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जुलाई 27, 2021 1322 0 फादर जोसेफ गिल, USA
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प्रश्न और उत्तर

प्रश्न: ऐसा लगता है कि यह साल दिन-ब-दिन और भी अजीब होता जा रहा है। जब भी समाचार देखो कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ बुरा होने की खबर सुनाई देती है: पहले वायरस, फिर नस्लीय भेदभाव पर बहस, ऊपर से लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था। यह सब मुझे सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम दुनिया के अंतिम दिनों में जी रहे हैं?

उत्तर: क्या यह अंतिम समय है? यह सवाल लोग कईं सदियों से पूछते आ रहे हैं। लेकिन ख्रीस्तीय होने के नाते हमारा विश्वास यह कहता है कि मानव इतिहास सिर्फ कुछ बेमतलब की घटनाओं का सिलसिला नहीं है, और हम सब एक बड़ी कहानी का हिस्सा हैं, वह कहानी जिसे ईश्वर ने अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए लिखा है। हर कहानी के तीन हिस्से होते है: शुरुआत (दुनिया की सृष्टि और मनुष्य का पहला पाप), मध्य भाग (येशु का जन्म और उनके दुखभोग का रहस्य), और अंत (ख्रीस्त का पुनरागमन)। तो आपको क्या लगता है, क्या हम दुनिया के अंतिम दिनों में हैं?

हां यह बात तो है कि हम इस कहानी के मध्य भाग से गुज़र चुके है जो लगभग 2000 साल पुराना है और अब्राहम से ले कर येशु मसीह की कहानी कहता है। लेकिन इस सवाल का जवाब कोई नहीं जानता कि हम अंतिम भाग के कितने नज़दीक हैं। हो सकता है कि यह अंतिम भाग एक साल दूर हो, या पांच साल दूर, या सौ साल दूर, या हज़ार साल दूर। पर वह “अंत” एक लम्हे की बात नहीं है, यह अपने आप में एक प्रक्रिया है। देखा जाए तो हम अंत की इस शुरुआत को आज से 1400 साल पहले के नवजागरण या रेनेसां के आगमन से जोड़ कर देख सकते हैं। क्योंकि रेनेसां काल ने ही ईश्वर से ध्यान हटा कर इन्सान को जीवन का केंद्र बना दिया था, और सृष्टि को सृष्टिकर्ता से अलग देखने की सोच पर ज़ोर दिया था।

जब हम यह सोचने लगते हैं कि हम अंतिम दिनों में जी रहे हैं तो हम खुद को इस कहानी में कुछ ज़्यादा ही महत्व देने लगते हैं। देखा जाए तो हम सारी ज़िन्दगी मामूली चीज़ों की बात करते हैं, क्योंकि हमारी ज़िन्दगी मामूली चीज़ों और मामूली सिलसिलों से भरी पड़ी है। लेकिन इन मामूली चीज़ों का भी कहीं ना कहीं अपना महत्व है। मुझे एक बात की याद आती है जो कई साल पहले मेरी बहन ने मुझसे कही थी। उस दिन हम ‘लॉर्ड ऑफ द रिंग्स’ चलचित्र देख कर लौट रहे थे। शाम का वक्त था और ढलते हुए सूरज को देखते हुए उसने कहा “काश असल ज़िंदगी भी इसी तरह होती! किसी बड़ी तलाश, किसी रोमांचक कहानी की तरह!”

