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प्रश्न – मेरे परिवार को मेरी एक बहन से समस्या है, और मुझे अक्सर अपने अन्य भाई-बहनों से उसके बारे में बात करनी पड़ती है। क्या यह अपने अन्दर की अशुद्ध हवा निकालने जैसा है? क्या यह गपशप है? क्या यह ठीक है, या पापपूर्ण है?
उत्तर– जीभ को नियंत्रित करना बड़ा चुनौती पूर्तिण कार्य है। संत याकूब इन चुनौतियों को पहचानते हैं। अपने पत्र के तीसरे अध्याय में, वे लिखते हैं, “यदि हम घोड़ों को वश में रखने के लिए उनके मुँह में लगाम लगाते हैं, तो उनके पूरे शरीर को इधर उधर घुमा सकते हैं… इसी प्रकार, जीभ शरीर का एक छोटा सा अंग है, किन्तु वह शक्तिशाली होने का दावा कर सकती है। देखिये, एक छोटी सी चिंगारी कितने विशाल वन में आग लगाा सकती है। जीभ भी एक आग है, जो हमारे अंगों के बीच हर प्रकार की बुराई का स्रोत है। वह हमारा समस्त शरीर को दूषित करती और नरकाग्नी से प्रज्वलित होकर हमारे पूरे जीवन में आग लगा देती है। हर प्रकार के पशु और पक्षी, रेंगने वाले और जलचर जीवजन्तु – सब के सब मानव जाति द्वारा वश में किये जा सकते हैं या वश में किये जा चुके हैं, परन्तु कोई मनुष्य अपने जीभ को वश में नहीं कर सकता। वह वक ऐसी बुराई है, जो कभी शांत नहीं रहती और प्राणघातक विष से भरी हुई है। हम सब उससे अपने प्रभु एवं पिता की स्तुति करते हैं, और उसी से मनुष्यों को अभिशाप देते हैं, जिन्हें ईश्वर ने अपना प्रतिरूप बनाया है। एक ही मुँह से स्तुति भी निकलती है और अभिशाप भी। मेरे भाइयो-बहनो, यह उचित नहीं है। क्या जलस्रोत के एक ही धारा से मीठा पानी भी निकलता है और खारा भी ?” (याकूब 3:3-12).
हमें दूसरे के बारे में कुछ कहना चाहिए या नहीं, इस मुद्दे पर अमेरिकी रेडियो होस्ट बर्नार्ड मेल्टज़र ने एक बार तीन नियम बनाए थे: क्या यह जरूरी है? क्या यह सच है? क्या यह करुणापूर्ण है?
ये तीन बड़े प्रश्न हैं जिन्हें हमें पूछना चाहिए। अपनी बहन के बारे में बोलते समय, क्या यह आवश्यक है कि आपके परिवार के अन्य सदस्य उसकी गलतियों और असफलताओं के बारे में जानें? क्या आप वस्तुनिष्ठ सत्य को प्रसारित कर रहे हैं या उसकी कमजोरियों को बढ़ा-चढ़ाकर बता रहे हैं? क्या आप उसके अच्छे इरादों को मानते हैं, या आप उसके कार्यों में नकारात्मक इरादों का आरोप लगाते हैं?
एक बार, एक महिला संत फिलिप नेरी के पास गई और पाप स्वीकार संस्कार में गपशप का पाप कबूल कर लिया। प्रायश्चित्त के रूप में, फादर नेरी ने उसे पंखों से भरा एक तकिया लेने और उसे एक ऊंची मीनार के शीर्ष पर ले जाकर खोलने का काम सौंपा। महिला ने सोचा कि यह एक अजीब तपस्या है, लेकिन उसने ऐसा किया और पंखों को चारों दिशाओं में उड़ते देखा। संत के पास लौटकर उसने उनसे पूछा कि इसका क्या मतलब है। उन्होंने उत्तर दिया, “अब, जाओ और उन सभी पंखों को इकट्ठा करो।” उसने उत्तर दिया कि यह असंभव है। उन्होंने कहा, “ऐसा ही उन शब्दों के साथ है जो हमारे मुंह से निकलते हैं। हम उन्हें कभी वापस नहीं ले आ सकते क्योंकि उन्हें हवाओं के ज़रिए ऐसी जगहों पर भेज दिया गया है जिन्हें हम कभी नहीं समझ पाएंगे।”
अब, ऐसे समय आते हैं जब हमें दूसरों के बारे में नकारात्मक बातें साझा करने की ज़रूरत होती है। मैं एक कैथलिक स्कूल में पढ़ाता हूँ, और कभी-कभी मुझे किसी छात्र के व्यवहार के बारे में किसी सहकर्मी के साथ कुछ साझा करने की आवश्यकता होती है। यह मुझे हमेशा सोचने और मंथन करने का अवसर देता है — क्या मैं इसे अच्छे उद्देश्यों से कर रहा हूँ? क्या मैं सचमुच चाहता हूँ कि इस छात्र के लिए सबसे अच्छा क्या हो? कई बार, मुझे छात्रों के बारे में ऐसी कहानियाँ सुनाने में आनंद आता है जो उन्हें ख़राब रूप में दर्शाती हैं, और जब मुझे किसी अन्य व्यक्ति के दुर्भाग्य या बुरे व्यवहार से आनंद मिलता है, तो मैं निश्चित रूप से पाप की सीमा पार कर चुका हूँ।
तीन प्रकार के पाप हैं जो दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाते हैं। पहला, किसी पर जल्दबाजी में फैसला लेना, जिसका मतलब है कि हम किसी व्यक्ति के व्यवहार या इरादे के बारे में बहुत जल्दी ही बिना सोचे समझे बुरा मान लेते हैं। दूसरा है, निंदा, जिसका मतलब है, दूसरे के बारे में नकारात्मक झूठ बोलना। तीसरा है, अपमान, यानी ना किसी गंभीर कारण के किसी अन्य व्यक्ति के दोषों या असफलताओं का खुलासा करना। तो, आप स्वयं से यह सवाल पूछ सकते हैं: आपकी बहन के मामले में, क्या उसकी गलतियों को बिना किसी गंभीर कारण के साझा करना उसका अपमान करना है? यदि आप उसकी गलतियों को साझा नहीं करेंगे, तो क्या उसे या किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान होगा? यदि नहीं – और यह केवल “अपने अन्दर की अशुद्धता को बाहर निकालने” के लिए है – तो हम वास्तव में परनिंदा के पाप में लिप्त हो गए हैं। लेकिन अगर यह सचमुच परिवार की भलाई के लिए जरूरी है तो उस बहन के पीठ पीछे उसके बारे में बोलना जायज है।’
जीभ के पापों से निपटने के लिए, मैं तीन चीजें सुझाता हूं। सबसे पहले, अपनी बहन के बारे में अच्छी बातें फैलाएं! हर किसी में मुक्तिदायक गुण होते हैं जिनके बारे में हम बात कर सकते हैं। दूसरा, जिस तरह से हमने अपनी जीभ का नकारात्मक उपयोग किया है उसके लिए क्षतिपूर्ति के रूप में, एक सुंदर प्रार्थना, ईश्वरीय स्तुति की प्रार्थना करें, जो ईश्वर की महिमा और स्तुति करती है। अंत में, हम कैसे चाहेंगे कि हमारे बारे में अन्य लोगों द्वारा बात की जाए, इस बात पर विचार करें। कोई भी यह नहीं चाहेगा कि उसकी खामियों का प्रदर्शन हो। इसलिए दूसरों के साथ, अच्छे शब्दों का करुणापूर्ण प्रयोग करके अच्छा व्यवहार करें, इस उम्मीद में कि हमें भी वही करुणा मिलेगी!
Father Joseph Gill हाई स्कूल पादरी के रूप में एक पल्ली में जनसेवा में लगे हुए हैं। इन्होंने स्टुबेनविल के फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय और माउंट सेंट मैरी सेमिनरी से अपनी पढ़ाई पूरी की। फादर गिल ने ईसाई रॉक संगीत के अनेक एल्बम निकाले हैं। इनका पहला उपन्यास “Days of Grace” (कृपा के दिन) amazon.com पर उपलब्ध है।
मेरे काम से थोड़ा सा भी परिचित कोई भी व्यक्ति जानता है कि मैं धार्मिक सत्य की ओर से जोरदार तर्कों की वकालत करता हूं। मैंने लंबे समय से उस चीज़ को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है जिसे शास्त्रीय रूप से धर्मशास्त्र तार्किक मंडन के रूप में जाना जाता है, जो संशयवादी विरोधियों के खिलाफ आस्था के दावों के मंडन का तरीका है। और मैंने बार-बार मूर्खतापूर्ण कैथलिकवाद का विरोध किया है। इसके अलावा, मैंने कई वर्षों से सुसमाचारीकरण की सेवा में सुंदरता के महत्व पर जोर दिया है। सिस्टाइन चैपल की छत्त, सैंटे चैपल, डांटे की डिवाइन कॉमेडी, बाख द्वारा संत मत्ती रचित पीड़ा-वर्णन की संगीतमय प्रस्तुति, टी.एस. एलियट की चार चौकियाँ, और कैथेड्रल ऑफ़ चार्ट्रेस सभी में कला के माध्यम से सुसंचार के सन्देश को असाधारण तरीके से समझाने की शक्ति है, जो कई मायनों में औपचारिक तर्कों से भी आगे निकल जाती है। इसलिए मैं सत्य के मार्ग और सौंदर्य के मार्ग की पुष्टि करता हूं। लेकिन मैं विश्वास को प्रचारित करने के साधन के रूप में, पारलौकिक तत्वों में से तीसरे, अर्थात्, भलाई की भी सिफारिश करता हूं। नैतिक शुद्धता, मसीही तरीके से ठोस जीवन जीना, खासकर जब यह वीरतापूर्ण तरीके से किया जाता है, यहां तक कि सबसे कठोर अविश्वासी को भी विश्वास में ले जा सकता है, और इस सिद्धांत की सच्चाई सदियों से बार-बार साबित हुई है। ईसाई आंदोलन के शुरुआती दिनों में, जब यहूदी और यूनानी दोनों ही नवजात विश्वास को या तो निंदनीय या तर्कहीन मानते थे, यह येशु के अनुयायियों की नैतिक अच्छाई और सेवा थी जो कई लोगों को विश्वास में लाई। कलीसिया के आचार्य तेर्तुलियन अपनी प्रसिद्ध कहावत में प्रारंभिक कलीसिया के प्रति गैर विश्वासियों की आश्चर्यजनक प्रतिक्रिया व्यक्त की: "ये ईसाई एक दूसरे से कैसे प्यार करते हैं!" ऐसे समय में जब विकृत शिशुओं को तिरस्कृत किया जाना आम बात थी, जब गरीबों और बीमारों को अक्सर उनके हाल पर छोड़ दिया जाता था, और जब जानलेवा प्रतिशोध या बदला लेना स्वाभाविक बात थी, प्रारंभिक ईसाई अवांछित बच्चों की देखभाल करते थे, बीमारों और मरनेवालों को सहायता देते थे, और विश्वास के उत्पीड़कों को माफ करने का कार्य करते थे। और यह अच्छाई न केवल उनके अपने भाइयों और बहनों तक फैली, बल्कि आश्चर्यजनक रूप से, बाहरी लोगों और दुश्मनों तक भी फैली। नैतिक शालीनता के इस विशिष्ट रूप से अत्यधिक रूप ने कई लोगों को आश्वस्त किया कि येशु के इन शिष्यों के बीच कुछ अजीब और अनोखी बात चल रही थी, कुछ शानदार और दुर्लभ। इस भलाई की सेवा कार्य ने उन्हें इसाई धर्म को गहराई से देखने और समझने के लिए मजबूर किया। रोमन साम्राज्य के पतन के बाद सांस्कृतिक और राजनीतिक अराजकता के दौरान, कुछ आध्यात्मिक वीर ईसाई जीवन का एक क्रांतिकारी रूप जीने के लिए गुफाओं, रेगिस्तानों और पहाड़ियों पर चले गए। इन प्रारंभिक तपस्वियों से, मठवासी जीवन का उदय हुआ, जो एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक आंदोलन था जिसने समय के साथ यूरोप की पुन: सभ्यता की अगुवाई की। बहुत से लोगों को जो बात आकर्षक लगी वह थी मठों के तपस्वियों की प्रतिबद्धता की बड़ी तीव्रता, गरीबी को अपनाना और ईश्वरीय विधान में उनका अटूट विश्वास। एक बार फिर, यह सुसमाचार के आदर्श को जीने का तरीका ही था जो ठोस साबित हुआ। ऐसा ही कुछ तेरहवीं शताब्दी में सामने आया, जब कलीसिया में, विशेषकर पादरियों के बीच बड़े घोटालों और भ्रष्टाचारों का समय था। फ्रांसिस, डोमिनिक और उनके सहयोगियों ने भिक्षुक धर्मसंघों की शुरुवात की, जो भीख मांगने वाले धर्मसंघ कहने का एक आकर्षक तरीका है। डोमिनिकन और फ्रांसिस्कन के विश्वास, सादगी, गरीबों की सेवा और नैतिक निष्कलंकता ने कलीसिया में क्रांति ला दी और ईसाइयों को जो अपने विश्वास में ढीले और उदासीन हो गए थे, उन्हें प्रभावी ढंग से फिर से सुसमाचार से मज़बूत करने में ये भिक्षुक धर्मसंघ कामयाब हुए। और हम अपने समय में भी वही गतिशीलता पाते