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मैंने सर उताकर नानी के चेहरे की ओर देखा, उनके पैरों का आलिंगन किया, उनके एप्रन पर अपने चेहरे को दबाया जिसमें से सेब की पकौड़ी की गंध आ रही थी, फिर खुशी से मैं ने उनको धन्यवाद दिया। इसके तुरंत बाद मैं अपने भाई को नानी द्वारा दिया गया खजाना दिखाने के लिए भागी।
वह घर पुराना था और मेरे परनाना का था। यह एक छोटा सा पक्का घर था जहाँ उन्होंने कई बच्चों की परवरिश की। विरल भाग और मटमैली महक के कारण, ताज़ी पेंट की गई लकड़ी से बने इसके सुन्दर आकार लोगों का आकर्षण नहीं खींच पा रहा था। इस घर की अपनी पारिवारिक यादें, कहानियाँ और विरासत का इतिहास था। जब मेहमान मिलने आते थे, तो पीछे के भूरे रंग की लकड़ी के दरवाजे से होकर रसोई की मेज पर से ताज़ा पके हुए सेब के पकौड़े की अलौकिक सुगंध निकलती थी। यह एक ऐसा घर है जो मुझे मेरी नानी की प्यारभरी याद दिलाता है। यह दिलचस्प बात है कि कैसे एक साधारण स्मृति दूसरी स्मृति की, और फिर तीसरी स्मृति की कड़ी बनाती है और तब तक कड़ियाँ बनाती रहती है जब तक कि पूरी कहानी मेरे दिमाग को न भर दे। कुछ ही मिनिटों में, मुझे दूसरी जगह और समय पर वापस ले जाया जाता है जो मेरे जीवन की नींव का हिस्सा था।
मेरी परवरिश केंटकी के एक ऐतिहासिक इलाके के एक साधारण जगह और आम समय में हुई। यह एक ऐसा दौर था जब प्रतिदिन की सांसारिक दिनचर्याओं को पारिवारिक परंपराओं की तरह संजोया जाता था। रविवार का दिन गिरजाघर जाने, आराम करने और घर परिवार में बिताने का दिन था। हमारे पास क्रियात्मक चीजें थीं और हम साधारण कपड़े पहना करते थे। उन कपड़ों के फट जाने पर अक्सर मरम्मत की जाती थी। जब हम दुर्भाग्यवश अपने लिए पर्याप्त भोजन या चीज़ें नहीं जुटा पाते थे, तब रिश्तेदारों और दोस्तों पर निर्भर रहते थे। जब तक दुसरे द्वारा प्रदत्त सहायता यदि जल्द से जल्द चुकाया जाना संभव नहीं था, तब तक हम इसे स्वीकार नहीं करते थे। दूसरे के बच्चों की देखभाल करना जीवन की आवश्यकता मानी जाती थी और ज़रुरी हुई तो इसका आग्रह दोस्तों या पड़ोसियों के सम्मुख रखने से पूर्व निकटतम रिश्तेदारों से कहा जाता था।
माँ और पिताजी, अभिभावक होने की अपनी जिम्मेदारियों को अपना प्राथमिक कर्तव्य मानते थे। उन्होंने हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए त्याग किया और शायद ही कभी स्वयं के लिए समय निकाला। हालांकि, कभी कभार, उन दोनों ने किसी शाम का वक्त बाहर गुज़ारने की योजना बनाई और वे दोनों इसका इंतज़ार करते थे। मेरी नानी, जिन्हें हम नोना कहते थे, उस पुराने घर में रहती थीं, उन्होंने बहुत ही स्वादिष्ट पकौड़े बनाए और जब मेरे माता-पिता दोनों एक साथ घर से बाहर थे, उस दौरान उन्होंने खुशी-खुशी मेरी और मेरे भाई-बहनों की देखभाल की।
एक शाम मेरी माँ, पिताजी के साथ बाहर जाने के लिए तैयार बैठी थी, पिताजी की कमीज़ से स्टार्च किया हुआ मांड की ताज़ी गंध आ रही थी, और शाम को जब वे दोनों एक साथ बाहर गए, तो हमारे घर की प्रतिदिन की दिनचर्या में परिवर्त्तन झलक रही थी और घर और आँगन उत्साह की भावना से भर गए। हम पड़ोस में नानी के घर गए; जैसे ही नानी का पुराना धूसर लकड़ी का दरवाजा खुला और फीके रंग का एप्रन पहनी हुई मेरी नानी ने हम सबका अभिवादन किया, तब मुझे लगा कि मैं एक पुराने दौर में वापस कदम रख रही हूँ। पहले नानी के साथ एक संक्षिप्त बातचीत हुई, अनुशासित व्यवहार करने की सख्त चेतावनी सबको देने के बाद, उन्होंने हम सबको स्वागत का चुम्मा दिया, जिसके कारण हमारे कपड़ों पर उनके एप्रन के इत्र की खुशबू और और हमारे गालों पर उनकी लिपस्टिक रह गयी। जब नानी की रसोई का दरवाजा अन्दर से बंद हुआ, तो हम बगल के कमरे में हमारे घर से लाए गए खिलौनों के एक बैग के साथ खेलने के लिए छोड़ दिए गए थे। जब तक नानी ने रसोई घर की सफाई की और एक बुजुर्ग बहन की सेवा-शुश्रूषा की, जो उनके साथ रहती थी, तब तक हम इस शाम के लिए खरीदी गई नई तस्वीरवाली कापियों में रंग भरने में संतुष्ट थे।
नया माहौल और खेल की उत्तेजना की भावना खत्म होने में बहुत समय नहीं लगा और खिलौनों में अब ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। हमारा मनोरंजन करने के लिए नानी के घर टेलीविजन भी नहीं था और उनके पुराने पार्लर रेडियो में केवल स्थानीय लोक गीत ही बजाया जा रहा था। घर की पुरानी साज-सज्जा, आवाज़ और महक ने मेरा ध्यान बस कुछ ही देर के लिए आकर्षित किया। फिर, मैंने नानी के चप्पलों को लकड़ी के फर्श पर रगड़े जाने की आवाज़ सुनी। नानी यह देखने के लिए दरवाजे पर आ गई कि हम ठीक हैं या हमें किसी चीज की जरूरत है। शाम की बढ़ती आलस्य के कारण मैं ने पुकारा, “नानी, मेरे लिए कुछ ढूंढो”।
“तुम्हारा क्या मतलब है?” उन्होंने पूछा।
मैंने जवाब दिया, “माँ ने कहा था कि जब वह एक छोटी लड़की थी, उन दिनों जब कभी वह ऊब जाती थी, तो वह आपकी बहन से कहती थी कि उन केलिए “कुछ ढूंढें”। तब आपकी बहन उनके लिए एक खजाना ढूंढ़ लेती थी”। मेरे शब्दों पर विचार करने के लिए नानी ने दूर की ओर नज़र डाली। बिना ज्यादा देर किए वह पीछे मुड़ी और इशारा किया, “मेरे पीछे चले आओ”।
मैं उनके पीछे एक अंधेरे, ठंडे, बासी कमरे की ओर तेजी से चली, जिसमें कुछ पुराने फर्नीचर थे, और एक प्राचीन और सुंदर लकड़ी की अलमारी भी थी।
नानी ने एक बत्ती जलाई और तब अलमारी के दरवाजे पर लगे कांच की घुंडी चमकने लगी। मैं ने नानी के घर के इस हिस्से में कभी प्रवेश नहीं किया था, और मैं कभी भी अकेली उनके साथ नहीं रही थी। मुझे कोई अनुमान नहीं था कि क्या अपेक्षा की जाए। मैंने अपने उत्साह को नियंत्रित करने की कोशिश की, और सोच रही थी कि उस दरवाज़े के पीछे कौन सा खजाना हमारा इंतजार कर रहा है, जो हमें उसे खोलने के लिए प्रेरित कर रहा था। यह अनियोजित पल, सात साल की छोटी लड़की के लिए बहुत अधिक था, और मैं अपनी नानी के साथ के इस विशेष यादगार पल को बर्बाद नहीं करना चाहती थी।
नानी ने एक कांच की घुंडी घुमाई, दरवाजा चरमराते हुए खुल गया और लकड़ी के छोटे दराजों के ढेर दिखाई दिए। नानी ने एक दराज में हाथ डाला, एक हल्के से इस्तेमाल किए गए भूरे रंग के चमड़े के पर्स को बाहर निकाला, मुझे दे दिया और इसे खोलने के लिए मुझसे कहा। एक अजीब उम्मीद के कारण मैं घबराई हुई थी, इसलिए मेरे नन्हे हाथ कांपने लगे, और मैंने उस पर्स को खोला। चमड़े के पर्स के नीचे में कोने में चांदी के क्रूसित प्रभु की छोटी मूर्ति से जुड़ा हुआ सफेद मोतियों की एक छोटी जपमाला थी। मैंने बस इसे देखा। फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या यह एक अच्छा खजाना है? मैंने अपनी माँ की जपमाला देखी थी, लेकिन मेरे पास मेरी अपनी जपमाला नहीं थी और इसका उपयोग करना मैं नहीं जानती थी। हालांकि, किसी कारणवश, मुझे लगा कि यह अब तक का सबसे अच्छा खजाना है! मैंने ऊपर नानी के चेहरे की ओर देखा, उनके पैरों का आलिंगन किया, उनके एप्रन पर अपने चेहरे को दबाया जिसमें से सेब की पकौड़ी की गंध आ रही थी, फिर खुशी से मैं ने उनको धन्यवाद दिया। इसके तुरंत बाद मैं अपने भाई को नानी द्वारा दिया गया खजाना दिखाने के लिए भाग गयी।
अगले वर्ष एक कैथलिक प्राथमिक विद्यालय में मेरा नाम लिखा गया, जहाँ मैंने येशु और उसकी माँ मरियम के बारे में बहुत कुछ सीखा। मैंने जब अपना पहला परम प्रसाद ग्रहण किया, तब जपमाला की विनती करनी सीखी। जैसे-जैसे मैं रोज़री की प्रार्थना करती रही, मेरे अन्दर येशु और मरियम के प्रति प्रेम के बीज पनपने लगे। वक्त गुजरता गया, और कुछ वर्षो बाद वह छोटी सफेद मोती की माला मेरे हाथों के लिए बहुत छोटी हो गई और मैंने एक साधारण लकड़ी की जपमाला प्राप्त कर ली। मैं हमेशा अपनी जेब में लकड़ी की बनी वह जपमाला रखती हूं, और यह भी मेरे लिए एक खजाना बन गया है। वर्षों प्रार्थना में समय बिताने पर, धन्य माँ मरियम और उसकी रोज़री माला के प्रति मेरे अन्दर एक अपार प्रेम विकसित हुआ।
इन दिनों, मेरी माला विनती शुरू करने से पहले, मैं चुपचाप धन्य माँ से “मेरे लिए कुछ ढूँढने” के लिए कहती हूं। हर कहानी कोई न कोई अच्छे गुण को प्राप्त करने का आदर्श देती है। इसलिए, मैं अक्सर माँ मरियम से रोज़री प्रार्थना के दैनिक रहस्यों में निहित विवरणों और कहानियों की व्याख्या करने और अपने जीवन में उन गुणों को विकसित करने के लिए कहती हूं। अपने बेटे, येशु के दरवाजे मेरे लिए खोलने में माँ कभी असफल नहीं होती, ताकि मैं उसके करीब आ सकूं। कृपापूर्वक वह जो कुछ प्रकट करती है, उस पर मनन करने के बाद, मैंने पाया है कि “खजाने” वहीं पाए जाते हैं।
जीवनचक्र तेजी से आगे बढ़ गया। आज, मैं नानी की उम्र के बराबर हूँ जब उसने मुझे उन छोटी सफेद मोतियों की जपमाला दी थी। मुझे उस दिन की याद आती है, जब उसने “मेरे लिए कुछ ढूँढा” था। मेरे मन में सवाल उठता है कि जब वह मेरे अनुरोध पर विचार करने के लिए रुकी थी, तो क्या वह मुझे दिए जा रहे उस खजाने के भविष्यगामी प्रभाव को जानती थी? क्या वह जानती थी कि वह मेरे लिए पुराने अलमारी के दरवाजा मात्र नहीं, बल्कि और बहुत कुछ खोल रही है? उस चमड़े के बटुए में, उन्होंने आध्यात्मिक खजाने की एक पूरी दुनिया खोल दी थी। मैं सोचती हूँ कि क्या वह पहले से ही अपने लिए माला के खजाने को ढूंढ ली है और इसे मुझे देना चाहती है? जब उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम स्वयं बटुए को खोलो और भीतर के खजाने को ढूंढो तब क्या वह जानती थी कि उसके ये शब्द भविष्यसूचक हैं? नानी को स्वर्ग में येशु के साथ रहते हुए अब काफी समय हो चुका है। मेरे पास अभी भी वह भूरे रंग का चमड़े का बटुआ है जिसके अंदर मोती की छोटी जपमाला है। मैं समय-समय पर इसे निकालती हूं और नानी के बारे में सोचती हूं। मुझे अभी भी उसके सवाल सुनायी देता है: “क्या यह एक अच्छा खजाना है?” मैं अब भी खुशी-खुशी उसे जवाब देती हूं, “हां नानी, यह अब तक का सबसे अच्छा खजाना है!”