मैं अक्सर अपनी बहन के विचारों को अपने व्याख्यानों में शामिल करता हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि बहन को  इन्सानी दिल में उठते खयालों की अच्छी समझ थी। इन्सान यह जानना चाहता है कि उसकी ज़िन्दगी बस एक इत्तेफाक नहीं है, और उसकी इस दुनिया में कोई अहमियत है, कोई मायना है। देखा जाए तो इन्सान के दिल में यह ख्याल ईश्वर ने ही डाला है, क्योंकि ईश्वर की मुक्ति की इस कहानी या महाकाव्य में इन्सान आखिर एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता ही है।

तो अगर ध्यान से देखा जाए तो वे काम जिन्हें हम मामूली समझते हैं, उनका इस कहानी में योगदान है। उदाहरण के तौर पर, अगर आप अपने बच्चों की देखभाल करते हैं, उनके लिए खाना बनाते हैं, तो आप उन अमर आत्माओं की शारीरिक ज़रूरतों का खयाल रख रहे हैं जो आगे चल कर अनंत काल के लिए या तो स्वर्ग या नरक का हिस्सा बनेंगे। वे या तो आगे चल कर धरती पर ईश्वर के राज्य का प्रचार करेंगे, या ईश्वर के राज्य को ही खंडित करेंगे। इस लिहाज़ से जो भी हम करते हैं, उन मामूली से मामूली कार्यों का असर मानव इतिहास और अनंत काल दोनों में पड़ता है। हम एक बड़ी लम्बी कहानी का हिस्सा हैं, हम अच्छाई और बुराई के बीच की लड़ाई का हिस्सा है। और हम यह लड़ाई अपनी-अपनी जगहों, अपने-अपने हालातों में रह कर लड़ रहे हैं।

इन सब बातों पर मनन चिंतन करना मेरे लिए आध्यात्मिक रूप से लाभकारी होता है, क्योंकि अब मुझे पता है कि ईश्वर की इस कहानी के आख़िरी मोड़ पर हम क्या भूमिका निभा रहे हैं। एक और बात जो मैंने समझी है वह यह है कि हम रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में कितनी हीं बातों की चिंता करते हैं जिनका इस महाकाव्य में शायद ही कोई वजूद होगा। चाहे वो रोज़ का ट्रैफिक जाम हो, या पैसे की चिंता, क्या अंत के दिनों में यह सब कोई मायने रखेगा? क्योंकि चाहे इस दुनिया का अंत नज़दीक हो ना हो, हमारा अंत तो नज़दीक भी है और सुनिश्चित भी। देखा जाए तो, “मौत निश्चित है” यह याद रखना ही जीवन का सार है। क्योंकि यह बात हमें इसे याद रखने में मदद करती है कि यह ज़िन्दगी हमारी छोटी छोटी चिंताओं से बढ़कर है और हमें उन चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करना है जो असल में अहमियत रखती हैं। और वह इस सच्चाई को याद रखने में है कि हमें मसीह के आगमन के लिए खुद को तैयार करना है।

एक पुरोहित के तौर पर मुझे इस बात ने हमेशा आश्चर्यचकित किया है कि हमारी पूजा विधि कितनी सारी जगहों पर येशु के पुनरागमन की बात करती है। मैंने हाल ही में मिस्सा बलिदान अर्पित करते समय इस बात पर गौर किया कि यूखरिस्त की हमारी सारी प्रार्थनाएं और सारा नया विधान सिर्फ और सिर्फ मसीह की राह देखने की बात करता है। हमारा धर्म परलोकी सिद्धांत पर चलता है, और हम हर वक्त चीज़ों के समाप्त होने की बाट जोहते हैं।

क्रूस पर अपनी मृत्यु द्वारा मसीह ने जिस मुक्ति को हमारे लिए जीत लिया वह अभी भी जारी है, या यूं कहे तो अधूरी है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि ख्रीस्त को इस मुक्ति कार्य में और कुछ जोड़ना बाकी है, दरअसल ईश्वर की इतनी भरपूर कृपा के बावजूद इस दुनिया में पाप चौगुनी तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। क्रूस के बलिदान ने ईश्वर से हमारा मेल मिलाप कराया लेकिन यह कृपा सिर्फ उनके लिए है जिन्होंने ईश्वर की पुकार को हाँ कहा, ईश्वर की यह कृपा अभी तक पूरे विश्व में, सब लोगों के दिलों पर राज नहीं कर पाई है। हाँ ईश्वर सबों के स्वामी हैं, पर वे भी सब बातों के पूरे होने पर ही अपनी पूरी शक्ति और सामर्थ का प्रदर्शन करेंगे। इसी वजह से हर सदी में कलीसिया ने पुकार पुकार कर कहा है “आइये प्रभु येशु, आइये!” कैथलिक होने के नाते हम सब उस दिन कि बाट जोह रहे हैं जब ईश्वर की मुक्ति पूरी होगी और जब मृत्यु रूपी उस आख़िरी दुश्मन का सर्वनाश होगा।

