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अगस्त 12, 2021 1302 0 Emily Shaw, Australia
Evangelize

जब राहें मुश्किल हो जाएं

ज़िंदगी में संघर्ष कर सफल होने के तीन तरीके हैं।

 कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है कि जो चीज़ें हम करना चाहते हैं उन्हें नहीं कर पाते हैं और जिन चीज़ों से हम दूर रहना चाहते हैं उन्हें ही कर डालते हैं। संत पौलुस के मन में भी यही उलझन थी (रोमियों 7:15)। और क्यों आखिर में हमें एक वैश्विक महामारी से गुज़र कर ही यह समझ आया कि कौनसी आदतें लाभकारी हैं और कौनसी आदतें बेवजह? इस महामारी से पहले न जाने हमारी ज़िंदगी को कितनी ही फिज़ूल बातों ने घेर रखा था। पर फिर इस महामारी ने आकर दुनिया में बीमारी और मौत फैलाई जिसने कहीं न कहीं हमारे कठोर दिल को पिघलाने का काम किया।

कई लोगों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना बड़ी ही मुश्किल का काम रहा है लेकिन कई लोगों के लिए यह नियम लाभकारी रहा है। जितना ज़्यादा समय हमने एकांत में बिताया उतना ही ज़्यादा हम ईश्वर के करीब आ पाए हैं और हमें अपने जीवन में जो ज़रूरी है उस पर मनन चिंतन करने का अवसर मिला। जब हम इन पाबंदियों से मुक्त हो कर वापस बाहर की दुनिया में प्रवेश करेंगे तब हम फिर से पुरानी आदतों को अपनाने की भूल कर सकते हैं। इसीलिए पिछले कुछ महीनों में अपने निजी जीवन में जो प्रगति की है उसे बरकरार रखने के लिए हमें एक अच्छे कैथलिक की तरह अपने हाथों को गंदा करने, रोज़री की धूल झाड़ने, वेदी पर मोमबत्ती जलाने और अपने मन को स्वर्ग की ओर करने की आवश्यकता है। इन सब के साथ हमें तीन कदम उठाने हैं जिससे हम अपनी आध्यात्मिक प्रगति में दृढ़ रह पाएं।

लगातार प्रार्थना करें

यह अच्छी बात है कि हम अपनी हर दुख तकलीफ में ज़ोरों से प्रार्थना करते हैं, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब हमारे जीवन में किसी बात की आवश्यकता होती है तब खूब प्रार्थना करना आसान होता है। लेकिन जब ज़िंदगी आराम से चल रही हो, ध्यान रहे, तब आलस्य होकर उत्साह न खो दें, बल्कि उस समय लगातार प्रार्थना करना बहुत ज़रूरी है।

जब आप वापस अपनी पुरानी दिनचर्या में जाएं तब अपनी प्रार्थना के समय को अपनी दिनचर्या के अनुसार न बदलें। बल्कि अपनी दिनचर्या को अपनी प्रार्थना के समय के अनुसार बदलें। अगर इस महामारी के दौरान आपने प्रार्थना, ध्यान और मनन चिंतन को ज़्यादा समय दिया तो कोशिश होनी चाहिए  कि स्कूल और काम पर वापस जाने के बाद आप प्रार्थना, ध्यान और मनन चिंतन के समय में कटौती न करें।

प्रार्थना की मात्रा में कटौती न करने के नए उपाय खोजें – काम पर जाते वक्त आप कार में भजन, प्रार्थनाएं या प्रवचन सुन सकते हैं, आप डिनर के ठीक बाद खाने की मेज़ पर ही शाम की प्रार्थना कह सकते हैं, किसी दिन रोज़री, तो किसी दिन नोवेना, तो किसी दिन सिर्फ बाइबल पाठ कर सकते हैं।

रविवार मिस्सा को एक जिम्मेदारी से अधिक महत्त्व देना

इस वक्त हम पवित्र मिस्सा में भाग लेने और पवित्र यूखरिस्त ग्रहण करने के लिए लालायित हैं। इतने महीने हम इस कृपा से वंचित जो रहे हैं। जैसा कि लोग कहते हैं, “किसी चीज़ की कमी हमें उसकी असल अहमियत से परिचित करा देती है।”

लेकिन जब चर्च जा पाना फिर से आसान हो जाएगा तब भी क्या हम इसी प्रकार पवित्र मिस्सा और यूखरिस्त के लिए भूखे होंगे? अपनी पुरानी दिनचर्या में वापस जाने पर हर रविवार के मिस्सा में शामिल होना हमारे लिए किसी संघर्ष से कम नही होगा। इसीलिए हमें रविवार के मिस्सा को एक आदत, एक ज़िम्मेदारी से बढ़कर एक आशीष, एक कृपा के रूप में देखना चाहिए।

