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असीसी के संत फ्रांसिस को एक समय कोढियों से बहुत भय और घृणा थी। उन्होंने कबूल किया कि कोढ़ी की झलक पाने से ही उनके मन में इतनी घृणा पैदा होती थी कि वे उन कोढियों की बस्ती के पास से गुजरने से कतराते थे। अगर वे अपनी यात्रा के दौरान गलती से किसी कोढ़ी की एक झलक पा लें या किसी कुष्ठरोग आश्रम से गुजरते हैं, तो वे अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा देते थे और अपनी नाक बंद कर लेते थे।
जैसे-जैसे फ्रांसिस अपने विश्वास में और अधिक गहरे होते गए और उन्होंने अपने सामान दूसरों को प्यार करने की मसीह की नसीहत स्वीकार कर ली, वे अपने इस रवैये पर शर्मिंदा हो गए। एक दिन जब फ्रांसिस घोड़े पर सवार होकर यात्रा कर रहे थे, अचानक कुष्ठ रोग से पीड़ित एक आदमी उसके सामने सड़क पार कर रहा था। फ्रांसिस ने आतंकित भय और घृणा की अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और, बजाय दूर भागने का, वे अपने घोड़े के ऊपर से नीचे कूदे, कोढ़ी को चूमे और उसके हाथ में कुछ पैसे दे दिए।
लेकिन जब फ्रांसिस ने फिर से घोड़े पर सवार होकर पीछे मुड़कर देखा, तो उन्हें कहीं भी कोढ़ी नहीं दिखाई दिया। बढती उत्तेजना के साथ, उन्होंने महसूस किया कि मैं ने जिसे चूमा था, वह येशु है। कुछ धन जुटाने के बाद, वे कोढ़ी अस्पताल के पास गए और वहां उपस्थित हर एक कोढ़ी को भिक्षा दे दी, और श्रद्धा के साथ उन कोढियों में से एक एक के हाथ का चुंबन किया। पहले किसी कोढ़ी की दृष्टि या स्पर्श जो उनके लिए अरुचिकर लग रहा था – वह अब मिठास में परिवर्तित हो गया। बाद में फ्रांसिस ने लिखा, “जब मैं पाप में था, कोढ़ियों की मात्र झलक पाने से मेरा जी मचलता था; लेकिन तब परमेश्वर ने स्वयं मुझे उनकी संगति में पहुंचाया, और मेरे अन्दर उन पर करुणा उमड़ पड़ी। जब मैं उनसे परिचित हो गया, तो जिसके कारण मेरा जी मचलता था, वह मेरे लिए आध्यात्मिक और भौतिक सांत्वना का स्रोत बन गया। ” आज हम अक्सर अपने आस-पास ऐसे लोगों को देखते हैं जो आध्यात्मिक कोढ़ से त्रस्त हैं। ज़्यादातर हम उनसे दूर रहने की कोशिश करते हैं, लेकिन हम यह महसूस करने में नाकाम रहते हैं कि यह कोढ़ की बीमारी हमारे दिल में भी है। इसलिए दूसरों पर उंगली उठाने और इशारा करने के बजाय, अपने मन की विकलांगता और दिल की कठोरता पर मुक्ति पावें। यद्यपि हम टूटे हुए और जख्मी हैं, पहले स्थान
Shalom Tidings
क्या आपके जीवन में ऐसे दरवाजे हैं जो आपके प्रयासों के बावजूद खुलने से इनकार करते हैं? इस हृदयस्पर्शी अनुभव से जानिए उन बंद दरवाजों के पीछे का रहस्य। मेरे पति और मैं कैथेड्रल ऑफ़ सेंट जूड के दरवाजे पर थे। दरवाज़ा खोलने पर एक बड़ी भीड़ के बीच हम दोनों को सीटें मिलीं। हम एक महिला के अंतिम संस्कार के लिए आये थे, जिनसे बहुत पहले, जब मैं केवल 20 वर्ष की थी, तब मिली थी। वह और उनके पति उस समय कैथलिक करिश्माई प्रार्थना समुदाय के आत्मिक अगुए थे। हालाँकि वह और मैं घनिष्ठ व्यक्तिगत मित्र नहीं थे, लेकिन जब मैं इस गतिशील विश्वास से भरे समूह में शामिल हुई तो उसने मेरे जीवन को महत्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित किया था। उनका मंझला बेटा, केन, अब फादर केन थे, और वह अंतिम संस्कार का दिन उनके पुरोहिताई अभिषेक की 25-वीं वर्षगांठ का दिन भी था। वहां उपस्थित मण्डली को सरसरी निगाहों से देखने पर मेरे अतीत और वर्तमान दोनों दौर के कई परिचित चेहरे सामने आए। फादर केन की अपनी माँ को दी गई मार्मिक श्रद्धांजलि और उनके भाई-बहनों द्वारा की गई प्रेमपूर्ण स्मृति के वचनों ने उनके परिवार पर और साथ ही उस दिन उपस्थित कई लोगों के जीवन में भी प्रार्थना समूह का प्रभाव को प्रतिबिंबित किया। उनके शब्दों ने मेरे दिमाग में यादें ताज़ा कर दीं - कैसे पवित्र आत्मा ने इस समुदाय का उपयोग कई लोगों के जीवन को बदलने के लिए किया, खासकर मेरे जीवन को बदलने के लिए। प्यार में घसीटी गयी मेरा पालन-पोषण बहुत ही समर्पित कैथलिक माता-पिता ने किया था, जो प्रतिदिन मिस्सा बलिदान में भाग लेते थे, लेकिन एक किशोरी के रूप में, मैंने केवल अनिच्छा से कलीसिया के जीवन में भाग लिया। मुझे अपने पिता द्वारा हर रात पारिवारिक माला विनती पर जोर देने और न केवल भोजन से पहले, बल्कि भोजन के बाद भी अनुग्रह की प्रार्थना बोलने पर नाराजगी महसूस होती थी। शुक्रवार की रात 10 बजे परम पवित्र संस्कार की आराधना में भाग लेना मुझ 15 साल की किशोरी की अपनी सामाजिक स्थिति के लिए अच्छा नहीं था, खासकर तब, जब मेरे दोस्त मुझसे पूछते थे कि मैंने सप्ताहांत में क्या किया है। उस समय मेरे लिए कैथलिक होना सिर्फ बहुत सारे नियमों, आवश्यकताओं और अनुष्ठानों के बारे में ही था। प्रत्येक सप्ताह मेरा अनुभव अन्य विश्वासियों के साथ खुशी या संगति का नहीं था, बल्कि कर्तव्य के बोझ का था। फिर भी, जब मेरी बहन ने मुझे हाई स्कूल से पास होने के बाद अपने कॉलेज के सप्ताहांत अवकाश समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, तो मैं सहमत हो गयी। मेरे छोटे से शहर में नए अनुभव बहुत कम मिलते थे और यह निश्चित रूप से मेरे लिए अब तक के अनुभवों से बिलकुल भिन्न था। मैं ने नहीं सोचा था कि यह आत्मिक साधना मेरे शेष जीवन का पथ निर्धारित करेगी! प्रतिभागियों के सौहार्दपूर्ण मित्रता के साथ-साथ फादर बिल के चेहरे पर छाई भारी मुस्कान के बीच जब उन्होंने प्रभु के बारे में हमारे साथ साझा किया, मैंने कुछ ऐसा देखा जो मैंने अपनी गृह पल्ली में कभी नहीं देखा था, और मुझे पता था कि मैं अपने जीवन में वास्तव में यही चाहती थी : आनंद! सप्ताहांत के अंत में, बाहर शांत समय बिताने के दौरान, मैंने अपना जीवन ईश्वर को अर्पित कर दिया, बिना यह जाने कि इसका वास्तव में क्या मतलब है। निराशाजनक मामले दो साल से भी कम समय के बाद, मैं और मेरी बहन फ्लोरिडा के पूर्वी तट से पश्चिम की ओर चली गयीं, पहले उसकी नौकरी के कारण और बाद में, सेंट पीटर्सबर्ग में एक कॉलेज में पढ़ाई के लिए मुझे एडमिशन मिलने के कारण। अपनी सीमित आर्थिक क्षमता के भीतर रहने के लिए हम दोनों बहनें एक ही बेडरूम को ढूंढ रहे थे। कई अपार्टमेंट प्रबंधकों द्वारा दो लड़कियों को एक ही बेडरूम को किराए पर देने की अनिच्छा के कारण हमारे प्रयास बार-बार विफल हो गए - भले ही हमने अपने पूरे जीवन में एक ही बेडरूम साझा किया था और आखिर हम तो बहनें थीं! एक और इनकार के बाद निराश होकर, हम प्रार्थना करने के लिए संत जूड्स कैथेड्रल के अन्दर चली गयीं। इस संत के बारे में कुछ भी न जानते हुए, हमने एक प्रार्थना कार्ड को पाया जिसमें लिखा था कि संत जूड 'निराशाजनक मामलों के संरक्षक' थे। किफायती आवास की कठिन खोज के बाद, हमारी निरर्थक स्थिति एक निराशाजनक मामला कहा जा सकता था, इसलिए हमने संत जूड की मध्यस्थता मांगने के लिए घुटने टेक दिए। लो और देखो, अगले अपार्टमेंट परिसर में पहुंचने के बाद, हमारे साथ उसी झिझक के साथ व्यवहार किया गया। हालाँकि, इस बार, उस वृद्ध महिला ने मेरी ओर देखा, रुकी और बोली, “तुम मुझे मेरी पोती की याद दिलाती हो। मैं दो महिलाओं को एक-बेडरूम किराए पर नहीं देती, लेकिन... तुम मुझे अच्छी लग रही हो, और इसलिए तुम लोगों के लिए मैं अपने उसूल तोड़ने जा रही हूं!' हमें पता चला कि हमारे नए घर का निकटतम कैथलिक चर्च होली क्रॉस चर्च था, जहां "ईश्वर की उपस्थिति प्रार्थना समुदाय" नामक एक समूह प्रत्येक मंगलवार की रात को मिलता था। यदि हम किसी अन्य एपार्टमेंट को किराए पर लेने में सक्षम होती, तो हमें खुशी से भरे लोगों के इस समूह से मुलाक़ात नहीं होती, जिसे हम जल्द ही "परिवार" कहने लगी। यह स्पष्ट था कि पवित्र आत्मा काम कर रहा था, और 17 वर्षों में यानी जब तक मैं इस समूह में सक्रिय रूप से शामिल थी तब तक पवित्र आत्मा की उपस्थिति बार-बार प्रकट हुई। जीवन का वृत्त सेंट जूड्स कैथीड्रल चर्च में लौटते हुए, उस दिन जीवन का वह उत्सव न केवल हमारे बहुत पहले के आत्मिक अगुओं का था, बल्कि यह मेरा भी अपना उत्सव था! एक युवती के रूप में अपनी टूटन और उस समय महसूस किए गए अकेलेपन और असुरक्षा को याद करते हुए, मुझे आश्चर्य हुआ कि ईश्वर ने मेरे जीवन को कैसे बदल दिया है। उन्होंने मुझे भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से ठीक करने के लिए अपनी पवित्र आत्मा और अपने लोगों का उपयोग किया, मेरे जीवन को गहरी और समृद्ध मित्रता से भर दिया जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है। उन्होंने मुझे जो उपहार पहले से ही दिए थे, न उपहारों को खोजने में मदद की - समुदाय ने मुझे विभिन्न तरीकों से सेवा करने के लिए उचित जगह प्रदान की। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि संगठन की तरह मेरी प्राकृतिक क्षमताओं का उपयोग आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। कई वर्षों के बाद, मुझे एक नई आध्यात्मिक टीम में आमंत्रित किया गया जिसके गतिशील नेता ने अपनी स्वयं की मिसाल द्वारा मेरा मार्गदर्शन किया। उनके प्रोत्साहन और समर्थन के माध्यम से, मैंने नेतृत्व कौशल विकसित किया जिसके परिणाम स्वरूप प्रार्थना समुदाय में "आस्था के घर" और गिरजाघर के दरवाजे के बाहर "दीन हीनों" की सेवा के लिए नयी सेवकाई शुरू हुई। कुछ साल बाद जब पास में एक नया पैरिश शुरू हुआ, तो मुझे वहां संगीत की सेवकाई में शामिल होने के लिए कहा गया, और पवित्र आत्मा की प्रेरणा से, मैंने कई अन्य सेवा इकाइयों में भी भाग लिया। पिछले कुछ वर्षों में मैंने जो कुछ भी सीखा और अनुभव किया है, उसे ध्यान में रखते हुए, मैं कई कार्यक्रम आयोजित करने में सक्षम हुई, जो हमारे पल्ली समुदाय के भीतर चंगाई, मन परिवर्त्तन और अभिवृद्धि के अवसर प्रदान करते हैं। पिछले 14 वर्षों से, मुझे अपने एक दूसरे मित्र द्वारा शुरू किए गए महिला फ़ेलोशिप समूह का आयोजन करने का सौभाग्य मिला है, जो मेरी तरह, मसीही समुदायों के प्यार और देखभाल के द्वारा बदल गयी थी। मैंने पाया है कि धर्मग्रंथों में परमेश्वर के द्वारा दिए गए सभी वादे मेरे जीवन में सच साबित हुए हैं। वह विश्वासयोग्य, क्षमाशील, दयालु, करूणामय और आनंद का स्रोत है, जितना मैंने कभी कल्पना की थी, उससे कहीं अधिक! उन्होंने मेरे जीवन में अर्थ और उद्देश्य प्रदान किया है, और उनकी कृपा और निर्देशन से, मैं 40 वर्षों से अधिक समय से येशु के साथ सेवकाई में भागीदार बनने में सक्षम हूं। उन वर्षों तक मुझे इस्राएलियों की तरह "रेगिस्तान में भटकना" नहीं पड़ा। वही परमेश्वर जिसने "दिन में बादल के खम्भे और रात में अग्नि-स्तम्भ" के द्वारा अपने लोगों की अगुवाई की (निर्गमन 13:22) उसने दिन-ब-दिन, साल-दर-साल मेरी अगुवाई की, और रास्ते में मेरे लिए अपनी योजनाओं को प्रकट किया। मेरे प्रार्थना समूह के दिनों का एक गीत मेरे मन में गूंजता है, "ओह, भाई बहनों का एक साथ रहना कितना भला है, कितना सुखद!" (भजन 133:1) उस दिन चारों ओर देखने पर मुझे इसका स्पष्ट प्रमाण दिखाई दिया। फादर केन की माँ में काम करने वाली पवित्र आत्मा, फादर केन के घर और हमारे विश्वास के समुदाय में उनकी माँ के द्वारा बोये गए बीजों से बहुत फल लाए। उसी आत्मा ने वर्षों तक मेरे जीवन में बोए और सींचे गए बीजों से फ़सल पैदा की। प्रेरित पौलुस ने एफीसियों को लिखे अपने पत्र में इसे सर्वोत्तम रूप से कहा: “जिसका सामर्थ्य हम में क्रियाशील है और जो वे सब कार्य संपन्न कर सकता है, जो हमारी प्रार्थना और कल्पना से अत्यधिक परे है, उसी को कलीसिया और येशु मसीह द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी, युग युगों तक महिमा! आमेन!" (3:20-21)
By: करेन एबर्ट्स
Moreफरवरी की शुरुआत में, संयुक्त राज्य अमेरिका में कलीसिया द्वारा कैथलिक स्कूल सप्ताह मनाया जाता है। मैं इस अवसर को कैथलिक स्कूलों द्वारा दी जा रही अच्छी शिक्षा केलिए उनका सम्मान करने और कैथलिक और गैर-कैथलिक सभी को उन स्कूलों का समर्थन हेतु आमंत्रित करने के अवसर के रूप में उपयोग करता हूँ। मैंने पहली कक्षा से लेकर ग्रेजुएट स्कूल तक, बर्मिंघम, मिशिगन में होली नेम एलीमेंट्री स्कूल से लेकर पेरिस में इंस्टीट्यूट कैथलिक नामक शिक्षा संस्थान तक, कलीसिया से जुड़े शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाई की। वर्षों तक चले उस तल्लीनता से भरपूर सघन और गहरी शिक्षा के अनुभव ने मेरे चरित्र, मेरे मूल्यों की भावना, दुनिया को देखने के मेरे पूरे तरीके को बड़े पैमाने पर आकार दिया। मेरा मानना है कि, विशेष रूप से अब, जब धर्म-विहीनवादी, भौतिकतावादी दर्शन हमारी संस्कृति में बड़े पैमाने पर प्रभाव रखता है, तो ऐसे में कैथलिक लोकाचार एवं शिष्टाचार को शिक्षा पद्धति में शामिल करने की आवश्यकता है। निश्चित रूप से, जिन कैथलिक स्कूलों में मैंने पढ़ाई की, उनके विशिष्ट चिह्न मिस्सा बलिदान और अन्य संस्कारों, धर्म कक्षाओं, पुरोहितों और साध्वियों की उपस्थिति (जो मेरी शिक्षा के शुरुआती वर्षों में थोड़ा अधिक मात्रा में थी), और कैथलिक संतों, प्रतीकों और छवियों की व्यापकता के अवसर थे। लेकिन जो बात शायद सबसे महत्वपूर्ण थी वह उन स्कूलों द्वारा आस्था