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जब उस छोटी लड़की ने अपनी गतिशीलता तथा देखने, सुनने, बोलने और छूने की क्षमता खो दी, तो उसे ऐसी कौन सी प्रेरणा मिल रही थी कि वह अपने जीवन को ‘मीठा’ बता रही है?
छोटी बेनेडेटा ने सात साल की उम्र में अपनी डायरी में लिखा: “यह ब्रह्मांड बहुत ही मोहक है! इस में भरपूर जीवन जीना बहुत बढ़िया है।” दुर्भाग्य से, इस अकलमंद और खुशमिजाज़ लड़की को बचपन में पोलियो हो गया, जिससे उसका शरीर अपंग हो गया, लेकिन दुनिया की कोई भी ताकत उसकी जिंदादिली को अपंग नहीं कर सकी!
बेनेडेटा बिआंची पोरो का जन्म 1936 में इटली के फोर्ली में हुआ था। किशोरावस्था में, वह सुनने की क्षमता खोने लगी, लेकिन इसके बावजूद, उसने मेडिकल स्कूल में प्रवेश लिया, जहाँ उसने अपने प्रोफेसरों के होठों को पढ़कर मौखिक परीक्षाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उसे एक मिशनरी डॉक्टर बनने की प्रबल इच्छा थी, लेकिन पाँच साल की मेडिकल ट्रेनिंग के बाद और अपनी डिग्री पूरी करने से सिर्फ़ एक साल पहले, बढ़ती बीमारी के कारण उसे अपनी पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। बेनेडेटा ने स्वयं अपनी बीमारी का निदान ढूंढ लिया कि उसकी बीमारी का नाम न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस है। इस क्रूर बीमारी के कई पुनरावृत्तियाँ हैं, और बेनेडेटा के मामले में, इसने उसके शरीर के तंत्रिका केंद्रों पर हमला किया, उन तंत्रिका केंद्रों पर ट्यूमर बना और धीरे-धीरे पूर्ण बहरापन, अंधापन और बाद में यह बीमारी उसके पक्षाघात का कारण बना।
जैसे-जैसे बेनेडेटा की दुनिया सिकुड़ती गई, उसने असाधारण साहस और पवित्रता का प्रदर्शन किया और कई लोग उस के पास उससे सलाह और मध्यस्थता की तलाश में मिलने आए। वह तब संवाद करने में सक्षम थी जब उसकी माँ अपनी अंगुली से उसकी बाईं हथेली में इतालवी भाषा में लिखती थी। उसके शरीर के उन कुछ क्षेत्रों में से एक उसकी बाएँ हथेली थी जो कार्यात्मक थी। उसकी माँ बेनेडेटा की बाईं हथेली पर विभिन्न पत्र, विभिन्न संदेश और धर्मग्रंथों के कुछ हिस्से बड़ी सावधानी से लिखती थी, और बेनेडेटा अपनी आवाज़ धीमी होने के बावजूद मौखिक रूप से फुसफुसाकर उत्तर देती थी।
बेनेडेटा की सबसे करीबी विश्वासपात्रों में से एक मारिया ग्राज़िया ने कहा, “वे दस और पंद्रह के समूहों में आते-जाते थे। दुभाषिए का कार्य कर रही अपनी माँ के सहयोग से, बेनेडेटा हर एक के साथ संवाद करने में सक्षम थी। ऐसा लगता था जैसे वह हमारी अंतरतम आत्माओं को अत्यंत स्पष्टता से पढ़ सकती थी, भले ही वह हमें सुन या देख नहीं सकती थी। मैं उसे हमेशा ईश्वर के वचन को और अपने भाई बहनों को स्वीकार करने के लिए बढाए गए उसके हाथों के साथ तैयार व्यक्ति के रूप में याद रखूँगी।” (बियॉन्ड साइलेंस, लाइफ डायरी लेटर्स ऑफ़ बेनेडेटा बिआंची पोरो)
ऐसा नहीं है कि जो बीमारी बेनेडेटा को एक मेडिकल डॉक्टर बनने की क्षमता से वंचित कर रही थी, उस बीमारी पर उसने पीड़ा या क्रोध का अनुभव नहीं किया था, लेकिन इसे स्वीकार करने में, वह एक अलग तरह की डॉक्टर बन गई, आत्मा की एक प्रकार की सर्जन। वह वास्तव में एक आध्यात्मिक डॉक्टर थी। अंत में, बेनेडेटा जिस प्रकार की चिकित्सक बनना चाहती थी, उससे बड़ी चिकित्सक वह बन गयी। उसका जीवन उसके हाथ की हथेली तक सिकुड़ गया था, यह परम पवित्र संस्कार की रोटी से बड़ी नहीं थी – और फिर भी, एक पवित्र संस्कार की रोटी की तरह, यह उससे कहीं अधिक शक्तिशाली हो गया था जितनी उसने कभी सोचा था उससे बहुत अधिक।
