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अगस्त 18, 2021 1724 0 बिशप रॉबर्ट बैरन, USA
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जीवन से परिपूर्ण मानव के द्वारा ईश्वर की महिमा होती है

“येशु मसीह मृतकों में से जी उठा है”, यही सुसमाचार का मूल सन्देश है| उस घोषणा से यह विश्वास भी पूरी तरह जुड़ा हुआ है कि ईश्वरीय व्यक्तित्व में कार्य करने और बोलने के येशु के अपने दावे सही हैं। और येशु की ईश्वरीयता से ही ख्रीस्तीय धर्म के आत्यंतिक मानवतावाद का सिद्धांत शुरू होता है।

इस लेख के द्वारा मैं इसी तीसरे सुसमाचारीय सिद्धांत के बारे में संक्षेप में बताना चाहता हूँ। कलीसिया के आचार्यों ने हमेशा देहधारण के अर्थ को इस सूत्र का उपयोग करके अभिव्यक्त किया: “ईश्वर मानव बन गए, ताकि मानव ईश्वर बनें”। उन्होंने देखा कि हमारी मानवता में ईश्वर का प्रवेश, यहां तक ​​कि व्यक्तिगत मिलन के बिंदु तक, मानव के सबसे बड़े प्रतिज्ञान और उन्नयन के लिए ही है। दूसरी शताब्दी के महान धर्मविज्ञानी, संत इरेनियस, ख्रीस्तीयता का सार इस अर्थगर्भित कहावत के माध्यम से व्यक्त करते हैं: “जीवन से परिपूर्ण मानव के द्वारा ईश्वर की महिमा होती है!”

अब मुझे एहसास होता है कि इसमें से बहुत कुछ सहज ज्ञान से युक्त नहीं है। कई लोगों के लिए, कैथलिक ख्रीस्तीयता मानवतावाद-विरोधी है, या एक ऐसी प्रणाली है जिसमें आत्म-अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने वाले (विशेष रूप से कामुकता से सम्बंधित) कानूनों की एक व्यूह रचना होती है। आधुनिक कथा वाचन के मानक के अनुसार, मानव प्रगति के समान ही मानव की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की वृद्धि भी है, और इस प्रगति का दुश्मन (यदि कथा वाचन के उप-पाठ के काले पक्ष को उभरने की अनुमति है तो) कुछ ऊधम मचाती है, तो वह नैतिकता को थोपने वाली ईसाइयत है। संत इरेनियस के अति उदारवाद ख्रीस्तीय मानवतावाद से आगे बढ़कर ईसाई धर्म को आधुनिक ज़माने में संदेह की धुरी पर लाकर मानव प्रगति के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में हमने कैसे पहुंचा दिया? बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि हम स्वतंत्रता को कैसे परिभाषित करते हैं।

स्वतंत्रता के जिस दृष्टिकोण ने हमारी वर्त्तमान संस्कृति को आकार दिया है, उसे हम उदासीनता की स्वतंत्रता कह सकते हैं। इसे पढ़ने पर, बस अपने झुकाव के आधार पर और अपने निर्णय के अनुसार “हां” या “नहीं” कहने की क्षमता को स्वतंत्रता कह सकते हैं, । यहां, व्यक्तिगत पसंद सर्वोपरि है। हम समकालीन आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में पसंद के इस विशेषाधिकार को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। लेकिन इस से बढ़कर स्वतंत्रता की एक शास्त्रीय समझ है, जो उत्कृष्टता के लिए स्वतंत्रता के रूप में जाना जाता है । इस पठन पर, इच्छा पर अनुशासन करना स्वतंत्रता है, ताकि अच्छे की उपलब्धि हो, पहले कोशिश द्वारा, फिर सहज रूप से। जिस तरह, जितना अधिक मेरा दिमाग और मनो-शक्ति भाषा के नियमों और परंपरा में प्रशिक्षित किये जायेंगे, उतना ही अधिक  मैं भाषा के अपने उपयोग में स्वतंत्र हो गया हूं। यदि मैं भाषा की दुनिया से पूरी तरह से जुड़ा हुआ हूं, तो मैं भाषा का पूरी तरह से मुक्त उपयोगकर्ता बन जाता हूं, मैं जो भी कहना चाहता हूं, जो कुछ भी कहना है, कह सकता हूं।