हैं। जॉन पॉल द्वितीय बीसवीं सदी के दूसरे सबसे शक्तिशाली सुसमाचार प्रचारक थे, लेकिन निर्विवाद रूप से पहली सुसमाचार के प्रचारक एक महिला थीं, जिन्होंने कभी भी ईश मीमांसा या धर्मशास्त्र मंडन का कोई बड़ा काम नहीं लिखा, जिन्होंने कभी भी सार्वजनिक बहस में संशयवादियों को शामिल नहीं किया, और जिन्होंने कभी भी धार्मिक कला का कोई सुंदर कलाकृति का निर्माण नहीं किया। निस्संदेह, मैं कोलकाता की संत टेरेसा की बात कर रहा हूँ। पिछले सौ वर्षों में किसी ने भी इस साधारण साध्वी से अधिक प्रभावी ढंग से ईसाई धर्म का प्रचार नहीं किया। वे बेहद गरीबी में रहती थी और उसने हमारे समाज में सबसे उपेक्षित लोगों की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया था। ग्रेगरी नामक युवक के बारे में एक अद्भुत कहानी बताई गई है, जो ईसाई धर्म के मूल सिद्धांतों को सीखने के लिए अलेक्सांद्रिया के महान ओरिजिन के पास आया था। ओरिजन ने उससे कहा, "पहले आओ और हमारे समुदाय के जीवन को साझा करो और तब तुम हमारे सिद्धांतों को समझोगे।" युवा ग्रेगरी ने उस सलाह को माना, समय आने पर उसने ईसाई धर्म को उसकी संपूर्णता में अपना लिया, और अब इतिहास में वह चमत्कार करनेवाले संत ग्रेगरी के नाम से जाना जाता है। ईसाई धर्म की सच्चाइयों को स्वीकार करने के लिए संघर्ष कर रहे एक पादरी को जेरार्ड मैनली हॉपकिंस ने जो शब्द कहे, उसके पीछे भी कुछ ऐसा ही आवेग छिपा था। उस येशुसंघी कवि ने अपने सहकर्मी को कोई किताब पढ़ने या बहस करने का निर्देश नहीं दिया, बल्कि "भिक्षा दो" कहा। ईसाई आस्था को जीने से बड़ी प्रेरक शक्ति उपजती है। हम हाल के कलीसियाई इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक से गुज़र रहे हैं। पुरोहितों द्वारा यौन शोषण घोटालों ने अनगिनत लोगों को कैथलिक धर्म से दूर कर दिया है, और धर्मविहीनता का ज्वार लगातार बढ़ रहा है, खासकर युवाओं के बीच। मेरे गुरु, दिवंगत महान कार्डिनल जॉर्ज, इस दृश्य का सर्वेक्षण करते हुए कहा करते थे, “मैं धर्मसंघों की तलाश में हूं; मैं आन्दोलनों की तलाश कर रहा हूं।" मुझे लगता है कि उनका मतलब संकट के समय में, पवित्र आत्मा पवित्रता में उत्कृष्ट पुरुषों और महिलाओं को ऊपर उठाती है जो आत्यंतिक या अतिवादी और सार्वजनिक तरीके से सुसमाचार को जीने का प्रयास करते हैं। एक बार फिर, मेरा पक्का मानना है कि, इस समय, हमें अच्छे तर्कों की आवश्यकता है, लेकिन मैं और अधिक मानता हूं कि हमें संतों की आवश्यकता है।
By: Bishop Robert Barron
Moreएक वफादार मुस्लिम होने के नाते दिन में तीन बार अल्लाह से प्रार्थना करने, उपवास करने, दान देने और नमाज़ पढने से लेकर संत पापा के निजी प्रार्थना कक्ष में बपतिस्मा लेने तक, मुनीरा की यात्रा में ऐसे मोड़ और बदलाव आये हैं जो आपको आश्चर्यचकित कर देंगे! अल्लाह के बारे में मेरी छवि एक सख्त मालिक की थी जो मेरी थोड़ी सी भी गलती पर सज़ा दे देता था। अगर मुझे किसी चीज़ की ज़रुरत थी, तो मुझे उपवास और प्रार्थना के द्वारा अल्लाह की कृपा खरीदनी थी। हमेशा यह डर मुझे सताता था कि अगर मैंने कुछ भी गलत किया तो मुझे सज़ा मिलेगी। विश्वास का पहला बीज मेरे एक चचेरे भाई को मृत्यु के करीब होने का अनुभव हुआ था, और उसने मुझे बताया कि उसे एक अंधेरी सुरंग से निकलने के दृश्य का अनुभव हुआ, जिसके अंत में उसने एक चमकदार रोशनी देखी और दो लोग वहां खड़े थे - येशु और मरियम। मैं उलझन में थी; क्या उसे पैगंबर मोहम्मद या इमाम अली को नहीं देखना चाहिए था? चूँकि उसे पूरा यकीन था कि ये येशु और मरियम थे, इसलिए हमने अपने इमाम से स्पष्टीकरण मांगा। उन्होंने उत्तर दिया कि ईसा (येशु) भी एक महान पैगम्बर हैं, इसलिए जब हम मरते हैं, तो वह हमारी आत्माओं को बचाने आते हैं। उनके उत्तर ने मुझे संतुष्ट नहीं किया, लेकिन इससे येशु के बारे में सच्चाई की मेरी खोज शुरू हो गई। खोज मेरे बहुत सारे ईसाई मित्र होने के बावजूद, मुझे नहीं पता था कि कहाँ से शुरू करूँ। मेरे ईसाई दोस्तों ने मुझे सदा सहायिका माँ मरियम की नवरोज़ी प्रार्थना (नोवेना) में आमंत्रित किया, और मैंने नियमित रूप से नोवेना में भाग लेना शुरू कर दिया, और प्रभु के वचन की व्याख्या करने वाले प्रवचनों को ध्यान से सुनना शुरू कर दिया। हालाँकि मुझे ज़्यादा कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन मेरा मानना है कि वह मरियम ही थी जिसने मुझे समझा और आख़िरकार मुझे सच्चाई तक ले गई। स्वप्नों की एक शृंखला में, जिसके माध्यम से प्रभु मुझसे वर्षों से बात करते थे, एक चरवाहे के वेश में एक आदमी की ओर इशारा करती एक उंगली को मैंने देखा, जबकि एक आवाज ने मुझे नाम से पुकारते हुए कहा, "मुनीरा, उसका अनुसरण करो।" मैं जानती थी कि चरवाहा येशु था, इसलिए मैंने पूछा कि कौन बोल रहा है। उन्होंने उत्तर दिया: "वह और मैं, हम दोनों एक हैं।" मैं उसका अनुसरण करना चाहती थी, लेकिन मुझे नहीं पता था कि कैसे करूं। क्या आपको स्वर्गदूतों में विश्वास है? हमारी एक दोस्त थी जिसकी बेटी पर भूत-प्रेत सवार था। वे इतने हताश थे कि उन्होंने मुझसे इसका समाधान भी पूछा। एक मुस्लिम होने के नाते, मैंने उनसे कहा कि हमारे पास ऐसे बाबा लोग हैं जिनके पास वे जा सकती हैं। दो महीने बाद, जब मैंने उस लडकी को दोबारा देखा तो मैं आश्चर्यचकित रह गयी। पहले वह लड़की बिलकुल दुबली-पतली, छरहरी आकृति वाली भूतनी जैसी थी, लेकिन अब वह एक स्वस्थ, उज्ज्वल, सुडौल किशोरी बन गई थी। उन्होंने मुझे बताया कि एक कैथलिक पुरोहित फादर रूफस ने येशु के नाम पर उसको शैतान के फंदे से मुक्त कराया था। कई बार उन्होंने हमें निमंत्रण दिया कि हम फादर रूफस के साथ पवित्र मिस्सा बलिदान में भाग लें। बार बार इनकार करने के बाद, अंतत: हमने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। फादर ने मिस्सा के अंत में मेरे लिए प्रार्थना की और मुझसे बाइबल से एक वाक्य पढ़ने के लिए कहा; मुझे ऐसी शांति महसूस हुई कि फिर पीछे मुड़ना नहीं पड़ा। उन्होंने क्रूस पर चढ़े व्यक्ति के बारे में बात की - जिसने मुसलमानों, हिंदुओं और दुनिया भर में सभी मानव जाति के लिए अपनी जन कुर्बान कर दी। इससे मेरे अन्दर येशु के बारे में और अधिक जानने की गहरी इच्छा जागृत हुई और मुझे लगा कि ईश्वर ने सत्य जानने की मेरी प्रार्थना के उत्तर में इन लोगों से मेरा परिचय कराया है। जब मैं घर आयी तो मैंने पहली बार बाइबल खोली और दिलचस्पी से उसे पढ़ना शुरू किया। फादर रूफस ने मुझे एक प्रार्थना समूह खोजने की सलाह दी, लेकिन मुझे नहीं पता था कि कैसे और कहाँ खोजूं, इसलिए मैंने खुद ही येशु से प्रार्थना करना शुरू कर दिया। एक समय, मैं बारी-बारी से बाइबल और कुरान पढ़ रही थी, और मैंने प्रभु से पूछा: “हे प्रभु, सत्य क्या है? यदि तू सत्य है, तो मेरे मन में केवल बाइबल पढ़ने की इच्छा भर दे।” तब से, मुझे केवल बाइबल खोलने के लिए प्रेरणा मिलती रही। जब एक मित्र ने मुझे प्रार्थना समूह में आमंत्रित किया, तो मैंने पहले मना कर दिया, लेकिन उसने जोर दिया और तीसरी बार, मुझे झुकना पड़ा। दूसरी बार जब मैं गयी, तो मैं अपनी बहन को साथ ले गयी। यह हम दोनों के लिए जीवन बदलने वाला साबित हुआ। जब उपदेशक ने प्रवचन दिया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें एक संदेश मिला है, “यहाँ दो बहनें हैं जो सत्य की खोज में आई हैं। अब उनकी खोज ख़त्म हो गई है।” जैसे-जैसे हम साप्ताहिक प्रार्थना सभाओं में शामिल होते गए, मैं धीरे-धीरे वचन को समझने लगी, और मुझे एहसास हुआ कि मुझे दो काम करने होंगे - क्षमा करना और पश्चाताप करना। जब मेरे परिवार ने मुझमें स्पष्ट परिवर्तन देखा तो वे उत्सुक हो गए, इसलिए उन्होंने भी प्रार्थना सभा में आना शुरू कर दिया। जब मेरे पिताजी को रोज़री माला के महत्व के बारे में पता चला, तो उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से सुझाव दिया कि हम घर पर एक साथ इसकी प्रार्थना करना शुरू करें। तब से, हम, एक मुस्लिम परिवार, हर दिन घुटने टेककर रोज़री माला की प्रार्थना करने लगे । चमत्कारों का कोई अंत नहीं येशु के प्रति मेरे बढ़ते प्रेम ने मुझे पुण्य देश की तीर्थयात्रा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। रवाना होने से पहले, एक सपने में एक आवाज़ ने मुझे बताया कि हालाँकि मेरे अंदर डर और गुस्सा गहरा है, लेकिन मैं जल्द ही इस से मुक्त हो जाऊंगी। जब मैंने यह सपना अपनी बहन के साथ साझा किया, यह सोचकर कि इसका क्या मतलब हो सकता है, उसने मुझे पवित्र आत्मा से सलाह लेने की बात कही। मैं हैरान थी क्योंकि मैं वास्तव में नहीं जानती थी कि पवित्र आत्मा कौन है। इस के बाद सब कुछ जल्द ही आश्चर्यजनक तरीके से बदल गया । जब हमने संत पेत्रुस के गिरजाघर का दौरा किया (जहां पेत्रुस को सपने में सभी जानवर दिखाई दे रहे थे, जिन्हें ईश्वर ने उन्हें खाने की अनुमति दी थी (प्रेरित चरित 10:11-16)), तब गिरजाघर के दरवाजे बंद थे क्योंकि हमें देर हो गई थी। फादर रूफस ने घंटी बजाई, लेकिन किसी ने उत्तर नहीं दिया। लगभग 20 मिनट के बाद, उन्होंने कहा, "चलो हम गिरजाघर के बाहर प्रार्थना करते हैं," लेकिन मुझे अचानक अपने भीतर एक आवाज़ महसूस हुई जो कह रही थी: "मुनीरा, तुम घंटी बजाओ।" फादर रूफस की अनुमति से मैंने घंटी बजाई। कुछ ही क्षणों में वे विशाल दरवाजे खुल गये। पुरोहित ठीक बगल में बैठे थे, लेकिन उन्होंने घंटी तभी सुनी जब मैंने उसे बजाया। फादर रूफस ने कहा: "अन्य जातियों के लोगों को पवित्र आत्मा प्राप्त होगी।" मैं अन्यजाति की थी! यरूशलेम में, हमने ऊपरी कक्ष का दौरा किया जहां अंतिम भोज और पवित्र आत्मा का अवतरण हुआ था। जब हम प्रभु की स्तुति कर रहे थे, हमने तूफ़ान की गड़गड़ाहट तथा बिजली और गर्जन की कड़कड़ाहट सुनी, कमरे में हवा चली और मुझे अन्य भाषाओं का वरदान मिला। मैं इस पर विश्वास नहीं कर सकी! प्रभु ने मुझे उसी स्थान पर पवित्र आत्मा का बपतिस्मा दिया जहाँ माता मरियम और प्रेरितों को पवित्र आत्मा प्राप्त हुआ था। यहाँ तक कि हमारा यहूदी टूर गाइड भी आश्चर्यचकित था। वह अपने घुटनों पर गिर गया और उसने हमारे साथ प्रार्थना की। अंकुर बढ़ता रहता है जब मैं घर