और वैज्ञानिक सोच के एकीकरण का वह तरीका था। निश्चित रूप से, कोई "कैथलिक गणित” नहीं है, लेकिन वास्तव में गणित पढ़ाने का एक कैथलिक तरीका है। गुफा के अपने प्रसिद्ध दृष्टांत में, प्लेटो ने दिखाया कि दुनिया की विशुद्ध भौतिकवादी दृष्टि से दूर पहला कोई कदम है तो वह गणित है। जब कोई सबसे सरल समीकरण, या किसी संख्या की प्रकृति, या किसी जटिल अंकगणितीय सूत्र की सच्चाई को समझ लेता है, तो वह, बहुत ही वास्तविक अर्थों में, नश्वर वस्तुओं के दायरे को त्याग देता है और आध्यात्मिक वास्तविकता के ब्रह्मांड में प्रवेश कर जाता है। धर्मशास्त्री डेविड ट्रेसी ने टिप्पणी की है कि आज अदृश्य का सबसे सामान्य अनुभव गणित और रेखा गणित के शुद्ध अमूर्त को समझने के माध्यम से है। इसलिए, उचित ढंग से पढ़ाया गया गणित, धर्म द्वारा प्रदान किए गए उच्च आध्यात्मिक अनुभवों द्वारा, ईश्वर के अदृश्य क्षेत्र का द्वार खोल देता है। इसी तरह, कोई विशिष्ट "कैथलिक भौतिकी” या "कैथलिक जीव विज्ञान” नहीं है, लेकिन वास्तव में उन विज्ञानों के लिए एक कैथलिक दृष्टिकोण है। कोई भी वैज्ञानिक तब तक अपने काम को जमीन पर नहीं उतार सकता जब तक कि वह दुनिया की मौलिक समझदारी में विश्वास नहीं करता - कहने का मतलब यह है कि भौतिक वास्तविकता के हर पहलू को, समझने योग्य पैटर्न द्वारा चिह्नित किया जाता है। यह किसी भी खगोलशास्त्री, रसायनज्ञ, खगोलभौतिकीविद्, मनोवैज्ञानिक या भूवैज्ञानिक के लिए सच है। लेकिन यह स्वाभाविक रूप से इस सवाल की ओर ले जाता है: ये समझदार पैटर्न कहां से आए? दुनिया को व्यवस्था, सद्भाव और तर्कसंगत पैटर्न द्वारा इतना चिह्नित क्यों किया जाना चाहिए? बीसवीं सदी के भौतिक विज्ञानी यूजीन विग्नर द्वारा रचित एक अद्भुत लेख है जिसका शीर्षक है "प्राकृतिक विज्ञान में गणित की अनुचित प्रभावशीलता।" विग्नर का तर्क था कि यह महज संयोग नहीं हो सकता कि सबसे जटिल गणित, भौतिक दुनिया का सफलतापूर्वक वर्णन करता है। महान कैथलिक परंपरा का उत्तर यह है कि यह समझदारी, वास्तव में, एक महान रचनात्मक बुद्धि से आती है जो इस संसार की सृष्टि के पीछे खड़ी है। इसलिए, जो लोग विज्ञान का अभ्यास करते हैं, उन्हें यह विश्वास करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए कि "आरंभ में शब्द था।" कोई "कैथलिक इतिहास” भी नहीं है, हालाँकि इतिहास को देखने का निश्चित रूप से एक कैथलिक तरीका है। आमतौर पर, इतिहासकार केवल अतीत की घटनाओं का वर्णन नहीं करते हैं। बल्कि, वे इतिहास के भीतर कुछ व्यापक विषयों और प्रक्षेप पथों की तलाश करते हैं। हममें से अधिकांश को शायद इसका एहसास भी नहीं है क्योंकि हम एक उदार लोकतांत्रिक संस्कृति के भीतर पले-बढ़े हैं, लेकिन हम स्वाभाविक रूप से ज्ञानोदय को इतिहास के निर्णायक मोड़ के रूप में देखते हैं, विज्ञान और राजनीति में महान क्रांतियों का समय जिसने आधुनिक दुनिया को परिभाषित किया। इस बात पर कोई संदेह नहीं कर सकता कि ज्ञानोदय एक महत्वपूर्ण क्षण था, लेकिन कैथलिक निश्चित रूप से इसे इतिहास के चरमोत्कर्ष के रूप में नहीं देखते हैं। इसके बजाय, हमारा मानना है कि धुरी बिंदु वर्ष 30 ईस्वी के आसपास यरूशलेम के बाहर एक गंदी पहाड़ी पर था, जब रोमियों द्वारा एक युवा रब्बी को यातना देकर मार डाला जा रहा था। हम हर चीज़ की - राजनीति, कला, संस्कृति, आदि - की व्याख्या ईश्वर के पुत्र के बलिदान के दृष्टिकोण से करते हैं। 2006 के अपने विवादास्पद रेगेन्सबर्ग संबोधन में, दिवंगत पोप बेनेडिक्ट ने तर्क दिया कि देह-अवतार के सिद्धांत के कारण ही ईसाई धर्म, संस्कृति के साथ एक जीवंत बातचीत में प्रवेश कर सकता है। हम ईसाई यह दावा नहीं करते हैं कि येशु कई लोगों में से एक दिलचस्प शिक्षक थे, बल्कि ईश्वर के वचन, मन या विवेक ने येशु के रूप में देहधारण किया था। तदनुसार, जो कुछ भी वचन या विवेक द्वारा चिह्नित है वे सभी ईसाई धर्म का स्वाभाविक मौसेरा भाई है। विज्ञान, दर्शन, साहित्य, इतिहास, मनोविज्ञान - यह सब - ईसाई धर्म में पाया जाता है, इसलिए, एक स्वाभाविक संवाद (वह शब्द फिर से है!) का भागीदार भी है। यह बुनियादी विचार है, जो पापा रत्ज़िंगर (बेनेडिक्ट सोलहवें) को बहुत प्रिय है, जो कैथलिक स्कूलों के स्वभाव को सर्वोत्तम रूप से सूचित करता है। और यही कारण है कि उन स्कूलों का फलना-फूलना न केवल कलीसिया के लिए, बल्कि हमारे पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण है।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
Moreउस रास्ते की खोज करें जो पृथ्वी पर आपका जीवन शुरू होने से पहले ही आप केलिए निर्धारित किया गया है, और आपका जीवन कभी पहले जैसा नहीं रहेगा। पूर्णता, या सही दिशा, एक नारा है जिसे, जब अपने बच्चों केलिए सुधार की आवश्यकता होती है, तब मैं अक्सर प्रयोग करता हूँ। वे हताश होकर मुझसे यह तर्क करते थे कि आप हमसे परिपूर्णता की उम्मीद करते हैं। मैं जवाब में उन्हें बोलता हूं कि "मैं पूर्णता की मांग नहीं कर रहा हूं, मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि आप लोग सही दिशा में आगे बढ़ें।" ईश्वर की अपेक्षा मेरे लिए यह उनके हृदय की विनम्रता को दर्शाता है। यदि मेरा कोई बच्चा स्वीकार करता है कि उसने गलत चुनाव किया है और उनके कार्य उन मूल्यों के विरुद्ध हैं जिन्हें हम सच्चा और सही मानते हैं, तो उसके मुंह से, 'मुझे पता है कि मैं गलत था, और मुझे खेद है, चीजों को बेहतर बनाने केलिए मैं क्या कर सकता हूं?' ऐसे सरल शब्द क्षमा करने और एकता बहाल करने का सबसे तेज़ तरीका है। हालाँकि, अगर वे तर्क देते हैं कि हमारे घर के स्थापित नियमों की अवज्ञा करना या उन नियमों से हटकर कुछ करना उन केलिए ठीक था, तो संबंध परक अलगाव की अवधि और परिणामों की संख्या स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। येशु के साथ हमारे चलने में भी ऐसा ही है। हमें दस आज्ञाओं में ईश्वर की अपेक्षाएँ दी गई हैं, और येशु ने पर्वत पर उपदेश (संत मत्ती 5-7) में इन्हें स्पष्ट किया है। और यदि इतना पर्याप्त नहीं है, तो संत पौलुस, संत पेत्रुस और अन्य प्रेरितों ने अपने सभी पत्रों में ईश्वर के आदेशों को बहुत ही ठोस तरीके से दोहराया है। आप देख सकते हैं, हमारे पास इस से बचने का कोई रास्ता नहीं है। संपूर्ण मानवता केलिए सही दिशा पुर्णतः स्पष्ट कर दी गई है। यह सब बहुत स्पष्ट है। हम या तो ईश्वर का मार्ग चुनते हैं या विद्रोह में उसके विरुद्ध लड़ते हैं। और इसलिए, हमें एक ऐसा समाज दिखाई देने लगा है जो पवित्र धर्मग्रंथों को विकृत करने और अपनी शारीरिक वासनाओं