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अक्टूबर 28, 2023 240 0 Deacon Doug McManaman, Canada
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कृतज्ञता का भाव

इस जीवन में आनंद की कुंजी क्या है? जब आप उस कुंजी को प्राप्त करेंगे, तब आपका जीवन कभी भी पहले जैसा नहीं रहेगा।

येशु मसीह द्वारा दस कोढ़ियों को चंगा करने का वृत्तांत मुझे गहराई तक प्रभावित करता है। कुष्ठ रोग एक ऐसी भयानक बीमारी थी जो पीड़ितों को उनके परिवारों से दूर और अलग-थलग कर देती थी। “हम पर दया करो”, वे उसे पुकारते हैं। और वह उन्हें चंगा कर देता है। वह उन्हें अपना जीवन वापस देता है। वे अपने परिवारों के पास लौट सकते हैं, अपने समुदाय के साथ आराधना कर सकते हैं और फिर से काम कर सकते हैं और भीख मांगने से और भीषण गरीबी से बच सकते हैं। उन्होंने जो आनंद अनुभव किया वह अविश्वसनीय होगा। परन्तु धन्यवाद प्रकट करने केलिए सिर्फ एक ही व्यक्ति लौटता है।

उपहार के पीछे

मेरा इरादा उन नौ लोगों को आंकने का नहीं है जो वापस नहीं आये, लेकिन जो येशु के पास लौटा उसने “उपहारों” के बारे में कुछ बहुत महत्वपूर्ण बात समझी। जब ईश्वर कोई उपहार देता है, जब वह किसी प्रार्थना का उत्तर देता है, तो यह व्यक्तिगत होता है। ईश्वर सदैव उस उपहार में समाहित रहता है। उपहार प्राप्त करने की आवश्यक क्षमता उस व्यक्ति से प्राप्त करनी है जो इसे देता है। प्यार से दिया गया कोई भी उपहार देने वाले के प्यार का प्रतीक है, इसलिए उपहार प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति को प्राप्त करता है जिसने इसे दिया है। उपहार अंततः टूट सकता है या ख़राब हो सकता है, लेकिन देने वाले के साथ उसका बंधन बना रहता है। चूँकि ईश्वर शाश्वत है, उसका प्रेम शाश्वत है और कभी भी वापस नहीं लिया जाएगा। एक कृतघ्न बच्चे को प्यार करने वाले माता-पिता की तरह, वह निरंतर देता रहता है, कब उड़ाऊ पुत्र उसके पास वापस आ जाता है, माता पिता उस पल की प्रतीक्षा करते हैं। किसी को उपहार के लिए धन्यवाद देने से इंकार करना एक बिगड़ैल बच्चे का कार्य है, और वह चोरी के समान है। उत्साह में लौटा हुआ कोढ़ी यह बात नहीं भूला।
कृतज्ञता की भावना ही धार्मिक और आध्यात्मिक भावना का मूल है। हमारा पूरा जीवन, हर पल, एक सरासर उपहार है। एक क्षण रुकें और विचार करें कि आपको कितने आशीर्वाद के उपहार प्राप्त हुए हैं। वह हममें से प्रत्येक शख्स से व्यक्तिगत रूप से क्या कह रहा है? “मुझे तुमसे प्यार है।” प्रत्येक आशीर्वाद उसके प्रेम को साझा करते हुए उसके उपहार का उपयोग करके उसके प्रेम को वापस करने का निमंत्रण है। यदि हम उस व्यक्ति को खोजने में विफल रहते हैं जो हमारे उपहारों का स्रोत है, तो कुछ समय बाद उनका हमारे जीवन में कोई खास मतलब नहीं रहेगा। वे “बूढ़े या पुराने हो जाएंगे” और एक तरफ रख दिए जाएंगे जबकि हम व्याकुल रहते हुए और अधिक की तलाश करेंगे।
मेरे पुरोहिताई अभिषेक के बाद, मुझे एक मनोरोग अस्पताल और पास की जेल में जाकर आत्मिक निदेशक का कार्य करने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी । जेल में सुरक्षा जांच के लिए अक्सर लंबा इंतजार करना पड़ता है। अंततः बैरक जहां कैदी मेरा इंतजार करते हैं, वहां अक्सर एक और थकाऊ विलम्ब होता है। इतना सब होने के बाद, मैं कांच की दीवार के माध्यम से कैदी से केवल चालीस मिनट तक फोन पर बात कर सकता था।