लौटी, तब मैं बपतिस्मा लेने के लिए उत्सुक थी, लेकिन मेरी माँ ने कहा: "मुनीरा देखो, हम येशु का अनुसरण करते हैं, हम येशु में विश्वास करते हैं, हम येशु से प्यार करते हैं, लेकिन धर्मांतरण... मुझे नहीं लगता कि हमें यह करना चाहिए। तुम जानती हो कि हमारे मुस्लिम समुदाय के अन्दर से कई प्रतिक्रियाएं होंगे।” लेकिन मेरे भीतर प्रभु को पाने की गहरी इच्छा थी, खासकर उस सपने के बाद जिसमें उन्होंने मुझसे हर दिन मिस्सा बलिदान में शामिल होने के लिए कहा था। मुझे याद है मैं कनानी स्त्री की तरह प्रभु से विनती कर रही थी: "तू ने उसे अपनी मेज से नीचे गिरनेवाली रोटी के टुकड़े खिलाए, मेरे साथ भी उस कनानी स्त्री के जैसा व्यवहार कर प्रभु, और मेरे लिए मिस्सा बलिदान में शामिल होकर पवित्नार युखारिस्ट को प्राप्त करना संभव बना प्रभु।" कुछ ही समय बाद, जब मैं अपने पिता के साथ टहल रही थी, हम अप्रत्याशित रूप से एक गिरजाघर में पहुँचे जहाँ मिस्सा बलिदान का समारोह अभी शुरू ही हुआ था। मिस्सा में भाग लेने के बाद, मेरे पिताजी ने कहा: "चलिए, हम हर दिन यहां आएं।" मुझे लगता है कि बपतिस्मा की मेरी राह वहीं से शुरू हुई। अप्रत्याशित उपहार मैंने और मेरी बहन ने प्रार्थना समूह में शामिल होकर रोम और मेडजुगोरे की यात्रा पर जाने का फैसला किया। सिस्टर हेज़ल, जो इसका आयोजन कर रही थीं, उन्होंने मुझसे यूं ही पूछा कि क्या तुम रोम में बपतिस्मा लेना चाहोगी? मैं गुप्त और अदाम्बरहीन बप्तिस्मा चाहती थी, लेकिन प्रभु की कुछ और ही योजनाएँ थीं। सिस्टर ने बिशप से बात की, जिन्होंने हमें कार्डिनल के साथ पांच मिनट की मुलाक़ात का अवसर दिलाया, जो ढाई घंटे तक चली; कार्डिनल ने कहा कि मैं रोम में आपको बपतिस्मा प्राप्त करने केलिए सभी इंतज़ाम कर लूँगा। इसलिए हमें कार्डिनल द्वारा संत पापा के निजी प्रार्थनालय में बपतिस्मा दिया गया। मैंने फातिमा नाम रखा और मेरी बहन ने मारिया नाम रखा। हमने वहां कई कार्डिनलों, पुरोहितों और धार्मिक लोगों के साथ अपने बपतिस्मा के बाद का दोपहर का समारोही भोजन को खुशी-खुशी मनाया। मुझे बस यह महसूस हुआ कि इन सब के दौरान, प्रभु हमसे कह रहा था: “चखकर देखो कि प्रभु कितना अच्छा है; धन्य है वह, जो उसकी शरण जाता है” (स्तोत्र ग्रन्थ 34:8)। जल्द ही कलवारी का क्रूस आ ही गया। हमारे परिवार को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा, जिसके लिए हमारे समुदाय के लोगों ने ईसाई धर्म में हमारे धर्मांतरण को जिम्मेदार ठहराया। आश्चर्यजनक रूप से, मेरे परिवार के बाकी लोगों ने बिलकुल दूसरा रास्ता अपनाया। हमसे और हमारे विश्वास से मुंह मोड़ने के बजाय, उन्होंने अपने लिए बपतिस्मा की मांग की। प्रतिकूलता और विरोध के बीच, उन्हें येशु में शक्ति, साहस और आशा मिली। पिताजी ने इसे अच्छी तरह से व्यक्त किया, "सलीब या क्रूस के बिना ईसाई धर्म नहीं हो सकता है।" आज, हम अपने विश्वास में एक-दूसरे को प्रोत्साहित करना जारी रखते हैं और जब भी मौका मिलता है, इसे दूसरों के साथ साझा करते हैं। जब मैं अपनी चाची से अपने धर्म परिवर्तन के अनुभव के बारे में बात कर रही थी, तब उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने ईश्वर को "पिता" क्यों कहा। उसके लिए ईश्वर, अल्लाह है। मैंने उससे कहा कि मैं उसे पिता कहती हूँ, क्योंकि उसने मुझे अपनी प्यारी बच्ची बनने के लिए आमंत्रित किया है। मुझे उसके साथ एक प्रेमपूर्ण संबंध बनाने में खुशी होती है जो मुझसे इतना प्यार करता है कि उसने मुझे मेरे सभी पापों से शुद्ध करने और अनन्त जीवन का वादा प्रकट करने के लिए अपने पुत्र को भेजा। अपने उल्लेखनीय अनुभव साझा करने के बाद, मैंने उससे पूछा कि अगर वह मेरी जगह होती तो क्या वह अब भी अल्लाह का अनुसरण करती। उसके पास कोई जवाब नहीं था।
By: Munira Millwala
Moreप्रश्न - पवित्र यूखरिस्त में मसीह की वास्तविक उपस्थिति में अधिक विश्वास को प्रेरित करने के प्रयास में इन दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका तीन साल का "यूखरिस्तीय पुनर्जागरण" अभियान चला रहा है। ऐसे कौन से पारंपरिक तरीके हैं जिनसे मेरा परिवार यूखरिस्त के प्रति अधिक श्रद्धा का अभ्यास कर सकता है? उत्तर - एक कैथलिक अध्ययन में कहा गया है कि केवल एक-तिहाई कैथलिक विश्वास करते हैं कि येशु मसीह वास्तव में पवित्र यूखरिस्त में मौजूद हैं। इसलिए इस के प्रत्त्युत्तर में, कलीसिया वह बात फिर से जागृत करने की कोशिश कर रही है जिसे संत जॉन पॉल द्वितीय "यूखरिस्तीय विस्मय" कहते हैं - वास्तविक उपस्थिति में एक विस्मय और आश्चर्य: येशु, यूखरिस्त में छिपा हुआ फिर भी वास्तव में मौजूद है। हम एक परिवार के रूप में यूखरिस्त के प्रति श्रद्धा कैसे विकसित कर सकते हैं? यहाँ कुछ सुझाव हैं: पहला, उपस्थिति यदि हमें पता होता कि कोई व्यक्ति किसी निश्चित स्थान पर हर सप्ताह एक हजार डॉलर मुफ्त में दे रहा है, तो हम निश्चित रूप से वहां मौजूद रहेंगे। हमें इससे कहीं अधिक मूल्यवान चीज़ यूखरिस्त में प्राप्त होती है — स्वयं परमेश्वर। वह ईश्वर जिसने ब्रह्मांड का सारा सोना बनाया। वह ईश्वर जिसने आपको प्रेम करके आपके व्यक्तित्व को अस्तित्व में लाया। वह परमेश्वर जो आपके लिए शाश्वत उद्धार को खरीदने के लिए क्रूस पर अपनी जान दी। वह ईश्वर जो अकेले ही हमें अनन्त जीवन में खुश रख सकता है। यूखरिस्तीय जीवन के लिए पहला कदम कम से कम साप्ताहिक (या यदि आवश्यक हो तो और अधिक बार) मिस्सा बलिदान तक पहुंचने के लिए आवश्यक त्याग उठाना है। स्काउट में कैंप-आउट के बाद मेरे पिता अक्सर मुझे और मेरे भाइयों को मिस्सा में ले जाने के लिए हर संभव कोशिश करते थे। मेरा भाई एक विशिष्ट बेसबॉल टीम के ट्रायल में भागीदारी नहीं कर सका क्योंकि ट्रायल रविवार की सुबह था। हम जहां भी छुट्टियों पर जाते थे, मेरे माता-पिता निकटतम कैथलिक चर्च का पता लगाना सुनिश्चित करते थे। यह देखते हुए कि यूखरिस्त कितना मूल्यवान है, वह प्रभु हर त्याग और बलिदान से भी बढ़कर है! दूसरा, पवित्रता यह सुनिश्चित करना कि हमारी आत्माएँ गंभीर पापों की अशुद्धता से विरत हैं, यह यूखरिस्तीय भोज की एक शर्त है। कोई भी व्यक्ति बड़े भोज में अपने हाथ धोए बिना नहीं बैठेगा - न ही किसी मसीही को पाप स्वीकार द्वारा अपने आप को शुद्ध हुए बिना यूखरिस्त या परम प्रासाद के पास जाना नहीं चाहिए। तीसरा, जुनून पूरे इतिहास को पढने से पता चलता है कि कैथलिक लोगों ने मिस्सा बलिदान में भाग लेने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली है। आज भी दुनिया में, चीन, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे कम से कम 12 देश ऐसे हैं जहां कैथलिकों पर कड़े प्रतिबंध हैं। इन चुनौतियों के बावजूद कैथलिक लोग अभी भी मिस्सा बलिदान में भाग लेने के इच्छुक हैं। क्या हमारे अंदर भी उसके लिए वही भूख है? इस भूख को अपने दिल में जगाओ! एहसास करें कि हमें राजा के सिंहासन कक्ष में बुलाया गया है; हमें कलवारी के बलिदान के लिए अग्रिम पंक्ति की सीट मिलती है। हमें वास्तव में प्रत्येक मिस्सा बलिदान द्वारा स्वर्ग के पूर्वाभास में भाग लेने की अनुमति है! चौथा, प्रार्थना एक बार जब हमने प्रभु को ग्रहण कर लिया, तो हमें प्रार्थना में महत्वपूर्ण समय व्यतीत करना चाहिए। रोम के महान प्रचारक, संत फिलिप नेरी, परम प्रसाद प्राप्त करने के बाद, मिस्सा समाप्ती से पहले गिरजाघर से बाहर निकलने वाले किसी भी व्यक्ति के पीछे जलती हुई मोमबत्तियों के साथ दो वेदी सेवकों को भेजते थे - इस सत्य को पहचानते हुए कि मसीह को प्राप्त करने के बाद वह व्यक्ति सचमुच एक जीवित मंजूषा है ! प्रभु को ग्रहण करने के तुरंत बाद, उसके साथ अपने दिल की बात साझा करने का सौभाग्यशाली समय हमारे पास होता है, क्योंकि वह काफी हद तक हमारे दिल से केवल कुछ इंच नीचे, हमारे शरीर में रहता है! लेकिन मसीह की यूखरिस्तीय उपस्थिति के लिए प्रार्थना मिस्सा समाप्त होने के बाद भी लंबे समय तक चलनी चाहिए। एक बार एक संत थी जो यूखरिस्तीय जीवन जीना चाहती थी, लेकिन केवल रविवार को ही मिस्सा बलिदान में जा पाती थी। उन्होंने गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को पवित्र भोज की आध्यात्मिक तैयारी के लिए समर्पित किया। फिर रविवार को, उन्हें खुशी हुई कि वे प्रभु को ग्रहण कर सकी - और सोमवार, मंगलवार और बुधवार को उसे प्राप्त करने के लिए धन्यवाद देने में बिताया! इसलिए, हमें प्राप्त यूखरिस्त के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने और इस उपहार को दोबारा प्राप्त करने के लिए अपने दिलों को तैयार करने के लिए पूरे सप्ताह प्रार्थना में समय बिताना चाहिए! पांचवां, आराधना यूखरिस्तीय जीवन यूखरिस्तीय आराधना के साथ जारी रहता है, जो हमारे यूखरिस्तीय ईश्वर की पूजा को जारी रखता है। जितनी बार संभव हो, आराधना में जाएँ। जैसा कि धन्य कार्लो अक्यूटिस ने कहा, "जब हम सूरज का सामना करते हैं, तो हम भूरे हो जाते हैं, लेकिन जब हम खुद को यूखरिस्तीय येशु के सामने रखते हैं, तो हम संत बन जाते हैं।" वह जानता था कि केवल परमेश्वर ही है जिसने हमें पवित्र बनाया है, और उसकी उपस्थिति में रहकर, येशु कार्य करेगा! मैं इसकी गवाही दे सकता हूं. जब मैं किशोर था तब मेरे पल्ली ने सतत या अनवरत आराधना (प्रति दिन 24 घंटे, सप्ताह के सातों दिन) शुरू की और मैंने साप्ताहिक आराधना में एक घंटा बिताना शुरू कर दिया। वहां मुझे एहसास हुआ कि प्रभु मुझसे कितना प्यार करते हैं और वहीँ मैं एक पुरोहित के रूप में अपना जीवन उन्हें देने के लिए बुलाया गया था। यह मेरे अपने मन परिवर्त्तन का एक बड़ा हिस्सा था। वास्तव में, मेरी गृह पल्ली में, 160 से अधिक वर्षों से किसी युवा पल्लीवासी को धर्मसंघी बुलाहट प्राप्त नहीं हुआ था। सतत आराधना के केवल 20 वर्षों के बाद, हमारी पल्ली से 12 से अधिक धर्मसंघी बुलाहट हुए हैं ! धन्य कार्लो अक्यूटिस हमें फिर से याद दिलाते हैं, "यूखरिस्त स्वर्ग के लिए मेरा राजमार्ग है।" हमें यह जानने के लिए दूर तक देखने की ज़रूरत नहीं है कि ईश्वर कहाँ रहता है और उसे कैसे खोजा जाए - वह दुनिया के हर कैथलिक गिरजाघर के हर पवित्र मंजूषा में रहता है!
