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अपने प्रार्थनामय जीवन में एक नया उपमार्ग खोजने के लिए इस लेख को पढ़ते रहें |
कुछ सालों पहले, मेरी बहन के घर के नल से कहीं पानी का लगातार रिसाव की बड़ी समस्या थी। घर पर कहीं भी पानी के रिसाव का पता नहीं चल रहा था, लेकिन उसका पानी का बिल 70 डॉलर प्रति माह से बढ़कर 400 डॉलर प्रति माह हो गया। उन्होंने रिसाव के स्रोत का पता लगाने की कोशिश की, उसके बेटे ने बहुत खुदाई की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
कई दिनों की निरर्थक खोज के बाद, एक मित्र को एक उपाय सूझा। उसका विचार था कि रिसाव को खोजने की कोशिश करनी बंद की जाये। बजाय इसके, पानी के पाइप के सिरे पर जाया जाये, नई पाइपिंग की जाये, और नए पाइप को किसी उपमार्ग से अर्थात नए रास्ते पर बिछाया जाये और पुरानी पाइपलाइन को पूरी तरह से छोड़ दिया जाये।
उन्होंने वैसा ही किया। एक दिन की कड़ मशक्कत और बहुत सी खुदाई के बाद, उन्होंने उस योजना को पूरा किया और देखो! समस्या ठीक हो गई, और मेरी बहन के पानी का बिल फिर से सामान्य हो गया |
जैसा ही मैंने इस पर विचार किया, मेरे विचार अनुत्तरित प्रार्थनाओं पर गया। कभी-कभी हम लोगों के लिए या कुछ परिस्थितयों को बदलने के लिए प्रार्थना कर रहे होते हैं और उन प्रार्थनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता। परमेश्वर के कान तक पाइप लाइन में लगता है कि “रिसाव” है। या हम लगातार प्रार्थना करते हैं जिससे कि किसी का मन परिवर्त्तन हो, किसी का गिरजाघर में वापसी हो जाए, या हम किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं जो कुछ समय से बेरोजगार हो, या हम गंभीर स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से जूझ रहे किसी व्यक्ति के उपचार के लिए प्रार्थना करते हैं। स्थिति कैसी भी हो, हमें कोई प्रगति दिखाई नहीं देती और हमारी प्रार्थनाएँ व्यर्थ या बेकार लगने लगती हैं।
मुझे याद है कि मैं जिस मिशनरी संगठन के साथ काम करती हूँ, उसमें एक बहुत ही कठिन व्यक्तिगत संघर्ष के लिए मुझे प्रार्थना करनी थी। यह एक ऐसी स्थिति थी जो बहुत तनावपूर्ण थी और मेरी भावनात्मक और शारीरिक ऊर्जा को खत्म कर रही थी। प्राकृतिक स्तर पर मैंने जो कुछ भी करने की कोशिश की,मानो ऐसा लग रहा था कि उसका कोई हल ही नहीं है , और समाधान के लिए मेरी प्रार्थनाओं का कोई असर नहीं दिख रहा था। एक दिन अपनी प्रार्थना में, मैंने हताशा में फिर से परमेश्वर को पुकारा और अपने दिल में एक शांत, सौम्य आवाज़ सुनी, “इसे मुझे सौंप दो। मैं इसका हल करूंगा| “
मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है, बिलकुल एक प्लंबिंग बाईपास के सामान। इस बिंदु तक मेरा रवैया ही मेरे प्रयासों से स्थिति को हल करने की कोशिश कर रहा था: मध्यस्थता करना, बातचीत करना, विभिन्न प्रकार के समझौते करना और उसमें शामिल विभिन्न पक्षों को शांत करना। लेकिन चूंकि कुछ भी काम नहीं आया था और चीजें केवल बदतर होती गईं, मुझे पता था कि परमेश्वर को इन्हें संभालने की अनुमति देने की जरूरत है। इसलिए मैंने उसे अपनी स्वीकृति दी। “हे प्रभु, मैं यह सब तुझे सौंप देती हूं। तुझे जो कुछ भी करना है वह कर, और मैं सहयोग करूँगी।”
प्रार्थना के लगभग 48 घंटों के भीतर ही स्थिति पूरी तरह से सुलझ गई। जितनी तेजी से मेरी सांसें रुकी हुई थी, उतनी ही तेजी से उनमें से एक पक्ष ने अच्छा निर्णय लिया, जिसके कारण सब कुछ पूरी तरह से बदल गया, और तनाव और संघर्ष भी समाप्त हो गया। मैं विस्मित थी और जो हुआ था उस पर विश्वास नही कर पा रही थी।
मैंने क्या सीखा? अगर मैं किसी चीज या किसी के लिए एक निश्चित तरीके से प्रार्थना कर रही हूं और मुझे कोई सफलता नहीं दिख रही है, तो शायद मुझे प्रार्थना करने के तरीके को बदलने की जरूरत है। पवित्र आत्मा से पूछने की ज़रुरत है कि “मुझे इस व्यक्ति के लिए प्रार्थना करने की क्या कोई और तरीका है? क्या मुझे कुछ और माँगना चाहिए, कोई विशिष्ट अनुग्रह जो उन्हें अभी चाहिए?” शायद हमें “नल का कोई उपमार्ग ” जैसे कोई दूसरा मार्ग मिल जाए।
रिसाव का स्रोत या प्रतिरोध के स्रोत को खोजने की कोशिश करने के बजाय, हम प्रार्थना कर सकते हैं कि हे परमेश्वर इसे दरकिनार कर दे। परमेश्वर बहुत रचनाशील है (वही रचनात्मकता का स्रोत या मूल निर्माता है) और अगर हम उनके साथ सहयोग करना जारी रखते हैं, तो वह मुद्दों को हल करने और अनुग्रह लाने के लिए अन्य तरीकों के साथ आएगा जिनके बारे में हमने सोचा भी नहीं होगा। परमेश्वर को परमेश्वर रहने दो और उसे चलने और चलाने के लिए जगह दें।
मेरे मामले में, मुझे रास्ते से हटना था, विनम्रता से स्वीकार करना था कि मैं जो कर रही थी वह व्यर्थ था, और उसे प्रभु को और अधिक गहराई से समर्पण करना था जिससे प्रभु को कार्य करने का अवसर मिले। लेकिन प्रत्येक स्थिति अलग होती है, इसलिए परमेश्वर से पूछें कि वह आपसे क्या चाहता है और उसके निर्देशों को सुनें। अपनी क्षमता के अनुसार उनका पालन करें और परिणाम उसके हाथों में छोड़ दें। और याद रखें कि येशु ने क्या कहा: “जो मनुष्यों के लिए असंभव है, वह परमेश्वर के लिए संभव है।“ (लूकस 18:27)
एलेन होगार्टी एक आध्यात्मिक निर्देशिका, लेखिका और लॉर्ड्स रैंच संस्था में पूर्णकालिक मिशनरी के रूप में कार्यरत हैं। गरीब जनों के प्रति इनके कार्यों के बारे में और जानने के लिए thelordsranchcommunity.com पर जाएं।
अगर मैं उस अंधकार से नहीं गुज़री होती, तो मैं आज जहाँ हूँ, वहाँ नहीं होती। मेरे माता-पिता वास्तव में चाहते थे कि उनका भरापूरा परिवार हो। लेकिन मेरी माँ 40 वर्ष की आयु तक गर्भ धारण नहीं कर पाई। मैं उनकी चमत्कारी बच्ची थी। मैं माँ के जन्मदिन पर पैदा हुई थी। माँ एक बच्चा पाने के लिए एक साल से निवेदन करती हुई विशेष नौरोज़ी प्रार्थना (नोवेना) कर रही थी। एक साल की नौरोज़ी प्रार्थना पूरा करने के ठीक उसी दिन मेरा जन्म हुआ था। मेरे जन्म के एक साल बाद प्रभु ने उपहार में एक छोटा भाई भी दिया। मेरा परिवार नाममात्र कैथलिक था; हम रविवार के मिस्सा बलिदान में जाते थे और पवित्र संस्कार प्राप्त करते थे, लेकिन इससे ज़्यादा कुछ नहीं था। जब मैं लगभग 11 या 12 वर्ष की थी, तो मेरे माता-पिता ने कलीसिया से मुंह मोड़ लिया और मेरे विश्वास-जीवन में अविश्वसनीय रूप से लंबा विराम लग गया। तड़पती हुई पीड़ा किशोरावस्था का दौर दबाव से भरा हुआ था, जिनमें से बहुत कुछ मैंने खुद अपने ऊपर थोपा था। मैं खुद की तुलना दूसरी लड़कियों से करती थी; मैं अपनी शक्ल-सूरत से खुश नहीं थी। मैं बहुत ज़्यादा आत्म-चेतन और चिंतित रहती थी। हालाँकि मैं पढ़ाई में अव्वल थी, लेकिन मेरा स्कूली जीवन मेरे लिए मुश्किल का दौर था क्योंकि मैं बहुत महत्वाकांक्षी थी। मैं आगे बढ़ना चाहती थी - लोगों को दिखाना चाहती थी कि मैं सफल और बुद्धिमान हो सकती हूँ। हमारे परिवार के पास ज़्यादा पैसे नहीं थे, इसलिए मैंने सोचा कि मुझे अच्छी पढ़ाई करके और अच्छी नौकरी पाना चाहिए, जिससे सब समस्याओं का समाधान हो जाएगा। इसके बजाय, मैं और भी उदास होती गई। मैं खेलकूद और जश्न-समारोहों में जाती, लेकिन अगले दिन उठकर मैं खुद को खाली महसूस करती। मेरे कुछ अच्छे दोस्त थे, लेकिन उनके भी अपने संघर्ष थे। मुझे याद है कि मैं उनका साथ देने की कोशिश करती थी और आखिर में मैं सवाल उठाने लगती थी कि मेरे आस-पास के सभी दुखों के पीछे का कारण क्या है। मैं खोई हुई थी, और इस उदासी ने मुझे खुद को दुनिया से अलग करके बंद रहने और खुद में सिमटने पर मजबूर कर दिया। जब मैं लगभग 15 साल की थी, तो मुझे खुद को नुकसान पहुँचाने की आदत पड़ गई; जैसा कि मुझे बाद में पता चला, उस उम्र में, मेरे पास परिपक्वता नहीं थी या मैं जो महसूस कर रही थी, उसके बारे में बोलने की क्षमता नहीं थी। जैसे-जैसे दबाव बढ़ता गया, मैं कई बार आत्महत्या के विचारों में डूब गयी। एक बार अस्पताल में भर्ती होने के दौरान, डॉक्टरों में से एक ने मुझे बहुत पीड़ा में देखा और पूछा: "क्या तुम ईश्वर में विश्वास करती हो? क्या तुम मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करती हो?" मुझे लगा कि यह सबसे अजीब सवाल था, लेकिन उस रात, मैं ने इस सवाल को याद करके इस पर विचार किया। तभी मैंने मदद के लिए ईश्वर को पुकारा: "हे ईश्वर, अगर तू मौजूद है, तो कृपया मेरी मदद कर। मैं जीना चाहती हूँ - मैं अपना जीवन अच्छे कामों में बिताना चाहती हूँ, लेकिन मैं खुद से प्यार करने में भी सक्षम नहीं हूँ। मैं जो कुछ भी करती हूँ, उन सबका कोई मतलब नहीं निकाल पाती हूँ, इसलिए मैं उदासी और दुःख में टूटकर बिखर जाती हूँ।" मदद का हाथ मैंने माँ मरियम से बात करना शुरू किया, उम्मीद है कि शायद वह मुझे समझ सकें और मेरी मदद कर सकें। कुछ ही समय बाद, मेरी माँ की सहेली ने मुझे मेजुगोरे की तीर्थयात्रा पर जाने के लिए आमंत्रित किया। मैं वास्तव में ऐसा नहीं करना चाहती थी, लेकिन एक नए देश और अच्छे मौसम को देखने की जिज्ञासा के कारण मैंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया। मैं रोज़री माला की प्रार्थना कर रहे लोगों, उपवास करने वाले लोगों, पहाड़ों पर चलने और मिस्सा में जाने वाले लोगों से घिरी हुई थी, मेरा मन उसमे रम नहीं पा रहा था, लेकिन साथ ही, मैं थोड़ी उत्सुक भी थी। यह कैथलिक युवाओं के उत्सव का समय था, और वहाँ लगभग 60,000 युवा लोग थे, जो हर दिन रोज़री माला की प्रार्थना करते हुए मिस्सा और आराधना में भाग ले रहे थे; इसलिए नहीं कि उन्हें मजबूर किया गया था, बल्कि खुशी से, शुद्ध इच्छा से और बड़े लगन के साथ वे भाग ले रहे थे। मैं बड़े आश्चर्य के साथ सोचने लगी कि क्या इन लोगों के अपने सही परिवार हैं, जो उनके लिए विश्वास करने, ताली बजाकर भजनों को गाने, नृत्य करने और यह सब भक्ति के कार्य को करने में वास्तव में उनके लिए आसान बना रहा था। सच कहूँ तो, मैं उन युवाओं जैसी खुशी के लिए तरस रही थी! जब हम उस तीर्थयात्रा पर थे, तो हमने पास के सेनाकोलो समुदाय में कुछ लड़कियों और लड़कों की गवाही सुनी, और उनकी गवाहियों ने वास्तव में मेरे लिए सब कुछ बदल डाला। 