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जून 23, 2021 1646 0 Deacon Doug McManaman, Canada
Encounter

खोजें अपनी सच्ची पहचान

आप सच में, पूरी तरह उतने ही अद्भुत हैं जैसा कि ईश्वर कहता है |

निराशा की लहरें

बात वर्ष 2011 की है| क्रिसमस की छुट्टियों के ठीक पहले मुझे एक रहयस्यमय बीमारी ने जकड़ लिया | कोई भी डॉक्टर यह पता नहीं कर पा रहे थे कि यह बीमारी असल में क्या थी| 23 दिसंबर की बात है| मेरे पूरे शरीर में कम्पन सी होने लगी| मेरे हाथों और गर्दन में तेज़ दर्द उठा, सिर तकलीफ से फटा जा रहा था| किसी तरह मैंने खुद को अपने बिस्तर तक पहुँचाया, इस उम्मीद में कि मेरी यह पीड़ा क्रिसमस के पहले समाप्त हो जाएगी| लेकिन मेरा अनुमान गलत था|

26 दिसंबर को मैंने खुद को असहनीय पीड़ा से जूझते हुए इमरजेंसी रूम में पाया| दर्द अब मेरे सर और हाथों से, मेरे कन्धों और पैरों तक जा पहुंचा था| डॉक्टर को डर था की मुझे पोलिमेल्जिया रुमेटिका हुआ था, जिसका कोई इलाज नहीं था| इसीलिए मुझे दर्द की दवाई के साथ घर भेज दिया गया|

जैसे जैसे दिन बीतते गए, मेरी हालत में कोई सुधार ना होने के कारण मैं सोचने लगा कि मैं शायद अपनी क्लास में मेरे  छात्रों के बीच लौट नहीं पाऊंगा| मेरी लड़ाई मेरे शारीरिक दर्द से नहीं थी, मेरी लड़ाई निराशा से थी| हर दिन मैं इन निराशा की लहरों में डूबता जा रहा था| मैं नहीं समझ पा रहा था कि मैं जीवन भर ऐसे कैसे जियूँगा|

एक आसान सी प्रार्थना

मैं हर दिन अपने आध्यात्मिक निर्देशक से फ़ोन पर बात करता था| एक दिन मैंने उनसे कहा “मैं जिनके लिए सेवकाई करता हूँ, वो भी इसी दर्द से हर रोज़ गुज़रते होंगे ना?|” एक डेकन या उपयाजक के तौर पर, मैं मानसिक रोग से पीड़ित लोगों के लिए सेवकाई करता हूँ| मेरी इस बीमारी ने मुझे उन अँधेरी और कठिनाई भरी गलियों की झलक दी, जिससे हर मानसिक रोगी गुज़रता है| इस प्रकार ख्रीस्त के दुःखभोग में भाग ले रहे  उन लोगों के लिए करुणा और सांत्वना से भर गया जो |

एक दिन, मेरे आध्यात्मिक निर्देशक ने मुझे इस प्रकार प्रार्थना करने के लिए कहा, “ हे ईश्वर, मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में सौंपता हूँ, हे ईश्वर मैं अपनी आत्मा आपको समर्पित करता हूँ|” ये लाइनें उस रात्रि प्रार्थना का हिस्सा हैं जिसे मैं कई सालों से हर रात कहता आया हूँ| पर अक्सर जब हम किसी प्रार्थना को अनगिनत बार दोहराते हैं, तो हम उसके शब्दों की गहराई को भूलते जाते हैं| मैंने आजतक इस प्रार्थना को अपने दर्द से जोड़ कर नहीं देखा था| उस दिन के बाद से मैं इस प्रार्थना को और ध्यान से पढ़ने लगा| मैंने एक नए विश्वास के साथ कहना शुरू किया “हे ईश्वर, मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में सौंपता हूँ, आपकी इच्छा मुझमे पूरी हो| अगर ये आपकी इच्छा है की मैं अपनी क्लास में वापस न जाऊं, तो यही सही|”

उस रात मुझे अच्छी नींद आई| अगली सुबह मैंने अपनी आत्मा में एक नयी ख़ुशी महसूस की| मैं अब भी काफी दर्द में था, पर निराशा का वो अँधेरा अब जा चुका था| उसके तुरंत बाद, मेरा दर्द धीरे धीरे कम होने लगा और मेरी दवाइयों की खुराक घटाई जाने लगी| मैं अब फिर से अपनी क्लास जाने लगा, और मैंने अगले 8 साल तक अपनी क्लास में पढ़ाया| ना ही मेरे पारिवारिक डॉक्टर और ना ही विशेषज्ञ कभी ये पता कर पाए की मुझे जो बीमारी थी वो क्या थी| अपनी बिमारी के बारे में आखरी बार मैंने जिस विशेषज्ञ से बात की, उनका मानना था की मेरी बीमारी पोलिमेल्जिया रुमेटिका तो बिलकुल नहीं थी| क्या थी वो उन्हें भी समझ नहीं आया| उनका अंदाज़ा था की शायद मुझे किसी तरह वायरस ने जकड़ा था|

