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इसका अभ्यास करें और आपको कभी इस पर पछतावा नहीं होगा …
बीते आगमन काल के अंतिम दिनों में एक अग्रसूत्र ने मुझे आकर्षित किया: “आइए हम उसका चेहरा देखें और हम मुक्त किये जाएंगे।” हां, मैंने प्रार्थना की, हे येशु, मुझे आपका चेहरा देखने दें। मैं मरियम और जोसेफ के बारे में सोचती हूं जैसे वे पहली बार तुझे अपने गोद में लिए हुए हैं, बड़ी कोमलता से तुझे पकडे हुए हैं, तेरे चेहरे को देख रहे हैं और उस चेहरे को चूम रहे हैं, फिर वे तुझे पुआल पर लिटाकर गरम कम्बल से तुझे ढक रहे हैं। तू कितना सुंदर है, तुम्हारी आंखें खुलने के पहले ही तू मुझे देख रहा है।
उन दिनों मैंने कार्मेल मठ की साध्वी, सिस्टर इम्माकुलाता द्वारा लिखित एक किताब “द पाथवेज ऑफ प्रेयर: कम्युनियन विथ गॉड” (माउंट कार्मेल हर्मिटेज द्वारा 1981 में प्रकाशित) पढ़ी, और यह मेरे दिल को भी छू गया। उन्होंने लिखा कि, येशु, हम तेरे लिए जिस प्यार को औपचारिक प्रार्थना के समय में और मिस्सा बलिदान के समय, तुझे अपने शरीर और आत्मा में प्राप्त करते हैं, अनुभव करते है, उस प्यार को हम कैसे बनाए रख सकते हैं। मैंने इस बारे में उत्सुकता से पढ़ा, क्योंकि मैं इस इच्छा से जूझ रही थी कि पास की रसोई में खाने या पीने के लिए कोई चीज़ मिल जाए। जैसे ही मैं अपने प्रार्थना कक्ष में बैठी, मुझे उस कहावत की सच्चाई का एहसास हुआ जो किसी ने अपने रेफ्रिजरेटर पर पोस्ट की थी: “आप जो खोज रहे हैं वह यहाँ नहीं है।” हां, मैं अपने फ्रिज में जाने के बजाय तेरी ओर मुड़ सकती हूं, है ना? इसलिए मैं पढ़ना चाहती थी कि मेरे प्यार को फिर से जगाने के बारे में सिस्टर इम्माकुलाता का क्या विचार है।
उन्होंने पुष्टि की: “ईश्वर के साथ उनकी जीवित उपस्थिति में लगातार बातचीत करना आत्मा को बड़ी ऊर्जा देती है। यह आत्मा में गर्मी और रक्त प्रवाहित करता है … विश्वास में ईश्वर के साथ इस प्रेमपूर्ण स्मरण के अभ्यास के लिए एक बड़ी समर्पित निष्ठा होनी चाहिए। उन्होंने दिखाया कि कैसे “इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि ईश्वर पर यह आंतरिक नज़र, चाहे वह कितना भी थोड़े समय के लिए हो, हर बाहरी क्रिया से पहले होनी चाहिए और उसी से अंत भी होना चाहिए”। उन्होंने यह साझा करना शुरू किया कि कैसे महान रहस्यदर्शी, अविला की संत तेरेसा ने अपनी साध्वी बहनों के साथ इस बारे में बात की:
यदि वह कर सकती है, तो उसे प्रतिदिन कई बार मनन चिंतन करने दें।” संत तेरेसा ने समझा कि यह पहली बार में आसान नहीं होगा, लेकिन “यदि आप इसे एक वर्ष के लिए अभ्यास करते हैं, या शायद केवल छह महीने के लिए, तो आप इस बड़े लाभ और खज़ाने को प्राप्त करने में सफल होंगे।” संत लोग हमें सिखाते हैं कि “ईश्वर के साथ यह निरंतर एकात्मकता पवित्रता के उच्च स्तर पर शीघ्रता से पहुंचने का सबसे प्रभावशाली साधन है।” ये प्रेमपूर्ण कार्य आत्मा को पवित्र आत्मा के स्पर्श की जागरूकता के लिए व्यवस्थित करते हैं और इसे आत्मा में ईश्वर के उस प्रेमपूर्ण संचार के लिए तैयार करते हैं जिसे हम मनन चिंतन कहते हैं … जो हमें हर जगह और हमेशा प्रार्थना करते रहने के ख्रीस्तीय दायित्व को पूरा करने में सक्षम बनाता है।
ये कुछ तरीके हैं जिनसे मैं इस अभ्यास को शामिल करती आ रही हूँ। सीढ़ियों से ऊपर और नीचे जाते समय, या यहाँ तक कि कुछ रास्तों पर चलते समय, मैं अपने कदमों की लय में कहती हूँ: “येशु, मरियम और यूसुफ, मैं तुमसे प्यार करती हूँ। आत्माओं को बचाओ।“ जब मैं भोजन के लिए बैठती हूं, तो मैं येशु से मेरे साथ बैठने के लिए कहती हूं। अपना भोजन समाप्त करते समय, मैं उन्हें धन्यवाद देती हूँ। सबसे कठिन अभ्यास जब किसी भी पकवान मुंह में रखने से पहले प्रार्थना करना था, और जब मैं भोजन नहीं कर रही थी, या भोजन के लिए तैयारी कर रही थी, तब प्रार्थना करना कठिन था; मैंने इसे चैसा काल के लिए एक त्यागपूर्ण अभ्यास के रूप में लिया, और अंत में इसे एक नई आदत बना रही हूं।
जब मैं किसी गिरजाघर या प्रार्थनालय से गुजरती हूं, तो मैं कहती हूं “हे येशु, परम प्रसाद में तेरी उपस्थिति के लिए धन्यवाद। कृपया इस पवित्र स्थान से सभी को आशीर्वाद दे। चालीसे के दौरान या शुक्रवार को किसी को मिठाई देते समय, मैं किसी व्यक्ति के लिए या बड़ी विपत्ति में पड़े किसी देश के लिए प्रार्थना करती हूं।
सिस्टर इम्माकुलाता हमें आश्वस्त करती हैं: “परमेश्वर स्वयं को प्रकट करेंगा। वह ऐसा करने के लिए प्यासा है, परन्तु वह तब तक नहीं प्रकट कर सकता जब तक कि हृदय और मन उसे प्राप्त करने के लिए तैयार न हों। हमारा प्रार्थना का जीवन वास्तव में तब तक शुरू नहीं होता जब तक कि हम एक शुद्ध अंतरात्मा की, वैराग्य की और उनकी उपस्थिति में रहने के अभ्यास की नींव नहीं डालते हैं
“सच्ची स्वतंत्रता स्वार्थ से मुक्ति है। ईश्वर की उपस्थिति में निरंतर स्मरण और निरंतर प्रार्थना की आदत स्वयं और स्वार्थ के प्रति मर जाने के उस डर का इलाज है जो हममें इतनी गहराई से समाया हुआ है … प्रार्थना और आत्म-त्याग इतने अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं … क्योंकि येशु का प्रेम एक व्यक्ति को खुद को तुच्छ समझने केलिए उसे तैयार करता है। यह अध्याय इमीटेशन ऑफ़ क्राइस्ट किताब के एक उद्धरण के साथ समाप्त होता है: “विनम्र और शांतिपूर्ण बनो और येशु तुम्हारे साथ रहेगा। भक्ति और शान्ति में रहें और येशु आपके साथ रहेगा … आपको नग्न होना चाहिए और एक शुद्ध हृदय को परमेश्वर के पास ले जाना चाहिए, यदि आप आराम से ध्यान देंगे तो आप देखेंगे कि प्रभु कितना प्यारा है” (पुस्तक II, अध्याय 8)।
जैसा कि मैं उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती हूं जहां मैं पहले प्रार्थना किए बिना काम में लिप्त हो रही हूं, मैं खुद को प्रभु के करीब लाने के लिए एक प्रार्थना खोजने के लिए प्रेरणा महसूस करती हूं जिस प्रभु को मैं प्यार करती हूं, सेवा करती हूं और हर दिन पहले से ही घंटों तक प्रार्थना करती हूं। येशु, हां, कृपया मुझे तेरी उपस्थिति में रहने के अभ्यास में बढ़ने, तेरे चेहरे को अधिक से अधिक देखने की कोशिश में बढ़ने में मदद कर ”।
Sister Jane M. Abeln SMIC is a Missionary Sister of the Immaculate Conception. She taught English and religion in the United States, Taiwan, and the Philippines and has been in the Catholic Charismatic Renewal for 50 years.
प्रश्न – मुझे मृत्यु से डर लगता है। हालाँकि मैं येशु में विश्वास करता हूँ और स्वर्ग पर आशा करता हूँ, फिर भी मैं अज्ञात के प्रति चिंता से भरा हुआ हूँ। मैं मृत्यु के इस डर को कैसे काबू कर सकता हूँ? उत्तर – कल्पना करें कि आप एक काल कोठरी में पैदा हुए हैं और बाहर की दुनिया को देखने में असमर्थ हैं। एक दरवाज़ा आपको बाहरी दुनिया से अलग करता है - सूरज की रोशनी, ताज़ी हवा, मौज-मस्ती... लेकिन आपको इन उज्जवल, सुंदर चीज़ों की कोई अवधारणा नहीं है, क्योंकि आपकी दुनिया केवल इस अंधेरा, सड़न से भरा हुआ स्थान है। कभी-कभी, एक व्यक्ति दरवाजे से बाहर चला जाता है, कभी वापस नहीं आता। आप उन्हें याद करते हैं, क्योंकि वे आपके दोस्त थे और आप अपनी पूरी ज़िंदगी उनसे परिचित थे! अब, एक पल के लिए कल्पना करें कि बाहर से कोई अंदर आता है। वह आपको उन सभी अच्छी चीजों के बारे में बताता है जो आप इस काल कोठरी के बाहर अनुभव कर सकते हैं। वह इन चीजों के बारे में जानता है, क्योंकि वह खुद वहां रहा है। चूँकि वह आपसे प्यार करता है, आप उस पर भरोसा कर सकते हैं। वह आपसे वादा करता है कि वह आपके साथ दरवाजे से होकर चलेगा। क्या आप उसका हाथ थामेंगे? क्या आप खड़े होंगे और उसके साथ दरवाजे से होकर चलेंगे? यह डरावना होगा, क्योंकि आप नहीं जानते कि बाहर क्या है, लेकिन आप वह साहस रख सकते हैं जो वह जानता है। यदि आप उसे जानते हैं और उससे प्यार करते हैं, तो आप उसका हाथ थामेंगे और दरवाजे से होकर सूरज की रोशनी में, बाहर की भव्य दुनिया में चलेंगे। यह डरावना है, लेकिन इसमें भरोसा और उम्मीद है। हर मानव संस्कृति को अज्ञात के डर से जूझना पड़ा है, विशेषकर जब हम मृत्यु के उस अंधेरे दरवाजे से गुजरते हैं। हमें अपने आप से, यह नहीं पता कि पर्दे के पीछे क्या है, लेकिन हम किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो दूसरी तरफ से हमें यह प्रकट करने के लिए आया है कि अनंत काल कैसा है। और उसने क्या प्रकट किया है? उसने कहा है कि जो बचाए गए हैं “वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने खड़े रहते और दिन-रात उसके मंदिर में उसकी सेवा करते हैं। वह, जो सिंहासन पर विराजमान है, इनके साथ निवास करेगा। इन्हें फिर कभी न तो भूखे लगेगी और न प्यास, इन्हें न तो धुप से कष्ट होगा और न किसी प्रकार के ताप से; क्योंकि सिंहासन के सामने विद्यमान मेमना इनका चरवाहा होगा, और इन्हें संजीवन जल के स्रोत के पास ले चलेगा, और परमेश्वर उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा।” (प्रकाशना ग्रन्थ 7:15-17) हमें विश्वास है कि अनंत जीवन परिपूर्ण प्रेम, भरपूर जीवन और परिपूर्ण आनंद है। वास्तव में, यह इतना अच्छा है कि “ईश्वर ने अपने भक्तों के लिए जो तैयार किया है, उसको किसी ने कभी देखा नहीं, किसी ने सुना नहीं, और न कोई उसकी कल्पना ही कर पाया।” (1 कुरिन्थी 2:9) लेकिन क्या हमें कोई निश्चितता है कि हम मुक्ति पाएँगे? क्या हम उस स्वर्गीय अदन वाटिका में न पहुँच पाएँ, ऐसी कोई संभावना नहीं है ? हाँ, यह सच है कि इसकी गारंटी नहीं है। फिर भी, हम आशा से भरे हुए हैं “क्योंकि "परमेश्वर चाहता है कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें" (1 तिमथी 2:3-4)। अपने उद्धार की जितनी इच्छा आप रखते हैं उससे ज़्यादा वह आपके लिए इच्छा रखता है! इसलिए, वह हमें स्वर्ग में ले जाने के लिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य में जो कुछ संभव है, सब कुछ करेगा। उसने आपको पहले ही निमंत्रण दे दिया है, जो उसके पुत्र के रक्त में लिखा और हस्ताक्षरित है। यह हमारा विश्वास है, जो हमारे जीवन में जीया जाता है, जो इस तरह के निमंत्रण को स्वीकार करता है। यह सच है कि हमारे पास निश्चितता नहीं है, लेकिन हमारे पास आशा है, और "आशा व्यर्थ नहीं होती" (रोमी 5:5)। जो "पापियों को बचाने के लिए संसार में आया था" (1 तिमथी 1:15), उस उद्धारकर्ता की शक्ति को जानते हुए, विनम्रता और भरोसे के साथ चलने के लिए हमें कहा गया है। व्यावहारिक रूप से, हम कुछ तरीकों को अपनाकर मृत्यु के भय पर विजय पा सकते हैं। - सबसे पहले, स्वर्ग के बारे में परमेश्वर के वादों पर ध्यान दें। उसने धर्म ग्रंथों में कई अन्य बातें कही हैं जो हमें उसके द्वारा तैयार किए गए सुंदर अनंत काल को प्राप्त करने की उत्साहित उम्मीद से भर देती हैं। हमें स्वर्ग की चाहत से प्रज्वलित होना चाहिए, जो इस गिरे हुए, टूटे हुए संसार को पीछे छोड़ने के डर को कम करेगा। - दूसरा, परमेश्वर की भलाई और आपके प्रति उसके प्रेम पर ध्यान दें। वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा, यहाँ तक कि अज्ञात में जाने पर भी। - अंत में, जब पूर्व में आपको नई-नई और अज्ञात इलाकों में प्रवेश करना पड़ा है - कॉलेज जाना, शादी करना, घर खरीदना, जिन तरीकों से वह आपके साथ मौजूद रहा है, उन तरीकों और मार्गों पर विचार करें । पहली बार कुछ करना डरावना हो सकता है क्योंकि अज्ञात का डर होता है। लेकिन अगर परमेश्वर इन नए अनुभवों में मौजूद रहा है, तो जिस अनंत जीवन में प्रवेश करने केलिए आपने लंबे समय से इच्छा की है, जब आप उस मृत्यु के द्वार से उस नए जीवन में प्रवेश करेंगे, तब वह और भी अधिक आपका हाथ थामेगा!
