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अपने बेटे की लत और शराब के अतिमात्र सेवन के कारण अंततः उसकी मृत्यु से भी, वे संघर्ष करते रहे। वे कैसे टिके रहे?
भले ही मेरा बपतिस्मा हो गया था, फिर भी बड़े होते समय गिरजाघर से मेरा कोई ख़ास वास्ता नहीं था। मेरी माँ और पिता के कैथलिक चर्च के साथ कुछ गंभीर अनसुलझे मुद्दे थे, इसलिए हम कभी भी मिस्सा बलिदान में नहीं गए, और मुझे कभी भी धर्मशिक्षा नहीं दी गई। हालाँकि, मुझे आध्यात्मिक संबंध की चाहत थी, और मैं ‘द रॉब’, ‘द टेन कमांडमेंट्स’, ‘बेनहर’, ‘ए मैन कॉल्ड पीटर’ और ‘द ग्रेटेस्ट स्टोरी एवर टोल्ड’ जैसी लोकप्रिय बाइबिल फिल्मों की ओर आकर्षित हुआ। उन फिल्मों में ईश्वर को बहुत ही दिलचस्प तरीके से प्रस्तुत किया गया था और मुझमें धीरे-धीरे व्यक्तिगत स्तर पर प्रभु को जानने की भूख विकसित हुई। 60 के दशक के दौरान, लोक गायक जिम क्रोस ने ‘टाइम इन ए बॉटल’ गाया था, जिसमें कहा गया था, “मैंने यह जानने के लिए चारों ओर काफी ढूंढा है कि तू ही वह व्यक्ति है जिसके संग मैं समय की यात्रा करना चाहता हूं।” मैं वास्तव में प्रभु ईश्वर के साथ ‘समय की यात्रा’ करना चाहता था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि उसके साथ कैसे जुड़ूं।
घुमावदार पथ
सैन फ्रांसिस्को में अब्राहम लिंकन हाई स्कूल में एक कनिष्ठ छात्र के रूप में, मुझे एक आयरिश कैथलिक परिवार के बारे में पता चला जो वास्तव में अपने विश्वास में पक्के और गंभीर थे। उन्होंने रोज़ शाम को रोज़री माला की विनती की (वह भी लातीनी भाषा में!), दैनिक मिस्सा बलिदान में भाग लिया और येशु के शिष्यत्व का जीवन जीने का प्रयास किया। उनका धार्मिक रूप से पालन करने वाला जीवन रहस्यमय और आश्चर्य जनक था। उनके नमूने के माध्यम से, मैंने अंततः कैथलिक धर्म में पूरी तरह से दीक्षित होने का निर्णय लिया।
हालाँकि, मेरे माता-पिता मेरे निर्णय से खुश नहीं थे। जब मेरे दृढीकरण और प्रथम पवित्र संस्कार के बड़े समारोह का दिन आया, तो हमारे बीच एक पारिवारिक लड़ाई हुई। पूरे घर में आँसू, क्रोधित शब्द और दोषारोपण गूँज रहे थे। मुझे यह कहते हुए याद है, “माँ और पिताजी, मैं आपसे प्यार करता हूँ, लेकिन मैं येशु की पूजा-आराधना करता हूँ, और मैं दृढ़ीकरण संस्कार पाना चाहता हूँ। कैथलिक कलीसिया मेरा आध्यात्मिक घर जैसा लगता है।” इसलिए, मैंने घर छोड़ दिया और लेक मर्सिड के पास सेंट थॉमस मोर गिरजाघर में अकेले चला गया, जहां मुझे अपने माता-पिता के आशीर्वाद के बिना संस्कार प्राप्त हुए। इसके तुरंत बाद, मुझे मत्ती के सुसमाचार का एक संदर्भ मिला जिसमें येशु ने कहा था, “जो अपने पिता या अपनी माता को मुझसे अधिक प्रेम करता है, वह मेरे योग्य नहीं …” (10:37)। मैं ठीक-ठीक जानता था कि उसका क्या मतलब था।
हाईवे से भटक कर उप मार्गों पर
काश मैं कह पाता कि किशोरावस्था पार करने के बाद भी मैंने येशु के प्रति इतनी गहरी प्रतिबद्धता जारी रखी। मेरा प्रारंभिक मन परिवर्त्तन मेरे जीवन को उसके प्रति समर्पित करने का सिर्फ सतही प्रयास था। मैंने अपने जीवन की गाड़ी को ‘सुपर हाइवे येशु’ पर यात्रा की शुरुआत की, लेकिन दुनिया के आकर्षक सामान्य चीज़ों का पीछा करते हुए इन उप मार्गों पर मैं अपनी गाड़ी ले चलता रहा: धन और सुरक्षा, पेशेवर सफलता और उपलब्धियां, सुखवादी आनंद और, सबसे ऊपर, नियंत्रण की मेरी अधिग्रहणात्मक खोज जारी रही। ‘बोनफ़ायर ऑफ़ द वैनिटीज़’ में टॉम वोल्फ के किरदार की तरह, मैं वास्तव में अपने ब्रह्मांड का स्वामी बनना चाहता था। मेरी इन सब योजनाओं के बीच येशु का स्थान क्या था? मुझे मूलतः उम्मीद थी कि येशु सवारी केलिए मेरी गाड़ी में बैठेंगे। मैं उनसे अपनी शर्तों पर जुड़ना चाहता था। मैं चाहता था कि येशु मेरे द्वारा बनाई जा रही मेरी आत्म-संदर्भित जीवनशैली को मान्यता दें।
यात्रा वापस प्रेम के दायरे में
मेरे शाही अहंकार को समायोजित करने के लिए बनाई गई यह मायावी मीनार 30 साल पहले तब ढह गई जब हमारा परिवार हमारे बेटे की नशीली दवाओं की लत से जूझ रहा था। कठिन तथ्य यह है कि उसकी लत, और अंततः घातक ओवरडोज़ ने मुझे एक बहुत ही अंधेरी, खाली जगह में गिरा दिया। मुझे लगा कि मैं बहुत गहरे गड्ढे में गिर गया हूँ जहाँ कुछ भी काम नहीं आ रहा था: मेरा बेटा वापस नहीं आ रहा था, और नुकसान की भावना भारी थी। मैं पूरी तरह से निराश हो गया और महसूस किया कि अंतरंगता, संवाद और संगति की हमारी गहरी भूख का सामना करने में दुनिया की वस्तुएं कितनी बेकार हैं।
मैंने येशु से प्रार्थना की कि वह मुझे अंधकार, पीड़ा और तन्हाई के गहरे गड्ढे से बचाए। मैंने उनसे मेरी पीड़ा दूर करने और मेरे जीवन को फिर से व्यवस्थित करने की विनती की। हालाँकि उसने मेरे जीवन को “ठीक” नहीं किया, लेकिन उसने कुछ बेहतर किया: येशु मेरे साथ गड्ढे में आये, उन्होंने मेरे क्रूस को गले लगाया, और मुझे बताया कि वे मुझे, मेरे परिवार या हमारे दिवंगत बेटे को कभी नहीं छोड़ेंगे। मैंने पीड़ित सेवक येशु की प्रेमपूर्ण दया का अनुभव किया, जो अपने लोगों के साथ, यानी कलीसिया के साथ स्वयं पीड़ित रहते हैं। वे ईश्वर हैं जिनसे मैं प्रेम कर सकता हूँ।
येशु हमारे सामने परमेश्वर का चेहरा प्रकट करते हैं। जैसा कि संत पौलुस कुलुस्सियों को भेजे अपने पत्र में लिखते हैं, येशु “अदृश्य ईश्वर के प्रतिरूप” हैं (1:15)। इसलिए, हमारे पास अभी यहीं, खुश और प्रसन्न रहने के लिए आवश्यक सभी चीजें मौजूद हैं। येशु में, जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एकमात्र मध्यस्थ है, सब कुछ ठीक हो जाता है; कुछ भी उसके प्रेम के दायरे से बाहर नहीं है – हमारे प्रभु येशु मसीह हमें ईश्वर के साथ, हमारे भाइयों और बहनों और पूरी सृष्टि के साथ एक गहरे रिश्ते के लिए आमंत्रित करते हैं।
'हम कितनी बार सोचते हैं कि हमें अपनी पसंद की चीज़ें करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता? इस नए साल में, आइए कुछ नया करें।
वास्तव में मैं कभी भी नए साल के संकल्प लेने वाली नहीं रही हूँ। मुझे यह बात तब याद आती है जब मैं अपनी मेज़ पर धूल जमी, बिना पढ़ी हुई किताबों के ढेर को देखती हूँ, जिन्हें मैंने पिछले सालों में एक महत्वाकांक्षी, लेकिन बुरी तरह से असफल प्रयास के तहत खरीदा था। एक महीने में एक किताब पढ़ने का संकल्प अधूरा रह गया, और किताबों का ढेर खडा हो गया, उसी तरह बिना पूरे किये गए संकल्पों का भी ढेर खडा हो गया। मेरे पास अपने संकल्प में सफल न होने के लाखों कारण थे, लेकिन समय की कमी उनमें से एक नहीं थी।
अब अपने आप में थोड़ी निराशा के साथ खोए हुए वर्षों को देखने पर, मुझे एहसास होता है कि मैं वास्तव में अपने समय का बेहतर उपयोग कर सकती थी। अपने जीवन में मैंने अनगिनत बार शिकायत की है कि मेरे पास उन चीजों को करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है जो मैं करना चाहती हूँ। निश्चित रूप से, जितनी मैं गिन सकती हूँ उससे कहीं ज़्यादा!
कुछ साल पहले, मेरे पति अस्पताल में अपना नियमित उपचार करवा रहे थे, और मैं नए साल की पूर्व संध्या पर उनके बगल में बैठी हुई थी, तब मेरे दिल में कुछ हलचल हुई। उनकी धमनियों में रक्त चढ़ाया जा रहा था। इस असहज परिस्थिति में, मैंने देखा कि उनकी आँखें बंद थीं, और उनके हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जुड़े हुए थे। जाहिर तौर पर मेरी जिज्ञासा भरी निगाहों को महसूस करते हुए, उन्होंने एक आँख को थोड़ा खोला और मेरी तरफ देखते हुए, धीरे से फुसफुसाए: “सभी के लिए।”
किसी तरह, उन्होंने मेरे मन की बात पढ़ ली। हम अक्सर अपने आसपास के उन लोगों के लिए प्रार्थना करते थे जिन्हें हम पीड़ित या प्रार्थना की ज़रूरतमंद समझते थे। लेकिन आज, हम अकेले बैठे थे, और मैं हैरान थी कि वे किसके लिए प्रार्थना कर रहे होंगे। यह सोचना भावुक और प्रेरणादायक था कि वे “सभी” के लिए प्रार्थना कर रहे थे, न कि केवल उन लोगों के लिए जिन्हें हम उनके बाहरी रूप के कारण प्रार्थना की ज़रूरतमंद समझते हैं।
हम में से हर किसी को प्रार्थना की ज़रूरत है। हम सभी को ईश्वर की कृपा और दया की ज़रूरत है, चाहे हम दुनिया के सामने अपनी छवि कुछ भी पेश करें। यह सच लगता है, खासकर अब जब इतने सारे लोग चुपचाप अकेलेपन, वित्तीय परेशानी और यहाँ तक कि मानसिक स्वास्थ्य संघर्षों से पीड़ित हैं, जिन संघर्षों को अक्सर छिपाया जाता है।
कोई भी वास्तव में नहीं जानता कि दूसरा व्यक्ति किस दौर से गुज़र रहा है, गुज़र चुका है या गुज़रेगा। अगर हम सब एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करें तो यह कितना शक्तिशाली होगा? यह कितना जीवन को बदलनेवाला, दुनिया को बदलनेवाला हो सकता है। इसलिए इस नए साल में, मैं अपने खाली समय का अधिक बुद्धिमानी और सोच-समझकर उपयोग करने का संकल्प ले रही हूँ – दूसरों की पीड़ा और ज़रूरतों पर प्रार्थनापूर्वक विचार करती हुई, उन लोगों के बारे में जिन्हें मैं जानती हूँ, जिन्हें मैं नहीं जानती, जो मुझसे पहले आए हैं और जो बहुत बाद में आएंगे, सब के लिए प्रार्थना करने का मैं संकल्प लेती हूँ।
मैं पूरी मानवता के लिए प्रार्थना करने जा रही हूँ, इस बात पर भरोसा करती हुई कि हमारे प्यारे ईश्वर, अपनी उदारपूर्ण दया और असीम प्रेम से, हम सभी को आशीर्वाद देंगे।