1983 में, एक इतालवी साध्वी ने सेनाकोलो समुदाय की स्थापना की थी ताकि उन युवाओं की मदद की जा सके जिनके जीवन ने गलत मोड़ ले लिया था। अब, यह संगठन दुनिया भर के कई देशों में पाया जा सकता है। मैंने स्कॉटलैंड की एक लड़की की कहानी सुनी जिसे नशीली दवाओं की समस्या थी; उसने अपनी जान लेने की भी कोशिश की थी। मैंने खुद से कहा: "अगर वह इतनी खुशी से रह सकती है, अगर वह उन सारे दर्द और पीड़ा से बाहर आ सकती है और वास्तव में ईश्वर में विश्वास कर सकती है, तो शायद इसमें मेरे लिए भी ईश्वर की कुछ योजना होगी।" मेजुगोरे में रहने के दौरान मुझे एक और बड़ी कृपा मिली, वह यह कि मैं कई सालों बाद पहली बार पाप स्वीकार संस्कार के लिए गयी। मुझे नहीं पता था कि क्या उम्मीद करनी है। लेकिन अंत में पाप स्वीकार संस्कार में जाकर मैं ने दूसरों और खुद को चोट पहुँचाने वाली सभी बातों के बारे में ईश्वर के सम्मुख कहा तो मैंने अनुभव किया कि मेरे कंधों से बहुत बड़ा बोझ उतर गया है। मुझे बस शांति महसूस हुई, और मैं एक नई शुरुआत करने के लिए पर्याप्त रूप से स्वच्छ महसूस कर रही थी। मैं वापस आयी और आयरलैंड के एक विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, लेकिन मुझे पर्याप्त समर्थन नहीं पाने के कारण, मैं फिर से अस्पताल में आ गयी। रास्ते की खोज यह महसूस करते हुए कि मुझे मदद की ज़रूरत है, मैं इटली वापस गयी और सेनाकोलो समुदाय का हिस्सा बन गयी। यह आसान नहीं था। सब कुछ नया था—भाषा, प्रार्थना, अलग-अलग व्यक्तित्व, संस्कृतियाँ—लेकिन इसमें एक सच्चाई थी। कोई भी मुझे किसी बात के लिए मनाने की कोशिश नहीं कर रहा था; हर कोई प्रार्थना, काम और सच्ची दोस्ती में अपना जीवन जी रहा था, और यही उन्हें चंगाई प्रदान कर रहा था। वे शांति और आनंद से जी रहे थे, और यह बनावटी नहीं बल्कि वास्तविक था। मैं हर दिन, पूरे दिन उनके साथ थी—मैंने इसे पूरा का पूरा अनुभव किया, आनंद लिया। मैं यही चाहती थी! उन दिनों जिस चीज़ ने वास्तव में मेरी मदद की, वह थी आराधना। मुझे नहीं पता कि मैं कितनी बार परम पवित्र संस्कार के सामने रोयी। कोई चिकित्सक मुझसे बात नहीं कर रहा था, कोई भी मुझे कोई दवा देने की कोशिश नहीं कर रहा था, बस ऐसा लग रहा था कि मैं शुद्ध हो रही हूँ। समुदाय में भी, ईश्वर के अलावा कुछ भी खास नहीं था। मैंने दूसरों की सेवा करना शुरू कर दिया, और इसी ने मुझे अपने अवसाद से बाहर निकलने में मदद की। जब तक मैं अपने आप को, अपने घावों और समस्याओं को देखती रही, मैं खुद को और भी बड़े गड्ढे में धकेलती रही। सामुदायिक जीवन ने मुझे खुद से बाहर आने, दूसरों की ओर देखने और उन्हें आशा देने की कोशिश करने के लिए मजबूर किया, वह आशा जो मुझे मसीह में मिल रही थी। जब अन्य युवा लोग समुदाय में आते थे, युवा लड़कियाँ जिनकी समस्याएँ मेरी जैसी या कभी-कभी उससे भी बदतर होती थीं, तो इससे मुझे बहुत मदद मिली। मैंने उनकी देखभाल की, मैंने एक बड़ी बहन बनने, कभी-कभी एक माँ भी बनने की कोशिश की। मैंने सोचना शुरू किया कि जब मैं खुद को चोट पहुँचा रही होती या जब मैं दुखी होती, तो मेरी माँ ने मेरे साथ क्या अनुभव किया होगा। अक्सर एक तरह की असहायता की भावना होती है, लेकिन विश्वास के साथ, भले ही आप अपने शब्दों से किसी की मदद न कर सकें, तो भी आप अपने घुटनों पर खड़े होकर प्रार्थना के द्वारा मदद कर सकते हैं। मैंने प्रार्थना के द्वारा बहुत सी लड़कियों में और अपने जीवन में बदलाव देखा है। यह कोई रहस्यपूर्ण बात नहीं है या ऐसा कुछ नहीं है जिसे मैं ईशशास्त्र के आधार पर समझा सकूं, लेकिन माला विनती, अन्य प्रार्थना और संस्कारों के प्रति निष्ठा ने मेरा और कई अन्य लोगों का जीवन बदल दिया है, और इस से हमें जीने की एक नई इच्छा मिली है। इस ख़ुशी को आगे बढ़ाते हुए मैं नर्सिंग में अपना करियर बनाने के लिए आयरलैंड लौटी; वास्तव में, करियर से ज़्यादा, मुझे गहराई से लगा कि मैं अपना जीवन इसी तरह बिताना चाहती हूँ। मैं अब युवा लोगों के साथ रह रही हूँ, जिनमें से कुछ मेरी उम्र के जैसे ही हैं - वे आत्म-क्षति, अवसाद, चिंता, मादक द्रव्यों के सेवन या अशुद्धता से जूझ रहे हैं। मुझे लगता है कि उन्हें यह बताना ज़रूरी है कि ईश्वर ने मेरे जीवन में क्या किया, इसलिए कभी-कभी दोपहर के भोजन के दौरान, मैं उनसे कहती हूँ कि अगर मुझे विश्वास न हो कि बीमारी के बाद मृत्यु से ज़्यादा जीवन में कुछ और भी है, तो मैं वास्तव में यह काम नहीं कर पाऊँगी, सभी दुख और दर्द नहीं देख पाऊँगी। लोग अक्सर मुझसे कहते हैं: “ओह, तुम्हारा नाम जॉय है, यह तुम पर बहुत सूट करता है; तुम बहुत खुश और मुस्कुराती रहती हो।” मैं अंदर ही अंदर हँसती हूँ: “काश तुम्हें पता होता कि यह कहाँ से आया है!” मेरी खुशी दुख से पैदा हुई ख़ुशी है; इसलिए यह सच्ची खुशी है। यह तब भी बनी रहती है जब दर्द होता है। और मैं चाहती हूँ कि युवा लोगों को भी यही खुशी मिले क्योंकि यह सिर्फ़ मेरी ख़ुशी नहीं है, बल्कि यह ईश्वर से मिलने वाली खुशी है, इसलिए हर कोई इसका अनुभव कर सकता है। मैं सिर्फ़ ईश्वर की इस असीम खुशी को बाँटना चाहती हूँ ताकि दूसरे लोग जान सकें कि आप दर्द, दुख और कठिनाइयों से गुज़र सकते हैं और फिर भी हमारे पिता के प्रति आभारी और आनंदित होकर इससे बाहर निकल सकते हैं।
By: जॉय बर्न
Moreमैंने अपनी पढ़ाई में सफलता के लिए प्रभु से संपर्क किया, लेकिन प्रभु यहीं नहीं रुके... अपने हाई स्कूल के वर्षों के दौरान, मैंने आस्था और शैक्षणिक विकास की एक उल्लेखनीय यात्रा का अनुभव किया। एक धर्मनिष्ठ कैथलिक के रूप में, मेरा दृढ़ विश्वास था कि ईश्वर की उपस्थिति हमेशा मेरे साथ थी, खासकर जब बात मेरी पढ़ाई की आती थी। मुझे एक खास सेमेस्टर याद है; मैं परीक्षाओं और असाइनमेंट के बोझ से जूझ रहा था। पढने के विषयों का ढेर बढ़ रहा था, और बहुत सारी जानकारी हासिल करने की ज़रूरत से मैं घबरा रहा था। मेरे मन में संदेह पैदा होने लगा, जिससे मैं अपनी क्षमताओं पर सवाल उठाने लगा। अनिश्चितता के उन क्षणों में, मैंने प्रार्थना को अपने सांत्वना और मार्गदर्शन के स्रोत के रूप में अपनाया। हर शाम, मैं अपने कमरे में वापस चला जाता, एक मोमबत्ती जलाता, और क्रूस के सामने घुटने टेकता। मैंने अपने दिल की बात ईश्वर के सामने रखी, अपने डर और संदेह को व्यक्त करते हुए अपनी पढ़ाई में शक्ति, ज्ञान और स्पष्टता की माँग की। एक अदृश्य मार्गदर्शक जैसे-जैसे सप्ताह बीतते गए, मैंने कुछ असाधारण घटित होते देखा। जब भी मुझे कोई चुनौतीपूर्ण विषय मिलता या मैं किसी कठिन अवधारणा से जूझता, तो मुझे अप्रत्याशित स्पष्टता मिलती। ऐसा लगता था जैसे मेरे रास्ते पर रोशनी पड़ रही हो, जो आगे बढ़ने का रास्ता रोशन कर रही हो। मैं किताबों में मददगार संसाधन या अंश पा लेता जो जटिल विचारों को पूरी तरह से समझाते हैं या सहपाठियों और शिक्षकों से अप्रत्याशित समर्थन प्राप्त करता। मुझे एहसास होने लगा कि ये महज़ संयोग नहीं थे, बल्कि ईश्वर की उपस्थिति और मेरी शैक्षणिक यात्रा में मदद के संकेत थे। ऐसा लग रहा था जैसे प्रभु मेरा मार्गदर्शन कर रहा था, मुझे धीरे-धीरे सही संसाधनों, सही लोगों और सही मानसिकता की ओर धकेल रहा था। जैसे-जैसे मैंने ईश्वर के मार्गदर्शन पर भरोसा करना जारी रखा, मेरा आत्मविश्वास बढ़ता गया और मेरे ग्रेड में सुधार होने लगा। मैंने जानकारी को आत्मसात करने और जटिल अवधारणाओं को समझने की अपनी क्षमता में एक उल्लेखनीय अंतर देखा। मैं अब अकेले अध्ययन नहीं कर रहा था; मेरे पास एक अदृश्य साथी था, जो हर चुनौती के दौरान मेरा मार्गदर्शन करता था और मुझे दृढ़ रहने के लिए प्रोत्साहित करता था। लेकिन यह केवल ग्रेड के बारे में नहीं था। इस अनुभव के माध्यम से, मैंने आस्था और भरोसे के बारे में मूल्यवान सबक सीखे। मैंने सीखा कि ईश्वर की मदद आध्यात्मिक मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हमारे जीवन के हर पहलू तक फैली हुई है, जिसमें हमारी पढ़ाई भी शामिल है। मैंने सीखा कि जब हम सच्चे दिल से ईश्वर की ओर मुड़ते हैं, तो वह न केवल हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है, बल्कि हमें वह सहायता भी प्रदान करता है जिसकी हमें आवश्यकता होती है। धार्मिकता से जुड़ाव इस यात्रा ने मुझे ईश्वर के साथ एक मजबूत संबंध बनाए रखने, उनके मार्गदर्शन की तलाश करने और उनकी योजना पर भरोसा करने का महत्व सिखाया। यह मुझे याद दिलाता है कि सच्ची सफलता केवल अकादमिक उपलब्धियों से नहीं बल्कि चरित्र, लचीलापन और विश्वास के विकास से भी मापी जाती है। पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो उस सेमेस्टर के दौरान सामना की गई चुनौतियों के लिए मैं आभारी हूँ, क्योंकि उन समस्याओं ने ईश्वर के साथ मेरे रिश्ते को गहरा किया और उनकी अचूक सहायता से मेरे विश्वास को मजबूत किया। आज, जैसा कि मैं अपनी शैक्षणिक गतिविधियों को जारी रखता हूँ, मैं उस समय के दौरान सीखे गए सबक को साथ लेकर चलता हूँ, यह जानते हुए कि ईश्वर का दिव्य मार्गदर्शन हमेशा मुझे ज्ञान और पूर्णता के मार्ग पर ले जाने के लिए मौजूद रहेगा। ऐसी दुनिया में जहाँ अकादमिक दबाव अक्सर हमें खा जाते हैं, यह याद रखना ज़रूरी है कि हम अपनी यात्रा में अकेले नहीं हैं। कैथलिक विश्वासी होने के नाते, हमें हर समय ईश्वर का मार्गदर्शन प्राप्त करने और उनकी उपस्थिति में सांत्वना पाने का सौभाग्य प्राप्त है। इस व्यक्तिगत कहानी के माध्यम से, मैं दूसरों को न केवल अपने अध्ययन में बल्कि अपने जीवन के हर पहलू में ईश्वर के अटूट समर्थन पर भरोसा करने के लिए प्रेरित करना चाहता हूँ। हम सभी को यह जानकर सुकून मिले कि ईश्वर हमारे परम शिक्षक हैं, जो हमें ज्ञान, समझ और अटूट विश्वास की ओर मार्गदर्शन करते हैं।