By: फादर जोसेफ गिल
Moreअगर मैं उस अंधकार से नहीं गुज़री होती, तो मैं आज जहाँ हूँ, वहाँ नहीं होती। मेरे माता-पिता वास्तव में चाहते थे कि उनका भरापूरा परिवार हो। लेकिन मेरी माँ 40 वर्ष की आयु तक गर्भ धारण नहीं कर पाई। मैं उनकी चमत्कारी बच्ची थी। मैं माँ के जन्मदिन पर पैदा हुई थी। माँ एक बच्चा पाने के लिए एक साल से निवेदन करती हुई विशेष नौरोज़ी प्रार्थना (नोवेना) कर रही थी। एक साल की नौरोज़ी प्रार्थना पूरा करने के ठीक उसी दिन मेरा जन्म हुआ था। मेरे जन्म के एक साल बाद प्रभु ने उपहार में एक छोटा भाई भी दिया। मेरा परिवार नाममात्र कैथलिक था; हम रविवार के मिस्सा बलिदान में जाते थे और पवित्र संस्कार प्राप्त करते थे, लेकिन इससे ज़्यादा कुछ नहीं था। जब मैं लगभग 11 या 12 वर्ष की थी, तो मेरे माता-पिता ने कलीसिया से मुंह मोड़ लिया और मेरे विश्वास-जीवन में अविश्वसनीय रूप से लंबा विराम लग गया। तड़पती हुई पीड़ा किशोरावस्था का दौर दबाव से भरा हुआ था, जिनमें से बहुत कुछ मैंने खुद अपने ऊपर थोपा था। मैं खुद की तुलना दूसरी लड़कियों से करती थी; मैं अपनी शक्ल-सूरत से खुश नहीं थी। मैं बहुत ज़्यादा आत्म-चेतन और चिंतित रहती थी। हालाँकि मैं पढ़ाई में अव्वल थी, लेकिन मेरा स्कूली जीवन मेरे लिए मुश्किल का दौर था क्योंकि मैं बहुत महत्वाकांक्षी थी। मैं आगे बढ़ना चाहती थी - लोगों को दिखाना चाहती थी कि मैं सफल और बुद्धिमान हो सकती हूँ। हमारे परिवार के पास ज़्यादा पैसे नहीं थे, इसलिए मैंने सोचा कि मुझे अच्छी पढ़ाई करके और अच्छी नौकरी पाना चाहिए, जिससे सब समस्याओं का समाधान हो जाएगा। इसके बजाय, मैं और भी उदास होती गई। मैं खेलकूद और जश्न-समारोहों में जाती, लेकिन अगले दिन उठकर मैं खुद को खाली महसूस करती। मेरे कुछ अच्छे दोस्त थे, लेकिन उनके भी अपने संघर्ष थे। मुझे याद है कि मैं उनका साथ देने की कोशिश करती थी और आखिर में मैं सवाल उठाने लगती थी कि मेरे आस-पास के सभी दुखों के पीछे का कारण क्या है। मैं खोई हुई थी, और इस उदासी ने मुझे खुद को दुनिया से अलग करके बंद रहने और खुद में सिमटने पर मजबूर कर दिया। जब मैं लगभग 15 साल की थी, तो मुझे खुद को नुकसान पहुँचाने की आदत पड़ गई; जैसा कि मुझे बाद में पता चला, उस उम्र में, मेरे पास परिपक्वता नहीं थी या मैं जो महसूस कर रही थी, उसके बारे में बोलने की क्षमता नहीं थी। जैसे-जैसे दबाव बढ़ता गया, मैं कई बार आत्महत्या के विचारों में डूब गयी। एक बार अस्पताल में भर्ती होने के दौरान, डॉक्टरों में से एक ने मुझे बहुत पीड़ा में देखा और पूछा: "क्या तुम ईश्वर में विश्वास करती हो? क्या तुम मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करती हो?" मुझे लगा कि यह सबसे अजीब सवाल था, लेकिन उस रात, मैं ने इस सवाल को याद करके इस पर विचार किया। तभी मैंने मदद के लिए ईश्वर को पुकारा: "हे ईश्वर, अगर तू मौजूद है, तो कृपया मेरी मदद कर। मैं जीना चाहती हूँ - मैं अपना जीवन अच्छे कामों में बिताना चाहती हूँ, लेकिन मैं खुद से प्यार करने में भी सक्षम नहीं हूँ। मैं जो कुछ भी करती हूँ, उन सबका कोई मतलब नहीं निकाल पाती हूँ, इसलिए मैं उदासी और दुःख में टूटकर बिखर जाती हूँ।" मदद का हाथ मैंने माँ मरियम से बात करना शुरू किया, उम्मीद है कि शायद वह मुझे समझ सकें और मेरी मदद कर सकें। कुछ ही समय बाद, मेरी माँ की सहेली ने मुझे मेजुगोरे की तीर्थयात्रा पर जाने के लिए आमंत्रित किया। मैं वास्तव में ऐसा नहीं करना चाहती थी, लेकिन एक नए देश और अच्छे मौसम को देखने की जिज्ञासा के कारण मैंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया। मैं रोज़री माला की प्रार्थना कर रहे लोगों, उपवास करने वाले लोगों, पहाड़ों पर चलने और मिस्सा में जाने वाले लोगों से घिरी हुई थी, मेरा मन उसमे रम नहीं पा रहा था, लेकिन साथ ही, मैं थोड़ी उत्सुक भी थी। यह कैथलिक युवाओं के उत्सव का समय था, और वहाँ लगभग 60,000 युवा लोग थे, जो हर दिन रोज़री माला की प्रार्थना करते हुए मिस्सा और आराधना में भाग ले रहे थे; इसलिए नहीं कि उन्हें मजबूर किया गया था, बल्कि खुशी से, शुद्ध इच्छा से और बड़े लगन के साथ वे भाग ले रहे थे। मैं बड़े आश्चर्य के साथ सोचने लगी कि क्या इन लोगों के अपने सही परिवार हैं, जो उनके लिए विश्वास करने, ताली बजाकर भजनों को गाने, नृत्य करने और यह सब भक्ति के कार्य को करने में वास्तव में उनके लिए आसान बना रहा था। सच कहूँ तो, मैं उन युवाओं जैसी खुशी के लिए तरस रही थी! जब हम उस तीर्थयात्रा पर थे, तो हमने पास के सेनाकोलो समुदाय में कुछ लड़कियों और लड़कों की गवाही सुनी, और उनकी गवाहियों ने वास्तव में मेरे लिए सब कुछ बदल डाला। 1983 में, एक इतालवी साध्वी ने सेनाकोलो समुदाय की स्थापना की थी ताकि उन युवाओं की मदद की जा सके जिनके जीवन ने गलत मोड़ ले लिया था। अब, यह संगठन दुनिया भर के कई देशों में पाया जा सकता है। मैंने स्कॉटलैंड की एक लड़की की कहानी सुनी जिसे नशीली दवाओं की समस्या थी; उसने अपनी जान लेने की भी कोशिश की थी। मैंने खुद से कहा: "अगर वह इतनी खुशी से रह सकती है, अगर वह उन सारे दर्द और पीड़ा से बाहर आ सकती है और वास्तव में ईश्वर में विश्वास कर सकती है, तो शायद इसमें मेरे लिए भी ईश्वर की कुछ योजना होगी।" मेजुगोरे में रहने के दौरान मुझे एक और बड़ी कृपा मिली, वह यह कि मैं कई सालों बाद पहली बार पाप स्वीकार संस्कार के लिए गयी। मुझे नहीं पता था कि क्या उम्मीद करनी है। लेकिन अंत में पाप स्वीकार संस्कार में जाकर मैं ने दूसरों और खुद को चोट पहुँचाने वाली सभी बातों के बारे में ईश्वर के सम्मुख कहा तो मैंने अनुभव किया कि मेरे कंधों से बहुत बड़ा बोझ उतर गया है। मुझे बस शांति महसूस हुई, और मैं एक नई शुरुआत करने के लिए पर्याप्त रूप से स्वच्छ महसूस कर रही थी। मैं वापस आयी और आयरलैंड के एक विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, लेकिन मुझे पर्याप्त समर्थन नहीं पाने के कारण, मैं फिर से अस्पताल में आ गयी। रास्ते की खोज यह महसूस करते हुए कि मुझे मदद की ज़रूरत है, मैं इटली वापस गयी और सेनाकोलो समुदाय का हिस्सा बन गयी। यह आसान नहीं था। सब कुछ नया था—भाषा, प्रार्थना, अलग-अलग व्यक्तित्व, संस्कृतियाँ—लेकिन इसमें एक सच्चाई थी। कोई भी मुझे किसी बात के लिए मनाने की कोशिश नहीं कर रहा था; हर कोई प्रार्थना, काम और सच्ची दोस्ती में अपना जीवन जी रहा था, और यही उन्हें चंगाई प्रदान कर रहा था। वे शांति और आनंद से जी रहे थे, और यह बनावटी नहीं बल्कि वास्तविक था। मैं हर दिन, पूरे दिन उनके साथ थी—मैंने इसे पूरा का पूरा अनुभव किया, आनंद लिया। मैं यही चाहती थी! उन दिनों जिस चीज़ ने वास्तव में मेरी मदद की, वह थी आराधना। मुझे नहीं पता कि मैं कितनी बार परम पवित्र संस्कार के सामने रोयी। कोई चिकित्सक मुझसे बात नहीं कर रहा था, कोई भी मुझे कोई दवा देने की कोशिश नहीं कर रहा था, बस ऐसा लग रहा था कि मैं शुद्ध हो रही हूँ। समुदाय में भी, ईश्वर के अलावा कुछ भी खास नहीं था। मैंने दूसरों की सेवा करना शुरू कर दिया, और इसी ने मुझे अपने अवसाद से बाहर निकलने में मदद की। जब तक मैं अपने आप को, अपने घावों और समस्याओं को देखती रही, मैं खुद को और भी बड़े गड्ढे में धकेलती रही। सामुदायिक जीवन ने मुझे खुद से बाहर आने, दूसरों की ओर देखने और उन्हें आशा देने की कोशिश करने के लिए मजबूर किया, वह आशा जो मुझे मसीह में मिल रही थी। जब अन्य युवा लोग समुदाय में आते थे, युवा लड़कियाँ जिनकी समस्याएँ मेरी जैसी या कभी-कभी उससे भी बदतर होती थीं, तो इससे मुझे बहुत मदद मिली। मैंने उनकी देखभाल की, मैंने एक बड़ी बहन बनने, कभी-कभी एक माँ भी बनने की कोशिश की। मैंने सोचना शुरू किया कि जब मैं खुद को चोट पहुँचा रही होती या जब मैं दुखी होती, तो मेरी माँ ने मेरे साथ क्या अनुभव किया होगा। अक्सर एक तरह की असहायता की भावना होती है, लेकिन विश्वास के साथ, भले ही आप अपने शब्दों से किसी की मदद न कर सकें, तो भी आप अपने घुटनों पर खड़े होकर प्रार्थना के द्वारा मदद कर सकते हैं। मैंने प्रार्थना के द्वारा बहुत सी लड़कियों में और अपने जीवन में बदलाव देखा है। यह कोई रहस्यपूर्ण बात नहीं है या ऐसा कुछ नहीं है जिसे मैं ईशशास्त्र के आधार पर समझा सकूं, लेकिन माला विनती, अन्य प्रार्थना और संस्कारों के प्रति निष्ठा ने मेरा और कई अन्य लोगों का जीवन बदल दिया है, और इस से हमें जीने की एक नई इच्छा मिली है। इस ख़ुशी को आगे बढ़ाते हुए मैं नर्सिंग में अपना करियर बनाने के लिए आयरलैंड लौटी; वास्तव में, करियर से ज़्यादा, मुझे गहराई से लगा कि मैं अपना जीवन इसी तरह बिताना चाहती हूँ। मैं अब युवा लोगों के साथ रह रही हूँ, जिनमें से कुछ मेरी उम्र के जैसे ही हैं - वे आत्म-क्षति, अवसाद, चिंता, मादक द्रव्यों के सेवन या अशुद्धता से जूझ रहे हैं। मुझे लगता है कि उन्हें यह बताना ज़रूरी है कि ईश्वर ने मेरे जीवन में क्या किया, इसलिए कभी-कभी दोपहर के भोजन के दौरान, मैं उनसे कहती हूँ कि अगर मुझे विश्वास न हो कि बीमारी के बाद मृत्यु से ज़्यादा जीवन में कुछ और भी है, तो मैं वास्तव में यह काम नहीं कर पाऊँगी, सभी दुख और दर्द नहीं देख पाऊँगी। लोग अक्सर मुझसे कहते हैं: “ओह, तुम्हारा नाम जॉय है, यह तुम पर बहुत सूट करता है; तुम बहुत खुश और मुस्कुराती रहती हो।” मैं अंदर ही अंदर हँसती हूँ: “काश तुम्हें पता होता कि यह कहाँ से आया है!” मेरी खुशी दुख से पैदा हुई ख़ुशी है; इसलिए यह सच्ची खुशी है। यह तब भी बनी रहती है जब दर्द होता है। और मैं चाहती हूँ कि युवा लोगों को भी यही खुशी मिले क्योंकि यह सिर्फ़ मेरी ख़ुशी नहीं है, बल्कि यह ईश्वर से मिलने वाली खुशी है, इसलिए हर कोई इसका अनुभव कर सकता है। मैं सिर्फ़ ईश्वर की इस असीम खुशी को बाँटना चाहती हूँ ताकि दूसरे लोग जान सकें कि आप दर्द, दुख और कठिनाइयों से गुज़र सकते हैं और फिर भी हमारे पिता के प्रति आभारी और आनंदित होकर इससे बाहर निकल सकते हैं।
By: जॉय बर्न
