकी योजनाओं को सुनने का अवसर प्रदान करता है। जितना मैं ईश्वर की बातों को सुनती हूं, उतना मैं, मेरे जीवन के लिए ईश्वर के निर्धारित उद्देश्यों को पहचान पाती हूं।

जब मैं विश्वविद्यालय में थी, तब मैं रियो डि जेनेरियो के कोपाकाबाना समुद्र तट गई। वहां मैंने विश्व युवा दिवस के एक समारोह में भाग लिया, जो कि अपनेआप में एक अद्भुत अनुभव था। वहां चालीस लाख लोगों ने एक साथ सागर तट पर आराधना की। समुद्र की लहरें एक तरफ हो गईं, सूरज की रौशनी हमारे सर पर थी, और जब पवित्र यूखरिस्त को ऊंचा उठाया गया, मैं भावविभोर हो उठी। येशु की महिमा और उनकी अदृश्य उपस्थिति को अनुभव करना अद्भुत था। उस वक्त, वहां जब मैं लाखों लोगों के बीच, सर को झुकाए अपने घुटनों पर थी, मुझे मेरे सर से जीवन भर का बोझ उतरता सा महसूस हुआ, और मैं ईश्वर के और भी करीब आ गई।

बीते कुछ सालों में मेरा येशु से रिश्ता और गहरा हुआ है, और अब मेरा जीवन पवित्र यूखरिस्त के इर्द गिर्द घूमता है। मैंने अपने जीवन की हर परेशानी, हर परीक्षा में यह सीखा है कि येशु हमेशा मेरे साथ हैं। चाहे वह मिस्सा बलिदान हो, आराधना हो, या मेरी रोज़ की व्यक्तिगत प्रार्थना, मुझे हमेशा ईश्वर की अद्भुत, चमत्कारी उपस्थिति को अनुभव करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

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यह लेख उस गवाही पर आधारित है जो रेबेका ब्रैडले ने शालोम वर्ल्ड प्रोग्राम केएडोरनामक कार्यक्रम में दी थी। पूरे एपिसोड को देखने के लिए shalomworld.org/show/adore पर जाएं।

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By: Rebecca Bradley

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अगस्त 20, 2021
Encounter अगस्त 20, 2021

एक शक्तिशाली प्रार्थना जिसमें दया का द्वार खोलने के लिए सिर्फ 7 मिनट लगते हैं |

उस दिन सूरज चमक रहा था और वह एक सुहावना दिन था। हमारे सामने के यार्ड में विशाल पानीदार बाँझ वृक्षों से लटके हुए काई के मलबे से सड़क किनारे की घास चिपचिपा हो गयी थी। जब मैं डाक के बक्से की जाँच कर रही थी, मैंने देखा कि मेरे सबसे अच्छे दोस्तों में से एक लिया, गाडी लेकर सामने ड्राइव-वे में पहुँच गयी थी। वह तेजी से उतरकर मेरे पास आयी और मैं उसके चेहरे पर बड़ी परेशानी की लकीर देख रही थी।

लिया ने कहा, “मेरी माँ दो दिन पहले अस्पताल गई थी। उसकी कैंसर कोशिकाएं उसके फेफड़ों से उसके मस्तिष्क तक फैल गई हैं”।

लिया की खूबसूरत भूरी आँखें आँसुओं से झिलमिला उठीं जो उसके गालों से बह रही थीं।

उसे देखकर मेरा दिल दहल गया। मैंने उसका हाथ थाम लिया।

“क्या मैं उसे देखने के लिए तुम्हारे साथ जा सकती हूँ,” मैंने पूछा।

“हाँ, मैं आज दोपहर वहाँ जा रही हूँ,” उसने कहा।

“ठीक है, मैं तुमसे वहाँ मिलूँगी,” मैंने कहा।

जब मैंने अस्पताल के कमरे में प्रवेश किया, तब लिया अपनी माँ के बिस्तर के पास बैठी थी। उसकी माँ ने मेरी तरफ देखा, उसका चेहरा दर्द के कारण मरोड़ा हुआ था।

मैं आज आपसे मिलने आयी, मेरे आने से आप को कोई परेशानी नहीं हुई है न ?” मैंने कहा।

“बिलकुल नहीं। तुम्हें फिर से देखकर अच्छा लग रहा है”, उन्होंने कहा।

उन्होंने कमजोर लेकिन दयालुतापूर्ण आवाज़ में मुझसे पूछा: “क्या तुम्हारे उस पुरोहित मित्र ने इन दिनों तुमसे बात की है?”

“हाँ, हम अक्सर एक दूसरे से बात करते हैं”, मैंने कहा।

उन्होंने कहा, “मैं बहुत खुश हूं कि मुझे उस दिन उनसे मिलने का अवसर मिला था”।

लिया  और मैं एक माला विनती समूह के हिस्से थे जो हर हफ्ते उस समय मिलते थे जब उसकी माँ की बीमारी की पहली बार पता चल गया था। एक पुरोहित, जो अपने आध्यात्मिक वरदानों के लिए प्रसिद्ध थे, हमारी एक सभा में आये थे और हम उत्सुक थे कि वे हमारी प्रार्थना सभा में शामिल हो और हमें पाप स्वीकार और मेलमिलाप का संस्कार दें ।

लिया की माँ का पालन-पोषण कैथलिक विश्वास में हुआ था, लेकिन जब उन्होंने शादी की, तो उन्होंने अपने पति के परिवार के सदृश बनने और पति के यूनानी ऑर्थोडॉक्स विश्वास को अपनाने का फैसला किया। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों की अवधि में, उन्हें   किसी भी धर्म समुदाय के साथ अच्छा नहीं महसूस हो रहा था। लिया चिंतित थी कि उसकी माँ इतने सालों से चर्च और संस्कारों से दूर थी, इसलिए लिया ने उसे हमारे रोज़री माला प्रार्थना समूह में आमंत्रित किया ताकि हमारे विशेष पुरोहित से उनकी मुलाक़ात हो सके।

जब पुरोहित जाने की तैयारी कर रहे थे, तब लिया की माँ पिछले दरवाजे से पीछे के कमरे में चली गई। लिया ने मुझे एक राहत भरी मुस्कान दी। पीछे वाले कमरे में उसकी माँ और पुरोहित ने लगभग बीस मिनट तक अकेले बात की। बाद में, लिया ने मुझे यह बताने के लिए फोन किया कि उसकी माँ को लग रहा था की पुरोहित उनके प्रति बड़े दयालु और क्षमा से भरपूर थे। माँ ने लिया से कहा कि उनकी आपसी बातचीत के बाद, उस पुरोहित ने उसका पाप स्वीकार सुना था, और वह शांति से भर गई थी।

अब, अस्पताल के बिस्तर पर लेटी हुई लिया की माँ, पहले जैसी नहीं दिखती थी। उसकी त्वचा का रंग और उसकी आंखों का रंग-रूप एक लंबी बीमारी के थकान और पीड़ा के कहर को प्रकट कर रहे थे।

मैंने उनसे पूछा, “क्या आप हमारे साथ, एक साथ प्रार्थना करना चाहेंगी? करुणा की माला विनती नामक एक विशेष प्रार्थना है। यह एक शक्तिशाली प्रार्थना है जिसे येशु ने दुनिया भर में अपनी करुणा फैलाने के लिए सिस्टर फॉस्टिना नाम की एक साध्वी  को दी थी। इसमें लगभग सात मिनट लगते हैं और प्रार्थना के वादों में से एक यह है कि जो लोग इस प्रार्थना को बोलते हैं वे न्याय के बजाय दया के द्वार से प्रवेश करेंगे। मैं अक्सर यह प्रार्थना करती हूं” ।

लिया की माँ ने एक भौं उठाकर मेरी ओर देखा और उन्होंने मुझसे पूछा:

“यह कैसे सच हो सकता है?”

मैंने सवाल उठाया, “आपका क्या मतलब है?”

“क्या तुम मुझे बता रही हो कि यदि कोई कठोर अपराधी मरने से कुछ मिनट पहले प्रार्थना करता है, तो वह न्याय के बजाय दया के द्वार से प्रवेश करता है? यह सही नहीं लगता”, उन्होंने कहा।

“जी हाँ, अगर एक कठोर अपराधी वास्तव में प्रार्थना करने, और ईमानदारी से प्रार्थना करने के लिए समय निकालता है, तो उसने  कुछ भी अपराध किया हो, पर उसके बावजूद उसमें आशा होनी चाहिए। कौन कहेगा कि कब और कैसे ईश्वर के लिए उसका हृदय खुल जाए? मेरा मानना ​​है कि जहां जीवन है वहां आशा है।”

उसने मुझे गौर से देखा।

मैंने बोलना जारी रखा। “यदि आपका पुत्र एक कठोर अपराधी होता, तो क्या आप उसके अपराधों से घृणा करते हुए भी उससे प्रेम नहीं करती? चूँकि उसके लिए आपके मन में अपार प्रेम है, क्या आप हमेशा उसके हृदय परिवर्तन की आशा नहीं करेंगी?”

“हाँ,” उन्होंने कमजोर आवाज़ में कहा।

“जितना हम अपने बच्चों से कभी प्यार कर सकते हैं, उस से बहुत अधिक ईश्वर हमसे प्यार करता है, और वह अपनी दया से किसी के भी दिल में प्रवेश करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। वह बड़ी क्षमा और बड़ी इच्छा के साथ उन क्षणों की प्रतीक्षा करता है क्योंकि वह हमसे बहुत प्यार करता है।”

उन्होंने हाँ में सिर हिलाया।

उन्होंने कहा: “यह बात समझ में आ रही है। हाँ, तुम्हारे साथ मैं यह प्रार्थना करूँगी”।

हम तीनों ने एक साथ दिव्य करुणा की माला विनती की, कुछ और मिनट बातें की, और फिर मैं चली गयी।

बाद में उस शाम लिया ने मुझे फोन किया।

“मेरी माँ की नर्स ने मुझे यह बताने के लिए फोन किया कि मेरे अस्पताल छोड़ने के ठीक बाद माँ ने होश खो दिया।”

हमने एक साथ उस दुःख को झेला, प्रार्थना की और उसकी माँ के ठीक होने की आशा की।

कुछ दिनों बाद लिया की माँ की मृत्यु हो गई।

उस रात को मैंने एक सपना देखा था। सपने में मैं उसके अस्पताल के कमरे में गयी और मैंने पाया कि वह एक सुंदर लाल पोशाक पहने हुए बिस्तर पर बैठी है। वह दीप्तिमान लग रही थी, जीवन और आनंद से भरपूर, कान से कान तक मुस्कुरा रही थी। उनकी मौत के बाद जागरण की रात को जब मैं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए ताबूत के पास पहुँची, तो मैं उसे लाल रंग की पोशाक पहने देखकर दंग रह गयी! एक सिहरन मेरी रीढ़ के अन्दर तक दौड़ी। मैं ने इस से पहले लाल रंग की पोशाक पहनाई गयी किसी भी मृतक की लाश को नहीं देखा था। यह बेहद परंपरा से हटकर और पूरी तरह से अप्रत्याशित था। अंतिम संस्कार के बाद मैंने लिया को पकड़ लिया और उसे एक तरफ खींच लिया।

“तुमने अपनी माँ को लाल पोशाक क्यों पहना दी?” मैंने पूछ लिया।

“मैंने और मेरी बहन ने इस पर चर्चा की और फैसला किया कि हम माँ को उनकी पसंदीदा पोशाक में रखेंगे। क्या तुम्हें लगता है कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए था?” उसने पूछा।

“नहीं, ऐसा नहीं। जिस रात तुम्हारी माँ की मृत्यु हुई, मैंने सपना देखा था कि मैं उसके अस्पताल के कमरे में चली गयी, उसके चेहरे पर अति सुन्दर मुस्कुराहट देखी … और वह लाल पोशाक पहनी हुई थी!” मैंने कहा। लिया का मुंह खुला ही रहा और उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।

“क्या? ऐसा संभव है?” उसने पूछा।

“जी हाँ, यह सच है,” मैंने कहा।

आंसू बहाते हुए लिया ने कहा, “आप और मैं आखिरी लोग थे जिन्हें  माँ ने अपना दिमाग बंद होने से पहले देखा था। और इसका मतलब है कि उनका आखिरी काम ईश्वरीय करुणा की माला विनती थी!” मैंने लिया को अपनी बाँहों में लिया और उसे गले लगा लिया।

उसने कहा, “मैं बहुत आभारी हूं कि आप उस दिन मेरे साथ आई थी और हमने अपनी माँ के साथ बैठकर एक साथ प्रार्थना की थी और इससे पहले कि वह होश खो दे, मैं उसके साथ समय बिता पायी थी। मैं इस सत्य से बाहर नहीं निकल पा रही हूँ कि आपने उसे अपने सपने में इतना खुश और लाल रंग की पोशाक पहने देखा था। मुझे लगता है कि येशु हमें बता रहे हैं कि माँ ने वास्तव में दया के द्वार से प्रवेश किया था, धन्यवाद येशु।”

मैंने जोड़ा, “आमेन”।

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By: Rosanne Pappas

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अगस्त 20, 2021
Encounter अगस्त 20, 2021

क्या आप किसी लत से ग्रस्त, व्याकुल, खोए खोए औरनिद्रा से परेशान हैं? दिल छोटा ना करें, आपके लिए उम्मीद है।

“तुम्हारे लिए उम्मीद है।” यह मेरे पिता के आखिरी शब्द थे जो उन्होंने सतहत्तर साल की उम्र में देह त्यागते समय मुझसे कहे थे। मुझे इन शब्दों को दो बार और सुनना था, और इन्हीं शब्दों के द्वारा मेरे जीवन में बदलाव आना लिखा था। यह शायद मेरी नियति थी कि मुझे अपने जीवन के कुछ साल लत की बंदिश में गुज़ारने थे, ताकि मैं बाद में येशु का अनुयाई बन कर एक ऐसी संस्था चला सकूं जो कि लत में ग्रस्त लोगों को सही राह पर ला कर रोज़ सुसमाचार का प्रचार करते हुए उन सब में आशा की किरण जगाती है जो ईश्वर के सत्य की खोज में हैं।

मैं अपनी कहानी शुरुआत से बताता हूं। मैं अपने माता पिता की छह संतानों में सबसे छोटा हूं और मेरा पालन पोषण एक साधारण से मध्यमवर्गीय कैथलिक परिवार में हुआ, जहां मुझे बचपन से कैथलिक विश्वास के बारे में सिखाया गया। पर बचपन से ही कैथलिक विश्वास में बड़े होने के बावजूद मेरे लिए अनुशासन, धर्म की समझ और प्रार्थना करना बड़े संघर्ष का कार्य था। मैं मिस्सा बलिदान में भाग लेता था पर मेरा विश्वास कमज़ोर था।

जब तक मैं युवावस्था तक पहुंचा था, मैं पापों में गिरने लगा और जब मैंने कॉलेज जाना शुरू किया था, तब तक मुझे रॉक बैंड में गाना बजाने का शौक चढ़ चुका था। मैं दिन रात गिटार बजाने और ज़िंदगी के मज़े लेने के सपने देखा करता था।

मुझे पहचान मिली, आस पास के लोगों में मेरा नाम हुआ, पर अपनी इस शोहरत को बरकरार रखने के लिए मुझे हमेशा किसी नशे का सहारा लेना पड़ता था। शुरू शुरू में मैंने शराब का सहारा लिया, लेकिन बाद में मुझे और भी चीज़ों की लत लग गई। साल बीतते गए और मैं और भी शराब पीता गया। चाहे मैं खुश होता था या दुखी, गुस्सा होता था या शांत रहता था, मैं हर परिस्थिति में पीने लगा। चाहे मैं बाहर होता था या घर पर, चाहे काम पर जा रहा होता था या छुट्टी पर होता था, मैं बिना मौके का लिहाज़ किए पीता था। मुझे शराब की लत लग चुकी थी पर मुझे ना इस बात का अंदाज़ा हुआ, और ना मैं यह मानने को तैयार था।

मेरे पिता की मृत्यु के बाद मेरी व्याकुलता बहुत बढ़ गई। मैं दुनिया भर की दवाइयां खाने लगा जिनमें से कुछ दवाइयां चिंता रोकने के लिए थी, कुछ नींद की गोलियां थी, कुछ दर्द की दवाइयां थी, तो कुछ अवसाद की दवाइयां थी। मेरी ज़िंदगी अब मेरे नियंत्रण के बाहर हो चली थी। बीते सालों में मैं कई बार अस्पताल में भर्ती हो चुका था। एक बार जब मैं एक हफ्ते के लिए अस्पताल में भर्ती था तब मैंने अपनी शराब की लत पर थोड़ा काबू पाया। उसी वक्त मुझे मेरे पिता के आखिरी शब्द फिर से सुनाई दिए। मैं आधी नींद में अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा कुछ बड़बड़ा रहा था जब एक नर्स ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे हौसला देते हुए कहा, मार्क, सब ठीक हो जाएगा, तुम्हारे लिए उम्मीद है।”

इसके कुछ सालों बाद मैं उसी अस्पताल में वापस आ चुका था, बस फर्क इतना था कि इस बार मुझे अस्पताल में इसीलिए भर्ती किया गया था क्योंकि मुझे आत्महत्या के विचारों ने जकड़ रखा था। मेरा शरीर दुनिया भर के नशों, दवाइयों और शराब से भरा हुआ था। एक दिन मैंने अपनी बिस्तर के बगल वाली बिस्तर पर लेटे व्यक्ति को किसी से फोन पर बात करते हुए सुना, और जो कुछ वह कह रहा था वह मुझे बहुत गुस्सा दिला रहा था। उसकी बातें मेरे मन की आवाज़ों में उलझ कर गूंजने लगी। वे आवाज़ें जो मेरी अंतरात्मा की थी और मुझे धिक्कार रही थीं। मेरा मन हुआ कि मैं अपने बगल वाले इंसान को मार डालूं। मैं आधी रात तक जाग कर सोचने लगा कि बिना शराब और नींद की गोलियों के मुझे नींद नही आएगी। मेरा गुस्सा अब काबू के बाहर था।

मेरा सारा ध्यान बगल वाले इंसान को मारने के विचारों में लग गया। मैं उसका गला घोंटने के बारे में सोचने लगा। क्या मेरे अंदर किसी का गला घोंटने की हिम्मत थी? शायद थी। मैं सोचने लगा कि मैं उस इंसान के मुंह तकिए से दबा कर उसका दम घोंट सकता था। मैंने उसका सर फोड़ने के बारे में सोचा। फिर मैंने रुक कर खुद के बारे में सोचा, “क्या मैं सच में अस्पताल में पड़े एक निर्दोष इंसान का खून करने को सोच रहा था? ना कि एक, ना कि दो बल्कि तीन तीन तरीकों से? कौन हूं मैं? मैं क्या बन चुका हूं? मैंने दिल ही दिल में एक इंसान को तीन बार मार डाला था!”

फिर मैंने अपना गुस्सा ईश्वर की ओर मोड़ दिया, “मैं तुझ पर विश्वास करता हूं, अब तुझे मेरी मदद करनी पड़ेगी,” मैंने पुकार कर कहा। पर मैंने ईश्वर पर भी दोष लगाते हुए कहा, “क्या तूने मुझे इसीलिए रचा ताकि तू मुझे परेशान कर के नरक में डाल सकें?”