'फरवरी की शुरुआत में, संयुक्त राज्य अमेरिका में कलीसिया द्वारा कैथलिक स्कूल सप्ताह मनाया जाता है। मैं इस अवसर को कैथलिक स्कूलों द्वारा दी जा रही अच्छी शिक्षा केलिए उनका सम्मान करने और कैथलिक और गैर-कैथलिक सभी को उन स्कूलों का समर्थन हेतु आमंत्रित करने के अवसर के रूप में उपयोग करता हूँ। मैंने पहली कक्षा से लेकर ग्रेजुएट स्कूल तक, बर्मिंघम, मिशिगन में होली नेम एलीमेंट्री स्कूल से लेकर पेरिस में इंस्टीट्यूट कैथलिक नामक शिक्षा संस्थान तक, कलीसिया से जुड़े शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाई की। वर्षों तक चले उस तल्लीनता से भरपूर सघन और गहरी शिक्षा के अनुभव ने मेरे चरित्र, मेरे मूल्यों की भावना, दुनिया को देखने के मेरे पूरे तरीके को बड़े पैमाने पर आकार दिया। मेरा मानना है कि, विशेष रूप से अब, जब धर्म-विहीनवादी, भौतिकतावादी दर्शन हमारी संस्कृति में बड़े पैमाने पर प्रभाव रखता है, तो ऐसे में कैथलिक लोकाचार एवं शिष्टाचार को शिक्षा पद्धति में शामिल करने की आवश्यकता है।
निश्चित रूप से, जिन कैथलिक स्कूलों में मैंने पढ़ाई की, उनके विशिष्ट चिह्न मिस्सा बलिदान और अन्य संस्कारों, धर्म कक्षाओं, पुरोहितों और साध्वियों की उपस्थिति (जो मेरी शिक्षा के शुरुआती वर्षों में थोड़ा अधिक मात्रा में थी), और कैथलिक संतों, प्रतीकों और छवियों की व्यापकता के अवसर थे। लेकिन जो बात शायद सबसे महत्वपूर्ण थी वह उन स्कूलों द्वारा आस्था और वैज्ञानिक सोच के एकीकरण का वह तरीका था।
निश्चित रूप से, कोई “कैथलिक गणित” नहीं है, लेकिन वास्तव में गणित पढ़ाने का एक कैथलिक तरीका है। गुफा के अपने प्रसिद्ध दृष्टांत में, प्लेटो ने दिखाया कि दुनिया की विशुद्ध भौतिकवादी दृष्टि से दूर पहला कोई कदम है तो वह गणित है। जब कोई सबसे सरल समीकरण, या किसी संख्या की प्रकृति, या किसी जटिल अंकगणितीय सूत्र की सच्चाई को समझ लेता है, तो वह, बहुत ही वास्तविक अर्थों में, नश्वर वस्तुओं के दायरे को त्याग देता है और आध्यात्मिक वास्तविकता के ब्रह्मांड में प्रवेश कर जाता है। धर्मशास्त्री डेविड ट्रेसी ने टिप्पणी की है कि आज अदृश्य का सबसे सामान्य अनुभव गणित और रेखा गणित के शुद्ध अमूर्त को समझने के माध्यम से है। इसलिए, उचित ढंग से पढ़ाया गया गणित, धर्म द्वारा प्रदान किए गए उच्च आध्यात्मिक अनुभवों द्वारा, ईश्वर के अदृश्य क्षेत्र का द्वार खोल देता है।
इसी तरह, कोई विशिष्ट “कैथलिक भौतिकी” या “कैथलिक जीव विज्ञान” नहीं है, लेकिन वास्तव में उन विज्ञानों के लिए एक कैथलिक दृष्टिकोण है। कोई भी वैज्ञानिक तब तक अपने काम को जमीन पर नहीं उतार सकता जब तक कि वह दुनिया की मौलिक समझदारी में विश्वास नहीं करता – कहने का मतलब यह है कि भौतिक वास्तविकता के हर पहलू को, समझने योग्य पैटर्न द्वारा चिह्नित किया जाता है। यह किसी भी खगोलशास्त्री, रसायनज्ञ, खगोलभौतिकीविद्, मनोवैज्ञानिक या भूवैज्ञानिक के लिए सच है। लेकिन यह स्वाभाविक रूप से इस सवाल की ओर ले जाता है: ये समझदार पैटर्न कहां से आए? दुनिया को व्यवस्था, सद्भाव और तर्कसंगत पैटर्न द्वारा इतना चिह्नित क्यों किया जाना चाहिए? बीसवीं सदी के भौतिक विज्ञानी यूजीन विग्नर द्वारा रचित एक अद्भुत लेख है जिसका शीर्षक है “प्राकृतिक विज्ञान में गणित की अनुचित प्रभावशीलता।” विग्नर का तर्क था कि यह महज संयोग नहीं हो सकता कि सबसे जटिल गणित, भौतिक दुनिया का सफलतापूर्वक वर्णन करता है। महान कैथलिक परंपरा का उत्तर यह है कि यह समझदारी, वास्तव में, एक महान रचनात्मक बुद्धि से आती है जो इस संसार की सृष्टि के पीछे खड़ी है। इसलिए, जो लोग विज्ञान का अभ्यास करते हैं, उन्हें यह विश्वास करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए कि “आरंभ में शब्द था।”
कोई “कैथलिक इतिहास” भी नहीं है, हालाँकि इतिहास को देखने का निश्चित रूप से एक कैथलिक तरीका है। आमतौर पर, इतिहासकार केवल अतीत की घटनाओं का वर्णन नहीं करते हैं। बल्कि, वे इतिहास के भीतर कुछ व्यापक विषयों और प्रक्षेप पथों की तलाश करते हैं। हममें से अधिकांश को शायद इसका एहसास भी नहीं है क्योंकि हम एक उदार लोकतांत्रिक संस्कृति के भीतर पले-बढ़े हैं, लेकिन हम स्वाभाविक रूप से ज्ञानोदय को इतिहास के निर्णायक मोड़ के रूप में देखते हैं, विज्ञान और राजनीति में महान क्रांतियों का समय जिसने आधुनिक दुनिया को परिभाषित किया। इस बात पर कोई संदेह नहीं कर सकता कि ज्ञानोदय एक महत्वपूर्ण क्षण था, लेकिन कैथलिक निश्चित रूप से इसे इतिहास के चरमोत्कर्ष के रूप में नहीं देखते हैं। इसके बजाय, हमारा मानना है कि धुरी बिंदु वर्ष 30 ईस्वी के आसपास यरूशलेम के बाहर एक गंदी पहाड़ी पर था, जब रोमियों द्वारा एक युवा रब्बी को यातना देकर मार डाला जा रहा था। हम हर चीज़ की – राजनीति, कला, संस्कृति, आदि – की व्याख्या ईश्वर के पुत्र के बलिदान के दृष्टिकोण से करते हैं।
2006 के अपने विवादास्पद रेगेन्सबर्ग संबोधन में, दिवंगत पोप बेनेडिक्ट ने तर्क दिया कि देह-अवतार के सिद्धांत के कारण ही ईसाई धर्म, संस्कृति के साथ एक जीवंत बातचीत में प्रवेश कर सकता है। हम ईसाई यह दावा नहीं करते हैं कि येशु कई लोगों में से एक दिलचस्प शिक्षक थे, बल्कि ईश्वर के वचन, मन या विवेक ने येशु के रूप में देहधारण किया था। तदनुसार, जो कुछ भी वचन या विवेक द्वारा चिह्नित है वे सभी ईसाई धर्म का स्वाभाविक मौसेरा भाई है। विज्ञान, दर्शन, साहित्य, इतिहास, मनोविज्ञान – यह सब – ईसाई धर्म में पाया जाता है, इसलिए, एक स्वाभाविक संवाद (वह शब्द फिर से है!) का भागीदार भी है। यह बुनियादी विचार है, जो पापा रत्ज़िंगर (बेनेडिक्ट सोलहवें) को बहुत प्रिय है, जो कैथलिक स्कूलों के स्वभाव को सर्वोत्तम रूप से सूचित करता है। और यही कारण है कि उन स्कूलों का फलना-फूलना न केवल कलीसिया के लिए, बल्कि हमारे पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण है।
'आपका पसंदीदा हीरो कौन है? क्या आप अपने जीवन में कभी किसी सुपरहीरो से मिले हैं?
हमारा बचपन सैन फ्रांसिस्को में १९50 के दशक में बीता, उन दीनों हमारे पास हमारे अपने हीरो या नायक हुआ करते थे, आमतौर पर वे हीरो काउबॉय किस्म के थे – उनमें से जॉन वेन सर्वश्रेष्ठ माने जाते थे, जो जहां जाना चाहते थे वहां जा सकते थे, उनके पास एक सूत्र था जिसके अनुसार वे रहते थे, जिन लोगों को समाज बुरा मानता था उन बुरे लोगों को वे पराजित करते थे, आखिरी में वे अपने पसंद की लड़की को पकड़ लेते, और उसके साथ सूर्यास्त में ओझल हो जाते। जैसे ही द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका धुरी शक्तियों पर अपनी जीत से आगे बढ़कर शीत युद्ध (परमाणु युद्ध अभ्यास, क्यूबा मिसाइल संकट, आदि) के खतरों की ओर बढ़ रहा था, उस दौरान जॉन वेन की वीरतापूर्ण छवि आकर्षक थी, क्योंकि हम कोई खुशहाल समय के लिए तरस रहे थे।
असली हीरो से मिलें
आइये, 2022-2023 के दौर में आइये। नायकों की चाहत अभी भी बनी हुई है। बस उन सुपरहीरो फ्रेंचाइजी को देखें जो मुख्यधारा की फिल्मों पर हावी हैं। मार्वल फिल्में और उनके जैसे, जो हमारे मानवीय अनुभव की जटिलताओं की खोज की तुलना में अधिक ‘थीम पार्क’ अनुभवों से मिलते जुलते हैं, हमें सुपरहीरो (केवल ‘हीरो’ नहीं बल्कि ‘सुपरहीरो’!) की अंतहीन आपूर्ति प्रदान करते हैं जो हमारे दुश्मनों को हराते हैं। वैश्विक महामारी, यूरोप में युद्ध, परमाणु कृपाण-धमकाने, ग्लोबल वार्मिंग, आर्थिक अनिश्चितता और संयुक्त राज्य अमेरिका की सड़कों पर हिंसा के विनाश से निपटने के दौरान, सुपरहीरो हमारी इच्छा को संबोधित करते हैं कि महान पुरुष और महिलाएं उन खतरों पर काबू पा सकते हैं हम पर थोपे गए हैं।
इस समय, एक ईसाई अपना हाथ उठा सकता है और कह सकता है, “ठीक है, हमारे पास एक हीरो है जो सभी ‘सुपरहीरो’ से ऊपर है, और उसका नाम येशु है।”
इससे यह सवाल उठता है कि क्या येशु हीरो हैं? मैं ऐसा नहीं सोचता, क्योंकि एक हीरो या नायक कुछ ऐसा करता है जो सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता या नहीं करेगा, इसलिए, हम परोक्ष रूप से उन्हें दुश्मनों पर विजय प्राप्त करते हुए देखते हैं, जो हमें अस्थायी रूप से हमारी चिंता से राहत देता है जब तक कि यह अनिवार्य रूप से अगले संकट के साथ वापस न आ जाए।
जबकि येशु पारंपरिक अर्थों में नायक नहीं है, वह निश्चित रूप से एक अद्वितीय प्रकार का योद्धा है: वह परमेश्वर का वचन है जो हमें पाप और मृत्यु से बचाने के लिए मानव बन गया। वह इन कट्टर शत्रुओं के साथ युद्ध करने जा रहा है, लेकिन वह आक्रामकता, हिंसा और विनाश के हथियारों का उपयोग नहीं करने जा रहा है।
बल्कि, वह दया, क्षमा और करुणा के माध्यम से उन पर विजय प्राप्त करेगा, यह सब उसकी दुःख पीड़ा, मृत्यु और पुनरुत्थान के माध्यम से सामने लाया गया है। ध्यान दें कि उसने पाप और मृत्यु पर कैसे विजय प्राप्त की। गेथसमेनी बाग़ से शुरुआत करते हुए, उसने हमारे पापों – हमारी शिथिलता, अव्यवस्था, अमानवीयता, आत्म-अवशोषण – को अवशोषित कर लिया और स्वयं पाप बन गया। संत पौलुस के अनुसार: “मसीह का कोई पाप नहीं था। फिर भी ईश्वर ने हमारे कल्याण केलिए उन्हें पाप का भागी बनाया जिससे हम उनके द्वारा ईश्वर की पवित्रता के भागे बन सकें” (2 कुरिन्थियों 5:21)। हालाँकि येशु पापी नहीं हैं क्योंकि वह दिव्य हैं – पवित्र त्रीत्व का दूसरा व्यक्ति – उनसे हमारा पाप अपने ऊपर ले लिया और कुछ समय के लिए ‘पाप बन गए,’ जिसके कारण उन्हें मार डाला। कठोर वास्तविकता यह है कि हमारे पापों ने परमेश्वर के पुत्र येशु को मार डाला।
लेकिन, मसीही कथा पुण्य शुक्रवार को समाप्त नहीं हुई, क्योंकि तीन दिन बाद, परमपिता परमेश्वर ने पवित्र आत्मा की शक्ति के माध्यम से येशु को मृतकों में से जीवित कर दिया। ऐसा करने पर, हमारे कट्टर शत्रु—पाप और मृत्यु—परास्त हो गये।
तो, येशु निश्चित रूप से सर्वोच्च आध्यात्मिक योद्धा हैं, लेकिन वह पारंपरिक अर्थों में नायक या हीरो नहीं हैं। क्यों नहीं?