Teresa Ann Weider ने विभिन्न सेवाओं में अपनी सक्रिय भागीदारी द्वारा कई वर्षों तक कलीसिया की सेवा की है। वे अमेरिका के कैलिफोर्निया में अपने परिवार के साथ रहती हैं।
क्या मेरा जीवन कभी सामान्य हो पाएगा? मैं अपना काम कैसे जारी रख सकती हूँ? इन पर विचार करते हुए, मेरे दिमाग में एक अद्भुत समाधान आया... मुझे अपना जीवन बेहद तनावपूर्ण लग रहा था। कॉलेज में अपने पाँचवें वर्ष में, द्विध्रुवी विकार (बाईपोलर डिसऑर्डर) की शुरुआत के कारण पढ़ाई पूरी करने के मेरे प्रयासों में बाधा बन रही थी। मुझे अभी तक कोई निदान नहीं हुआ था, लेकिन मैं अनिद्रा से ग्रस्त थी, और मैं थकी हुई और अव्यवस्थित दिखती थी। इसके कारण शिक्षक के रूप में रोजगार की मेरी संभावनायें बाधित हुई। चूँकि मेरे पास पूर्णतावाद की ओर मजबूत प्राकृतिक प्रवृत्ति थी, इसलिए मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और डर लगा कि मैं सभी को निराश कर रही हूँ। मैं गुस्से, निराशा और अवसाद में घिर गयी। लोग मेरी गिरावट के बारे में चिंतित थे और मदद करने की कोशिश कर रहे थे। मुझे स्कूल से एम्बुलेंस द्वारा अस्पताल भी भेजा गया था, लेकिन डॉक्टरों को उच्च रक्तचाप के अलावा कुछ भी गलत नहीं मिला। मैंने प्रार्थना की लेकिन कोई सांत्वना नहीं मिली। यहाँ तक कि ईस्टर मिस्सा के दौरान -ईस्टर की रात मेरा सबसे पसंदीदा समय है - भी दुष्चक्र जारी रहा। येशु मेरी मदद क्यों नहीं कर रहा है? मुझे उससे बहुत गुस्सा आया। अंत में, मैंने प्रार्थना करना ही बंद कर दिया। जैसे-जैसे यह चलता रहा, दिन-ब-दिन, महीने-दर-महीने, मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। क्या मेरी ज़िंदगी कभी सामान्य हो पाएगी? यह असंभव लग रहा था। जैसे-जैसे मेरे स्नातक की परीक्षा नज़दीक आ रही थी, मेरा डर बढ़ता जा रहा था। पढ़ाना एक मुश्किल काम है जिसमें बहुत कम ब्रेक मिलते हैं, और छात्रों को मेरी ज़रूरत होगी ताकि मैं उनकी कई ज़रूरतों को पूरा करती हुई और सीखने का एक अच्छा माहौल प्रदान करती रहूँ। मैं अपनी मौजूदा स्थिति में यह कैसे कर सकती थी? मेरे दिमाग में एक भयानक समाधान आया: "तुम्हें बस खुद को मार देना चाहिए।" उस विचार को नरक में होना चाहिए, लेकिन उसे त्यागने और उसे सीधे नरक में वापस भेजने के बजाय, मैंने उसे वहीं मेरे मन में ही रहने दिया। यह मेरी दुविधा का एक सरल, तार्किक उत्तर लग रहा था। मैं बस लगातार हमले के बजाय सुन्न होना चाहती थी। अफ़सोस की बात है कि मैंने निराशा को चुना। लेकिन, जब मुझे लगा कि यह मेरे आखिरी पल होंगे, तो मैंने अपने परिवार के बारे में और मेरे उस व्यक्तित्व के बारे में सोची जो मैं कभी थी। सच्चे पश्चाताप में, मैंने अपना सिर आसमान की ओर उठाया और कहा: "मुझे बहुत खेद है, येशु। इन सब बातों केलिए मुझे क्षमा कर। बस मुझे वह दे जिसकी मैं हकदार हूँ।" मुझे लगा कि ये मेरे इस जीवन के आखिरी शब्द होंगे। लेकिन परमेश्वर की कुछ और ही योजना थी। ईश्वर की आवाज़ का श्रवण मेरी माँ, ईश्वर की कृपा से, उसी क्षण करुणा की माला विनती बोल रही थी। अचानक, माँ ने अपने दिल में ज़ोर से और स्पष्ट शब्दों में सुना “एलन को खोजो।” उन्होंने आज्ञाकारी होकर अपनी माला के मोतियों को एक तरफ रख दिया और मुझे गैरेज के फर्श पर पाया। वह जल्दी से समझ गई, और भयभीत होकर बोली: “तुम क्या कर रहे हो?!” और उन्होंने मुझे घर के अंदर खींच लिया। मेरे माता-पिता का दिल टूट गया था। ऐसे समय के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, लेकिन उन्होंने मुझे मिस्सा में ले जाने का फैसला किया। मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी, और मुझे पहले से कहीं ज़्यादा उद्धारकर्ता प्रभु की ज़रूरत थी। मैं येशु के पास आने के पल के लिए तरस रही थी, लेकिन मुझे यकीन था कि मैं दुनिया की आखिरी इंसान हूँ जिसे वह कभी देखना चाहेगा। मैं यह विश्वास करना चाहती थी कि येशु मेरा चरवाहा है और अपनी खोई हुई भेड़ों को वापस लाएगा, लेकिन यह मुश्किल था क्योंकि कुछ भी नहीं बदला था। मैं अभी भी गहन आत्म-घृणा से ग्रस्त थी, अंधकार से पीड़ित थी। यह लगभग शारीरिक रूप से दर्दनाक था। उपहारों की तैयारी के दौरान, मैं फूट-फूट कर रो पड़ी। मैं बहुत लंबे समय से रोई नहीं थी, लेकिन एक बार जब मैंने रोना शुरू किया, तो मैं रुक नहीं पाई। मैं अपनी ताकत के आखिरी छोर पर थी, मुझे नहीं पता था कि आगे कहाँ जाना है। लेकिन जैसे-जैसे मैं रोती गई, मेरा बोझ धीरे-धीरे कम होता गया, और मैंने खुद को उनकी दिव्य दया में लिपटी हुई महसूस किया। मैं इसके लायक नहीं थी, लेकिन उन्होंने मुझे खुद का उपहार दिया, और मुझे पता था कि वह मेरे सबसे निचले बिंदु पर भी मुझसे उतना ही प्यार करता था जितना कि उन्होंने मेरे सबसे ऊंचे बिंदु पर किया था। प्यार की तलाश में आने वाले दिनों में, मैं मुश्किल से ईश्वर का सामना कर पाती, लेकिन वह छोटी-छोटी चीजों में दिखाई देता रहा और मेरा पीछा करता रहा। मैंने हमारे आतंरिक कक्ष में लगी येशु की दिव्य दया की तस्वीर की मदद से येशु के साथ फिर से संवाद स्थापित किया। मैंने बात करने की कोशिश की, ज्यादातर संघर्ष के बारे में शिकायत की और फिर हाल ही में हुए मेरे बचाव के मद्देनजर इसके बारे में बुरा महसूस किया। अजीब तरह से, मुझे लगा कि मैं एक कोमल आवाज़ को फुसफुसाते हुए सुन सकती हूँ: "क्या तुमने सच में सोचा था कि मैं तुम्हें मरने के लिए छोड़ दूँगा? मैं तुमसे प्यार करता हूँ। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडने का वादा करता हूँ। सब कुछ माफ़ है। मेरी दया पर भरोसा रखो।" मैं इस पर विश्वास करना चाहती थी, लेकिन मैं इस बात पर भरोसा नहीं कर पा रही थी कि यह सच था। मैं उन दीवारों से निराश हो रही थी, जिन्हें मैं खादी कर रही थी, लेकिन मैं येशु से बात करती रही: "येशु, मैं तुझ पर भरोसा करना कैसे सीख सकती हूँ?" जवाब ने मुझे चौंका दिया। जब आपको लगता है कि कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन आपको जीना जारी रखना है, तो आप कहाँ जायेंगे? जब आप पूरी तरह से अप्रिय महसूस करते हैं, और घमंड के कारण कुछ भी स्वीकार करने में दिक्कत महसूस करते हैं, फिर भी किसी न किसी तरह विनम्र होना चाहते हैं? दूसरे शब्दों में, जब आप पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के साथ पूर्ण सामंजस्य चाहते हैं, लेकिन अपने घर का रास्ता खोजने के लिए प्यार भरे स्वागत से बहुत डरते हैं और अविश्वास करते हैं, तो आप कहाँ जाना चाहते हैं? इसका उत्तर है ईश्वर की माँ और स्वर्ग की रानी धन्य कुँवारी मरियम। जब मैं भरोसा करना सीख रही थी, तो मेरे अजीब प्रयासों ने येशु को नाराज़ नहीं किया। वह मुझे अपनी धन्य माँ के माध्यम से अपने पवित्र हृदय के करीब बुला रहे थे। मैं उनसे और उनकी वफादारी से प्यार करने लगा। मैं माँ मरियम के सामने सब कुछ स्वीकार कर सकती थी। हालाँकि मुझे डर था कि मैं अपनी सांसारिक माँ से किया गया वादा पूरा नहीं कर पाऊँगी क्योंकि, अपने दम पर, मैं अभी भी मुश्किल से जीने की इच्छाशक्ति जुटा पा रही थी, मेरी माँ ने मुझे मरियम को अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित किया, इस विश्वास के साथ कि वह मुझे इससे बाहर निकलने में मदद करेगी। मुझे इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी कि इसका क्या मतलब है, लेकिन फादर माइकल ई. गेटली, एम.आई.सी. द्वारा लिखित ‘प्रातःकालीन महिमा और येशु के हृदय को सांत्वना देने के लिए 33 दिन’ नामक पुस्तिका ने मुझे समझने में मदद की। धन्य माँ मरियम हमेशा हमारी मध्यस्थ बनने के लिए तैयार रहती हैं, और वह कभी भी किसी बच्चे के अनुरोध को नहीं ठुकराएँगी जो येशु के पास वापस लौटना चाहता है। जैसे-जैसे मैं समर्पण की प्रार्थना कर रही थी, "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं हार नहीं मानूँगी " इन्हीं शब्दों के साथ मैंने फिर कभी आत्महत्या का प्रयास न करने का संकल्प लिया। इस बीच, मैंने समुद्र तट पर लंबी सैर करना शुरू कर दिया, जबकि मैं परमेश्वर पिता से बात करती थी, और उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत पर ध्यान करती थी। मैंने खुद को उड़ाऊ पुत्र के स्थान पर रखने की कोशिश की, लेकिन परमेश्वर पिता के करीब आने में मुझे कुछ समय लगा। पहले, मैंने कल्पना की कि वह कुछ दूरी पर है, फिर मेरी ओर चल रहा है। दूसरे दिन, मैंने कल्पना की कि वह मेरी ओर दौड़ रहा है, भले ही यह पिता ईश्वर के दोस्तों और पड़ोसियों के लिए हास्यास्पद लग रहा हो। आखिरकार, वह दिन आया जब मैं खुद को पिता की बाहों में देख सकती थी, फिर न केवल उनके घर में बल्कि स्वर्गीय परिवार की मेज पर मेरे लिए निर्धारित मेरी सीट पर मेरा स्वागत किया जा रहा था। जब मैंने कल्पना की कि वह मेरे लिए एक कुर्सी खींच रहा है, तो मैं अब एक जिद्दी युवती नहीं थी, बल्कि नयी पीढ़ी का मजेदार चश्मा और बॉब हेयरकट वाली 10 वर्षीय लड़की थी। जब मैंने अपने लिए पिता के प्यार को स्वीकार किया, तो मैं फिर से एक छोटे बच्चे की तरह हो गई, मैं वर्तमान क्षण में जी रही थी और पूरी तरह से उन पर भरोसा कर रही थी। मैं परमेश्वर और उनकी वफादारी से प्यार करने लगी। मेरे अच्छे चरवाहे ने मुझे भय और क्रोध की कैद से बचाया है, वह मुझे सुरक्षित मार्ग पर ले जाता है और जब भी मैं लड़खड़ाती हूँ तो वह मुझे सहारा देता है। अब, मैं अपनी कहानी साझा करना चाहती हूँ ताकि हर कोई ईश्वर की अच्छाई और प्रेम को जान सके। उसका पवित्र हृदय सिर्फ़ आपके लिए कोमल प्रेम और दया से भरा हुआ है। वह आपसे भरपूर प्रेम करना चाहता है, और मैं आपको प्रोत्साहित करती हूँ कि बिना किसी डर या संकोच के आप ईश्वर का स्वागत करें। वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा या आपको निराश नहीं करेगा। उसके प्रकाश में कदम रखें और उसके आलिंगन में वापस लौटें।
By: Ellen Wilson
Moreमुझे प्रचुर मात्रा में वरदान और आशीर्वाद प्राप्त थे: दोस्त, परिवार, धन-दौलत, छुट्टियाँ — आप कोई भी नाम गिनें, मेरे पास सब कुछ था। तो मेरे जीवन में गड़बड़ियां कैसे आ गयी? वास्तव में मेरा बचपन परियों की कहानी जैसी कोई अद्भुत कहानियों की किताब नहीं थी - क्या ऐसा कोई है जिसका बचपन अद्भुत था ? - लेकिन मैं यह नहीं कहूंगा कि मेरा बचपन भयानक था। मेज़ पर हमेशा खाना, मेरे तन पर कपड़े और सिर पर छत होती थी, लेकिन हमें संघर्ष करना पड़ता था। मेरा मतलब यह नहीं है कि हमने आर्थिक रूप से संघर्ष किया, जो हमने निश्चित रूप से किया, बल्कि मेरा मतलब यह है कि हमने एक परिवार के रूप में अपना रास्ता खोजने और आगे बढ़ने के लिए संघर्ष किया। जब मैं छह साल का था, तब मेरे माता-पिता का तलाक हो गया था और मेरे पिता पहले से कहीं अधिक शराब पीने लगे थे। इस बीच, मेरी माँ को ऐसे पुरुष मिले जो उनके जैसी ही ड्रग्स और अन्य नशीली पदार्थों की बुरी लत में फंसे थे। हालाँकि हमारी ज़िंदगी के सफ़र की शुरुआत कठिन रही, लेकिन यह वैसी ही हमेशा नहीं रही। आख़िरकार, सभी सांख्यिकीय बाधाओं के बावजूद, मेरे माता-पिता और मेरे अब सौतेले पिता दोनों, ईश्वर की कृपा से, बुरी आदतों की लत से मुक्त हो गए और उसी तरह आगे भी बने रहे। रिश्ते फिर से बने, और हमारे जीवन में सूरज फिर से उगने लगा। कुछ साल बीत गए, और एक समय ऐसा आया जब मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने जीवन में कुछ क्रियात्मक, उत्पादक और लीक से कुछ हटकर कोई अलग कार्य करना है, ताकि मैं अपने बचपन के सभी नुकसानों और गलतीयों से मुक्त रहूँ। मैं ने कमर कस लिया और स्कूल वापस चला गया। मैं ने केश कलाकार का कार्य सीख लिया और मुझे नाई के कार्य करने का लाइसेंस मिल गया और मैंने एक अच्छे करियर की दिशा में काम किया। मैंने खूब पैसा कमाया और इस दौरान अपने सपनों की रानी से मेरी मुलाक़ात हुई। अंततः अवसर मिला, और मैंने बाल काटने के पेशे के अलावा, कानून प्रवर्तन में दूसरा करियर शुरू किया। हर कोई मुझे पसंद करता था, बहुत से ऊंचे ओहदे वाले लोग मेरे दोस्त थे, और ऐसा लगता था जैसे आकाश ही मेरी सीमा है। तो, मैं जेल में कैसे पहुंच गया? अविश्वसनीय सत्य एक मिनट रुकिए, यह मेरी जिंदगी नहीं है...यह वास्तविक नहीं हो सकता... यह मेरे साथ कैसे हो रहा है?! आप देखिए, मेरे पास सब कुछ होने के बावजूद, मेरे अन्दर किसी चीज़ की बड़ी कमी थी। इसका सबसे परेशान करने वाली बात यह थी कि मुझे पहले से ही पता था कि वह चीज़ क्या है, लेकिन मैंने इसे नज़रअंदाज कर दिया। ऐसा नहीं है कि मैंने कभी प्रयास नहीं किया, लेकिन मैं ईश्वर को अपना सब कुछ नहीं दे पाया । इसके बजाय, मैंने यह सब खो दिया...क्या वास्तव में खो दिया या....? यह इस प्रकार है: आप जो भी पाप पाल रहे हैं वह अंततः आपकी आत्मा की गहराई तक अपनी जड़ें जमा लेगा और आपको तब तक दबा देगा जब तक आप सांस नहीं ले सकेंगे। यहां तक कि मामूली प्रतीत होने वाले पाप भी धीरे-धीरे आपसे और अधिक की मांग करते हैं, तब तक कि आपका जीवन उथल पुथल न हो जाए, और आप इतने भ्रमित हो जाएं कि आपको पता ही न चले कि इस खाई से निकलकर ऊपर जाने का रास्ता कौन सा है। इस तरह मेरे जीवन की गिरावट की शुरुआत हुई. मैंने शायद जूनियर स्कूल में पढ़ते समय कहीं न कहीं अपने कामुक विचारों के आवेश में रहना और पाप करना शुरू कर दिया। जब मैं कॉलेज में था, तब तक मैं पूरी तरह से लड़कियों को पटानेवाला बन चुका था। आख़िरकार जब तक मैं अपने सपनों की रानी से मिला, तब तक सही और नैतिक कार्य को कर पाने लायक व्यक्ति नहीं रह गया । मेरे जैसा कोई व्यक्ति कैसे वफादार हो सकता है? लेकिन इतना ही नहीं है। कुछ समय के लिए, मैंने मिस्सा बलिदान में जाने और अच्छे कार्य करने की कोशिश की। मैं नियमित रूप से पाप स्वीकार संस्कार के लिए जाता था और अच्छे लोगों के क्लबों और समितियों में शामिल होता था, लेकिन मैं हमेशा अपने पुराने पापों का थोड़ा सा हिस्सा अपने पास रखता था। यह ऐसा नहीं है कि मैं इसी तरह काम करना चाहता था, लेकिन मैं उन पापों से इतना जुड़ा हुआ था, और उन आदतों को मैं त्यागने से डरता था। वक्त बीतता गया, और मैंने धीरे-धीरे मिस्सा बलिदान में जाना बंद कर दिया। मेरे पुराने पापी तरीके प्रकट होने लगे और वे पाप मेरे जीवन में अधिक हावी होने लगे। समय तेज़ी से आगे बढ़ा, और जैसे ही मैंने सावधानियों, पाबंदियों और आत्मसंयम को अलविदा कह दिया, भोग विलास की खुशियाँ मेरे चारों ओर घूमने लगीं। मैं जीवन के शिखर पर था। इन सबके अलावा, मैं बहुत सफल रहा और कई लोगों ने मेरी प्रशंसा की। फिर यह सब ध्वस्त हो कर नीचे गिरने लगा। मैंने कुछ भयानक विकल्प चुने जिसके कारण मुझे 30 साल की जेल की सज़ा काटनी पड़ी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मैंने उन लोगों को जीवन भर दर्द सहते हुए पीछे छोड़ दिया जो मुझसे प्यार करते थे और मेरी देखभाल करते थे। आप देखिए, जिस पापपूर्ण अवस्था में आप हैं, उससे भी आगे जाने के लिए आपको मनाने का एक तरीका पाप के पास है, ताकि जैसे आप थे उसकी तुलना में आप और अधिक भ्रष्ट बन जाएँ। आपका नैतिक आत्म संयम भ्रमित हो जाता है। बुरी चीज़ें अधिक रोमांचक लगती हैं, और पुराने पाप अब नए रूपों में हावी रहते हैं। इससे पहले कि आप इसे जानें, आप ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जिसे आप अपने आप को पहचानते भी नहीं हैं। तेजी से आगे बढ़ते हुए वर्त्तमान में ... मैं 11x9 फ़ुट की एक कोठरी में रहता हूँ, और दिन के बाईस घंटे उसमें बंद होकर बिताता हूँ। मेरी चारों ओर अराजकता है। मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि मेरा जीवन इस तरह बिगड़ जाएगा। लेकिन, मैंने ईश्वर को इन दीवारों के भीतर पाया। मैंने पिछले कुछ साल यहां जेल में प्रार्थना करते हुए और अपने लिए जिस मदद की ज़रुरत है, उसे ढूंढते हुए बिताए हैं। मैं पवित्रशास्त्र का अध्ययन कर रहा हूं और बहुत सारी कक्षाओं में भाग ले रहा हूं। मैं ईश्वर की दया और शांति का संदेश, जो मेरी बात को सुनते हैं, उन सभी कैदियों के साथ भी साझा कर रहा हूं। इससे पहले कि मैं अंतत: ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाऊं, अत्यधिक जागरण की मेरी एक बुलाहट थी, लेकिन अब जब मैंने उस बुलाहट को पहचान कर उसे स्वीकारा है, तब मेरा जीवन पूरी तरह से बदल गया है। मैं हर सुबह उठकर जीवित रहने के लिए आभार प्रकट करता हूं। कारावास के बावजूद मुझे मिलने वाली अपार आशीर्वाद की वर्षा के लिए मैं हर दिन शुक्रगुज़ार हूं। जीवन में पहली बार मुझे अपनी आत्मा में शांति का अनुभव हुआ। मुझे अपनी आध्यात्मिक स्वतंत्रता पाने के लिए अपनी शारीरिक स्वतंत्रता खोनी पड़ी। ईश्वर की शांति को खोजने और स्वीकार करने के लिए आपको जेल जाने की ज़रूरत नहीं है। आप जहां कहीं भी हों, वह आपसे मिलेगा, लेकिन मैं आपको चेतावनी दूं - यदि आप उससे कुछ भी छिपाएंगे, तो आप जेल में मेरे पड़ोसी बन जायेंगे। यदि आप इस कहानी में खुद को पहचानते हैं, तो कृपया पेशेवर मदद और मार्गदर्शन लेने के लिए इंतजार न करें, शुरुआत अपने स्थानीय पल्ली पुरोहित से करें, लेकिन उन्हीं तक सीमित न रहें, किसी भी अच्छे व्यक्ति से मदद लें। यह स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है कि आपकी कोई समस्या है, और सहायता प्राप्त करने के लिए अभी से बेहतर कोई समय नहीं है। यदि आप जेल में हैं और आप इसे पढ़ रहे हैं, तो मैं चाहता हूं कि आप जान लें कि आपके लिए अभी भी देर नहीं हुई है। ईश्वर आपसे प्यार करता है। आपने जो कुछ भी किया है, वह उसे माफ कर सकता है। हम सभी लोग जो अपने दर्द और टूटेपन के साथ येशु मसीह के पास आते हैं, हम सब को क्षमा प्रदान करने के लिए उन्होंने अपना बहुमूल्य रक्त बहाया। यह पहचानते हुए कि हम उसके बिना दुर्बल हैं, हम शुरुआत कर सकते हैं। चुंगी लेने वाले के शब्दों में हम उसे पुकारें: "ईश्वर, मुझ पापी पर दया कर" (लूकस 18:13)। मैं आपको यह याद दिलाते हुए विदा लेता हूँ: "मनुष्य को इससे क्या लाभ, यदि वह सारा संसार प्राप्त कर ले, लेकिन अपना जीवन ही गंवा दे?" (मत्ती 16:26)
By: Jon Blanco
Moreजीवन की घुमावदार यात्रा में, यह जानकर दिलचस्प लगता है कि, आपके जीवन में कुछ अंधे मोड़ भी हैं जिन पर आपको ध्यान देना चाहिए! हम जानते हैं कि कार से यात्रा करते हुए अंधे मोड़ों की जांच करना कितना महत्वपूर्ण है, खासकर लेन बदलने, वापस मुड़ने या नए मार्ग पर मोड़ने से पहले। दुर्भाग्य से, हम कभी-कभी मुश्किलों से सीखते हैं। हाल ही में, मैं इस धारणा से प्रभावित हुई हूं कि हम सभी में शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टिहीनता होती है। जब येशु ने कहा, ""मैं लोगों के पृथक्करण का निमित्त बनकर संसार में आया हूं, जिससे जो अंधे हैं, वे देखने लगें और जो देखते हैं वे अंधे हो जाएं", तब येशु ने हमें इस दृष्टिहीनता से सावधान रहना सिखाया। जो फरीसी उनके साथ थे, वे यह सुनकर बोले, “क्या? हम भी अंधे हैं?” येशु ने उनसे कहा, “यदि तुम लोग अन्धे होते, तो तुम्हें पाप नहीं लगता, परन्तु तुम तो कहते हो कि हम देखते हैं; इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है” (योहन 9:39-41)। येशु यहाँ हमें क्या बता रहे हैं? हमें बहुत सावधान रहने की ज़रूरत है कि हम येशु के चरणों में बैठे रहें, उनके निर्देशों पर ध्यान दें, उनसे सीखें और उनके द्वारा दिए गए सुधार के निर्देशों को खुले मन से स्वीकार करें। जैसे ही हम सोचते हैं कि हम मुक्ति के मार्ग पर 'आ गए हैं' या हमने 'इस मसीही जीवनशैली को अपना लिया है', हम खतरे के क्षेत्र में हैं। ईश्वर की अनंत प्रेमपूर्ण बुद्धि की तुलना में हमारे सबसे बुद्धिमान विचार, महान बलिदान और सबसे गहरा प्यार, सिर्फ हवा के बराबर है। क्योंकि हम केवल थोडा ही देखते हैं; हम पूरी तस्वीर, या ईश्वर की महायोजना को नहीं देखते हैं। केवल ईश्वर ही ऐसा करता है। संत पौलुस इसे इस प्रकार कहते हैं, ''अभी तो हमें आइने में धुंधला सा दिखाई देता है, परन्तु तब हम आमने सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान अपूर्ण है; परन्तु तब मैं उसी तरह पूर्ण रूप से जान जाऊंगा, जिस तरह ईश्वर मुझे जान गया है।” (1 कुरिन्थी 13:12)। मुश्किलों से मेरी सीख अपने जीवन को पीछे मुड़कर देखने पर, मुझे याद आता है कि मैं बार बार अपने घमंड, पापों, कमियों, निर्णयों, धारणाओं, पूर्वाग्रहों और भय तथा विश्वास की कमी के बारे में पूरी तरह अनजान थी। शुक्र है, ईश्वर ने कुछ लोगों और कुछ घटनाओं को मेरे जीवन में ला दिया, जिससे आध्यात्मिक अंधेपन के कुछ पहलुओं को उजागर करने में मुझे मदद मिली। मैं मुश्किलों से सीखना चाहती हूँ। वर्षों तक, मैं इस बात को नहीं समझ पायी कि एक महिला मेरा क्यों किनारा कर के निकल जाती थी। इससे बहुत तनाव पैदा हो गया, क्योंकि हम खेलने और प्रार्थना करने वाले एक ही समूह में थे। आख़िरकार, मुझे यह पूछने का साहस और विनम्रता मिली कि मैंने उसे कैसे नाराज किया था। उत्तर दु:खदायी था, और यद्यपि हम कभी दोस्त नहीं बने, कम से कम अब मुझे अपने एक अंधे मोड़ के बारे में पता चला जो पहले रडार के नीचे था। लोगों को हमारी आँखों से धरन हटाने की अनुमति देने के लिए एक विनम्र हृदय की आवश्यकता होती है। और हमारी परेशानी यह है कि हम अक्सर पर्याप्त विनम्र नहीं होते हैं। मेरे जीवन में ऐसे कई उदाहरण हैं जब मैं इस बात से अनजान थी कि मेरी क्षमा न करने की प्रवृत्ति, अहंकार, आत्म संयम की कमी, पाप के प्रति समझौता या आभार भावना की कमी के कारण मुझे कितना नुकसान हुआ है। मैं यहां सार्वजनिक रूप से पाप स्वीकार नहीं कर रही हूँ, लेकिन यह गवाही देना चाहती हूँ कि ईश्वर धीरे-धीरे मुझमें आध्यात्मिक अंधेपन की परत उतार रहा है। हालाँकि यह दर्दनाक प्रक्रिया थी, लेकिन मुझे अधिक आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। हर दिन सीखने के लिए और भी बहुत कुछ है मेरी एक बुद्धिमान मित्र ने एक बार मुझसे कहा था कि वह प्रत्येक वर्ष चालीसा या तपस्या काल का इंतजार करती है। मैं कभी भी उसकी जैसी पवित्र व्यक्ति नहीं थी, इसलिए जब उसने ऐसा कहा तो मेरे कान खड़े हो गए। उसने मुझसे कहा कि चालीसा में किस चीज़ का परित्याग करना है, उस पर निर्णय वह स्वयं नहीं लेती है। यह काम वह अपने पति पर छोड़ देती है। मैं उस अवधारणा से बिल्कुल अभिभूत थी । क्या होगा अगर हम अपने जीवनसाथी या किसी भरोसेमंद साथी मसीही के पास जाएं और उनसे पूछें कि हम आध्यात्मिक रूप से कैसे बढ़ सकते हैं या पाप स्वीकार में हमें कौन सी पापपूर्ण आदत के बारे में बताना चाहिए? कई बार, हमारा मूल पाप अधिक स्पष्ट मुद्दों के नीचे दबा रहता है। उदाहरण के लिए, क्षमा न करने के कारण क्रोध हो सकता है, आत्मसंयम की कमी के कारण चिंता उत्पन्न हो सकती है, और अक्सर पूर्णतावाद के कारण घमंड उत्पन्न हो जाता है। ईश्वर की भलाई में विश्वास की कमी से अधिकांश पाप उत्पन्न होते हैं। आत्मिक निर्देशन की शक्ति आपके मूल पाप को चिन्हित करने में सक्षम हो जाने से आपके अन्दर एक वास्तविक शक्ति उत्पन्न होती है। यदि आप इसे पहचान सकते हैं, तो आप पश्चाताप करके इससे मुक्त हो सकते हैं। हालाँकि, मूल पाप पेचीदा हैं; वे नीचे दबे रहना पसंद करते हैं। पाप स्वीकार सुनने वाला कोई अच्छा नियमित व्यक्ति या आध्यात्मिक निर्देशक बड़े मददगार साबित होंगे। संत फॉस्टिना ने लिखा, "ओह, अगर मेरे पास शुरू से ही कोई आध्यात्मिक निर्देशक होते, तो मैं ईश्वर की इतनी सारी कृपा बर्बाद नहीं करती ।" जवाबदेही के लिए हम साझेदारों की तलाश कर सकते हैं। ईश्वर हमें स्वयं को बेहतर ढंग से 'देखने' में मदद करने के लिए अक्सर अन्य लोगों का उपयोग करता है। परिवार के सदस्य, विशेष रूप से वे जो सक्रिय रूप से येशु मसीह का अनुसरण कर रहे हैं, वे अंधे मोड़ों पर महान जांचकर्ता बन सकते हैं, क्योंकि वे हमें हमें सबसे अच्छे और सबसे बुरे रूप में देखते हैं। आइए, हम ईश्वर से यह प्रार्थना करना न भूलें कि वह हमारी जीवन यात्रा के अंधे मोड़ों को हमारे सामने प्रकट कर दे। जिस पाप के प्रति हम बेखबर हैं या अनदेखा करते हैं, यदि हम पवित्र आत्मा से उस पाप को हमें प्रकट करने केलिए कहें और पाप स्वीकार की तैयारी कर लें तो कैसा होगा ? मैं विशेष रूप से आप को सलाह देना चाहती हूँ कि आप बड़े निर्णय लेने से पहले बुद्धिमान मसीहियों से दिशा निर्देश प्राप्त कर ले। जिस तरह जब हम बाहर निकलने या किसी वाहन में दिशा बदलने की योजना बना रहे होते हैं तो अंधे मोड़ की जांच करना अधिक महत्वपूर्ण होता है, उसी तरह जब हम अपने पेशा, जीवन-यात्रा के विकल्पों और अन्य प्रमुख जीवन निर्णयों पर विचार कर रहे होते हैं तो हमें अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। स्वर्गीय पिता, हमें सुनने वाला विनम्र हृदय दे ताकि तू हमें बेहतर जीवन के लिए बदल सके। हमें तेरे प्रति और हमारे पड़ोसियों के प्रति प्यार को बढ़ाने के लिए अपनी दृष्टि प्रदान कर।
By: Denise Jasek
Moreबाइबिल की एक पंक्ति ने किस तरह एक हिंदू लड़की के जीवन और उसकी परिवर्तनकारी यात्रा को बदल दिया, इस सच्ची कहानी को अंत तक पढ़ें ... मेरा जन्म और मेरा पालन-पोषण भारत में एक हिंदू परिवार में हुआ था। एक धार्मिक परिवार में पली-बढ़ी होने के कारण मुझे हमेशा प्रार्थना में समय बिताने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। बचपन में, मैं कभी भी माथे पर बिंदी लगाए बिना स्कूल नहीं गयी (बिंदी एक निशान है, जो आम तौर पर एक हिंदू के माथे पर लगायी जाती है, जो किसी व्यक्ति के सांप्रदायिक जुड़ाव का संकेत देती है)। मैं हिंदू देवी-देवताओं में विश्वास करती थी, लेकिन यह सिर्फ लेन-देन वाला रिश्ता था। उनसे मेरी प्रार्थनाएँ स्कूल की परीक्षाओं से एक सप्ताह पहले तक ही सीमित थीं। विडंबना यह है कि मैं एक कैथलिक स्कूल में जाती थी जहां मुझे ईसाई धर्म से परिचित कराया गया, लेकिन मैंने हमेशा ईसाई धर्म को इस रूप में देखा कि इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। उस कैथलिक स्कूल में बारह साल बिताने के बावजूद, मुझे कभी समझ नहीं आया कि येशु वास्तव में कौन थे और न ही यह कि उन्होंने मेरे लिए क्या किया। मैंने अच्छे अंकों के साथ हाई स्कूल पास किया। मुझे बेहद खुशी हुई कि हिंदू देवी-देवताओं से की गई मेरी प्रार्थनाओं का फल मुझे मिल गया है। मैं शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में दाखिला लेने में सफल रही। विरोधाभासी रूप से, यह येशु समाज के पुरोहितों द्वारा संचालित एक कैथलिक कॉलेज था। मैं विस्मित रह गयी कॉलेज के अपने पहले वर्ष के दौरान, मैंने धर्म पर आधारित एक अनिवार्य कक्षा में भाग लिया, जहाँ लोगों ने अपने विश्वास के बारे में बात की। मैंने देखा कि जहां ईसाई छात्रों के पास येशु के बारे में कहने के लिए बहुत कुछ था, वहीं मेरे जैसे हिंदू जब अपने विश्वास को स्वीकार करने की बात आती थी तो चुप रहते थे। मैं भगवद गीता (भगवद गीता हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है) के बारे में कुछ नहीं जानती थी। मुझे बस इतना पता था कि अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए भगवान से कैसे प्रार्थना करनी है। मुझे खुद को हिंदू कहने में शर्मिंदगी महसूस होती थी।' तभी एक ईसाई प्रोफेसर ने ‘द पैशन ऑफ क्राइस्ट’ फिल्म से येशु के बारे में एक वीडियो चलाया। मैंने देखा कि उन्हें कितनी बेरहमी से कोड़े मारे गए थे और जब उन्हें सूली पर चढ़ाया गया तो उन्होंने कितनी पीड़ा सही। मेरी आंखों में आंसू थे. सूली पर चढ़ने का दृश्य मैं बमुश्किल देख सकी। दु:ख की बात है कि तब भी, मुझे वास्तविक कारण नहीं पता था कि कलवारी पर क्रूस पे उनकी मृत्यु क्यों हुई थी। लेकिन उस वीडियो को देखने के बाद, मुझे येशु के बारे में और जानने में दिलचस्पी होने लगी। मैंने बाइबिल की खोज में सार्वजनिक पुस्तकालयों का दौरा किया लेकिन मेरी किस्मत अच्छी नहीं थी। फिर मैंने इंटरनेट पर उपलब्ध बाइबिल का पीडीएफ संस्करण पढ़ने का फैसला किया। मैंने उत्पत्ति ग्रन्थ की पुस्तक से शुरुआत की लेकिन वहां येशु नहीं मिले। फिर, मैंने बेतरतीब ढंग से गूगल पर बाइबिल के वाक्यांश खोजे। संत मत्ती के अनुसार सुसमाचार के एक वाक्यांश ने मुझे प्रभावित किया: “जब तुम्हें अपनी ही आँख की धरन का पता नहीं तो तुम अपने भाई की आँख का तिनका क्यों देखते हो?” (मत्ती 7:3) यह वचन हमें दूसरों का न्याय न करने की शिक्षा देता है। कुछ सप्ताह बाद, हमारे पास एक अलग प्रोफेसर द्वारा पढ़ायी जाने वाली एक और धर्म कक्षा थी। उन्होंने हममें से प्रत्येक से अपने संबंधित धर्मों के बारे में अपनी मान्यताओं और विचारों को साझा करने के लिए कहा। अचानक, मैंने अपना हाथ उठाया और संत मत्ती से लिए उपरोक्त वाक्यांश को समझाया - एक शर्मीली हिंदू लड़की एक ईसाई बाइबिल से लिए गए वाक्यांश के बारे में अपना विचार साझा कर रही थी! मेरा माननाहै कि मेरी निर्भीकता पवित्र आत्मा का कार्य था। प्रोफेसर को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मैं एक हिंदू हूं। उन्हें बाइबिल पर मेरा व्याख्यान पसंद आया और उन्होंने अधिक लोगों को अपने धर्म के बारे में बोलने के लिए प्रोत्साहित किया। यह घटना कैथलिक धर्म में मेरे परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। सत्य के क्षण इस दौरान, जब मैं येशु और ईसाई धर्म को जान रही थी, तो मैं अक्सर खुद से पूछती थी, "मुझे गिरजाघर में हमेशा इतनी शांति क्यों महसूस होती है?" हिंदू मंदिरों में मेरा अनुभव बिल्कुल अलग था। वहां दुकानदारों की चीख-पुकार, मंदिर की घंटियों की आवाज, मंत्रोच्चार करते पुजारियों की आवाज़ और बड़ी भीड़ के बीच से देवताओं का चेहरा देखने के लिए लोगों की होड़, आदि की वजह से मैं खुद को विचलित अनुभव करती थी। गिरजाघर में मुझे जो शांति मिली, वह बिल्कुल विपरीत थी। कोविड लॉकडाउन के दौरान एक दिन मेरी नजर यूट्यूब पर एक वीडियो पर पड़ी, जिसमें एक पुरोहित ने स्पष्ट तरीके से समझाया कि हमने अपने जीवन में चाहे कितने भी पाप किए हों, हम ईश्वर के साथ फिर से जुड़ सकते हैं क्योंकि उनके पुत्र ने इसकी कीमत चुकाई है। ईश्वर के पुत्र येशु मसीह मानव बन गये, हमारे बीच रहे, हमसे प्यार किया, हमें ठीक किया, पापों को क्षमा किया, क्रूस पर मरे और मृतकों में से फिर से जी उठे, और अब समय के अंत तक हमारे साथ रहते हैं। सुसमाचार को जानने के बाद मेरा जीवन बदल गया। मुझे पता चला कि येशु मुझे जानते हैं और एक हिंदू होने के बावजूद वे मुझसे प्यार करेंगे। पहले, मैंने येशु को उन कई देवताओं में से एक समझा था जिनकी लोग पूजा करते थे, लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि सच्चा ईश्वर कौन है। जिन हिंदू देवताओं को मैं जानती थी उनमें से किसी ने भी मेरे पापों के कारण दुःख नहीं सहा और अपने प्राण नहीं दिए। मेरा हृदय येशु के प्रति प्रेम से भर गया और उस दिन से मैं स्वयं को येशु मसीह का अनुयायी मानने लगी। खुशी के आंसू पवित्र आत्मा ने मुझे येशु के बारे में और अधिक जानने के लिए मार्गदर्शन किया। मैंने एक बाइबिल खरीदी और उसे पढ़ना शुरू कर दिया। मैं येशु के प्रति बड़े सम्मान, आदर और प्रेम से भर गयी। पहले, ईश्वर के साथ मेरा रिश्ता लेन-देन का था। ईश्वर मुझसे वैसे ही प्यार करता है जैसे मैं हूं, यह सच्चाई मेरे लिए एक अनजान अवधारणा थी। मुझे पता चला कि येशु हर दिन मुझसे बात करना चाहते हैं और मेरे साथ व्यक्तिगत संबंध निभाना चाहते हैं। मेरे पापी होने के बावजूद वे मुझसे प्रेम करते हैं। वे मेरे सभी पापों को माफ करने और मुझे प्यार से अपनी बाहों में स्वीकार करने को तैयार हैं। मैं उनके प्यार के लायक नहीं थी, लेकिन फिर भी वे मुझसे प्यार करते थे। आज, येशु के साथ मेरा व्यक्तिगत संबंध मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है। जब मैं उनके साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित करने की इस यात्रा पर थी, तो मुझे एक सपना आया जिसमें मैंने भूरा-लाल लबादा पहने एक आदमी को मेरे सामने सड़क पर चलते हुए देखा। सड़क दोनों ओर राक्षसों से घिरी हुई थी। राक्षस मुझे नुकसान पहुंचाना चाहते थे और भयानक आवाजें निकाल रहे थे। हालाँकि, जो आदमी मेरे आगे चल रहा था, उसकी वजह से इन प्राणियों ने अपनी शक्ति खोनी शुरू कर दी। चूँकि वह इतना शक्तिशाली था, वे मुझे डरा नहीं सकते थे या मुझे चोट नहीं पहुँचा सकते थे। मैं उसकी उपस्थिति में संरक्षित और सुरक्षित महसूस कर रही थी। मुझे समझ नहीं आया कि सपना किस चीज़ के बारे में था। लेकिन बहुत दिनों बाद, मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की मेरी परिचित एक साध्वी ने मुझे सपने की व्याख्या करने में मदद की। मेरे आगे चलने वाला व्यक्ति येशु था। वह अपने प्रति मेरे विश्वास को मजबूत करने और मुझे शैतान से बचाने के लिए मेरे पास आये। यह महसूस करने के बाद कि सूर्य, चंद्रमा और सितारों का निर्माता मुझे जानता है और मेरी परवाह करता है, मैं खुशी के आँसू बहाती हुई रो पड़ी। मुझे कैथलिक धर्म में परिवर्तित होने में दो साल लग गए, लेकिन जब ईश्वर कोई दरवाजा खोलता है, तो कोई भी व्यक्ति उसे बंद नहीं कर सकता। पवित्र आत्मा ने मेरे कैथलिक धर्म के रास्ते पर पुरुषों और महिलाओं के वेश में स्वर्गदूतों को रखा। 