Home/Engage/Article

अगस्त 12, 2021 1865 0 Teresa Ann Weider, USA
Engage

नए साल के कुछ अनोखे संकल्प

कई बार हम नए संकल्प लेने में तो फुर्ती दिखाते हैं, लेकिन उसी उत्साह के साथ उन्हे निभा नही पाते हैं। अगर हम इन संकल्पों में थोड़ा बदलाव लाएं तो क्या होगा?

एक अनजान मंज़िल की ओर

हर साल की तरह, इस साल के शुरुआती दिनों में भी मैंने खुद को खोया खोया और भटका हुआ सा पाया। एक साल का अंत और दूसरे साल की शुरुआत ने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया कि मैं अपने जीवन में और अपने आप में कौन कौन से बदलाव चाहती हूं। हालांकि साल के पहले कुछ हफ्ते गुज़र जाने के बाद मेरे लिए सारे संकल्पों का रंग फीका पड़ने लगा। जो प्रोत्साहन मुझे इन संकल्पों से साल के शुरुआती दिनों में मिला था वह धीरे धीरे कम होने लगा। मैं हमेशा से अपने आध्यात्मिक जीवन में उन्नति करना चाहती थी और खुद को एक बेहतर इंसान बनाना चाहती थी पर हमेशा मैं कहीं ना कहीं बीच में ही हार मान लेती थी। हालांकि ये संकल्प मेरी ही इच्छा थे, पर उन्हें पूरा करने के बजाय मैं उन्हें टालती रहती थी। इन सबकी वजह से मुझे ऐसा लगने लगा था कि या तो मैं आगे ही नहीं बढ़ रही हूं या जीवन में दिशा हीन बहती जा रही हूं।

क्योंकि ईश्वर जानते हैं कि मुझे शब्दों से बड़ा प्यार है, इसीलिए ईश्वर मुझ से मेरे दिल की जुबान में ही बातें करते हैं। कई सालों पहले एक शाम की बात है, मैं हर साल की तरह उस साल भी अपने संकल्पों को पूरा ना कर पाने की नाकामी में दुखी हो रही थी जब ईश्वर ने मेरे दिल में एक कविता डाली जो कि मेरी समस्या के समाधान के रूप में मुझे मिली।

मैं, मेरा और मुझ

एक नांव थी जो रुकी सी थी

सागर के बीचों बीच कही

उस नांव में सवार थे तीन इंसान

मैं, मेरा और मुझ

 

हम साथ बैठकर हर सूर्यास्त देखा करते

सन्नाटे के बीच, ना कोई पंछी, ना कोई आहट

मगर मुझे लगा जैसे मैंने सुनी कोई आहट

और मैं उठी जाकर ढूंढने को उस आहट का पता

 

किसी साए ने किया उस रात हवाओं में बसेरा

वह साया जिसे कोई देख नही पाया

वह’ साया जो साथ लाया था एक संदेसा

मैं, मुझ, और मेरे लिए

 

मेरी आवाज़ ने उस रात के सन्नाटे को तोड़ा

फिर मैंने मेरा और मुझसे कहा

हम कैसे यहां बस बैठे रह सकते हैं?

ऐसे ही तो हमने अपनी मंज़िल खोई है!

 

मैंने मुझसे कहा कि वह पतवार उठाए

और मेरे लिए रास्ता बनाए

मैंने फिर नाव की कमान को संभाला

और नाव को सागर के बीच से बाहर निकाला

 

लेकिन नाव हमारी हिली तक नही

हमारी नाव खड़ी सागर के बीच अब भी

हमारे अंदर नाव को बढ़ाने की संकल्प शक्ति तो थी

पर फिर भी हमारी नाव एक इंच ना हिली

 

एक आहट सुनी हमने फिर एक बार

मेरे लिए कहे गए थे वह शब्द इस बार

हवा को पुकारो, हवा से मदद मांगो

हवा ही करेगी तुम्हे इस उलझन से आज़ाद

मैं, मेरा और मुझ ने हाथ मिलाए

हम तीनों अपने घुटनों पर आए

हमने हवा में बसी आत्मा से की दुआ

हे आत्मा हमें सागर के उस पार ले जा

 

एक झटका सा लगा हमें जैसे आंधी चली

सोचा हमने किस दिशा यह नाव जाएगी

हवा के सहारे से नाव हमारी मुड़ी

और फिर आराम से चलने लगी

 

हमें ना पता था दिशाओं का

और ना यह कि सागर है कितना गहरा

हमें बस हवा की आत्मा पर था भरोसा करना

की वह मैं, मेरा और मुझ को दिखाए रास्ता

 