दिव्य चित्रपट के धागे
येशु की दुःख पीड़ा, मृत्यु और पुनरुत्थान हमारे पास्का रहस्य, हमारे विश्वास का रहस्य, के प्रमुख चिह्न हैं। ‘हमारे’ पर ध्यान दें।
येशु अपनी पीड़ा और मृत्यु से गुज़रे – हमें इससे गुज़रने से बचाने के लिए नहीं – बल्कि हमें यह दिखाने के लिए कि कैसे जीना है और पीड़ा भोगना है ताकि हम अभी और अनंत काल तक पुनर्जीवित जीवन का अनुभव कर सकें। आप देखते हैं, उनके रहस्यमय शरीर यानी कलीसिया के बपतिस्मा प्राप्त सदस्यों के रूप में, हम येशु में जीवन जीते हैं; “क्योंकि उसी में हमारा जीवन, हमारी गति तथा हमारा अस्तित्व निहित है” (प्रेरितों 17:28)।
निश्चित रूप से, वह चाहता है कि हम उस पर विश्वास करें, क्योंकि, जैसा कि हम योहन 14:6 में सुनते हैं, “मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूं। मुझ से होकर गए बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।” उस मूलभूत विश्वास के आधार पर, हम उनके शिष्य बनने के लिए, उनके मिशन को पूरा करने के लिए बुलाये गये हैं, जो मिशन उन्होंने अपने स्वर्गारोहण पर अपनी कलीसिया को दिया था (मारकुस 16:19-20 और मत्ती 28:16-20)। इसके अलावा, हम उसके अस्तित्व में भाग लेने के लिए बुलाये गए हैं। जैसा कि रोमानो गार्डिनी ने अपने आध्यात्मिक क्लासिक, द लॉर्ड में लिखा है, “हम एक दिव्य चित्रपट में एक धागे की तरह हैं: हम उसमें और उसके माध्यम से अपनी मानवता का एहसास करते हैं।” दूसरे शब्दों में, हम वैसा ही करते हैं किस प्रकार येशु ने हमें आकार दिया था।
कलीसिया के पवित्र जीवन, विशेष रूप से परम पवित्र संस्कार के माध्यम से येशु की पुनर्जीवित और गौरवशाली उपस्थिति में भाग लेते हुए, हम पवित्र आत्मा के सशक्तिकरण के माध्यम से पास्का रहस्य को जीते हैं। तो, क्या येशु एक नायक हैं? सुनिए पेत्रुस ने क्या कहा जब येशु ने उससे पूछा: “लोग मेरे विषय में क्या कहते हैं?” पेत्रुस का उत्तर: “आप मसीह हैं, जीवंत ईश्वर के पुत्र हैं” (मत्ती 16:1६)। येशु एक नायक से भी बढ़कर हैं; वह एक अनोखे प्रकार का योद्धा है। वह एकमात्र और सार्वभौमिक उद्धारकर्ता है।
'बाइबिल की एक पंक्ति ने किस तरह एक हिंदू लड़की के जीवन और उसकी परिवर्तनकारी यात्रा को बदल दिया, इस सच्ची कहानी को अंत तक पढ़ें …
मेरा जन्म और मेरा पालन-पोषण भारत में एक हिंदू परिवार में हुआ था। एक धार्मिक परिवार में पली-बढ़ी होने के कारण मुझे हमेशा प्रार्थना में समय बिताने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। बचपन में, मैं कभी भी माथे पर बिंदी लगाए बिना स्कूल नहीं गयी (बिंदी एक निशान है, जो आम तौर पर एक हिंदू के माथे पर लगायी जाती है, जो किसी व्यक्ति के सांप्रदायिक जुड़ाव का संकेत देती है)। मैं हिंदू देवी-देवताओं में विश्वास करती थी, लेकिन यह सिर्फ लेन-देन वाला रिश्ता था। उनसे मेरी प्रार्थनाएँ स्कूल की परीक्षाओं से एक सप्ताह पहले तक ही सीमित थीं।
विडंबना यह है कि मैं एक कैथलिक स्कूल में जाती थी जहां मुझे ईसाई धर्म से परिचित कराया गया, लेकिन मैंने हमेशा ईसाई धर्म को इस रूप में देखा कि इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। उस कैथलिक स्कूल में बारह साल बिताने के बावजूद, मुझे कभी समझ नहीं आया कि येशु वास्तव में कौन थे और न ही यह कि उन्होंने मेरे लिए क्या किया। मैंने अच्छे अंकों के साथ हाई स्कूल पास किया। मुझे बेहद खुशी हुई कि हिंदू देवी-देवताओं से की गई मेरी प्रार्थनाओं का फल मुझे मिल गया है। मैं शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में दाखिला लेने में सफल रही। विरोधाभासी रूप से, यह येशु समाज के पुरोहितों द्वारा संचालित एक कैथलिक कॉलेज था।
मैं विस्मित रह गयी
कॉलेज के अपने पहले वर्ष के दौरान, मैंने धर्म पर आधारित एक अनिवार्य कक्षा में भाग लिया, जहाँ लोगों ने अपने विश्वास के बारे में बात की। मैंने देखा कि जहां ईसाई छात्रों के पास येशु के बारे में कहने के लिए बहुत कुछ था, वहीं मेरे जैसे हिंदू जब अपने विश्वास को स्वीकार करने की बात आती थी तो चुप रहते थे। मैं भगवद गीता (भगवद गीता हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है) के बारे में कुछ नहीं जानती थी। मुझे बस इतना पता था कि अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए भगवान से कैसे प्रार्थना करनी है। मुझे खुद को हिंदू कहने में शर्मिंदगी महसूस होती थी।’
तभी एक ईसाई प्रोफेसर ने ‘द पैशन ऑफ क्राइस्ट’ फिल्म से येशु के बारे में एक वीडियो चलाया। मैंने देखा कि उन्हें कितनी बेरहमी से कोड़े मारे गए थे और जब उन्हें सूली पर चढ़ाया गया तो उन्होंने कितनी पीड़ा सही। मेरी आंखों में आंसू थे. सूली पर चढ़ने का दृश्य मैं बमुश्किल देख सकी। दु:ख की बात है कि तब भी, मुझे वास्तविक कारण नहीं पता था कि कलवारी पर क्रूस पे उनकी मृत्यु क्यों हुई थी।
लेकिन उस वीडियो को देखने के बाद, मुझे येशु के बारे में और जानने में दिलचस्पी होने लगी। मैंने बाइबिल की खोज में सार्वजनिक पुस्तकालयों का दौरा किया लेकिन मेरी किस्मत अच्छी नहीं थी। फिर मैंने इंटरनेट पर उपलब्ध बाइबिल का पीडीएफ संस्करण पढ़ने का फैसला किया। मैंने उत्पत्ति ग्रन्थ की पुस्तक से शुरुआत की लेकिन वहां येशु नहीं मिले। फिर, मैंने बेतरतीब ढंग से गूगल पर बाइबिल के वाक्यांश खोजे। संत मत्ती के अनुसार सुसमाचार के एक वाक्यांश ने मुझे प्रभावित किया: “जब तुम्हें अपनी ही आँख की धरन का पता नहीं तो तुम अपने भाई की आँख का तिनका क्यों देखते हो?” (मत्ती 7:3) यह वचन हमें दूसरों का न्याय न करने की शिक्षा देता है।
कुछ सप्ताह बाद, हमारे पास एक अलग प्रोफेसर द्वारा पढ़ायी जाने वाली एक और धर्म कक्षा थी। उन्होंने हममें से प्रत्येक से अपने संबंधित धर्मों के बारे में अपनी मान्यताओं और विचारों को साझा करने के लिए कहा। अचानक, मैंने अपना हाथ उठाया और संत मत्ती से लिए उपरोक्त वाक्यांश को समझाया – एक शर्मीली हिंदू लड़की एक ईसाई बाइबिल से लिए गए वाक्यांश के बारे में अपना विचार साझा कर रही थी! मेरा माननाहै कि मेरी निर्भीकता पवित्र आत्मा का कार्य था। प्रोफेसर को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मैं एक हिंदू हूं। उन्हें बाइबिल पर मेरा व्याख्यान पसंद आया और उन्होंने अधिक लोगों को अपने धर्म के बारे में बोलने के लिए प्रोत्साहित किया। यह घटना कैथलिक धर्म में मेरे परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
सत्य के क्षण
इस दौरान, जब मैं येशु और ईसाई धर्म को जान रही थी, तो मैं अक्सर खुद से पूछती थी, “मुझे गिरजाघर में हमेशा इतनी शांति क्यों महसूस होती है?” हिंदू मंदिरों में मेरा अनुभव बिल्कुल अलग था। वहां दुकानदारों की चीख-पुकार, मंदिर की घंटियों की आवाज, मंत्रोच्चार करते पुजारियों की आवाज़ और बड़ी भीड़ के बीच से देवताओं का चेहरा देखने के लिए लोगों की होड़, आदि की वजह से मैं खुद को विचलित अनुभव करती थी। गिरजाघर में मुझे जो शांति मिली, वह बिल्कुल विपरीत थी।
कोविड लॉकडाउन के दौरान एक दिन मेरी नजर यूट्यूब पर एक वीडियो पर पड़ी, जिसमें एक पुरोहित ने स्पष्ट तरीके से समझाया कि हमने अपने जीवन में चाहे कितने भी पाप किए हों, हम ईश्वर के साथ फिर से जुड़ सकते हैं क्योंकि उनके पुत्र ने इसकी कीमत चुकाई है। ईश्वर के पुत्र येशु मसीह मानव बन गये, हमारे बीच रहे, हमसे प्यार किया, हमें ठीक किया, पापों को क्षमा किया, क्रूस पर मरे और मृतकों में से फिर से जी उठे, और अब समय के अंत तक हमारे साथ रहते हैं।
सुसमाचार को जानने के बाद मेरा जीवन बदल गया। मुझे पता चला कि येशु मुझे जानते हैं और एक हिंदू होने के बावजूद वे मुझसे प्यार करेंगे। पहले, मैंने येशु को उन कई देवताओं में से एक समझा था जिनकी लोग पूजा करते थे, लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि सच्चा ईश्वर कौन है। जिन हिंदू देवताओं को मैं जानती थी उनमें से किसी ने भी मेरे पापों के कारण दुःख नहीं सहा और अपने प्राण नहीं दिए। मेरा हृदय येशु के प्रति प्रेम से भर गया और उस दिन से मैं स्वयं को येशु मसीह का अनुयायी मानने लगी।
खुशी के आंसू
पवित्र आत्मा ने मुझे येशु के बारे में और अधिक जानने के लिए मार्गदर्शन किया। मैंने एक बाइबिल खरीदी और उसे पढ़ना शुरू कर दिया। मैं येशु के प्रति बड़े सम्मान, आदर और प्रेम से भर गयी। पहले, ईश्वर के साथ मेरा रिश्ता लेन-देन का था। ईश्वर मुझसे वैसे ही प्यार करता है जैसे मैं हूं, यह सच्चाई मेरे लिए एक अनजान अवधारणा थी।
मुझे पता चला कि येशु हर दिन मुझसे बात करना चाहते हैं और मेरे साथ व्यक्तिगत संबंध निभाना चाहते हैं। मेरे पापी होने के बावजूद वे मुझसे प्रेम करते हैं। वे मेरे सभी पापों को माफ करने और मुझे प्यार से अपनी बाहों में स्वीकार करने को तैयार हैं। मैं उनके प्यार के लायक नहीं थी, लेकिन फिर भी वे मुझसे प्यार करते थे। आज, येशु के साथ मेरा व्यक्तिगत संबंध मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है।
जब मैं उनके साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित करने की इस यात्रा पर थी, तो मुझे एक सपना आया जिसमें मैंने भूरा-लाल लबादा पहने एक आदमी को मेरे सामने सड़क पर चलते हुए देखा। सड़क दोनों ओर राक्षसों से घिरी हुई थी। राक्षस मुझे नुकसान पहुंचाना चाहते थे और भयानक आवाजें निकाल रहे थे। हालाँकि, जो आदमी मेरे आगे चल रहा था, उसकी वजह से इन प्राणियों ने अपनी शक्ति खोनी शुरू कर दी। चूँकि वह इतना शक्तिशाली था, वे मुझे डरा नहीं सकते थे या मुझे चोट नहीं पहुँचा सकते थे। मैं उसकी उपस्थिति में संरक्षित और सुरक्षित महसूस कर रही थी।
मुझे समझ नहीं आया कि सपना किस चीज़ के बारे में था। लेकिन बहुत दिनों बाद, मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की मेरी परिचित एक साध्वी ने मुझे सपने की व्याख्या करने में मदद की। मेरे आगे चलने वाला व्यक्ति येशु था। वह अपने प्रति मेरे विश्वास को मजबूत करने और मुझे शैतान से बचाने के लिए मेरे पास आये। यह महसूस करने के बाद कि सूर्य, चंद्रमा और सितारों का निर्माता मुझे जानता है और मेरी परवाह करता है, मैं खुशी के आँसू बहाती हुई रो पड़ी।
मुझे कैथलिक धर्म में परिवर्तित होने में दो साल लग गए, लेकिन जब ईश्वर कोई दरवाजा खोलता है, तो कोई भी व्यक्ति उसे बंद नहीं कर सकता। पवित्र आत्मा ने मेरे कैथलिक धर्म के रास्ते पर पुरुषों और महिलाओं के वेश में स्वर्गदूतों को रखा। 25 जून, 2022 को मैंने बपतिस्मा, परम प्रसाद और दृढ़ीकरण के संस्कार ग्रहण किये। आज, मैं लोगों को बताती हूँ कि येशु ने क्रूस पर उन सब के लिए क्या किया। मैं जिस भी व्यक्ति से मिलती हूँ उसमें मसीह को देखती हूँ। मैं जहां भी संभव हो सुसमाचार का आनंद साझा करना जारी रखना चाहती हूं।
'संत जनुवारियुस (या संत गेनारो, जैसा कि वे अपने देश इटली में जाने जाते हैं) का जन्म दूसरी शताब्दी में नेपल्स में एक धनी और कुलीन परिवार में हुआ था। उन्हें पंद्रह वर्ष की उल्लेखनीय आयु में पुरोहित नियुक्त किया गया था। बीस वर्ष की आयु में, वे नेपल्स के बिशप बने थे। सम्राट डायोक्लेशियन द्वारा शुरू किए गए मसीही उत्पीड़न के दौरान, जनुवारियुस ने अपने पूर्व सहपाठी सोसियुस सहित कई ईसाइयों को छुपाया, बाद में सोसियुस संत बन गए। सोसियुस को एक ईसाई के रूप में उजागर किया गया और उन्हें कैद कर लिया गया। जब जनुवारियुस सोसियुस से जेल में मिलने गए तो उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। कहानियाँ अलग-अलग हैं कि क्या उन्हें और उनके साथी ईसाइयों को जंगली जानवरों के सामने फेंक दिया गया था (जिन्होंने उन पर हमला करने से इनकार कर दिया था), या उन्हें भट्टी में फेंक दिया गया था जहाँ से वे सुरक्षित निकल आए।
लेकिन सभी कहानियाँ इस बात से सहमत हैं कि अंततः जनुवारियुस का सिर वर्ष 305 ई. के आसपास काट दिया गया था और यहीं से कहानी बहुत दिलचस्प मोड़ लेती है। धर्मपरायण अनुयायियों ने उनका कुछ रक्त कांच की शीशियों में इकट्ठा किया और इसे पवित्र अवशेष के रूप में संरक्षित किया। वह रक्त, जो आज तक सुरक्षित रखा गया है, उल्लेखनीय गुण प्रदर्शित करता है। जमा हुआ रक्त द्रवित हो जाने का बड़ा चमत्कार, सन 1389 से लेकर आज तक, प्रत्येक वर्ष तीन अवसरों पर होता आ रहा है।
कांच की शीशियों में संग्रहित, बोतल के एक तरफ चिपका हुआ सूखा गहरा लाल रक्त चमत्कारिक ढंग से तरल में बदल जाता है जो बोतल को एक तरफ से दूसरी तरफ भर देता है। यह चमत्कार संत जनुवारियुस के पर्व के दिन, 19 सितंबर के अलावा, उस दिन भी होता है जो 1631 में माउंट वेसुवियस के ज्वालामुखी विस्फोट के प्रभाव से नेपल्स को बचाए जाने की सालगिरह है, जब उनके पवित्र अवशेषों को नेपल्स ले जाया गया था।
