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क्या आप अपने बच्चे के लिए चिंतित है ?
क्या आप अपने जीवन साथी के लिए लम्बे अरसे से प्रार्थना करते आये हैं ?
तब आपको इस व्यक्ति के बारे में जानना चाहिए |
मुझे संत मोनिका के बारे में कुछ ही साल पहले जानकारी मिली | जब मैं ने जाना कि उसने अपने पुत्र अगस्तीन के मनपरिवर्तन के लिए और अपने अविश्वासी पति पेट्रीसियस के धर्म परिवर्तन के लिए बहुत वर्षों तक प्रार्थना करती रही, तब मुझे लगा कि तीसरी सदी के इस संत के बारे में मुझे और अधिक जानकारी हासिल करनी है | मैं अपने परिवार में बदलाव के लिए बहुत वर्षों से प्रार्थना कर रही थी | अपने प्रिय लोगों के लिए प्रार्थना में बरकरार रहने की आशा संत मोनिका ने मुझे दी है |
संत मोनिका का जन्म सन 331 ईसवीं में उत्तरी आफ्रिका के तागास्ते शहर में एक ख्रीस्तीय परिवार में हुआ था | उनके माता पिता ने ख्रीस्तीय विश्वास में उनकी परवरिश की | एक रोमी अधिकारी पेट्रीसियस से उनकी शादी हुई | दाम्पत्य जीवन आनंदमय नहीं था, लेकिन मोनिका की क्षमा और कुशलता के कारण ही उनका दाम्पत्य शांतिपूर्ण और स्थिरातापूर्ण था |
मोनिका को इस बात का बहुत दुःख था कि उनके बच्चों को बप्तिस्मा दिलाने में उसका पति अडंगा लगा रहा है | जब अगस्तीन बहुत अधिक बीमार हो गया तब उसके बप्तिस्मा केलिए मोनिका अपने पति से बहुत रो रोकर गिडगिड़ाई | पेट्रीसियस ने अनुमति दी | जैसे ही बप्तिस्मा से पूर्व अगस्तीन ठीक हो गया बप्तिस्मा ने फिर मना किया | जिस विश्वास को मोनिका इतना प्रेम करती थी, उसी विश्वास में अपने बच्चों की परवरिश और लालन पालन करने से रोका जाना कितना चिन्ताजनाक रहा होगा | इसके बावजूद वह अपने विश्वास में अडिग रही |
मोनिका ने अपने पति के हिंसक प्रकोपों को बेहद धैर्य से सहन करती हुई अपने वैवाहिक जीवन में दृढ़ता दिखाई। उनके पैतृक शहर की अन्य बहुत सी पत्नियां और माताएं भी अपने अपने पति के हिंसक प्रकोपों को झेल रही थी। उन्होंने भी मोनिका के धैर्य की प्रशंसा की और उनका बड़ा सम्मान किया। अपने वचनों और नमूना द्वारा मोनिका ने उन्हें दिखाया कि वे अपने पतियों से कैसे प्यार कर सकती हैं। अपने वैवाहिक जीवन की कठिनाइयों के बावजूद, मोनिका अपने पति के रूपांतरण के लिए प्रार्थना करती रही।
मोनिका का विश्वास अंततः पुरस्कृत किया गया। अपनी मृत्यु से एक साल पहले, पेट्रीशियस ने अपनी पत्नी के ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया। लम्बी प्रार्थना का यह जवाब तब आया जब अगस्तीन 17 साल का था। आप ज़रूर सोचेंगे कि अगस्तीन के पिता के धर्मांतरण का असर उसके पुत्र पर अवश्य पड़ा होगा। लेकिन इसका उल्टा असर होने लगा: अगस्तीन ने अपने अधार्मिक और अनैतिक तरीके जारी रखे और वह गंभीर पाप में गिर गया। मोनिका अपने बेटे के लिए ईश्वर से दया की भीख मांगती रही।
अगस्तीन ने सांसारिक महत्वाकांक्षाओं के साथ अपने अनैतिक जीवन शैली को जारी रखा और मोनिका अपने बेटे की आत्मा के लिए ईश्वर के साथ संघर्ष करती रही। ऐसा लग रहा था कि उसके बेटे और पति को स्वर्ग में सुरक्षित देखना ही उसके जीवन का एकमात्र मिशन है। एक ओर वह गहरी प्रार्थना और दयालुता के कार्य करनेवाली महिला थी, लेकिन अगस्तीन ने अपनी मां को उससे धर्म परिवर्तन करानेवाली, उसे नियंत्रित करनेवाली और जबरन सुधारने के जिद पर अड़ी व्यक्ति के रूप में देखा। लेकिन आज कितनी कैथलिक माताएँ हैं जो अपने बच्चों को अपने धार्मिक विश्वास को हस्तांतरित करने को तैयार रहती हैं? कितनी बार मोनिका ने अपने बेटे को ईश्वर के सम्मुख समर्पित कर दिया होगा और उसकी दया के लिए भीख मांगी होगी?
एक समय पर, मोनिका ने मिलान में रहनेवाले अपने बेटे की खोज में निकलने का फैसला किया, हालांकि इस लम्बी यात्रा का खर्च उठाने के लिए उसके पास पर्याप्त धन नहीं था। वह अपने बेटे को उसके पापमय जीवन से छुडाने के लिए किसी भी बलिदान के लिए तैयार थी। मोनिका ने जहाज द्वारा मिलान की लम्बी और दुर्गम यात्रा हेतु आवश्यक धन जुटाने के लिए अपने कुछ क़ीमती संपत्ति बेच दी, और एक शिकारी कुत्ते की तरह अपने बेटे का पीछा किया। इस यात्रा के दौरान, मोनिका की मुलाकात मिलान के धर्माध्यक्ष अम्ब्रोस से हुई, जो बाद में चलकर अंतत: अगस्तीन को विश्वास में लाए। छह महीने के धर्म प्रशिक्षण के बाद अगस्तीन को संत अम्ब्रोस द्वारा सेंट जॉन द बैपटिस्ट चर्च में बप्तिस्मा दिया गया। अपने बेटे पर की गयी इस दया के लिए मोनिका ने खुशी से झूम ली होगी और प्रभु की बहुत स्तुति की होगी। .
संत अगस्तीन के धर्म परिवर्तन से पहले, मोनिका ने अपने अड़ियल बेटे को लेकर एक अनाम बिशप से सलाह ली थी। बिशप ने उसे यह कहकर सांत्वना दी: “उन आँसुओं का पुत्र कभी नष्ट नहीं होगा।” अगस्तीन के धर्म परिवर्तन के तीन साल बाद तक मोनिका जीवित थी। पृथ्वी पर उसका मिशन पूरा हुआ था। ईश्वर ने उन्हें अपने बेटे और पति के धर्म परिवर्तन के लिए प्रार्थना करने और अपनी दुःख पीडाओं की भेंट चढाने के लिए बुलाया था। सन 387 ईसवीं में जब वह 56 वर्ष की थी ईश्वर ने मोनिका को स्वर्ग में बुला लिया और अनंत आनंदमय जीवन का इनाम दिया। जब अगस्तीन की मां की मृत्यु हुई, तब वह 33 साल का था। अगस्तीन बाद में हिप्पो के बिशप बने और अंततः कलीसिया के आचार्य भी घोषित हुए। मुझे यकीन है कि स्वर्ग से मोनिका ने अपने बेटे के लिए प्रार्थना करना जारी रखी होगी और परमेश्वर की अनवरत स्तुति करती रही होगी |
संत अगस्तीन अपनी आत्मकथा, “कन्फेशन्स” को लिखते हुए अपनी माँ के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा को प्रकट करते हैं। जब माँ की मृत्यु हुई, तो उन्हें गहरा दुख हुआ और उन्होंने लिखा: “वे मेरी विकट स्थिति के संबंध में पहले से ही इस हद तक आश्वस्त थी, कि जब तक वे प्रभु के सम्मुख मुझे एक मरे हुए आदमी के रूप में मेरे लिए लगातार रोती रही, मानो मरा हुआ आदमी फिर से जीवित किया जा सकता है; उसने मुझे अपने ध्यान की अर्थी पर तुझे समर्पित करती थी और तुझसे गिडगिडाकर भीख मांगती थी की तू इस विधवा के बेटे को, ‘हे नव युवक, उठो’ कहें, कि वह फिर से जीवित हो जाए और बोलना शुरू कर दे ताकि तू उसे बहाल कर उसकी माँ को सौंप सकें।”
मोनिका ने एक बार अगस्तीन से कहा था कि वे आश्वस्त हैं कि वे इस दुनिया से विदा लेने के पहले उसे एक वफादार ख्रीस्तीय के रूप में देखेंगी। आइए हम सभी इस तरह के मज़बूत और भरोसापूर्ण विश्वास की कामना करें। हम याद रखें कि मातृत्व या पितृत्व का आह्वान संतों को जन्म देने के लिए एक बुलाहट है, लोगों को परिवर्तित करने और संतों का निर्माण की एक बुलाहट है। धरती पर माता-पिता होने का असली उद्देश्य स्वर्ग में संतों की संख्या में वृद्धि करना है!
Connie Beckman is a member of the Catholic Writers Guild, who shares her love of God through her writings, and encourages spiritual growth by sharing her Catholic faith
आप चाहे जिस भी परिस्थिति से गुज़र रहे हों, परमेश्वर वहाँ भी रास्ता बना देगा जहाँ कोई रास्ता नज़र नहीं आता… आज, मेरा बेटा आरिक अपनी श्रुतलेख की कॉपी (डिक्टेशन बुक) लेकर घर आया। उसे 'अच्छा' टिप्पणी के साथ लाल सितारा मिला। शायद यह किंडरगार्टन में पढनेवाले किसी बच्चे के लिए कोई बड़ी बात नहीं हो सकती है, लेकिन हमारे लिए, यह एक शानदार उपलब्धि है। स्कूल जैसे आरम्भ हुआ, पहले सप्ताह में ही, मुझे उसके क्लास टीचर का फोन आया। मेरे पति और मैं इस कॉल से घबरा गए। जब मैंने उसके शिक्षक को उसके संचार कौशल की कमी के बारे में समझाने की बहुत कोशिश की, तो मैंने कबूल किया था कि जब मैं विकलांगता के साथ जन्मी उसकी बड़ी बहन की विशेष ज़रूरतों की परवाह और देखभाल करती थी, तो मैं मुझसे बिन मांगे ही उसकी ज़रूरतों की पूर्ती केलिए काम करने की आदत में पड़ गई थी। चूँकि आरिक की दीदी एक भी शब्द नहीं बोल पाती थी, इसलिए मुझे उसकी ज़रूरतों का अंदाज़ा लगाना पड़ता था। आरिक के जीवन के शुरुआती दिनों में उसके लिए भी यही तरीका जारी था। इससे पहले कि वह पानी मांगे, मैं उसे पानी पिला देती। हमारे बीच एक ऐसा रिश्ता था जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, यह प्यार की भाषा थी, या ऐसा मुझे लगता था। लेकिन चीज़ें मेरी सोच से बिलकुल उलटकर आ गयी , मैं पूरी तरह से गलत थी! थोड़ी देर बाद, जब उसका छोटा भाई अब्राम तीन महीने का हो गया, तो मुझे स्कूल में काउंसलर से मिलने के लिए फिर से वही भारी कदम उठाने पड़े। इस बार, यह आरिक के खराब लेखन कौशल के बारे में था। उसकी प्यारी क्लास टीचर घबरा गई जब उसने देखा कि उसने अपनी पेंसिल टेबल पर रख दी और ज़िद करते हुए अपने हाथ जोड़ लिए जैसे कि कह रहा हो: “मैं नहीं लिखूँगा।” हमें इसका भी डर था। उसकी छोटी बहन अक्षा दो साल की उम्र में ही लिखने में माहिर थी, लेकिन आरिक पेंसिल भी नहीं पकड़ना चाहता था। उसे लिखना बिल्कुल पसंद नहीं था। पहला कदम काउंसलर से निर्देश प्राप्त करने के बाद, मैं प्रिंसिपल से मिली, जिन्होंने जोर देकर कहा कि अगर उसकी संचार क्षमता कमज़ोर बनी रही, तो हमें उसका गहन जांच करवानी चाहिए। उन दिनों मैं इसके बारे में सोच भी नहीं सकती थी। हमारे लिए, वह एक चमत्कारी बच्चा था। हमारे पहले बच्चे के साथ हमने बहुत कष्ट झेले थे और उसके बाद तीन गर्भपात हुए, लेकिन आरिक ने सभी बाधाओं को पार कर लिया था। डॉक्टरों ने जो भविष्यवाणी की थी, उसके विपरीत, वह पूर्ण अवधि में पैदा हुआ था। जन्म के समय उसकी महत्वपूर्ण अंग सामान्य थे। "यह बच्चा कुछ ज़्यादा ही बड़ा है!" डॉक्टर ने सी-सेक्शन ऑपरेशन के ज़रिए उसे बाहर लाते हुए कहा। हमने उसे लगभग साँस रोककर कदम दर कदम बढाते देखा, यह प्रार्थना करते हुए कि कुछ भी गलत न हो। आरिक ने जल्द ही अपने सभी मील के पत्थर हासिल कर लिए। हालाँकि, जब वह सिर्फ़ एक साल का था, तो मेरे पिता ने कहा था कि उसे स्पीच थेरेपी की ज़रूरत हो सकती है। सिर्फ एक साल की उम्र में यह जांच करना ठीक नहीं है, ऐसा कहकर मैं ने उस सुझाव को टाल दिया। सच तो यह था कि मेरे पास एक और समस्या का सामना करने की ताकत नहीं थी। हम पहले से ही अपने पहले बच्चे के साथ होने वाली सभी परेशानियों से थक चुके थे। अन्ना का जन्म निर्धारित समय से 27 सप्ताह पहले हुआ था। एन.आई.सी.यू. में कई दिनों तक रहने के बाद, तीन महीने की उम्र में उसे गंभीर मस्तिष्क क्षति का पता चला और उसे मिर्गी के दौरे पड़ने लगे। सभी उपचारों और दवाओं के बाद, हमारी 9 वर्षीय बेटी अभी भी सेरेब्रल पाल्सी और बौद्धिक विकलांगता से जूझ रही है। वह बैठने, चलने या बात करने में असमर्थ है। अनगिनत आशीर्वाद अपरिहार्य को टालने की एक सीमा होती है, इसलिए छह महीने पहले, हम अनिच्छा से आरिक को प्रारंभिक जांच परीक्षण के लिए ले गए। ADHD (अवधानता, अतिसक्रियता-आवेगशीलता) का निदान कठिन था। हमें इसे स्वीकार करने में कठिनाई हुई, लेकिन फिर भी हमने उसे स्पीच थेरेपी की प्रक्रिया से गुज़रने दिया। उस अवसर पर, वह सिर्फ कुछ ही शब्द बोल पा रहा था। कुछ दिन पहले, मैंने आरिक के साथ अस्पताल जाने और पूर्ण गहन जांच करने का साहस जुटाया। उन्होंने कहा कि उसे हल्का ऑटिज़्म है। जब हम जांच की प्रक्रिया से गुजर रहे थे, तो कई सवाल पूछे गए। मुझे आश्चर्य हुआ, इनमें से अधिकांश सवालों के लिए मेरी प्रतिक्रिया थी: "वह ऐसा करने में सक्षम नहीं था, लेकिन अब वह कर सकता है।" प्रभु की स्तुति हो! आरिक के अन्दर विराजमान पवित्र आत्मा की शक्ति से, सब कुछ संभव हुआ। मेरा मानना है कि स्कूल जाने से पहले हर दिन उसके लिए प्रार्थना करने और उसे आशीर्वाद देने से एक बड़ा बदलाव लाया। जब उसने बाइबल की आयतें याद करना शुरू किया तो यह बदलाव क्रांतिकारी था। और सबसे अच्छी बात यह है कि वह उन आयतों को ठीक उसी समय पढ़ता है जब मुझे उनकी ज़रूरत होती है। वास्तव में, परमेश्वर का वचन जीवित और सक्रिय है। मेरा मानना है कि परिवर्तन जारी है। जब भी मैं उदास महसूस करती हूँ, तो परमेश्वर मुझे आश्चर्यचकित कर देता है और उसे एक नया शब्द कहलवाता है। उसके नखरे के बीच, और जब सब कुछ बिखरता हुआ लगता है, मेरी छोटी लड़की, तीन साल की अक्षा, बस मेरे पास आती है और मुझे गले लगाती है और मुझे चूमती है। वह वास्तव में जानती है कि अपनी माँ को कैसे दिलासा देना है। मेरा मानना है कि परमेश्वर निश्चित रूप से हस्तक्षेप करेगा और हमारी सबसे बड़ी बेटी, अन्ना को भी ठीक करेगा, क्योंकि उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। परिवर्तन पहले से ही दिखाई दे रहा है - मिर्गी के दौरे की संख्या में काफी कमी आई है। हमारे जीवन की यात्रा में, हो सकता है कि चीजें उम्मीद के मुताबिक न चल रही हों, लेकिन ईश्वर हमें कभी नहीं छोड़ता या त्यागता। ऑक्सीजन की तरह जो ज़रूरी तो है लेकिन अदृश्य है, ईश्वर हमेशा मौजूद है और हमें वह जीवन देता है जिसकी हमें बहुत ज़रूरत है। आइए हम उससे चिपके रहें और अंधेरे में संदेह न करें। हमारी गवाही इस सच्चाई को उजागर करे कि हमारा ईश्वर कितना सुंदर, अद्भुत और प्रेममय है और वह हमें कैसे बदल देता है ताकि हम कहें: "मैं ... था, लेकिन अब मैं ... हूँ।"
