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जून 03, 2022 402 0 बिशप रॉबर्ट बैरन, USA
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लोक धर्मी की क्या भूमिका है?

1950 के दशक में, कैथलिक श्रमिक आन्दोलन  (कैथलिक वर्कर मूवमेंट) की सह-संस्थापिका, डोरोथी डे ने एक ऐसे दृष्टिकोण को स्पष्ट करना शुरू किया, जिसे द्वितीय वेटिकन अधिवेशन में बड़े पैमाने पर अनुमोदित किया गया था। उन्होंने कहा कि लोक धर्मियों के लिए “आज्ञाओं की आध्यात्मिकता” और पुरोहित (पादरी) वर्ग के लिए “सलाह- आध्यात्मिकता” की प्रचलित धारणा अव्यवहारिक थी। वे उस समय के मानक दृष्टिकोण का उल्लेख कर रही थी कि लोकधर्मी दस आज्ञाओं का पालन के न्यूनतम कार्य निभाने लिए बुलाया गए थे – यानी लोकधर्मियों को प्रेम और न्याय के विरुद्ध सबसे बुनियादी बातों के उल्लंघनों से परहेज करना होगा। जबकि पुरोहित और धर्मसंघी लोग निर्धनता, ब्रह्मचर्य और आज्ञाकारिता के सुसमाचारी प्रतिज्ञाओं का पालन करने के एक वीर जीवन जीने केलिए बुलाया गए थे। लोक धर्मी साधारण खिलाड़ी थे, और पुरोहित वर्ग आध्यात्मिक एथलीट वर्ग था। इस तरह की सोच और समझ के विरुद्ध  डोरोथी डे ने काफी जोरदार शब्दों में विरोध किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रत्येक बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति, वीर पवित्रता के लिए बुलाया गया था – जिसका अर्थ है, आज्ञाओं और सुसमाचारी प्रतिज्ञाओं दोनों बातों का पालन।

जैसा कि मैं कहता हूं, पवित्रता के लिए सार्वभौमिक आह्वान पर अपने सिद्धांत में, द्वितीय वेटिकन अधिवेशन  ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। यद्यपि वैटिकन परिषद् में उपस्थित आचार्यों ने सिखाया कि जिस तरह से पुरोहित और लोक धर्मी निर्धनता, ब्रह्मचर्य और आज्ञाकारिता के सुसमाचारी प्रतिज्ञाओं को अपने अपने जीवन में व्यवहार में लाते हैं, उसमें काफी अंतर है, परिषद् के आचार्यों ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि मसीह के सभी अनुयायियों को उन आदर्शों को अपने जीवन में व्यवहार में ला करके वास्तविक पवित्रता की तलाश करना चाहिए। तो, यह कैसे होगा? आइए पहले निर्धनता को लें। हालांकि, आम तौर पर, जिस तरह एक ट्रैपिस्ट मठवासी कठोर निर्धनता का जीवन जीता है, उसी प्रकार की निर्धनता के लिए लोक धर्मी नहीं बुलाया जाता है। जिस प्रकार लोकधर्मियों को संसार में उनके अपने मिशन के लिए एक बुलावा हैं, उस हिसाब से उन्हें दुनिया की वस्तुओं से अनासक्ति या अपरिग्रह का अभ्यास करना चाहिए। जब तक एक साधारण व्यक्ति धन, शक्ति, सुख, पद, सम्मान आदि की लत से आंतरिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं करता, तब तक जिस प्रकार उसे ईश्वर की इच्छा का पालन करना चाहिए, उस प्रकार वह नहीं कर सकता। जब सामरी स्त्री ने अपना पानी का घडा कुएं पर छोड़ दिया, केवल जब उसने दुनिया के सुखों के पानी से अपनी प्यास बुझाने की कोशिश करना बंद कर दिया, तभी वह सुसंचार का प्रचार करने में सक्षम बनी। (योहन 4)। इसी तरह, जब एक बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति आज खुद को धन, अधिकार, या स्वार्थपूर्ण भावनाओं की लत से मुक्त करता है, तभी वह ईश्वर की इच्छा के अनुरूप संत बनने के लिए सक्षम होता है। तो, वैराग्य या अपरिग्रह के अर्थ में, लोक धर्मियों की पवित्रता के लिए निर्धनता आवश्यक है।