यातना का स्वाद

बीते कुछ सालों में मैंने अपने इस अनुभव को एक अनुग्रह, एक उपहार की तरह देखना शुरू किया है| इस अनुभव ने मुझे मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों को एक नए नज़रिये से देखने में सहायता की है| मुझे उनकी साल दर साल की पीड़ा का जैसे एक स्वाद सा मिला| मेरे लिए, उनकी स्थितियों को उनके स्तर पर समझ पाना ज़रूरी था, ताकी मैं उनकी निराशा में उनके साथ वैसे ही खड़ा रह सकूँ, जैसे मेरे आध्यात्मिक निर्देशक मेरे मुश्किल वक़्त में मेरे थे| यही त्रियेक ईश्वर में पुत्र परमेश्वर की भी भूमिका है| पुत्र परमेश्वर, मानव रूप ले कर हमारे इस अंधियारे संसार में प्रवेश करते हैं| इसके द्वारा वों खुद को मानव पीड़ा से जोड़तें हैं|

येसु इस संसार में आए ताकि वो हमारे अन्धकार में अपनी रौशनी और हमारी मृत्यु में अपना जीवन फूँक सकें| ताकि हमें हमारी दुःख तकलीफें और मृत्यु अकेले ना झेलनी पड़ें| हम अपनी परेशानियों में, और अपनी मृत्यु की घड़ी में, येसु को साथ पाते हैं, और ये देखते हैं की वो हमारे लिए असीम कृपा के स्त्रोत हैं| ये असीम कृपा हमारी तकलीफों से लेकर हमारी मृत्यु तक हमारे साथ चलती है|

जानें सच्चा प्रेम

ईश्वर का आलौकिक न्याय, आलौकिक कृपा के रूप में, हमें येसु मसीह के द्वारा मिला है| ये कृपा, येसु के दुःखभोग, मृत्यु और पुनर्जीवित होने के द्वारा हमें मिलती है| हालांकि हम इस कृपा के लायक नहीं थे, फिर भी अनादि ईश्वर, क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा हमें अपनी कृपा की गहराई का अनुभव कराते हैं| अपनी मृत्यु के के द्वारा वों मृत्यु की स्थिरता, उसके अन्धकार उसकी निराशा को ख़तम करते हैं|

ईश्वर ये बलिदान तब भी देते अगर सिर्फ मुझे और आप को इस अनंत मृत्यु से मुक्ति चाहिए होती| मेरे कहने का मतलब है की ईश्वर सिर्फ पूरी मानवता से प्यार नहीं करते, वों हर एक इंसान से व्यक्तिगत स्तर पर प्रेम करते हैं| हालांकि हम हर वक़्त ईश्वर का ध्यान नहीं करते, पर ईश्वर हर वक़्त हर एक इंसान को देखते हैं, याद करते हैं| ईश्वर हर इंसान से इतना ज़्यादा प्यार करते हैं|

अपने डर को बह जाने दें

यह हमारी ज़िन्दगी, उस सिद्ध प्रेम को जानने का नाम है| हममें से कई लोग खुद को उस प्रेम के स्पर्श से दूर रखते हैं क्योंकि यह प्रेम सूरज की किरणों की तरह अपनी छुई हर चीज़ को गर्माहट देता है| ये गर्माहट हमारे अंदर छिपी हर नाराज़गी, या दुःख तकलीफ को पिघलाती है| लेकिन हममें से कुछ के लिए, ये बातें हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी हैं, इसीलिए हम ईश्वर के प्रेम से कतराते हैं| ईश्वर का प्रेम हमारे डर को भी पिघलाता है, लेकिन कुछ लोग अपने डर को जकड़े बैठे हैं क्योंकि उनके पिछले अनुभवों ने उन्हें नयी चीज़ों से दूर रहना सिखाया है| ईश्वर के प्रेम को अपनाने की शर्त यही है की हम बिना किसी बंधन के, ईश्वर के सम्मुख अपने आप को समर्पित करें, और उन्हें हमारा मार्गदर्शन करने दें|

ईश्वर की कृपा, जो ख्रीस्त के दुखभोग, मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा हमें मिलती है, वह बिलकुल अनोखी है| हम यह  कृपा क्रूस की छवि में देखते हैं, लेकिन हमें उस छवि को अपने अंदर लाने की ज़रुरत है| हमें ईश्वर की रोशनी, और उनके प्रेम को अपने जीवन में अपनाने की ज़रूरत है,  इस कृपा को सिर्फ दूर से नहीं निहारना है| यह जीवन भर की कोशिश और जीवन भर की साधना है, लेकिन जिस दिन हम इस राह की तरफ अपने कदम बढ़ाते हैं, उसी दिन हम असल मायने में जीना शुरू करते हैं|

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Deacon Doug McManaman

Deacon Doug McManaman is a retired teacher of religion and philosophy in Southern Ontario. He lectures on Catholic education at Niagara University. His courageous and selfless ministry as a deacon is mainly to those who suffer from mental illness.

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