By: Reshma Thomas
Moreमेरा पति लाइलाज बीमारी से ग्रसित है, मानो उसे मौत की सज़ा सुनाई गई हो; मैं उसके बिना जीना नहीं चाहती थी, लेकिन उसके दृढ़ विश्वास ने मुझे चौंका दिया। पाँच साल पहले, जब हमें पता चला कि मेरा पति जानलेवा बीमारी से ग्रसित हैं, उसी समय मेरी दुनिया तबाह हो गई। मैंने जीवन और भविष्य की जो कल्पना की थी, वह एक पल में हमेशा के लिए बिखर गया। यह भयानक और भ्रमित करने वाला था; मैंने कभी भी इतना भयंकर निराशा और असहायता महसूस नहीं की थी। ऐसा लग रहा था जैसे मैं लगातार डर और निराशा की खाई में डूबी हुई थी। अपने जीवन के सबसे बुरे दिनों का सामना करने के लिए मेरे पास सिर्फ़ मेरा विश्वास था जिस पर मैं टिकी हुई थी । अपने मरते हुए पति की देखभाल करने के दिन और एक नया तथा अलग जीवन का सामना करने की तैयारी के दिन मेरे पहले की योजना से बिलकुल भिन्न थे। क्रिस और मैं किशोरावस्था से ही साथ थे। हम एक दुसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे और दुनिया की कोई भी ताकत हमें अलग नहीं कर सकती थी। हम बीस वर्षों से शादीशुदा थे और अपने चार बच्चों की परवरिश खुशी-खुशी कर रहे थे। हमारा जीवन एक आदर्श जीवन की तरह लग रहा था। अब बीमारी ने मेरे पति को मौत की सज़ा सुनाई और मुझे नहीं पता था कि मैं उसके बिना कैसे रह सकती हूँ। सच में, मैं ऐसा बिलकुल नहीं चाहती थी। एक दिन, टूटे हुए पल में, मैंने क्रिस से कहा कि मुझे लगता है कि अगर मुझे आपके बिना जीना पड़ा तो मैं हृदायाघात से मर जाऊंगी। उसकी प्रतिक्रिया उतनी हताश करने वाली नहीं थी। उसने सख्ती से लेकिन सहानुभूतिपूर्वक मुझसे कहा कि तुम्हें तब तक जीना है जब तक ईश्वर तुम्हें अपने यहाँ नहीं बुला लेता; उसने मुझे यह भी कहा कि तुम अपनी ज़िंदगी को बर्बाद नहीं कर सकती| क्योंकि वह जानता था कि उसका अंत होने वाला था। उसने मुझे पूरे विश्वास के साथ आश्वासन दिया कि वह परलोक से मुझ पर और हमारे बच्चों पर नज़र रखेगा। दुख का दूसरा पहलू क्रिस को ईश्वर के प्यार और दया पर अटूट विश्वास था। वह इस बात पर आश्वस्त था कि हम हमेशा के लिए अलग नहीं होंगे, इसलिए वह अक्सर यह वाक्यांश दोहराता था: "यह बस थोड़ी देर के लिए है।" यह वाक्यांश हमें लगातार याद दिलाता था कि कोई भी दिल का दर्द हमेशा के लिए नहीं रहता है - और इन शब्दों ने मुझे असीम आशा दी। मेरी आशा है कि ईश्वर हमें इस दौरान मार्गदर्शन करेगा, और मेरी आशा यह भी है कि मैं अगले जीवन में क्रिस के साथ फिर से मिल जाऊँगी। इन अंधकारमय दिनों में, हम रोज़री में माँ मरियम से जुड़े रहे - यही एक भक्ति थी जिससे हम पहले से ही परिचित थे। हम लोग दु:ख के रहस्यों पर अधिक बार मनन करते थे, क्योंकि हमारे प्रभु की पीड़ा और मृत्यु पर विचार करने से हम अपने दुख में उनके करीब आ जाते थे। करुणा की माला विनती एक नई भक्ति थी जिसे हमने अपनी दिनचर्या में शामिल किया। रोज़री की तरह, यह इस बात की विनम्र याद दिलाती थी कि येशु ने हमारे उद्धार के लिए स्वेच्छा से क्या सहा, और किसी तरह इस की तुलना में हमें दिया गया क्रूस कम भारी लगने लगा। हमने पीड़ा और बलिदान की सुंदरता को और अधिक स्पष्ट रूप से देखना शुरू कर दिया। मैं दिन के हर घंटे मन ही मन छोटी सी प्रार्थना दोहराती : "ओह, येशु के सबसे पवित्र हृदय, मैं तुझ पर अपना पूरा भरोसा रखती हूँ"। जब भी मुझे अनिश्चितता या भय का अहसास होता, तो यह छोटी प्रार्थना मेरे ऊपर शांति की लहर ले आती। इस दौरान, हमारा प्रार्थना जीवन काफी गहरा हो गया और जैसे हम इस दर्दनाक यात्रा को सहन कर रहे हैं, वैसे हमें उम्मीद थी कि हमारे प्रभु क्रिस और हमारे परिवार पर दया करेगा। आज, मुझे उम्मीद है कि क्रिस शांत है, दूसरी तरफ से हम पर नज़र रख रहा है और हमारे लिए मध्यस्थता कर रहा है - जैसा कि उसने वादा किया था। मेरे नए जीवन के इन अनिश्चित दिनों में, यही आशा मुझे आगे बढ़ने और शक्ति देने में मदद करती है। इस परिस्थिति ने मुझे ईश्वर के अनंत प्रेम और कोमल दया के लिए असीम आभार दिया है। आशा एक जबरदस्त उपहार है; जब हम टूटा हुआ और बिखरा हुआ महसूस करते हैं, तब आशा कभी न बुझने वाली आंतरिक चमक बन जाती है जिस पर हम अपना ध्यान केंद्रित कर पाते हैं । आशा शांत करती है, आशा मजबूत करती है, और आशा ही चंगाई देती है। आशा को थामे रखने के लिए साहस की आवश्यकता होती है। जैसा कि संत जॉन पॉल द्वितीय ने कहा: "मैं आपसे विनती करता हूँ, कभी भी आशा न छोड़ें। कभी संदेह न करें, कभी थक न जाएँ और कभी निराश न हों। डरिये नहीं।"
By: मेरी थेरेस एमन्स
Moreएक परिचित तस्वीर, एक नियमित काम, लेकिन उस दिन, कुछ नया और कुछ अलग था जिसने उसका ध्यान आकर्षित किया। मेरे स्नानघर की अलमारी के कोने में एक पुरानी फोटोकॉपी की एक तस्वीर (लंबे समय से मुझे याद नहीं था कि यह कहाँ से आयी) एक प्लास्टिक के साफ फ्रेम में है। वर्षों पहले, मेरे अब वयस्क हो चुके बेटों में से एक ने इसे सावधानीपूर्वक फ्रेम किया और कपड़े रखने की अपनी अलमारी में रख दी। जब तक मेरा बेटा बड़ा हो गया, तब तक यह तस्वीर वहीं रही। जब मैंने घर बदला, तो मैंने इसे अपने स्नानागर की अलमारी के कोने में स्थानांतरित कर दिया था। जब मैं बाथरूम की सफाई करती हूँ, तो मैं हमेशा छोटे फ्रेम को उठाकर उसके नीचे की सतहों को पोंछती हूँ। कभी-कभी, मैं कपड़े से फ्रेम की चिकनी साइड्स को पोंछकर जमी हुई धूल और अदृश्य कीटाणुओं को साफ कर देती हूँ। लेकिन, कई अन्य परिचित चीजों की तरह मैं शायद ही कभी पुराने बचकाने फ्रेम के अंदर की छवि पर ध्यान देती हूँ। हालांकि, एक दिन, इस तस्वीर ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया। मैंने उत्सुकता से उस तस्वीर में दो आकृतियों — एक बच्चे और येशु — की आँखों पर ध्यान केंद्रित किया। छोटे बच्चे के चेहरे से येशु के प्रति प्यारभरी भक्ति झलक रही थी। बच्चे की मासूमियत और येशु के प्रति अवरोधित सम्मान उसकी नरम और काजल से सजाई गयी आँखों में स्पष्ट मालूम हो रहा था। बच्चे ने येशु मसीह के सिर पर काँटों का ताज या उसके दाहिने कंधे को कुचलने वाले क्रूस की भयावहता को नहीं देखा । बल्कि येशु की भारी पलकों वाली आँखें, झुर्रियों के नीचे से बालक की ओर देख रही थीं। कलाकार उन आँखों के पीछे के दर्द की गहराई को कुशलता से छिपाने में कामयाब था। समानताएँ मैंने एक माँ के रूप में अपने शुरुआती वर्षों की एक स्मृति को याद किया। मैं तीसरी बार गर्भवती थी। गर्भावस्था के अंतिम दिनों में, मैं गर्म पानी में नहाकर अपने दुखते शरीर को शांत करने का प्रयास कर रही थी। मेरे दो छोटे बेटे मेरे बाथटब के चारों ओर टहल रहे थे। वे ऊर्जा से भरे हुए थे और गपशप कर रहे थे, क्योंकि वे बाथटब के चारों ओर घूमते और मुझसे सवाल पूछ रहे थे। मेरी प्राइवेसी और शारीरिक असुविधा उनके बाल मन के लिए कोई मायने नहीं रखती थी। मैंने अपने बेटों को यह समझाने की कोशिश की कि मैं दुखी थी और कुछ समय एकांत में रहना चाहती थी| इस व्यर्थ प्रयास में मैं ने जो आंसू बहाए थे, उन आँसुओं को मैं ने याद किया| लेकिन वे केवल छोटे बच्चे थे जिन्होंने मुझे अपनी माँ के रूप में हमेशा उपस्थित देखा, जो उनके दुखों को चूमकर ठीक करती थी और हमेशा उनकी कहानियों को सुनने और उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तैयार रहती थी। बच्चे को जन्म देने में माँ को जो शारीरिक बलिदान देना पड़ता है, उसे समझने में वे असमर्थ थे। पर मैं उनके लिए उनकी मजबूत थी | मैंने समानताओं पर गौर किया। मेरे छोटे बच्चों की तरह, चित्र में बच्चे ने हमारे प्रभु को अपने व्यक्तिगत, मानवीय अनुभवों के दृष्टिकोण से देखा। उसने एक प्यार करने वाले शिक्षक, एक वफादार दोस्त, और एक स्थिर मार्गदर्शक को देखा। मसीह ने दया से ओतप्रोत होकर अपनी पीड़ा की तीव्रता को छिपा दिया— और कोमलता तथा करुणा के साथ बच्चे की आँखों में अपनी आँखें डाली। प्रभु येशु जानते थे कि बच्चा उसके उद्धार की कीमत पर भोगी गयी पीड़ा के पूर्ण माप को देखने और समझने के काबिल नहीं था I हम अंधकार में खो जाते हैं हमारी चीजों, लोगों, और परिस्थितियों के साथ जान पहचान हमें वास्तविकता के प्रति अंधा बना सकती है। हम अक्सर पुराने अनुभवों और अपेक्षाओं की धुंधली सुरंगों के माध्यम से देखते हैं| चूंकि इतनी सारी उत्तेजनाएं हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, इसलिए यह उचित है कि हम अपने आस-पास की दुनिया को होशियारी से छानकर समझ लें। लेकिन चित्र में जो बच्चा है, उसकी तरह और मेरे अपने छोटे बच्चों की तरह, हम जो देखना चाहते हैं उसे देखते हैं और जो हमारे दृष्टिकोण से मेल नहीं खाता उसे अनदेखा करते हैं। मुझे विश्वास है कि येशु हमारे अंधेपन को ठीक करना चाहते हैं। बाइबल में अंधे व्यक्ति ने, येशु द्वारा छूए जाने पर कहा: “मैं लोगों को देखता हूँ, वे पेड़ों जैसे लगते, लेकिन चलते हैं” (मारकुस 8:22-26)| हम में से अधिकांश लोग साधारण बातों को अचानक दिव्य आँखों से देखने के लिए तैयार नहीं हैं। हमारी आँखें अभी भी पाप के अंधकार की आदि हैं, हमारी आँखें आत्मनिर्भरता से अत्यधिक जुड़ी हैं, हमारी आँखें अपनी भक्ति और आराधना में बहुत आत्मसंतुष्ट हैं, और हमारी आँखें हमारे मानव प्रयासों पर घमंड करती हैं । पूरा चित्र हमारे उद्धार के लिए कलवारी पर चुकाई गई कीमत आसान नहीं थी। यह बलिदान था। फिर भी, मेरे स्नानागार की अलमारी में रखी तस्वीर के बच्चे की तरह, हम केवल येशु की कोमलता और दया पर ध्यान केंद्रित करते हैं। और चूंकि वह दयालु है, इसलिए येशु जल्दीबाजी नहीं करते; वह हमें विश्वास की परिपक्वता को धीरे-धीरे धारण करने में मदद देते हैं। अपने आप से यह पूछना अच्छा होगा कि क्या हम वास्तव में आध्यात्मिक परिपक्वता के लिए प्रयास करते हैं। मसीह ने अपना जीवन इसलिए नहीं दिया कि हम आशीर्वादों की काल्पनिक दुनिया में बने रहें, पर उन्होंने अपना जीवन इसलिए दिया ताकि हमें अनंत जीवन मिल सके| हमें अपनी आँखें खोलने की जरूरत है ताकि हम देख सकें कि उन्होंने इसे अपने रक्त की कीमत पर खरीदा है। जैसे ही हम चालीसा और विशेष रूप से पवित्र सप्ताह के दौर से यात्रा करते हैं, हमें अपनी आँखों पर से अन्धकार की पट्टी हटाने के लिए ख्रीस्त को अनुमति देनी चाहिए| स्वयं को उनकी इच्छा के लिए समर्पित करना चाहिए, उन्हें हमारी एक एक मूर्ती को हटाने की अनुमति देनी चाहिए, और हमारे जीवन में जिन बैटन से हम अत्यधिक परिचित हो गए हैं उन्हें उतार फेंकना चाहिए, ताकि हम भक्ति-आराधना, परिवार, और पवित्रता के पुराने आशीर्वादों को नई आँखों से गहरी, स्थायी विश्वास के साथ देख सकें।
By: Tara K. E. Brelinsky
Moreक्या मेरा जीवन कभी सामान्य हो पाएगा? मैं अपना काम कैसे जारी रख सकती हूँ? इन पर विचार करते हुए, मेरे दिमाग में एक अद्भुत समाधान आया... मुझे अपना जीवन बेहद तनावपूर्ण लग रहा था। कॉलेज में अपने पाँचवें वर्ष में, द्विध्रुवी विकार (बाईपोलर डिसऑर्डर) की शुरुआत के कारण पढ़ाई पूरी करने के मेरे प्रयासों में बाधा बन रही थी। मुझे अभी तक कोई निदान नहीं हुआ था, लेकिन मैं अनिद्रा से ग्रस्त थी, और मैं थकी हुई और अव्यवस्थित दिखती थी। इसके कारण शिक्षक के रूप में रोजगार की मेरी संभावनायें बाधित हुई। चूँकि मेरे पास पूर्णतावाद की ओर मजबूत प्राकृतिक प्रवृत्ति थी, इसलिए मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और डर लगा कि मैं सभी को निराश कर रही हूँ। मैं गुस्से, निराशा और अवसाद में घिर गयी। लोग मेरी गिरावट के बारे में चिंतित थे और मदद करने की कोशिश कर रहे थे। मुझे स्कूल से एम्बुलेंस द्वारा अस्पताल भी भेजा गया था, लेकिन डॉक्टरों को उच्च रक्तचाप के अलावा कुछ भी गलत नहीं मिला। मैंने प्रार्थना की लेकिन कोई सांत्वना नहीं मिली। यहाँ तक कि ईस्टर मिस्सा के दौरान -ईस्टर की रात मेरा सबसे पसंदीदा समय है - भी दुष्चक्र जारी रहा। येशु मेरी मदद क्यों नहीं कर रहा है? मुझे उससे बहुत गुस्सा आया। अंत में, मैंने प्रार्थना करना ही बंद कर दिया। जैसे-जैसे यह चलता रहा, दिन-ब-दिन, महीने-दर-महीने, मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। क्या मेरी ज़िंदगी कभी सामान्य हो पाएगी? यह असंभव लग रहा था। जैसे-जैसे मेरे स्नातक की परीक्षा नज़दीक आ रही थी, मेरा डर बढ़ता जा रहा था। पढ़ाना एक मुश्किल काम है जिसमें बहुत कम ब्रेक मिलते हैं, और छात्रों को मेरी ज़रूरत होगी ताकि मैं उनकी कई ज़रूरतों को पूरा करती हुई और सीखने का एक अच्छा माहौल प्रदान करती रहूँ। मैं अपनी मौजूदा स्थिति में यह कैसे कर सकती थी? मेरे दिमाग में एक भयानक समाधान आया: "तुम्हें बस खुद को मार देना चाहिए।" उस विचार को नरक में होना चाहिए, लेकिन उसे त्यागने और उसे सीधे नरक में वापस भेजने