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प्रश्न – मेरे परिवार को मेरी एक बहन से समस्या है, और मुझे अक्सर अपने अन्य भाई-बहनों से उसके बारे में बात करनी पड़ती है। क्या यह अपने अन्दर की अशुद्ध हवा निकालने जैसा है? क्या यह गपशप है? क्या यह ठीक है, या पापपूर्ण है?
उत्तर– जीभ को नियंत्रित करना बड़ा चुनौती पूर्तिण कार्य है। संत याकूब इन चुनौतियों को पहचानते हैं। अपने पत्र के तीसरे अध्याय में, वे लिखते हैं, “यदि हम घोड़ों को वश में रखने के लिए उनके मुँह में लगाम लगाते हैं, तो उनके पूरे शरीर को इधर उधर घुमा सकते हैं… इसी प्रकार, जीभ शरीर का एक छोटा सा अंग है, किन्तु वह शक्तिशाली होने का दावा कर सकती है। देखिये, एक छोटी सी चिंगारी कितने विशाल वन में आग लगाा सकती है। जीभ भी एक आग है, जो हमारे अंगों के बीच हर प्रकार की बुराई का स्रोत है। वह हमारा समस्त शरीर को दूषित करती और नरकाग्नी से प्रज्वलित होकर हमारे पूरे जीवन में आग लगा देती है। हर प्रकार के पशु और पक्षी, रेंगने वाले और जलचर जीवजन्तु – सब के सब मानव जाति द्वारा वश में किये जा सकते हैं या वश में किये जा चुके हैं, परन्तु कोई मनुष्य अपने जीभ को वश में नहीं कर सकता। वह वक ऐसी बुराई है, जो कभी शांत नहीं रहती और प्राणघातक विष से भरी हुई है। हम सब उससे अपने प्रभु एवं पिता की स्तुति करते हैं, और उसी से मनुष्यों को अभिशाप देते हैं, जिन्हें ईश्वर ने अपना प्रतिरूप बनाया है। एक ही मुँह से स्तुति भी निकलती है और अभिशाप भी। मेरे भाइयो-बहनो, यह उचित नहीं है। क्या जलस्रोत के एक ही धारा से मीठा पानी भी निकलता है और खारा भी ?” (याकूब 3:3-12).
हमें दूसरे के बारे में कुछ कहना चाहिए या नहीं, इस मुद्दे पर अमेरिकी रेडियो होस्ट बर्नार्ड मेल्टज़र ने एक बार तीन नियम बनाए थे: क्या यह जरूरी है? क्या यह सच है? क्या यह करुणापूर्ण है?
ये तीन बड़े प्रश्न हैं जिन्हें हमें पूछना चाहिए। अपनी बहन के बारे में बोलते समय, क्या यह आवश्यक है कि आपके परिवार के अन्य सदस्य उसकी गलतियों और असफलताओं के बारे में जानें? क्या आप वस्तुनिष्ठ सत्य को प्रसारित कर रहे हैं या उसकी कमजोरियों को बढ़ा-चढ़ाकर बता रहे हैं? क्या आप उसके अच्छे इरादों को मानते हैं, या आप उसके कार्यों में नकारात्मक इरादों का आरोप लगाते हैं?
एक बार, एक महिला संत फिलिप नेरी के पास गई और पाप स्वीकार संस्कार में गपशप का पाप कबूल कर लिया। प्रायश्चित्त के रूप में, फादर नेरी ने उसे पंखों से भरा एक तकिया लेने और उसे एक ऊंची मीनार के शीर्ष पर ले जाकर खोलने का काम सौंपा। महिला ने सोचा कि यह एक अजीब तपस्या है, लेकिन उसने ऐसा किया और पंखों को चारों दिशाओं में उड़ते देखा। संत के पास लौटकर उसने उनसे पूछा कि इसका क्या मतलब है। उन्होंने उत्तर दिया, “अब, जाओ और उन सभी पंखों को इकट्ठा करो।” उसने उत्तर दिया कि यह असंभव है। उन्होंने कहा, “ऐसा ही उन शब्दों के साथ है जो हमारे मुंह से निकलते हैं। हम उन्हें कभी वापस नहीं ले आ सकते क्योंकि उन्हें हवाओं के ज़रिए ऐसी जगहों पर भेज दिया गया है जिन्हें हम कभी नहीं समझ पाएंगे।”
अब, ऐसे समय आते हैं जब हमें दूसरों के बारे में नकारात्मक बातें साझा करने की ज़रूरत होती है। मैं एक कैथलिक स्कूल में पढ़ाता हूँ, और कभी-कभी मुझे किसी छात्र के व्यवहार के बारे में किसी सहकर्मी के साथ कुछ साझा करने की आवश्यकता होती है। यह मुझे हमेशा सोचने और मंथन करने का अवसर देता है — क्या मैं इसे अच्छे उद्देश्यों से कर रहा हूँ? क्या मैं सचमुच चाहता हूँ कि इस छात्र के लिए सबसे अच्छा क्या हो? कई बार, मुझे छात्रों के बारे में ऐसी कहानियाँ सुनाने में आनंद आता है जो उन्हें ख़राब रूप में दर्शाती हैं, और जब मुझे किसी अन्य व्यक्ति के दुर्भाग्य या बुरे व्यवहार से आनंद मिलता है, तो मैं निश्चित रूप से पाप की सीमा पार कर चुका हूँ।
तीन प्रकार के पाप हैं जो दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाते हैं। पहला, किसी पर जल्दबाजी में फैसला लेना, जिसका मतलब है कि हम किसी व्यक्ति के व्यवहार या इरादे के बारे में बहुत जल्दी ही बिना सोचे समझे बुरा मान लेते हैं। दूसरा है, निंदा, जिसका मतलब है, दूसरे के बारे में नकारात्मक झूठ बोलना। तीसरा है, अपमान, यानी ना किसी गंभीर कारण के किसी अन्य व्यक्ति के दोषों या असफलताओं का खुलासा करना। तो, आप स्वयं से यह सवाल पूछ सकते हैं: आपकी बहन के मामले में, क्या उसकी गलतियों को बिना किसी गंभीर कारण के साझा करना उसका अपमान करना है? यदि आप उसकी गलतियों को साझा नहीं करेंगे, तो क्या उसे या किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान होगा? यदि नहीं – और यह केवल “अपने अन्दर की अशुद्धता को बाहर निकालने” के लिए है – तो हम वास्तव में परनिंदा के पाप में लिप्त हो गए हैं। लेकिन अगर यह सचमुच परिवार की भलाई के लिए जरूरी है तो उस बहन के पीठ पीछे उसके बारे में बोलना जायज है।’
जीभ के पापों से निपटने के लिए, मैं तीन चीजें सुझाता हूं। सबसे पहले, अपनी बहन के बारे में अच्छी बातें फैलाएं! हर किसी में मुक्तिदायक गुण होते हैं जिनके बारे में हम बात कर सकते हैं। दूसरा, जिस तरह से हमने अपनी जीभ का नकारात्मक उपयोग किया है उसके लिए क्षतिपूर्ति के रूप में, एक सुंदर प्रार्थना, ईश्वरीय स्तुति की प्रार्थना करें, जो ईश्वर की महिमा और स्तुति करती है। अंत में, हम कैसे चाहेंगे कि हमारे बारे में अन्य लोगों द्वारा बात की जाए, इस बात पर विचार करें। कोई भी यह नहीं चाहेगा कि उसकी खामियों का प्रदर्शन हो। इसलिए दूसरों के साथ, अच्छे शब्दों का करुणापूर्ण प्रयोग करके अच्छा व्यवहार करें, इस उम्मीद में कि हमें भी वही करुणा मिलेगी!
फादर जोसेफ गिल हाई स्कूल पादरी के रूप में एक पल्ली में जनसेवा में लगे हुए हैं। इन्होंने स्टुबेनविल के फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय और माउंट सेंट मैरी सेमिनरी से अपनी पढ़ाई पूरी की। फादर गिल ने ईसाई रॉक संगीत के अनेक एल्बम निकाले हैं। इनका पहला उपन्यास “Days of Grace” (कृपा के दिन) amazon.com पर उपलब्ध है।
चाहे मुश्किल दौर कितना भी बुरा क्यों न हो, अगर उस पर आप काबू पायेंगे, तो आप कभी नहीं डगमगाएंगे। हम बहुत ही बुरे और उलझन भरे समय में जी रहे हैं। बुराई हमारी चारों तरफ है, और जिस समाज और दुनिया में हम रहते हैं, शैतान उसे नष्ट करने की पूरी कोशिश कर रहा है। कुछ मिनटों के लिए भी समाचार देखना बहुत निराशाजनक हो सकता है। जब आपको लगता है कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता, तो आप दुनिया में किसी नए अत्याचार या दुष्टता के बारे में सुनते हैं। निराश होना और उम्मीद खोना आसान है। लेकिन ख्रीस्तीय होने के नाते, हमें आशावान लोग बनने के लिए कहा जाता है। यह कैसे संभव है? मेरा एक मित्र है जो मूल रूप से रोड आइलैंड का रहने वाला है। एक फादर्स डे पर, उसके बच्चों ने उसे एक टोपी दी जिस पर एक लंगर की तस्वीर थी और उस पर इब्रानी 6:19 कढ़ाई की गई थी। इसका क्या महत्व था? रोड आइलैंड के राज्य ध्वज पर एक लंगर है जिस पर "आशा" शब्द लिखा है। यह इब्रानी 6:19 का संदर्भ है, जिसमें कहा गया है: "वह आशा हमारी आत्मा केलिए एक सुस्थिर एवं सुदृढ़ लंगर के सदृश है, जो उस मंदिर गर्भ में पहुंचता है ..." इब्रानियों के नाम पत्र उन लोगों के लिए लिखा गया था जो बहुत उत्पीड़न झेल रहे थे। यह स्वीकार करने के लिए कि आप येशु के अनुयायी हैं, मृत्यु या पीड़ा, यातना या निर्वासन के लिए बुलाये गए हैं। क्योंकि यह बहुत कठिन था, कई लोग विश्वास खो रहे थे और सोच रहे थे कि क्या मसीह का अनुसरण करना सार्थक है। इब्रानियों को लिखे पत्र के लेखक उन्हें दृढ़ रहने, और विश्वासी जीवन में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे थे - कि यह जीवन सार्थक जीवन है। वे अपने पाठकों को बताते हैं कि येशु में आधारित आशा ही उनका लंगर है। ठोस और अचल जब मैं हवाई द्वीप में हाई स्कूल की पढ़ाई कर रही थी, तो मैं एक ऐसे कार्यक्रम की हिस्सा थी जो छात्रों को समुद्री जीव विज्ञान पढ़ाता था। हमने कई हफ़्ते एक नाव पर रहकर और काम करके बिताए। हम जिन जगहों पर गए, उनमें से ज़्यादातर जगहों पर एक जेट्टी या घाट था जहाँ हम नाव को ज़मीन पर सुरक्षित रूप से बाँध सकते थे। लेकिन कुछ दूरदराज के हाई स्कूल थे जो किसी बंदरगाह या खाड़ी के पास नहीं थे जहाँ जेट्टी थी। ऐसी परिस्थिति में, हमें नाव के लंगर का उपयोग करना पड़ता था - जो एक भारी धातु की वस्तु है जिस पर कुछ नुकीले हुक लगे होते हैं। जब लंगर पानी में डाला जाता है, तो यह समुद्र तल के बिलकुल नीचे लग जाता है और नाव को बहने से रोकता है। हम मानव भी नावों की तरह हो सकते हैं, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी के ज्वार और लहरों पर इधर-उधर उछलते और तैरते रहते हैं। हम समाचारों में आतंकवादी हमले, विद्यालयों और गिरजाघरों में गोलीबारी, न्यायालय के बुरे फ़ैसले, आपके परिवार में बुरी ख़बरें या प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सुनते हैं। ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो हमें हिला सकती हैं और हमें खोया हुआ और निराशा से भरा हुआ महसूस करा सकती हैं। जब तक हमारी आत्मा के लिए कोई सहारा नहीं होगा, हम भटकते रहेंगे और हमें कोई शांति नहीं मिलेगी। लेकिन लंगर को काम करने के लिए, उसे कांटे के द्वारा किसी ठोस और अचल चीज़ से फंसाना चाहिए। एक नाव में सबसे मजबूत, सबसे अच्छा लंगर हो सकता है, लेकिन जब तक उसे किसी सुरक्षित और दृढ़ कांटे से नहीं फंसाया जाता, वह नाव अगली लहर में बह जाएगी। बहुत से लोगों को उम्मीद है, लेकिन वे अपनी उम्मीद अपने बैंक खाते, अपने जीवनसाथी के प्यार, अपने अच्छे स्वास्थ्य या सरकार पर लगाते हैं। वे कह सकते हैं: “जब तक मेरे पास मेरा घर, मेरी नौकरी, मेरी कार है, तब तक सब ठीक रहेगा। जब तक मेरे परिवार में हर कोई स्वस्थ है, सब ठीक है।” लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि यह कितना अस्थिर हो सकता है? अगर आपकी नौकरी चली जाए, परिवार का कोई सदस्य बीमार हो जाए, या अर्थव्यवस्था विफल हो जाए तो क्या होगा? क्या तब आप ईश्वर में अपना विश्वास खो देंगे? कभी नहीं बह जाए मुझे याद है जब मेरे पिता अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में कैंसर से जूझ रहे थे। वह हमारे परिवार के लिए एक तूफानी, अशांत समय था क्योंकि प्रत्येक नई जाँच के साथ, हमें बारी-बारी से अच्छी खबर या बुरी खबर सुनने को मिलती थी। बार बार अस्पताल की ओर यात्राएँ हुईं, और उन्हें एक बार आपातकालीन सर्जरी के लिए दूसरे अस्पताल में भी ले जाया गया। जब हमने अपने पिता को पीड़ित होते और बीमार और कमज़ोर होते देखा तो मैं बहुत बेचैन और अस्थिर महसूस कर रही थी। मेरे पिता एक दृढ़, धर्मनिष्ठ ईसाई थे। वे हर दिन घंटों परमेश्वर के वचन को पढ़ने और उसका अध्ययन करने में बिताते थे, और उन्होंने वर्षों तक बाइबल अध्ययन की कक्षाएं ली थीं। यह सोचने केलिए मैं मजबूर हो गयी कि इन सब में येशु कहाँ थे। जांच का एक और बुरा परिणाम सुनने के बाद, इस नवीनतम तूफानी रिपोर्ट से मेरी आत्मा विचलित हो गई, मैं प्रार्थना करने के लिए एक गिरजाघर गयी। “प्रभु, मैं आशा खो रही हूँ। तू कहाँ है?" जैसे ही मैं चुपचाप बैठी, मुझे एहसास होने लगा कि मैं अपने पिता के ठीक होने की उम्मीद कर रही थी। इसलिए मैं इतना अस्थिर और असुरक्षित महसूस कर रही थी। लेकिन येशु मुझे आमंत्रित कर रहे थे कि मैं अपनी आशा, अपना भरोसा उस पर रखूँ। प्रभु मेरे पिता से प्यार करते थे, जितना प्यार मैं पिता को दे सकती थी उससे ज़्यादा और इस कठिन परीक्षा में प्रभु उनके साथ थे। ईश्वर मेरे पिता को वह सब देंगे जो उन्हें अपनी दौड़ को अच्छी तरह से अंत तक दौड़ने के लिए चाहिए, वह अंत चाहे जब भी हो। मुझे यह याद रखने की ज़रुरत थी और ईश्वर पर और मेरे पिता के लिए ईश्वर के महान प्रेम पर अपनी आशा बनाये रखने की ज़रूरत थी। मेरे पिताजी कुछ सप्ताह बाद घर पर ही प्यार और ढेर सारी प्रार्थनाओं से घिरे हुए चल बसे। मेरी माँ द्वारा उनकी बहुत देखभाल की गई। उनकी मृत्यु के समय उनके चेहरे पर सौम्य मुस्कान थी। वे प्रभु के पास जाने के लिए तैयार थे, अपने उद्धारकर्ता को आखिरकार आमने-सामने देखने के लिए उत्सुक थे। और मैं उस समय शांति का अनुभव कर रही थी, उन्हें जाने देने के लिए मैं तैयार थी। आशा लंगर है, लेकिन लंगर उतना ही मजबूत होता है जितना कि जिस कांटे से वह फंसा या जुदा हुआ है। अगर हमारा लंगर येशु में सुरक्षित है, जो हमारे आगे के मंदिर के पर्दे को पार कर गया है और वे हमारा इंतजार कर रहे हैं, तो चाहे लहरें कितनी भी ऊंची क्यों न हों, चाहे हमारे आस-पास कितने भी भयंकर तूफान क्यों न हों, हम स्थिर रहेंगे और बह नहीं जाएंगे।
By: Ellen Hogarty
Moreजब कोई अजनबी आपके दरवाज़े 0पर दस्तक दे तो आप क्या करेंगे? अगर वह अजनबी एक कठोर आदमी निकला तो क्या होगा? वह अपना नाम स्पेनिश भाषा में, ज़ोर से, एक निश्चित गर्व और गरिमा के साथ कहता है, ताकि आपको याद रहे कि वह कौन है- जोस लुइस सैंडोवल कास्त्रो। वह रविवार की शाम को कैलिफ़ोर्निया के स्टॉकटन में हमारे दरवाज़े पर यानी सेंट एडवर्ड कैथलिक चर्च में आया, जब हम अपना संरक्षक संत का पर्व मना रहे थे। किसी ने उसे हमारे अपेक्षाकृत गरीब, मज़दूर वर्ग के पड़ोस में छोड़ दिया था। संगीत और लोगों की भीड़ ने जाहिर तौर पर उसे हमारे पल्ली के मैदान की ओर चुंबक की तरह खींचा। सच्चाई का खुलासा वह रहस्यमय जड़ों का व्यक्ति था - हमें नहीं पता था कि वह चर्च में कैसे पहुंचा, यह भी नहीं पता था कि उसका परिवार कौन था और कहां था। हमें बस इतना पता था कि वह 76 साल का था, चश्मा लगाए हुए था, हल्के रंग की बनियान अच्छी तरह से पहना हुआ था, और अपना लगेज हाथ से खींच रहा था। उसके पास आप्रवासन और प्राकृतिककरण सेवा विभाग का एक दस्तावेज था, जिसके बल पर उसे मेक्सिको से देश में प्रवेश करने की अनुमति मिली थी। उसके निजी दस्तावेज लूट लिए गए थे और उसके पास कोई अन्य पहचान पत्र नहीं था। हमने यह पता लगाना शुरू किया कि जोस लुइस कौन था, उसकी जड़ें क्या थीं, उसके रिश्तेदार कौन थे और क्या उनका उससे कोई संपर्क था। वह मेक्सिको के सिनालोआ राज्य के लॉस मोचिस शहर का रहने वाला था। उसके मुंह से गुस्सा, कड़वाहट और जहर निकल रहा था। उसने दावा किया कि उसके रिश्तेदारों ने उसे ठगा है और संयुक्त राज्य अमेरिका में उसकी पेंशन छीन ली है, जहां वह सालों से काम कर रहा था, क्योंकि वह मैक्सिको आता-जाता रहता था। हमने जिन रिश्तेदारों से संपर्क किया, उन्होंने दावा किया कि उन्होंने कई मौकों पर उसकी मदद करने की कोशिश की, फिर भी उसने उन्हें चोर कहा। हम किस पर विश्वास करें? हम बस इतना जानते थे कि हमारे हाथों में मैक्सिको से आया एक भटकता हुआ, नियमित आवारा आदमी था, और हम उसका तिरस्कार नहीं कर सकते थे और न ही उस बूढ़े, बीमार आदमी को सड़क पर छोड़ सकते थे। एक रिश्तेदार ने बेरुखी से, बेरहमी से कहा: "उसे सड़कों पर खुद की देखभाल करने दो।" जोस लुईस घमंडी, बहादुर और कर्कश व्यक्ति था, फिर भी वह बार-बार कमज़ोरी के लक्षण दिखाता था। उसकी आँखों में आँसू आ जाते थे, और वह लगभग रोता हुआ बताता था कि कैसे लोगों ने उसके साथ गलत किया और उसे धोखा दिया। ऐसा लगता था कि वह बिलकुल अकेला था, दूसरों ने उसे छोड़ दिया था। सच्चाई यह थी कि उसकी मदद करना आसान नहीं था। वह चिड़चिड़ा, जिद्दी और घमंडी था। उसे हर चीज़ में खामियाँ नज़र आती थीं: उसके लिए दलिया को या तो बहुत ज़्यादा चबाना पड़ता था या पर्याप्त चिकना नहीं होता था, कॉफी बहुत कड़वी और पर्याप्त मीठी नहीं होती थी। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो अपने कंधों पर एक बहुत बड़ा बोझ ढो रहा था, और जीवन से नाराज़ और निराश था। उन्होंने दुख जताते हुए कहा, "लोग बुरे और मतलबी होते हैं, वे आपको चोट पहुँचाएँगे।" इस पर मैंने जवाब दिया कि अच्छे लोग भी होते हैं। वह दुनिया के उस क्षेत्र में था जहाँ अच्छाई और बुराई दोनों एक दूसरे के साथ रहती है, जहाँ अच्छाई और दयालुता के लोग एक साथ मिलते हैं, जैसे सुसमाचार में गेहूँ और भूसा। स्वागत से भी बढ़कर चाहे उसकी कमियाँ कुछ भी हों, उसका रवैया या उसका अतीत कुछ भी हो, हम जानते थे कि हमें उसका स्वागत करना चाहिए और येशु के सबसे दीन हीन भाई-बहनों में से एक के रूप में उसकी मदद करनी चाहिए। “जब तुमने किसी अजनबी का स्वागत किया, तो तुमने मेरा ही स्वागत किया।” हम येशु की सेवा कर रहे थे, उसके लिए आतिथ्य के द्वार खोल रहे थे। हमारी पल्ली के एक सदस्य लालो लोपेज़ ने उसे एक रात के लिए अपने घर में रखा, उसे अपने परिवार से मिलवाया और अपने बेटे के बेसबॉल खेल में ले गए, उन्होंने कहा: "ईश्वर हमें परख रहे हैं कि हम उनके बच्चों के रूप में कितने अच्छे और आज्ञाकारी हैं।" कई दिनों तक, हमने उसे पुरोहित के आवास में रखा। वह कमज़ोर था, हर सुबह बलगम थूकता था। यह स्पष्ट था कि वह अब स्वतंत्र रूप से घूम-फिर नहीं सकता था जैसा कि वह अपने युवावस्था में करता था। उसका रक्तचाप 200 से अधिक था। स्टॉकटन की एक यात्रा पर, उसने कहा कि उसे शहर के एक चर्च के निकट उसके गर्दन के पीछे चोट लगी थी। मेक्सिको के कुलियाकन में उसके एक बेटे ने हमसे कहा कि जोस लुईस ने ज़रूर "मुझे पैदा तो किया" लेकिन उसने कभी भी जोस लुईस को अपने पिता के रूप में नहीं जाना, क्योंकि वह कभी आसपास नहीं था, हमेशा यात्रा करता रहता था, एल नॉर्टे की ओर जाता रहता था। उसके जीवन की कहानी सामने आने लगी। उसने कई साल पहले खेतों में काम किया था, चेरी की कटाई की थी। उसने कुछ साल पहले एक स्थानीय चर्च के सामने आइसक्रीम भी बेची थी। वह, बॉब डायलन के क्लासिक गीत को उद्धृत करते हुए, "बिना किसी दिशा के घर जैसा, पूरी तरह से अज्ञात, लुढ़कते पत्थर जैसा था।" येशु ने एक भटकी हुई भेड़ को बचाने के लिए 99 भेड़ों को पीछे छोड़ दिया, इसी तरह हमारा ध्यान इस एक व्यक्ति पर गया, जो जाहिर तौर पर अपने ही लोगों द्वारा तिरस्कृत था। हमने उसका स्वागत किया, उसे रहने के लिए जगह दी, उसे खाना खिलाया और उससे दोस्ती की। हम उसकी जड़ों और इतिहास को जान पाए, एक व्यक्ति के रूप में उसकी गरिमा और पवित्रता को जान पाए, शहर की सड़कों पर फेंके गए एक और व्यक्ति के रूप में हम ने उसके साथ व्यवहार नहीं किया था । मेक्सिको में गुमशुदा व्यक्तियों के वीडियो संदेश भेजनेवाली एक महिला ने उसकी दुर्दशा को फेसबुक पर प्रचारित किया। लोगों ने पूछा: “हम कैसे मदद कर सकते हैं?” एक आदमी ने कहा: “मैं उसे घर जाने के टिकट का भुगतान करूंगा।” जोस लुइस, एक अनपढ़, असभ्य और अपरिष्कृत व्यक्ति, हमारी पल्ली के त्यौहार में आया था, और ईश्वर की कृपा से, हमने कुछ हद तक, गरीबों, लंगड़ों, बीमारों और दुनिया के बहिष्कृत लोगों का अपने प्रेम के घेरे में, जीवन के भोज में स्वागत करनेवाली संत मदर टेरेसा के उदाहरण का अनुकरण करने की कोशिश की। संत जॉन पॉल द्वितीय के शब्दों में, दूसरों के साथ एकजुटता, उनके दुर्भाग्य पर अस्पष्ट करुणा या उथली पीड़ा की भावना नहीं है। यह हमें याद दिलाती है कि हम सभी की भलाई के लिए प्रतिबद्ध हैं क्योंकि हम सभी एक दूसरे के लिए जिम्मेदार हैं।