By: Father Joseph Gill
Moreक्या आप उस पहले शहीद को जानते हैं जिसने पाप स्वीकार का रहस्य उजागर करने के बजाय मरना पसंद किया? 14-वीं सदी में प्राग शहर में फादर जॉन नेपोमुसीन रहते थे, जो एक प्रसिद्ध सुसमाचार के प्रवक्ता एवं प्रचारक थे। जैसे-जैसे उनकी प्रसिद्धि फैलती गई, राजा वेन्सस्लाउस चतुर्थ ने उन्हें शहर के लोगों की जरूरतों का ख्याल रखने के लिए तथा अदालत में मुकदमों में बहस निपटाने के लिए आमंत्रित किया। वे अंततः रानी के पाप स्वीकार सुनने का कार्य करने लगे। रानी के आत्मिक निर्देशक के रूप में उन्होंने रानी को राजा की क्रूरता को धैर्यपूर्वक सहन करने के लिए आध्यात्मिक रूप से उनका मार्गदर्शन किया। अपने गुस्से और ईर्ष्या के आक्रोश के लिए बदनाम राजा ने एक दिन पुरोहित जॉन नेपोमुसीन को अपने कक्ष में बुलाया और उनसे रानी के पाप स्वीकार के बारे में पूछताछ करना शुरू कर दिया। फादर जॉन ने राजा द्वारा रिश्वत की पेशकश और भयंकर यातना के बावजूद पाप स्वीकार के रहस्यों को उजागर करने से इनकार कर दिया; फलस्वरूप, उन्हें कैद कर लिया गया। राजा उन पर दबाव डालते रहे और बदले में उन्हें धन और पुरस्कारों की पेशकश भी की। जब राजा ने देखा कि रिश्वत से काम नहीं चलेगा, तो उन्होंने पुरोहित जॉन नेपोमुसीन को मृत्युदंड की धमकी दी। फादर जॉन को हर तरह की यातना से गुज़रना पड़ा, जिसमें उनके शरीर के दोने बाजू के हिस्सों को मशालों से जलाना भी शामिल था, लेकिन इससे भी वे नहीं डगमगाए। अंत में, राजा ने उन्हें जंजीरों में बाँधने का आदेश दिया, उनके मुंह में लकड़ी का एक कुंदा रखकर शहर में घुमाया, और कार्ल्सब्रुक (चार्ल्स ब्रिज) नामक पुल से उन्हें मोल्दाउ नदी में फेंक दिया गया। संत की प्रतिक्रिया वही रही और उन्होंने कहा था: "मैं हजार बार मरना पसंद करूंगा।" राजा के इस क्रूर आदेश को 20 मार्च, 1393 को निष्पादित किया गया था। इसके बाद जॉन नेपोमुसीन के शरीर को मोल्दाउ नदी से बाहर निकाला गया और प्राग के कैथेड्रल में दफनाया गया। 1719 में, जब गिरजाघर में उनकी कब्र खोली गई, तो उनकी जीभ हलकी सिकुड़ी हुई लेकिन अदूषित और अभ्रष्ट अर्थात पूरी तरह ठीक स्थिति में पाई गई। 1729 में संत पापा बेनेदिक्त तेरहवें द्वारा उन्हें संत घोषित किया गया। अक्सर उनकी तस्वीर एक पुल के पास होठों पर एक उंगली रखे और सिर पर पांच सितारों के साथ चित्रित की जाती है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जिस रात फादर जॉन की हत्या हुई थी, उस स्थान पर जहां वे डूब गये थे, वहां उस पुल के ऊपर आसमान पर पांच सितारे देखे गए थे । पाप स्वीकार के नियमों के प्रति वफादारी के उनके बहादुर कार्य के कारण, फादर जॉन नेपोमुसीन को पाप स्वीकार सुनने वालों के संरक्षक संत के रूप में माना जाता है।
By: Shalom Tidings
Moreजीवन में संकट और विपत्तियाँ थका देने वाली हो सकती हैं... लेकिन जीवन हमें लड़ने और जीवित रहने में मदद करने के लिए संकेत प्रदान करता है। आत्मिक निदेशन के क्षेत्र में वर्षों से सेवा करने के दौरान, जैसा कि मैंने लोगों को अपने संघर्षों को साझा करते हुए सुना है, एक बात अक्सर दोहराई जाती है कि जब वे संकटों से गुज़र रहे होते हैं तो उन्हें लगता है कि ईश्वर ने उन्हें त्याग दिया है या उनसे दूरी बनाए रखने या अलग-थलग रहने का निर्णय लिया है। "मैं क्या गलत कर रहा हूं? ईश्वर ने मुझे इस स्थिति में क्यों डाला है? इन सब विपत्तियों के बीच वह कहाँ है?” अक्सर लोग सोचते हैं कि एक बार जब उनका गंभीर मनपरिवर्त्तन हो जाएगा और वे येशु के करीब आ जाएंगे, तो उनका जीवन समस्या-मुक्त हो जाएगा। परन्तु प्रभु ने कभी इसका वादा नहीं किया। वास्तव में, परमेश्वर का वचन इस पर स्पष्ट है। कांटे और ऊँट कटारे प्रवक्ता ग्रन्थ 2:1 में, यह कहा गया है, "पुत्र, यदि तुम प्रभु की सेवा करना चाहते हो, तो विपत्ति का सामना करने के लिए तैयार हो जाओ" (वैसे, वह पूरा अध्याय पढ़ने लायक है)। प्रेरितों ने सुसमाचार का प्रचार प्रसार करते समय नए मसीहियों को इस सत्य के लिए तैयार करने का भी प्रयास किया। हम प्रेरित चरित 14:22 में पढ़ते हैं, "वे शिष्यों को ढारस बंधाते और यह कहते हुए विश्वास में दृढ रहने के लिए अनुरोध करते कि हमें बहुत से कष्ट सह कर ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना है।'" जैसे-जैसे हम परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते में आगे बढ़ते हैं और उसके वचन का पालन करने के बारे में अधिक गंभीर होते जाते हैं, हमें कुछ गंभीर चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। हमें ऐसे निर्णय लेने और ऐसे रुख अपनाने होंगे जो हमें अलोकप्रिय बना सकते हैं। लोग हमें गलत समझने लगेंगे। हर कोई हमें पसंद नहीं करेगा। यदि आप चाहते हैं कि हर कोई आपको पसंद करे, तो येशु का अनुसरण करने का प्रयास छोड़ दीजिये। क्यों? क्योंकि सुसमाचार का जीवन जीना - जैसा कि येशु ने हमें उपदेश दिया था - हमारी संस्कृति के विरुद्ध जाना है। येशु स्वयं हमें इस बारे में चेतावनी देते हैं “यदि संसार तुम लोगों से बैर करें, तो याद रखो कि तुम से पहले उस ने मुझ से बैर किया। यदि तुम संसार के होते, तो संसार तुम्हें अपना समझकर प्यार करता; परन्तु तुम संसार के नहीं हो, क्योंकि मैं ने तुम्हें संसार में से चुन लिया है, इसलिए संसार तुम से बैर करता है” (योहन 15:18-19)। तो हाँ, हमें इस जीवन में कई संकटों और कठिनाइयों से गुजरना होगा। लेकिन जैसा कि मैं आत्मिक निर्देशन में लोगों को याद दिलाती हूं, ईश्वर हमें उन कठिन क्षणों में कभी भी अकेला नहीं छोड़ता है। वह हमें संकट के मार्ग पर प्रोत्साहन और सहायता देना चाहता है ताकि हम दृढ़ रहें और जीवन के तूफ़ानों से अधिक मजबूत होकर गुजरें और हमारे प्रति उसके गहरे और स्थायी प्रेम के प्रति हम अधिक आश्वस्त हों। ईश्वर भरोसेमंद है! संकेतों की समझ पुराने नियम में भविष्यवक्ता एलियाह के उदाहरण के बारे में सोचें। जब उसने बाल देवता के झूठे भविष्यवक्ताओं का सामना किया तो वह भीड़ के विरुद्ध गया और मूर्तिपूजा के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया। नाटकीय और बेतहाशा सफल टकराव के बाद, रानी इज़ेबेल क्रोधित हो गई और उसने एलियाह को मारने की ठान ली। अपनी जान लिए जाने के डर से एलियाह जल्दबाजी में मरुभूमि की ओर भाग गए। वे थकावट से चूर होकर और उदास होकर एक झाड़ू के पेड़ के नीचे गिर गए और वे वहीँ मरना चाहते थे। तभी ईश्वर ने उनके लिए भोजन और पानी लाने के लिए एक दूत भेजा। देवदूत ने कहा, "उठिए और खाइए, नहीं तो रास्ता आप केलिए अधिक लम्बा हो जाएगा" (1 राजा, 18 और 19)। ईश्वर ठीक-ठीक जानता है कि हमें क्या चाहिए। वह जानता था कि एलियाह को एक तनावपूर्ण घटना के बाद सोने, खाने और ठीक होने की जरूरत थी। प्रभु जानता है कि आपको क्या चाहिए। ईश्वर हमारी आवश्यकताओं को पूरा करना और हमें प्रोत्साहित करना चाहता है। हालाँकि, हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि वह ऐसा कैसे करना चाहता होगा। मुझे लगता है कि कई बार हम अपने साथ संवाद करने के प्रभु के प्रयासों को चूक जाते हैं। प्रभु ने एलियाह से आँधी, भूकम्प, या अग्नि में बात नहीं की। लेकिन "निरंतर मंद समीर की ध्वनि" में, एलियाह ने ईश्वर के दर्शन प्राप्त किये। हर जगह लिली का पुष्प कुछ वर्ष पहले, मैं कठिन परीक्षाओं और अकेलापन के दौर से गुज़र रही थी। जिंदगी बहुत भारी और बोझिल लग रही थी। एक शनिवार, मेरा एक युवा मित्र घुड़सवारी करते हुए बाहर गया और उसे रेगिस्तान में एक सफेद लिली जैसा फूल मिला और उसने उसे वापस लाकर मुझे दे दिया। अगले दिन, मैं एल पासो में सड़क पर चल रही थी और मैंने जमीन पर एक कृत्रिम सफेद लिली पड़ी देखी। मैंने उसे उठाया और अपने साथ घर ले गयी। अगले दिन मुझे फुटपाथ के पास एक और सफेद लिली जैसा फूल उगता हुआ दिखाई दिया। तीन दिनों में तीन सफेद लिली। मैं जानती थी कि इसमें प्रभु की ओर से एक संदेश है, लेकिन मैं ठीक से नहीं जानती थी कि प्रभु क्या कहना चाह रहा था। जैसे ही मैंने इस पर विचार किया, एक स्मृति अचानक मेरे सामने आ गई। कई साल पहले, जब मैं हमारे समुदाय में एक नयी मिशनरी थी, हम अपने युवा केंद्र में मिस्सा बलिदान में भाग ले रहे थे। परमा प्रसाद ग्रहण करने के बाद, मैं आँखें बंद करके प्रार्थना कर रही थी। किसी ने मेरे कंधे को थपथपाया। अपनी प्रार्थना से चौंककर, मैंने ऊपर देखा और पुरोहित को वहाँ खड़ा देखा। उन्होंने मुझसे कहा, “प्रभु चाहता है कि आप यह जान लें कि उसकी दृष्टि में आप एक लिली हो।” और फिर, पुरोहित वेदी पर वापस गये और बैठ गये। मैं वास्तव में अभी तक उस पुरोहित को नहीं जानती हूँ, और उन्होंने फिर कभी मेरे साथ इस तरह का कोई अन्य संदेश साझा नहीं किया। लेकिन मुझे प्रोत्साहित करने के लिए प्रभु के एक विशेष शब्द के रूप में मैंने इसे अपने दिल में संग्रहीत किया। अब, इतने वर्षों के बाद, वह स्मृति मेरे पास वापस आ गई, और अब मैं लिली को समझ गयी हूँ। मैं जिस कठिन समय से गुज़र रही थी, उस दौरान प्रभु मुझे प्रोत्साहित करना चाहता था। वह मुझे याद दिला रहा था कि मैं उसकी लिली हूं और वह मुझसे बहुत प्यार करता है। इसने मेरे दिल को बहुत आवश्यक शांति और इस आश्वासन से भर दिया कि तूफानों के बीच में से मैं अकेली नहीं गुजर रही थी। ईश्वर बड़ी विश्वस्तता के साथ उन तूफानों के बीच में से मुझे देखना चाह रहा था। ध्यान दें ईश्वर आपको नाम से जानते हैं. आप उनकी प्यारी संतान हैं. वह आपको देखता है और जिस मुश्किल से आप गुजर रहे हैं, वह सब जानता है। वह आपसे अपने प्यार का संचार करना चाहता है, लेकिन आम तौर पर संकेत धीरे-धीरे आते हैं। अगर हम ध्यान नहीं देंगे तो वह संकेत आपसे चूक जा सकता है। मैं लिली के साथ प्रेम के उस संदेश को भूल सकती थी। मैं सोच सकती थी कि वे महज़ एक संयोग थे। लेकिन मैं जानती थी कि यह एक संयोग से कहीं अधिक था, और मैं संदेश जानना चाहती थी। जब मैंने अपने दिल में सोचा कि इसका अर्थ क्या हो सकता है तो ईश्वर ने इसे मेरे सामने प्रकट किया। और जब मैंने इसे समझा, तो इससे मुझे सांत्वना और सहने की शक्ति मिली। इसलिए मैं आपको प्रोत्साहित करती हूं — संकटों के दौरान दृढ़ बने रहें। जीवन से न भागें! और रास्ते में ईश्वर के प्यार और प्रोत्साहन के उन छोटे संकेतों को खोजें। मैं आपको गारंटी देती हूं कि वे संकेत उन्हीं मार्गो पर हैं। हमें बस अपनी आंखें और कान खोलकर ध्यान देने की जरूरत है।'