के बजाय, मैंने उसे वहीं मेरे मन में ही रहने दिया। यह मेरी दुविधा का एक सरल, तार्किक उत्तर लग रहा था। मैं बस लगातार हमले के बजाय सुन्न होना चाहती थी। अफ़सोस की बात है कि मैंने निराशा को चुना। लेकिन, जब मुझे लगा कि यह मेरे आखिरी पल होंगे, तो मैंने अपने परिवार के बारे में और मेरे उस व्यक्तित्व के बारे में सोची जो मैं कभी थी। सच्चे पश्चाताप में, मैंने अपना सिर आसमान की ओर उठाया और कहा: "मुझे बहुत खेद है, येशु। इन सब बातों केलिए मुझे क्षमा कर। बस मुझे वह दे जिसकी मैं हकदार हूँ।" मुझे लगा कि ये मेरे इस जीवन के आखिरी शब्द होंगे। लेकिन परमेश्वर की कुछ और ही योजना थी। ईश्वर की आवाज़ का श्रवण मेरी माँ, ईश्वर की कृपा से, उसी क्षण करुणा की माला विनती बोल रही थी। अचानक, माँ ने अपने दिल में ज़ोर से और स्पष्ट शब्दों में सुना “एलन को खोजो।” उन्होंने आज्ञाकारी होकर अपनी माला के मोतियों को एक तरफ रख दिया और मुझे गैरेज के फर्श पर पाया। वह जल्दी से समझ गई, और भयभीत होकर बोली: “तुम क्या कर रहे हो?!” और उन्होंने मुझे घर के अंदर खींच लिया। मेरे माता-पिता का दिल टूट गया था। ऐसे समय के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, लेकिन उन्होंने मुझे मिस्सा में ले जाने का फैसला किया। मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी, और मुझे पहले से कहीं ज़्यादा उद्धारकर्ता प्रभु की ज़रूरत थी। मैं येशु के पास आने के पल के लिए तरस रही थी, लेकिन मुझे यकीन था कि मैं दुनिया की आखिरी इंसान हूँ जिसे वह कभी देखना चाहेगा। मैं यह विश्वास करना चाहती थी कि येशु मेरा चरवाहा है और अपनी खोई हुई भेड़ों को वापस लाएगा, लेकिन यह मुश्किल था क्योंकि कुछ भी नहीं बदला था। मैं अभी भी गहन आत्म-घृणा से ग्रस्त थी, अंधकार से पीड़ित थी। यह लगभग शारीरिक रूप से दर्दनाक था। उपहारों की तैयारी के दौरान, मैं फूट-फूट कर रो पड़ी। मैं बहुत लंबे समय से रोई नहीं थी, लेकिन एक बार जब मैंने रोना शुरू किया, तो मैं रुक नहीं पाई। मैं अपनी ताकत के आखिरी छोर पर थी, मुझे नहीं पता था कि आगे कहाँ जाना है। लेकिन जैसे-जैसे मैं रोती गई, मेरा बोझ धीरे-धीरे कम होता गया, और मैंने खुद को उनकी दिव्य दया में लिपटी हुई महसूस किया। मैं इसके लायक नहीं थी, लेकिन उन्होंने मुझे खुद का उपहार दिया, और मुझे पता था कि वह मेरे सबसे निचले बिंदु पर भी मुझसे उतना ही प्यार करता था जितना कि उन्होंने मेरे सबसे ऊंचे बिंदु पर किया था। प्यार की तलाश में आने वाले दिनों में, मैं मुश्किल से ईश्वर का सामना कर पाती, लेकिन वह छोटी-छोटी चीजों में दिखाई देता रहा और मेरा पीछा करता रहा। मैंने हमारे आतंरिक कक्ष में लगी येशु की दिव्य दया की तस्वीर की मदद से येशु के साथ फिर से संवाद स्थापित किया। मैंने बात करने की कोशिश की, ज्यादातर संघर्ष के बारे में शिकायत की और फिर हाल ही में हुए मेरे बचाव के मद्देनजर इसके बारे में बुरा महसूस किया। अजीब तरह से, मुझे लगा कि मैं एक कोमल आवाज़ को फुसफुसाते हुए सुन सकती हूँ: "क्या तुमने सच में सोचा था कि मैं तुम्हें मरने के लिए छोड़ दूँगा? मैं तुमसे प्यार करता हूँ। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडने का वादा करता हूँ। सब कुछ माफ़ है। मेरी दया पर भरोसा रखो।" मैं इस पर विश्वास करना चाहती थी, लेकिन मैं इस बात पर भरोसा नहीं कर पा रही थी कि यह सच था। मैं उन दीवारों से निराश हो रही थी, जिन्हें मैं खादी कर रही थी, लेकिन मैं येशु से बात करती रही: "येशु, मैं तुझ पर भरोसा करना कैसे सीख सकती हूँ?" जवाब ने मुझे चौंका दिया। जब आपको लगता है कि कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन आपको जीना जारी रखना है, तो आप कहाँ जायेंगे? जब आप पूरी तरह से अप्रिय महसूस करते हैं, और घमंड के कारण कुछ भी स्वीकार करने में दिक्कत महसूस करते हैं, फिर भी किसी न किसी तरह विनम्र होना चाहते हैं? दूसरे शब्दों में, जब आप पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के साथ पूर्ण सामंजस्य चाहते हैं, लेकिन अपने घर का रास्ता खोजने के लिए प्यार भरे स्वागत से बहुत डरते हैं और अविश्वास करते हैं, तो आप कहाँ जाना चाहते हैं? इसका उत्तर है ईश्वर की माँ और स्वर्ग की रानी धन्य कुँवारी मरियम। जब मैं भरोसा करना सीख रही थी, तो मेरे अजीब प्रयासों ने येशु को नाराज़ नहीं किया। वह मुझे अपनी धन्य माँ के माध्यम से अपने पवित्र हृदय के करीब बुला रहे थे। मैं उनसे और उनकी वफादारी से प्यार करने लगा। मैं माँ मरियम के सामने सब कुछ स्वीकार कर सकती थी। हालाँकि मुझे डर था कि मैं अपनी सांसारिक माँ से किया गया वादा पूरा नहीं कर पाऊँगी क्योंकि, अपने दम पर, मैं अभी भी मुश्किल से जीने की इच्छाशक्ति जुटा पा रही थी, मेरी माँ ने मुझे मरियम को अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित किया, इस विश्वास के साथ कि वह मुझे इससे बाहर निकलने में मदद करेगी। मुझे इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी कि इसका क्या मतलब है, लेकिन फादर माइकल ई. गेटली, एम.आई.सी. द्वारा लिखित ‘प्रातःकालीन महिमा और येशु के हृदय को सांत्वना देने के लिए 33 दिन’ नामक पुस्तिका ने मुझे समझने में मदद की। धन्य माँ मरियम हमेशा हमारी मध्यस्थ बनने के लिए तैयार रहती हैं, और वह कभी भी किसी बच्चे के अनुरोध को नहीं ठुकराएँगी जो येशु के पास वापस लौटना चाहता है। जैसे-जैसे मैं समर्पण की प्रार्थना कर रही थी, "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं हार नहीं मानूँगी " इन्हीं शब्दों के साथ मैंने फिर कभी आत्महत्या का प्रयास न करने का संकल्प लिया। इस बीच, मैंने समुद्र तट पर लंबी सैर करना शुरू कर दिया, जबकि मैं परमेश्वर पिता से बात करती थी, और उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत पर ध्यान करती थी। मैंने खुद को उड़ाऊ पुत्र के स्थान पर रखने की कोशिश की, लेकिन परमेश्वर पिता के करीब आने में मुझे कुछ समय लगा। पहले, मैंने कल्पना की कि वह कुछ दूरी पर है, फिर मेरी ओर चल रहा है। दूसरे दिन, मैंने कल्पना की कि वह मेरी ओर दौड़ रहा है, भले ही यह पिता ईश्वर के दोस्तों और पड़ोसियों के लिए हास्यास्पद लग रहा हो। आखिरकार, वह दिन आया जब मैं खुद को पिता की बाहों में देख सकती थी, फिर न केवल उनके घर में बल्कि स्वर्गीय परिवार की मेज पर मेरे लिए निर्धारित मेरी सीट पर मेरा स्वागत किया जा रहा था। जब मैंने कल्पना की कि वह मेरे लिए एक कुर्सी खींच रहा है, तो मैं अब एक जिद्दी युवती नहीं थी, बल्कि नयी पीढ़ी का मजेदार चश्मा और बॉब हेयरकट वाली 10 वर्षीय लड़की थी। जब मैंने अपने लिए पिता के प्यार को स्वीकार किया, तो मैं फिर से एक छोटे बच्चे की तरह हो गई, मैं वर्तमान क्षण में जी रही थी और पूरी तरह से उन पर भरोसा कर रही थी। मैं परमेश्वर और उनकी वफादारी से प्यार करने लगी। मेरे अच्छे चरवाहे ने मुझे भय और क्रोध की कैद से बचाया है, वह मुझे सुरक्षित मार्ग पर ले जाता है और जब भी मैं लड़खड़ाती हूँ तो वह मुझे सहारा देता है। अब, मैं अपनी कहानी साझा करना चाहती हूँ ताकि हर कोई ईश्वर की अच्छाई और प्रेम को जान सके। उसका पवित्र हृदय सिर्फ़ आपके लिए कोमल प्रेम और दया से भरा हुआ है। वह आपसे भरपूर प्रेम करना चाहता है, और मैं आपको प्रोत्साहित करती हूँ कि बिना किसी डर या संकोच के आप ईश्वर का स्वागत करें। वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा या आपको निराश नहीं करेगा। उसके प्रकाश में कदम रखें और उसके आलिंगन में वापस लौटें।
By: Ellen Wilson
Moreजब तक कि यह घटना नहीं हुई, ड्रग्स और सेक्स वर्क के चक्कर में फंसकर मैं खुद को खोती जा रही थी। रात हो चुकी थी। मैं वेश्यालय में थी, "काम" के लिए कपड़े पहनकर मैं तैयार थी। दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई, पुलिस की जोरदार धमाका नहीं, बल्कि वास्तव में एक हल्की सी दस्तक। वेश्यालय की मालकिन “मैडम” ने दरवाजा खोला, और अंदर चली आईं... मेरी माँ! मुझे शर्म आ रही थी। मैं इस "काम" के लिए कपडे पहनकर तैयार थी, वह “काम” जिसे मैं महीनों से कर रही थी, और देखो कमरे में मेरी अपनी माँ थी! वह बस वहीं बैठी रही और मुझसे कहा: "प्यारी, कृपया घर आ जाओ।" उसने मुझे प्यार से देखा। उसने मेरे “काम” को सही या गलत नहीं कहा। उसने बस मुझे वापस आने के लिए कहा। मैं उस पल अनुग्रह से अभिभूत थी। मुझे तब घर चले जाना चाहिए था, लेकिन ड्रग्स ने मुझे जाने नहीं दिया। मुझे वास्तव में शर्म आ रही थी। उसने अपना फ़ोन नंबर एक कागज़ पर लिखा, उसे मेरी ओर सरकाया, और मुझसे कहा: "मैं तुमसे प्यार करती हूँ। तुम मुझे कभी भी कॉल कर सकती हो, और मैं आ जाऊँगी।" अगली सुबह, मैंने अपने एक दोस्त से कहा कि मैं हेरोइन से छुटकारा पाना चाहती हूँ। मैं डरी हुई थी। 24 साल की उम्र में, मैं जीवन से थक चुकी थी, और मुझे लगा कि मैं जीवन से ऊब चुकी हूँ। मेरा दोस्त एक डॉक्टर को जानता था जो नशे की लत के रोगियों का इलाज करता था, और मुझे तीन दिन में अपॉइंटमेंट मिल गया। मैंने अपनी माँ को फ़ोन किया, उन्हें बताया कि मैं डॉक्टर के पास जा रही हूँ, और मैं हेरोइन से छुटकारा पाना चाहती हूँ। वह फ़ोन पर रो रही थी। वह तुरन्त कार में बैठ गई और सीधे मेरे पास आई। लम्बे अरसे से वह इस पल केलिए इंतज़ार कर रही थी... यह सब कैसे शुरू हुआ जब मेरे पिता को ब्रिसबेन के एक्सपो 88 में नौकरी मिल गई, तो हमारा परिवार ब्रिस्बेन चला गया। मैं 12 साल की थी। मेरा दाखिला लड़कियों केलिए बने कुलीन प्राइवेट स्कूल में हुआ था, लेकिन मैं वहाँ फिट नहीं बैठती थी। मैं हॉलीवुड जाकर फ़िल्में बनाने का सपना देखती थी, इसलिए मुझे ऐसे स्कूल में जाना था जो फ़िल्म और टीवी में माहिर हो। मुझे फ़िल्म और टीवी के लिए मशहूर एक स्कूल मिला, और मेरे माता-पिता ने स्कूल बदलने के मेरे अनुरोध को आसानी से स्वीकार कर लिया। मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि स्कूल के बारे में अख़बारों में खबर भी छपती थी, क्योंकि इस स्कूल की लडकियां गिरोह और ड्रग्स के लिए बदनाम थी। स्कूल ने मुझे बहुत सारे रचनात्मक दोस्त दिए, और मैंने स्कूल में बेहतरीन प्रदर्शन किया। मैंने अपनी कई कक्षाओं में टॉप किया और फ़िल्म, टीवी और ड्रामा के लिए पुरस्कार जीते। मेरे पास यूनिवर्सिटी जाने लायक अंक थे। कक्षा 12 के अंत होने से दो हफ़्ते पहले, किसी ने मेरे सामने मारिजुआना का प्रस्ताव रखा। मैंने हाँ कर दी। स्कूल के अंत में, हम सभी चले गए, और फिर मैंने अन्य ड्रग्स आज़माए... मैं वह बच्ची थी जो स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बारे में पूरी तरह केन्द्रित थी, लेकिन यह क्या हुआ, मैं नीचे की ओर गिरती चली गयी। इसके बावजूद मैं विश्वविद्यालय में गयी, लेकिन दूसरे वर्ष में, मैं एक ऐसे लड़के के साथ रिश्ते में आ गयी जो हेरोइन का आदी था। मुझे याद है कि उस समय मेरे सभी दोस्त मुझसे कहती थी: "तुम नशेड़ी, हेरोइन के आदी बन जाओगी।” दूसरी ओर, मुझे लगा कि मैं उसका उद्धारकर्ता बनने जा रही हूँ। लेकिन सेक्स, ड्रग्स और रॉक एंड रोल के कारण आखिरकार मैं गर्भवती हो गई। हम डॉक्टर के पास गए, मेरा पार्टनर अभी भी हेरोइन के नशे में था। डॉक्टर ने हमें देखा और तुरंत मुझे गर्भपात करवाने की सलाह दी - उन्हें लगा होगा कि हमारे साथ, इस बच्चे की ज़िंदा रहने की कोई उम्मीद नहीं है। तीन दिन बाद, मैंने गर्भपात करवा लिया। मैं दोषी, शर्मिंदा और अकेली महसूस कर रही थी। मैं अपने पार्टनर को हेरोइन लेते हुए देखती, सुन्न हो जाती और बेपरवाह हो जाती। मैंने उससे थोड़ी हेरोइन मांगी, लेकिन वह बस यही कहता रहा: "मैं तुमसे प्यार करता हूँ, मैं तुम्हें हेरोइन नहीं दूँगा।" एक दिन, उसे पैसे की ज़रूरत थी, और मैं बदले में कुछ हेरोइन मोल-तोल करने में कामयाब रही। यह थोड़ा सा ही था, और इसे लेने के बाद मैं बीमार बीमार महसूस करने लगी, लेकिन इससे मुझे कुछ भी ख़ास अनुभूति नहीं हुई। मैं इसका इस्तेमाल करती रही, हर बार खुराक बढ़ती जा रही थी। मैंने अंततः विश्वविद्यालय छोड़ दिया और ड्रग्स का नियमित उपयोगकर्ता बन गयी। मैं प्रतिदिन लगभग सौ डॉलर की हेरोइन का उपयोग कर रही थी और मुझे नहीं पता था कि मैं अगले दिन का भुगतान कैसे कर पाऊँगी। हमने घर में मारिजुआना उगाना शुरू कर दिया; हम इसे बेचते थे और पैसे का उपयोग और अधिक ड्रग्स खरीदने के लिए करते थे। हमने अपना सब कुछ बेच दिया, मुझे मेरे अपार्टमेंट से निकाल दिया गया, और फिर, धीरे-धीरे, मैंने अपने परिवार और दोस्तों से चोरी करना शुरू कर दिया। मुझे शर्म भी नहीं आती थी। जल्द ही, मैं जहां काम करती थी, वहां से चोरी करना शुरू कर दिया। मुझे लगा कि वे नहीं जानते, लेकिन अंततः मुझे वहाँ से भी निकाल दिया गया। अंत में, मेरे पास सिर्फ़ मेरा शरीर ही बचा था। उस पहली रात जब मैंने अजनबियों के साथ सेक्स किया, उसके बाद मैं खुद को रगड़कर