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क्या कोई विचार पाप बन सकता है? इस पर मनन करने का यह अवसर है।
जहां तक मेरी स्मृति पीछे की और जाती है, मैं एक अच्छी मसीही थी, कलीसिया के कार्यकलापों में शामिल हो रही थी, लेकिन कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सका कि मैं सिर्फ बाहरी गतिविधियों से गुजर रही थी। हालाँकि, 2010 में, एक घटना ने गहराई तक मुझ में परिवर्तन ला दिया और मुझे पीड़ाओं के बीच ईश्वर की आवाज़ सुनने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकाशन ने मुझे एक सच्चा मसीही बनने की यात्रा शुरू करने में मदद की।
वेरोनिका और मैं सिर्फ सबसे अच्छे दोस्त नहीं थीं; हम एक साथ घूमती थीं, क्योंकि हमारे बेटे हमें एक साथ लाये थे। लेकिन हम दोस्त थी जो वास्तव में एक-दूसरे को पसंद करती थी और हम माताएं थीं जो हमारे बच्चों से प्यार करती थीं। वेरोनिका मधुर, सुंदर और वास्तव में दयालु व्यक्ति थी। मेरा बेटा उसके बेटे का सबसे अच्छा दोस्त था।
28 अगस्त 2010 को वेरोनिका ने मुझे फोन किया और पूछा कि क्या मेरा बेटा उसके घर पर रात बिता सकता है। हालाँकि मैंने उसे पहले भी दर्जनों बार अनुमति दी थी, लेकिन उस रात, किसी कारण से, मैं व्याकुल थी। मैंने उससे ना कहा, लेकिन मैं ने यह भी कहा कि वह जा सकता है और दोपहर के बाद कुछ समय खेल सकता है और मैं उसे रात के खाने से पहले उठा लूंगी। लगभग 4 बजे, मैं उसे लेने के लिए वेरोनिका के घर गयी। जब मैं वेरोनिका के रसोई में खड़ी थी और हम दोनों अपने लड़कों के बारे में बात कर रही थी, उसने मुझे बताया कि उनमें से प्रत्येक एक उपहार था और वे कितने विशेष बच्चे थे। वह उन्हें उनकी पसंदीदा आइसक्रीम खरीदने के लिए किराने की दुकान पर ले गई थी। मेरा बेटा भी नाश्ता चाह रहा था, जिसे वेरोनिका ने उदारतापूर्वक उसके लिए खरीदा और उस में से कुछ मुझे घर ले जाने के लिए दिया। मैंने उसे धन्यवाद दिया और वहां से घर चली आयी।
अगली सुबह, जब मैं उठी, तब यह खबर सुनी कि वेरोनिका की हत्या कर दी गई है। वहीं, जहां मैं एक शाम पहले उससे बात कर रही थी… उसका पति जो उससे जल्दी ही तलक लेने वाला था, उसने उसकी हत्या करने के लिए एक हत्यारे को भाड़े पर रखा था, क्योंकि वे अलग हो गए थे। वास्तव में कौन जानता है कि और क्या क्या कारण था। मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे पेट में मुक्का मार दिया गया हो। मैं साँस नहीं ले पा रही थी। मैं रोना बंद नहीं कर सकी।
अपनी पीड़ा में, मैं अपने सोने के कमरे के फर्श पर लेटकर रो रही थी, सचमुच चिल्ला रही थी। 39 साल की एक खूबसूरत युवा मां की हत्या कर दी गई, जिससे उसका 8 साल का बेटा मातृहीन हो गया। और किस लिए? मैंने पीड़ा और क्रोध में ईश्वर को पुकारा। तू ऐसा कैसे होने दे सकता है? क्यों प्रभु?
मेरी पीड़ा के बीच, एक विचार मेरे मन में आया। और जीवन में पहली बार मैंने इस विचार को ईश्वर की वाणी के रूप में पहचाना। ईश्वर ने कहा, “मैं यह नहीं चाहता; लोग इसे चुनते हैं।” मैंने ईश्वर से पूछा, “क्या, इस भयानक स्थिति में मैं क्या कर सकती हूँ?” उसने मुझे उत्तर दिया, “सूसन, दुनिया में अच्छाई की शुरुआत तुमसे होती है।” मैं सोचने लगी। मैंने सोचा कि कैसे मैंने वेरोनिका और उसके पति को गिरजाघर में एक साथ देखा था, और मुझे आश्चर्य हुआ कि जो व्यक्ति हत्या की साजिश रच रहा था वह गिरजाघर में कैसे जा सकता था। ईश्वर ने मुझे फिर उत्तर दिया।
ईश्वर ने मुझे बताया कि उसका पति शुरु से एक हत्यारा नहीं था, बल्कि उसका पाप उसके दिल में बढ़ गया था, अनियंत्रित हो गया था, और वह एक लंबे अंधेरे रास्ते पर ले जाया गया था। मुझे बाइबल का वचन याद आया, “परन्तु मैं तुम से कहता हूं – जो बुरी इच्छा से किसी स्त्री पर दृष्टि डालता है, वह अपने मन में उस के साथ व्यभिचार कर चुका है” (मत्ती 5:28)। उस क्षण, यह वचन मेरी समझ में आया। मैंने हमेशा सोचा था, “एक विचार पाप कैसे हो सकता है?” वेरोनिका की हत्या के बाद, मुझे यह सब समझ में आया। पाप आपके हृदय में शुरू होता है और जब आप उस पर अपने हाथों से कार्य करते हैं तो वह हावी हो जाता है। और अगर हम कभी भी अपने विवेक की जांच करने या यह सोचने के लिए समय नहीं निकालते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है, तो ज़्यादा संभावना है कि हम वास्तव में गलत रास्ते पर चले जायें।
तो ईश्वर, “मैं क्या कर सकती हूँ?” उसने मुझसे कहा कि एकमात्र व्यक्ति जिसे मैं नियंत्रित कर सकती हूं वह मैं खुद हूं – मैं प्यार करना चुन सकती हूं और उस प्यार को बाहर फैला सकती हूं। मेरे लिए, इसका मतलब अपनी अंतरात्मा की जांच करना और एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करना था। क्या मैं अपने शत्रु से प्रेम करती हूँ? या यहाँ तक कि मेरे पड़ोसी से भी? दुर्भाग्य से, इसका उत्तर एक जोरदार ‘न’ था। जब मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने आस-पास के लोगों से प्रेमपूर्ण व्यवहार नहीं कर रही हूँ, तब मैं निराश हो गई।
कैथलिक चर्च में, हमारे पास पाप स्वीकार का संस्कार है, जहां हम किसी पुरोहित के पास जाते हैं और अपने पापों को स्वीकार करते हैं। मुझे हमेशा से यह संस्कार नापसंद था, और मैं इस संस्कार में जाने से डरती था। लेकिन यहां, इस जगह पर, जमीन पर रोती हुई, मुझे लगा कि यह एक उपहार है। एक उपहार जिसके लिए मैं वास्तव में आभारी थी। अपने पापों को बताने में, मैं मसीह का सामना करने में सक्षम हुई। मेरा पापस्वीकार ऐसा था जैसा मैंने पहले कभी नहीं किया था। इस संस्कार में, मुझे वह अनुग्रह प्राप्त हुआ जो येशु हमें तब प्रदान करते हैं जब हम उसे माँगने का निर्णय लेते हैं। मैंने अपने आप पर अच्छी तरह से गौर किया, और पाप स्वीकार स्थान में ईश्वर के बेशर्त प्यार के साथ साक्षात्कार के कारण मेरा स्वार्थ पिघलने लगा। संस्कार मुझे बेहतर करने का प्रयास करने देता है, और यद्यपि मैं जानती हूं कि मैं एक पापी हूं और मुझे असफलताएं मिलती रहेंगी, मैं हमेशा प्रभु की पवित्र कृपा और क्षमा प्राप्त करने की आशा कर सकती हूं, चाहे कुछ भी हो। इससे मुझे उसकी अच्छाइयों को आगे फैलाने में मदद मिलती है।’ मुझे नहीं लगता कि इसे समझने के लिए आपको कैथलिक बनना होगा।
वेरोनिका की हत्या मेरी गलती नहीं थी, लेकिन मैं निश्चित रूप से उसे व्यर्थ नहीं मरने दूंगी; मैं दूसरों को यह बताए बिना उसका जीवन बर्बाद नहीं होने दूंगी कि इसका मुझ पर क्या प्रभाव पड़ा और ऐसी भयानक परिस्थितियों की राख से भी अच्छाई निकल सकती है। इस प्रकार, वास्तव में मसीही होने की दिशा में मेरी यात्रा शुरू हुई।
