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अक्टूबर 27, 2021 424 0 Donna Marie Klein, USA
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आप बहुमूल्य हैं

क्या आप विश्वास करते हैं कि ईश्वर अभी यहां उपस्थित हैं?

“अपने दैनिक जीवन के कार्यों पर हर समय चौकस रहो, और यह निश्चित रूप से जान लो कि ईश्वर सबको हर जगह देखता है।” ये वचन, संत बेनेदिक्त के नियम के अध्याय चार से लिए गए हैं। और यह संत बेनेदिक्ट के मूलभूत सिद्धांतों में से एक को उपयुक्त रूप से दर्शाती है: हमें हमेशा ईश्वर की उपस्थिति के बारे में जागरूक रहना चाहिए। यह ज्ञान कि ईश्वर की दृष्टि हम पर निरंतर बनी रहती है, हमें प्रलोभन में भी डाल सकता है या फिर हमारे लिए ताकत का सबसे बड़ा स्रोत बन कर हमें ईश्वर के उस पूर्ण प्रेम की याद दिला सकता है जो ईश्वर अपने द्वारा रचित सारे प्राणियों से करते हैं।

इस बात की निश्चिन्तता, कि कोई भी कार्य हमारे सृष्टिकर्ता के ध्यान से नहीं बचता है, हमें अपने व्यवहार पर ध्यान देने और अधिकता या निष्क्रियता की ओर हमारे स्वाभाविक झुकाव को रोकने में हमारी मदद करती है। इसके द्वारा हम अपने लक्ष्यों को ईश्वर की महिमा की ओर निर्देशित करने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। ईश्वर की चौकस निगाहों के संरक्षण में, हम मदिरा पान, अत्याधिक सोने और सुबह की प्रार्थना को छोड़ देने की आदतों से धीरे धीरे छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं।

एक अदभुत प्रस्ताव

हमारे धर्मार्थ के कार्य स्वर्ग के खज़ानों जैसे बहुमूल्य हैं, लेकिन कभी-कभी हम अपने स्वार्थ के द्वारा ही उन्हें दूषित कर बैठते हैं। संत मत्ती के सुसमाचार में येशु की दी गई चेतावनी को याद रखें जो इस प्रकार है: “सावधान रहो, लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने धर्म कार्यों का प्रदर्शन ना करो; नहीं तो तुम अपने स्वर्गिक पिता के पुरस्कार से वंचित रह जाओगे (6:1)। संत बेनेदिक्त के नियम की प्रस्तावना हमें सिखाती है कि हम अपने उद्देश्यों को कैसे शुद्ध कर सकते हैं: “जब भी आप कोई अच्छा काम शुरू करते हैं, तो उसे पूरा करने के लिए सबसे विनम्र प्रार्थना के साथ [ईश्वर] से प्रार्थना करें।” छोटे से छोटे कार्यों की शुरुआत से पहले प्रार्थना करना न केवल ईश्वर को अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए हमारे कार्यों का उपयोग करने की अनुमति देता है बल्कि हमें याद दिलाता है कि हम जो कुछ भी करते हैं उसमें ईश्वर हमारे साथ है।

बेनेदिक्त का मानना ​​​​था कि “ईश्वरीय उपस्थिति हर जगह है, और ईश्वर की आंखें हर जगह उपस्थित अच्छाई और बुराई देखती हैं” (नियम, अध्याय 19)। चूंकि हमें हमेशा अपने निर्माता की संगति में खुद की कल्पना करनी चाहिए, बेनेदिक्त हमें उसी अध्याय में चुनौती देता हुए कहते हैं “इस पर विचार करें कि हमें ईश्वर की उपस्थिति में कैसे व्यवहार करना चाहिए।” यह कितना विस्मयकारी प्रस्ताव है!

फिर भी क्या हम वास्तव में विश्वास करते हैं कि ईश्वर अभी यहां हमारे साथ हैं? सच बात तो यह है कि, हालांकि हम विश्वास के माध्यम से यकीन करते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी है, फिर भी हम इस बात को आसानी से भूल जाते हैं, खासकर तब जब हम दैनिक जीवन की दौड़भाग के बीच में फंस जाते हैं। मन मोहने वाले सूर्यास्त को देखते समय ईश्वर की उपस्थिति की गहराई को अनुभव करना, उस पर यकीन करना आसान है, लेकिन जब हम घर का कचरा बाहर निकाल रहे होते हैं तो ईश्वर की शक्ति और उपस्थिति को महसूस करना बहुत कठिन होता है।

 अभ्यास पूर्णता की सीढ़ी है

ईश्वर की सर्वव्यापिता बस एक धार्मिक अवधारणा नहीं है जिसे हमें स्वीकार करने की कोशिश करनी है, बल्कि यह एक आदत है जिसे हमें दिन रात सींचना है। ईश्वर की उपस्थिति के बारे में लगातार जागरूक रहना और उसके अनुसार कार्य करने को ‘स्मरण’ के रूप में जाना जाता है। यह एक अर्जित स्वभाव है जिसे पाने में कई संतों को – शायद संत बेनेदिक्त को भी वर्षों तक अभ्यास करना पड़ा!