By: फ़ादर अल्वारो देलगादो
Moreप्रश्न – मुझे मृत्यु से डर लगता है। हालाँकि मैं येशु में विश्वास करता हूँ और स्वर्ग पर आशा करता हूँ, फिर भी मैं अज्ञात के प्रति चिंता से भरा हुआ हूँ। मैं मृत्यु के इस डर को कैसे काबू कर सकता हूँ? उत्तर – कल्पना करें कि आप एक काल कोठरी में पैदा हुए हैं और बाहर की दुनिया को देखने में असमर्थ हैं। एक दरवाज़ा आपको बाहरी दुनिया से अलग करता है - सूरज की रोशनी, ताज़ी हवा, मौज-मस्ती... लेकिन आपको इन उज्जवल, सुंदर चीज़ों की कोई अवधारणा नहीं है, क्योंकि आपकी दुनिया केवल इस अंधेरा, सड़न से भरा हुआ स्थान है। कभी-कभी, एक व्यक्ति दरवाजे से बाहर चला जाता है, कभी वापस नहीं आता। आप उन्हें याद करते हैं, क्योंकि वे आपके दोस्त थे और आप अपनी पूरी ज़िंदगी उनसे परिचित थे! अब, एक पल के लिए कल्पना करें कि बाहर से कोई अंदर आता है। वह आपको उन सभी अच्छी चीजों के बारे में बताता है जो आप इस काल कोठरी के बाहर अनुभव कर सकते हैं। वह इन चीजों के बारे में जानता है, क्योंकि वह खुद वहां रहा है। चूँकि वह आपसे प्यार करता है, आप उस पर भरोसा कर सकते हैं। वह आपसे वादा करता है कि वह आपके साथ दरवाजे से होकर चलेगा। क्या आप उसका हाथ थामेंगे? क्या आप खड़े होंगे और उसके साथ दरवाजे से होकर चलेंगे? यह डरावना होगा, क्योंकि आप नहीं जानते कि बाहर क्या है, लेकिन आप वह साहस रख सकते हैं जो वह जानता है। यदि आप उसे जानते हैं और उससे प्यार करते हैं, तो आप उसका हाथ थामेंगे और दरवाजे से होकर सूरज की रोशनी में, बाहर की भव्य दुनिया में चलेंगे। यह डरावना है, लेकिन इसमें भरोसा और उम्मीद है। हर मानव संस्कृति को अज्ञात के डर से जूझना पड़ा है, विशेषकर जब हम मृत्यु के उस अंधेरे दरवाजे से गुजरते हैं। हमें अपने आप से, यह नहीं पता कि पर्दे के पीछे क्या है, लेकिन हम किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो दूसरी तरफ से हमें यह प्रकट करने के लिए आया है कि अनंत काल कैसा है। और उसने क्या प्रकट किया है? उसने कहा है कि जो बचाए गए हैं “वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने खड़े रहते और दिन-रात उसके मंदिर में उसकी सेवा करते हैं। वह, जो सिंहासन पर विराजमान है, इनके साथ निवास करेगा। इन्हें फिर कभी न तो भूखे लगेगी और न प्यास, इन्हें न तो धुप से कष्ट होगा और न किसी प्रकार के ताप से; क्योंकि सिंहासन के सामने विद्यमान मेमना इनका चरवाहा होगा, और इन्हें संजीवन जल के स्रोत के पास ले चलेगा, और परमेश्वर उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा।” (प्रकाशना ग्रन्थ 7:15-17) हमें विश्वास है कि अनंत जीवन परिपूर्ण प्रेम, भरपूर जीवन और परिपूर्ण आनंद है। वास्तव में, यह इतना अच्छा है कि “ईश्वर ने अपने भक्तों के लिए जो तैयार किया है, उसको किसी ने कभी देखा नहीं, किसी ने सुना नहीं, और न कोई उसकी कल्पना ही कर पाया।” (1 कुरिन्थी 2:9) लेकिन क्या हमें कोई निश्चितता है कि हम मुक्ति पाएँगे? क्या हम उस स्वर्गीय अदन वाटिका में न पहुँच पाएँ, ऐसी कोई संभावना नहीं है ? हाँ, यह सच है कि इसकी गारंटी नहीं है। फिर भी, हम आशा से भरे हुए हैं “क्योंकि "परमेश्वर चाहता है कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें" (1 तिमथी 2:3-4)। अपने उद्धार की जितनी इच्छा आप रखते हैं उससे ज़्यादा वह आपके लिए इच्छा रखता है! इसलिए, वह हमें स्वर्ग में ले जाने के लिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य में जो कुछ संभव है, सब कुछ करेगा। उसने आपको पहले ही निमंत्रण दे दिया है, जो उसके पुत्र के रक्त में लिखा और हस्ताक्षरित है। यह हमारा विश्वास है, जो हमारे जीवन में जीया जाता है, जो इस तरह के निमंत्रण को स्वीकार करता है। यह सच है कि हमारे पास निश्चितता नहीं है, लेकिन हमारे पास आशा है, और "आशा व्यर्थ नहीं होती" (रोमी 5:5)। जो "पापियों को बचाने के लिए संसार में आया था" (1 तिमथी 1:15), उस उद्धारकर्ता की शक्ति को जानते हुए, विनम्रता और भरोसे के साथ चलने के लिए हमें कहा गया है। व्यावहारिक रूप से, हम कुछ तरीकों को अपनाकर मृत्यु के भय पर विजय पा सकते हैं। - सबसे पहले, स्वर्ग के बारे में परमेश्वर के वादों पर ध्यान दें। उसने धर्म ग्रंथों में कई अन्य बातें कही हैं जो हमें उसके द्वारा तैयार किए गए सुंदर अनंत काल को प्राप्त करने की उत्साहित उम्मीद से भर देती हैं। हमें स्वर्ग की चाहत से प्रज्वलित होना चाहिए, जो इस गिरे हुए, टूटे हुए संसार को पीछे छोड़ने के डर को कम करेगा। - दूसरा, परमेश्वर की भलाई और आपके प्रति उसके प्रेम पर ध्यान दें। वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा, यहाँ तक कि अज्ञात में जाने पर भी। - अंत में, जब पूर्व में आपको नई-नई और अज्ञात इलाकों में प्रवेश करना पड़ा है - कॉलेज जाना, शादी करना, घर खरीदना, जिन तरीकों से वह आपके साथ मौजूद रहा है, उन तरीकों और मार्गों पर विचार करें । पहली बार कुछ करना डरावना हो सकता है क्योंकि अज्ञात का डर होता है। लेकिन अगर परमेश्वर इन नए अनुभवों में मौजूद रहा है, तो जिस अनंत जीवन में प्रवेश करने केलिए आपने लंबे समय से इच्छा की है, जब आप उस मृत्यु के द्वार से उस नए जीवन में प्रवेश करेंगे, तब वह और भी अधिक आपका हाथ थामेगा!
By: फादर जोसेफ गिल
Moreअक्सर, दूसरों में गलती ढूँढना आसान होता है, लेकिन असली अपराधी का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है। मैंने अपनी कार के विंडशील्ड वाइपर पर एक पार्किंग टिकट चिपका हुआ पाया। यह ट्रैफ़िक नियम के उल्लंघन का नोटिस था जिसमें सड़क को अवरुद्ध करने के कारण मुझे $287 का जुर्माना भरना था। मैं परेशान हो गया, और मेरा दिमाग खुद को सही ठहराने की कोशिश में उलझा रहा । मैं सोचता रहा: "गाड़ी तो सिर्फ़ कुछ इंच की दूरी पर थी! क्या गैरेज बंद नहीं था? ऐसा लग रहा था कि गैरेज का बहुत दिन से इस्तेमाल नहीं हो रहा था। मेरी गाड़ी के सामने कोई और व्यक्ति अपनी गाड़ी को लगाकर गया था, जिससे सड़क का ज़्यादातर हिस्सा अवरुद्ध हो गया था। वहाँ कोई पार्किंग की जगह उपलब्ध नहीं थी, इसलिए मुझे अपनी इच्छित मंज़िल से आधा किलोमीटर दूर पार्क करना पड़ा।" गिरने से पहले लेकिन एक मिनट रुकिए! मैं इतने बहाने क्यों बना रहा था? यह स्पष्ट है कि मैंने पार्किंग नियमों का उल्लंघन किया था, और अब मुझे इसके परिणाम भुगतने होंगे। हालाँकि, जब भी मैं कोई गलती करता हूँ, तो खुद को बचाने की कोशिश करना हमेशा मेरी पहली प्रवृत्ति रही है। यह आदत मेरे अंदर गहराई से समाई हुई है। मुझे आश्चर्य है कि इसकी शुरुआत कहाँ से हुई। खैर, यह हमें अदन की वाटिका में वापस ले चलता है। एक और बहाना? शायद। लेकिन मेरा मानना है कि पहला पाप अवज्ञा या ईश्वर में विश्वास की कमी नहीं था, बल्कि जिम्मेदारी से बचकर बहाना ढूंढना था। क्यों? जब आदम और हेवा साँप के जाल में फँसे, तो उससे पहले उन्होंने कभी बुराई का अनुभव नहीं किया था और ना ही ज्ञान के फल का स्वाद चखा था। वे केवल ईश्वर को जानते थे, इसलिए वे कैसे पहचान सकते थे कि साँप दुष्ट था और झूठ बोल रहा था? झूठ क्या होता है, क्या उन्हें इसका पता था? क्या हम उनसे साँप पर अविश्वास करने की उम्मीद कर सकते हैं? क्या वे नाग के साथ खेलने की कोशिश कर रहा शिशु की तरह नहीं थे? हालाँकि, निषिद्ध फल खाने के बाद चीजें बदल गईं। उनकी आँखें खुल गईं, और उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने पाप किया है। फिर भी जब ईश्वर ने उनसे इसके बारे में पूछा, तो आदम ने हेवा को दोषी ठहराया, और हेवा ने साँप को दोषी ठहराया। कोई आश्चर्य नहीं कि हम भी ऐसा ही करते हैं! एक अनमोल अवसर आपकी प्रतीक्षा कर रहा है ईसाई धर्म, एक तरह से, सरल है। यह हमारे पापों के लिए जवाबदेह होने के बारे में है। ईश्वर हमसे केवल हमारे गलत कामों की जिम्मेदारी लेने के लिए कहता है। जब कोई ईसाई पाप में गिर जाता है, तो उसके लिए सबसे उचित कार्य यह होगा कि गलती के लिए वह पूरी जिम्मेदारी लेा, येशु की ओर मुड़े और माफी मांगे। इसके अतिरिक्त, जिम्मेदारी लेने के साथ-साथ गलती को न दोहराने की पूरी कोशिश करने की व्यक्तिगत प्रतिबद्धता भी आती है। येशु स्वयं हमारे पाप अपने ऊपर लेते हैं और अपने बहुमूल्य लहू के द्वारा पापों को धो डालते हैं और इस तरह पिता से हमें पाप क्षमा दिलाते हैं। कल्पना कीजिए कि आपके परिवार के किसी सदस्य ने कोई गलती की जिसके कारण आपके परिवार को बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। अगर आपको पता हो कि आपका बैंक नुकसान की भरपाई करने को तैयार है, तो क्या आप उस गलती के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराने में अपना समय बर्बाद करेंगे? क्या वास्तव में हम मसीह से मिलने वाले अनमोल अवसर को जानते हैं? आइए हम शैतान के जाल में न फँसें, जो हमेशा दूसरों को दोषी ठहराता है। इसके बजाय, आइए हम सचेत प्रयास करें कि दूसरों पर उँगली न उठाएँ, बल्कि जब हम लड़खड़ाएँ तो येशु की ओर दौड़ें।