Moreमैंने अपनी पढ़ाई में सफलता के लिए प्रभु से संपर्क किया, लेकिन प्रभु यहीं नहीं रुके... अपने हाई स्कूल के वर्षों के दौरान, मैंने आस्था और शैक्षणिक विकास की एक उल्लेखनीय यात्रा का अनुभव किया। एक धर्मनिष्ठ कैथलिक के रूप में, मेरा दृढ़ विश्वास था कि ईश्वर की उपस्थिति हमेशा मेरे साथ थी, खासकर जब बात मेरी पढ़ाई की आती थी। मुझे एक खास सेमेस्टर याद है; मैं परीक्षाओं और असाइनमेंट के बोझ से जूझ रहा था। पढने के विषयों का ढेर बढ़ रहा था, और बहुत सारी जानकारी हासिल करने की ज़रूरत से मैं घबरा रहा था। मेरे मन में संदेह पैदा होने लगा, जिससे मैं अपनी क्षमताओं पर सवाल उठाने लगा। अनिश्चितता के उन क्षणों में, मैंने प्रार्थना को अपने सांत्वना और मार्गदर्शन के स्रोत के रूप में अपनाया। हर शाम, मैं अपने कमरे में वापस चला जाता, एक मोमबत्ती जलाता, और क्रूस के सामने घुटने टेकता। मैंने अपने दिल की बात ईश्वर के सामने रखी, अपने डर और संदेह को व्यक्त करते हुए अपनी पढ़ाई में शक्ति, ज्ञान और स्पष्टता की माँग की। एक अदृश्य मार्गदर्शक जैसे-जैसे सप्ताह बीतते गए, मैंने कुछ असाधारण घटित होते देखा। जब भी मुझे कोई चुनौतीपूर्ण विषय मिलता या मैं किसी कठिन अवधारणा से जूझता, तो मुझे अप्रत्याशित स्पष्टता मिलती। ऐसा लगता था जैसे मेरे रास्ते पर रोशनी पड़ रही हो, जो आगे बढ़ने का रास्ता रोशन कर रही हो। मैं किताबों में मददगार संसाधन या अंश पा लेता जो जटिल विचारों को पूरी तरह से समझाते हैं या सहपाठियों और शिक्षकों से अप्रत्याशित समर्थन प्राप्त करता। मुझे एहसास होने लगा कि ये महज़ संयोग नहीं थे, बल्कि ईश्वर की उपस्थिति और मेरी शैक्षणिक यात्रा में मदद के संकेत थे। ऐसा लग रहा था जैसे प्रभु मेरा मार्गदर्शन कर रहा था, मुझे धीरे-धीरे सही संसाधनों, सही लोगों और सही मानसिकता की ओर धकेल रहा था। जैसे-जैसे मैंने ईश्वर के मार्गदर्शन पर भरोसा करना जारी रखा, मेरा आत्मविश्वास बढ़ता गया और मेरे ग्रेड में सुधार होने लगा। मैंने जानकारी को आत्मसात करने और जटिल अवधारणाओं को समझने की अपनी क्षमता में एक उल्लेखनीय अंतर देखा। मैं अब अकेले अध्ययन नहीं कर रहा था; मेरे पास एक अदृश्य साथी था, जो हर चुनौती के दौरान मेरा मार्गदर्शन करता था और मुझे दृढ़ रहने के लिए प्रोत्साहित करता था। लेकिन यह केवल ग्रेड के बारे में नहीं था। इस अनुभव के माध्यम से, मैंने आस्था और भरोसे के बारे में मूल्यवान सबक सीखे। मैंने सीखा कि ईश्वर की मदद आध्यात्मिक मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हमारे जीवन के हर पहलू तक फैली हुई है, जिसमें हमारी पढ़ाई भी शामिल है। मैंने सीखा कि जब हम सच्चे दिल से ईश्वर की ओर मुड़ते हैं, तो वह न केवल हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है, बल्कि हमें वह सहायता भी प्रदान करता है जिसकी हमें आवश्यकता होती है। धार्मिकता से जुड़ाव इस यात्रा ने मुझे ईश्वर के साथ एक मजबूत संबंध बनाए रखने, उनके मार्गदर्शन की तलाश करने और उनकी योजना पर भरोसा करने का महत्व सिखाया। यह मुझे याद दिलाता है कि सच्ची सफलता केवल अकादमिक उपलब्धियों से नहीं बल्कि चरित्र, लचीलापन और विश्वास के विकास से भी मापी जाती है। पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो उस सेमेस्टर के दौरान सामना की गई चुनौतियों के लिए मैं आभारी हूँ, क्योंकि उन समस्याओं ने ईश्वर के साथ मेरे रिश्ते को गहरा किया और उनकी अचूक सहायता से मेरे विश्वास को मजबूत किया। आज, जैसा कि मैं अपनी शैक्षणिक गतिविधियों को जारी रखता हूँ, मैं उस समय के दौरान सीखे गए सबक को साथ लेकर चलता हूँ, यह जानते हुए कि ईश्वर का दिव्य मार्गदर्शन हमेशा मुझे ज्ञान और पूर्णता के मार्ग पर ले जाने के लिए मौजूद रहेगा। ऐसी दुनिया में जहाँ अकादमिक दबाव अक्सर हमें खा जाते हैं, यह याद रखना ज़रूरी है कि हम अपनी यात्रा में अकेले नहीं हैं। कैथलिक विश्वासी होने के नाते, हमें हर समय ईश्वर का मार्गदर्शन प्राप्त करने और उनकी उपस्थिति में सांत्वना पाने का सौभाग्य प्राप्त है। इस व्यक्तिगत कहानी के माध्यम से, मैं दूसरों को न केवल अपने अध्ययन में बल्कि अपने जीवन के हर पहलू में ईश्वर के अटूट समर्थन पर भरोसा करने के लिए प्रेरित करना चाहता हूँ। हम सभी को यह जानकर सुकून मिले कि ईश्वर हमारे परम शिक्षक हैं, जो हमें ज्ञान, समझ और अटूट विश्वास की ओर मार्गदर्शन करते हैं।
By: डेलोन रोजस
Moreमेरा पति लाइलाज बीमारी से ग्रसित है, मानो उसे मौत की सज़ा सुनाई गई हो; मैं उसके बिना जीना नहीं चाहती थी, लेकिन उसके दृढ़ विश्वास ने मुझे चौंका दिया। पाँच साल पहले, जब हमें पता चला कि मेरा पति जानलेवा बीमारी से ग्रसित हैं, उसी समय मेरी दुनिया तबाह हो गई। मैंने जीवन और भविष्य की जो कल्पना की थी, वह एक पल में हमेशा के लिए बिखर गया। यह भयानक और भ्रमित करने वाला था; मैंने कभी भी इतना भयंकर निराशा और असहायता महसूस नहीं की थी। ऐसा लग रहा था जैसे मैं लगातार डर और निराशा की खाई में डूबी हुई थी। अपने जीवन के सबसे बुरे दिनों का सामना करने के लिए मेरे पास सिर्फ़ मेरा विश्वास था जिस पर मैं टिकी हुई थी । अपने मरते हुए पति की देखभाल करने के दिन और एक नया तथा अलग जीवन का सामना करने की तैयारी के दिन मेरे पहले की योजना से बिलकुल भिन्न थे। क्रिस और मैं किशोरावस्था से ही साथ थे। हम एक दुसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे और दुनिया की कोई भी ताकत हमें अलग नहीं कर सकती थी। हम बीस वर्षों से शादीशुदा थे और अपने चार बच्चों की परवरिश खुशी-खुशी कर रहे थे। हमारा जीवन एक आदर्श जीवन की तरह लग रहा था। अब बीमारी ने मेरे पति को मौत की सज़ा सुनाई और मुझे नहीं पता था कि मैं उसके बिना कैसे रह सकती हूँ। सच में, मैं ऐसा बिलकुल नहीं चाहती थी। एक दिन, टूटे हुए पल में, मैंने क्रिस से कहा कि मुझे लगता है कि अगर मुझे आपके बिना जीना पड़ा तो मैं हृदायाघात से मर जाऊंगी। उसकी प्रतिक्रिया उतनी हताश करने वाली नहीं थी। उसने सख्ती से लेकिन सहानुभूतिपूर्वक मुझसे कहा कि तुम्हें तब तक जीना है जब तक ईश्वर तुम्हें अपने यहाँ नहीं बुला लेता; उसने मुझे यह भी कहा कि तुम अपनी ज़िंदगी को बर्बाद नहीं कर सकती| क्योंकि वह जानता था कि उसका अंत होने वाला था। उसने मुझे पूरे विश्वास के साथ आश्वासन दिया कि वह परलोक से मुझ पर और हमारे बच्चों पर नज़र रखेगा। दुख का दूसरा पहलू क्रिस को ईश्वर के प्यार और दया पर अटूट विश्वास था। वह इस बात पर आश्वस्त था कि हम हमेशा के लिए अलग नहीं होंगे, इसलिए वह अक्सर यह वाक्यांश दोहराता था: "यह बस थोड़ी देर के लिए है।" यह वाक्यांश हमें लगातार याद दिलाता था कि कोई भी दिल का दर्द हमेशा के लिए नहीं रहता है - और इन शब्दों ने मुझे असीम आशा दी। मेरी आशा है कि ईश्वर हमें इस दौरान मार्गदर्शन करेगा, और मेरी आशा यह भी है कि मैं अगले जीवन में क्रिस के साथ फिर से मिल जाऊँगी। इन अंधकारमय दिनों में, हम रोज़री में माँ मरियम से जुड़े रहे - यही एक भक्ति थी जिससे हम पहले से ही परिचित थे। हम लोग दु:ख के रहस्यों पर अधिक बार मनन करते थे, क्योंकि हमारे प्रभु की पीड़ा और मृत्यु पर विचार करने से हम अपने दुख में उनके करीब आ जाते थे। करुणा की माला विनती एक नई भक्ति थी जिसे हमने अपनी दिनचर्या में शामिल किया। रोज़री की तरह, यह इस बात की विनम्र याद दिलाती थी कि येशु ने हमारे उद्धार के लिए स्वेच्छा से क्या सहा, और किसी तरह इस की तुलना में हमें दिया गया क्रूस कम भारी लगने लगा। हमने पीड़ा और बलिदान की सुंदरता को और अधिक स्पष्ट रूप से देखना शुरू कर दिया। मैं दिन के हर घंटे मन ही मन छोटी सी प्रार्थना दोहराती : "ओह, येशु के सबसे पवित्र हृदय, मैं तुझ पर अपना पूरा भरोसा रखती हूँ"। जब भी मुझे अनिश्चितता या भय का अहसास होता, तो यह छोटी प्रार्थना मेरे ऊपर शांति की लहर ले आती। इस दौरान, हमारा प्रार्थना जीवन काफी गहरा हो गया और जैसे हम इस दर्दनाक यात्रा को सहन कर रहे हैं, वैसे हमें उम्मीद थी कि हमारे प्रभु क्रिस और हमारे परिवार पर दया करेगा। आज, मुझे उम्मीद है कि क्रिस शांत है, दूसरी तरफ से हम पर नज़र रख रहा है और हमारे लिए मध्यस्थता कर रहा है - जैसा कि उसने वादा किया था। मेरे नए जीवन के इन अनिश्चित दिनों में, यही आशा मुझे आगे बढ़ने और शक्ति देने में मदद करती है। इस परिस्थिति ने मुझे ईश्वर के अनंत प्रेम और कोमल दया के लिए असीम आभार दिया है। आशा एक जबरदस्त उपहार है; जब हम टूटा हुआ और बिखरा हुआ महसूस करते हैं, तब आशा कभी न बुझने वाली आंतरिक चमक बन जाती है जिस पर हम अपना ध्यान केंद्रित कर पाते हैं । आशा शांत करती है, आशा मजबूत करती है, और आशा ही चंगाई देती है। आशा को थामे रखने के लिए साहस की आवश्यकता होती है। जैसा कि संत जॉन पॉल द्वितीय ने कहा: "मैं आपसे विनती करता हूँ, कभी भी आशा न छोड़ें। कभी संदेह न करें, कभी थक न जाएँ और कभी निराश न हों। डरिये नहीं।"
By: मेरी थेरेस एमन्स
Moreयदि आपको ऐसा लगता है कि आपने जीवन में अपने सारे मूल्य और उद्देश्य खो दिए हैं, तो यह लेख आपके लिए है। मेरे 40 वर्षों के पुरोहिताई जीवन में, आत्महत्या करने वाले लोगों के अंतिम संस्कार मेरे लिए सबसे कठिन कार्य रहा है। और यह केवल एक सामान्य कथन नहीं है, क्योंकि हाल ही में मैंने अपने ही परिवार में एक युवा व्यक्ति को खो दिया। उसकी आयु केवल 18 वर्ष थी। उसने अपने जीवन की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के कारण आत्महत्या कर ली। आजकल आत्महत्या की दर बढ़ रही है, और इसके निवारण के उपायों में दवाएँ, मानसिक चिकित्सा और यहाँ तक कि पारिवारिक प्रणाली चिकित्सा भी शामिल हैं। हालांकि, उन कई चीजों में से एक जो अक्सर चर्चा में नहीं आती है, वह है आध्यात्मिक उपाय। अवसाद और आत्महत्या के पीछे एक मुख्य मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक मुद्दा जीवन के आध्यात्मिक अर्थ और उद्देश्य की कमी हो सकती है - यह विश्वास कि हमारे जीवन में आशा और मूल्य है, सबसे अहम् सोच है; इस सोच की कमी खतरनाक है। एक पिता का प्रेम हमारे जीवन का लंगर, हमारे पिता परमेश्वर का प्रेम है, जो हमें उन अंधेरे स्थानों से बाहर निकालता है। मैं यह भी तक कहूंगा कि येशु मसीह ने हमें जो उपहार दिए हैं (हे ईश्वर, वे बहुत सारे उपहार हैं), उनमें सबसे अच्छा और सबसे मूल्यवान उपहार है कि येशु ने अपने पिता को हमारा पिता बना दिया। येशु ने परमेश्वर को एक प्रेममय अभिभावक के रूप में प्रकट किया जो अपने बच्चों से गहरा प्रेम करता है और उनकी परवाह करता है। इस ज्ञान की पुष्टि तीन विशेष तरीकों से होती है: 1. ‘आप कौन हैं’ इसकी पहचान आपकी नौकरी, आपकी सामाजिक सुरक्षा नंबर, आपका ड्राइवर लाइसेंस नंबर या 'सिर्फ' अस्वीकार किए गए कोई प्रेमी, इनमें से कोई भी बात ‘आप कौन है’ इस सवाल का जवाब नहीं हैं। आप परमेश्वर की संतान है- आप परमेश्वर की प्रतिछाया और सादृश्य में बने व्यक्ति हैं। आप वास्तव में उनकी कारीगरी हैं। यही हमारी पहचान है, परमेश्वर में हम यही हैं। 2. परमेश्वर हमें उद्देश्य देता है परमेश्वर में, हमें एहसास होता है कि हम यहाँ क्यों हैं - हमारे जीवन को जो परमेश्वर ने हमें दिया है, उसमें एक योजना, उद्देश्य और संरचना है। परमेश्वर ने हमें इस दुनिया में - उसे जानने, प्यार करने और उसकी सेवा करने के उद्देश्य के लिए बनाया है 3. आपकी एक नियति है हमारी नियति इस दुनिया में रहने के लिए नहीं, बल्कि अनंतता में अपने पिता के साथ रहने और उनके अटूट प्यार को प्राप्त करने के लिए है। पिता को प्रेम की रचयिता के रूप में जानने से हमें उस जीवन को प्राप्त करने, उस जीवन को सम्मान देने और जो ईश्वर हमसे चाहता है उस भरपूर जीवन को साझा करने केलिए आमंत्रण मिलता है । यह हमें इस अर्थ में बढ़ने के लिए प्रेरित करता है कि हम कौन हैं - हमारी अच्छाई, विशिष्टता और सुंदरता क्या है इसे जानने के लिए भी । पिता का प्रेम एक ठोस प्रेम है: "ईश्वर के प्रेम की पहचान इस में है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं, बल्कि ईश्वर ने हमको प्यार किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा।" (1 योहन 4:10) ईश्वर का प्रेम इस तथ्य पर विचार नहीं करता है कि हम हर दिन परिपूर्ण होते हैं, या हम कभी उदास या निराश नहीं होते हैं। यह तथ्य कि ईश्वर ने हमसे प्रेम किया है और अपने पुत्र को हमारे पापों के लिए बलिदान के रूप में भेजा है, वह एक प्रोत्साहन है जो हमें अवसाद के अंधेरे का मुकाबला करने में मदद कर सकता है। अपने मूल में, ईश्वर दंड देने वाला कोई न्यायाधीश नहीं, बल्कि प्यार करने वाला माता-पिता है। चाहे हमारे आस-पास कोई भी कुछ भी करे, ईश्वर ने हमसे प्यार किया है और हमें प्यार करता है, यह समझ हमें सहारा देती है। यह वास्तव में हमारी सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता है। हम सब अकेले हैं; हम सभी, कुछ ऐसी चीज़ की खोज और तलाश कर रहे हैं जो यह दुनिया हमें नहीं दे सकती। हर दिन हमारे ईश्वर की प्रेमपूर्ण दृष्टि में शांत बैठें और ईश्वर को आपसे प्रेम करने दें। कल्पना कीजिए कि ईश्वर आपको गले लगा रहा है, आपका पोषण कर रहा है और आपके डर, घबराहट और चिंता को दूर कर रहा है। परमपिता परमेश्वर का प्रेम प्रत्येक कोशिका, मांसपेशी और रक्त की धमनियों में प्रवाहित होने दें। उसी प्रेम को हमारे जीवन से अंधकार और भय को दूर करने दें। दुनिया कभी भी एक आदर्श स्थान नहीं बन सकती, इसलिए हमें ईश्वर को अपनी आशा से भरने के लिए आमंत्रित करने की आवश्यकता है। यदि आप आज संघर्ष कर रहे हैं, तो किसी मित्र के पास पहुंचें और अपने मित्र को ईश्वर के हाथ और आंखें बनने दें, उन्हें आपको गले लगाने दे और आपसे प्यार करने दे। मेरे 72 वर्षों में कई बार ऐसा हुआ है जब मैं उन दोस्तों के पास पहुंचा हूं जिन्होंने मुझे संभाला, मेरा पालन-पोषण किया और मुझे सिखाया। अपनी माँ की गोद में बैठे बच्चे जैसे ईश्वर की उपस्थिति में बैठे रहें, और तब तक संतुष्ट बैठे रहें जब तक कि आपका शरीर और मन यह सच्चाई न सीख ले कि आप ईश्वर की एक अनमोल, सुंदर संतान हैं, कि आपके जीवन का अपना एक मूल्य, उद्देश्य, अर्थ और दिशा है। ईश्वर को अपने जीवन में बहने दे।
