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जून 03, 2022 292 0 Ivonne J. Hernandez, USA
Encounter

आशा का चमत्कार

दर्द असहनीय था, लेकिन मैं इस आशा के लंगर को मजबूती से पकड़ी रही, और मैं ने इस चमत्कार का अनुभव किया 

 मैं 40 साल की थी जब मुझे पता चला कि मुझे अनुवांशिक रूप से विरासत में मिली परिधीय न्यूरोपैथी (सी.एम.टी.) की बीमारी ने जकड़ ली है, जो मेरी तान्त्रिकीय या स्नायु सम्बन्धी व्यवस्था को नुक्सान पहुंचाती है। इस रोग की विशेषता यह है कि यह शरीर के हाथों और पैरों के छोटे और कमज़ोर मांसपेशियों को प्रभावित करता है। पैर का दुर्बल हो जाना इस रोग का लक्षण है। अमूमन यह बीमारी किशोर अवस्था में शुरू होती है। जब इस बीमारी का पता चला तभी मुझे समझ में आया कि मैं स्कूल में अपनी व्यायाम शिक्षा की कक्षा में जाने से क्यों डरती थी, और बार बार मैं क्यों गिर जाती थी, और विभिन्न कार्य करने में मैं क्यों अधिक समय लेती थी। यह बीमारी सदा मेरे साथ रहती थी; बस मुझे इस बीमारी की जानकारी नहीं थी। जब मैं न्यूरोलॉजिस्ट के पास गयी थी, तब तक मेरे पैरों की मांसपेशियां शोषित होने लगी थीं, और मैं खुद को ऊपर खींचे बिना सीढ़ियां नहीं चढ़ सकती थी।

मेरी समस्या के जवाब की खोज के दौरान ही “भविष्य में मेरे साथ क्या होगा”, यह सवाल रूपी बादल मेरे ऊपर छा गया। क्या मैं जीवन भर व्हीलचेयर में बंद और सीमित रहूँगी? क्या मैं अपने हाथों का उपयोग कर पाऊंगी? क्या मैं अपनी देखभाल स्वयं कर पाऊंगी? निदान का परिणाम आते ही, मेरे ऊपर अंधेरा छा गया। मैंने जाना कि कोई इलाज नहीं है, कोई चंगाई नहीं है। दूसरों की दबी दबी आवाजों के बीच मैंने सुना कि इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के बचने की ”कोई उम्मीद नहीं है”। लेकिन धीरे-धीरे, जैसे सुबह का सूरज अँधेरे में से बाहर झाँकता है, आशा के प्रकाश ने प्रत्याशा के चमत्कार की तरह धीरे-धीरे मुझे दु:ख की मूर्च्छा से जगाया। मुझे एहसास हुआ कि कुछ भी नहीं बदला था; मैं अब भी वही थी। मैंने इस उम्मीद को पकड़ लिया कि प्रगति धीमी बनी रहेगी, जिससे मुझे जीवन की इस नयी परिस्थिति के साथ अपने को व्यवस्थित करने का समय मिल जाएगा। और ऐसा हुआ … जब तक … यह चमत्कार नहीं हुआ था।

मैंने चार साल तक बीमारी को धीमे धीमे, बढ़ने का अनुभव किया, फिर, गर्मी के दिनों में एक बार, यह स्थिति अचानक बिगड़ गयी। विभिन्न जांचों ने पुष्टि की कि मेरी स्थिति बेवजह बिगड़ गयी है। जब कभी हम बाहर गए तो मुझे व्हीलचेयर पर रहना पड़ा। घर पर भी, मैं बहुत कम काम कर पाती थी। मैं एक बार में दो मिनट से ज्यादा खड़ी नहीं हो पाती थी। मैं किसी डिब्बे को खोलने या सब्जी काटने के लिए अपने हाथों का उपयोग नहीं कर पाती थी। यहां तक ​​कि कुछ मिनट से ज्यादा बैठना भी मुश्किल था। दर्द और कमजोरी इतने बढ़ गए कि मैं अपना अधिकांश समय बिस्तर पर बिताने के लिए मजबूर थी। मैं अपने और अपने परिवार की देखभाल करने की क्षमता खोने की वास्तविकता से निपटती हुई बहुत दुःख से भर गयी थी। फिर भी, उस दौरान मुझ पर एक असाधारण कृपा प्राप्त थी।