By: आन्टनी कलापुराक्कल
Moreदुनिया की सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान! मसीह जी उठे हैं! मसीह सचमुच जी उठे हैं! ईस्टर का उल्लासपूर्ण आनंद सबसे अच्छे ढंग से उस दृश्य के द्वारा प्रकट होता है जहां झील में नाव में खड़ा पेत्रुस, तट पर खड़े येशु तक पहुँचने के लिए उत्साह के साथ नाव से कूद जाता है। ईस्टर के रविवार को हमें येशु की ओर से यह विजयी घोषणा प्राप्त होती है कि हम अब ईश्वर की संतान हैं। इस पुनरुत्थान के चमत्कार की महानता के सामने पेत्रुस की यह प्रतिक्रया ही सबसे उत्तम है। क्या यह पर्याप्त है? हाल ही में, हमारे मठ के एक बुद्धिमान वृद्ध भिक्षु (जिन्हें हम 'बूढ़े दिल वाले' कहते हैं) के साथ मैं इस विषय पर चर्चा कर रहा था। उन्होंने जो कुछ कहा, उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ: "हाँ! यह महान घटना आपको किसी को बताने के लिए प्रेरित करती है।" मैं बार-बार उनके इस कथन पर लौटता रहा: "...आपको किसी को बताने के लिए प्रेरित करती है।" यह सच है। हालांकि मेरे एक और दोस्त का नज़रिया कुछ अलग था: "आपको क्या लगता है कि इस विषय में आप सही हैं? क्या आपको नहीं लगता कि “हमारा धर्म सभी के लिए पर्याप्त है" ऐसी सोच रखना अहंकार नहीं है ? मैं इन दोनों टिप्पणियों के बारे में सोच रहा हूँ। मैं सिर्फ़ पुनरुत्थान की इस घटना को साझा नहीं करना चाहता; मैं इसे अन्य लोगों को समझाना चाहता हूँ । क्योंकि यह एक घटना से कहीं ज़्यादा है। यह सभी की समस्याओं का उत्तर है। यह घटना शुभ सन्देश है। संत पेत्रुस कहते हैं, "किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा मुक्ति नहीं मिल सकती, क्योंकि समस्त संसार में येशु नाम के सिवा मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा हमें मुक्ति मिल सकती है" (प्रेरित चरित 4:12)। तो, मुझे यह स्वीकार करना होगा कि मैं इस मामले में सही हूँ, इस ख़बर को साझा किया जाना चाहिए! क्या ऐसी सोच से आप अहंकारी लगेंगे ? सच तो यह है कि अगर मसीह के पुनरुत्थान की कहानी सच नहीं है, तो मेरे जीवन का कोई मतलब नहीं है - और उससे भी बढ़कर, जीवन का कोई मतलब इसलिए नहीं है क्योंकि मैं, एक ईसाई के रूप में, एक अनोखी संकटमय स्थिति में हूँ। मेरा विश्वास एक ऐतिहासिक घटना की सच्चाई पर टिका है। संत पौलुस कहते हैं: "यदि मसीह नहीं जी उठे, तो आप लोगों का विश्वास व्यर्थ है" (1 कुरिन्थियों 15:14-20)। आपको क्या जानने की आवश्यकता है कुछ लोग इसे ‘विशेषता का कलंक’ कहते हैं। यह बात नहीं है कि यह ‘मेरे लिए सच है’ या ‘आपके लिए सच है’। सवाल यह है कि क्या इसमें किसी प्रकार की सच्चाई है या नहीं। अगर येशु मसीह मृतकों में से जी उठे, तो कोई भी दूसरा धर्म, कोई दूसरा दर्शन, कोई दूसरा पंथ या विश्वास पर्याप्त नहीं है। उनके पास कुछ उत्तर हो सकते हैं, लेकिन जब दुनिया के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना की बात आती है, तो वे सभी कमजोर पड़ जाते हैं। अगर, दूसरी ओर, येशु मृतकों में से नहीं जी उठे - अगर उनका पुनरुत्थान एक ऐतिहासिक तथ्य नहीं है - तो हम सभी को अभी इस तथाकथित विश्वास की मूर्खता को रोकने की जरूरत है। लेकिन मुझे पता है कि वे जी उठे थे, और अगर मैं सही हूं, तो लोगों को यह जानने की जरूरत है। यह हमें इस संदेश के अंधेरे पक्ष की ओर ले जाता है: हम चाहे जितना भी शुभ सन्देश साझा करना चाहें, और इस गारंटी के बावजूद कि अंत में इसकी जीत होगी, हम पाएंगे कि हमारी अपार निराशा के लिए अक्सर ही इस संदेश को अस्वीकार कर दिया जाएगा। सिर्फ़ अस्वीकार ही नहीं किया जाएगा, इसका उपहास किया जाएगा, इस सन्देश के वहाक को बदनाम किया जाएगा, शहीद कर दिया जाएगा। संत योहन कहते हैं: "संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उस ने ईश्वर को नहीं पहचाना।" (1 योहन 3:1) फिर भी यह जानना कितना आनंददायक है! विश्वास में कितना आनंद है! स्वयं के पुनरुत्थान की आशा में कितना आनंद है! परमेश्वर मनुष्य बन गया, यह एहसास पाकर कितना आनंद आता है, हमारे उद्धार के लिए क्रूस पर पीड़ा सही और मृत्यु पर विजय प्राप्त की। उसने हमें स्वर्गिक जीवन में भागीदारी का प्रस्ताव दिया! बपतिस्मा से शुरू होने वाले संस्कारों में परमेश्वर हम पर पवित्रतापूर्ण अनुग्रह प्रवाहित करता है। जब वह हमें, अपने परिवार में स्वागत करता है, तो हम वास्तव में मसीह में भाई-बहन बन जाते हैं, उसके पुनरुत्थान में भागीदार बनते हैं। हम कैसे जानते हैं कि यह सच है? कि येशु जी उठे हैं? शायद यह लाखों शहीदों की गवाही है। दो हज़ार साल के ईश शास्त्र और दर्शन द्वारा, पुनरुत्थान में विश्वास के परिणामों का पता चलता हैं। मदर तेरेसा या असीसी के फ्रांसिस जैसे संतों में, हम ईश्वर के प्रेम की शक्ति का एक जीवंत प्रमाण देखते हैं। परम प्रसाद में उसे प्राप्त करना मेरे लिए हमेशा इसकी पुष्टि करता है। क्योंकि मैं उसकी जीवित उपस्थिति प्राप्त करता हूँ, और वह मुझे भीतर से बदल देता है। शायद, अंत में, यह केवल आनंद है: वह परमानंद 'असंतुष्ट तृष्णा है जो किसी भी अन्य संतुष्टि से अधिक श्रेय है।' लेकिन जब परिस्थितियों द्वारा मैं धकेला जाता हूँ, तो मुझे पता है कि मैं इस विश्वास के लिए मरने को तैयार हूँ - या इससे भी बेहतर, इसके लिए जीने को तैयार हूँ: ख्रीस्त जी उठे हैं, ख्रीस्त वास्तव में जी उठे हैं! अल्लेलुया!
By: फादर जे. ऑगस्टीन वेट्टा ओ.एस.बी.
Moreमुझे याद है, मेरी सेवकाई के दौरान मुझे लगा कि मेरे साथी सेवक मुझ से दूरी बनाए रख रहा हैI और इसका कोई कारण भी नहीं दिखाई दे रहा थाI ऐसा लग रहा था कि वह कुछ संघर्ष से गुज़र रहा था, लेकिन वह मुझसे इसके बारे में बताने से हिचक रहा थाI चालीसा काल के दौरान एक दिन अपने कार्यालय में खड़ी होकर प्रभु के सम्मुख मैं ने अपने ह्रदय से पुकारा: “येशु, लगता है कि मैं इस आदमी के जीवन से बाहर धकेली गयी हूँI” तुरंत, मैंने येशु को इन शब्दों में मुझे जवाब देते हुए सुना: मुझे पता है कि तुम किस दर्द से गुज़र रही होI मेरे साथ यह प्रतिदिन होता हैI” ओह, मुझे लगा कि मेरा ह्रदय छेदा गया है, और मेरी आँखों में आंसू भर गए, मैं जानती थी कि ये शब्द एक खजाना थाI महीनों उस कृपा को समझने केलिए मैं प्रयास करती रहीI 20 वर्ष पूर्व मैं ने पवित्रात्मा में बप्तिस्मा प्राप्त किया थाI तब से मैं अपने पाप को सौभाग्यशाली समझती थी, कि येशु के साथ मेरा गहरा व्यक्तिगत और आत्मीय सम्बन्ध हैI मैंने कई महीनों तक उस अनुग्रह को समझने की कोशिश करती रही। बीस साल पहले पवित्र आत्मा में बपतिस्मा लेने के बाद से, मैंने माना था कि येशु के साथ मेरा एक गहरा व्यक्तिगत रिश्ता था। लेकिन मेरे अनमोल उद्धारकर्ता और प्रभु के इस वचन ने येशु के हृदय में एक नई अंतर्दृष्टि खोली। "हाँ, येशु, बहुत से लोग आपको भूल जाते हैं, है न? और मैं भी— कितनी बार मैं अपने कामों में व्यस्त रहती हूँ, अपनी समस्याओं और विचारों को आपके पास लाना भूल जाती हूँ? इस दौरान, आप मेरा इंतज़ार करते हैं कि मैं आपकी ओर लौटूँ, जो मुझे इतने प्यार से देखता है।" अपनी प्रार्थना में, मैं उन शब्दों को दोहराती रही। "अब मैं बेहतर तरीके से जानती हूँ कि जब कोई तुझे अस्वीकार करता है, तुझ पर आरोप लगाता है या तुझे दोषी ठहराता है, या कई दिनों या सालों तक तुझसे बात नहीं करता है, तो तुझे कैसा महसूस होता है।" मैं और अधिक सचेत रूप से अपने दुखों को येशु के पास ले जाती और उनसे कहती: "येशु, मेरे प्रिय, तू भी वही दुख महसूस करता जो मैं महसूस कर रही हूँ। मैं अपने छोटे-छोटे दुखों को तुझे सांत्वना देने के लिए अर्पित करती हूँ, क्योंकि मैं खुद भी कई लोगों के साथ हूँ, जो तुझे सांत्वना देने में विफल रहते हैं।" मैंने एक नए तरीके से येशु की वह छवि देखी, जिसे मैं बहुत पसंद करती हूँ, येशु अपने पवित्र हृदय से प्रेम की किरणों को बहाते हुए, संत मार्गरेट मैरी से विलाप करते हुए कहते हैं: "मेरे हृदय को देखो, जो लोगों से बहुत प्यार करता है - लेकिन बदले में उन लोगों से बहुत कम प्यार पाता है।" सचमुच, येशु मुझे प्रतिदिन छोटी-छोटी परीक्षाएँ देते हैं ताकि मैं उनके द्वारा हमारे लिए सहन की जाने वाली पीड़ा का थोड़ा सा स्वाद ले सकूँ। मैं हमेशा उस पीड़ा के क्षण को याद रखूँगी जिसने मुझे हमारे प्यारे प्रभु येशु के अद्भुत, कोमल, लंबे समय तक पीड़ित रहने वाले प्रेम के करीब ला दिया।
By: Sister Jane M. Abeln SMIC
