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अप्रैल 23, 2024 142 0 फादर जोसेफ गिल, USA
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प्रश्नोत्तर: येशु मसीह को हमारे लिए क्यों मरना पड़ा?

प्रश्न – येशु मसीह को हमारे लिए क्यों मरना पड़ा? यह क्रूर लगता है कि हमें बचाने के लिए पिता को अपने इकलौते बेटे की मृत्यु की आवश्यकता होती है। क्या कोई और रास्ता नहीं था?

उत्तर – हम जानते हैं कि येशु की मृत्यु ने हमें अपने पापों से क्षमा कर दिया। लेकिन क्या यह आवश्यक था; और इस से हमारा उद्धार कैसे पूरा हुआ?

इस पर विचार करें: यदि स्कूल में कोई छात्र अपने सहपाठी को मुक्का मार दे, तो स्वाभाविक परिणाम यह होगा कि उसे एक निश्चित सजा दी जाएगी – शायद उसे हिरासत में ले लिया जाएगा, या निलंबित किया जाएगा। लेकिन अगर वही छात्र किसी शिक्षक को मुक्का मार दे, तो सज़ा अधिक गंभीर होगी – शायद स्कूल से निकाल दिया जाएगा। यदि वही छात्र राष्ट्रपति को मुक्का मार दे, तो संभवतः उन्हें जेल जाना पड़ेगा। जिसे ठेस पहुंची है, उसकी गरिमा पर निर्भर करते हुए परिणाम बड़ा होगा।

तो फिर, सर्व-पवित्र, सर्व-प्रेमी ईश्वर को अपमानित करने का परिणाम क्या होगा? जिसने आपको बनाया और चाँद सितारों की सृष्टि की, वह समस्त सृष्टि द्वारा पूजा और आराधना पाने का हकदार है – जब हम उसे अपमानित करते हैं, तो स्वाभाविक परिणाम क्या होता है? अनन्त मृत्यु और विनाश, पीड़ा और उस प्रभु से अलगाव। इस प्रकार, ईश्वर का हम पर मृत्यु का ऋण है। लेकिन हम इसके बदले उसे कुछ नहीं दे पाए – क्योंकि वह असीम रूप से भला है, हमारे अपराध ने हमारे और उसके बीच एक अनंत खाई पैदा कर दी। हमें किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो अनंत और परिपूर्ण हो, लेकिन मानवीय भी हो (क्योंकि कर्ज चुकाने के लिए उन्हें मरना होगा)।

केवल येशु मसीह ही इस वर्णन में योग्य बैठते हैं। अनन्त विनाश की ओर ले जाने वाले अवैतनिक ऋण में हम फंसे हुए हैं यह देखकर, अपने महान प्रेम से, वह वास्तव में मनुष्य बन गया, ताकि वह हमारी ओर से हमारा ऋण चुका सके। महान ईशशास्त्री संत एंसलम ने ‘कुर देउस होमो’ (ईश्वर मनुष्य क्यों बने?) शीर्षक से एक संपूर्ण ग्रंथ लिखा था,, और उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि ईश्वर मनुष्य बने ताकि वह उस ऋण को चुका सके जो हम पर था लेकिन हम उस ऋण को चुका नहीं सके, इसलिए हमें ईश्वर से मेलमिलाप कराने केलिए येशु जो स्वयं ईश्वर और मानवता का पूर्ण मिलन है, उसे मनुष्य बनना पड़ा।

इस पर भी विचार करें: यदि ईश्वर सभी जीवन का स्रोत है, और पाप का अर्थ है कि हम ईश्वर से मुंह मोड़ लेते हैं, तो हम क्या चुन रहे हैं? मौत! वास्तव में, संत पौलुस कहते हैं कि “पाप की मज़दूरी मृत्यु है” (रोमी 6:23)। और पाप संपूर्ण व्यक्ति की मृत्यु लाता है। हम देख सकते हैं कि वासना के कारण लैंगिक बीमारियाँ फैल सकती हैं और लोगों के दिल टूट सकती हैं; हम जानते हैं कि पेटूपन ऐसी जीवनशैली बन सकती है, जो स्वास्थ्य केलिए बहुत ही हानिकारक है, ईर्ष्या हमें ईश्वर द्वारा दिए गए उपहारों के प्रति असंतोष की ओर ले जाती है, लालच हमें अत्यधिक काम करने और आत्म-भोग के लिए प्रेरित कर सकता है, और अहंकार एक दूसरे के साथ और ईश्वर के साथ हमारे संबंधों को तोड़ सकता है। ऐसे में, पाप वास्तव में घातक और मौत का बुलावा है!

