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जब आपके आस-पास सब कुछ उथल पुथल हो जाता है, तो क्या आपने कभी पूछा है, “परमेश्वर मुझसे क्या चाहता है?”
मेरा जीवन, अन्य सभी की तरह, अद्वितीय और अपूरणीय है। ईश्वर अच्छा है, और मैं अपने जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद भी ईश्वर के प्रति आभारी हूं। कैथलिक माता-पिता ने मुझे जन्म दिया और मैंने ख्रीस्त राजा पर्व के दिन बपतिस्मा लिया। मैंने एक कैथलिक प्राइमरी स्कूल में और एक वर्ष कैथलिक हाई स्कूल में पढ़ाई की। दृढीकरण संस्कार पाकर येशु मसीह के लिए एक सैनिक बनने की बड़ी तीव्र इच्छा मेरे अन्दर थी। मुझे याद है कि मैंने येशु से कहा था कि मैं प्रतिदिन मिस्सा बलिदान में भाग लेने जाऊंगी। मैंने एक कैथलिक पुरुष से शादी की और अपने बच्चों को कैथलिक विश्वास में पाला। हालाँकि, मेरा विश्वास सिर्फ मेरे दिमाग में था और अभी तक मेरे दिल तक नहीं पहुँचा था।
अपने जीवन के मार्ग में कहीं पर, मैं येशु को अपने मित्र के रूप में पहचानना छोड़ दिया। मुझे याद है कि एक नवविवाहित युवा महिला के रूप में, कुछ दिन मैं मिस्सा बलिदान में भाग नहीं ले पायी थी क्योंकि मैंने सोचा था कि मैं अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ सुख प्राप्ति के लिए काम करूंगी। मैं बहुत गलत थी. मैं अपनी सास के अनजाने हस्तक्षेप के लिए धन्यवाद देती हूं: उन रविवारों में से एक रविवार को, उन्होंने मुझसे पूछा कि मिस्सा बलिदान कैसा था। मैं उनके सवाल को नजरअंदाज करने और विषय बदलने में कामयाब रही, लेकिन ईश्वर उनके सवाल के माध्यम से मुझ तक पहुंचा। अगले रविवार, मैं मिस्सा में गयी और फिर कभी मिस्सा न चूकने का संकल्प लिया।
कई माताओं की तरह, मैं पारिवारिक जीवन, स्कूल में स्वयंसेवा, धार्मिक शिक्षा का अध्यापन, अंशकालिक काम करना आदि में व्यस्त थी। सच कहूँ तो, मुझे नहीं पता था कि किसी को “नहीं” कैसे कहना है। इसका परिणाम यह हुआ कि मैं थककर चकनाचूर हो चुकी थी। हां, मैं एक अच्छी महिला थी और अच्छे काम करने की कोशिश करती थी, लेकिन मैं येशु को अच्छी तरह से नहीं जानती थी। मैं जानती थी कि वह मेरा दोस्त था और हर हफ्ते मिस्सा बलिदान में उसको मैं ग्रहण करती थी, लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि मैं बस कुछ रस्मों की पूर्ती करती थी।
जब मेरे बच्चे जूनियर हाईस्कूल में थे, तो मुझे फाइब्रोमायल्जिया रोग का पता चला और मुझे लगातार दर्द का अनुभव होता था। मैं काम से घर आती और आराम करती थी। दर्द के कारण मुझे कई काम बंद करना पड़ा। एक दिन एक दोस्त ने फोन करके पूछा कि तुम्हारा हाल क्या है। मैंने उससे बस अपने बारे में और अपने दर्द के बारे में शिकायत की थी। तब मेरे मित्र ने मुझसे पूछा, “ईश्वर तुमसे क्या चाहता है?” मैं असहज हो गयी और रोने लगी. फिर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने तुरंत फोन रख दिया. मैंने सोचा, “ईश्वर को मेरे दर्द से क्या लेना-देना है।” बस मुझे इतना ही याद है कि मेरे मित्र के प्रश्न ने मुझे परेशान कर दिया था।
हालाँकि आज तक, मुझे यह याद नहीं है कि मुझे महिलाओं के सप्ताहांत बैठक में किसने आमंत्रित किया था, जैसे ही मैंने अपनी पल्ली में “ख्रीस्त अपनी पल्ली का नवीकरण करता है” (सी.आर.एच.पी.) नामक एक साधना के बारे में सुना, मैंने तुरंत उसमें भाग लेने की हामी भर दी! मेरी बस इच्छा थी की मैं सप्ताह के अंत में घर से दूर रहूँ, खूब आराम करूं और दूसरों से अपनी मदद करा लूं। मैं गलत थी। व्यावहारिक रूप से सप्ताहांत के हर मिनट की योजना बनाई गई थी। क्या मुझे आराम मिला? मुझे कुछ मिला, लेकिन जैसा मैंने सोचा था वैसा नहीं।
मैं ने अपने “मैं, मैं और मैं” पर केन्द्रित होने की प्रवृत्ति पर ध्यान दिया। वहां ईश्वर कहाँ था ? मुझे नहीं पता था कि पवित्र आत्मा द्वारा संचालित सप्ताहांत में मेरी हामी मेरे दिल का दरवाज़ा खोल देगी।
उस साधना के बीच, एक प्रवचन सुनने के दौरान मेरी आंखों में आंसू आ गए। मुझे लगा कि ईश्वर मुझसे कह रहा है “ठहरो”। और मेरे जीवन को बदलने वाले शब्दों को सीधे ईश्वर को सुनाने के लिए मैं ने अपने दिल में एक प्रेरणा महसूस की। जो शब्द मैंने पूरे दिल से ईश्वर से कहे थे, उन शब्दों ने मेरे दिल में येशु के प्रवेश के लिए द्वार खोल दिया और ईश्वर के बारे में मेरे दिमाग के अन्दर से उतारकर मेरे दिल के अन्दर रखने का काम शुरू हुआ!
“हे ईश्वर, मैं तुझसे प्यार करती हूँ,” मैंने कहा, “मैं पूरी तरह तेरी हूँ। तू मुझसे जो कुछ भी कहेगा मैं वह करूँगी, और जहाँ भी तू मुझे भेजेगा, मैं वहाँ जाऊँगी।”
मेरे दिल का विस्तार करने की ज़रूरत थी ताकि जिस तरह ईश्वर मुझसे प्यार करता हैं, उस तरह मैं प्यार करना सीख सकूं। “ईश्वर ने संसार से इतना प्रेम किया कि उस ने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस पर विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त कर सके।” (योहन 3:16)।
उस वार्तालाप ने एक रूपांतरण, एक मेटानोइया थापित किया यानी मेरे हृदय को ईश्वर की ओर मोड़ दिया। मैंने ईश्वर के बिना शर्त प्यार का अनुभव किया था, और अचानक ईश्वर मेरे जीवन में सबसे प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण बन गया। इसका वर्णन करना बहुत कठिन है, सिवाय इसके कि मैं इसे कभी नहीं भूलूंगी। मुझे ऐसा लगा जैसे ईश्वर ने अंधेरे में मेरा हाथ थाम लिया हो और मेरे साथ दौड़ा हो। मैं जोश में थी और खुश और आश्चर्यचकित थी कि ईश्वर मेरे जीवन में क्या कर रहा था और क्या कर रहा है।
मेरे रूपांतरण के कुछ ही समय बाद और लाइफ इन द स्पिरिट सेमिनार के बाद, मैं अपने फाइब्रोमायल्जिया से ठीक हो गयी। मैंने अपने जीवन को देखा और प्रभु से प्रार्थना की कि वह मुझे उसके जैसा बनने में मदद करे। मुझे एहसास हुआ कि मुझे क्षमा करना सीखने की आवश्यकता है, इसलिए मैंने ईश्वर से यह दिखाने के लिए कहा कि मुझे किसे क्षमा करने या किससे क्षमा माँगने की आवश्यकता है। उसने ऐसा ही किया, और धीरे-धीरे, मैंने सीखा कि क्षमा कैसे करें और क्षमा कैसे स्वीकार करें। मैंने अपने सबसे महत्वपूर्ण रिश्तों में से एक – अपनी माँ के साथ अपने रिश्ते में सुधार का अनुभव किया। आख़िरकार मैंने सीख लिया कि ईश्वर की तरह उससे कैसे प्यार करना है। मेरे परिवार को भी उपचार का अनुभव हुआ। मैं और अधिक प्रार्थना करने लगी। प्रार्थना मेरे लिए रोमांचक थी. मैंने मौन प्रार्थना में समय बिताया, मौन ही वह जगह थी जहाँ प्रभु से मेरी मुलाक़ात हुई। 2003 में मुझे लगा कि ईश्वर मुझे केन्या बुला रहा है, और 2004 में, मैंने तीन महीने के लिए एक धर्मशाला के अनाथालय में स्वेच्छा से काम किया। सी.आर.एच.पी. के बाद से, मुझे लगा कि मुझे एक आध्यात्मिक निदेशक बनने की बुलाहट मिल रही है और मैं एक प्रमाणित आध्यात्मिक निदेशक बन गयी। प्रभु ने मेरे जीवन में और भी बहुत कुछ किया है। जब आप येशु मसीह को जानते हैं तो हमेशा बहुत कुछ होता है।
पीछे मुड़कर अपने जीवन पर नजर डालूँ तो मैं कुछ भी नहीं बदलूंगी, क्योंकि इस जीवन ने हे मुझे वह बनाया है जो मैं आज हूं। हालाँकि, मुझे आश्चर्य है कि अगर मैंने जीवन बदलने वाले वे शब्द न कहे होते तो मेरे साथ क्या होता।
ईश्वर आपसे प्यार करता है। ईश्वर आपको पूरी तरह से जानता है – अच्छा और बुरा – लेकिन फिर भी आपसे प्यार करता है। ईश्वर चाहता है कि आप उसके प्रेम के प्रकाश में रहें। ईश्वर चाहता है कि आप खुश रहें और अपना सारा बोझ उस पर लाएँ। “हे सब थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो, तुम सब मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।” ( मत्ती 11:28) मैं आपको अपने हृदय की गहराइयों से यह प्रार्थना कहने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ: “प्रभु, मैं तुमसे प्यार करती हूँ। मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ। तुम मुझसे जो कुछ भी कहोगे मैं वह करूँगी, और जहाँ भी तुम मुझे भेजोगे मैं वहाँ जाऊँगी।” मैं प्रार्थना करती हूं कि आपका जीवन कभी भी पहले जैसा न हो और चाहे आपके आसपास कुछ भी हो रहा हो, आपको आराम और शांति मिलेगी क्योंकि आप ईश्वर के साथ चलते हैं।
Carol Osburn आध्यात्मिक निर्देशिका और लेखिका हैं। 44 से अधिक वर्षों से विवाहित हैं, और अपने पति के साथ अमेरिका के इलिनोई में रहती हैं। उनकी तीन संतान और नौ पोते-पोतियां हैं।
क्या कोई विचार पाप बन सकता है? इस पर मनन करने का यह अवसर है। जहां तक मेरी स्मृति पीछे की और जाती है, मैं एक अच्छी मसीही थी, कलीसिया के कार्यकलापों में शामिल हो रही थी, लेकिन कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सका कि मैं सिर्फ बाहरी गतिविधियों से गुजर रही थी। हालाँकि, 2010 में, एक घटना ने गहराई तक मुझ में परिवर्तन ला दिया और मुझे पीड़ाओं के बीच ईश्वर की आवाज़ सुनने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकाशन ने मुझे एक सच्चा मसीही बनने की यात्रा शुरू करने में मदद की। वेरोनिका और मैं सिर्फ सबसे अच्छे दोस्त नहीं थीं; हम एक साथ घूमती थीं, क्योंकि हमारे बेटे हमें एक साथ लाये थे। लेकिन हम दोस्त थी जो वास्तव में एक-दूसरे को पसंद करती थी और हम माताएं थीं जो हमारे बच्चों से प्यार करती थीं। वेरोनिका मधुर, सुंदर और वास्तव में दयालु व्यक्ति थी। मेरा बेटा उसके बेटे का सबसे अच्छा दोस्त था। 28 अगस्त 2010 को वेरोनिका ने मुझे फोन किया और पूछा कि क्या मेरा बेटा उसके घर पर रात बिता सकता है। हालाँकि मैंने उसे पहले भी दर्जनों बार अनुमति दी थी, लेकिन उस रात, किसी कारण से, मैं व्याकुल थी। मैंने उससे ना कहा, लेकिन मैं ने यह भी कहा कि वह जा सकता है और दोपहर के बाद कुछ समय खेल सकता है और मैं उसे रात के खाने से पहले उठा लूंगी। लगभग 4 बजे, मैं उसे लेने के लिए वेरोनिका के घर गयी। जब मैं वेरोनिका के रसोई में खड़ी थी और हम दोनों अपने लड़कों के बारे में बात कर रही थी, उसने मुझे बताया कि उनमें से प्रत्येक एक उपहार था और वे कितने विशेष बच्चे थे। वह उन्हें उनकी पसंदीदा आइसक्रीम खरीदने के लिए किराने की दुकान पर ले गई थी। मेरा बेटा भी नाश्ता चाह रहा था, जिसे वेरोनिका ने उदारतापूर्वक उसके लिए खरीदा और उस में से कुछ मुझे घर ले जाने के लिए दिया। मैंने उसे धन्यवाद दिया और वहां से घर चली आयी। अगली सुबह, जब मैं उठी, तब यह खबर सुनी कि वेरोनिका की हत्या कर दी गई है। वहीं, जहां मैं एक शाम पहले उससे बात कर रही थी... उसका पति जो उससे जल्दी ही तलक लेने वाला था, उसने उसकी हत्या करने के लिए एक हत्यारे को भाड़े पर रखा था, क्योंकि वे अलग हो गए थे। वास्तव में कौन जानता है कि और क्या क्या कारण था। मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे पेट में मुक्का मार दिया गया हो। मैं साँस नहीं ले पा रही थी। मैं रोना बंद नहीं कर सकी। अपनी पीड़ा में, मैं अपने सोने के कमरे के फर्श पर लेटकर रो रही थी, सचमुच चिल्ला रही थी। 