By: डेलन रोजेस
Moreदुनिया की सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान! मसीह जी उठे हैं! मसीह सचमुच जी उठे हैं! ईस्टर का उल्लासपूर्ण आनंद सबसे अच्छे ढंग से उस दृश्य के द्वारा प्रकट होता है जहां झील में नाव में खड़ा पेत्रुस, तट पर खड़े येशु तक पहुँचने के लिए उत्साह के साथ नाव से कूद जाता है। ईस्टर के रविवार को हमें येशु की ओर से यह विजयी घोषणा प्राप्त होती है कि हम अब ईश्वर की संतान हैं। इस पुनरुत्थान के चमत्कार की महानता के सामने पेत्रुस की यह प्रतिक्रया ही सबसे उत्तम है। क्या यह पर्याप्त है? हाल ही में, हमारे मठ के एक बुद्धिमान वृद्ध भिक्षु (जिन्हें हम 'बूढ़े दिल वाले' कहते हैं) के साथ मैं इस विषय पर चर्चा कर रहा था। उन्होंने जो कुछ कहा, उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ: "हाँ! यह महान घटना आपको किसी को बताने के लिए प्रेरित करती है।" मैं बार-बार उनके इस कथन पर लौटता रहा: "...आपको किसी को बताने के लिए प्रेरित करती है।" यह सच है। हालांकि मेरे एक और दोस्त का नज़रिया कुछ अलग था: "आपको क्या लगता है कि इस विषय में आप सही हैं? क्या आपको नहीं लगता कि “हमारा धर्म सभी के लिए पर्याप्त है" ऐसी सोच रखना अहंकार नहीं है ? मैं इन दोनों टिप्पणियों के बारे में सोच रहा हूँ। मैं सिर्फ़ पुनरुत्थान की इस घटना को साझा नहीं करना चाहता; मैं इसे अन्य लोगों को समझाना चाहता हूँ । क्योंकि यह एक घटना से कहीं ज़्यादा है। यह सभी की समस्याओं का उत्तर है। यह घटना शुभ सन्देश है। संत पेत्रुस कहते हैं, "किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा मुक्ति नहीं मिल सकती, क्योंकि समस्त संसार में येशु नाम के सिवा मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा हमें मुक्ति मिल सकती है" (प्रेरित चरित 4:12)। तो, मुझे यह स्वीकार करना होगा कि मैं इस मामले में सही हूँ, इस ख़बर को साझा किया जाना चाहिए! क्या ऐसी सोच से आप अहंकारी लगेंगे ? सच तो यह है कि अगर मसीह के पुनरुत्थान की कहानी सच नहीं है, तो मेरे जीवन का कोई मतलब नहीं है - और उससे भी बढ़कर, जीवन का कोई मतलब इसलिए नहीं है क्योंकि मैं, एक ईसाई के रूप में, एक अनोखी संकटमय स्थिति में हूँ। मेरा विश्वास एक ऐतिहासिक घटना की सच्चाई पर टिका है। संत पौलुस कहते हैं: "यदि मसीह नहीं जी उठे, तो आप लोगों का विश्वास व्यर्थ है" (1 कुरिन्थियों 15:14-20)। आपको क्या जानने की आवश्यकता है कुछ लोग इसे ‘विशेषता का कलंक’ कहते हैं। यह बात नहीं है कि यह ‘मेरे लिए सच है’ या ‘आपके लिए सच है’। सवाल यह है कि क्या इसमें किसी प्रकार की सच्चाई है या नहीं। अगर येशु मसीह मृतकों में से जी उठे, तो कोई भी दूसरा धर्म, कोई दूसरा दर्शन, कोई दूसरा पंथ या विश्वास पर्याप्त नहीं है। उनके पास कुछ उत्तर हो सकते हैं, लेकिन जब दुनिया के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना की बात आती है, तो वे सभी कमजोर पड़ जाते हैं। अगर, दूसरी ओर, येशु मृतकों में से नहीं जी उठे - अगर उनका पुनरुत्थान एक ऐतिहासिक तथ्य नहीं है - तो हम सभी को अभी इस तथाकथित विश्वास की मूर्खता को रोकने की जरूरत है। लेकिन मुझे पता है कि वे जी उठे थे, और अगर मैं सही हूं, तो लोगों को यह जानने की जरूरत है। यह हमें इस संदेश के अंधेरे पक्ष की ओर ले जाता है: हम चाहे जितना भी शुभ सन्देश साझा करना चाहें, और इस गारंटी के बावजूद कि अंत में इसकी जीत होगी, हम पाएंगे कि हमारी अपार निराशा के लिए अक्सर ही इस संदेश को अस्वीकार कर दिया जाएगा। सिर्फ़ अस्वीकार ही नहीं किया जाएगा, इसका उपहास किया जाएगा, इस सन्देश के वहाक को बदनाम किया जाएगा, शहीद कर दिया जाएगा। संत योहन कहते हैं: "संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उस ने ईश्वर को नहीं पहचाना।" (1 योहन 3:1) फिर भी यह जानना कितना आनंददायक है! विश्वास में कितना आनंद है! स्वयं के पुनरुत्थान की आशा में कितना आनंद है! परमेश्वर मनुष्य बन गया, यह एहसास पाकर कितना आनंद आता है, हमारे उद्धार के लिए क्रूस पर पीड़ा सही और मृत्यु पर विजय प्राप्त की। उसने हमें स्वर्गिक जीवन में भागीदारी का प्रस्ताव दिया! बपतिस्मा से शुरू होने वाले संस्कारों में परमेश्वर हम पर पवित्रतापूर्ण अनुग्रह प्रवाहित करता है। जब वह हमें, अपने परिवार में स्वागत करता है, तो हम वास्तव में मसीह में भाई-बहन बन जाते हैं, उसके पुनरुत्थान में भागीदार बनते हैं। हम कैसे जानते हैं कि यह सच है? कि येशु जी उठे हैं? शायद यह लाखों शहीदों की गवाही है। दो हज़ार साल के ईश शास्त्र और दर्शन द्वारा, पुनरुत्थान में विश्वास के परिणामों का पता चलता हैं। मदर तेरेसा या असीसी के फ्रांसिस जैसे संतों में, हम ईश्वर के प्रेम की शक्ति का एक जीवंत प्रमाण देखते हैं। परम प्रसाद में उसे प्राप्त करना मेरे लिए हमेशा इसकी पुष्टि करता है। क्योंकि मैं उसकी जीवित उपस्थिति प्राप्त करता हूँ, और वह मुझे भीतर से बदल देता है। शायद, अंत में, यह केवल आनंद है: वह परमानंद 'असंतुष्ट तृष्णा है जो किसी भी अन्य संतुष्टि से अधिक श्रेय है।' लेकिन जब परिस्थितियों द्वारा मैं धकेला जाता हूँ, तो मुझे पता है कि मैं इस विश्वास के लिए मरने को तैयार हूँ - या इससे भी बेहतर, इसके लिए जीने को तैयार हूँ: ख्रीस्त जी उठे हैं, ख्रीस्त वास्तव में जी उठे हैं! अल्लेलुया!
By: फादर जे. ऑगस्टीन वेट्टा ओ.एस.बी.
Moreयदि आपको ऐसा लगता है कि आपने जीवन में अपने सारे मूल्य और उद्देश्य खो दिए हैं, तो यह लेख आपके लिए है। मेरे 40 वर्षों के पुरोहिताई जीवन में, आत्महत्या करने वाले लोगों के अंतिम संस्कार मेरे लिए सबसे कठिन कार्य रहा है। और यह केवल एक सामान्य कथन नहीं है, क्योंकि हाल ही में मैंने अपने ही परिवार में एक युवा व्यक्ति को खो दिया। उसकी आयु केवल 18 वर्ष थी। उसने अपने जीवन की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के कारण आत्महत्या कर ली। आजकल आत्महत्या की दर बढ़ रही है, और इसके निवारण के उपायों में दवाएँ, मानसिक चिकित्सा और यहाँ तक कि पारिवारिक प्रणाली चिकित्सा भी शामिल हैं। हालांकि, उन कई चीजों में से एक जो अक्सर चर्चा में नहीं आती है, वह है आध्यात्मिक उपाय। अवसाद और आत्महत्या के पीछे एक मुख्य मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक मुद्दा जीवन के आध्यात्मिक अर्थ और उद्देश्य की कमी हो सकती है - यह विश्वास कि हमारे जीवन में आशा और मूल्य है, सबसे अहम् सोच है; इस सोच की कमी खतरनाक है। एक पिता का प्रेम हमारे जीवन का लंगर, हमारे पिता परमेश्वर का प्रेम है, जो हमें उन अंधेरे स्थानों से बाहर निकालता है। मैं यह भी तक कहूंगा कि येशु मसीह ने हमें जो उपहार दिए हैं (हे ईश्वर, वे बहुत सारे उपहार हैं), उनमें सबसे अच्छा और सबसे मूल्यवान उपहार है कि येशु ने अपने पिता को हमारा पिता बना दिया। येशु ने परमेश्वर को एक प्रेममय अभिभावक के रूप में प्रकट किया जो अपने बच्चों से गहरा प्रेम करता है और उनकी परवाह करता है। इस ज्ञान की पुष्टि तीन विशेष तरीकों से होती है: 1. ‘आप कौन हैं’ इसकी पहचान आपकी नौकरी, आपकी सामाजिक सुरक्षा नंबर, आपका ड्राइवर लाइसेंस नंबर या 'सिर्फ' अस्वीकार किए गए कोई प्रेमी, इनमें से कोई भी बात ‘आप कौन है’ इस सवाल का जवाब नहीं हैं। आप परमेश्वर की संतान है- आप परमेश्वर की प्रतिछाया और सादृश्य में बने व्यक्ति हैं। आप वास्तव में उनकी कारीगरी हैं। यही हमारी पहचान है, परमेश्वर में हम यही हैं। 2. परमेश्वर हमें उद्देश्य देता है परमेश्वर में, हमें एहसास होता है कि हम यहाँ क्यों हैं - हमारे जीवन को जो परमेश्वर ने हमें दिया है, उसमें एक योजना, उद्देश्य और संरचना है। परमेश्वर ने हमें इस दुनिया में - उसे जानने, प्यार करने और उसकी सेवा करने के उद्देश्य के लिए बनाया है 3. आपकी एक नियति है हमारी नियति इस दुनिया में रहने के लिए नहीं, बल्कि अनंतता में अपने पिता के साथ रहने और उनके अटूट प्यार को प्राप्त करने के लिए है। पिता को प्रेम की रचयिता के रूप में जानने से हमें उस जीवन को प्राप्त करने, उस जीवन को सम्मान देने और जो ईश्वर हमसे चाहता है उस भरपूर जीवन को साझा करने केलिए आमंत्रण मिलता है । यह हमें इस अर्थ में बढ़ने के लिए प्रेरित करता है कि हम कौन हैं - हमारी अच्छाई, विशिष्टता और सुंदरता क्या है इसे जानने के लिए भी । पिता का प्रेम एक ठोस प्रेम है: "ईश्वर के प्रेम की पहचान इस में है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं, बल्कि ईश्वर ने हमको प्यार किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा।" (1 योहन 4:10) ईश्वर का प्रेम इस तथ्य पर विचार नहीं करता है कि हम हर दिन परिपूर्ण होते हैं, या हम कभी उदास या निराश नहीं होते हैं। यह तथ्य कि ईश्वर ने हमसे प्रेम किया है और अपने पुत्र को हमारे पापों के लिए बलिदान के रूप में भेजा है, वह एक प्रोत्साहन है जो हमें अवसाद के अंधेरे का मुकाबला करने में मदद कर सकता है। अपने मूल में, ईश्वर दंड देने वाला कोई न्यायाधीश नहीं, बल्कि प्यार करने वाला माता-पिता है। चाहे हमारे आस-पास कोई भी कुछ भी करे, ईश्वर ने हमसे प्यार किया है और हमें प्यार करता है, यह समझ हमें सहारा देती है। यह वास्तव में हमारी सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता है। हम सब अकेले हैं; हम सभी, कुछ ऐसी चीज़ की खोज और तलाश कर रहे हैं जो यह दुनिया हमें नहीं दे सकती। हर दिन हमारे ईश्वर की प्रेमपूर्ण दृष्टि में शांत बैठें और ईश्वर को आपसे प्रेम करने दें। कल्पना कीजिए कि ईश्वर आपको गले लगा रहा है, आपका पोषण कर रहा है और आपके डर, घबराहट और चिंता को दूर कर रहा है। परमपिता परमेश्वर का प्रेम प्रत्येक कोशिका, मांसपेशी और रक्त की धमनियों में प्रवाहित होने दें। उसी प्रेम को हमारे जीवन से अंधकार और भय को दूर करने दें। दुनिया कभी भी एक आदर्श स्थान नहीं बन सकती, इसलिए हमें ईश्वर को अपनी आशा से भरने के लिए आमंत्रित करने की आवश्यकता है। यदि आप आज संघर्ष कर रहे हैं, तो किसी मित्र के पास पहुंचें और अपने मित्र को ईश्वर के हाथ और आंखें बनने दें, उन्हें आपको गले लगाने दे और आपसे प्यार करने दे। मेरे 72 वर्षों में कई बार ऐसा हुआ है जब मैं उन दोस्तों के पास पहुंचा हूं जिन्होंने मुझे संभाला, मेरा पालन-पोषण किया और मुझे सिखाया। अपनी माँ की गोद में बैठे बच्चे जैसे ईश्वर की उपस्थिति में बैठे रहें, और तब तक संतुष्ट बैठे रहें जब तक कि आपका शरीर और मन यह सच्चाई न सीख ले कि आप ईश्वर की एक अनमोल, सुंदर संतान हैं, कि आपके जीवन का अपना एक मूल्य, उद्देश्य, अर्थ और दिशा है। ईश्वर को अपने जीवन में बहने दे।