परम पवित्र संस्कार में येशु छिपा हुआ, छोटा, मौन और निर्बल भी है, लेकिन वह हमारे लिए एक सदाबहार दोस्त है। उसी तरह बेनेडेटा के जीवन और परम पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु के बीच के संबंध को नज़रअंदाज़ करना असंभव है।
अपने जीवन के अंत में, उसने एक ऐसे युवक को पत्र लिखा जो इसी तरह की बीमारी से पीड़ित था:
“क्योंकि मैं बहरी और अंधी हूँ, इसलिए मेरे लिए चीज़ें जटिल हो गई हैं … फिर भी, मेरे कलवारी में, मुझे आशा की कमी नहीं है। मुझे पता है कि मेरी इस यात्रा के अंत में, येशु मेरा इंतज़ार कर रहे हैं। पहले मेरी कुर्सी पर, और अब मेरे बिस्तर पर जहाँ मैं अब रहती हूँ, मैंने मनुष्यों की तुलना में अधिक ज्ञान पाया है – मैंने पाया है कि ईश्वर मौजूद है, कि वह प्रेम, विश्वास, आनंद, निश्चिन्तता है, युगों के अंत तक … मेरे दिन आसान नहीं हैं। वे कठिन हैं। लेकिन मीठे हैं क्योंकि येशु मेरे साथ हैं, मेरे दु:खों के साथ, और वह मुझे मेरे अकेलेपन में अपनी मिठास और अंधेरे में रोशनी देते हैं। वह मुझ पर मुस्कुराते हैं और मेरे सहयोग को स्वीकार करते हैं।” (डोम एंटोनी मैरी, ओ.एस.बी. द्वारा लिखित आदरणीय बेनेडेटा बियानचो पोरो से)
बेनेडेटा का निधन 23 जनवरी, 1964 को हुआ था। वह 27 वर्ष की थीं। 23 दिसंबर, 1993 को संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें सम्मानित किया और 14 सितंबर, 2019 को संत पापा फ्रांसिस ने उन्हें संत घोषित किया।
संतों द्वारा कलीसिया को दिए जाने वाले महान उपहारों में से एक वह तस्वीर है जिसमे सद्गुण स्पष्ट दिखता है, जो अविश्वसनीय रूप से कठिन परिस्थितियों में भी स्पष्ट दिखता है। हमें अपने को मज़बूत करने के लिए संतों के जीवन में ‘खुद को देखने’ की ज़रूरत है।
धन्य बेनेडेटा वास्तव में हमारे समय के लिए पवित्रता का एक आदर्श है। वह एक सम्मोहक अनुस्मारक है कि गंभीर सीमाओं से भरा जीवन भी दुनिया में आशा और मनपरिवर्तन के लिए एक शक्तिशाली उत्प्रेरक हो सकता है और यह भी याद दिलाता है कि प्रभु हर दिल की गहरी इच्छा को जानता है और उसे अक्सर आश्चर्यजनक तरीकों से पूरा करता है।
हे धन्य बेनेडेटा, तेरी दुनिया परम प्रसाद की रोटी जैसी छोटी हो गई। तू गतिहीन, बहरी और अंधी थीं, और फिर भी तू ईश्वर और धन्य माता मरियम के प्रेम की एक शक्तिशाली गवाह थीं। पवित्र संस्कार में येशु छिपे हुए और छोटे भी हैं, मौन, गतिहीन और यहाँ तक कि निर्बल भी हैं – और फिर भी सर्वशक्तिमान हैं, हमेशा हमारे लिए मौजूद हैं। हे बेनेडेटा, कृपया मेरे लिए प्रार्थना कर, कि जिस तरह से येशु मेरा उपयोग करना चाहता है, मैं येशु के साथ सहयोग करूँ, जैसा कि तूने किया। मुझे सर्वशक्तिमान पिता को मेरे छोटेपन और अकेलेपन के माध्यम से भी बोलने की अनुमति देने की कृपा प्रदान की जाए, ताकि ईश्वर की महिमा और आत्माओं का उद्धार हो। आमेन।
लिज़ केली स्टैंचिना is the award-winning author of more than ten books. She holds advanced degrees in Catholic Studies and Creative Writing and travels the world speaking and leading retreats.
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