ठोस रक्त कैसे तरल हो सकता है, इस पर कई वैज्ञानिक जांचों ने यह समझाने की कोशिश की है और उसमें असफल भी हुए। और इसमें किसी भी प्रकार की चालबाज़ी या बेईमानी नहीं सम्मिलित है। “चमत्कार हुआ, महान चमत्कार! ” ऐसे हर्षित नारे नेपल्स महागिरजाघर में गूंजने लगते हैं जब संत के रक्त के अवशेष को रखे हुए मंजूषा को श्रद्धालु चूमते हैं। इस उल्लेखनीय संत के रूप में और चमत्कार के रूप में ईश्वर ने कलीसिया को कितना अद्भुत उपहार दिया है, जो हर साल हमें याद दिलाता है कि कैसे जनुवारियुस और कई अन्य लोगों ने अपने प्रभु के लिए अपना खून बहाया। जैसा कि तेर्तुलियन ने कहा है, “शहीदों का खून कलीसिया का बीज है।”
'गैर-मौखिक स्वलीनता या आटिज्म के साथ जन्मे और आँख की रोशनी धीरे धीरे समाप्त कर देने वाली रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा बीमारी से पीड़ित होने के कारण, वह निराशा के एक खामोश पिंजरे में फंसा हुआ महसूस करता था। वह संवाद करने में अक्षम था और बड़ी मुश्किल से देख पाता था .. ऐसे में कोलम का जीवन कैसे गुज़रता रहा होगा? लेकिन उस केलिए परमेश्वर की योजना कुछ और ही थी…
मेरा नाम कोलम है, लेकिन अपने 24 वर्षों के जीवन दौरान, मैं कभी भी अपना नाम नहीं बोला हूँ, क्योंकि मैं जन्म से ही बोल नहीं पाता हूँ। मेरे बचपन से यह पाया गया कि मैं स्वलीनता (आटिज्म) और सीखने की अक्षमता से पीड़ित हूँ। मेरी जिंदगी बहुत उबाऊ थी। मेरे माता-पिता ने मेरे शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी, अन्य स्वलिन्तिक बच्चों के माता-पिता के साथ एक स्कूल की स्थापना की और इसे जारी रखने के लिए धन संचय हेतु संघर्ष किया। चूँकि मैं संवाद नहीं कर सकता था, इसलिए उन्हें नहीं पता था कि मेरा मस्तिष्क क्या करने में सक्षम है, और मुझे अध्ययन की सारी सामग्री नीरस लगी। लोगों को लगा कि मैं घर पर डी.वी.डी. देखकर ज्यादा खुश हूं। मैं 8 साल का होने के बाद कभी भी छुट्टी मनाने बाहर नहीं गया। मुझे विश्वास नहीं था कि मैं निराशा और हताशा के अपने इस ख़ामोशी के पिंजरे से कभी मुक्त हो पाऊंगा।
दूसरों को जीते हुए देखने का दुःख
मुझे हमेशा लगता था कि येशु मेरे करीब हैं। मेरे शुरुआती दिनों से, वे मेरे सबसे करीबी दोस्त बन गए और आज भी वैसे ही हैं। मेरे सबसे अंधकारमय क्षणों में, वे मुझे आशा और आराम देने के लिए मेरे साथ मौजूद थे। दूसरों द्वारा अपने लिए शिशु समान हमदर्दी पाना ही बहुत थका देने वाला काम था जब कि मै अंदर से बुद्धिमान था। मेरा जीवन असहनीय लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं एक दर्शक के रूप में आधा-अधूरा जीवन जी रहा हूं, दूसरों को जीवन जीते हुए देख रहा हूं, जबकि मुझे जीवन की पूर्णता से बाहर रखा गया है। मैंने कितनी बार यह चाहा कि मैं भी उनकी गतिविधियों में भाग ले सकूं और अपनी असली क्षमता दिखा सकूं।
जब मैं 13 वर्ष का था, तब मेरी दृष्टि कमजोर हो रही थी, इसलिए मुझे इलेक्ट्रो रेटिनोग्राम (ई.आर.जी.) नामक नेत्र परीक्षण के लिए टेम्पल स्ट्रीट चिल्ड्रेन हॉस्पिटल ले जाया गया। परमेश्वर ने मुझे एक और चुनौती दी थी। मुझे रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा (आर.पी.) का पता चला था, ऐसी स्थिति जहां आंख के पीछे रेटिना की कोशिकाएं मर जाती हैं और उन्हें प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है, इसलिए दृष्टि धीरे-धीरे ख़त्म हो जाती है। इसे ठीक करने का कोई चिकित्सकीय इलाज नहीं है। मैं बरबाद हो गया था। यह मेरे लिए बहुत भयानक आघात था और मैं दुःख से अभिभूत हो गया। कुछ समय के लिए, मेरी दृष्टि स्थिर हो गई, जिससे मुझे आशा हुई कि मैं कुछ दृष्टि बनाए रख पाऊंगा, लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, मेरी दृष्टि और भी बदतर होती गई। मैं इतना अंधा हो गया कि अब मैं अलग-अलग रंगों के बीच अंतर नहीं बता पा रहा था। मेरा भविष्य अंधकारमय दिख रहा था| मैं संवाद नहीं कर सकता था, और अब मैं मुश्किल से देख पा रहा था।
समावेशन और दूसरों के साथ संवाद के अभाव में मेरा जीवन और भी धूसर निराशा में आगे सरकता रहा। मेरी माँ को अब विश्वास हो गया कि जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो मुझे किसी संस्था में भर्ती करना होगा। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं पागलपन की कगार पर लड़खड़ा रहा था। मेरे और पागलपन के बीच केवल परमेश्वर खड़ा था। प्रभु येशु का प्रेम ही मुझे स्वस्थ रखता था। मेरे परिवार को मेरे संघर्ष के बारे में कुछ भी नहीं पता था, क्योंकि मैं उनसे बात नहीं कर सकता था, लेकिन मेरे दिल में, मुझे लगता था कि येशु मुझसे कह रहे हैं कि मैं जल्द ही ठीक हो जाऊंगा।
मेरे अंदर का भंवर
अप्रैल 2014 में कुछ अद्भुत घटित हुआ। मेरी मां मुझे मेरी पहली आर.पी.एम. (रैपिड प्रॉम्प्ट मेथड) कार्यशाला में ले गईं। मैं शायद ही उस पर विश्वास कर पाया था। अंततः मैं किसी ऐसे व्यक्ति से मिला जो मुझ पर विश्वास करता था, जिसे विश्वास था कि मैं संवाद कर सकता हूँ, और जो मुझे यह सीखने में और कड़ी मेहनत करने में मदद करेगा। क्या आप मेरी ख़ुशी की कल्पना कर सकते हैं? एक पल के लिए, मेरे दिल में आशा उमड़ पडी – हाँ आशा, डर नहीं, इसकी आशा कि मेरा असली व्यक्तित्व सामने आ सकता है। आख़िरकार मदद आ ही गई। यह सोचकर मेरे अंदर खुशी का संचार हो गया कि अन्ततोगत्वा किसी ने मेरी क्षमता को देख लिया था । इस प्रकार मेरे जीवन को बदलने वाली यात्रा शुरू हुई।
शुरुआत में यह बहुत कठिन काम था, हर वर्तनी के सटीक उच्चारण में सक्षम होने के लिए, मोटर मेमोरी हासिल करने के लिए कई हफ्तों का अभ्यास करना पड़ा। यह हर मिनट में फायेदेमंद था| जैसे ही मुझे आख़िरकार अपनी आवाज़ मिली, मेरी आज़ादी की भावनाएँ बढ़ने लगीं। जैसे ही परमेश्वर ने मेरी कहानी में यह नया अध्याय शुरू किया, ऐसा लगा जैसे मेरा जीवन आखिरकार शुरू हो गया है। आख़िरकार, मैं अपने परिवार को बता सका कि मैं कैसा महसूस कर रहा था और मैं परमेश्वर के प्रति बहुत आभारी महसूस कर रहा था।
लात मार और काट
चलिए, मई 2017 की ओर। मेरी दादी ने हमें बताया कि कुछ साल पहले उन्होंने संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के बारे में एक बहुत ही अद्भुत सपना देखा था। सपने में, व पोप जॉन पॉल से अपने पोते-पोतियों के लिए प्रार्थना करने के लिए कह रहीं थीं और यह इतना अद्भुत था कि उन्होंने इसे एक कॉपी में लिख लिया। बाद में वह इसके बारे में भूल चुकी थीं, बहुत दिनों बाद कॉपी मिलने पर उन्होंने मेरे और मेरे भाई-बहनों को संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के प्रति एक नव रोज़ी प्रार्थना शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने लोगों के एक समूह से, सोमवार, 22 मई से शुरू होने वाली नोवेना प्रार्थना, हमारे साथ करने के लिए कहा। मंगलवार, 23 तारीख को सुबह लगभग 9 बजे, मैं रसोई के बाहर अपने कमरे में एक डी.वी.डी. देख रहा था। पिताजी काम पर गए थे और माँ रसोई में सफ़ाई कर रहीं थीं ।
अचानक, हमारे घर का कुत्ता बेली, मेरे कमरे के दरवाजे पर भौंकने लगा। उसने पहले कभी ऐसा कुछ नहीं किया था, इसलिए माँ को लगा कि कुछ गड़बड़ है। वह दौड़कर अंदर आई और मुझे दौरे की हालत में पाया। यह उनके लिए बहुत डरावना था| मैं इधर-उधर हाथ-पैर मार रहा था और मैंने अपनी जीभ काट ली थी इसलिए मेरे चेहरे पर खून लग गया था। अपनी परेशानी में माँ को ऐसा लगा जैसे कोई कह रहा हो, “बस भरोसा करो। कभी-कभी चीज़ें बेहतर होने के लिए ही ख़राब हो जाती हैं।”
माँ ने पिताजी को फोन किया, और उन्होंने घर आने का वादा किया। उन्होंने माँ से मेरा एक वीडियो लेने के लिए कहा जो अस्पताल पहुंचने पर बहुत उपयोगी बन गया था। जब झटके बंद हो गए तो मैं दो मिनट से अधिक समय तक बेहोश पड़ा रहा। इस कठिन परीक्षा के दौरान मैं होश खो बैठा था और मुझे इसके बारे में कुछ भी याद नहीं था, लेकिन माँ मेरे लिए प्रार्थना कर रहीं थीं और मेरी सुरक्षा के लिए मेरी देखभाल और निगरानी कर रहीं थीं ।
रोशनी का एक क्षण
जब मुझे होश आया और लड़खड़ाते हुए अपने पैरों पर खड़ा हुआ, तो मैं बहुत अस्थिर था। माँ और पिताजी ने मुझे अस्पताल (यू.सी.एच.जी.) तक ले जाने के लिए कार में बिठाया। अस्पताल में डॉक्टरों ने मेरी जांच की और आगे की जांच के लिए मुझे भर्ती कर लिया। कर्मचारी मुझे एक्यूट मेडिकल वार्ड में ले जाने के लिए व्हीलचेयर के साथ आया। जब मुझे गलियारे में घुमाया जा रहा था, अचानक मेरी दृष्टि में एक बहुत ही आकस्मिक सुधार हुआ।
उस पल की अपनी भावनाओं का वर्णन मै कैसे कर सकता हूँ ? मैं अपने आस-पास के दृश्यों की सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गया। सब कुछ बहुत अलग और स्पष्ट दिख रहा था। यह अद्भुत था! यह बताना असंभव है कि रोशनी के उस क्षण में मुझे कैसा महसूस हुआ। मैं रंग और आकार की दुनिया में लौटने पर अपने आश्चर्य की सीमा को व्यक्त नहीं कर सकता था। यह मेरे जीवन का अब तक का सबसे अच्छा पल था!
जब माँ ने मुझसे पूछा कि क्या मुझे कुछ कहना है तो मैंने कहा, “मेरी आँखें बेहतर हैं।” माँ आश्चर्यचकित थीं। उन्होंने पूछा कि क्या मैं अपने कक्ष के बाहर मशीन पर स्टिकर देख सकता हूँ। मैने कहा हाँ। “उन्होंने पूछा कि क्या मैं पढ़ सकता हूँ कि स्टिकर के ऊपर क्या लिखा है। मैंने कह दिया, “मैं साफ़ साफ़ देख और पढ़ रहा हूँ।” वह इतनी चकित थी कि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या सोचे या कैसी प्रतिक्रिया दे। मैं स्वयं नहीं जानता था कि उस क्षण मुझे कैसा महसूस हो रहां था !
जब पिताजी और मेरी बुआ अंदर आए, तो माँ ने उन्हें बताया कि क्या क्या हुआ था। पिताजी ने कहा, “हमें इसकी जांच करनी होगी”। वे मेरे बिस्तर के आगे पर्दे के पास गये और चॉकलेट का एक छोटा बैग उठाया। बैग पर जो लिखा था, उसे मैंने बता दिया। फिर थोड़ी देर के लिए यह तीव्र आग का दौर था क्योंकि वे मुझे अगले कुछ मिनटों में बहुत सारे शब्द बोलते रहे जिनको मुझे लिखना था। मुझे सभी शब्दों की वर्तनी सही से मिलने लगी थी। मेरी चाची और माता-पिता आश्चर्यचकित थे।
यह कैसे संभव हुआ? एक अंधा आदमी सभी शब्द सही-सही कैसे लिख सकता है? यह चिकित्सकीय दृष्टि से असंभव था। रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा में कोई भी चिकित्सकीय उपचार मदद नहीं कर सकता है। आयुर्विज्ञान में इसका कोई इलाज नहीं है| अवश्य ईश्वर ने संत जॉन पॉल द्वितीय की मध्यस्थता के माध्यम से चमत्कारिक ढंग से मुझे ठीक किया था। इसे किसी अन्य तरीके से नहीं समझाया जा सकता| मैं अपनी दृष्टि बहाल करने के लिए परमेश्वर का बहुत आभारी हूं। यह सच्ची ईश्वरीय दया का कार्य है। अब मैं बोलने के स्वतंत्र संचार के लिए एक की-बोर्ड का उपयोग करने में सक्षम हूं जो बहुत तेज़ है।
मेरी प्रार्थनामई माँ
मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैंने अपने विश्वास को कैसे बनाए रखा। जब कभी मुझे निराशा महसूस हुई तब तब मुझे कई बार संदेह भी हुआ। यह केवल येशु ही थे जिन्होंने मुझे स्वस्थ रखा। मुझे अपना विश्वास अपनी माँ से मिला था। उनका विश्वास बहुत मजबूत है। जब समय कठिन था तब उन्होंने मुझे आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया। अब मुझे पता है कि हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया गया है। मुझे अपनी आंखों की रोशनी वापस पाने की आदत डालने में थोड़ा समय लगा। मेरे मस्तिष्क और शरीर का वियोग बहुत अधिक था और मेरा मस्तिष्क कार्यात्मक तरीके से दृष्टि का उपयोग करने के लिए तैयार नहीं था। चारों ओर दृष्टि डालना और देखना ठीक था, लेकिन मेरे मस्तिष्क को मेरी दृष्टि से जानकारी का उपयोग करने में कठिनाई हो रही थी। उदाहरण के लिए, हालाँकि मैं देख सकता था, फिर भी मुझे यह पहचानने में कठिनाई हो रही थी कि मैं क्या ढूँढ रहा था। कभी-कभी मैं लड़खड़ाकर निराश हो जाता था क्योंकि दृष्टि होने के बावजूद मैं नहीं देख पाता था कि मैं कहाँ जा रहा हूँ।
सितंबर में, मैं जांच के लिए वापस अस्पताल गया। मेरी दृष्टि और रंग पहचान के लिए मुझे 20:20 स्कोर मिला था, इसका मतलब मेरी दृष्टि अब सामान्य है। हालाँकि, रेटिना की तस्वीर अभी भी अध:पतन दिखाती है। इसमें सुधार नहीं हुआ था। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मेरे लिए स्पष्ट देखना असंभव है। इसका मतलब मुझे अभी भी एक धुंधली, धूसर दुनिया में फंसा रहना चाहिए। लेकिन परमेश्वर ने अपनी दया से मुझे उस नीरस पिंजरे से मुक्त कर दिया और मुझे रंग और रोशनी की एक खूबसूरत दुनिया में पहुंचा दिया। डॉक्टर हैरान थे| वे अभी भी चकित हैं, लेकिन मैं खुश हूं क्योंकि मैं अभी स्पष्ट देख सकता हूं।
