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जुलाई 27, 2021 1730 0 Freya Abraham
Engage

ऊँची उड़ान

अपनी युवावस्था से ही उसने ईश्वर की दाखबारी में काम किया| जानना चाहेंगे ईश्वर ने उसे किस प्रकार पुरस्कृत किया?

एक दुआ मांगे

मुझे यू.एस. प्रेसिडेंशियल स्कॉलर्स प्रोग्राम के बारे में तब पता चला जब मैं मिडिल स्कूल में थी| हर साल 161 अमरीकी विद्यार्थियों को उनकी अनोखी उपलब्धियों के लिए देश के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया जाता रहा है| उन्हीं पुरस्कृत विद्यार्थियों को देख कर मैंने सोचा की उनकी उपलब्धियां तो आसमां जितनी ऊंची है और अधिक अनछुई थीं| फिर भी, अगले चार साल तक मैंने हर रात अपनी प्रार्थनाओं में इस प्रोग्राम को शामिल किया| ऐसा नहीं था कि मैं इस प्रोग्राम में चुने जाने के काबिल हूँ, लेकिन बचपन से ही मुझे अपनी इच्छाओं के बारे में ईश्वर के साथ बात करने की आदत थी| जब भी हम पारिवारिक प्रार्थना में बैठते थे और मैं प्रेसिडेंशियल स्कॉलर्स प्रोग्राम में चुने जाने के लिए प्रार्थना करती थी तब मेरे माता पिता हंसा करते थे| इसी लिए जब ईश्वर ने असल में मेरी प्रार्थना सुन लीं तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ|

हमारे परिवार में, मेरी माँ ने ईश्वर और हमारे बीच के सम्बन्ध में काफी प्रेम, सच्चाई और आज़ादी का एक आदर्श प्रस्तुत किया| ईश्वर को मेरी हर योजना, हर रुझान के बारे में बताना ज़रूरी होता था| और मेरी ज़िन्दगी की हर छोटी बड़ी बात में ईश्वर की राय ज़रूरी होती थी, चाहे वह स्कूल की बात हो या कॉलेज की, या करियर की बात हो या पढ़ाई से अतिरिक्त किसी गतिविधि में भाग लेने की बात| इन सब के साथ ही मेरे माता पिता हमें साल में कम से कम दो बार किसी सत्संग में ले जाते थे| इसी वजह से मेरी किशोरावस्था के दिनों में मुझे शालोम, सेहियोन और स्टुबेनविल जैसी सेवकाइयों से काफी मदद मिली| और चाहे इन सत्संगों में भाग लेते वक़्त मेरा मन कितना भी अशांत रहा हो, अंत में मुझे ढेर सारी आशीषों के साथ काफी प्यारी प्यारी बातें सीखने को मिला|

आगे बढ़कर सेवा   

स्कूल में मुझे अपने दोस्तों की भलाई की बड़ी चिंता लगी रहती थी| यह बात साफ़ थी कि मेरी परवरिश काफी सच्चाई और ईमानदारी के आदर्श पर की गयी थी जिसकी वजह से मेरे जीवन में अनेक आशीषें थीं, जबकि मेरे दोस्त ऐसी परवरिश से बिलकुल अनजान थे| इसीलिए अगर मैं उन्हें ईश्वर के बारे में नहीं भी समझा पाती थी तो भी मैं वेदी के सामने ईश्वर से उनके बारे में बातें किया करती थीं| मेरा परिवार जहां तक हो सके दैनिक मिस्सा बलिदान के लिए जाया करता था| इसीलिए मैं नियमित रूप से ईश्वर से अपने टीम के सदस्य, अपने शिक्षक और उन लोगों के बारे में बात कर पाती थी जो कभी मेरा दिल दुखाते थे| इन्हीं छोटी छोटी बातों के दौरान मैंने अभी से ईश्वर के बारे में प्रचार करने की ओर अपना मन बना लिया|