मुझे समझ आने लगा कि मैं कमज़ोर हो चला था और मेरे अंदर लड़ने की ताकत नहीं बची थी। क्योंकि मानव जाति से मेरा विश्वास उठ चुका था, मुझे अब किसी नए सहारे की ज़रूरत थी। मैंने कई बार अपनी लतों से पीछा छुड़ाने की कोशिश की, पर हर बार खुद को लत कारागार में वापस कैद पाया। फिर मैंने ऐसा कुछ किया जो मैंने कई सालों में नही किया था। हालांकि इतने सालों में मैं ईश्वर से बहुत दूर हो चला था, फिर भी मुझे मेरी प्रार्थनाएं याद थी, इसीलिए मैं प्रार्थना करने लगा। “येशु, मैं खुद को तुझे सौंपता हूं। मुझे बचा। मैं जानता हूं कि तू मेरा ईश्वर और मुक्तिदाता है, मेरी मदद कर!” इसी तरह मैं प्रार्थना करने लगा। फिर मैं बाइबिल के वचनों का वर्णन करने लगा: “मांगो और तुम्हे दिया जाएगा।” मैंने कहा, “प्रभु येशु, यह तेरे वचन हैं। मैं तेरे वचनों की दुहाई दे रहा हूं, तुझे मेरी प्रार्थना सुननी ही पड़ेगी। क्योंकि यह मेरे नहीं तेरे वचन और तेरे वादे हैं।” मैं जानता था कि मैं ईश्वर के वचन की दुहाई दे रहा था, और मैं जानता था कि ईश्वर का वचन सच्चा है, पर मुझे वचन संख्या का कोई अंदाज़ा नहीं था।

अब मुझे अंदाज़ा है कि मैं मत्ति 7:7 की दुहाई दे रहा था जिसमे लिखा है “मांगो तो तुम्हे दिया जाएगा; ढूंढो तो तुम पाओगे; खटखाओ तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा।” मेरे पिता के मुझसे कहे गए आखिरी शब्द थे “तुम्हारे लिए उम्मीद है” और आज मैं मत्ति 7:7 के द्वारा उसी उम्मीद की दुहाई दे रहा था।

सुबह के लगभग सात बजे के आसपास मैं तब जागा जब एक नर्स चाय पिलाने के लिए मुझे जगा रही थी। मैं सात घंटे सो चुका था! कई लोग इस बात से सहमत होंगे कि अस्पताल में जल्दी किसी को नींद नही आती है, और यहां मैंने बिना शराब, बिना नींद की गोलियों और बिना किसी नशे के सहारे से अपनी ज़िंदगी की सबसे गहरी नींद पूरी की थी। जब नर्स मुझे चाय और ब्रेड पकड़ा रही थी तब मुझे फिर से वे शब्द सुनाई दिए “तुम्हारे लिए उम्मीद है।” क्या यह  नर्स की आवाज़ थी या मुझे ईश्वर की वाणी सुनाई दे रही थी? उसी क्षण मैंने मान लिया कि ईश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली थी: क्योंकि कल रात मुझे सुकून की नींद मिली थी और आज मैंने फिर से सुना कि “मेरे लिए आशा है।”

पर उससे भी बढ़कर, मुझे अपने अंदर एक बदलाव महसूस हो रहा था। मेरी घबराहट जा चुकी थी और मुझे अपने अंदर थोड़ी खुशी महसूस हो रही थी। मुझे यह नहीं समझ आ रहा था कि मैं क्यों खुश था, लेकिन जिन नकारात्मक बातों ने मुझे इतने सालों से परेशान किया हुआ था, मैं अब उन बातों से आज़ाद था।

यह मेरे बदलाव के चमत्कार की शुरुआत थी, मुझे आगे चल कर कई और बदलावों से गुज़रना था। मैंने शांत मन से ईश्वर को धन्यवाद दिया। उस दिन येशु ख्रीस्त के साथ मेरे नए सफर की शुरुआत हुई, और मैं आज भी उस राह पर चल रहा हूं जो मुझे मसीह की ओर ले चलता है।

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By: Mark Yates

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अगस्त 20, 2021
Encounter अगस्त 20, 2021

मारियो फोर्ट ने अपने जीवन का साक्ष्य देते हुए कहा : “मैं अपनी दृष्टि नहीं बल्कि अपने विश्वास के सहारे आगे बढ़ता हूं”।

मुझे जन्म से ही ग्लूकोमा था, इसलिए मेरे जीवन की शुरुआत से ही मुझे अपनी बाईं आंख से थोड़ा थोड़ा और दाईं आंख से कुछ भी नही दिखता था। जैसे जैसे साल गुज़रते गए मेरी आंखों के ऑपरेशन होते गए। कुल मिला कर मेरी तीस से ज़्यादा सर्जरियां हुई हैं। मेरी पहली सर्जरी तब हुई जब मैं तीन महीने का था। जब मैं सात साल का था तब डॉक्टरों ने इस उम्मीद में मेरी दाईं आंख निकाल दी कि शायद ऐसा करने से मेरी बाईं आंख बच जाएगी। जब मैं बारह साल का था, स्कूल से घर जाते वक्त मैं सड़क पार कर रहा था, तब एक गाड़ी ने मुझे टक्कर मार दी। धक्के की वजह से मैं हवा में उछल कर बड़ी ज़ोर से ज़मीन पर जा गिरा, जिससे मेरी आंख पर बड़ी गहरी चोट आई। इन सब की वजह से मेरी और सर्जरियां हुईं, मुझे तीन महीने तक स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ी, जिसकी वजह से मुझे सातवी कक्षा की परीक्षाएं फिर से देनी पड़ीं।

सब कुछ संभव है

जब मैं छोटा बच्चा था, तब यह अंधापन मेरे लिए बिल्कुल सामान्य सी बात थी, क्योंकि मैं अपनी दृष्टि को किसी और की दृष्टि से तोल तो नहीं सकता था। लेकिन फिर ईश्वर ने मुझे अंतर्दृष्टि दी। बहुत छोटी उम्र से ही बिना किसी के सिखाए मैं ईश्वर से उसी तरह बात किया करता था, जिस तरह मैं हर उस इंसान से बात करता था जिसे मैं ठीक से देख नही पाता था।

पहले मैं बस अंधेरे और रौशनी में फर्क कर पाता था। पर एक दिन, पलक झपकते ही मेरी आंखों के सामने ऐसा अंधेरा छा गया जैसे किसी ने कमरे की बत्ती बुझा दी हो। और हालांकि तब से ले कर आज तक लगभग तीस साल मैंने इसी अंधियारे में काटे हैं, फिर भी ईश्वर की कृपा मुझे हिम्मत के साथ आगे बढ़ने में मदद करती है। अब मैं दुनिया की रौशनी को नहीं, बल्कि ईश्वर की रौशनी को देखता हूं। बिना ईश्वर के, मैं एक लकड़ी के टुकड़े से बढ़ कर नहीं हूं। पवित्र आत्मा मेरे लिए सब कुछ संभव बनाती है।

कभी कभी लोग भूल जाते हैं कि मैं अंधा हूं क्योंकि मैं घर में चल फिर पाता हूं, मैं कंप्यूटर चला लेता हूं और अपना खयाल भी खुद रख लेता हूं। इन सब का श्रेय मेरे माता पिता को जाता है, जिन्होंने मुझे हमेशा हर काम खुद से करने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरे पिता बिजली का काम करते थे और वे अक्सर मुझे अपने साथ काम पर ले जाते थे ताकि मैं उनके काम के बारे में सीख सकूं। उन्होंने ही मुझे बिजली के कई काम खुद करने सिखाए। उन्होंने मुझे अपने दिमाग से फैसले लेने सिखाए, ताकि मैं सोच समझ कर चीज़ें अपने आप ही ठीक कर सकूं। मेरी मां ने अपने प्यारे स्वभाव के द्वारा मुझमें विश्वास के बीज बोए। मां हमारे साथ हर दिन रोज़री माला और करुणा की माला बोला करती थी, इसीलिए ये दो प्रार्थनाएं मुझे आज भी मुंह ज़बानी याद है।

इन्हीं सब की बदौलत मैंने मेहनत कर के आईटी की डिग्री हासिल की। उन्हीं के प्रोत्साहन की वजह से मैं अपने शिक्षकों से मदद ले पाया। इसके बाद हम लाइब्रेरी जा कर नोट्स जमा किया करते थे, ताकि रॉयल ब्लाइंड सोसाइटी उन नोट्स को मेरे लिए ब्रेल लिपि में तैयार कर सके।

ईश्वर का बुलावा

अपनी युवावस्था में मेरे साथ एक ऐसा अनुभव हुआ जहां मुझे ईश्वर की पुकार सुनाई दी। उस वक्त मुझे मेरी बाईं आंख से थोड़ा थोड़ा दिखाई देता था। उस वक्त मैं चर्च में प्रार्थना कर रहा था जब अचानक वेदी चमक उठी और मुझे एक आवाज़ सुनाई दी जो कह रही थी, “आओ, मेरे पास आओ।” ऐसा तीन बार हुआ। तब से मुझे खुद पर ईश्वर के प्रेम और कृपा भरे हाथ का अनुभव होता है।

इस बुलावे ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि शायद मैं पुरोहित बन सकता हूं। दूर से तो यह असंभव लग रहा था, पर ईशशास्त्र या थियोलजी की पढ़ाई ने मेरे विश्वास को दृढ़ किया। मैं अपने पल्ली पुरोहित के समर्थन से एक चमत्कारिक प्रार्थना सभा में पवित्र कृपा की प्रार्थना का मार्गदर्शन करने लगा। और चाहे मुझे कितनी भी दुख तकलीफों का सामना करना हो, फिर भी मुझे इस बात की खुशी है कि मैं ईश्वर की सेवा कर पा रहा हूं। और जिन लोगों से मैं पवित्र कृपा की आराधना, रात्रि आराधना, और चालीस दिन की प्रार्थनाओं के वक्त मिला, आगे चल कर उन्हीं लोगों ने तब मेरी मदद की जब मेरे माता पिता, मेरी बहन और मेरी भतीजी की मृत्यु हुई। अब ये अंजान लोग ही मेरा परिवार हैं, और वे मेरी रोज़मर्रा की ज़रूरतों से ले कर आने जाने की सारी समस्याओं का खयाल रखते हैं।

 दिल की गहराई में

जब मेरी आंखों की रौशनी चली गई थी, तब मेरी ज़िंदगी की सबसे बुरी घटना वह नही थी, बल्कि जब मैंने अपने सबसे करीबी लोगों को खो दिया, तब मुझे लगा कि यह सव से बुरी घटना है। इसीलिए मैं ईश्वर का शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होंने मुझे ऐसे दोस्त दिये, जो मेरे साथ मेरे अपनों की कब्र पर गए और उनकी आत्माओं के लिए करुणा की माला वाली प्रार्थना बोले। मैं हमेशा सकारात्मक चीज़ों पर ध्यान लगाने की कोशिश करता हूं। मैं उन चीज़ों पर ध्यान देता हूं जो मेरे पास है, ना कि उन पर जो मुझे नही दी गई हैं। मैं अपनी पूरी कोशिश करता हूं कि ईश्वर के दूसरों से अपने जैसा प्रेम करने की इश्वर की आज्ञा का पालन कर सकूं। हर दिन मेरी कोशिश रहती है कि मैं ईश्वर को प्रथम स्थान पर रखूं और उनके सुसमाचार के हिसाब से कार्य करूं।

