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जुलाई 27, 2021 1334 0 फादर जोसेफ गिल, USA
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प्रश्न-उत्तर

प्रश्न: इस वायरस के संकट ने मुझे एहसास दिलाया है कि मेरा जीवन कितना छोटा है, और अब मुझे चिंता होने लगी है – बीमार होने की चिंता, और मृत्यु से डर। जब मुझे पता ही नहीं होगा कि मैं कोरोना वायरस से बीमार हो जाऊंगा या नहीं, तो मैं शांति से कैसे रह सकता हूं?

उत्तर: हर समाचार चैनल नियमित रूप से कोरोना महामारी की खबर देता आ रहा है। इस बीमारी की खबरों से बचना कठिन है – ये खबरें प्राय: हर जगह मौजूद है। यहां तक कि इस साल की शुरुआत में कई महीनों के लिए पूरे देश के गिरजाघरों में सार्वजनिक मिस्सा बलिदान  को बंद कर दिया। मैंने एक गिरजाघर में पवित्र जल कुंड में आशीष किया गया हैण्ड सैनिटाइज़ेर भी देखा है!

सावधानी ज़रूरी है, लेकिन घबराहट बिलकुल अलग चीज़ है। मुझे लगता है कि बहुत से लोग (और संस्थाएं) एक आतंक-मोड के शिकार हो गए हैं जो ऐसे समय में न तो यथार्थवादी है, न ही सहायक है। इस वायरस के दौरान स्वस्थ रहने के लिए हम तीन चीजों को याद रखें:

सबसे पहले, डरिये नहीं। यह बाइबल में सबसे अधिक बार-बार कही गई वचनों में से एक है। वास्तव में, यह “डरो मत” वाक्यांश बाइबल में 365 बार दिखाई देता है – वर्ष के प्रत्येक दिन के लिए एक, क्योंकि हमें इसे हर दिन सुनने की आवश्यकता है।

हमें क्यों नहीं डरना चाहिए? क्योंकि सब कुछ ईश्वर के नियंत्रण में है। हमारी तर्कसंगत, विज्ञान-आधारित संस्कृति में, हम यह भूल जाते हैं – हम सोचते हैं कि मानव जाति की नियति हमारे ही हाथ में है। इसके विपरीत- सब कुछ पर ईश्वर का नियंत्रण है, और उसकी इच्छा की हमेशा जीत होगी। अगर यह उसकी इच्छा है कि हम इस बीमारी से ग्रसित होते हैं, तो हमें अपनी इच्छा को उसकी इच्छा के प्रति समर्पण करना होगा। हाँ, एहतियात बरतें, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा जीवन उसके हाथों में है। वह एक अच्छा पिता है जो अपने बच्चों का परित्याग नहीं करता है, लेकिन हमारी अच्छाई के लिए सब कुछ करता है। हां, “जो लोग ईश्वर से प्यार करते हैं, ईश्वर उनके कल्याण केलिए सभी बातो में उनकी सहायता करता है” – हाँ सभी बातों में: कोरोना महामारी में भी |

दूसरा, एक ख्रीस्तीय विश्वासी के रूप में हमें इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि हम सभी मरेंगे। यह पवित्र ग्रन्थ में कहा गया है (रोमियों 14: 8) कि “यदि हम जीते रहते हैं, तो हम प्रभु के लिए जीते हैं, और यदि मरते हैं, तो हम प्रभु के लिए मरते हैं; इस प्रकार, हम चाहे जीते रहें या मर जाएँ, हम प्रभु के ही हैं।” हम कभी-कभी सोचते हैं कि हम हमेशा के लिए मृत्यु से बच सकते हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते। हमारा जीवन हमारे लिए नहीं है जिस से कि हम उससे चिपके रहें – वह जीवन हमें प्रभु द्वारा ऋण पर दिया हुआ है, और हमें उसे किसी न किसी मौके पर येशु को लौटाना होगा। जिस दिन हम अनुभव करेंगे कि कभी इन उपहारों को हम पिता को लौटा देंगे, तो उस दिन हम अभूत पूर्व शांति का अनुभव करेंगे !