By: फादर रॉबर्ट जे. मिलर
Moreहम सभी कभी न कभी ईश्वर से जूझते हैं, लेकिन हमें वास्तव में शांति कब मिलती है? हाल ही में, एक संघर्षरत मित्र ने मुझसे कहा: “मुझे यह भी नहीं पता कि किस बात के लिए प्रार्थना करनी है।” वह प्रार्थना करना चाहती थी, लेकिन वह कुछ ऐसी बात माँगते-माँगते थक गई थी जो नहीं मिल रह थी। मुझे तुरंत संत पीटर जूलियन आइमार्ड की यूखरिस्तिक तरीके की प्रार्थना याद आयी। वे हमें प्रार्थना के समय को मिस्सा बलिदान के चार छोरों के अनुसार ढालने के लिए आमंत्रित करता है: आराधना, धन्यवाद, प्रायश्चित और निवेदन। एक बेहतर तरीका प्रार्थना सिर्फ़ माँगने से कहीं ज़्यादा है, फिर भी कई बार ऐसा होता है जब हमारे प्रियजनों के बारे में हमारी ज़रूरतें और चिंताएँ इतनी ज़्यादा होती हैं कि हम सिर्फ़ माँगते हैं, माँगते हैं, विनती करते हैं और फिर कुछ और माँगते हैं। हम कह सकते हैं: “येशु, मैं इसे तेरे हाथों में छोड़ता हूँ,” लेकिन 30 सेकंड बाद, हम इसे ईश्वर के हाथों से छीन लेते हैं और समझाने लगते हैं कि हमें इसकी फिर से ज़रूरत क्यों है। हम चिंता करते हैं, परेशान होते हैं और नींद खो देते हैं। हम लंबे समय तक माँगना बंद नहीं करते इसलिए ईश्वर हमारे थके हुए दिलों में जो बात फुसफुसा रहा है, उसे हम सुन नहीं पाते हैं। हम कुछ समय तक ऐसे ही घूमते रहते हैं, और ईश्वर हमें जाने देता है। वह हमारे थक जाने का इंतज़ार करता है, यह महसूस करने के लिए कि हम उससे मदद नहीं माँग रहे हैं, बल्कि हम उसे यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उसे हमारी मदद किस किस तरह करने की ज़रूरत है। जब हम संघर्ष करते-करते थक जाते हैं और आखिरकार हार मान लेते हैं, तो हम प्रार्थना करने का एक बेहतर तरीका सीख जाते हैं। फिलिप्पियों को लिखे अपने पत्र में, संत पौलुस हमें निर्देश देते हैं कि हमें परमेश्वर से अपनी याचनाएँ किस तरह से करनी चाहिए: "किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर बात में प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ अपने निवेदन परमेश्वर को प्रकट करो। तब परमेश्वर की शान्ति, जो हमारी समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और विचारों को मसीह येशु में सुरक्षित रखेगी।" (4:6-7) झूठ का मुकाबला करें हम चिंता क्यों करते हैं? हम उत्कंठा में क्यों पड़ जाते हैं? क्योंकि, संत पेत्रुस की तरह, जिन्होंने येशु को देखना बंद कर दिया और डूबने लगे (मत्ती 14:22-33), हम भी सत्य को भूल जाते हैं और झूठ को सुनने का निर्णय लेते हैं। हर चिंता पूर्ण सोच की जड़ में एक बड़ा झूठ छिपा होता है — कि ईश्वर मेरी देखभाल नहीं करेगा, कि जो भी समस्या मुझे अभी परेशान कर रही है वह ईश्वर से बड़ी है, कि ईश्वर मुझे छोड़ देगा और मुझे भूल जाएगा ... कि आखिरकार मुझसे प्यार करने वाला मेरा कोई पिता नहीं है। हम इन झूठों का मुकाबला कैसे करें? सत्य के साथ। सेंट पीटर जूलियन आइमार्ड याद दिलाते हैं, "हमें सरल और शांत दृष्टिकोण से ईश्वर की सच्चाइयों के बारे में अपने दिमाग के काम को सरल बनाना चाहिए।" सत्य क्या है? मुझे संत मदर तेरेसा का उत्तर पसंद है: "विनम्रता ही सत्य है।" धर्मशिक्षा हमें बताती है कि "विनम्रता प्रार्थना का आधार है।" प्रार्थना हमारे दिल और दिमाग को ईश्वर की ओर उठाता है। यह एक वार्तालाप है, एक रिश्ता है। मैं किसी ऐसे व्यक्ति के साथ संबंध में नहीं रह सकती जिसे मैं नहीं जानती। जब हम अपनी प्रार्थना विनम्रता से शुरू करते हैं, तो हम ईश्वर कौन है और हम कौन हैं, इस सत्य को स्वीकार करते हैं। हम पहचानते हैं कि, अपने आप में, हम पाप और दुख के अलावा कुछ नहीं हैं, लेकिन ईश्वर ने हमें अपनी संतान बनायी है और उसमें हम सब कुछ कर सकते हैं (फिलिप्पी 4:13)। यह वह विनम्रता, वह सत्य है, जो हमें पहले आराधना, फिर धन्यवाद, फिर पश्चाताप और अंत में निवेदन तक ले जाती है। यह उस व्यक्ति की स्वाभाविक प्रगति है जो पूरी तरह से ईश्वर पर निर्भर है। इसलिए जब हम नहीं जानते कि ईश्वर से क्या कहना है, तब हम उसकी स्तुति करें और उसके नाम की महिमा करें। आइए हम ईश्वर के सभी आशीर्वादों के बारे में सोचें और उसके द्वारा हमारे लिए किए गए सभी कार्यों के लिए उसे धन्यवाद दें। इससे हमें यह भरोसा करने में मदद मिलेगी कि यह वही ईश्वर है, जो हमेशा हमारे साथ रहा है, आज भी यहाँ है और अच्छे समय और मुश्किल समय में हमेशा हमारे साथ है।
By: Ivonne J. Hernandez
Moreक्या आप एक स्थायी शांति का सपना देख रहे हैं जो आप कितनी भी कोशिश कर लें, आपको मिल नहीं पाती? यह स्वाभाविक है कि हम एक बदलते, अप्रत्याशित दुनिया में हमेशा महसूस करते हैं कि हम बिना तैयारी के हैं। इस भयावह और थकाऊ समय में, डरना आसान हो जाता है — जैसे एक फंसा हुआ जानवर जिसके पास भागने का कोई रास्ता नहीं है। अगर हम केवल कड़ी मेहनत करते, लंबे समय तक काम करते, या अधिक नियंत्रण में होते, तो शायद चीज़ें हमारी पकड़ में आ जाते और आखिरकार हम आराम कर पाते और शांति पा सकते। मैंने दशकों तक इस तरह का जीवन बिताया है। अपने आप पर और अपनी कोशिशों पर निर्भर रहते हुए, मैं कभी वास्तव में 'पकड़ में' नहीं ला पायी। धीरे-धीरे मुझे अहसास हुआ कि इस तरह जीना एक भ्रम था। आखिरकार, मुझे एक समाधान मिला जिसने मेरे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया। यह उस चीज़ के विपरीत महसूस हो सकता है जो आवश्यक है, लेकिन मुझ पर विश्वास करें जब मैं कहती हूं: शांति की इस श्रमसाध्य खोज का उत्तर समर्पण में ही है। सर्वश्रेष्ठ कदम एक कैथलिक के रूप में, मुझे पता है कि मुझे अपने भारी बोझों को ईश्वर को सौंपना चाहिए। मुझे यह भी पता है कि मुझे 'येशु को अपनी जीवन गाडी का ‘स्टीयरिंग’ सौंपना चाहिए' ताकि मेरा बोझ हल्का हो सके। मेरी समस्या यह थी कि मुझे यह नहीं पता था कि "अपने बोझों को प्रभु को कैसे सौंपें।" मैं प्रार्थना करती, विनती करती, कभी-कभी समझौता करती, और एक बार तो मैंने ईश्वर को समय का डेडलाइन भी दे दिया (यह घटना तब समाप्त हुई जब मुझे संत पाद्रे पियो ने एक साधना के दौरान सन्देश के रूप में समझाया: "ईश्वर को समय का डेडलाइन मत दो।" तो, हमें क्या करना चाहिए? मनुष्यों के रूप में, हम हर चीज़ को अपने पास मौजूद एक जानकारी के अंश और सभी प्राकृतिक और अलौकिक कारकों की अत्यंत सीमित समझ के आधार पर रखते हैं। जबकि मेरे पास सर्वोत्तम समाधानों पर अपने विचार हो सकते हैं, मैं अपने मन में उसे स्पष्ट रूप से सुनती हूँ: "मेरे मार्ग तुम्हारे मार्ग नहीं हैं, बार्ब, न ही मेरे विचार तुम्हारे विचार," भगवान कहते हैं। समझौता यह है। भगवान भगवान हैं, और हम नहीं। वह सब कुछ जानते हैं—भूत, वर्तमान, और भविष्य। हम कुछ भी नहीं जानते। निश्चित रूप से, भगवान अपनी सर्वव्यापी बुद्धि में, हमसे बेहतर चीज़ों को समझते हैं, जैसे कि समय और इतिहास में सर्वोत्तम कदम उठाना। कैसे समर्पण करें यदि आपके जीवन में आपकी सभी मानवीय प्रयासों से कुछ भी सही नहीं हो रहा है, तो उन्हें समर्पण करना आवश्यक है। लेकिन समर्पण का मतलब यह नहीं है कि हम ईश्वर को एक वेंडिंग मशीन की तरह देखें, जिसमें हम अपनी प्रार्थनाएँ डालें और कैसा उत्तर हम उनसे चाहते हैं, उसका फैसला हम करें । यदि आप भी मेरी तरह समर्पण करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो मैं वह उपाय साझा करना चाहूँगा जो मैंने पाया: वह है समर्पण का नवरोज़ी प्रार्थना। मुझे इसके बारे में कुछ साल पहले परिचित कराया गया था और इसके लिए मैं बहुत ही आभारी हूँ। प्रभु के सेवक, फादर डॉन डोलिंडो रुओटोला, जो पाद्रे पियो के आध्यात्मिक निदेशक थे, उन्हें यह नोवेना येशु मसीह से प्राप्त हुई थी। नोवेना का प्रत्येक दिन अद्वितीय रूप से हर व्यक्ति से प्रभु येशु बात करते हैं, और केवल येशु ही जानते हैं कि किस तरह लोगों को संबोधित करना है। हर दिन दोहराए जाने वाले शब्दों के बजाय, जिन बाधाओं के कारण हमें वास्तव में समर्पण करने में दिक्कत होती हैं, या जिस प्रकार प्रभु को अपने काम को अपने सही तरीके और सही समय पर करने में जो बातें बाधा बनकर उन्हें रोकती हैं, उन के बारे में हमें बहुत अच्छी तरह से जानने वाले मसीह, हमें याद दिलाते हैं। नोवेना का समापन कथन है: "हे येशु, मैं खुद को तेरे हवाले करता हूँ, तू हर चीज का ख्याल रखें," इसे दस बार दोहराया जाता है। क्यों? क्योंकि हमें विश्वास करने और मसीह येशु पर पूरी तरह से भरोसा करने की जरूरत है कि वही हर चीज का सही ख्याल रखेंगे।
By: Barbara Lishko
Moreकभी-कभी जीवन बहुत कठिन लगता है, लेकिन अगर आप धैर्य रखें और विश्वास करें, तो बहुत से अप्रत्याशित उपहार आपको आश्चर्य चकित कर सकते हैं। “हम तेरी दया से सदा पाप से दूर और हर विपत्ति से सुरक्षित रहें, और उस दिन की प्रतीक्षा करते रहें, जब हमारे मुक्तिदाता येशु ख्रीस्त फिर आकर हमारी धन्य आशा पूरी करेंगे” जीवन भर कैथलिक जीवन जीते हुए, मैंने हर मिस्सा में यह प्रार्थना की है। कई वर्षों से डर मेरा साथी नहीं रहा, हालांकि एक समय था जब ऐसा था। मैंने 1 योहन 4:18 में वर्णित "परिपूर्ण प्रेम" को जाना और मुझे डर को जीतने वाले की वास्तविकता में जीने में मदद मिली। इस समय मेरे जीवन में मुझे शायद ही कभी चिंता होती है, लेकिन एक सुबह कुछ अशुभ होने का अनुभव हुआ। मैं इसका कारण ठीक से नहीं समझ पा रही थी। हाल ही में, एक मोड़ पर ठोकर लगने से मैं जोर से गिर गयी, और मैं अपने कूल्हे और श्रोणि में असुविधा महसूस कर रही थी। हर बार जब मैंने अपने हाथ उठाए तो तीव्र दर्द ने मुझे याद दिलाया कि मेरे कंधों को ठीक होने में और समय लगेगा। नई नौकरी के तनाव और एक प्रिय मित्र के बेटे की अचानक मृत्यु ने मेरी चिंता को बढ़ा दिया। दुनिया की हालात जो सुर्खियों में बहुत दिन बनी रहती है, अपने आप में किसी के लिए भी काफी तनाव पैदा कर सकती है । मेरी बेचैनी के अज्ञात कारण के बावजूद, मुझे पता था कि कैसे प्रतिक्रिया देनी है। अपनी आँखें बंद करके, मैं जिस भारी बोझ को महसूस कर रही थी उसे समर्पित कर दिया । ओवर टाइम काम कर रहे फरिश्ते अगले दिन, जब मैं अपने एक मरीज के घर जा रही थी, तो अचानक एक समुद्री तूफान उठने लगा। ट्रैफिक भारी था, और हेडलाइट की रोशनी के बावजूद और गति को कम करने के बावजूद, बारिश की चादरों से दृश्यता अस्पष्ट हो गई थी। अचानक, मैंने पीछे से किसी दूसरी गाड़ी की टक्कर महसूस की, जिसके कारण मेरी कार दाएं लेन में धकेली गयी! आश्चर्यजनक रूप से, शांत होकर, मैंने एक चपटे टायर के बावजूद एक आपातकालीन लेन की ओर रुख किया। जल्द ही एक अग्निशमन बचाव वाहन आया; एक पैरामेडिक जो भारी बारिश से बचने के लिए मेरी कार में कूद गया, उसने पूछा कि क्या आप को चोट लगी है? नहीं... मुझे चोट नहीं लगी थी! यह बहुत ही असंभाव्य लगा क्योंकि मेरी पिछली बार मेरे गिरने का असर कुछ ही दिन पहले ख़त्म हुए थे। मैंने उस सुबह मौसम का पूर्वानुमान सुनकर सुरक्षा के लिए प्रार्थना की थी। स्पष्ट रूप से, फरिश्ते ओवर टाइम काम कर रहे थे; पहले मेरी पिछली बार के गिरने पर और फिर इस दुर्घटना से मुझे सुरक्षा प्रदान कर रहे थे। मेरी कार अब वर्कशॉप में थी और मरम्मत को बीमा कवर कर रहा था, मेरे पति डैन और मैं लंबे समय से कहीं छुट्टी पर जाने की योजना बनायी थी, अब हमने उस योजना को तामील करने के लिए तैयार हो गए। बस जाने से पहले, मैं यह सुनकर निराश हो गई कि हमारा बीमाकर्ता लगभग निश्चित रूप से मेरी कार के लिए बीमा का कोई रकम न देकर हमें कार केलिए कम मूल्य देकर उसे खरीदने की योजना बना रहा था! मेरी कार केवल पाँच साल पुरानी थी और दुर्घटना से पहले बेदाग हालत में थी, फिर भी वर्तमान में बाज़ार में इसके लिए हमें सिर्फ $8,150 मिलता। यह अच्छी खबर नहीं थी! हम इस ईंधन-कुशल हाइब्रिड कार को तब तक रखना चाहते थे जब तक यह चलती रहे, यहां तक कि हमारी इस योजना को सुनिश्चित करने के लिए हमने एक विस्तारित वारंटी भी खरीदी थी। गहरी सांस लेते हुए, मैंने फिर से उन परिस्थितियों में जो मेरे नियंत्रण से बाहर थीं, उस पर कार्रवाई की: मैंने इसे ईश्वर को सौंप दिया और उसके हस्तक्षेप के लिए प्रार्थना की। निरंतर प्रार्थना एक बार सॉल्ट लेक सिटी पहुँचने के बाद, हमने एक किराये की कार ले ली और तुरन्त ही हम खूबसूरत ग्रैंड टेटन नेशनल पार्क की ओर जा रहे थे। उस शाम होटल के पार्किंग में घुसते हुए, मैंने अनजाने में एक संकीर्ण स्थान पर बैक किया। जबकि डैन ने हमारा सामान उतार दिया, मैंने देखा कि एक टायर में एक पेंच घुसा हुआ है। टायर पंचर होने की चिंता से मेरे पति ने विभिन्न सेवा केंद्रों को फोन किया। वहरविवार का दिन था, कोई भी मरम्मत की दूकान खुली नहीं थी। इसलिए हमने जोखिम उठाते हुए ड्राइविंग पर आगे जाने का फैसला किया। अगले सुबह, हमने प्रार्थना की और निकल गए, इस उम्मीद के साथ कि येलोस्टोन के भीतर और बाहर के संकीर्ण पर्वतीय सड़कों पर ड्राइविंग करते समय टायर टिका रहेगा। सौभाग्य से, दिन सुचारू रहा। हम हैंपटन इन होटल पहुंचे, जहां डैन ने महीनों पहले कमरा आरक्षित कर लिया था, लेकिन हम स्तब्ध रह गए! ठीक बगल में एक टायर मरम्मत की दुकान थी! सोमवार सुबह की तेज सेवा पाने के कारण हम एक घंटे से भी कम समय में सड़क पर थे! यह पता चला कि टायर लीक हो रहा था, इसलिए टायर कि मरममत करके उसे फटने से बचा लिया गया - यह एक आशीर्वाद था, जिसका परिनाम यह था कि हमने उस सप्ताह में 1200 मील से अधिक ड्राइव किया! इस बीच, मेरी वर्कशॉप ने दुर्घटना के कारण अनजान और "छिपी हुई क्षति" की आगे की जांच का आदेश अधिकृत किया। यदि कोई आतंरिक या छिपी हुई क्पाषति पायी गयी, तो मरम्मत की लागत कार के मूल्य से अधिक हो जाएगी और निश्चित रूप से हमारी कार बीमा वाले हथिया लेंगे! प्रतिदिन प्रार्थना करते हुए, मैंने परिणाम को प्रबु के हाथों में समर्पित किया और इंतजार किया। अंततः, मुझे सूचित किया गया कि मरम्मत की लागत ठीक बीमा शुल्क की सीमा के भीतर आ गई है... और वे मेरी कार को ठीक कर देंगे! (कुछ हफ्तों बाद, जब मैं अपनी नवीनीकृत कार लेने गयी, तो मुझे पता चला कि मरम्मत की लागत वास्तव में कार के बाज़ार के मूल्य से अधिक हो गई थी, लेकिन मेरी प्रार्थना भी पूरी हुई थी!) एक अद्भुत अनुग्रह ईश्वर की कृपापूर्ण देखभाल का एक और उदाहरण तब आया जब हम येलोस्टोन नेशनल पार्क की अपनी यात्रा जारी रखे हुए थे! जब हम पहुंचे तो पार्किंग स्थल भरा हुआ था। हमने बेतहाशा चक्कर लगाया जब अचानक, बगल में ही सामने एक स्थान उपलब्ध था! हमने जल्दी से पार्क किया और यह जानने के लिए चले गए कि ‘ओल्ड फेथफुल’* की अगली विस्फोट दस मिनट में होने की उम्मीद थी। जिस स्थान से गीज़र विस्फोट देखा जा सकता है, वहां पहुंचने के लिए पर्याप्त समय था, और सही समय गीजर फट गया! हमने बोर्डवॉक के रास्ते को विभिन्न भूवैज्ञानिक संरचनाओं, झरनों और गीजरों के माध्यम से खोजा। मेरे पति बाह्य दृश्यों के प्रेमी हैं। उन्होंने एक के बाद एक तस्वीरें खींचीं! हमारे चारों ओर के अद्भुत दृश्य पर चकित होते हुए, मैंने अपनी घड़ी देखी... ओल्ड फेथफुल का अगला विस्फोट जल्द ही होने की उम्मीद थी। फुहारें अपेक्षित रूप से हवा में फटकर फैल गयीं! इस बार हम लोग गीजर के पीछे खड़े थे, और पर्यटकों की भीड़ हमारे साथ नहीं थी इसलिए हमें सब कुछ साफ़ साफ़ देखा। आभारी महसूस करते हुए, मैंने दिन के आशीर्वादों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया - सबसे पहले, टायर की दुकान का सही स्थान, फिर मेरी कार के बारे में बीमा कंपनी से अच्छी खबर, और अंत में, प्रकृति का अद्भुत दृश्य। ईश्वर की सक्रिय उपस्थिति पर विचार करते हुए, मैंने प्रार्थना की: "प्रभु हमसे प्रेम करने के लिए धन्यवाद! मुझे पता है कि तू पृथ्वी पर हर दूसरे व्यक्ति से उतना ही प्यार करता है, लेकिन मेरा पति डैन तुझसे सृष्टि में इतनी मजबूती से जुड़ता है, उसके लिए क्या तू एक बार फिर से स्वयं को प्रकट करेगा?” चलते-फिरते, मेरे पति की कैमरा बैटरी खत्म हो गई। जब वह इसे बदल रहां था, मैं बैठ गयी और एक अजीब आवाज सुनी। मैंने मुड़कर देखा तो एक बड़ा विस्फोट हुआ। यह शानदार था - वह था बीहाइव गीजर! यह विस्फोट ओल्ड फेथफुल से दोगुना ऊँचा था! हमारे गाइडबुक को देखकर, हमने पढ़ा कि यह गीजर सबसे अच्छा था, लेकिन इतना अप्रत्याशित था कि विस्फोट कहीं भी 8 घंटे से लेकर 5 दिनों के बीच एक बार हो सकता था... लेकिन, यह अद्यभुत कार्हय देखिये, यह विस्फोट उस समय हुआ जब हम वहां थे! निश्चित रूप से, ईश्वर ने मेरे पति के सामने खुद को प्रकट किया जैसा कि मैंने माँगा था! हमारा अंतिम पड़ाव कई गीजरों वाला स्थान था जहां एक सज्जन हमारी तस्वीर लेने के लिए तैयार हो गए। जिस क्षण उन्होंने कैमरे का शटर क्लिक किया, ठीक उसी समय उस गीजर का विस्फोट हुआ! हमने परमेश्वर की परिपूर्ण समय और आशीर्वाद की एक और अप्रत्याशित उपहार का अनुभव किया! अविश्वसनीय दृश्यों, झरनों, पहाड़ों, झीलों और नदियों की सुंदरता में नहाने के अलावा, हमने खूबसूरत मौसम का भी अनुभव किया! हर दिन बारिश के पूर्वानुमान के बावजूद, हमें केवल कुछ चोटी बौछारें और दिन और रात के सुंदर तापमान का सामना करना पड़ा! मैं अपनी हाल की तनाव और चिंता से पूरी तरह उभर चुकी थी। प्रभु के हाथों में अपना समर्पण करने से येशु द्वारा मेरी परवाह और देखभाल और हमारे सृष्टिकर्ता की अद्भुतता के अनुभव में डुबो दिया! वह प्रार्थना जो मैंने मिस्सा में कई बार की थी, निश्चित रूप से पूरी हुई थी! डर और गंभीर चोट दोनों से मेरी रक्षा की गई थी, जबकि मुझे चिंता से मुक्त किया गया था। प्रतीक्षा ने वास्तव में आनंदमय आशा का परिणाम दिया था... मेरी आत्मा के लिए लंगर भी प्राप्त हुआ। *ओल्ड फेथफुल संयुक्त राज्य अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क में स्थित एक प्रसिद्ध शंकु गीजर है। यह अपनी अत्यधिक अनुमानित विस्फोटों के लिए प्रसिद्ध है, जो लगभग हर 90 मिनट में होती हैं। यह गीजर गर्म पानी और भाप का एक स्तंभ हवा में फेंकता है, जिसकी ऊंचाई लगभग 106 से 185 फीट (32 से 56 मीटर) तक पहुंचती है।
By: Karen Eberts
Moreक्या मेरा जीवन कभी सामान्य हो पाएगा? मैं अपना काम कैसे जारी रख सकती हूँ? इन पर विचार करते हुए, मेरे दिमाग में एक अद्भुत समाधान आया... मुझे अपना जीवन बेहद तनावपूर्ण लग रहा था। कॉलेज में अपने पाँचवें वर्ष में, द्विध्रुवी विकार (बाईपोलर डिसऑर्डर) की शुरुआत के कारण पढ़ाई पूरी करने के मेरे प्रयासों में बाधा बन रही थी। मुझे अभी तक कोई निदान नहीं हुआ था, लेकिन मैं अनिद्रा से ग्रस्त थी, और मैं थकी हुई और अव्यवस्थित दिखती थी। इसके कारण शिक्षक के रूप में रोजगार की मेरी संभावनायें बाधित हुई। चूँकि मेरे पास पूर्णतावाद की ओर मजबूत प्राकृतिक प्रवृत्ति थी, इसलिए मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और डर लगा कि मैं सभी को निराश कर रही हूँ। मैं गुस्से, निराशा और अवसाद में घिर गयी। लोग मेरी गिरावट के बारे में चिंतित थे और मदद करने की कोशिश कर रहे थे। मुझे स्कूल से एम्बुलेंस द्वारा अस्पताल भी भेजा गया था, लेकिन डॉक्टरों को उच्च रक्तचाप के अलावा कुछ भी गलत नहीं मिला। मैंने प्रार्थना की लेकिन कोई सांत्वना नहीं मिली। यहाँ तक कि ईस्टर मिस्सा के दौरान -ईस्टर की रात मेरा सबसे पसंदीदा समय है - भी दुष्चक्र जारी रहा। येशु मेरी मदद क्यों नहीं कर रहा है? मुझे उससे बहुत गुस्सा आया। अंत में, मैंने प्रार्थना करना ही बंद कर दिया। जैसे-जैसे यह चलता रहा, दिन-ब-दिन, महीने-दर-महीने, मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। क्या मेरी ज़िंदगी कभी सामान्य हो पाएगी? यह असंभव लग रहा था। जैसे-जैसे मेरे स्नातक की परीक्षा नज़दीक आ रही थी, मेरा डर बढ़ता जा रहा था। पढ़ाना एक मुश्किल काम है जिसमें बहुत कम ब्रेक मिलते हैं, और छात्रों को मेरी ज़रूरत होगी ताकि मैं उनकी कई ज़रूरतों को पूरा करती हुई और सीखने का एक अच्छा माहौल प्रदान करती रहूँ। मैं अपनी मौजूदा स्थिति में यह कैसे कर सकती थी? मेरे दिमाग में एक भयानक समाधान आया: "तुम्हें बस खुद को मार देना चाहिए।" उस विचार को नरक में होना चाहिए, लेकिन उसे त्यागने और उसे सीधे नरक में वापस भेजने के बजाय, मैंने उसे वहीं मेरे मन में ही रहने दिया। यह मेरी दुविधा का एक सरल, तार्किक उत्तर लग रहा था। मैं बस लगातार हमले के बजाय सुन्न होना चाहती थी। अफ़सोस की बात है कि मैंने निराशा को चुना। लेकिन, जब मुझे लगा कि यह मेरे आखिरी पल होंगे, तो मैंने अपने परिवार के बारे में और मेरे उस व्यक्तित्व के बारे में सोची जो मैं कभी थी। सच्चे पश्चाताप में, मैंने अपना सिर आसमान की ओर उठाया और कहा: "मुझे बहुत खेद है, येशु। इन सब बातों केलिए मुझे क्षमा कर। बस मुझे वह दे जिसकी मैं हकदार हूँ।" मुझे लगा कि ये मेरे इस जीवन के आखिरी शब्द होंगे। लेकिन परमेश्वर की कुछ और ही योजना थी। ईश्वर की आवाज़ का श्रवण मेरी माँ, ईश्वर की कृपा से, उसी क्षण करुणा की माला विनती बोल रही थी। अचानक, माँ ने अपने दिल में ज़ोर से और स्पष्ट शब्दों में सुना “एलन को खोजो।” उन्होंने आज्ञाकारी होकर अपनी माला के मोतियों को एक तरफ रख दिया और मुझे गैरेज के फर्श पर पाया। वह जल्दी से समझ गई, और भयभीत होकर बोली: “तुम क्या कर रहे हो?!” और उन्होंने मुझे घर के अंदर खींच लिया। मेरे माता-पिता का दिल टूट गया था। ऐसे समय के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, लेकिन उन्होंने मुझे मिस्सा में ले जाने का फैसला किया। मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी, और मुझे पहले से कहीं ज़्यादा उद्धारकर्ता प्रभु की ज़रूरत थी। मैं येशु के पास आने के पल के लिए तरस रही थी, लेकिन मुझे यकीन था कि मैं दुनिया की आखिरी इंसान हूँ जिसे वह कभी देखना चाहेगा। मैं यह विश्वास करना चाहती थी कि येशु मेरा चरवाहा है और अपनी खोई हुई भेड़ों को वापस लाएगा, लेकिन यह मुश्किल था क्योंकि कुछ भी नहीं बदला था। मैं अभी भी गहन आत्म-घृणा से ग्रस्त थी, अंधकार से पीड़ित थी। यह लगभग शारीरिक रूप से दर्दनाक था। उपहारों की तैयारी के दौरान, मैं फूट-फूट कर रो पड़ी। मैं बहुत लंबे समय से रोई नहीं थी, लेकिन एक बार जब मैंने रोना शुरू किया, तो मैं रुक नहीं पाई। मैं अपनी ताकत के आखिरी छोर पर थी, मुझे नहीं पता था कि आगे कहाँ जाना है। लेकिन जैसे-जैसे मैं रोती गई, मेरा बोझ धीरे-धीरे कम होता गया, और मैंने खुद को उनकी दिव्य दया में लिपटी हुई महसूस किया। मैं इसके लायक नहीं थी, लेकिन उन्होंने मुझे खुद का उपहार दिया, और मुझे पता था कि वह मेरे सबसे निचले बिंदु पर भी मुझसे उतना ही प्यार करता था जितना कि उन्होंने मेरे सबसे ऊंचे बिंदु पर किया था। प्यार की तलाश में आने वाले दिनों में, मैं मुश्किल से ईश्वर का सामना कर पाती, लेकिन वह छोटी-छोटी चीजों में दिखाई देता रहा और मेरा पीछा करता रहा। मैंने हमारे आतंरिक कक्ष में लगी येशु की दिव्य दया की तस्वीर की मदद से येशु के साथ फिर से संवाद स्थापित किया। मैंने बात करने की कोशिश की, ज्यादातर संघर्ष के बारे में शिकायत की और फिर हाल ही में हुए मेरे बचाव के मद्देनजर इसके बारे में बुरा महसूस किया। अजीब तरह से, मुझे लगा कि मैं एक कोमल आवाज़ को फुसफुसाते हुए सुन सकती हूँ: "क्या तुमने सच में सोचा था कि मैं तुम्हें मरने के लिए छोड़ दूँगा? मैं तुमसे प्यार करता हूँ। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडने का वादा करता हूँ। सब कुछ माफ़ है। मेरी दया पर भरोसा रखो।" मैं इस पर विश्वास करना चाहती थी, लेकिन मैं इस बात पर भरोसा नहीं कर पा रही थी कि यह सच था। मैं उन दीवारों से निराश हो रही थी, जिन्हें मैं खादी कर रही थी, लेकिन मैं येशु से बात करती रही: "येशु, मैं तुझ पर भरोसा करना कैसे सीख सकती हूँ?" जवाब ने मुझे चौंका दिया। जब आपको लगता है कि कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन आपको जीना जारी रखना है, तो आप कहाँ जायेंगे? जब आप पूरी तरह से अप्रिय महसूस करते हैं, और घमंड के कारण कुछ भी स्वीकार करने में दिक्कत महसूस करते हैं, फिर भी किसी न किसी तरह विनम्र होना चाहते हैं? दूसरे शब्दों में, जब आप पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के साथ पूर्ण सामंजस्य चाहते हैं, लेकिन अपने घर का रास्ता खोजने के लिए प्यार भरे स्वागत से बहुत डरते हैं और अविश्वास करते हैं, तो आप कहाँ जाना चाहते हैं? इसका उत्तर है ईश्वर की माँ और स्वर्ग की रानी धन्य कुँवारी मरियम। जब मैं भरोसा करना सीख रही थी, तो मेरे अजीब प्रयासों ने येशु को नाराज़ नहीं किया। वह मुझे अपनी धन्य माँ के माध्यम से अपने पवित्र हृदय के करीब बुला रहे थे। मैं उनसे और उनकी वफादारी से प्यार करने लगा। मैं माँ मरियम के सामने सब कुछ स्वीकार कर सकती थी। हालाँकि मुझे डर था कि मैं अपनी सांसारिक माँ से किया गया वादा पूरा नहीं कर पाऊँगी क्योंकि, अपने दम पर, मैं अभी भी मुश्किल से जीने की इच्छाशक्ति जुटा पा रही थी, मेरी माँ ने मुझे मरियम को अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित किया, इस विश्वास के साथ कि वह मुझे इससे बाहर निकलने में मदद करेगी। मुझे इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी कि इसका क्या मतलब है, लेकिन फादर माइकल ई. गेटली, एम.आई.सी. द्वारा लिखित ‘प्रातःकालीन महिमा और येशु के हृदय को सांत्वना देने के लिए 33 दिन’ नामक पुस्तिका ने मुझे समझने में मदद की। धन्य माँ मरियम हमेशा हमारी मध्यस्थ बनने के लिए तैयार रहती हैं, और वह कभी भी किसी बच्चे के अनुरोध को नहीं ठुकराएँगी जो येशु के पास वापस लौटना चाहता है। जैसे-जैसे मैं समर्पण की प्रार्थना कर रही थी, "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं हार नहीं मानूँगी " इन्हीं शब्दों के साथ मैंने फिर कभी आत्महत्या का प्रयास न करने का संकल्प लिया। इस बीच, मैंने समुद्र तट पर लंबी सैर करना शुरू कर दिया, जबकि मैं परमेश्वर पिता से बात करती थी, और उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत पर ध्यान करती थी। मैंने खुद को उड़ाऊ पुत्र के स्थान पर रखने की कोशिश की, लेकिन परमेश्वर पिता के करीब आने में मुझे कुछ समय लगा। पहले, मैंने कल्पना की कि वह कुछ दूरी पर है, फिर मेरी ओर चल रहा है। दूसरे दिन, मैंने कल्पना की कि वह मेरी ओर दौड़ रहा है, भले ही यह पिता ईश्वर के दोस्तों और पड़ोसियों के लिए हास्यास्पद लग रहा हो। आखिरकार, वह दिन आया जब मैं खुद को पिता की बाहों में देख सकती थी, फिर न केवल उनके घर में बल्कि स्वर्गीय परिवार की मेज पर मेरे लिए निर्धारित मेरी सीट पर मेरा स्वागत किया जा रहा था। जब मैंने कल्पना की कि वह मेरे लिए एक कुर्सी खींच रहा है, तो मैं अब एक जिद्दी युवती नहीं थी, बल्कि नयी पीढ़ी का मजेदार चश्मा और बॉब हेयरकट वाली 10 वर्षीय लड़की थी। जब मैंने अपने लिए पिता के प्यार को स्वीकार किया, तो मैं फिर से एक छोटे बच्चे की तरह हो गई, मैं वर्तमान क्षण में जी रही थी और पूरी तरह से उन पर भरोसा कर रही थी। मैं परमेश्वर और उनकी वफादारी से प्यार करने लगी। मेरे अच्छे चरवाहे ने मुझे भय और क्रोध की कैद से बचाया है, वह मुझे सुरक्षित मार्ग पर ले जाता है और जब भी मैं लड़खड़ाती हूँ तो वह मुझे सहारा देता है। अब, मैं अपनी कहानी साझा करना चाहती हूँ ताकि हर कोई ईश्वर की अच्छाई और प्रेम को जान सके। उसका पवित्र हृदय सिर्फ़ आपके लिए कोमल प्रेम और दया से भरा हुआ है। वह आपसे भरपूर प्रेम करना चाहता है, और मैं आपको प्रोत्साहित करती हूँ कि बिना किसी डर या संकोच के आप ईश्वर का स्वागत करें। वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा या आपको निराश नहीं करेगा। उसके प्रकाश में कदम रखें और उसके आलिंगन में वापस लौटें।
By: Ellen Wilson
Moreमैं अपनी पुरानी प्रार्थना की डायरी देख रही थी, जिसमें मैंने प्रार्थना के लिए बहुत से अनुरोध लिखे थे। मुझे आश्चर्य हुआ कि उनमें से हर एक का उत्तर दिया गया! आजकल खबरों पर सरसरी नज़र डालने वाला कोई भी व्यक्ति निराश हो सकता है, वह सोच सकता है कि ईश्वर कहाँ है, उसे लगता है कि प्रत्याशा की बड़ी ज़रूरत है। मुझे पता है कि मैंने खुद को कुछ दिनों में इस स्थिति में पाया है। हम अपने आप को नियंत्रण से बाहर महसूस करते हैं, और हम सोचते हैं कि हम उन सभी भयानक बातों के बारे में क्या कर सकते हैं जिनका हम इन दिनों सामना करते हैं। मैं आपके साथ एक घटना साझा करना चाहती हूँ। कुछ साल पहले, जिन लोगों और बातों के लिए मैं प्रार्थना कर रही थी, मैंने उन प्रार्थना-अनुरोधों की एक डायरी रखनी शुरू की थी। मैं अक्सर इन बातों के लिए रोज़री माला की प्रार्थना करती थी, जैसा कि मैं आज भी प्रार्थना निवेदनों के लिए करती हूँ। एक दिन, मुझे अपनी लिखी हुई प्रार्थना अनुरोधों की एक पुरानी डायरी मिली। मैंने बहुत पहले लिखे गए मेरे उन पन्नों को पढ़ना शुरू किया। मैं चकित रह गयी। हर प्रार्थना का उत्तर मिला था - शायद हमेशा उस तरीके से नहीं, जैसा मैंने सोचा था, लेकिन ज़रूर उनका उत्तर मिला था। ये कोई छोटी-मोटी प्रार्थनाएँ नहीं थीं। "हे प्यारे परमेश्वर, कृपया मेरी चाची को शराब की लत से मुक्त कर। प्यारे ईश्वर, कृपया मेरी मित्र जो बांझ है, उसे बच्चे पैदा करने में मदद कर। प्यारे ईश्वर, कृपया मेरे दोस्त को कैंसर से चंगाई दे।" जैसे ही मैंने हर पृष्ठ को ऊपर से नीचे की ओर नज़र दौड़ाई, मुझे एहसास हुआ कि हर एक प्रार्थना का उत्तर मिला था। कई प्रार्थनाएँ मेरी कल्पना से भी बड़े और बेहतर तरीके से सुनी गयीं। कुछ ऐसी भी थीं, जिनके बारे में पहली नज़र में मुझे लगा कि उनका उत्तर नहीं मिला है। एक दोस्त जिसे कैंसर से चंगाई की ज़रूरत थी, वह मर गई थी, लेकिन फिर मुझे याद आया कि मरने से पहले उसने मेलमिलाप का संस्कार और रोगियों का विलेपन संस्कार प्राप्त किया था। वह ईश्वर की दया का अनुभव करती हुई, अपनी चारों ओर ईश्वर की चंगाई की कृपा के आलोक में, शांति से गुज़र गई। इसके अलावा, ज़्यादातर प्रार्थनाएँ इस दुनिया में ही सुनी गईं। कई प्रार्थनाएँ असंभव पहाड़ों की तरह लग रही थीं, लेकिन उन पहाड़ों को हटा दिया गया। हमारी प्रार्थनाओं और प्रार्थना में हमारी दृढ़ता को ईश्वर अपनी कृपा में लेता है, और वह सभी बातों को भलाई की ओर ले जाता है। मेरी प्रार्थनामय मौन और शांत अवस्था में, मैंने एक फुसफुसाहट सुनी, "मैं इन सभी बातों पर समय-समय पर काम करता रहा हूँ। चमत्कारों की ये कहानियाँ मैं लिखता रहा हूँ। मुझ पर भरोसा करो।" मेरा मानना है कि हम एक ख़तरनाक दौर में हैं। लेकिन मैं यह भी मानती हूँ कि हम ऐसे दौर के लिए बने हैं। आप मुझसे कह सकते हैं, "आपके व्यक्तिगत प्रार्थना अनुरोधों का उत्तर मिलना बहुत अच्छा लगता है, लेकिन विभिन्न राष्ट्र आपस में युद्ध लड़ रहे हैं।" और मेरा जवाब फिर से यही है कि, ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है, यहाँ तक कि हमारी प्रार्थनाओं का उपयोग करके युद्ध को रोकना भी असंभव नहीं है। मुझे याद है कि ऐसा पहले हुआ है। हमें विश्वास करना चाहिए कि ईश्वर अभी भी इससे बड़ा काम कर सकता है। जो लोग याद करने के लिए पर्याप्त उम्र तक नहीं पहुंचे हैं, उनको मैं बताना चाहती हूँ कि कुछ वर्ष पहले एक डरावना दौर था जब ऐसा लग रहा था कि खूनी युद्ध होने वाला है। लेकिन रोज़री माला की शक्ति से, स्थिति बदल गई। मैं 8-वीं कक्षा में थी, और मुझे याद है कि फिलीपींस में सभी प्रकार के उथल-पुथल हो रहे थे। उस समय फ़र्डिनेंड मार्कोस उस देश के तानाशाही शासक थे। यह एक खूनी लड़ाई बनने जा रही थी जिसमें कुछ लोग पहले ही मर चुके थे। मार्कोस के एक कट्टर आलोचक, बेनिग्नो एक्विनो की हत्या कर दी गई। लेकिन यह खूनी लड़ाई नहीं हुई। मनीला के कार्डिनल जैम सिन ने लोगों से प्रार्थना करने को कहा था। लोग सेना के सामने गए, और ज़ोर ज़ोर से रोज़री माला की प्रार्थना करने लगे। वे सेना के लड़ाकू टैंकों के सामने खड़े होकर प्रार्थना कर रहे थे। और फिर, एक चमत्कारी घटना घटी। सेना ने अपने हथियार डाल दिए। यहां तक कि धर्म पर विश्वास नहीं करनेवाली मीडिया, शिकागो ट्रिब्यून ने भी रिपोर्ट की कि कैसे "बंदूकें रोज़री माला के सामने अभ्यर्पित की गईं।" क्रांति समाप्त हो गई, और परमेश्वर की महिमा दिखाई दी। चमत्कारों पर विश्वास करना बंद न करें। उन की प्रतीक्षा करें। और हर मौके पर रोज़री माला की प्रार्थना करें। प्रभु जानता है कि हमारी दुनिया को इसकी ज़रूरत है।
By: Susan Skinner
Moreसबसे महान प्रचारक, बेशक, येशु स्वयं हैं, और एम्माऊस के रास्ते पर शिष्यों के बारे में लूकस के शानदार वर्णन से बेहतर येशु की सुसमाचार प्रचार तकनीक की कोई और वर्णन नहीं है। गलत रास्ते पर दो लोगों के जाने के वर्णन से कहानी शुरू होती है। लूकस के सुसमाचार में, यरूशलेम आध्यात्मिक गुरुत्वाकर्षण का केंद्र है - अंतिम भोज, क्रूस पर मृत्यु, पुनरुत्थान और पवित्र आत्मा के उतर आने का स्थान यही है। यह वह आवेशित स्थान है जहाँ उद्धार की पूरी योजना का पर्दाफाश होता है। इसलिए राजधानी से दूर जाने के कारण, येशु के ये दो पूर्व शिष्य परम्परा के विपरीत जा रहे हैं। येशु उनकी यात्रा में शामिल हो जाते हैं - हालाँकि हमें बताया जाता है कि उन्हें पहचानने से शिष्यों को रोका गया है - और येशु उन शिष्यों से पूछते हैं कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं। अपने पूरे सेवा कार्य के दौरान, येशु पापियों के साथ जुड़े रहे। यार्दन नदी के कीचड़ भरे पानी में योहन के बपतिस्मा के माध्यम से क्षमा मांगने वालों के साथ येशु कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे; बार-बार, उन्होंने बदनाम लोगों के साथ खाया पिया, और यह वहां के धर्मी लोगों के नज़र में बहुत ही निंदनीय कार्य था; और अपने जीवन के अंत में, उन्हें दो चोरों के बीच सूली पर चढ़ा दिया गया। येशु पाप से घृणा करते थे, लेकिन वे पापियों को पसंद करते थे और लगातार उनकी दुनिया में जाने और उनकी शर्तों पर उनसे जुड़ने के लिए तैयार रहते थे। और यही पहली महान सुसमाचारीय शिक्षा है। सफल सुसमाचार प्रचारक पापियों के अनुभव से अलग नहीं रहते, उन पर आसानी से दोष नहीं लगाते, उन पर फैसला पारित नहीं करते, उनके लिए प्रार्थना दूर से नहीं करते; इसके