By: फादर रॉबर्ट जे. मिलर
More‘पाँच मिनट के लिए टाइमर सेट करें और इस व्यक्ति के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करें।’ आप सोच रहे होंगे कि मैं किस बारे में बात कर रही हूँ। कभी-कभी, हम ईश्वर से उन लोगों के बारे में बात करना भूल जाते हैं जिन्हें ईश्वर हमारे जीवन में ले आते हैं। कई बार, मैं यह भूल जाती हूँ। ईश्वर की कृपा से, एक दिन मेरे दिल में शांति की कमी के बारे में कुछ करने का मैंने फैसला किया । कई साल पहले, अपने जीवन में एक व्यक्ति के कारण, मैं मुश्किल समय से गुज़र रही थी। इसके बारे में मैं अधिक वर्णन नहीं करूंगी । मेरी समस्या यह थी कि यह मुद्दा वास्तव में मुझे परेशान करता था। क्या आप कभी ऐसी स्थिति में रहे हैं? मैंने इसके बारे में एक पुरोहित से बात करने का फैसला किया और मैं पाप स्वीकार के लिए गई। मेरे पाप स्वीकार को सुनने के बाद, पुरोहित ने मुझे क्षमा दी और प्रायश्चित केलिए कुछ सुझाव दिए । अनुमान लगाइए कि मेरा प्रायश्चित क्या था? उनका सुझाव था: ‘टाइमर सेट करो’! “मैं चाहता हूँ कि आप इस व्यक्ति के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करने में पाँच मिनट बिताएँ।” पाँच मिनट पाँच मिनट? वाह! दृढ़ निश्चय के साथ मैंने खुद से कहा, मैं यह आसानी से कर सकती हूँ। मैं गिरजाघर से बाहर निकली और अपनी कार में चली गयी। मैंने अपनी घड़ी पाँच मिनट के लिए सेट की, और तुरंत, मैं फंस गयी । वाह, यह वास्तव में कठिन है! लेकिन, धीरे-धीरे, मुझे इस व्यक्ति के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने के छोटे-छोटे तरीके मिल गए। मैंने अपनी घड़ी देखी... उफ़, केवल एक मिनट बीता था। मैंने पूरे दिल से प्रार्थना करना जारी रखा। मैं यह करना चाहती हूँ! फिर से, मैंने ईश्वर को धन्यवाद देना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे मिनट धीरे-धीरे बीतते गए, यह सरल और आसान होता गया। मेरे पाँच मिनट अभी भी पूरे नहीं हुए थे। दृढ़ निश्चय की नई भावना के साथ आगे बढ़ते हुए, मैंने पाया कि मैं छोटी-छोटी कठिनाइयों के लिए भी ईश्वर को धन्यवाद दे पा रही थी। अंदर, मेरा दिल उछल रहा था! इस व्यक्ति के लिए प्रार्थना करते समय, वास्तव में मेरे दिल को बदलने का काम हो रहा था। मैं इन कठिनाइयों से इतना क्यों घिरी हुई थी? मैं ने अनुभव किया कि वह वास्तव में एक अच्छा व्यक्ति है। स्मृतियाँ मुझे अक्सर वह दिन याद आता है। जब मैं किसी के साथ कठिनाइयों का सामना करती हूँ, तो मैं ने उस विशेष तपस्या से जो सीखा था उसे लागू करने का प्रयास करती हूँ। क्या आपको वह वादा याद है जब हम पश्चाताप के कार्य का पाठ करते हैं? हमारे पापों से मुक्त होने से पहले वे अंतिम शब्द? “… मैं आपकी कृपा की सहायता से अपने पापों को स्वीकार करने, प्रायश्चित करने और अपने जीवन को सुधारने का दृढ़ संकल्प करता हूँ। आमेन।” कोई किसी कठिनाई से गुज़र रहा है, उसके उस अनुभव के बारे में मैं जब सोचती हूँ, तो मैं रुक जाती हूँ, टाइमर सेट करती हूँ, और पाँच मिनट बिताकर उनके लिए ईश्वर का धन्यवाद करती हूँ। यह हमेशा मुझे आश्चर्यचकित करता है कि ईश्वर इतने कम समय में मेरे दिल को कैसे बदल सकता है। येशु ने उन्हें देखा और कहा: “मनुष्यों के लिए यह असंभव है, लेकिन परमेश्वर के लिए सब कुछ संभव है।” (मत्ती 19:26) धन्यवाद येशु, उस पुरोहित के लिए जो कभी-कभी हमें एक कठिन लेकिन बहुत जरूरी प्रायश्चित देता है। धन्यवाद येशु, तेरे स्वास्थ्य दायक स्पर्श के लिए। धन्यवाद, येशु, हर उस व्यक्ति के लिए जिसे तू ने हमारे मार्ग पर रखा। धन्यवाद, येशु, हमें इतना प्यार करने के लिए! पाँच मिनट इतने कम समय थे और दिल की शांति का इतने बड़े इनाम को पाने के लिए वह बहुत कम समय था। "येशु ने उनसे फिर कहा, 'तुम्हें शांति मिले!'" (योहन 20:21)
By: कैरल ऑसबर्न
Moreमुझे याद है, मेरी सेवकाई के दौरान मुझे लगा कि मेरे साथी सेवक मुझ से दूरी बनाए रख रहा हैI और इसका कोई कारण भी नहीं दिखाई दे रहा थाI ऐसा लग रहा था कि वह कुछ संघर्ष से गुज़र रहा था, लेकिन वह मुझसे इसके बारे में बताने से हिचक रहा थाI चालीसा काल के दौरान एक दिन अपने कार्यालय में खड़ी होकर प्रभु के सम्मुख मैं ने अपने ह्रदय से पुकारा: “येशु, लगता है कि मैं इस आदमी के जीवन से बाहर धकेली गयी हूँI” तुरंत, मैंने येशु को इन शब्दों में मुझे जवाब देते हुए सुना: मुझे पता है कि तुम किस दर्द से गुज़र रही होI मेरे साथ यह प्रतिदिन होता हैI” ओह, मुझे लगा कि मेरा ह्रदय छेदा गया है, और मेरी आँखों में आंसू भर गए, मैं जानती थी कि ये शब्द एक खजाना थाI महीनों उस कृपा को समझने केलिए मैं प्रयास करती रहीI 20 वर्ष पूर्व मैं ने पवित्रात्मा में बप्तिस्मा प्राप्त किया थाI तब से मैं अपने पाप को सौभाग्यशाली समझती थी, कि येशु के साथ मेरा गहरा व्यक्तिगत और आत्मीय सम्बन्ध हैI मैंने कई महीनों तक उस अनुग्रह को समझने की कोशिश करती रही। बीस साल पहले पवित्र आत्मा में बपतिस्मा लेने के बाद से, मैंने माना था कि येशु के साथ मेरा एक गहरा व्यक्तिगत रिश्ता था। लेकिन मेरे अनमोल उद्धारकर्ता और प्रभु के इस वचन ने येशु के हृदय में एक नई अंतर्दृष्टि खोली। "हाँ, येशु, बहुत से लोग आपको भूल जाते हैं, है न? और मैं भी— कितनी बार मैं अपने कामों में व्यस्त रहती हूँ, अपनी समस्याओं और विचारों को आपके पास लाना भूल जाती हूँ? इस दौरान, आप मेरा इंतज़ार करते हैं कि मैं आपकी ओर लौटूँ, जो मुझे इतने प्यार से देखता है।" अपनी प्रार्थना में, मैं उन शब्दों को दोहराती रही। "अब मैं बेहतर तरीके से जानती हूँ कि जब कोई तुझे अस्वीकार करता है, तुझ पर आरोप लगाता है या तुझे दोषी ठहराता है, या कई दिनों या सालों तक तुझसे बात नहीं करता है, तो तुझे कैसा महसूस होता है।" मैं और अधिक सचेत रूप से अपने दुखों को येशु के पास ले जाती और उनसे कहती: "येशु, मेरे प्रिय, तू भी वही दुख महसूस करता जो मैं महसूस कर रही हूँ। मैं अपने छोटे-छोटे दुखों को तुझे सांत्वना देने के लिए अर्पित करती हूँ, क्योंकि मैं खुद भी कई लोगों के साथ हूँ, जो तुझे सांत्वना देने में विफल रहते हैं।" मैंने एक नए तरीके से येशु की वह छवि देखी, जिसे मैं बहुत पसंद करती हूँ, येशु अपने पवित्र हृदय से प्रेम की किरणों को बहाते हुए, संत मार्गरेट मैरी से विलाप करते हुए कहते हैं: "मेरे हृदय को देखो, जो लोगों से बहुत प्यार करता है - लेकिन बदले में उन लोगों से बहुत कम प्यार पाता है।" सचमुच, येशु मुझे प्रतिदिन छोटी-छोटी परीक्षाएँ देते हैं ताकि मैं उनके द्वारा हमारे लिए सहन की जाने वाली पीड़ा का थोड़ा सा स्वाद ले सकूँ। मैं हमेशा उस पीड़ा के क्षण को याद रखूँगी जिसने मुझे हमारे प्यारे प्रभु येशु के अद्भुत, कोमल, लंबे समय तक पीड़ित रहने वाले प्रेम के करीब ला दिया।
By: Sister Jane M. Abeln SMIC
Moreदूसरों को आंकना आसान है, लेकिन अक्सर हम दूसरों के बारे में अपने फैसले में पूरी तरह से गलत हो जाते हैं। मुझे एक बूढ़ा आदमी याद है जो शनिवार की रात को पवित्र मिस्सा पूजा में आता था। बहुत दिनों से उसने नहाया नहीं था और उसके पास साफ कपडे नहीं थे। सच कहूँ तो, उसके बदन से बदबू आती थी। आप उन लोगों को दोष नहीं दे सकते जो इस भयानक गंध से दूर रहना चाहते थे। वह बूढा प्रतिदिन हमारे छोटे शहर में दो या तीन मील पैदल चलता था, कचरा उठाता था, और एक पुरानी जर्जर झोपड़ी में अकेला रहता था। हमारे लिए किसी के बाह्य रूप के आधार पर निर्णय लेना आसान है। है न? मुझे लगता है कि यह इंसान होने का एक स्वाभाविक हिस्सा है। मुझे नहीं पता कि कितनी बार किसी व्यक्ति के बारे में मेरे निर्णय पूरी तरह से गलत थे। वास्तव में, ईश्वर की मदद के बिना दिखावे से परे देखना काफी मुश्किल है, मगर असंभव नहीं है। उदाहरण के लिए, यह आदमी, अपने अजीब व्यक्तित्व के बावजूद, हर हफ्ते मिस्सा बलिदान में भाग लेने के बारे में बहुत वफादार था। एक दिन, मैंने फैसला किया कि मैं नियमित रूप से मिस्सा में उसके बगल में बैठूंगी। हाँ, उसके देह से बदबू आ रही थी, लेकिन उसे दूसरों के प्यार की भी ज़रूरत थी। ईश्वर की कृपा से, बदबू ने मुझे ज़्यादा परेशान नहीं किया। पुरोहित द्वारा आपस में शांति देने के लिए कहने पर, मैं ने उसकी आँखों में देखा, मुस्कुरायी, और मैं ने ईमानदारी से उसका अभिवादन इन शब्दों में किया : "ख्रीस्त की शांति आपके साथ हो।" इसे कभी न छोड़ें ईश्वर मुझे अवसर देना चाहता है कि मैं दूसरे को उसके शारीरिक ढांचा या बाहरी रूप से परे देखूं और उस व्यक्ति के दिल में झाँकूँ। जब मैं किसी व्यक्ति के बारे में उसके बही रूप के आधार पर निर्णय लेती हूँ, तो मैं वह अवसर खो देती हूँ। यही येशु ने अपनी जीवन यात्रा के दौरान मिले प्रत्येक व्यक्ति के साथ किया, और वह हमारी गंदगी से परे हमारे दिलों को देखना जारी रखता है। मुझे याद है कि एक बार जब मैं अपने कैथलिक विश्वास से कई साल दूर थी, मैं गिरजाघर की पार्किंग में बैठी थी, मिस्सा में भाग लेने के लिए गिरजाघर के दरवाज़े से अंदर जाने के लिए पर्याप्त साहस जुटाने की कोशिश कर रही थी। मुझे इतना डर था कि दूसरे लोग मेरे बारे में गलत निर्णय लेंगे और मेरा स्वागत नहीं करेंगे। मैंने येशु से मेरे साथ चलने के लिए कहा। गिरजाघर में प्रवेश करने पर, एक डीकन ने मेरा अभिवादन किया; उन्होंने मुझे एक बड़ी मुस्कान देकर गले लगाया, और कहा: "आपका स्वागत है।" मुझे मुस्कान और आलिंगन की ज़रूरत थी ताकि मैं महसूस कर सकूँ कि मैं यहाँ की हूँ और फिर से अपने ही घर पर हूँ। उस बूढ़े आदमी के साथ बैठना जो बदबूदार था, मेरे लिए "भुगतान आगे बढ़ाने" का तरीका था। मुझे पता था कि मैं कितनी बेसब्री से स्वागत महसूस करना चाहती थी, यह महसूस करना चाहती थी कि मैं भी शामिल हूँ और मेरा भी महत्व है। हमें एक-दूसरे का स्वागत करने में संकोच नहीं करना चाहिए, खासकर उन लोगों का जिनके साथ रहना मुश्किल है।