25 जून, 2022 को मैंने बपतिस्मा, परम प्रसाद और दृढ़ीकरण के संस्कार ग्रहण किये। आज, मैं लोगों को बताती हूँ कि येशु ने क्रूस पर उन सब के लिए क्या किया। मैं जिस भी व्यक्ति से मिलती हूँ उसमें मसीह को देखती हूँ। मैं जहां भी संभव हो सुसमाचार का आनंद साझा करना जारी रखना चाहती हूं।
By: Sarina Christina Pradhan
Moreसंत जनुवारियुस (या संत गेनारो, जैसा कि वे अपने देश इटली में जाने जाते हैं) का जन्म दूसरी शताब्दी में नेपल्स में एक धनी और कुलीन परिवार में हुआ था। उन्हें पंद्रह वर्ष की उल्लेखनीय आयु में पुरोहित नियुक्त किया गया था। बीस वर्ष की आयु में, वे नेपल्स के बिशप बने थे। सम्राट डायोक्लेशियन द्वारा शुरू किए गए मसीही उत्पीड़न के दौरान, जनुवारियुस ने अपने पूर्व सहपाठी सोसियुस सहित कई ईसाइयों को छुपाया, बाद में सोसियुस संत बन गए। सोसियुस को एक ईसाई के रूप में उजागर किया गया और उन्हें कैद कर लिया गया। जब जनुवारियुस सोसियुस से जेल में मिलने गए तो उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। कहानियाँ अलग-अलग हैं कि क्या उन्हें और उनके साथी ईसाइयों को जंगली जानवरों के सामने फेंक दिया गया था (जिन्होंने उन पर हमला करने से इनकार कर दिया था), या उन्हें भट्टी में फेंक दिया गया था जहाँ से वे सुरक्षित निकल आए। लेकिन सभी कहानियाँ इस बात से सहमत हैं कि अंततः जनुवारियुस का सिर वर्ष 305 ई. के आसपास काट दिया गया था और यहीं से कहानी बहुत दिलचस्प मोड़ लेती है। धर्मपरायण अनुयायियों ने उनका कुछ रक्त कांच की शीशियों में इकट्ठा किया और इसे पवित्र अवशेष के रूप में संरक्षित किया। वह रक्त, जो आज तक सुरक्षित रखा गया है, उल्लेखनीय गुण प्रदर्शित करता है। जमा हुआ रक्त द्रवित हो जाने का बड़ा चमत्कार, सन 1389 से लेकर आज तक, प्रत्येक वर्ष तीन अवसरों पर होता आ रहा है। कांच की शीशियों में संग्रहित, बोतल के एक तरफ चिपका हुआ सूखा गहरा लाल रक्त चमत्कारिक ढंग से तरल में बदल जाता है जो बोतल को एक तरफ से दूसरी तरफ भर देता है। यह चमत्कार संत जनुवारियुस के पर्व के दिन, 19 सितंबर के अलावा, उस दिन भी होता है जो 1631 में माउंट वेसुवियस के ज्वालामुखी विस्फोट के प्रभाव से नेपल्स को बचाए जाने की सालगिरह है, जब उनके पवित्र अवशेषों को नेपल्स ले जाया गया था। ठोस रक्त कैसे तरल हो सकता है, इस पर कई वैज्ञानिक जांचों ने यह समझाने की कोशिश की है और उसमें असफल भी हुए। और इसमें किसी भी प्रकार की चालबाज़ी या बेईमानी नहीं सम्मिलित है। "चमत्कार हुआ, महान चमत्कार! " ऐसे हर्षित नारे नेपल्स महागिरजाघर में गूंजने लगते हैं जब संत के रक्त के अवशेष को रखे हुए मंजूषा को श्रद्धालु चूमते हैं। इस उल्लेखनीय संत के रूप में और चमत्कार के रूप में ईश्वर ने कलीसिया को कितना अद्भुत उपहार दिया है, जो हर साल हमें याद दिलाता है कि कैसे जनुवारियुस और कई अन्य लोगों ने अपने प्रभु के लिए अपना खून बहाया। जैसा कि तेर्तुलियन ने कहा है, "शहीदों का खून कलीसिया का बीज है।"
By: Graziano Marcheschi
Moreएक जहरीली मकड़ी के काटने के बाद अर्ध-लकवाग्रस्त मारिसाना अरम्बासिक को लगा कि उसका जीवन समाप्त हो रहा है। वह किसी चमत्कार के इंतज़ार में रोजरी माला का सहारा ली हुई थी| मैं बहुत लंबे समय से पर्थ, ऑस्ट्रेलिया में रह रही हूं, लेकिन मैं मूल रूप से क्रोएशिया की हूं। जब मैं आठ साल की थी तब मैंने एक चमत्कार देखा। माता मरियम की शक्तिशाली मध्यस्थता से अपंग पैरों वाला एक 44 वर्षीय व्यक्ति ठीक हो गया। हम में से कई लोगों ने यह चमत्कार देखा। मुझे अभी भी याद है कि उस आदमी के ठीक होने के बाद मैं उनके पास दौड़कर गयी थी और आश्चर्यचकित होकर उनके पैर छू रही थी। इस अनुभव के बावजूद, जब मैं बड़ी हुई तो मैं परमेश्वर से दूर हो गयी। मुझे विश्वास था कि यह दुनिया और यहाँ की सांसारिकता मेरी सीप है। मुझे केवल अपने जीवन का आनंद लेने की परवाह थी। मेरी माँ चिंतित थी क्योंकि मैं गलत तरीके से जीवन का आनंद ले रही थी। वह नियमित रूप से मेरे लिए प्रार्थना करती थी। उन्होंने माता मरियम से मेरी लिए प्रार्थना की। हालाँकि मेरी माँ ने 15 वर्षों तक उत्साहपूर्वक प्रार्थना की, फिर भी मेरे व्यवहार में कोई सुधार नहीं हुआ। जब मेरी माँ ने मेरे बारे में स्थानीय पुरोहित को बताया, तो उन्होंने कहा, "वह इस समय पाप में जी रही है। एक बार जब वह पाप करना बंद कर देगी, तो परमेश्वर उसे उसके घुटनों पर लाएगा, पवित्र मिस्सा के माध्यम से सभी अनुग्रह बरसाए जाएंगे, और चमत्कार होंगे |" वह विषैला दंश जब मैं 33 वर्ष की हुई तो यह भविष्यवाणी सच हो गई। मैं अपने बच्चे का पालन पोषण अकेली कर रही थी। एक अकेली माँ के रूप में, मैं जीवन के सबसे निचले तह पर पहुंच चुकी थी। धीरे-धीरे, मैं वापस परमेश्वर की ओर मुड़ गयी। मैंने कठिन समय में माता मरियम की सहायता का अनुभव किया। एक दिन, एक सफेद पूंछ वाली मकड़ी ने मेरे बाएं हाथ पर काट लिया। यह ऑस्ट्रेलिया में ख़ास पायी जानेवाली जहरीली मकड़ी थी। हालाँकि मेरा स्वास्थ्य अच्छा था, फिर भी मेरा शरीर इस मकड़ी के काटने से उबर नहीं सका। वह दर्द भयानक था| मेरे शरीर का बायाँ हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था। मैं अपनी बायीं आँख से नहीं देख सकती थी। मेरी छाती, मेरा दिल और मेरे सभी अंगों में मैं ऐसे महसूस कर रही थी, जैसे उनमें ऐंठन हो रही हो। मैंने विशेषज्ञों से मदद मांगी और उनकी बताई दवाएं लीं, लेकिन मेरी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। अपनी हताशा के समय में, मैंने अपनी रोज़री माला उठाई और ऐसी प्रार्थना की जैसे पहले कभी नहीं की थी। सबसे पहले, मैं प्रतिदिन घुटनों के बल बैठकर माला विनती की प्रार्थना करती थी। जल्द ही मेरी हालत और अधिक खराब हो गई और मैं अब घुटनों के बल नहीं बैठ पा रही थी। मैं ने बिस्तर पकड़ लिया था| मेरे पूरे चेहरे पर छाले पड़ गये थे और लोग मेरी ओर देखने से भी कतराते थे। इससे मेरा दर्द और बढ़ गया. मेरा वजन भारी मात्रा में कम होने लगा। एकमात्र चीज़ जो मैं खा सकती थी वह सेब था। अगर मैं कुछ और चीज़ खाती थी तो मेरे शरीर में ऐंठन होने लगती। मैं एक बार में केवल 15-20 मिनट ही सो पाती थी, और ऐंठन के साथ जाग जाती थी। मेरे स्वास्थ्य का इस तरह बिगड़ना मेरे बेटे के लिए कठिन था, जो उस समय 15 वर्ष का था। उसने वीडियो गेम खेलकर इस मुसीबत से अपने आप को दूर कर लिया। हालाँकि मैं अपने माता-पिता और भाई-बहनों के संपर्क में थी, लेकिन वे सभी विदेश में रहते थे। जब मैंने उन्हें अपनी स्थिति के बारे में बताया, तो मेरे माता-पिता तुरंत मेडजुगोरे गए, जहां वे एक पुरोहित से मिले जिन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की। उस समय, मैं अपनी रसोई के फर्श पर एक गद्दे पर लेटी हुई थी, क्योंकि एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। अचानक, उठने और चलने में मैं सक्षम हो गई, हालाँकि मुझे अभी भी कुछ दर्द हो रहा था। मैंने अपनी बहन को फोन किया और तब पता चला कि एक पुरोहित ने मेरे ठीक होने के लिए माता मरियम की मध्यस्थता के लिए प्रार्थना की थी। मैंने सोचना बंद नहीं किया। मैंने तुरंत मेडजुगोरे जाने के लिए टिकट खरीदे। मैं चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह के विरुद्ध जा रही थी। मेरी रोग-प्रतिरोधक-क्षमता कम थी और मेरा शरीर कमजोर था। फिर भी, मैंने जाने का फैसला किया। पहाड़ी पर जब मैं क्रोएशिया पहुंची, तो मेरी बहन ने मुझसे हवाई अड्डे में मुलाकात की और हम उसी शाम मेडजुगोरे पहुंचे। मैं उस पुरोहित से मिली जिसने मेरे माता-पिता के साथ प्रार्थना की थी। उन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की और मुझे अगले दिन उस पहाड़ी पर चढ़ने के लिए कहा जिस पर माँ मरियम ने दर्शन दिए थे। उस समय भी, मैं सेब के अलावा कुछ भी नहीं खा पा रही थी और अगर खाती तो मेरा गला बंद हो जाता। उस समय भी मेरे पूरे शरीर पर छाले थे। फिर भी जहां माता मरियम प्रकट हुई थीं, उस पहाड़ी पर चढ़ने के लिए मैं अपने आप को रोक नहीं सकी। मेरी बहन मेरे साथ आना चाहती थी, लेकिन मैं अकेली जाना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि कोई मेरा दुःख देखे। जब मैं ऊपर पहुंची तो बर्फबारी हो रही थी। वहां ज्यादा लोग नहीं थे। मैंने माता मरियम के साथ एक खास पल बिताया। मुझे लगा कि वह मेरी प्रार्थना सुन रही है। मैंने माँ से अपने लिए जीवन की दूसरी पारी माँगी और अपने बेटे के साथ अधिक समय बिताने का अवसर मांगा। मैंने प्रार्थना की, "येशु, मुझ पर दया कर।" जैसे ही मैं पहाड़ी से नीचे आयी, मैं ‘हे हमारे पिता’ की प्रार्थना कर रही थी। जैसे ही मैंने 'हमारी प्रतिदिन की रोटी आज हमें दे' कहा तो मुझे दुख हुआ, क्योंकि मैं रोटी नहीं खा सकती थी। मैं परम प्रसाद की रोटी प्राप्त करने के लिए बहुत उत्सुक थी, लेकिन मैं उसे नहीं खा सकती थी। मैंने प्रार्थना की कि मैं फिर से रोटी खा सकूं। उस दिन मैंने कुछ खाने का निश्चय किया और खाना खा लिया। खाने के बाद मेरे शरीर में किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं थी| उसके बाद, मैं लगातार दो घंटे तक सोयी। दर्द और मेरे शरीर में बीमारी के अन्य लक्षण कम हो चुके थे। ऐसा लगा मानो धरती पर स्वर्ग हो। अगले दिन मैं वापस गयी और ‘येशु की पहाड़ी’ पर चढ़ गयी जिसकी चोटी पर एक बड़ा क्रूस है। वहां मुझे अत्यधिक शांति का अनुभव हुआ। मैंने परमेश्वर से मेरे पापों को दिखाने के लिए कहा। जैसे-जैसे मैं चढ़ती गयी, परमेश्वर ने धीरे-धीरे उन पापों को प्रकट किया जिन्हें मैं भूल गयी थी। जैसे ही मैं पहाड़ी से नीचे उतरी, मैं पाप स्वीकार के लिए जाने को उत्सुक थी। मैं खुशी से भरी हुई थी। भले ही बीमारी से मुक्ति पाने में थोड़ा समय लगा, लेकिन अब मैं पूरी तरह ठीक हो गयी हूं। पीछे मुड़कर देखने पर मुझे एहसास होता है कि मेरे सभी कष्टों ने मुझे एक बेहतर इंसान बना दिया है। मैं अब अधिक दयालु और क्षमाशील हूं। जीवन में कष्ट और दुःख पीड़ा, किसी भी व्यक्ति को अकेलापन और हताशा का अनुभव करा सकता है। आपकी आर्थिक स्थिति, विवाह, पारिवारिक जीवन सहित सब कुछ बिखर सकता है। ऐसे समय में, आपको आशा रखने की ज़रूरत है। विश्वास आपको अज्ञात क्षेत्र में कदम रखने की ताकत देता है और तूफान के गुजर जाने तक अपने क्रूस को ढोते हुए, अपरिचित राह पर चलने की अनुमति देता है।
By: Marisana Arambasic
Moreमाँ मरियम की भक्ति अपने आप में एक लक्ष्य नहीं है ... यह एक पवित्र मार्ग है जो हमेशा मसीह की ओर जाता है मेरी माँ और नानी माँ मरियम और पवित्र हृदय के प्रति बड़ी श्रद्धा रखती थीं। जब हम बच्चे थे, उन दिनों हम अक्सर माँ मरियम से उन बहुत सी चीज़ों के लिए प्रार्थना करते थे, जिनकी हमें आवश्यकता होती है। जब हम किसी खोई हुई गुड़िया या चोरी हुई बाइक को खोजने की कोशिश कर रहे थे, तब भी हम माता मरियम की ओर मुड़ते थे। मेरे पिता भवन निर्माण क्षेत्र में काम करते थे। जब काम दुर्लभ था, जो अक्सर हुआ करता था, मेरी माँ ने मरियम से प्रार्थना की और अनिवार्य रूप से, थोड़े समय बाद, कोई न कोई ठेकेदार मेरे पिता के लिए काम की पेशकश करने घर आते थे। क्योंकि हम बच्चों को लगता था रोज़री बड़ी लम्बी प्रार्थना है, हम में से अधिकांश बच्चे जब भी 'रोज़री' शब्द सुनते थे, तो भाग कर छिप जाते थे। लेकिन हमारी माँ अंततः हमें ढूंढ लेती और हमें प्रार्थना करने के लिए साथ ले आती थी। दुर्भाग्य से, जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, बचपन के समय की तुलना में माता मरियम हमारे लिए कम महत्वपूर्ण हो गई। वापस मरियम की बाहों में सन 2006 में, सेंट पैट्रिक चर्च का एक दल एक आध्यात्मिक मिशन कार्यक्रम देने के लिए हमारी पल्ली में आया। उनके मिशन कार्य में प्रत्येक दिन सुबह में पवित्र मिस्सा और शाम को प्रवचन और गवाही शामिल थी। सप्ताह के अंत में, मैंने पाया कि मेरा हृदय बदलने लगा था। माता मरियम से प्रार्थना करने की बचपन की यादों की एक लहर मुझ पर छा गई, और मुझे याद आया कि माँ मरियम ने हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मैं माँ मरियम के साथ अपने बचपन के रिश्ते को फिर से हासिल करना चाहती थी। मिशन के अंतिम दिन, हमने एक अति सुंदर पवित्र मिस्सा में भाग लिया। बाद में, पल्ली के बच्चे जलती मोमबत्तियाँ लेकर माता मरियम के इर्द गिर्द इकट्ठे हो गए। हम वयस्क लोग उनके साथ जुड़ गए। जब हम मोमबत्तियाँ जला रहे थे और प्रार्थना कर रहे थे, तो बच्चों ने धन्य माँ के बारे में कई सवाल पूछे: वे जानना चाहते थे, "वह अब कहाँ हैं?" और "हम उससे कैसे बात कर सकते हैं?" उन्होंने आँखें बंद करके और हाथ जोड़कर, भावपूर्ण प्रार्थना की। उस समय मुझे अपने बचपन की भक्ति और धर्मपरायणता को फिर से प्राप्त करने की इच्छा महसूस हुई। मैंने माता मरियम से उसी तरह बात करना शुरू किया जैसे मैं बचपन में किया करती थी। हम वयस्क लोग कभी-कभी उसके सम्मुख निवेदन रखकर उस से प्रार्थना करने में संतुष्ट होते हैं, लेकिन उसके साथ बात करने या संवाद करने में नहीं। हम उससे उस तरह बात नहीं करते जैसे हम अपनी मां से करते हैं। पल्ली में उस आध्यात्मिक मिशन के दौरान, मैंने फिर से सीखा कि कैसे मैं माता मरियम के पास विश्राम पाऊँ और किस तरह मैं अपनी प्रार्थनाओं को मेरे मन के अन्दर से बाहर प्रवाहित करूँ। एक दिन कार में अपनी छोटी बेटी सारा के साथ यात्रा करते हुए, मैंने कहा कि मुझे माता मरियम से मिलना अच्छा लगेगा। उसने जवाब दिया कि यह "बहुत अच्छा" होगा। फिर उसने कहा, "रुको माँ, हम माता मरियम को बराबर देखते हैं। हम उसे हर दिन देखते हैं, लेकिन कोई भी उसे देखने या उससे बात करने का समय नहीं निकालता है।