Moreदूसरों को आंकना आसान है, लेकिन अक्सर हम दूसरों के बारे में अपने फैसले में पूरी तरह से गलत हो जाते हैं। मुझे एक बूढ़ा आदमी याद है जो शनिवार की रात को पवित्र मिस्सा पूजा में आता था। बहुत दिनों से उसने नहाया नहीं था और उसके पास साफ कपडे नहीं थे। सच कहूँ तो, उसके बदन से बदबू आती थी। आप उन लोगों को दोष नहीं दे सकते जो इस भयानक गंध से दूर रहना चाहते थे। वह बूढा प्रतिदिन हमारे छोटे शहर में दो या तीन मील पैदल चलता था, कचरा उठाता था, और एक पुरानी जर्जर झोपड़ी में अकेला रहता था। हमारे लिए किसी के बाह्य रूप के आधार पर निर्णय लेना आसान है। है न? मुझे लगता है कि यह इंसान होने का एक स्वाभाविक हिस्सा है। मुझे नहीं पता कि कितनी बार किसी व्यक्ति के बारे में मेरे निर्णय पूरी तरह से गलत थे। वास्तव में, ईश्वर की मदद के बिना दिखावे से परे देखना काफी मुश्किल है, मगर असंभव नहीं है। उदाहरण के लिए, यह आदमी, अपने अजीब व्यक्तित्व के बावजूद, हर हफ्ते मिस्सा बलिदान में भाग लेने के बारे में बहुत वफादार था। एक दिन, मैंने फैसला किया कि मैं नियमित रूप से मिस्सा में उसके बगल में बैठूंगी। हाँ, उसके देह से बदबू आ रही थी, लेकिन उसे दूसरों के प्यार की भी ज़रूरत थी। ईश्वर की कृपा से, बदबू ने मुझे ज़्यादा परेशान नहीं किया। पुरोहित द्वारा आपस में शांति देने के लिए कहने पर, मैं ने उसकी आँखों में देखा, मुस्कुरायी, और मैं ने ईमानदारी से उसका अभिवादन इन शब्दों में किया : "ख्रीस्त की शांति आपके साथ हो।" इसे कभी न छोड़ें ईश्वर मुझे अवसर देना चाहता है कि मैं दूसरे को उसके शारीरिक ढांचा या बाहरी रूप से परे देखूं और उस व्यक्ति के दिल में झाँकूँ। जब मैं किसी व्यक्ति के बारे में उसके बही रूप के आधार पर निर्णय लेती हूँ, तो मैं वह अवसर खो देती हूँ। यही येशु ने अपनी जीवन यात्रा के दौरान मिले प्रत्येक व्यक्ति के साथ किया, और वह हमारी गंदगी से परे हमारे दिलों को देखना जारी रखता है। मुझे याद है कि एक बार जब मैं अपने कैथलिक विश्वास से कई साल दूर थी, मैं गिरजाघर की पार्किंग में बैठी थी, मिस्सा में भाग लेने के लिए गिरजाघर के दरवाज़े से अंदर जाने के लिए पर्याप्त साहस जुटाने की कोशिश कर रही थी। मुझे इतना डर था कि दूसरे लोग मेरे बारे में गलत निर्णय लेंगे और मेरा स्वागत नहीं करेंगे। मैंने येशु से मेरे साथ चलने के लिए कहा। गिरजाघर में प्रवेश करने पर, एक डीकन ने मेरा अभिवादन किया; उन्होंने मुझे एक बड़ी मुस्कान देकर गले लगाया, और कहा: "आपका स्वागत है।" मुझे मुस्कान और आलिंगन की ज़रूरत थी ताकि मैं महसूस कर सकूँ कि मैं यहाँ की हूँ और फिर से अपने ही घर पर हूँ। उस बूढ़े आदमी के साथ बैठना जो बदबूदार था, मेरे लिए "भुगतान आगे बढ़ाने" का तरीका था। मुझे पता था कि मैं कितनी बेसब्री से स्वागत महसूस करना चाहती थी, यह महसूस करना चाहती थी कि मैं भी शामिल हूँ और मेरा भी महत्व है। हमें एक-दूसरे का स्वागत करने में संकोच नहीं करना चाहिए, खासकर उन लोगों का जिनके साथ रहना मुश्किल है।
By: Connie Beckman
Moreमैंने एक साल पहले अपना आई-फोन खो दिया था। पहले तो ऐसा लगा जैसे शरीर का कोई अंग कट गया हो। मेरे पास तेरह साल से यह आई-फोन था और यह मेरे स्वयं के एक हिस्से की तरह था। शुरूआती दिनों में, मैंने "नए आई-फोन" को सिर्फ एक फ़ोन की तरह इस्तेमाल किया, लेकिन जल्द ही यह अलार्म घड़ी, कैलकुलेटर, अखबार, मौसम, बैंकिंग और बहुत कुछ बन गया...और फिर...यह हाथ से निकल गया। आई फोन खो जाने के बाद जब मुझे डिजिटल डिटॉक्स, यानी आई फोन के कारण मेरे मन में व्याप्त विष उन्मूलन की प्रक्रिया में जाने के लिए मजबूर किया गया, तो मेरे सामने कई गंभीर समस्याएँ खड़ी हो गईं। अब से मुझे अपनी शॉपिंग की सूची को कागज़ पर लिखने की ज़रूरत पड़ी। मैं ने एक अलार्म घड़ी और एक कैलकुलेटर खरीदा। पूर्व में, मुझे रोज़ाना सन्देश आने पर जो 'पिंग' आवाज़ आई-फोन से सुनाई देती थी और उन संदेशों को जल्दी जल्दी देखने की होड़ थी (और दूसरों द्वारा स्वीकृत किये जाने और चाहने का एहसास), ये सारी बातें अब केवल स्मृतियाँ रह गयीं। लेकिन अब इस छोटे से धातु का टुकड़ा मेरे जीवन पर हावी नहीं हो रही है, और उससे अब मैं अपार शांति महसूस कर रही थी। जब यह यंत्र मेरे हाथ से चला गया, तभी मुझे यह एहसास हुआ कि यह मुझसे कितनी प्रकार की मांग करती थी, और मुझ पर हावी होकर मेरा नियंत्रण करती थी। तब भी दुनिया रुकी नहीं। मुझे बस दुनिया के साथ बातचीत करने के नए-पुराने तरीके सीखने थे, जैसे लोगों से आमने-सामने बात करना और घटनाओं की योजना बनाना। मैं इसे बदलने की जल्दी में नहीं थी। वास्तव में, इसके खत्म होने से मेरे जीवन में एक स्वागत योग्य क्रांति आई। मैंने अपने जीवन में मीडिया का न्यूनतम प्रयोग करना शुरू कर दिया। अब से कोई अखबार, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न या फ़ोन नहीं। मैंने काम के ईमेल, सप्ताहांत पर चुनिंदा यू ट्यूब वीडियोज़ और कुछ स्वतंत्र समाचार पोर्टल के लिए एक आइ-पैड रखा। यह एक प्रयोग था, लेकिन इसने मुझे अमन और शांति महसूस कराया, जिससे मैं अपना समय प्रार्थना और धर्म ग्रन्थ के अध्ययन के लिए उपयोग कर सकी। मैं अब और अधिक आसानी से परमेश्वर से जुड़ सकती हूँ, जो "कल, आज और युगानुयुग एकरूप रहते हैं।" (इब्रानी 13:8)। पहली आज्ञा "अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे ह्रदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी बुद्धि और सारी शक्ति से प्यार करने और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करने" के लिए हमें कहती है (मारकुस 12:30-31)। मुझे आश्चर्य होता है कि जब हमारा दिमाग दिन के ज़्यादातर समय हमारे फ़ोन पर लगा रहता है, तब हम ऐसा कैसे कर सकते हैं ! क्या हम वाकई अपनी बुद्धि से परमेश्वर से प्यार करते हैं? रोमी 12:2 कहता है: "आप इस संसार के अनुकूल न बने, बल्कि सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें।" मैं आपको चुनौती देती हूँ कि आप मीडिया से विरक्त रहें, चाहे थोड़े समय के लिए ही क्यों न हो। अपने जीवन में उस परिवर्तनकारी अंतर को महसूस करें। जब हम खुद को थोड़ा आराम देंगे तभी हम अपने प्रभु परमेश्वर को नवीकृत मन से प्रेम कर पायेंगे।
By: Jacinta Heley
Moreक्या आप एक स्थायी शांति का सपना देख रहे हैं जो आप कितनी भी कोशिश कर लें, आपको मिल नहीं पाती? यह स्वाभाविक है कि हम एक बदलते, अप्रत्याशित दुनिया में हमेशा महसूस करते हैं कि हम बिना तैयारी के हैं। इस भयावह और थकाऊ समय में, डरना आसान हो जाता है — जैसे एक फंसा हुआ जानवर जिसके पास भागने का कोई रास्ता नहीं है। अगर हम केवल कड़ी मेहनत करते, लंबे समय तक काम करते, या अधिक नियंत्रण में होते, तो शायद चीज़ें हमारी पकड़ में आ जाते और आखिरकार हम आराम कर पाते और शांति पा सकते। मैंने दशकों तक इस तरह का जीवन बिताया है। अपने आप पर और अपनी कोशिशों पर निर्भर रहते हुए, मैं कभी वास्तव में 'पकड़ में' नहीं ला पायी। धीरे-धीरे मुझे अहसास हुआ कि इस तरह जीना एक भ्रम था। आखिरकार, मुझे एक समाधान मिला जिसने मेरे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया। यह उस चीज़ के विपरीत महसूस हो सकता है जो आवश्यक है, लेकिन मुझ पर विश्वास करें जब मैं कहती हूं: शांति की इस श्रमसाध्य खोज का उत्तर समर्पण में ही है। सर्वश्रेष्ठ कदम एक कैथलिक के रूप में, मुझे पता है कि मुझे अपने भारी बोझों को ईश्वर को सौंपना चाहिए। मुझे यह भी पता है कि मुझे 'येशु को अपनी जीवन गाडी का ‘स्टीयरिंग’ सौंपना चाहिए' ताकि मेरा बोझ हल्का हो सके। मेरी समस्या यह थी कि मुझे यह नहीं पता था कि "अपने बोझों को प्रभु को कैसे सौंपें।" मैं प्रार्थना करती, विनती करती, कभी-कभी समझौता करती, और एक बार तो मैंने ईश्वर को समय का डेडलाइन भी दे दिया (यह घटना तब समाप्त हुई जब मुझे संत पाद्रे पियो ने एक साधना के दौरान सन्देश के रूप में समझाया: "ईश्वर को समय का डेडलाइन मत दो।" तो, हमें क्या करना चाहिए? मनुष्यों के रूप में, हम हर चीज़ को अपने पास मौजूद एक जानकारी के अंश और सभी प्राकृतिक और अलौकिक कारकों की अत्यंत सीमित समझ के आधार पर रखते हैं। जबकि मेरे पास सर्वोत्तम समाधानों पर अपने विचार हो सकते हैं, मैं अपने मन में उसे स्पष्ट रूप से सुनती हूँ: "मेरे मार्ग तुम्हारे मार्ग नहीं हैं, बार्ब, न ही मेरे विचार तुम्हारे विचार," भगवान कहते हैं। समझौता यह है। भगवान भगवान हैं, और हम नहीं। वह सब कुछ जानते हैं—भूत, वर्तमान, और भविष्य। हम कुछ भी नहीं जानते। निश्चित रूप से, भगवान अपनी सर्वव्यापी बुद्धि में, हमसे बेहतर चीज़ों को समझते हैं, जैसे कि समय और इतिहास में सर्वोत्तम कदम उठाना। कैसे समर्पण करें यदि आपके जीवन में आपकी सभी मानवीय प्रयासों से कुछ भी सही नहीं हो रहा है, तो उन्हें समर्पण करना आवश्यक है। लेकिन समर्पण का मतलब यह नहीं है कि हम ईश्वर को एक वेंडिंग मशीन की तरह देखें, जिसमें हम अपनी प्रार्थनाएँ डालें और कैसा उत्तर हम उनसे चाहते हैं, उसका फैसला हम करें । यदि आप भी मेरी तरह समर्पण करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो मैं वह उपाय साझा करना चाहूँगा जो मैंने पाया: वह है समर्पण का नवरोज़ी प्रार्थना। मुझे इसके बारे में कुछ साल पहले परिचित कराया गया था और इसके लिए मैं बहुत ही आभारी हूँ। प्रभु के सेवक, फादर डॉन डोलिंडो रुओटोला, जो पाद्रे पियो के आध्यात्मिक निदेशक थे, उन्हें यह नोवेना येशु मसीह से प्राप्त हुई थी। नोवेना का प्रत्येक दिन अद्वितीय रूप से हर व्यक्ति से प्रभु येशु बात करते हैं, और केवल येशु ही जानते हैं कि किस तरह लोगों को संबोधित करना है। हर दिन दोहराए जाने वाले शब्दों के बजाय, जिन बाधाओं के कारण हमें वास्तव में समर्पण करने में दिक्कत होती हैं, या जिस प्रकार प्रभु को अपने काम को अपने सही तरीके और सही समय पर करने में जो बातें बाधा बनकर उन्हें रोकती हैं, उन के बारे में हमें बहुत अच्छी तरह से जानने वाले मसीह, हमें याद दिलाते हैं। नोवेना का समापन कथन है: "हे येशु, मैं खुद को तेरे हवाले करता हूँ, तू हर चीज का ख्याल रखें," इसे दस बार दोहराया जाता है। क्यों? क्योंकि हमें विश्वास करने और मसीह येशु पर पूरी तरह से भरोसा करने की जरूरत है कि वही हर चीज का सही ख्याल रखेंगे।