अब, मैं कई काम पहले से बेहतर कर सकता हूं। अब मैं माँ को बातें बहुत तेजी से बता सकता हूँ क्योंकि मैं लेमिनेटेड वर्णमाला शीट का उपयोग कर सकता हूँ। यह स्टेंसिल की तुलना में बहुत तेज़ है। मैं अपनी प्रतिभाशाली मां का बहुत आभारी हूं क्योंकि कठिनाइयों के बावजूद उसने मेरी शिक्षा को जारी रखा और मेरे उपचार के लिए इतनी ईमानदारी से वह प्रार्थना करती रही।
सुसमाचारों में, हम येशु द्वारा कई अंधों की दृष्टि बहाल करने के बारे में सुनते हैं, वैसे ही येशु ने मेरी दृष्टि बहाल की। इस आधुनिक समय में बहुत से लोग चमत्कारों के बारे में भूल गए हैं। वे उपहास करते हैं और सोचते हैं कि विज्ञान के पास सभी जवाब हैं। ईश्वर उनकी सोच और विचारों से बाहर हो गया है। जब मेरी चंगाई जैसा कोई चमत्कार होता है, तो वह प्रकट करता है कि वह अभी भी जीवित और शक्तिशाली है। मुझे आशा है कि चमत्कार की मेरी यह कहानी आपको आप से बेहद प्यार करनेवाले उस ईश्वर के प्रति अपना हृदय खोलने के लिए प्रेरित करेगी। दयालु पिता आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा है।
'स्वतंत्र कलाकार, होली रोड्रिगेज़ अपने पूरे जीवन में नास्तिक रहीं और वे कभी भी ईश्वर के बारे में नहीं सोचती थी या किसी धर्म में शामिल होने या यहां तक कि चर्च जाने के बारे में भी नहीं सोचती थी, लेकिन एक दिन …
वह 2016 के दिसंबर का महीना था, मैं सर्दियों की एक सुबह उठी और बस एक कप कॉफी से ज्यादा मैं कुछ नहीं चाह रही थी । मैं अपने जीवन भर नास्तिक थी। मैंने कभी भी परमेश्वर के बारे में नहीं सोचा था और निश्चित रूप से कभी किसी धर्म में शामिल होने या गिरजाघर जाने के बारे में भी नहीं। हालाँकि उस दिन, बिना किसी कारण के, मुझे अचानक गिरजाघर जाने की इच्छा हुई। मेरे जीवन में ऐसा कुछ भी असामान्य नहीं हो रहा था जिससे अचानक मेरा हृदय परिवर्तन हुआ हो। मैं इंग्लैंड के केंट में एक छोटे से समुद्र तटीय शहर में एक स्वतंत्र कलाकार के रूप में काफी सामान्य, शांत जीवन जी रही थी।
मैंने निकटतम गिरजाघर की खोज की जो उस दिन खुला था और कुछ कदमों की दूरी पर मुझे एक रोमन कैथलिक गिरजाघर मिला। यह एक आश्चर्य था। हालाँकि मैं उस क्षेत्र से कई बार गुज़री थी, पर मैंने पहले वहाँ कभी गिरजाघर नहीं देखा था। जब हम बंद हृदय से जीवन के पथ पर चलते हैं तो यह आश्चर्यजनक है कि हम परमेश्वर की उपस्थिति के प्रति कितने अंधे हैं, जबकि वह हमारे कितने निकट है।
मेरा फोन बज उठा
मैंने गिरजाघर के नंबर पर फोन किया और एक दयालु महिला ने फोन उठाया। उसने खुद को पल्ली के सचिव के रूप में पेश किया और मैंने उनसे कुछ सवाल पूछे, जिसका जवाब देने में उन्होंने खुशी प्रकट की। उन्होंने मुझे बताया कि वह कैथलिक गिरजाघर है और वे वहां के फादर को बतायेंगी कि मैंने फोन किया था और हमने एक दुसरे को अलविदा कहा । मैं शर्मीली थी और मुझे नहीं पता था कि क्या उम्मीद की जाए। मैं हमेशा निर्णय लेने से पहले स्थिति के बारे में सबकुछ जानना पसंद करती हूँ। मुझे नहीं पता था कि कैथलिक कलीसिया क्या होती है, और मैं अपने जीवन में कभी किसी फादर से नहीं मिली थी। मैंने काम से छुट्टी लेने और कैथलिक धर्म के बारे में जानने का फैसला किया, और कुछ घंटों के लिए विकिपीडिया पर कैथलिक धर्म के बारे में बहुत कुछ पढ़ा।
फिर मेरा फोन बजा। दूसरी लाइन पर एक सौम्य आवाज थी – जिसपर मार्क नामक एक फादर मुझसे बात कर रहे थे। वे बहुत ही मिलनसार और उत्साही थे जो मेरे लिए बहुत बड़ा आश्चर्य था। मैं अपने जीवन में कभी ऐसे किसी व्यक्ति से नहीं मिली थी जो मुझसे मिलने और मेरा स्वागत करने के लिए इतना उत्सुक हो। मैंने अगले दिन गिरजाघर जाकर फादर से मिलने का समय निर्धारित किया। जैसे ही मैं वहां पहुंची, फादर मार्क अपने पुरोहित वाले पोशाक में मेरा अभिवादन करने के लिए वहाँ खड़े थे। यह पहली बार था जब मैंने किसी पुरोहित को व्यक्तिगत रूप से देखा था और मुझे याद है कि मैं वास्तव में उनके पोशाक से मोहित हो गयी थी। मुझे लगता है कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक पुरोहित कैसा दिखता होगा। मैंने कभी-कभी पोप को केवल टेलीविजन समाचारों पर संक्षिप्त रूप से देखा था, लेकिन इससे आगे कभी कुछ नहीं देखा था।
फादर मार्क मेरे साथ बैठे और हमने कुछ घंटों तक बात की, फिर उन्होंने मुझे “आर.सी.आई.ए” कक्षाओं में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि उसी समय से पवित्र मिस्सा में जाना शुरू करना अच्छा विचार होगा, और मैंने वैसा ही किया। मैं उस पहले पवित्र मिस्सा को याद करती हूं जिसमें मैंने भाग लिया था। वह गौदेते यानी आनंद का रविवार था और मैं, शिष्टाचार से एकदम अनजान, बिल्कुल सामने के बेंच पर बैठी थी। मेरे आस-पास हर कोई खड़ा हो रहा था और फिर बैठ रहा था और फिर खड़ा हो रहा था और कभी-कभी घुटने टेककर, धर्मसार और अन्य प्रार्थनाओं का पाठ कर रहा था। मैं नयी थी और मुझे यह थोड़ा डराने वाला लगा, लेकिन आकर्षक और पेचीदा भी। मैंने अपनी क्षमता के अनुसार उसका अनुसरण किया, जो बाकी सभी कर रहे थे। पुरोहित एक सुंदर गुलाबी वस्त्र पहना हुआ था जो बहुत अलंकृत और शोभित लग रहा था। उनको वेदी पर प्रार्थनायें बोलते हुए मैं ने सुना और मैं ने देखा कि सुंगंधित धूप की धुआँ गिरजाघर में भर गयी। अंग्रेजी भाषा में अर्पित किया गया वह मिस्सा बलिदान मुझे बहुत अच्छा लगा और मुझे पक्का मालूम कि मैं इसी जगह वापस आनी वाली हूँ।
सीधे दिल की ओर
मुझे यह इतना पसंद आया कि मैं हर सप्ताहांत गिरजाघर वापस जाती रही और बाद में प्रति दिन ख्रीस्तयाग में भाग लेने लगी। येशु के लिए मेरा प्यार हर मुलाकात में बढ़ता गया। मेरे पहले क्रिसमस जागरण मिस्सा के दौरान, पुरोहित ने अपने रेशमी वस्त्र से बालक येशु की प्रतिमा को उसी तरह की कोमलता से लिपट कर संभाले हुए थे, जिस तरह पुरोहित पवित्र संस्कार को पकड़ते हैं। गीतों और प्रार्थनाओं के साथ वे जुलूस में गिरजाघर की परिक्रमा करते हुए बालक येशु के साथ चरनी की ओर चले, और मेरी आंखें नम हो गईं थीं । वह सब बहुत प्यारा था। मैंने अपने जीवन में पहले कभी ऐसा कुछ नहीं देखा था।
अब मैं कैथलिक कलीसिया में स्वीकार किए जाने के लिए तैयारी कर रही थी, मैंने पल्ली के पुरोहितों द्वारा दी गई धर्मशिक्षा को घर पर पढ़ने में बहुत समय बिताया। विशेष रूप से मेरे बपतिस्मा से एक हफ्ते पहले मुझे बताया गया था कि मुझे अपने दृढ़ीकरण संस्कार के लिए किसी एक स्वर्गिक संरक्षक संत को चुनना होगा। हालाँकि, वहाँ हजारों संत थे, और मुझे नहीं पता था कि मैं उन सभी में से किसे चुनूँगी। संत फिलोमेना के अलावा मैं अन्य संतों के बारे में कुछ नहीं जानती थी क्योंकि एक रविवार को फादर ने उनपर प्रवचन दिया था। परमेश्वर की कृपा से जब मैं पैरिश कैफे में स्वयंसेवा कर रही थी तो मुझे एक आकर्षक पुस्तक मिली जिसका नाम था “इंटीरियर कैसल्स”। वह पुस्तक एक स्पैनिश कार्मेल मठवासिनी साध्वी, अविला की संत तेरेसा द्वारा लिखी गयी थी जिसके बारे में मैंने पहले कभी नहीं सुना था। चूंकि मेरा परिवार स्पेनिश विरासत का है, इसलिए मैंने उसे अपनी संरक्षिका के रूप में चुना, हालांकि मैं उसके बारे में ज्यादा नहीं जानती थी।
अंत में, 15 अप्रैल 2017 को पास्का जागरण मिस्सा के दौरान, मुझे कैथलिक गिरजाघर में बपतिस्मा और दृढ़ीकरण संस्कार मिला। मैं इस बात से ज्यादा उत्साहित नहीं थी की पास्का रविवार को मुख्य मिस्सा में गायक मंडली के साथ गाने के लिए मैं सुबह तरोताजा थी और जल्दी उठ गयी थी। लेकिन मैं इतनी उत्साहित इसलिये थी क्यूँकि मैं अब वेदी की रेलिंग पर खड़ी होकर पवित्र संस्कार ग्रहण कर सकती थी। इसके तुरंत बाद, मैं मरियम की सेना में शामिल हो गयी और मैंने रोज़री माला विनती करना, रोज़री बनाना और शहर के चारों ओर मिशन का काम करना शुरू कर दिया ताकि बिछुड़ गए कैथलिकों को पवित्र मिस्सा में वापस लाया जा सके और घर पर लोगों के साथ रोज़री माला विनती की जा सके।
संत तेरेसा मेरे जीवन में मार्गदर्शक बनी रहीं, जो मुझे येशु से अधिक से अधिक प्यार करना सिखाती रहीं| लेकिन मुझे कार्मेल मठवासियों के बारे में जानकारी तभी मिली जब मैं आयल्सफोर्ड प्रियोरी में संत साइमन स्टॉक के धर्मस्थल के लिए एक दिन की तीर्थयात्रा पर हमारी पल्ली के लोगों के साथ शामिल हुई| वह कार्मेल मठवासियों का ऐतिहासिक मठ था।
आमूलचूल बदलाव
वर्षों बाद, मुझे एक अन्य स्पेनवासी, संत जोसेमरिया एस्क्रिवा के बारे में पता चला, जिन्हें अविला की संत तेरेसा और कार्मेल के मठवासियों से बहुत प्यार था। वे ‘ओपुस देई’ नामक कैथलिक संस्था के संस्थापक थे, जिसमें मैं एक सह-संचालक के रूप में शामिल हुई, और जिसमें मेरा दायित्व संस्था के सदस्यों और पुरोहितों के लिए प्रार्थना करना था। मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मुझे एक गहरी प्रतिबद्धता के लिए बुला रहा है, लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि वह प्रतिबद्धता ओपुस देई के साथ थी, या किसी धर्मसंघ में साध्वी के रूप में। एक पुरोहित मित्र ने मुझे बताया कि मुझे अपना मन बनाना होगा और फैसला करना होगा कि मुझे कौन सा रास्ता चुनना है, जिससे मैं हमेशा के लिए किसी भी अनिश्चितता में न रहूँ। उनका कहना सही था, इसलिए मैं परमेश्वर की पुकार सुनकर प्रार्थना और उपवास करने लगी। मेरा जीवन बहुत कम समय में बहुत सारे परिवर्तनों से गुजरा था और मेरी आत्मा ने एक अंधेरी रात को सहा था।
मेरा क्रूस मुझे बहुत भारी लग रहा था, लेकिन मैं जानती थी कि अगर मैं अपने विश्वास में दृढ़ बनी रही, तो सब ठीक हो जाएगा। मुझे अपने ऊपर मेरे द्वारा पूर्ण नियंत्रण को छोड़ देना था, मुझे मार्ग दिखाने केलिए परमेश्वर को मौक़ा देना था और उसकी इच्छा के विरुद्ध लड़ना बंद करना था। मैं अपने अहंकार में बहुत फंस गयी थी और वास्तव में अब परमेश्वर को सुनने की इच्छा मेरे अन्दर है। जब इस समझदारी का प्रकाश उदय हुआ, तब मैंने फैसला किया कि हर दिन जो परमेश्वर की ओर से एक उपहार के रूप में आता है, उसे अच्छे से जी लूंगी, और इस केलिए उससे मार्गदर्शन मांगूंगी। मैंने इस दर्शन को अपनाया कि ईश्वर हमें वहीं रखता है जहाँ हमारा प्रचुर जीवन है क्योंकि उस विशिष्ट समय में उसे हमारी आवश्यकता होती है। मैंने स्वयं को उसकी दिव्य इच्छा का साधन बना लिया। जब मैंने अपने आप को उसके लिए छोड़ दिया, तो परमेश्वर ने मुझे दिखाया कि सब कुछ उसकी इच्छा के अनुकूल हुआ था क्योंकि वह मुझे शुरू से ही बुला रहा था।
हे दिव्य ज्योति, मेरा पथ प्रदर्शन कर!
मुझे उन संतों से उपहार मिलते रहे जो मुझे कार्मेल तक ले जा रहे थे। एक दिन, मैं सीमेंट के फर्श पर उगते हुए चमकीले लाल गुलाब के फूल को देखकर मंत्रमुग्ध हो गयी। बाद में मुझे पता चला कि वह दिन लिस्यु के संत तेरेसा का जन्मदिन था जिन्होंने कहा था कि वह लोगों को स्वर्ग से एक संकेत के रूप में गुलाब भेजेंगी। उसी दिन, मैं अगरबत्ती की एक दुकान पर थी, जब मुझे सुंदर गुलाब से सुगंधित अगरबत्ती का एक डिब्बा मिला, जिस पर लिस्यु के संत तेरेसा की छवि छपी थी। इन छोटे संकेतों ने मेरे अन्दर बुलाहट और विश्वास के बीज बोने में मदद की।
जैसे मैं यह लिख रही हूँ, मैं कैथलिक कलीसिया के सदस्य के रूप में अपनी छठवीं वर्षगांठ मनाने वाली हूं और कार्मेल पर्वत की कुँवारी मरियम के पावन उद्यान में प्रवेश करने की तैयारी कर रही हूं। यदि परमेश्वर चाहता है तो साध्वी के रूप में जीने के इस बुलाहट को स्वीकार करते हुए, मैं अपना जीवन कलीसिया के लिए, दुनिया के लिए और पुरोहितों के लिए प्रार्थना करते हुए बिताऊँगी। यह एक लंबी यात्रा रही है, और मैं रास्ते में बहुत से अद्भुत लोगों से मिली हूँ।
लिस्यु के संत तेरेसा ने कार्मेल को अपने उस रेगिस्तान के रूप में वर्णित किया जहां हमारे प्रभु ने मनन चिंतन और प्रार्थना में चालीस दिन बिताए, लेकिन मेरे लिए यह गेथसेमेनी का बाग़ है जहां हमारे प्रभु प्राण-पीड़ा में जैतून के पेड़ों के बीच बैठे थे। मैं निरंकुश प्रेम के साथ उनकी पीड़ा में शामिल होती हूं, और उनके साथ कलवारी के मार्ग पर क्रूस यात्रा करती हूं। हम साथ में आत्माओं के लिए पीड़ित होते हैं और दुनिया को अपना प्यार देते हैं।
'परमेश्वर को “हाँ” कहना आपके जीवन में लिए गए निर्णयों में सबसे अच्छा निर्णय है!