मैंने बाइबिल में वेरोनिका के बारे में सोचा। जब येशु अपनी प्राण पीड़ा के दौरान दुःख पीड़ा भोग रहे थे, गोलगोथा की ओर जा रहे थे, पीटे गये थे और खून से लथपथ थे , तो उनकी मुलाकात वेरोनिका नाम की एक महिला से हुई। वेरोनिका ने येशु का चेहरा पोंछ दिया। दयालुता का एक छोटा सा कार्य। यह आदमी, यह ईश्वर-पुरुष, पीटा गया था, खून से लथपथ था, थका हुआ था और पीड़ा में था, फिर भी इस महिला, वेरोनिका ने थोड़ी राहत प्रदान की। कुछ ही पलों में पसीना और खून पोंछ लिया गया, और एक पल के लिए, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, येशु को इस महिला से प्यार का एहसास हुआ। इससे न तो उसकी दुःख-पीड़ा रुकी और न ही उसका दर्द, लेकिन एक ऐसी भीड़ के बीच में जो उसका मज़ाक उड़ा रही थी, उसे कोड़े मार रही थी, कपड़े के साथ उस महिला का स्पर्श येशु केलिए गौरवशाली लगा होगा। इसलिए, उन्होंने उसके कपड़े पर अपनी छवि अंकित कर दी।
“वेरोनिका” नाम का अर्थ है “सच्ची छवि”। येशु ने वेरोनिका पर अपने प्रेम की छाप छोड़ी। और इसलिए, मेरी दोस्त वेरोनिका के कारण, जिसने मेरे अपने जीवन के कठिन दौर में प्यार और राहत प्रदान की, मेरा फ़र्ज़ है कि जहां भी मैं जाऊं, प्यार और दयालुता फैलाऊं। मैं दुख-पीड़ा को रोक नहीं सकती, लेकिन मैं उन लोगों को राहत दे सकती हूं जो खो गए हैं, गरीब हैं, अकेले हैं, अवांछित हैं, या जो प्यार नहीं किये गये हैं। और इसी कारण, मैं येशु का चेहरा तब तक पोछूँगी, जब तक उनकी कृपा और दया मुझे अनुमति देगी।
Susan Skinner एक पत्नी, माँ, देखभाल करने वाली और लेखिका का भी कार्य कर रही हैं। वर्तमान में, वे संयुक्त राज्य अमेरिका के टेनेसी राज्य के फ्रैंकलिन में सेंट फिलिप कैथलिक चर्च में वयस्कों का विश्वास प्रशिक्षण और आर.सी.आई.ए. की निदेशिका हैं।
एक वफादार मुस्लिम होने के नाते दिन में तीन बार अल्लाह से प्रार्थना करने, उपवास करने, दान देने और नमाज़ पढने से लेकर संत पापा के निजी प्रार्थना कक्ष में बपतिस्मा लेने तक, मुनीरा की यात्रा में ऐसे मोड़ और बदलाव आये हैं जो आपको आश्चर्यचकित कर देंगे! अल्लाह के बारे में मेरी छवि एक सख्त मालिक की थी जो मेरी थोड़ी सी भी गलती पर सज़ा दे देता था। अगर मुझे किसी चीज़ की ज़रुरत थी, तो मुझे उपवास और प्रार्थना के द्वारा अल्लाह की कृपा खरीदनी थी। हमेशा यह डर मुझे सताता था कि अगर मैंने कुछ भी गलत किया तो मुझे सज़ा मिलेगी। विश्वास का पहला बीज मेरे एक चचेरे भाई को मृत्यु के करीब होने का अनुभव हुआ था, और उसने मुझे बताया कि उसे एक अंधेरी सुरंग से निकलने के दृश्य का अनुभव हुआ, जिसके अंत में उसने एक चमकदार रोशनी देखी और दो लोग वहां खड़े थे - येशु और मरियम। मैं उलझन में थी; क्या उसे पैगंबर मोहम्मद या इमाम अली को नहीं देखना चाहिए था? चूँकि उसे पूरा यकीन था कि ये येशु और मरियम थे, इसलिए हमने अपने इमाम से स्पष्टीकरण मांगा। उन्होंने उत्तर दिया कि ईसा (येशु) भी एक महान पैगम्बर हैं, इसलिए जब हम मरते हैं, तो वह हमारी आत्माओं को बचाने आते हैं। उनके उत्तर ने मुझे संतुष्ट नहीं किया, लेकिन इससे येशु के बारे में सच्चाई की मेरी खोज शुरू हो गई। खोज मेरे बहुत सारे ईसाई मित्र होने के बावजूद, मुझे नहीं पता था कि कहाँ से शुरू करूँ। मेरे ईसाई दोस्तों ने मुझे सदा सहायिका माँ मरियम की नवरोज़ी प्रार्थना (नोवेना) में आमंत्रित किया, और मैंने नियमित रूप से नोवेना में भाग लेना शुरू कर दिया, और प्रभु के वचन की व्याख्या करने वाले प्रवचनों को ध्यान से सुनना शुरू कर दिया। हालाँकि मुझे ज़्यादा कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन मेरा मानना है कि वह मरियम ही थी जिसने मुझे समझा और आख़िरकार मुझे सच्चाई तक ले गई। स्वप्नों की एक शृंखला में, जिसके माध्यम से प्रभु मुझसे वर्षों से बात करते थे, एक चरवाहे के वेश में एक आदमी की ओर इशारा करती एक उंगली को मैंने देखा, जबकि एक आवाज ने मुझे नाम से पुकारते हुए कहा, "मुनीरा, उसका अनुसरण करो।" मैं जानती थी कि चरवाहा येशु था, इसलिए मैंने पूछा कि कौन बोल रहा है। उन्होंने उत्तर दिया: "वह और मैं, हम दोनों एक हैं।" मैं उसका अनुसरण करना चाहती थी, लेकिन मुझे नहीं पता था कि कैसे करूं। क्या आपको स्वर्गदूतों में विश्वास है? हमारी एक दोस्त थी जिसकी बेटी पर भूत-प्रेत सवार था। वे इतने हताश थे कि उन्होंने मुझसे इसका समाधान भी पूछा। एक मुस्लिम होने के नाते, मैंने उनसे कहा कि हमारे पास ऐसे बाबा लोग हैं जिनके पास वे जा सकती हैं। दो महीने बाद, जब मैंने उस लडकी को दोबारा देखा तो मैं आश्चर्यचकित रह गयी। पहले वह लड़की बिलकुल दुबली-पतली, छरहरी आकृति वाली भूतनी जैसी थी, लेकिन अब वह एक स्वस्थ, उज्ज्वल, सुडौल किशोरी बन गई थी। उन्होंने मुझे बताया कि एक कैथलिक पुरोहित फादर रूफस ने येशु के नाम पर उसको शैतान के फंदे से मुक्त कराया था। कई बार उन्होंने हमें निमंत्रण दिया कि हम फादर रूफस के साथ पवित्र मिस्सा बलिदान में भाग लें। बार बार इनकार करने के बाद, अंतत: हमने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। फादर ने मिस्सा के अंत में मेरे लिए प्रार्थना की और मुझसे बाइबल से एक वाक्य पढ़ने के लिए कहा; मुझे ऐसी शांति महसूस हुई कि फिर पीछे मुड़ना नहीं पड़ा। उन्होंने क्रूस पर चढ़े व्यक्ति के बारे में बात की - जिसने मुसलमानों, हिंदुओं और दुनिया भर में सभी मानव जाति के लिए अपनी जन कुर्बान कर दी। इससे मेरे अन्दर येशु के बारे में और अधिक जानने की गहरी इच्छा जागृत हुई और मुझे लगा कि ईश्वर ने सत्य जानने की मेरी प्रार्थना के उत्तर में इन लोगों से मेरा परिचय कराया है। जब मैं घर आयी तो मैंने पहली बार बाइबल खोली और दिलचस्पी से उसे पढ़ना शुरू किया। फादर रूफस ने मुझे एक प्रार्थना समूह खोजने की सलाह दी, लेकिन मुझे नहीं पता था कि कैसे और कहाँ खोजूं, इसलिए मैंने खुद ही येशु से प्रार्थना करना शुरू कर दिया। एक समय, मैं बारी-बारी से बाइबल और कुरान पढ़ रही थी, और मैंने प्रभु से पूछा: “हे प्रभु, सत्य क्या है? यदि तू सत्य है, तो मेरे मन में केवल बाइबल पढ़ने की इच्छा भर दे।” तब से, मुझे केवल बाइबल खोलने के लिए प्रेरणा मिलती रही। जब एक मित्र ने मुझे प्रार्थना समूह में आमंत्रित किया, तो मैंने पहले मना कर दिया, लेकिन उसने जोर दिया और तीसरी बार, मुझे झुकना पड़ा। दूसरी बार जब मैं गयी, तो मैं अपनी बहन को साथ ले गयी। यह हम दोनों के लिए जीवन बदलने वाला साबित हुआ। जब उपदेशक ने प्रवचन दिया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें एक संदेश मिला है, “यहाँ दो बहनें हैं जो सत्य की खोज में आई हैं। अब उनकी खोज ख़त्म हो गई है।” जैसे-जैसे हम साप्ताहिक प्रार्थना सभाओं में शामिल होते गए, मैं धीरे-धीरे वचन को समझने लगी, और मुझे एहसास हुआ कि मुझे दो काम करने होंगे - क्षमा करना और पश्चाताप करना। जब मेरे परिवार ने मुझमें स्पष्ट परिवर्तन देखा तो वे उत्सुक हो गए, इसलिए उन्होंने भी प्रार्थना सभा में आना शुरू कर दिया। जब मेरे पिताजी को रोज़री माला के महत्व के बारे में पता चला, तो उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से सुझाव दिया कि