By: बारबरा लिश्को
Moreक्या आप दूसरों के बारे में धारणा बनाने में जल्दी करते हैं? क्या आप किसी ज़रूरतमंद की मदद करने में हिचकिचाते हैं? तो, इस पर सोचने का यही उपयुक्त समय है! अन्य दिनों की तरह वह दिन भी मेरे लिए बस एक साधारण सा दिन था। बाज़ार से लौटती हुई, दिन भर की मेहनत से थकी हुई, रूफस को सिनागोग के विद्यालय से साथ लेती हुई… हालाँकि, उस दिन मुझे कुछ अलग महसूस हुआ। हवा मेरे कान में फुसफुसा रही थी, और यहाँ तक कि आसमान भी पहले की तुलना में कुछ अधिक अभिव्यक्ति कर रहा था। सड़कों पर भीड़ के शोर से भी मेरी इस सोच की पुष्टि हो गयी कि आज, कुछ बदलाव होने वाला है। फिर, मैंने उसे देखा - उसका शरीर इतना विकृत हो गया था कि मैंने कोशिश की कि रूफस इस भयावह दृश्य को न देखने पाए। बेचारे रुफुस ने अपनी पूरी ताकत से मेरी बांह पकड़ ली - वह घबरा गया था। जिस तरह से इस आदमी को, खैर, जो कुछ भी उस आदमी में बचा था, उसके साथ व्यवहार किया जा रहा था, इसका मतलब था कि उसने कुछ भयानक किया था। मेरे लिए, सिर्फ वहां खड़ी होकर देखना, यह ठीक नहीं था, लेकिन जैसे ही मैं जाने लगी, मुझे एक रोमन सैनिक ने पकड़ लिया। मुझे तब बड़ा आश्चर्य हुआ जब उस सैनिक ने मुझे इस आदमी को उसका भारी बोझ उठाने में मदद करने का आदेश दिया। मुझे पता था कि इसका मतलब है कि अब परेशानी झेलनी है। मेरे द्वारा मदद का इनकार करने के बावजूद, उन लोगों ने उसकी मदद करने के लिए मुझ पर दबाव डाला। यह कैसी गड़बड़ हालात है! मैं एक पापी के साथ जुड़ना नहीं चाहती थी। उन सभी के देखते हुए एक क्रूस का भारी बोझ उठाकर आगे बढ़ना ? कितना अपमानजनक! मुझे पता था कि हालांकि और कोई रास्ता नहीं है, इसलिए मैंने अपने पड़ोसी वैनेसा से रूफस को घर ले जाने के लिए कहा, क्योंकि इस मुसीबात की घड़ी बीतने में कुछ समय लगेगा। मैं उस आदमी के पास गयी - गंदा, खूनी और विकृत! मुझे आश्चर्य हुआ कि उसने ऐसा कौन सा पाप या अपराध किया था कि वह इस स्थिति का लायक बन गया था। जो भी हो, यह सजा बहुत क्रूर थी। वहां खड़े तमाशबीन लोग चिल्ला रहे थे, 'यह आदमी ईशनिंदा करता है', 'यह झूठा है ' और 'यहूदियों का राजा' जबकि कुछ अन्य लोग उस पर थूक रहे थे और उसे गाली दे रहे थे। मुझे पहले कभी इतना अपमानित और मानसिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया गया था। उसके साथ केवल दस से पंद्रह कदम चलने के बाद, वह मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ा। इस क्लेश को समाप्त करने के लिए, उसे उठने की जरूरत थी, इसलिए मैं उसे उठाने में मदद करने के लिए झुकी। फिर, उसकी आँखों में, मैंने कुछ ऐसा देखा, जिसने मुझे बदल दिया। मैंने करुणा और प्रेम देखा। यह कैसे संभव है? कोई डर नहीं, कोई गुस्सा नहीं, कोई नफरत नहीं - सिर्फ प्यार और सहानुभूति। मैं हैरान रह गई, जबकि उन आँखों से उसने मेरी तरफ देखा और वापस उठने के लिए मेरा हाथ पकड़ लिया। मैं अब अपने आस-पास के लोगों को सुन या देख नहीं सकती थी। जैसे ही मेरे एक कंधे पर क्रूस था और दूसरे कंधे पर उसने अपना हाथ रखा था। अब मुझे सिर्फ़ उनके दिल की धड़कन और उनकी उखड़ी हुई साँसें सुनाई दे रही थीं... वे संघर्ष कर रहे थे, फिर भी बहुत, बहुत मज़बूत थे। लोगों के चीखने, गाली देने और इधर-उधर भागने के शोर के बीच, मुझे लगा जैसे वे मुझसे बात कर रहे थे। उस समय तक मैंने जो भी किया था, अच्छा या बुरा, सब बेकार लग रहा था। जब रोमन सैनिक उन्हें मुझसे दूर खींचकर क्रूस पर चढ़ाने के स्थान पर ले जा रहे थे, तो उन सैनिकों ने मुझे एक तरफ धकेल दिया और मैं जमीन पर गिर गई । उन्हें अपने आप ही आगे बढ़ना था। मैं वहीं जमीन पर पड़ी रही और लोग मुझे कुचल रहे थे। मुझे नहीं पता था कि आगे क्या करना है। मुझे बस इतना पता था कि जीवन कभी भी वैसा नहीं होने वाला था। मैं अब भीड़ को नहीं सुन सकती थी, केवल सन्नाटा और अपने दिल की धड़कन की आवाज सुन सकती थी। मुझे उनके कोमल हृदय की आवाज की याद आ गई। कुछ घंटों बाद, जब मैं जाने के लिए उठने ही वाली थी, पहले का भावपूर्ण आकाश बोलने लगा। मेरे नीचे की जमीन हिल गई! मैंने आगे कलवारी के शीर्ष पर देखा और वे दिखाई दिये, हाथ फैलाए और सिर झुकाए हुए, मेरे लिए। अब मैं जानती हूँ कि उस दिन मेरे वस्त्र पर जो खून छिड़का गया था, वह परमेश्वर के मेमने का रक्त था, जो संसार के पापों को हर लेता है। उसने मुझे अपने रक्त से शुद्ध किया। *** *** *** मैं इस तरह से किरीन के सिमोन की कल्पना करती हूँ। जिस दिन उसे येशु को क्रूस को कलवरी तक ले जाने में मदद करने के लिए कहा गया था, उस दिन के अपने अनुभव को याद करती हुई मैं कल्पना करती हूँ। सिमोन ने शायद उस दिन तक येशु के बारे में बहुत कम सुना था, लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि उस क्रूस को ले जाने में उद्धारकर्ता को मदद करने के बाद वह वही व्यक्ति नहीं रहा। इस चालीसे के तपस्याकाल में, हमें खुद को देखने के लिए सिमोन हमसे कहता है: क्या हम दुसरे लोगों के बारे में धारणा बनाने में बहुत जल्दी कर रहे हैं? कभी-कभी, हम किसी के बारे में अपनी सहज प्रवृत्ति के कारण दिमाग में आई बातों पर विश्वास करने में बहुत जल्दी कर देते हैं। सिमोन की तरह, हम दूसरों की मदद करने के रास्ते में अपनी धारणा को आड़े आने देते हैं। सिमोन ने येशु को कोड़े खाते हुए देखा और मान लिया कि इस आदमी ने कुछ गलत काम ज़रूर किया होगा। ऐसे बहुत से अवसर भी बनते हैं जब येशु की आज्ञा के अनुसार किसी व्यक्ति के साथ प्रेम करने के रास्ते में, हमने उनके प्रति अपनी धारणाओं को बाधा बनने दिया। क्या हम कुछ लोगों की मदद करने में हिचकिचाते हैं? क्या हमें दूसरों में येशु को नहीं देखना चाहिए और उनकी मदद करने के लिए आगे नहीं बढ़ना चाहिए? येशु हमें न केवल अपने दोस्तों से बल्कि अजनबियों और दुश्मनों से भी प्यार करने के लिए कहते हैं। अजनबियों से प्रेम करने का आदर्श नमूना कोलकत्ता की संत मदर तेरेसा हैं। उन्होंने हमें दिखाया कि हर किसी में येशु का चेहरा कैसे देखा जाए। दुश्मनों से प्रेम करने का आदर्श येशु मसीह से बेहतर कौन हो सकता है? येशु ने उनसे प्रेम किया जो उससे नफरत करते थे और उन लोगों के लिए प्रार्थना की जिन्होंने उसे सताया था। सिमोन की तरह, हम अजनबियों या दुश्मनों से संपर्क करने में झिझक महसूस कर सकते हैं, लेकिन मसीह हमें अपने भाइयों और बहनों से वैसा ही प्रेम करने के लिए कहता है जैसा उसने किया था। येशु हमारे पापों के लिए जितना मरा, उतना ही वह उनके पापों के लिए मरा। प्रभु येशु, तेरे मार्ग का अनुसरण करके एक महान गवाह बनने वाले किरीन के सिमोन का नमूना हमें देने के लिए तुझे धन्यवाद। हे स्वर्गीय पिता, जरूरतमंद लोगों तक पहुंचकर तेरे गवाह बनने की कृपा हमें प्रदान कर।
By: Mishael Devassy
Moreजब मैंने यह प्रभावशाली प्रार्थना शुरू की थी, तो मुझे इतनी उम्मीद नहीं थी... “हे बालक येशु की नन्हीं तेरेसा, कृपया मेरे लिए स्वर्गीय बगीचे से एक गुलाब चुनिए और इसे प्रेम के संदेश के रूप में मुझे भेजिए।” यह निवेदन, जो संत तेरेसा को संबोधित ‘मुझे एक गुलाब भेजो’ नोवेना के तीन निवेदनों में से पहला है; और इस निवेदन ने मेरा ध्यान खींचा। मैं अकेली थी. एक नए शहर में बिलकुल अकेली, नए दोस्तों की चाहत के साथ। आस्था के नए जीवन में अकेली, किसी दोस्त और रोल मॉडल की चाह ली हुई। मैं संत तेरेसा के बारे में पढ़ रही थी। बपतिस्मा के दौरान मुझे यही नाम दिया गया था, लेकिन उस संत के प्रति मेरा कोई विशेष आकर्षण नहीं था। संत तेरेसा 12 साल की उम्र में ही येशु के प्रति भावुक भक्ति में जी रही थी और 15 साल की उम्र में कार्मेलाइट मठ में प्रवेश पाने के लिए संत पापा से विशेष निवेदन किया था। मेरा अपना जीवन बहुत अलग था। मेरा गुलाब कहाँ है? तेरेसा आत्माओं की मुक्ति केलिए जोश से भरी हुई थीं; उसने एक खूंखार अपराधी के मन परिवर्तन के लिए प्रार्थना की थी। कार्मेल के कॉन्वेंट की गुप्त दुनिया में बैठकर, उसने दूर-दराज इलाकों पर ईश्वर के प्रेम को फैलाने वाले मिशनरियों के लिए अपनी प्रार्थना समर्पित की। अपनी मृत्यु शैया पर लेटी हुई, नॉरमंडी की इस पवित्र साध्वी ने मठ की अपनी बहनों से कहा था: "मेरी मृत्यु के बाद, मैं गुलाबों की बारिश करूंगी। मैं स्वर्ग में रहकर पृथ्वी पर भलाई के कार्य करूंगी।" मैंने जो किताब पढ़ी, उसमें लिखा था कि 1897 में उसकी मृत्यु के बाद से, उसने दुनिया को कई आशीषें, चमत्कार और यहां तक कि गुलाब भी दिए हैं। "शायद वह मेरे लिए एक गुलाब भेजेगी," मैंने सोचा। यह मेरे जीवन की पहली नोवेना प्रार्थना थी। मैं ने प्रार्थना के दो अन्य निवेदनों के बारे में अधिक नहीं सोचा- अर्थात् मेरे निवेदनों के लिए ईश्वर से मध्यस्थ प्रार्थना करने की कृपा और मेरे लिए ईश्वर के महान प्रेम में गहरा विश्वास करना ताकि मैं तेरेसा के छोटे