By: कॉनी बेकमैन
Moreमैंने एक साल पहले अपना आई-फोन खो दिया था। पहले तो ऐसा लगा जैसे शरीर का कोई अंग कट गया हो। मेरे पास तेरह साल से यह आई-फोन था और यह मेरे स्वयं के एक हिस्से की तरह था। शुरूआती दिनों में, मैंने "नए आई-फोन" को सिर्फ एक फ़ोन की तरह इस्तेमाल किया, लेकिन जल्द ही यह अलार्म घड़ी, कैलकुलेटर, अखबार, मौसम, बैंकिंग और बहुत कुछ बन गया...और फिर...यह हाथ से निकल गया। आई फोन खो जाने के बाद जब मुझे डिजिटल डिटॉक्स, यानी आई फोन के कारण मेरे मन में व्याप्त विष उन्मूलन की प्रक्रिया में जाने के लिए मजबूर किया गया, तो मेरे सामने कई गंभीर समस्याएँ खड़ी हो गईं। अब से मुझे अपनी शॉपिंग की सूची को कागज़ पर लिखने की ज़रूरत पड़ी। मैं ने एक अलार्म घड़ी और एक कैलकुलेटर खरीदा। पूर्व में, मुझे रोज़ाना सन्देश आने पर जो 'पिंग' आवाज़ आई-फोन से सुनाई देती थी और उन संदेशों को जल्दी जल्दी देखने की होड़ थी (और दूसरों द्वारा स्वीकृत किये जाने और चाहने का एहसास), ये सारी बातें अब केवल स्मृतियाँ रह गयीं। लेकिन अब इस छोटे से धातु का टुकड़ा मेरे जीवन पर हावी नहीं हो रही है, और उससे अब मैं अपार शांति महसूस कर रही थी। जब यह यंत्र मेरे हाथ से चला गया, तभी मुझे यह एहसास हुआ कि यह मुझसे कितनी प्रकार की मांग करती थी, और मुझ पर हावी होकर मेरा नियंत्रण करती थी। तब भी दुनिया रुकी नहीं। मुझे बस दुनिया के साथ बातचीत करने के नए-पुराने तरीके सीखने थे, जैसे लोगों से आमने-सामने बात करना और घटनाओं की योजना बनाना। मैं इसे बदलने की जल्दी में नहीं थी। वास्तव में, इसके खत्म होने से मेरे जीवन में एक स्वागत योग्य क्रांति आई। मैंने अपने जीवन में मीडिया का न्यूनतम प्रयोग करना शुरू कर दिया। अब से कोई अखबार, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न या फ़ोन नहीं। मैंने काम के ईमेल, सप्ताहांत पर चुनिंदा यू ट्यूब वीडियोज़ और कुछ स्वतंत्र समाचार पोर्टल के लिए एक आइ-पैड रखा। यह एक प्रयोग था, लेकिन इसने मुझे अमन और शांति महसूस कराया, जिससे मैं अपना समय प्रार्थना और धर्म ग्रन्थ के अध्ययन के लिए उपयोग कर सकी। मैं अब और अधिक आसानी से परमेश्वर से जुड़ सकती हूँ, जो "कल, आज और युगानुयुग एकरूप रहते हैं।" (इब्रानी 13:8)। पहली आज्ञा "अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे ह्रदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी बुद्धि और सारी शक्ति से प्यार करने और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करने" के लिए हमें कहती है (मारकुस 12:30-31)। मुझे आश्चर्य होता है कि जब हमारा दिमाग दिन के ज़्यादातर समय हमारे फ़ोन पर लगा रहता है, तब हम ऐसा कैसे कर सकते हैं ! क्या हम वाकई अपनी बुद्धि से परमेश्वर से प्यार करते हैं? रोमी 12:2 कहता है: "आप इस संसार के अनुकूल न बने, बल्कि सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें।" मैं आपको चुनौती देती हूँ कि आप मीडिया से विरक्त रहें, चाहे थोड़े समय के लिए ही क्यों न हो। अपने जीवन में उस परिवर्तनकारी अंतर को महसूस करें। जब हम खुद को थोड़ा आराम देंगे तभी हम अपने प्रभु परमेश्वर को नवीकृत मन से प्रेम कर पायेंगे।
By: Jacinta Heley
Moreऊपर से बार-बार फुसफुसाहट, कई असफल प्रयास...सब कुछ का हल किसी बच्चों की कहानी द्वारा ! हान्स क्रिश्चियन एंडरसन की एक अद्भुत कहानी है जिसका शीर्षक है ‘द स्टेड्फास्ट टिन सोल्जर’ जिसे मैं ने अपनी बेटी को पढ़कर सुनाया और इस कार्य में मुझे उससे अपार खुशी मिली और उसे भी इसे सुनकर बहुत खुशी मिली। इस एक पैर वाले टिन से बने सैनिक के संक्षिप्त जीवन में कई तरह की परेशानियाँ आती हैं। कई मंजिलों से गिरने से लेकर लगभग डूबने तक और नबी योना जैसे मछली द्वारा निगल लिए जाने तक! उस विकलांग योद्धा को बहुत जल्दी ही दुख का एहसास हो जाता है। हालाँकि, इन सबके बावजूद, वह संकोच नहीं करता, लड़खड़ाता नहीं, या पीछे नहीं हटता। ओह, टिन सैनिक जैसा बनना कितना सौभाग्यशाली बात है ! कारण की खोज साहित्यिक और निराशावादी लोग टिन सैनिक की दृढ़ता का श्रेय इस तथ्य को दे सकते हैं कि वह टिन से बना है। जो लोग रूपक की सराहना करते हैं, वे कहेंगे कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उसे अपनी पहचान का गहरा ज्ञान है। वह एक सैनिक है, और सैनिक डर या किसी भी चीज़ को अपने रास्ते में भटकने तक नहीं देते। टिन सैनिक पर परीक्षाएँ हावी हो जाती हैं, लेकिन वह अपरिवर्तित रहता है। कभी-कभी, वह स्वीकार करता है कि अगर वह सैनिक नहीं होता, तो वह ऐसा-ऐसा करता - जैसे आँसू बहाता - लेकिन वह ये चीज़ें नहीं करता, क्योंकि यह उसके व्यक्तित्व के अनुरूप नहीं होता। अंत में, उसे एक भट्टी में डाल दिया जाता है, जहाँ, आर्क की संत जोआन की याद दिलाते हुए, वह आग की लपटों में घिर जाता है। उसके अवशेष बाद में नौकरानी को मिलते हैं। अब वह सैनिक एक बिल्कुल सही आकार के टिन के दिल में सीमित हो गया हैं - या कोई कह सकता है, रूपांतरित हो गया है। हाँ, जिस आग को उसने इतनी दृढ़ता से सहन किया, उसने उसे प्यार में ढाल दिया! क्या दृढ़ बनने के लिए बस अपनी पहचान जानना ही ज़रूरी है? तो फिर सवाल यह है कि हमारी पहचान क्या है? मैं और आप भी ब्रह्मांड के राजा की बेटी (या बेटा) हैं। अगर हम इस पहचान को जानें और कभी भी इसका दावा करना बंद न करें, तो हम भी प्रेममय राजकुमार बनने की यात्रा पर दृढ़ बने रह सकते हैं। अगर हम अपने दिन यह जानते हुए गुजारें कि हम अपने पिता के आलीशान महल में आराम से मस्ती करनेवाले राजकुमारियाँ और राजकुमार हैं, तो हमें किस बात का डर होगा? वह कौन सी बात है जिससे हम हिला जायेंगे, हम पीछे हट जायेंगे या हम टूटकर बिखर जायेंगे? कोई भी अतिवृष्टि या बाढ़ या आगजनी हमें अपने सामने इतने प्यार से रखे गये उस संतत्व के मार्ग से नहीं हटा सकती। हम ईश्वर के प्रिय बच्चे हैं, अगर हम केवल अपने मार्ग पर बने रहें तो संत बनना हमारी किस्मत में हैं। क्लेश खुशियाँ बन जाएँगे क्योंकि वे हमें हमारे मार्ग से नहीं हटाएँगे बल्कि, अगर अच्छी तरह से सहन किया जाए, तो अंततः जो हम बनना चाहते हैं वे क्लेश हमें वही बना देंगे! हमारी आशा और खुशी हमेशा बनी रह सकती है, क्योंकि भले ही हमारे चारों ओर कठिनाई हो, फिर भी हम प्रिय हैं, हम चुने गए लोग हैं और हमेशा के लिए स्वर्ग में पिता के साथ रहने के लिए बनाए गए हैं। दुख खुशी में बदल गया ! जब स्वर्गदूत गब्रिएल, मरियम की सहमति प्राप्त करने के अपने मिशन पर था, तब मरियम के डर को देखकर वह उससे कहता है: "डरिये नहीं, क्योंकि आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है" (लूकस 1:30)। क्या शानदार खबर है! और यह कितनी शानदार खबर है कि हमें भी ईश्वर की कृपा प्राप्त है! उसने हमें बनाया है, वह हमसे प्यार करता है, और चाहता है कि हम हमेशा उसके साथ रहें। इसलिए, हमें, मरियम की तरह, निडर रहने की ज़रूरत है, चाहे हमारे रास्ते में कोई भी कठिनाई क्यों न आए। मरियम ने दृढ़ता से अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को स्वीकार किया, यह जानते हुए कि उसका विधान परिपूर्ण है और सभी मानव जाति का उद्धार निकट है। वह अपने सबसे बड़े दुख के क्षणों में क्रूस के नीचे खड़ी रही और वहीं रही। अंत में, हालाँकि मरियम के दिल को कई तलवारों से छेदा गया था, उसे स्वर्ग में ले जाया गया और स्वर्ग और पृथ्वी की रानी का ताज पहनाया गया, ताकि वह हमेशा प्यार के साथ रहे। पीड़ा और क्लेश के माध्यम से उसकी दृढ़ता और प्रेमपूर्ण सहनशीलता ने मरियम की रानी बनने का मार्ग प्रशस्त किया। हाँ, मृत बेटे के शव को गोद में लिए माँ का दुख स्वर्गारोहण की महिमा बन गया। इतने सारे पवित्र पुरुषों और महिलाओं की शहादत ने उन्हें हमेशा के लिए प्रभु की स्तुति करने वाले स्वर्गीय सेनाओं का हिस्सा बना दिया। हमारी स्वर्गिक माँ और स्वर्ग के सभी संतों की तरह, हम भी दृढ़ रहने की कृपा स्वीकार करें, दु:ख, क्लेश, आगजनी और अन्य सभी परिस्थितियों के बीच हम मज़बूती के साथ खड़े रहें। सांसारिक शक्तियां हमें प्रभु की खुली बाहों के आलिंगन से दूर करने की कोशिश करती हैं। हम पिता की छाया में बने संतानों के रूप में अपनी पहचान में दृढ़ता से खड़े रहें। प्रसिद्ध कवि टेनिसन ने एक बार लिखा था: "प्रयास करने, खोजने, पाने और हार न मानने की इच्छा में दृढ़ रहें!" यही हमारा ध्येय हो, इन सबके बाद, हम प्रेममय प्रभु की तरह प्रेमी बनें।
By: Molly Farinholt