मिस्सा बलिदान के बाद उद्घोषणा करने वाली महिला ने निवेदन किया, “कृपया मदद करें, हमें कनिष्ठ उच्च धार्मिक शिक्षा कार्यक्रम के लिए शिक्षकों की सख्त जरूरत है।” मैंने न सुनने का नाटक किया। हम इलिनोय से एरिज़ोना वापस चले गए थे, और हमारे पांच बच्चों में से सबसे बड़ा लड़का हाई स्कूल में प्रवेश कर रहा था। प्रत्येक रविवार, उसी महिला द्वारा मिस्सा के बाद उसी सरल निवेदन की घोषणा! परमेश्वर शायद सप्ताह दर सप्ताह मुझ में कार्य कर रहा था। मुझे पता था कि मैं धर्म शिक्षा स्कूल की तालिका में अपने पांच बच्चों को जोड़ रही हूं; आखिर, शायद मुझे मदद करनी चाहिए। इसमें शरीक न होने का मेरा संकल्प फीका पड़ गया, और मैंने अपना नाम दर्ज कर लिया।
मैं हमेशा कहा करती थी कि मैं “हाँ” वाले जीन के साथ पैदा हुई हूं। कुछ करने का मुझ में ज़ज्बा हैं, इसलिए जिन संगठनों से मैं जुड़ी हूँ, वे लोग जानते हैं कि मैं अपनी ज़िम्मेदारी निभाने केलिए मीलों की दूरी तय कर सकती हूँ। इसलिए मैं ने “हाँ” कहा। “मैं एक पालना कैथलिक हूँ; बच्चों को पढ़ाना कितना कठिन हो सकता है?” फिर भी मैं तैयार हो गयी।
अगले कुछ वर्षों में, युवाओं के बीच सेवकाई के प्रभारी आते-जाते रहे। सबसे अंतिम युवा सेवक प्रभारी के जाने के बाद, हमारे पल्ली पुरोहित ने मुझसे संपर्क किया और कहा कि आपके साथी स्वयंसेवक शिक्षकों ने आपको युवा सेवक प्रभारी के रूप में पदभार ग्रहण करने की सिफारिश की है। “मुझे?” “हाँ, क्या आप कोशिश करने को तैयार हैं?” फिर से, उस ‘हाँ जीन’ के कारण मैं ने हाँ कह दिया। ईश्वर रहस्यमय तरीके से काम करता है, और कुछ ही हफ्तों के भीतर, मैं धर्मशिक्षा के कनिष्क हाई स्कूल की नई प्रभारी बन गयी थी। मैंने पहले माना था कि कैथलिक कलीसिया के लिए केवल पुरोहित और नन (साध्वी लोग) ही काम कर सकते हैं। मुझे याद है कि पहले मैं सोचा करती थी कि प्रभु की दाखबारी में समान विचारधारा वाले सहकर्मियों के साथ ऐसे पवित्र वातावरण में काम करना कितना शानदार होगा। जल्दी ही वह कल्पना मिट गयी।
अपने नए कार्य क्षेत्र में प्रवेश पाते ही, शीघ्र ही मुझे यह दु:खद अहसास हुआ कि कलीसिया के लिए काम करने वाला व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जिसके पास कठिन सवालों के जवाब हों और धार्मिक ज्ञान हो। उस विचार ने मुझे भयभीत कर दिया। कलीसिया सम्बन्धी मेरी कोई पृष्ठभूमि या शिक्षा नहीं थी। वास्तविकता यह है कि जब विश्वास की बात आती थी तो हर पल यह सोच मुझ पर आक्रमण करती थी कि मैं एक गूंगी की तरह इस कार्य के लिए अयोग्य थी। कैथलिक होने के चालीस वर्षों में अक्सर उद्धृत की जाने वाली उस पंक्ति से मैं अनभिज्ञ थी कि “परमेश्वर जिन्हें बुलाता है, उन्हें वह सुसज्जित करता है”। हालाँकि, यह वही डर था जिसने मुझे काम करने के लिए प्रेरित किया। कॉलेज जाना कोई विकल्प नहीं था। इसका मतलब था कि मुझे रचनात्मक होने की जरूरत है। जब मेरा एक बेटा अपनी किंडरगार्टन कक्षा में था, तब मुझे सिस्टर ग्लोरिया से एक कैसेट मिला था। आठ साल तक मैंने कभी इसे सुनने का समय नहीं निकाला। एक दिन किसी अदृश्य शक्ति ने मुझे इसे सुनने के लिए मजबूर किया। इसे आप “डॉ. स्कॉट हैन की रूपांतरण कहानी” कह सकते हैं। मुझे नहीं पता था कि डॉ. हैन कौन थे, लेकिन एक शांत क्षण में, मैंने उस कैसेट को सुनना शुरू किया। सत्य की खोज में निकले प्रेस्बिटेरियन कलीसिया के इस पादरी की यात्रा आकर्षक थी, और वह यात्रा उन्हें कैथलिक कलीसिया में ले आई।
मुझे और लालसा हुई।
उस दौरान, हमें कैलिफोर्निया में उस गर्मी में होने वाले कैथलिक पारिवारिक सम्मेलन के बारे में सूचना दी गयी थी। मैंने अधिकांश वक्ताओं के नाम कभी नहीं सुना था, लेकिन पता चला कि डॉ. हैन रहेंगे। मेरे पति भी उत्सुक थे, और हम पूरे परिवार को ले आए। विख्यात वक्ता टिम स्टेपल्स, जेसी रोमेरो, स्टीव रे, और कई अन्य धर्मान्तरित वक्ताओं ने हमें प्रेरित किया, हमारे दिलों के अंगारों को हवा दी। हमने धर्म मंडन, विश्वास की रक्षा करने की कला सहित कई विषयों पर किताबें और कैसेट खरीदे। बच्चे उत्साहित थे, और हम भी। एक जुनून भरी आग हमारे अंदर सुलगने लगी थी जो हमारे पास पहले नहीं थी। साल-दर-साल, हम अन्य परिवारों को इस पारिवारिक वार्षिक सम्मेलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते, और वे भी इसी आग से जल उठते।
मुझे युवा सेवक के रूप में प्रमाण पात्र प्राप्त करने की आवश्यकता थी। एक बार फिर, ईश्वर ने मुझे मौका दिया और मैंने फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में संत जॉन बॉस्को ग्रीष्मकालीन सम्मेलन में भाग लिया। यह सब मेरे लिए एक नया रोमांच था। मैंने प्रार्थना, आराधना, पूजा, धर्मशिक्षा और अविश्वसनीय वक्ताओं के माध्यम से कभी भी ईश्वर का इस प्रकार अनुभव प्राप्त नहीं किया था। मेरे अन्दर इन बातों की ऐसी भूख पैदा हुई जिसका मैं ने पहले कभी नहीं अनुभव किया था। मेरे द्वारा खाए गए हर अनमोल निवाला के साथ, मुझे और अधिक खाने की इच्छा हुई। इस ढलती उम्र में मैं परमेश्वर और अपने विश्वास के बारे में इतनी अज्ञानी कैसे हो सकती हूँ?
लोगों की कल्पना के विपरीत, परमेश्वर के प्रति अपने ज्ञान और प्रेम का विस्तार करना उबाऊ नहीं है। यह उत्तेजक और प्रेरक है। ईश्वर के साथ मेरा रिश्ता आखिरकार पोषित किया जा रहा था। मिस्सा बलिदान हमारे लिए जीवंत हो गया। मेरे जीवन के जिन आयामों का मैनें सामना किया उन सब में आनंद और विश्वास की वृद्धि स्पष्ट थी। मेरे उत्साही जुनून ने मेरे जीवन के सभी पहलुओं पर आधिपत्य जमाया, विशेषकर सेवकाई के क्षेत्र में। परमेश्वर ने उदारता से मुझे आशीर्वाद दिया, हाँ, और प्रचुर मात्रा में फल मिले। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, परमेश्वर मुझे अपने और करीब ले जा रहा था, वह मुझे अपने वचन रूपी रोटी के टुकड़े देकर मुझे संपोषित कर रहा था जो मुझे कदम-दर-कदम उसके करीब लाता गया।
इक्कीस साल बाद, मैं अभी भी कैथलिक कलीसिया के लिए काम करती हूं लेकिन अब वैवाहिक तैयारी का प्रशिक्षण चलाती हूँ। मैं अभी भी उस आग को जारी रखने के कई तरीकों का अनुसरण करती हूँ जो इतने साल पहले लगी थी। मेरा अंतहीन आभार उन धर्मांतरित लोगों के लिए जाता है, जिन्होंने हर कीमत पर सत्य का अनुसरण किया और जिस दिशा में ईश्वर ने उनकी अगुवाई की, उसी ओर जाने केलिए वे तैयार थे। वे कभी नहीं जान पाएंगे कि परमेश्वर ने कितने लोगों के जीवन को उनकी हाँ के कारण प्रभावित किया, और उनमें से एक मेरा भी जीवन था।
और हमारे वे पांच छोटे बच्चे बड़े हो गए, और उनकी शादी गिरजाघर में हुई और उनके अपने बच्चे प्रभु परमेश्वर को अनुभव करते हुए और अपने कैथलिक विश्वास से प्यार करते हुए बड़े हो रहे हैं। मेरे पति भी दस साल से उपयाजक (डीकन) के पद पर हैं। हे परमेश्वर, सारी महिमा और सभी श्रेय मैं तुझे देती हूँ। तू हमारे लिए कितने उदार और अच्छा है; तू मेरे दिल में आग प्रज्वलित करने का सबसे अच्छा तरीका जानता था। इसके लिए तुझे धन्यवाद देने के लिए मेरे पास शब्दों की कमी है। “ईश्वर आप लोगों को प्रचुर मात्रा में हर प्रकार का वरदान देने में समर्थ हैं, जिससे आप को कभी किसी तरह की कोई कमी नहीं हो, बल्कि हर भले काम केलिए चन्दा देने केलिए भी बहुत कुछ बच जाए।“ (2 कुरिन्थी 9:8)
पीड़ा और प्रार्थना के माध्यम से, तूने मुझे जो कुछ भी दिया है, वह मुझे तेरे और मेरे मार्ग पर तेरे द्वारा लाये गए उन सभी के करीब ले आया है। धन्यवाद हे प्रभु!
'बैपटिस्ट चर्च के सदस्य के रूप में बड़े होने के बावजूद, शराब, ड्रग्स और कॉलेज की बुरी संगति ने जॉन एडवर्ड्स को बवंडर में डाल दिया, लेकिन क्या ईश्वर ने उन्हें छोड़ दिया? पता लगाने के लिए पढ़ें।
मेरा जन्म और पालन-पोषण मिडटाउन मेम्फिस के एक बैपटिस्ट परिवार में हुआ। स्कूल में मेरे बहुत कम दोस्त थे, लेकिन गिरजाघर में मेरे बहुत सारे दोस्त थे। वही मेरा समुदाय था। मैंने हर दिन इन लड़कों और लड़कियों के साथ बिताया, सुसमाचार का प्रचार किया और उन सभी चीजों का आनंद लिया जो हर कोई युवा बैपटिस्ट करता है। मैं अपने जीवन के उस दौर से प्यार करता था, लेकिन जब मैं 18 साल का हुआ, तो मेरे दोस्तों की मंडली बिखर गयी। जबकि उनमें से ज्यादातर लोग मुझे छोड़कर कॉलेज चले गए और मैं अभी भी इस बारे में अनिश्चित था कि मैं अपने जीवन के साथ क्या करना चाहता हूं। पहली बार मुझे लगा कि मैं अकेला हूँ। मैं भी अपने जीवन में उस बिंदु पर था जहाँ मुझे यह तय करना था कि मुझे क्या करना है। मैंने स्थानीय मेम्फिस विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और युवकों के एक गिरोह में शामिल हो गया। यहीं से मैं शराब पीने, ड्रग्स लेने और लड़कियों का पीछा करने में शामिल होने लगा। दुर्भाग्य से, मैंने अपने जीवन की शून्यावस्था को उन सभी गतिविधियों से भर दिया जो आप बहुत सी फिल्मों में देखते हैं, जैसे शराब और महिलाओं की संगति। एक रात मैंने कोकीन लेने का एक गलत निर्णय लिया – मेरे जीवन के सबसे बुरे फैसलों में से यही एक फैसला था। इसने मुझे अपने जीवन के अगले 17 वर्षों तक परेशान किया।
जब मैं अपनी भावी पत्नी एंजेला से मिला, तो मैंने उसे यह कहते हुए सुना कि जिस आदमी से वह किसी दिन शादी करेगी उसका कैथलिक होना ज़रूरी है। मैं उसका पति बनना चाहता था। भले ही मैं 10 से अधिक वर्षों से गिरजाघर नहीं गया था, फिर भी मैं इस अद्भुत महिला से शादी करना चाहता था। हमारी शादी से पहले, मैं आर.सी.आई.ए. धर्मशिक्षा कार्यक्रम में भाग लिया और कैथलिक बन गया, लेकिन कैथलिक कलीसिया के सच्चे विश्वास मुझमें गहरी जड़ें नहीं जमा पाईं क्योंकि मैं सिर्फ वक्त गुजार रहा था।
जैसे-जैसे मैं एक सफल विक्रेता बन गया, मेरे ऊपर बहुत सारी जिम्मेदारियाँ और तनाव आ गया। मेरी आय पूरी तरह से बिक्री पर की गयी दलाली पर निर्भर थी और मेरे जितने ग्राहक थे वे बड़ी मांगे रखते थे। यदि किसी साथी कर्मचारी ने कोई गलती की, या कोई समस्या खडी कर दी, तो मुझे अपनी आय से वंचित रहने का डर था। इस ओरकार के सभी दबाव को दूर करने के लिए, मैंने रात में खुद को नशीली दवाओं के प्रयोग में झोंकना शुरू कर दिया, लेकिन मैं इसे अपनी पत्नी से छिपाने में कामयाब रहा। उसे पता नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूं।
हमारे पहले बेटे जैकब के जन्म के कुछ ही समय बाद, मेरी माँ को कैंसर हो गया। उसके पास जीने के लिए सिर्फ दो हफ्ते से लेकर कुछ महीने बाकी थे और इस बात ने मुझे सचमुच हिलाकर रख दिया। मुझे याद है कि मैंने ईश्वर से पूछा था: “तू मेरे जैसे झूठ बोलने वाले नशे की लतवाले आदमी को कैसे जीने देता है, लेकिन मेरी माँ, जिसने आपको जीवन भर बेशर्त प्यार किया है, उसे तू क्यों मरने दे रहा है ? यदि आप उस प्रकार के परमेश्वर हैं, तो मुझे आपसे कोई लेना-देना नहीं है!” उस दिन, मुझे याद है कि मैंने आसमान की ओर देखा और कहा: “मैं तुमसे नफरत करता हूँ और मैं फिर कभी तुम्हारी पूजा नहीं करूँगा!” उसी दिन मैं पूरी तरह से परमेश्वर से दूर चला गया।
परिवर्तन का वह मोड़
मेरे इस तरह के कुछ ग्राहक थे जिनसे निपटना बहुत मुश्किल था। यहां तक कि रात में भी कोई राहत नहीं मिली, वे एक के बाद एक संदेश भेजते थे और व्यवसाय को बर्बाद करने की धमकी देते थे। सारे तनावों से मैं परेशान था, और मैं हर रात खुद को अधिक से अधिक ड्रग्स में झोंक देता था। एक रात, लगभग दो बजे, मैं अचानक उठा और बिस्तर पर बैठ गया। ऐसा लग रहा था कि मेरा दिल मेरे सीने से बाहर निकलने वाला है। मैंने सोचा: ‘मुझे दिल का दौरा पड़ने वाला है और मैं मर जाऊंगा’। मैं ईश्वर को पुकारना चाहता था, लेकिन मेरा घमंडी, स्वार्थी, जिद्दी स्वभाव मुझे मना कर रहा था।