By: Ellen Hogarty
Moreमुझे तब तक कभी भी "बोझ" का वास्तविक अर्थ समझ नहीं आया था... आज सुबह भारीपन महसूस करती हुई, मुझे पता था कि यह प्रार्थना में लंबा समय बिताने का स्पष्ट आह्वान है। यह जानते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति सभी बुराइयों के लिए औषधि है, मैं अपनी "प्रार्थना कोठरी" में बैठ गयी। आज के लिए मेरी “प्रार्थना कोठरी”, मेरे सामने बरामदे पर थी। अकेले, लेकिन पक्षियों की चहचहाहट और पेड़ों के बीच से गुजरती शांत हवा के साथ, मैंने अपने फोन से आने वाले सौम्य भक्ति संगीत के स्वर के बीच में विश्राम किया। मैंने अक्सर उस आज़ादी का अनुभव किया है जो खुद से, अपने रिश्तों से, या दुनिया की चिंताओं से नज़रें हटाने से मिलती है। ईश्वर की ओर ध्यान आकर्षित करने पर मुझे भजन 22 का श्लोक याद आया: "यद्यपि तू मंदिर में विराजमान है, इस्राएल तेरा स्तुतिगान करता है" (3)। वास्तव में, ईश्वर अपने लोगों के स्तुतिगान में निवास करता है। मैं एक बार फिर आत्मा में केंद्रित महसूस करने लगी, और अपने देश और दुनिया पर मंडरा रहे बोझ से मुक्त हो गयी। शांति लौट आई क्योंकि मैंने महसूस किया कि ईश्वर मुझे उन बोझों को उठाने के लिए नहीं बुला रहा था, बल्कि संत मत्ती के सुसमाचार में येशु द्वारा दिए गए जूए को गले लगाने के लिए था: "हे थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो, तुम सभी मेरे पास आओ, और मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो, और मुझ से सीखो; मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूं। इस तरह तुम अपनी आत्मा केलिए विश्राम पाओगे।” (11:28,29). एक ईसाई की पहचान मेरे दोनों माता-पिता खेतीबारी करते हुए पले-बढ़े। शायद उन्होंने दो जानवरों को उनके कंधे पर लकड़ी के पट्टे से बंधे हुए देखा होगा, लेकिन मैंने नहीं देखा था। मैंने हमेशा उस वाक्य की व्याख्या येशु को हमारे साथ जीवन में साझेदारी करते हुए चित्रित करके की थी। वह, बोझ का भार उठाते हुए, और मैं, साथ-साथ चलती हुई, उनकी मदद और मार्गदर्शन से जो कार्य मुझे करना था उसे पूरा करती हुई। लेकिन हाल ही में, मुझे पता चला कि "जुआ" पहली सदी का यहूदी मुहावरा था जिसका मतलब गर्दन से जुड़े बैलों की कृषि संबंधी छवि से बिल्कुल अलग था। "जुआ", जैसा कि येशु ने प्रयोग किया था, रब्बी, अर्थात यहूदी गुरु की शिक्षाओं के संग्रह को संदर्भित करता है। किसी विशेष रब्बी की शिक्षाओं का पालन करने का निर्णय लेकर, एक व्यक्ति उसका शिष्य बन जाता है और उसके साथ चलने का फैसला लेता है। वास्तव में, येशु कह रहे हैं, "मैं तुम्हें दिखा रहा हूँ कि परमेश्वर के साथ चलना कैसा होता है।" यह कोई कर्तव्य या दायित्व नहीं, बल्कि एक विशेषाधिकार और उपहार है! हालाँकि मैंने येशु के "जूए" को एक विशेषाधिकार और उपहार के रूप में अनुभव किया था, लेकिन "दुनिया की परेशानियों" का अनुभव करने के बारे में उसने वादा किया था। लेकिन मुझे डर था कि इससे अक्सर मेरी खुशी मुझसे छीन ले जायेगी जो एक ईसाई की पहचान है। आज सुबह की प्रार्थना के दौरान, मैंने लगभग पच्चीस साल पहले एक फ्रांसिस्कन पादरी द्वारा लिखी गई एक किताब खोली, और उस पृष्ठ को देखा जिसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यह आज ही लिखा गया हो: 'जब अनुग्रह एक अनुभवी वास्तविकता नहीं रह जाती है, तो ऐसा लगता है कि स्वतंत्रता का क्षेत्र भी खो गया है... दूसरे पक्ष को राक्षसी बनाना बहुत आसान है। हम इस देश में चुनावों में इसे बड़े पैमाने पर लिखते हुए देखते हैं। कोई भी पक्ष जानता है कि दूसरे पक्ष पर हमला कैसे करना है। हमारे पास विश्वास करने के लिए कुछ भी सकारात्मक नहीं है, कोई भी ऐसी चीज़ जो प्रबुद्ध या समृद्ध या गहरी हो। नकारात्मक पहचान, भले ही वह उथली हो, समर्पित निर्णय की तुलना में अधिक आसानी से आती है। सच कहूँ तो, पक्ष की अपेक्षा विपक्ष में होना कहीं अधिक आसान है। यहां तक कि कलीसिया में भी, कई लोगों के पास आगे बढ़ने का कोई सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं है, इसलिए वे आरोप को पीछे या विपरीत दिशा में ले जाते हैं। ध्यान दें कि येशु की 'ईश्वर के राज्य' की अवधारणा पूरी तरह से सकारात्मक है - भय-आधारित या किसी व्यक्ति, समूह, पाप या समस्या के प्रति विरुद्ध नहीं।' (एवरीथिंग बिलॉन्ग्स, 1999) तिल तिल मसीह की छवि में मैं जो भारीपन महसूस कर रही थी, वह न केवल हमारे देश में विभाजन के कारण हुआ, बल्कि मेरे अपने वृत्त में उन लोगों के बीच भी था, जो मेरे जैसे, येशु को "प्रभु" पुकारते हैं, फिर भी वे दूसरे व्यक्ति की अलग बुलाहट और पथ का सम्मान करने में असमर्थ मालूम पड़ते हैं। यह जानते हुए कि येशु ने उन लोगों की गरिमा बहाल की जिन्हें समाज ने शर्मिंदा किया था, क्या यह वही नहीं होना चाहिए जो हम, उनके अनुयायियों के रूप में, एक दूसरे के लिए करना चाहते हैं? हमारा काम बहिष्कृत करना नहीं, सम्मिलित करना है; मुंह मोड़ना नहीं , बल्कि हर व्यक्ति के पास पहुँचना है; आरोप लगाना नहीं, परन्तु सबको सुनना है। मैंने स्वयं इससे संघर्ष किया। यह समझना कठिन था कि दूसरे लोग चीजों को इस तरह से कैसे देख सकते हैं जो मुझे मसीही संदेश के विपरीत लगती है, फिर भी उन्हें उस दृष्टि के माध्यम से देखने में वही कठिनाई हुई जिसके माध्यम से मैं अब येशु के "जूए" को देखती हूं। मैंने वर्षों पहले "सिखाने योग्य" भावना रखने का मूल्य सीखा था। हमारे लिए यह महसूस करना आसान है कि हमारे पास एकमात्र सत्य है, फिर भी, यदि हम दृढ़ शिष्य हैं, तो हम न केवल प्रार्थना के माध्यम से बल्कि पढ़ने, पवित्र धर्मग्रन्थ पर मनन करने और अपने से अधिक बुद्धिमान लोगों को सुनने के माध्यम से लगातार अपनी दृष्टि का विस्तार करेंगे। हम किसे अपने ऊपर प्रभाव डालने की जगह देना चाहते हैं, यह सर्वोपरि है। परखे हुए विश्वास और सत्यनिष्ठा वाले व्यक्ति, जिन्होंने "अपनी बुलाहट के योग्य जीवन" जीया है, हमारे ध्यान के पात्र हैं। सबसे बढ़कर, जो प्रेम को आदर्श बनाते हैं, सभी की भलाई की तलाश करते हैं, उन लोगों की मिसाल हमें वर्षों तक बढ़ने और बदलने में मदद करेगी। हमारा चरित्र धीरे-धीरे परिष्कृत होता जाएगा, क्योंकि हम "मसीह की छवि में परिवर्तित" हो रहे हैं। अगर हम, अपने पूरे ज्ञानोदय में, अभी भी महसूस करते हैं कि हमें सच बोलना चाहिए जैसा कि हम इसे समझते हैं, यहां तककि उस प्यार के साथ भी जो इसके साथ जुड़ा हुआ है, तो यह सोचने में गलती करना बहुत आसान है कि हम किसी की ज़िंदगी में पवित्र आत्मा की आवाज़ हैं! केवल ईश्वर ही उसके लिए जीए गए जीवन के हृदय, मन और आज्ञाकारिता को जानता है। उसकी आत्मा का कार्य और दूसरे की प्रतिक्रिया हमारे अधिकार क्षेत्र नहीं हैं। निश्चित रूप से, अच्छे माता-पिता एक छोटे बच्चे पर उंगली नहीं उठाएंगे और इस बात पर ज़ोर नहीं देंगे कि वह बच्चा एक वयस्क की तरह व्यवहार करें। अच्छे माता-पिता समझते हैं कि बच्चे को परिपक्व होने में कई साल, बहुत सारी शिक्षा और एक अच्छे नमूने की ज़रुरत है। शुक्र है, हमारे पास एक बहुत अच्छे माता-पिता हैं! भजन 22 फिर याद आया। वही भजन जिसे येशु ने अपने दर्द और पीड़ा की गहराई में क्रूस से उद्धृत किया था, इस अनुस्मारक के साथ समाप्त होता है कि प्रत्येक पीढ़ी अपने बच्चों को प्रभु द्वारा किए गए अच्छे कामों के बारे में बताएगी। अनुग्रह प्रचुर मात्रा में है, और स्वतंत्रता आती है। मैंने फिर से फैसला किया कि जिन्हें मैं नहीं समझती और जो मुझे नहीं समझते उनके प्रति मैं अनुग्रह और स्वतंत्रता दोनों को समर्पित करूंगी। जिसके साथ जीवन भर मेरा जूआ जुड़ा है, वही मुझे रास्ता दिखाता है।
By: Karen Eberts
Moreदुनिया भर में विभिन्न कारागार में कैद एक करोड़ लोगों में से किसी से भी मुलाक़ात करना किसी भी समय संभव है। आप आश्चर्यचकित होंगे कि यह कैसे संभव होगा? पढ़ते रहिये... "जब मैं कारागार में था, तब तुम मुझसे मिलने आये।" ये वे लोग हैं जिन्हें येशु ने न्याय दिवस पर पुरस्कृत करने का वादा किया था। कैदियों से मुलाकात को नियंत्रित करने वाले नियम हैं, लेकिन क्या ऐसे तरीके हैं कि कोई दुनिया भर में कैद किसी एक या सभी एक करोड़ लोगों से मुलाकात कर सके? हाँ! सबसे पहले सभी कैदियों के लिए नियमित रूप से प्रार्थना करें, किसी ऐसे व्यक्ति का नाम लेकर प्रार्थना करें, जिसे आप व्यक्तिगत रूप से नाम से जानते हों। इस प्रार्थना के समय मोमबत्ती जलायें: यह परमेश्वर तक प्रार्थना के उठने और कैदी के जीवन के अंधेरे में रोशनी लाने का प्रतीक भी हो सकता है। जब मुझे जेल में डाल दिया गया तो मेरे परिवार और दोस्तों ने, विशेष रूप से, मेरे लिए, सर्वशक्तिमान ईश्वर को अर्पित करने की जीवित लौ के रूप में मोमबत्तियाँ जलाईं। मुझे यह बहुत प्रभावी लगा. यह आश्चर्यजनक था कि सामान्य जेल जीवन की निराशा में अचानक खुशी की किरण चमकती थी। कुछ छोटा, लेकिन इतना सार्थक कि मैं एक पल के लिए भूल जाऊँगा कि मैं कहाँ था और किन परिस्थितियों में था, जिसने मुझे 'आखिरकार यहाँ भी एक परमेश्वर है” ऐसा सोचने के लिए प्रेरित किया। लेकिन मेरा मानना है कि जेल में बंद लोगों का या प्रार्थना की अत्यधिक आवश्यकता वाले किसी भी व्यक्ति की मदद करने का सबसे शक्तिशाली तरीका उन पवित्र अनमोल घावों पर विचार करना है जो हमारे प्रभु ने पुण्य बृहस्पतिवार की रात को उनकी गिरफ्तारी से लेकर पुण्य शुक्रवार तीसरे पहर को उनकी मृत्यु तक अपनी दुःख पीड़ा के दौरान झेले थे। अटल प्रतिज्ञा प्रभु के शरीर पर हुए सभी प्रहारों और हमलों पर विचार करें, जिसमें क्रूर कोड़े और कांटों के मुकुट के घावों का निरंतर दर्द भी शामिल है, लेकिन विशेष रूप से उसके हाथों, पैरों और बगल पर लगे पांच सबसे कीमती घावों पर। संत फॉस्टिना