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अगस्त 12, 2021 1803 0 Patricia Dowey
Encounter

मुझे तुम्हारी अनुमति चाहिए

मैं एक चमत्कार के लिए प्रार्थना कर रही थी जब मुझे मां मरियम की सौम्य आवाज़ सुनाई दी।

सीधे दिल में

मैं अपने माता पिता की इकलौती संतान हूं और उन्होंने मुझे बड़े लाड़ प्यार से पाला है। मेरे पिता कैथलिक थे पर मेरी मां प्रोटेस्टेंट थी। हालांकि उन्हें कैथलिक विश्वास में मेरी परवरिश होने से कोई आपत्ति नही थी। इसीलिए मेरी पढ़ाई लिखाई एक कैथलिक स्कूल में हुई और यह मेरी खुशकिस्मती थी कि मुझे सिस्टर्स ऑफ मर्सी और मारिस्ट ब्रदर्स से पढ़ने का मौका मिला। मुझे याद है मैं स्कूल से घर आकर मां को स्कूल में सीखे हुए भजन सुनाया करती थी। चूँकि मां कैथलिक नहीं थी, वह मां मरियम के भजनों से अनजान थी।

लेकिन समय के साथ मां मरियम के भजन मेरी मां के प्रिय भजन बन गए। और जब मां हमारे साथ मई महीने की प्रार्थनाएं और मां मरियम के जुलूस में जाया करती थी तब वे बड़े गर्व से इन भजनों को गाया करती थीं। मां ने ही मुझे चिल्ड्रन ऑफ मेरी में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया और आखिर में मां मरियम में उनकी श्रद्धा के कारण ही उन्होंने सालों बाद कैथलिक चर्च को अपना लिया। मेरी बुआ भी मां मरियम की बड़ी भक्त थी और उन्होंने मेरे मन में मां मरियम के प्रति प्रेम को और बढ़ाया। मेरे स्कूल के पास ‘विजय की मां मरियम’ का एक बड़ा ही सुन्दर चर्च (चर्च ऑफ़ आवर लेडी ऑफ़ विक्ट्री) था। स्कूल की छुट्टी के बाद मैं अक्सर वहां जा कर कुछ समय बिताया करती थी क्योंकि मुझे ऐसा करने में बड़ा सुकून मिलता था और मुझे मां मरियम के प्रेम का अनुभव होता था।

मां मरियम और मेरे बीच का यह रिश्ता जो बचपन में शुरू हुआ था मेरे बड़े होने पर भी वैसा का वैसा रहा। इसीलिए जब भी मैं परेशान रहती थी या किसी मुसीबत में होती थी तब मैं मां मरियम की ओर मुड़ती थी और मुझे हमेशा मां मरियम की कोमलता, प्यार और मदद का अहसास होता था। मैंने अपनी शादी में काफी तकलीफें झेली क्योंकि मेरे स्वर्गीय पति को शराब की लत थी, इसीलिए एक दिन मैंने नित्य सहायक माता की नौरोजी प्रार्थना शुरू की।

उस समय मेरी पल्ली रिडेंप्शनिस्ट लोगों के द्वारा चलाई जाती थी जिनकी नित्य सहायक मां मरियम में अटूट श्रद्धा थी। एक हफ्ते लगातार नौरोजी प्रार्थना करने के बाद मेरे पति ने शराब पीना छोड़ दिया! आगे के चौदह महीने बड़े ही सुख शांति से गुज़रे जिसके बाद शराब की लत ने मेरे पति को दुबारा घेर लिया। इन सब के बावजूद मैं मां मरियम की शुक्रगुज़ार हूं क्योंकि इन्ही सब के बीच मेरी चौथी बेटी ऐलिस का जन्म हुआ, जो कि एक बड़ी आशीष है।

मां मरियम के बिना पेंतकोस्त

साल 1989 में मैंने पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया। मेरा आध्यात्मिक जीवन करिश्माई प्रार्थना संघ और “आत्मा में जीवन” के सेमिनारों और अलग अलग पल्लियों में आने जाने में गुज़रने लगा। साल 1993 में मैं एक प्रार्थना संघ का नेतृत्व करने लगी और साथ ही साथ कई सेमिनारों का संचालन भी करने लगी। मैं हमेशा से इस बात की आभारी रही हूं कि पवित्र आत्मा से बपतिस्मा मिलने के द्वारा येशु और मेरा रिश्ता और गहरा हो पाया। लेकिन साथ ही साथ मुझे इस बात का भी अहसास हुआ कि इन सेमिनारों में हमारी मां मरियम का तो कोई ज़िक्र ही नही था क्योंकि ये सेमिनार पेंतकोस्तल चर्च द्वारा कराए जा रहे थे। मां मरियम के बिना कोई पेंतकोस्त कैसे अनुभव कर सकता है? जब मैंने औरों के सामने यह मुद्दा उठाया तब मेरे अच्छे दोस्त जॉन वौघन नील ने मुझसे सहमत हो कर पूरा सेमिनार फिर से लिखा। इस सेमिनार का नाम था “जीवित ईश्वर के पुत्र पुत्रियां” और इसमें कुछ प्रार्थनाएं शामिल थी जो लोगों को हमारी स्वर्गीय मां के करीब लाने के लिए बनी थी।