हम घर पर एक साथ इसकी प्रार्थना करना शुरू करें। तब से, हम, एक मुस्लिम परिवार, हर दिन घुटने टेककर रोज़री माला की प्रार्थना करने लगे । चमत्कारों का कोई अंत नहीं येशु के प्रति मेरे बढ़ते प्रेम ने मुझे पुण्य देश की तीर्थयात्रा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। रवाना होने से पहले, एक सपने में एक आवाज़ ने मुझे बताया कि हालाँकि मेरे अंदर डर और गुस्सा गहरा है, लेकिन मैं जल्द ही इस से मुक्त हो जाऊंगी। जब मैंने यह सपना अपनी बहन के साथ साझा किया, यह सोचकर कि इसका क्या मतलब हो सकता है, उसने मुझे पवित्र आत्मा से सलाह लेने की बात कही। मैं हैरान थी क्योंकि मैं वास्तव में नहीं जानती थी कि पवित्र आत्मा कौन है। इस के बाद सब कुछ जल्द ही आश्चर्यजनक तरीके से बदल गया । जब हमने संत पेत्रुस के गिरजाघर का दौरा किया (जहां पेत्रुस को सपने में सभी जानवर दिखाई दे रहे थे, जिन्हें ईश्वर ने उन्हें खाने की अनुमति दी थी (प्रेरित चरित 10:11-16)), तब गिरजाघर के दरवाजे बंद थे क्योंकि हमें देर हो गई थी। फादर रूफस ने घंटी बजाई, लेकिन किसी ने उत्तर नहीं दिया। लगभग 20 मिनट के बाद, उन्होंने कहा, "चलो हम गिरजाघर के बाहर प्रार्थना करते हैं," लेकिन मुझे अचानक अपने भीतर एक आवाज़ महसूस हुई जो कह रही थी: "मुनीरा, तुम घंटी बजाओ।" फादर रूफस की अनुमति से मैंने घंटी बजाई। कुछ ही क्षणों में वे विशाल दरवाजे खुल गये। पुरोहित ठीक बगल में बैठे थे, लेकिन उन्होंने घंटी तभी सुनी जब मैंने उसे बजाया। फादर रूफस ने कहा: "अन्य जातियों के लोगों को पवित्र आत्मा प्राप्त होगी।" मैं अन्यजाति की थी! यरूशलेम में, हमने ऊपरी कक्ष का दौरा किया जहां अंतिम भोज और पवित्र आत्मा का अवतरण हुआ था। जब हम प्रभु की स्तुति कर रहे थे, हमने तूफ़ान की गड़गड़ाहट तथा बिजली और गर्जन की कड़कड़ाहट सुनी, कमरे में हवा चली और मुझे अन्य भाषाओं का वरदान मिला। मैं इस पर विश्वास नहीं कर सकी! प्रभु ने मुझे उसी स्थान पर पवित्र आत्मा का बपतिस्मा दिया जहाँ माता मरियम और प्रेरितों को पवित्र आत्मा प्राप्त हुआ था। यहाँ तक कि हमारा यहूदी टूर गाइड भी आश्चर्यचकित था। वह अपने घुटनों पर गिर गया और उसने हमारे साथ प्रार्थना की। अंकुर बढ़ता रहता है जब मैं घर लौटी, तब मैं बपतिस्मा लेने के लिए उत्सुक थी, लेकिन मेरी माँ ने कहा: "मुनीरा देखो, हम येशु का अनुसरण करते हैं, हम येशु में विश्वास करते हैं, हम येशु से प्यार करते हैं, लेकिन धर्मांतरण... मुझे नहीं लगता कि हमें यह करना चाहिए। तुम जानती हो कि हमारे मुस्लिम समुदाय के अन्दर से कई प्रतिक्रियाएं होंगे।” लेकिन मेरे भीतर प्रभु को पाने की गहरी इच्छा थी, खासकर उस सपने के बाद जिसमें उन्होंने मुझसे हर दिन मिस्सा बलिदान में शामिल होने के लिए कहा था। मुझे याद है मैं कनानी स्त्री की तरह प्रभु से विनती कर रही थी: "तू ने उसे अपनी मेज से नीचे गिरनेवाली रोटी के टुकड़े खिलाए, मेरे साथ भी उस कनानी स्त्री के जैसा व्यवहार कर प्रभु, और मेरे लिए मिस्सा बलिदान में शामिल होकर पवित्नार युखारिस्ट को प्राप्त करना संभव बना प्रभु।" कुछ ही समय बाद, जब मैं अपने पिता के साथ टहल रही थी, हम अप्रत्याशित रूप से एक गिरजाघर में पहुँचे जहाँ मिस्सा बलिदान का समारोह अभी शुरू ही हुआ था। मिस्सा में भाग लेने के बाद, मेरे पिताजी ने कहा: "चलिए, हम हर दिन यहां आएं।" मुझे लगता है कि बपतिस्मा की मेरी राह वहीं से शुरू हुई। अप्रत्याशित उपहार मैंने और मेरी बहन ने प्रार्थना समूह में शामिल होकर रोम और मेडजुगोरे की यात्रा पर जाने का फैसला किया। सिस्टर हेज़ल, जो इसका आयोजन कर रही थीं, उन्होंने मुझसे यूं ही पूछा कि क्या तुम रोम में बपतिस्मा लेना चाहोगी? मैं गुप्त और अदाम्बरहीन बप्तिस्मा चाहती थी, लेकिन प्रभु की कुछ और ही योजनाएँ थीं। सिस्टर ने बिशप से बात की, जिन्होंने हमें कार्डिनल के साथ पांच मिनट की मुलाक़ात का अवसर दिलाया, जो ढाई घंटे तक चली; कार्डिनल ने कहा कि मैं रोम में आपको बपतिस्मा प्राप्त करने केलिए सभी इंतज़ाम कर लूँगा। इसलिए हमें कार्डिनल द्वारा संत पापा के निजी प्रार्थनालय में बपतिस्मा दिया गया। मैंने फातिमा नाम रखा और मेरी बहन ने मारिया नाम रखा। हमने वहां कई कार्डिनलों, पुरोहितों और धार्मिक लोगों के साथ अपने बपतिस्मा के बाद का दोपहर का समारोही भोजन को खुशी-खुशी मनाया। मुझे बस यह महसूस हुआ कि इन सब के दौरान, प्रभु हमसे कह रहा था: “चखकर देखो कि प्रभु कितना अच्छा है; धन्य है वह, जो उसकी शरण जाता है” (स्तोत्र ग्रन्थ 34:8)। जल्द ही कलवारी का क्रूस आ ही गया। हमारे परिवार को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा, जिसके लिए हमारे समुदाय के लोगों ने ईसाई धर्म में हमारे धर्मांतरण को जिम्मेदार ठहराया। आश्चर्यजनक रूप से, मेरे परिवार के बाकी लोगों ने बिलकुल दूसरा रास्ता अपनाया। हमसे और हमारे विश्वास से मुंह मोड़ने के बजाय, उन्होंने अपने लिए बपतिस्मा की मांग की। प्रतिकूलता और विरोध के बीच, उन्हें येशु में शक्ति, साहस और आशा मिली। पिताजी ने इसे अच्छी तरह से व्यक्त किया, "सलीब या क्रूस के बिना ईसाई धर्म नहीं हो सकता है।" आज, हम अपने विश्वास में एक-दूसरे को प्रोत्साहित करना जारी रखते हैं और जब भी मौका मिलता है, इसे दूसरों के साथ साझा करते हैं। जब मैं अपनी चाची से अपने धर्म परिवर्तन के अनुभव के बारे में बात कर रही थी, तब उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने ईश्वर को "पिता" क्यों कहा। उसके लिए ईश्वर, अल्लाह है। मैंने उससे कहा कि मैं उसे पिता कहती हूँ, क्योंकि उसने मुझे अपनी प्यारी बच्ची बनने के लिए आमंत्रित किया है। मुझे उसके साथ एक प्रेमपूर्ण संबंध बनाने में खुशी होती है जो मुझसे इतना प्यार करता है कि उसने मुझे मेरे सभी पापों से शुद्ध करने और अनन्त जीवन का वादा प्रकट करने के लिए अपने पुत्र को भेजा। अपने उल्लेखनीय अनुभव साझा करने के बाद, मैंने उससे पूछा कि अगर वह मेरी जगह होती तो क्या वह अब भी अल्लाह का अनुसरण करती। उसके पास कोई जवाब नहीं था।
By: Munira Millwala