मैं सात साल की उम्र से ही अपनी पल्ली में सेवा करती आई हूँ चाहे वह गायक मंडली में गाना हो, या वेदी से सेवा करनी हो, या गिरजाघर में पढ़ाना हो| और क्योंकि मेरा घर गिरजाघर से बस दो मिनट की दूरी पर था इसीलिए किसी भी काम में मदद कम पड़ने पर मुझे तुरंत बुला लिया जाता था और मैं आगे बढ़कर सेवा देती थी | शालोम मीडिया शिखर सत्संगो द्वारा मुझे जो मौके मिले, उनकी वजह से मैं काफी बड़े स्तर पर काम संभालने लगी| मेरे हाई स्कूल के कामों ने मुझे पहले से ही काफी उलझाए रखा था जब मैंने शालोम में स्वयंसेवक के रूप में कार्य करना शुरू किया| इतने व्यस्त रहने के बावजूद भी मैंने हमेशा ईश्वर के कार्यों को पहला स्थान दिया| इन सब की वजह से मैं खुद को किसी समय सारिणी में नहीं बाँध पा रही थी, लेकिन मुझसे जितना भी हो पा रहा था, मैं उतनी मदद कर रही थी| स्कूल में मध्यान्ह भोजन के वक़्त मैं मीडिया पोस्ट के लिए कुछ वाक्यों का सम्पादन कर देती थी, अपना गृह कार्य ख़तम करने के बाद मैं प्रेजेंटेशन स्क्रिप्ट का काम देख लेती थी, कभी कभी जीसस हील्स प्रोग्राम में मदद करने के लिए मैं स्कूल से छुट्टी ले लिया करती थीं, और इन सब के साथ विक्ट्री कॉन्फ्रेंस में भी माँ के साथ भाग ले लिया करती थी|

इसी तरह मैं अपना खाली वक़्त उन कामों में लगा देती थी जिनमें मुझे ख़ुशी मिलती थी| मैं अपने काम को लेकर बहुत ईमानदार भी थी| जिन क्लबों का काम मैं संभाल रही थी उनमें मैं हर चीज़ बड़े ध्यान से करती थी, ताकि जो बच्चे मुझसे चीज़ें सीख रहे होते थे, उन्हें किसी बात की कोई परेशानी ना हो| मैं हमेशा सोचा करती थी कि जो ईश्वर मुझे इतना प्यार करता है, मैं उस के लिए और क्या करूँ? ईश्वर से मिली आशीषों को दूसरों के साथ साझा करना मेरा कर्त्तव्य था, लेकिन इसके लिए भी ईश्वर ने मुझे इनाम दिया| वह हर परीक्षा या स्कूल का नियत कार्य  जिसके लिए मैं ठीक से तैयारी नहीं कर पाती थी वे या तो टल जाते थे या मेरे लिए आसान कर दिए जाते थे| एक दिन मुझे जो राष्ट्रीय छात्र अनुदान/स्कालरशिप का आवेदन भरना था, वह चालीसा के पहले शुक्रवार को पड़ रहा था| उसके एक दिन पहले मैं काफी दुखी थी क्योंकि मेरा इतना काम बाकी था कि मुझे लगने लगा था कि मुझसे शुक्रवार की प्रार्थना छूट जाएगी| शुक्रवार की सुबह मुझे पता चला कि उस स्कालरशिप की समय सीमा तीन दिन और बढ़ा दी गयी है| बाइबिल में लिखा है कि अगर हम ईश्वर के नाम पर किसी को एक गिलास पानी भी देते हैं तो हमें उसका इनाम दिया जाएगा| तो आप सोच सकते हैं कि अगर हम ईश्वर को अपना समय देते हैं तो उसका पुरस्कार कितना महान होगा? मुझे लगता था कि मैं ईश्वर के लिए कुछ कर रही हूँ, लेकिन ईश्वर मेरे द्वारा व्यतीत एक एक सेकंड का हिसाब रख रहे थे और उनके बदले मेरे लिए बड़ी सारी आशीषों को बटोर रहे थे|

विवेक की कमाई

 फिर भी, सेवा करने का मतलब सिर्फ काम निपटाना नहीं होता| सामाजिक स्तर पर हमें उन हालातों से सतर्क रहना चाहिए जो कभी कभी हमें अपने विश्वास से समझौता करने के लिए बहला फुसला सकते हैं| अक्सर एक छात्र के लिए ईश्वर की सेवा करने के बीच जो बाधा आती है वह है स्कूल के क्लबों में उनकी नियमित उपस्थिति की आवश्यकता| क्योंकि क्लबों में भाग लेना उनके स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई का एक ज़रूरी हिस्सा होता है| मीटिंग, कांफ्रेंस, और टीम बिल्डिंग सेशन ने मुझे बड़ी मुश्किल में डाल दिया| अगर मैं अब किसी म्यूज़िक या गेम से हटती थी तो मैं अपने साथियों से भी दूर होती जाती थी| स्कूल से सैर सपाटे पर जाने में मुझे बहुत ख़ुशी मिलती थी, लेकिन मेरे साथियों को लगता था कि मैं उन्हें उनके तौर तरीकों के लिए उनकी आलोचना करती हूँगी, जबकि ऐसा कुछ नहीं था| इसीलिए मैं अक्सर अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुना करती थी और ऐसा करते हुए खुद को बहुत अकेला महसूस करती थी| इन सब के बीच एक सत्संग के दौरान मैंने अपने दिल में यह आवाज़ सुनी “ मैं तुम्हारा दोस्त हूँ”| इन्हीं शब्दों ने मेरे स्कूल के दिनों में आ रहे हर मुश्किल वक़्त से जूझने में मेरी मदद की| ईश्वर हर ख्रीस्तीय के दोस्त हैं, पर क्या हम ईश्वर के प्रति अपनी दोस्ती सही तरह से निभाते हैं?