जैसा कि विख्यात ख्रीस्तीय लेखक जॉन एल्ड्रिज ने एक बार कहा था, “पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली व्यक्ति वह है जिसने अपनी ही मृत्यु को परखा है।” दूसरे शब्दों में, यदि आपको मृत्यु का भय नहीं है, तो आप अजेय हैं। उसी तरह, एक बार ख्रीस्तीय लोग इस तथ्य को स्वीकार कर लेते हैं कि उनका जीवन उनका अपना नहीं है, कि हमें किसी न किसी तरीके से ईश्वर के पास आना होगा, तो यह समझ हमें मृत्यु की डर से मुक्त करती है। यह समझ हमें जीवन के प्रति हमारे ऐसा अन्दर उन्मत्त लोभीपन या मोह से भी मुक्त करती है, जिसके कारण हम ऐसा जववन जीते है मानो कि इस भौतिक जीवन की रक्षा और संरक्षण ही सबसे महत्वपूर्ण बात है । हां, जीवन एक उपहार है, और हमें इसकी रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाना चाहिए। लेकिन जीवन का उपहार पूर्ण नहीं है – हम सभी को किसी न किसी समय पर वह उपहार प्रभु को लौटाना होगा। चाहे वह कोरोनो वायरस हो या कैंसर, कार दुर्घटना की त्रासदी हो या बुढ़ापा, हम सभी को मरना होगा। ख्रीस्तीय विश्वासी अपनी निगाहें उस अनंत जीवन की ओर लगाकर रहता है, जहां जीवन कभी समाप्त नहीं होगा।

अंत में,  बीमारों के प्रति हमें अपने कर्तव्यों को याद रखना चाहिए। हमारा कर्तव्य है कि हम बीमारों को न छोड़ें- भले ही वे संक्रामक बीमारी हों। जैसा कि 1576 के प्लेग के दौरान संत चार्ल्स बोरोमियो ने कहा था, “तुम्हारे जिम्मे में दिए गए लोगों की देखभाल करने के वास्ते इस नश्वर जीवन को त्यागने के लिए तैयार रहो।” हाल ही में, हमने रोम की संत फ्रांसेस की स्मृति का जश्न मनाया, जो 1440 के दशक में बड़े सामाजिक उथल-पुथल के समय में जीवित थी। उस संत ने अपना जीवन बीमारों को समर्पित कर दिया। उनके समकालीन एक धर्मबहन के शब्दों को सुनिये :

रोम में कई अलग-अलग बीमारियाँ व्याप्त थीं। घातक बीमारियां और प्लेग हर जगह थीं, लेकिन संत ने छूत के जोखिम को नजरअंदाज कर दिया और गरीबों और जरूरतमंदों के प्रति गहरी दया प्रदर्शित की। वे उनकी खोज में उन्हीं की झोपड़ियों और सार्वजनिक अस्पतालों में जाती थी, और उनकी प्यास को बुझाती, उनके बिस्तर को ठीक करती और उनके घावों पर मलहम पट्टी बांधती थी। दुर्गन्ध जितना अधिक घिनौना और अस्वस्थ करता था, उतना ही वे अधिक प्यार और देखभाल के साथ उनका इलाज करती थी । तीस वर्षों के लिए फ्रांसेस ने बीमार और अजनबी लोगों के लिए इस सेवा को जारी रखा… (सिस्टर मैग्डलीन एंगुलारिया द्वारा “रोम के संत फ्रांसेस का जीवन”)।

हमें भी, इस बीमारी से पीड़ित लोगों की देखभाल करने के तरीकों की तलाश करनी चाहिए । जो लोग इसके शिकार हो गए हैं, उनका तिरस्कार मत कीजिये ! यह हमारा ख्रीस्तीय कर्तव्य है,  करुणा और दया के पवित्र कार्यों में से एक है। सावधानी ज़रूर बरतें,  लेकिन जिन्हें हम सेवा दे रहे हैं अगर हम उनमे से किसी संक्रमित व्यक्ति से विषाणु की चपेट में आते हैं, तो यह श्वेत शहादत, प्रेम के क्रियान्वयन का एक रूप है।

और अंत में, हम खुद को याद दिलाएं कि यह सब ईश्वर के हाथों में है। अगर यह उसकी इच्छा है कि हम स्वस्थ रहें, इसके लिए हम ईश्वर की प्रशंसा करें। अगर यह उसकी इच्छा है कि हम बीमार हो जाएं, तो हम प्रभु के लिए अच्छे ढंग से पीड़ा भोगें । और अगर यह उसकी इच्छा है कि हम इस वायरस से मर जाएँ, तो हम अपने जीवन को उसके हाथों में सौंप दें।

तो, हाँ, सावधानी बरतें, यदि आप बीमार हैं तो घर पर रहें (बीमारी के कारण मिस्सा बलिदान छूट जाएँ तो   आप कोई पाप नहीं कर रहे हैं!), अपने हाथों को धोएँ और स्वस्थ रहने की कोशिश करें। और बाकी सब ईश्वर पर छोड़ दें ।

 

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फादर जोसेफ गिल

फादर जोसेफ गिल हाई स्कूल पादरी के रूप में एक पल्ली में जनसेवा में लगे हुए हैं। इन्होंने स्टुबेनविल के फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय और माउंट सेंट मैरी सेमिनरी से अपनी पढ़ाई पूरी की। फादर गिल ने ईसाई रॉक संगीत के अनेक एल्बम निकाले हैं। इनका पहला उपन्यास “Days of Grace” (कृपा के दिन) amazon.com पर उपलब्ध है।

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