मैं दैनिक मिस्सा बलिदान में शामिल होने में सक्षम थी। और, गिरजाघर की ओर गाडी में बैठती हुई, मैंने एक नई आदत शुरू की … मैंने कार में माला विनती की प्रार्थना की। कुछ समय से मैं रोज माला विनती की भक्ति करना चाहती थी, लेकिन यह मेरी दिनचर्या में नहीं आया था और इसे बरकरार नहीं रख पाई थी। गिरजाघर की इन दैनिक यात्राओं ने इसे ठीक कर दिया। उन दिनों बड़े संघर्ष और पीड़ा का दौर था लेकिन साथ ही महान अनुग्रह का दौर भी था। मैंने कैथलिक किताबों और संतों के जीवन की कहानियों को पढने में पूरा समय बिताया।

एक दिन, माला विनती पर एक व्याख्यान के लिए शोध करते हुए, मेरी नज़र में पूज्य फादर पैट्रिक पेटन सी.एस.सी. की कहानी आयी। फादर पैट्रिक तपेदिक की बीमारी से पीड़ित थे और माँ मरियम से उनकी मध्यस्थता केलिए प्रार्थना करने के बाद वे चंगे हो गए। उन्होंने अपना शेष जीवन पारिवारिक प्रार्थना के प्रचार में और माला विनती को बढ़ावा देने में बिताया। मैंने यू ट्यूब पर उन विशाल माला विनती की रैलियाँ देखीं जिन्हें वे आयोजित करते थे … कभी-कभी, दस लाख से अधिक लोग प्रार्थना करते हुए दिखाई देते थे। मैंने जो देखा उससे मैं बहुत प्रभावित हुई, और जोश के एक क्षण में, मैंने माँ मरियम से कहा कि वह मुझे भी चंगा कर दे। मैंने उससे वादा किया कि मैं रोजरी माला विनती का प्रचार करूंगी और फादर पेटन की तरह रैलियां और मैराथन दौड़ आयोजित करूंगी। अपना व्याख्यान देने के कुछ दिनों के अन्दर ही इस प्रतिज्ञा के बारे में मैं भूल गयी थी।

सोमवार की सुबह थी, और मैं रोज़ की तरह मिस्सा बलिदान में भाग लेने गयी थी, लेकिन जब मैं घर लौटी तो कुछ अलग महसूस करने लगी। बिस्तर पर वापस जाने के बजाय, मैं बैठक में गयी और सफाई करने लगी। जब मेरे पति ने हैरान होकर मुझसे पूछा कि तुम क्या कर रही हो, तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरा सारा दर्द दूर हो गया है। मुझे तुरंत एक सपना याद आया जो मैंने पिछली रात को देखा था: प्रकाश से आलोकित एक पुरोहित मेरे पास आये और उन्होंने मुझे रोगियों का अभ्यंजन दिया। जैसे ही उन्होंने मेरे हाथों में पवित्र तेल के साथ क्रूस का चिन्ह बनाया, उसी समय, मेरे पूरे व्यक्तित्व में एक जोश,उत्साह और शांति की गहरी भावना भर गयी। और फिर मुझे याद आया… मैंने माँ मरियम से मुझे चंगा करने के लिए कहा था। आशा का चमत्कार हुआ और पांच महीने बिस्तर पर रहने के बाद मेरा सारा दर्द दूर हो गया। मेरे पास अभी भी सी.एम.टी. की बीमारी है, लेकिन जहां मैं पांच महीने पहले थी, उसी जगह माँ मरियम मुझे वापस ले आयी।

तब से लेकर आज तक, मैंने अपना समय धन्यवाद देने, माला विनती को बढ़ावा देने और सभी को ईश्वर के प्रेम के बारे में बताने में बिताया है। मेरा मानना ​​है कि माँ मरियम ने इस पुरोहित को मेरा अभिषेक करने और मुझे चंगा करने के लिए भेजा था, हालांकि मैंने जो सोचा था उससे बिलकुल अलग तरीके से मेरी चंगाई हुई। मुझे उस समय इसका एहसास नहीं था, लेकिन जब मैंने आशा को ग्रहण कर लिया, तो मैं वास्तव में ईश्वर की कृपा को ग्रहण कर रही थी। उसने मेरे शरीर को चंगा किया, लेकिन उसने मेरी आत्मा को भी चंगा किया। मैं जानती हूँ कि वह मेरी सुनता है; मुझे पता है कि वह मुझे देखता है। मुझे पता है कि वह मुझसे प्यार करता है, और मैं अकेली नहीं हूँ। आपको जो चाहिए, उसी से मांगिये। वह आपसे प्यार करता है; वह आपको देखता है … आप अकेले नहीं हैं।

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Ivonne J. Hernandez

Ivonne J. Hernandez is a lay Associate of the Blessed Sacrament, president of Elisheba House, and author of The Rosary: Eucharistic Meditations. She writes regularly for many Catholic blogs and lives in Florida with her husband and two of her young adult sons.

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