39 साल की एक खूबसूरत युवा मां की हत्या कर दी गई, जिससे उसका 8 साल का बेटा मातृहीन हो गया। और किस लिए? मैंने पीड़ा और क्रोध में ईश्वर को पुकारा। तू ऐसा कैसे होने दे सकता है? क्यों प्रभु? मेरी पीड़ा के बीच, एक विचार मेरे मन में आया। और जीवन में पहली बार मैंने इस विचार को ईश्वर की वाणी के रूप में पहचाना। ईश्वर ने कहा, “मैं यह नहीं चाहता; लोग इसे चुनते हैं।” मैंने ईश्वर से पूछा, "क्या, इस भयानक स्थिति में मैं क्या कर सकती हूँ?" उसने मुझे उत्तर दिया, "सूसन, दुनिया में अच्छाई की शुरुआत तुमसे होती है।" मैं सोचने लगी। मैंने सोचा कि कैसे मैंने वेरोनिका और उसके पति को गिरजाघर में एक साथ देखा था, और मुझे आश्चर्य हुआ कि जो व्यक्ति हत्या की साजिश रच रहा था वह गिरजाघर में कैसे जा सकता था। ईश्वर ने मुझे फिर उत्तर दिया। ईश्वर ने मुझे बताया कि उसका पति शुरु से एक हत्यारा नहीं था, बल्कि उसका पाप उसके दिल में बढ़ गया था, अनियंत्रित हो गया था, और वह एक लंबे अंधेरे रास्ते पर ले जाया गया था। मुझे बाइबल का वचन याद आया, "परन्तु मैं तुम से कहता हूं - जो बुरी इच्छा से किसी स्त्री पर दृष्टि डालता है, वह अपने मन में उस के साथ व्यभिचार कर चुका है" (मत्ती 5:28)। उस क्षण, यह वचन मेरी समझ में आया। मैंने हमेशा सोचा था, "एक विचार पाप कैसे हो सकता है?" वेरोनिका की हत्या के बाद, मुझे यह सब समझ में आया। पाप आपके हृदय में शुरू होता है और जब आप उस पर अपने हाथों से कार्य करते हैं तो वह हावी हो जाता है। और अगर हम कभी भी अपने विवेक की जांच करने या यह सोचने के लिए समय नहीं निकालते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है, तो ज़्यादा संभावना है कि हम वास्तव में गलत रास्ते पर चले जायें। गूँजती आवाज़ तो ईश्वर, "मैं क्या कर सकती हूँ?" उसने मुझसे कहा कि एकमात्र व्यक्ति जिसे मैं नियंत्रित कर सकती हूं वह मैं खुद हूं - मैं प्यार करना चुन सकती हूं और उस प्यार को बाहर फैला सकती हूं। मेरे लिए, इसका मतलब अपनी अंतरात्मा की जांच करना और एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करना था। क्या मैं अपने शत्रु से प्रेम करती हूँ? या यहाँ तक कि मेरे पड़ोसी से भी? दुर्भाग्य से, इसका उत्तर एक जोरदार 'न' था। जब मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने आस-पास के लोगों से प्रेमपूर्ण व्यवहार नहीं कर रही हूँ, तब मैं निराश हो गई। कैथलिक चर्च में, हमारे पास पाप स्वीकार का संस्कार है, जहां हम किसी पुरोहित के पास जाते हैं और अपने पापों को स्वीकार करते हैं। मुझे हमेशा से यह संस्कार नापसंद था, और मैं इस संस्कार में जाने से डरती था। लेकिन यहां, इस जगह पर, जमीन पर रोती हुई, मुझे लगा कि यह एक उपहार है। एक उपहार जिसके लिए मैं वास्तव में आभारी थी। अपने पापों को बताने में, मैं मसीह का सामना करने में सक्षम हुई। मेरा पापस्वीकार ऐसा था जैसा मैंने पहले कभी नहीं किया था। इस संस्कार में, मुझे वह अनुग्रह प्राप्त हुआ जो येशु हमें तब प्रदान करते हैं जब हम उसे माँगने का निर्णय लेते हैं। मैंने अपने आप पर अच्छी तरह से गौर किया, और पाप स्वीकार स्थान में ईश्वर के बेशर्त प्यार के साथ साक्षात्कार के कारण मेरा स्वार्थ पिघलने लगा। संस्कार मुझे बेहतर करने का प्रयास करने देता है, और यद्यपि मैं जानती हूं कि मैं एक पापी हूं और मुझे असफलताएं मिलती रहेंगी, मैं हमेशा प्रभु की पवित्र कृपा और क्षमा प्राप्त करने की आशा कर सकती हूं, चाहे कुछ भी हो। इससे मुझे उसकी अच्छाइयों को आगे फैलाने में मदद मिलती है।' मुझे नहीं लगता कि इसे समझने के लिए आपको कैथलिक बनना होगा। वेरोनिका की हत्या मेरी गलती नहीं थी, लेकिन मैं निश्चित रूप से उसे व्यर्थ नहीं मरने दूंगी; मैं दूसरों को यह बताए बिना उसका जीवन बर्बाद नहीं होने दूंगी कि इसका मुझ पर क्या प्रभाव पड़ा और ऐसी भयानक परिस्थितियों की राख से भी अच्छाई निकल सकती है। इस प्रकार, वास्तव में मसीही होने की दिशा में मेरी यात्रा शुरू हुई। मैंने बाइबिल में वेरोनिका के बारे में सोचा। जब येशु अपनी प्राण पीड़ा के दौरान दुःख पीड़ा भोग रहे थे, गोलगोथा की ओर जा रहे थे, पीटे गये थे और खून से लथपथ थे , तो उनकी मुलाकात वेरोनिका नाम की एक महिला से हुई। वेरोनिका ने येशु का चेहरा पोंछ दिया। दयालुता का एक छोटा सा कार्य। यह आदमी, यह ईश्वर-पुरुष, पीटा गया था, खून से लथपथ था, थका हुआ था और पीड़ा में था, फिर भी इस महिला, वेरोनिका ने थोड़ी राहत प्रदान की। कुछ ही पलों में पसीना और खून पोंछ लिया गया, और एक पल के लिए, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, येशु को इस महिला से प्यार का एहसास हुआ। इससे न तो उसकी दुःख-पीड़ा रुकी और न ही उसका दर्द, लेकिन एक ऐसी भीड़ के बीच में जो उसका मज़ाक उड़ा रही थी, उसे कोड़े मार रही थी, कपड़े के साथ उस महिला का स्पर्श येशु केलिए गौरवशाली लगा होगा। इसलिए, उन्होंने उसके कपड़े पर अपनी छवि अंकित कर दी। "वेरोनिका" नाम का अर्थ है "सच्ची छवि"। येशु ने वेरोनिका पर अपने प्रेम की छाप छोड़ी। और इसलिए, मेरी दोस्त वेरोनिका के कारण, जिसने मेरे अपने जीवन के कठिन दौर में प्यार और राहत प्रदान की, मेरा फ़र्ज़ है कि जहां भी मैं जाऊं, प्यार और दयालुता फैलाऊं। मैं दुख-पीड़ा को रोक नहीं सकती, लेकिन मैं उन लोगों को राहत दे सकती हूं जो खो गए हैं, गरीब हैं, अकेले हैं, अवांछित हैं, या जो प्यार नहीं किये गये हैं। और इसी कारण, मैं येशु का चेहरा तब तक पोछूँगी, जब तक उनकी कृपा और दया मुझे अनुमति देगी।
By: Susan Skinner
Moreइनिगो लोपेज़ का जन्म 15वीं सदी के स्पेन में एक कुलीन परिवार में हुआ था। सामंती राज दरबार का प्रेम और शूरवीरता के आदर्शों से प्रभावित होकर, वह एक उग्र योद्धा बन गया। सन 1521 ईसवीं में एक युद्ध के दौरान फ्रांसीसी आक्रमणकारियों के खिलाफ अपने पैतृक शहर पलेर्मो की रक्षा करते समय, इनिगो तोप के गोले से अत्यधिक घायल हो गया था। गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी साहस से भरपूर इनिगो ने फ्रांसीसी सैनिकों की प्रशंसा हासिल की, जो उसे कैद करने के बजाय, उसके उपचार के लिए उसके अपने घर ले गए। रोमांस भरे उपन्यासों का आनंद लेते हुए बिस्तर पर अपने स्वास्थ्य लाभ की अवधि बिताने की योजना बनाते हुए, इनिगो को यह देखकर निराशा हुई कि उपलब्ध पुस्तकें केवल संतों के जीवन पर थीं। उन्होंने अनिच्छा से इन पुस्तकों को पढ़ा, लेकिन जल्द ही इन गौरवशाली जीवन कथाओं के बारे में पढ़कर आश्चर्यचकित हो गए। संतों की जीवन कहानियों से प्रेरित होकर, उन्होंने खुद से पूछा: "अगर वे कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं?" घुटने की चोट से उबरने के दौरान यह सवाल उन्हें सताता रहा। लेकिन संतों द्वारा उनमें बोई गई यह पवित्र खलबली और अधिक मजबूत हो गई और अंततः उन्हें कलीसिया के सबसे महान संतों में से एक बना दिया गया: लोयोला के इग्नेशियस। एक बार ठीक होने के बाद, इग्नेशियस ने अपना चाकू और तलवार मोंट्सेरात की धन्य कुंवारी माँ मरियम की वेदी पर रख छोड़ दिया। उन्होंने अपने महंगे कपड़े त्याग दिए और दिव्य गुरु के मार्ग पर चलने के लिए निकल पड़े। उनका साहस और जुनून कम नहीं हुआ था, लेकिन अब से उनकी लड़ाई स्वर्गीय सेना के लिए होगी, जो मसीह के लिए आत्माओं को जीतेगी। उनके लेखन, विशेष रूप से स्पिरिचुअल एक्सरसाइजेज (आध्यात्मिक अभ्यास) ने अनगिनत जिंदगियों को छुआ है और उन्हें पवित्रता और मसीह के मार्ग पर निर्देशित किया है।
By: Shalom Tidings
Moreमहामारी के कारण पाबन्दी के शुरुआती दिनों में जब मेरे लिए पवित्र मिस्सा बलिदान में भाग लेने का एक मात्र तरीका सीधा प्रसारण था, तो मुझे कुछ कमी महसूस हुई... पवित्र आत्मा हमेशा हमारे दिलों में काम करता है, इसलिए मुझे आश्चर्य नहीं होना चाहिए था कि, कोविड-19 महामारी के शुरुआती दिनों की विश्वव्यापी उथल-पुथल के बीच, उसने मेरे दिल को मसीह के रहस्यमय शरीर के पूर्ण अनुभव केलिए खोल दिया। जब मैंने यह खबर सुनी कि रेस्तरां, दुकानें, स्कूल और कार्यालय के साथ-साथ गिरजाघर भी बंद हो जाएंगे, तो मैंने सदमे और पूर्ण अविश्वास में प्रतिक्रिया व्यक्त की: "यह कैसे हो सकता है?" हमारे पल्ली से पवित्र मिस्सा बलिदान का सीधा प्रसारण देखना एक ही समय में परिचित भी था और परेशान करनेवाला अनुभव था। वहाँ टी.वी. पर हमारे पल्ली पुरोहित थे, जो सुसमाचार का पाठ कर रहे थे, अपने धर्मोपदेश दे रहे थे, रोटी और दाखरस पर अभिषेक प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन बेंचें खाली थीं। हमारी आवाज़ें कमज़ोर लग रही थीं, और हमारे कमरों से निकल रहे प्रार्थनाओं के जवाब उपयुक्त नहीं लग रहे थे। और यह परेशानी कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा हमें बताती है कि धर्मविधि "समुदाय के नए जीवन में विश्वासियों को शामिल करती है और इसमें सभी की 'जागरूक, सक्रिय और फलदायी भागीदारी शामिल होती है" (सी.सी.सी. 1071)। हम अपनी पूरी क्षमता से भाग ले रहे थे, लेकिन समुदाय और सभी की भागीदारी गायब थी। परम प्रसाद वितरण के समय कॉफी टेबल के पास घुटने टेक कर, मैंने आध्यात्मिक परमप्रसाद केलिए प्रार्थना पढ़ी जो टी.वी. के स्क्रीन पर थी, लेकिन मैं विचलित और अस्थिर थी। मैं जानती थी कि समर्पित रोटी वास्तव में येशु का शरीर है और परमप्रसाद का सेवन मुझे उसके साथ एकजुट कर सकता है और मुझे बदल सकता है। और मुझे यकीन था कि यह मेरे कमरे में सीधा प्रसारण देखने से नहीं होने वाला था। परम प्रसाद, येशु की वास्तविक उपस्थिति, पूर्ण रूप से अनुपस्थित थी। मैं आध्यात्मिक परमप्रसाद के बारे में कुछ नहीं जानती थी। बाल्टीमोर की धर्मशिक्षा मुझे बताती है कि आध्यात्मिक परम प्रसाद उन लोगों केलिए है जिन्हें "परम प्रसाद ग्रहण करने की वास्तविक इच्छा है जब इसे संस्कारिक रूप से प्राप्त करना असंभव है।" यह इच्छा हमें इच्छा की शक्ति के अनुपात में परमप्रसाद की कृपा प्राप्त कराती है। (बाल्टीमोर कैटेचिज्म, 377) हालांकि यह दर्दनाक सच था कि संस्कारिक रूप से परम प्रसाद ग्रहण करना असंभव था, मुझे यह कहते हुए खेद है कि उस सुबह मेरी इच्छा केवल परिचित दिनचर्या केलिए थी। मैं विचलित, अस्थिर और असंतुष्ट थी। पहले रविवार ने दूसरे और तीसरे का स्थान ले लिया, और फिर पुण्य बृहस्पतिवार और पुण्य शुक्रवार का। यह एक विलक्षण नाटकीय चालीसा काल था, जिसमें इतने सारे परहेज थोप दिए गए थे, ऐसे परहेज जिनकी मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। इन परहेजों को मैंने कुछ ज्यादा ही अनिच्छा से स्वीकार किया। हालाँकि, ईश्वर अच्छा है, और मेरे अपूर्ण परहेजों का भी कुछ फल प्राप्त हुआ। इन धार्मिक अनुष्ठानों में जो कमी लग रही थी था उस पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, मैंने उन लोगों के बारे में सोचना शुरू कर दिया जो "सामान्य" समय में भी इनमें शामिल नहीं हो पाते थे। नर्सिंग होम निवासी, कैदी, बुजुर्ग, बीमार और विकलांग लोग जो अकेले थे और दूरदराज के स्थानों में रहनेवाले लोग जहां कोई पुरोहित नहीं है। उन काथलिक लोगों केलिए, पवित्र मिस्सा बलिदान का प्रसारण भर देख पाना शायद एक आशीर्वाद था, येशु और उसकी कलीसिया के साथ एक सेतु। मैं जल्द ही फिर से मिस्सा बलिदान में भाग लेने केलिए उत्सुक थी; पर उनके लिए यह संभव नहीं था। इन अन्य काथलिकों केलिए यह कैसा था, जो संस्कार प्राप्त करते भी थे तो, केवल कभी-कभार ही प्राप्त कर पाते थे। वे कलीसिया के सदस्य हैं, ईसा मसीह के रहस्यमय शरीर के, मेरे जैसे ही, फिर भी एक पल्ली समुदाय से काफी हद तक अलग हैं। जैसे-जैसे मैं उनके बारे में अधिक सोचने लगी, और अपनी निराशाओं के बारे में कम सोचने लगी, मैंने उन केलिए प्रार्थना करना भी शुरू कर दिया। और पवित्र मिस्सा के दौरान, मैंने उनके साथ प्रार्थना करना आरम्भ किया। एक तरह से वे, मेरे आसपास के लोग, मेरे रविवारीय मिस्सा बलिदान के समुदाय बन गए, कम से कम मेरे विचारों में। अंत में, मैं सचेत रूप से और सक्रिय रूप से पवित्र मिस्सा बलिदान के सीधा प्रसारण में भाग ले सकी। मसीह के रहस्यमय शरीर के सदस्यों के साथ एकजुट होकर, मैं वास्तव में येशु के साथ एक होना चाहती थी, और आध्यात्मिक भोज अनुग्रह का एक शांतिपूर्ण, फलदायी क्षण बन गया। सप्ताह दर सप्ताह बीत गए, और यह नई असमान्य स्थिति पास्का काल में बदल गई। एक रविवार को, पवित्र मिस्सा बलिदान के सीधा प्रसारण के बाद, हमारे पल्ली पुरोहित ने घोषणा की कि एक स्थानीय भोजन भंडार लोगों की मदद की सख्त जरूरत में थी। जब गिरजाघरों ने अपने दरवाजे बंद कर दिए तो भोजन दान में कटौती कर दी गई, फिर भी हर हफ्ते भोजन की आवश्यकता वाले परिवारों की संख्या कई गुना बढ़ रही थी। मदद करने केलिए, हमारी पल्ली शुक्रवार को ड्राइव-अप भोजन संग्रह आयोजित करेगी। "पल्ली छह सप्ताह केलिए बंद कर दी गयी है।" मैंने सोचा, “क्या कोई आएगा?” लोग ज़रूर आये। मैंने उस शुक्रवार को स्वेच्छा से मदद की, और जैसे ही मैंने गाड़ी चालकों को पार्किंग स्थल के पीछे ड्रॉप-ऑफ साइट पर निर्देशित किया, तब उन सारे परिचित, मुस्कुराते चेहरों को देख कर बहुत अच्छा लगा। इससे भी बेहतर कार्य यह हुआ कि दान का अंबार किसी की अपेक्षा से कहीं अधिक बढ़ रहा है। उस भोजन संग्रह का हिस्सा बनना उत्साहजनक था; मेरा मानना है कि यह पवित्र आत्मा के कार्य करने का परिणाम था। पवित्र आत्मा ने हमारे बिखरे हुए पल्ली समुदाय को एकत्रित किया था कि वे स्वयं जरूरतमंद लोगों की देखभाल करनेवाले येशु मसीह के जीवित शरीर बन जाएँ। जैसे ही पवित्रात्मता ने मेरे व्यक्तिगत प्रार्थना-जीवन को मसीह के रहस्यमय शरीर के साथ एक बड़ी एकजुटता विकसित करने केलिए प्रेरित किया, उसने स्वयं को, जरूरत मंद लोगों की सेवा करने की इच्छा के साथ, जब हम एक साथ इकट्ठा नहीं हो सके, तब भी इस तरह हमारे पल्ली समुदाय में काम करते हुए प्रकट किया।