Moreकभी-कभी जीवन बहुत कठिन लगता है, लेकिन अगर आप धैर्य रखें और विश्वास करें, तो बहुत से अप्रत्याशित उपहार आपको आश्चर्य चकित कर सकते हैं। “हम तेरी दया से सदा पाप से दूर और हर विपत्ति से सुरक्षित रहें, और उस दिन की प्रतीक्षा करते रहें, जब हमारे मुक्तिदाता येशु ख्रीस्त फिर आकर हमारी धन्य आशा पूरी करेंगे” जीवन भर कैथलिक जीवन जीते हुए, मैंने हर मिस्सा में यह प्रार्थना की है। कई वर्षों से डर मेरा साथी नहीं रहा, हालांकि एक समय था जब ऐसा था। मैंने 1 योहन 4:18 में वर्णित "परिपूर्ण प्रेम" को जाना और मुझे डर को जीतने वाले की वास्तविकता में जीने में मदद मिली। इस समय मेरे जीवन में मुझे शायद ही कभी चिंता होती है, लेकिन एक सुबह कुछ अशुभ होने का अनुभव हुआ। मैं इसका कारण ठीक से नहीं समझ पा रही थी। हाल ही में, एक मोड़ पर ठोकर लगने से मैं जोर से गिर गयी, और मैं अपने कूल्हे और श्रोणि में असुविधा महसूस कर रही थी। हर बार जब मैंने अपने हाथ उठाए तो तीव्र दर्द ने मुझे याद दिलाया कि मेरे कंधों को ठीक होने में और समय लगेगा। नई नौकरी के तनाव और एक प्रिय मित्र के बेटे की अचानक मृत्यु ने मेरी चिंता को बढ़ा दिया। दुनिया की हालात जो सुर्खियों में बहुत दिन बनी रहती है, अपने आप में किसी के लिए भी काफी तनाव पैदा कर सकती है । मेरी बेचैनी के अज्ञात कारण के बावजूद, मुझे पता था कि कैसे प्रतिक्रिया देनी है। अपनी आँखें बंद करके, मैं जिस भारी बोझ को महसूस कर रही थी उसे समर्पित कर दिया । ओवर टाइम काम कर रहे फरिश्ते अगले दिन, जब मैं अपने एक मरीज के घर जा रही थी, तो अचानक एक समुद्री तूफान उठने लगा। ट्रैफिक भारी था, और हेडलाइट की रोशनी के बावजूद और गति को कम करने के बावजूद, बारिश की चादरों से दृश्यता अस्पष्ट हो गई थी। अचानक, मैंने पीछे से किसी दूसरी गाड़ी की टक्कर महसूस की, जिसके कारण मेरी कार दाएं लेन में धकेली गयी! आश्चर्यजनक रूप से, शांत होकर, मैंने एक चपटे टायर के बावजूद एक आपातकालीन लेन की ओर रुख किया। जल्द ही एक अग्निशमन बचाव वाहन आया; एक पैरामेडिक जो भारी बारिश से बचने के लिए मेरी कार में कूद गया, उसने पूछा कि क्या आप को चोट लगी है? नहीं... मुझे चोट नहीं लगी थी! यह बहुत ही असंभाव्य लगा क्योंकि मेरी पिछली बार मेरे गिरने का असर कुछ ही दिन पहले ख़त्म हुए थे। मैंने उस सुबह मौसम का पूर्वानुमान सुनकर सुरक्षा के लिए प्रार्थना की थी। स्पष्ट रूप से, फरिश्ते ओवर टाइम काम कर रहे थे; पहले मेरी पिछली बार के गिरने पर और फिर इस दुर्घटना से मुझे सुरक्षा प्रदान कर रहे थे। मेरी कार अब वर्कशॉप में थी और मरम्मत को बीमा कवर कर रहा था, मेरे पति डैन और मैं लंबे समय से कहीं छुट्टी पर जाने की योजना बनायी थी, अब हमने उस योजना को तामील करने के लिए तैयार हो गए। बस जाने से पहले, मैं यह सुनकर निराश हो गई कि हमारा बीमाकर्ता लगभग निश्चित रूप से मेरी कार के लिए बीमा का कोई रकम न देकर हमें कार केलिए कम मूल्य देकर उसे खरीदने की योजना बना रहा था! मेरी कार केवल पाँच साल पुरानी थी और दुर्घटना से पहले बेदाग हालत में थी, फिर भी वर्तमान में बाज़ार में इसके लिए हमें सिर्फ $8,150 मिलता। यह अच्छी खबर नहीं थी! हम इस ईंधन-कुशल हाइब्रिड कार को तब तक रखना चाहते थे जब तक यह चलती रहे, यहां तक कि हमारी इस योजना को सुनिश्चित करने के लिए हमने एक विस्तारित वारंटी भी खरीदी थी। गहरी सांस लेते हुए, मैंने फिर से उन परिस्थितियों में जो मेरे नियंत्रण से बाहर थीं, उस पर कार्रवाई की: मैंने इसे ईश्वर को सौंप दिया और उसके हस्तक्षेप के लिए प्रार्थना की। निरंतर प्रार्थना एक बार सॉल्ट लेक सिटी पहुँचने के बाद, हमने एक किराये की कार ले ली और तुरन्त ही हम खूबसूरत ग्रैंड टेटन नेशनल पार्क की ओर जा रहे थे। उस शाम होटल के पार्किंग में घुसते हुए, मैंने अनजाने में एक संकीर्ण स्थान पर बैक किया। जबकि डैन ने हमारा सामान उतार दिया, मैंने देखा कि एक टायर में एक पेंच घुसा हुआ है। टायर पंचर होने की चिंता से मेरे पति ने विभिन्न सेवा केंद्रों को फोन किया। वहरविवार का दिन था, कोई भी मरम्मत की दूकान खुली नहीं थी। इसलिए हमने जोखिम उठाते हुए ड्राइविंग पर आगे जाने का फैसला किया। अगले सुबह, हमने प्रार्थना की और निकल गए, इस उम्मीद के साथ कि येलोस्टोन के भीतर और बाहर के संकीर्ण पर्वतीय सड़कों पर ड्राइविंग करते समय टायर टिका रहेगा। सौभाग्य से, दिन सुचारू रहा। हम हैंपटन इन होटल पहुंचे, जहां डैन ने महीनों पहले कमरा आरक्षित कर लिया था, लेकिन हम स्तब्ध रह गए! ठीक बगल में एक टायर मरम्मत की दुकान थी! सोमवार सुबह की तेज सेवा पाने के कारण हम एक घंटे से भी कम समय में सड़क पर थे! यह पता चला कि टायर लीक हो रहा था, इसलिए टायर कि मरममत करके उसे फटने से बचा लिया गया - यह एक आशीर्वाद था, जिसका परिनाम यह था कि हमने उस सप्ताह में 1200 मील से अधिक ड्राइव किया! इस बीच, मेरी वर्कशॉप ने दुर्घटना के कारण अनजान और "छिपी हुई क्षति" की आगे की जांच का आदेश अधिकृत किया। यदि कोई आतंरिक या छिपी हुई क्पाषति पायी गयी, तो मरम्मत की लागत कार के मूल्य से अधिक हो जाएगी और निश्चित रूप से हमारी कार बीमा वाले हथिया लेंगे! प्रतिदिन प्रार्थना करते हुए, मैंने परिणाम को प्रबु के हाथों में समर्पित किया और इंतजार किया। अंततः, मुझे सूचित किया गया कि मरम्मत की लागत ठीक बीमा शुल्क की सीमा के भीतर आ गई है... और वे मेरी कार को ठीक कर देंगे! (कुछ हफ्तों बाद, जब मैं अपनी नवीनीकृत कार लेने गयी, तो मुझे पता चला कि मरम्मत की लागत वास्तव में कार के बाज़ार के मूल्य से अधिक हो गई थी, लेकिन मेरी प्रार्थना भी पूरी हुई थी!) एक अद्भुत अनुग्रह ईश्वर की कृपापूर्ण देखभाल का एक और उदाहरण तब आया जब हम येलोस्टोन नेशनल पार्क की अपनी यात्रा जारी रखे हुए थे! जब हम पहुंचे तो पार्किंग स्थल भरा हुआ था। हमने बेतहाशा चक्कर लगाया जब अचानक, बगल में ही सामने एक स्थान उपलब्ध था! हमने जल्दी से पार्क किया और यह जानने के लिए चले गए कि ‘ओल्ड फेथफुल’* की अगली विस्फोट दस मिनट में होने की उम्मीद थी। जिस स्थान से गीज़र विस्फोट देखा जा सकता है, वहां पहुंचने के लिए पर्याप्त समय था, और सही समय गीजर फट गया! हमने बोर्डवॉक के रास्ते को विभिन्न भूवैज्ञानिक संरचनाओं, झरनों और गीजरों के माध्यम से खोजा। मेरे पति बाह्य दृश्यों के प्रेमी हैं। उन्होंने एक के बाद एक तस्वीरें खींचीं! हमारे चारों ओर के अद्भुत दृश्य पर चकित होते हुए, मैंने अपनी घड़ी देखी... ओल्ड फेथफुल का अगला विस्फोट जल्द ही होने की उम्मीद थी। फुहारें अपेक्षित रूप से हवा में फटकर फैल गयीं! इस बार हम लोग गीजर के पीछे खड़े थे, और पर्यटकों की भीड़ हमारे साथ नहीं थी इसलिए हमें सब कुछ साफ़ साफ़ देखा। आभारी महसूस करते हुए, मैंने दिन के आशीर्वादों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया - सबसे पहले, टायर की दुकान का सही स्थान, फिर मेरी कार के बारे में बीमा कंपनी से अच्छी खबर, और अंत में, प्रकृति का अद्भुत दृश्य। ईश्वर की सक्रिय उपस्थिति पर विचार करते हुए, मैंने प्रार्थना की: "प्रभु हमसे प्रेम करने के लिए धन्यवाद! मुझे पता है कि तू पृथ्वी पर हर दूसरे व्यक्ति से उतना ही प्यार करता है, लेकिन मेरा पति डैन तुझसे सृष्टि में इतनी मजबूती से जुड़ता है, उसके लिए क्या तू एक बार फिर से स्वयं को प्रकट करेगा?” चलते-फिरते, मेरे पति की कैमरा बैटरी खत्म हो गई। जब वह इसे बदल रहां था, मैं बैठ गयी और एक अजीब आवाज सुनी। मैंने मुड़कर देखा तो एक बड़ा विस्फोट हुआ। यह शानदार था - वह था बीहाइव गीजर! यह विस्फोट ओल्ड फेथफुल से दोगुना ऊँचा था! हमारे गाइडबुक को देखकर, हमने पढ़ा कि यह गीजर सबसे अच्छा था, लेकिन इतना अप्रत्याशित था कि विस्फोट कहीं भी 8 घंटे से लेकर 5 दिनों के बीच एक बार हो सकता था... लेकिन, यह अद्यभुत कार्हय देखिये, यह विस्फोट उस समय हुआ जब हम वहां थे! निश्चित रूप से, ईश्वर ने मेरे पति के सामने खुद को प्रकट किया जैसा कि मैंने माँगा था! हमारा अंतिम पड़ाव कई गीजरों वाला स्थान था जहां एक सज्जन हमारी तस्वीर लेने के लिए तैयार हो गए। जिस क्षण उन्होंने कैमरे का शटर क्लिक किया, ठीक उसी समय उस गीजर का विस्फोट हुआ! हमने परमेश्वर की परिपूर्ण समय और आशीर्वाद की एक और अप्रत्याशित उपहार का अनुभव किया! अविश्वसनीय दृश्यों, झरनों, पहाड़ों, झीलों और नदियों की सुंदरता में नहाने के अलावा, हमने खूबसूरत मौसम का भी अनुभव किया! हर दिन बारिश के पूर्वानुमान के बावजूद, हमें केवल कुछ चोटी बौछारें और दिन और रात के सुंदर तापमान का सामना करना पड़ा! मैं अपनी हाल की तनाव और चिंता से पूरी तरह उभर चुकी थी। प्रभु के हाथों में अपना समर्पण करने से येशु द्वारा मेरी परवाह और देखभाल और हमारे सृष्टिकर्ता की अद्भुतता के अनुभव में डुबो दिया! वह प्रार्थना जो मैंने मिस्सा में कई बार की थी, निश्चित रूप से पूरी हुई थी! डर और गंभीर चोट दोनों से मेरी रक्षा की गई थी, जबकि मुझे चिंता से मुक्त किया गया था। प्रतीक्षा ने वास्तव में आनंदमय आशा का परिणाम दिया था... मेरी आत्मा के लिए लंगर भी प्राप्त हुआ। *ओल्ड फेथफुल संयुक्त राज्य अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क में स्थित एक प्रसिद्ध शंकु गीजर है। यह अपनी अत्यधिक अनुमानित विस्फोटों के लिए प्रसिद्ध है, जो लगभग हर 90 मिनट में होती हैं। यह गीजर गर्म पानी और भाप का एक स्तंभ हवा में फेंकता है, जिसकी ऊंचाई लगभग 106 से 185 फीट (32 से 56 मीटर) तक पहुंचती है।
By: करेन एबर्ट्स