मार्ग का अनुकरण कर सकूँ। मुझे याद नहीं कि मेरा निवेदन क्या था और मैं तेरेसा के छोटे मार्ग के बारे में कुछ समझ नहीं पा रही थी। मेरा ध्यान बस गुलाब पर था। नौवें दिन की सुबह, मैंने आखिरी बार नोवेना प्रार्थना की। और इंतज़ार किया। शायद आज कोई फूलवाला मेरे पास आकर मुझे गुलाब दे देगा। या शायद मेरे पति काम से लौटते समय मेरे लिए गुलाब लेकर घर आएँगे। दिन के अंत तक, मेरे दरवाज़े पर आया एकमात्र गुलाब एक कार्ड पर छपा हुआ था जो एक मिशनरी समाज से ग्रीटिंग कार्ड के पैक में आया था। यह एक चमकदार लाल, सुंदर गुलाब था। क्या यह तेरेसा की ओर से मेरा गुलाब था? मेरी अदृश्य मित्र कभी-कभी, मैंने फिर से ‘मुझे गुलाब भेजो’ नोवेना प्रार्थना की। हमेशा परिणाम समान था। गुलाब छोटे, छिपे हुए स्थानों में दिखाई देते थे; मैं रोज़ नाम के किसी व्यक्ति से मिलती, और इसके अलावा मुझे गुलाब दिखाई देता किसी पुस्तक के कवर पर, किसी फ़ोटो की पृष्ठभूमि में, या किसी मित्र की मेज़ पर। आखिरकार, जब भी मैं गुलाब देखती, संत तेरेसा मेरे दिमाग में आती। वह मेरे दैनिक जीवन की सहेली बन गई थी। नोवेना को पीछे छोड़ते हुए, मैंने पाया कि मैं जीवन के संघर्षों में उनसे मध्यस्थता माँग रही हूँ। तेरेसा अब मेरी अदृश्य मित्र थी। मैंने अधिक से अधिक संतों के बारे में पढ़ा, और इन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने ईश्वर के प्रति भावुक प्रेम को किस तरह से जिया, इस पर आश्चर्यचकित हुई । इन लोगों के समूह को जानना, जिनके निश्चित रूप से स्वर्ग में होने के बारे में कलीसिया ने की घोषणा की है, इन सब बातों ने मुझे आशा दी। हर जगह और हर जीवन में, वीरतापूर्ण सद्गुण के साथ जीना संभव होना चाहिए। पवित्रता मेरे लिए भी संभव है। और ऐसे कई रोल मॉडल थे। बहुत सारे! मैंने संत फ्रांसिस डी सेल्स के धैर्य, संत जॉन बॉस्को में प्रत्येक बच्चे की ध्यानपूर्ण देखभाल और कोमल मार्गदर्शन, और हंगरी की संत एलिजाबेथ की दानशीलता का अनुकरण करने की कोशिश की। भक्ति और परोपकार के मार्ग पर मेरी मदद करनेवाले उनके उदाहरणों के लिए मैं आभारी थी। इनसे परिचित होना महत्वपूर्ण था, लेकिन तेरेसा इन सबसे अधिक थी। वह मेरी दोस्त बन गई थी। एक शुरुआत आखिरकार, मैंने संत तेरेसा की आत्मकथा, द स्टोरी ऑफ़ ए सोल (एक आत्मा की कहानी) पढ़ी। उनके इस व्यक्तिगत गवाही में मैंने पहली बार उनके छोटे मार्ग या ‘लिटिल वे’ को समझना शुरू किया। तेरेसा ने खुद को आध्यात्मिक रूप से एक बहुत ही छोटे बच्चे के रूप में कल्पना की थी जो केवल बहुत ही छोटे कार्य करने में सक्षम थी। लेकिन वह अपने पिता का बहुत सम्मान करती थी और जो उससे प्यार करता था, उन के लिए एक उपहार के रूप में हर छोटी-छोटी चीज को बड़े प्यार से करती थी। प्यार का बंधन उसके उपक्रमों के आकार या सफलता से बड़ा था। यह मेरे लिए जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण था। उस समय मेरा आध्यात्मिक जीवन एक ठहराव पर था। शायद तेरेसा के छोटे मार्ग से इसकी शुरूआत हो सकती थी। एक बड़े और सक्रिय परिवार की माँ होने के नाते, मेरी परिस्थितियाँ तेरेसा से बहुत अलग थीं। शायद मैं अपने दैनिक कार्यों को उसी प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण से करने का प्रयास कर सकती थी। अपने घर की छोटी सी जगह और गुप्तता में, जैसा कि तेरेसा के लिए अपना कॉन्वेंट था, मैं प्रत्येक कार्य को प्रेम से करने का प्रयास कर सकती थी। प्रत्येक कार्य ईश्वर के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था; और विस्तार से, प्रत्येक कार्य मेरे पति, मेरे बच्चे, पड़ोसी के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था। कुछ अभ्यास के साथ, हर बार डायपर परिवर्तन, प्रत्येक भोजन जो मैंने मेज पर रखा, और प्रत्येक कपड़े धोने का भार प्रेम की एक छोटी सी भेंट बन गया। मेरे दिन आसान हो गए, और ईश्वर के प्रति मेरा प्रेम मजबूत हो गया। मैं अब अकेली नहीं थी। अंत में, इसमें नौ दिनों से कहीं अधिक समय लगा, लेकिन गुलाब के लिए मेरे आवेगपूर्ण अनुरोध ने मुझे एक नए आध्यात्मिक जीवन के मार्ग पर स्थापित कर दिया। इसके माध्यम से, संत तेरेसा मुझ तक पहुँचीं। उसने मुझे प्रेम की ओर खींचा, उस प्रेम की ओर जो स्वर्ग में संतों का बंधुत्व है, अपने "छोटे मार्ग" का अभ्यास करने के लिए और सबसे बढ़कर, ईश्वर के प्रति अधिक प्रेम की ओर उसने मुझे खींच लिया। आखिरकार मुझे गुलाब से कहीं ज़्यादा मिला! क्या आप जानते हैं कि संत तेरेसा का पर्व 1 अक्टूबर को है? तेरेसा-नामधारियों को पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
By: एरिन राइबिकी
Moreअक्सर, किसी वाद्य यंत्र से सुंदर धुनें बजाने के लिए किसी उस्ताद की ज़रूरत होती है। यह एक भयंकर प्रतिस्पर्धा थी जिसमें खरीदार हर चीज़ के लिए एक-दूसरे से ज़्यादा बोली लगाने की होड़ में थे। उन्होंने उत्सुकता के साथ सभी वस्तुओं को खरीद लिया और नीलामी बंद होने वाली थी, सिवाय एक वस्तु के - एक पुराना वायलिन। खरीदार खोजने के लिए उत्सुक, नीलामीकर्ता ने तार वाले वाद्य को अपने हाथों में लिया और जो कीमत उसे आकर्षक लगी, उसे पेश किया: “अगर किसी को दिलचस्पी है, तो मैं इसे 100 डॉलर में बेचूंगा।” कमरे में मौत जैसी खामोशी छा गई। जब यह स्पष्ट हो गया कि पुराने वायलिन को खरीदने के लिए यह कीमत भी किसी को भी राजी करने के लिए पर्याप्त नहीं थी, तो उसने कीमत घटाकर 80 डॉलर, फिर 50 डॉलर और अंत में, हताश होकर 20 डॉलर कर दी। एक और चुप्पी के बाद, पीछे बैठे एक बुजुर्ग सज्जन ने पूछा: “क्या मैं वायलिन को देख सकता हूँ?” नीलामीकर्ता ने राहत महसूस की कि कोई पुराने वायलिन में दिलचस्पी दिखा रहा है, इसलिए उसने हाँ कह दी। कम से कम उस तार वाले वाद्य को एक नया मालिक और नया घर मिलने की संभावना बन रही थी। एक उस्ताद का स्पर्श बूढ़ा आदमी पीछे की सीट से उठा, धीरे-धीरे आगे की ओर चला, और पुराने वायलिन की सावधानीपूर्वक जांच की। अपना रूमाल निकालकर, उसने उसकी सतह को झाड़ा और जब तक कि एक-एक करके, वे सारे तार सही स्वर में आ गए, तब तक प्रत्येक तार को धीरे-धीरे ट्यून किया। आखिरकार, और केवल तभी, उसने पुराने वायलिन को अपनी ठोड़ी और बाएं कंधे के बीच रखा, अपने दाहिने हाथ से गज़ को उठाया, और संगीत का एक अंश बजाना शुरू किया। पुराने वायलिन से निकलने वाला प्रत्येक संगीत स्वर कमरे में सन्नाटे को भेदता हुआ हवा में खुशी से नाच रहा था। सभी चकित रह गए, और उन्होंने वाद्य से निकल रहे संगीत के कमाल को ध्यान से सुना जो सभी के लिए स्पष्ट था - एक उस्ताद के हाथों का कमाल। उन्होंने एक परिचित शास्त्रीय भजन बजाया। धुन इतनी सुंदर थी कि इसने नीलामी में मौजूद सभी लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया और वे अचंभित रह गए। उन्होंने कभी किसी को इतना सुंदर संगीत बजाते हुए नहीं सुना था या देखा भी नहीं था, एक पुराने वायलिन पर तो बिल्कुल भी नहीं। और उन्होंने एक पल के लिए भी नहीं सोचा था कि नीलामी फिर से शुरू होने पर इससे उन्हें खूब मज़ा आएगा। उन्होंने उस वायलिन को बजाना समाप्त किया और शांत भाव से उसे नीलामीकर्ता को लौटा दिया। इससे पहले कि नीलामीकर्ता कमरे में मौजूद सभी लोगों से पूछ पाता कि क्या वे अब भी इसे खरीदना चाहेंगे, हाथ उठाने की होड़ लग गई। अचानक से किए गए इस शानदार प्रदर्शन के बाद हर कोई तुरंत इसे चाहता था। कुछ समय पहले तक एक अवांछित वस्तु से, पुराना वायलिन अचानक नीलामी की सबसे तीव्र बोली का केंद्र बन गया। 20 डॉलर की शुरुआती बोली से, कीमत तुरंत 500 डॉलर तक बढ़ गई। अंततः उस पुराने वायलिन को 10,000 डॉलर में बेचा गया, जो इसकी सबसे कम कीमत से 500 गुना अधिक था। आश्चर्यजनक परिवर्तन पुराने वायलिन को सबकी नापसंद वास्तु से सबकी पसंदीदा और नीलामी का सितारा बनने में केवल 15 मिनट लगे। और इसके तारों को ट्यून करने और एक अद्भुत धुन बजाने के लिए एक उस्ताद संगीतकार की ज़रूरत पड़ी। उसने दिखाया कि जो बाहर से बदसूरत लग रहा था, वास्तव में उस वाद्य यंत्र के अंदर एक सुंदर और अमूल्य आत्मा थी। शायद, पुराने वायलिन की तरह, हमारे जीवन का पहले तो कोई खास मूल्य नहीं लगता। लेकिन अगर हम उन्हें येशु को सौंप दें, जो सभी उस्तादों से ऊपर उस्ताद हैं, तो वे हमारे ज़रिए सुंदर गीत बजाने में सक्षम होंगे और उनकी धुनें श्रोताओं को और भी ज़्यादा चौंका देंगी। तब हमारा जीवन दुनिया का ध्यान आकर्षित करेगा। तब हर कोई उस संगीत को सुनना चाहेगा जिसे प्रभु येशु हमारे जीवन से उत्पन्न करते हैं। इस पुराने वायलिन की कहानी मुझे मेरी अपनी कहानी की याद दिलाती है। मैं भी उस पुराने वायलिन की तरह ही था और किसी ने नहीं सोचा था कि मैं किसी काम का हो सकता हूँ या अपने जीवन में कुछ सार्थक कर सकता हूँ। वे मुझे ऐसे देखते थे जैसे मेरा कोई मूल्य ही न हो। हालाँकि, येशु को मुझ पर दया आ गई। वह पलटा, मेरी ओर देखा और मुझसे पूछा: "पीटर, तुम अपने जीवन में क्या करना चाहते हो?" मैंने कहा: "गुरुवर, आप कहाँ रहते हैं?" "आओ और देखो," येशु ने उत्तर दिया। इसलिए मैं आया और देखा कि वह कहाँ रहते हैं, और मैं उनके साथ रहा। पिछले 16 जुलाई को, मैंने अपने पुरोहिताई अभिषेक की 30-वीं वर्षगांठ मनाई। मेरे लिए येशु के महान प्रेम को जानने और अनुभव करने के लिए... मैं उनका कितना धन्यवाद कर सकता हूँ? उन्होंने पुराने वायलिन को कुछ नया बना दिया है और उसे बहुत मूल्यवान बना दिया है। हे प्रभु, हमारा जीवन भी उस पुराने वायलिन की तरह तेरा संगीत वाद्य बन जाए, ताकि हम ऐसा सुंदर संगीत बना सकें जिसे लोग तेरे अद्भुत प्रेम के लिए धन्यवाद और प्रशंसा देते हुए हमेशा गा सकें।