से पूर्ण अपराध बोध को तृप्त करने केलिए ईश्वर की आज्ञाओं को तोड़ मरोड़ करने पर अमादा है। हम ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं या ऐसे समय का सामना कर रहे हैं, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था, जहां कई लोग ईश्वर की सच्चाई से दूर हो गए हैं। वे आश्वस्त हो गए हैं कि यदि वे केवल कथानक् बदल देते हैं, तो वे किसी तरह निर्धारित परिणाम को टाल सकते हैं। दुर्भाग्य से, वे ईश्वर के तरीकों और उसके सत्य की वास्तविकता को गलत समझते हैं। मित्रो, यही कारण है कि सुसमाचार अब तक प्रकट किया गया सबसे सरल लेकिन समझ से बाहर का संदेश है। घुमाव और मोड़ अच्छी खबर यह है कि आपके अतीत, वर्तमान और भविष्य को माफ कर दिया गया है। हालाँकि, सही रास्ते पर बने रहने का संघर्ष जारी रखने केलिए हर दिन पश्चाताप और दृढ़ प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। सुसमाचार की सुंदरता यही है कि यद्यपि हम वह नहीं कर सकते जो मसीह ने अपने दुखभोग और पुनरुत्थान के माध्यम से किया, हम उनके कार्य का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जब हम उसके मार्ग के प्रति समर्पण कर देते हैं, तो वह हमें सही दिशा में ले जाता है। नए नियम में, येशु कहते हैं: "जब तक तुम्हारी धार्मिकता फरीसियों से आगे नहीं निकल जाती, तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते।" दूसरे शब्दों में, इस धरती पर अधिकांश धार्मिक लोग अपने कार्यों के माध्यम से ईश्वर के राज्य में प्रवेश करने केलिए पर्याप्त मात्रा में योग्य नहीं थे। पूर्णता इसका उत्तर नहीं है, और यह किसी रिश्ते केलिए आवश्यक नहीं है; लेकिन रिश्ते की पूर्णता केलिए विनम्रता की आवश्यकता है। जब आप मत्ती के 5 से 7 अध्यायों को पढ़ते हैं, तो आप पायेंगे कि इन अध्यायों में जो शिक्षा येशु ने हमारे सामने रखी है वह आपको बड़े असंभव कार्य जैसा लगेगा। अपनी वापसी का रास्ता खोजें मैं वर्षों से इनमें से कई उपदेशों का पालन करने में विफल रहा हूं, और फिर भी येशु हमें अप्राप्य नियमों के उत्पीड़न के तहत दफनाने केलिए ईश्वर के तरीके नहीं बता रहे थे। अपने आपको येशु के साथ चित्रित करें कि आप एक पहाड़ी की चोटी पर खड़े हैं जहाँ से एक बड़ी घाटी दिखाई देती है। वहाँ एक स्पष्ट पगडंडी हैं। हालाँकि, यह जंगलों, नदियों और अन्य प्राकृतिक विशेषताओं वाली जगहों से होकर जाता है। मत्ती 5-7 ऐसा ही है। यह पगडंडी है। लेकिन, येशु यह कहने के बजाय, 'ठीक है, बेहतर होगा कि तुम अपने रास्ते पर चलो,' वह आपको पवित्र आत्मा से परिचित कराता है, आपको दिशा निर्देश केलिए एक कम्पास (बाइबिल) देता है, और आपको याद दिलाता है कि वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा और नही आपको कभी त्यागेगा। फिर वह कहता हैं, “यदि आप विनम्र हैं, और आपका दिल मुझ पर केंद्रित रहता है, तो आप रास्ता ढूंढने में सक्षम होंगे, चाहे वह कितना भी मोड़ और घुमावदार क्यों न हो। और अगर ऐसा होता है कि आप खो जाते हैं या मेरे रास्ते के अलावा कोई और रास्ता चुनते हैं, तो आपको बस अपने दिल को विनम्र बनाना है और मुझे बुलाना है, और मैं आपको अपना रास्ता खोजने में मदद करूंगा। कुछ लोगों ने इसे दुनिया को अब तक का सबसे बड़ा घोटाला कहा है। स्वर्गवासी ईश्वर, जिसने जो कुछ हम देखते हैं और यहाँ तक कि जो कुछ हम नहीं देख सकते हैं, उन सबका वह सृष्टिकर्ता है, उसने अपनी सृष्टि को बचाने केलिए स्वयं को छोटा बना लिया। हमारे पास बस एक साधारण काम है। उसकी दिशा में आगे बढ़ें. मैं प्रार्थना करता हूं कि आज चाहे आप कहीं भी हो, और चाहे आपने कुछ भी किया हो, आप खुद को विनम्रतापूर्वक क्रूस के सामने झुकते हुए और उस रास्ते पर लौटते हुए पाएंगे जो ईश्वर ने इस धरती पर आपका समय शुरू होने से पहले आप केलिए निर्धारित किया था।
By: Stephen Santos
Moreनीलकंठन पिल्लई का जन्म सन 1712 ई. में दक्षिण भारत के एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता उच्च जाति के हिंदू थे। नीलकंठन के परिवार का स्थानीय राजमहल के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था, और नीलकंठन ने त्रावणकोर के राजा के लिए राजमहल के अधिकारी के रूप में राजमहल के बही खातों के प्रभारी बनकर सेवा की। 1741 ई. में त्रावणकोर और डच ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ी गई कोलचल की लड़ाई में, डच नौसैनिक सेनाध्यक्ष कप्तान यूस्ताचियुस डी लानोय को त्रावणकोर के राजा ने पराजित और कब्जा कर लिया। डी लानोय और उनके साथी सैनिकों को बाद में क्षमा कर दिया गया और उन्होंने त्रावणकोर सेना की सेवा की। आधिकारिक कार्यों ने नीलकंठन और डी लानोय को नज़दीक ला दिया और दोनों के बीच घनिष्ठ मित्रता बन गई। इस दौरान, नीलकंठन को कई दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदियों का सामना करना पड़ा, और वह संदेह और भय से मानसिक रूप से परेशान था। डी लानोय ने अपने मित्र को सांत्वना देते हुए अपने ख्रीस्तीय विश्वास के बारे में उसे विस्तार से बताया। बाइबल में अय्यूब की कहानी से नीलकंठन को बहुत दिलासा मिला, और डी लानोय के साथ बातचीत के कारण वह येशु मसीह के पास खींचा गया। नीलकंठन ने बपतिस्मा लेने का फैसला किया, हालांकि उन्हें पता था कि इस फैसले का मतलब होगा कि उन्हें अपनी सामाजिक रिश्तों का और राजा की सेवा का त्याग करना होगा। 14 मई 1745 को, 32 वर्ष की आयु में, नीलकंठन को कैथलिक कलीसिया में बपतिस्मा दिया गया। उन्होंने देवसहायम नाम अपनाया, जो बाइबिल में वर्णित लाजरुस नाम का तमिल अनुवाद था। देवसहायम ने अपने नए ख्रीस्तीय विश्वास को जीने में अपार आनंद का अनुभव किया और येशु के सच्चे शिष्य बनने का उन्होंने प्रयास किया। उन्होंने अपने मन परिवर्त्तन की कृपा के लिए हर दिन ईश्वर को धन्यवाद दिया और दूसरों के साथ अपने कैथलिक विश्वास को उत्सुकता से साझा किया। उन्होंने जल्द ही अपनी पत्नी और अपने कई सैन्य सहयोगियों को मुक्तिदाता येशु मसीह में विश्वास कबूल करने के लिए मना लिया। देवसहायम जाति व्यवस्था को नहीं मानते थे और तथाकथित "निम्न जाति" के लोगों को अपने समान मानते हुए उनके साथ बराबरी का व्यवहार करते थे। जल्द ही नीलकंठन के नए विश्वास का विरोध करने वाले राजमहल के अधिकारी उनके खिलाफ खड़े हो गए। उन्हें गिरफ्तार करने की साजिश रची गई। राजा ने देवसहायम से उनके ख्रीस्तीय धर्म को त्यागने के लिए कहा और उन्हें अपने दरबार में एक प्रमुख पद देने का वादा किया। लेकिन प्रलोभनों और धमकियों के बावजूद, देवसहायम अपने विश्वास पर अडिग