साफ़ करना चाहती थी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी! आप खुद को अंदर से साफ़ नहीं कर सकते... लेकिन इस के बावजूद किसी ने मुझे वापस जाने से नहीं रोका। मैं ने एक रात में 300 डॉलर कमाना शुरू किया और अपने साथी और मेरे लिए हेरोइन पर सारा पैसा खर्च करती थी, बाद में मैं एक रात में एक हज़ार डॉलर कमाने लगी; मैंने जो भी पैसा कमाया, पूरा पैसा अधिक ड्रग्स खरीदने में चला गया। इस पतन की ओर बढ़ रहे उस निरंतरता के चक्र के बीच में ही मेरी माँ आ गई और अपने प्यार और दया से मुझे बचाया। लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। मेरी आत्मा में छेद डॉक्टर ने मुझसे मेरे ड्रग के इतिहास के बारे में पूछा। जब मैं लंबी कहानी सुना रही थी, मेरी माँ रोती रही - वह मेरी पूरी कहानी सुनकर हैरान थी। डॉक्टर ने मुझे बताया कि मुझे पुनर्वास की आवश्यकता है। मैंने पूछा: "ड्रग के लत लोग ही पुनर्वास केंद्र में जाते हैं न?" वे हैरान थे: "तुम्हें नहीं लगता कि तुम उनमें से एक हो?" फिर, उन्होंने मेरी आँखों में ऑंखें डालकर कहा: "मुझे नहीं लगता कि ड्रग्स तुम्हारी समस्या है। तुम्हारी समस्या यह है कि तुम्हारी आत्मा में एक छेद है जिसे केवल येशु ही भर सकता है।" मैंने जानबूझकर एक ऐसा पुनर्वास केंद्र चुना, जिसके बारे में मुझे यकीन था कि वह ईसाई केंद्र नहीं है। मैं बीमार थी, क्योंकि धीरे-धीरे डिटॉक्स होने लगा था, तभी एक दिन रात के खाने के बाद, उन्होंने हम सभी को प्रार्थना सभा के लिए बुलाया। मैं गुस्से में थी, इसलिए मैं कोने में बैठ गयी और उन्हें मेरे मन से बाहर निकालने की कोशिश की - उनका संगीत, उनका गायन, और उनका येशु सब कुछ। रविवार को, वे हमें गिरजाघर ले गए। मैं बाहर खडी रही और सिगरेट पीती रही। मैं गुस्से में थी, आहत थी, और अकेली थी। नए सिरे से शुरूआत छठे रविवार, 15 अगस्त को, बारिश हो रही थी - आसमान से एक साजिश। मेरे पास गिरजाघर के अंदर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अन्दर जाकर मैं पीछे की तरफ रही, यह सोचकर कि ईश्वर मुझे वहाँ नहीं देख पायेगा। मुझे एहसास होने लगा था कि मेरे जीवन के कुछ निर्णय और व्यवहार पाप माने जाएँगे, इसलिए मैं वहीं पीछे की तरफ बैठ गयी। हालाँकि, अंत में, पादरी ने कहा: "क्या यहाँ कोई है जो आज अपना दिल येशु को देना चाहेगा?" उसके बाद मुझे बस इतना याद है कि मैं सामने खडी थी और पादरी को यह कहते हुए सुन रही थी: “क्या तुम अपना दिल येशु को देना चाहती हो? वह तुम्हें तुम्हारे अतीत के लिए माफ़ी दे सकता है, आज एक बिलकुल नया जीवन दे सकता है, और तुम्हारे भविष्य के लिए आशामय नव जीवन दे सकता है।” उस समय तक, मैं लगभग छह सप्ताह तक हेरोइन से दूर थी। लेकिन मुझे यह एहसास नहीं था कि शुद्ध होने और मुक्त होने के बीच बहुत अंतर है। मैंने पादरी के पीछे पीछे उद्धार की प्रार्थना दोहराई, एक ऐसी प्रार्थना जिसे मैं समझ भी नहीं पाया, लेकिन वहाँ, मैंने अपना दिल येशु को दे दिया। उस दिन, मैंने एक परिवर्तन यात्रा शुरू की। मुझे नए सिरे से शुरुआत करने का मौका मिला, उस ईश्वर के प्रेम, अनुग्रह और भलाई की पूर्णता मुझे प्राप्त हुई, जिसने मुझे मेरे पूरे जीवन में जाना और मुझे मुझसे बचाया। आगे का रास्ता गलतियों से रहित नहीं था। मैं पुनर्वास केंद्र में रहती हुई एक नए रिश्ते में फँस गई, और मैं फिर से गर्भवती हो गई। लेकिन इसे मेरे द्वारा किए गए एक गलत निर्णय की सजा के रूप में सोचने के बजाय, हमने घर बसाने का फैसला किया। मेरे साथी ने मुझसे कहा: "चलो शादी कर लेते हैं और अब इसे प्रभु के तरीके से करने की पूरी कोशिश करते हैं।" एक साल बाद ग्रेस यानी कृपा का जन्म हुआ, उसके माध्यम से, मैंने बहुत कृपा पर कृपा का अनुभव किया है। मुझे हमेशा से कहानियाँ सुनाने का शौक और जूनून रहा है; ईश्वर ने मुझे एक ऐसी कहानी दी जिसने बहुत सारे लोगों की जिंदगियां बदलने में कार्य किया है। तब से उसने मुझे अपनी कहानी साझा करने के लिए कई तरीकों से - शब्दों में और लेखन में इस्तेमाल किया है। मैं जिस तरह की ज़िंदगी जी रही थी वैसी ज़िंदगी जी रही बहुत सी महिलाओं के साथ काम करने के लिए, उन्हें अपना सब कुछ देने में प्रभु ने मेरा इस्तेमाल किया है। आज, मैं उनकी कृपा और अनुग्रह से परिवर्त्तित महिला हूँ। मुझे स्वर्ग का और ईश्वर के राज्य का प्यार मिला, और अब मैं जीवन को ऐसे तरीके से जीना चाहती हूँ जो मुझे स्वर्ग राज्य और ईश राज्य के उद्देश्यों के साथ भागीदार बनने की अनुमति और अवसर दे।
By: Bronwen Healey
Moreकई आध्यात्मिक उपहारों से संपन्न संत जॉन बोस्को अक्सर सपने देखते थे जिनमें स्वर्गीय संदेशों का प्रकाशन होता था। उनमें से एक सपने में, उन्हें खेल के मैदान के पास हरी घास में ले जाया गया और एक विशाल सांप घास में लिपटा हुआ दिखाया गया। वास्तव में वे डर गए थे और इसलिए वे भागना चाहते थे, लेकिन उनके साथ गए एक व्यक्ति ने उन्हें रोक लिया और उनसे कह रहा था की निकट जाकर अच्छी तरह से देखें। जॉन डरा हुआ था, लेकिन उनके दोस्त ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए मजबूर कर दिया, उसे एक रस्सी दी और उस रस्सी के सहारे सांप को मारने की हिदायत दी। झिझकते हुए, जॉन ने रस्सी का फंदा सांप की पीठ पर फेंकी, लेकिन जैसे ही सांप उछला, वह फंदे में फँस गया। सांप ने फंदे में फंसकर थोड़ा संघर्ष किया और जल्दी ही उसकी मौत हो गई। उसके साथी ने रस्सी उठा कर एक सन्दूक में रख दी; कुछ देर के बाद बक्सा खोलने पर, जॉन ने देखा कि रस्सी ने "प्रणाम मरिया" शब्दों का आकार ले लिया है। साँप, शैतान का प्रतीक, "प्रणाम मरिया" की शक्ति से पराजित हो गया, उसका सर्वनाश हो गया। यदि एक अकेली ‘प्रणाम मरिया’ की प्रार्थना ऐसा कर सकती है, तो पूरी रोज़री माला की शक्ति की कल्पना करें! जॉन बोस्को ने इस सबक को गंभीरता से लिया और यहां तक कि मरियम की मध्यस्थता में उनके विश्वास की और भी पुष्टि हुई। अपने प्रिय शिष्य डोमिनिक सावियो की मृत्यु के बाद, संत जॉन बोस्को को सावियो का स्वर्गीय वेशभूषा में दर्शन हुआ; इस विनम्र शिक्षक ने बाल संत सावियो से पूछा कि मृत्यु के समय उनकी सबसे बड़ी सांत्वना क्या थी। और उसने उत्तर दिया: “मृत्यु के क्षण में जिस बात ने मुझे सबसे अधिक सांत्वना दी, वह उद्धारकर्ता की शक्तिशाली और प्यारी माँ, अति पवित्र माँ मरियम की सहायता थी। आप अपने नवयुवकों से यह कहिये कि जब तक वे जीवित रहें, वे उस से प्रार्थना करना न भूलें!” संत जॉन बोस्को ने बाद में लिखा, "आइए जब भी हमें प्रलोभन दिया जाए, तब हम श्रद्धापूर्वक प्रणाम मरिया कहें, और हम निश्चित रूप से कामयाब होंगे।"
By: Shalom Tidings
Moreफरवरी की शुरुआत में, संयुक्त राज्य अमेरिका में कलीसिया द्वारा कैथलिक स्कूल सप्ताह मनाया जाता है। मैं इस अवसर को कैथलिक स्कूलों द्वारा दी जा रही अच्छी शिक्षा केलिए उनका सम्मान करने और कैथलिक और गैर-कैथलिक सभी को उन स्कूलों का समर्थन हेतु आमंत्रित करने के अवसर के रूप में उपयोग करता हूँ। मैंने पहली कक्षा से लेकर ग्रेजुएट स्कूल तक, बर्मिंघम, मिशिगन में होली नेम एलीमेंट्री स्कूल से लेकर पेरिस में इंस्टीट्यूट कैथलिक नामक शिक्षा संस्थान तक, कलीसिया से जुड़े शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाई की। वर्षों तक चले उस तल्लीनता से भरपूर सघन और गहरी शिक्षा के अनुभव ने मेरे चरित्र, मेरे मूल्यों की भावना, दुनिया को देखने के मेरे पूरे तरीके को बड़े पैमाने पर आकार दिया। मेरा मानना है कि, विशेष रूप से अब, जब धर्म-विहीनवादी, भौतिकतावादी दर्शन हमारी संस्कृति में बड़े पैमाने पर प्रभाव रखता है, तो ऐसे में कैथलिक लोकाचार एवं शिष्टाचार को शिक्षा पद्धति में शामिल करने की आवश्यकता है। निश्चित रूप से, जिन कैथलिक स्कूलों में मैंने पढ़ाई की, उनके विशिष्ट चिह्न मिस्सा बलिदान और अन्य संस्कारों, धर्म कक्षाओं, पुरोहितों और साध्वियों की उपस्थिति (जो मेरी शिक्षा के शुरुआती वर्षों में थोड़ा अधिक मात्रा में थी), और कैथलिक संतों, प्रतीकों और छवियों की व्यापकता के अवसर थे। लेकिन जो बात शायद सबसे महत्वपूर्ण थी वह उन स्कूलों द्वारा आस्था और वैज्ञानिक सोच के एकीकरण का वह तरीका था। निश्चित रूप से, कोई "कैथलिक गणित” नहीं है, लेकिन वास्तव में गणित पढ़ाने का एक कैथलिक तरीका है। गुफा के अपने प्रसिद्ध दृष्टांत में, प्लेटो ने दिखाया कि दुनिया की विशुद्ध भौतिकवादी दृष्टि से दूर पहला कोई कदम है तो वह गणित है। जब कोई सबसे सरल समीकरण, या किसी संख्या की प्रकृति, या किसी जटिल अंकगणितीय सूत्र की सच्चाई को समझ लेता है, तो वह, बहुत ही वास्तविक अर्थों में, नश्वर वस्तुओं के दायरे को त्याग देता है और आध्यात्मिक वास्तविकता के ब्रह्मांड में प्रवेश कर जाता है। धर्मशास्त्री डेविड ट्रेसी ने टिप्पणी की है कि आज अदृश्य का सबसे सामान्य अनुभव गणित और रेखा गणित के शुद्ध अमूर्त को समझने के माध्यम से है। इसलिए, उचित ढंग से पढ़ाया गया गणित, धर्म द्वारा प्रदान किए गए उच्च आध्यात्मिक अनुभवों द्वारा, ईश्वर के अदृश्य क्षेत्र का द्वार खोल देता है। इसी तरह, कोई विशिष्ट "कैथलिक भौतिकी” या "कैथलिक जीव विज्ञान” नहीं है, लेकिन वास्तव में उन विज्ञानों के लिए एक कैथलिक दृष्टिकोण है। कोई भी वैज्ञानिक तब तक अपने काम को जमीन पर नहीं उतार सकता जब तक कि वह दुनिया की मौलिक समझदारी में विश्वास नहीं करता - कहने का मतलब यह है कि भौतिक वास्तविकता के हर पहलू को, समझने योग्य पैटर्न द्वारा चिह्नित किया जाता है। यह किसी भी खगोलशास्त्री, रसायनज्ञ, खगोलभौतिकीविद्, मनोवैज्ञानिक या भूवैज्ञानिक के लिए सच है। लेकिन यह स्वाभाविक रूप से इस सवाल की ओर ले जाता है: ये समझदार पैटर्न कहां से आए? दुनिया को व्यवस्था, सद्भाव और तर्कसंगत पैटर्न द्वारा इतना चिह्नित क्यों किया जाना चाहिए? बीसवीं सदी के भौतिक विज्ञानी यूजीन विग्नर द्वारा रचित एक अद्भुत लेख है जिसका शीर्षक है "प्राकृतिक विज्ञान में गणित की अनुचित प्रभावशीलता।" विग्नर का तर्क था कि यह महज संयोग नहीं हो सकता कि सबसे जटिल गणित, भौतिक दुनिया का सफलतापूर्वक वर्णन करता है। महान कैथलिक परंपरा का उत्तर यह है कि यह समझदारी, वास्तव में, एक महान रचनात्मक बुद्धि से आती है जो इस संसार की सृष्टि के पीछे खड़ी है। इसलिए, जो लोग विज्ञान का अभ्यास करते हैं, उन्हें यह विश्वास करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए कि "आरंभ में शब्द था।" कोई "कैथलिक इतिहास” भी नहीं है, हालाँकि इतिहास को देखने का निश्चित रूप से एक कैथलिक तरीका है। आमतौर पर, इतिहासकार केवल अतीत की घटनाओं का वर्णन नहीं करते हैं। बल्कि, वे इतिहास के भीतर कुछ व्यापक विषयों और प्रक्षेप पथों की तलाश करते हैं। हममें से अधिकांश को शायद इसका एहसास भी नहीं है क्योंकि हम एक उदार लोकतांत्रिक संस्कृति के भीतर पले-बढ़े हैं, लेकिन हम स्वाभाविक रूप से ज्ञानोदय को इतिहास के निर्णायक मोड़ के रूप में देखते हैं, विज्ञान और राजनीति में महान क्रांतियों का समय जिसने आधुनिक दुनिया को परिभाषित किया। इस बात पर कोई संदेह नहीं कर सकता कि ज्ञानोदय एक महत्वपूर्ण क्षण था, लेकिन कैथलिक निश्चित रूप से इसे इतिहास के चरमोत्कर्ष के रूप में नहीं देखते हैं। इसके बजाय, हमारा मानना है कि धुरी बिंदु वर्ष 30 ईस्वी के आसपास यरूशलेम के बाहर एक गंदी पहाड़ी पर था, जब रोमियों द्वारा एक युवा रब्बी को यातना देकर मार डाला जा रहा था। हम हर चीज़ की - राजनीति, कला, संस्कृति, आदि - की व्याख्या ईश्वर के पुत्र के बलिदान के दृष्टिकोण से करते हैं। 2006 के अपने विवादास्पद रेगेन्सबर्ग संबोधन में, दिवंगत पोप बेनेडिक्ट ने तर्क दिया कि देह-अवतार के सिद्धांत के कारण ही ईसाई धर्म, संस्कृति के साथ एक जीवंत बातचीत में प्रवेश कर सकता है। हम ईसाई यह दावा नहीं करते हैं कि येशु कई लोगों में से एक दिलचस्प शिक्षक थे, बल्कि ईश्वर के वचन, मन या विवेक ने येशु के रूप में देहधारण किया था। तदनुसार, जो कुछ भी वचन या विवेक द्वारा चिह्नित है वे सभी ईसाई धर्म का स्वाभाविक मौसेरा भाई है। विज्ञान, दर्शन, साहित्य, इतिहास, मनोविज्ञान - यह सब - ईसाई धर्म में पाया जाता है, इसलिए, एक स्वाभाविक संवाद (वह शब्द फिर से है!) का भागीदार भी है। यह बुनियादी विचार है, जो पापा रत्ज़िंगर (बेनेडिक्ट सोलहवें) को बहुत प्रिय है, जो कैथलिक स्कूलों के स्वभाव को सर्वोत्तम रूप से सूचित करता है। और यही कारण है कि उन स्कूलों का फलना-फूलना न केवल कलीसिया के लिए, बल्कि हमारे पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण है।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