तो, हमें फिर से जीवन में लाने के लिए एक मृत्यु की आवश्यकता होती है। जैसा कि पुण्य शनिवार को दिए गए एक प्राचीन उपदेश में येशु के दृष्टिकोण का वर्णन इस तरह किया गया था, “मेरे चेहरे पर पड़े थूक को देखो, यह इसलिए है ताकि तुम सृष्टि में उस प्रथम दिव्य श्वास को पुनः प्राप्त कर सको। मेरे गालों पर पड़े प्रहारों को देखो, जिन्हें मैंने तुम्हारे विकृत रूप को अपनी छवि में नया रूप देने के लिए स्वीकार किया। मेरी पीठ पर कोड़े की मार देखो, जिन्हें मैंने इसलिये स्वीकार किया ताकि तुम्हारी पीठ पर लादे गए तुम्हारे पापों के बोझ को मैं दूर कर दूँ। बुराई और पाप के लिये तुमने अपने हाथ वृक्ष की ओर बढ़ाया, तो बदले में देखो, तुम्हारे लिए, तुम्हारी मुक्ति केलिए वृक्ष पर कीलों से ठोंके गए मेरे हाथ।”

अंत में, मेरा मानना है कि येशु की मृत्यु हमें उनके प्रेम की गहराई दिखाने के लिए आवश्यक थी। यदि उन्होंने केवल अपनी उंगली चुभाई होती और अपने बहुमूल्य रक्त की एक बूंद भी बहा दी होती (जो हमें बचाने के लिए पर्याप्त है), तो हम सोचते कि वह हमसे इतना प्यार नहीं करता। लेकिन, जैसा कि संत पाद्रे पियो ने कहा: “जिससे आप प्यार करते हैं उसके लिए कष्ट सहना ही प्यार का प्रमाण है।” जब हम उन अविश्वसनीय कष्टों को देखते हैं जिन्हें येशु ने हमारे लिए सहे, तो हम एक पल के लिए, ईश्वर हमसे प्यार करता है, इस सत्य पर संदेह नहीं कर सकते हैं। ईश्वर हमसे इतना प्यार करता है कि वह हमारे बिना अनंत काल बिताने के बजाय मर जाना पसंद करेगा।

इसके अलावा, हमारी पीड़ा में उनकी पीड़ा हमें राहत और सांत्वना देती है। हमारे जीवन में ऐसी कोई पीड़ा और दुःख नहीं है जिससे येशु पहले ही न गुजरा हो। क्या आप शारीरिक कष्ट में हैं? येशु ने भी ऐसे कष्ट झेला था। क्या आपको सिरदर्द है? येशु के सिर पर कांटों का ताज पहनाया गया। क्या आप अकेला और परित्यक्त महसूस कर रहे हैं? उनके सभी मित्रों ने उन्हें छोड़ दिया था और उनका इन्कार कर दिया था। क्या आपको लज्जा महसूस होती है? सबके उपहास के लिए उसे नंगा कर दिया गया था। क्या आप चिंता और भय से जूझते हैं? येशु इतने चिंतित थे कि उन्होंने गेथसेमनी बाग में खून पसीना बहाया। क्या आप दूसरों से इतने आहत हुए हैं कि आप क्षमा नहीं कर सकते? येशु ने अपने पिता से अपने हाथों में कील ठोंकने वाले लोगों को क्षमा करने के लिए कहा। क्या आपको ऐसा लगता है जैसे ईश्वर ने आपको त्याग दिया है? येशु ने स्वयं ऊंची आवाज़ में कहा: “हे ईश्वर, हे मेरे ईश्वर, तू ने मुझे क्यों त्याग दिया?”

इसलिए हम कभी नहीं कह सकते: “हे ईस्वर, तू नहीं जानता कि मैं किस दौर से गुज़र रहा हूँ!” क्योंकि वह हमेशा जवाब दे सकता है: “हाँ, मेरे प्यारे बच्चे, मैं जानता हूँ, । मैं वहां इन पीडाओं में रहा हूं—और इस समय मैं तुम्हारे साथ कष्ट भोग रहा हूं।”

यह जानकर कितनी सांत्वना मिलती है कि क्रूस ने ईश्वर को उन लोगों के करीब ला दिया है जो पीड़ित हैं! इस क्रूस ने हमारे लिए ईश्वर के अनंत प्रेम की गहराई दिखाई है! क्रूस ने हमें यह दिखाया है कि हमें बचाने के लिए ईश्वर कितनी दूर तक जा सकता है! इस क्रूस ने दिखाया है कि येशु ने हमारे पाप का कर्ज़ चुका दिया है ताकि हम उसके सामने क्षमा प्राप्त और छुटकारा पाये हुए लोग बनकर उनके सामने खड़े हो सकें!

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फादर जोसेफ गिल

फादर जोसेफ गिल हाई स्कूल पादरी के रूप में एक पल्ली में जनसेवा में लगे हुए हैं। इन्होंने स्टुबेनविल के फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय और माउंट सेंट मैरी सेमिनरी से अपनी पढ़ाई पूरी की। फादर गिल ने ईसाई रॉक संगीत के अनेक एल्बम निकाले हैं। इनका पहला उपन्यास “Days of Grace” (कृपा के दिन) amazon.com पर उपलब्ध है।

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