रहे, इस से राजा और भी क्रोधित हो गए। देवसहायम के साथ एक अपराधी की तरह व्यवहार करते हुए अगले तीन वर्षों तक उन्हें अमानवीय यातनाएँ दी गयीं। उन्हें रोजाना कोड़े मारे जाते थे, और उनके घावों पर और नाक में मिर्च की बुकनी मली जाती थी। पीने के लिए केवल गंदा पानी दिया गया, हाथों को पीछे बांधकर उसे एक भैंस की पीठ पर बैठाकर राज्य के चारों ओर घुमाया गया – यही कुख्यात सजा गद्दारों के लिए दी जाती थी। राज्य की प्रजा के लिए यह एक संकेत था; ताकि लोगों को किसी भी प्रकार के धर्मांतरण से हतोत्साहित किया जाना था। देवसहायम ने बड़े धैर्य और ईश्वर में विश्वास के साथ अपमान और यातना को सहन किया। उनके सौम्य और दयालु व्यवहार ने सैनिकों को भी हैरान कर दिया। हर सुबह और रात वे प्रार्थना में समय बिताते थे और जो उनके पास आते थे, उन सभी को वे सुसमाचार सुनाते थे । जिन मंत्रियों ने देवसहायम के खिलाफ साजिश रची थी, उन्होंने उसे गुप्त रूप से मार डालने की अनुमति राजा से प्राप्त की। 14 जनवरी 1752 को, उन्हें एक सुनसान पहाड़ पर ले जाया गया। गोली मारने के लिए तैनात सैनिकों के दस्ते के सामने उन्हें खड़ा कर दिया गया। देवसहायम का एकमात्र अनुरोध था कि उन्हें प्रार्थना करने के लिए समय दिया जाय। सैनिकों ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया। जैसे ही उन्होंने प्रार्थना की, गोलियां चलीं और उन्होंने अपने होठों पर येशु और मरियम के नाम लेते हुए प्राण त्याग दिए। 260 वर्ष बाद, यानी 2 दिसंबर, 2012 को देवसहायम शहीद और धन्य घोषित किये गए। फरवरी 2020 में, पोप फ्रांसिस ने देवसहायम की मध्यस्थता द्वारा घटित एक चमत्कार को मान्यता दी और 15 मई, 2022 को, उन्हें संत घोषित किया गया। इस तरह वे भारत के पहले लोक धर्मी संत बन गए।
By: Shalom Tidings
Moreसत्य को खोजने की कोशिश करते समय यह एक अनवरत गाथा है, लेकिन एक त्वरित नवीनीकरण भी है जब सत्य स्वयं आपको खोज लेता है संत पिता बेनेदिक्त सोलहवें से एक बार पूछा गया कि अगर वे कभी खुद को एकांत टापू पर फंसा हुआ पाते हैं तो वे अपने साथ कौन सी किताब रखना चाहेंगे। उन्होंने बाइबिल के साथ-साथ संत अगस्टीन की किताब ‘कन्फेशंस’ को चुना। कुछ लोगों को यह विकल्प आश्चर्यजनक लगा होगा, लेकिन मैं इससे सहमत हूँ। चौथी या पाँचवीं बार यह पुस्तक को पढ़ने के बाद मैं स्वयं को उस किताब में मग्न होते हुए पाया। पुस्तक का पहला भाग विशेष रूप से आकर्षक है, जहां उनके परिवर्तन की कहानी लिखी गयी है। संत तेरेसा द्वारा लिखित ‘द स्टोरी ऑफ़ ए सोल’ की तरह यह पुस्तक कई बार पढ़ने के बाद एक बार फिर अत्यंत परिचित लगती है, फिर भी यह किताब हर बार किसी तरह नई रोशनी से भरी हुई लगती है। संत अगस्टीन हमें यह सिखाता है कि हम ऐसे किस चीज़ की खोज में जाएँ जो आध्यात्मिक विकास के लिए आधार बनाती है, अर्थात हम ‘आत्म-ज्ञान की प्राप्ति’ की खोज करें। अगस्टीन ईश्वर के अनुग्रह के कार्य के सूत्र का पता लगाता है, साथ ही साथ अपने स्वयं के पापीपन को, अपनी शुरुआती यादों से लेकर अपने परिवर्तन के समय तक की तथा उसके आगे तक की सच्चाई का पता लगाता है। यहाँ तक कि वह अपनी यादों से भी पीछे चला जाता है और लिखता है कि दूसरों ने उसे अपने बचपन के बारे में क्या बताया था। बचपन में सोते समय हंसने की आदत के बारे में उसका यह विवरण विशेष रूप से मजेदार और प्यारा लगता है। इसे चौथी या पांचवी बार पढ़ने के बाद, मैं कुछ चिंतन कर रहा हूँ जिसे इस छोटे से लेख में आपके साथ साझा करना चाहता हूँ। इसका संबंध उस पर अपनी युवावस्था के मित्रों के प्रभाव के बारे में है। अपने बच्चों के मित्रों के विषय में माता-पिता काफ़ी सतर्क नहीं हो पाते। हममें से बहुत से लोग, अपने पथभ्रष्ट साथियों के कारण और उनके द्वारा दिए गए प्रलोभन के कारण, अपनी युवावस्था में जो कुछ थोड़ा सा सद्गुण था, उससे दूर हो गए हैं। अगस्टीन भी इससे भिन्न नहीं था। चौथी शताब्दी की जीवन शैली आश्चर्यजनक रूप से हमारे समय की जीवन शैली के समान प्रतीत होती है। नाशपाती और दोस्त नाशपाती की चोरी वाली अगस्टीन का प्रसिद्ध वाकया इस बात को अच्छी तरह दर्शाता है। भले ही उसके घर पर बेहतर नाशपाती थी और वह भूखा नहीं था, वह किसी और के बाग से चोरी करने के फैसले के पीछे के तथ्य का पता करने के लिए अपनी स्मृति की जांच करता है। अधिकांश नाशपाती तो फेंककर सूअरों को दी गईं। वह उस समय पूरी तरह से जानता था कि वह जो कर रहां है वह अनुचित और अन्याय पूर्ण है। क्या उसने बुराई करने के लिए यूँ ही बुराई की? फिर भी, हमारा हृदय आमतौर पर इस तरह से प्रवृत्त नहीं होता है। हमारे अन्दर आमतौर पर पाप कुछ अच्छाई की विकृति है। इस मामले में, यह पाप बाग के मालिकों के आक्रोश पर विचार करते हुए एक प्रकार का उग्र सौहार्द और दोस्तों के समूह की उपहासपूर्ण खुशी के कारण किया गया था। यह सब विकृत दोस्ती की वजह से थी। अगस्टीन ने ऐसा कभी अकेले नहीं किया होता, बल्कि केवल इसलिए क्योंकि उसके साथियों ने उसे प्रेरित किया था। वह अपने दोस्तों को प्रभावित करके उन्हें खुश करने और उनकी नासमझ शरारतों में हिस्सा लेने के लिए बेताब था। मित्रता ईश्वर के महान उपहारों में से एक है, परन्तु पाप से विकृत हुई मित्रता के विनाशकारी प्रभाव हो सकते हैं। संत का वाक् पटु विलाप इसके खतरे को बेपर्दा करता है, “हे मित्रता, सब अमित्र! तू आत्मा का अनोखा मोहक और प्रलोभक है, जो आनंद और प्रचंडता के आवेगों से शरारत के लिए भूखा है, जो अपने स्वयं के लाभ या बदले की इच्छा के बिना दूसरे के नुकसान की लालसा रखता है - ताकि जब वे कहें, "चलो चलें, चलो कुछ करते हैं," हमें बेशर्म न होने पर शर्म आती है। (कन्फेशंस, पुस्तक II, 9)। कैद पाप से संबंधित एक समान प्रतिमान है जो अगस्टीन की आत्मा के लिए घातक जहर बन जाएगा और जो उसके अनन्त विनाश का कारण बन सकता था। उस मित्रता के कारण वासना के पाप ने भी उसके दिल को जकड़ लिया जिसे वह मानव जीवन की "तूफानी संगति" कहता है। अपनी किशोरावस्था के दौरान उसके मित्रों में कामुकता को लेकर एक दुसरे से आगे निकलना मानो रिवाज बन गया था। वे अपने कारनामों की शेखी करते और एक दूसरे को प्रभावित करने के लिए अपनी अनैतिकता के वास्तविक पैमाने को भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते थे। अब उन्हें केवल एक ही चीज़ पर शर्म आती थी, वह थी मासूमियत और ब्रह्मचर्य। जब अगस्टीन सोलह साल का था, तब उसकी धार्मिक माँ ने उसे व्यभिचार से बचने और अन्य पुरुषों की पत्नियों से दूर रहने की सख्त चेतावनी दी थी। वह बाद में अपनी माँ की नसीहतों