हमें बताती हैं कि जब हम येशु के घावों पर विचार करते हैं तो इससे प्रभु को ख़ुशी होती है, और जब हम ऐसा करते हैं तो वह हम पर करुना की वर्षा बरसाने की प्रतिज्ञा करते हैं। इस दयालु, उदार प्रस्ताव का लाभ उठाएँ जो उसने इस युग के लिए आरक्षित रखा है। अपने लिए, उन लोगों के लिए जिन्हें आप नाम से जानते हैं, और उन सभी एक करोड़ कैदियों के लिए, जो न्यायसंगत और अन्यायपूर्ण, सभी प्रकार के कारणों से जेल में बंद हैं, उन पर अनुग्रह और दया के लिए प्रार्थना करें। वह हर एक आत्मा को बचाना चाहता है, हर एक को उसकी दया और क्षमा प्राप्त करने के लिए अपने पास वापस बुलाता है। पददलितों, हाशिये पर रहनेवाले लोगों, गरीबों, बीमारों और अपाहिजों तथा उन मूक पीड़ितों के लिए भी प्रार्थना करें जिनके लिए बोलने वाला कोई नहीं है। उन सभी के लिए प्रार्थना करें जो भूखे हैं –ताकि उन्हें भोजन और ज्ञान मिलें, या अपनी ईश्वर प्रदत्त प्रतिभाओं का उपयोग करने के अवसर उन्हें मिलें। अजन्मे और ईश्वरविहीनों के लिए प्रार्थना करें। हम सभी किसी न किसी प्रकार के कैदी हैं, लेकिन विशेष रूप से, हम पाप के सभी घातक रूपों के कैदी हैं। वह हमसे अपने बहुमूल्य रक्त से भिगोये गए क्रूस के चरणों में आने के लिए कहता है, उसके सामने अपनी याचिकाएँ रखें, और हमारे निवेदन जो भी हो, वह दया उर करुना के साथ हमें जवाब देगा। आइए हम उस अथाह खज़ाने की भीख माँगने का कोई अवसर न चूकें जिसका वादा हमारे दयालु प्रभु ने हमसे किया है। जब हम दुनिया भर में उन एक करोड़ कैदियों के लिए प्रार्थना करते हैं, तो उनमें से हर एक को हमारी प्रार्थना का 100 प्रतिशत लाभ मिलता है, क्योंकि जिस तरह हमारा अच्छा ईश्वर पवित्र परम प्रसाद में खुद को पूरी तरह से हम में से प्रत्येक को देता है, वह हमारी एक अकेली प्रार्थना को मेगाफोने की तरह कई गुना बढ़ा देता है, जो उनमें से प्रत्येक के दिल तक पहुंच रहा है। कभी मत सोचो "मेरी एक अकेली प्रार्थना इतने सारे लोगों के लिए क्या करेगी?" रोटियों और मछलियों के चमत्कार को याद रखें और अब संदेह न करें।
By: Sean Hampsey
More“हम सब अपना-अपना रास्ता पकड़ कर भेड़ों की तरह भटक रहे थे... ।'' (इसायाह 53:6) मेरी वर्तमान मोटर कार में लेन से भटक जाने पर एक चेतावनी प्रणाली है। हर बार जब मैं गाड़ी चलाते समय अपनी निर्धारित लेन से बाहर चली जाती हूं, तो कार मुझे चेतावनी का संकेत देती है। पहले तो इससे परेशानी होती थी, लेकिन अब मैं इसको पसंद करती हूँ। मेरी पुरानी कार में इतनी उन्नत तकनीक नहीं थी। मुझे इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि गाड़ी चलाते समय मैं कितनी बार सीमा से बाहर चली गयी। पिछले कुछ महीनों में, मैंने मेल-मिलाप या पाप स्वीकार के संस्कार में भाग लेना शुरू कर दिया है। दशकों तक मैंने इस अच्छी रिवाज़ को नजरअंदाज किया था। मुझे ऐसा लगता था जैसे यह समय की बर्बादी है। मैं मन में सोचती थी: जब कोई व्यक्ति सीधे ईश्वर से बात कर सकता है तो उसे अपने पापों को पुरोहित के सामने स्वीकार करने की आवश्यकता क्यों है? नियमित रूप से अपनी अंतरात्मा की जाँच करना असुविधाजनक है। अपने पापों को सार्वजनिक रूप से, ज़ोर की आवाज़ में स्वीकार करना अपमानजनक है। लेकिन विकल्प तो और भी बुरा है। यह वर्षों तक दर्पण में देखने से इनकार करने जैसा है। हो सकता है कि आपके चेहरे पर हर तरह की चीज़ें चिपकी हों, लेकिन आप इस ग़लत धारणा में रहते हैं कि आप ठीक दिखते हैं। इन दिनों, मैं साप्ताहिक रूप से पाप स्वीकार संस्कार में जाने का प्रयास करती हूँ। मैं आत्म-चिंतन और अपनी अंतरात्मा की जांच के लिए समय निकालती हूं। मैंने अपने अंदर एक बदलाव देखा है। अब, जैसे-जैसे मैं हर दिन आगे बढ़ती हूं, मेरी आंतरिक चेतावनी प्रणाली फिर से सक्रिय हो गई है। जब भी मैं लक्ष्यहीन प्रयास और अंतहीन खोज के कारण अच्छाई के मार्ग से भटक जाती हूं, तो मेरी अंतरात्मा मुझे संकेत देती है। इससे मुझे खतरे के क्षेत्र में बहुत दूर भटकने से पहले रास्ते पर वापस आने की अनुमति मिलती है। “आप लोग भेड़ों की भटक गए थे, किन्तु अब आप अपनी आत्माओं के चरवाहे तथा रक्षक के पास लौट आए हैं।” (1 पेत्रुस 2:25) मेल-मिलाप का संस्कार एक ऐसा उपहार है जिसकी मैंने बहुत लंबे समय तक उपेक्षा की थी। मैं उस भेड़ की तरह थी जो भटक गयी थी। लेकिन अब मैं अपने चरवाहे, मेरी आत्मा के रक्षक की ओर मुड़ गयी हूं। जब मैं भटक जाती हूँ तो वह मेरी आत्मा की जाँच करता है। वह मुझे अच्छाई और सुरक्षा के मार्ग पर पुन: ले आता है।
By: Nisha Peters
More20 साल की उम्र में, एंथनी ने अपने माता-पिता को खो दिया। अब उसके पास एक बड़ी विरासत थी और अपनी बहन की देखभाल करने की जिम्मेदारी। लगभग उसी समय, एंथनी ने ख्रीस्तयाग के दौरान मत्ती के सुसमाचार से एक पाठ सुना, जहां येशु ने एक अमीर युवक से कहा, "यदि तुम पूर्ण होना चाहते हो, तो जाओ और अपना सब कुछ बेच दो और उस धन को गरीबों में बाँट दो।" एंथनी को विश्वास था कि वह धनी युवक वह स्वयं है। कुछ ही समय बाद, उसने अपनी अधिकांश संपत्ति दान कर दी, बाकी जो कुछ था, लगभग सब कुछ बेच दिया, और केवल उतना ही रखा जितना उसे अपनी और अपनी बहन की देखभाल के लिए चाहिए था। परन्तु यह बिल्कुल वैसी नहीं है जैसी प्रभु ने आज्ञा दी थी! कुछ समय बाद, एंथनी एक बार फिर ख्रीस्तयाग में भाग ले रहा था और उसने सुसमाचार का अंश सुना, “कल की चिंता मत करो; कल अपनी चिंता स्वयं कर लेगा” (मत्ती 6:34)। फिर से, वह जानता था कि येशु सीधे उससे बात कर रहे थे, इसलिए उसने जो कुछ बचाया था, उसे भी दे दिया, अपनी बहन की देखभाल के लिए, उसे कुछ भक्त महिलाओं को सौंप दिया, और गरीबी, एकांत, प्रार्थना और वैराग्य का जीवन जीने के लिए रेगिस्तान में चला गया। . उस कठोर रेगिस्तानी वातावरण में, शैतान ने उस पर अनगिनत तरीकों से यह कहते हुए हमला किया, "सोचो कि जो पैसा तुमने दान में बाँट दिया था, तुम उस पैसे से कितना बढ़िया मजेदार कार्य कर सकते थे!" प्रार्थना और वैराग्य में दृढ़, एंथनी ने शैतान और उसके उत्पीड़नों से लड़ाई लड़ी। बहुत से लोग एंथनी की प्रज्ञा से आकर्षित हुए, और उन्होंने उन्हें आत्म-त्याग और तपस्वी जीवन की तलाश करने के लिए प्रोत्साहित किया। कोई आश्चर्य नहीं कि उनकी मृत्यु के बाद वे महान संत एंथनी या रेगिस्तान के संत एंथनी बन गए, जो ईसाई मठवासी परंपरा के पितामाह मने जाते हैं। एक बार एक बंधु ने संसार को त्याग कर अपना माल गरीबों को दे दिया, लेकिन अपने निजी खर्चों के लिए कुछ अपने पास रखे रहा। वह अब्बा एंथनी से मिलने गया। जब उसने पितामह एंथनी को यह बताया, तो बूढ़े एंथनी ने उससे कहा, "यदि आप एक तपस्वी बनना चाहते हैं, तो गाँव में जाएँ, कुछ मांस खरीदें, अपने नग्न शरीर को इससे ढँक लें और यहाँ उसी तरह आ जाएँ।" उस बंधु ने ऐसा ही किया, और कुत्तों और पक्षियों ने उसका मांस नोच डाला। जब वह वापस आया तो बूढ़े एंथनी ने उससे पूछा कि क्या उसने उसकी सलाह का पालन किया है। उसने उन्हें अपना घायल शरीर दिखाया, और संत एंथनी ने कहा, "जो दुनिया को त्याग देते हैं, लेकिन अपने लिए कुछ रखना चाहते हैं, वे उन पर युद्ध करनेवाले दुष्टात्माओं द्वारा इस तरह से फाड़े जाते हैं।"
By: Shalom Tidings
More"मैं एक कैथलिक हूं और मैं ख़ुशी ख़ुशी परमेश्वर के लिए मर जाऊंगा। अगर मेरे पास एक हजार जीवन होते, तो मैं वे एक हज़ार जीवन परमेश्वर को अर्पित कर देता।“ ये उस आदमी के मरते हुए शब्द थे जिस को यह निर्णय लेने का अवसर दिया गया था कि उसे जीना है या मरना है। लोरेंजो रुइज़ का जन्म 1594 में मनीला में हुआ था। उनके चीनी पिता और फिलिपिनो माँ दोनों कैथलिक थे। बचपन में उसे डोमिनिकन फादर लोगों ने शिक्षा दी, उसने वेदी सेवक और गिरजाघर- परिचर के रूप में सेवा की, और अंततः एक पेशेवर सुलेखक (कैलीग्राफेर) बन गया। लोरेंजो अति पवित्र रोज़री माला संघ के एक सदस्य थे, उन्होंने रोसारियो के साथ शादी की और उन दोनों के दो बेटे थे। सन १636 में उनके जीवन में एक दुखद मोड़ आया। उन पर हत्या का झूठा आरोप लगाया गया। उन्होंने तीन डोमिनिकन पादरियों की मदद मांगी, जो जापान के लिए एक मिशनरी यात्रा करने वाले थे, जबकि उन दिनों जापान में ईसाइयों पर क्रूर उत्पीड़न का दौर चल रहा था। लोरेंजो को जापान की और यात्रा का तब तक कोई अंदाजा नहीं था। नाव जापान की ओर रवाना होने के बाद ही लोरेंजों को उसके और उसके समूह की यात्रा का मंजिल और वहां के खतरे के बारे में पता चला। जापानियों को डर था कि स्पेन ने जिस तरह फिलीपींस पर आक्रमण किया था, उसी तरह जापान पर भी आक्रमण करने केलिए धर्म का उपयोग किया जाएगा, इसलिए जापान ने ईसाई धर्म का जमकर विरोध किया। मिशनरियों को जल्द ही ढूंढा गया, कैद किया गया, और कई क्रूर यातनाओं के अधीन किया गया। उत्पीडन का एक यह भी तरीका था कि मिशनरियों के गले में भारी मात्रा में पानी डाला जाता, फिर सैनिक बारी-बारी से मिशनरियों के पेट पर रखे बोर्ड के आर-पार खड़े हो जाते, जिससे उनके मुंह, नाक और आंखों से पानी तेजी से बहता। अंत में, उन्हें एक गड्ढे के ऊपर उल्टा लटका दिया गया, उनके शरीर को कसकर बांधे गए, जिससे उनके शरीर में रक्त का धीमी गति से परिसंचरण होता था, लंबे समय तक दर्द और धीमी गति से मृत्यु होती थी। लेकिन पीड़ित का एक हाथ हमेशा खुला छोड़ दिया जाता था, ताकि वह पीछे हटने के अपने इरादे का संकेत दे सके। न तो लोरेंजो और न ही उनके साथी पीछे हटे। वास्तव में, जब उसके उत्पीड़कों ने उससे पूछताछ की और जान से मारने की धमकी दी, तो उसका विश्वास और मजबूत हो गया। ये पवित्र शहीद तीन दिनों तक गड्ढे के ऊपर लटके रहे। तब तक, लोरेंजो मर चुका था और जो तीन पुरोहित अभी भी जीवित थे, उनके सिर काट दिए गए थे। उनके विश्वास का एक त्वरित त्याग उनके जीवन को बचा सकता था। इसके बजाय, उन्होंने शहीद का मुकुट पहनकर मरना चुना। उनकी वीरता हमें साहस के साथ और बिना समझौता किए अपने विश्वास को जीने के लिए प्रेरित करे।
By: Shalom Tidings