बस एक पुकार की देरी

जब पहली बार मेरे मन में यह कविता आई और मैं इसे लिखने बैठी तो सच मानिए मैंने इसे बहुत जल्दी जल्दी लिखा। फिर भी मैं ईश्वर के इस संदेश को पहली बार में ना पूरा लिख पाई और ना ही पूरा समझ पाई। बात दरअसल यह है कि अपनी ज़िंदगी के ज़्यादातर सालों में मैं ने ईश्वर को अपने लिए एक जीवन बीमा की तरह देखा है। मुझे लगता था कि मेरी ज़िंदगी के सारे फैसले मुझे खुद लेने हैं और अगर कहीं मेरा कोई फैसला गलत साबित होता है तो मैं ईश्वर को पुकारूंगी और वे मुझे उस मुसीबत से निकाल लेंगे। ईश्वर मेरे लिए एक इंश्योरेंस एजेंट बन कर रह गए थे। मुझे हमेशा से पता था कि ईश्वर हमारे साथ है, पर मैंने सोचा कि ईश्वर को रोज़मर्रा की छोटी छोटी बातों केलिए क्यों तंग किया जाए? यह इस प्रकार था जैसे मुझे पता है कि मेरा इंश्योरेंस एजेंट एक कॉल की दूरी पर है, पर मुझे उस से रोज़ मिलने की ज़रूरत ही क्या है?

दुनिया ने मुझे यही सिखाया कि मैं ही अपनी नांव की नाविक हूं। तो मैंने भी मान लिया कि मैं ही अपनी नैया की नाविक हूं, पर हर गुज़रते साल के साथ मुझे अहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी का कंपस मेरे हाथ में नही था। मैं कितनी बेवकूफ थी। साथ ही साथ मुझे अहसास हुआ कि मुझे तो नाव चलानी भी नही आती थी। ना मुझे दिशाओं का कुछ पता था और ना मुझे मुश्किल राहों को संभालने का कोई तजुर्बा। इन सब चीज़ों की वजह से ही मैं हर साल के शुरुआत में खुद को दिशाहीन पाती थी। ईश्वर कभी मेरे जीवन का इंश्योरेंस प्लान नही थे। क्योंकि ईश्वर ही मेरे जीवन का प्लान मुझ से बेहतर जानते हैं। ईश्वर ही मेरे जीवन का प्लान हैं।

एक नया तरीका

हां यह ज़रूरी है कि हम अपने जीवन की जांच करें और समझें कि हम किस प्रकार अपने जीवन में पवित्रता को बढ़ा सकते है, लेकिन यह बदलाव मैं बस अपनी इच्छाशक्ति के बलबूते पर नहीं ला सकती थी। जब मैंने उस कविता के शब्दों पर ध्यान दिया तो मुझे अहसास हुआ कि ईश्वर मेरे दिल पर दस्तक देकर कह रहे थे कि वे हैं मेरे साथ, इस इंतज़ार में कि मैं उनसे कहूंगी और वे मेरे जीवन को निर्देशित करेंगे। ईश्वर मुझे मेरे जीवन का प्लान और उसे पूरा करने का सामर्थ्य देना चाहते थे। ईश्वर हम से सूक्तिग्रंथ 3:5-7 में कहते हैं “तुम सारे हृदय से प्रभु का भरोसा करो; अपनी बुद्धि पर निर्भर मत रहो। अपने सब कार्यों में उसका ध्यान रखो। वह तुम्हारा मार्ग प्रशस्त कर देगा। अपने को बुद्धिमान मत समझो। प्रभु पर श्रद्धा रखो और बुराई से दूर रहो।”

अब मेरे नए साल के संकल्पों में बदलाव आया है। अब मैं नए साल से पहले ईश्वर से प्रार्थना में कहती हूं कि वह अपनी इच्छा और अपने समय के अनुसार मुझे नए साल की योजनाएं बताएं। फिर मैं पवित्र आत्मा से विनम्रतापूर्वक निवेदन करती हूं कि वे ईश्वर की योजना के अनुसार मेरा मार्गदर्शन करें। मैं विश्वास के वरदान केलिए प्रार्थना करती हूं ताकि गहरे पानी में भी मैं ईश्वर की उपस्थिति पर विश्वास रख सकूं और यह याद रख सकूं कि वे मुझे अपनी पवित्र योजना में ले चलेंगे। यिरमियाह 29:11 में लिखा है “क्योंकि मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएं जानता हूं – यह प्रभु की वाणी है – तुम्हारे हित की योजनाएं, अहित की नहीं, तुम्हारे लिए आशामय भविष्य की योजनाएं।” यह कितना सुंदर कथन है, है ना?

हममें से वे लोग जिन्हें उम्र और तजुर्बे का पुरस्कार प्राप्त है वे यह जानते हैं कि हर चीज़ का एक सही समय होता है। शायद आप केलिए अभी का समय सही है अपनी भटकी हुई ज़िंदगी को राह पर लाने केलिए। यही समय है अपने वार्षिक संकल्पों को ईश्वर की पवित्र योजना से जोड़ने का । ईश्वर आपको अनुग्रहीत करें और आपके दिल की भाषा में आप से बात करे।

Share:

Teresa Ann Weider

Teresa Ann Weider ने विभिन्न सेवाओं में अपनी सक्रिय भागीदारी द्वारा कई वर्षों तक कलीसिया की सेवा की है। वे अमेरिका के कैलिफोर्निया में अपने परिवार के साथ रहती हैं।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Neueste Artikel