Moreइस परिवार की कहानी एक ख़राब फ़िल्म जैसी लगती है, लेकिन उसका अंत आपको चौंका देगा हमारी कहानी घर से शुरू होती है, जहां मैं अपने दो छोटे भाइयों, ऑस्कर और लुइस के साथ टेक्सास के सान एंटोनियो में पला-बढ़ा हूं। पिताजी हमारे गिरजाघर में गीतमंडली के प्रभारी थे, जबकि माँ पियानो बजाती थीं। हमारा बचपन खुशहाल था - क्योंकि वह गिरजाघर और परिवार के इर्द गिर्द ही था, मेरे दादा-दादी पास में ही रहते थे। हमने सोचा कि सब कुछ ठीक है, लेकिन जब मैं छठवीं कक्षा में था, तो माँ और पिताजी ने हमें बताया कि वे तलाक ले रहे हैं। पहले हमें नहीं पता था कि इसका क्या मतलब है, क्योंकि मेरे परिवार में किसी का तलाक नहीं हुआ था, लेकिन हमें जल्द ही पता चल गया। जब वे हम बच्चों पर अधिकार के लिए अदालत में लड़ रहे थे तो हमें एक घर से दूसरे घर भटकना पड़ा। लगभग एक साल बाद, पिताजी सप्ताहांत में शहर से बाहर गए। मुझे और मेरे भाइयों को माँ के साथ रहना था, लेकिन आखिरी समय में हम कुछ दोस्तों के साथ रहने लगे। हमें आश्चर्य हुआ जब पिताजी हमें लेने अप्रत्याशित रूप से जल्दी घर आए, लेकिन जब उन्होंने हमें कारण बताया तो हम टूट गए। माँ एक सुनसान पार्किंग स्थल में अपनी कार में मृत पाई गई थीं। जाहिर तौर पर, दो लोगों ने बंदूक की नोक पर माँ को लूट लिया था और उनका पर्स और गहने चुरा लिए थे। फिर, दोनों ने पिछली सीट पर उसके साथ बलात्कार किया, उसके चेहरे पर तीन बार गोली मारने के बाद उन्हें अपनी कार के फर्श पर मरने के लिए छोड़ दिया। जब पिताजी ने हमें बताया तो हमें विश्वास ही नहीं हुआ। कोई माँ को क्यों मारना चाहेगा? हमें आश्चर्य हुआ कि क्या वे चोर हमारे पीछे आने वाले थे। डर हमारे बचपन का हिस्सा बन गया। बाद का परिणाम अंतिम संस्कार के बाद, हमने पिताजी के साथ सामान्य जीवन में लौटने की कोशिश की, लेकिन मैंने अनुभव किया कि हमारे जैसे गंभीर अपराध के पीड़ितों के लिए सामान्य जीवन कभी नहीं लौटता। पिताजी का निर्माण कार्य का धंधा था। माँ की हत्या के एक साल बाद, पिताजी को उनके दो कर्मचारियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर माँ की हत्या के लिए इन दो लोगों को नियुक्त करने तथा हत्या और आपराधिक दबाव का आरोप लगाया गया। वे तीनों एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे थे। कर्मचारियों में से एक ने दावा किया कि उसने पिताजी को माँ की हत्या के लिए दूसरे व्यक्ति को काम पर रखते हुए सुना था। पिताजी ने अपनी बेगुनाही की घोषणा की, और हमने उन पर विश्वास किया, लेकिन उनकी जमानत की अर्जी अस्वीकार कर दी गई, और हमारे लिए सब कुछ बदल गया। जब माँ की हत्या हुई थी, तब हम पीड़ित के बच्चे थे। लोग, विशेषकर चर्च के लोग, हमारी मदद करना चाहते थे। वे मदद दे रहे थे और वे दयालु थे। हालाँकि, पिताजी की गिरफ्तारी के बाद, हमारे साथ अचानक अलग व्यवहार होने लगा। अपराधी की संतान होने का कलंक हमारे ऊपर लग गया। लोग हमें क्षतिग्रस्त सामान के रूप में, जिसका कोई मूल्य नहीं है, देखने लगे। हम अपनी चाची और चाचा के साथ रहने लगे, और मैंने ऑस्टिन में हाई स्कूल की पढ़ाई शुरू की, लेकिन स्थानीय कारागार में पिताजी से मिलने जाता रहा क्योंकि हम उनसे प्यार करते थे और उनकी बेगुनाही पर विश्वास करते थे। ढाई साल बाद आख़िरकार पिताजी पर मुक़दमा चलाया गया। हमारे लिए पूरे समाचार में छपे सभी विवरणों को पढ़ पाना वास्तव में कठिन था, खासकर मेरे लिए, क्योंकि मेरा और पिताजी का नाम एक ही था। जब उन्हें दोषी पाया गया, खासकर जब उन्हें मौत की सजा सुनाई गई, और उन्हें फांसी का इंतजार करने के लिए हंट्सविले में स्थानांतरित कर दिया गया, तब हम लोग पूरी तरह अशान्त और विचलित हो गए। यदि आप किसी कैदी के परिवार के सदस्य हैं, तो ऐसा लगता है कि आपका जीवन बिलकुल रुका और ठहरा हुआ है। जुर्म का चौंकाने वाला कबूल कॉलेज में मेरी पढ़ाई के अंतिम वर्ष के दौरान, एक नया मोड़ आया। जिला न्यायाधीश के सचिव ने खुलासा किया कि अभियोक्ता वकील ने पिताजी को दोषी साबित करने के लिए सबूतों में हेराफेरी की थी। हमें हमेशा पिताजी की निर्दोषता पर विश्वास था, इसलिए इस नए मोड़ से हम बहुत खुश थे। पिताजी पर से मौत की सजा हट गयी और मुकदमे की नयी प्रक्रिया की प्रतीक्षा के लिए काउंटी जेल में वापस भेज दिया गया, और चार साल बाद नयी प्रक्रिया शुरू हुई । मैं और मेरे भाइयों ने पिताजी के लिए गवाही दी, और न्यायाधीशों ने उन्हें मृत्युदंड का दोषी नहीं पाया, जिसका मतलब था कि उन्हें कभी भी फाँसी नहीं दी जाएगी। मुझे यह जानकर एहसास हुआ कि अब मैं पिताजी को इस तरह नहीं खोऊंगा, और इस बड़ी राहत को मैं व्यक्त नहीं कर सकता। हालाँकि, उन न्यायाधीशों ने पिता जी को हत्या के छोटे आरोप का दोषी पाया, जिसमें आजीवन कारावास की सज़ा शामिल थी। इसके बावजूद सभी को पता था कि उन्हें जल्द ही पैरोल पर रिहा किया जाएगा। हमने इन सभी वर्षों में पिताजी को घर लाने के लिए हर संभव प्रयास किया था, इसलिए हम इतने उत्साहित थे कि यह होने वाला था और वे आएंगे और हमारे परिवार के साथ रहेंगे। जब मैं उनकी रिहाई से पहले उनसे मिलने गया था, तो मैंने उनसे मुकदमे के दौरान सामने आए कुछ मुद्दों को स्पष्ट करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि मैं उनसे कुछ भी पूछ सकता हूं, लेकिन जब मैं इस विशेष प्रश्न पर पहुंचा, तो उन्होंने सीधे मेरे चेहरे पर देखा और कहा, "जिम, मैंने यह किया, और वह इसकी हकदार थी।" मैं चौंक पड़ा, क्योंकि वे अपनी जुर्म को कबूल कर रहे थे, और उन्होंने जो किया उसके लिए उन्हें खेद भी नहीं था और वे इन सब चीज़ों का दोष माँ पर डाल रहे थे। वे सोच रहे थे कि वही पीड़ित हैं क्योंकि वे जेल में थे। मुझे बहुत गुस्सा आया और में चाहता था कि उनको पता चले कि वह पीड़ित नहीं थे। दफनाई गयी मेरी माँ, हाँ वही पीड़ित थी। मैं बयान नहीं कर सकता कि हम सभी को कितना धोखा महसूस हुआ कि वह इतने समय से हमसे झूठ बोल रहे थे। ऐसा लगा जैसे हम सभी पहली बार माँ के लिए शोक मना रहे थे, क्योंकि जब पिताजी गिरफ्तार हुए, तो सब कुछ, हमारी चिंता और ख्याल उनके इर्द गिर्द था। मेरे परिवार ने उनकी पैरोल का विरोध किया, इसलिए पैरोल बोर्ड ने उन्हें पैरोल देने से इनकार कर दिया। मैं उनसे मिलने जेल में गया और उनको बताया कि वे जेल में ही रहेंगे, मृत्यु दंड पाने वालों की कतार में नहीं, वहां वे अन्य कैदियों से सुरक्षित थे, बल्कि अपने पूरे जीवन के लिए अधिकतम सुरक्षा वाली जेल में जायेंगे। मैंने उनसे कहा कि वे हममें से किसी को फिर कभी नहीं देख पायेंगे। इससे पूर्व इन सभी वर्षों में हम उनसे मिलने जाते रहे, उन्हें लिखते रहे, और उनके जेल खाते में पैसे डालते रहे। वे हमारे जीवन के एक बड़े हिस्सा थे, लेकिन अब हम उनसे मुंह मोड़ रहे थे। बंधन से मुक्ति चार साल तक पिताजी से मेरा कोई संपर्क नहीं था, लेकिन इस के बाद, मैं पिताजी से जेल में मिलने वापस गया। अब मेरा अपना बेटा है, और मैं कभी भी उसे चोट पहुँचाने की कल्पना नहीं कर सकता, खासकर जब से मुझे पता चला कि पिताजी ने मेरे भाइयों और मुझे भी मारने के लिए लोगों को काम पर रखा था। मैं उनसे कुछ सवालों का उत्तर चाहता था, लेकिन हमारी मुलकात पर सबसे पहले उन्होंने माँ, मेरे भाइयों और मेरे साथ जो किया उसके लिए मुझसे माफी माँगी। वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने इस से पहले कभी किसी बात के लिए खेद नहीं जताया था। मुझे विश्वास नहीं हुआ, लेकिन मैंने सीखा कि जब आप किसी को यह कहते हुए सुनते हैं कि उन्हें खेद है, तो आप की चंगाई वहीँ शुरू हो जाती है। अगली बात जो उन्होंने कही, वह यह थी, "जिम, मैंने आखिरकार अपना जीवन ईश्वर को दे दिया है और जेल में जीवन की सबसे बुरी हालत पर पहुंचने के बाद में प्रभु येशु का अनुयायी बन गया हू।" अगले साल, मैं महीने में एक बार पिताजी से मिलने जाता रहा। उस दौरान, मैं माफ़ी की प्रक्रिया से गुज़रा। पहली नज़र में, अपनी माँ की हत्या के लिए अपने पिता को माफ कर पाना असंभव सा लगा। मैं बहुत सारे अपराध पीड़ितों के साथ काम करता हूं। मैंने जो सीखा है कि यदि आप किसी अपराधी या किसी ऐसे व्यक्ति को माफ नहीं करते हैं जिसने आपको चोट पहुंचाई है, तो आप कड़वे, क्रोधित और उदास हो जाते हैं। मैं नहीं चाहता था कि पिताजी अब मुझ पर नियंत्रण रखें, इसलिए मैंने पिताजी को माफ कर दिया, उन्हें बंधन से छुडाने नहीं, बल्कि मुझे खुद को बंधन से मुक्त करने के लिए। मैं इतना कड़वा, गुस्सैल, उदास आदमी नहीं बनना चाहता था। सुलह की इस प्रक्रिया में, मैंने पिताजी से माँ के लिए बात की, जिनकी आवाज़ उनसे छीन ली गई थी। उस वर्ष, जैसे-जैसे हमने इन मुद्दों पर बात की, मैंने पिताजी के जीवन में बदलाव देखा। संपर्क फिर से बन जाने के लगभग एक साल बाद, मुझे जेल के पादरी से फोन आया कि पिताजी मस्तिष्क धमनी विस्फार के रोग का शिकार होकर अंतिम अवस्था में हैं। उनका मस्तिष्क पूरी तरह मर चुका था, इसलिए हमें उसे लाइफ सपोर्ट से हटाने का निर्णय लेना पड़ा। यह बोलने में आसान लगता है, लेकिन ऐसा नहीं था। सब कुछ के बावजूद, मैं अब भी उनसे प्यार करता था। हमने उनके शव के लिए अनुरोध किया ताकि हमें अपने पिता को जेल की जमीन पर दफनाने की विरासत न मिले। जेल में आयोजित अंतिम संस्कार के रस्म के दौरान हम वार्डन और जेल पादरी को देखकर आश्चर्यचकित थे, और उन्होंने हमें बताया कि, पहली बार, जेल के प्रार्थनालय में हमारे पिताजी के लिए एक स्मृति समारोह रखने की मंजूरी मिल गई है। जब हम उपस्थित हुए, तो हम आगे की पंक्ति में बैठे थे और 300 जेल कैदी हमारे पीछे बैठे थे, जो जेल के सुरक्षा गार्डों से घिरे हुए थे। अगले तीन घंटों तक, वे लोग एक-एक करके माइक्रोफ़ोन के पास आए, सीधे हम लोगों के चेहरे को देखा, और उन्होंने अपनी-अपनी कहानियाँ हमें सुनाईं कि कैसे वे येशु मसीह की ओर मुड़ गए क्योंकि पिताजी ने उनके साथ अपना विश्वास साझा किया था और उनके जीवन को बदल दिया था। अपने बुरे कार्यों को स्वीकार करके और पश्चाताप करके, अपने गुनाहों की ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए, और ईश्वर से क्षमा माँगकर, उन्होंने अपने जीवन को एक नई दिशा दी, और अन्य लोगों को भी अपने साथ उस नयी दिशा में ले गए । जब आप एक व्यक्ति को यह कहते हुए सुनते हैं, तो यह शक्तिशाली अनुभव होता है- और जब 300 लोगों को सुनते हैं तो आप अभिभूत हो जाते हैं। मैंने गिरजाघरों में, जेलों में, पुनर्वास केन्द्रों और न्याय सुधार के कार्यक्रमों में बोलना शुरू किया – हमने पीड़ितों और पुनर्वास की इच्छा रखने वाले अपराधियों के लिए क्षमा प्रक्रिया के बाद बहाली की हमारी इस कहानी को साझा किया। मैंने बार-बार देखा है कि लोग कैसे बदल जाते हैं। जब मैं अपनी कहानी सुनाता हूं, तो मैं अपने माता-पिता दोनों का सम्मान करता हूं - हमारे जीवन पर उनके सकारात्मक प्रभाव के लिए मां का, और अपने पापों के लिए वास्तव में पश्चाताप करने के फैसले के लिए पिताजी का। हमारी कहानी का अंत यह है कि आज हम यह देखने में सक्षम हैं कि ईश्वर कैसे भयानक परिस्थितियों को अपने काबू में लेते हैं और उन्हें भलाई में बदल देते हैं। पश्चाताप और क्षमा के बारे में हमने जो सीखा है, उस सीख ने हमें बेहतर पति और पिता बनाया है क्योंकि हम जानबूझकर अपने परिवारों को कुछ और बेहतर देने के इच्छुक थे। हमने कड़वे अनुभव से सीखा है कि वास्तव में पश्चाताप करने के लिए, आपको पश्चाताप करते रहना होगा, और वास्तव में क्षमा करने के लिए, आपको एक बार नहीं, बल्कि लगातार क्षमा करते रहना होगा।
By: Shalom Tidings