Moreजब मैंने यह प्रभावशाली प्रार्थना शुरू की थी, तो मुझे इतनी उम्मीद नहीं थी... “हे बालक येशु की नन्हीं तेरेसा, कृपया मेरे लिए स्वर्गीय बगीचे से एक गुलाब चुनिए और इसे प्रेम के संदेश के रूप में मुझे भेजिए।” यह निवेदन, जो संत तेरेसा को संबोधित ‘मुझे एक गुलाब भेजो’ नोवेना के तीन निवेदनों में से पहला है; और इस निवेदन ने मेरा ध्यान खींचा। मैं अकेली थी. एक नए शहर में बिलकुल अकेली, नए दोस्तों की चाहत के साथ। आस्था के नए जीवन में अकेली, किसी दोस्त और रोल मॉडल की चाह ली हुई। मैं संत तेरेसा के बारे में पढ़ रही थी। बपतिस्मा के दौरान मुझे यही नाम दिया गया था, लेकिन उस संत के प्रति मेरा कोई विशेष आकर्षण नहीं था। संत तेरेसा 12 साल की उम्र में ही येशु के प्रति भावुक भक्ति में जी रही थी और 15 साल की उम्र में कार्मेलाइट मठ में प्रवेश पाने के लिए संत पापा से विशेष निवेदन किया था। मेरा अपना जीवन बहुत अलग था। मेरा गुलाब कहाँ है? तेरेसा आत्माओं की मुक्ति केलिए जोश से भरी हुई थीं; उसने एक खूंखार अपराधी के मन परिवर्तन के लिए प्रार्थना की थी। कार्मेल के कॉन्वेंट की गुप्त दुनिया में बैठकर, उसने दूर-दराज इलाकों पर ईश्वर के प्रेम को फैलाने वाले मिशनरियों के लिए अपनी प्रार्थना समर्पित की। अपनी मृत्यु शैया पर लेटी हुई, नॉरमंडी की इस पवित्र साध्वी ने मठ की अपनी बहनों से कहा था: "मेरी मृत्यु के बाद, मैं गुलाबों की बारिश करूंगी। मैं स्वर्ग में रहकर पृथ्वी पर भलाई के कार्य करूंगी।" मैंने जो किताब पढ़ी, उसमें लिखा था कि 1897 में उसकी मृत्यु के बाद से, उसने दुनिया को कई आशीषें, चमत्कार और यहां तक कि गुलाब भी दिए हैं। "शायद वह मेरे लिए एक गुलाब भेजेगी," मैंने सोचा। यह मेरे जीवन की पहली नोवेना प्रार्थना थी। मैं ने प्रार्थना के दो अन्य निवेदनों के बारे में अधिक नहीं सोचा- अर्थात् मेरे निवेदनों के लिए ईश्वर से मध्यस्थ प्रार्थना करने की कृपा और मेरे लिए ईश्वर के महान प्रेम में गहरा विश्वास करना ताकि मैं तेरेसा के छोटे मार्ग का अनुकरण कर सकूँ। मुझे याद नहीं कि मेरा निवेदन क्या था और मैं तेरेसा के छोटे मार्ग के बारे में कुछ समझ नहीं पा रही थी। मेरा ध्यान बस गुलाब पर था। नौवें दिन की सुबह, मैंने आखिरी बार नोवेना प्रार्थना की। और इंतज़ार किया। शायद आज कोई फूलवाला मेरे पास आकर मुझे गुलाब दे देगा। या शायद मेरे पति काम से लौटते समय मेरे लिए गुलाब लेकर घर आएँगे। दिन के अंत तक, मेरे दरवाज़े पर आया एकमात्र गुलाब एक कार्ड पर छपा हुआ था जो एक मिशनरी समाज से ग्रीटिंग कार्ड के पैक में आया था। यह एक चमकदार लाल, सुंदर गुलाब था। क्या यह तेरेसा की ओर से मेरा गुलाब था? मेरी अदृश्य मित्र कभी-कभी, मैंने फिर से ‘मुझे गुलाब भेजो’ नोवेना प्रार्थना की। हमेशा परिणाम समान था। गुलाब छोटे, छिपे हुए स्थानों में दिखाई देते थे; मैं रोज़ नाम के किसी व्यक्ति से मिलती, और इसके अलावा मुझे गुलाब दिखाई देता किसी पुस्तक के कवर पर, किसी फ़ोटो की पृष्ठभूमि में, या किसी मित्र की मेज़ पर। आखिरकार, जब भी मैं गुलाब देखती, संत तेरेसा मेरे दिमाग में आती। वह मेरे दैनिक जीवन की सहेली बन गई थी। नोवेना को पीछे छोड़ते हुए, मैंने पाया कि मैं जीवन के संघर्षों में उनसे मध्यस्थता माँग रही हूँ। तेरेसा अब मेरी अदृश्य मित्र थी। मैंने अधिक से अधिक संतों के बारे में पढ़ा, और इन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने ईश्वर के प्रति भावुक प्रेम को किस तरह से जिया, इस पर आश्चर्यचकित हुई । इन लोगों के समूह को जानना, जिनके निश्चित रूप से स्वर्ग में होने के बारे में कलीसिया ने की घोषणा की है, इन सब बातों ने मुझे आशा दी। हर जगह और हर जीवन में, वीरतापूर्ण सद्गुण के साथ जीना संभव होना चाहिए। पवित्रता मेरे लिए भी संभव है। और ऐसे कई रोल मॉडल थे। बहुत सारे! मैंने संत फ्रांसिस डी सेल्स के धैर्य, संत जॉन बॉस्को में प्रत्येक बच्चे की ध्यानपूर्ण देखभाल और कोमल मार्गदर्शन, और हंगरी की संत एलिजाबेथ की दानशीलता का अनुकरण करने की कोशिश की। भक्ति और परोपकार के मार्ग पर मेरी मदद करनेवाले उनके उदाहरणों के लिए मैं आभारी थी। इनसे परिचित होना महत्वपूर्ण था, लेकिन तेरेसा इन सबसे अधिक थी। वह मेरी दोस्त बन गई थी। एक शुरुआत आखिरकार, मैंने संत तेरेसा की आत्मकथा, द स्टोरी ऑफ़ ए सोल (एक आत्मा की कहानी) पढ़ी। उनके इस व्यक्तिगत गवाही में मैंने पहली बार उनके छोटे मार्ग या ‘लिटिल वे’ को समझना शुरू किया। तेरेसा ने खुद को आध्यात्मिक रूप से एक बहुत ही छोटे बच्चे के रूप में कल्पना की थी जो केवल बहुत ही छोटे कार्य करने में सक्षम थी। लेकिन वह अपने पिता का बहुत सम्मान करती थी और जो उससे प्यार करता था, उन के लिए एक उपहार के रूप में हर छोटी-छोटी चीज को बड़े प्यार से करती थी। प्यार का बंधन उसके उपक्रमों के आकार या सफलता से बड़ा था। यह मेरे लिए जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण था। उस समय मेरा आध्यात्मिक जीवन एक ठहराव पर था। शायद तेरेसा के छोटे मार्ग से इसकी शुरूआत हो सकती थी। एक बड़े और सक्रिय परिवार की माँ होने के नाते, मेरी परिस्थितियाँ तेरेसा से बहुत अलग थीं। शायद मैं अपने दैनिक कार्यों को उसी प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण से करने का प्रयास कर सकती थी। अपने घर की छोटी सी जगह और गुप्तता में, जैसा कि तेरेसा के लिए अपना कॉन्वेंट था, मैं प्रत्येक कार्य को प्रेम से करने का प्रयास कर सकती थी। प्रत्येक कार्य ईश्वर के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था; और विस्तार से, प्रत्येक कार्य मेरे पति, मेरे बच्चे, पड़ोसी के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था। कुछ अभ्यास के साथ, हर बार डायपर परिवर्तन, प्रत्येक भोजन जो मैंने मेज पर रखा, और प्रत्येक कपड़े धोने का भार प्रेम की एक छोटी सी भेंट बन गया। मेरे दिन आसान हो गए, और ईश्वर के प्रति मेरा प्रेम मजबूत हो गया। मैं अब अकेली नहीं थी। अंत में, इसमें नौ दिनों से कहीं अधिक समय लगा, लेकिन गुलाब के लिए मेरे आवेगपूर्ण अनुरोध ने मुझे एक नए आध्यात्मिक जीवन के मार्ग पर स्थापित कर दिया। इसके माध्यम से, संत तेरेसा मुझ तक पहुँचीं। उसने मुझे प्रेम की ओर खींचा, उस प्रेम की ओर जो स्वर्ग में संतों का बंधुत्व है, अपने "छोटे मार्ग" का अभ्यास करने के लिए और सबसे बढ़कर, ईश्वर के प्रति अधिक प्रेम की ओर उसने मुझे खींच लिया। आखिरकार मुझे गुलाब से कहीं ज़्यादा मिला! क्या आप जानते हैं कि संत तेरेसा का पर्व 1 अक्टूबर को है? तेरेसा-नामधारियों को पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
By: एरिन राइबिकी
Moreअक्सर, किसी वाद्य यंत्र से सुंदर धुनें बजाने के लिए किसी उस्ताद की ज़रूरत होती है। यह एक भयंकर प्रतिस्पर्धा थी जिसमें खरीदार हर चीज़ के लिए एक-दूसरे से ज़्यादा बोली लगाने की होड़ में थे। उन्होंने उत्सुकता के साथ सभी वस्तुओं को खरीद लिया और नीलामी बंद होने वाली थी, सिवाय एक वस्तु के - एक पुराना वायलिन। खरीदार खोजने के लिए उत्सुक, नीलामीकर्ता ने तार वाले वाद्य को अपने हाथों में लिया और जो कीमत उसे आकर्षक लगी, उसे पेश किया: “अगर किसी को दिलचस्पी है, तो मैं इसे 100 डॉलर में बेचूंगा।” कमरे में मौत जैसी खामोशी छा गई। जब यह स्पष्ट हो गया कि पुराने वायलिन को खरीदने के लिए यह कीमत भी किसी को भी राजी करने के लिए पर्याप्त नहीं थी, तो उसने कीमत घटाकर 80 डॉलर, फिर 50 डॉलर और अंत में, हताश होकर 20 डॉलर कर दी। एक और चुप्पी के बाद, पीछे बैठे एक बुजुर्ग सज्जन ने पूछा: “क्या मैं वायलिन को देख सकता हूँ?” नीलामीकर्ता ने राहत महसूस की कि कोई पुराने वायलिन में दिलचस्पी दिखा रहा है, इसलिए उसने हाँ कह दी। कम से कम उस तार वाले वाद्य को एक नया मालिक और नया घर मिलने की संभावना बन रही थी। एक उस्ताद का स्पर्श बूढ़ा आदमी पीछे की सीट से उठा, धीरे-धीरे आगे की ओर चला, और पुराने वायलिन की सावधानीपूर्वक जांच की। अपना रूमाल निकालकर, उसने उसकी सतह को झाड़ा और जब तक कि एक-एक करके, वे सारे तार सही स्वर में आ गए, तब तक प्रत्येक तार को धीरे-धीरे ट्यून किया। आखिरकार, और केवल तभी, उसने पुराने वायलिन को अपनी ठोड़ी और बाएं कंधे के बीच रखा, अपने दाहिने हाथ से गज़ को उठाया, और संगीत का एक अंश बजाना शुरू किया। पुराने वायलिन से निकलने वाला प्रत्येक संगीत स्वर कमरे में सन्नाटे को भेदता हुआ हवा में खुशी से नाच रहा था। सभी चकित रह गए, और उन्होंने वाद्य से निकल रहे संगीत के कमाल को ध्यान से सुना जो सभी के लिए स्पष्ट था - एक उस्ताद के हाथों का कमाल। उन्होंने एक परिचित शास्त्रीय भजन बजाया। धुन इतनी सुंदर थी कि इसने नीलामी में मौजूद सभी लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया और वे अचंभित रह गए। उन्होंने कभी किसी को इतना सुंदर संगीत बजाते हुए नहीं सुना था या देखा भी नहीं था, एक पुराने वायलिन पर तो बिल्कुल भी नहीं। और उन्होंने एक पल के लिए भी नहीं सोचा था कि नीलामी फिर से शुरू होने पर इससे उन्हें खूब मज़ा आएगा। उन्होंने उस वायलिन को बजाना समाप्त किया और शांत भाव से उसे नीलामीकर्ता को लौटा दिया। इससे पहले कि नीलामीकर्ता कमरे में मौजूद सभी लोगों से पूछ पाता कि क्या वे अब भी इसे खरीदना चाहेंगे, हाथ उठाने की होड़ लग गई। अचानक से किए गए इस शानदार प्रदर्शन के बाद हर कोई तुरंत इसे चाहता था। कुछ समय पहले तक एक अवांछित वस्तु से, पुराना वायलिन अचानक नीलामी की सबसे तीव्र बोली का केंद्र बन गया। 20 डॉलर की शुरुआती बोली से, कीमत तुरंत 500 डॉलर तक बढ़ गई। अंततः उस पुराने वायलिन को 10,000 डॉलर में बेचा गया, जो इसकी सबसे कम कीमत से 500 गुना अधिक था। आश्चर्यजनक परिवर्तन पुराने वायलिन को सबकी नापसंद वास्तु से सबकी पसंदीदा और नीलामी का सितारा बनने में केवल 15 मिनट लगे। और इसके तारों को ट्यून करने और एक अद्भुत धुन बजाने के लिए एक उस्ताद संगीतकार की ज़रूरत पड़ी। उसने दिखाया कि जो बाहर से बदसूरत लग रहा था, वास्तव में उस वाद्य यंत्र के अंदर एक सुंदर और अमूल्य आत्मा थी। शायद, पुराने वायलिन की तरह, हमारे जीवन का पहले तो कोई खास मूल्य नहीं लगता। लेकिन अगर हम उन्हें येशु को सौंप दें, जो सभी उस्तादों से ऊपर उस्ताद हैं, तो वे हमारे ज़रिए सुंदर गीत बजाने में सक्षम होंगे और उनकी धुनें श्रोताओं को और भी ज़्यादा चौंका देंगी। तब हमारा जीवन दुनिया का ध्यान आकर्षित करेगा। तब हर कोई उस संगीत को सुनना चाहेगा जिसे प्रभु येशु हमारे जीवन से उत्पन्न करते हैं। इस पुराने वायलिन की कहानी मुझे मेरी अपनी कहानी की याद दिलाती है। मैं भी उस पुराने वायलिन की तरह ही था और किसी ने नहीं सोचा था कि मैं किसी काम का हो सकता हूँ या अपने जीवन में कुछ सार्थक कर सकता हूँ। वे मुझे ऐसे देखते थे जैसे मेरा कोई मूल्य ही न हो। हालाँकि, येशु को मुझ पर दया आ गई। वह पलटा, मेरी ओर देखा और मुझसे पूछा: "पीटर, तुम अपने जीवन में क्या करना चाहते हो?" मैंने कहा: "गुरुवर, आप कहाँ रहते हैं?" "आओ और देखो," येशु ने उत्तर दिया। इसलिए मैं आया और देखा कि वह कहाँ रहते हैं, और मैं उनके साथ रहा। पिछले 16 जुलाई को, मैंने अपने पुरोहिताई अभिषेक की 30-वीं वर्षगांठ मनाई। मेरे लिए येशु के महान प्रेम को जानने और अनुभव करने के लिए... मैं उनका कितना धन्यवाद कर सकता हूँ? उन्होंने पुराने वायलिन को कुछ नया बना दिया है और उसे बहुत मूल्यवान बना दिया है। हे प्रभु, हमारा जीवन भी उस पुराने वायलिन की तरह तेरा संगीत वाद्य बन जाए, ताकि हम ऐसा सुंदर संगीत बना सकें जिसे लोग तेरे अद्भुत प्रेम के लिए धन्यवाद और प्रशंसा देते हुए हमेशा गा सकें।
