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अप्रैल 19, 2022 308 0 Fiona McKenna, Australia
Evangelize

शक्ति को प्रवाहित करो

परम प्रेक्षक की दृष्टि के माध्यम से एक नया दृष्टिकोण प्राप्त करें।

प्रेक्षक कौन है? जब प्रार्थना के दौरान मैं इस सवाल पर मनन करती हूँ, तब मुझे लगता है कि मेरे द्वारा ईश्वर के अच्छे कार्यों का साक्ष्य देने के लिए जब वह मुझे अनुमति देता है, उस समय मैं ईश्वर के प्रेम का प्रेक्षण मेरे अपने गहरे अंत:स्थल से और व्यक्तिगत नज़रिए से करती हूँ। एक परिचारिका की भूमिका में रहते हुए मुझे ईश्वर के लिए गवाही देना सबसे स्पष्ट और आसान है। प्रतिदिन मैं ऐसे लोगों से मिलती हूँ जब वे स्वयं टूटे हुए महसूस करते हैं, और बिलकुल नाजुक अवस्था में हैं। उन अवसरों पर ईश्वर मेरे कानों में फुसफुसाता है, क्या मैं तेरी मदद के लिए आगे आ जाऊं ? जब मैं उसके सामने आत्म समर्पण करती हूँ, और उसे अपना हाँ कहती हूँ, ऐसे अवसरों पर जिन लोगों की मैं देखभाल करती हूँ, उनके हृदयों को स्पर्श करने केलिये ईश्वर का आत्मा मुझसे होकर कार्य करता है: मुझे लगता है कि सौम्य और कोमल बनकर मेरी नज़र मेरे मरीज़ के चेहरे पर पड़ती है, और मुझे पता है कि ईश्वर मेरी आँखों से होकर उस मरीज़ को देख रहा है।

मेरे मरीजों की प्रतिक्रिया से यह बात साबित हो जाती है। उनके चेहरे बदल जाते हैं, और शान्ति और ज्योति उनकी चारों ओर फैल जाती है। उन क्षणों में मैं विश्वास करती हूँ कि मेरे मरीजों में ईश्वर के स्वर्गिक प्रेम और करुणा के अनुभव को मैं परम प्रेक्षक के रूप में देखती हूँ। मेरे मरीजों के साथ इस तरह जो भी घटित होता है, उनका सम्बन्ध मुझ से बिलकुल नहीं है, बल्कि यह कार्य पूरा का पूरा ईश्वर का है, जो अपनी इच्छा को मेरे द्वारा क्रियान्वित करता है। यह तभी संभव है जब मैं पीछे हटती हूँ, और ईश्वर के साथ मेरे व्यक्तिगत सम्बन्ध को और गहरा होने देती हूँ। लेकिन यह कार्य वहीं समाप्त नहीं होता। इस सम्बन्ध को दूसरों के साथ साझा करने के लिए वह मुझे आमंत्रित करता है।

इसका शुभारम्भ

पिछले पेंतकोस्त पर्व के दिन जब मेरा बप्तिस्मा हुआ था, ईश्वर के परिवार की एक दत्तक सदस्य के रूप में मेरा व्यक्तिगत सम्बन्ध का शुभारम्भ हुआ। परमेश्वर की बुलाहट के प्रति मेरी प्रतिक्रिया तत्काल, निरपेक्ष और अडिग थी। उस दिन से, उसके प्रति मेरे समर्पण और भक्ति का कोई जवाब नहीं था। उस भक्ति के चलते मैं समझ गयी कि प्रभु ख्रीस्त की उपस्थिति के बिना मैं कुछ भी नहीं कर पाऊंगी। और मेरी अन्य सारी ज़रूरतों से अधिक मुझे अपने जीवन में उसकी अत्यधिक ज़रुरत थी। मैं जहाँ थी, पूरी तरह शक्तिहीन, दुर्बल और मदद की ज़रूरत में थी, और मेरी सभी अपूर्णताओं और कमियों और शून्यता में, वहीँ उसने मुझसे मुलाक़ात की। मैं ने सबकुछ उसे समर्पित किया। मैं ने जानबूझकर मेरे जीवन का लगाम पूरी तरह उसके हाथों में दे दिया, मेरा दाम्पत्य जीवन, दोस्त, परिवार, घर के पालतू जानवर, मेरा धंधा, धन दौलत सब कुछ… । आप जो भी नाम ले, सब कुछ… । अब उन सब चीज़ों का मालिक वही है।

दिन भर उनसे मेरी व्यक्तिगत प्रार्थना में मैं अपने पुराने स्वभाव की एक-एक परत को त्यागना शुरू कर देती थी और ईश्वर से यही कहती कि हे प्रभु, मेरी इच्छा नहीं, बल्कि तेरी इच्छा पूरी हो। नतीजतन, ईश्वर ने मुझे अंदर और बाहर से पूरी तरह बदल दिया। मैंने अपने लंबे समय से चले आ रहे सदमे के बाद का तनाव विकार और दर्द संबंधी विभिन्न बीमारियों से ठीक हो जाने का अनुभव किया। लोगों ने मेरे साथ सकारात्मक तरीके से व्यवहार करना शुरू कर दिया। जब मुझे अपने शिक्षकों की आवश्यकता हुई, तो उन्होंने आकर मेरी मदद की, मेरी पहले से ही खुशहाल वैवाहिक जीवन कल्पना से परे और अधिक आनंदमय हो गई, नकारात्मक प्रभाव धीरे-धीरे बिना संघर्ष के ही दूर हो गए, और मुझे शांति का अनुभव हुआ। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मैंने अपने अन्दर परमेश्वर की उपस्थिति को महसूस किया, और मैंने उसकी आवाज को सुनना शुरू किया।

