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अक्टूबर 27, 2021 425 0 फादर जे. ऑगस्टीन वेट्टा ओ.एस.बी., USA
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खुश रहने का फैसला लेना पड़ता है

यह सच है कि किसी भी क्षण हम में से कोई भी दुखी और निराश होने की हज़ार वजहें सोच सकता है। हमारी ज़िंदगी कभी हमारी उम्मीदों के हिसाब से चलती ही नही। लेकिन अगर हम तथ्यों की ओर ध्यान दें – वासना के प्रलोभन की कल्पनाओं का विरोध करते हुए, हम देखते हैं कि हमारी आंखें किसी और दुनिया, किसी और नौकरी, किसी और ज़िंदगी की चाह में लगी होती हैं जो हमारी असल ज़िंदगी से बिल्कुल अलग है, और तब हमें यह अहसास होता है कि खुश रहना एक आंतरिक फैसला है। खुशी एक चयन है। मठों में बुज़ुर्ग साधुओं में एक कथन काफी प्रचलित है: “वह साधु दीवार के उस पार झांक रहा है।” एक दुखी साधु हमेशा मठ के बाहर रहने वाले लोगों के जीवन में झांकता रहेगा और सोचता रहेगा कि वे लोग असीम आनंद भरा जीवन बिता रहे हैं।

लेकिन योहन के सुसमाचार में इस प्रलोभन का एक तोड़ छिपा है। योहन के सुसमाचार के नौवें अध्याय में बाइबिल के एक कम प्रसिद्ध नायक की कहानी है: जन्म से अंधे व्यक्ति की कहानी। वह एक कम प्रसिद्ध नायक इसलिए नहीं है कि वह जन्म से अंधा था, बल्कि इसलिए कि कहानी में हम उसे आलसी, हठी, अवज्ञाकारी, अनादर करने वाला और बेअदबी से पेश आने वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं। जब फरीसी लोग उससे उसकी चंगाई के बारे में सवाल करते हैं, तब वह कहता है, “तुम लोग मेरी बात नहीं सुन रहे हो, या बात यह है कि तुम लोग भी उसके शिष्य बनना चाहते हो?” वह जन्मांध बड़ा ही चालाक था और मुझे पूरा भरोसा है कि वह अपनी किशोरावस्था में रहा होगा। (स्कूलों में बीस साल गुज़ारने के बाद मैं यह कह सकता हूं कि मैं अपने आप को आलस्य, हठ, अवज्ञा, अनादर और अपमान के मामले में ज्ञानी समझता हूं। और तो और, यहूदियों के वे प्राधिकारी जन उस जन्मांध के माता पिता की राय लेने क्यों जाएंगे? और उसके माता-पिता को यह बताने की आवश्यकता क्यों होगी कि वह अपने लिए बोलने के लिए परिपक्व है)।

देखा जाए तो पूरी कहानी में सिर्फ येशु ही उस जन्मांध से परेशान नहीं होते दिखाई देते हैं। लेकिन अगर हम धार्मिक दृष्टिकोण से उसे देखें तो इस नवयुवक में एक अच्छा गुण है – चाहे वह नवयुवक अपमानित हो या अड़ियल, परंतु “वह तथ्यों पर कायम रहता है”।

“तुम्हें अपनी दृष्टि कैसे वापस मिली?” प्राधिकारियों ने पूछा।

“मुझे नहीं पता। उसने मेरी आंखों पर मिट्टी लगाई और अब मैं देख पा रहा हूं।”

“लेकिन वह मनुष्य पापी है।”

“हो सकता है। मुझे नहीं पता। पहले मैं अंधा था और अब मैं देख सकता हूं।”

“पर हमें कोई अंदाज़ा नहीं है कि यह व्यक्ति कहाँ से है।”

“किसे पड़ी है? पहले मैं अंधा था और अब मैं देख पा रहा हूं। मैं एक ही बात कितनी बार और दोहराऊं?”

ध्यान दीजिए कि वह कहीं पर भी विश्वास की बात नहीं करता है। और अथक पूछताछ के बाद ही वह अंत में स्वीकार करता है कि यह व्यक्ति येशु (जो कोई भी है) ईश्वर की ओर से होगा। वह तो आखिर में येशु को धन्यवाद भी नहीं कहता है। येशु ही उसे खोजते हैं।

“क्या तुम मानव पुत्र पर विश्वास करते हो?” येशु उससे पूछते हैं।

“वह कौन है?”

येशु जवाब देते हैं, “तुम उसी से बात कर रहे हो।”

 

अब मैं इस कहानी के वैकल्पिक अंत की कल्पना कर सकता हूँ जहाँ वह युवक कहता है, “ओह! अच्छा ठीक है। आपको हर बात के लिए धन्यवाद। लेकिन मेरा मानना हैं, कि शायद वह आप नहीं थे जिन्होंने वास्तव में मुझे चंगा किया था। शायद यह सब महज एक इत्तेफाक था। शायद मेरा अंधापन शुरुआत से ही मनोवैज्ञानिक था। शायद उस कीचड़ में कुछ था। मैं काफी सोच विचार के बाद ही इस बारे में ठीक तरह से कुछ कह पाऊंगा।”

 

लेकिन याद करें : यह युवक व्यवहारवादी है। इसे उसकी अच्छाई समझे या बुराई, पर वह हमेशा तथ्यों पर कायम रहता है।

 

संत योहन अपने सुसमाचार में हमें बताते हैं कि उस युवक ने जवाब में बस इतना कहा, “मैं विश्वास करता हूं, प्रभु।” और फिर उसने येशु की आराधना की।

एक बार मैंने अपने धार्मिक गुरु से सवाल किया कि मैं किस प्रकार निश्चित रूप से यह जान सकता हूं कि ईश्वर ने मुझे संत लुइस मठ में साधु बनने के लिए बुलाया है?

“तुम ही सोचो” उन्होंने कुछ सोच विचार के बाद कहा, “इस समय तुम कहीं और ना हो कर संत लुइस मठ में हो। क्यों हो?”

तुम कहीं और ना हो कर यहां हो। ईश्वर में आनंद मनाने के लिए यह एक वजह काफी है।

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फादर जे. ऑगस्टीन वेट्टा ओ.एस.बी.

फादर जे. ऑगस्टीन वेट्टा ओ.एस.बी. एक बेनेदिक्ताइन भिक्षु हैं जो सेंट लुइस प्रायरी स्कूल, मिसौरी में पुरोहित के रूप में कार्य करते हैं। आपने "आठवां तीर" और "विनम्रता नियम" नामक किताबों की रचना की है ।

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