By: फादर पीटर हंग ट्रान
Moreएक कैथलिक के रूप में, मुझे सिखाया गया था कि क्षमा करना ईसाई धर्म के पोषित मूल्यों में से एक है, फिर भी मैं इसका अभ्यास करने के लिए संघर्ष करती हूँ। संघर्ष जल्द ही एक बोझ बन गया, क्योंकि मैंने क्षमा करने में अपनी असमर्थता पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। पाप स्वीकार संस्कार के दौरान, पुरोहित ने येशु मसीह की क्षमा की ओर इशारा किया: "उसने न केवल उन्हें क्षमा किया, बल्कि उनके उद्धार के लिए प्रार्थना की।" येशु ने कहा: "हे पिता, उन्हें क्षमा कर, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।" येशु की यह प्रार्थना अक्सर उपेक्षित अंश को प्रकट करती है। यह स्पष्ट रूप से उजागर करता है कि येशु की निगाह सैनिकों के दर्द या क्रूरता पर नहीं थी, बल्कि सच्चाई के बारे में उनके ज्ञान की कमी पर थी। येशु ने उनकी मध्यस्थता करने के लिए इस अंश को चुना। मुझे यह संदेश मिला कि दूसरे व्यक्ति और यहाँ तक कि खुद के अज्ञात अंशों को जगह देने से मेरी क्षमा अंकुरित होनी चाहिए। अब मैं हल्का और अधिक खुश महसूस करती हूँ क्योंकि पहले, मैं केवल ज्ञात कारकों से निपट रही थी - दूसरों द्वारा पहुँचाई गई चोट, उनके द्वारा बोले गए शब्द और दिलों और रिश्तों का टूटना। येशु ने मेरे लिए क्षमा के द्वार पहले ही खुले छोड़ दिए हैं, मुझे केवल अपने और दूसरों के भीतर के अज्ञात अंशों को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करने के इस मार्ग पर चलना है। जब येशु हमें अतिरिक्त मील चलने के लिए आमंत्रित करते हैं, तब येशु का यह कथन हमारे लिए अज्ञात अंशों के बारे में जागरूकता के अर्थ की परतें जोड़ता है। मुझे लगा कि क्षमा करना एक ऐसी यात्रा है जो क्षमा करने के कार्य से शुरू होकर एक ईमानदार मध्यस्थता तक जाती है। जिन्होंने मुझे चोट पहुंचाई है, उन लोगों की भलाई के लिए प्रार्थना करके, गेथसेमेन के माध्यम से मेरा चलना ही अतिरिक्त मील चलने का यह क्षण है। और यह प्रभु की इच्छा के प्रति मेरा पूर्ण समर्पण है। प्रभु ने सभी को अनंत काल के लिए प्रेमपूर्वक बुलाया है और मैं कौन हूँ जो अपने अहंकार और आक्रोश के साथ बाधा उत्पन्न करूँ? अपने दिलों को अज्ञात अंशों के लिए खोलने से एक दूसरे के साथ हमारे संबंधों को सुधारता है और हमें ईश्वर के साथ एक गहरे रिश्ते की ओर ले जाता है, जिससे हमें और दूसरों को उनकी प्रचुर शांति और स्वतंत्रता तक पहुँच मिलती है।
By: एमिली संगीता
Moreरोम..., संत पेत्रुस का महागिरजाघर जाना, संत पापा से मुलाक़ात करना ... क्या जीवन इससे ज़्यादा घटनापूर्ण हो सकता है? हाँ, मैंने पाया कि यह हो सकता है। रोम की यात्रा के दौरान कैथलिक धर्म में मेरा धर्मांतरण हुआ। मैं भाग्यशाली थी कि वहां मैं अपनी स्नातक की पढ़ाई के सिलसिले में गयी थी। जिस कैथलिक विश्वविद्यालय में मैंने अध्ययन किया था, उस विश्वविद्यालय ने यात्रा के हिस्से के रूप में संत पापा फ्रांसिस के साथ कुछ मुलाक़ातों का आयोजन किया था। एक शाम, मैं संत पेत्रुस महागिरजाघर में बैठी थी, लाउडस्पीकर पर लातीनी भाषा में रोज़री माला की प्रार्थना सुन रही थी, जबकि मैं गिरजाघर में आराधना शुरू होने का इंतज़ार कर रही थी। हालाँकि मैं उस समय लातीनी नहीं समझती थी, न ही मुझे पता था कि रोज़री क्या है, मैंने किसी तरह प्रार्थना को पहचान लिया। वह एक रहस्यमय तल्लीनता का क्षण था जिसने अंततः मुझे माँ मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से अपना पूरा जीवन येशु को सौंपने के लिए प्रेरित किया। इससे मेरे धर्मांतरण की एक यात्रा शुरू हुई, जो एक साल बाद कैथलिक कलीसिया में मेरे बपतिस्मा में परिणत हुई, और कुछ ही समय बाद वह एक प्रेम कहानी में परिणत हुई। खोज के क्षण मैंने पाया कि मैं धीरे-धीरे येशु के साथ अपने रिश्ते की नींव बना रही हूँ, इस प्रक्रिया में अनजाने में मरियम की नकल कर रही हूँ। मसीह के साथ अपने संबंध को गहरा करने की कोशिश करते हुए मैंने प्रार्थना में उनके चरणों में घुटने टेके, जैसा कि मरियम ने कलवारी में किया होगा। मैं आज भी इस अभ्यास को जारी रखती हूँ, येशु के चेहरे, उनके घावों, उनकी कमज़ोरियों और उनकी पीड़ा का अध्ययन करती हूँ। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं उन्हें सांत्वना देने के लिए हर दिन उनसे मिलती हूँ क्योंकि मैं उनके क्रूस पर अकेले होने के विचार को सहन नहीं कर सकती। उनके दु:ख पर ध्यान लगाने से, मैं पाती हूँ कि मैं आज हमारे अंदर बसनेवाले जीवित मसीह के महत्व को और अधिक गहराई से समझ सकती हूँ। जब मैंने खुद को इस अभ्यास के लिए समर्पित किया, तो मैंने महसूस किया कि येशु मेरी दैनिक प्रार्थनाओं में मेरा इंतज़ार कर रहे हैं, मेरी वफ़ादारी के लिए तरस रहे हैं, और मेरी संगति की तलाश में हैं। जितना अधिक मैंने उन्हें मौन प्रार्थना में थामे रखा, उतना ही अधिक मैं अपने जीवन और दूसरों के जीवन के लिए येशु द्वारा चुकाई गई कीमत के लिए गहरा दु:ख और शोक महसूस करने लगी। मैंने उनके लिए आँसू बहाए। मैंने उन्हें अपने दिल में कैद कर लिया। अपने बेटे के लिए मरियम की कोमल देखभाल को प्रतिबिंबित करते हुए मैंने प्रार्थना में उन्हें सांत्वना दी। येशु को क्रूस पर ले जाने वाले बलिदानी प्रेम की अनुभूति ने मेरे भीतर गहरी मातृ भावनाएँ जगाईं, जिससे मुझे सब कुछ उनके प्रति समर्पित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। माँ मरियम की कृपा से, जैसे हमारा रिश्ता खिल उठा, मैंने खुद को पूरी तरह से येशु को समर्पित कर दिया, जिससे उन्हें मुझे बदलने की अनुमति मिली। समर्पण जब दो साल पहले मुझे बहुत बड़ा नुकसान हुआ, तो मैंने इस दैनिक अभ्यास को जारी रखा, हालाँकि मेरे दुःख का केंद्र बदल गया था। मैंने जो आँसू बहाए, वे अब उसके लिए नहीं बल्कि अपने लिए थे। मैं अपने पूर्ण संकट और निराशा में हमारे प्रभु के चरणों में गिरने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी, चाहे मैं कितना भी स्वार्थी क्यों न महसूस कर रही थी। तब ईश्वर ने मुझे दिखाया कि कैसे प्रार्थना में उनके बलिदान की साक्षी बनने से ही नहीं, बल्कि उनकी दु:ख पीड़ा में प्रवेश करके भी मुक्तिदायक पीड़ा को साझा किया जा सकता है। अचानक, उनका दुख मेरे लिए अब बाहरी नहीं रहा, बल्कि कुछ ऐसा था जो इतना अंतरंग था कि मैं क्रूस पर मसीह के साथ एक हो गयी। मैं अब अपने दुख में अकेली नहीं थी। बदले में, मैं ने पहचानना की मेरे साथ वे थे जिन्होंने मुझे मौन प्रार्थना में सहारा दिया, जिन्होंने मेरे लिए शोक किया और मेरे दुख को साझा किया। उन्होंने मेरे लिए आँसू बहाए और अपना दिल खोल दिया जहाँ मैं पीछे हट गयी और उनकी कैदी बन गयी। मैं उसके प्यार में बंदी थी। असहज मार्ग पर यात्रा मरियम का अनुकरण करने से हमे सीधे येशु के हृदय की ओर पहुँच जाते हैं, जो हमें सच्चे पश्चाताप और उनके प्रेम से प्रवाहित होने वाली असीम दया का सार सिखाता है। यह यात्रा चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जिसके लिए हमें मसीह के क्रूस के बोझ को साझा करना होगा। फिर भी, हमारे परीक्षणों और दु:खों के माध्यम से, हम उनकी आरामदायक उपस्थिति में सांत्वना पा सकते हैं, यह जानते हुए कि वे हमें कभी नहीं छोड़ते। मरियम के आदर्श का अनुसरण करके, हम उन्हें अपने प्रभु और उद्धारकर्ता येशु के साथ हमारे संबंध को गहरा करने और उनके मुक्तिदायी दु:ख को साझा करने में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए आमंत्रित करते हैं। ऐसा करने से, हम उन लोगों के दर्द और पीड़ा के लिए जीवित शहीद बन जाते हैं जो अभी तक मसीह से नहीं मिले हैं, और उसी प्रक्रिया में, हम स्वयं ठीक हो जाते हैं। अपने बेटे के लिए मरियम के मातृ प्रेम का जब हम अनुकरण करते हैं, तो हम उनके दु:ख के सार के करीब आते हैं और उनकी उपचारात्मक कृपा के पात्र बन जाते हैं। मसीह के साथ एकता में अपने स्वयं के दुखों को अर्पित करने के माध्यम से, हम उनके प्रेम और करुणा के जीवित गवाह बन जाते हैं, जो उन लोगों को सांत्वना देते हैं जो अभी तक उनसे नहीं मिले हैं। इस पवित्र प्रक्रिया में, हम अपने लिए उपचार पाते हैं और ईश्वर की दया के साधन बनते हैं, जरूरतमंदों तक उनका प्रकाश फैलाते हैं। इसी तरह, हम अपने जीवन में क्रूस को साहस के साथ गले लगाना सीखते हैं, यह जानते हुए कि वे मसीह के साथ एक गहरे मिलन के मार्ग हैं। मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से, उस बलिदानी प्रेम की गहन समझ की ओर हमारा मार्गदर्शन किया जाता है जिसके कारण येशु ने हमारे लिए अपना जीवन दे दिया। जब हम शिष्यत्व के मार्ग पर चलते हैं, और मरियम के पदचिन्हों पर चलते हैं, तो हमारे जीवन में उपचार और मुक्ति लाने के लिए उनकी परिवर्तनकारी शक्ति पर भरोसा करते हुए अपने दु:खों और संघर्षों को येशु को अर्पित करने के लिए हमें कहा जाता है।
By: फ़ियोना मैककेना
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