विपरीत, वे उनसे इतना प्यार करते हैं कि वे उनके साथ जुड़ जाते हैं और उनके जैसे चलने और उनके अनुभव को महसूस करते हैं। येशु के जिज्ञासु प्रश्नों से प्रेरित होकर, यात्रियों में से एक, जिसका नाम क्लेओपस था, नाज़रेथ के येशु के बारे में सभी 'बातें' बताता है: "वे ईश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे। हमारे महायाजकों और शासकों ने उन्हें प्राणदंड दिलाया और क्रूस पर चढ़ाया। हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करनेवाले थे। आज सुबह, ऐसी खबरें आईं कि वे मृतकों में से जी उठे हैं।" क्लेओपस के पास सारे सीधे और स्पष्ट 'तथ्य' हैं; येशु के बारे में उसने जो कुछ भी कहा है, उसमें एक भी बात गलत नहीं है। लेकिन उसकी उदासी और यरूशलेम से उसका भागना इस बात की गवाही देता है कि वह पूरी तस्वीर को नहीं देख पा रहा है। मुझे न्यू यॉर्कर पत्रिका के कार्टून बहुत पसंद हैं, जो बड़ी चतुराई और हास्यास्पद तरीके से बनाए जाते हैं, लेकिन कभी-कभी, कोई ऐसा कार्टून होता है जिसे मैं समझ नहीं पाता। मैं सभी विवरणों को समझ लेता हूँ, मैं मुख्य पात्रों और उनके आस-पास की वस्तुओं को देखता हूँ, मैं कैप्शन को समझ लेता हूँ। फिर भी, मुझे समझ में नहीं आता कि यह हास्य कैसे पैदा करता है। और फिर एक पल आता है जब मुझे समझ में आता है: हालाँकि मैंने कोई और विवरण नहीं देखा है, हालाँकि पहेली का कोई नया टुकड़ा सामने नहीं आया है, लेकिन मैं उस पैटर्न को समझ जाता हूँ जो उन्हें एक सार्थक तरीके से एक साथ जोड़ता है। एक शब्द में, मैं कार्टून को 'समझ' जाता हूँ। क्लेओपस का वर्णन सुनकर, येशु ने कहा: “ओह, निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मंदमति हो।” और फिर येशु उनके लिए धर्मग्रन्थ के प्रतिमानों का खुलासा करते हैं, जिन घटनाओं को उन्होंने देखा है, उनका अर्थ बताते हैं। अपने बारे में कोई नया विवरण बताए बिना, येशु उन्हें रूप, व्यापक योजना और सरंचना, और उसका अर्थ दिखाते हैं - और इस प्रक्रिया के माध्यम से वे उसे 'समझना' शुरू करते हैं: उनके दिल उनके भीतर जल रहे हैं। यही दूसरी सुसमाचार शिक्षा है। सफल प्रचारक धर्मग्रन्थ का उपयोग दिव्य प्रतिमानों और विशेषकर उस प्रतिमान को प्रकट करने के लिए करते हैं, जो येशु में देहधारी हुआ है। इन प्रतिमानों का स्पष्टीकरण किये बिना, मानव जीवन एक अस्तव्यस्तता है, घटनाओं का एक धुंधलापन है, अर्थहीन घटनाओं की एक श्रृंखला है। सुसमाचार का प्रभावी प्रचारक बाइबल का व्यक्ति होता है, क्योंकि पवित्र ग्रन्थ वह साधन है जिसके द्वारा हम येशु मसीह को 'पाते' हैं और उसके माध्यम से, हमारे अपने जीवन को भी। जब वे एम्माउस शहर के पास पहुँचते हैं, तो वे दोनों शिष्य अपने साथ रहने के लिए येशु पर दबाव डालते हैं। येशु उनके साथ बैठते हैं, रोटी उठाते हैं, आशीर्वाद की प्रार्थना बोलते हैं, उसे तोड़ते हैं और उन्हें देते हैं, और उसी क्षण वे येशु को पहचान लेते हैं। हालाँकि, वे पवित्र ग्रन्थ के हवाले से देखना शुरू कर रहे थे, फिर भी वे पूरी तरह से समझ नहीं पाए थे कि वह कौन था। लेकिन यूखरिस्तीय क्षण में, रोटी तोड़ने पर, उनकी आँखें खुल जाती हैं। येशु मसीह को समझने का अंतिम साधन पवित्रग्रन्थ नहीं बल्कि पवित्र यूखरिस्त है, क्योंकि यूखरिस्त स्वयं मसीह है, जो व्यक्तिगत रूप से और सक्रिय रूप से उसमें मौजूद हैं। यूखरिस्त पास्का रहस्य का मूर्त रूप है, जो अपनी मृत्यु के माध्यम से दुनिया के प्रति येशु का प्रेम, सबसे हताश पापियों को बचाने के लिए पापी और निराश दुनिया की ओर ईश्वर की यात्रा, करुणा के लिए उनका संवेदनशील हृदय है। और यही कारण है कि यूखरिस्त की नज़र के माध्यम से येशु सबसे अधिक पूर्ण और स्पष्ट रूप से हमारी दृष्टि के केंद्र में आते हैं। और इस प्रकार हम सुसमाचार की तीसरी महान शिक्षा पाते हैं। सफल सुसमाचार प्रचारक यूखरिस्त के व्यक्ति हैं। वे पवित्र मिस्सा की लय की लहरों में बहते रहते हैं; वे यूखरिस्तीय आराधना का अभ्यास करते हैं; जिन्होंने सुसमाचार को स्वीकार किया है, उन लोगों को वे येशु के शरीर और रक्त में भागीदारी के लिए आकर्षित करते हैं। वे जानते हैं कि पापियों को येशु मसीह के पास लाना कभी भी मुख्य रूप से व्यक्तिगत गवाही, या प्रेरणादायक उपदेश, या यहाँ तक कि पवित्रग्रन्थ के व्यापक सरंचना के संपर्क का मामला नहीं होता है। यह मुख्य रूप से यूखरिस्त की टूटी हुई रोटी के माध्यम से ईश्वर के टूटे हुए दिल को देखने का मामला है। तो सुसमाचार के भावी प्रचारको, वही करो जो येशु ने किया। पापियों के साथ चलो, पवित्र ग्रन्थ खोलो, रोटी तोड़ो।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
Moreएक आकर्षक पहली मुलाकात, दूरी, फिर पुनर्मिलन...यह अनंत प्रेम की कहानी है। मुझे बचपन की एक प्यारे दिन की याद आती है, जब मैंने यूखरिस्तीय आराधना में येशु का सामना किया था। एक राजसी और भव्य मोनस्ट्रेंस या प्रदर्शिका में यूखरिस्तीय येशु को देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गई थी। सुगन्धित धूप उस यूखरिस्त की ओर उठ रही थी। जैसे ही धूपदान को झुलाया गया, यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की ओर धूप उड़ने लगी, और पूरी मंडली ने एक साथ गाया: " परम पावन संस्कार में, सदा सर्वदा, प्रभु येशु की स्तुति हो, महिमा हो, आराधना हो।" वह बहुप्रतीक्षित मुलाकात मैं खुद धूपदान को छूना चाहती थी और उसे धीरे से आगे की ओर झुलाना चाहती थी ताकि मैं धूप को प्रभु येशु तक पहुंचा सकूं। पुरोहित ने मुझे धूपदान को न छूने का इशारा किया और मैंने अपना ध्यान धूप के धुएं पर लगाया जो मेरे दिल और आंखों के साथ-साथ यूखरिस्त में पूरी तरह से मौजूद प्रभु की ओर बढ़ रहा था। इस मुलाकात ने मेरी आत्मा को बहुत खुशी से भर दिया। सुंदरता, धूप की खुशबू, पूरी मंडली का एक सुर में गाना, और यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की उपासना का दृश्य... मेरी इंद्रियाँ पूरी तरह से संतुष्ट थीं, जिससे मुझे इसे फिर से अनुभव करने की लालसा हो रही थी। उस दिन को याद करके मुझे आज भी बहुत खुशी होती है। हालाँकि, किशोरावस्था में, मैंने इस अनमोल निधि के प्रति अपना आकर्षण खो दिया, और खुद को पवित्रता के ऐसे महान स्रोत से वंचित कर लिया। हालांकि उन दिनों मैं एक बच्ची थी, इसलिए मुझे लगता था कि मुझे यूख्ररिस्तीय आराधना के पूरे समय लगातार प्रार्थना करनी होगी और इसके लिए एक पूरा घंटा मुझे बहुत लंबा लगता था। आज हममें से कितने लोग ऐसे कारणों से - तनाव, ऊब, आलस्य या यहाँ तक कि डर के कारण - यूखरिस्तीय आराधना में जाने से हिचकिचाते हैं? सच तो यह है कि हम खुद को इस महान उपहार से वंचित करते हैं। पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत अपनी युवावस्था में संघर्षों, परीक्षाओं और पीडाओं के बीच, मुझे याद आया कि मुझे पहले कहाँ से इतनी सांत्वना मिली थी, और उस सांत्वना के स्रोत को याद करते हुए मैं शक्ति और पोषण के लिए यूखरिस्तीय आराधना में वापस लौटी। पहले शुक्रवार को, मैं पूरे एक घंटे के लिए पवित्र संस्कार में येशु की उपस्थिति में चुपचाप आराम करती, बस खुद को उनके साथ रहने देती, अपने जीवन के बारे में प्रभु से बात करती, उनकी मदद की याचना करती और बार-बार तथा सौम्य तरीके से उनके प्रति अपने प्यार का इज़हार करती। यूखरिस्तीय येशु के सामने आने और एक घंटे के लिए उनकी दिव्य उपस्थिति में रहने की संभावना मुझे वापस खींचती रही। जैसे-जैसे साल बीतते गए, मुझे एहसास हुआ कि यूखरिस्तीय आराधना ने मेरे जीवन को गहन तरीकों से बदल दिया है क्योंकि मैं ईश्वर की एक प्यारी बेटी के रूप में अपनी सबसे गहरी पहचान के बारे में अधिक से अधिक जागरूक होती जा रही हूँ। हम जानते हैं कि हमारे प्रभु येशु वास्तव में और पूरी तरह से यूखरिस्त में मौजूद हैं - उनका शरीर, रक्त, आत्मा और दिव्यता यूखरिस्त में हैं। यूखरिस्त स्वयं येशु हैं। यूखरिस्तीय येशु के साथ समय बिताने से आप अपनी बीमारियों से चंगे हो सकते हैं, अपने पापों से शुद्ध हो सकते हैं और अपने आपको उनके महान प्रेम से भर सकते हैं। इसलिए, मैं आप सभी को नियमित रूप से यूखरिस्तीय प्रभु के सम्मुख पवित्र घड़ी बिताने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ। आप जितना अधिक समय यूखरिस्तीय आराधना में प्रभु के साथ बिताएँगे, उनके साथ आपका व्यक्तिगत संबंध उतना ही मजबूत होगा। शुरुआती झिझक के सम्मुख न झुकें, बल्कि हमारे यूखरिस्तीय प्रभु, जो स्वयं प्रेम और दया, भलाई और केवल भलाई हैं, उनके साथ समय बिताने से न डरें।
By: पवित्रा काप्पन
Moreजब आपका रास्ता मुश्किलों से भरा हो और आप को आगे का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा हो, तो आप क्या करेंगे? 2015 की गर्मी अविस्मरणीय थी। मैं अपने जीवन के सबसे निचले बिंदु पर थी - अकेली, उदास और एक भयानक स्थिति से बचने के लिए अपनी पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी। मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से थकी और बिखरी हुई थी, और मुझे लगा कि मेरी दुनिया खत्म होने वाली है। लेकिन अजीब बात यह है कि चमत्कार तब होते हैं जब हम उन चमत्कारों की कम से कम उम्मीद करते हैं। असामान्य घटनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से, ऐसा लग रहा था जैसे परमेश्वर मेरे कान में फुसफुसा रहा था कि वह मुझे संरक्षण दे रहा है। उस विशेष रात को, मैं निराश होकर, टूटी और बिखरी हुई बिस्तर पर लेटने गयी थी। सो नहीं पाने के कारण, मैं एक बार फिर अपने जीवन की दुखद स्थिति पर विचार कर रही थी और मैं अपनी रोज़री माला को पकड़ कर प्रार्थना करने का प्रयास कर रही थी। एक अजीब तरह के दर्शन या सपने में, मेरे सीने पर रखी रोज़री माला से एक चमकदार रोशनी निकलने लगी, जिसने कमरे को एक अलौकिक सुनहरी चमक से भर दिया। जैसे-जैसे यह रोशनी धीरे-धीरे फैलने लगी, मैंने उस चमकदार वृत्त के किनारे पर काले, चेहरेहीन, छायादार आकृतियाँ देखीं। वे अकल्पनीय गति से मेरे करीब आ रहे थे, लेकिन सुनहरी रोशनी तेज होती गई और जब भी वे मेरे करीब आने की कोशिश करते, तो वह सुनहरी रोशनी उन्हें दूर भगा देती। मैं स्तब्ध थी, और उस अद्भुत दृश्य की विचित्रता पर प्रतिक्रिया करने में असमर्थ थी। कुछ पलों के बाद, दृश्य अचानक समाप्त हो गया, कमरे में फिर से गहरा अंधेरा छा गया। बहुत परेशान होकर सोने से डरती हुई , मैंने टी.