मैं ईश्वर को हर बात की ज़िम्मेदारी सौंपने में विश्वास करती हूँ| क्यूपर्टिनो के संत जोसेफ को मेरी हर परीक्षा की खबर दी गयी और मेरी माँ ने मेरे हर परीक्षा के दौरान चर्च में प्रार्थना की हैं| स्कूल की प्रतियोगिताओं में भाग लेते समय मैं ईश्वर से पूछा करती थी कि मुझे क्या लिखना चाहिए, प्रोजेक्ट प्रेजेंटेशन देते समय भी मैं ईश्वर से मार्गदर्शन मांगती थी| कोई प्रोजेक्ट या निबंध लिखते समय मैं पवित्र परम प्रसाद के सामने अपनी किताबें ले कर बैठ जाती थी और वहीँ बैठ कर अपने नोट्स बनाती थी| और तो और इस लेख को लिखने के लिए भी ईश्वर ने ही मेरी सहायता की है|

मौकों की दस्तक

जैसे ईश्वर ने मेरे लिए इतने सारे मौके तैयार किये, वैसे ही ईश्वर आपके लिए भी सब कुछ तैयार करेगा| प्रेसिडेंशियल स्कॉलर प्रोग्राम में चुने जाने के लिए छात्रों को किसी राज्य शिक्षा अधिकारी द्वारा नामांकित किया जाना ज़रुरी होता है| मेरा नाम मेरे प्रदेश के शिक्षा अधिकारी के उन दस छात्रों की सूची में होना ज़रूरी था | लेकिन मेरा इलाका बाकी इलाकों से थोड़ा पिछड़ा हुआ था जिसकी वजह से मुझे काफी चिंता थी| और मेरे गुमनाम हाई स्कूल ने भी पिछले कुछ सालों में मुझे कुछ ख़ास मौके नहीं दिए थे जिससे शिक्षा अधिकारी से मेरी कोई जान पहचान हो पाती| पर फिर एक साल पहले एक नई सुपरिन्टेन्डेन्ट हमारे इलाके में आईं जिन्होंने मेरे जैसे बच्चों के लिए कई नए अवसरों की शुरुआत की| उन्होंने नामांकन के लिए ऑनलाइन आवेदन की व्यवस्था की जो कि उन दिनों एक बिलकुल ही नयी पहल थी| यह सब, ईश्वर की कृपा से उसी साल लागू हुआ जिस साल मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की| उन्हीं सुपरिन्टेन्डेन्ट के नामांकन की वजह से मुझे उस प्रसिद्ध स्कालरशिप के लिए चुन लिया गया जिसे ईश्वर ने मेरी प्रार्थनाओं को सुन कर मुझे प्रदान किया| ईश्वर के सेवक के रूप में हमें बुलाया गया है ताकि हम उन अवसरों को देख सकें जिन्हें ईश्वर हमें प्रदान करने वाला होता है, ना कि हम यह सोचें कि ईश्वर किस तरह से उन आशीषों को हमें देगा|

अगर हम अपने अंदर ईश्वर की सेवा करने के जूनून को सींचे तो ईश्वर हमारे लिए और कई अवसरों के द्वार खोल देगा| इसके साथ ही, ईश्वर हमें हमारी सेवा के लिए इनाम भी देगा| उन्हीं के मार्गदर्शन में हम वे सब कर पाते हैं जो हमारी सोच और हमारी क्षमता के बिलकुल परे हैं | हमारे स्वर्गीय पिता हमें कभी निराश नहीं करेंगे, खासकर तब जब हम अपनी सेवा का फल उनकी मर्ज़ी पर छोड़ते हैं| हमारा काम है ईश्वर के कार्यों को हाँ कहना, और फिर देखना कि कैसे ईश्वर हमारी ज़रूरतों में हमारी प्रार्थनाओं को चमत्कारी रूप से पूरा करते हैं| और चाहे ईश्वर को दिया हुआ हमारा तोहफा कितना भी छोटा क्यों ना हो, हमें यह याद रखना चाहिए कि यह वह ईश्वर है जिन्होंने पांच रोटियों से पांच हज़ार लोगों का पेट भरा था|

आइयें हम ईश्वर को उनकी महिमा प्रकट करने का अवसर दें|

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Freya Abraham

Freya Abraham is a college freshman at the University of Arizona, a 2020 U.S Presidential Scholar, and has placed 2nd internationally in DECA Business Services Marketing. She is the daughter of Francy and Neetha Abraham and the younger sister of Alfred Abraham.

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