Moreमेरे बच्चों की आया के ताड़ना भरे शब्दों को सुनकर मैं स्तब्ध होकर अविश्वास भरी दृष्टि से देख रही थी। उसके निराशाजनक रूप और लहजे से मेरा उलझन तथा घबराहट और अधिक बढ़ गया। मानवीय अनुभव में अस्वीकृति या आलोचना के दंश का एहसास सब केलिये सामान है। किसी भी समय हमारे व्यवहार या चरित्र के बारे में चापलूसी भरे शब्दों को सुनना आसान है, और कडवी बातों को सुनना कठिन है, लेकिन विशेष रूप से यह और कठिन होता है जब आलोचना अनुचित या गलत होती है। जैसा कि मेरे पति अक्सर कहते थे, "धारणा वास्तविकता है; "मैं बार-बार उस बयान की सच्चाई देख चुकी हूं। इस प्रकार, जब हमारे कार्यों पर दूसरों के द्वारा प्रकट किये गए फैसले हमारे दिल के इरादों को प्रतिबिंबित नहीं करता है, तब आरोप सबसे अधिक गहरा घाव करते हैं। कुछ वर्ष पहले, मैं ऐसे एक व्यक्ति के कृत्यों की भुक्तभोगी थी जिसने मेरे इरादों को गलत समझा था । चमत्कार की प्रतीक्षा में उस समय, मैं लगभग 30 वर्ष की माँ थी, जो दो शिशुओं को पाकर बहुत खुश और आभारी थी। गर्भधारण के लिए पूरे इरादे के साथ, सही समय पर प्रयास करने के बावजूद, पूरे एक साल तक माता-पिता बनना मेरे पति और मेरे लिए केवल एक सपना ही बनकर रह गया था। स्त्री रोग विशेषज्ञ से एक और मुलाकात के बाद उनके कार्यालय को छोड़ते वक्त, मैंने अनिच्छा से अपरिहार्य लग रही सच्चाई को स्वीकार कर लिया था| अब हमारा एकमात्र विकल्प प्रजनन दवाओं का उपयोग करना था। कार की ओर बढ़ते हुए मैंने निराशाजनक टिप्पणी की, "हमें घर जाते समय दवा लेने केलिए फार्मेसी में रुकना चाहिए क्या?" तभी मैंने अपने पति को यह कहते हुए सुना, "परमेश्वर को एक और महीने की मोहलत दे कर देखते हैं।" क्या?? हमने पहले ही उसे एक साल की मोहलत दे दी थी और अब हमारी शादी को दो साल हो चुके हैं। हमारा वैवाहिक और पारिवारिक जीवन का पौधा फलने-फूलने में समय ले रहा था। साल जुड़ते गए और अब मैं 33 साल की हो गयी थी और अपनी "जैविक घड़ी" की लगातार टिक-टिक सुन रही थी। अब घर जाते हुए, मुझे लगा कि मैं उस दवा को शुरू करने के लिए एक महीना और इंतजार कर सकती हूं... एक दिन जब मैं बाथरूम में थी और जैसे ही मुझे एहसास हुआ कि मेरे कोख में बच्चा है, वैसे ही एक अनोखी उत्तेजना ने मुझे जकड़ ली, और मैं बेतहाशा चिल्लाती हुई बाथरूम से बाहर भागी, "मै गर्भवती हूँ!!" 10 दिन बाद मैंने अपने प्रार्थना समुदाय या यूँ कहें "विश्वासी परिवार" के सामने खड़ी होकर इस खुशखबरी की घोषणा की, यह जानते हुए कि इनमें से कई दोस्त इस बच्चे के अस्तित्व के लिए महीनों से हमारे साथ प्रार्थना कर रहे थे। झूलता हुआ लोलक अब, चार साल बाद, लंबे समय से प्रतीक्षित हमारी बच्ची क्रिस्टन, और हमारा मिलनसार एक वर्षीय बेटा टिम्मी दोनों थे, और मैं एक दिन कार्यालय से अपने बच्चों के डे केयर सेंटर पर पहुंची, तब मैंने अचानक बच्चों की आया, "मिस फीलिस" के कडवे शब्दों को सुना। "इन बच्चों के विद्रोह को कुचलने की ज़रूरत है", उसका यह वाक्यांश, मेरे तरीकों की स्पष्ट त्रुटि के परिणामों को रेखांकित करता हुआ, लंबे समय से लिखे गए पवित्र धर्मशास्त्र के समान प्रतीत हो रहा था। उसके निराशाजनक रूप और लहजे ने मेरे उलझन और घबराहट को और अधिक बढ़ा दिया। मैं अपना बचाव करना चाहती थी, यह बताना चाहती थी कि कैसे मैंने एक के बाद एक अच्छी परवरिश देने की किताबें पढ़ीं थीं और मैंने "विशेषज्ञों" के सुझाव के अनुसार सब कुछ करने की कोशिश की थी। मैं हकलाती हुई बोली कि मैं अपने बच्चों से कितना प्यार करती हूँ और एक अच्छी माँ बनने के लिए पूरे दिल से कोशिश कर रही हूँ। अपने आंसुओं को रोकते हुए, मैं अपने बच्चों को लेकर मिस फीलिस के उस सेंटर से निकल गयी। घर पहुँचकर, मैंने टिम्मी को सुलाने के लिए लिटाया और क्रिस्टन को उसके कमरे में एक किताब देकर बिठाया, ताकि जो कुछ हुआ था उस पर विचार करने के लिए मेरे पास कुछ समय हो। मेरे जीवन में कोई भी संकट या समस्या आने पर मेरी सामान्य प्रतिक्रिया तुरंत प्रार्थना करना होता है। इसी के अनुसार, मैंने प्रार्थना शुरू की और अच्छी समझ के लिए प्रभु की सहायता मांगी। मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास दो विकल्प थे: या तो मैं उस महिला के शब्दों को अस्वीकार करूं जो अब तक मेरी 13 महीने की बेटी के लिए एक धैर्यवान, प्यार करने वाली अच्छी आया थी। दूसरा विकल्प यही था कि मैं अपने कार्यों को सही ठहराने की कोशिश करने का प्रयत्न करूं, अपने इरादों पर फिर से जोर दूं और अपने बच्चों के लिए एक नयी आया खोजने की प्रक्रिया शुरू करूं। या मैं इस बात की जांच करूं कि किस वजह से उस महिला को अस्वाभाविक रूप से प्रतिक्रिया करनी पड़ी और यह देखती कि क्या वास्तव में उसकी तीखी चोट में सच्चाई का अंश था। मैंने यही विकल्प चुना, और जैसे ही मैंने प्रभु की मदद की खोज की, मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपने बच्चों के प्रति प्रेम और दया की दिशा में अपनी ममतारूपी लोलक को बहुत दूर तक झूलने दिया है। मैंने अपने बच्चों की अवज्ञा का बहाना बनाने के लिए उनकी कम उम्र का सहारा लिया था, यह विश्वास करते हुए कि अगर मैं उन पर प्यार उंडेल दूंगी, तो वे मेरी आज्ञानुसार ही कार्य करेंगे। गिरने से पहले मैं यह दिखावा नहीं कर सकती थी कि फीलिस के शब्दों से मुझे कोई ठेस नहीं पहुंची थी। उसके शब्दों ने मुझे गहरा घाव दिया था। मेरे पालन-पोषण के बारे में उसकी धारणा वास्तव में सच थी या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इस बात का महत्त्व था कि क्या मैं खुद को विनम्र बनाने और इस स्थिति से सीखने को तैयार थी या नहीं। कहा जाता है कि "गिरने से पहले अभिमान चला जाता है", और यह सच है कि मैं पहले से ही आदर्श पालन-पोषण के उस पायदान से काफी दूर गिर चुकी थी जो मैंने अपने लिए निर्धारित किया था। मैं निश्चित रूप से अपने अभिमान और चोट पर टिके रहकर एक और पतन बर्दाश्त नहीं कर सकती थी । यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि किताबें लिखने वाले "विशेषज्ञ" लोगों को हमेशा सुनने की ज़रुरत नहीं है। कभी-कभी अनुभव की आवाज़ को ही ध्यान देने की ज़रुरत है। अगली सुबह, मैंने बच्चों को गाडी में बिठाया और क्रिस्टन और टिम्मी की देखभाल करने वाली फीलिस के घर तक के उस परिचित रास्ते पर चल पड़ी। मुझे पता था कि भविष्य में उनसे मिलने वाली सलाह से हर बार मैं सहमत नहीं हो पाऊंगी, लेकिन मैं यह जानती थी कि हमारे परिवार की भलाई के लिए, मुझे चुनौती देने का जोखिम उठाने वाली एक बुद्धिमान और साहसी महिला की जरूरत होगी। आख़िरकार, "शिक्षण" शब्द "शिष्य" शब्द से आया है, जिसका अर्थ है "सीखना।" मैं कई वर्षों तक येशु की शिष्य रही, उनके आदर्शों और सिद्धांतों को जीने का प्रयास करती रही। जब मैंने अपने जीवन में बार-बार उसके स्थायी प्रेम का अनुभव किया तो मैं उस पर भरोसा करने लगी। मैं अब इस अनुशासन को स्वीकार करूंगी, यह जानते हुए कि यह प्रभु के प्यार का प्रतिबिंब है जो न केवल मेरे लिए, बल्कि हमारे परिवार के लिए भी सर्वश्रेष्ठ चाहता है । कार से बाहर निकलते हुए, हम तीनों सामने के दरवाजे के पास पहुंचे, मेरी आंखों के सामने लकड़ी पर, हाथ से बनी हुई पट्टी लगी थी, जिसे मैं एक बार फिर से पढ़ने के लिए रुकी, "मैं और मेरा परिवार, हम सब प्रभु की सेवा करेंगे।” हाँ, फिलिस ने यही किया था। अगर हमारे पास सुनने के लिए कान हो तो प्रभु हमारे लिए हर दिन ऐसा ही करते हैं, वह "उन लोगों को अनुशासित करते हैं जिनसे वह प्यार करते हैं।" येशु, हमारे शिक्षक, उन लोगों के माध्यम से काम करते हैं जो दूसरे व्यक्ति की भलाई के लिए अस्वीकृति का जोखिम उठाने को तैयार हैं। निश्चित रूप से, फीलिस उनके नक्शे-कदम पर चलने का प्रयास कर रही थी। यह पहचानते हुए कि इस आस्थावान महिला का इरादा हमारे गुरु प्रभु येशु से सीखी गई बातों को मेरे लाभ के लिए मुझ तक पहुंचाने का था, मैंने सामने का दरवाज़ा खटखटाया। जैसे ही हमें अन्दर प्रवेश करने की इजाजत देने के लिए वह दरवाज़ा खुला, वैसे ही मेरे दिल का दरवाजा भी खुला।
By: Karen Eberts
Moreप्रश्न: मेरे बच्चे किशोरावस्था तक नहीं पहुंचे हैं। वे बार बार मोबाइल फोन की मांग कर रहे हैं ताकि वे अपने सभी दोस्तों की तरह सोशल-मीडिया में आ सकें। मैं बहुत दु:खी हूँ, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि उन्हें ऐसी छूट दी जाए, क्योंकि मुझे पता है कि यह कितना खतरनाक हो सकता है। आप की राय क्या है? उत्तर: सोशल-मीडिया का इस्तेमाल अच्छाई के लिए किया जा सकता है। मैं एक बारह वर्षीय बालक को जानता हूँ जो टिक-टॉक पर बाइबल से प्रेरित चिंतन की वीडियो बनाता है, और उसे सैकड़ों लोग देखते हैं। एक युवक इंस्टाग्राम अकाउंट में संतों के बारे में पोस्ट करता है। अन्य युवक नास्तिकों से वाद-विवाद करने या युवाओं को उनके विश्वास में प्रोत्साहित करने के लिए डिस्कॉर्ड जेसे एप्स का इस्तमाल करते हैं। बिना किसी संदेह के, सुसमाचार-प्रचार और ईसाई समुदाय को विश्वास में बढ़ाने में सोशल-मीडिया का अच्छा उपयोग किया जा सकता है। फिर भी ... क्या लाभ जोखिमों से अधिक हैं? आध्यात्मिक जीवन में एक अच्छी सूक्ति है: "ईश्वर पर अत्यधिक भरोसा करें... स्वयं पर कभी भरोसा न करें!" क्या हमें किशोरों को इंटरनेट के असीमित उपयोग का अवसर देना चाहिए? अगर वे सबसे अच्छे इरादों से शुरू करते हैं, तो क्या वे प्रलोभनों का विरोध करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत या सक्षम हैं? सोशल-मीडिया एक खतरनाक गड्ढा बन सकता है - न केवल अश्लील साहित्य या हिंसा का महिमामंडन जैसे स्पष्ट प्रलोभन, बल्कि इससे भी अधिक कपटपूर्ण प्रलोभन, जैसे: लिंग सम्बन्धी गलत विचारधारा, साइबर धमकियां, ‘लाइक्स’ और ‘व्यूस’ प्राप्त करने का नशा, और जब युवक सोशल-मीडिया पर दूसरों के साथ खुद की तुलना करना शुरू करते हैं तो उनमें अपर्याप्तता की भावना उत्पन होती है। मेरी राय में, लाभों से अधिक जोखिम हैं जो युवाओं को एक धर्मविहीन दुनिया तक पहुंचने की अनुमति देने और उन्हें मसीही सोच से दूर करने की अनगिनत कोशिशें हैं। हाल ही में एक माँ और मैं उनकी किशोर-बेटी के खराब व्यवहार और रवैये पर चर्चा कर रहे थे, जो कि उसके टिक-टॉक के उपयोग और इंटरनेट में उसकी असीमित उपयोग से संबंधित था। माँ ने आह भरते हुए कहा, "यह कितना दु:खद है कि बच्चे अपने मोबाइल फोन के इतने आदी हैं... लेकिन हम क्या कर सकते हैं?" हम क्या कर सकते हैं? हम ज़िम्मेदार माता-पिता बन सकते हैं! हाँ, मुझे पता है कि आपके ऊपर जबरदस्त दबाव है कि आप अपने बच्चों को एक फोन या डिवाइस दें, जो मानवता के लिए सबसे खराब तोहफा यानी सोशल मीडिया का असीमित उपयोग करने की अनुमति देने की बात है। लेकिन माता-पिता के रूप में आपका कर्तव्य अपने बच्चों को संत बनाना है। उनकी आत्मा आपके हाथों में हैं। हमें दुनिया के खतरों के खिलाफ रक्षा की पहली दीवार बननी चाहिए। हम उन्हें कभी भी बच्चों का यौन शोषण करने वालों के साथ समय बिताने की अनुमति नहीं देंगे; अगर हमें पता होता कि उन्हें धमकाया जा रहा है तो हम उन्हें बचाने की कोशिश करेंगे; अगर वे बीमार हो रहे हैं, तो हम उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। फिर हम उन्हें अश्लीलता, घृणा और समय बर्बाद करने वाले कचरे के ढेर, जो इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध है, सावधानीपूर्वक मार्गदर्शन दिये बिना उसमें घुसने की अनुमति क्यों देंगे? अध्ययन ने इंटरनेट के नकारात्मक प्रभावों को दिखाया है - और विशेष रूप से सोशल-मीडिया के प्रभावों को - फिर भी हम आंखें मूंद लेते हैं और आश्चर्य की बात है कि हम खुद से पूछते हैं कि हमारे नन्हें बेटे और बेटियां पहचान का संकट, अवसाद, आत्म-घृणा, विभिन्न व्यसन, भ्रष्ट व्यवहार, आलस्य, पवित्रता की इच्छा के अभाव से क्यों जूझते हैं! हे माता-पिताओ, अपने अधिकार और ज़िम्मेदारियों से दूर न भागें! आपके जीवन के अंत में, प्रभु आपसे पूछेगा कि जिन आत्माओं को उसने आपको सौंपा था, आपने उन की किस तरह से देखभाल की - आप उन्हें स्वर्ग में ले गए या नहीं, और उनकी आत्माओं को पाप से अपनी सर्वोत्तम क्षमता के साथ सुरक्षित रखा कि नहीं। "ओह, अन्य सब लोगों के बच्चों के पास फोन है, अगर मेरे बच्चे के पास फोन नहीं होगा, तो बड़ा अजीब लगेगा!” हम इस बहाने का उपयोग नहीं कर सकते हैं। यदि आप उनके फोन पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो क्या आपके बच्चे आपसे नाराज होंगे, क्या वे आपसे नफरत करेंगे? शायद। लेकिन उनका क्रोध अस्थायी होगा — उनकी कृतज्ञता अनंत होगी। मेरी एक दोस्त सोशल-मीडिया के खतरों के बारे में बात करती हुई देश-भर घूमती रहती है, हाल ही में उसने मुझे बताया कि उसके व्याख्यानों के बाद उसके पास हमेशा कई युवा वयस्क दो प्रतिक्रियायें लेकर आते हैं, पहला: "उस समय मेरा मोबाइल फ़ोन मुझसे छीन लेने के लिए मैं अपने माता-पिता के प्रति बहुत गुस्से में था, लेकिन अब मैं उनका आभारी हूँ।" दूसरा: "मैं वास्तव में सोचता हूँ कि मेरे माता-पिता ने मुझे अपनी मासूमियत खोने से बचाया होता।" उनके माता-पिता ने उन्हें छूट दिए थे, इस बात के लिए कोई भी युवक आभारी नहीं! तो अब क्या करें? सबसे पहले, किशोरों (या उन से भी छोटों!) को इंटरनेट या ऐप्स से भरे हुए फ़ोन न दें। अभी भी बहुत सारे साधारण फोन मिलते हैं! यदि आप उन्हें ऐसे फोन देते हैं जो इंटरनेट से चलते हैं, तो उन पर प्रतिबंध लगाएं। अपने बेटे के फोन पर और अपने घर के कंप्यूटर पर “कवनंट आईस” ऐप (Covenent Eyes App) डाउनलोड करें (लगभग हर पापस्वीकर जो मैंने सुना है उसमें पोर्नोग्राफी शामिल है, जो घातक रूप से पापमय है और आपके बेटे को महिलाओं के प्रति केवल वस्तुओं के रूप में देखने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिसका उसके भविष्य के रिश्तों पर बहुत बड़ा प्रभाव होगा)। उन्हें भोजन के समय या अकेले अपने शयनकक्ष में वीडियोस न देखने दें। समान नीतियों वाले अन्य परिवारों का समर्थन प्राप्त करें। सबसे महत्वपूर्ण बात - अपने बच्चे का दोस्त बनने की कोशिश न करें, बल्कि उसके माता-पिता बनें। सच्चे प्रेम के लिए सीमाओं, अनुशासन और त्याग की आवश्यकता होती है। आपके बच्चे का शाश्वत कल्याण आपके हाथ में है, इसलिए यह न कहें, "अब मैं कुछ नहीं कर सकता- मेरे बच्चे को इसमें फिट होने की जरूरत है।" यहाँ पृथ्वी पर फिट होने से बेहतर है अलग दिखना, ताकि हम संतों की संगति में फिट हो सकें!