इसी विचार पर मनन चिंतन करते हुए जोसव् मारिया एस्क्रिवा ने कहा है, “कई ईसाई जन अपनी ज़िंदगियां आराम से जीते हैं (उन्हें किसी बात की जल्दबाज़ी नही होती)। अपने व्यवसायिक जीवन में भी वह हर काम आराम से करते हैं (वे हर काम को समय देते हैं)। लेकिन कितनी अजीब बात है कि यही लोग प्रार्थना के मामले में जल्दबाज़ी करते हुए देखे जाते हैं। वे चाहते हैं कि पुरोहित प्रार्थनाएं जल्दी जल्दी पढ़े और मिस्सा बलिदान की विधि को छोटा किया जाए।

हम ईश्वर को अपना ज़्यादा समय कैसे दे सकते हैं?

आप अपना पूरा रविवार ईश्वर को समर्पित करें। हां मिस्सा बलिदान में भाग लें पर यहीं अपनी भक्ति न रोकें। अपनी पल्ली में एक समुदाय का निर्माण करें। रविवार के मिस्सा के बाद एक दूसरे के साथ चाय पानी पिएं या किसी परिवार को अपने घर चाय या खाने पर बुलाएं। कभी रविवार के मिस्सा के लिए जल्दी आ कर पाप स्वीकार करने की कोशिश करें, या सुबह के मिस्सा से पहले अपने परिवार के साथ मिलकर रोज़री माला बोलें, या एकांत में प्रार्थना करें।

अतिरिक्त चीज़ो को अलग करें

लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग ने हमारे जीवन की उन तमाम बातों को छांट दिया जिसमें हम अपना वक्त बर्बाद किया करते थे। शायद इस महामारी ने हमें अपनी गतिविधियों को जांचने का मौका दिया। ऐसी कौनसी चीज़ें, आदतें हैं जिनकी हमें याद आई या याद नही आई। और वो कौनसी ऐसी चीज़ें, आदतें थी जिनकी हमें ज़रूरत थी, या ज़रूरत नही थी?

क्या हमारी दिनचर्या बेमतलब की उलझी हुई है? क्या जो भी हम करते हैं वह हमें सिर्फ तनाव और डरावने सपने देता है? क्या बच्चों को हर एक पाठ्येतर कार्यक्रम (एक्स्ट्रा करिकुलर प्रोग्राम) में डालना ज़रूरी है? क्या हम बच्चों को पाठ्येतर कार्यक्रमों से दूर रख कर उनके साथ गलत कर रहे हैं या उन्हें पाठ्येतर कार्यक्रमें में डाल कर उनका भला कर रहे हैं? शायद अब वक्त आ गया है कि हम जापान की मशहूर प्रबंधन विशेषज्ञ  मेरी कोंडो की तरह इन पाठ्येतर कार्यों को भी छांटे ताकि हमारा परिवार हर चीज़ का एक स्वस्थ मिश्रण बन सके।

हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारा काम, हमारी ज़िम्मेदारियों को जाने वाला समय, हमारे पारिवारिक समय से कम हो। परिवार का एक साथ होना, एक दूसरे के साथ समय बिताना, परिवार को अंदर से मज़बूत करने के लिए बहुत ज़रूरी है। एक साथ बैठ के खेल खेलना, कभी मिलकर खाना बनाना, कभी सैर पर जाना, साइकिल चलाना, इन्हीं सारी बातों से ही तो वे यादें बनती हैं जिन्हें बच्चे आगे चलकर याद करते हैं।

इस महामारी ने हमें हमारी प्राथमिकताओं और हमारे आध्यात्मिक जीवन को गहराई से जांचने का अवसर दिया है। और इस बात में कोई शक नही है कि इस समय हम जिन तकलीफों और परेशानियों से गुज़रते हैं, उसके बदले ईश्वर से हमें वे कृपाएं मिलेंगी जिससे हम अपने जीवन में ज़रूरी बदलाव ला पाएंगे।

देखा जाए तो यह समय खुद में बदलाव लाने के लिए बहुमूल्य समय है।

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Emily Shaw

Emily Shaw ऑस्ट्रेलियाई कैथलिक प्रेस एसोसिएशन की पुरस्कार विजेता संपादक रह चुकी हैं, जो कि अब Youngcatholicmums.com के लिए ब्लॉग लिखा करती है और कैथलिक-लिंक में अपने लेखों द्वारा योगदान करती हैं। वह गृहणी सात बच्चों की मां हैं। वह ग्रामीण ऑस्ट्रेलिया में रहती है और अपनी स्थानीय कैथलिक समुदाय में आध्यात्मिक मदद करना पसंद करती हैं।

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