Moreमुसीबत के समय में, क्या आपने कभी सोचा है कि 'काश कोई मेरी मदद करता'? आप शायद अनभिज्ञ हैं कि वास्तव में आपकी मदद करने के लिए आपके पास आपके अपने एक निजी समूह है। मेरी बेटी मुझसे आजकल पूछती है कि अगर तुम सौ प्रतिशत पोलिश (पोलन्ड की) हो तो तुम सामान्य पोलेंड-वासी की तरह क्यों नहीं दिखती हो। पिछले सप्ताह तक मेरे पास इसका कोई सही उत्तर नहीं था, फिर मुझे पता चला कि मेरे कुछ पूर्वज दक्षिणी पोलैंड के गोरल हाइलैंडर्स यानी गोरल गोत्र समुदाय के पहाड़ी लोग थे। गोरल हाइलैंडर्स पोलेंड की दक्षिणी सीमा पर पहाड़ों में रहते हैं। वे अपनी दृढ़ता, स्वतंत्रता के प्रति प्रेम, तथा विशिष्ट पोशाक, संस्कृति और संगीत के लिए जाने जाते हैं। इस समय, एक विशेष गोरल लोक गीत मेरे दिल में बार-बार गूंजता रहता है, उस गीत ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने अपने पति के साथ उस गीत को साझा किया कि यह गीत वास्तव में मुझे अपने देश में वापस बुला रहा है। यह जानकर कि मेरा वंशीय इतिहास गोरल है, वास्तव में मेरा दिल ख़ुशी से उच्छल रहा है! वंशावली की खोज मेरा मानना है कि हममें से प्रत्येक के अन्दर अपनी वंशावली की खोज करने की इच्छा होती है। यही कारण है कि इन दिनों कई वंशावली साइट और डीएनए-जांच के व्यवसाय सामने आए हैं। ऐसा क्यों? शायद यह चाह हमें बतलाती है कि हम अपने से भी बड़ी किसी चीज़ का हिस्सा हैं। जो हमसे पहले इस दुनिया से चले गए हैं, उन लोगों के साथ हम मायने और संबंध की चाहत रखते हैं। हमारे वंश की खोज से पता चलता है कि हम एक बहुत गहरे कथानक का हिस्सा हैं। इतना ही नहीं, बल्कि अपनी पैतृक जड़ों को जानने से हमें पहचान और एकजुटता की भावना मिलती है। हम सभी कहीं न कहीं से आए हैं, हम कहीं न कहीं के वासी हैं, और हम एक साथ यात्रा कर रहे हैं। इस पर विचार करने पर मुझे एहसास हुआ कि केवल अपनी भौतिक ही नहीं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक विरासत की खोज करना कितना महत्वपूर्ण है। आख़िरकार, हम मनुष्य शरीर और आत्मा हैं। हमें उन संतों को जानने से बहुत लाभ होगा जो हमसे पहले थे। हमें न केवल उनकी कहानियाँ सीखनी चाहिए, बल्कि उनसे परिचित भी होना चाहिए। संबंध ढूंढें मैं स्वीकारना चाहती हूँ कि मैं पहले किसी संत से मध्यस्थता मांगने की प्रथा में बहुत अच्छी नहीं रही हूँ। यह निश्चित रूप से मेरी प्रार्थना-दिनचर्या में एक नया जुड़ाव है। जिस चीज़ ने मुझे इस वास्तविकता से अवगत कराया वह संत फिलिप नेरी की यह सलाह थी: “आध्यात्मिक शुष्कता के खिलाफ सबसे अच्छी दवा खुद को ईश्वर और संतों की उपस्थिति में भिखारियों की तरह रखना है। और एक भिखारी की तरह, एक से दूसरे के पास जाना और उसी आग्रह के साथ आध्यात्मिक भिक्षा माँगना, जैसे कि सड़क पर एक गरीब आदमी भिक्षा माँगता है।“ पहला कदम यह जानना है कि संत कौन हैं। ऑनलाइन पर बहुत सारे अच्छे संसाधन मौजूद हैं। दूसरा तरीका है बाइबल पढ़ना। पुराने और नए विधान दोनों में शक्तिशाली मध्यस्थ हैं, और आप एक से अधिक मध्यस्थों से संबंधित हो सकते हैं। साथ ही, संतों और उनके लेखन पर अनगिनत किताबें हैं। मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें, और ईश्वर आपको आपके व्यक्तिगत मध्यस्थों के समूह तक पहुंचा देगा। उदाहरण के लिए, मैंने अपने संगीत की सेवकाई के लिए संत राजा दाउद से मध्यस्थता मांगी है। जब मुझे अपने पति के लिए या नौकरी चुनने के लिए मध्यस्थ की खोज करनी है तो मैं संत युसूफ के पास जाती हूँ। जब कलीसिया के लिए प्रार्थना करने का बुलावा मुझे मिलता है तो मैं संत जॉन पॉल द्वितीय, संत पेत्रुस और संत पिउस दसवें से मदद मांगती हूँ। मैं संत ऐनी और संत मोनिका की मध्यस्थता के माध्यम से माताओं के लिए प्रार्थना करती हूँ। बुलाहटों के लिए प्रार्थना करते समय, मैं कभी-कभी संत थेरेसा और संत पाद्रे पियो को पुकारती हूँ। यह सूची लम्बी है। तकनीकी समस्याओं के लिए धन्य कार्लो एक्यूटिस मेरे पसंदीदा हैं। संत जेसीन्ता और संत फ्रांसिस्को मुझे प्रार्थना के बारे में, तथा बेहतर तरीके से बलिदान अर्पित करने के बारे में सिखाते हैं। प्रेरित संत जॉन चिंतन करने में मेरी सहायता करते हैं। मैं अक्सर अपने दादा-दादी से मध्यस्थता की माँग करती हूँ, यह मैं नहीं बताती तो वह मेरी गलती होगी। जब वे हमारे साथ थे तब वे मेरे लिए प्रार्थना करते थे, और मैं जानती हूँ कि वे अनन्त जीवन में भी मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं। परन्तु मेरी सार्वकालिक पसंदीदा मध्यस्थ हमेशा हमारी सबसे प्रिय धन्य कुंवारी माता मरियम रही हैं। बस एक प्रार्थना की दूरी पर यह मायने रखता है कि हम किसके साथ समय बिताते हैं। हम क्या बन जायेंगे, यह इसी पर निर्भर करता है। वास्तव में हमारी चारों ओर "गवाहों का बादल" है जिससे हम वास्तविक रूप से जुड़े हुए हैं (इब्रानी 12:1)। आइए हम उन्हें बेहतर तरीके से जानने का प्रयास करें। हम सरल, हार्दिक प्रार्थनाएँ भेज सकते हैं जैसे, "हे संत ____, मैं आपको बेहतर तरीके से जानना चाहती/ता हूँ। कृपया मेरी सहायता करें।" इस विश्वास यात्रा में चलने के लिए हम अकेले नहीं हैं। हम एक जन समूह के रूप में, मसीह के शरीर के रूप में एक साथ मुक्त किये गए लोग हैं। संतों से जुड़े रहने से, हमें वह मार्ग मिलता है जो हमारी स्वर्गीय जन्मभूमि तक सुरक्षित यात्रा करने के लिए दिशा और ठोस सहायता प्रदान करता है। पवित्र आत्मा हमें अपनी आध्यात्मिक जड़ों से जुड़ने में मदद करे ताकि हम संत बन सकें और अपना अनंत जीवन ईश्वर के एक गौरवशाली परिवार के रूप में बिता सकें!
By: Denise Jasek
Moreजब अयोग्यता के विचार मन में आएं, तो यह आजमायें... उससे बदबू आ रही थी. उसका गंदा, भूखा शरीर उसकी बर्बाद विरासत की तरह नष्ट हो रहा था। उसे लज्जा ने घेर लिया। उसने सब कुछ खो दिया था - अपनी संपत्ति, अपनी प्रतिष्ठा, अपना परिवार - उसका जीवन टूटकर बिखर गया था। निराशा ने उसे निगल लिया था। फिर, अचानक, उसे अपने पिता का सौम्य चेहरा याद आया। सुलह असंभव लग रही थी, लेकिन अपनी हताशा में, वह “उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पडा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया, और दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया। तब पुत्र ने उससे कहा, “पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरूद्ध और आपके विरुद्ध पाप किया है; मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा।'... लेकिन पिता ने कहा... 'मेरा यह पुत्र मर गया था और फिर से जी गया है; वह खो गया था और फिर मिल गया है!' और वे आनंद मनाने लगे” (लूकस 15:20-24)। ईश्वर की क्षमा स्वीकार करना कठिन है। अपने पापों को स्वीकार करने का अर्थ है यह स्वीकार करना कि हमें अपने पिता की आवश्यकता है। और जब आप और मैं पिछले अपराधों के कारण अपराधबोध और शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं, तो आरोप लगाने वाला शैतान हम पर अपने झूठ से हमला करता है: "तुम प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हो।" लेकिन प्रभु हमें इस झूठ को अस्वीकार करने के लिए कहते हैं! बपतिस्मा के समय, ईश्वर की संतान के रूप में आपकी पहचान, आपकी आत्मा पर हमेशा के लिए अंकित हो गई। और उड़ाऊ पुत्र की तरह, आप अपनी असली पहचान और योग्यता की खोज करने के लिए बुलाये गए हैं। चाहे आपने कुछ भी किया हो, ईश्वर आपसे प्यार करना कभी नहीं छोड़ते। "जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा।" (योहन 6:37)। आप और मैं कोई अपवाद नहीं हैं! तो, हम ईश्वर की क्षमा को स्वीकार करने के लिए व्यावहारिक कदम कैसे उठा सकते हैं? प्रभु को खोजें, उनकी दया को अपनाएं, और उनकी शक्तिशाली कृपा से बहाल हो जायें। प्रभु को खोजें अपने निकटतम गिरजाघर या आराधनालय को ढूंढें और प्रभु से आमने-सामने मुलाक़ात कर ले। ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह अपनी दयालु आँखों से, अपने निस्वार्थ प्रेम के माध्यम से स्वयं को देखने और पहचानने में आपकी मदद करे। इसके बाद, अपनी आत्मा की एक ईमानदार और साहसी सूची बनाएं। बहादुर बनो और मनन चिंतन करते हुए क्रूसित प्रभु येशु को देखो - अपने आप को प्रभु के पास लाओ। हमारे पापों की वास्तविकता को स्वीकार करना कठिन है, लेकिन एक सच्चा, कमजोर हृदय क्षमा का फल प्राप्त करने के लिए तैयार है। याद रखें, आप ईश्वर की संतान हैं—प्रभु आपको विमुख नहीं करेंगे! ईश्वर की दया को अपनायें अपराधबोध और शर्मिंदगी के साथ लड़ना, पानी की सतह के नीचे गेंद को पकड़ने की कोशिश करने जैसा हो सकता है। इसमें बहुत मेहनत लगती है! इसके अलावा, शैतान अक्सर हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम ईश्वर के प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हैं। लेकिन क्रूस से, मसीह का रक्त और जल हमें शुद्ध करने, चंगा करने और बचाने के लिए बहता रहा। आप और मैं इस दिव्य दया पर मूल रूप से भरोसा करने के लिए बुलाये गए हैं। यह कहने का प्रयास करें: “मैं ईश्वर की संतान हूँ। येशु मुझसे प्यार करते हैं। मैं क्षमा के योग्य हूँ।” इस सत्य को हर दिन दोहराएँ। इसे ऐसी जगह लिखें, जहां आप अक्सर दृष्टि दौडाते हैं। प्रभु से प्रार्थना करें कि उनकी दया के कोमल आलिंगन में स्वयं को देने में वह आपकी सहायता करें। गेंद को जाने दो और इसे येशु को सौंप दो—ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है! बहाल हो जाएँ पापस्वीकार संस्कार में, हम ईश्वर के उपचार और शक्ति की कृपा से बहाल होते हैं। शैतान के झूठ के विरुद्ध लड़ें और इस शक्तिशाली संस्कार में मसीह से मुलाकात कर लें। यदि आप अपराधबोध या शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं तो पुरोहित को बताएं, और जब आप अपने पश्चाताप के कार्य के बारे में बताएं, तो अपने दिल को प्रेरित करने के लिए पवित्र आत्मा को आमंत्रित करें। जैसे ही आप पाप मुक्ति के शब्द सुनते हैं, ईश्वर की असीम दया पर विश्वास करना चुनें: "ईश्वर आपको क्षमा और शांति दे, और मैं आपको पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर पापक्षमा प्रदान करता हूँ।" अब आप ईश्वर के अनंत प्रेम और क्षमा में बहाल हो गए हैं! अपनी असफलताओं के बावजूद, मैं हर दिन ईश्वर से उनके प्रेम और क्षमा को स्वीकार करने में मेरी मदद करने के लिए कहता हूं। हो सकता है कि हम उड़ाऊ पुत्र की तरह गिर गए हों, लेकिन आप और मैं अभी भी ईश्वर के बेटे और बेटियाँ हैं, उनके अनंत प्रेम और करुणा के योग्य हैं। ईश्वर आपसे प्रेम करता है, यहीं, इसी क्षण — उसने प्रेम के कारण आपके लिए अपना जीवन त्याग दिया। यह सुसमाचार की परिवर्तनकारी आशा है! इसलिए, ईश्वर की क्षमा को अपनाएं और साहसपूर्वक उसकी दिव्य दया को स्वीकार करने का साहस करें। ईश्वर की अनंत करुणा आपका इंतजार कर रही है! “नहीं डरो, मैंने तुम्हारा उद्धार किया है। मैंने तुमको अपनी प्रजा के रूप में अपनाया है।” (इसायाह 43:1)