By: Erin Rybicki
Moreप्रश्न: मैं कैथलिक कलीसिया की कुछ शिक्षाओं से असहमत हूँ। यदि मैं कलीसिया की सभी शिक्षाओं से सहमत नहीं हूँ तो क्या मैं एक अच्छा कैथलिक कहा जाऊंगा ? उत्तर: कलीसिया एक मानवीय संस्था से कहीं अधिक है – यह मानवीय और दिव्य दोनों है। इसके पास सिखाने का कोई अधिकार स्वयं का कुछ भी नहीं है। बल्कि, इसकी ज़िम्मेदारी ईमानदारी से उन बातों को सिखाने की है जो येशु मसीह ने पृथ्वी पर रहते हुए सिखाई: धर्मग्रंथों की प्रामाणिक रूप से व्याख्या करना और प्रेरितिक परंपरा को आगे बढ़ाना जो स्वयं प्रेरितों द्वारा हम तक पहुँची है। हालाँकि, कलीसिया की मुख्य परम्पराओं और लघु परम्पराओं के बीच अंतर हैं। कलीसिया की मुख्य परम्पराएँ अपरिवर्तनीय और शाश्वत शिक्षा है जिनकी जड़ें प्रेरितों और येशु मसीह में हैं। इसके उदाहरण हैं: पवित्र परम प्रसाद केलिए केवल गेहूं की रोटी और अंगूर के दाखरस का उपयोग किया जा सकता है; केवल पुरुष ही पुरोहित बन सकते हैं; कुछ अनैतिक कार्य हमेशा और हर जगह गलत होते हैं; आदि। लघु परंपराएं मानव निर्मित परंपराएं हैं जो परिवर्तनशील हैं, जैसे शुक्रवार को मांस से परहेज करना (कलीसिया के इतिहास के दौरान यह बार बार बदला गया है), हाथों में परम प्रसाद ग्रहण करना आदि। लघु परंपराएं जो मनुष्यों से आई हैं, उनके बारे में विश्वासियों की ज़रूरतों, स्थानीय प्रथाओं और कलीसिया के अनुशासन के अनुरूप अच्छे विचारवाले लोगों की राय ली जाती है। हालाँकि, जब प्रेरितिक परंपराओं की बात आती है, तो एक अच्छा कैथलिक होने का मतलब है कि हमें इसे प्रेरितों के माध्यम से मसीह द्वारा दी गयी परम्परा के रूप में स्वीकार करना चाहिए। एक और अंतर समझने की आवश्यकता है: यह है संदेह और कठिनाई के बीच अंतर। एक ओर "कठिनाई" का मतलब है कि हम यह समझने केलिए संघर्ष करते हैं कि कलीसिया कोई विशिष्ट शिक्षा क्यों सिखाती है, लेकिन दूसरी ओर कठिनाई का मतलब है कि हम इसे विनम्रता से स्वीकार करते हैं और उत्तर ढूंढना चाहते हैं। आख़िरकार आस्था अंधी नहीं होती! मध्ययुगीन धर्मशास्त्रियों में एक वाक्य प्रचलित था: ‘फ़ीदेस क्वारेन्स इंटेलेक्टम’ - समझदारी की इच्छा रखनेवाली आस्था ।हमें प्रश्न पूछने चाहिए और उस आस्था को समझने का प्रयास करना चाहिए जिस पर हम विश्वास करते हैं! इसके विपरीत, संदेह कहता है, "क्योंकि मैं नहीं समझता, मैं विश्वास नहीं करता! "जब कि कठिनाइयाँ विनम्रता से उत्पन्न होती हैं, संदेह अहंकार से उत्पन्न होता है – हम सोचते हैं कि विश्वास करने से पहले हमें हर चीज़ को समझने की आवश्यकता है। लेकिन आइए, ईमानदारी से सोचिये –क्या हम में से कोई पवित्र त्रीत्व जैसे रहस्यों को समझने में सक्षम है? क्या हम वास्तव में संत अगस्तीन, संत थोमस अक्विनस और कैथलिक कलीसिया के सभी संतों और मनीषियों से अधिक बुद्धिमान हैं? क्या हम सोच सकते हैं कि 2,000 साल पुरानी परंपरा, जो प्रेरितों से प्राप्त हुई थी, किसी तरह त्रुटिपूर्ण है? यदि हमें कोई ऐसी शिक्षा मिलती है जिससे हम जूझते हैं, तो जूझते रहें – लेकिन विनम्रता के साथ ऐसा करें और पहचानें कि हमारी बुद्धि सीमित हैं और हमें अक्सर सीखने की आवश्यकता होती है! ढूंढो, और तुम पाओगे — धर्मशिक्षा को पढ़ें या कलिसिया के मठाधीशों, संत पिता के विश्वपत्रों, या अन्य ठोस कैथलिक सामग्री को पढ़ें। किसी पवित्र पुरोहित की तलाश करें जिन से अपने प्रश्न पूछ सकें। और यह कभी न भूलें कि कलीसिया जो कुछ भी सिखाती है वह आपकी खुशी केलिए है! कलीसिया की शिक्षाएँ हमें दुखी करने केलिए नहीं हैं, बल्कि हमें वास्तविक स्वतंत्रता और आनंद का रास्ता दिखाने केलिए हैं – जो केवल येशु मसीह में पवित्रता के उत्साही जीवन में ही पाया जा सकता है!
By: Father Joseph Gill
Moreइस जीवन में आनंद की कुंजी क्या है? जब आप उस कुंजी को प्राप्त करेंगे, तब आपका जीवन कभी भी पहले जैसा नहीं रहेगा। येशु मसीह द्वारा दस कोढ़ियों को चंगा करने का वृत्तांत मुझे गहराई तक प्रभावित करता है। कुष्ठ रोग एक ऐसी भयानक बीमारी थी जो पीड़ितों को उनके परिवारों से दूर और अलग-थलग कर देती थी। "हम पर दया करो", वे उसे पुकारते हैं। और वह उन्हें चंगा कर देता है। वह उन्हें अपना जीवन वापस देता है। वे अपने परिवारों के पास लौट सकते हैं, अपने समुदाय के साथ आराधना कर सकते हैं और फिर से काम कर सकते हैं और भीख मांगने से और भीषण गरीबी से बच सकते हैं। उन्होंने जो आनंद अनुभव किया वह अविश्वसनीय होगा। परन्तु धन्यवाद प्रकट करने केलिए सिर्फ एक ही व्यक्ति लौटता है। उपहार के पीछे मेरा इरादा उन नौ लोगों को आंकने का नहीं है जो वापस नहीं आये, लेकिन जो येशु के पास लौटा उसने "उपहारों" के बारे में कुछ बहुत महत्वपूर्ण बात समझी। जब ईश्वर कोई उपहार देता है, जब वह किसी प्रार्थना का उत्तर देता है, तो यह व्यक्तिगत होता है। ईश्वर सदैव उस उपहार में समाहित रहता है। उपहार प्राप्त करने की आवश्यक क्षमता उस व्यक्ति से प्राप्त करनी है जो इसे देता है। प्यार से दिया गया कोई भी उपहार देने वाले के प्यार का प्रतीक है, इसलिए उपहार प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति को प्राप्त करता है जिसने इसे दिया है। उपहार अंततः टूट सकता है या ख़राब हो सकता है, लेकिन देने वाले के साथ उसका बंधन बना रहता है। चूँकि ईश्वर शाश्वत है, उसका प्रेम शाश्वत है और कभी भी वापस नहीं लिया जाएगा। एक कृतघ्न बच्चे को प्यार करने वाले माता-पिता की तरह, वह निरंतर देता रहता है, कब उड़ाऊ पुत्र उसके पास वापस आ जाता है, माता पिता उस पल की प्रतीक्षा करते हैं। किसी को उपहार के लिए धन्यवाद देने से इंकार करना एक बिगड़ैल बच्चे का कार्य है, और वह चोरी के समान है। उत्साह में लौटा हुआ कोढ़ी यह बात नहीं भूला। कृतज्ञता की भावना ही धार्मिक और आध्यात्मिक भावना का मूल है। हमारा पूरा जीवन, हर पल, एक सरासर उपहार है। एक क्षण रुकें और विचार करें कि आपको कितने आशीर्वाद के उपहार प्राप्त हुए हैं। वह हममें से प्रत्येक शख्स से व्यक्तिगत रूप से क्या कह रहा है? "मुझे तुमसे प्यार है।" प्रत्येक आशीर्वाद उसके प्रेम को साझा करते हुए उसके उपहार का उपयोग करके उसके प्रेम को वापस करने का निमंत्रण है। यदि हम उस व्यक्ति को खोजने में विफल रहते हैं जो हमारे उपहारों का स्रोत है, तो कुछ समय बाद उनका हमारे जीवन में कोई खास मतलब नहीं रहेगा। वे "बूढ़े या पुराने हो जाएंगे" और एक तरफ रख दिए जाएंगे जबकि हम व्याकुल रहते हुए और अधिक की तलाश करेंगे। मेरे पुरोहिताई अभिषेक के बाद, मुझे एक मनोरोग अस्पताल और पास की जेल में जाकर आत्मिक निदेशक का कार्य करने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी । जेल में सुरक्षा जांच के लिए अक्सर लंबा इंतजार करना पड़ता है। अंततः बैरक जहां कैदी मेरा इंतजार करते हैं, वहां अक्सर एक और थकाऊ विलम्ब होता है। इतना सब होने के बाद, मैं कांच की दीवार के माध्यम से कैदी से केवल चालीस मिनट तक फोन पर बात कर सकता था। बंद द्वार और अवरुद्ध दीवारें इससे बिलकुल विपरीत मानसिक अस्पताल के प्रत्येक विभाग बंद होने के बाद भी मुझे उसमें प्रवेश करने और अन्दर जाने के लिए एक चाबी दी जाती थी। सिज़ोफ्रेनिक विभाग में सबसे खतरनाक रोगियों के लिए एक अपवाद था। इसकी कोई चाबी नहीं थी। इसके बजाय, सुरक्षा गार्ड एक कैमरे के माध्यम से मेरी पहचान करते हैं और रिमोट से एक दरवाज़ा खोल देते हैं। मेरे पीछे वाला दरवाजा बंद हो जाने पर दूसरा दरवाजा खुल जाता ताकि मैं मरीजों को देखने के लिए अंदर जा सकूं। पूरा सप्ताहांत लोहे के बंद दरवाज़ों और राख भरी दीवारों से घिरे रहने, सुरक्षा गार्डों और कैमरों की निगरानी में बिताने के बाद, वहाँ से निकलकर घर जाना मेरे लिए बड़ी राहत की बात थी। दीवारों से मुक्त, सुंदर नीले आकाश को देखते हुए, मैं तीव्र आनंद की गहरी अनुभूति से अभिभूत हो जाता। पहली बार, मैंने अपनी आज़ादी की पूरी सराहना की। मैंने मन में सोचा, मैं कोई भी रास्ता चुन सकता हूँ और जहाँ चाहूँ रुक सकता हूँ; दुकान से कॉफ़ी या शायद डोनट खरीद सकता हूँ। मैं स्वतंत्र रूप से चुन सकता हूं और कोई भी मुझे रोकने, मेरी तलाशी लेने, मेरा पीछा करने या मुझ पर नजर रखने की कोशिश नहीं करेगा। इस उत्साहपूर्ण अनुभव के बीच, मुझे एहसास हुआ कि मैंने कितना कुछ हल्के में लेता था। यह एक दिलचस्प अभिव्यक्ति है: "हलके में लेना"। इसका मतलब है कि जो "दिया गया है" उस पर ध्यान न देना तथा देने वाले को नज़रअंदाज़ करना और धन्यवाद देने में असफल होना। इस जीवन में आनंद की कुंजी यह महसूस करना है कि सब कुछ एक सरासर उपहार है, और उस व्यक्ति के बारे में, जो हर उपहार का स्रोत है, अर्थात् ईश्वर के बारे में जागरूक होना है। अधूरी समझ दस कोढ़ियों के चंगा होने के बारे में अगला महत्वपूर्ण बिंदु उनके चंगे होने के तरीके से संबंधित है। येशु ने उनसे कहा: "जाओ और खुद को याजकों को दिखाओ" (केवल याजक ही थे जो प्रमाणित कर सकते थे कि वे संक्रमण से मुक्त थे ताकि वे घर लौट सकें)। लेकिन सुसमाचार कहता है कि वे "रास्ते में ही चंगे हो गये"। दूसरे शब्दों में, जब येशु ने उनसे कहा कि जाकर अपने आप को याजकों को दिखाओ, तब तक वे ठीक नहीं हुए थे। वे "रास्ते में" ठीक हो गये। दुविधा की कल्पना कीजिए. “मैं खुद को याजक को क्यों दिखाऊं, आपने अभी तक कुछ नहीं किया है? मुझे अभी भी कुष्ठ रोग है”। और इसलिए, उन्हें भरोसा करना पड़ा। उन्हें पहले आज्ञा माननी होगी और कार्य करना होगा। तभी वे ठीक हो सके। ईश्वर के साथ इसी तरह सब काम होता हैं। हम वास्तव में प्रभु को तभी समझ पाते हैं जब हम पहले उनका अनुसरण करके उस विश्वास को जीना चुनते हैं - ऐसा कहा जा सकता है कि यह अंधेरे में उसकी आज्ञा का पालन करना जैसा होता है। जो लोग कार्य करने के पूर्व पूरी तरह से समझने पर जोर देते हैं, वे लगभग हमेशा असफल हो जाते हैं। हम जानते हैं कि उसने हमसे क्या कहा: आज्ञाओं का पालन करो। अंतिम भोज में, उसने अपने प्रेरितों को "मेरी याद में ऐसा करने" की आज्ञा दी। उसने यह उपदेश भी दिया कि हमें अपने वस्त्र, भोजन या पेय के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रभु परमेश्वर हमारी ज़रूरतों को जानता है। "पहले ईश्वर के राज्य की तलाश करो और ये सभी बातें तुम्हें यूँ ही प्रदान की जाएंगी"। यदि हम विश्वास में आगे बढ़ते हैं और उनके वचन के अनुसार कार्य करते हैं, तो हम अंततः अनुग्रह के प्रकाश के माध्यम से समझेंगे। लेकिन आज बहुत से लोग ऐसी चीज़ों से डरते हैं जो उनके आराम में खलल डालती है और जब तक कि उन्हें आश्वस्त नहीं किया जाता है कि ईश्वर की आज्ञाओं के अनुसार कार्य करना उनकी अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए यह कोई जोखिम नहीं है, तब तक वे आज्ञाओं का पालन करने से सख्त इनकार करते हैं । और इसलिए वे ईश्वर को वास्तव में जानने के आनंद के बिना, अंधेरे में जीवन गुजारते हैं। परन्तु इससे पहले कि हम समझें कि ऐसा क्यों है, उसकी आज्ञाओं के अनुरूप हमारे कार्यों को करने के निर्णय के बाद हमें चंगाई मिलती है; हमें प्रभु की आज्ञा का पालन बिल्कुल छोटे बच्चों की तरह करना होगा जो अपने माता-पिता पर भरोसा करते हैं और उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।
