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मार्च 09, 2023 238 0 Father Fiorello Mascarenhas SJ
Encounter

विफलताओं से आशीर्वाद की ओर !

फादर फिओ ने नाउम्मीदी की मोटी दीवाल को फांदा है और यह अनुभव किया है कि ईश्वर टेढ़ी लकीरों पर सीधा लिखता है !

 उन्नीस साल की उम्र में, दो साल  कॉलेज में पढ़ाई के बाद, मैंने मुंबई के जेसुइट नव शिष्यालय में प्रवेश किया। चार साल की धार्मिक प्रशिक्षण के बाद, मुझे रसायन विज्ञान में डिग्री पूरी करने के लिए सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में वापस भेज दिया गया। मैं कॉलेज के प्रोफेसर के रूप में अपने भविष्य के करियर को लेकर खुश और गौरवान्वित था! मैंने कठिन अध्ययन किया और प्रारंभिक परीक्षाओं में बहुत अच्छा किया। हालाँकि 1968 में अंतिम परीक्षा के समय, मेरा दिमाग अचानक ठप पड़ गया। मैंने जो कुछ भी पढ़ा था, उसका एक भी शब्द मुझे याद नहीं आया! अपने-आप को गर्व के साथ सिर ऊँचा करने की बात तो दूर, मैं परीक्षा में फेल हो गया! मैं भ्रमित, अपमानित और क्रोधित महसूस कर रहा था। मैंने पूछा, “ईश्वर मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकता है?”

हालाँकि, मेरे लिए आगे और भी परेशानियाँ थीं। मैंने प्रार्थना की और अधिक दृढ़ संकल्प के साथ अध्ययन किया और कुछ महीनों बाद रसायन विज्ञान की परीक्षा के लिए फिर बैठ गया। मैंने तैयारी ठीक से की थी, फिर भी परीक्षा हॉल में मेरा दिमाग पहले की तरह ठप पड़ गया और मैं दूसरी बार फेल हो गया! अब मैं विश्वास को लेकर गहरे संकट में प्रवेश कर चुका था। मैंने अपने आप से पूछा, “क्या वास्तव में कोई ईश्वर है? यदि वह प्रेमी परमेश्वर है, तो वह मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकता है?” धीरे-धीरे मैंने प्रार्थना करना छोड़ दिया। मेरा धार्मिक जीवन संकट में था और मैं सांसारिक जीवन जीने लगा।

दीवार से टक्कर

सन् 1970 में, मैंने रसायन विज्ञान की परीक्षा के तीसरे प्रयास के लिए तैयारी की। हॉल में प्रवेश करने से पहले, मैं फुसफुसाया, “ईश्वर, मुझे पता है कि तू मुझसे प्यार नहीं करता, इसलिए तुझसे मदद मांगने का कोई मतलब ही नहीं है। लेकिन मुझे आशा है कि तू अभी भी मेरी माँ से प्यार करता है, इसलिए कृपया उनकी प्रार्थना का उत्तर दे!” लेकिन, तीसरी बार भी वही हुआ और मैं फेल हो गया। इस घटना के बाद मुझे जेसुइट मनोवैज्ञानिकों के पास भेजा गया जिन्होंने कई परीक्षण के बाद मेरी समस्या का निदान बताया कि मुझमें “रसायन विज्ञान के लिए एक मनोवैज्ञानिक अवरोध विकसित हुआ है।” परन्तु उनमें से कोई भी मुझे यह नहीं बता सका कि इस अवरोध से कैसे छुटकारा पाया जाए!

मेरी तीसरी असफलता के दो साल बाद, दर्शनशास्त्र में धार्मिक प्रशिक्षण को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद, जब मैं रसायन विज्ञान की परीक्षा में चौथे प्रयास की तैयारी कर रहा था, तो उस महान और अच्छे ईश्वर, जिसने मुझ पर भरोसा नहीं खो दिया था, उसके  हाथों से “अद्भुत कृपा” अप्रत्याशित रूप से मुझ पर बरस पड़ी! 11 फरवरी 1972 को, मुझे अचानक अपने कमरे में घुटने टेकने की प्रेरणा मिली और प्रथम व्रतधारण के अवसर पर मिले क्रूसित प्रभु की प्रतिमा अपने हाथ में लेकर मैंने अपने जीवन को इश्वर को समर्पित क्र दिया।

अपनी दरिद्रता और शून्यता की गहराई से, मैंने रोते हुए कहा: “हे प्रभु, तुझे देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है! मैं नाकामयाब आदमी हूँ, और मेरा कोई भविष्य नहीं है! लेकिन अगर तेरे पास मेरे जीवन के लिए कोई योजना है, अगर तू मुझे किसी तरह अपने राज्य के लिए इस्तेमाल करना चाहता है, तो मैं हाजिर हूँ!”