को अहंकारी तरीके से खारिज करने के बारे में लिखेगा, “ये मुझे स्त्रियों की युक्तियाँ जेसी दिखाई देती थीं, जिनका पालन करने में मैं लज्जित होता। प्रभु, ये युक्तियाँ तेरी ओर से थीं, मैं यह नहीं जान पा रहा था” (कन्फेशंस पुस्तक II, 3)। शारीरिक सुख की वासना के एक या दो पापों से जो शुरू हुआ, वह जल्द ही एक आदत बन गयी, और दुख की बात है कि अगस्टीन के लिए, यह बुरी आदत बाद में एक आवश्यकता की तरह लगने लगी। अपने दोस्तों के सामने शेखी बघारने और उनकी स्वीकृति पाने के लिए शुरू की गयी बुरी आदतों ने आखिरकार उसकी इच्छा को जकड़ लिया और उसके जीवन पर कब्ज़ा कर दिया। दूसरों को प्रभावित करने की व्यर्थ लालसा के द्वारा, वासना के दानव ने उसकी आत्मा के सिंहासन कक्ष में प्रवेश कर लिया था। सत्य की चाह उन्नीस साल की उम्र में “सिसरो” को पढ़ने के बाद, बौद्धिक खोज की कृपा प्राप्त अगस्टीन के दिल में ज्ञान की खोज करने की इच्छा जागृत हुई। इस आवेशपूर्ण खोज उसे बुराई की समस्या पर लंबे समय तक विचार करने के लिए दर्शनशास्त्र और ज्ञानवाद की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन की ओर ले गयी। इस दौरान, यह यात्रा उस यौन अनैतिकता के समानांतर चलती रही जिसने उसके जीवन को अपनी चपेट में ले लिया था। ऊपर की ओर निहारकर उसका मन प्रकाश पाने के लिए टटोल रहा था, लेकिन उसकी इच्छा अभी भी पाप की कीचड़ में धँसी हुई थी। इस यात्रा का अंत लगभग बत्तीस वर्ष की आयु में हुआ, जब उसके भीतर दोनों प्रवृत्तियाँ हिंसक रूप से आपस में टकराईं। यह संघर्ष अब उसके अनन्त भाग्य का निर्धारण करेगा - और क्या वह मसीहियों की आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रकाश बन जाएगा या बस उग्र आंतरिक नरक में समाप्त होनेवाले अंधेरे में गायब हो जाएगा? महान संत अम्ब्रोस के उपदेशों को सुनकर और संत पौलुस के पत्रों को पढ़ने के बाद, उसके मन में कोई और संदेह नहीं हो सकता था कि केवल कैथलिक चर्च में ही उसे वह सत्य मिलेगा जिसकी उसने हमेशा तलाश की थी। अब उसे यह स्पष्ट हो गया था कि येशु मसीह उसके दिल की सच्ची अभिलाषा थी, फिर भी जिस वासना ने उसके दिल को पाप की कैद में बंद कर दिया था, वह उस वासना की जंजीरों को तोड़ने के लिए शक्तिहीन था। वह सत्य के सामने इतना ईमानदार था कि वह यह सोच भी नहीं सकता था कि गंभीर पाप के बदले में मरने की इच्छा किये बिना वह कभी भी मसीही जीवन में आ सकता है। युद्ध और मुक्ति उसकी आत्मा के लिए युद्ध का फैसला करने वाली वह अंतिम लड़ाई तब हुई जब उसने अपने दोस्तों के साथ कुछ उत्साही रोमियों के बारे में चर्चा की। उन रोमियों ने मसीह का अनुसरण करने के लिए सब कुछ पीछे छोड़ दिया था। (अब अच्छे मित्रों की उपस्थिति जवानी की गलतियों को सही करने लगी थी।) संतों के उदाहरण का पालन करने की पवित्र इच्छा ने अगस्टीन को जकड़ लिया, फिर भी वासना के प्रति लगाव के कारण पवित्रता में आने में असमर्थ होने से, भावुक होकर, वह घर से भागकर बाहर बगीचे में आया। एकांत की जगह की तलाश में, उसने पश्चाताप और आंतरिक निराशा के आँसुओं को अंततः स्वतंत्र रूप से बहने दिया। वे शुद्धीकरण के आंसू साबित होने वाले थे। आखिर वह क्षण आ ही गया जब वह सब कुछ त्यागने के लिए तैयार हो गया। उसने पाप पर से अपनी पकड़ को हमेशा के लिए छुड़ाने का निर्णय लिया। जैसे ही इस पवित्र आध्यात्मिक अभिलाषा ने शारीरिक सुख के लिए उसकी अत्यधिक इच्छा पर काबू पाया, उसने एक बच्चे की आवाज को बार-बार गाते हुए सुना, "लो और पढ़ो।" उसने शिशुओं के होठों पर रखी गयी सर्वशक्तिमान ईश्वर की आज्ञा के रूप में इसकी व्याख्या की। संत पौलुस के पत्रों की पुस्तक जिसे उसने घर के अन्दर मेज पर छोड़ दिया था, उसे लेने के लिए, वापस घर के अन्दर की ओर भागते हुए उसने खुद से कहा कि वह अपने जीवन के लिए ईश्वर की इच्छा की अभिव्यक्ति के रूप में जो भी शब्द पहले देखेगा, उसे स्वीकार करेगा। उसने पत्र की पुस्तक को खोला तो यह पढ़ा, “हम दिन के योग्य सदाचरण करें। हम रंगरलियों और नशेबाजी, व्यभिचार और भोगविलास, झगड़े और ईर्ष्या से दूर रहें। आप लोग प्रभु येशु मसीह को धारण करें और शरीर की वासनाएं तृप्त करने का विचार छोड़ दें।” (रोमियों 13:13-14) विजय बाइबिल के इन शब्दों के साथ उनकी आत्मा में अलौकिक प्रकाश का संचार हुआ। वास्तव में पहली बार, उद्धार पाने की अभिलाषा के कुछ ही क्षणों के बाद, उसका उद्धार आ चुका था। जिन जंजीरों ने उसकी इच्छा को इतने लंबे समय तक जकड़ रखा था, उसे उस जुनून भरी वासना के प्रचंड आधिपत्य के अधीन कर लिया था, वह मुक्तिदाता येशु मसीह की कृपा से टुकड़े-टुकड़े हो गई थी। उसकी तड़पती हुई आत्मा को तुरंत आनंद, शांति और ईश्वर की संतानों की स्वतंत्रता में प्रवेश करने की अनुमति मिल गई। पूरी कलीसिया के लिए वह महत्वपूर्ण घड़ी थी क्योंकि जो व्यक्ति किसी समय युवावस्था में दुर्भाग्यपूर्ण संगत के चलते वासना का गुलाम था, उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी, और अब तक के सबसे प्रभावशाली संतों में से एक को अचानक जीवन प्राप्त हो रहा था। वर्षों बाद पीछे देखते हुए, संत अगस्टीन को यह विश्वास करना कठिन लग रहा था कि वह कभी ऐसी तुच्छ बातों केलिए प्रभु से और मसीह में दी जाने वाली परमानंद की खुशी से स्वयं को दूर रखने की अनुमति कैसे दे सकता था। पहले वह एक ऐसे व्यक्ति की तरह था जो बेकार के गहनों से बुरी तरह चिपका हुआ था, जबकि उसके सामने बेशकीमती खजाना रखा हुआ था। उस दिन जो हुआ उसके स्मरणीय महत्व के बारे में बताते हुए प्रोटेस्टेंट विद्वान आर.सी. स्प्राउल ने सभी ईसाइयों की आम सहमति को सारांशित किया, "यदि कोई महान है जो कलीसिया के इतिहास में उस व्यक्ति के रूप में खड़ा है, जिसके कंधों पर धर्मशास्त्र का पूरा इतिहास खड़ा है, तो वह एक ही आदमी है जिसका नाम औरेलियस अगस्टीन, यानि संत अगस्टीन है।
By: Father Sean Davidson