इस तरह के स्मरण को बढ़ावा देने का एक तरीका यह है, कि हम हर दिन खुद से पूछें कि ईश्वर ने आज दिन भर में हमारे लिए अपने प्रेम को कैसे प्रकट किया। जब हम उन असंख्य तरीकों को याद करेंगे जिनमें ईश्वर ने हमें अपनी कोमल देखभाल और दया दिखाई, तो हमारा हृदय खुद-ब-खुद ही धन्यवाद और प्रशंसा से भर जाएगा, जो बदले में हमारे मन और हृदय में ईश्वर के लिए गहरा प्रेम उत्पन्न करेगा। धीरे धीरे करके आखिर में, हमारे सृष्टिकर्ता को विचारों, शब्दों और कार्यों में महिमा देना हमारे लिए स्वाभाविक सा हो जाएगा।

कभी कभी हम में से सबसे ज्ञानी, सबसे समझदार लोग भी जीवन के दु:ख तकलीफों का सामना करते समय ईश्वर को याद रखना भूल जाते हैं। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि भय और भ्रम के समय में जब हमें ईश्वर हमसे दूर दिखाई देता है, वह असल में हमसे पहले से भी कहीं ज़्यादा नज़दीक होते हैं, और हमें और अधिक अपने करीब लाने के लिए हमारी “अग्नि परीक्षा” ले रहे होते हैं। इसीलिए, संत याकूब हमें प्रोत्साहित करते हुए कहते हैं कि “मेरे भाइयो और बहनो! जब आप लोगों को अनेक प्रकार की विपत्तियों का सामना करना पड़ें, तब अपने को धन्य समझिये। आप जानते हैं कि आपके विश्वास का इस प्रकार का परीक्षण धैर्य उत्पन्न करता है” (1:2-3)। और हालांकि चाहे हम परीक्षाओं के समय विशेष रूप से धन्य या आनंदित महसूस नहीं कर रहे हों, फिर भी हमारे सामने जो भी संकट हो, उसका सामना करने का प्रयास करना ही एक बहुमूल्य बात है। क्योंकि बस यह विश्वास कि ईश्वर हमारे साथ है हमें तुरंत राहत प्रदान कर सकता है।

दुगुना आनंद

पवित्र शास्त्र हमें निस्संदेह हो कर बताता है कि ईश्वर हमें कभी अकेला नहीं छोड़ता, खासकर तब जब हम पर मुसीबत के बादल छाए हों। भजन संख्या 91 में, ईश्वर हमें अपने सेवक के माध्यम से आश्वासन देते हैं कि जब हम ईश्वर को पुकारेंगे तब ईश्वर हमें उत्तर देते हुए कहेंगे: “मैं तुम्हारे साथ हूं। मैं संकट में [तुम्हारा] साथ दूंगा और [तुम्हारा] उद्धार कर [तुम्हें] महिमान्वित करूंगा” (15)।

भजन संख्या 22 से उद्धृत येशु के मार्मिक शब्दों को कौन भूल सकता है जब क्रूस पर लटके हुए येशु ने पुकारा: “मेरे ईश्वर, मेरे ईश्वर, तू ने मुझे क्यों त्याग दिया?” (2). फिर भी वही भजन एक आशावादी वचन के साथ समाप्त होता है जिसे बहुतों ने कभी नहीं सुना है: “क्योंकि उस ने दीन हीन का तिरस्कार नहीं किया, उसे उसकी दुर्गति से घृणा नहीं हुई, उसने उस से अपना मुख नहीं छिपाया और उसने उसकी पुकार पर ध्यान दिया।” (25)। वास्तव में, भजन का अंतिम भाग हमारे लिए परमेश्वर की स्तुति करने का निमंत्रण है!

अपनी गिरफ्तारी से कुछ घंटे पहले, येशु ने अपने शिष्यों के सामने यह भविष्यवाणी की थी कि वे उनका साथ छोड़ देंगे। पर फिर उन्होंने यह भी घोषित किया, “फिर भी मैं अकेला नहीं हूं; पिता मेरे साथ है” (योहन 16:32)। और पिता ईश्वर के पास उद्ग्रहित होने से पहले, येशु ने सबसे एक वादा किया, “देखो, मैं संसार के अंत तक सदा तुम्हारे साथ हूँ” (मत्ती 28:20)।

दुःख, परिश्रम, चिंताएँ, परेशानियां, कमज़ोरियाँ, विरोध, डांट, अपमान – सब धैर्यपूर्वक सहन किया जा सकता है और हमारे द्वारा अपनाया भी किया जा सकता है अगर हम येशु पर अपनी नज़रें टिकाए रखते हैं, जो कि इम्मानुएल है, अर्थात, ईश्वर हमारे साथ है (मत्ती 1:23)।

जब हमें पता होता है कि जिससे हम प्यार करते हैं, वह हमारे चारों ओर होता है – हमारे आगे, हमारे पीछे, हमारे ऊपर, हमारे नीचे, हमारे बगल में – तब बीते समय के पछतावे और भविष्य की चिंताएं शक्तिहीन हो जाती हैं। सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी पिता की स्वीकृति के तहत, वर्तमान क्षण में येशु के साथ बिताया हुआ जीवन, दुगुने आनंद से भरा होता है।

“उपयुक्त समय में मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुनी; उद्धार के दिन मैंने तुम्हारी सहायता की।” (2 कुरिंथियों 6:2)।

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Donna Marie Klein

Donna Marie Klein is a freelance writer. She is an oblate of St. Benedict (St. Anselm’s Abbey, Washington, D.C.).

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