Moreइनिगो लोपेज़ का जन्म 15वीं सदी के स्पेन में एक कुलीन परिवार में हुआ था। सामंती राज दरबार का प्रेम और शूरवीरता के आदर्शों से प्रभावित होकर, वह एक उग्र योद्धा बन गया। सन 1521 ईसवीं में एक युद्ध के दौरान फ्रांसीसी आक्रमणकारियों के खिलाफ अपने पैतृक शहर पलेर्मो की रक्षा करते समय, इनिगो तोप के गोले से अत्यधिक घायल हो गया था। गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी साहस से भरपूर इनिगो ने फ्रांसीसी सैनिकों की प्रशंसा हासिल की, जो उसे कैद करने के बजाय, उसके उपचार के लिए उसके अपने घर ले गए। रोमांस भरे उपन्यासों का आनंद लेते हुए बिस्तर पर अपने स्वास्थ्य लाभ की अवधि बिताने की योजना बनाते हुए, इनिगो को यह देखकर निराशा हुई कि उपलब्ध पुस्तकें केवल संतों के जीवन पर थीं। उन्होंने अनिच्छा से इन पुस्तकों को पढ़ा, लेकिन जल्द ही इन गौरवशाली जीवन कथाओं के बारे में पढ़कर आश्चर्यचकित हो गए। संतों की जीवन कहानियों से प्रेरित होकर, उन्होंने खुद से पूछा: "अगर वे कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं?" घुटने की चोट से उबरने के दौरान यह सवाल उन्हें सताता रहा। लेकिन संतों द्वारा उनमें बोई गई यह पवित्र खलबली और अधिक मजबूत हो गई और अंततः उन्हें कलीसिया के सबसे महान संतों में से एक बना दिया गया: लोयोला के इग्नेशियस। एक बार ठीक होने के बाद, इग्नेशियस ने अपना चाकू और तलवार मोंट्सेरात की धन्य कुंवारी माँ मरियम की वेदी पर रख छोड़ दिया। उन्होंने अपने महंगे कपड़े त्याग दिए और दिव्य गुरु के मार्ग पर चलने के लिए निकल पड़े। उनका साहस और जुनून कम नहीं हुआ था, लेकिन अब से उनकी लड़ाई स्वर्गीय सेना के लिए होगी, जो मसीह के लिए आत्माओं को जीतेगी। उनके लेखन, विशेष रूप से स्पिरिचुअल एक्सरसाइजेज (आध्यात्मिक अभ्यास) ने अनगिनत जिंदगियों को छुआ है और उन्हें पवित्रता और मसीह के मार्ग पर निर्देशित किया है।
By: Shalom Tidings
Moreशालोम टाइडिंग्स के नियमित स्तंभकार फादर जोसेफ गिल अपने जीवन की कहानी साझा करने के लिए अपने दिल की बातें खुलकर रखते हैं और बताते हैं कि उन्हें कैसे प्यार हुआ मैं मानता हूं कि मेरी बुलाहट को बुलाहट कम माना जाना चाहिए, बल्कि जिस व्यक्ति ने मुझे बनाया और मेरे दिल को उसने अपनी ओर आकर्षित किया, यह बुलाहट उस व्यक्ति के साथ मेरी प्रेम लीला मानी जानी चाहिए। जब मैं बहुत छोटा था, तभी से मैं प्रभु से प्रेम करता था। मुझे याद है जब मैं आठ या नौ साल का था, तब मैं अपने कमरे में बैठकर बाइबल पढ़ता था। मैं परमेश्वर के वचन से इतना प्रेरित हुआ कि मैंने बाइबल की मेरी अपनी किताब लिखने की भी कोशिश की (कहने की जरूरत नहीं है, यह कोशिश सफल नहीं हुई!)। मैंने मिशनरी या शहीद होने का, उदारतापूर्वक अपना जीवन मसीह को देने का सपना देखा। फिर मेरी किशोरावस्था आ गई और मसीह के प्रति मेरा जुनून सांसारिक चिंताओं के नीचे दब गया। मेरा जीवन बेसबॉल, लड़कियों और संगीत के इर्द-गिर्द घूमने लगा। मेरी नई महत्वाकांक्षा एक अमीर और प्रसिद्ध रॉक संगीतकार या खेल उद्घोषक बनने की थी। आत्मा पर आघात शुक्र है, प्रभु ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। जब मैं चौदह वर्ष का था, तो मुझे अपने युवा समूह के साथ रोम की तीर्थयात्रा पर जाने का सौभाग्य मिला। कोलोसियम में खड़े होकर मैंने सोचा, “इस स्थान पर दस हजार से अधिक पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने येशु मसीह के लिए अपना खून बहाया है। मुझे अपने विश्वास की अधिक परवाह क्यों नहीं करना चाहिए?” सिस्टाइन गिरजाघर ने मुझे प्रभावित किया - सुन्दर चित्रों से भरपूर उस छत के कारण नहीं, बल्कि दूर की दीवार पर बनी उस कला के कारण: माइकल एंजेलो द्वारा "अंतिम न्यायविधि” का सुन्दर चित्र वहां अंकित था। वहाँ, जीवन भर लिए गए फैसलों के परिणाम को अर्थात स्वर्ग और नरक को सशक्त रूप से दर्शाया गया है। यह सोचकर मुझे अंदर तक आघात लगा कि मैं उन दो स्थानों में से एक में अनंत काल बिताऊंगा, मैंने सोचा... "तो मैं कहाँ जा रहा हूँ?" जब मैं लौटा, तो मुझे पता था कि मुझे अपने जीवन में कुछ परिवर्त्तन लाने की ज़रूरत है... लेकिन ऐसा करना कठिन हो सकता है। मैं किशोरावस्था में बहुत सारे पाप, गुस्से और नाटकबाजी में फंस गया था। मैंने आधे-अधूरे मन से प्रार्थना जीवन विकसित करने की कोशिश की, लेकिन यह जड़ नहीं जमा सका। मैं यह नहीं कह सकता कि मैं वास्तव में पवित्रता के लिए प्रयासरत हूँ। प्रभु को मेरा दिल जीतने के लिए और अधिक मुठभेड़ों की जरूरत पड़ी। सबसे पहले, मेरी पल्ली ने सतत आराधना शुरू की, जिससे लोगों को परम प्रसाद के पवित्र संस्कार के सामने प्रार्थना करने का 24 x 7 अवसर प्रदान किया गया। मेरे माता-पिता ने आराधना के एक साप्ताहिक घंटे के लिए साइन अप किया और मुझे आने के लिए आमंत्रित किया। पहले तो मैंने मना कर दिया; मैं अपने पसंदीदा टीवी कार्यक्रम छोड़ना नहीं चाहता था! लेकिन फिर मैंने तर्क दिया, "अगर मैं वास्तव में पवित्र परम प्रसाद के बारे में जो कहता हूं और उस पर विश्वास करता हूं - कि यह वास्तव में यीशु मसीह का शरीर और रक्त है - तो मैं उस संस्कार के साथ एक घंटा क्यों नहीं बिताना चाहूंगा?" इसलिए, अनिच्छा से, मैंने आराधना में जाना शुरू किया... और मुझे उससे प्यार हो गया। मौन मनन-चिंतन, धर्मग्रंथ का पाठ और प्रार्थना आदि के उस साप्ताहिक घंटे ने मेरे लिए परमेश्वर के व्यक्तिगत, और भावुक प्रेम का एहसास कराया... और मैं अपने प्यारे प्रभु को अपने पूरे जीवन के माध्यम से वह प्रेम लौटाने की इच्छा करने लगा। केवल सच्ची ख़ुशी लगभग उसी समय, ईश्वर मुझे कुछ आत्मिक साधनाओं में ले गया जो बहुत परिवर्तनकारी थी। एक साधना ओहियो में थी, जो कैथलिक फ़ैमिली लैंड नामक एक ग्रीष्मकालीन कैथलिक पारिवारिक शिविर था। वहाँ, पहली बार, मुझे मेरी ही उम्र के लड़के मिले जिनके मन में येशु के प्रति गहरा प्रेम था, और मुझे एहसास हुआ कि एक युवा व्यक्ति के रूप में पवित्रता के लिए प्रयास करना संभव (और अच्छा भी!) था। फिर मैंने क्रूस वीर के द्वारा आयोजित हाई स्कूल के लड़कों के लिए सप्ताहांत साधना में भाग लेना शुरू किया, और मैंने और भी अधिक दोस्त बनाए। येशु मसीह के प्रति उनके प्रेम को देखकर मेरी आध्यात्मिक यात्रा में वृद्धि हुई। अंततः, हाई स्कूल के एक वरिष्ठ छात्र के रूप में, मैंने एक स्थानीय सामुदायिक कॉलेज की कक्षाओं में जाना शुरू कर दिया। तब तक, मेरी पढ़ाई घर पर ही हुआ करती थी, इसलिए मुझे घर का सुरक्षा कवच और आश्रय मिला हुआ था। लेकिन इन कॉलेज की कक्षाओं में, मेरा सामना नास्तिक प्रोफेसरों और सुखवादी साथी छात्रों से हुआ, जिनका जीवन अगली पार्टी, अगली तनख्वाह और अगले हुकअप के इर्द-गिर्द घूमता था। लेकिन मैंने देखा कि वे बहुत दुखी लग रहे थे! वे लगातार अगली सुखदायक चीज़ के लिए प्रयास कर रहे थे। वे कभी भी अपने स्वार्थ की पूर्ती से बड़ी किसी चीज़ के लिए नहीं जी रहे थे। इससे मुझे एहसास हुआ कि दूसरों के लिए और मसीह के लिए अपना जीवन अर्पित करने में ही एकमात्र सच्ची खुशी है। उस समय से, मुझे पता था कि मेरा जीवन प्रभु येशु और उसके इर्द गिर्द होना चाहिए। मैंने फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई शुरू की और मैरीलैंड में माउंट सेंट मैरी के सेमिनरी में दाखिला लिया। लेकिन एक पुरोहित बनाने के बाद भी मेरी यात्रा जारी है। हर दिन प्रभु अपने प्रेम का और अधिक प्रमाण दिखाता है और मुझे अपने हृदय की गहराई में ले जाता है। यह मेरी प्रार्थना है कि आप सभी, मेरे प्रिय शालोम टाइडिंग्स के पाठको, आप अपने विश्वास को "हमारी आत्माओं के महान प्रेमी" के साथ एक क्रांतिकारी, सुंदर प्रेम संबंध के रूप में देखें!