Moreक्या स्वर्गदूत वास्तव में मौजूद हैं? पेश है एक ऐसी कहानी जो आपको मंत्रमुग्ध कर देगी। जब मैं हाई स्कूल में थी, मैं फरिश्तों और स्वर्गदूतों की कहानियाँ पढ़कर रोमांचित होती थी। मैंने अपने द्वारा पढ़ी गई उन कहानियों को दोस्तों और साथी छात्रों के साथ साझा करने की हिम्मत की, जो ये कहानियां सुनकर खुश और उत्सुक होते थे। मेरी उम्मीद से परे, एक लड़के ने विशेष दिलचस्पी दिखाई। एक बार जब हम बच्चे स्कूली बस में सवार हुए थे, और बस बच्चों से भरा हुआ था, वह गुंडई कर रहा था, अपशब्द बोलकर गलत व्यवहार कर रहा था। लेकिन जैसे ही अन्य छात्र चले गए और हम दोनों ही बस में रह गए थे, उसने मेरी ओर मुड़कर कहा, "क्या तुम मुझे फरिश्तों की कोई कहानी सुना सकती हो?" मैंने सोचा कि इसे कुछ आशा देने और स्वर्ग के बारे में बताने का यह मेरे लिए एक बढ़िया मौका होगा, और शायद उस लड़के को ठीक उसी समय इसकी बड़ी ज़रुरत थी। उन्हीं दिनों, मेरे एक बहुत ही अच्छे शिक्षक थे जिन्होंने मेरे साथ एक अविस्मरणीय कहानी साझा की थी। उनका एक दोस्त एक अंधेरी गली में घबराते हुए चल रही थी और ईश्वर से सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसने अचानक देखा कि एक आदमी एक एकांत स्थान में खड़े होकर उसे गौर से देख रहा है। जैसे ही उसने और अधिक तीव्रता से प्रार्थना की, वह आदमी उसकी ओर बढ़ा, लेकिन थोड़ी देर रुक गया, फिर अचानक पीछे हट गया और अपना चेहरा दीवार की ओर कर लिया। बाद में उसे पता चला कि उस जगह से उसके गुजरने के एक घंटे बाद उसी गली में एक युवती पर हमला किया गया था। यह सुनकर वह पुलिस के पास गई और उन्हें बताया कि उसने दूसरी महिला पर हमले से कुछ देर पहले ही उसी गली में किसी को देखा था। पुलिस ने उसे सूचित किया कि उनके पास हिरासत में कुछ संदिक्त लोग हैं और उससे पूछा कि क्या वह उन संदिग्धों की कतार को देखकर उस आदमी को पहचान कर लेगी। वह आसानी से सहमत हो गई। निश्चित रूप से उन संदिग्धों में वह आदमी था जिसे उसने गली में देखा था। बाद में उस युवती ने पुलिस से उस आदमी से बात करने की अनुमति मांगी और उसे उस आदमी के कमरे में ले जाया गया। जैसे ही उसने प्रवेश किया, वह आदमी खड़ा हो गया और पहचान की दृष्टि से उसे देखने लगा। "क्या तुम मुझे पहचानते हो?" उसने पूछा। उस आदमी ने सहमति में सिर हिलाया। "हाँ। मैंने तुम्हें वहाँ गली में देखा था ।” उस महिला ने हिम्मत के साथ आगे सवाल किया। "तुमने दूसरी महिला के बजाय मुझ पर हमला क्यों नहीं किया?" उसने असमंजस में उसकी ओर देखा। "क्या तुम मेरे साथ मजाक कर रही हो?" उसने कहा, " तुम्हारे आजू बाजे में दो हट्टे कट्टे लोग चल रहे थे, और मैं तुम पर कैसे हमला कर पाता?" शायद आपको लगे कि यह कहानी मौलिक न हो, लेकिन मुझे यह कहानी पसंद आई। मेरे उस शिक्षक ने मुझे याद दिलाया कि हमारे बचपन से हम रखवाल दूत की बात सुनते आ रहे हैं, वह सिर्फ सुकून देने वाला कोई विचार या सुखद कल्पना नहीं हैं, वे रखवाल दूत और फ़रिश्ते असली हैं। वे शक्तिशाली और वफादार हैं। और उन्हें हमारी निगरानी करने और हमें परमेश्वर की संगति देकर हमारी रक्षा करने के लिए नियुक्त किया गया है। लेकिन क्या हम अपने इन छिपे हुए मित्रों को हल्के में लेते हैं? और जब हमें वास्तव में उनकी आवश्यकता होती है, तब क्या हम उन पर भरोसा करते हैं? अपने पसंदीदा संतों में से एक, संत पाद्रे पियो से, मैंने अपने रखवाल दूत के बारे में अधिक बार सोचना और उनसे खुलकर बात करना सीखा। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं था कि मेरा रखवाल दूत पहले से ही कड़ी मेहनत कर रहा था और मेरी ओर से आध्यात्मिक लड़ाई लड़ रहा था, लेकिन एक दिन मैंने उसकी उपस्थिति को शक्तिशाली रूप से अनुभव किया। मैं सत्रह साल की थी, मेरी बस छूट गई थी, और सर्द मौसम के बावजूद, मैंने अपनी बड़ी, लेकिन जाड़े के दिनों में ठण्ड और बर्फ के दिनों में अति संवेदनशील कार से स्कूल जाने का फैसला किया। एक ऊंची, ग्रामीण पहाड़ी पर गाड़ी चलाते समय, कार धीमी होने लगी। मैंने गैस पेडल को एकदम नीचे तक दबाया लेकिन कार केवल रेंगती रही। आस-पास कोई घर नहीं था और मेरे पास मोबाइल फोन नहीं था। अगर कार का ब्रेकडाउन हो जाता, तो मुझे किसी प्रकार की मदद के लिए ठंड के मौसम में लंबी सैर करनी पड़ती। मुझे याद आया कि सड़क से एक मील या उससे भी कम दूरी पर एक रेस्तरां था और मैं इस उम्मीद में थी कि अगर मैं किसी तरह अपने कार से इस पहाड़ी को पार करती, तो मेरे पास रेस्तरां तक पहुंचने के लिए ढलान से पर्याप्त गति मिल सकती है। लेकिन कार धीमी हो गई और मुझे पता था कि कोई संभावना नहीं है कि मैं इसे पहाड़ी को पार कर लूंगी। "ठीक है, रखवाल दूत!" मैंने जोर से कहा। "मैं चाहती हूं कि तुम इस कार को धक्का देकर मुझे पहाड़ी के ऊपर तक पहुंचा दो। कृपया, मुझे पहाड़ी के ऊपर तक पहुंचा दो।" कार तेज हो गई। मुझे इसकी गति में अंतर महसूस हुआ, इसलिए मैंने अपने स्वर्गदूत को प्रोत्साहित किया, “हाँ, लगभग पहुँच गए! चलो बढ़ते रहो! कृपया धक्का देते रहो।" कार ऊपर की ओर बढ़ती रही और किसी तरह चोटी पर जा पहुँची। मैं ने पहले कार को तेजी से आगे बढ़ाकर नीचे की ओर उतरना शुरू किया लेकिन जल्द ही गति कम हुई। मैंने दूर से रेस्तरां देखा और मैं अपने रखवाल दूत से कार को धक्का देते रहने की भीख मांगती रही, हालाँकि मुझे नहीं लगा कि मैं रेस्तरां तक पहुँच पाऊँगी। लेकिन कार को नई गति मिली, बस वह गति पर्याप्त थी, और मैं रेस्तरां की कांच की खिड़की के सामने वाली पार्किंग में जगह निकाल ली। फिर, मानो कि उसे कोई इशारा मिल गया हो, कार बंद हो गई। मैं सोचने लगी, "क्या वह एक संयोग था? मैं आभारी हूं कि सब कुछ इस तरह संभव हुआ।” उसी समय मेरे मन में यह सवाल उठने लगा, “क्या यह वास्तव में मेरे रखवाल दूत का हस्तक्षेप था?" फिर मैंने ऊपर देखा और मैंने रेस्तरां की खिड़की से पीछे की दीवार पर रखवाल दूत की एक विशाल पेंटिंग देखी। यह वह पेंटिंग थी जिसे मैं बचपन से प्यार करती आयी थी, जिसमें दो बच्चों को, उनके रखवाल दूत की चौकस सुरक्षा के तहत, एक खतरनाक पुल को पार करते हुए दिखाया गया है। मैं अभिभूत थी। मुझे बाद में पता चला कि ठण्ड के कारण मेरी कार की ईंधन लाइन पूरी तरह से जम गई थी, इसके बावजूद मैं एक सुरक्षित स्थान पर पहुँच गयी, यही मेरे लिए बड़े आश्चर्य की बात थी। हो सकता है कि मेरी कहानी मेरे शिक्षक की अविश्वसनीय कहानी जैसी उतनी नाटकीय न हो, लेकिन इस घटना से मेरे विश्वास की पुष्टि हुई कि हमारे रखवाल दूत हम पर नज़र रखते हैं, और हमें मदद मांगने में कभी संकोच नहीं करना चाहिए - भले ही ज़रूरत पड़ने पर यह छोटा सा धक्का ही क्यों न हो। मेरा मानना है कि इस तरह की कहानियों को साझा करना, उदाहरण के लिए संतों की कहानियों को साझा करना, सुसमाचार की घोषणा करने का एक शक्तिशाली तरीका है। रखवाल दूत हमें आश्वासन देते हैं कि हम अकेले नहीं हैं, कि हमारे पास एक पिता है जो हमें इतना प्यार करता है कि हमारी देखभाल करने के लिए वह हमारी जरूरत के समय में रखवाल दूत और फ़रिश्ते रूपी प्यारे सहयोगियों को हमें सौंप सकता है।
By: Carissa Douglas
