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जनवरी 20, 2022 696 0 Elizabeth Livingston
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क्या परमेश्वर वास्तव में परवाह करता है?

जब दुख का पहाड़ आप पर गिरता है…

जैसे ही मेरी बेटी सोने के लिए बिस्तर पर लेटी थी, मैंने उसके मासूम चेहरे को देखा, और मेरा दिल पिघल गया। मैं उसे अपने करीब लायी और उसके माथे को चूमा, और उसी समय मैंने अचानक दिल का दर्द महसूस किया और उसके लिए मैं खूब रोयी। अपने सात वर्षों के छोटे जीवन में, वह कई अस्पतालों में रही, उसने कई स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना किया। हम जिस आघात से गुज़रे, वह मेरे दिमाग में ताज़ा था, खासकर उस दिन जब उसकी जांच रिपोर्ट में उसे स्थायी मस्तिष्क क्षति का गंभीर रोग होने की खबर हमें मिली। उसका जीवन किस तरह आनंद विहीन होगा, ऐसा सोचते हुए मेरा दिल टूट गया। मैं सोचती थी कि मैं भावनात्मक रूप से बहुत मजबूत थी, लेकिन मैं मज़बूत नहीं थी।

स्विस-अमेरिकी मनोचिकित्सक, एलिजाबेथ कुबलर-रॉस के अनुसार, दुःख के 5 चरण हैं: इनकार, क्रोध, सौदेबाजी, अवसाद और स्वीकृति।

दुःख के प्रति हमारी पहली प्रतिक्रिया इनकार है। जो घटना हुई, उसके सदमे में, हम नई वास्तविकता को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं।

दूसरा चरण क्रोध है। हम इस असहनीय स्थिति और इसके कारण होनेवाली किसी भी बात पर क्रोधित हो जाते हैं, यहाँ तक कि अपने आस-पास के लोगों के प्रति, या ईश्वर के प्रति बेवजह गुस्सा करते हैं।

जैसे ही हम अपनी नई वास्तविकता से बचना चाहते हैं, हम तीसरे चरण में प्रवेश करते हैं: वह है सौदेबाजी। उदाहरण के लिए, हम संकट और उससे संबंधित दर्द को टालने के लिए ईश्वर के साथ एक गुप्त सौदा करने का प्रयास कर सकते हैं।

चौथा चरण अवसाद है। जैसे-जैसे वास्तविकता धीरे-धीरे सामने आती है, हम अक्सर अपने लिए खेद महसूस करते हैं, सोचते हैं कि हमारे साथ ये सब क्यों होता है। अवसाद की भावना अक्सर स्वयं पर दया और पीड़ित की तरह महसूस करने में होती है।

पांचवें चरण में स्वीकृति आती है, क्योंकि हम दुःख के कारण के बारे में जानते हैं और भविष्य पर ध्यान देना शुरू करते हैं।

अप्रत्याशित आवर्तन

एक बार जब हम अपने दुःख से निपटने के लिए स्वीकृति की अवस्था में पहुँच जाते हैं, तो हम पुन: ऊर्जा प्राप्त करने की स्थिति की ओर बढ़ते हैं। इस चरण में हम अपने आप पर, अपनी भावनाओं पर और अपनी हालात पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं और यह सोचने लगते हैं कि आगे बढ़ने के लिए हमें क्या क्या करना चाहिए।

मेरी बेटी के स्वास्थ्य की हालात में, मैंने इन चारों चरणों से होकर आगे बढ़ी थी और मुझे लगा कि मैं पुन: ऊर्जा पाने की स्थिति में थी: अपने जीवन के लिए ईश्वर की योजना में निरंतर विश्वास और आशा बनाए रखती हुई, प्रत्येक दिन के अनुभवों से प्रेरणा पाती हुई मैं अपनी भावुकताओं को अनुशासन में बनाए रखने में सक्षम हो रही थी। लेकिन हाल ही में मैंने दु:ख और निराशा के अचानक, गंभीर आवर्तन का अनुभव किया। मैं पूरी तरह टूटी और बिखरी हुई महसूस कर रही थी ।

मेरा दिल बेटी के लिए इतना दुखी था कि मैं बस चीखना चाहती थी; “हे ईश्वर, मेरी बच्ची को क्यों ये सब भुगतना पड़ता है? उसे इतना कठिन जीवन क्यों जीना पड़ रहा है? वह भयंकर पीड़ा भोग रही है क्या यह उचित है? आजीवन दूसरों पर निर्भर रहकर उसे अपना जीवन क्यों बिताना पड़ता है? उसके जीवन में उसे इतना संघर्ष क्यों करना पड़ रहा है?” जैसे ही मैंने उसे अपने पास रखा, मैंने अपने आँसू बहने दिए। एक बार फिर, मैं उसके जीवन की कठोर वास्तविकताओं को स्वीकार नहीं कर सकी और मैं सिसकने लगी। रात के वक्त ऐसा लग रहा था कि मैं पुन: इनकार के चरण में पूरी तरह से वापस आ गयी हूँ।

