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जुलाई 27, 2021 1667 0 Joan Harniman
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सबसे बड़ा सबक

क्या कोई अपने दुश्मन से कोई सबक सीखना चाहेगा? आइये जानते हैं कि कैसे जीवन की कठिनाइयां ही हमें बहुत कुछ सिखा जाती हैं – चाहे वो छोटी छोटी आज़ादी का छीन जाना हो, या घर छोड़ने को मजबूर होना या किसी अपने को खो देने का गम हो|

क्या हम पवित्र मिस्सा को “एक लौकिक अद्भुत” या “दुनियावी चमत्कार” कह सकते हैं? शायद यही कैथलिक विरोधाभासी शब्द  सुन्दर यूखरिस्त संस्कार को ठीक तरह से वर्णित करने में सक्षम है। आखिरकार, इसी संस्कार के द्वारा ही तो हम दैनिक रूप से परम प्रसाद के रूप में अपने पुनर्जीवित येशु को ग्रहण कर पाते हैं। कैथलिक लोग, ईश्वर की कृपा से सिर्फ एक घंटा उपवास करने के बाद, परम प्रसाद के द्वारा इस बहुमूल्य भेंट को ग्रहण कर पाते हैं। इसे ग्रहण करने के लिए ना ही कोई एडमिट कार्ड लगता है, ना ही कोई प्रमाण पत्र, बस खुद की अंतरात्मा की रज़ामंदी लगती है कि हमने कोई बड़ा पाप नहीं किया है। इस प्रकार ईश्वर का यह बलिदान हम बड़ी आसानी से ग्रहण कर पाते थे। पर फिर कोरोना ने हमारी ज़िंदगियों में प्रवेश किया।

क्या कभी कोई सोच सकता था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब हमारी सरकार गिरजाघरों को बंद करने का आदेश निकालेगी, या एक ऐसा समय आएगा जब दैनिक मिस्सा तो छोड़िए रविवार का मिस्सा तक बंद करवा दिया जाएगा? लेकिन ईश्वर को धन्यवाद उस टेक्नोलॉजी के लिए जिसकी वजह से हमारे पुरोहित इंटरनेट पर ऑन लाइन लाइव मिस्सा चढ़ा पाए। मेरे लिए मेरी रसोई मेरा गिरजाघर बन गयी जहां मैं अपने फोन पर ईश्वर का वचन सुन पाई हूं। हमारे पुरोहित इंटरनेट पर ही मिस्सा चढ़ा कर परम प्रसाद बांट दिया करते थे और लोग अपने घरों में, अपने प्रार्थना कक्ष में ही बैठे बैठे आध्यात्मिक रूप से ईश्वर को ग्रहण कर पा रहे थे।

लेकिन फिर दिन महीनों में बदलने लगे और सभी के मन में एक आध्यात्मिक भूख पैदा हुई। यह भूख खुद गिरजाघर में जा कर अपने हाथों से परम प्रसाद ग्रहण करने की थी, जो पूरी नहीं हो पा रही थी। शायद यह हम सब की ज़िन्दगी में पहली बार था, जब हमें इस बात का एहसास हुआ कि यूखरिस्त संस्कार की अनुपस्थिति हमें किस तरह प्रभावित करती है। हमारा लौकिक चमत्कार अब एक खोया हुआ चमत्कार बन कर रह गया था।

उन दिनों रेस्टोरेंट बंद थे, लेकिन फोन पर खाना मंगवाने की सुविधा फिर भी चालू थी। धीरे धीरे कड़े दिशा निर्देशों के बीच रेस्टोरेंट भी खोले जाने लगे। सबसे खुशी की बात यह थी कि सरकार ने नियमित मिस्सा और रविवार का मिस्सा फिर से चालू करने की इजाज़त दे दी। लेकिन इन सब में भाग लेने के लिए लोगों को मास्क पहनने और दो गज़ दूरी बनाए रखने के कड़े निर्देश मिले थे। लगभग 88 दिन यूखरिस्त संस्कार ग्रहण ना करने के बाद मैं जीवित येशु को ग्रहण करने के लिए भूखी थी। इतने दिनों बाद जब मैंने और मेरे पल्ली के लोगों ने भीगी पलकों से यूखरिस्त संस्कार ग्रहण किया, तभी हमारी यह आध्यात्मिक भूख शांत हुई। परम प्रसाद ग्रहण करते हुए मेरा दिल फूला नहीं समा रहा था कि आखिरकार मैं अपने उस प्यारे दोस्त से फिर से मिल पा रही थी जिसने मेरे लिए अपनी जान दी। यूखरिस्त संस्कार ग्रहण करने के बाद के वो कुछ पल, जिसमें मैंने ईश्वर के इस बहुमूल्य भेंट पर मनन चिंतन किया, इन्हीं पलों ने इतने दिनों की जुदाई के ग़म को पूरी तरह मिटा दिया।

तभी मुझे यह समझ आया कि कोरोना काल हमें यह सिखाने आया है कि यूखरिस्त हमारी आत्मा का भोजन है। जब हम पवित्र मिस्सा के दौरान परम प्रसाद को ग्रहण करते हैं तब हमारा वह भूखा दिल तृप्त होता है जो मिस्सा के बाद इस दुनिया में वापस जाता है। हमारी दुनिया को परम प्रसाद रूपी इस भोजन की ज़रूरत है। मैं हर रोज़ प्रार्थना करती हूं कि मैं ईश्वर को दूसरों तक पहुंचा पाऊं। और इसी तरह हमें लगातार अपनी भूखी दुनिया के लिए ईश्वर को ग्रहण कर के उसे वितरित करने का काम जारी रखना है।

मिस्सा के बाद जब हमारे पुरोहित कहते हैं “आप लोग विदा लें” तब हमें यह याद रखना है कि हम “ईश्वर के साथ विदा लें”, और साथ ही साथ अपने दिल में उस आध्यात्मिक भोजन को साथ ले चलें ताकि हम उसे औरों को भी दे सकें। चाहे वह भोजन एक मुस्कान, एक भले वचन, एक दिलासा, एक मदद के रूप में ही क्यों ना हो। ईश्वर खुद हमारा मार्गदर्शन करेंगे और हमें बताएंगे कि कहां और किसे उसके आध्यात्मिक भोजन की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। कितनी अजीब बात है कि कोरोना जैसी बीमारी भी हमें इस तरह का कुछ सिखा सकती है। या शायद ज़िन्दगी के सबसे अंधियारे भरे दिनों में ही हम रौशनी को पूरी जी जान से खोजते हैं और उसी समय ईश्वर हम पर अपनी समझ बरसाते हैं।

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Joan Harniman

Joan Harniman is a retired teacher. She has co-authored two books of Biblical plays, skits, and songs, and has published articles in Catechist and teacher magazines, as well as Celebrate Life magazine. She lives in New York with her husband, children, and five grandchildren.

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