संत पौलुस ने कहा है, “हम आंखों देखी बातों पर नही, बल्कि विश्वास पर चलते हैं” (2 कुरिंथियों 5:7)। मैं अक्सर मज़ाक मज़ाक में कहता हूं कि मैं सच में ऐसे ही चल फिर पाता हूं। यह छोटा सा वचन कितना गहरा है। हमें अपनी मेहनत का फल इस जीवन में देखने को नही मिलेगा। फिर भी, ईश्वर की दाखबारी में काम करने में कितना आनंद है। येशु ने मेरे लिए दुख उठाया और मरे। हर एक व्यक्ति यह कह सकता है।  जो कोई भी ईश्वर को जानना चाहता है वह आ कर उसे ग्रहण कर सकता है। मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने हमें यह मौका दिया है कि हम उसकी महिमामय उपस्थिति में भाग ले सकते हैं। उसका जीवित वचन हमें पुनरुत्थान की आशा से भरता है, ताकि हम हर दिन उसकी उपस्थिति में गुज़ार सकें और उसके प्रेम के नियम का पालन कर सकें। यह सब सोच कर मेरा दिल ईश्वर की प्रशंसा में गा उठता है आलेलुयाह !

हे सर्वशक्तिमान शाश्वत ईश्वर, अपने परम प्रिय पुत्र के हृदय पर दृष्टि डाल और जो स्तुति तथा प्रायश्चित पापियों के नाम पर उन्होंने तुझे चढ़ाया है, उस पर भी ध्यान दे। इससे प्रसन्न हो कर तेरी दया मांगने वालों को क्षमा कर। यह निवेदन हम करते हैं, उन्हीं प्रभु ख्रीस्त के द्वारा, जो तेरे तथा पवित्र आत्मा के साथ युगानुयुग जीते और राज्य करते हैं। आमेन।

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By: Mario Forte

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अगस्त 20, 2021
Encounter अगस्त 20, 2021

उस समय मुझे ऐसा लगा जैसे पवित्र मां मरियम ने मुझे अपने आंचल में छुपा लिया था।

सन् 1947 में, इटली के एक छोटे से गांव में मेरा जन्म हुआ था। यह गांव कैसलबोर्डिनो के नज़दीक था, जहां “चमत्कारों वाली मां मरियम” ने दर्शन दिए थे। चूँकि मेरा जन्मदिन “चमत्कारों वाली मां मरियम” के त्योहार और संत एंटोनी के त्योहार के बीच पड़ता था, इसीलिए मेरे माता पिता ने मेरा नाम मारिया एंटोनिया रख दिया।

जब मैं सात साल की थी तब मेरा परिवार कैनेडा जा बसा। और हालांकि मेरे माता पिता का चर्च से ज़्यादा कोई लेना देना नही था, फिर भी उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि उनके बच्चे कैथलिक विश्वास में बड़े हों। लेकिन मेरा ध्यान मां मरियम और उनकी महत्ता पर तब तक नहीं गया जब तक मेरे माता पिता सन 1983 में मेडजुगोर्ज नही गए। वहां उन्होंने जो अनुभव किया उसकी वजह से मेरी मां इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने घर आकर सबको वहां के बारे में बताया। वहां से मां रोज़री, मेडल, अंगूठियों के साथ साथ एक छोटा सा पोस्ट कार्ड भी लाई थीं जिसमें मां मरियम के द्वारा दिए गए छह दर्शनों से घिरी हुई उनकी तस्वीर थी। इसके बाद जब भी मैं घर में दाखिल होती थी, मुझे किचन के कोने में एक छोटी सी शेल्फ पर मां मरियम की वह तस्वीर दिखाई देती थी। मुझे ऐसा लगता था कि मां मरियम मुझे उस तस्वीर के सहारे से देख रही हैं।

सन 1995 की बात है, मैं मेडजुगोया में हुए वहां जानेवाले तीर्थयात्रियों के अनुभवों पर बनी एक वीडियो देख रही थी। उस वीडियो को देखते वक्त मुझे ऐसा लगा जैसे मां मरियम मुझसे कह रही हों “तुम कब आओगी? मैं तुम्हारी मां हूं और मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूं।” इसके अगले ही साल हमें कैल्गरी से मेडजुगोया जाने वाली एक तीर्थ यात्रा के बारे में पता चला, और मैंने उसमें शामिल होने का सोचा। चूंकि उस वक्त बोस्निया जंग से गुज़रा था इसीलिए कई लोगों ने उस तीर्थ यात्रा पर जाने से इंकार कर दिया। क्योंकि लोगों को डर था कि जंग फिर से छिड़ सकती है। लेकिन मैं तीर्थ यात्रा में जाने का मन बना चुकी थी।

मेडजुगोया पहुंच कर मुझे भरोसा हो गया कि मां मरियम मुझे असल में पुकार रही थीं। एक दिन, मैं पादरी स्लावको बर्बरीक से मिली जिन्होंने मुझे देख कर कहा, “जब तुम घर लौटोगी, तब मैं चाहता हूं कि तुम एक प्रार्थना समूह शुरू करो, और उस समूह की प्रार्थनाएं पारिवारिक तकलीफों के लिए होंगी, क्योंकि आज के समय में पारिवारिक समस्याएं बहुत बढ़ गई हैं।” इसीलिए जब मैं घर लौटी तब हमने हर दिन एक घंटा संत बोनेवेंचर की मध्यस्थता मांगने के लिए निर्णय लिया। तब से हर साल कई नए लोग हमारे प्रार्थना समूह से जुड़ते हैं।

इसके बाद फिर जब मैं मेडजुगोया गई तो मैं इस उद्देश्य से गई कि मुझे अपने जीवन में कुछ ठोस बदलाव लाने थे। मैं जानती थी कि मुझे अपने दिल में एक गहरा बदलाव चाहिए था। इसीलिए मैंने पवित्र वचन को समझने के लिए, अपने प्रार्थना के समय को बढ़ाने के लिए, और ईश्वर के आलौकिक प्रेम और खुशी को अनुभव करने के लिए मां मरियम की सहायता मांगी और रोज़री माला की प्रार्थना करना शुरू किया। और धीरे धीरे मैंने यह सारी आशीषें प्राप्त कर लीं।

उस वक्त, मुझे लगा कि यह तीर्थ यात्रा का बुलावा सिर्फ मेरे लिए है, क्योंकि मुझे ध्यान ही नही आया कि मां मरियम चाहती थी कि मैं और लोगों को उनके पास लाऊं। हालांकि पादरी स्लावको ने सुझाव दिया कि मैं अपने पति को भी इस तीर्थ यात्रा के लिए लाऊं, इसीलिए सन 1998 में, हम दोनों ने साथ में यह तीर्थ यात्रा की। उसी वक्त मुझे लगा कि मुझे और लोगों को मां मरियम के पास लाना चाहिए, लेकिन इस बात की पुष्टि करने के लिए मैंने मां मरियम से एक चिन्ह मांगा। इसके तुरंत बाद दो औरतों ने मुझसे मेडजुगोया की तीर्थ यात्रा के बारे में पूछा। तब से हर साल मैं मां मरियम से तीर्थ यात्रा पर जाने से पहले उनकी मर्ज़ी पूछती हूं। और हर बार मुझे यह जवाब मिलता है कि कई ऐसे लोग हैं जिन्हें मां मरियम की मध्यस्थता द्वारा ईश्वर की कृपा और आशीषों की ज़रूरत है।

ऐसा नहीं हैं कि हमारा जीवन बड़ी आसानी से गुज़रा है, कई बार हमारे विश्वास की भी परीक्षा ली गई। आठ साल पहले हमें एक खबर मिली जिसने हमें चौका दिया। मेरी बेटी को खून का कैंसर हो गया था। हमने तुरंत उसके लिए प्रार्थना शुरू की, चूंकि इस खबर से हम पहले से ही बड़े विचलित थे, इसीलिए हमारा ध्यान इस बात पर नही गया कि ईश्वर कितना महान है और वह हमारे लिए क्या कुछ कर सकता है। एक दिन हम बहुत सारी परेशानियों से गुज़रे। मेरी बेटी की हालत इतनी खराब हो गई थी कि वह दवाइयां भी नही खा पा रही थी, जिसकी वजह से डॉक्टर उसे ठीक कर पाने के नए तरीके खोजने लगे थे।

हमेशा की तरह हम अपनी दु:ख तकलीफों को ले कर आराधना में बैठे, और हमने ईश्वर से एक सवाल किया “तूने क्यों हम पर यह मुसीबत डाली? क्यों हमारी बेटी को इस दर्द से गुज़रना पड़ रहा है? आखिर क्यों?” और हमें स्पष्ट रूप से जवाब मिला, “क्यों नही?” तब ही मुझे एहसास हुआ कि प्रभु ख्रीस्त भी तो ना जाने कितनी सारी दुख तकलीफों से गुज़रे हैं, और अब वह हमारी दुख तकलीफों में हमारे साथ खड़े थे, ताकि हम उसके प्रेम में आगे बढ़ सकें। उस समय मुझे ऐसा लगा जैसे पवित्र मां मरियम ने मुझे अपने आंचल में छुपा लिया था, और उसी तरह मुझे सीने से लगाए बैठी थीं, जिस तरह येशु के जन्म और मरण के वक्त उन्होंने येशु को सीने से लगाया था।

इसके बाद जब हम अस्पताल पहुंचे तब हमने देखा कि कई सारे डॉक्टर हमारी बेटी को घेरे खड़े थे और उसके आगे के इलाज के लिए सोच विचार कर रहे थे। तभी मुझे विश्वास हो गया कि हमारी प्रार्थना सुन ली गई थीं। हमारे ईश्वर और हमारी मां मरियम वहां उपस्थित थे। हमें बस उन पर विश्वास रखना था। सब कुछ ठीक होने वाला था। ईश्वर और मां मरियम सारी जिंदगी हमारा खयाल रखने वाले थे। पिछले साल हमारी बेटी ने अपनी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह मनाई। यह सब ईश्वर की कृपा है।