मैं मरा नहीं था, लेकिन मैंने नशीले पदार्थों को बाहर फेंकने और शराब को बाहर निकालने का संकल्प लिया था… मैंने सुबह इसका पालन किया… केवल दोपहर तक… उसके बाद मैं ने और अधिक दवाएं और बीयर खरीद लिए। बार-बार एक ही बात होती थी- ग्राहक मुझे धमकी भरे सन्देश टेक्स्ट करते थे, और मैं सोने के लिए और अधिक ड्रग्स का इस्तेमाल करता था, और रात को बार बार जाग जाता था।
नशीली दवाओं की मेरी इच्छा इतनी अधिक थी कि एक दिन, मैं अपने ससुर के घर से अपने बेटे जैकब को लेने के लिए निकला और रास्ते में कोकीन खरीदने के लिए रुक गया! जैसे ही मैं ड्रग डीलर के घर से निकला, मैंने एक पुलिस सायरन सुना! ड्रग प्रवर्तन एजेंसी ठीक मेरे पीछे थी। यहां तक कि जब पुलिस स्टेशन में एक बेंच से मेरे पैरों को जंजीर से बांधकर मुझसे पूछताछ किया जा रहा था, तब भी मुझे लगा कि मैं इससे बाहर निकलने वाला हूं। एक सुपर सेल्समैन के रूप में, मुझे विश्वास था कि मैं किसी भी चीज़ से अपना रास्ता निकाल सकता हूँ। लेकिन इस बार नहीं! मुझे डाउनटाउन मेम्फिस में जेल में डाला गया। अगली सुबह, मैंने सोचा कि यह सब सिर्फ एक बुरा सपना था, लेकिन तब मैं ने पाया कि मैं जेल में स्टील की चारपाई पर पडा हूँ।
वह खतरनाक बहाव
जब मुझे पता चला कि मैं जेल में हूं और अपने घर में नहीं हूं, तो मैं घबरा गया। यह नहीं हो सकता… हर किसी को पता चल जाएगा… मेरी नौकरी चली जाएगी… मेरी पत्नी… मेरे बच्चे… मेरे जीवन में सब कुछ…” बहुत धीरे-धीरे, मैंने अपने जीवन को देखना शुरू किया और सोचने लगा कि यह सब कैसे शुरू हुआ। तभी मुझे एहसास हुआ कि जब मैं येशु मसीह से दूर चला गया तो मैंने कितना कुछ खोया था। मेरी आंखें आंसुओं से भर गईं और मैंने उस दिन दोपहर का वक्त प्रार्थना में बिताया। मुझे बाद में पता चला कि यह कोई साधारण दिन नहीं था। वह पुण्य बृहस्पतिवार था, ईस्टर से तीन दिन पहले, वह दिन जब येशु जब गतसमनी के बगीचे में प्रार्थना करते समय, उनके साथ एक घंटा भी नहीं बिता पा रहे अपने प्रेरितों को डांटा था। जब मैंने उनसे प्रार्थना में बातें की, तो मुझे भरोसा और निश्चितता का गहरा अहसास हुआ कि येशु ने मुझे कभी नहीं छोड़ा था, तब भी जब मैं उनसे दूर चला गया था। मेरे सबसे बुरे पलों में भी वह हमेशा मेरे साथ रहे।
जब मेरी पत्नी और मेरी सास मुझसे मिलने आईं, तो मैं चिंता से भर गया। मैं उम्मीद कर रहा था कि मेरी पत्नी कहेगी: “मैं तुम्हें छोड़ रही हूँ और बच्चों को ले जा रही हूँ!” यह लॉ एंड ऑर्डर सिनेमा के एक दृश्य की तरह लगा जहां कैदी कांच की दूसरी तरफ अपने आगंतुक से फोन पर बात करता है। जैसे ही मैंने उन्हें देखा, मैं फूट-फूट कर रोते हुए बुदबुदाने लगा, “मुझे माफ़ करो, मुझे माफ़ करो!” इसके जवाब में उसके कहे शब्द मेरे कानों पर पड़े तो मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहां था। “जॉन, रुको … मैं तुम्हें तलाक नहीं देने जा रही हूँ। इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन हम दोनों ने गिरजाघर में जो प्रतिज्ञाओं की उन से संबंधित है…”। हालाँकि, उसने मुझसे कहा कि भले ही वह मुझे जमानत दिलवा रही थी, फिर भी मैं घर नहीं जा सकता। उस शाम मेरी बहन मुझे जेल से लेने आएगी, और वह मुझे मिसिसिपी में मेरे पिता के फार्म हाउस में ले जाएगी। गुड फ्राइडे का दिन मैं जेल से बाहर आया। जब मैंने सामने देखा तो वहां मेरी बहन नहीं बल्कि मेरे पिताजी मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। मैं उनसे आँखें मिलाने से घबरा रहा था, लेकिन हम दोनों के बीच उनके फार्म तक डेढ़ घंटे की कार की सवारी के दौरान अब तक की सबसे वास्तविक बातचीत हुई।
एक आकस्मिक मुलाक़ात
मैं जानता था कि अपना जीवन बदलने के लिए मुझे कुछ करना होगा और मैं इसे ईस्टर रविवार को ख्रीस्तयाग से शुरुआत करना चाहता था। लेकिन जब मैं 11 बजे के मिस्सा बलिदान के लिए गिरजाघर पहुंचा, तो वहां कोई नहीं था। मैंने निराशा और गुस्से में स्टीयरिंग व्हील को अपनी मुट्ठी से मारना शुरू कर दिया। 10 साल में पहली बार मैं मिस्सा में जाना चाहता था और वहां कोई नहीं था। क्या ईश्वर को मेरी बिल्कुल परवाह नहीं है ? अगले ही पल, एक सिस्टर ने आकर पूछा कि क्या आप मिस्सा बलिदान में जाना चाहते हैं? उन्होंने मुझे अगले शहर में भेज दिया जहां मैंने पूरे गिरजाघर को बहुत सारे परिवारों से भरा हुआ पाया। यह एक और करारा झटका लगा क्योंकि मैं अपने परिवार के साथ नहीं था।
मैं केवल अपनी पत्नी के बारे में सोच रहा था और यह भी कि उसके योग्य बनने के लिए मैं कितना लालायित था। मैंने वेदी पर खड़े पुरोहित को पहचान लिया। आखिरी बार मैंने उन्हें कई साल पहले देखा था, तब मैं अपनी पत्नी के साथ था। जब ख्रीस्तयाग समाप्त हुआ, तो मैं बेंच पर बैठा रहा और परमेश्वर से मुझे चंगा करने और मुझे मेरे परिवार से मिलाने के लिए कहता रहा। जब मैं अंत में जाने के लिए उठा, तो मैंने अपने कंधे पर एक स्पर्श महसूस किया, जिसने मुझे चौंका दिया, क्योंकि मैं वहां किसी को नहीं जानता था। जैसे ही मैं पीछे मुड़ा, मैंने देखा कि यह गिरजाघर के वे फादर थे। उन्होंने मुझे बड़ी गर्मजोशी से अभिवादन किया, “हैलो, जॉन”। मैं दंग रह गया कि उन्हें मेरा नाम याद है क्योंकि हमारी आखिरी मुलाकात हुए कम से कम पांच साल गुजर चुके थे, और वह मुलाक़ात लगभग 2 सेकंड तक ही चली थी। उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया और मुझसे कहा, “मुझे नहीं पता कि तुम यहाँ अकेले क्यों हो या तुम्हारा परिवार कहाँ है, लेकिन परमेश्वर चाहता है कि मैं तुम्हें बता दूँ कि सब कुछ ठीक हो जाएगा।” मैं दंग रह गया। वह कैसे जान सकता था?
मैंने अपना जीवन बदलने और पुनर्वास पर जाने का मन बना लिया। मेरी पत्नी मेरे साथ पुनर्वास केंद्र तक आई और 30 दिनों की बहिरंग विभाग में चिकित्सा के बाद मुझे वापस घर ले जाने केलिए वह फिर आई। जब मेरे बच्चों ने मुझे दरवाजे पर देखा, तो वे रो पड़े और अपनी बाहें बढ़ाकर मेरे गले लग गए। वे मेरे ऊपर कूद पड़े और देर रात तक हम खूब खेले। जब मैं अपने बिस्तर पर लेटा था, मैं घर में वापस आने के लिए कृतज्ञता से अभिभूत महसूस कर रहा था – घर के ए.सी. कमरे में मैं आराम से लेटा था, सामने एक टीवी थी जिसे मैं जब चाहूं देख सकता था; भोजन की मेज़ पर ऐसा भोजन कर सकता था जो जेल की सडा गला भोजन जैसा नहीं था; और मैं अपने बिस्तर के आराम का आनंद ले रहा था ।
मैं मुस्कुराया जैसे कि मैं महल का राजा था, तब मैंने देखा की एंजेला बिस्तर पर नहीं है। मैंने मन ही मन सोचा: “मुझे अपना पूरा जीवन बदलने की आवश्यकता है; ड्रग्स और शराब को रोकना पर्याप्त नहीं है।” मैंने एक बाइबिल की तलाश में पलंग के बगल के मेज़ की दराज़ खोली, और एक पुस्तक पाई जो फादर लैरी रिचर्ड्स ने मुझे एक सम्मेलन के दौरान दी थी। उस समय मैंने केवल 3 या 4 पृष्ठ पढ़े थे, लेकिन जब मैंने उस रात को इसे उठाया, तो मैं इसे पूरी तरह से पढ़ने के बाद ही इसे नीचे रख पाया। मैं पूरी रात जागा और पढ़ ही रहा था कि मेरी पत्नी सुबह 6 बजे उठी। किताब ने मेरी समझ को तेज कर दिया कि एक अच्छा पति और पिता होने का क्या मतलब है। मैंने ईमानदारी से अपनी पत्नी से वादा किया कि मैं वह आदमी बनने जा रहा हूं जिसकी वह हकदार थी। उस पुस्तक ने मुझे फिर से पवित्र बाइबिल पढ़ने के लिए प्रेरित किया। मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपने जीवन में कितना कुछ खोया है और मैं खोए हुए समय की भरपाई करना चाहता था। मैंने अपने परिवार को मिस्सा बलिदान में ले जाना शुरू किया, और हर रात घंटों तक प्रार्थना की। पहले वर्ष में, मैंने 70 से अधिक कैथलिक पुस्तकें पढ़ीं। थोड़ा-थोड़ा करके मैं बदलने लगा।
मेरी पत्नी ने मुझे वह आदमी बनने का अवसर दिया जिसके लिए परमेश्वर ने मुझे बुलाया था। अब, मैं अपने पॉडकास्ट ‘जस्ट ए गय इन द प्यू’ के माध्यम से अन्य लोगों को भी ऐसा करने में मदद करने की कोशिश कर रहा हूं।
पुण्य बृहस्पतिवार को, येशु अपने आत्म बलिदान के लिए तैयार थे, और मैंने अपने पुराने स्वभाव के आत्म बलिदान करने का निर्णय लिया। ईस्टर रविवार को, मुझे लगा कि मैं भी उनके साथ पुनर्जीवित हो गया हूं। हम जानते हैं कि जब हम येशु से बहुत दूर किसी मार्ग पर होते हैं तो शैतान चुप हो जाएगा। यह तब होता है जब हम मसीह के निकट आने लगते हैं तब शैतान वास्तव में जोर से बोलने लगता है। जब उसका झूठ हमें घेरने लगता है, तब हमें पता चलता है कि हम कुछ अच्छा कर रहे हैं। कभी हार न मानना। जीवन भर परमेश्वर के प्रेम में बने रहें। आपको इसका कभी पछतावा नहीं होगा।
'सालों तक मार्गरेट फिट्ज़सिमोंस ने गहरे दर्द और शर्म को सहा। एक दिन उन्होंने उन चार शब्दों को सुना उन चार शब्दों ने उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी …
टूटा हुआ बचपन
मैं ने 1945 में दुनिया में जन्म लिया था, जब युद्धग्रस्त जर्मनी के बुनियादी ढांचे क्षतिग्रस्त हो चुके थे और देश लाखों विस्थापित लोगों से जूझ रहा था। मेरे कोई पिता नहीं थे, इसलिए मेरी मां ने मुझे पालने के लिए अकेले ही संघर्ष किया। मेरी माँ अलग अलग संबंधो की एक श्रृंखला से गुजर रही थी। घर के किराए का भुगतान करने के लिए, वह बहुत सारे अतितिक्त काम करती थी, जैसे जिस इमारत में हम रहते थे, उसकी सीढ़ियों पर झाडू लगाती थी, और मैं वहाँ कूड़ेदान को खाली करने में उनकी मदद करने की कोशिश करती थी।
मेरी माँ के दोस्तों में, एक मेरे पसंदीदा छद्म पिता थे, एक पुलिसकर्मी, एक अच्छे इंसान। मेरी माँ ने उनसे समबन्ध बनाकर गर्भधारण किया, लेकिन माँ उस बच्चे को जन्म देना नहीं चाहती थी, इसलिए उसका गर्भपात हो गया, फिर माँ ने उस पुलिस कर्मी के साथ रिश्ते को छोड़ दिया और होटलों में काम करना शुरू कर दिया। जब माँ नीचे काम कर रही थी और ग्राहकों के साथ शराब पी रही थी, तब मैं आमतौर पर होटल के छत के बेडरूम में अकेली रहती थी। नशा करने के बाद मेरी माँ चिड़चिड़ी हो जाती थी और घर आने पर बिना किसी कारण के मेरे ऊपर गुस्सा करने लगती थी। वह हमेशा मेरे लिए काम की एक लंबी सूची छोड़ जाती थी, लेकिन मैं उसे कभी संतुष्ट नहीं कर पाती थी। हालात बिगड़ गए और एक रात माँ उस पुलिसकर्मी की नई प्रेमिका से लड़ने लगी। उस लड़ाई के चलते माँ जेल में बंद हो गई।
बद से बदतर
मां का छोटा भाई ऑस्ट्रेलिया चले गए, उस के बाद, मेरे नानाजी ने सोचा कि अगर मेरी माँ और मामा एक ही देश में होते तो अच्छा होता। इसलिए, हम 1957 में उनके साथ ऑस्ट्रेलिया चले गए और कुछ समय उनके साथ रहे। माँ को एक जगह रसोइया का काम मिल गया, और मैंने सारे थाली बर्तन धोए। जब कभी वह मुझे काम पर कम ध्यान देते हुए पकडती, तो वह बार्बेक्यू का कांटा या जो कुछ उसके हाथ में रहता, वे सब मेरे ऊपर फेंक देती थी। चूँकि मैं केवल बारह वर्ष की थी और अक्सर गलतियाँ करती थी, इसलिए मेरे पूरे शरीर पर चोट के निशान बन गए। जब वह नशे की हालत में थी, तो यह और भी बुरी हो जाती थी। मुझे उससे नफरत होने लगी।