By: Deacon Doug McManaman
Moreजीवन में सफलता का अनुभव करना चाहते हैं? आप जिसे ढूंढ रहें हैं वह यहाँ है! निश्चित रूप से यह जानने के लिए किसी रॉकेट वैज्ञानिक की आवश्यकता नहीं है कि प्रार्थना प्रत्येक मसीही के जीवन का केंद्र है। उपवास के महत्व के बारे में कम ही बात की जाती है, इसलिए यह अज्ञात या अपरिचित हो सकता है। कई कैथलिक लोग यह विश्वास करते हैं कि वे राख बुधवार और गुड फ्राइडे पर मांसाहार से परहेज़ करके अपनी भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन जब हम वचन में देखते हैं, तो हमें यह जानकर आश्चर्य होगा कि हम सिर्फ परहेज केलिए नहीं, बल्कि उससे अधिक के लिए हम बुलाए गए हैं। येशु से पूछा गया कि जब फरीसी और योहन बपतिस्ता के चेले उपवास करते हैं, तो उनके चेले उपवास क्यों नहीं करते हैं। येशु ने उत्तर दिया कि जब वह उनके पास से उठा लिया जाएगा, तो ‘वे उन दिनों में उपवास करेंगे’ (लूकस 5:35)। लगभग सात साल पहले मैंने एक शक्तिशाली तरीके से उपवास के बारे में जाना, जब मैं मेडगास्कर में भूखे बच्चों के बारे में ऑनलाइन एक लेख पढ़ते हुए अपने बिस्तर पर लेटा था। मैंने एक हताश माँ द्वारा उस दु:खद स्थिति का वर्णन पढ़ा, जिसमें वह और उसके बच्चे फँसे हुए थे। वे सुबह भूखे उठते। बच्चे भूखे स्कूल जाते और इसलिए वे स्कूल में जो भी सीखते, उस पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। वे स्कूल से भूखे घर आते और भूखे ही सो जाते। स्थिति इतनी खराब थी कि वे घास खाने लगे थे ताकि अपने दिमाग को यह सोचने पर मजबूर कर दें कि वे जीवन निर्वाह के लिए कुछ खा रहे हैं, और यह सब केवल भूख के विचारों को दूर करने के लिए था। मैंने सीखा था कि एक बच्चे के जीवन के पहले कुछ वर्ष महत्वपूर्ण होते हैं। उन्हें जो पोषण मिलता है या नहीं मिलता है, वह उनके शेष जीवन को प्रभावित कर सकता है। जिस बात ने वास्तव में मेरा दिल को तोड़ा, वह मेडगास्कर में तीन छोटे बच्चों की पीठ की तस्वीर थी, जिनपर कोई कपड़े नहीं थे, साफ़ और स्पष्ट रूप से पोषण की अत्यधिक कमी दिखाई दे रही थी। उनके शरीर की एक-एक हड्डी साफ नज़र आ रही थी। मेरे दिल पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। ‘मैं क्या करूं?’ इस लेख को पढ़ने के बाद, मैं इतने भारी मन और आँसुओं से भरी आँखों के साथ, नीचे चला गया। मैंने अलमारी से नाश्ते का अनाज निकाला, और जैसे ही मैं दूध निकालने के लिए रेफ्रिजरेटर के पास गया, मैंने रेफ्रिजरेटर पर कोलकत्ता की संत तेरेसा की तस्वीर का एक चुंबक देखा। मैंने अपने हाथ में दूध पकड़ा और जैसे ही मैंने दरवाजा बंद किया, मैंने फिर से मदर तेरेसा की तस्वीर को देखा, और अपने दिल में कहा, ‘हे मदर तेरेसा, आप इस दुनिया में गरीबों की मदद करने आई थीं। मैं उनकी मदद के लिए क्या कर सकता हूँ?’ मैंने अपने दिल में एक तत्काल, सौम्य और स्पष्ट उत्तर महसूस किया; ‘जल्दी !’। मैंने दूध को वापस फ्रिज में रख दिया, और अनाज को वापस अलमारी में रख दिया, और ऐसी स्पष्ट दिशा प्राप्त करने में मुझे बहुत खुशी और शांति महसूस हुई। फिर मैंने प्रण लिया, कि अगर मैं उस दिन भोजन के बारे में सोचूंगा, या जब कभी मुझे भूख लगेगी , या मैंने खाने की खुशबू भी लूंगा, या यहां तक कि खाने को देखूंगा, उन सारे मौकों पर मैं उन गरीब बच्चों और उनके माता-पिता, और दुनिया भर में सभी भूखे लोगों के प्रति मेरा छोटा सा आत्म-त्याग समर्पित करूंगा। । इतने सरल, स्पष्ट और शक्तिशाली तरीके से ईश्वर के दिव्य हस्तक्षेप में बुलाया जाना एक सम्मान की बात थी। रात में जब मैंने पवित्र मिस्सा में भाग लिया, तब तक मैंने भोजन के बारे में सोचा भी नहीं था और न ही मुझे उस पूरे दिन कोई भूख महसूस हुई थी। परम प्रसाद ग्रहण करने से पूर्व मुझे अत्यंत भूख का अनुभव हुआ| यूखरिस्त ग्रहण करने के बाद जब मैंने घुटने टेके, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ भोजन ग्रहण किया हो। निश्चित तौर पर मैं ने जीवन का सर्वश्रेष्ठ भोजन ग्रहण किया था; मैंने ‘जीवन की रोटी’ को ग्रहण किया था (यूहन्ना 6:27-71)। यूखरिस्त न केवल हम में से प्रत्येक को व्यक्तिगत रूप से येशु से जोड़ता है, बल्कि बदले में एक दूसरे के साथ भी जोड़ता है, और एक शक्तिशाली तरीके से ‘हमें गरीबों के लिए प्रतिबद्ध करता है’ (सी.सी.सी 1397)। संत अगस्टिन इस रहस्य की महानता को ‘एकता का चिह्न’ और ‘दान के बंधन’ (सी.सी.सी. 1398) के रूप में वर्णित करते हैं। संत पौलुस हमें इसे समझने में मदद करते हैं, ‘क्योंकि रोटी तो एक ही है, इसलिये अनेक होने पर भी हम एक हैं; क्योंकि हम सब एक ही रोटी के सहभागी हैं’ (1 कुरिन्थी 10:17)। इसलिए ‘मसीह में एक शरीर’ होना हमें ‘एक दूसरे के अंग’ बनाता है (रोमी 12:5)। एक दिशा मैंने हर सप्ताह प्रार्थना करनी शुरू की, और उस प्रार्थना में मैं प्रभु से कहने लगा की वह मुझे बताए कि किसके लिये उपवास और प्रार्थना करूं। इससे पहले कि मैं उपवास करना शुरू करता, मेरा किसी तरह किसी से मेल हो जाता; एक बेघर व्यक्ति, एक वेश्या, एक पूर्व-कैदी आदि। मुझे लगा कि वास्तव में मुझे स्पष्ट निर्देश दिया जा रहा है। हालाँकि, एक विशेष सप्ताह में, मैं इस बात को लेकर अनिश्चितता में था कि प्रभु मुझसे किस उद्देश्य के लिए उपवास और प्रार्थना करवाना चाहता है। उस रात जब मैं सोने गया, मैंने उचित दिशा जानने के लिए प्रभु से प्रार्थना की। अगली सुबह जैसे ही मैंने अपनी सुबह की वन्दना समाप्त की, मैंने देखा कि मेरे मोबाइल फोन पर एक सन्देश आया था। मेरी बहन ने मुझे यह दुखद समाचार भेजा था कि उसकी एक सहेली ने आत्महत्या कर ली है। मुझे मेरा जवाब मिल चुका था। फिर मैंने उस लड़की की आत्मा के लिए, इसके अलावा, उन लोगों के लिए जिन्होंने उसे उस स्थिति में पाया, उसके परिवार, और सभी आत्महत्या के शिकार लोगों के लिए और कोई भी जो वर्तमान में अपनी जान लेने पर विचार कर रहा था, उन सब के लिए उपवास और प्रार्थना करनी शुरू की। जब मैं उस दिन काम से घर आया, तो मैंने अपनी दैनिक रोजरी माला विनती की। जैसे ही मैंने आखिरी मनके पर आखिरी प्रार्थना की, मैंने अपने दिल में इन शब्दों को स्पष्ट रूप से महसूस किया, ‘जब तुम उपवास करते हो...’ (मत्ती 6:16-18)। जैसे ही मैंने इन शब्दों पर विचार किया, स्पष्ट रूप से ‘जब’ पर ज़ोर था, ‘अगर’ पर नहीं। विश्वासियों के रूप में हमसे जितनी प्रार्थना करने की अपेक्षा की जाती है, वात्सव में उपवास के लिए भी उतना ही अपेक्षा की जाती है कि ‘जब तुम उपवास करते हो’। जैसे ही मैंने रोजरी माला विनती समाप्त की और खड़ा हुआ, मेरा फोन तुरंत बजने लगा। एक खूबसूरत बुजु़र्ग महिला, जिसे मैं गिरजाघर में देखता और पहचानता हूँ, उस ने हताश अवस्था में मुझे फोन किया और मुझे कुछ ऐसी बातें बताईं जो उसके जीवन में चल रही थीं। उसने मुझे बताया कि वह आत्महत्या करने के बारे में सोच रही थी। मैंने घुटने टेके और हमने फोन पर एक साथ प्रार्थना की और परमेश्वर की कृपा से प्रार्थना और बातचीत के अंत में उसे शांति महसूस हुई। यह प्रार्थना और उपवास की शक्ति है! परमेश्वर की महिमा हो। उठो और लड़ो मुझे अपने जीवन में कई बार मेडजुगोरे की माँ मरियम के तीर्थस्थल पर जाने की महान कृपा मिली है और बुराई के खिलाफ इस सबसे खूबसूरत हथियार की पक्की समझ मुझमें और अधिक बढ़ गयी है। धन्य कुवाँरी मरियम वहाँ अपने बच्चों को पश्चताप और उपवास के लिए बुलाती है और उनसे बुधवार और शुक्रवार को केवल रोटी खाने और पानी पीने का अनुरोध करती है। एक बार मेडजुगोरे के स्वर्गवासी पुरोहित, फादर स्लावको ने कहा था कि ‘प्रार्थना और उपवास दो पंखों की तरह हैं’। हम निश्चित रूप से केवल एक पंख के साथ बहुत अच्छी उड़ान भरने की उम्मीद नहीं कर सकते। यह विश्वासियों के लिए सही मायने में पूरे सुसमाचार संदेश को अपनाने, येशु के लिए मौलिक रूप से जीने और वास्तव में उड़ने का समय है। बाइबिल स्पष्ट रूप से हमें बार-बार उपवास के साथ प्रार्थना की शक्ति दिखाती है (एस्तेर 4:14-17; योना 3; 1; राजा 22:25-29)। ऐसे समय में जहाँ युद्ध की रेखाएं स्पष्ट रूप से खींची गई हैं, और प्रकाश और अंधेरे के बीच का अंतर साफ दिखाई देता है, तो यह समय दुश्मन को पीछे धकेलने का है, येशु के शब्दों को याद करते हुए, कि कुछ बुराइयाँ ‘प्रार्थना और उपवास के सिवा और किसी उपाय से नहीं निकाली जा सकतीं’ (मारकुस 9:29)।
By: Sean Booth
Moreमैं लुयिसिआना के कोविंगटन में सेंट जोसेफ मठ में था, जो न्यू ऑरलियन्स से ज्यादा दूर नहीं था। मैं वहाँ देश भर के लगभग तीस बेनेडिक्टिन मठाधीशों को संबोधित करने के लिए गया था जो कुछ दिनों के लिए चिंतन और एकांतवास के लिए एकत्रित हुए थे। सेंट जोसेफ मठ के गिरजाघर और भोजनालय की दीवारों पर फादर ग्रेगरी डी विट द्वारा चित्रित अद्भुत कलाकृतियाँ हैं। फादर ग्रेगरी डी विट बेल्जियम में मोंट सीज़र के एक मठवासी थे, जिन्होंने 1978 में निधन से पूर्व हमारे देश में इंडियाना में सेंट मेनराड और सेंट जोसेफ में कई वर्षों तक काम किया। मैं लंबे समय से, ईश शास्त्र के दृष्टिकोण से धनी उनकी विशिष्ट और विचित्र कला का प्रशंसक था। मठ के गिरजाघर के अर्द्धवृत्ताकार कक्ष में, फादर डी विट ने शानदार पंख वाले स्वर्गदूतों की एक श्रृंखला को चित्रित किया, जो सात घातक पापों की छवियों पर मंडराते हैं, जो इस गहन सत्य को व्यक्त करते हैं कि ईश्वर की सही उपासना हमारे आध्यात्मिक शिथिलता पर काबू पाती है। लेकिन डी विट के चित्रित कार्यक्रम की एक नवीनता यह है कि उन्होंने आठवां घातक पाप के रूप में गपशप को जोड़ा जो उनके विचार से मठ के भीतर विशेष रूप से विनाशकारी कार्य करती है। बेशक, मठों के बारे में फादर डी विट सही थे, लेकिन मैं कहूँगा कि यह बात लगभग किसी भी प्रकार के मानव समुदाय के बारे में सही होता: परिवार, स्कूल, कार्यस्थल, पल्ली, आदि। गपशप ज़हर है। डी विट की पेंटिंग हमारे वर्तमान संत पापा की शिक्षाओं की पूर्वानुमान या भविष्यवाणियां थीं, क्योंकि संत पापा फ्रांसिस ने अक्सर गपशप को विशेष निंदा का विषय बना दिया है। संत पापा फ्रांसिस के एक हालिया प्रवचन को सुनें: "भाइयो और बहनो, कृपया, गपशप न करने का प्रयास करें। गपशप कोविड से भी बदतर महामारी है। उससे भी ज़्यादा बुरा! आइए एक बड़ा प्रयास करें। कोई गपशप नहीं!” और हम किसी तरह चूक न जाएँ इसलिए, संत पापा स्पष्ट करते हैं, "शैतान सबसे बड़ा गपशप करने वाला है।" यह अंतिम टिप्पणी केवल रंगीन बयानबाजी नहीं है, क्योंकि संत पापा अच्छी तरह से जानते हैं कि नए नियम में शैतान के दो प्रमुख नाम डायबोलोस (तितर बितर करनेवाला) और सेटनस (अभियोग लगानेवाला) हैं। इन शब्दों में गपशप के बेहतर लक्षण का वर्णन है; हमें पता चलता है कि गपशप क्या करती है और यह अनिवार्य रूप से क्या है। अभी कुछ समय पहले, एक मित्र ने मुझे व्यवसाय और वित्त सलाहकार, डेव रैमसे की बातचीत का एक यू-ट्यूब वीडियो भेजा था। संत पापा फ्रांसिस की तरह, उसी उग्रता के साथ, रैमसे ने कार्यस्थल में गपशप के खिलाफ बात की, यह निर्दिष्ट करते हुए कि गपशप के संबंध में उनकी नीति शून्य सहिष्णुता की है। उन्होंने गपशप को इस प्रकार परिभाषित किया: “गपशप उस व्यक्ति के साथ नकारात्मक चर्चा है जो समस्या का समाधान नहीं कर सकता।