साल 1994 में मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मां मरियम मुझे मेडजुगोरी जाने का आदेश दे रही हैं। और हालांकि उस वक्त बोस्निया में युद्ध जारी था फिर भी मेरी दोस्त ऐनी और मैं एक छोटे समूह के साथ आयरलैंड तक का सफर कर पाई। इस यात्रा ने मेरे आध्यात्मिक जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लाया। यह हमारा सौभाग्य ही था कि हम उस वक्त उस पवित्र गांव में जा पाए जहां मां मरियम के निर्मल हृदय की दसवीं सालगिरह मनाई जा रही थी। फिर हमने पच्चीस मार्च को हिल ऑफ अप्रिशंस को जाने वाले जुलूस में भाग लिया जिसका संचालन चेकोस्लोवेकिया के एक बिशप कर रहे थे जो उस समय पोप जॉन पॉल द्वितीय के खास मित्र थे।

वहां उन्होंने हमें खुद को और हमारे परिवारों को मां मरियम के निर्मल हृदय को समर्पित करने को कहा क्योंकि मां मरियम का हृदय ही हमारे लिए पूरी दुनिया में सबसे सुरक्षित और सुदृढ़ स्थान है। मैं खुश थी क्योंकि वहां मुझे इतनी प्यारी प्रार्थना करने का अवसर मिला। अगले दिन मैं यह देख कर आश्चर्यचकित रह गई कि मुझे वह प्रार्थना मुंह ज़बानी याद हो गई थी और मैं उसे बार बार दोहराए जा रही थी। तब से मेरा यह मानना है कि मां मरियम ने मुझे यह प्रार्थना खुद सौंपी है इसीलिए मैं यह प्रार्थना रोज़ किया करती हूं। मैंने मां मरियम से तैंतीस दिन लगातार प्रार्थना भी की है। यह वह प्रार्थना है जो मोंटफोर्ट के संत लुइस ने लिखी थी और मैं सभी को यह प्रार्थना करने का सुझाव देती हूं। जब हम मां मरियम के हाथों में अपना सबकुछ सौंप देते हैं और उनकी शक्तिशाली मध्यस्थता में विश्वास करते हैं तभी हम उनके मातृ प्रेम का अनुभव कर पाते हैं और सच्ची शांति प्राप्त करते हैं।

एक सौम्य आवाज़

मुझे मां मरियम के इस सानिध्य, इस सहारे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत साल 2016 में पड़ी, जब मेरे छोटे बेटे रूआइरी को ब्रेन ट्यूमर हो गया। उस समय वह सिर्फ तैंतीस साल का हट्टा कट्टा जवान और दो बच्चों का पिता था। मैंने तुरंत मां मरियम से निवेदन किया कि वह उसी तरह मेरे बेटे को अपनी गोद में ले लें जिस तरह क्रूस के नीचे मां मरियम येशु को अपनी गोद में ले कर बैठी थीं। मैंने येशु से भी निवेदन किया कि वह मेरे बेटे को अपनी मां की गोद में देख कर उसे चंगा कर दे। फिर भी कईं डॉक्टरों को दिखाने और खूब इलाज कराने, और कईं लोगों से प्रार्थना कराने के बावजूद भी जुलाई 2017 तक यह निश्चित हो गया था कि कोई चमत्कार उसे बचा नही सकता था। मेरा बेटा मर रहा था। एक शनिवार को मिस्सा के समय मुझे मेरे मन में एक सौम्य आवाज़ सुनाई दी जिसने कहा, “मुझे तुम्हारी अनुमति चाहिए।” मैंने इस बात को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की पर उस आवाज़ ने सौम्यता से फिर कहा “मुझे तुम्हारी अनुमति चाहिए।”

तब तक मुझे यह समझ आ गया था कि यह आवाज़ मां मरियम की थी और वह मुझसे रूआईरी को आज़ाद करने को कह रही थी। मैं बहुत रोई पर फिर मैंने अपने आंसू पोंछ दिए क्योंकि मैं जानती थी कि ईश्वर मेरे बेटे से प्यार करते हैं और वो उसके लिए सब सही ही करेंगे। इसीलिए मैंने मां मरियम को इजाज़त दे दी। हमारी प्यारी मां मरियम कितनी दयालु हैं कि वह हमसे हमारी मर्ज़ी पूछती हैं। कुछ दिनों के बाद मेरा प्यारा बेटा गुज़र गया, लेकिन मैं जानती थी कि वह हमारी स्वर्गिक मां के पास है, और यही बात मुझे सांत्वना दिए जा रही थी। आज उस बात को तीन साल हो गए हैं, और अब मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उसने मुझे यह कृपा दी कि मैं अपना दुख दर्द मां मरियम के साथ बांट सकूं। हम दोनों ही अपने बेटे को खोने के दर्द से गुज़रे हैं। रूआइरी ने दृदीकरण संस्कार के वक्त संत मैक्सिमिलियन कोलबे को अपना सहायक संत चुना था। और उसी महान संत की तरह मेरा बेटा भी मां मरियम को बहुत प्यार करता था। ‘यादकर विनती’ उसकी प्रिय प्रार्थना हुआ करती थी। संत मैक्सिमिलियन ने कहा है, “मां मरियम को हद से ज़्यादा प्यार करने से कभी डरना मत, हिचकिचाना मत, क्योंकि हमारा प्यार हमेशा उस प्यार से कम होगा, जितना प्यार येशु मां मरियम से करते हैं।” उन्होंने कितनी सही बात कही है, है ना? अपना हाथ मां मरियम के हाथ में दे दीजिए और उन्हें आपको स्वर्ग की ओर ले चलने दीजिए।

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Patricia Dowey

Patricia Dowey is a retired Primary School teacher. As a mother of four children and eleven wonderful grandchildren she lives in Dundee, Scotland.

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