By: फादर जोसेफ गिल
Moreसबसे महान प्रचारक, बेशक, येशु स्वयं हैं, और एम्माऊस के रास्ते पर शिष्यों के बारे में लूकस के शानदार वर्णन से बेहतर येशु की सुसमाचार प्रचार तकनीक की कोई और वर्णन नहीं है। गलत रास्ते पर दो लोगों के जाने के वर्णन से कहानी शुरू होती है। लूकस के सुसमाचार में, यरूशलेम आध्यात्मिक गुरुत्वाकर्षण का केंद्र है - अंतिम भोज, क्रूस पर मृत्यु, पुनरुत्थान और पवित्र आत्मा के उतर आने का स्थान यही है। यह वह आवेशित स्थान है जहाँ उद्धार की पूरी योजना का पर्दाफाश होता है। इसलिए राजधानी से दूर जाने के कारण, येशु के ये दो पूर्व शिष्य परम्परा के विपरीत जा रहे हैं। येशु उनकी यात्रा में शामिल हो जाते हैं - हालाँकि हमें बताया जाता है कि उन्हें पहचानने से शिष्यों को रोका गया है - और येशु उन शिष्यों से पूछते हैं कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं। अपने पूरे सेवा कार्य के दौरान, येशु पापियों के साथ जुड़े रहे। यार्दन नदी के कीचड़ भरे पानी में योहन के बपतिस्मा के माध्यम से क्षमा मांगने वालों के साथ येशु कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे; बार-बार, उन्होंने बदनाम लोगों के साथ खाया पिया, और यह वहां के धर्मी लोगों के नज़र में बहुत ही निंदनीय कार्य था; और अपने जीवन के अंत में, उन्हें दो चोरों के बीच सूली पर चढ़ा दिया गया। येशु पाप से घृणा करते थे, लेकिन वे पापियों को पसंद करते थे और लगातार उनकी दुनिया में जाने और उनकी शर्तों पर उनसे जुड़ने के लिए तैयार रहते थे। और यही पहली महान सुसमाचारीय शिक्षा है। सफल सुसमाचार प्रचारक पापियों के अनुभव से अलग नहीं रहते, उन पर आसानी से दोष नहीं लगाते, उन पर फैसला पारित नहीं करते, उनके लिए प्रार्थना दूर से नहीं करते; इसके विपरीत, वे उनसे इतना प्यार करते हैं कि वे उनके साथ जुड़ जाते हैं और उनके जैसे चलने और उनके अनुभव को महसूस करते हैं। येशु के जिज्ञासु प्रश्नों से प्रेरित होकर, यात्रियों में से एक, जिसका नाम क्लेओपस था, नाज़रेथ के येशु के बारे में सभी 'बातें' बताता है: "वे ईश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे। हमारे महायाजकों और शासकों ने उन्हें प्राणदंड दिलाया और क्रूस पर चढ़ाया। हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करनेवाले थे। आज सुबह, ऐसी खबरें आईं कि वे मृतकों में से जी उठे हैं।" क्लेओपस के पास सारे सीधे और स्पष्ट 'तथ्य' हैं; येशु के बारे में उसने जो कुछ भी कहा है, उसमें एक भी बात गलत नहीं है। लेकिन उसकी उदासी और यरूशलेम से उसका भागना इस बात की गवाही देता है कि वह पूरी तस्वीर को नहीं देख पा रहा है। मुझे न्यू यॉर्कर पत्रिका के कार्टून बहुत पसंद हैं, जो बड़ी चतुराई और हास्यास्पद तरीके से बनाए जाते हैं, लेकिन कभी-कभी, कोई ऐसा कार्टून होता है जिसे मैं समझ नहीं पाता। मैं सभी विवरणों को समझ लेता हूँ, मैं मुख्य पात्रों और उनके आस-पास की वस्तुओं को देखता हूँ, मैं कैप्शन को समझ लेता हूँ। फिर भी, मुझे समझ में नहीं आता कि यह हास्य कैसे पैदा करता है। और फिर एक पल आता है जब मुझे समझ में आता है: हालाँकि मैंने कोई और विवरण नहीं देखा है, हालाँकि पहेली का कोई नया टुकड़ा सामने नहीं आया है, लेकिन मैं उस पैटर्न को समझ जाता हूँ जो उन्हें एक सार्थक तरीके से एक साथ जोड़ता है। एक शब्द में, मैं कार्टून को 'समझ' जाता हूँ। क्लेओपस का वर्णन सुनकर, येशु ने कहा: “ओह, निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मंदमति हो।” और फिर येशु उनके लिए धर्मग्रन्थ के प्रतिमानों का खुलासा करते हैं, जिन घटनाओं को उन्होंने देखा है, उनका अर्थ बताते हैं। अपने बारे में कोई नया विवरण बताए बिना, येशु उन्हें रूप, व्यापक योजना और सरंचना, और उसका अर्थ दिखाते हैं - और इस प्रक्रिया के माध्यम से वे उसे 'समझना' शुरू करते हैं: उनके दिल उनके भीतर जल रहे हैं। यही दूसरी सुसमाचार शिक्षा है। सफल प्रचारक धर्मग्रन्थ का उपयोग दिव्य प्रतिमानों और विशेषकर उस प्रतिमान को प्रकट करने के लिए करते हैं, जो येशु में देहधारी हुआ है। इन प्रतिमानों का स्पष्टीकरण किये बिना, मानव जीवन एक अस्तव्यस्तता है, घटनाओं का एक धुंधलापन है, अर्थहीन घटनाओं की एक श्रृंखला है। सुसमाचार का प्रभावी प्रचारक बाइबल का व्यक्ति होता है, क्योंकि पवित्र ग्रन्थ वह साधन है जिसके द्वारा हम येशु मसीह को 'पाते' हैं और उसके माध्यम से, हमारे अपने जीवन को भी। जब वे एम्माउस शहर के पास पहुँचते हैं, तो वे दोनों शिष्य अपने साथ रहने के लिए येशु पर दबाव डालते हैं। येशु उनके साथ बैठते हैं, रोटी उठाते हैं, आशीर्वाद की प्रार्थना बोलते हैं, उसे तोड़ते हैं और उन्हें देते हैं, और उसी क्षण वे येशु को पहचान लेते हैं। हालाँकि, वे पवित्र ग्रन्थ के हवाले से देखना शुरू कर रहे थे, फिर भी वे पूरी तरह से समझ नहीं पाए थे कि वह कौन था। लेकिन यूखरिस्तीय क्षण में, रोटी तोड़ने पर, उनकी आँखें खुल जाती हैं। येशु मसीह को समझने का अंतिम साधन पवित्रग्रन्थ नहीं बल्कि पवित्र यूखरिस्त है, क्योंकि यूखरिस्त स्वयं मसीह है, जो व्यक्तिगत रूप से और सक्रिय रूप से उसमें मौजूद हैं। यूखरिस्त पास्का रहस्य का मूर्त रूप है, जो अपनी मृत्यु के माध्यम से दुनिया के प्रति येशु का प्रेम, सबसे हताश पापियों को बचाने के लिए पापी और निराश दुनिया की ओर ईश्वर की यात्रा, करुणा के लिए उनका संवेदनशील हृदय है। और यही कारण है कि यूखरिस्त की नज़र के माध्यम से येशु सबसे अधिक पूर्ण और स्पष्ट रूप से हमारी दृष्टि के केंद्र में आते हैं। और इस प्रकार हम सुसमाचार की तीसरी महान शिक्षा पाते हैं। सफल सुसमाचार प्रचारक यूखरिस्त के व्यक्ति हैं। वे पवित्र मिस्सा की लय की लहरों में बहते रहते हैं; वे यूखरिस्तीय आराधना का अभ्यास करते हैं; जिन्होंने सुसमाचार को स्वीकार किया है, उन लोगों को वे येशु के शरीर और रक्त में भागीदारी के लिए आकर्षित करते हैं। वे जानते हैं कि पापियों को येशु मसीह के पास लाना कभी भी मुख्य रूप से व्यक्तिगत गवाही, या प्रेरणादायक उपदेश, या यहाँ तक कि पवित्रग्रन्थ के व्यापक सरंचना के संपर्क का मामला नहीं होता है। यह मुख्य रूप से यूखरिस्त की टूटी हुई रोटी के माध्यम से ईश्वर के टूटे हुए दिल को देखने का मामला है। तो सुसमाचार के भावी प्रचारको, वही करो जो येशु ने किया। पापियों के साथ चलो, पवित्र ग्रन्थ खोलो, रोटी तोड़ो।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
Moreएक आकर्षक पहली मुलाकात, दूरी, फिर पुनर्मिलन...यह अनंत प्रेम की कहानी है। मुझे बचपन की एक प्यारे दिन की याद आती है, जब मैंने यूखरिस्तीय आराधना में येशु का सामना किया था। एक राजसी और भव्य मोनस्ट्रेंस या प्रदर्शिका में यूखरिस्तीय येशु को देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गई थी। सुगन्धित धूप उस यूखरिस्त की ओर उठ रही थी। जैसे ही धूपदान को झुलाया गया, यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की ओर धूप उड़ने लगी, और पूरी मंडली ने एक साथ गाया: " परम पावन संस्कार में, सदा सर्वदा, प्रभु येशु की स्तुति हो, महिमा हो, आराधना हो।" वह बहुप्रतीक्षित मुलाकात मैं खुद धूपदान को छूना चाहती थी और उसे धीरे से आगे की ओर झुलाना चाहती थी ताकि मैं धूप को प्रभु येशु तक पहुंचा सकूं। पुरोहित ने मुझे धूपदान को न छूने का इशारा किया और मैंने अपना ध्यान धूप के धुएं पर लगाया जो मेरे दिल और आंखों के साथ-साथ यूखरिस्त में पूरी तरह से मौजूद प्रभु की ओर बढ़ रहा था। इस मुलाकात ने मेरी आत्मा को बहुत खुशी से भर दिया। सुंदरता, धूप की खुशबू, पूरी मंडली का एक सुर में गाना, और यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की उपासना का दृश्य... मेरी इंद्रियाँ पूरी तरह से संतुष्ट थीं, जिससे मुझे इसे फिर से अनुभव करने की लालसा हो रही थी। उस दिन को याद करके मुझे आज भी बहुत खुशी होती है। हालाँकि, किशोरावस्था में, मैंने इस अनमोल निधि के प्रति अपना आकर्षण खो दिया, और खुद को पवित्रता के ऐसे महान स्रोत से वंचित कर लिया। हालांकि उन दिनों मैं एक बच्ची थी, इसलिए मुझे लगता था कि मुझे यूख्ररिस्तीय आराधना के पूरे समय लगातार प्रार्थना करनी होगी और इसके लिए एक पूरा घंटा मुझे बहुत लंबा लगता था। आज हममें से कितने लोग ऐसे कारणों से - तनाव, ऊब, आलस्य या यहाँ तक कि डर के कारण - यूखरिस्तीय आराधना में जाने से हिचकिचाते हैं? सच तो यह है कि हम खुद को इस महान उपहार से वंचित करते हैं। पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत अपनी युवावस्था में संघर्षों, परीक्षाओं और पीडाओं के बीच, मुझे याद आया कि मुझे पहले कहाँ से इतनी सांत्वना मिली थी, और उस सांत्वना के स्रोत को याद करते हुए मैं शक्ति और पोषण के लिए यूखरिस्तीय आराधना में वापस लौटी। पहले शुक्रवार को, मैं पूरे एक घंटे के लिए पवित्र संस्कार में येशु की उपस्थिति में चुपचाप आराम करती, बस खुद को उनके साथ रहने देती, अपने जीवन के बारे में प्रभु से बात करती, उनकी मदद की याचना करती और बार-बार तथा सौम्य तरीके से उनके प्रति अपने प्यार का इज़हार करती। यूखरिस्तीय येशु के सामने आने और एक घंटे के लिए उनकी दिव्य उपस्थिति में रहने की संभावना मुझे वापस खींचती रही। जैसे-जैसे साल बीतते गए, मुझे एहसास हुआ कि यूखरिस्तीय आराधना ने मेरे जीवन को गहन तरीकों से बदल दिया है क्योंकि मैं ईश्वर की एक प्यारी बेटी के रूप में अपनी सबसे गहरी पहचान के बारे में अधिक से अधिक जागरूक होती जा रही हूँ। हम जानते हैं कि हमारे प्रभु येशु वास्तव में और पूरी तरह से यूखरिस्त में मौजूद हैं - उनका शरीर, रक्त, आत्मा और दिव्यता यूखरिस्त में हैं। यूखरिस्त स्वयं येशु हैं। यूखरिस्तीय येशु के साथ समय बिताने से आप अपनी बीमारियों से चंगे हो सकते हैं, अपने पापों से शुद्ध हो सकते हैं और अपने आपको उनके महान प्रेम से भर सकते हैं। इसलिए, मैं आप सभी को नियमित रूप से यूखरिस्तीय प्रभु के सम्मुख पवित्र घड़ी बिताने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ। आप जितना अधिक समय यूखरिस्तीय आराधना में प्रभु के साथ बिताएँगे, उनके साथ आपका व्यक्तिगत संबंध उतना ही मजबूत होगा। शुरुआती झिझक के सम्मुख न झुकें, बल्कि हमारे यूखरिस्तीय प्रभु, जो स्वयं प्रेम और दया, भलाई और केवल भलाई हैं, उनके साथ समय बिताने से न डरें।
By: पवित्रा काप्पन
Moreजब आपका रास्ता मुश्किलों से भरा हो और आप को आगे का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा हो, तो आप क्या करेंगे? 2015 की गर्मी अविस्मरणीय थी। मैं अपने जीवन के सबसे निचले बिंदु पर थी - अकेली, उदास और एक भयानक स्थिति से बचने के लिए अपनी पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी। मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से थकी और बिखरी हुई थी, और मुझे लगा कि मेरी दुनिया खत्म होने वाली है। लेकिन अजीब बात यह है कि चमत्कार तब होते हैं जब हम उन चमत्कारों की कम से कम उम्मीद करते हैं। असामान्य घटनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से, ऐसा लग रहा था जैसे परमेश्वर मेरे कान में फुसफुसा रहा था कि वह मुझे संरक्षण दे रहा है। उस विशेष रात को, मैं निराश होकर, टूटी और बिखरी हुई बिस्तर पर लेटने गयी थी। सो नहीं पाने के कारण, मैं एक बार फिर अपने जीवन की दुखद स्थिति पर विचार कर रही थी और मैं अपनी रोज़री माला को पकड़ कर प्रार्थना करने का प्रयास कर रही थी। एक अजीब तरह के दर्शन या सपने में, मेरे सीने पर रखी रोज़री माला से एक चमकदार रोशनी निकलने लगी, जिसने कमरे को एक अलौकिक सुनहरी चमक से भर दिया। जैसे-जैसे यह रोशनी धीरे-धीरे फैलने लगी, मैंने उस चमकदार वृत्त के किनारे पर काले, चेहरेहीन, छायादार आकृतियाँ देखीं। वे अकल्पनीय गति से मेरे करीब आ रहे थे, लेकिन सुनहरी रोशनी तेज होती गई और जब भी वे मेरे करीब आने की कोशिश करते, तो वह सुनहरी रोशनी उन्हें दूर भगा देती। मैं स्तब्ध थी, और उस अद्भुत दृश्य की विचित्रता पर प्रतिक्रिया करने में असमर्थ थी। कुछ पलों के बाद, दृश्य अचानक समाप्त हो गया, कमरे में फिर से गहरा अंधेरा छा गया। बहुत परेशान होकर सोने से डरती हुई , मैंने टी.