“ चीजों को थोड़ा और स्पष्ट बनाने के लिए उन्होंने उदहारण दिया: “आपके संगठन का एक व्यक्ति गपशप कर रहा होगा, यदि वह आई.टी. मुद्दों के बारे में किसी ऐसे सहयोगी के साथ शिकायत कर रहा था जिसके पास आई.टी. मामलों को हल करने की कोई योग्यता या अधिकार नहीं था। या कोई अपने बॉस के अधीन या नीचे के लोगों के सामने अपने बॉस के प्रति गुस्सा व्यक्त करती है, जो उसकी आलोचना का रचनात्मक जवाब देने की स्थिति में नहीं है।“ रैमसे अपने अनुभव से एक सुस्पष्ट उदाहरण प्रदान करते हैं। वह याद करता है कि उसने अपनी पूरी प्रशासनिक टीम के साथ एक बैठक की थी, जिसमें एक नए दृष्टिकोण की रूपरेखा दी गई थी, जिसे वह अपनाना चाहता था। उसने सभा छोड़ दी, लेकिन फिर महसूस किया कि वह अपनी चाबियां भूल गया था और इसलिए कमरे में वापस चला गया। वहाँ उन्होंने पाया कि "बैठक के बाद एक दूसरी बैठक" हो रही थी, जिसका नेतृत्व उनके एक महिला कर्मचारी कर रही थी, जिसकी पीठ दरवाजे की तरफ थी, ज़ोर-ज़ोर से दूसरों के सामने बॉस की निंदा कर रही थी। बिना किसी हिचकिचाहट के, रैमसे ने महिला को अपने कार्यालय में बुलाया और गपशप के प्रति अपनी शून्य-सहिष्णुता की नीति के अनुसार, उसे निकाल दिया। आप ध्यान दें, इसका मतलब यह नहीं है कि मानव समाजों के भीतर समस्याएं कभी उत्पन्न नहीं होती हैं, यह बिल्कुल भी नहीं है कि शिकायतों पर कभी भी आवाज नहीं उठानी चाहिए। लेकिन वास्तव में यह कहना ज़रूरी है कि उन्हें हिंसात्मक या युद्ध स्तर पर नहीं, बल्कि उचित अधिकारी के सम्मुख व्यक्त किया जाना चाहिए, जो उन शिकायतों के साथ रचनात्मक व्यवहार कर सकते हैं। यदि इस प्रक्रिया का पालन किया जाता है, तो गपशप का खेल नहीं होगा। रैमसे की अंतर्दृष्टि की पूरक के रूप में मेरे पूर्व शिक्षक जॉन शी एक सूत्र देते हैं। वर्षों पहले, जॉन शी ने हमसे कहा था कि हमें किसी अन्य व्यक्ति की आलोचना करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्रता महसूस करना चाहिए, ठीक उसी मात्रा में और उस हद तक कि हमने उस व्यक्ति की समस्या को पहचाना है, उस से निपटने में मदद करने को तैयार हैं। अगर हम पूरी तरह से मदद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो हमें जितनी जोरदार आलोचना करनी चाहिए उतनी करनी चाहिए। अगर हमारे पास मदद करने की उदार इच्छा है, तो हमारी आलोचना को कम किया जाना चाहिए। अगर, जैसा कि आम तौर पर होता है, अगर हमें मदद करने की थोड़ी सी भी इच्छा नहीं है, तो हमें अपना मुंह बंद रखना चाहिए। किसी शिकायत को बिना सौम्य तरीके से अधिकारियों के सम्मुख रखना सहायक होता है; इसे नीचे के कर्मचारियों के बीच ले जाना और उद्देशय शुद्धि के बिना बहस करना नीचता है, और यही गपशप है — और यह शैतान का काम है। क्या मैं एक दोस्ताना सुझाव दे सकता हूँ? हम चालीसा के मुहाने पर हैं, यह कलीसिया के लिए पश्चाताप और आत्म-अनुशासन का महान समय है। इस चालीसा में मिठाई या धूम्रपान छोड़ने के बजाय, गपशप करना छोड़ दें। चालीस दिनों तक कोशिश करें कि उन लोगों के साथ नकारात्मक टिप्पणी न करें जिनमें समस्या से निपटने की क्षमता नहीं है। और यदि आप को इस संकल्प को तोड़ने के लिए प्रलोभन होता हैं, तो डी विट के स्वर्गदूतों को अपने ऊपर मंडराते हुए सोचें। मेरा विश्वास करें, आप और आपके आस-पास के सभी लोग बहुत खुश होंगे।
By: Bishop Robert Barron
Moreजीवन में आने वाली आकस्मिक घटनाएँ और बदलाव अक्सर दिल दहला सकती हैं l लेकिन हिम्मत न हारें ! आप अकेले नहीं हैं। परमेश्वर और मेरे बीच सम्बन्ध के बारे में मेरे एहसास के बारे में व्याख्या करना मुझे यह स्मरण कराने जैसा है कि मैंने कब सांस लेनी शुरू की; यह मेरे लिए संभव नहीं l मैं अपने जीवन में हमेशा परमेश्वर के बारे में अवगत रही हूँ। ऐसा कोई विशेष चमात्कारिक क्षण नहीं है जिसने मुझे परमेश्वर के प्रति जागरूक किया हो, परन्तु ऐसे अनेक अनगणित क्षण हैं जो मुझे याद दिलाते हैं कि वह हमेशा मेरे साथ मौजूद है। भजन 139 इसे खूबसूरती से कहता है: “तूने मेरे शरीर की सृष्टि की, तूने माता के गर्भ में मुझे गढ़ा l मैं तेरा धन्यावाद करता हूँ - मेरा निर्माण अपूर्व है l तेरे कार्य अद्भुत हैं, मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ ” (स्तोत्र ग्रन्थ 139:13-14)। एकमात्र उत्तर हालाँकि परमेश्वर हमेशा मेरे जीवन में निरंतर उपस्थित रहा है, पर कई बार अन्य चीजें उतनी सुसंगत नहीं रही हैं। उदाहरण के लिए, दोस्त, घर, स्वास्थ्य, विश्वास और भावनाएँ समय और परिस्थितियों के साथ बदल सकते हैं। कभी-कभी परिवर्तन नया और रोमांचक लगता है, लेकिन कई बार यह डरावना होता है और मुझे कमजोर और असुरक्षित महसूस कराता है। घटनाएँ ऐसे प्रतीत होती हैं मानो मेरे पैर एक हवादार, रेतीले समुद्र तट के किनारे पर गाड़े गए हैं जहाँ ज्वार लगातार मेरी नींव को हिला देता है और पुनः मुझे अपना संतुलन बनाए रखने के लिए बाध्य करता है l हम कैसे उन दैनिक परिवर्तनों का प्रबंधन करते हैं जो हमारे संतुलन को बिगाड़ देते हैं? मेरा उत्तर केवल एक है, और मुझे लगता है कि आपके लिए भी वही सच है: अनुग्रह – स्वयं परमेश्वर का जीवन हमारे अन्दर विद्यमान है , परमेश्वर का अनर्जित उपहार जिसके हम योग्य नहीं हैं, जिसे हम कमा या खरीद नहीं सकते, और वही उपहार जो हमें इस जीवन से अनन्त जीवन की ओर अग्रसर करता हैl राहत के बिना निवास परिवर्त्तन औसतन, लगभग हर पांच से छः सालों में एक बार मेरा निवास परिवर्त्तन होता आ रहा है। कुछ तो अधिक स्थानीय और अस्थायी थीं; अन्य मुझे बहुत दूर और अधिक समय तक ले चलीं। लेकिन वे सभी निवास परिवर्त्तन और बदलाव एक जैसे थे। पहला बड़ा बदलाव तब आया जब मेरे पिताजी की नौकरी के कारण हमें देश के एक कोने से दुसरे कोने जाना पडा। जिस राज्य में हमारा परिवार पहले से था, वहां हमारी गहरी जड़ें थीं, और नए राज्य की तुलना में भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से हमारा पुराना राज्य बहुत ही अलग और अनोखा था। कुछ नया करने की उत्तेजना ने अपरिचित और अनजान के प्रति मेरे डर को अस्थायी रूप से कम कर दिया। हालाँकि, जब हम अपने नए घर पहुँचे, तो मेरा घर, हमारे रिश्तेदार, दोस्त, स्कूल, चर्च और वह सब जो परिचित था – उन सारी वास्तविकता को जिसे मैंने छोड़ दिया था और जिससे मैं परिचित थी – उस वास्तविकता ने मुझे भारी उदासी और खालीपन से भर दिया। निवास परिवर्त्तन ने हमारे परिवार को गतिशील बना दिया। जैसे जैसे हर कोई परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठा रहा था, वैसे ही वे अपनी व्यक्तिगत जरूरतों में लीन हो गए। हमें नहीं लग रहा था कि हमारा वही पुराना परिवार है। कुछ भी सुरक्षित या परिचित नहीं लग रह था । एकाकीपन घर करने लगा था। क्रूस से टपकती आशीष हमारे निवास परिवर्त्तन के बाद के हफ्तों के दौरान हमने अपने सामानों को खोला और छांटा। एक दिन जब मैं स्कूल में थी, मेरी माँ ने उस क्रूसित प्रभु की मूर्ती को बक्से से निकाला जो मेरे जन्म के समय से ही मेरे बिस्तर के ऊपर दीवार पर लटकी हुई थी। माँ ने उसे निकालकर मेरे नए बेडरूम में लटका दिया। बात छोटी सी थी, लेकिन इससे बहुत फर्क पड़ा। क्रूसित प्रभु की मूर्ती मेरे लिए परिचित और प्रिय थी। इससे मुझे याद आया कि मैं परमेश्वर से कितना प्यार करती थी और कैसे मैं अक्सर अपने पिछले घर में उससे बातें किया करती थी। वह बचपन से मेरा दोस्त रहा, लेकिन किसी तरह, मैंने सोचा कि मैंने उसे पीछे छोड़ दिया है। मैंने क्रूस को दीवार से उठा लिया और उसे हाथ में कस कर पकड़ कर रोने लगीI मुझमें कुछ बदलाव आने लगा। मेरा सबसे अच्छा दोस्त मेरे साथ था, और मैं उससे फिर बात कर सकती थी। मैंने उसे बताया कि वह नई जगह कितनी अजीब लग रही थी और मैं घर वापस जाने के लिए कैसे तरस रही थी। घंटों तक मैंने उसे बताया कि मैं कितनी अकेली हो गयी थी, उस डर के बारे में भी बताया जिसने मेरे दिल को जकड़ रखा था, और मैंने उससे मदद माँगी। थोड़ा-थोड़ा करके, मेरे गालों पर बहने वाले आँसुओं ने मेरे दिल को जकड़े हुए घने अँधेरे को धो डाला। शांति मेरे दिल में बस गयी, जिसे मैंने काफी लम्बे अरसे से महसूस नहीं किया था। आँसू धीरे-धीरे सूख गए, आशा ने मेरे दिल में प्रवेश किया और यह जानकर कि परमेश्वर मेरे साथ है, मैं फिर खुश हो गयी। उस दिन मेरे कमरे में परमेश्वर की उपस्थिति ने मेरे स्वभाव, मेरे हृदय और मेरे दृष्टिकोण को बदल दिया। अपने ही दम पर मैं ऐसा नहीं कर सकती थी। यह मेरे लिए परमेश्वर का उपहार था ... उसकी कृपा। जीवन की एकमात्र स्थिरता वचन में परमेश्वर हमें कहता है : “डरो मत क्योंकि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ”। मेरे पसंदीदा वचनों में से एक मुझे परिवर्तन के डर से निपटने में मदद करता है: “प्रभु तुम्हारे आगे-आगे चलेगा और तुम्हारे साथ रहेगाl वह तुम्हें निराश नहीं करेगा और तुम को नहीं छोड़ेगा l भयभीत न हो और मत डरो।” (विधि-विवरण ग्रन्थ 31:8) जब से मैं छोटी लड़की थी, तब से मैं ने कई बार स्थान परिवर्त्तन किया और बदलाव लाया, लेकिन मुझे एहसास हुआ है कि मैं ही स्थान परिवर्त्तन करती हूँ और बदलती हूँ, परमेश्वर नहीं। वह कभी नहीं बदलता। चाहे मैं कहीं भी जाऊं और मेरे जीवन में कई बदलाव आया हो, वह हमेशा मेरे साथ रहता है। हर स्थान परिवर्त्तन, हर नयेपन और रेत में हर बदलाव के बाद परमेश्वर ने मेरा संतुलन बहाल किया है। वह सदैव मेरे जीवन का हिस्सा रहा है। कभी-कभी मैं उसे भूल जाती हूँ, लेकिन वह मुझे कभी नहीं भूलता। उसने ऐसा कैसे किया? वह मुझे इतने करीब से जानता है कि "(मेरे) सिर के बाल भी गिने हुए हैं"(मत्ती 10:30-31)। यह भी उसकी कृपा है। जिस दिन मैंने उस क्रूस को अपने बेडरूम की दीवार से उतारकर कस कर पकड़ लिया, उसी दिन यह उस रिश्ते का प्रतीक बन गया जिसे मैं अपने शेष जीवन में उसके साथ रखने वाली थी। मुझे उसकी निरंतर उपस्थिति की आवश्यकता है ताकि वह अँधेरे को हटा सके, मुझे आशा दे सके, और मुझे रास्ता दिखा सके। वह “मार्ग, सत्य और जीवन” है (योहन 14:6)l प्रार्थना करना, वचन पढ़ना, पवित्र मिस्सा में भाग लेना, पवित्र संस्कारों को प्राप्त करना, और दूसरों के साथ उनके द्वारा दिए गए अनुग्रह को साझा करना, इसी के माध्यम से जितना हो सके मैंने उसे मजबूती से पकड़ रखा है। मैं चाहती हूँ कि मेरा दोस्त हमेशा मेरे साथ रहे जैसा उसने वादा किया था। मुझे उसकी सभी अद्भुत कृपाओं की आवश्यकता है और मैं उन्हें प्रतिदिन माँगती हूँ। मुझे यकीन है कि मैं इस तरह के उपहारों के लायक नहीं हूँ, लेकिन वह उन्हें वैसे भी मुझे देता है क्योंकि वह प्यार है और ‘मुझ जैसी नीच’ को बचाना चाहता है।
By: Teresa Ann Weider