मेडजुगोया की मां मरियम ने हमें पांच बातें सिखाई हैं जिस पर हमने अपने विश्वास की नींव रखी है:

1. हमें हर दिन रोज़री करनी चाहिए।

2. हमें हर दिन ईश्वर का वचन पढ़ना चाहिए।

3. हमें जब भी मौका मिले मिस्सा बलिदान में भाग लेना चाहिए, और हर रविवार मिस्सा सुनने जाना चाहिए।

4. ईश्वर की चंगाई और ईश्वर की क्षमा प्राप्त करने के लिए हमें कम से कम महीने में एक बार पाप स्वीकार करना चाहिए।

5. हमें हर बुधवार और शुक्रवार को उपवास करना चाहिए।

इन सब बातों का पालन करना आसान नही है, खासकर उन केलिए जो विश्वास में नये हैं। इन सब बातों को आदतों में ढालने में वक्त लगता है जिसके लिए बड़े धैर्य की ज़रूरत है, जिसमें मां मरियम हमारा प्रोत्साहन करती हैं। पर जिस बात ने मुझे सबसे ज़्यादा आश्चर्यचकित किया वह यह है कि जब हम रोज़ रोज़री बोलते हैं तो बाकी बातों का पालन भी आसानी से कर पाते हैं। रोज़री हमारे विश्वास को बढ़ाती है और हमारे जीवन में प्रार्थना को आसानी से ढालने में हमारी मदद करती है। वह हमारे जीवन में ईश्वर की उपस्थिति को बनाए रखने में हमारी मदद करती है।

रोज़री के माध्यम से हम मां मरियम से कहते हैं कि हम उनकी मध्यस्थता द्वारा ईश्वर की योजना को ढूंढना चाह रहे हैं। और जवाब में मां मरियम भी हमसे कहती हैं, कि अपनी समस्याएं मुझे दो, और मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करूंगी। रोज़री के द्वारा हम उन सब लोगों से जुड़ते हैं जिनकी ज़रूरतें हमारी जैसी हैं। मैंने और मेरे परिवार ने उन सब लोगों में बड़े बदलाव देखे हैं जिन्होंने हमारे साथ तीर्थ यात्रा की। कई तीर्थ यात्रियों ने घर लौट कर ईश्वर की सेवा में योगदान दिया। मेरे लिए मेडजुगोय किसी प्रेम की पाठशाला से कम नही है। और वहां उपस्थित मां मरियम से जब हम प्रार्थना करते हैं तब मां बड़े खुले दिल से हमारे लिए ईश्वर की आशीषों और कृपा के द्वार खोल देती हैं जिन्हे ईश्वर ने हमारे लिए तैयार किया है।

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By: Marie Paolini

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अगस्त 20, 2021
Encounter अगस्त 20, 2021

किम ए-गी अगाथा और उनके पति का ख्रीस्तीय धर्म या कैथलिक संप्रदाय से कोई संपर्क नहीं था। वे कन्फ्यूशीवाद धर्म का पालन करते थे। लेकिन अगाथा की बड़ी बहन, जो एक धर्मी कैथलिक थी, एक बार उससे भेंट करने आई। उन्होंने देखा की अगाथा के घर में चावल रखने का एक बड़ा पैतृक बक्सा था, जिस  पर कन्फ्यूशीवाद धर्म से सम्बंधित परम्परागत उद्धरण लिखे हुए थे| उनकी पारंपरिक आस्था के इन कर्मकांड के इन साज सामान को देखते हुए, उसने अपनी छोटी बहन से पूछा, “तुम ने इन चीजों को क्यों पकड़ का रखा है? ये सब अंधविश्वास के अलावा कुछ नहीं हैं!”

उसकी बहन ने घोषणा की कि दुनिया का एक सच्चा शासक येशु मसीह है। उसने अपनी बहन से कहा: “अपने अंधेरे से जागो और सत्य के प्रकाश को स्वीकार करो।”

अपनी बहन के आग्रह से अगाथा में एक बड़ी लालसा पैदा हुई। यह जानते हुए भी कि उसके पति और उसके परिवार की परंपरा के खिलाफ जाना मुश्किल होगा, फिर भी उसने मसीह को स्वीकार करने और जो भी कठिनाइयाँ आ सकती हैं, उन्हें सहन करने की ठान ली।

अगाथा बहुत बुद्धिशाली नहीं थी। उसने बहुत कोशिश की, लेकिन वह प्रात:कालीन और संध्या प्रार्थना को याद करने में असमर्थ थी। आखिरकार, लोग उसे “येशु और मरियम के अलावा कुछ नहीं जाननेवाली महिला” कहने लगे। विश्वास की शिक्षा और प्रार्थना सीखने में असमर्थता के कारण, किम ए-गी अगाथा को शुरू में बपतिस्मा नहीं दिया गया था।

सितंबर 1836 में अगाथा और दो अन्य महिलाओं को उनके कैथलिक विश्वास के लिए गिरफ्तार किया गया। जब अगाथा से पूछताछ की गई तो वह दृढ़ता के साथ अपने उत्पीदकों के सामने खड़ी होकर कहती रही कि, “मुझे येशु और मरियम के अलावा कुछ नहीं पता। मैं उन्हें अस्वीकार नहीं करूंगी।” उसके साहसी गवाह के कारण, वह उत्पीड़न के दौरान जेल में बपतिस्मा लेने वाली पहली व्यक्ति बन गयी।

दोषी ठहराए गए अन्य ख्रीस्तीयों के साथ, अगाथा के हाथ और बाल को एक विशाल क्रूस पर बांध दिया गया और उसे एक बैलगाड़ी के ऊपर खड़ा कर दिया गया। एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर, सिपाहियों ने  बैलों को ऊपर से नीचे ढलान तक दौड़ने के लिए मजबूर किया। सड़क उबड़-खाबड़ थी, जिसमें कई पत्थर थे। गाड़ियां लड़खड़ा गईं जिससे गाड़ियों के  ऊपर खड़े किये गए सूली पर लटके उन साहसी कैदियों को बड़ी पीड़ा हुई। इस क्रूर कार्य के बाद, पहाड़ी के तल पर, जल्लादों ने हिंसक रूप से प्रत्येक संत शहीदों का सिर काट दिया।

जिस प्रकार येशु ने दोपहर के तीन बजे अंतिम सांस ली, उसी प्रकार ठीक उसी समय अगाथा और आठ अन्य शहीदों ने अपनी महिमा का मुकुट प्राप्त किया। लगभग एक सौ साल बाद 5 जुलाई, 1925 को किम ए-गी अगाथा को अन्य शहीदों के साथ धन्य घोषित किया गया। संत पापा  जॉन पॉल द्वितीय द्वारा 6 मई, 1984 को कोरिया देश में ही आयोजित समारोह में उन्हें संत घोषित किया गया।

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By: Shalom Tidings

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अगस्त 18, 2021
Encounter अगस्त 18, 2021

जब मुझे होश आया,तो मुझे नहीं पता था कि मैं कहाँ थी,

वह सप्ताह का कौन सा दिन था या मैं कितने साल की थी।

उस दिन मुझे सब कुछ बहुत अपरिचित लग रहा था।

 

मैं अंधों को अपरिचित पथ पर ले चलूँगा, मैं अपरिचित मार्गों पर उनका पथप्रदर्शन करूंगा।

मैं उनके लिए अंधकार को प्रकाश में बदलूँगा और घुमावदार पथ सीधे बनाऊंगा।

मैं ये योजनायें पूरी करूंगा, और इन्हें किसी भी प्रकार से नहीं छोडूंगा। (इसायाह 42:16)

 

चूँकि मैं अपने मस्तिष्क में एक असामान्य द्रव्यमान के साथ पैदा हुई थी, बचपन में मुझे दौरे पड़ने लगे थे। अपने जीवन के नियमित दिनचर्या के रूप में उन दौरों के साथ व्यवहार करने की मैं आदी हो गयी थी। लेकिन एक नए प्रकार के दौरे ने मेरी दिनचर्या को बाधित किया। एक दिन सुबह, मैं अपनी माँ के साथ नाश्ते का आनंद ले रही थी, और अचानक मैं बेहोश हो गयी। मैं कुर्सी से नीचे गिर गयी और एक दौरे का अनुभव किया जिसकी अवधि 10 से 15 मिनट तक थी।

पराजित और हताश

जब मुझे होश आया, तो मैंने अपनी मां को पहचान लिया, लेकिन इसके अलावा मैंने घर या किसी भी चीज को नहीं पहचाना, जो मेरे आसपास थी। मुझे नहीं पता था कि मैं कहाँ थी, वह सप्ताह का कौन सा दिन था, या मैं कितने साल की थी। मैं अपने बेडरूम को भी नहीं पहचान पाई। मुझे सब कुछ बहुत अपरिचित लग रहा था। उस दौरे के कारण मेरी बहुत सारी याददाश्त नष्ट हो गयी। मैं बहुत खोई हुई और पराजित महसूस होने लगी। यह लगभग दो सप्ताह तक जारी रहा, और मैं हताश हो रही थी।

एक रात, अपनी हताशा के बीच में, मैंने अपने बेडरूम की दीवार पर लटकी हुई दिव्य करुणा की पवित्र तस्वीर को देखा, और मैं ईश्वर को पुकारती रही। मैंने प्रभु से कहा कि वह मुझे मजबूत बनावें, मेरा मार्गदर्शन करें, लेकिन सबसे बढ़कर, वह मुझे उसके   करीब रखें । हे ईश्वर, इस हालात में मुझे तुझसे अलग होने दे। इसके बजाय, कृपया मुझे तेरी करीब ले आने केलिए इसे एक अवसर के रूप में उपयोग कर। येशु, मुझे तुझ पर भरोसा है।