मेरे लिए अपने प्रभु से बात करने से अधिक, उसको सुनना हमेशा स्वाभाविक रहा है, और प्रत्येक दिन, मैं येशु के चेहरे पर मनन-चिंतन करने के लिए अपना समय देती हूं। इस दौरान प्रभु के वचनों को मैं अपने ऊपर और अपने भीतर बहने देती हूं। मेरा विश्वास है कि हमारे पिता परमेश्वर हम में से प्रत्येक के साथ व्यक्तिगत संबंध रखना चाहता है, और वह हमारे साथ अपना बोझ साझा करना चाहता है। जब हम अपना समय येशु को समर्पित करते हैं तो वह इस बोझ का खुलासा करता है।

येशु को समय समर्पित करने का एक हिस्सा है, अपनी इच्छा को उन्हें समर्पित करना और लोगों को उनके कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए हमारे माध्यम से कार्य करने देना। मुझे यह बताया गया है कि पापियों के साथ संगति करना उनके धार्मिक मूल्यों के विरुद्ध है, हालाँकि मुझे आश्चर्य होता है कि यदि हम अपने आप को येशु के द्वारा काम करने के लिए उपलब्ध नहीं कराते हैं तो हम कैसे उम्मीद करते हैं कि येशु पीड़ितों को चंगा करना जारी रखेंगे?

हमेशा के लिए परिवर्तित

ईश्वर आसपास के लोगों को हमारे माध्यम से छू दे, इस केलिए हमें नर्स होने की जरूरत नहीं है। हम सभी के अपने अपने मित्र, परिवार, सहकर्मी और परिचित होते हैं, जिन्हें परमेश्वर की चंगाईपूर्ण प्रेम की आवश्यकता होती है। हर बार जब हम ईश्वर के सामने आत्मसमर्पण करते हैं, तब हम कहते हैं कि मेरी इच्छा नहीं, बल्कि तेरी इच्छा पूरी हो, और उस समय हमारी आत्मा ईश्वर की आत्मा के साथ जुड़ जाती है। इस तरह ईश्वर हमसे मुलाकात करता है। हम इसलिए सृष्ट किये गए थे कि हम ईश्वर के साथ घनिष्ठता में रहें, निरंतर प्रार्थना करें, आराधना स्थल पर रहें। जैसे-जैसे हम जीवन जीने के इस तरीके में आगे बढ़ते हैं, हम अपने अन्दर आत्मनिरीक्षण करने लगते हैं। हम परमेश्वर के बेशर्त प्रेम को गहराई से प्राप्त करते हैं, और हम हमेशा के लिए परिवर्त्तित हो जाते हैं। हम वापस नहीं जा सकते, क्योंकि हम बदल गए हैं, क्योंकि हमारे लिए उसका प्यार सिर्फ दिमाग के सतही ज्ञान से बढ़कर ह्रदय के गहरे रहस्योद्घाटन में बदल जाता है, जो हमारी पहचान का मूल तथ्य बन जाता है।

अथक प्रेम के केंद्र में प्रार्थना, आराधना, न्याय और शिष्यत्व की जीवन शैली है। यह सब आत्म समर्पण और अपने अहम् को समाप्त करने से शुरू होता है: दूसरे शब्दों में, हमें मसीह के साथ सूली पर चढ़ाया जाता है। परमेश्वर की विस्मयकारी शक्ति का पर्यवेक्षक बनने का कार्य प्रेम पर आधारित है। यह तब होता है जब हम आत्मसमर्पण करते हैं और परमेश्वर के प्रेम को प्रवाहित करते हैं, लोगों और परिस्थितियों में पुनरुद्धार और बहाली लाते हैं। हम प्रेम करते हैं, क्योंकि पहले उसने हमसे प्रेम किया, और जैसे ही हम परमेश्वर के प्रेम को अपने अन्दर से निर्मुक्त या प्रवाहित करते हैं, तब न्याय प्रवाहित होता है।

जब जब हम भूखे लोगों को खाना खिलाते हैं, जब जब हम अपने विश्वास को लोगों के साथ साझा करते हैं, जब जब हम भविष्यवाणी करते हैं, जब जब हम ईश्वर की अलौकिक शक्ति को प्रवाहित करके चंगाई लाते हैं, जब जब हम दया, विनम्रता और आज्ञाकारिता के साथ रहते हैं, तब तब हम परमेश्वर के प्रेम को प्रवाहित करते हैं और उसके गवाह बन जाते हैं। ईश्वर को हमारे द्वारा कार्य करने की अनुमति देकर हम उसके प्रेक्षक बनते हैं और संसार के प्रति उसके प्रेम को व्यक्त करते हैं, और तब लोगों का ईश्वर के साथ साक्षात्कार होता है।

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Fiona McKenna

Fiona McKenna resides in Canberra, Australia, where she serves as the PPC Head of Liturgy, Sacramental Coordinator, and Cantor at her parish. She completed a Catholic ministry equipping course with Encounter School of Ministry, and is studying a Masters Degree in Theological Studies.

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