By: फादर जोसेफ गिल
Moreकालातीत सुन्दरता अब कोई दूर का सपना नहीं है... आकर्षक दिखने की हमारी चाहत सार्वभौमिक है। बाइबिल के आरम्भ काल से ही, पुरुषों और महिलाओं ने समान रूप से संवारने, तथा आहार, व्यायाम, सौंदर्य प्रसाधन, जेवर, कपड़े और अन्य सजावट के माध्यम से अपने शरीर को सुंदर बनाने की कोशिश की है। क्योंकि हमारे सृजनकर्ता स्वयं सौंदर्य है, हम उस सृष्टिकर्ता के प्रतिरूप में और उसके सादृश्य में सृष्ट किये गए हैं, इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हम उसके स्वभाव के सिद्धांतों को अपने शारीरिक स्वरूप में प्रकट करने की इच्छा रखते हैं - वास्तव में, इसके द्वारा हम अपने शरीर में परमेश्वर को महिमान्वित कर रहे हैं, और हमें ऐसा करने के लिए आदेश दिया जाता है (1 कुरिन्थी 6:20)। फिर भी हमारा वर्तमान धर्म विहीन युग हर दिन जोर-शोर से हमारी कमियों की घोषणा करता है: हम सुंदर नहीं हैं, स्मार्ट नहीं हैं, पतले नहीं हैं, आकर्षक नहीं हैं, युवा नहीं हैं, स्टाइलिश नहीं हैं, आदि इत्यादि। हर साल, बहुत बड़ी संख्या में उपभोक्ता अनावश्यक मात्रा में सौंदर्य प्रसाधन, सौंदर्य उत्पाद, और संबंधित सेवाओं की खरीदारी करते हैं। अफसोस की बात है कि आक्रामक सर्जरी, इंजेक्शन, पूरक की कृत्रिम चीज़ें और अन्य संदिग्ध कॉस्मेटिक प्रक्रियाएं तेजी से आम होती जा रही हैं, यहां तक कि चालीस से कम उम्र वालों के बीच भी। दोषरहित सुंदरता हम येशु मसीह के अनुयायी, जो दुनिया में रहते हैं लेकिन दुनिया के नहीं, हम कैसे सुंदर होंगे? संत अगस्तीन ने सदियों पहले इसी प्रश्न से जूझते हुए एक प्राचीन उपदेश में हमें यह शाश्वत उत्तर दिया था: 'उससे प्यार करो जो हमेशा सुंदर है।और जिस मात्रा में आपके अंदर वह प्रेम बढ़ेगा, उसी मात्रा में आपकी सुंदरता भी बढ़ेगी। क्योंकि प्रेमपूर्ण उदारता वास्तव में आत्मा की सुंदरता है।' (योहन के पहले पत्र पर दस व्याख्यान, नौवां व्याख्यान , 9-वां अनुच्छेद) सच्ची सुंदरता उस प्यार से निकलती है जो "शरीर के दीपक", यानी हमारी आँखों (लूकस 1:34) से चमकता है, न कि हमारे बालों या होठों के रंग से। वास्तव में, येशु हमें "संसार की ज्योति" कहते हैं (मत्ती 5-14) - हमारी मुस्कुराहट से उसका प्रेम झलकना चाहिए और दूसरों के जीवन को रोशन करना चाहिए। अंततः, हमें अपने मसीही जीवन-साक्ष्य की सुंदरता द्वारा दूसरों को येशु मसीह और उनकी कलीसिया की सुंदरता की ओर आकर्षित करना चाहिए, और यही इस सांसारिक जीवन में हमारा मुख्य दायित्व है। फिर भी, यद्यपि हमारी आत्माएँ इच्छुक हैं, हमारा शरीर कभी-कभी दुनिया की अपर्याप्तता के झूठे ‘सुसमाचार’ का शिकार हो जाता है। मानवीय असुरक्षा के ऐसे क्षणों के दौरान, मैं सुलेमान के सर्वश्रेष्ठ गीत में वर्णित परमेश्वर के अचूक संदेश से उत्साहित हूं: "मेरी प्रेयसी, तुम सर्वसुन्दर हो। तुम में कोई दोष नहीं” (4:7)। हालाँकि मैंने अपने शरीर को कई वर्षों तक घिसा है, मैं लम्बा जीवन जीकर अपने भूरे "मुकुट" (सूक्तिग्रंथ 16:31) प्राप्त करने के लिए, और, हाँ, झुर्रियाँ भी प्राप्त करने केलिए आभारी हूँ, जो कई अनुभवों और आशीर्वादों का प्रतिनिधित्व करते हैं ताकि चिकनी त्वचा पाने के लिए मैं कभी भी इसका खरीद फरोख्त नहीं करूंगी। शायद आप एक माँ हैं और गर्भावस्था के साथ आपका आकार कुछ कुछ बदल गया है। लेकिन आपका शरीर चमत्कारी है - इसने गर्भधारण किया, बच्चे को गर्भ में संभाला और परमेश्वर के उस बच्चे को जन्म भी दिया। परमेश्वर के राज्य के विस्तार करने की अपनी फलदायीता केलिए आप आनन्दित और उल्लासित हो जाएँ ! शायद आप किशोरी हैं, और आपका शरीर असुविधाजनक परिवर्तनों से गुजर रहा है; और इस परिवर्त्तन को जटिल बनाते हुए, शायद आपको लगे कि आप दुनियावी लोगों की भीड़ में फिट नहीं बैठती हैं। लेकिन ईश्वर के कार्य की प्रगति आप हैं - आप एक उत्कृष्ट कृति हैं जिसे वह आपके द्वारा उसके विशेष लक्ष्य और उद्देश्य को पूरा करने के लिए अद्भुत रूप से आपको अद्वितीय बना रहा है। जहां तक ' दुनियावी लोगों की भीड़’ का सवाल है, क्या उस भीड़ के लिए प्रार्थना करने के लिए आप को प्रेरणा मिले; परमेश्वर जानता है कि दुनियावी भीड़ में सम्मिलित लोगों की अपनी असुरक्षाएँ हैं। शायद आप अधेड़ उम्र के हैं और पिछले कुछ वर्षों में आपका वज़न कुछ अतिरिक्त बढ़ गया है, या हो सकता है कि आप हमेशा मोटापे से जूझते रहे हों। यद्यपि स्वस्थ शरीर प्राप्त करने और उसे स्वस्थ बनाए रखने के लिए आहार और व्यायाम महत्वपूर्ण हैं, आप जिस आकार या रूप में हैं, बिल्कुल उसी आकार या रूप में ईश्वर आपसे प्यार करता है - आप अपने प्रति धैर्य रखें और अपने आप को उसके कोमल हाथों में सौंप दें। शायद आप कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं और उसके इलाज का असर भी झेल रहे हैं। जैसे ही आपका शरीर लड़खड़ाता है, मसीह आपके साथ क्रूस उठाते हैं। अपने कष्टों को उसके सामने प्रस्तुत करें, और वह आपको इतनी ताकत और लचीलापन देगा कि आप अपने आसपास के उन लोगों के लिए आशा की किरण बन सकें जो अपनी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। आप अपने साहसी जीवन के माध्यम से पाए गए ईश्वर के अच्छे कार्य से सांत्वना पायें। शायद पहले की या वर्तमान स्वास्थ्य की समस्याओं के कारण आपके शरीर में कुछ स्थायी निशान या विकृति है - आप यह जानकर सांत्वना पायें कि संत काटेरी की मृत्यु के बाद उसके चेहरे पर जो चेचक के निशान थे, वे चमत्कारिक रूप से गायब हो गए। वास्तव में, हमारे असली घर स्वर्ग में, मसीह हमारे तुच्छ शरीर को अपने गौरवशाली शरीर के समान बदल देगा (फिलिप्पी 3:20-21), और हम तारों की तरह चमकते रहेंगे (दानिएल 12:3)। पूरी तरह से अलंकृत अभी के लिए, जैसे परमेश्वर हमें चाहते हैं, हम वैसे ही हैं। जो उसने हमें पहले ही दे दी है हमें अपने उस बाहरी स्वरूप को बदलने या उस सुंदरता में सुधार करने की ज़रूरत नहीं है। हमें खुद को वैसे ही स्वीकार करना चाहिए जैसे हम हैं और हम जैसे हैं वैसे ही खुद से प्यार करना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण चीज़ जो हम कर सकते हैं वह है येशु से प्रेम करना। जितने तक हमारे दिल उसके प्यार से भर जाएगा, उतना ही हमारे शरीर उसकी सुंदरता को प्रतिबिंबित करेगा। लेकिन यह कोई सौंदर्य प्रतियोगिता नहीं है. हालाँकि दुनिया आम तौर पर कमी के सिद्धांत पर काम करती है ताकि हमें लगे कि हमें अपना उचित हिस्सा पाने के लिए प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए, येशु मसीह खूबी या प्रचुरता के सिद्धांत पर काम करता है ताकि हमेशा जरूरत से ज्यादा हो - "जिसके पास है उसे और अधिक दिया जाएगा" (मत्ती 13:12) यदि हम प्रभु पर भरोसा करते हैं जो "खेत के फूलों को सजाता है" (मत्ती 6:28), तो हम उस शरीर से संतुष्ट होंगे जिसे ईश्वर ने हमें दिया है। इसके अलावा, हम पहचानेंगे कि हमारी ईश्वर प्रदत्त सुंदरता न केवल पर्याप्त है बल्कि प्रचुर भी है। साथ ही, यह कोई तुलना का खेल नहीं है। हालाँकि हम अक्सर अपनी तुलना दूसरों से करने के लिए प्रलोभित होते हैं, फिर भी हम अद्वितीय हैं; परमेश्वर ने हमें अपनी माँ के गर्भ में किसी और की तरह दिखने के लिए नहीं बनाया है। वास्तव में, हममें से प्रत्येक येशु मसीह की संपूर्ण सुंदरता के विशिष्ट चमकदार प्रतिबिंब और आकर्षक गवाह बनने की यात्रा पर अलग-अलग मुकामों पर हैं। परम पिता परमेश्वर ने हमें पूर्णतः सुशोभित किया है। अगली बार जब आप दर्पण में देखें, तो याद रखें कि उसने आपको अद्भुत रूप से अच्छी तरह से बनाया और सजाया है, और वह यह देखकर प्रसन्न होता है कि आप उसकी सुंदरता को कैसे प्रतिबिंबित करते हैं।
By: Donna Marie Klein
