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अप्रैल 10, 2024 70 0 Ivonne J. Hernandez, USA
Evangelize

प्रार्थना कैसे करें

हम सभी कभी न कभी ईश्वर से जूझते हैं, लेकिन हमें वास्तव में शांति कब मिलती है?

हाल ही में, एक संघर्षरत मित्र ने मुझसे कहा: “मुझे यह भी नहीं पता कि किस बात के लिए प्रार्थना करनी है।” वह प्रार्थना करना चाहती थी, लेकिन वह कुछ ऐसी बात माँगते-माँगते थक गई थी जो नहीं मिल रह थी। मुझे तुरंत संत पीटर जूलियन आइमार्ड की यूखरिस्तिक तरीके की प्रार्थना याद आयी। वे हमें प्रार्थना के समय को मिस्सा बलिदान के चार छोरों के अनुसार ढालने के लिए आमंत्रित करता है: आराधना, धन्यवाद, प्रायश्चित और निवेदन।

एक बेहतर तरीका

प्रार्थना सिर्फ़ माँगने से कहीं ज़्यादा है, फिर भी कई बार ऐसा होता है जब हमारे प्रियजनों के बारे में हमारी ज़रूरतें और चिंताएँ इतनी ज़्यादा होती हैं कि हम सिर्फ़ माँगते हैं, माँगते हैं, विनती करते हैं और फिर कुछ और माँगते हैं। हम कह सकते हैं: “येशु, मैं इसे तेरे हाथों में छोड़ता हूँ,” लेकिन 30 सेकंड बाद, हम इसे ईश्वर के हाथों से छीन लेते हैं और समझाने लगते हैं कि हमें इसकी फिर से ज़रूरत क्यों है। हम चिंता करते हैं, परेशान होते हैं और नींद खो देते हैं। हम लंबे समय तक माँगना बंद नहीं करते इसलिए ईश्वर हमारे थके हुए दिलों में जो बात फुसफुसा रहा है, उसे हम सुन नहीं पाते हैं। हम कुछ समय तक ऐसे ही घूमते रहते हैं, और ईश्वर हमें जाने देता है। वह हमारे थक जाने का इंतज़ार करता है, यह महसूस करने के लिए कि हम उससे मदद नहीं माँग रहे हैं, बल्कि हम उसे यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उसे हमारी मदद किस किस तरह करने की ज़रूरत है। जब हम संघर्ष करते-करते थक जाते हैं और आखिरकार हार मान लेते हैं, तो हम प्रार्थना करने का एक बेहतर तरीका सीख जाते हैं।

फिलिप्पियों को लिखे अपने पत्र में, संत पौलुस हमें निर्देश देते हैं कि हमें परमेश्वर से अपनी याचनाएँ किस तरह से करनी चाहिए: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर बात में प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ अपने निवेदन परमेश्वर को प्रकट करो। तब परमेश्वर की शान्ति, जो हमारी समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और विचारों को मसीह येशु में सुरक्षित रखेगी।” (4:6-7) 

झूठ का मुकाबला करें

हम चिंता क्यों करते हैं? हम उत्कंठा में क्यों पड़ जाते हैं? क्योंकि, संत पेत्रुस की तरह, जिन्होंने येशु को देखना बंद कर दिया और डूबने लगे (मत्ती 14:22-33), हम भी सत्य को भूल जाते हैं और झूठ को सुनने का निर्णय लेते हैं। हर चिंता पूर्ण सोच की जड़ में एक बड़ा झूठ छिपा होता है — कि ईश्वर मेरी देखभाल नहीं करेगा, कि जो भी समस्या मुझे अभी परेशान कर रही है वह ईश्वर से बड़ी है, कि ईश्वर मुझे छोड़ देगा और मुझे भूल जाएगा … कि आखिरकार मुझसे प्यार करने वाला मेरा कोई पिता नहीं है।

हम इन झूठों का मुकाबला कैसे करें? सत्य के साथ।

सेंट पीटर जूलियन आइमार्ड याद दिलाते हैं, “हमें सरल और शांत दृष्टिकोण से ईश्वर की सच्चाइयों के बारे में अपने दिमाग के काम को सरल बनाना चाहिए।”

सत्य क्या है? मुझे संत मदर तेरेसा का उत्तर पसंद है: “विनम्रता ही सत्य है।” धर्मशिक्षा हमें बताती है कि “विनम्रता प्रार्थना का आधार है।” प्रार्थना हमारे दिल और दिमाग को ईश्वर की ओर उठाता है। यह एक वार्तालाप है, एक रिश्ता है। मैं किसी ऐसे व्यक्ति के साथ संबंध में नहीं रह सकती जिसे मैं नहीं जानती। जब हम अपनी प्रार्थना विनम्रता से शुरू करते हैं, तो हम ईश्वर कौन है और हम कौन हैं, इस सत्य को स्वीकार करते हैं। हम पहचानते हैं कि, अपने आप में, हम पाप और दुख के अलावा कुछ नहीं हैं, लेकिन ईश्वर ने हमें अपनी संतान बनायी है और उसमें हम सब कुछ कर सकते हैं (फिलिप्पी 4:13)।

यह वह विनम्रता, वह सत्य है, जो हमें पहले आराधना, फिर धन्यवाद, फिर पश्चाताप और अंत में निवेदन तक ले जाती है। यह उस व्यक्ति की स्वाभाविक प्रगति है जो पूरी तरह से ईश्वर पर निर्भर है। इसलिए जब हम नहीं जानते कि ईश्वर से क्या कहना है, तब हम उसकी स्तुति करें और उसके नाम की महिमा करें। आइए हम ईश्वर के सभी आशीर्वादों के बारे में सोचें और उसके द्वारा हमारे लिए किए गए सभी कार्यों के लिए उसे धन्यवाद दें। इससे हमें यह भरोसा करने में मदद मिलेगी कि यह वही ईश्वर है, जो हमेशा हमारे साथ रहा है, आज भी यहाँ है और अच्छे समय और मुश्किल समय में हमेशा हमारे साथ है।

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Ivonne J. Hernandez

Ivonne J. Hernandez is a lay Associate of the Blessed Sacrament, president of Elisheba House, and author of The Rosary: Eucharistic Meditations. She writes regularly for many Catholic blogs and lives in Florida with her husband and two of her young adult sons.

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