“ मैं उसकी टिप्पणी से इतना हैरान थी कि मेरी गाड़ी लगभग सड़क से बाहर चली गयी। सारा ने जो कहा वह मुझे तार्किक और विवेकपूर्ण बात लगी। जब मैंने इस बात को मुझे समझाने के लिए कहा, तो उस समय वह अपनी गुड़िया के साथ खेल में लौट चुकी थी। मुझे यकीन था कि उसकी टिप्पणी पवित्र आत्मा से प्रेरित थी। "तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपाकर, निरे बच्चों पर प्रकट किया है।" (मत्ती 11:25)। मरियम के हाथ पकड़े हुए बेशक, हमारी धन्य माँ के प्रति मेरी भक्ति में रोज़री माला विनती शामिल है। हालाँकि यह एक महत्वपूर्ण और सुंदर प्रार्थना है, कई वर्षों तक मुझे इस प्रार्थना को करने के लिए संघर्ष करना पडा, क्योंकि मैं अभी तक अपने बचपन की शिकायत से दूर नहीं हुई थी कि यह प्रार्थना बड़ी लंबी थी। लेकिन मैंने रोज़री माला के महत्व को तब पहचाना जब मैंने येशु के जीवन पर ध्यान देना शुरू किया। इससे पहले, रोज़री माला एक प्रार्थना थी जिसे पूरा करने के लिए मैं जल्दी जल्दी प्रार्थना बोलती थी। लेकिन जैसा कि मैंने येशु के जीवन पर विचार करना शुरू किया, वैसे वैसे माता मरियम ने मुझे सिखाया कि रोज़री माला हमें उसके दिल में गहराई तक ले जाती है। क्योंकि वह ईश्वर की माँ है और हमारी माँ भी, हम उस पर भरोसा कर सकते हैं कि वह हमारी उंगली पकड़कर हमें ले जाए और हमें येशु मसीह के साथ उस गहरी यात्रा में ले जाए जिसे केवल वही पूरी तरह से समझती है। जैसे-जैसे हम जीवन में आगे बढ़ते हैं, हम जिन कठिनाइयों का सामना करते हैं, वे हमें ईश्वर के प्रेम पर संदेह करने या माता मरियम से दूर करने का कारण बन सकती हैं। मेरी भाभी की कैंसर से मृत्यु हो गई जब वह केवल बयालीस वर्ष की थी। वह अपने पीछे अपने पति और तीन बच्चे छोड़ गई। ऐसे समय में "ऐसा क्यों हुआ?" यह सवाल उठाना स्वाभाविक है, लेकिन हमारी परीक्षाओं को मरियम से बेहतर कौन समझ सकता है? क्रूस के नीचे खड़ी होकर उसने अपने बेटे को तड़पते और मरते हुए देखा। हम जिस भी रास्ते पर चलते हैं, दुख के रास्ते में भी, मरियम हमारे लिए एक हमसफ़र हो सकती है। मसीह के हृदय तक जाने का सबसे छोटा मार्ग माता मरियम के माध्यम से ही परमेश्वर ने मुझे मेरे दिल की इच्छा तक पहुँचाया। लेकिन इसमें कुछ समय लगा। उसके माध्यम से मुझे यूखरिस्त का महत्व समझ में आया। कभी-कभी माँ मरियम के प्रति लोगों की भक्ति, मसीह के बारे में अधिक ज्ञान की ओर नहीं ले जाती है। लेकिन माँ मरियम की भक्ति उसके पुत्र के बारे में ही है और हमें येशु के साथ गहरे रिश्ता जोड़ने के बारे में है। माँ मरियम के माध्यम से मैंने येशु के सम्मुख अपना पूर्ण समर्पण किया है। यह मरियम के साथ उसके दिव्य पुत्र की ओर एक व्यक्तिगत यात्रा है। मरियम एक मार्गदर्शक हैं जो हमेशा हमें येशु के पवित्र हृदय तक ले जाती हैं। मेडजुगोरे के छह छोटे बच्चों को माता मरियम दर्शन दे रही हैं यह बात सुनकर सन 2009 में मैं वहां गयी। मेडजुगोरे एक सरल लेकिन सुंदर जगह है जहाँ शांति को मूर्त रूप से अनुभव किया जाता है। मेडजुगोरे में येशु के पवित्र ह्रदय की एक प्रतिमा थी, जिसकी चारों ओर कई तीर्थयात्री प्रार्थना करने के लिए एकत्रित हुए थे। जब उस प्रतिमा के पास जाने की मेरी बारी आई, तो मैं उसके पास गयी, अपनी आँखें बंद कीं, और मूर्ति के कंधे पर हाथ रखकर प्रार्थना की। लेकिन जब मैंने अपनी आँखें खोलीं, तो मैंने पाया कि मेरा हाथ कंधे पर नहीं बल्कि येशु के हृदय पर टिका हुआ था! मेरी सरल प्रार्थना थी, "येशु, मैं जितना तेरी माँ को जानती हूँ, उतना तुझे नहीं जानती।" मेरा मानना है कि माँ मरियम मुझसे कह रही थी, “ठीक है, अब समय आ गया है। यह समय है कि तुम मेरे बेटे के दिल में जाओ।“ मैं इस बात से अनभिज्ञ थी कि अगले दिन येशु के पवित्र हृदय का पर्व था! एक नयी सेवकाई की शुरुआत अगस्त 2009 में, एक अतिथि पुरोहित ने मुझे अपनी पल्ली में ईश्वरीय करुणा की भक्ति शुरू करने के लिए प्रेरित किया। मैंने रोज़री माला से संबंधित कुछ करने की उम्मीद की थी, लेकिन मैंने देखा कि माँ मरियम मुझे सीधे अपने पुत्र येशु के पास ला रही थी। मैंने पूरे आयरलैंड में ईश्वरीय करुणा पर प्रवचनों और यूखरिस्तीय आराधना के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया। आखिरकार, आयरलैंड में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय यूखरिस्टिक कांग्रेस की योजना बनाने में मदद करने के लिए मुझे आमंत्रित किया गया। वह सब कुछ, जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी! यूखरिस्तीय कांग्रेस के अंत में मेरे हृदय में मेरी सेवकाई का बीज बोया गया था। क्योंकि मैंने यूखरिस्तीय कांग्रेस से इतना आनंद और अनुग्रह प्रवाहित होते पाया था, मैंने अपने आप से पूछा, “अनुग्रह की वर्षा के एक सप्ताह के बाद क्या इसे समाप्त होने देना है? यह जारी क्यों नहीं रह सकता?” ईश्वर की कृपा से, अनुग्रह की वह वर्षा समाप्त नहीं हुई। पिछले दस वर्षों से, मैं ‘पवित्र संस्कार के बच्चे’ (चिल्ड्रन ऑफ़ द यूखरिस्ट) का समन्वयन कर रही हूँ, जो आयरलैंड में यूखरिस्तीय आराधना की सेवकाई के तत्वावधान में स्थापित किया गया है। इस सेवकाई का उद्देश्य हमारे बच्चों के विश्वास को बढ़ाना और परम प्रसाद की आराधना के माध्यम से उन्हें प्रभु के करीब लाना है। बच्चों को यूखारिस्तीय आराधना के बारे में अधिक जानकारी देने और बच्चों के अनुकूल तरीके से इसे नियमित रूप से अनुभव करने की आवश्यकता को पहचानते हुए मैं ने इस सेवकाई को शुभारम्भ किया। हमारे स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में इसका संचालन करने के बाद, यह कार्यक्रम शीघ्र ही पूरे आयरलैंड के कई विद्यालयों में फैल गया। एक किशोरी के रूप में, मैंने नर्सिंग या किसी अन्य पेशे को अपनाने की उम्मीद की थी, लेकिन जब मैंने 22 साल की उम्र में शादी कर ली तो वे सब सपने फीके पड़ गए। बच्चों के बीच यूखरिस्तीय सेवकाई शुरू करने के बाद, एक पुरोहित ने मुझसे कहा, "हो सकता है कि अगर तुम एक नर्स बन गयी होती, तब तुम्हें आत्माओं की सेवा करने का अवसर नहीं मिलता। अब तुम आराधना करने केलिए बच्चों की नर्सिंग कर रही हो, उनकी मदद कर रही हो और उनका सही मार्गदर्शन कर रही हो।" माँ मरियम ने न केवल मुझे अपने पुत्र येशु के करीब पहुंचाया, बल्कि उसने मुझे बच्चों को भी उनके करीब आने में मदद करने के लिए प्रेरित किया। जब हम माता मरियम को उसकी तरह ‘हाँ’ कहते हैं, अपनी गहराई से, ईमानदारी से 'हां' कहते हैं, तो एक यात्रा शुरू होती है। वह हमारे ‘हाँ’ के साथ साथ चलती है, हमें येशु के साथ एक गहरे मिलन में लाती है और हमारे जीवन के लिए येशु की जो भी योजनाएँ हैं उन्हें पूरा करती है।
By: Antoinette Moynihan
Moreएक बच्चे के लिए 22 साल की यातनापूर्ण प्रतीक्षा के बावजूद, माँ मरियम के प्रति विक्टोरिया की भक्ति कम नहीं हुई। और फिर मरियम मुस्कुराई। बचपन में मैं माँ मरियम के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती थी। क्योंकि मेरे माता-पिता ने मुझे उसके बारे में बहुत कुछ नहीं कहा था। लेकिन जब मैं सलेशियन साध्वियों द्वारा संचालित एक विद्यालय गयी और धर्म शिक्षा की कक्षाओं में पढने लगी, तब मैं माँ मरियम को बेहतर तरीके से जानने लगी, खासकर ख्रीस्तीयों की सहायिका मरियम माँ के रूप में और उसकी भक्ति के बारे में। उन साध्वियों का धन्यवाद जिन्होंने मुझे माला विनती की प्रार्थना करना सिखाया। मैंने सीखा कि माला विनती केवल प्रार्थनाओं को रटना नहीं है, बल्कि ईश्वर के वचन पर मनन चिंतन है, जो हमें येशु के करीब आने में सक्षम बनाता है। तब से, मैंने कभी भी बिना माला विनती किये, बिस्तर पर सोने नहीं गयी। खुशखबरी कहाँ है? अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैं एक अच्छे कैथलिक स्कूल में शिक्षिका बन गयी, जहाँ मैं वहां पढ़ाने वाली साध्वियों के माध्यम से और उनके द्वारा वहां के कर्मचारियों के लिए आयोजित आध्यात्मिक साधनाओं के माध्यम से माँ मरियम के निकट आ गयी। जब मैं घर बसाना चाहती थी और अपने लिए एक जीवन साथी खोजना चाहती थी, तब मैं ने उसकी शक्तिशाली मध्यस्थता मांगी और जल्द ही मैं एक विश्वास प्रशिक्षण कार्यशाला में अपने जीवन साथी क्रिस्टोफर से मिली। माँ मरियम के प्रति हम दोनों आभारी हैं, क्योंकि पिछले 28 वर्षों से हम खुशी-खुशी अपना दाम्पत्य जीवन बिता रहे हैं। हमारी शादी के शुरुआती दिन मौज मस्ती, और प्यार से भरे हुए थे लेकिन जैसे-जैसे महीने बीतते गए, हमारे आस-पास के लोग पूछने लगे, "कोई खुश खबरी क्यों नहीं है?" मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि "ईश्वर अपने समय में देगा।" इस जवाब ने मुझे आगे के सवालों से बचाया, लेकिन जैसे-जैसे साल बीतते गए, मेरे दिल में एक डर पैदा हो गया क्योंकि कोई ख़ुश खबरी आई ही नहीं। चिकित्सा जांच में केवल यह पाया गया कि मेरा गर्भाशय पीछे की ओर था, जिस के कारण गर्भ धारण में देरी हो सकती है, लेकिन डॉक्टर ने हमें सलाह दी कि अगर हम उनके दिशानिर्देशों का पालन करते हैं तो यह बदल जाएगा। फिर भी, महीना दर महीना बिना किसी बदलाव के बीतता गया। ऐसे दिन थे जब मैं बहुत उदास और हताश महसूस करती थी, लेकिन माँ मरियम और मेरे पति के प्यार ने मुझे उन हीन भावनाओं से ऊपर उठा दिया। दिल की गहराई से पुकार मैंने अपने दोस्तों और परिवार की सलाह के आधार पर विभिन्न दवाओं पर बहुत पैसा खर्च किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। फिर मैंने डॉक्टरों के पास जाने के बजाय मरियम से संपर्क करना शुरू किया, मेरे दोस्तों द्वारा सुझाए गए सभी प्रकार के नव रोज़ी प्रार्थनाओं को अपनाया। मैं नौ दिन लगातार संत मरियम महागिरजा के लिए 24 किलोमीटर पैदल चली, फिर भी गर्भधारण का कोई संकेत नहीं था, हालांकि मुझे एक आंतरिक शक्ति दी गई जिस की मदद से हम आगे बढ़े। हमें पुण्य देश की तीर्थयात्रा करने का सौभाग्य मिला जहां हमने अपनी याचिकाएं जारी रखीं। मुझे याद है माँ मरियम का वह तीर्थ स्थान, जिसे दूध का तीर्थ कहा जाता है, जहां परंपरा के अनुसार, पवित्र परिवार ने मिस्र में निर्वासन के मार्ग में शरण मांगी थी। कहा जाता है कि माँ मरियम के स्तन से दूध की एक बूंद गिर गई थी क्योंकि उसने शिशु येशु को वहां स्तन पान कराया था, जिस के कारण लाल पत्थर का वह गुफा खडिया सफेद में बदल गया था। कई महिलाएं यहां संतान प्राप्ति के लिए या दूध की बेहतर आपूर्ति के लिए प्रार्थना करने आती हैं। वहाँ खड़ी होकर, मैं अभाव की गहरी भावना से अभिभूत फूट-फूट कर रोई। अन्य कोई भी तीर्थयात्री मुझे सांत्वना नहीं दे सका। मैंने और मेरे पति ने विदेश में काम करने का फैसला किया, ताकि हम लूर्द्स और दुनिया के अन्य तीर्थ स्थानों और विभिन्न खूबसूरत जगहों की यात्रा का खर्च उठा सकें। 14 साल की सेवा के बाद ऐसे अद्भुत स्कूल से इस्तीफा देना सबसे कठिन कार्य था। लेकिन हम एक बदलाव चाहते थे क्योंकि हमने उम्मीद नहीं छोड़ी थी। कहीं मेरे दिल के कोने में, मुझे अभी भी विश्वास था, हालाँकि मैं नहीं देख पा रही थी कि यह कैसे संभव होगा। हमने दुबई में नौकरी की। जैसे ही हमने इस नई मिट्टी में अपनी जीवन यात्रा जारी रखी, वैसे ही हमने अपनी प्यारी माँ मरियम के जिम्मे में अपना जीवन पूरी तरह से सौंप दिया और उसकी मध्यस्थता माँगी। यद्यपि हम जहाँ रहते थे वहाँ से गिरजाघर बहुत दूर था, फिर भी हमने पवित्र मिस्सा बलिदान को कभी नहीं छोड़ा। आवरण में ढका उपहार सन 2015 के नव वर्ष की पूर्व संध्या, के मिस्सा बलिदान के दौरान, प्रतिज्ञा पत्र से भरी एक तश्तरी पास की गई। मेरे प्रतिज्ञा पत्र में उत्पत्ति, अध्याय 30, पद 23 का पद था, जिसमे राहेल के बाँझपन के बारे में और किस तरह परमेश्वर ने उसके अपमान को दूर किया था, उसका जिक्र था। मैं बस मुस्कुराई। जब सारा ने स्वर्गदूतों को यह कहते सुना कि, "अगले साल इस समय सारा एक बच्चे को जन्म देगी," वह हँसी क्योंकि यह बहुत असंभव लग रहा था। मैंने भी ऐसा ही महसूस किया था, लेकिन मैं घर वापस गयी और उत्पत्ति, अध्याय 30 को पूरा पूरा पढ़ा। यह दो बहनों की कहानी से संबंधित है - लिआ, जो बच्चे पैदा करने में सक्षम थी, और राहेल जो नहीं कर सकती थी। उसने यहोवा से विनती की, कि उसकी कोख खोल दे, और यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी, जिस से उसके दो पुत्र, यूसुफ और बेनयामीन उत्पन्न हुए। हम छुट्टी मनाने और अपने घर के लोगों से मिलने भारत गए थे, लेकिन वापस लौटने पर मेरी तबीयत खराब हो गई। इसलिए यह सोचकर कि मेरे रक्तचाप में उतार-चढ़ाव हो रहा है, मैं डॉक्टर के पास चेक-अप के लिए गई। डॉक्टर ने जांच का आदेश दिया, जिससे आश्चर्यजनक खबर सामने आई कि मैं गर्भवती हूँ! यह खबर रोमांचक और विचलित करने वाली दोनों थी। हम दोनों ने पांच साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे, इसलिए अगर हम उन्हें तोड़ते हैं तो हमें भारी जुर्माना देना होगा। मेरी बढ़ती उम्र के कारण, मेरे मातृत्व के लिए कोई बीमा कवरेज भी नहीं था, इसलिए अगर मैं अपने पति के साथ खाड़ी में रहूँ, तो यह बहुत महंगा होगा, और हम अलग भी नहीं हो सकते थे, क्योंकि आखिरकार 22 साल के लंबे समय के बाद एक बच्चे के लिए हमारी प्रार्थना सुनी गयी थी। इसलिए, एक बार फिर, हम अपनी दुविधा के समाधान ढूंढते हुए अपनी प्रिय माता मरियम के पास प्रार्थना करने के लिए गए। एक दिन, हमारी कंपनी की अध्यक्षा ने हमारे फ्लैट पर एक कार भेजी और हमें उनके आवास पर आने के लिए कहा। यह सोचकर कि यह संभवतः किस बारे में हो सकता है, हमने उनके कमरे में प्रवेश किया। हम चकित रह गए, क्योंकि उस महिला ने प्रसन्नतापूर्वक कहा, "यह बेहतर है कि आप दोनों इस्तीफा दे दें और भारत वापस चले जाएं।" हम इतने प्रसन्न और चकित थे कि हम उनकी बातों पर विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे। लेकिन हम उस समय प्रार्थना में हमारे साथ रहने के लिए ईश्वर को और अपनी प्यारी माँ को धन्यवाद देना नहीं भूले। क्या आप चमत्कार की प्रतीक्षा में हैं ? बैंगलोर में मेरे डॉक्टरों को मेरे लिए एक कठिन गर्भावस्था की उम्मीद थी, लेकिन मरियम की शक्तिशाली मध्यस्थता के कारण, मेरी गर्भावस्था बिना किसी जटिलता के, एक अद्भुत तरीके से गुजरी। बेशक डॉक्टर हैरान थे कि मैं एक सामान्य प्रसव की ओर बढ़ रही थी, इसके बावजूद वे सिजेरियन ऑपरेशन करना चाहते थे, क्योंकि मैं बढ़ती उम्र में जुड़वा बच्चों को जन्म देने वाली थी। हमने सहयोग किया और ईस्टर रविवार को, जुड़वां बच्चे - कार्लटन और वैनेसा जन्म लिए। इतने बड़े आशीर्वाद देने के लिए हम ईश्वर को धन्यवाद देते हुए बहुत ही आनंदित और उल्लासित थे – क्योंकि यह किसी भी ईस्टर अंडे से भी बेहतर उपहार था। यदि आप अपने जीवन में किसी चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहे हैं, तो मैं आपको विश्वास में मजबूत होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हूं। हिम्मत मत हारिए। अपनी याचिकाओं के साथ ईश्वर के पास बार बार जाते रहें और मरियम से कहें कि वह आपकी प्रार्थना में शामिल हो। ईश्वर हमेशा हमारी प्रार्थना सुनता है और हमें कभी जवाब देने से इनकार नहीं करता है। जय हो मरियम! ईश्वर की महिमा हो!