वह मेरे लिए येशु मसीह के प्रभुत्व के प्रति समर्पण करने और “पवित्र आत्मा में बपतिस्मा लेने” का क्षण था। मैं अब अपने जीवन की गाड़ी की सीट पर बैठ कर प्रभु को यह नहीं बता रहा था कि मेरे लिए क्या करना है; इसके बजाय, मैं उससे कह रहा था कि जैसा वह चाहता है वैसा ही मेरे साथ हो।

जीवन-परिवर्तन का क्षण

ईश्वर ने तत्काल प्रतिक्रिया दी! यहाँ तक कि जब मैं वहाँ घुटने पर था, तब मैंने स्पष्ट रूप से ईश्वर को मुझसे यह कहते सुना, “फियो, तुम मेरे प्रिय पुत्र हो, तुमसे मैं बहुत प्रसन्न हूँ!” वे अंतिम शब्द- “बहुत प्रसन्न हूँ” उनका मैं मतलब ही नहीं समझा! यदि ईश्वर ने मेरे उन कई महीनों के अविश्वास के लिए तथा प्रार्थना और अन्य धार्मिक कार्य को छोड़ने के लिए मुझे डाँटा होता, तो मैं वे शब्द समझ जाता। लेकिन मेरा स्वीकार किया जाना और यही नहीं इतने प्रेम से स्वागत किया जाना मेरे छोटे से दिमाग के लिए समझ से परे था! फिर भी, मेरे दिल की गहराई में, मैंने जबरदस्त आनंद उमड़ते हुए महसूस किया जो मेरे लिए दिव्य सांत्वना थी। उसी क्षण, मैं इतने आनंद से भर गया कि मैं जोर से चिल्लाया, “येशु, तू जीवित है, अल्लेलूया!” यह ऐसे समय में हुआ था जब करिश्माई नवीनीकरण अभी तक भारत नहीं पहुंचा था।

प्रभु के प्रेम भरे शब्दों का अनुभव करने से मेरा जीवन पूरी तरह से बदल गया। अब मैं समझ गया कि ईश्वर की योजनाएँ पूरी होने से पहले, मुझे अपने अहंकार को तोड़ना होगा। मेरी परीक्षाओं की असामान्य असफलताओं ने मुझे सही राह दिखायी! ईश्वर ने मुझे नई मानसिकता दी जिससे मैं मसीह में उपस्थित अमूल्य उद्धार के चरित्र को सराहना शुरू कर सका। हम में से प्रत्येक के लिए ईश्वर का प्रचुर प्रेम एक उपहार है, क्योंकि हम अपनी योग्यताओं के द्वारा नहीं, परन्तु प्रभि के अनुग्रह से, विश्वास के द्वारा बचाए गए हैं।

मेरे जीवन की दिशा जल्द ही बदल गई! आखिरकार जब मैंने रसायन विज्ञान की परीक्षा उत्तीर्ण की और सम्मान के साथ अपनी विज्ञान की डिग्री प्राप्त की, तो मेरे अधिकारी ने एक आश्चर्यजनक घोषणा की: “फियो,” उन्होंने कहा, “हम अब नहीं चाहते कि आप हमारे कॉलेज में प्रोफेसर बनें! आपको विशेष आध्यात्मिक अनुभव हुआ है; इसे पूरे संसार को सुनाइये!”

ईश्वर ने मेरे जीवन में जो कुछ किया, उसकी दिव्य विडंबना पर आप मेरे आश्चर्य की कल्पना कर ही सकते हैं। अगर मैंने उन परीक्षाओं को तुरंत पास कर लिया होता, तो मेरा पूरा पुरोहिताई जीवन रोजाना रसायन विज्ञान प्रयोगशाला जाकर, कॉलेज के छात्रों को हाइड्रोजन और सल्फाइड को कैसे मिलाना है, यह सिखाने के लिए चला जाता… और फिर उस घिनौने बदबू में ही सांस लेता!

ईश्वर के पास वास्तव में मेरे जीवन के लिए एक योजना थी। कुल 30 वर्ष उसने मुझे भारत और दुनिया भर के कैथलिक करिश्माई नवीकरण में एक अग्रणी सेवक और नेतृत्व की भूमिका की कृपा दी और उनमें से आठ वर्ष रोम में बिताने का मुझे सौभाग्य मिला। पिछले बीस वर्षों से ईश्वर ने मुझे प्रचारक और लेखक के रूप में बाइबिल के द्वारा आत्मिक परामर्श के सेवा कार्य में इस्तेमाल किया है। ईश्वर के अद्भुत अनुग्रह से, मैंने खुशी-खुशी अस्सी से अधिक देशों में ईश वचन के लिए भूखे लोगों को सुसमाचार सुनाया है। मैंने बाइबिल की आध्यात्मिकता पर अठारह पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें से कुछ को अन्य भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया गया है। यह सब मेरी शर्मनाक और हतोत्साहित असफलता का परिणाम था। किन्तु ईश्वर टेढ़ी लकीरों पर सीधा लिखता है!

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Father Fiorello Mascarenhas SJ

Father Fiorello Mascarenhas SJ is the Chairman of the Catholic Bible Institute, Mumbai. He was the Director and Chairman (1981-1987) of the International Council for Catholic Charismatic Renewal, as resident in Vatican City. Father Mascarenhas was awarded the Doctor of Ministry degree in Biblical Spirituality by the Catholic Theological Union, Chicago.

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