Moreइसका अभ्यास करें और आपको कभी इस पर पछतावा नहीं होगा … बीते आगमन काल के अंतिम दिनों में एक अग्रसूत्र ने मुझे आकर्षित किया: "आइए हम उसका चेहरा देखें और हम मुक्त किये जाएंगे।" हां, मैंने प्रार्थना की, हे येशु, मुझे आपका चेहरा देखने दें। मैं मरियम और जोसेफ के बारे में सोचती हूं जैसे वे पहली बार तुझे अपने गोद में लिए हुए हैं, बड़ी कोमलता से तुझे पकडे हुए हैं, तेरे चेहरे को देख रहे हैं और उस चेहरे को चूम रहे हैं, फिर वे तुझे पुआल पर लिटाकर गरम कम्बल से तुझे ढक रहे हैं। तू कितना सुंदर है, तुम्हारी आंखें खुलने के पहले ही तू मुझे देख रहा है। अपने प्रेम को प्रज्वलित करें उन दिनों मैंने कार्मेल मठ की साध्वी, सिस्टर इम्माकुलाता द्वारा लिखित एक किताब “द पाथवेज ऑफ प्रेयर: कम्युनियन विथ गॉड” (माउंट कार्मेल हर्मिटेज द्वारा 1981 में प्रकाशित) पढ़ी, और यह मेरे दिल को भी छू गया। उन्होंने लिखा कि, येशु, हम तेरे लिए जिस प्यार को औपचारिक प्रार्थना के समय में और मिस्सा बलिदान के समय, तुझे अपने शरीर और आत्मा में प्राप्त करते हैं, अनुभव करते है, उस प्यार को हम कैसे बनाए रख सकते हैं। मैंने इस बारे में उत्सुकता से पढ़ा, क्योंकि मैं इस इच्छा से जूझ रही थी कि पास की रसोई में खाने या पीने के लिए कोई चीज़ मिल जाए। जैसे ही मैं अपने प्रार्थना कक्ष में बैठी, मुझे उस कहावत की सच्चाई का एहसास हुआ जो किसी ने अपने रेफ्रिजरेटर पर पोस्ट की थी: "आप जो खोज रहे हैं वह यहाँ नहीं है।" हां, मैं अपने फ्रिज में जाने के बजाय तेरी ओर मुड़ सकती हूं, है ना? इसलिए मैं पढ़ना चाहती थी कि मेरे प्यार को फिर से जगाने के बारे में सिस्टर इम्माकुलाता का क्या विचार है। उन्होंने पुष्टि की: “ईश्वर के साथ उनकी जीवित उपस्थिति में लगातार बातचीत करना आत्मा को बड़ी ऊर्जा देती है। यह आत्मा में गर्मी और रक्त प्रवाहित करता है ... विश्वास में ईश्वर के साथ इस प्रेमपूर्ण स्मरण के अभ्यास के लिए एक बड़ी समर्पित निष्ठा होनी चाहिए। उन्होंने दिखाया कि कैसे "इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि ईश्वर पर यह आंतरिक नज़र, चाहे वह कितना भी थोड़े समय के लिए हो, हर बाहरी क्रिया से पहले होनी चाहिए और उसी से अंत भी होना चाहिए"। उन्होंने यह साझा करना शुरू किया कि कैसे महान रहस्यदर्शी, अविला की संत तेरेसा ने अपनी साध्वी बहनों के साथ इस बारे में बात की: यदि वह कर सकती है, तो उसे प्रतिदिन कई बार मनन चिंतन करने दें।" संत तेरेसा ने समझा कि यह पहली बार में आसान नहीं होगा, लेकिन "यदि आप इसे एक वर्ष के लिए अभ्यास करते हैं, या शायद केवल छह महीने के लिए, तो आप इस बड़े लाभ और खज़ाने को प्राप्त करने में सफल होंगे।" संत लोग हमें सिखाते हैं कि "ईश्वर के साथ यह निरंतर एकात्मकता पवित्रता के उच्च स्तर पर शीघ्रता से पहुंचने का सबसे प्रभावशाली साधन है।" ये प्रेमपूर्ण कार्य आत्मा को पवित्र आत्मा के स्पर्श की जागरूकता के लिए व्यवस्थित करते हैं और इसे आत्मा में ईश्वर के उस प्रेमपूर्ण संचार के लिए तैयार करते हैं जिसे हम मनन चिंतन कहते हैं ... जो हमें हर जगह और हमेशा प्रार्थना करते रहने के ख्रीस्तीय दायित्व को पूरा करने में सक्षम बनाता है। आदत के चक्र में ये कुछ तरीके हैं जिनसे मैं इस अभ्यास को शामिल करती आ रही हूँ। सीढ़ियों से ऊपर और नीचे जाते समय, या यहाँ तक कि कुछ रास्तों पर चलते समय, मैं अपने कदमों की लय में कहती हूँ: “येशु, मरियम और यूसुफ, मैं तुमसे प्यार करती हूँ। आत्माओं को बचाओ।“ जब मैं भोजन के लिए बैठती हूं, तो मैं येशु से मेरे साथ बैठने के लिए कहती हूं। अपना भोजन समाप्त करते समय, मैं उन्हें धन्यवाद देती हूँ। सबसे कठिन अभ्यास जब किसी भी पकवान मुंह में रखने से पहले प्रार्थना करना था, और जब मैं भोजन नहीं कर रही थी, या भोजन के लिए तैयारी कर रही थी, तब प्रार्थना करना कठिन था; मैंने इसे चैसा काल के लिए एक त्यागपूर्ण अभ्यास के रूप में लिया, और अंत में इसे एक नई आदत बना रही हूं। जब मैं किसी गिरजाघर या प्रार्थनालय से गुजरती हूं, तो मैं कहती हूं "हे येशु, परम प्रसाद में तेरी उपस्थिति के लिए धन्यवाद। कृपया इस पवित्र स्थान से सभी को आशीर्वाद दे। चालीसे के दौरान या शुक्रवार को किसी को मिठाई देते समय, मैं किसी व्यक्ति के लिए या बड़ी विपत्ति में पड़े किसी देश के लिए प्रार्थना करती हूं। सिस्टर इम्माकुलाता हमें आश्वस्त करती हैं: “परमेश्वर स्वयं को प्रकट करेंगा। वह ऐसा करने के लिए प्यासा है, परन्तु वह तब तक नहीं प्रकट कर सकता जब तक कि हृदय और मन उसे प्राप्त करने के लिए तैयार न हों। हमारा प्रार्थना का जीवन वास्तव में तब तक शुरू नहीं होता जब तक कि हम एक शुद्ध अंतरात्मा की, वैराग्य की और उनकी उपस्थिति में रहने के अभ्यास की नींव नहीं डालते हैं "सच्ची स्वतंत्रता स्वार्थ से मुक्ति है। ईश्वर की उपस्थिति में निरंतर स्मरण और निरंतर प्रार्थना की आदत स्वयं और स्वार्थ के प्रति मर जाने के उस डर का इलाज है जो हममें इतनी गहराई से समाया हुआ है ... प्रार्थना और आत्म-त्याग इतने अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं ... क्योंकि येशु का प्रेम एक व्यक्ति को खुद को तुच्छ समझने केलिए उसे तैयार करता है। यह अध्याय इमीटेशन ऑफ़ क्राइस्ट किताब के एक उद्धरण के साथ समाप्त होता है: “विनम्र और शांतिपूर्ण बनो और येशु तुम्हारे साथ रहेगा। भक्ति और शान्ति में रहें और येशु आपके साथ रहेगा ... आपको नग्न होना चाहिए और एक शुद्ध हृदय को परमेश्वर के पास ले जाना चाहिए, यदि आप आराम से ध्यान देंगे तो आप देखेंगे कि प्रभु कितना प्यारा है" (पुस्तक II, अध्याय 8)। जैसा कि मैं उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती हूं जहां मैं पहले प्रार्थना किए बिना काम में लिप्त हो रही हूं, मैं खुद को प्रभु के करीब लाने के लिए एक प्रार्थना खोजने के लिए प्रेरणा महसूस करती हूं जिस प्रभु को मैं प्यार करती हूं, सेवा करती हूं और हर दिन पहले से ही घंटों तक प्रार्थना करती हूं। येशु, हां, कृपया मुझे तेरी उपस्थिति में रहने के अभ्यास में बढ़ने, तेरे चेहरे को अधिक से अधिक देखने की कोशिश में बढ़ने में मदद कर ”।
By: Sister Jane M. Abeln SMIC
Moreबैपटिस्ट चर्च के सदस्य के रूप में बड़े होने के बावजूद, शराब, ड्रग्स और कॉलेज की बुरी संगति ने जॉन एडवर्ड्स को बवंडर में डाल दिया, लेकिन क्या ईश्वर ने उन्हें छोड़ दिया? पता लगाने के लिए पढ़ें। मेरा जन्म और पालन-पोषण मिडटाउन मेम्फिस के एक बैपटिस्ट परिवार में हुआ। स्कूल में मेरे बहुत कम दोस्त थे, लेकिन गिरजाघर में मेरे बहुत सारे दोस्त थे। वही मेरा समुदाय था। मैंने हर दिन इन लड़कों और लड़कियों के साथ बिताया, सुसमाचार का प्रचार किया और उन सभी चीजों का आनंद लिया जो हर कोई युवा बैपटिस्ट करता है। मैं अपने जीवन के उस दौर से प्यार करता था, लेकिन जब मैं 18 साल का हुआ, तो मेरे दोस्तों की मंडली बिखर गयी। जबकि उनमें से ज्यादातर लोग मुझे छोड़कर कॉलेज चले गए और मैं अभी भी इस बारे में अनिश्चित था कि मैं अपने जीवन के साथ क्या करना चाहता हूं। पहली बार मुझे लगा कि मैं अकेला हूँ। मैं भी अपने जीवन में उस बिंदु पर था जहाँ मुझे यह तय करना था कि मुझे क्या करना है। मैंने स्थानीय मेम्फिस विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और युवकों के एक गिरोह में शामिल हो गया। यहीं से मैं शराब पीने, ड्रग्स लेने और लड़कियों का पीछा करने में शामिल होने लगा। दुर्भाग्य से, मैंने अपने जीवन की शून्यावस्था को उन सभी गतिविधियों से भर दिया जो आप बहुत सी फिल्मों में देखते हैं, जैसे शराब और महिलाओं की संगति। एक रात मैंने कोकीन लेने का एक गलत निर्णय लिया - मेरे जीवन के सबसे बुरे फैसलों में से यही एक फैसला था। इसने मुझे अपने जीवन के अगले 17 वर्षों तक परेशान किया। जब मैं अपनी भावी पत्नी एंजेला से मिला, तो मैंने उसे यह कहते हुए सुना कि जिस आदमी से वह किसी दिन शादी करेगी उसका कैथलिक होना ज़रूरी है। मैं उसका पति बनना चाहता था। भले ही मैं 10 से अधिक वर्षों से गिरजाघर नहीं गया था, फिर भी मैं इस अद्भुत महिला से शादी करना चाहता था। हमारी शादी से पहले, मैं आर.सी.आई.ए. धर्मशिक्षा कार्यक्रम में भाग लिया और कैथलिक बन गया, लेकिन कैथलिक कलीसिया के सच्चे विश्वास मुझमें गहरी जड़ें नहीं जमा पाईं क्योंकि मैं सिर्फ वक्त गुजार रहा था। जैसे-जैसे मैं एक सफल विक्रेता बन गया, मेरे ऊपर बहुत सारी जिम्मेदारियाँ और तनाव आ गया। मेरी आय पूरी तरह से बिक्री पर की गयी दलाली पर निर्भर थी और मेरे जितने ग्राहक थे वे बड़ी मांगे रखते थे। यदि किसी साथी कर्मचारी ने कोई गलती की, या कोई समस्या खडी कर दी, तो मुझे अपनी आय से वंचित रहने का डर था। इस ओरकार के सभी दबाव को दूर करने के लिए, मैंने रात में खुद को नशीली दवाओं के प्रयोग में झोंकना शुरू कर दिया, लेकिन मैं इसे अपनी पत्नी से छिपाने में कामयाब रहा। उसे पता नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूं। हमारे पहले बेटे जैकब के जन्म के कुछ ही समय बाद, मेरी माँ को कैंसर हो गया। उसके पास जीने के लिए सिर्फ दो हफ्ते से लेकर कुछ महीने बाकी थे और इस बात ने मुझे सचमुच हिलाकर रख दिया। मुझे याद है कि मैंने ईश्वर से पूछा था: "तू मेरे जैसे झूठ बोलने वाले नशे की लतवाले आदमी को कैसे जीने देता है, लेकिन मेरी माँ, जिसने आपको जीवन भर बेशर्त प्यार किया है, उसे तू क्यों मरने दे रहा है ? यदि आप उस प्रकार के परमेश्वर हैं, तो मुझे आपसे कोई लेना-देना नहीं है!" उस दिन, मुझे याद है कि मैंने आसमान की ओर देखा और कहा: "मैं तुमसे नफरत करता हूँ और मैं फिर कभी तुम्हारी पूजा नहीं करूँगा!" उसी दिन मैं पूरी तरह से परमेश्वर से दूर चला गया। परिवर्तन का वह मोड़ मेरे इस तरह के कुछ ग्राहक थे जिनसे निपटना बहुत मुश्किल था। यहां तक कि रात में भी कोई राहत नहीं मिली, वे एक के बाद एक संदेश भेजते थे और व्यवसाय को बर्बाद करने की धमकी देते थे। सारे तनावों से मैं परेशान था, और मैं हर रात खुद को अधिक से अधिक ड्रग्स में झोंक देता था। एक रात, लगभग दो बजे, मैं अचानक उठा और बिस्तर पर बैठ गया। ऐसा लग रहा था कि मेरा दिल मेरे सीने से बाहर निकलने वाला है। मैंने सोचा: 'मुझे दिल का दौरा पड़ने वाला है और मैं मर जाऊंगा'। मैं ईश्वर को पुकारना चाहता था, लेकिन मेरा घमंडी, स्वार्थी, जिद्दी स्वभाव मुझे मना कर रहा था। मैं मरा नहीं था, लेकिन मैंने नशीले पदार्थों को बाहर फेंकने और शराब को बाहर निकालने का संकल्प लिया था... मैंने सुबह इसका पालन किया... केवल दोपहर तक... उसके बाद मैं ने और अधिक दवाएं और बीयर खरीद लिए। बार-बार एक ही बात होती थी- ग्राहक मुझे धमकी भरे सन्देश टेक्स्ट करते थे, और मैं सोने के लिए और अधिक ड्रग्स का इस्तेमाल करता था, और रात को बार बार जाग जाता था। नशीली दवाओं की मेरी इच्छा इतनी अधिक थी कि एक दिन, मैं अपने ससुर के घर से अपने बेटे जैकब को लेने के लिए निकला और रास्ते में कोकीन खरीदने के लिए रुक गया! जैसे ही मैं ड्रग डीलर के घर से निकला, मैंने एक पुलिस सायरन सुना! ड्रग प्रवर्तन एजेंसी ठीक मेरे पीछे थी। यहां तक कि जब पुलिस स्टेशन में एक बेंच से मेरे पैरों को जंजीर से बांधकर मुझसे पूछताछ किया जा रहा था, तब भी मुझे लगा कि मैं इससे बाहर निकलने वाला हूं। एक सुपर सेल्समैन के रूप में, मुझे विश्वास था कि मैं किसी भी चीज़ से अपना रास्ता निकाल सकता हूँ। लेकिन इस बार नहीं! मुझे डाउनटाउन मेम्फिस में जेल में डाला गया। अगली सुबह, मैंने सोचा कि यह सब सिर्फ एक बुरा सपना था, लेकिन तब मैं ने पाया कि मैं जेल में स्टील की चारपाई पर पडा हूँ। वह खतरनाक बहाव जब मुझे पता चला कि मैं जेल में हूं और अपने घर में नहीं हूं, तो मैं घबरा गया। यह नहीं हो सकता... हर किसी को पता चल जाएगा... मेरी नौकरी चली जाएगी... मेरी पत्नी... मेरे बच्चे... मेरे जीवन में सब कुछ…” बहुत धीरे-धीरे, मैंने अपने जीवन को देखना शुरू किया और सोचने लगा कि यह सब कैसे शुरू हुआ। तभी मुझे एहसास हुआ कि जब मैं येशु मसीह से दूर चला गया तो मैंने कितना कुछ खोया था। मेरी आंखें आंसुओं से भर गईं और मैंने उस दिन दोपहर का वक्त प्रार्थना में बिताया। मुझे बाद में पता चला कि यह कोई साधारण दिन नहीं था। वह पुण्य बृहस्पतिवार था, ईस्टर से तीन दिन पहले, वह दिन जब येशु जब गतसमनी के बगीचे में प्रार्थना करते समय, उनके साथ एक घंटा भी नहीं बिता पा रहे अपने प्रेरितों को डांटा था। जब मैंने उनसे प्रार्थना में बातें की, तो मुझे भरोसा और निश्चितता का गहरा अहसास हुआ कि येशु ने मुझे कभी नहीं छोड़ा था, तब भी जब मैं उनसे दूर चला गया था। मेरे सबसे बुरे पलों में भी वह हमेशा मेरे साथ रहे। जब मेरी पत्नी और मेरी सास मुझसे मिलने आईं, तो मैं चिंता से भर गया। मैं उम्मीद कर रहा था कि मेरी पत्नी कहेगी: "मैं तुम्हें छोड़ रही हूँ और बच्चों को ले जा रही हूँ!” यह लॉ एंड ऑर्डर सिनेमा के एक दृश्य की तरह लगा जहां कैदी कांच की दूसरी तरफ अपने आगंतुक से फोन पर बात करता है। जैसे ही मैंने उन्हें देखा, मैं फूट-फूट कर रोते हुए बुदबुदाने लगा, "मुझे माफ़ करो, मुझे माफ़ करो!" इसके जवाब में उसके कहे शब्द मेरे कानों पर पड़े तो मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहां था। "जॉन, रुको ... मैं तुम्हें तलाक नहीं देने जा रही हूँ। इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन हम दोनों ने गिरजाघर में जो प्रतिज्ञाओं की उन से संबंधित है...”