उसी रात, लगभग दो बजे मैं उठी और मुझे एक दर्शन मिले: मैंने खुद को एक गहरी खाई में गिरते हुए देखा। फिर अचानक मैंने देखा कि और गहराई में डूबने से रोकने केलिए एक हाथ मुझे बचा रहा है। यह प्रभु का हाथ था। कुछ ही पलों के अन्दर, मेरा दर्द और हताशा शांति और खुशी में बदल गई। तब से मुझे पता था कि मैं प्रभु के हाथों में हूं, और मैं सुरक्षित महसूस करने लगी।

उमड़ते दर्द

 उस दौरे के दो हफ्ते बाद, मैंने बचपन से लेकर अब तक की यादों को फिर से पाना शुरू कर दिया, लेकिन उनमें से ज्यादतर यादें दर्दनाक थीं। मैं उन्हें याद करना नहीं चाह रही थी। इसके बदले, मैं अपने जीवन के खूबसूरत और सुखद क्षणों को याद करना चाहती थी। सबसे पहले, मेरी समझ में नहीं आया कि मुझे ज्यादातर दर्दनाक यादें क्यों मिल रही थीं। शायद न्यूरोलॉजिस्ट और मनोवैज्ञानिकों के पास कोई स्पष्टीकरण होगा: सबसे बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव वाली यादें मस्तिष्क में बेहतर रूप से दर्ज की जाती हैं। लेकिन इस पर विश्वास और आस्था की एक अलग व्याख्या थी: प्रभु चाहते थे कि मैं अपने घावों को पहचानूं और उन घावों से चंगाई पाऊं।

एक रात को सोने से पूर्व जब मैं प्रार्थना कर रही थी, तब मुझे उन लोगों के नाम और चेहरे याद आ गए, जिन्होंने मुझे गहरी चोट पहुंचाई थी। मैं गहरी पीड़ा में रोयी, लेकिन मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि मुझे उनके प्रति गुस्सा या मनमुटाव महसूस नहीं हुआ। इसके बजाय, उनके पश्चाताप और मनपरिवर्तन के लिए प्रार्थना करने की इच्छा मेरे मन में उमड़ आयी और मैंने ऐसा ही किया। बाद में मुझे एहसास हुआ कि पवित्र आत्मा ने मुझे उनके लिए प्रार्थना करने हेतु प्रेरित किया था क्योंकि पवित्रात्मा मुझे चंगा करना चाहता था। प्रभु मेरे घावों को ठीक कर रहा था।

एक अलग जवाब

मैं एक डायरी लिखा करती हूं, और कुछ यादें पुन: प्राप्त करने के उद्देश्य से मैं ने इस डायरी को पढ़ना शुरू किया। जैसे जैसे मैंने इसे पढ़ा, मुझे एहसास हुआ कि कोविड-19 के लॉकडाउन से एक हफ्ते पहले मार्च महीने में मैंने शालोम ग्रोथ नामक आध्यात्मिक साधना में भाग लिया था। उस साधना के दौरान, मैंने प्रभु के सामने पूरी तरह अपना समर्पण कर दिया था और मैं ने प्रभु से कहा था कि वह मेरे जीवन को दिशा निर्देशित करें। बाद में मई महीने में, मैं अपनी पल्ली में चंगाई के मिस्सा बलिदान में शामिल हुई, और मैंने प्रभु से कहा की कह अपने घावों की पहचान करने और उन्हें ठीक करने में मेरी मदद करें।

मैंने कभी नहीं सोचा था कि प्रभु इस तरह से जवाब देंगे। मैं विश्वास करती हूँ कि दौरा, याद्दाश्त खो जाना और उसके बाद की घटनाएँ, मेरी प्रार्थनाओं के प्रति ईश्वर का सही प्रत्युत्तर हैं। आप पूछेंगे कि ईश्वर ने मेरी प्रार्थना का उत्तर उस दौरा और याद्दाश्त खोने के द्वारा कैसे दिया, और मेरा उत्तर यह है: दुख का हर क्षण हमारे लिए ईश्वर के करीब आने का निमंत्रण है, हमारे लिए हर कठिनाई, प्रभु पर भरोसे करने का प्रेमभरा आमंत्रण है, और अपने शरीर पर नियंत्रण खो देने पर, वह हमारे लिए यह याद रखने का निमंत्रण है कि सब कुछ उन्हीं प्रभु के नियंत्रण में है और उसकी योजनाएं हमारी योजनाओं की तुलना में बेहतर हैं।

एक यादगार सैर

 यह कुछ ऐसा अनुभव था जो मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था। प्रभु निश्चित रूप से मुझे एक बहुत ही अपरिचित मार्ग पर ले गया, लेकिन वह लगातार मेरे साथ था। भले ही मैं कई चीजों को भूल गयी, लेकिन उसने मुझे कभी उसके प्यार को भूलने नहीं दिया। प्रतिदिन का बाइबल पाठ, उस पर मनन चिंतन, दिव्य करुणा की पवित्र तस्वीर, मेरे सपने और मेरे लिए प्रार्थना करने वाले लोग, ये सब मिलकर मुझे प्रभु के प्यार की निरंतर याद दिलाते थे। प्रभु मेरे साथ-साथ चल रहा है, ऐसा मुझे लगता था, इस वजह से यह अपरिचित पथ मेरे लिए बहुत आसान बना। और इसी कारण पीडाओं से ज्यादा मजबूत निश्चित रूप से प्रभु की आशिषें थीं।

लगभग पिछले एक साल से, मैं कैथलिक लेखों और अन्य दस्तावेजों का अनुवाद करके प्रभु की सेवा कर रही थी। इन महीनों में इस कार्य को जारी रखने में मैं सक्षम थी। भले ही मैं कई चीजें भूल गयी थी, लेकिन मैंने अनुवाद करने की क्षमता और कौशल को नहीं खोया। मैं इसके लिए बहुत आभारी हूं, क्योंकि इस कौशल ने कठिनाई के समय में प्रभु के राज्य के लिए काम करने का मुझे अवसर दिया था। अब, कई महीनों बाद, मैंने बहुत सारी यादें वापस पा ली है। मैं अभी भी कई बातें भूल जाती हूँ  और कुछ बातों में या कार्यों में मेरी गति कम हो गयी है, लेकिन उन सभी यादों के लिए जिन्हें मैंने वापस प्राप्त की हैं और इन महीनों के दौरान मुझे जो भी आशीर्वाद मिला है, उन सब के लिए मैं ईश्वर के प्रति बहुत आभारी हूं ।

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By: Maria Angeles Montoya

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अगस्त 12, 2021
Encounter अगस्त 12, 2021

मैं एक चमत्कार के लिए प्रार्थना कर रही थी जब मुझे मां मरियम की सौम्य आवाज़ सुनाई दी।

सीधे दिल में

मैं अपने माता पिता की इकलौती संतान हूं और उन्होंने मुझे बड़े लाड़ प्यार से पाला है। मेरे पिता कैथलिक थे पर मेरी मां प्रोटेस्टेंट थी। हालांकि उन्हें कैथलिक विश्वास में मेरी परवरिश होने से कोई आपत्ति नही थी। इसीलिए मेरी पढ़ाई लिखाई एक कैथलिक स्कूल में हुई और यह मेरी खुशकिस्मती थी कि मुझे सिस्टर्स ऑफ मर्सी और मारिस्ट ब्रदर्स से पढ़ने का मौका मिला। मुझे याद है मैं स्कूल से घर आकर मां को स्कूल में सीखे हुए भजन सुनाया करती थी। चूँकि मां कैथलिक नहीं थी, वह मां मरियम के भजनों से अनजान थी।

लेकिन समय के साथ मां मरियम के भजन मेरी मां के प्रिय भजन बन गए। और जब मां हमारे साथ मई महीने की प्रार्थनाएं और मां मरियम के जुलूस में जाया करती थी तब वे बड़े गर्व से इन भजनों को गाया करती थीं। मां ने ही मुझे चिल्ड्रन ऑफ मेरी में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया और आखिर में मां मरियम में उनकी श्रद्धा के कारण ही उन्होंने सालों बाद कैथलिक चर्च को अपना लिया। मेरी बुआ भी मां मरियम की बड़ी भक्त थी और उन्होंने मेरे मन में मां मरियम के प्रति प्रेम को और बढ़ाया। मेरे स्कूल के पास ‘विजय की मां मरियम’ का एक बड़ा ही सुन्दर चर्च (चर्च ऑफ़ आवर लेडी ऑफ़ विक्ट्री) था। स्कूल की छुट्टी के बाद मैं अक्सर वहां जा कर कुछ समय बिताया करती थी क्योंकि मुझे ऐसा करने में बड़ा सुकून मिलता था और मुझे मां मरियम के प्रेम का अनुभव होता था।

मां मरियम और मेरे बीच का यह रिश्ता जो बचपन में शुरू हुआ था मेरे बड़े होने पर भी वैसा का वैसा रहा। इसीलिए जब भी मैं परेशान रहती थी या किसी मुसीबत में होती थी तब मैं मां मरियम की ओर मुड़ती थी और मुझे हमेशा मां मरियम की कोमलता, प्यार और मदद का अहसास होता था। मैंने अपनी शादी में काफी तकलीफें झेली क्योंकि मेरे स्वर्गीय पति को शराब की लत थी, इसीलिए एक दिन मैंने नित्य सहायक माता की नौरोजी प्रार्थना शुरू की।

उस समय मेरी पल्ली रिडेंप्शनिस्ट लोगों के द्वारा चलाई जाती थी जिनकी नित्य सहायक मां मरियम में अटूट श्रद्धा थी। एक हफ्ते लगातार नौरोजी प्रार्थना करने के बाद मेरे पति ने शराब पीना छोड़ दिया! आगे के चौदह महीने बड़े ही सुख शांति से गुज़रे जिसके बाद शराब की लत ने मेरे पति को दुबारा घेर लिया। इन सब के बावजूद मैं मां मरियम की शुक्रगुज़ार हूं क्योंकि इन्ही सब के बीच मेरी चौथी बेटी ऐलिस का जन्म हुआ, जो कि एक बड़ी आशीष है।