By: Jody Weis
Moreबीसवीं सदी के आरंभिक यूनानी उपन्यासकार निकोलस कज़ान्तज़ाकिस का एक काव्यात्मक चिंतन है, जिसे मैं हर साल आगमन काल के आने पर अपने पलंग के बगल के टेबल पर रखता हूँ। उपन्यासकार कज़ान्तज़ाकिस येशु मसीह को एक किशोर के रूप में चित्रित करते हैं, जो दूर पहाड़ी की चोटी से इस्राएल के लोगों को देख रहा है, जो अभी अपनी सेवकाई शुरू करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन अपने लोगों की लालसा और पीड़ा के प्रति पूरी तरह से, दर्द और बोझ के साथ संवेदनशील है। इस्राएल का परमेश्वर उनके बीच में है—परन्तु वे अभी इस सच्चाई को नहीं जानते। मैं इसे एक दिन अपने छात्रों को पढ़कर सुना रहा था, जैसा कि मैं प्रतिवर्ष, आगमन की शुरुआत में करता हूँ, और उनमें से एक ने कक्षा के बाद मुझसे कहा: "मैं शर्त लगा सकता हूँ कि प्रभु येशु अभी भी ऐसा ही महसूस करते हैं।" मैंने उससे पूछा कि उसका क्या मतलब है। उसने कहा: "आप जानते हैं कि येशु, वहाँ पवित्र मंजूषा के अन्दर से हमें ऐसे चलते हुए देखते हैं जैसे कि हम जानते ही नहीं कि वे वहां उपस्थित हैं।" तब से, मेरे पास आगमन प्रार्थनाओं में ऐसे येशु का चित्र है, जो मंजूषा में इंतजार कर रहे हैं, अपने लोगों की ओर देख रहे हैं - हमारी कराहें, हमारी दलीलें और हमारी पुकारें सुन रहे हैं। हमारा इंतज़ार करते हुए ... किसी न किसी तरह, ईश्वर हमारे पास आने के लिए यही तरीका चुनता है। मसीह का जन्म पूरे मानव इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है, और फिर भी, ईश्वर चाहता था कि यह 'इतनी शांति से हो कि संसार अपने काम में व्यस्त रहा जैसा कि कुछ भी नहीं हुआ हो।' कुछ चरवाहों ने ध्यान दिया, और पूरब से आये ज्ञानियों ने भी ऐसा ही किया। (हम हेरोद का भी उल्लेख कर सकते हैं, जिसने सभी गलत कारणों से ध्यान दिया!)। फिर, जाहिरा तौर पर, पूरी बात भुला दी गई। कुछ समय के लिए। किसी न किसी तरह... इंतज़ार करते हुए कुछ ऐसा होना चाहिए जो हमारे लिए अच्छा हो। ईश्वर हमारे लिए इंतजार करने को चुनता है। वह हमें अपने लिए इंतज़ार करवाना चुनता है। और जब आप इसके बारे में सोचते हैं, तो मुक्ति का पूरा इतिहास प्रतीक्षा का इतिहास बन जाता है। तो, आप देखते हैं कि यहाँ अत्यावश्यकता के दो भाव हैं - कि हमें ईश्वर के आह्वान का उत्तर देने की आवश्यकता है तथा इसकी भी आवश्यकता है कि वह हमारी पुकार का उत्तर दे, और जल्द ही। स्तोत्रकार लिखता है, "हे प्रभु, जब मैं तुझे पुकारूं, मुझे उत्तर दे।" इस पद में कुछ बड़ी विनम्रता है, दर्द है, जो आकर्षक रूप से हमारा ध्यान खींचता है। स्तोत्र में एक अत्यावश्यकता है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि हमें धैर्य रखना और इंतजार करना सीखना चाहिए - आनंदमय आशा के साथ इंतजार करना चाहिए - और इंतजार में इश्वर का उत्तर ढूंढना चाहिए।
By: Father Augustine Wetta O.S.B
Moreछह साल की उम्र में, एक छोटी लड़की ने फैसला किया कि उसे 'जेल' और 'फाँसी' शब्द पसंद नहीं हैं। उसे क्या पता था कि 36 साल की उम्र में वह मौत की सज़ा पाए कैदियों के साथ घूम रही होगी। 1981 में, दो छोटे बच्चों की चौंकाने वाली हत्याएं सिंगापुर और दुनिया भर में पहले पन्ने की खबर बन गईं थीं। पूरी जांच के बाद एड्रियन लिम की गिरफ्तारी हुई, जिसने अपने कई ग्राहकों को यह विश्वास दिलाकर कि उसके पास अलौकिक शक्तियां हैं, उनका यौन शोषण किया, उनसे जबरन वसूली की और उन्हें बिजली के झटके की 'थेरेपी' देकर प्रताड़ित किया। उनमें से एक, कैथरीन, मेरी एक छात्रा थी जो अपनी दादी की मृत्यु के बाद अवसाद के इलाज के लिए उसके पास गई थी। उस आदमी ने उससे वेश्यावृत्ति कराई और उसके भाई-बहनों के साथ दुर्व्यवहार किया। जब मैंने सुना कि कैथरीन पर हत्याओं में भाग लेने का आरोप लगाया गया है, तो मैंने उसे येशु के पवित्र हृदय की सुंदर तस्वीर के साथ एक चिट्टी भेजी। छह महीने बाद, उसने जवाब में लिखा, "जब मैंने इतने बुरे काम किए हैं तो आप मुझसे कैसे प्यार कर सकती हैं?" अगले सात वर्षों तक मैं जेल में कैथरीन से साप्ताहिक मुलाकात करती रही। महीनों तक एक साथ प्रार्थना करने के बाद, वह ईश्वर और उन सभी लोगों से माफ़ी मांगना चाहती थी, जिन्हें उसने चोट पहुंचाई थी। अपने पापों को स्वीकार करने के बाद, उसे ऐसी शांति मिली, जैसे वह एक अलग ही अनोखा व्यक्तित्व हो। जब मैंने उसका रूपांतरण देखा, तो मैं खुशी से पागल हो गयी। लेकिन कैदियों के लिए मेरी सेवा अभी शुरू ही हुई थी! अतीत की ओर नज़र मैं 10 बच्चों वाले एक प्यारे कैथोलिक परिवार में बड़ी हुई। हर सुबह, हम सभी एक साथ पवित्र मिस्सा बलिदान के लिए जाते थे, और मेरी माँ हमें गिरजाघर के पास एक कॉफी शॉप में नाश्ता खिलाती थी। लेकिन कुछ समय बाद मेरे लिए शरीर के भोजन से ज्यादा, आत्मा के लिए भोजन का महत्त्व बढ़ गया। पीछे मुड़कर दखती हूँ तो पता चलता है कि मेरे बचपन में अपने परिवार के साथ सुबह-सुबह होती रही उन पवित्र मिस्साओं के द्वारा ही मेरे अन्दर मेरी बुलाहट का बीज बोया गया था। मेरे पिता ने हममें से प्रत्येक को विशेष रूप से अपने प्यार का एहसास कराया, और हम उनके काम से लौटने पर खुशी से उनकी बाहों की ओर दौड़ने से कभी नहीं चूके। युद्ध के दौरान, जब हमें सिंगापुर से भागना पड़ा, तो वे हमें घर पर ही पढ़ाते थे। वे हर सुबह हमें उच्चारण सिखाते थे और हमसे उस अनुच्छेद को दोहराने के लिए कहते थे जिसमें किसी को सिंग सिंग जेल में मौत की सजा सुनाई गई थी। छह साल की छोटी उम्र में ही मुझे एहसास हुआ था कि मुझे वह अंश पसंद नहीं है। जब मेरी बारी आई तो मैंने इसे पढ़ने के बजाय “प्रणाम रानी, दया की माँ” प्रार्थना का पाठ किया। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मैं एक दिन कैदियों के साथ प्रार्थना करुंगी। अभी देर नहीं हुई है जब मैंने जेल में कैथरीन से मुलाक़ात करना शुरू किया, तो कई अन्य कैदियों ने हमारे कार्य में रुचि दिखाई। जब भी किसी कैदी ने मुलाकात का अनुरोध किया, तो मुझे उनसे मिलकर और ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया साझा करके खुशी हुई। ईश्वर एक प्यारा पिता है जो हमेशा हमारे पश्चाताप करने और उसके पास वापस आने का इंतजार कर रहा है। एक कैदी जिसने कानून तोड़ा है वह उड़ाऊ पुत्र के समान है, जो जीवन के सबसे निचले पांवदान पर लुढ़क गया और उसने महसूस किया, "मैं अपने पिता के पास वापस जा सकता हूं।" जब वह अपने पिता के पास वापस लौटा और क्षमा मांगी, तो उसके पिता उसका स्वागत करने के लिए दौड़ते हुए बाहर आये। किसी को भी अपने पापों का पश्चाताप करने और ईश्वर की ओर लौटने में कभी देर नहीं करनी चाहिए। प्यार का आलिंगन हत्या की आरोपी फ्लोर नामक फिलिपिनो महिला ने अन्य कैदियों से हमारे सेवा कार्यों के बारे में सुना और समझा, इसलिए मैंने उससे मुलाकात की और उसका समर्थन और सहयोग किया, क्योंकि उसने अपनी मौत की सजा की अपील की थी। अपनी अपील खारिज होने के बाद, वह ईश्वर से बहुत नाराज थी और मुझसे बात करना नहीं चाहती थी। जब भी मैं उसके दरवाजे से गुजरती थी, तो मैं उससे कहती थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, ईश्वर अब भी उससे प्यार करता है। लेकिन वह निराशा में खाली दीवार की ओर देखती रहती थी। मैंने अपने प्रार्थना समूह से नित्य सहायक माता से नौ रोज़ी प्रार्थना करने और विशेष रूप से अपनी दुःख पीडाओं को उसके लिए चढाने को कहा। दो सप्ताह बाद, फ़्लोर का हृदय अचानक बदल गया और उसने मुझसे कहा कि मैं किसी पुरोहित के साथ उसके पास वापस आऊँ। वह खुशी से फूल रही थी क्योंकि माता मरियम उसकी कोठरी में आई थीं और माँ मरियम ने उससे कहा था कि वह डरे नहीं क्योंकि माँ अंत तक उसके साथ रहेगी। उस क्षण से लेकर उसकी मृत्यु के दिन तक, फ्लोर के हृदय में केवल आनंद ही आनंद था। एक और यादगार कैदी एक ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति था जिसे मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में जेल में डाल दिया गया था। जब उसने मुझे एक अन्य कैदी के लिए माता मरियम का भजन गाते हुए सुना, तो वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने मुझसे नियमित रूप से उससे मिलने के लिए कहा। जब उसकी माँ ऑस्ट्रेलिया से मिलने आईं तो वे हमारे साथ हमारे घर में रहीं। आख़िरकार, उसने एक काथलिक के रूप में बपतिस्मा लेने का आग्रह किया। उस दिन से, फाँसी के तख्ते तक जाते समय भी वह खुशी से भरा हुआ था। वहां का जेल निरीक्षक एक युवा व्यक्ति था, और जब यह मादक द्रव्य का पूर्व तस्कर अपनी मृत्यु की ओर बढ़ रहा था, तो यह अधिकारी आगे आया और उसे गले लगा लिया। यह बहुत असामान्य था, और हमें ऐसा लगा मानो ईश्वर स्वयं इस युवक को गले लगा रहे हो। आप वहां ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किए बिना नहीं रह सकते थे। वास्तव में, मैं जानता हूं कि हर बार, माता मरियम और प्रभु येशु उन सज़ा-ए-मौत पाए कैदियों को स्वर्ग में स्वागत करने के लिए वहां मौजूद होते हैं। यह विश्वास करना मेरे लिए खुशी की बात है कि जिस प्रभु ने मुझे बुलाया है वह मेरे प्रति ईमानदार रहा है। उसके और उसके लोगों के लिए जीने का आनंद किसी भी अन्य चीज़ की तुलना में कहीं अधिक लाभप्रद रहा है।
By: Sister M. Gerard Fernandez RGS
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