बंद द्वार और अवरुद्ध दीवारें

इससे बिलकुल विपरीत मानसिक अस्पताल के प्रत्येक विभाग बंद होने के बाद भी मुझे उसमें प्रवेश करने और अन्दर जाने के लिए एक चाबी दी जाती थी। सिज़ोफ्रेनिक विभाग में सबसे खतरनाक रोगियों के लिए एक अपवाद था। इसकी कोई चाबी नहीं थी। इसके बजाय, सुरक्षा गार्ड एक कैमरे के माध्यम से मेरी पहचान करते हैं और रिमोट से एक दरवाज़ा खोल देते हैं। मेरे पीछे वाला दरवाजा बंद हो जाने पर दूसरा दरवाजा खुल जाता ताकि मैं मरीजों को देखने के लिए अंदर जा सकूं। पूरा सप्ताहांत लोहे के बंद दरवाज़ों और राख भरी दीवारों से घिरे रहने, सुरक्षा गार्डों और कैमरों की निगरानी में बिताने के बाद, वहाँ से निकलकर घर जाना मेरे लिए बड़ी राहत की बात थी। दीवारों से मुक्त, सुंदर नीले आकाश को देखते हुए, मैं तीव्र आनंद की गहरी अनुभूति से अभिभूत हो जाता। पहली बार, मैंने अपनी आज़ादी की पूरी सराहना की। मैंने मन में सोचा, मैं कोई भी रास्ता चुन सकता हूँ और जहाँ चाहूँ रुक सकता हूँ; दुकान से कॉफ़ी या शायद डोनट खरीद सकता हूँ। मैं स्वतंत्र रूप से चुन सकता हूं और कोई भी मुझे रोकने, मेरी तलाशी लेने, मेरा पीछा करने या मुझ पर नजर रखने की कोशिश नहीं करेगा।
इस उत्साहपूर्ण अनुभव के बीच, मुझे एहसास हुआ कि मैंने कितना कुछ हल्के में लेता था। यह एक दिलचस्प अभिव्यक्ति है: “हलके में लेना”। इसका मतलब है कि जो “दिया गया है” उस पर ध्यान न देना तथा देने वाले को नज़रअंदाज़ करना और धन्यवाद देने में असफल होना। इस जीवन में आनंद की कुंजी यह महसूस करना है कि सब कुछ एक सरासर उपहार है, और उस व्यक्ति के बारे में, जो हर उपहार का स्रोत है, अर्थात् ईश्वर के बारे में जागरूक होना है।

अधूरी समझ

दस कोढ़ियों के चंगा होने के बारे में अगला महत्वपूर्ण बिंदु उनके चंगे होने के तरीके से संबंधित है। येशु ने उनसे कहा: “जाओ और खुद को याजकों को दिखाओ” (केवल याजक ही थे जो प्रमाणित कर सकते थे कि वे संक्रमण से मुक्त थे ताकि वे घर लौट सकें)। लेकिन सुसमाचार कहता है कि वे “रास्ते में ही चंगे हो गये”। दूसरे शब्दों में, जब येशु ने उनसे कहा कि जाकर अपने आप को याजकों को दिखाओ, तब तक वे ठीक नहीं हुए थे। वे “रास्ते में” ठीक हो गये। दुविधा की कल्पना कीजिए. “मैं खुद को याजक को क्यों दिखाऊं, आपने अभी तक कुछ नहीं किया है? मुझे अभी भी कुष्ठ रोग है”। और इसलिए, उन्हें भरोसा करना पड़ा। उन्हें पहले आज्ञा माननी होगी और कार्य करना होगा। तभी वे ठीक हो सके।
ईश्वर के साथ इसी तरह सब काम होता हैं। हम वास्तव में प्रभु को तभी समझ पाते हैं जब हम पहले उनका अनुसरण करके उस विश्वास को जीना चुनते हैं – ऐसा कहा जा सकता है कि यह अंधेरे में उसकी आज्ञा का पालन करना जैसा होता है। जो लोग कार्य करने के पूर्व पूरी तरह से समझने पर जोर देते हैं, वे लगभग हमेशा असफल हो जाते हैं।

हम जानते हैं कि उसने हमसे क्या कहा: आज्ञाओं का पालन करो। अंतिम भोज में, उसने अपने प्रेरितों को “मेरी याद में ऐसा करने” की आज्ञा दी। उसने यह उपदेश भी दिया कि हमें अपने वस्त्र, भोजन या पेय के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रभु परमेश्वर हमारी ज़रूरतों को जानता है। “पहले ईश्वर के राज्य की तलाश करो और ये सभी बातें तुम्हें यूँ ही प्रदान की जाएंगी”। यदि हम विश्वास में आगे बढ़ते हैं और उनके वचन के अनुसार कार्य करते हैं, तो हम अंततः अनुग्रह के प्रकाश के माध्यम से समझेंगे। लेकिन आज बहुत से लोग ऐसी चीज़ों से डरते हैं जो उनके आराम में खलल डालती है और जब तक कि उन्हें आश्वस्त नहीं किया जाता है कि ईश्वर की आज्ञाओं के अनुसार कार्य करना उनकी अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए यह कोई जोखिम नहीं है, तब तक वे आज्ञाओं का पालन करने से सख्त इनकार करते हैं । और इसलिए वे ईश्वर को वास्तव में जानने के आनंद के बिना, अंधेरे में जीवन गुजारते हैं। परन्तु इससे पहले कि हम समझें कि ऐसा क्यों है, उसकी आज्ञाओं के अनुरूप हमारे कार्यों को करने के निर्णय के बाद हमें चंगाई मिलती है; हमें प्रभु की आज्ञा का पालन बिल्कुल छोटे बच्चों की तरह करना होगा जो अपने माता-पिता पर भरोसा करते हैं और उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।

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Deacon Doug McManaman

Deacon Doug McManaman is a retired teacher of religion and philosophy in Southern Ontario. He lectures on Catholic education at Niagara University. His courageous and selfless ministry as a deacon is mainly to those who suffer from mental illness.

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