इसी तरह, यदि बास्केटबॉल खेल की चालों को व्यायाम और अनुशासन के माध्यम से मेरे शरीर में डाल दिया जाता है, तो मैं बास्केटबॉल खेलने में स्वतंत्र हो जाता हूं। अगर मैं बास्केटबॉल की दुनिया से पूरी तरह से प्रशिक्षित किया जाता, तो मैं माइकल जॉर्डन से भी बेहतर खिलाड़ी बन सकता था, क्योंकि जो भी खेल की मांग है, उसे मैं आसानी से कर पाता। उदासीनता की स्वतंत्रता के लिए, उद्देश्यपूर्ण नियम, आदेश और अनुशासन समस्या बन जाती हैं, क्योंकि उन्हें वर्जिश या प्रतिबन्ध के रूप में महसूस किया जाता है। लेकिन दूसरे प्रकार की स्वतंत्रता के लिए, इस तरह के कानून मुक्तियुक्त हैं, क्योंकि वे कुछ महान अच्छाई की उपलब्धि को संभव बनाते हैं। संत पौलुस ने कहा, “मैं येशु मसीह का दास हूं” और “इस स्वतंत्रता के लिए ही मसीह ने तुम्हें स्वतंत्र किया है।” उदासीनता की स्वतंत्रता के पैरोकार के लिए, इन दो दावों का आमने सामने द्वन्द बिलकुल समझ में नहीं आता है। किसी का गुलाम होना, जरूरी है कि यह स्वतंत्र न होने की बात है। लेकिन उत्कृष्टता की स्वतंत्रता के भक्त के लिए, पौलुस का बयान पूरी तरह से सुसंगत हैं। जितना अधिक मैं येशु मसीह के सामने आत्मसमर्पण करता हूं, जो स्वयं सबसे बड़े भले हैं, जो स्वयं ईश्वर का अवतार भी हैं, जितना ही स्वतंत्र मुझे होना चाहिए, उतना ही स्वतन्त्र मैं होने वाला हूं। जितना अधिक मसीह मेरे जीवन का स्वामी बन जाता है, उसकी नैतिकता की माँगों को जितना अधिक मैं पूरा करता हूँ, उतना ही मैं परमेश्‍वर की संतान बनूँगा, ताकि मैं पिता की ओर से आ रही बुलाहट का तुरंत जवाब दे सकूं।अंत में, मनुष्य को चुनने की भूख नहीं है; वह अच्छाई को चुनने के लिए भूखा है। वह लम्पट लोगों की स्वतंत्रता नहीं चाहता है; वह संत की स्वतंत्रता चाहता है। और सुसमाचारीकरण वास्तव में इस संत की स्वतंत्रता को ही प्रदान करता है, क्योंकि यह मसीह को प्रदान करता है। यह कहना अजीब लगता होगा कि नए नियम के महानतम प्रचारकों में से एक पोंतियुस पिलातुस है। उन्होंने कोड़ों की मार खाए येशु को भीड़ के सामने पेश करते हुए कहा, “देखिये इस मनुष्य को।” योहन के सुसमाचार की स्वादिष्ट विडंबना में, पिलातुस अनजाने में ही इस तथ्य पर ध्यान आकर्षित कर रहा है कि येशु अपने पिता की इच्छा को पूरी तरह सहमती देते हैं, यहां तक ​​कि यातना और मृत्यु को भी स्वीकार करने की सीमा तक, वास्तव में वह “मनुष्य” है, अर्थात मानवता अपने पूरे दम पर और सबसे मुक्त है । सुसमाचार के प्रचारक आज भी यही काम करते हैं। कलीसिया मसीह को घोषित करती है – मानवीय स्वतंत्रता और ईश्वरीय सत्य, दोनों को पूर्ण सामंजस्य में रखती है – और वह कहती है, “देखो मानवता को; तुम सबसे अच्छे यही बन सकते हो।”

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बिशप रॉबर्ट बैरन

बिशप रॉबर्ट बैरन लेख मूल रूप से wordonfire.org पर प्रकाशित हुआ था। अनुमति के साथ पुनर्मुद्रित।

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