मां मरियम के बिना पेंतकोस्त

साल 1989 में मैंने पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया। मेरा आध्यात्मिक जीवन करिश्माई प्रार्थना संघ और “आत्मा में जीवन” के सेमिनारों और अलग अलग पल्लियों में आने जाने में गुज़रने लगा। साल 1993 में मैं एक प्रार्थना संघ का नेतृत्व करने लगी और साथ ही साथ कई सेमिनारों का संचालन भी करने लगी। मैं हमेशा से इस बात की आभारी रही हूं कि पवित्र आत्मा से बपतिस्मा मिलने के द्वारा येशु और मेरा रिश्ता और गहरा हो पाया। लेकिन साथ ही साथ मुझे इस बात का भी अहसास हुआ कि इन सेमिनारों में हमारी मां मरियम का तो कोई ज़िक्र ही नही था क्योंकि ये सेमिनार पेंतकोस्तल चर्च द्वारा कराए जा रहे थे। मां मरियम के बिना कोई पेंतकोस्त कैसे अनुभव कर सकता है? जब मैंने औरों के सामने यह मुद्दा उठाया तब मेरे अच्छे दोस्त जॉन वौघन नील ने मुझसे सहमत हो कर पूरा सेमिनार फिर से लिखा। इस सेमिनार का नाम था “जीवित ईश्वर के पुत्र पुत्रियां” और इसमें कुछ प्रार्थनाएं शामिल थी जो लोगों को हमारी स्वर्गीय मां के करीब लाने के लिए बनी थी।

साल 1994 में मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मां मरियम मुझे मेडजुगोरी जाने का आदेश दे रही हैं। और हालांकि उस वक्त बोस्निया में युद्ध जारी था फिर भी मेरी दोस्त ऐनी और मैं एक छोटे समूह के साथ आयरलैंड तक का सफर कर पाई। इस यात्रा ने मेरे आध्यात्मिक जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लाया। यह हमारा सौभाग्य ही था कि हम उस वक्त उस पवित्र गांव में जा पाए जहां मां मरियम के निर्मल हृदय की दसवीं सालगिरह मनाई जा रही थी। फिर हमने पच्चीस मार्च को हिल ऑफ अप्रिशंस को जाने वाले जुलूस में भाग लिया जिसका संचालन चेकोस्लोवेकिया के एक बिशप कर रहे थे जो उस समय पोप जॉन पॉल द्वितीय के खास मित्र थे।

वहां उन्होंने हमें खुद को और हमारे परिवारों को मां मरियम के निर्मल हृदय को समर्पित करने को कहा क्योंकि मां मरियम का हृदय ही हमारे लिए पूरी दुनिया में सबसे सुरक्षित और सुदृढ़ स्थान है। मैं खुश थी क्योंकि वहां मुझे इतनी प्यारी प्रार्थना करने का अवसर मिला। अगले दिन मैं यह देख कर आश्चर्यचकित रह गई कि मुझे वह प्रार्थना मुंह ज़बानी याद हो गई थी और मैं उसे बार बार दोहराए जा रही थी। तब से मेरा यह मानना है कि मां मरियम ने मुझे यह प्रार्थना खुद सौंपी है इसीलिए मैं यह प्रार्थना रोज़ किया करती हूं। मैंने मां मरियम से तैंतीस दिन लगातार प्रार्थना भी की है। यह वह प्रार्थना है जो मोंटफोर्ट के संत लुइस ने लिखी थी और मैं सभी को यह प्रार्थना करने का सुझाव देती हूं। जब हम मां मरियम के हाथों में अपना सबकुछ सौंप देते हैं और उनकी शक्तिशाली मध्यस्थता में विश्वास करते हैं तभी हम उनके मातृ प्रेम का अनुभव कर पाते हैं और सच्ची शांति प्राप्त करते हैं।

एक सौम्य आवाज़

मुझे मां मरियम के इस सानिध्य, इस सहारे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत साल 2016 में पड़ी, जब मेरे छोटे बेटे रूआइरी को ब्रेन ट्यूमर हो गया। उस समय वह सिर्फ तैंतीस साल का हट्टा कट्टा जवान और दो बच्चों का पिता था। मैंने तुरंत मां मरियम से निवेदन किया कि वह उसी तरह मेरे बेटे को अपनी गोद में ले लें जिस तरह क्रूस के नीचे मां मरियम येशु को अपनी गोद में ले कर बैठी थीं। मैंने येशु से भी निवेदन किया कि वह मेरे बेटे को अपनी मां की गोद में देख कर उसे चंगा कर दे। फिर भी कईं डॉक्टरों को दिखाने और खूब इलाज कराने, और कईं लोगों से प्रार्थना कराने के बावजूद भी जुलाई 2017 तक यह निश्चित हो गया था कि कोई चमत्कार उसे बचा नही सकता था। मेरा बेटा मर रहा था। एक शनिवार को मिस्सा के समय मुझे मेरे मन में एक सौम्य आवाज़ सुनाई दी जिसने कहा, “मुझे तुम्हारी अनुमति चाहिए।” मैंने इस बात को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की पर उस आवाज़ ने सौम्यता से फिर कहा “मुझे तुम्हारी अनुमति चाहिए।”

तब तक मुझे यह समझ आ गया था कि यह आवाज़ मां मरियम की थी और वह मुझसे रूआईरी को आज़ाद करने को कह रही थी। मैं बहुत रोई पर फिर मैंने अपने आंसू पोंछ दिए क्योंकि मैं जानती थी कि ईश्वर मेरे बेटे से प्यार करते हैं और वो उसके लिए सब सही ही करेंगे। इसीलिए मैंने मां मरियम को इजाज़त दे दी। हमारी प्यारी मां मरियम कितनी दयालु हैं कि वह हमसे हमारी मर्ज़ी पूछती हैं। कुछ दिनों के बाद मेरा प्यारा बेटा गुज़र गया, लेकिन मैं जानती थी कि वह हमारी स्वर्गिक मां के पास है, और यही बात मुझे सांत्वना दिए जा रही थी। आज उस बात को तीन साल हो गए हैं, और अब मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उसने मुझे यह कृपा दी कि मैं अपना दुख दर्द मां मरियम के साथ बांट सकूं। हम दोनों ही अपने बेटे को खोने के दर्द से गुज़रे हैं। रूआइरी ने दृदीकरण संस्कार के वक्त संत मैक्सिमिलियन कोलबे को अपना सहायक संत चुना था। और उसी महान संत की तरह मेरा बेटा भी मां मरियम को बहुत प्यार करता था। ‘यादकर विनती’ उसकी प्रिय प्रार्थना हुआ करती थी। संत मैक्सिमिलियन ने कहा है, “मां मरियम को हद से ज़्यादा प्यार करने से कभी डरना मत, हिचकिचाना मत, क्योंकि हमारा प्यार हमेशा उस प्यार से कम होगा, जितना प्यार येशु मां मरियम से करते हैं।” उन्होंने कितनी सही बात कही है, है ना? अपना हाथ मां मरियम के हाथ में दे दीजिए और उन्हें आपको स्वर्ग की ओर ले चलने दीजिए।

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By: Patricia Dowey

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अगस्त 12, 2021
Encounter अगस्त 12, 2021

संत पेर्पेतुआ २२ वर्ष की सुशिक्षित और कुलीन महिला थी और वे एक शिशु की माँ थी | वह दूसरी शताब्दी में उत्तरी आफ्रिका के कार्थेज शहर में निवास करती थी | रोमी बादशाह सेप्तिमियुस सेवेरुस के शासन काल में ईसाइयत में धर्मांतरण करना कानूनी जुर्म था | उन दिनों पेर्पेतुआ को फ़ेलिसिती नामक एक गुलाम युवती के साथ गिरफ्तार किया गया | फ़ेलिसिती आठ महीने से गर्भवती थी | पेर्पेतुआ, फ़ेलिसिती और एनी कुछ दीक्षार्थी एक अँधेरी काल कोठरी में रखे गए और बाद में उन्हें बादशाह के जन्म दिन के अवसर पर विशाल अखाड़े में खूंखार जंगली जानवरों का सामना करने की सजा दी गई |

कारागार में रहने के दौरान अपने भविष्य के बारे में दिए गए दर्शनों को पेर्पेतुआ एक डायरी में लिखा करती थी | एक दर्शन में उसने देखा कि एक बहुत ही ऊँची लेकिन पतली सीढ़ी स्वर्ग जाने के लिए रखी गयी है | उस सीढ़ी के दोनों बगल में तलवार, भाले, कंटिया, और छुरों को भी सीढ़ी से जोड़कर रखा गया था | उस सीढ़ी के नीचे एक बहुत बड़ा परदार सांप था | पेर्पेतुआ के सहेलियों में से एक पहले से सीढ़ी के ऊपर पहुँच चुकी थी | उसके वचनों से प्रेरित होकर पेर्पेतुआ भी ऊपर पहुँच गयी |

गर्भवती महिलाओं को मृत्युदंड देना कानूनन गलत था, इसलिए फेलिसिती को इस बात का डर था कि वह शहादत के सौभाग्य से वंचित रह जायेगी | उसकी सहेलियां लगातार प्रार्थना कर रही थी | जिस  दिन उन लोगों को मृत्यु दंड दिया जाना था, उससे सिर्फ दो दिन पूर्व फेलिसिती ने एक बालिका को जन्म दिया | उन महिलाओं के विश्वास को देखकर कारागार के अधीक्षक इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ख्रीस्तीय धर्म को स्वीकार किया |

अपनी शहादत के दिन, सारी महिलायें उस विशाल अखाड़े की ओर ख़ुशी से झूमती हुई आगे बढ़ी, और सबके चेहरे पर अभूतपूर्व शांति झलक रही थी |  पेर्पेतुआ और फेलिसिती को एक पगली गाय के सामने फ़ेंक दिया गया ताकि वह गाय इन दोनों को अपने पैरों तले रौंद दें | जैसे ही गाय ने पेर्पेतुआ को उठाकर ज़मीन पर पटक दिया, वह उठकर बैठ गयी, अपने वस्त्र को ठीक करने लगी, चूँकि उसे शरीर के दर्द से अधिक चिंता अपनी शालीनता की थी | इसके बाद पेर्पेतुआ और उनकी सहेलियों को तलवार से मौत के घाट उतारने का आदेश दिया गया | जैसे ही पेर्पेतुआ की बारी आयी उसने तलवारिया के कांपते हाथों को अपने हाथ में लिया और उसे अपने गर्दन की ओर सही ढंग से तलवार चलाने की मदद की |

इस तरह का विश्वास ख्रीस्तीय उन दिनों देखने को मिलता था | उन शहीदों का साहस से हमें भी चुनौती और प्रेरणा मिलती है कि हम भी धैर्य के साथ अपना जीवन त्यागने के लिए तैयार रहे, विश्वास नहीं |

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By: Shalom Tidings

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अगस्त 12, 2021
Encounter अगस्त 12, 2021

जो सिर्फ सहज और निर्दोषपूर्ण छोटे मजाक के तौर पर शुरू होता है, वह कभी आपके जीवन को अँधेरी काल- कोठरी में धकेल सकता है ! 