वी. चालू किया। एक पुरोहित, संत बेनेदिक्त की ताबीज़ (मेडल) पकड़े हुए थे और बता रहे थे कि यह ताबीज़ कैसे दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है। जब वे उस ताबीज़ पर अंकित प्रतीकों और शब्दों पर चर्चा कर रहे थे, मैंने अपनी रोज़री माला पर नज़र डाली - यह मेरे दादाजी की ओर से एक उपहार थी - और मैंने देखा कि मेरी रोज़री माला पर टंगे क्रूस में वही ताबीज़ जड़ी हुई थी। इससे एक आभास हुआ। मेरे गालों पर आँसू बहने लगे क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि जब मैं सोच रही थी कि मेरा जीवन बर्बाद हो रहा है तब भी परमेश्वर मेरे साथ था और मुझे संरक्षण दे रहा था। मेरे दिमाग से संदेह का कोहरा छंट गया, और मुझे इस ज्ञान में सांत्वना मिली कि मैं अब अकेली नहीं थी। मैंने पहले कभी संत बेनेदिक्त की ताबीज़ के अर्थ को नहीं समझा था, इसलिए इस नए विश्वास ने मुझे बहुत आराम दिया, जिससे परमेश्वर में मेरा विश्वास और आशा मजबूत हुई। अपार प्रेम और करुणा के साथ, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ मौजूद था, जब भी मैं फिसली तो मुझे बचाने के लिए वह तैयार था। यह एक सुकून देने वाला विचार था जिसने मेरे अस्तित्व को जकड लिया, मुझे आशा और शक्ति से भर दिया। मेरी आत्मा को प्राप्त नया रूप मेरे दृष्टिकोण में इस तरह के बदलाव ने मुझे आत्म-खोज और विकास की यात्रा पर आगे बढ़ाया। मैंने आध्यात्मिकता को अपने रोजमर्रा के जीवन से दूर की चीज़ के रूप में देखना बंद कर दिया। इसके बजाय, मैंने प्रार्थना, चिंतन और दयालुता के कार्यों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध विकसित करने की कोशिश की, यह महसूस करते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति केवल भव्य इशारों तक सीमित नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के सबसे सरल क्षणों में महसूस की जा सकती है। एक रात में पूरा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन मैंने अपने भीतर हो रहे सूक्ष्म बदलावों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। मैं अधिक धैर्यवान हो गयी हूं, तनाव और चिंता को दूर करना सीख गयी हूं, और इस तरह मैंने एक नए विश्वास को अपनाया है कि अगर मैं ईश्वर पर अपना भरोसा रखूंगी तो चीजें उसकी इच्छा के अनुसार सामने आएंगी। इसके अलावा, प्रार्थना के बारे में मेरी धारणा बदल गई है, जो इस समझ से उपजी एक सार्थक बातचीत में बदल गई है कि, भले ही उनकी दयालु उपस्थिति दिखाई न दे, लेकिन ईश्वर हमारी बात सुनता है और हम पर नज़र रखता है। जैसे कुम्हार मिट्टी को उत्कृष्ट कलाकृति में ढालता है, वैसे ही ईश्वर हमारे जीवन के सबसे निकृष्ट हिस्सों को ले सकता है और उन्हें कल्पना की जा सकने वाली सबसे सुंदर आकृतियों में ढाल सकता है। उन पर विश्वास और आशा हमारे जीवन में बेहतर चीजें लाएगी जो हम कभी भी अपने दम पर हासिल नहीं कर सकते हैं, और हमें अपने रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों के बावजूद मजबूत बने रहने में सक्षम बनाती हैं। * संत बेनेदिक्त का मेडल उन लोगों को दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद देते हैं जो उन्हें पहनते हैं। कुछ लोग उन्हें नई इमारतों की नींव में गाड़ देते हैं, जबकि अन्य उन्हें रोज़री माला से जोड़ते हैं या अपने घर की दीवारों पर लटकाते हैं। हालाँकि, सबसे आम प्रथा संत बेनेदिक्त के मेडल को ताबीज़ बनाकर पहनना या इसे क्रूस के साथ जोड़ना है।
By: अन्नू प्लाचेई
Moreमैं विश्वविद्यालय की एक स्वस्थ छात्रा थी, अचानक पक्षाघात वाली बन गयी, लेकिन मैंने व्हीलचेयर तक अपने को सीमित रखने से इनकार कर दिया… विश्वविद्यालय के शुरुआती सालों में मेरी रीढ़ की डिस्क खिसक गई थी। डॉक्टरों ने मुझे भरोसा दिलाया कि युवा और सक्रिय होने के कारण, फिजियोथेरेपी और व्यायाम के द्वारा मैं बेहतर हो जाऊंगी, लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद, मैं हर दिन दर्द में रहती थी। मुझे हर कुछ महीनों में गंभीर दौरे पड़ते थे, जिसके कारण मैं हफ्तों तक बिस्तर पर रहती थी और बार-बार अस्पताल जाना पड़ता था। फिर भी, मैंने उम्मीद बनाई रखी, जब तक कि मेरी दूसरी डिस्क खिसक नहीं गई। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी बदल गई है। ईश्वर से नाराज़! मैं पोलैंड में पैदा हुई थी। मेरी माँ ईशशास्त्र पढ़ाती हैं, इसलिए मेरी परवरिश कैथलिक धर्म में हुई। यहाँ तक कि जब मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए स्कॉटलैंड और फिर इंग्लैंड गयी, तब भी मैंने इस धर्म को बहुत प्यार से थामे रखा, करो या मरो के अंदाज़ में शायद नहीं, लेकिन यह हमेशा मेरे साथ था। किसी नए देश में जाने का शुरुआती दौर आसान नहीं था। मेरा घर एक भट्टी की तरह था, जहाँ मेरे माता-पिता अक्सर आपस में लड़ते रहते थे, इसलिए मैं व्यावहारिक रूप से इस अजनबी देश की ओर भाग गयी थी। अपने मुश्किल बचपन को पीछे छोड़कर, मैं अपनी जवानी का मज़ा लेना चाहती थी। अब, यह दर्द मेरे लिए नौकरी करना और खुद को आर्थिक रूप से संतुलित रखना मुश्किल बना रहा था। मैं ईश्वर से नाराज़ थी। फिर भी, वह मुझे जाने देने को तैयार नहीं था। भयंकर दर्द में कमरे के अन्दर फँसे होने के कारण, मैंने एकमात्र उपलब्ध शगल का सहारा लिया—मेरी माँ की धार्मिक पुस्तकों का संग्रह। धीरे-धीरे, मैंने जिन आत्मिक साधनाओं में भाग लिया और जो किताबें पढ़ीं, उनसे मुझे एहसास हुआ कि मेरे अविश्वास के बावजूद, ईश्वर वास्तव में चाहता था कि उसके साथ मेरा रिश्ता मजबूत हो। लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी कि वह अभी तक मुझे चंगा नहीं कर रहां था। आखिरकार, मुझे विश्वास हो गया कि ईश्वर मुझसे नाराज़ हैं और मुझे ठीक नहीं करना चाहता, इसलिए मैंने सोचा कि शायद मैं उन्हें धोखा दे सकती हूँ। मैंने चंगाई के लिए विख्यात और अच्छे 'आँकड़ों' वाले किसी पवित्र पुरोहित की तलाश शुरू कर दी ताकि जब ईश्वर दूसरे कामों में व्यस्त हों तो मैं ठीक हो सकूँ। कहने की ज़रूरत नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ। मेरी यात्रा में एक मोड़ एक दिन मैं एक प्रार्थना समूह में शामिल थी, मैं बहुत दर्द में थी। दर्द की वजह से एक गंभीर प्रकरण होगा, इस डर से, मैं वहाँ से जाने की योजना बना रही थी, तभी वहाँ के एक सदस्य ने पूछा कि क्या कोई ऐसी बात है जिसके लिए मैं उनसे प्रार्थना की मांग करना चाहूँगी। मुझे काम पर कुछ परेशानी हो रही थी, इसलिए मैंने हाँ कह दिया। जब वे लोग प्रार्थना कर रहे थे, तो उनमें से एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या कोई शारीरिक बीमारी है जिसके लिए मुझे प्रार्थना की ज़रूरत है। चंगाई करनेवाले लोगों की मेरी ‘रेटिंग' सूची के हिसाब से वे बहुत नीचे थे, इसलिए मुझे भरोसा नहीं था कि मुझे कोई राहत मिलेगी, लेकिन मैंने फिर भी 'हाँ' कह दिया। उन्होंने प्रार्थना की और मेरा दर्द दूर हो गया। मैं घर लौट आयी, और वह दर्द अभी भी नहीं थी। मैं कूदने, मुड़ने और इधर-उधर घूमने लगी, और मैं अभी भी ठीक थी। लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मैं ठीक हो गयी हूँ, तो किसी ने मुझ पर विश्वास नहीं किया। इसलिए, मैंने लोगों को बताना बंद कर दिया; इसके बजाय, मैं माँ मरियम को धन्यवाद देने के लिए मेडजुगोरे गयी। वहाँ, मेरी मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जो रेकी कर रहा था और मेरे लिए प्रार्थना करना चाहता था। मैंने मना कर दिया, लेकिन जाने से पहले उसने अलविदा कहने के लिए मुझे गले लगाया, जिससे मैं चिंतित हो गयी क्योंकि उसने कहा कि उसके स्पर्श में शक्ति है। मैंने डर को हावी होने दिया और गलत तरीके से मान लिया कि इस दुष्ट का स्पर्श ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। अगली सुबह मैं भयंकर दर्द में उठी, चलने में असमर्थ थी। चार महीने की राहत के बाद, मेरा दर्द इतना तीव्र हो गया कि मुझे लगा कि मैं वापस ब्रिटेन भी नहीं जा पाऊँगी। जब मैं वापस लौटी, तो मैंने पाया कि मेरी डिस्क नसों को छू रही थी, जिससे महीनों तक और भी ज़्यादा दर्द हो रहा था। छह या सात महीने बाद, डॉक्टरों ने फैसला किया कि उन्हें मेरी रीढ़ की हड्डी पर जोखिम भरी सर्जरी करने की ज़रूरत है, जिसे वे लंबे समय से टाल रहे थे। सर्जरी से मेरे पैर की एक नस क्षतिग्रस्त हो गई, और मेरा बायाँ पैर घुटने से नीचे तक लकवाग्रस्त हो गया। वहाँ और फिर एक नई यात्रा शुरू हुई, एक अलग यात्रा। मुझे पता है कि तू यह कर सकता है जब मैं पहली बार व्हीलचेयर पर घर पहुची, तो मेरे माता-पिता डर गए, लेकिन मैं खुशी से भर गयी। मुझे सभी तकनीकी चीजें पसंद थीं...हर बार जब कोई मेरी व्हीलचेयर पर बटन दबाता था, तो मैं एक बच्चे की तरह उत्साहित हो जाती थी। क्रिसमस की अवधि के दौरान, जब मेरा पक्षाघात ठीक होने लगा, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी नसों को कितना नुकसान हुआ है। मैं कुछ समय के लिए पोलैंड के एक अस्पताल में भर्ती थी। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे जीने वाली थी। मैं बस ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि मुझे एक और उपचार की आवश्यकता है: "तुझे फिर से खोजने की मेरी आवश्यकता है क्योंकि मुझे पता है कि तू यह कर सकता है।" इसलिए, मुझे एक चंगाई सभा के बारे में जानकारी मिली और मुझे विश्वास हो गया कि मैं ठीक हो जाऊंगी। एक ऐसा पल जिसे आप खोना नहीं चाहेंगे वह शनिवार का दिन था और मेरे पिता शुरू में नहीं जाना चाहते थे। मैंने उनसे कहा: "आप अपनी बेटी के ठीक होने पर उस पल को खोना नहीं चाहेंगे।" मूल कार्यक्रम में मिस्सा बलिदान था, उसके बाद आराधना के साथ चंगाई सभा थी। लेकिन जब हम पहुंचे, तो पुरोहित ने कहा कि उन्हें योजना बदलनी होगी क्योंकि चंगाई सभा का नेतृत्व करने वाली टीम वहां नहीं थी। मुझे याद है कि मेरे मन में उस समय यह सोच आई थी कि मुझे किसी टीम की ज़रूरत नहीं है: "मुझे केवल येशु की ज़रूरत है।" जब मिस्सा बलिदान शुरू हुआ, तो मैं एक भी शब्द सुन नहीं पाई। हम उस तरफ बैठे थे जहाँ दिव्य की करुणा की तस्वीर थी। मैंने येशु को ऐसे देखा जैसे मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। यह एक आश्चर्यजनक छवि थी। येशु बहुत सुंदर लग रहे थे! मैंने उसके बाद कभी भी वह तस्वीर नहीं देखी। पूरे मिस्सा बलिदान के दौरान, पवित्र आत्मा मेरी आत्मा को घेरा हुआ था। मैं बस अपने मन में 'धन्यवाद' कह रही थी, भले ही मुझे नहीं पता था कि मैं किसके लिए आभारी हूँ। मैं चंगाई की प्रार्थना का निवेदन नहीं कह पा रही थी, और यह निराशाजनक था क्योंकि मुझे चंगाई की आवश्यकता थी। जब आराधना शुरू हुई तो मैंने अपनी माँ से कहा कि वे मुझे आगे ले जाएँ, जितना संभव हो सके येशु के करीब ले जाएँ। वहाँ, आगे बैठे हुए, मुझे लगा कि कोई मेरी पीठ को छू रहा है और मालिश कर रहा है। मुझे इतनी तीव्रता का अनुभव और साथ साथ आराम भी मिल रहा था कि मुझे लगा कि मैं सो जाऊँगी। इसलिए, मैंने बेंच पर वापस जाने का फैसला किया, लेकिन मैं भूल गयी थी कि मैं 'चल' नहीं सकती। मैं बस वापस चली गई और मेरी माँ मेरी बैसाखियों के साथ मेरे पीछे दौड़ी, ईश्वर की स्तुति करते हुए, माँ कह रही थी: "तुम चल रही हो, तुम चल रही हो।" मैं पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु द्वारा चंगी हो गयी थी। जैसे ही मैं बेंच पर बैठी, मैंने एक आवाज़ सुनी: "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है।" मेरे दिमाग में, मैंने उस महिला की छवि देखी जो येशु के गुजरने पर उनके लबादे को छू रही थी। उसकी कहानी मुझे मेरी कहानी की याद दिलाती है। जब तक मैं इस बिंदु पर नहीं पहुँची जहाँ मैंने येशु पर भरोसा करना शुरू किया, तब तक कुछ भी मदद नहीं कर रहा था। चंगाई तब हुई जब मैंने उसे स्वीकार किया और उससे कहा: "तुम ही मेरी ज़रूरत हो।" मेरे बाएं पैर की सभी मांसपेशियाँ चली गई थीं और वह भी रातों-रात वापस आ गई। यह बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि डॉक्टर लोग पहले भी इसका माप ले रहे थे और उन्होंने एक आश्चर्यजनक, अवर्णनीय परिवर्तन पाया। ऊंची आवाज़ में गवाही इस बार जब मुझे चंगाई मिली, तो मैं इसे सभी के साथ साझा करना चाहती थी। अब मैं शर्मिंदा नहीं थी। मैं चाहती थी कि सभी को पता चले कि ईश्वर कितना अद्भुत है और वह हम सभी से कितना प्यार करता है। मैं कोई खास नहीं हूँ और मैंने इस चंगाई को प्राप्त करने के लिए कुछ खास नहीं किया है। ठीक होने का मतलब यह भी नहीं है कि मेरा जीवन रातों-रात बहुत आरामदायक हो गया। अभी भी कठिनाइयाँ हैं, लेकिन वे बहुत हल्की हैं। मैं उन कठिनाइयों को यूखरिस्तीय आराधना में ले जाती हूँ और येशु मुझे समाधान देता है, या उनसे कैसे निपटना है इस बारे में विचार देता है, साथ ही आश्वासन और भरोसा भी देता है कि वह स्वयं उनसे निपटेगा।
By: एनिया ग्रेग्लेवस्का
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