पूरी तस्वीर

हालाँकि, दुःख के इस अचानक दौर में, क्रूस पर टंगे येशु को और उस पीड़ा को, जिसे उसने सहन किया था, याद करते हुए मैंने उसके लिए प्रार्थना की। क्या यह उचित था कि परमेश्वर ने मेरे पापों के लिए अपने पुत्र को मरने के लिए भेजा? नहीं! यह उचित नहीं था कि येशु ने मेरे लिए अपना निर्दोष लहू बहाया। यह उचित नहीं था कि उनका बेरहमी से मज़ाक उड़ाया गया, उनके कपड़े उतारे गए, उन पर कोड़े मारे गए, वे पीटे गए और उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया। परम पिता परमेश्वर ने क्रूस पर निंदा और क्रूस मरण के दर्दनाक दृश्य देखकर उसे सहा, सिर्फ मेरे प्यार के लिए। जब मैं अपनी बच्ची को पीड़ित होती देखती हूं तो मेरा दिल दुखता है, उसी तरह पिता का दिल दुखी हो गया येशु की पीड़ा को देखकर। उसने इसे सहन किया ताकि मुझे स्वीकार किया जा सके, क्षमा किया जा सके और प्यार किया जा सके।

ईश्वर वास्तव में मेरे दर्द का ख्याल करता है और मैं कैसा महसूस करता हूं इसे वह समझता है। इस अंतर्दृष्टि ने जेनी के लिए प्रभु की जो भी सर्वोच्च योजनायेन हैं, उन सारी योजनाओं को प्रभु के सम्मुख समर्पण करने में उसने मुझे सक्षम बनाया, यह जानते हुए कि वह उससे भी अधिक मुझसे प्यार करता है। हालाँकि मेरे पास सभी उत्तर नहीं हैं, और मैं केवल आधी तस्वीर देख सकती हूँ, लेकिन जो उसके जीवन की पूरी तस्वीर देखता है, मैं उसे जानती हूँ। मुझे बस उस पर अपना विश्वास और भरोसा रखने की जरूरत है।

प्रभु के प्रेम से सांत्वना पाकर आखिरकार मैं सो गयी। मैं नई आशा के साथ जाग उठी। वह मुझे प्रत्येक दिन के लिए पर्याप्त अनुग्रह देता है। मैं समय-समय पर भावनात्मक रूप से टूट जाती हूं, लेकिन ईश्वर की दया मुझे आगे बढ़ा देती है। मुझे आशा देने के लिए वह मेरे साथ है, और मुझे विश्वास है कि मैं हमेशा उसकी महिमा के प्रकाश में अपने दर्द और पीड़ा को देखकर पुन: ऊर्जा प्राप्त कर लूंगी!

मैं प्रार्थना करती हूं कि आप भी अपने जीवन के सबसे दर्दनाक और अनिश्चितता के क्षणों में प्रभु परमेश्वर की ताकत और आश्वासन पाएं, ताकि आप उसकी गहरी और स्थायी आशा का अनुभव कर सकें। जब आप कमजोर हों, तो वह आपके बोझ को उठाने में आपकी मदद करे और अपनी महिमा के प्रकाश में आपके दुखों को देखे। जब भी आपके विचारों में “क्यों प्रभु मुझे….?” ऐसा प्रश्न प्रवेश करता है, तो प्रभु आपके हृदय को अपनी प्रेममयी दया के लिए खोल दे, क्योंकि वह आपके साथ बड़ा भार लेकर चलता है।

“सांझ को भले ही रोना पड़े, भोर में आनंद-ही-आनन्द है।” स्तोत्र ग्रन्थ 30:6

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Elizabeth Livingston

Elizabeth Livingston एक लेखिका, वक्ता और ब्लॉगर हैं। उनके प्रेरक लेखन के माध्यम से, कई लोगों ने ईश्वर की चंगाई के प्रेम को अनुभव किया है। वे भारत के केरल प्रदेश में अपने पति और दो खूबसूरत बच्चों के साथ रहती है। उनके द्वारा लिखित अन्य लेख पढ़ने के लिए देखें: elizabethlivingston.in/

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