By: फादर पीटर हंग ट्रान
Moreएक कैथलिक के रूप में, मुझे सिखाया गया था कि क्षमा करना ईसाई धर्म के पोषित मूल्यों में से एक है, फिर भी मैं इसका अभ्यास करने के लिए संघर्ष करती हूँ। संघर्ष जल्द ही एक बोझ बन गया, क्योंकि मैंने क्षमा करने में अपनी असमर्थता पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। पाप स्वीकार संस्कार के दौरान, पुरोहित ने येशु मसीह की क्षमा की ओर इशारा किया: "उसने न केवल उन्हें क्षमा किया, बल्कि उनके उद्धार के लिए प्रार्थना की।" येशु ने कहा: "हे पिता, उन्हें क्षमा कर, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।" येशु की यह प्रार्थना अक्सर उपेक्षित अंश को प्रकट करती है। यह स्पष्ट रूप से उजागर करता है कि येशु की निगाह सैनिकों के दर्द या क्रूरता पर नहीं थी, बल्कि सच्चाई के बारे में उनके ज्ञान की कमी पर थी। येशु ने उनकी मध्यस्थता करने के लिए इस अंश को चुना। मुझे यह संदेश मिला कि दूसरे व्यक्ति और यहाँ तक कि खुद के अज्ञात अंशों को जगह देने से मेरी क्षमा अंकुरित होनी चाहिए। अब मैं हल्का और अधिक खुश महसूस करती हूँ क्योंकि पहले, मैं केवल ज्ञात कारकों से निपट रही थी - दूसरों द्वारा पहुँचाई गई चोट, उनके द्वारा बोले गए शब्द और दिलों और रिश्तों का टूटना। येशु ने मेरे लिए क्षमा के द्वार पहले ही खुले छोड़ दिए हैं, मुझे केवल अपने और दूसरों के भीतर के अज्ञात अंशों को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करने के इस मार्ग पर चलना है। जब येशु हमें अतिरिक्त मील चलने के लिए आमंत्रित करते हैं, तब येशु का यह कथन हमारे लिए अज्ञात अंशों के बारे में जागरूकता के अर्थ की परतें जोड़ता है। मुझे लगा कि क्षमा करना एक ऐसी यात्रा है जो क्षमा करने के कार्य से शुरू होकर एक ईमानदार मध्यस्थता तक जाती है। जिन्होंने मुझे चोट पहुंचाई है, उन लोगों की भलाई के लिए प्रार्थना करके, गेथसेमेन के माध्यम से मेरा चलना ही अतिरिक्त मील चलने का यह क्षण है। और यह प्रभु की इच्छा के प्रति मेरा पूर्ण समर्पण है। प्रभु ने सभी को अनंत काल के लिए प्रेमपूर्वक बुलाया है और मैं कौन हूँ जो अपने अहंकार और आक्रोश के साथ बाधा उत्पन्न करूँ? अपने दिलों को अज्ञात अंशों के लिए खोलने से एक दूसरे के साथ हमारे संबंधों को सुधारता है और हमें ईश्वर के साथ एक गहरे रिश्ते की ओर ले जाता है, जिससे हमें और दूसरों को उनकी प्रचुर शांति और स्वतंत्रता तक पहुँच मिलती है।
By: एमिली संगीता
Moreरोम..., संत पेत्रुस का महागिरजाघर जाना, संत पापा से मुलाक़ात करना ... क्या जीवन इससे ज़्यादा घटनापूर्ण हो सकता है? हाँ, मैंने पाया कि यह हो सकता है। रोम की यात्रा के दौरान कैथलिक धर्म में मेरा धर्मांतरण हुआ। मैं भाग्यशाली थी कि वहां मैं अपनी स्नातक की पढ़ाई के सिलसिले में गयी थी। जिस कैथलिक विश्वविद्यालय में मैंने अध्ययन किया था, उस विश्वविद्यालय ने यात्रा के हिस्से के रूप में संत पापा फ्रांसिस के साथ कुछ मुलाक़ातों का आयोजन किया था। एक शाम, मैं संत पेत्रुस महागिरजाघर में बैठी थी, लाउडस्पीकर पर लातीनी भाषा में रोज़री माला की प्रार्थना सुन रही थी, जबकि मैं गिरजाघर में आराधना शुरू होने का इंतज़ार कर रही थी। हालाँकि मैं उस समय लातीनी नहीं समझती थी, न ही मुझे पता था कि रोज़री क्या है, मैंने किसी तरह प्रार्थना को पहचान लिया। वह एक रहस्यमय तल्लीनता का क्षण था जिसने अंततः मुझे माँ मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से अपना पूरा जीवन येशु को सौंपने के लिए प्रेरित किया। इससे मेरे धर्मांतरण की एक यात्रा शुरू हुई, जो एक साल बाद कैथलिक कलीसिया में मेरे बपतिस्मा में परिणत हुई, और कुछ ही समय बाद वह एक प्रेम कहानी में परिणत हुई। खोज के क्षण मैंने पाया कि मैं धीरे-धीरे येशु के साथ अपने रिश्ते की नींव बना रही हूँ, इस प्रक्रिया में अनजाने में मरियम की नकल कर रही हूँ। मसीह के साथ अपने संबंध को गहरा करने की कोशिश करते हुए मैंने प्रार्थना में उनके चरणों में घुटने टेके, जैसा कि मरियम ने कलवारी में किया होगा। मैं आज भी इस अभ्यास को जारी रखती हूँ, येशु के चेहरे, उनके घावों, उनकी कमज़ोरियों और उनकी पीड़ा का अध्ययन करती हूँ। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं उन्हें सांत्वना देने के लिए हर दिन उनसे मिलती हूँ क्योंकि मैं उनके क्रूस पर अकेले होने के विचार को सहन नहीं कर सकती। उनके दु:ख पर ध्यान लगाने से, मैं पाती हूँ कि मैं आज हमारे अंदर बसनेवाले जीवित मसीह के महत्व को और अधिक गहराई से समझ सकती हूँ। जब मैंने खुद को इस अभ्यास के लिए समर्पित किया, तो मैंने महसूस किया कि येशु मेरी दैनिक प्रार्थनाओं में मेरा इंतज़ार कर रहे हैं, मेरी वफ़ादारी के लिए तरस रहे हैं, और मेरी संगति की तलाश में हैं। जितना अधिक मैंने उन्हें मौन प्रार्थना में थामे रखा, उतना ही अधिक मैं अपने जीवन और दूसरों के जीवन के लिए येशु द्वारा चुकाई गई कीमत के लिए गहरा दु:ख और शोक महसूस करने लगी। मैंने उनके लिए आँसू बहाए। मैंने उन्हें अपने दिल में कैद कर लिया। अपने बेटे के लिए मरियम की कोमल देखभाल को प्रतिबिंबित करते हुए मैंने प्रार्थना में उन्हें सांत्वना दी। येशु को क्रूस पर ले जाने वाले बलिदानी प्रेम की अनुभूति ने मेरे भीतर गहरी मातृ भावनाएँ जगाईं, जिससे मुझे सब कुछ उनके प्रति समर्पित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। माँ मरियम की कृपा से, जैसे हमारा रिश्ता खिल उठा, मैंने खुद को पूरी तरह से येशु को समर्पित कर दिया, जिससे उन्हें मुझे बदलने की अनुमति मिली। समर्पण जब दो साल पहले मुझे बहुत बड़ा नुकसान हुआ, तो मैंने इस दैनिक अभ्यास को जारी रखा, हालाँकि मेरे दुःख का केंद्र बदल गया था। मैंने जो आँसू बहाए, वे अब उसके लिए नहीं बल्कि अपने लिए थे। मैं अपने पूर्ण संकट और निराशा में हमारे प्रभु के चरणों में गिरने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी, चाहे मैं कितना भी स्वार्थी क्यों न महसूस कर रही थी। तब ईश्वर ने मुझे दिखाया कि कैसे प्रार्थना में उनके बलिदान की साक्षी बनने से ही नहीं, बल्कि उनकी दु:ख पीड़ा में प्रवेश करके भी मुक्तिदायक पीड़ा को साझा किया जा सकता है। अचानक, उनका दुख मेरे लिए अब बाहरी नहीं रहा, बल्कि कुछ ऐसा था जो इतना अंतरंग था कि मैं क्रूस पर मसीह के साथ एक हो गयी। मैं अब अपने दुख में अकेली नहीं थी। बदले में, मैं ने पहचानना की मेरे साथ वे थे जिन्होंने मुझे मौन प्रार्थना में सहारा दिया, जिन्होंने मेरे लिए शोक किया और मेरे दुख को साझा किया। उन्होंने मेरे लिए आँसू बहाए और अपना दिल खोल दिया जहाँ मैं पीछे हट गयी और उनकी कैदी बन गयी। मैं उसके प्यार में बंदी थी। असहज मार्ग पर यात्रा मरियम का अनुकरण करने से हमे सीधे येशु के हृदय की ओर पहुँच जाते हैं, जो हमें सच्चे पश्चाताप और उनके प्रेम से प्रवाहित होने वाली असीम दया का सार सिखाता है। यह यात्रा चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जिसके लिए हमें मसीह के क्रूस के बोझ को साझा करना होगा। फिर भी, हमारे परीक्षणों और दु:खों के माध्यम से, हम उनकी आरामदायक उपस्थिति में सांत्वना पा सकते हैं, यह जानते हुए कि वे हमें कभी नहीं छोड़ते। मरियम के आदर्श का अनुसरण करके, हम उन्हें अपने प्रभु और उद्धारकर्ता येशु के साथ हमारे संबंध को गहरा करने और उनके मुक्तिदायी दु:ख को साझा करने में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए आमंत्रित करते हैं। ऐसा करने से, हम उन लोगों के दर्द और पीड़ा के लिए जीवित शहीद बन जाते हैं जो अभी तक मसीह से नहीं मिले हैं, और उसी प्रक्रिया में, हम स्वयं ठीक हो जाते हैं। अपने बेटे के लिए मरियम के मातृ प्रेम का जब हम अनुकरण करते हैं, तो हम उनके दु:ख के सार के करीब आते हैं और उनकी उपचारात्मक कृपा के पात्र बन जाते हैं। मसीह के साथ एकता में अपने स्वयं के दुखों को अर्पित करने के माध्यम से, हम उनके प्रेम और करुणा के जीवित गवाह बन जाते हैं, जो उन लोगों को सांत्वना देते हैं जो अभी तक उनसे नहीं मिले हैं। इस पवित्र प्रक्रिया में, हम अपने लिए उपचार पाते हैं और ईश्वर की दया के साधन बनते हैं, जरूरतमंदों तक उनका प्रकाश फैलाते हैं। इसी तरह, हम अपने जीवन में क्रूस को साहस के साथ गले लगाना सीखते हैं, यह जानते हुए कि वे मसीह के साथ एक गहरे मिलन के मार्ग हैं। मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से, उस बलिदानी प्रेम की गहन समझ की ओर हमारा मार्गदर्शन किया जाता है जिसके कारण येशु ने हमारे लिए अपना जीवन दे दिया। जब हम शिष्यत्व के मार्ग पर चलते हैं, और मरियम के पदचिन्हों पर चलते हैं, तो हमारे जीवन में उपचार और मुक्ति लाने के लिए उनकी परिवर्तनकारी शक्ति पर भरोसा करते हुए अपने दु:खों और संघर्षों को येशु को अर्पित करने के लिए हमें कहा जाता है।
By: फ़ियोना मैककेना
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