इसीलिए जब हम इस आख़िरी जीत का इंतजार करते हैं तब ख्रीस्त हमें जागरूक रहने और समय के संकेतों पर ध्यान देने के लिए आह्वान करते  है। हर सदी ने खुद से यह सवाल किया है कि “क्या यही अंतिम दिन हैं?” हमारी सदी भी उनकी तरह इसी सवाल में उलझी है। इसीलिए नबी, ज्ञानी पुरुष और जिन जिन लोगों का मन मसीह में लगा रहता है, वे सब लोग इस सवाल पर चर्चा करते रहेंगे। ये बात और है कि हमारी सदी और बीती सदियों में काफी फर्क रहा है, फिर भी हमारी सदी में भी हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह समय के संकेतों को ध्यान में रख कर इस सवाल पर मनन चिंतन करे।

और हालांकि इस बात पर कोई ठोस निष्कर्ष निकालना हमारे बस की बात नहीं है, फिर भी हमें प्रार्थना के मार्गदर्शन में सत्ता, समाज, प्रकृति और दर्शन शास्त्र में आ रहे बदलावों पर ध्यान देना चाहिए। यहीं बातें आध्यात्मिक तौर पर हमारी सहायता कर सकती हैं। क्योंकि देखा जाए तो नए विधान के वचन हमें बार बार अपनी आध्यात्मिक आंखों से अपने आसपास की दुनिया को जांचने परखने के लिए कहते हैं।

अंत समय के ऊपर मनन चिंतन का यह मतलब नहीं है कि हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ लें, क्योंकि अंत समय का ख्याल हमें अपनी ज़िम्मेदारियों को और भी हार्दिक इच्छा शक्ति के साथ निभाने के लिए प्रोत्साहित करता है। और बाइबल भी हमें यही सिखाती है कि अगर हम आधे मन से काम कर रहे होंगे या सो रहे होंगे तो जब दूल्हा आएगा, वह मूर्ख कुंवारियों को बिना साथ लिए लौट जाएगा। और अगर मैं यह सोचूं कि मेरी ज़िन्दगी सिर्फ मामूली और बेमतलब की बातों से भरी हुई है, या ख्रीस्त के आने में समय है इसीलिए मैं बाद में पश्चाताप और पाप स्वीकार कर लूंगा, तो ऐसा सोचना भी ग़लत होगा। क्योंकि बाइबल कहती है कि मसीह चोर की तरह रात को आएंगे। और यह बात दुनिया के हर व्यक्ति पर लागू होती है। तो अब सवाल यह उठता है कि क्या इन सब बातों के लिए कलीसिया तैयार है? क्या दुनिया तैयार है? अगर नहीं, तो फिर हमें किन बातों के द्वारा खुद को मसीह के पुनरागमन के लिए खुद को तैयार करना चाहिए?

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फादर जोसेफ गिल

फादर जोसेफ गिल हाई स्कूल पादरी के रूप में एक पल्ली में जनसेवा में लगे हुए हैं। इन्होंने स्टुबेनविल के फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय और माउंट सेंट मैरी सेमिनरी से अपनी पढ़ाई पूरी की। फादर गिल ने ईसाई रॉक संगीत के अनेक एल्बम निकाले हैं। इनका पहला उपन्यास “Days of Grace” (कृपा के दिन) amazon.com पर उपलब्ध है।

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