सुसमाचारी परामर्शों में से दूसरा, शुद्धता भी लोक धर्मी आध्यात्मिकता के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि जिस तरह से पुरोहित और धर्मसंघी शुद्धता को ब्रह्मचारी के रूप में जीते हैं, उनके लिए यह विशेष है, लेकिन इस का पुण्य या इसकी धार्मिकता अपने में लोक धर्मियों के लिए भी लागू होता है। शुद्धता का सीधा सा मतलब है यौन संबंधों में विश्वस्तता या सही ढंग से व्यवस्थित यौन जीवन। और इसका अर्थ है किसी के यौन जीवन को प्रेम के तत्वावधान में लाना। जैसा कि थॉमस एक्विनास ने सिखाया है कि प्रेम एक भावना या भावुकता नहीं है, बल्कि व्यक्ति का आग्रह, संकल्प या इच्छा का कार्य है, अधिक सटीक शब्दों में कहें तो, प्रेम दूसरे की भलाई के लिए एक संकल्प है। यह आह्लाद या उल्लास में भाव विभोर होने का आनंदपूर्ण कार्य है जिसके द्वारा हम उस अहम् की भावना से मुक्त हो जाते हैं, जिस अहम् का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव हर चीज को अपनी ओर खींचना चाहता है। खाने-पीने की सहज प्रवृत्ति या इच्छा की तरह, सेक्स भी जीवन से जुड़ा एक जुनून है। यही वजह है कि सेक्स का यह जूनून इतना शक्तिशाली है और इसलिए आध्यात्मिक रूप से इतना खतरनाक भी है, जो सब कुछ और हर किसी को अपने नियंत्रण में लेने के लिए उत्तरदायी है। ध्यान दें कि सेक्स रुपी इस नकारात्मक प्रवृत्ति को रोकने के लिए ही कलीसिया यह शिक्षा देती है कि सेक्स का संबंध सिर्फ विवाह के संदर्भ में ही है। हमारी कामुकता को वैवाहिक एकत्व (जीवनसाथी के प्रति अनन्य या आत्यंतिक निष्ठा) और प्रजनन (उसी समान बच्चों के प्रति आत्यंतिक निष्ठा) के अधीन होना चाहिए। ऐसा कहते हुए कलीसिया हमारे यौन जीवन को पूरी तरह से प्यार की छत्रछाया में लाने का प्रयास करती है। अव्यवस्थित यौन जीवन एक व्यक्ति के भीतर गहरी अस्थिर करने वाली शक्ति बन जाती है, जो समय के साथ, उसके प्रेम करने की क्षमता को नष्ट कर देती है।

अंत में, लोक धर्मी लोगों को आज्ञाकारिता का अभ्यास करने की बुलाहट मिली हैं। यह भी धर्मसंघी तरीके से नहीं, बल्कि विशिष्ट तरीके से लोक धर्मी दशा के लिए। यह अपने स्वयं के अहं की आवाज सुनने के लिए नहीं, बल्कि परमेश्वर के परम स्वर को सुनने के लिए, अर्थात पवित्र आत्मा के अनुबोधनों और प्रेरणाओं को (लातीनी भाषा में ओबेदिरे) सुनने के लिए और उसका पालन करने की इच्छाशक्ति है। हान्स उर्स वॉन बलथसार द्वारा लिखित, निर्मित, निर्देशित और स्वयं अभिनीत स्वार्थ लीला (अहं-नाटक) और ईश्वर द्वारा लिखित, निर्मित और निर्देशित ईश लीला (थियो-ड्रामा) के बीच के अंतर के बारे में मैं ने अक्सर बात की है। हम कह सकते हैं कि आध्यात्मिक जीवन का संपूर्ण उद्देश्य स्वार्थ लीला (अहम् नाटक) से मुक्त होना है ताकि ईश लीला को गले लगाया जा सके। हम में से अधिकांश लोग जो पापी हैं, अधिकांश समय, अपने स्वयं की धन दौलत, सफलता, जीविका की योजनाओं और व्यक्तिगत सुख में व्यस्त रहते हैं। परमेश्वर की आज्ञा मानने का अर्थ है उन आत्मघातक चिंताओं से बाहर निकलना और चरवाहे की आवाज सुनना।

कल्पना कीजिए कि यदि, रातोंरात, प्रत्येक कैथलिक व्यक्ति दुनिया की धन दौलत से आत्यंतिक वैराग्य या अपरिग्रह की भावना के साथ रहना शुरू कर दे तो क्या होगा? कैसे राजनीति, अर्थशास्त्र और संस्कृति नाटकीय रूप से इस दुनिया की बेहतरी और अच्छाई के लिए बदल जाएगी। कल्पना कीजिए कि यदि, आज, प्रत्येक कैथलिक पवित्रता से जीने का संकल्प करे तो यह कैसा होगा? हम अश्लील यौन साहित्य और दृश्य श्रव्य सामग्री (पोर्नोग्राफ़ी) के व्यवसाय में भारी सेंध लगा पायेंगे; मानव तस्करी नाटकीय रूप से कम हो जाएगी; परिवारों को काफी सार्थक रूप से मजबूत किया जाएगा; गर्भपात में काफी कमी आएगी। और कल्पना करें कि यदि, अभी, प्रत्येक कैथलिक ने परमेश्वर की वाणी के आज्ञाकारिता में जीने का निर्णय लिया है तो कैसा होगा? आत्म-चिंता और आशंका के कारण होने वाले कष्ट कितने कम होंगे!

इस लेख में मैं जो बात बता रहा हूं, वह एक बार फिर, महान द्वितीय वैटिकन परिषद् द्वारा दी गयी पवित्रता के लिए सार्वभौमिक आह्वान पर शिक्षा का हिस्सा है। परिषद् के आचार्यों ने सिखाया कि पुरोहित और बिशप का मतलब है कि लोक धर्मियों को शिक्षा  देने  और पवित्र करने के लिए हैं। बदले में, लोक धर्मियों की बुलाहट दुनियावी व्यवस्था को पवित्र करने के लिए हैं और राजनीति, वित्त, मनोरंजन, व्यवसाय, शिक्षण, पत्रकारिता आदि में ख्रीस्त को लाना है। और जब निर्धनता, शुद्धता और आज्ञा पालन की सुसमचारी प्रतिज्ञाओं को अपनाने से वे इसमें कामयाब होते हैं।


© यह लेख मूल रूप से wordonfire.org पर प्रकाशित किया गया था। अनुमति के साथ पुनर्मुद्रित।

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बिशप रॉबर्ट बैरन

© बिशप रॉबर्ट बैरन लेख मूल रूप से wordonfire.org पर प्रकाशित हुआ था। अनुमति के साथ पुनर्मुद्रित।

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