हम तब तक एक बोर्डिंग हाउस में रह रहे थे, और माँ की मुलाक़ात बहुत से नए लोगों से हुई थी, जो ग्रामीण इलाकों में गाड़ी चलाना और पेड़ों के नीचे बैठकर शराब पीना पसंद करते थे। मैं तब तक लगभग तेरह साल की हो गयी थी, इसलिए वह मुझे घर पर नहीं छोड़ती थी| वह मुझे अपने साथ ले जाती थी, लेकिन वह अपने दोस्तों के साथ झाड़ी में चली जाती थी; और जो भी आसपास होते थे, मुझे उनके पास बिठा देती थी। ऐसी ही एक रात को, मेरे साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, लेकिन माँ से कुछ भी कहने से मैं डर रही थी।
एक और रात, हाईवे पर ड्राइव करते समय, एक कार हमें ओवरटेक करती रही और अंत में वे हमें रोकने में कामयाब हुए। यह रात को गश्त करनेवाली पुलिस थी। वे हमें पुलिस स्टेशन ले गए और हमें अलग-अलग कमरों में बिठाकर पूछताछ की। जब उन्हें पता चला कि मेरे साथ दुष्कर्म हुआ है, तो एक डॉक्टर मेरी जांच करने आये। उन्होंने एक या दो दिन बाद मां को कचहरी में हाजिर होने का समन दिया। लेकिन जैसे ही हम घर पहुंचे, माँ ने पैकिंग शुरू कर दी और हम दोनों अगली ट्रेन से शहर से बाहर निकल गयीं। हम एक छोटे से कस्बे में पहुँचे, जहाँ उसे रसोइया के रूप में दूसरी नौकरी मिली, और मुझे एक घर की नौकरानी के रूप में रखा गया। वहां का जीवन एक कठिन दौर था, लेकिन मैंने जीना सीख लिया।
उम्मीद के लिए बेताब
माँ ने विल्सन नामक एक आदमी के साथ संबंध बनाया और हम उस आदमी के साथ टली नामक जगह में रहने चले गए। अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद वह एक पागलखाने में भर्ती था। माँ ने जल्द ही उसे भ्रष्ट कर दिया, और वे नशे में लिप्त होकर आपस में लड़ने लगे। मुझे उनकी लड़ाई के बीच में रहना पसंद नहीं था। जब माँ गर्भवती हुई, तो उसने कहा, “चलो विल्सन की कार लेते हैं और सिडनी जाते हैं, और एक नया जीवन शुरू करते हैं। मैं वास्तव में फिर से न शादी करना चाहती हूँ न इस बच्चे को पैदा करना चाहती हूँ।“ मैंने भयावह अनुभव किया। मैं अकेली रहती हुई थक चुकी थी और वर्षों से एक भाई या बहन की चाह रखती थी। तो, मैंने जाकर विल्सन को बताया। जब उन्होंने मेरी मां को चुनौती दी, उसके बाद उन दोनों ने एक दुसरे से शादी कर ली, लेकिन माँ ने मुझे इन सब के लिए जिम्मेदार ठहराया। उसने मुझसे कहा कि “तुम्हें बच्ची की देखभाल करनी होगी, क्योंकि मैं इस बच्ची को नहीं चाहती थी।“ इसके बाद मेरी छोटी बहन ही मेरी दुनिया थी, हाँ टॉम से मिलने के बाद सब कुछ बदल गया।
लड़ाई-झगड़ों से मैं ऊब गयी थी और टॉम ने वादा किया था कि जब मैं सयानी हो जाऊंगी तब वह मुझसे शादी कर लेगा, इसलिए मैंने घर छोड़ दिया। मैंने सोचा कि इसके बाद जीवन शानदार होगा, लेकिन ऐसा नहीं था। टॉम की माँ प्यारी थी। उसने वास्तव में मेरी देखभाल करने की कोशिश की, लेकिन टॉम नशे में धुत हो जाता, फिर घर आकर मुझे गाली देता, मेरे साथ दुर्व्यवहार करता था। वह शराब पीता रहता था और एक नौकरी के बाद दूसरी नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाता था, इसलिए हम लगातार एक जगह से दूसरी जगह बदलते रहे। हमने शादी कर ली, और मुझे उम्मीद थी कि वह अपनी बुरी आदतें छोड़ देगा और मेरे साथ बेहतर व्यवहार करना शुरू कर देगा, लेकिन वह मुझे पीटता रहा और दूसरी लड़कियों के साथ अय्याशी करता रहा। मुझे इस दलदल से बचना था, इसलिए मैं वहां से भाग निकली और ब्रिसबेन चली गयी जहां मुझे बर्तन धोने का काम मिला।
एक रात काम के बाद देर रात मैं बस से उतरी और देखा कि सड़क के उस पार कोई खड़ा है। मुझे पता था कि यह टॉम था। हालाँकि मैं घबरा गयी थी, कहीं वह कुछ बेवकूफी करने की कोशिश न करें ऐसा सोचकर मैं रोशनी में ही रही। उसने मेरा पीछा किया, लेकिन मैंने उससे कहा कि मैं वापस नहीं जाऊंगी और उससे तलाक चाहती हूं।
एक नई शुरुआत
जब मैं घर पहुंची, मैंने अपना बैग पैक किया, सिडनी के लिए ट्रेन पकड़ी, और उसके बाद शहर से बाहर बस में सवार हो गयी। महीनों तक, मुझे बुरे सपने आते रहे कि वह मेरा पीछा कर रहा है। मैं ने कमर कस लिया और एक अस्पताल में घरेलू कामगार के रूप में नौकरी करने लगी। यहाँ मैंने नए दोस्त बनाए। एक और जवान लड़की थी, जिसकी अंग्रेजी कमजोर थी, जो काफी हद तक मेरे जैसी थी। हमारी आपस में अच्छी पटती थी और हमने अपना नर्सिंग प्रशिक्षण एक साथ शुरू किया, फिर प्रशिक्षण के बाद एक अस्पताल में हमने काम किया।
वह एक लड़के को जानती थी जो सेना में राष्ट्रके लिए सेवा दे रहा था। जब उस लड़के ने उसे एक नृत्य के कार्यक्रम लिए आमंत्रित किया, तो मेरी दोस्त ने मेरे लिए भी टिकट ली ताकि हम दोनों साथ जा सकें। नाच के कार्यक्रम में मुझे रुची नहीं थी, लेकिन यह बाहर निकलने का एक अच्छा मौका था। भोजन परोसने वाले सेना के कैटरर्स में से एक ने मुझ पर ध्यान देना शुरू किया। मुझे लगा कि यही बेहतर है, इसलिए हम दोनों ने कुछ डांस किए और उसके बाद हम दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। हम एक-दूसरे से मिलते रहे, लेकिन कुछ हफ्तों के बाद पीटर ने मुझे बताया कि उसे एविएशन कोर्स करने के लिए भेजा जा रहा है। मुझे बहुत निराशा हुई।
हम दोनों ने अपने जीवन की कहानियाँ एक दुसरे को सुनायी थीं, इसलिए वह जानता था कि मेरे साथ क्या चल रहा है, लेकिन उसने मुझे छोड़ा नहीं और मेरे संपर्क में रहा। जितना अधिक मैं उसे जानती थी, उतना ही मैं उसे पसंद करती थी। लेकिन मैं पहली शादी की आपदा के बाद दोबारा शादी नहीं करना चाहती थी। आखिरकार, उसने मुझे अपने परिवार से मिलवाया और उसकी ट्रेनिंग पूरी होने से पहले ही हमारी सगाई हो गई। वह टाउन्सविले में तैनात था जहाँ पहले मैं टॉम के साथ रहा करती थी। हालाँकि मैं अतीत की भयावहता से गुजरना नहीं चाहती थी, फिर भी मैं पीटर को ना नहीं कह सकती थी। हम कानूनी रूप से शादी करने में सक्षम होने से पहले लगभग दो साल तक साथ रहे। पीटर कैथलिक बन गया, लेकिन सैन्य प्रशिक्षण की हड़बड़ी में उसने कैथलिक विश्वास में रहना बंद कर दिया, इसलिए हमने अपने घर के ही पिछवाड़े में शादी कर ली।
वे चार शब्द जिनके कारण सब कुछ बदल गया
कभी-कभी मैं अकेली होती थी क्योंकि पीटर अक्सर मैदान में हेलीकॉप्टर की सर्विसिंग के लिए बाहर रहता था। मुझे एक हाई स्कूल में लैब असिस्टेंट की नौकरी मिल गई, लेकिन हमें एहसास हुआ कि हमारे जीवन में कुछ कमी है। हमारे पास सब कुछ था, फिर भी एक खालीपन था। तब पीटर ने सुझाव दिया, “चलो चर्च चलते हैं।” शुरुवाती दौर में हम दोनों चर्च में पीछे के बेंच में बैठते थे, लेकिन जैसे ही प्रभु की उपस्थिति के लिए हमारे हृदय खुल गए, हम और अधिक जुड़ गए। हमने सप्ताह के अंत में होनेवाले वैवाहिक जीवन प्रशिक्षण के बारे में सुना और साइन अप किया। यह हम दोनों के लिए एक वास्तविक आंख खोलने वाला था। हमारे हृदय द्रवित हो उठे।
उस सप्ताह के अंत में हमने सीखा कि मन की बातों को लिखकर कैसे संवाद किया जाए। मैं अपने जीवन में जो महसूस करती थी, उसे शब्दों में बयां नहीं कर पाती थी। मां मुझे हमेशा चुप रहने के लिए कहा करती थी, इसलिए मैंने मुंह न खोलने की शिक्षा ली थी और इस तरह अपनी भावनाओं को साझा करने में असमर्थ हो गई थी।
“ईश्वर कबाड़ नहीं बनाता”, जब मैंने पहली बार ये शब्द सुने, मैं जानती थी कि ये शब्द मेरे लिए ही बने थे। भावुकता की एक लहर मुझ पर हावी हो गई। ‘ईश्वर ने मुझे बनाया है। मैं ठीक हूँ। मैं कबाड़ नहीं हूं।’ उन सभी वर्षों में, मैं अपने आप को हीनभावना से देखती थी, उन सारे भयानक बातों के लिए स्वयं को दोषी ठहरा रही थी – बलात्कार, पियक्कड़ से शादी करना (जब कि मुझे पता होना चाहिए था कि यह शादी ठीक नहीं होगी), फिर तलाक, मेरी मां का दुर्व्यहार …। मैं जीवन में वापस आ रही थी। इसके बाद हर बार जब मैं मिस्सा पूजा या प्रार्थना सभा में जाती तो मेरा दिल बेहतरी और अच्छाई के लिए बदल रहा था। मैं ईश्वर और अपने पति से बहुत प्यार करती थी।
नफरत के बदले प्यार
इसके पहले, मैंने कभी किसी को माफ नहीं किया था। मैंने अपनी चोटों को पीछे धकेल दिया था और उन पर ताला लगा लिया था मानो कि मुझे कभी चोट लगी ही नहीं। जब पीटर और मेरी सगाई हुई, तो मैं माँ को बताना चाहती थी। मैंने पत्र भेजे, लेकिन उसने उन पत्रों को “प्रेषक को” लौटा दिया, इसलिए मैंने हार मान ली। फिर, मैंने एक बार सपने में अपनी माँ को एक पेड़ से लटकती हुई देखा। उसकी गहरी नीली आंखें खुली हुई थीं और मुझे घूर रही थीं। मैंने उसकी तरफ दयाभाव के साथ देखा और कहा, “हे ईश्वर, मैं उसे नापसंद करती हूं, लेकिन उतना ज़्यादा नहीं।” किसी तरह, उस सपने ने मुझे नफरत न करना सिखाया। यहां तक कि अगर मैं किसी के द्वारा किए गए कार्यों को पूरी तरह से नापसंद करती हूं, तो मुझे लगा कि नफरत करना गलत था। मैंने माँ को पूरी तरह से माफ़ कर दिया, और इस कारण मेरे लिए अनुग्रह के अन्य द्वार खुल गए। मैं नरम हो गयी और फिर से अपनी मां के पास पहुंचने के लिए प्रयास करती रही। आखिरकार उसने जवाब दिया, और हम कुछ दिनों तक माँ के साथ रहे। कुछ वर्षों बाद जब मेरी बहन ने मुझे यह बताने के लिए फोन किया कि माँ की अचानक दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई है, तो मैं फूट-फूट कर रोने लगी।
उसकी मृत्यु के बाद, मुझे लगा कि मैंने माँ को ठीक से माफ़ नहीं किया है, लेकिन एक अच्छे पुरोहित के साथ आत्मिक परामर्श और प्रार्थना के बाद मुझे अपार शांति मिली। जब मैंने क्षमा के शब्द कहे, पवित्र आत्मा का प्रकाश मेरे अस्तित्व में प्रवेश कर गया, और मुझे पता था कि मैंने उसे क्षमा कर दिया है।
टॉम को क्षमा करना कुछ कठिन काम था जिस केलिए मुझे बार बार प्रार्थना में वापस जाना पडा। इसमें काफी समय लग गया, और मुझे एक से अधिक बार जोर से कहना पड़ा कि मैं टॉम को मेरे साथ उसके दुर्व्यवहार केलिए, मेरी ठीक से देखभाल न करने केलिए, क्षमा करती हूं। मुझे पता है कि मैंने उसे माफ कर दिया है। इस प्रक्रिया से यादें दूर नहीं जाती हैं, लेकिन चोट तो दूर हो जाती है।
स्लेट को साफ करना
क्षमा एक बार का कार्य नहीं है। जब भी आक्रोश फिर से उभरे तो हमें क्षमा कर देना चाहिए। निरन्तर द्वेष रखने की इच्छा को हमें त्याग देना चाहिए और उन्हें येशु को सौंप देना चाहिए। इस तरह मैं प्रार्थना करती हूं: “येशु, मैं सब कुछ तुझे सौंप देती हूं, तू ही हर बात का ख्याल रखना।” और वह ख्याल रखता है। बार बार इस प्रार्थना को करने के बाद मैं पूरी तरह से शांति महसूस करती हूं।
मेरे साथ हुए बलात्कार के लिए मजबूती के साथ चंगाई की क्षमा महसूस करने में मुझे काफी समय लगा। मैंने बस इसे टालने की कोशिश की। मैं इसके बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी। फिर भी एक बार जब मैंने इसे प्रभु को समर्पित किया तो यह भी ठीक हो गयी और मैं अपने बलात्कारियों को क्षमा कर पाई। अब वह घटना मेरे ऊपर कोई असर नहीं करती है। ईश्वर ने इसे शुद्ध कर मुझे स्वस्थ कर दिया है, क्योंकि मैंने ईश्वर से कहा था कि जो कुछ उसका नहीं है, वह सब मुझसे ले ले।
अब, मैं उन सब बातों को, जैसे वे घटित होती हैं, वैसे ही ईश्वर को सौंप देती हूं, और मुझे शांति मिलती है। हमारे पास एक अद्भुत ईश्वर है, जो हमें क्षमा करता है, सुबह, दोपहर और रात, हर वक्त। हमारे जीवन में चाहे जो भी अंधकार हो, परमेश्वर हमारे पश्चाताप करने और क्षमा मांगने की प्रतीक्षा कर रहा है, ताकि वह हमें शुद्ध कर सके और हमें पूर्ण बना सके।
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