By: Victoria Christopher
Moreक्या आप अपने जीवन में पाप के उस चक्र को तोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं? गेब्रियल कैस्टिलो उन सभी पापमय चीजों में उलझा हुआ था, - सेक्स, ड्रग्स, रॉक एंड रोल – जिन चीज़ों को जो दुनिया अच्छी मानती है, लेकिन ऐसा एक अवसर आया जब उन्होंने पाप को छोड़ने और अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई का सामना करने का फैसला किया, और उनकी दुनिया ही बदल गयी। मेरा पालन-पोषण एकल अभिभावक के द्वारा हुआ, जहाँ व्यावहारिक रूप से कोई धार्मिक शिक्षा नहीं थी। मेरी माँ एक अद्भुत महिला हैं और उन्होंने मेरा भरण-पोषण करने के लिए हर संभव कोशिश की, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। जब वह बाहर काम कर रही थी, तब मैं घर पर अकेला केबल टीवी के सामने बैठा करता था। मेरा पालन-पोषण एम.टी.वी. जैसे टेलीविजन नेटवर्क द्वारा किया गया था। एम.टी.वी. ने जिन चीज़ों को महत्व देने के लिए मुझसे कहा, मैं उन चीज़ों को महत्व देता था: लोकप्रियता, मौज मस्ती, संगीत, और अन्य अधर्मी चीजें। मेरी माँ ने मुझे सही दिशा में ले जाने के लिए हर संभव कोशिश की, लेकिन ईश्वर के बिना मैं सिर्फ पाप से पाप की ओर चला गया। बुराई से अत्यधिक बुराई तक। यही कहानी इस देश के आधे से ज्यादा लोगों की है। सच्चाई यही है कि मीडिया द्वारा बच्चों की परवरिश की जा रही है और मीडिया लोगों को इस जीवन में और अगले जीवन में भी दुख की ओर ले जा रहा है। माँ मरियम की दखल जब मैं अमेरिका के टेक्सास राज्य के ह्यूस्टन में स्थित सेंट थॉमस विश्वविद्यालय गया तब मेरा जीवन नाटकीय रूप से बदलने लगा। उस विश्वविद्यालय में मैंने धर्मशास्त्र और दर्शनशास्त्र के पाठ्यक्रम लिए, जिस के कारण मेरे दिमाग में वस्तुनिष्ठ सत्य की खोज शुरू हुई। मैंने देखा कि कैथलिक विश्वास में कुछ बौद्धिकता है। मेरे दिमाग में मुझे विश्वास हो गया था कि कैथलिक धर्म वस्तुनिष्ठ रूप से सत्य था, लेकिन बस एक ही समस्या थी ... मैं दुनियावी बातों, शारीरिक प्रलोभनों और शैतान का गुलाम था। उन दिनों सबसे बुरे लड़कों में से सबसे आगे, और सबसे अच्छे लड़कों में सबसे पिछड़े के रूप में मैं कुख्यात था। मेरे बुरे दोस्तों में से बहुत लड़के दृढीकरण संस्कार प्राप्त करने के लिए जा रहे थे और मैंने सोचा "अरे मैं भी एक बुरा कैथलिक हूं ... मुझे भी दृढीकरण संस्कार लेना चाहिए"। दृढीकरण के लिए ज़रूरी आत्मिक साधना के दौरान हमने एक शाम पवित्र घड़ी में समय बिताया, मुझे नहीं पता था कि यह पवित्र घड़ी क्या होती है, इसलिए मैंने एक प्रोफेसर से पूछा जिन्होंने मुझे पवित्र यूखरिस्त में येशु को निहारने और येशु के पवित्र नाम को दोहराने की सलाह दी। इस अभ्यास के लगभग 10 मिनट के बाद ईश्वर ने मेरी आत्मा में अपनी उंगली डाल दी और मुझे अपने प्यार से अभिभूत कर दिया, और मेरा पत्थर का दिल पिघल गया। उस घड़ी के बाकी समय पर मैं रोता रहा। उस दिन मुझे पता चला कि कैथलिक धर्म न केवल मेरे दिमाग को, बल्कि मेरे दिल को भी प्रभावित करता है। मुझे अपना जीवन बदलना पड़ा। एक बार चालीसा काल के दौरान, मैंने हर तरह के गलत रस्ते को त्यागने और हर घातक पाप या महापाप को छोड़ने का संकल्प लिया। मेरे संकल्प के ठीक दो घंटे बाद, मुझे एहसास हुआ कि मैं पहले से ही महापाप कर चुका था, इसलिए मैं पाप के जाल में किस तरह बुरा फंसा हुआ था। मुझे एहसास हुआ कि मैं एक गुलाम था। उस रात ईश्वर ने मुझे मेरे पापों के लिए मुझमें सच्चा पश्चाताप भर दिया और मैंने दया के लिए उसे पुकारा। तभी शैतान बोल उठा। उसकी आवाज स्पष्ट और डरावनी थी। ऊँचे स्वर में गड़गड़ाहट के साथ, उसने मेरे शब्दों को मज़ाक में दोहराया, “प्रभु, मुझे माफ़ कर। मैं तुझसे क्षमा माँगता हूँ प्रभु!" मैंने तुरंत संत जॉन वियांनी से प्रार्थना की। जिस पल मैंने वह प्रार्थना की, वह शैतानी आवाज चली गई। अगली रात मैं अपने कमरे में सोने के लिए बहुत डरा हुआ था, क्योंकि मुझे डर था की कहीं मुझे उस आवाज़ को दोबारा सुनना पडेगा। इसलिए मैंने एक जपमाला निकाली, जिसे संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने आशीर्वाद दिया था। मैंने माला विनती की पुस्तिका खोली, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि माला विनती कैसे की जाती है। जब मैंने प्रार्थना की, "मैं स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर पर विश्वास करता हूँ.....", एक बुरी शक्ति ने मेरे गर्दन को पकड़ लिया, मुझे नीचे दबा दिया और मेरा गला घोंटने लगा। मैंने अपनी माँ को फोन करने की कोशिश की, लेकिन मेरी आवाज़ नहीं निकल पा रही थी। फिर मैं ने अपने सिर के अन्दर एक आवाज सुनी,, "प्रणाम मरिया, कृपापूर्ण... की प्रार्थना करो।" मैंने कोशिश की, लेकिन नहीं कर सका। मेरे सिर के अन्दर फिर आवाज़ सुनाई दी, "अपने मन में वही प्रार्थना कहो।" तो मेरे मन में मैंने कहा "प्रणाम मरिया"। फिर मैंने जोर से आवाज़ निकालने केलिए हांफते हुए कहा, "प्रणाम मरिया"! तुरंत सब कुछ सामान्य हो गया। मैं पूरी तरह से घबरा गया और महसूस किया कि यह दुष्ट शक्ति मेरे अब तक के जीवन में हमेशा मेरे साथ रहा। उसी समय मुझे एहसास हुआ कि मरियम ही मेरी समस्याओं की जवाब है। यहां तक कि उसका नाम पुकारने मात्र से ही मैं एक राक्षस रुपी दुष्टात्मा के वास्तविक चंगुल से मुक्त हो गया। कुछ शोध करने के बाद, दुष्ट शक्तियों के प्रभाव में मेरे रहने के कई कारणों की मैं ने पहचान की: मेरी माँ के पास नव युग की किताबें थीं, मेरे पास पापमय संगीत था, मैंने ऐसी बहुत सारी फिल्में देखी थीं जो सिर्फ बालिगों के लिए थीं, मैं जीवन भर घातक पाप में जी रहा था। शैतान मुझमें आविष्ट था, लेकिन माँ मरियम उसका सिर कुचल देती है। मैं अब माँ मरियम का हूँ। पापियों को परिवर्तित करने में विफल मैं रोज माला विनती की प्रार्थना करने लगा। मुझे एक अच्छा पुरोहित मिल गया और मैं लगभग प्रतिदिन, पाप स्वीकार करने जाने लगा। लेकिन बाद में मैं इसे जारी नहीं रख सका, इसलिए मुझे अपने सभी व्यसनों को तोड़ने के लिए माँ मरियम के साथ छोटे-छोटे कदम उठाने पड़े। माँ मरियम ने गुलामी से मुक्त होने में मेरी मदद की और सुसमाचार के संदेशवाहक बनने की इच्छा को मुझ में प्रेरित किया। जब मैंने माला विनती की प्रार्थना की, तो उसने मेरे लतों को तोड़ने में मेरी मदद की और मेरे मन को शुद्ध और पवित्र किया। मेरे अन्दर के क्रांतिकारी परिवर्तन और धार्मिकता की भूख के कारण मैंने धर्मशास्त्र में डिग्री और दर्शनशास्त्र में एक सर्टिफिकेट कोर्स पूरा किया। मैंने एक दिन में कई माला विनती कीं और मरियम को ही हर जगह देखा और शैतान को कहीं नहीं देखा। कॉलेज के बाद, मैंने एक धर्म शिक्षक के रूप में कैथलिक स्कूल प्रणाली में प्रवेश किया; मैं युवाओं को वह सब कुछ सिखाने लगा जो मैं जानता था। हालाँकि वे एक कैथलिक स्कूल में थे, वे मुझसे भी अधिक संघर्ष से गुज़र रहे थे। स्मार्टफोन के आगमन के साथ उनके पास छिपी हुई व्यसनों और गुप्त और गुमनाम जीवन के नए अवसर थे। मैं एक अच्छा शिक्षक था और परमेश्वर के लिए उनका दिल जीतने की पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन मैं असफल हो रहा था। दो साल के अंदर, मैं एक आत्मिक साधना में गया, जो ऐसे एक बहुत ही पवित्र पुरोहित द्वारा संचालित था जो रूहों की विवेचना और आत्माओं को समझने के आत्मिक वरदानों के लिए विख्यात थे। हमें एक व्यापक पाप स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। जीवन भर के पापों को देखते हुए, मैंने देखा कि ईश्वर की भलाई और दया के बावजूद मैं कितना भयानक था, मैं रोया। उस पुरोहित ने मुझसे पूछा, "तुम क्यों रो रहे हो?" और मैं ने सिसकियाँ भरते हुए कहा, "क्योंकि मैंने अपने बुरे उदाहरण से बहुत से लोगों को चोट पहुंचाई है, और बहुतों को भटका दिया है।" उन्होंने उत्तर दिया, "क्या तुम अपने द्वारा किए गए नुकसान के लिए प्रभावी क्षतिपूर्ति करना चाहते हो? रोज़री माला के सभी भेदों को पूरे एक साल तक हर दिन प्रार्थना करने का संकल्प लो, अपने हर एक बुरे काम में से, और उन सभी व्यक्तियों से जिन्हें आप ने चोट पहुंचाया, उन में से अच्छाई लाने के लिए माँ मरियम से कहो। उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। जान लो की तुम्हारे सारे कर्ज चुकाए गए हैं और आगे बढ़ो।” मरियम के साथ सफल होना मैंने पहले भी कई रोज़ माला विनती की प्रार्थना की थी, लेकिन जीवन के लिए एक सख्त नियम के रूप में कभी नहीं की थी। जब मैंने पूरी माला विनती को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया तो सब कुछ बदल गया। ईश्वर की शक्ति हर समय मेरे साथ थी। मरियम मेरे माध्यम से कामयाब हो रही थी। मैं आत्माओं तक पहुंच रहा था, और मेरे छात्रों के जीवन में नाटकीय रूप से बड़े बड़े परिवर्त्तन हो रहे थे। वे मुझसे यू-ट्यूब पर वीडियो डालने के लिए बार बार अनुरोध कर रहे थे। वे शुरुआती दिन थे और मुझमें आत्म विश्वास की कमी थी, इसलिए मैंने दूसरे लोगों के व्याख्यानों और प्रवचनों को तस्वीरों के साथ अपलोड किया। मरियम ने मुझे एक पड़ोसी पल्ली में काम करने के लिए प्रेरित किया। यह अच्छा हुआ, क्योंकि आत्माओं को पाने के मेरे उत्साह के साथ यह बेहतर रूप से काम आया। वास्तव में उस पुरोहित ने मुझे उन सारे युवाओं को पूरी तरह झकझोरने के लिए प्रोत्साहित किया, इसलिए उस पुरोहित के सहयोग से मैंने वही कार्य किया। मैंने नाजुक और विवादित विषयों पर वीडियो बनाना शुरू किया। मैं एक फिल्म प्रतियोगिता में शामिल हुआ, परिणाम स्वरूप मैंने विश्व युवा दिवस की मुफ्त यात्रा और 4,000 डॉलर के मूल्य के वीडियो उपकरण जीते। मैं आपको बता रहा हूं, माँ मरियम एक विजेता है। स्पेन में विश्व युवा दिवस पर, मैं संत डोमिनिक चर्च में पवित्र मिस्सा में गया था। जब मैं रोज़री की माँ मरियम की एक मूर्ति के सामने खड़े होकर प्रार्थना कर रहा था, तब मुझे संत डोमिनिक की उपस्थिति का एक जबरदस्त एहसास हुआ। यह इतना मजबूत था कि मुझे लगभग ऐसा लगा कि मैं माँ मरियम की मूर्ति के सामने नहीं, बल्कि संत डोमिनिक के सामने खडा हूँ। जो सन्देश मुझे वहां दिया गया, उस सन्देश के शब्दों को मैं दुहरा नहीं सकता, लेकिन यह एक गहरी आंतरिक समझ थी कि रोज़री माला को बढ़ावा देने का एक मिशन मुझे दिया गया है, क्योंकि इसी में दुनिया की समस्याओं का जवाब है। मैंने उन उपकरणों की मदद से ऐसा करने का संकल्प लिया जो उपकरण संत डोमिनिक के पास नहीं थे। मैंने माला विनती से जुडी सारी बातों का शोध करना शुरू कर दिया - इसका इतिहास, इसकी रचना, इसके विभिन्न पहलू, वे संत जिन्होंने यह प्रार्थना की आदि। जितना अधिक मैंने इसका अध्ययन किया, उतना ही मुझे एहसास हुआ कि इस रोज़री माला ने बहुत सारी समस्याओं का जवाब दिया है। आध्यात्मिक जीवन में परिवर्तन और कामयाबी रोज़री माला के फल थे। जितना अधिक मैंने इसे बढ़ावा दिया, उतना ही मैं सफल हुआ। इस मिशन के हिस्से के रूप में, मैंने “गैबी आफ्टर ऑवर्स” नाम से एक यू-ट्यूब चैनल विकसित किया, जिसमें बच्चों को विश्वास, उपवास और उद्धार में परवरिश करने पर भी सामग्री है। माला विनती मेरे प्रेरितिक कार्य के लिए ईंधन है। जब हम रोज़री माला की प्रार्थना करते हैं, तो हम माँ मरियम को स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं। रोज़री माला तलवार की तरह है, जो उन बेड़ियों को तोड़ देती है, जिनसे शैतान ने हमें बांध रखा है। यह एक सम्पूर्ण और सिद्ध प्रार्थना है। वर्तमान में अपने जैसे युवाओं के साथ मैं युवा सेवकाई में पूर्णकालिक काम करता हूं। उनमें से अधिकांश वंचित और गरीब परिवारों से आते हैं, जिनमें से कई के घर में माता-पिता के रूप में एक ही व्यक्ति है। चूँकि इनमें से अधिकांश बच्चे अनाथ हैं, इसलिए माताएँ दो-दो काम करती हैं, इसलिए कुछ युवा अपने उन अभिभावकों के अनजाने में ही बुरी आदतों में पड़ जाते हैं, जैसे कि मारिजुआना का धूम्रपान करना या शराब पीना। हालांकि, जब उन्हें कुँवारी मरियम, कार्मेल की माँ मरियम की ताबीज़, चमत्कारी बिल्ला और विशेष रूप से रोज़री माला से परिचित कराया जाता है, तो उनके जीवन में बड़ा आमूल चूल बदलाव देखने को मिलता है। वे पापियों से संतों की ओर रुख कर लेते हैं। शैतान के दासों से लेकर मरियम के सेवकों तक। वे केवल येशु के अनुयायी नहीं बनते, वे येशु के प्रेरित बन जाते हैं। मरियम के साथ पूर्ण रुपेण आगे बढ़ें। रोज़री माला के साथ सब अंदर जाएँ। सभी महान संत इस बात से सहमत हैं कि मरियम का अनुगमन करने से, आपको येशु मसीह के हृदय तक सबसे तेज़, सबसे सुरक्षित और प्रभावशाली मार्ग पर ले जाता है। संत मैक्सिमिलियन कोल्बे के अनुसार, पवित्र आत्मा का लक्ष्य और कार्य है कि वह मरियम के गर्भ में हमेशा के लिए ख्रीस्त का सृजन करे। यदि आप पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होना चाहते हैं, तो आपको मरियम के समान बनना होगा। पवित्र आत्मा मरियम के भक्त आत्माओं के लिए उड़ान भरता है। यह सफलता का आदर्श है, जिसे हमारा प्रभु चाहता है। जिस तरह येशु ने किया उसी तरह हम भी अपने आप को मरियम को समर्पित करें। हम उससे चिपके रहें, जैसे बालक येशु मरियम से चिपका था। हम छोटे शिशु के रूप में रहें ताकि मरियम हम में रह सकें और ख्रीस्त को दूसरों तक पहुंचा सकें। अगर आप लड़ाई जीतना चाहते हैं तो माँ मरियम के साथ जाएं। वह हमें ख्रीस्त येशु के पास ले आती है और हमें येशु के समान बनने में मदद करती है।
By: Gabriel Castillo
Moreप्रश्न - मुझे पता है कि हमें मरियम के प्रति भक्ति करनी चाहिए, लेकिन कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि येशु के साथ मेरे रिश्ते को यह भक्ति विचलित कर देती है। मैं माँ मरियम को अपने बहुत करीब अनुभव नहीं कर पाता हूँ। मैं येशु के प्रति अपने प्रेम से वंचित हुए बिना, माँ मरियम के प्रति गहरी भक्ति कैसे प्राप्त कर सकता हूं? उत्तर – कभी मैं भी अपने जीवन में, इसी प्रश्न से जूझता था। मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के एक ऐसे क्षेत्र में पला-बढ़ा हूं जो ज्यादतर प्रोटेस्टेंट था, और मेरे किसी भी प्रोटेस्टेंट मित्र ने कभी भी माँ मरियम के प्रति भक्ति नहीं की थी। एक बार जब मैं किशोर था, वॉल-मार्ट में चेकआउट लाइन में किसी महिला के साथ मेरी बातचीत हुई, और जब उसे पता चला कि मैं कैथलिक पुरोहित बनने के लिए पढ़ाई कर रहा हूं, तो उसने मुझसे पूछा कि कैथलिक लोग मरियम की पूजा क्यों करते हैं! बेशक, कैथलिक लोग माँ मरियम की आराधना या पूजा नहीं करते हैं। केवल ईश्वर ही आराधना और पूजा के योग्य है। बल्कि, हम मरियम को सर्वोच्च सम्मान देते हैं। चूँकि वह पृथ्वी पर येशु के सबसे निकट थी, इसलिए अब वह स्वर्ग में येशु के सबसे निकट है। वह येशु की सम्पूर्ण अनुयायी थी, इसलिए उसका अनुकरण करने से हमें येशु का अधिक विश्वासपूर्वक अनुसरण करने में मदद मिलेगी। जिस तरह हम अपने माता-पिता या किसी मित्र या पुरोहित से हमारे लिए प्रार्थना करने के लिए कहते हैं, उसी तरह हम माँ मरियम से हमारे लिए प्रार्थना करने के लिए कहते हैं - और मरियम की प्रार्थनाएं कहीं अधिक प्रभावी हैं, क्योंकि वह मसीह के बहुत करीब है! मरियम के प्रति एक स्वस्थ भक्ति में बढ़ने के लिए, मैं तीन चीजों की सिफारिश करता हूं। सबसे पहले प्रतिदिन रोज़री माला का जाप करें। संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने कहा कि रोज़री माला के माध्यम से हम "मरियम की आंखों से येशु के जीवन को देखते हैं।" यह एक ख्रीस्त-केंद्रित प्रार्थना है, जिस सबसे अच्छे ह्रदय (निष्कलंक हृदय) से येशु से प्यार किया जाता है, उसी हृदय से येशु से प्रेम करने की महत् प्रार्थना है यह। रोज़री माला ने मेरी ज़िंदगी बदल दी- जब मैं किशोर था तब मैंने इसे चालीसा काल की तपस्या के रूप में लिया था... और मुझे हर दिन इसके प्रति डर लगता था। मेरे लिए, वे सभी दोहराव वाली प्रार्थनाएँ बहुत उबाऊ लग रहा था ...। लेकिन एक बार जब चालीसा काल खत्म हो गया, तो मैंने पाया कि मैं इस रोज़री माला को नीचे नहीं रख सकता। दोहराव अब उबाऊ नहीं, बल्कि शांत करने और सांत्वना देने वाला था। मैंने मसीह के जीवन के दृश्यों में स्वयं की कल्पना की और उन दृश्यों में येशु से मुलाक़ात की। दूसरा, अपने आप को मरियम को समर्पित करें। संत लुइस डी मोंटफोर्ट ने माँ मरियम के प्रति एक समृद्ध 33-दिवसीय समर्पण प्रार्थना बनायी है, या आप हाल ही के "33 डेज़ टू मॉर्निंग ग्लोरी" प्रार्थना का उपयोग कर सकते हैं। जब हम मरियम को अपना जीवन समर्पित करते हैं, तो वह हमें शुद्ध करती और निर्मल बनाती है, और फिर हमारे जीवन को अपने पुत्र के सामने खूबसूरती से प्रस्तुत करती है। “मरियम के प्रति सच्ची भक्ति, पूर्ण समर्पण की तैयारी के साथ” प्रार्थना पुस्तिका के द्वारा संत लुइस डी मोंटफोर्ट आपके प्रश्न का उत्तर देते हैं:: "यदि तब, हम अपनी धन्य माँ मरियम के प्रति ठोस भक्ति स्थापित करते हैं, तो यह येशु मसीह के प्रति अधिक पूर्ण भक्ति स्थापित करना है, और येशु मसीह को खोजने के लिए एक आसान और सुरक्षित साधन प्रदान करना है। अगर आपको लगता है कि माँ मरियम की भक्ति ने आपको येशु मसीह से दूर कर दिया, तो आपको इसे शैतान द्वारा लाया गया भ्रम मानकर अस्वीकार करना चाहिए; लेकिन इस से से विपरीत, येशु मसीह को पूरी तरह से खोजने, उसे कोमलता से प्यार करने, ईमानदारी से उसकी सेवा करने के साधन के रूप में माँ मरियम के प्रति भक्ति हमारे लिए आवश्यक है ...।” अंत में, अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए माँ मरियम की ओर मुड़ें। एक बार मैं एक बहुत ही पवित्र दम्पति के विवाह के रस्म के पूर्वाभ्यास का नेतृत्व कर रहा था। अचानक हमें एहसास हुआ कि वे अपने विवाह का सिविल लाइसेंस लाना भूल गए हैं! हम सभी मामले की गंभीररा भांपते हुए आतंकित थे। मैं सिविल लाइसेंस के बिना उनके विवाह की धर्मविधि नहीं करा सकता था, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी, अगले दिन शादी से पहले इसे पाना संभव नहीं था। मैं दूल्हा-दुल्हन को गिरजाघर के गर्भगृह के पीछे के कक्ष में लाया और मैं ने उन्हें यह खबर दी- जब तक कोई चमत्कार नहीं होता, मैं उनकी शादी नहीं करा पाऊंगा। वे बिलकुल टूट गए! इसलिए, हमने माँ मरियम से प्रार्थना की, जो खुद शादीशुदा थीं और जिन दम्पतियों की सगाई हो चुकी है उन के प्रति मरियम के दिल में विशेष प्यार है। हमने यह समस्या उसे सौंपी थी—और उसने एक चमत्कार किया! पता चला कि हमारी पल्ली का एक सदस्य उस कार्यालय के एक महिला लिपिक को संयोग से जानता था, जो उस दिन छुट्टी पर थी, इसके बावजूद, वह महिला बड़े सबेरे अपने कार्यालय गयी, और लाइसेंस तैयार करके दिया और विवाह का रस्म पूर्व योजना के अनुसार संपन्न हुआ। मरियम सबकी माँ है - हमें अपनी सभी समस्याओं और चिंताओं को अपनी उस माँ के सम्मुख लाना चाहिए! कभी न भूलें- मरियम की सच्ची भक्ति हमें येशु से दूर नहीं ले जाती है, यह हमें मरियम के माध्यम से येशु तक ले जाती है। हम कभी भी मरियम का ज़रुरत से ज्यादा सम्मान नहीं कर सकते क्योंकि हम कभी भी उनका उतना सम्मान नहीं कर सकते जितना येशु ने उनका सम्मान किया। मरियम के पास आवें—और भरोसा रखें कि वह आपको अपने पुत्र के पास ले जाएगी।
By: फादर जोसेफ गिल
Moreचाहे मुश्किल दौर कितना भी बुरा क्यों न हो, अगर उस पर आप काबू पायेंगे, तो आप कभी नहीं डगमगाएंगे। हम बहुत ही बुरे और उलझन भरे समय में जी रहे हैं। बुराई हमारी चारों तरफ है, और जिस समाज और दुनिया में हम रहते हैं, शैतान उसे नष्ट करने की पूरी कोशिश कर रहा है। कुछ मिनटों के लिए भी समाचार देखना बहुत निराशाजनक हो सकता है। जब आपको लगता है कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता, तो आप दुनिया में किसी नए अत्याचार या दुष्टता के बारे में सुनते हैं। निराश होना और उम्मीद खोना आसान है। लेकिन ख्रीस्तीय होने के नाते, हमें आशावान लोग बनने के लिए कहा जाता है। यह कैसे संभव है? मेरा एक मित्र है जो मूल रूप से रोड आइलैंड का रहने वाला है। एक फादर्स डे पर, उसके बच्चों ने उसे एक टोपी दी जिस पर एक लंगर की तस्वीर थी और उस पर इब्रानी 6:19 कढ़ाई की गई थी। इसका क्या महत्व था? रोड आइलैंड के राज्य ध्वज पर एक लंगर है जिस पर "आशा" शब्द लिखा है। यह इब्रानी 6:19 का संदर्भ है, जिसमें कहा गया है: "वह आशा हमारी आत्मा केलिए एक सुस्थिर एवं सुदृढ़ लंगर के सदृश है, जो उस मंदिर गर्भ में पहुंचता है ..." इब्रानियों के नाम पत्र उन लोगों के लिए लिखा गया था जो बहुत उत्पीड़न झेल रहे थे। यह स्वीकार करने के लिए कि आप येशु के अनुयायी हैं, मृत्यु या पीड़ा, यातना या निर्वासन के लिए बुलाये गए हैं। क्योंकि यह बहुत कठिन था, कई लोग विश्वास खो रहे थे और सोच रहे थे कि क्या मसीह का अनुसरण करना सार्थक है। इब्रानियों को लिखे पत्र के लेखक उन्हें दृढ़ रहने, और विश्वासी जीवन में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे थे - कि यह जीवन सार्थक जीवन है। वे अपने पाठकों को बताते हैं कि येशु में आधारित आशा ही उनका लंगर है। ठोस और अचल जब मैं हवाई द्वीप में हाई स्कूल की पढ़ाई कर रही थी, तो मैं एक ऐसे कार्यक्रम की हिस्सा थी जो छात्रों को समुद्री जीव विज्ञान पढ़ाता था। हमने कई हफ़्ते एक नाव पर रहकर और काम करके बिताए। हम जिन जगहों पर गए, उनमें से ज़्यादातर जगहों पर एक जेट्टी या घाट था जहाँ हम नाव को ज़मीन पर सुरक्षित रूप से बाँध सकते थे। लेकिन कुछ दूरदराज के हाई स्कूल थे जो किसी बंदरगाह या खाड़ी के पास नहीं थे जहाँ जेट्टी थी। ऐसी परिस्थिति में, हमें नाव के लंगर का उपयोग करना पड़ता था - जो एक भारी धातु की वस्तु है जिस पर कुछ नुकीले हुक लगे होते हैं। जब लंगर पानी में डाला जाता है, तो यह समुद्र तल के बिलकुल नीचे लग जाता है और नाव को बहने से रोकता है। हम मानव भी नावों की तरह हो सकते हैं, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी के ज्वार और लहरों पर इधर-उधर उछलते और तैरते रहते हैं। हम समाचारों में आतंकवादी हमले, विद्यालयों और गिरजाघरों में गोलीबारी, न्यायालय के बुरे फ़ैसले, आपके परिवार में बुरी ख़बरें या प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सुनते हैं। ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो हमें हिला सकती हैं और हमें खोया हुआ और निराशा से भरा हुआ महसूस करा सकती हैं। जब तक हमारी आत्मा के लिए कोई सहारा नहीं होगा, हम भटकते रहेंगे और हमें कोई शांति नहीं मिलेगी। लेकिन लंगर को काम करने के लिए, उसे कांटे के द्वारा किसी ठोस और अचल चीज़ से फंसाना चाहिए। एक नाव में सबसे मजबूत, सबसे अच्छा लंगर हो सकता है, लेकिन जब तक उसे किसी सुरक्षित और दृढ़ कांटे से नहीं फंसाया जाता, वह नाव अगली लहर में बह जाएगी। बहुत से लोगों को उम्मीद है, लेकिन वे अपनी उम्मीद अपने बैंक खाते, अपने जीवनसाथी के प्यार, अपने अच्छे स्वास्थ्य या सरकार पर लगाते हैं। वे कह सकते हैं: “जब तक मेरे पास मेरा घर, मेरी नौकरी, मेरी कार है, तब तक सब ठीक रहेगा। जब तक मेरे परिवार में हर कोई स्वस्थ है, सब ठीक है।” लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि यह कितना अस्थिर हो सकता है? अगर आपकी नौकरी चली जाए, परिवार का कोई सदस्य बीमार हो जाए, या अर्थव्यवस्था विफल हो जाए तो क्या होगा? क्या तब आप ईश्वर में अपना विश्वास खो देंगे? कभी नहीं बह जाए मुझे याद है जब मेरे पिता अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में कैंसर से जूझ रहे थे। वह हमारे परिवार के लिए एक तूफानी, अशांत समय था क्योंकि प्रत्येक नई जाँच के साथ, हमें बारी-बारी से अच्छी खबर या बुरी खबर सुनने को मिलती थी। बार बार अस्पताल की ओर यात्राएँ हुईं, और उन्हें एक बार आपातकालीन सर्जरी के लिए दूसरे अस्पताल में भी ले जाया गया। जब हमने अपने पिता को पीड़ित होते और बीमार और कमज़ोर होते देखा तो मैं बहुत बेचैन और अस्थिर महसूस कर रही थी। मेरे पिता एक दृढ़, धर्मनिष्ठ ईसाई थे। वे हर दिन घंटों परमेश्वर के वचन को पढ़ने और उसका अध्ययन करने में बिताते थे, और उन्होंने वर्षों तक बाइबल अध्ययन की कक्षाएं ली थीं। यह सोचने केलिए मैं मजबूर हो गयी कि इन सब में येशु कहाँ थे। जांच का एक और बुरा परिणाम सुनने के बाद, इस नवीनतम तूफानी रिपोर्ट से मेरी आत्मा विचलित हो गई, मैं प्रार्थना करने के लिए एक गिरजाघर गयी। “प्रभु, मैं आशा खो रही हूँ। तू कहाँ है?" जैसे ही मैं चुपचाप बैठी, मुझे एहसास होने लगा कि मैं अपने पिता के ठीक होने की उम्मीद कर रही थी। इसलिए मैं इतना अस्थिर और असुरक्षित महसूस कर रही थी। लेकिन येशु मुझे आमंत्रित कर रहे थे कि मैं अपनी आशा, अपना भरोसा उस पर रखूँ। प्रभु मेरे पिता से प्यार करते थे, जितना प्यार मैं पिता को दे सकती थी उससे ज़्यादा और इस कठिन परीक्षा में प्रभु उनके साथ थे। ईश्वर मेरे पिता को वह सब देंगे जो उन्हें अपनी दौड़ को अच्छी तरह से अंत तक दौड़ने के लिए चाहिए, वह अंत चाहे जब भी हो। मुझे यह याद रखने की ज़रुरत थी और ईश्वर पर और मेरे पिता के लिए ईश्वर के महान प्रेम पर अपनी आशा बनाये रखने की ज़रूरत थी। मेरे पिताजी कुछ सप्ताह बाद घर पर ही प्यार और ढेर सारी प्रार्थनाओं से घिरे हुए चल बसे। मेरी माँ द्वारा उनकी बहुत देखभाल की गई। उनकी मृत्यु के समय उनके चेहरे पर सौम्य मुस्कान थी। वे प्रभु के पास जाने के लिए तैयार थे, अपने उद्धारकर्ता को आखिरकार आमने-सामने देखने के लिए उत्सुक थे। और मैं उस समय शांति का अनुभव कर रही थी, उन्हें जाने देने के लिए मैं तैयार थी। आशा लंगर है, लेकिन लंगर उतना ही मजबूत होता है जितना कि जिस कांटे से वह फंसा या जुदा हुआ है। अगर हमारा लंगर येशु में सुरक्षित है, जो हमारे आगे के मंदिर के पर्दे को पार कर गया है और वे हमारा इंतजार कर रहे हैं, तो चाहे लहरें कितनी भी ऊंची क्यों न हों, चाहे हमारे आस-पास कितने भी भयंकर तूफान क्यों न हों, हम स्थिर रहेंगे और बह नहीं जाएंगे।
By: Ellen Hogarty
Moreहम हमेशा अपने कैलेंडर को जितना संभव हो उतना भरने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या होगा अगर कोई अप्रत्याशित अवसर आ जाए? नया साल आने पर हमें ऐसा लगता है कि हमारे सामने एक खाली स्लेट है। आने वाला साल संभावनाओं से भरा है, और हमारे नए-नए छपे कैलेंडर को भरने के लिए हम ढेर सारे संकल्प लेते हैं। हालाँकि, ऐसा होता है कि बेहतरीन साल के लिए कई रोमांचक अवसर और विस्तृत लक्ष्य विफल हो जाते हैं। जनवरी के अंत तक, हमारी मुस्कान फीकी पड़ जाती है, और पिछले सालों की पुरानी आदतें हमारे जीवन में वापस आ जाती हैं। अगर हम इस साल, इस पल को थोड़ा अलग तरीके से लें तो कैसा होगा? अपने कैलेंडर पर खाली जगह को जल्दी जल्दी भरने के बजाय, उन खाली जगहों में जहां हमारे पास पहले से कुछ भी कार्यक्रम निर्धारित नहीं है, वहां थोड़ा और स्थान और समय क्यों न दें? इन्हीं खाली जगहों में हम पवित्र आत्मा को अपने जीवन में काम करने के लिए सबसे अधिक जगह दे सकते हैं। जो कोई भी एक घर से दूसरे घर में स्थानांतरित हुए है, वह जानता है कि एक खाली कमरा कितनी आश्चर्यजनक जगह बना सकता है। जैसे-जैसे फर्नीचर बाहर जाता है, कमरा बढ़ता हुआ प्रतीत होता है। जब पूरा कमरा खाली हो जाता है, तब यह सोचकर आश्चर्य होता है कि पर्याप्त जगह की कमी पहले बड़ी समस्या थी, अब देखो वही कमरा कितना बड़ा हो गया है! कमरा जितना अधिक कालीनों, फर्नीचर, दीवार पर लटकने वाली वस्तुओं और अन्य चीजों से भरा होता है, उतना ही जगह की कमी महसूस होती है। तभी, कोई आपके घर एक उपहार लेकर आता है, और आप सोचने लगते हैं - अब, हम इसे कहां रखेंगे? हमारा कैलेंडर भी लगभग इसी तरह काम कर सकता है। हम अपने कैलेंडर को हर दिन काम, अभ्यास, खेल, प्रतिबद्धता, प्रार्थना, सेवा आदि से भर देते हैं - वे सभी अच्छी और अक्सर ज़रूरी लगने वाले बहुत सारे काम हैं। लेकिन जब पवित्र आत्मा एक ऐसे अवसर के साथ दस्तक देता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी, तब क्या होता है? क्या हमारे कैलेंडर में उसके लिए जगह है? पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन को स्वीकार करने के लिए हम मरियम को एक आदर्श नमूने के रूप में देख सकते हैं। मरियम स्वर्गदूत के शब्दों को सुनती है और उन्हें स्वतंत्र रूप से ग्रहण करती है। अपने जीवन को ईश्वर को अर्पित करके, वह ईश्वर के उपहारों को प्राप्त करने के लिए सही स्वभाव का प्रदर्शन करती है। इसके बारे में सोचने का एक और तरीका है जिसे बिशप बैरन ने 'अनुग्रह की कुंडली' कहा है। ईश्वर हमें भरपूर कृपा और अनुग्रह देना चाहता है। जब हम ईश्वर की प्रेमपूर्ण उदारता के प्रति स्वीकृति देते हैं, तो हम पहचानते हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है वह सब ईश्वर का ही उपहार है। खुशी के साथ, हम आभार और धन्यवाद के द्वारा ये उपहार ईश्वर को वापस देते हैं, और इस तरह कुंडली को फिर से चालू करते हैं। ईश्वर मरियम तक पहुँचता है, और मरियम स्वतंत्र रूप से खुद को उसकी इच्छा और उद्देश्य के लिए समर्पित करती है। फिर वह येशु को स्वीकार करती है। हम इसे येशु के जीवन के अंत में फिर से देखते हैं। बहुत दुःख और भयानक दर्द में, मरियम अपने प्यारे बेटे को कलवारी की ओर जाने देती है। जब येशु क्रूस पर लटका हुआ था, तब भी मरियम उससे चिपकी नहीं रहती। उस दर्दनाक क्षण में, सब कुछ खो गया लगता है, और उसका मातृत्व खाली हो जाता है। वह भागती नहीं है, वह अपने बेटे के साथ रहती है, और लगता है कि उसके बेटे येशु ने ही उसे त्याग दिया है। फिर, येशु ने उसे योहन के रूप में न केवल एक बेटा दिया, बल्कि कलीसिया के मातृत्व में अनगिनत बेटे और बेटियाँ दीं। क्योंकि मरियम ईश्वर की योजना के प्रति उदार और ग्रहणशील रही, उन सबसे दर्दनाक क्षणों में भी, इसलिए अब हम उसे हमारी माँ कहकर पुकार सकते हैं। जैसे-जैसे साल आगे बढेगा, शायद अपने सम्पूर्ण कार्य योजना के बारे में प्रार्थना करने के लिए कुछ समय निकालें। क्या आपने अपनी तिथियों को पहले से ही ज़रूरत से ज़्यादा, बहुत ज़्यादा कामों से भर लिए हैं? पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें कि वह आपको यह सोचने के लिए प्रेरित करे कि उसके उद्देश्यों के लिए कौन सी गतिविधियाँ ज़रूरी हैं और कौन सी आपकी व्यक्तिगत इच्छाओं और लक्ष्यों के लिए ज़्यादा ज़रूरी हैं। अपनी कार्य योजनाओं को फिर से व्यवस्थित करने के लिए साहस माँगें, ज़रूरत पड़ने पर "नहीं" कहने की बुद्धि माँगें, ताकि जब वह आपके दरवाज़े पर दस्तक दे तो आप खुशी-खुशी और आज़ादी से "हाँ!" कह सकें।
By: Kate Taliaferro
Moreआप जहां कही भी हों और जो कुछ भी करें, आप जीवन में इस महान मिशन के लिए बुलाये गए हैं। अस्सी के दशक के मध्य में, ऑस्ट्रेलियाई फिल्म निर्देशक पीटर वियर ने विटनेस नामक अपनी पहली सफल अमेरिकी थ्रिलर फिल्म बनाई, जिसमें हैरिसन फोर्ड ने अभिनय किया था। यह फिल्म एक युवा लड़के के विषय में है जो एक अंडरकवर पुलिस अधिकारी की उसके भ्रष्ट सहकर्मियों द्वारा की गयी हत्या को देखता है, और उस युवक को सुरक्षा के लिए आमिश समुदाय में छिपा दिया जाता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, वह टुकड़ों को एक साथ जोड़कर याद करता है कि क्या हुआ था और फिर, वह हैरिसन फोर्ड द्वारा अभिनीत जॉन बुक नामक किरदार को सब कुछ बताता है (सुसमाचार के प्रतीक पर ध्यान दें)। फिल्म में एक गवाह के चरित्र को दिखाया गया हैं: वह गवाह जो देखता है, याद करता है, और बताता है। परिवृत्त में वापसी येशु ने अपने आतंरिक वृत्त के लोगों को दर्शन दिया ताकि उनके पुनरुत्थान की सच्चाई उन लोगों के माध्यम से सभी तक पहुँच सके। उन्होंने अपने शिष्यों के हृदयों को अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के रहस्य के लिए खोला और कहा: "तुम इन बातों के साक्षी हो" (लूकस 24:48)। उन्हें अपनी आँखों से देखने के बाद, प्रेरित इस अविश्वसनीय अनुभव के बारे में चुप नहीं रह सके। प्रेरितों के लिए जो सत्य है, वह हमारे लिए भी सत्य है, क्योंकि हम कलीसिया के सदस्य हैं, जो मसीह का रहस्यमय शरीर है। येशु ने अपने शिष्यों को आदेश दिया कि “इसलिए तुम लोग जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ, और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो।” (मत्ती 28:19) मिशनरी शिष्यों के रूप में, हम गवाही देते हैं कि येशु जीवित हैं। इस मिशन को उत्साहपूर्वक और लगातार रूप से अपनाने का एकमात्र तरीका यह है कि हम विश्वास की आँखों से देखें कि येशु जी उठे हैं, कि वे जीवित हैं, और हमारे भीतर और हमारे बीच उपस्थित हैं। यही एक गवाह का कार्य है। उस परिवृत्त में लौटते हुए सोचें, कोई व्यक्ति पुनर्जीवित मसीह को कैसे ‘देख सकता है’? येशु ने हमें निर्देश दिया: “जब तक गेहूँ का दाना मिटटी में गिरकर मर नहीं जाता, तब तक वह अकेला ही रहता है; परन्तु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता है।” (योहन 12:23-24) सरल शब्दों में कहें तो, यदि हम वास्तव में येशु को ‘देखना चाहते हैं, यदि हम उसे गहराई से और व्यक्तिगत रूप से जानना चाहते हैं, और यदि हम उसे समझना चाहते हैं, तो हमें गेहूँ के दाने को देखना होगा जो मिट्टी में मर जाता है: दूसरे शब्दों में, हमें क्रूस की ओर देखना होगा। क्रूस का चिन्ह आत्म-संदर्भ (अहं के नाटक) से मसीह-केंद्रित (ईश्वर के नाटक) होने की ओर एक क्रांतिकारी बदलाव को दर्शाता है। अपने आप में, क्रूस केवल प्रेम, सेवा और बिना किसी शर्त के आत्म-समर्पण को व्यक्त कर सकता है। ईश्वर की स्तुति और महिमा तथा दूसरों की भलाई के लिए स्वयं को बलिदान के रूप में देने के माध्यम से ही हम मसीह को देख सकते हैं और त्रीत्ववादी प्रेम में प्रवेश कर सकते हैं। केवल इसी तरह से हम 'जीवन के वृक्ष' पर कलम हो सकते हैं और वास्तव में येशु को 'देख' सकते हैं। येशु स्वयं जीवन हैं। और हम जीवन की तलाश करने के लिए कठोर रूप से तैयार हैं क्योंकि हम ईश्वर की छवि में बने हैं। इसलिए हम येशु की ओर आकर्षित होते हैं - येशु को 'देखने' के लिए, उनसे मिलने के लिए, उन्हें जानने के लिए, और उनके साथ प्यार में पड़ने के लिए आकर्षित होते हैं। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम पुनर्जीवित मसीह के प्रभावी गवाह बन सकते हैं। छिपा हुआ बीज हमें भी सेवा में समर्पित जीवन की गवाही के साथ जवाब देना चाहिए, एक ऐसा जीवन जो येशु के मार्ग के अनुरूप हो, जो दूसरों की भलाई के लिए बलिदानपूर्ण आत्म-समर्पण का जीवन हो, यह याद दिलाते हुए कि प्रभु हमारे पास सेवक के रूप में आए थे। व्यावहारिक रूप से, हम ऐसा क्रांतिकारी जीवन कैसे जी सकते हैं? यीशु ने अपने शिष्यों से कहा: "पवित्र आत्मा तुम पर उतारेगा, और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा; और मेरे साक्षी होगे" (प्रेरित चरित 1:8)। जिस तरह पवित्र आत्मा ने पहले पेन्तेकोस्त के दिन किया था, वैसे ही वह भय से बंधे हमारे दिलों को मुक्त करता है। वह हमारे पिता की इच्छा को पूरा करने के हमारे प्रतिरोध पर विजय प्राप्त करता है, और वह हमें यह गवाही देने के लिए सशक्त बनाता है कि येशु जी उठे हैं, वे जीवित हैं और वे अभी और हमेशा मौजूद हैं! पवित्र आत्मा यह कैसे करता है? हमारे हृदयों को नवीनीकृत करके, हमारे पापों को क्षमा करके, और हमें सात उपहारों से भरकर जो हमें यीशु के मार्ग पर चलने में सक्षम बनाते हैं। केवल छिपे हुए बीज के क्रूस के माध्यम से, जो मरने के लिए तैयार है, हम वास्तव में यीशु को 'देख' सकते हैं और इसलिए उसकी गवाही दे सकते हैं। केवल मृत्यु और जीवन के इस अंतर्संबंध के माध्यम से ही हम उस प्रेम की खुशी और फलदायीता का अनुभव कर सकते हैं जो जी उठे मसीह के हृदय से बहता है। केवल आत्मा की शक्ति के माध्यम से ही हम उस जीवन की पूर्णता तक पहुँच सकते हैं जो उसने हमें उपहार में दिया है। इसलिए, जैसा कि हम पिन्तेकुस्त मनाते हैं, आइए हम विश्वास के उपहार द्वारा जी उठे प्रभु के गवाह बनने का संकल्प लें और उन लोगों तक खुशी और शांति के पास्का उपहार लाएँ जिनसे हम मिलते हैं। अल्लेलुया!
By: डीकन जिम मैकफैडेन
Moreमेरी नई हीरो मदर अल्फ्रेड मोस हैं। मुझे एहसास है कि वह कैथलिकों के बीच प्रचलित नाम नहीं हैं, लेकिन उन्हें होना चाहिए। वह मेरे रडार स्क्रीन पर तभी आईं जब मैं विनोना-रोचेस्टर धर्मप्रांत का धर्माध्यक्ष बन गया, जहाँ मदर आल्फ्रेड ने अपना अधिकांश काम किया और वहीँ उनका दफन हुआ है। उनका जीवन उल्लेखनीय साहस, विश्वास, दृढ़ता और विशुद्ध साहस की अद्वितीय कहानी है। विश्वास करें, एक बार जब आप उनके कारनामों के विवरण को समझेंगे, तो आपको कई अन्य साहसी कैथलिक माताओं की याद आएगी, जैसे: कैब्रिनी, टेरेसा, ड्रेक्सेल और एंजेलिका। मदर आल्फ्रेड का जन्म 1828 में यूरोप के लक्ज़मबर्ग में मारिया कैथरीन मोस के रूप में हुआ था। एक छोटी लड़की के रूप में, वह उत्तरी अमेरिका के मूलवासी लोगों के बीच मिशनरी कार्य करने की संभावना से मोहित हो गई थी। तदनुसार, वह 1851 में अपनी बहन के साथ अमेरिका की नई दुनिया की यात्रा पर निकल पड़ी। सबसे पहले, वह मिल्वौकी में स्कूल सिस्टर्स ऑफ़ नोट्रेडेम में शामिल हुईं, लेकिन फिर ला पोर्टे, इंडियाना में होली क्रॉस सिस्टर्स में स्थानांतरित हो गईं, जो कि नोट्रेडेम विश्वविद्यालय के संस्थापक फादर सोरिन, सी.एस.सी. से जुड़ा एक समूह था। अपने वरिष्ठों के साथ टकराव के बाद (यह इस बहुत ही उत्साही और आत्मविश्वासी महिला के साथ अक्सर होता था) वह जोलियट, इलिनोई चली गईं, जहाँ वह फ्रांसिस्कन बहनों की एक नई मंडली की सुपीरियर बन गईं, और उन्होंने 'मदर आल्फ्रेड' नाम अपना लिया। जब शिकागो के बिशप फोले ने उनके समुदाय के वित्त और निर्माण परियोजनाओं में हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो वह मिनेसोटा में सेवा के नए क्षेत्र की तलाश में निकल पड़ीं, जहाँ महान आर्चबिशप आयरलैंड ने उनका स्वागत किया और रोचेस्टर में एक स्कूल स्थापित करने की अनुमति दी। दक्षिणी मिनेसोटा के उस छोटे से शहर में ईश्वर ने मदर आल्फ्रेड के माध्यम से शक्तिशाली रूप से काम करना शुरू किया। 1883 में, रोचेस्टर में एक भयानक बवंडर आया, जिसमें कई लोग मारे गए और कई अन्य बेघर और बेसहारा हो गए। एक स्थानीय डॉक्टर विलियम वॉरेल मेयो ने आपदा के पीड़ितों की देखभाल का काम संभाला। घायलों की संख्या से परेशान होकर, उन्होंने मदर आल्फ्रेड और उनकी बहनों से मदद मांगी। हालाँकि वे नर्स नहीं बल्कि शिक्षिका थीं और उन्हें चिकित्सा में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं था, फिर भी उन्होंने इस मिशन को स्वीकार कर लिया। उस आपदा के बाद, मदर ने बड़ी शांति से डॉक्टर मेयो को बताया कि उनका एक सपना है कि रोचेस्टर में एक अस्पताल बनाया जाना चाहिए, न केवल उस स्थानीय समुदाय की सेवा के लिए, बल्कि पूरे विश्व की सेवा के लिए। पूरी तरह से अवास्तविक इस प्रस्ताव से चकित, डॉक्टर मेयो ने मदर से कहा कि ऐसी सुविधा बनाने के लिए उन्हें $40,000 जुटाने की आवश्यकता होगी। उस समय और स्थान के हिसाब से इस रकम को जुटाना किसी साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं थी। उन्होंने डॉक्टर से कहा कि अगर वे धन जुटाने और अस्पताल बनाने में कामयाब हो जाती हैं, तो वे चाहती हैं कि डॉक्टर और उनके दोनों डॉक्टर बेटे इस अस्पताल में काम करें। थोड़े समय के भीतर, मदर ने धन जुटाया और सेंट मैरी अस्पताल की स्थापना हुई। आप पहले ही अनुमान लगा चुके होंगे, यह वह बीज था जिससे शक्तिशाली मेयो क्लिनिक विकसित हुआ। मदर आल्फ्रेड की बहुत पहले की कल्पना के अनुसार यह वास्तव में मेयो क्लिनिक एक नई अस्पताल प्रणाली बनेगी जो पूरी दुनिया की सेवा करेगी। इस निडर साध्वी ने न केवल अपने द्वारा स्थापित अस्पताल के निर्माता, आयोजक और प्रशासक के रूप में अपना काम जारी रखा, बल्कि सत्तर वर्ष की आयु तक, यानी 1899 में अपनी मृत्यु तक, उन्होंने दक्षिणी मिनेसोटा में कई अन्य संस्थानों के लिए भी काम किया। कुछ हफ़्ते पहले ही, मैंने अपने धर्मप्रांत में पुरोहितों की ज़रूरत के बारे में लिखा था, और मैंने सभी से पुरोहिताई की बुलाहट को बढाने के मिशन का हिस्सा बनने का आग्रह किया था। मदर आल्फ्रेड को ध्यान में रखते हुए, क्या मैं अब महिलाओं के धर्मसंघी जीवन के लिए और अधिक बुलाहटों का आह्वान कर सकता हूँ? किसी तरह महिलाओं की पिछली तीन पीढ़ियों ने धर्म संघी जीवन को अपने विचार के अयोग्य माना है। द्वितीय वेटिकन परिषद के बाद से धर्मसंघी साध्वियों की संख्या में भारी गिरावट आई है। जब इस बारे में पूछा जाता है, तो अधिकांश कैथलिक शायद कहेंगे कि हमारे नारीवादी युग में धर्मसंघी बहन बनना एक व्यवहार्य संभावना नहीं है। मैं कहूंगा कि यह बकवास है! मदर आल्फ्रेड ने बहुत कम उम्र में अपना घर छोड़ दिया, समुद्र पार करके एक विदेशी भूमि पर चली गईं, धर्मसंघी बन गईं, अपनी बुलाहट और मिशन की भावना का पालन किया, तब भी जब इससे उन्हें कई धर्माध्यक्षों सहित शक्तिशाली वरिष्ठों के साथ संघर्ष करना पड़ा, डॉक्टर मेयो को इस धरती का सबसे प्रभावशाली चिकित्सा केंद्र स्थापित करने के लिए प्रेरित किया, और बहनों के एक धर्मसंघी संस्था के विकास का नेतृत्व और अध्यक्षता की। इन साध्वियों ने चिकित्सा और शिक्षण की कई संस्थानों का निर्माण और संचालन किया। मदर आल्फ्रेड असाधारण बुद्धि, प्रेरणा, जुनून, साहस और आविष्कारशीलता वाली महिला थीं। अगर किसी ने उन्हें सुझाव दिया होता कि वे अपने उपहारों के अयोग्य या अपनी गरिमा से नीचे जीवन जी रही हैं, तो मुझे लगता है कि उनके पास जवाब में कुछ चुनिंदा शब्द होंगे। आप एक नारीवादी नायक की तलाश कर रहे हैं? आप शायद ग्लोरिया स्टीनम को चुनेगे; मैं कभी भी मदर आल्फ्रेड को चुनूंगा। इसलिए, अगर आप किसी ऐसी युवती को जानते हैं जो एक अच्छी धर्मसंघी साध्वी बन सकती है, जो बुद्धिमान, ऊर्जावान, रचनात्मक और जोश से भरी हुई है, तो उसके साथ मदर आल्फ्रेड मोस की कहानी साझा करें। और उसे बताएं कि वह भी मदर की तरह की वीरता की आकांक्षा रख सकती है।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
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