मेरी नियति की तलाश

मेरी किशोरावस्था की अधिकाँश अवधि में, ईश्वर पर भरोसा करना मेरे लिए कठिन कार्य था | भरोसे की इस कमी के कारण मैंने अपने को और अपने भविष्य को समृद्धि, प्यार और सुख देनेवाली शक्तियों के हाथों समर्पित करने का निर्णय लिया | मैं नव युगीन विश्वासों की तरफ मुड़ गयी और तुरंत ही मैंने नए युग की मान्यताओं की ओर रुख किया और जल्द ही खुद को टैरो कार्ड, मनोविज्ञान, कुंडली और जादू के भंवर जाल में फंसी हुई पायी ।

पहले, इन चीजों में दिलचस्पी लेना बहुत ही मजेदार और रोमांचक लग रहा था । नए युग के आचरणों और प्रथाओं के कारण, मुझे लगा कि मैं अब आँख मूँद करके नहीं चल रही हूँ – मुझे लगा कि मैं स्पष्ट रूप से अपने भाग्य का मार्ग देख रही हूँ और अपने जीवन के लिए उपयोगी मार्गदर्शन प्राप्त कर रही हूँ । मुझे विश्वास था कि टैरो कार्ड और ज्योतिषी लोग मुझे जानते हैं। मैं यह मानने लगी कि वे समझ गए थे कि मेरे व्यक्तिगत जीवन में क्या चल रहा था, जिसे मैंने किसी के साथ साझा नहीं किया था और इस वजह से, मैं उन पर अपनी पूरी आत्मा के साथ विश्वास करती थी । बहुत जल्द ही, जो हानिरहित शौक के रूप में शुरू हुआ था वह एक जुनून बन गया | और इस जूनून ने  मुझे ईश्वर  से दूर कर दिया।

जुनून से और आगे

अपने जीवन की समस्याओं का जवाब खोजने के लिए बेताब होकर, मैं लगातार अपने टैरो कार्डों की सलाह ले रही थी। मैंने झूठी देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा की, उनसे मदद की गुहार लगाई जबकि वह मदद कभी नहीं आईं। मैंने उन मूठों या जादू टोना को भी परखना शुरू कर दिया ताकि वे मुझे असहज स्थितियों से बाहर निकालने में या जीवन की समृद्धि को आगे बढ़ाने के लिए मदद करें । मैं अपने को “परखना” तक ही सीमित रखती तो ठीक था, लेकिन मैं वास्तव में जादू टोना के प्रभावक्षेत्र के बहुत करीब आ चुकी थी । जैसे जैसे जादू टोने पर मैंने नजदीकी से शोध किया, मुझे लगता है कि अगर मेरे अन्दर अपराध बोध नहीं होता तो मैं शायद इसके साथ काफी आगे बढ़ जाती । आज पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो मेरा मानना है कि ईश्वर की कृपा ने ही मुझे उस पाप से दूर रखा अन्यथा मैं उस पाप के अँधेरे रास्ते पर और आगे खिंच जाती ।

जादू टोना और नए युग के अन्य आचरण ने मेरे विश्वास को बुरी तरह प्रभावित किया। हालाँकि  कैथलिक धर्म में मेरी परवरिश हुई थी, जबकि मैं अब खुद को कैथलिक नहीं मानती थी । मैंने महसूस किया कि मैं अन्य किसी भी विश्वास से अधिक नए युग के विश्वासों के साथ काफी घुलमिल गयी थी । मैंने अपने दोस्तों और परिवार को बताया कि मुझे पता नहीं कि मुझे ईश्वर पर विश्वास है या नहीं । आखिरकार, अगर ईश्वर का अस्तित्व है, तो मैं इतनी निराश और भटकी क्यों हूँ ? परमेश्वर ने दूसरों के लिए चमत्कार किया लेकिन मेरे लिए क्यों नहीं? और नए युग के “ज्ञानोदय” पाकर जिस “सत्यज्ञान” को प्राप्त करने के, मैंने स्वयं को कभी भी कैथलिक धर्म में लौटती हुई नहीं देखा।

मुझे लग रहा था कि ईसाई अंधे हैं, जो अपने सामने की सच्चाई को नहीं देख पा रहे थे, जबकि मैं दुनिया के सभी झूठ और धोखे को साफ़ साफ़ देख पा रही थी । मुझे नहीं पता था कि वास्तव में मैं वह अंधी थी जो जीवन में अकेले चल रही थी ।  मैं मार्गदर्शन के लिए बेताब थी और मैं ने सोचा कि नए युग की मान्यताएं मुझे प्रत्याशा दे सकती हैं।

मेरे पास लौट आओ

कुछ हफ्तों से, मेरे टैरो कार्ड मुझे मिश्रित संदेश दे रहे थे। अब उनसे कोई मतलब का सन्देश नहीं मिल रहा था, और न ही मेरे सवालों का जवाब मुझे मिल रहा था । मैं निराशा और हताशा महसूस करने लगी।

मेरे टैरो कार्डस मेरे एकमात्र आश्वासन थे कि सब कुछ ठीक हो जाएंगे, लेकिन उन्होंने काम ही  करना बंद कर दिया। ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ इतने सर्पिल और पेचीदा हो रहा था, कि मुझे अब अपने जीवन पर कोई नियंत्रण नहीं था। लेकिन सिर्फ यही मेरी सच्चाई थी ! अब तक मैं अपने जीवन पर मेरे नियंत्रण से इतनी अधिक प्रभावित थी और जब मैंने इसे खो दिया, तो मैं कमजोर, नाजुक  और पूरी तरह असुरक्षित महसूस कर रही थी ।

मुझे जल्द ही एहसास हुआ कि ईश्वर चाहता है कि हम नाजुक हों ताकि हम सभी नियंत्रणों को आत्मसमर्पण करना सीखें और ईश्वर पर अपना पूरा भरोसा रख सकें। अंत में, यह येशु ही था जिसने मुझे बचाया और मुझे उस सत्य की ओर लौटाया, जिसकी मैं इतने समय से खोज रही थी । मुझे पता है कि लोगों का जीवन उनका अपना नहीं है: “मनुष्य अपना मार्ग निश्चित नहीं करता, कोई जहां कहता वहां नहीं जाता ” (यिरमियाह 10:23)। मैं अपने दिल में ईश्वर को फुसफुसाते हुए सुनने लगी कि मेरे लिए उस पर भरोसा करने का समय आ गया है। मैंने प्रभु के लिए  दरवाजा खोल दिया, और उसने अंदर प्रवेश करने में संकोच नहीं किया।

पिछले बहुत वर्षों से मैं गुहार लगा रही थी, हाँ किसी को विशेष रूप से पुकारकर नहीं | अब  वर्षों बाद, मुझे अपने टैरो कार्ड्स के बजाय ईश्वर से प्रेरणा मिली। ईश्वर मुझे प्रकृति के बीच में ले चला, जहां मुझे सबसे अधिक शांति महसूस हुई और प्रभु ने अपने प्यार भरे हाथ मुझ पर रख दिए। मैंने आकाश की तरफ देखा और उस भाग्यनिर्णायक दोपहर में बादलों में छिपे हुए ईश्वर ने मुझसे बातें की । “मेरे पास लौट आओ,” उसने कहा, और मैंने अपने जीवन में जितना महसूस किया था, उससे कहीं अधिक प्यार से भरा था। “तुम अपने सारे ह्रदय से प्रभु पर भरोसा करो, और अपनी बुद्धि पर निर्भर मत रहो । अपने सबी कार्यों से उसका ध्यान रखो | वह तुम्हारा मार्ग प्रशस्त कर देगा” (सूक्ति ग्रन्थ 3: 5-6)।

मैंने कई वर्षों तक जिन स्थानों को अंधेरे में चुद था उन स्थानों में पवित्र आत्मा के प्रकाश को भरने में मुझे केवल एक दिन का समय लगा । सबसे धुंधली आत्मा को भी रोशन करने के लिए ईश्वर की चंगाई की शक्तियों की सुंदरता यही है! फिर भी, मुझे पता था कि मैं वास्तव में प्रभु की कृपा का अनुभव करना चाहती थी, यह बात मुझे प्रभु को दिखाना पडेगा । उस रात को, मैंने अपने शयन कक्ष में, ईश्वर के सम्मुख अपने दिल की सारी बातें प्रकट कर दिया । मैंने उससे कहा कि मुझे खेद है कि मैं अब तक भटक गयी थी | मैं ने जो कुछ पाप किये थे, उन सभी पापों का पश्चाताप किया । मैंने ईश्वर से कहा कि अब से, मैं अपने सम्पूर्ण जीवन के साथ उस पर भरोसा करूंगी ।

मैं ने अपनी नियति को ईश्वर के हाथों में रख दिया और मैंने नव् युगीन मान्यताओं को त्याग दिया। मैं उस ईश्वर की बाहों में गिर गयी जिसने मुझे अपने दुलारी बेटी के रूप में प्यार किया। एक बार जब मैंने ईश्वर की दयालु बाहों में आराम करने का अनुभव किया, तो मैंने कैथलिक विश्वास को अपने पूरे दिल से भरोसा करने लायक विश्वास के रूप में देखना शुरू कर दिया, क्योंकि अब मुझे अपनी नियति को निर्देशित करने इच्छा नहीं थी । अब अपने सारे सवालों के जवाबों को जानने के प्रति मुझ में कोई रूचि नहीं थी; अब मुझे अपने लिए प्रभु की योजना पर भरोसा करती हूँ । “आप लोग ईश्वर के अधीन रहें | शैतान का समना करें, और वह आप के पास से भाग जाएगा ” (याकूब 4: 7)

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By: Ashley Fernandes

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