। हालाँकि, उसने मुझसे कहा कि भले ही वह मुझे जमानत दिलवा रही थी, फिर भी मैं घर नहीं जा सकता। उस शाम मेरी बहन मुझे जेल से लेने आएगी, और वह मुझे मिसिसिपी में मेरे पिता के फार्म हाउस में ले जाएगी। गुड फ्राइडे का दिन मैं जेल से बाहर आया। जब मैंने सामने देखा तो वहां मेरी बहन नहीं बल्कि मेरे पिताजी मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। मैं उनसे आँखें मिलाने से घबरा रहा था, लेकिन हम दोनों के बीच उनके फार्म तक डेढ़ घंटे की कार की सवारी के दौरान अब तक की सबसे वास्तविक बातचीत हुई। एक आकस्मिक मुलाक़ात मैं जानता था कि अपना जीवन बदलने के लिए मुझे कुछ करना होगा और मैं इसे ईस्टर रविवार को ख्रीस्तयाग से शुरुआत करना चाहता था। लेकिन जब मैं 11 बजे के मिस्सा बलिदान के लिए गिरजाघर पहुंचा, तो वहां कोई नहीं था। मैंने निराशा और गुस्से में स्टीयरिंग व्हील को अपनी मुट्ठी से मारना शुरू कर दिया। 10 साल में पहली बार मैं मिस्सा में जाना चाहता था और वहां कोई नहीं था। क्या ईश्वर को मेरी बिल्कुल परवाह नहीं है ? अगले ही पल, एक सिस्टर ने आकर पूछा कि क्या आप मिस्सा बलिदान में जाना चाहते हैं? उन्होंने मुझे अगले शहर में भेज दिया जहां मैंने पूरे गिरजाघर को बहुत सारे परिवारों से भरा हुआ पाया। यह एक और करारा झटका लगा क्योंकि मैं अपने परिवार के साथ नहीं था। मैं केवल अपनी पत्नी के बारे में सोच रहा था और यह भी कि उसके योग्य बनने के लिए मैं कितना लालायित था। मैंने वेदी पर खड़े पुरोहित को पहचान लिया। आखिरी बार मैंने उन्हें कई साल पहले देखा था, तब मैं अपनी पत्नी के साथ था। जब ख्रीस्तयाग समाप्त हुआ, तो मैं बेंच पर बैठा रहा और परमेश्वर से मुझे चंगा करने और मुझे मेरे परिवार से मिलाने के लिए कहता रहा। जब मैं अंत में जाने के लिए उठा, तो मैंने अपने कंधे पर एक स्पर्श महसूस किया, जिसने मुझे चौंका दिया, क्योंकि मैं वहां किसी को नहीं जानता था। जैसे ही मैं पीछे मुड़ा, मैंने देखा कि यह गिरजाघर के वे फादर थे। उन्होंने मुझे बड़ी गर्मजोशी से अभिवादन किया, "हैलो, जॉन"। मैं दंग रह गया कि उन्हें मेरा नाम याद है क्योंकि हमारी आखिरी मुलाकात हुए कम से कम पांच साल गुजर चुके थे, और वह मुलाक़ात लगभग 2 सेकंड तक ही चली थी। उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया और मुझसे कहा, "मुझे नहीं पता कि तुम यहाँ अकेले क्यों हो या तुम्हारा परिवार कहाँ है, लेकिन परमेश्वर चाहता है कि मैं तुम्हें बता दूँ कि सब कुछ ठीक हो जाएगा।" मैं दंग रह गया। वह कैसे जान सकता था? मैंने अपना जीवन बदलने और पुनर्वास पर जाने का मन बना लिया। मेरी पत्नी मेरे साथ पुनर्वास केंद्र तक आई और 30 दिनों की बहिरंग विभाग में चिकित्सा के बाद मुझे वापस घर ले जाने केलिए वह फिर आई। जब मेरे बच्चों ने मुझे दरवाजे पर देखा, तो वे रो पड़े और अपनी बाहें बढ़ाकर मेरे गले लग गए। वे मेरे ऊपर कूद पड़े और देर रात तक हम खूब खेले। जब मैं अपने बिस्तर पर लेटा था, मैं घर में वापस आने के लिए कृतज्ञता से अभिभूत महसूस कर रहा था – घर के ए.सी. कमरे में मैं आराम से लेटा था, सामने एक टीवी थी जिसे मैं जब चाहूं देख सकता था; भोजन की मेज़ पर ऐसा भोजन कर सकता था जो जेल की सडा गला भोजन जैसा नहीं था; और मैं अपने बिस्तर के आराम का आनंद ले रहा था । मैं मुस्कुराया जैसे कि मैं महल का राजा था, तब मैंने देखा की एंजेला बिस्तर पर नहीं है। मैंने मन ही मन सोचा: “मुझे अपना पूरा जीवन बदलने की आवश्यकता है; ड्रग्स और शराब को रोकना पर्याप्त नहीं है।" मैंने एक बाइबिल की तलाश में पलंग के बगल के मेज़ की दराज़ खोली, और एक पुस्तक पाई जो फादर लैरी रिचर्ड्स ने मुझे एक सम्मेलन के दौरान दी थी। उस समय मैंने केवल 3 या 4 पृष्ठ पढ़े थे, लेकिन जब मैंने उस रात को इसे उठाया, तो मैं इसे पूरी तरह से पढ़ने के बाद ही इसे नीचे रख पाया। मैं पूरी रात जागा और पढ़ ही रहा था कि मेरी पत्नी सुबह 6 बजे उठी। किताब ने मेरी समझ को तेज कर दिया कि एक अच्छा पति और पिता होने का क्या मतलब है। मैंने ईमानदारी से अपनी पत्नी से वादा किया कि मैं वह आदमी बनने जा रहा हूं जिसकी वह हकदार थी। उस पुस्तक ने मुझे फिर से पवित्र बाइबिल पढ़ने के लिए प्रेरित किया। मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपने जीवन में कितना कुछ खोया है और मैं खोए हुए समय की भरपाई करना चाहता था। मैंने अपने परिवार को मिस्सा बलिदान में ले जाना शुरू किया, और हर रात घंटों तक प्रार्थना की। पहले वर्ष में, मैंने 70 से अधिक कैथलिक पुस्तकें पढ़ीं। थोड़ा-थोड़ा करके मैं बदलने लगा। मेरी पत्नी ने मुझे वह आदमी बनने का अवसर दिया जिसके लिए परमेश्वर ने मुझे बुलाया था। अब, मैं अपने पॉडकास्ट 'जस्ट ए गय इन द प्यू' के माध्यम से अन्य लोगों को भी ऐसा करने में मदद करने की कोशिश कर रहा हूं। पुण्य बृहस्पतिवार को, येशु अपने आत्म बलिदान के लिए तैयार थे, और मैंने अपने पुराने स्वभाव के आत्म बलिदान करने का निर्णय लिया। ईस्टर रविवार को, मुझे लगा कि मैं भी उनके साथ पुनर्जीवित हो गया हूं। हम जानते हैं कि जब हम येशु से बहुत दूर किसी मार्ग पर होते हैं तो शैतान चुप हो जाएगा। यह तब होता है जब हम मसीह के निकट आने लगते हैं तब शैतान वास्तव में जोर से बोलने लगता है। जब उसका झूठ हमें घेरने लगता है, तब हमें पता चलता है कि हम कुछ अच्छा कर रहे हैं। कभी हार न मानना। जीवन भर परमेश्वर के प्रेम में बने रहें। आपको इसका कभी पछतावा नहीं होगा।
By: John Edwards
Moreमुसीबत के समय में, क्या आपने कभी सोचा है कि 'काश कोई मेरी मदद करता'? आप शायद अनभिज्ञ हैं कि वास्तव में आपकी मदद करने के लिए आपके पास आपके अपने एक निजी समूह है। मेरी बेटी मुझसे आजकल पूछती है कि अगर तुम सौ प्रतिशत पोलिश (पोलन्ड की) हो तो तुम सामान्य पोलेंड-वासी की तरह क्यों नहीं दिखती हो। पिछले सप्ताह तक मेरे पास इसका कोई सही उत्तर नहीं था, फिर मुझे पता चला कि मेरे कुछ पूर्वज दक्षिणी पोलैंड के गोरल हाइलैंडर्स यानी गोरल गोत्र समुदाय के पहाड़ी लोग थे। गोरल हाइलैंडर्स पोलेंड की दक्षिणी सीमा पर पहाड़ों में रहते हैं। वे अपनी दृढ़ता, स्वतंत्रता के प्रति प्रेम, तथा विशिष्ट पोशाक, संस्कृति और संगीत के लिए जाने जाते हैं। इस समय, एक विशेष गोरल लोक गीत मेरे दिल में बार-बार गूंजता रहता है, उस गीत ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने अपने पति के साथ उस गीत को साझा किया कि यह गीत वास्तव में मुझे अपने देश में वापस बुला रहा है। यह जानकर कि मेरा वंशीय इतिहास गोरल है, वास्तव में मेरा दिल ख़ुशी से उच्छल रहा है! वंशावली की खोज मेरा मानना है कि हममें से प्रत्येक के अन्दर अपनी वंशावली की खोज करने की इच्छा होती है। यही कारण है कि इन दिनों कई वंशावली साइट और डीएनए-जांच के व्यवसाय सामने आए हैं। ऐसा क्यों? शायद यह चाह हमें बतलाती है कि हम अपने से भी बड़ी किसी चीज़ का हिस्सा हैं। जो हमसे पहले इस दुनिया से चले गए हैं, उन लोगों के साथ हम मायने और संबंध की चाहत रखते हैं। हमारे वंश की खोज से पता चलता है कि हम एक बहुत गहरे कथानक का हिस्सा हैं। इतना ही नहीं, बल्कि अपनी पैतृक जड़ों को जानने से हमें पहचान और एकजुटता की भावना मिलती है। हम सभी कहीं न कहीं से आए हैं, हम कहीं न कहीं के वासी हैं, और हम एक साथ यात्रा कर रहे हैं। इस पर विचार करने पर मुझे एहसास हुआ कि केवल अपनी भौतिक ही नहीं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक विरासत की खोज करना कितना महत्वपूर्ण है। आख़िरकार, हम मनुष्य शरीर और आत्मा हैं। हमें उन संतों को जानने से बहुत लाभ होगा जो हमसे पहले थे। हमें न केवल उनकी कहानियाँ सीखनी चाहिए, बल्कि उनसे परिचित भी होना चाहिए। संबंध ढूंढें मैं स्वीकारना चाहती हूँ कि मैं पहले किसी संत से मध्यस्थता मांगने की प्रथा में बहुत अच्छी नहीं रही हूँ। यह निश्चित रूप से मेरी प्रार्थना-दिनचर्या में एक नया जुड़ाव है। जिस चीज़ ने मुझे इस वास्तविकता से अवगत कराया वह संत फिलिप नेरी की यह सलाह थी: “आध्यात्मिक शुष्कता के खिलाफ सबसे अच्छी दवा खुद को ईश्वर और संतों की उपस्थिति में भिखारियों की तरह रखना है। और एक भिखारी की तरह, एक से दूसरे के पास जाना और उसी आग्रह के साथ आध्यात्मिक भिक्षा माँगना, जैसे कि सड़क पर एक गरीब आदमी भिक्षा माँगता है।“ पहला कदम यह जानना है कि संत कौन हैं। ऑनलाइन पर बहुत सारे अच्छे संसाधन मौजूद हैं। दूसरा तरीका है बाइबल पढ़ना। पुराने और नए विधान दोनों में शक्तिशाली मध्यस्थ हैं, और आप एक से अधिक मध्यस्थों से संबंधित हो सकते हैं। साथ ही, संतों और उनके लेखन पर अनगिनत किताबें हैं। मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें, और ईश्वर आपको आपके व्यक्तिगत मध्यस्थों के समूह तक पहुंचा देगा। उदाहरण के लिए, मैंने अपने संगीत की सेवकाई के लिए संत राजा दाउद से मध्यस्थता मांगी है। जब मुझे अपने पति के लिए या नौकरी चुनने के लिए मध्यस्थ की खोज करनी है तो मैं संत युसूफ के पास जाती हूँ। जब कलीसिया के लिए प्रार्थना करने का बुलावा मुझे मिलता है तो मैं संत जॉन पॉल द्वितीय, संत पेत्रुस और संत पिउस दसवें से मदद मांगती हूँ। मैं संत ऐनी और संत मोनिका की मध्यस्थता के माध्यम से माताओं के लिए प्रार्थना करती हूँ। बुलाहटों के लिए प्रार्थना करते समय, मैं कभी-कभी संत थेरेसा और संत पाद्रे पियो को पुकारती हूँ। यह सूची लम्बी है। तकनीकी समस्याओं के लिए धन्य कार्लो एक्यूटिस मेरे पसंदीदा हैं। संत जेसीन्ता और संत फ्रांसिस्को मुझे प्रार्थना के बारे में, तथा बेहतर तरीके से बलिदान अर्पित करने के बारे में सिखाते हैं। प्रेरित संत जॉन चिंतन करने में मेरी सहायता करते हैं। मैं अक्सर अपने दादा-दादी से मध्यस्थता की माँग करती हूँ, यह मैं नहीं बताती तो वह मेरी गलती होगी। जब वे हमारे साथ थे तब वे मेरे लिए प्रार्थना करते थे, और मैं जानती हूँ कि वे अनन्त जीवन में भी मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं। परन्तु मेरी सार्वकालिक पसंदीदा मध्यस्थ हमेशा हमारी सबसे प्रिय धन्य कुंवारी माता मरियम रही हैं। बस एक प्रार्थना की दूरी पर यह मायने रखता है कि हम किसके साथ समय बिताते हैं। हम क्या बन जायेंगे, यह इसी पर निर्भर करता है। वास्तव में हमारी चारों ओर "गवाहों का बादल" है जिससे हम वास्तविक रूप से जुड़े हुए हैं (इब्रानी 12:1)। आइए हम उन्हें बेहतर तरीके से जानने का प्रयास करें। हम सरल, हार्दिक प्रार्थनाएँ भेज सकते हैं जैसे, "हे संत ____, मैं आपको बेहतर तरीके से जानना चाहती/ता हूँ। कृपया मेरी सहायता करें।" इस विश्वास यात्रा में चलने के लिए हम अकेले नहीं हैं। हम एक जन समूह के रूप में, मसीह के शरीर के रूप में एक साथ मुक्त किये गए लोग हैं। संतों से जुड़े रहने से, हमें वह मार्ग मिलता है जो हमारी स्वर्गीय जन्मभूमि तक सुरक्षित यात्रा करने के लिए दिशा और ठोस सहायता प्रदान करता है। पवित्र आत्मा हमें अपनी आध्यात्मिक जड़ों से जुड़ने में मदद करे ताकि हम संत बन सकें और अपना अनंत जीवन ईश्वर के एक गौरवशाली परिवार के रूप में बिता सकें!