Moreसबसे महान प्रचारक, बेशक, येशु स्वयं हैं, और एम्माऊस के रास्ते पर शिष्यों के बारे में लूकस के शानदार वर्णन से बेहतर येशु की सुसमाचार प्रचार तकनीक की कोई और वर्णन नहीं है। गलत रास्ते पर दो लोगों के जाने के वर्णन से कहानी शुरू होती है। लूकस के सुसमाचार में, यरूशलेम आध्यात्मिक गुरुत्वाकर्षण का केंद्र है - अंतिम भोज, क्रूस पर मृत्यु, पुनरुत्थान और पवित्र आत्मा के उतर आने का स्थान यही है। यह वह आवेशित स्थान है जहाँ उद्धार की पूरी योजना का पर्दाफाश होता है। इसलिए राजधानी से दूर जाने के कारण, येशु के ये दो पूर्व शिष्य परम्परा के विपरीत जा रहे हैं। येशु उनकी यात्रा में शामिल हो जाते हैं - हालाँकि हमें बताया जाता है कि उन्हें पहचानने से शिष्यों को रोका गया है - और येशु उन शिष्यों से पूछते हैं कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं। अपने पूरे सेवा कार्य के दौरान, येशु पापियों के साथ जुड़े रहे। यार्दन नदी के कीचड़ भरे पानी में योहन के बपतिस्मा के माध्यम से क्षमा मांगने वालों के साथ येशु कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे; बार-बार, उन्होंने बदनाम लोगों के साथ खाया पिया, और यह वहां के धर्मी लोगों के नज़र में बहुत ही निंदनीय कार्य था; और अपने जीवन के अंत में, उन्हें दो चोरों के बीच सूली पर चढ़ा दिया गया। येशु पाप से घृणा करते थे, लेकिन वे पापियों को पसंद करते थे और लगातार उनकी दुनिया में जाने और उनकी शर्तों पर उनसे जुड़ने के लिए तैयार रहते थे। और यही पहली महान सुसमाचारीय शिक्षा है। सफल सुसमाचार प्रचारक पापियों के अनुभव से अलग नहीं रहते, उन पर आसानी से दोष नहीं लगाते, उन पर फैसला पारित नहीं करते, उनके लिए प्रार्थना दूर से नहीं करते; इसके विपरीत, वे उनसे इतना प्यार करते हैं कि वे उनके साथ जुड़ जाते हैं और उनके जैसे चलने और उनके अनुभव को महसूस करते हैं। येशु के जिज्ञासु प्रश्नों से प्रेरित होकर, यात्रियों में से एक, जिसका नाम क्लेओपस था, नाज़रेथ के येशु के बारे में सभी 'बातें' बताता है: "वे ईश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे। हमारे महायाजकों और शासकों ने उन्हें प्राणदंड दिलाया और क्रूस पर चढ़ाया। हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करनेवाले थे। आज सुबह, ऐसी खबरें आईं कि वे मृतकों में से जी उठे हैं।" क्लेओपस के पास सारे सीधे और स्पष्ट 'तथ्य' हैं; येशु के बारे में उसने जो कुछ भी कहा है, उसमें एक भी बात गलत नहीं है। लेकिन उसकी उदासी और यरूशलेम से उसका भागना इस बात की गवाही देता है कि वह पूरी तस्वीर को नहीं देख पा रहा है। मुझे न्यू यॉर्कर पत्रिका के कार्टून बहुत पसंद हैं, जो बड़ी चतुराई और हास्यास्पद तरीके से बनाए जाते हैं, लेकिन कभी-कभी, कोई ऐसा कार्टून होता है जिसे मैं समझ नहीं पाता। मैं सभी विवरणों को समझ लेता हूँ, मैं मुख्य पात्रों और उनके आस-पास की वस्तुओं को देखता हूँ, मैं कैप्शन को समझ लेता हूँ। फिर भी, मुझे समझ में नहीं आता कि यह हास्य कैसे पैदा करता है। और फिर एक पल आता है जब मुझे समझ में आता है: हालाँकि मैंने कोई और विवरण नहीं देखा है, हालाँकि पहेली का कोई नया टुकड़ा सामने नहीं आया है, लेकिन मैं उस पैटर्न को समझ जाता हूँ जो उन्हें एक सार्थक तरीके से एक साथ जोड़ता है। एक शब्द में, मैं कार्टून को 'समझ' जाता हूँ। क्लेओपस का वर्णन सुनकर, येशु ने कहा: “ओह, निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मंदमति हो।” और फिर येशु उनके लिए धर्मग्रन्थ के प्रतिमानों का खुलासा करते हैं, जिन घटनाओं को उन्होंने देखा है, उनका अर्थ बताते हैं। अपने बारे में कोई नया विवरण बताए बिना, येशु उन्हें रूप, व्यापक योजना और सरंचना, और उसका अर्थ दिखाते हैं - और इस प्रक्रिया के माध्यम से वे उसे 'समझना' शुरू करते हैं: उनके दिल उनके भीतर जल रहे हैं। यही दूसरी सुसमाचार शिक्षा है। सफल प्रचारक धर्मग्रन्थ का उपयोग दिव्य प्रतिमानों और विशेषकर उस प्रतिमान को प्रकट करने के लिए करते हैं, जो येशु में देहधारी हुआ है। इन प्रतिमानों का स्पष्टीकरण किये बिना, मानव जीवन एक अस्तव्यस्तता है, घटनाओं का एक धुंधलापन है, अर्थहीन घटनाओं की एक श्रृंखला है। सुसमाचार का प्रभावी प्रचारक बाइबल का व्यक्ति होता है, क्योंकि पवित्र ग्रन्थ वह साधन है जिसके द्वारा हम येशु मसीह को 'पाते' हैं और उसके माध्यम से, हमारे अपने जीवन को भी। जब वे एम्माउस शहर के पास पहुँचते हैं, तो वे दोनों शिष्य अपने साथ रहने के लिए येशु पर दबाव डालते हैं। येशु उनके साथ बैठते हैं, रोटी उठाते हैं, आशीर्वाद की प्रार्थना बोलते हैं, उसे तोड़ते हैं और उन्हें देते हैं, और उसी क्षण वे येशु को पहचान लेते हैं। हालाँकि, वे पवित्र ग्रन्थ के हवाले से देखना शुरू कर रहे थे, फिर भी वे पूरी तरह से समझ नहीं पाए थे कि वह कौन था। लेकिन यूखरिस्तीय क्षण में, रोटी तोड़ने पर, उनकी आँखें खुल जाती हैं। येशु मसीह को समझने का अंतिम साधन पवित्रग्रन्थ नहीं बल्कि पवित्र यूखरिस्त है, क्योंकि यूखरिस्त स्वयं मसीह है, जो व्यक्तिगत रूप से और सक्रिय रूप से उसमें मौजूद हैं। यूखरिस्त पास्का रहस्य का मूर्त रूप है, जो अपनी मृत्यु के माध्यम से दुनिया के प्रति येशु का प्रेम, सबसे हताश पापियों को बचाने के लिए पापी और निराश दुनिया की ओर ईश्वर की यात्रा, करुणा के लिए उनका संवेदनशील हृदय है। और यही कारण है कि यूखरिस्त की नज़र के माध्यम से येशु सबसे अधिक पूर्ण और स्पष्ट रूप से हमारी दृष्टि के केंद्र में आते हैं। और इस प्रकार हम सुसमाचार की तीसरी महान शिक्षा पाते हैं। सफल सुसमाचार प्रचारक यूखरिस्त के व्यक्ति हैं। वे पवित्र मिस्सा की लय की लहरों में बहते रहते हैं; वे यूखरिस्तीय आराधना का अभ्यास करते हैं; जिन्होंने सुसमाचार को स्वीकार किया है, उन लोगों को वे येशु के शरीर और रक्त में भागीदारी के लिए आकर्षित करते हैं। वे जानते हैं कि पापियों को येशु मसीह के पास लाना कभी भी मुख्य रूप से व्यक्तिगत गवाही, या प्रेरणादायक उपदेश, या यहाँ तक कि पवित्रग्रन्थ के व्यापक सरंचना के संपर्क का मामला नहीं होता है। यह मुख्य रूप से यूखरिस्त की टूटी हुई रोटी के माध्यम से ईश्वर के टूटे हुए दिल को देखने का मामला है। तो सुसमाचार के भावी प्रचारको, वही करो जो येशु ने किया। पापियों के साथ चलो, पवित्र ग्रन्थ खोलो, रोटी तोड़ो।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
Moreएक आकर्षक पहली मुलाकात, दूरी, फिर पुनर्मिलन...यह अनंत प्रेम की कहानी है। मुझे बचपन की एक प्यारे दिन की याद आती है, जब मैंने यूखरिस्तीय आराधना में येशु का सामना किया था। एक राजसी और भव्य मोनस्ट्रेंस या प्रदर्शिका में यूखरिस्तीय येशु को देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गई थी। सुगन्धित धूप उस यूखरिस्त की ओर उठ रही थी। जैसे ही धूपदान को झुलाया गया, यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की ओर धूप उड़ने लगी, और पूरी मंडली ने एक साथ गाया: " परम पावन संस्कार में, सदा सर्वदा, प्रभु येशु की स्तुति हो, महिमा हो, आराधना हो।" वह बहुप्रतीक्षित मुलाकात मैं खुद धूपदान को छूना चाहती थी और उसे धीरे से आगे की ओर झुलाना चाहती थी ताकि मैं धूप को प्रभु येशु तक पहुंचा सकूं। पुरोहित ने मुझे धूपदान को न छूने का इशारा किया और मैंने अपना ध्यान धूप के धुएं पर लगाया जो मेरे दिल और आंखों के साथ-साथ यूखरिस्त में पूरी तरह से मौजूद प्रभु की ओर बढ़ रहा था। इस मुलाकात ने मेरी आत्मा को बहुत खुशी से भर दिया। सुंदरता, धूप की खुशबू, पूरी मंडली का एक सुर में गाना, और यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की उपासना का दृश्य... मेरी इंद्रियाँ पूरी तरह से संतुष्ट थीं, जिससे मुझे इसे फिर से अनुभव करने की लालसा हो रही थी। उस दिन को याद करके मुझे आज भी बहुत खुशी होती है। हालाँकि, किशोरावस्था में, मैंने इस अनमोल निधि के प्रति अपना आकर्षण खो दिया, और खुद को पवित्रता के ऐसे महान स्रोत से वंचित कर लिया। हालांकि उन दिनों मैं एक बच्ची थी, इसलिए मुझे लगता था कि मुझे यूख्ररिस्तीय आराधना के पूरे समय लगातार प्रार्थना करनी होगी और इसके लिए एक पूरा घंटा मुझे बहुत लंबा लगता था। आज हममें से कितने लोग ऐसे कारणों से - तनाव, ऊब, आलस्य या यहाँ तक कि डर के कारण - यूखरिस्तीय आराधना में जाने से हिचकिचाते हैं? सच तो यह है कि हम खुद को इस महान उपहार से वंचित करते हैं। पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत अपनी युवावस्था में संघर्षों, परीक्षाओं और पीडाओं के बीच, मुझे याद आया कि मुझे पहले कहाँ से इतनी सांत्वना मिली थी, और उस सांत्वना के स्रोत को याद करते हुए मैं शक्ति