वी. चालू किया। एक पुरोहित, संत बेनेदिक्त की ताबीज़ (मेडल) पकड़े हुए थे और बता रहे थे कि यह ताबीज़ कैसे दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है। जब वे उस ताबीज़ पर अंकित प्रतीकों और शब्दों पर चर्चा कर रहे थे, मैंने अपनी रोज़री माला पर नज़र डाली - यह मेरे दादाजी की ओर से एक उपहार थी - और मैंने देखा कि मेरी रोज़री माला पर टंगे क्रूस में वही ताबीज़ जड़ी हुई थी। इससे एक आभास हुआ। मेरे गालों पर आँसू बहने लगे क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि जब मैं सोच रही थी कि मेरा जीवन बर्बाद हो रहा है तब भी परमेश्वर मेरे साथ था और मुझे संरक्षण दे रहा था। मेरे दिमाग से संदेह का कोहरा छंट गया, और मुझे इस ज्ञान में सांत्वना मिली कि मैं अब अकेली नहीं थी। मैंने पहले कभी संत बेनेदिक्त की ताबीज़ के अर्थ को नहीं समझा था, इसलिए इस नए विश्वास ने मुझे बहुत आराम दिया, जिससे परमेश्वर में मेरा विश्वास और आशा मजबूत हुई। अपार प्रेम और करुणा के साथ, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ मौजूद था, जब भी मैं फिसली तो मुझे बचाने के लिए वह तैयार था। यह एक सुकून देने वाला विचार था जिसने मेरे अस्तित्व को जकड लिया, मुझे आशा और शक्ति से भर दिया। मेरी आत्मा को प्राप्त नया रूप मेरे दृष्टिकोण में इस तरह के बदलाव ने मुझे आत्म-खोज और विकास की यात्रा पर आगे बढ़ाया। मैंने आध्यात्मिकता को अपने रोजमर्रा के जीवन से दूर की चीज़ के रूप में देखना बंद कर दिया। इसके बजाय, मैंने प्रार्थना, चिंतन और दयालुता के कार्यों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध विकसित करने की कोशिश की, यह महसूस करते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति केवल भव्य इशारों तक सीमित नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के सबसे सरल क्षणों में महसूस की जा सकती है। एक रात में पूरा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन मैंने अपने भीतर हो रहे सूक्ष्म बदलावों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। मैं अधिक धैर्यवान हो गयी हूं, तनाव और चिंता को दूर करना सीख गयी हूं, और इस तरह मैंने एक नए विश्वास को अपनाया है कि अगर मैं ईश्वर पर अपना भरोसा रखूंगी तो चीजें उसकी इच्छा के अनुसार सामने आएंगी। इसके अलावा, प्रार्थना के बारे में मेरी धारणा बदल गई है, जो इस समझ से उपजी एक सार्थक बातचीत में बदल गई है कि, भले ही उनकी दयालु उपस्थिति दिखाई न दे, लेकिन ईश्वर हमारी बात सुनता है और हम पर नज़र रखता है। जैसे कुम्हार मिट्टी को उत्कृष्ट कलाकृति में ढालता है, वैसे ही ईश्वर हमारे जीवन के सबसे निकृष्ट हिस्सों को ले सकता है और उन्हें कल्पना की जा सकने वाली सबसे सुंदर आकृतियों में ढाल सकता है। उन पर विश्वास और आशा हमारे जीवन में बेहतर चीजें लाएगी जो हम कभी भी अपने दम पर हासिल नहीं कर सकते हैं, और हमें अपने रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों के बावजूद मजबूत बने रहने में सक्षम बनाती हैं। * संत बेनेदिक्त का मेडल उन लोगों को दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद देते हैं जो उन्हें पहनते हैं। कुछ लोग उन्हें नई इमारतों की नींव में गाड़ देते हैं, जबकि अन्य उन्हें रोज़री माला से जोड़ते हैं या अपने घर की दीवारों पर लटकाते हैं। हालाँकि, सबसे आम प्रथा संत बेनेदिक्त के मेडल को ताबीज़ बनाकर पहनना या इसे क्रूस के साथ जोड़ना है।
By: अन्नू प्लाचेई
Moreमैं विश्वविद्यालय की एक स्वस्थ छात्रा थी, अचानक पक्षाघात वाली बन गयी, लेकिन मैंने व्हीलचेयर तक अपने को सीमित रखने से इनकार कर दिया… विश्वविद्यालय के शुरुआती सालों में मेरी रीढ़ की डिस्क खिसक गई थी। डॉक्टरों ने मुझे भरोसा दिलाया कि युवा और सक्रिय होने के कारण, फिजियोथेरेपी और व्यायाम के द्वारा मैं बेहतर हो जाऊंगी, लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद, मैं हर दिन दर्द में रहती थी। मुझे हर कुछ महीनों में गंभीर दौरे पड़ते थे, जिसके कारण मैं हफ्तों तक बिस्तर पर रहती थी और बार-बार अस्पताल जाना पड़ता था। फिर भी, मैंने उम्मीद बनाई रखी, जब तक कि मेरी दूसरी डिस्क खिसक नहीं गई। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी बदल गई है। ईश्वर से नाराज़! मैं पोलैंड में पैदा हुई थी। मेरी माँ ईशशास्त्र पढ़ाती हैं, इसलिए मेरी परवरिश कैथलिक धर्म में हुई। यहाँ तक कि जब मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए स्कॉटलैंड और फिर इंग्लैंड गयी, तब भी मैंने इस धर्म को बहुत प्यार से थामे रखा, करो या मरो के अंदाज़ में शायद नहीं, लेकिन यह हमेशा मेरे साथ था। किसी नए देश में जाने का शुरुआती दौर आसान नहीं था। मेरा घर एक भट्टी की तरह था, जहाँ मेरे माता-पिता अक्सर आपस में लड़ते रहते थे, इसलिए मैं व्यावहारिक रूप से इस अजनबी देश की ओर भाग गयी थी। अपने मुश्किल बचपन को पीछे छोड़कर, मैं अपनी जवानी का मज़ा लेना चाहती थी। अब, यह दर्द मेरे लिए नौकरी करना और खुद को आर्थिक रूप से संतुलित रखना मुश्किल बना रहा था। मैं ईश्वर से नाराज़ थी। फिर भी, वह मुझे जाने देने को तैयार नहीं था। भयंकर दर्द में कमरे के अन्दर फँसे होने के कारण, मैंने एकमात्र उपलब्ध शगल का सहारा लिया—मेरी माँ की धार्मिक पुस्तकों का संग्रह। धीरे-धीरे, मैंने जिन आत्मिक साधनाओं में भाग लिया और जो किताबें पढ़ीं, उनसे मुझे एहसास हुआ कि मेरे अविश्वास के बावजूद, ईश्वर वास्तव में चाहता था कि उसके साथ मेरा रिश्ता मजबूत हो। लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी कि वह अभी तक मुझे चंगा नहीं कर रहां था। आखिरकार, मुझे विश्वास हो गया कि ईश्वर मुझसे नाराज़ हैं और मुझे ठीक नहीं करना चाहता, इसलिए मैंने सोचा कि शायद मैं उन्हें धोखा दे सकती हूँ। मैंने चंगाई के लिए विख्यात और अच्छे 'आँकड़ों' वाले किसी पवित्र पुरोहित की तलाश शुरू कर दी ताकि जब ईश्वर दूसरे कामों में व्यस्त हों तो मैं ठीक हो सकूँ। कहने की ज़रूरत नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ। मेरी यात्रा में एक मोड़ एक दिन मैं एक प्रार्थना समूह में शामिल थी, मैं बहुत दर्द में थी। दर्द की वजह से एक गंभीर प्रकरण होगा, इस डर से, मैं वहाँ से जाने की योजना बना रही थी, तभी वहाँ के एक सदस्य ने पूछा कि क्या कोई ऐसी बात है जिसके लिए मैं उनसे प्रार्थना की मांग करना चाहूँगी। मुझे काम पर कुछ परेशानी हो रही थी, इसलिए मैंने हाँ कह दिया। जब वे लोग प्रार्थना कर रहे थे, तो उनमें से एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या कोई शारीरिक बीमारी है जिसके लिए मुझे प्रार्थना की ज़रूरत है। चंगाई करनेवाले लोगों की मेरी ‘रेटिंग' सूची के हिसाब से वे बहुत नीचे थे, इसलिए मुझे भरोसा नहीं था कि मुझे कोई राहत मिलेगी, लेकिन मैंने फिर भी 'हाँ' कह दिया। उन्होंने प्रार्थना की और मेरा दर्द दूर हो गया। मैं घर लौट आयी, और वह दर्द अभी भी नहीं थी। मैं कूदने, मुड़ने और इधर-उधर घूमने लगी, और मैं अभी भी ठीक थी। लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मैं ठीक हो गयी हूँ, तो किसी ने मुझ पर विश्वास नहीं किया। इसलिए, मैंने लोगों को बताना बंद कर दिया; इसके बजाय, मैं माँ मरियम को धन्यवाद देने के लिए मेडजुगोरे गयी। वहाँ, मेरी मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जो रेकी कर रहा था और मेरे लिए प्रार्थना करना चाहता था। मैंने मना कर दिया, लेकिन जाने से पहले उसने अलविदा कहने के लिए मुझे गले लगाया, जिससे मैं चिंतित हो गयी क्योंकि उसने कहा कि उसके स्पर्श में शक्ति है। मैंने डर को हावी होने दिया और गलत तरीके से मान लिया कि इस दुष्ट का स्पर्श ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। अगली सुबह मैं भयंकर दर्द में उठी, चलने में असमर्थ थी। चार महीने की राहत के बाद, मेरा दर्द इतना तीव्र हो गया कि मुझे लगा कि मैं वापस ब्रिटेन भी नहीं जा पाऊँगी। जब मैं वापस लौटी, तो मैंने पाया कि मेरी डिस्क नसों को छू रही थी, जिससे महीनों तक और भी ज़्यादा दर्द हो रहा था। छह या सात महीने बाद, डॉक्टरों ने फैसला किया कि उन्हें मेरी रीढ़ की हड्डी पर जोखिम भरी सर्जरी करने की ज़रूरत है, जिसे वे लंबे समय से टाल रहे थे। सर्जरी से मेरे पैर की एक नस क्षतिग्रस्त हो गई, और मेरा बायाँ पैर घुटने से नीचे तक लकवाग्रस्त हो गया। वहाँ और फिर एक नई यात्रा शुरू हुई, एक अलग यात्रा। मुझे पता है कि तू यह कर सकता है जब मैं पहली बार व्हीलचेयर पर घर पहुची, तो मेरे माता-पिता डर गए, लेकिन मैं खुशी से भर गयी। मुझे सभी तकनीकी चीजें पसंद थीं...हर बार जब कोई मेरी व्हीलचेयर पर बटन दबाता था, तो मैं एक बच्चे की तरह उत्साहित हो जाती थी। क्रिसमस की अवधि के दौरान, जब मेरा पक्षाघात ठीक होने लगा, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी नसों को कितना नुकसान हुआ है। मैं कुछ समय के लिए पोलैंड के एक अस्पताल में भर्ती थी। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे जीने वाली थी। मैं बस ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि मुझे एक और उपचार की आवश्यकता है: "तुझे फिर से खोजने की मेरी आवश्यकता है क्योंकि मुझे पता है कि तू यह कर सकता है।" इसलिए, मुझे एक चंगाई सभा के बारे में जानकारी मिली और मुझे विश्वास हो गया कि मैं ठीक हो जाऊंगी। एक ऐसा पल जिसे आप खोना नहीं चाहेंगे वह शनिवार का दिन था और मेरे पिता शुरू में नहीं जाना चाहते थे। मैंने उनसे कहा: "आप अपनी बेटी के ठीक होने पर उस पल को खोना नहीं चाहेंगे।" मूल कार्यक्रम में मिस्सा बलिदान था, उसके बाद आराधना के साथ चंगाई सभा थी। लेकिन जब हम पहुंचे, तो पुरोहित ने कहा कि उन्हें योजना बदलनी होगी क्योंकि चंगाई सभा का नेतृत्व करने वाली टीम वहां नहीं थी। मुझे याद है कि मेरे मन में उस समय यह सोच आई थी कि मुझे किसी टीम की ज़रूरत नहीं है: "मुझे केवल येशु की ज़रूरत है।" जब मिस्सा बलिदान शुरू हुआ, तो मैं एक भी शब्द सुन नहीं पाई। हम उस तरफ बैठे थे जहाँ दिव्य की करुणा की तस्वीर थी। मैंने येशु को ऐसे देखा जैसे मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। यह एक आश्चर्यजनक छवि थी। येशु बहुत सुंदर लग रहे थे! मैंने उसके बाद कभी भी वह तस्वीर नहीं देखी। पूरे मिस्सा बलिदान के दौरान, पवित्र आत्मा मेरी आत्मा को घेरा हुआ था। मैं बस अपने मन में 'धन्यवाद' कह रही थी, भले ही मुझे नहीं पता था कि मैं किसके लिए आभारी हूँ। मैं चंगाई की प्रार्थना का निवेदन नहीं कह पा रही थी, और यह निराशाजनक था क्योंकि मुझे चंगाई की आवश्यकता थी। जब आराधना शुरू हुई तो मैंने अपनी माँ से कहा कि वे मुझे आगे ले जाएँ, जितना संभव हो सके येशु के करीब ले जाएँ। वहाँ, आगे बैठे हुए, मुझे लगा कि कोई मेरी पीठ को छू रहा है और मालिश कर रहा है। मुझे इतनी तीव्रता का अनुभव और साथ साथ आराम भी मिल रहा था कि मुझे लगा कि मैं सो जाऊँगी। इसलिए, मैंने बेंच पर वापस जाने का फैसला किया, लेकिन मैं भूल गयी थी कि मैं 'चल' नहीं सकती। मैं बस वापस चली गई और मेरी माँ मेरी बैसाखियों के साथ मेरे पीछे दौड़ी, ईश्वर की स्तुति करते हुए, माँ कह रही थी: "तुम चल रही हो, तुम चल रही हो।" मैं पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु द्वारा चंगी हो गयी थी। जैसे ही मैं बेंच पर बैठी, मैंने एक आवाज़ सुनी: "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है।" मेरे दिमाग में, मैंने उस महिला की छवि देखी जो येशु के गुजरने पर उनके लबादे को छू रही थी। उसकी कहानी मुझे मेरी कहानी की याद दिलाती है। जब तक मैं इस बिंदु पर नहीं पहुँची जहाँ मैंने येशु पर भरोसा करना शुरू किया, तब तक कुछ भी मदद नहीं कर रहा था। चंगाई तब हुई जब मैंने उसे स्वीकार किया और उससे कहा: "तुम ही मेरी ज़रूरत हो।" मेरे बाएं पैर की सभी मांसपेशियाँ चली गई थीं और वह भी रातों-रात वापस आ गई। यह बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि डॉक्टर लोग पहले भी इसका माप ले रहे थे और उन्होंने एक आश्चर्यजनक, अवर्णनीय परिवर्तन पाया। ऊंची आवाज़ में गवाही इस बार जब मुझे चंगाई मिली, तो मैं इसे सभी के साथ साझा करना चाहती थी। अब मैं शर्मिंदा नहीं थी। मैं चाहती थी कि सभी को पता चले कि ईश्वर कितना अद्भुत है और वह हम सभी से कितना प्यार करता है। मैं कोई खास नहीं हूँ और मैंने इस चंगाई को प्राप्त करने के लिए कुछ खास नहीं किया है। ठीक होने का मतलब यह भी नहीं है कि मेरा जीवन रातों-रात बहुत आरामदायक हो गया। अभी भी कठिनाइयाँ हैं, लेकिन वे बहुत हल्की हैं। मैं उन कठिनाइयों को यूखरिस्तीय आराधना में ले जाती हूँ और येशु मुझे समाधान देता है, या उनसे कैसे निपटना है इस बारे में विचार देता है, साथ ही आश्वासन और भरोसा भी देता है कि वह स्वयं उनसे निपटेगा।
By: एनिया ग्रेग्लेवस्का
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