By: Denise Jasek
Moreजब अयोग्यता के विचार मन में आएं, तो यह आजमायें... उससे बदबू आ रही थी. उसका गंदा, भूखा शरीर उसकी बर्बाद विरासत की तरह नष्ट हो रहा था। उसे लज्जा ने घेर लिया। उसने सब कुछ खो दिया था - अपनी संपत्ति, अपनी प्रतिष्ठा, अपना परिवार - उसका जीवन टूटकर बिखर गया था। निराशा ने उसे निगल लिया था। फिर, अचानक, उसे अपने पिता का सौम्य चेहरा याद आया। सुलह असंभव लग रही थी, लेकिन अपनी हताशा में, वह “उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पडा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया, और दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया। तब पुत्र ने उससे कहा, “पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरूद्ध और आपके विरुद्ध पाप किया है; मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा।'... लेकिन पिता ने कहा... 'मेरा यह पुत्र मर गया था और फिर से जी गया है; वह खो गया था और फिर मिल गया है!' और वे आनंद मनाने लगे” (लूकस 15:20-24)। ईश्वर की क्षमा स्वीकार करना कठिन है। अपने पापों को स्वीकार करने का अर्थ है यह स्वीकार करना कि हमें अपने पिता की आवश्यकता है। और जब आप और मैं पिछले अपराधों के कारण अपराधबोध और शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं, तो आरोप लगाने वाला शैतान हम पर अपने झूठ से हमला करता है: "तुम प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हो।" लेकिन प्रभु हमें इस झूठ को अस्वीकार करने के लिए कहते हैं! बपतिस्मा के समय, ईश्वर की संतान के रूप में आपकी पहचान, आपकी आत्मा पर हमेशा के लिए अंकित हो गई। और उड़ाऊ पुत्र की तरह, आप अपनी असली पहचान और योग्यता की खोज करने के लिए बुलाये गए हैं। चाहे आपने कुछ भी किया हो, ईश्वर आपसे प्यार करना कभी नहीं छोड़ते। "जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा।" (योहन 6:37)। आप और मैं कोई अपवाद नहीं हैं! तो, हम ईश्वर की क्षमा को स्वीकार करने के लिए व्यावहारिक कदम कैसे उठा सकते हैं? प्रभु को खोजें, उनकी दया को अपनाएं, और उनकी शक्तिशाली कृपा से बहाल हो जायें। प्रभु को खोजें अपने निकटतम गिरजाघर या आराधनालय को ढूंढें और प्रभु से आमने-सामने मुलाक़ात कर ले। ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह अपनी दयालु आँखों से, अपने निस्वार्थ प्रेम के माध्यम से स्वयं को देखने और पहचानने में आपकी मदद करे। इसके बाद, अपनी आत्मा की एक ईमानदार और साहसी सूची बनाएं। बहादुर बनो और मनन चिंतन करते हुए क्रूसित प्रभु येशु को देखो - अपने आप को प्रभु के पास लाओ। हमारे पापों की वास्तविकता को स्वीकार करना कठिन है, लेकिन एक सच्चा, कमजोर हृदय क्षमा का फल प्राप्त करने के लिए तैयार है। याद रखें, आप ईश्वर की संतान हैं—प्रभु आपको विमुख नहीं करेंगे! ईश्वर की दया को अपनायें अपराधबोध और शर्मिंदगी के साथ लड़ना, पानी की सतह के नीचे गेंद को पकड़ने की कोशिश करने जैसा हो सकता है। इसमें बहुत मेहनत लगती है! इसके अलावा, शैतान अक्सर हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम ईश्वर के प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हैं। लेकिन क्रूस से, मसीह का रक्त और जल हमें शुद्ध करने, चंगा करने और बचाने के लिए बहता रहा। आप और मैं इस दिव्य दया पर मूल रूप से भरोसा करने के लिए बुलाये गए हैं। यह कहने का प्रयास करें: “मैं ईश्वर की संतान हूँ। येशु मुझसे प्यार करते हैं। मैं क्षमा के योग्य हूँ।” इस सत्य को हर दिन दोहराएँ। इसे ऐसी जगह लिखें, जहां आप अक्सर दृष्टि दौडाते हैं। प्रभु से प्रार्थना करें कि उनकी दया के कोमल आलिंगन में स्वयं को देने में वह आपकी सहायता करें। गेंद को जाने दो और इसे येशु को सौंप दो—ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है! बहाल हो जाएँ पापस्वीकार संस्कार में, हम ईश्वर के उपचार और शक्ति की कृपा से बहाल होते हैं। शैतान के झूठ के विरुद्ध लड़ें और इस शक्तिशाली संस्कार में मसीह से मुलाकात कर लें। यदि आप अपराधबोध या शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं तो पुरोहित को बताएं, और जब आप अपने पश्चाताप के कार्य के बारे में बताएं, तो अपने दिल को प्रेरित करने के लिए पवित्र आत्मा को आमंत्रित करें। जैसे ही आप पाप मुक्ति के शब्द सुनते हैं, ईश्वर की असीम दया पर विश्वास करना चुनें: "ईश्वर आपको क्षमा और शांति दे, और मैं आपको पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर पापक्षमा प्रदान करता हूँ।" अब आप ईश्वर के अनंत प्रेम और क्षमा में बहाल हो गए हैं! अपनी असफलताओं के बावजूद, मैं हर दिन ईश्वर से उनके प्रेम और क्षमा को स्वीकार करने में मेरी मदद करने के लिए कहता हूं। हो सकता है कि हम उड़ाऊ पुत्र की तरह गिर गए हों, लेकिन आप और मैं अभी भी ईश्वर के बेटे और बेटियाँ हैं, उनके अनंत प्रेम और करुणा के योग्य हैं। ईश्वर आपसे प्रेम करता है, यहीं, इसी क्षण — उसने प्रेम के कारण आपके लिए अपना जीवन त्याग दिया। यह सुसमाचार की परिवर्तनकारी आशा है! इसलिए, ईश्वर की क्षमा को अपनाएं और साहसपूर्वक उसकी दिव्य दया को स्वीकार करने का साहस करें। ईश्वर की अनंत करुणा आपका इंतजार कर रही है! “नहीं डरो, मैंने तुम्हारा उद्धार किया है। मैंने तुमको अपनी प्रजा के रूप में अपनाया है।” (इसायाह 43:1)
By: Jody Weis
Moreबीसवीं सदी के आरंभिक यूनानी उपन्यासकार निकोलस कज़ान्तज़ाकिस का एक काव्यात्मक चिंतन है, जिसे मैं हर साल आगमन काल के आने पर अपने पलंग के बगल के टेबल पर रखता हूँ। उपन्यासकार कज़ान्तज़ाकिस येशु मसीह को एक किशोर के रूप में चित्रित करते हैं, जो दूर पहाड़ी की चोटी से इस्राएल के लोगों को देख रहा है, जो अभी अपनी सेवकाई शुरू करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन अपने लोगों की लालसा और पीड़ा के प्रति पूरी तरह से, दर्द और बोझ के साथ संवेदनशील है। इस्राएल का परमेश्वर उनके बीच में है—परन्तु वे अभी इस सच्चाई को नहीं जानते। मैं इसे एक दिन अपने छात्रों को पढ़कर सुना रहा था, जैसा कि मैं प्रतिवर्ष, आगमन की शुरुआत में करता हूँ, और उनमें से एक ने कक्षा के बाद मुझसे कहा: "मैं शर्त लगा सकता हूँ कि प्रभु येशु अभी भी ऐसा ही महसूस करते हैं।" मैंने उससे पूछा कि उसका क्या मतलब है। उसने कहा: "आप जानते हैं कि येशु, वहाँ पवित्र मंजूषा के अन्दर से हमें ऐसे चलते हुए देखते हैं जैसे कि हम जानते ही नहीं कि वे वहां उपस्थित हैं।" तब से, मेरे पास आगमन प्रार्थनाओं में ऐसे येशु का चित्र है, जो मंजूषा में इंतजार कर रहे हैं, अपने लोगों की ओर देख रहे हैं - हमारी कराहें, हमारी दलीलें और हमारी पुकारें सुन रहे हैं। हमारा इंतज़ार करते हुए ... किसी न किसी तरह, ईश्वर हमारे पास आने के लिए यही तरीका चुनता है। मसीह का जन्म पूरे मानव इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है, और फिर भी, ईश्वर चाहता था कि यह 'इतनी शांति से हो कि संसार अपने काम में व्यस्त रहा जैसा कि कुछ भी नहीं हुआ हो।' कुछ चरवाहों ने ध्यान दिया, और पूरब से आये ज्ञानियों ने भी ऐसा ही किया। (हम हेरोद का भी उल्लेख कर सकते हैं, जिसने सभी गलत कारणों से ध्यान दिया!)। फिर, जाहिरा तौर पर, पूरी बात भुला दी गई। कुछ समय के लिए। किसी न किसी तरह... इंतज़ार करते हुए कुछ ऐसा होना चाहिए जो हमारे लिए अच्छा हो। ईश्वर हमारे लिए इंतजार करने को चुनता है। वह हमें अपने लिए इंतज़ार करवाना चुनता है। और जब आप इसके बारे में सोचते हैं, तो मुक्ति का पूरा इतिहास प्रतीक्षा का इतिहास बन जाता है। तो, आप देखते हैं कि यहाँ अत्यावश्यकता के दो भाव हैं - कि हमें ईश्वर के आह्वान का उत्तर देने की आवश्यकता है तथा इसकी भी आवश्यकता है कि वह हमारी पुकार का उत्तर दे, और जल्द ही। स्तोत्रकार लिखता है, "हे प्रभु, जब मैं तुझे पुकारूं, मुझे उत्तर दे।" इस पद में कुछ बड़ी विनम्रता है, दर्द है, जो आकर्षक रूप से हमारा ध्यान खींचता है। स्तोत्र में एक अत्यावश्यकता है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि हमें धैर्य रखना और इंतजार करना सीखना चाहिए - आनंदमय आशा के साथ इंतजार करना चाहिए - और इंतजार में इश्वर का उत्तर ढूंढना चाहिए।
By: Father Augustine Wetta O.S.B
Moreछह साल की उम्र में, एक छोटी लड़की ने फैसला किया कि उसे 'जेल' और 'फाँसी' शब्द पसंद नहीं हैं। उसे क्या पता था कि 36 साल की उम्र में वह मौत की सज़ा पाए कैदियों के साथ घूम रही होगी। 1981 में, दो छोटे बच्चों की चौंकाने वाली हत्याएं सिंगापुर और दुनिया भर में पहले पन्ने की खबर बन गईं थीं। पूरी जांच के बाद एड्रियन लिम की गिरफ्तारी हुई, जिसने अपने कई ग्राहकों को यह विश्वास दिलाकर कि उसके पास अलौकिक शक्तियां हैं, उनका यौन शोषण किया, उनसे जबरन वसूली की और उन्हें बिजली के झटके की 'थेरेपी' देकर प्रताड़ित किया। उनमें से एक, कैथरीन, मेरी एक छात्रा थी जो अपनी दादी की मृत्यु के बाद अवसाद के इलाज के लिए उसके पास गई थी। उस आदमी ने उससे वेश्यावृत्ति कराई और उसके भाई-बहनों के साथ दुर्व्यवहार किया। जब मैंने सुना कि कैथरीन पर हत्याओं में भाग लेने का आरोप लगाया गया है, तो मैंने उसे येशु के पवित्र हृदय की सुंदर तस्वीर के साथ एक चिट्टी भेजी। छह महीने बाद, उसने जवाब में लिखा, "जब मैंने इतने बुरे काम किए हैं तो आप मुझसे कैसे प्यार कर सकती हैं?" अगले सात वर्षों तक मैं जेल में कैथरीन से साप्ताहिक मुलाकात करती रही। महीनों तक एक साथ प्रार्थना करने के बाद, वह ईश्वर और उन सभी लोगों से माफ़ी मांगना चाहती थी, जिन्हें उसने चोट पहुंचाई थी। अपने पापों को स्वीकार करने के बाद, उसे ऐसी शांति मिली, जैसे वह एक अलग ही अनोखा व्यक्तित्व हो। जब मैंने उसका रूपांतरण देखा, तो मैं खुशी से पागल हो गयी। लेकिन कैदियों के लिए मेरी सेवा अभी शुरू ही हुई थी! अतीत की ओर नज़र मैं 10 बच्चों वाले एक प्यारे कैथोलिक परिवार में बड़ी हुई। हर सुबह, हम सभी एक साथ पवित्र मिस्सा बलिदान के लिए जाते थे, और मेरी माँ हमें गिरजाघर के पास एक कॉफी शॉप में नाश्ता खिलाती थी। लेकिन कुछ समय बाद मेरे लिए शरीर के भोजन से ज्यादा, आत्मा के लिए भोजन का महत्त्व बढ़ गया। पीछे मुड़कर दखती हूँ तो पता चलता है कि मेरे बचपन में अपने परिवार के साथ सुबह-सुबह होती रही उन पवित्र मिस्साओं के द्वारा ही मेरे अन्दर मेरी बुलाहट का बीज बोया गया था। मेरे पिता ने हममें से प्रत्येक को विशेष रूप से अपने प्यार का एहसास कराया, और हम उनके काम से लौटने पर खुशी से उनकी बाहों की ओर दौड़ने से कभी नहीं चूके। युद्ध के दौरान, जब हमें सिंगापुर से भागना पड़ा, तो वे हमें घर पर ही पढ़ाते थे। वे हर सुबह हमें उच्चारण सिखाते थे और हमसे उस अनुच्छेद को दोहराने के लिए कहते थे जिसमें किसी को सिंग सिंग जेल में मौत की सजा सुनाई गई थी। छह साल की छोटी उम्र में ही मुझे एहसास हुआ था कि मुझे वह अंश पसंद नहीं है। जब मेरी बारी आई तो मैंने इसे पढ़ने के बजाय “प्रणाम रानी, दया की माँ” प्रार्थना का पाठ किया। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मैं एक दिन कैदियों के साथ प्रार्थना करुंगी। अभी देर नहीं हुई है जब मैंने जेल में कैथरीन से मुलाक़ात करना शुरू किया, तो कई अन्य कैदियों ने हमारे कार्य में रुचि दिखाई। जब भी किसी कैदी ने मुलाकात का अनुरोध किया, तो मुझे उनसे मिलकर और ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया साझा करके खुशी हुई। ईश्वर एक प्यारा पिता है जो हमेशा हमारे पश्चाताप करने और उसके पास वापस आने का इंतजार कर रहा है। एक कैदी जिसने कानून तोड़ा है वह उड़ाऊ पुत्र के समान है, जो जीवन के सबसे निचले पांवदान पर लुढ़क गया और उसने महसूस किया, "मैं अपने पिता के पास वापस जा सकता हूं।" जब वह अपने पिता के पास वापस लौटा और क्षमा मांगी, तो उसके पिता उसका स्वागत करने के लिए दौड़ते हुए बाहर आये। किसी को भी अपने पापों का पश्चाताप करने और ईश्वर की ओर लौटने में कभी देर नहीं करनी चाहिए। प्यार का आलिंगन हत्या की आरोपी फ्लोर नामक फिलिपिनो महिला ने अन्य कैदियों से हमारे सेवा कार्यों के बारे में सुना और समझा, इसलिए मैंने उससे मुलाकात की और उसका समर्थन और सहयोग किया, क्योंकि उसने अपनी मौत की सजा की अपील की थी। अपनी अपील खारिज होने के बाद, वह ईश्वर से बहुत नाराज थी और मुझसे बात करना नहीं चाहती थी। जब भी मैं उसके दरवाजे से गुजरती थी, तो मैं उससे कहती थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, ईश्वर अब भी उससे प्यार करता है। लेकिन वह निराशा में खाली दीवार की ओर देखती रहती थी। मैंने अपने प्रार्थना समूह से नित्य सहायक माता से नौ रोज़ी प्रार्थना करने और विशेष रूप से अपनी दुःख पीडाओं को उसके लिए चढाने को कहा। दो सप्ताह बाद, फ़्लोर का हृदय अचानक बदल गया और उसने मुझसे कहा कि मैं किसी पुरोहित के साथ उसके पास वापस आऊँ। वह खुशी से फूल रही थी क्योंकि माता मरियम उसकी कोठरी में आई थीं और माँ मरियम ने उससे कहा था कि वह डरे नहीं क्योंकि माँ अंत तक उसके साथ रहेगी। उस क्षण से लेकर उसकी मृत्यु के दिन तक, फ्लोर के हृदय में केवल आनंद ही आनंद था। एक और यादगार कैदी एक ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति था जिसे मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में जेल में डाल दिया गया था। जब उसने मुझे एक अन्य कैदी के लिए माता मरियम का भजन गाते हुए सुना, तो वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने मुझसे नियमित रूप से उससे मिलने के लिए कहा। जब उसकी माँ ऑस्ट्रेलिया से मिलने आईं तो वे हमारे साथ हमारे घर में रहीं। आख़िरकार, उसने एक काथलिक के रूप में बपतिस्मा लेने का आग्रह किया। उस दिन से, फाँसी के तख्ते तक जाते समय भी वह खुशी से भरा हुआ था। वहां का जेल निरीक्षक एक युवा व्यक्ति था, और जब यह मादक द्रव्य का पूर्व तस्कर अपनी मृत्यु की ओर बढ़ रहा था, तो यह अधिकारी आगे आया और उसे गले लगा लिया। यह बहुत असामान्य था, और हमें ऐसा लगा मानो ईश्वर स्वयं इस युवक को गले लगा रहे हो। आप वहां ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किए बिना नहीं रह सकते थे। वास्तव में, मैं जानता हूं कि हर बार, माता मरियम और प्रभु येशु उन सज़ा-ए-मौत पाए कैदियों को स्वर्ग में स्वागत करने के लिए वहां मौजूद होते हैं। यह विश्वास करना मेरे लिए खुशी की बात है कि जिस प्रभु ने मुझे बुलाया है वह मेरे प्रति ईमानदार रहा है। उसके और उसके लोगों के लिए जीने का आनंद किसी भी अन्य चीज़ की तुलना में कहीं अधिक लाभप्रद रहा है।
By: Sister M. Gerard Fernandez RGS
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