और पोषण के लिए यूखरिस्तीय आराधना में वापस लौटी। पहले शुक्रवार को, मैं पूरे एक घंटे के लिए पवित्र संस्कार में येशु की उपस्थिति में चुपचाप आराम करती, बस खुद को उनके साथ रहने देती, अपने जीवन के बारे में प्रभु से बात करती, उनकी मदद की याचना करती और बार-बार तथा सौम्य तरीके से उनके प्रति अपने प्यार का इज़हार करती। यूखरिस्तीय येशु के सामने आने और एक घंटे के लिए उनकी दिव्य उपस्थिति में रहने की संभावना मुझे वापस खींचती रही। जैसे-जैसे साल बीतते गए, मुझे एहसास हुआ कि यूखरिस्तीय आराधना ने मेरे जीवन को गहन तरीकों से बदल दिया है क्योंकि मैं ईश्वर की एक प्यारी बेटी के रूप में अपनी सबसे गहरी पहचान के बारे में अधिक से अधिक जागरूक होती जा रही हूँ। हम जानते हैं कि हमारे प्रभु येशु वास्तव में और पूरी तरह से यूखरिस्त में मौजूद हैं - उनका शरीर, रक्त, आत्मा और दिव्यता यूखरिस्त में हैं। यूखरिस्त स्वयं येशु हैं। यूखरिस्तीय येशु के साथ समय बिताने से आप अपनी बीमारियों से चंगे हो सकते हैं, अपने पापों से शुद्ध हो सकते हैं और अपने आपको उनके महान प्रेम से भर सकते हैं। इसलिए, मैं आप सभी को नियमित रूप से यूखरिस्तीय प्रभु के सम्मुख पवित्र घड़ी बिताने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ। आप जितना अधिक समय यूखरिस्तीय आराधना में प्रभु के साथ बिताएँगे, उनके साथ आपका व्यक्तिगत संबंध उतना ही मजबूत होगा। शुरुआती झिझक के सम्मुख न झुकें, बल्कि हमारे यूखरिस्तीय प्रभु, जो स्वयं प्रेम और दया, भलाई और केवल भलाई हैं, उनके साथ समय बिताने से न डरें।
By: पवित्रा काप्पन
Moreजब आपका रास्ता मुश्किलों से भरा हो और आप को आगे का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा हो, तो आप क्या करेंगे? 2015 की गर्मी अविस्मरणीय थी। मैं अपने जीवन के सबसे निचले बिंदु पर थी - अकेली, उदास और एक भयानक स्थिति से बचने के लिए अपनी पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी। मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से थकी और बिखरी हुई थी, और मुझे लगा कि मेरी दुनिया खत्म होने वाली है। लेकिन अजीब बात यह है कि चमत्कार तब होते हैं जब हम उन चमत्कारों की कम से कम उम्मीद करते हैं। असामान्य घटनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से, ऐसा लग रहा था जैसे परमेश्वर मेरे कान में फुसफुसा रहा था कि वह मुझे संरक्षण दे रहा है। उस विशेष रात को, मैं निराश होकर, टूटी और बिखरी हुई बिस्तर पर लेटने गयी थी। सो नहीं पाने के कारण, मैं एक बार फिर अपने जीवन की दुखद स्थिति पर विचार कर रही थी और मैं अपनी रोज़री माला को पकड़ कर प्रार्थना करने का प्रयास कर रही थी। एक अजीब तरह के दर्शन या सपने में, मेरे सीने पर रखी रोज़री माला से एक चमकदार रोशनी निकलने लगी, जिसने कमरे को एक अलौकिक सुनहरी चमक से भर दिया। जैसे-जैसे यह रोशनी धीरे-धीरे फैलने लगी, मैंने उस चमकदार वृत्त के किनारे पर काले, चेहरेहीन, छायादार आकृतियाँ देखीं। वे अकल्पनीय गति से मेरे करीब आ रहे थे, लेकिन सुनहरी रोशनी तेज होती गई और जब भी वे मेरे करीब आने की कोशिश करते, तो वह सुनहरी रोशनी उन्हें दूर भगा देती। मैं स्तब्ध थी, और उस अद्भुत दृश्य की विचित्रता पर प्रतिक्रिया करने में असमर्थ थी। कुछ पलों के बाद, दृश्य अचानक समाप्त हो गया, कमरे में फिर से गहरा अंधेरा छा गया। बहुत परेशान होकर सोने से डरती हुई , मैंने टी.वी. चालू किया। एक पुरोहित, संत बेनेदिक्त की ताबीज़ (मेडल) पकड़े हुए थे और बता रहे थे कि यह ताबीज़ कैसे दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है। जब वे उस ताबीज़ पर अंकित प्रतीकों और शब्दों पर चर्चा कर रहे थे, मैंने अपनी रोज़री माला पर नज़र डाली - यह मेरे दादाजी की ओर से एक उपहार थी - और मैंने देखा कि मेरी रोज़री माला पर टंगे क्रूस में वही ताबीज़ जड़ी हुई थी। इससे एक आभास हुआ। मेरे गालों पर आँसू बहने लगे क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि जब मैं सोच रही थी कि मेरा जीवन बर्बाद हो रहा है तब भी परमेश्वर मेरे साथ था और मुझे संरक्षण दे रहा था। मेरे दिमाग से संदेह का कोहरा छंट गया, और मुझे इस ज्ञान में सांत्वना मिली कि मैं अब अकेली नहीं थी। मैंने पहले कभी संत बेनेदिक्त की ताबीज़ के अर्थ को नहीं समझा था, इसलिए इस नए विश्वास ने मुझे बहुत आराम दिया, जिससे परमेश्वर में मेरा विश्वास और आशा मजबूत हुई। अपार प्रेम और करुणा के साथ, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ मौजूद था, जब भी मैं फिसली तो मुझे बचाने के लिए वह तैयार था। यह एक सुकून देने वाला विचार था जिसने मेरे अस्तित्व को जकड लिया, मुझे आशा और शक्ति से भर दिया। मेरी आत्मा को प्राप्त नया रूप मेरे दृष्टिकोण में इस तरह के बदलाव ने मुझे आत्म-खोज और विकास की यात्रा पर आगे बढ़ाया। मैंने आध्यात्मिकता को अपने रोजमर्रा के जीवन से दूर की चीज़ के रूप में देखना बंद कर दिया। इसके बजाय, मैंने प्रार्थना, चिंतन और दयालुता के कार्यों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध विकसित करने की कोशिश की, यह महसूस करते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति केवल भव्य इशारों तक सीमित नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के सबसे सरल क्षणों में महसूस की जा सकती है। एक रात में पूरा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन मैंने अपने भीतर हो रहे सूक्ष्म बदलावों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। मैं अधिक धैर्यवान हो गयी हूं, तनाव और चिंता को दूर करना सीख गयी हूं, और इस तरह मैंने एक नए विश्वास को अपनाया है कि अगर मैं ईश्वर पर अपना भरोसा रखूंगी तो चीजें उसकी इच्छा के अनुसार सामने आएंगी। इसके अलावा, प्रार्थना के बारे में मेरी धारणा बदल गई है, जो इस समझ से उपजी एक सार्थक बातचीत में बदल गई है कि, भले ही उनकी दयालु उपस्थिति दिखाई न दे, लेकिन ईश्वर हमारी बात सुनता है और हम पर नज़र रखता है। जैसे कुम्हार मिट्टी को उत्कृष्ट कलाकृति में ढालता है, वैसे ही ईश्वर हमारे जीवन के सबसे निकृष्ट हिस्सों को ले सकता है और उन्हें कल्पना की जा सकने वाली सबसे सुंदर आकृतियों में ढाल सकता है। उन पर विश्वास और आशा हमारे जीवन में बेहतर चीजें लाएगी जो हम कभी भी अपने दम पर हासिल नहीं कर सकते हैं, और हमें अपने रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों के बावजूद मजबूत बने रहने में सक्षम बनाती हैं। * संत बेनेदिक्त का मेडल उन लोगों को दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद देते हैं जो उन्हें पहनते हैं। कुछ लोग उन्हें नई इमारतों की नींव में गाड़ देते हैं, जबकि अन्य उन्हें रोज़री माला से जोड़ते हैं या अपने घर की दीवारों पर लटकाते हैं। हालाँकि, सबसे आम प्रथा संत बेनेदिक्त के मेडल को ताबीज़ बनाकर पहनना या इसे क्रूस के साथ जोड़ना है।
By: अन्नू प्लाचेई
Moreमैं विश्वविद्यालय की एक स्वस्थ छात्रा थी, अचानक पक्षाघात वाली बन गयी, लेकिन मैंने व्हीलचेयर तक अपने को सीमित रखने से इनकार कर दिया… विश्वविद्यालय के शुरुआती सालों में मेरी रीढ़ की डिस्क खिसक गई थी। डॉक्टरों ने मुझे भरोसा दिलाया कि युवा और सक्रिय होने के कारण, फिजियोथेरेपी और व्यायाम के द्वारा मैं बेहतर हो जाऊंगी, लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद, मैं हर दिन दर्द में रहती थी। मुझे हर कुछ महीनों में गंभीर दौरे पड़ते थे, जिसके कारण मैं हफ्तों तक बिस्तर पर रहती थी और बार-बार अस्पताल जाना पड़ता था। फिर भी, मैंने उम्मीद बनाई रखी, जब तक कि मेरी दूसरी डिस्क खिसक नहीं गई। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी बदल गई है। ईश्वर से नाराज़! मैं पोलैंड में पैदा हुई थी। मेरी माँ ईशशास्त्र पढ़ाती हैं, इसलिए मेरी परवरिश कैथलिक धर्म में हुई। यहाँ तक कि जब मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए स्कॉटलैंड और फिर इंग्लैंड गयी, तब भी मैंने इस धर्म को बहुत प्यार से थामे रखा, करो या मरो के अंदाज़ में शायद नहीं, लेकिन यह हमेशा मेरे साथ था। किसी नए देश में जाने का शुरुआती दौर आसान नहीं था। मेरा घर एक भट्टी की तरह था, जहाँ मेरे माता-पिता अक्सर आपस में लड़ते रहते थे, इसलिए मैं व्यावहारिक रूप से इस अजनबी देश की ओर भाग गयी थी। अपने मुश्किल बचपन को पीछे छोड़कर, मैं अपनी जवानी का मज़ा लेना चाहती थी। अब, यह दर्द मेरे लिए नौकरी करना और खुद को आर्थिक रूप से संतुलित रखना मुश्किल बना रहा था। मैं ईश्वर से नाराज़ थी। फिर भी, वह मुझे जाने देने को तैयार नहीं था। भयंकर दर्द में कमरे के अन्दर फँसे होने के कारण, मैंने एकमात्र उपलब्ध शगल का सहारा लिया—मेरी माँ की धार्मिक पुस्तकों का संग्रह। धीरे-धीरे, मैंने जिन आत्मिक साधनाओं में भाग लिया और जो किताबें पढ़ीं, उनसे मुझे एहसास हुआ कि मेरे अविश्वास के बावजूद, ईश्वर वास्तव में चाहता था कि उसके साथ मेरा रिश्ता मजबूत हो। लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी कि वह अभी तक मुझे चंगा नहीं कर रहां था। आखिरकार, मुझे विश्वास हो गया कि ईश्वर मुझसे नाराज़ हैं और मुझे ठीक नहीं करना चाहता, इसलिए मैंने सोचा कि शायद मैं उन्हें धोखा दे सकती हूँ। मैंने चंगाई के लिए विख्यात और अच्छे 'आँकड़ों' वाले किसी पवित्र पुरोहित की तलाश शुरू कर दी ताकि जब ईश्वर दूसरे कामों में व्यस्त हों तो मैं ठीक हो सकूँ। कहने की ज़रूरत नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ। मेरी यात्रा में एक मोड़ एक दिन मैं एक प्रार्थना समूह में शामिल थी, मैं बहुत दर्द में थी। दर्द की वजह से एक गंभीर प्रकरण होगा, इस डर से, मैं वहाँ से जाने की योजना बना रही थी, तभी वहाँ के एक सदस्य ने पूछा कि क्या कोई ऐसी बात है जिसके लिए मैं उनसे प्रार्थना की मांग करना चाहूँगी। मुझे काम पर कुछ परेशानी हो रही थी, इसलिए मैंने हाँ कह दिया। जब वे लोग प्रार्थना कर रहे थे, तो उनमें से एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या कोई शारीरिक बीमारी है जिसके लिए मुझे प्रार्थना की ज़रूरत है। चंगाई करनेवाले लोगों की मेरी ‘रेटिंग' सूची के हिसाब से वे बहुत नीचे थे, इसलिए मुझे भरोसा नहीं था कि मुझे कोई राहत मिलेगी, लेकिन मैंने फिर भी 'हाँ' कह दिया। उन्होंने प्रार्थना की और मेरा दर्द दूर हो गया। मैं घर लौट आयी, और वह दर्द अभी भी नहीं थी। मैं कूदने, मुड़ने और इधर-उधर घूमने लगी, और मैं अभी भी ठीक थी। लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मैं ठीक हो गयी हूँ, तो किसी ने मुझ पर विश्वास नहीं किया। इसलिए, मैंने लोगों को बताना बंद कर दिया; इसके बजाय, मैं माँ मरियम को धन्यवाद देने के लिए मेडजुगोरे गयी। वहाँ, मेरी मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जो रेकी कर रहा था और मेरे लिए प्रार्थना करना चाहता था। मैंने मना कर दिया, लेकिन जाने से पहले उसने अलविदा कहने के लिए मुझे गले लगाया, जिससे मैं चिंतित हो गयी क्योंकि उसने कहा कि उसके स्पर्श में शक्ति है। मैंने डर को हावी होने दिया और गलत तरीके से मान लिया कि इस दुष्ट का स्पर्श ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। अगली सुबह मैं भयंकर दर्द में उठी, चलने में असमर्थ थी। चार महीने की राहत के बाद, मेरा दर्द इतना तीव्र हो गया कि मुझे लगा कि मैं वापस ब्रिटेन भी नहीं जा पाऊँगी। जब मैं वापस लौटी, तो मैंने पाया कि मेरी डिस्क नसों को छू रही थी, जिससे महीनों तक और भी ज़्यादा दर्द हो रहा था। छह या सात महीने बाद, डॉक्टरों ने फैसला किया कि उन्हें मेरी रीढ़ की हड्डी पर जोखिम भरी सर्जरी करने की ज़रूरत है, जिसे वे लंबे समय से टाल रहे थे। सर्जरी से मेरे पैर की एक नस क्षतिग्रस्त हो गई, और मेरा बायाँ पैर घुटने से नीचे तक लकवाग्रस्त हो गया। वहाँ और फिर एक नई यात्रा शुरू हुई, एक अलग यात्रा। मुझे पता है कि तू यह कर सकता है जब मैं पहली बार व्हीलचेयर पर घर पहुची, तो मेरे माता-पिता डर गए, लेकिन मैं खुशी से भर गयी। मुझे सभी तकनीकी चीजें पसंद थीं...हर बार जब कोई मेरी व्हीलचेयर पर बटन दबाता था, तो मैं एक बच्चे की तरह उत्साहित हो जाती थी। क्रिसमस की अवधि के दौरान, जब मेरा पक्षाघात ठीक होने लगा, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी नसों को कितना नुकसान हुआ है। मैं कुछ समय के लिए पोलैंड के एक अस्पताल में भर्ती थी। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे जीने वाली थी। मैं बस ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि मुझे एक और उपचार की आवश्यकता है: "तुझे फिर से खोजने की मेरी आवश्यकता है क्योंकि मुझे पता है कि तू यह कर सकता है।" इसलिए, मुझे एक चंगाई सभा के बारे में जानकारी मिली और मुझे विश्वास हो गया कि मैं ठीक हो जाऊंगी। एक ऐसा पल जिसे आप खोना नहीं चाहेंगे वह शनिवार का दिन था और मेरे पिता शुरू में नहीं जाना चाहते थे। मैंने उनसे कहा: "आप अपनी बेटी के ठीक होने पर उस पल को खोना नहीं चाहेंगे।" मूल कार्यक्रम में मिस्सा बलिदान था, उसके बाद आराधना के साथ चंगाई सभा थी। लेकिन जब हम पहुंचे, तो पुरोहित ने कहा कि उन्हें योजना बदलनी होगी क्योंकि चंगाई सभा का नेतृत्व करने वाली टीम वहां नहीं थी। मुझे याद है कि मेरे मन में उस समय यह सोच आई थी कि मुझे किसी टीम की ज़रूरत नहीं है: "मुझे केवल येशु की ज़रूरत है।" जब मिस्सा बलिदान शुरू हुआ, तो मैं एक भी शब्द सुन नहीं पाई। हम उस तरफ बैठे थे जहाँ दिव्य की करुणा की तस्वीर थी। मैंने येशु को ऐसे देखा जैसे मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। यह एक आश्चर्यजनक छवि थी। येशु बहुत सुंदर लग रहे थे! मैंने उसके बाद कभी भी वह तस्वीर नहीं देखी। पूरे मिस्सा बलिदान के दौरान, पवित्र आत्मा मेरी आत्मा को घेरा हुआ था। मैं बस अपने मन में 'धन्यवाद' कह रही थी, भले ही मुझे नहीं पता था कि मैं किसके लिए आभारी हूँ। मैं चंगाई की प्रार्थना का निवेदन नहीं कह पा रही थी, और यह निराशाजनक था क्योंकि मुझे चंगाई की आवश्यकता थी। जब आराधना शुरू हुई तो मैंने अपनी माँ से कहा कि वे मुझे आगे ले जाएँ, जितना संभव हो सके येशु के करीब ले जाएँ। वहाँ, आगे बैठे हुए, मुझे लगा कि कोई मेरी पीठ को छू रहा है और मालिश कर रहा है। मुझे इतनी तीव्रता का अनुभव और साथ साथ आराम भी मिल रहा था कि मुझे लगा कि मैं सो जाऊँगी। इसलिए, मैंने बेंच पर वापस जाने का फैसला किया, लेकिन मैं भूल गयी थी कि मैं 'चल' नहीं सकती। मैं बस वापस चली गई और मेरी माँ मेरी बैसाखियों के साथ मेरे पीछे दौड़ी, ईश्वर की स्तुति करते हुए, माँ कह रही थी: "तुम चल रही हो, तुम चल रही हो।" मैं पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु द्वारा चंगी हो गयी थी। जैसे ही मैं बेंच पर बैठी, मैंने एक आवाज़ सुनी: "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है।" मेरे दिमाग में, मैंने उस महिला की छवि देखी जो येशु के गुजरने पर उनके लबादे को छू रही थी। उसकी कहानी मुझे मेरी कहानी की याद दिलाती है। जब तक मैं इस बिंदु पर नहीं पहुँची जहाँ मैंने येशु पर भरोसा करना शुरू किया, तब तक कुछ भी मदद नहीं कर रहा था। चंगाई तब हुई जब मैंने उसे स्वीकार किया और उससे कहा: "तुम ही मेरी ज़रूरत हो।" मेरे बाएं पैर की सभी मांसपेशियाँ चली गई थीं और वह भी रातों-रात वापस आ गई। यह बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि डॉक्टर लोग पहले भी इसका माप ले रहे थे और उन्होंने एक आश्चर्यजनक, अवर्णनीय परिवर्तन पाया। ऊंची आवाज़ में गवाही इस बार जब मुझे चंगाई मिली, तो मैं इसे सभी के साथ साझा करना चाहती थी। अब मैं शर्मिंदा नहीं थी। मैं चाहती थी कि सभी को पता चले कि ईश्वर कितना अद्भुत है और वह हम सभी से कितना प्यार करता है। मैं कोई खास नहीं हूँ और मैंने इस चंगाई को प्राप्त करने के लिए कुछ खास नहीं किया है। ठीक होने का मतलब यह भी नहीं है कि मेरा जीवन रातों-रात बहुत आरामदायक हो गया। अभी भी कठिनाइयाँ हैं, लेकिन वे बहुत हल्की हैं। मैं उन कठिनाइयों को यूखरिस्तीय आराधना में ले जाती हूँ और येशु मुझे समाधान देता है, या उनसे कैसे निपटना है इस बारे में विचार देता है, साथ ही आश्वासन और भरोसा भी देता है कि वह स्वयं उनसे निपटेगा।
By: एनिया ग्रेग्लेवस्का
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