Moreशालोम टाइडिंग्स के अतिथि संपादक, ग्राज़ियानो मार्चेस्की द्वारा धन्य कार्लो एक्यूटिस की मां एंटोनिया साल्ज़ानो के साथ एक विशेष साक्षात्कार सात साल की उम्र में उसने लिखा, "हमेशा येशु के करीब रहना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है।" जब वह पंद्रह वर्ष का था, तब तक वह उस प्रभु के घर जा चुका था, जिससे उसने अपने सम्पूर्ण लघु जीवन में अथाह प्रेम किया था। बीच में है, असाधारण रूप से एक साधारण लड़के की अनोखी और असाधारण कहानी । साधारण, क्योंकि वह कोई ख्याति प्राप्त एथलीट नहीं था, न ही कोई खूबसूरत फिल्म सितारा, न ही कोई बुद्धिशाली विद्वान, उसने स्नातक की डिग्री तक हासिल की हो, जब उसकी उम्र के अन्य बच्चे जूनियर-हाई स्कूल की पढ़ाई से संघर्ष कर रहे हो। वह एक सुशील लड़का था, एक शालीन बच्चा। निश्चित रूप से बहुत ही उज्ज्वल: नौ साल की उम्र में उसने कंप्यूटर प्रोग्रामिंग स्वयं सीखने के लिए कॉलेज की पाठ्यपुस्तकें पढ़ीं। लेकिन उसने न तो कोई पुरस्कार जीता और न ही लोगों को ट्विटर पर प्रभावित किया। उसके आसपास के लोगों को बिलकुल पता नहीं था कि वह कौन है - अपने माता-पिता के साथ उत्तरी इटली में रहने वाला उनका एकमात्र बेटा, जो स्कूल जाता था, खेल खेलता था, अपने दोस्तों के साथ आनंद लेता था, और जो जोयस्टिक के माध्यम से डिजिटल गेम खेलता था। विशिष्ट नहीं, लेकिन असाधारण बहुत छोटी उम्र में उसे ईश्वर से प्यार हो गया और तब से, एक विलक्षण एकाग्रता के साथ, ईश्वर के प्रति बड़ी भूख के साथ वह रहता था जिसे बहुत ही कम लोग कभी प्राप्त करते हैं। और जब तक उसने इस दुनिया को छोड़ा, तब तक उसने इस पर एक अमिट छाप छोड़ी। वह हमेशा एक मिशन पर केन्द्रित था, उसने कोई समय बर्बाद नहीं किया। उसने जो देखा, उसे अन्य लोग नहीं देख सके, यहाँ तक कि उसकी माँ ने भी नहीं देखा, ऐसे में उसने उनकी आँखें खोलने में मदद की। ज़ूम के माध्यम से, मैंने उसकी मां, एंटोनिया साल्ज़ानो का साक्षात्कार लिया, और ईश्वर के प्रति उसकी भूख को समझाने के लिए कहा, जिसे पोप फ्रांसिस ने भी "अनमोल भूख" के रूप में वर्णित किया था। "यह मेरे लिए एक रहस्य है," उस की माँ ने कहा। "लेकिन कई संतों के जीवन में कम उम्र में ही ईश्वर के साथ उनका विशेष संबंध था, भले ही उनका परिवार धार्मिक न हो।" जब कार्लो साढ़े तीन साल का था, तब वह अपनी माँ को मिस्सा पूजा में भाग लेने के लिए मज़बूर करता था, जबकि उसके पूर्व कार्लो की माँ अपने जीवन में केवल तीन बार मिस्सा जाने की बात कहती है। साल्जानो एक पुस्तक प्रकाशक की बेटी है, वह कलाकारों, लेखकों और पत्रकारों से प्रभावित थी, न कि संत पापा या संतों से। उसे विश्वास के मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं थी और अब कहती है कि उसे "भेड़" के बजाय "बकरी" बनना था। लेकिन फिर यह अद्भुत लड़का आया जो "हमेशा आगे दौड़ता रहा - वह तीन महीने की उम्र में अपना पहला शब्द बोला, उसने पाँच महीने में बात करना शुरू किया, और चार साल की उम्र में लिखना शुरू किया।" और विश्वास के मामले में, वह अधिकांश वयस्कों से भी आगे था। तीन साल की उम्र में, उसने ऐसे प्रश्न पूछना शुरू कर दिया - संस्कारों, पवित्र त्रीत्व, आदि पाप, पुनरुत्थान आदि के बारे में बहुत सारे प्रश्न - जिनका उत्तर उसकी माँ नहीं दे सकती थी। एंटोनिया ने कहा, "इससे मेरे अंदर एक संघर्ष पैदा किया, क्योंकि मैं खुद तीन साल के बच्चे की तरह अज्ञानी थी।" कार्लो की आया, जो पोलैंड की मूल निवासी थी, उसके सवालों का बेहतर जवाब देने में सक्षम थी और अक्सर उसके साथ विश्वास के मुद्दों पर बात करती थी। साल्ज़ानो के शब्दों में उसके बेटे के सवालों का जवाब देने में उसकी असमर्थता, "एक अभिभावक के रूप में मेरे अधिकार को कम कर दिया।" जिस तरह की भक्ति के कार्यों को साल्जानो ने कभी अभ्यास नहीं किया था, जैसे संतों का आदर करना, धन्य माँ मरियम की मूर्ती के सामने फूल सजाना, गिरजाघर में क्रूस और परम प्रसाद की मंजूषा के सम्मुख घंटों बिताना; कार्लो इन सभी भक्ति के कार्यों में शामिल होना चाहता था। अपने बेटे की असाधारण आध्यात्मिकता से कैसे निपटा जाए, इस बात को लेकर वह असमंजस में थी। एक यात्रा की शुरुआत दिल का दौरा पड़ने से एंटोनिया के पिता की अप्रत्याशित मृत्यु हुई। इसके बाद ही उसे मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में अपने ही प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित किया। फिर, एक बुजुर्ग पवित्र पुरोहित फादर इलियो, जो बोलोग्ना के पाद्रे पियो के नाम से जाने जाते हैं, उनसे वह एक मित्र के माध्यम से मिली। उन्होंने एंटोनिया को विश्वास की यात्रा करने के लिए प्रेरित किया, जिस पर कार्लो उसका प्राथमिक मार्गदर्शक बन जाता है। एंटोनियो द्वारा जीवन के सभी पापों को पापस्वीकार संस्कार में क़ुबूल करने से पहले ही फादर इलियो ने उसे इन पापों के बारे में बताया और उस के बाद उन्होंने भविष्यवाणी की कि कार्लो का एक विशेष मिशन है जो कलीसिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। आखिरकार, एंटोनिया ने ईशशास्त्र का अध्ययन करना शुरू कर दिया, लेकिन कार्लो ही है जिसे वह अपने "धर्मांतरण" का श्रेय देती है, उसे "अपना उद्धारकर्ता" मानती है। कार्लो के कारण, वह प्रत्येक पवित्र मिस्सा में होने वाले चमत्कार को पहचानने लगी। "कार्लो के माध्यम से मैंने समझा कि रोटी और दाखरस हमारे बीच ईश्वर की वास्तविक उपस्थिति बन जाती है। यह मेरे लिए एक शानदार खोज थी," उसने कहा। युवा कार्लो ने परमेश्वर के प्रति अपना प्रेम और परम प्रसाद के प्रति सम्मान को अपने तक ही सीमित नहीं रखा था। उसकी माँ ने कहा, "साक्षी बनना ही कार्लो की खासियत थी।"... हमेशा खुश, हमेशा मुस्कुराता हुआ, कभी उदास नहीं। कार्लो कहा करता था: 'उदासी का मतलब स्वयं की ओर देखना है; जबकि आनंद ईश्वर की ओर देखता है।" कार्लो ने अपने सहपाठियों और हर किसी में ईश्वर को देखा। एंटोनिया ने कहा, "क्योंकि वह ईश्वर के इस सान्निध्य से अवगत था, उसने इस सान्निध्य की गवाही दी।" प्रतिदिन पवित्र परम प्रसाद और दिव्य आराधना द्वारा पोषित होकर, कार्लो ने बेघरों की तलाश की, उन्हें कंबल और भोजन पहुंचाया। उसने उन सहपाठियों का बचाव किया जो साथियों द्वारा धमकाये और उत्पीडित किये जा रहे थे और उन सहपाठी लोगों की मदद की, जिन्हें गृहकार्य करने में सहायता की ज़रुरत थी। उसका एक लक्ष्य था "परमेश्वर के बारे में बोलना और दूसरों को परमेश्वर के करीब आने में मदद करना।" दिन को जब्त कर लो! शायद कार्लो को पता था कि उसका जीवन छोटा होगा, इसलिए उस ने समय का सदुपयोग किया। एंटोनिया ने कहा, "जब येशु आया, उसने हमें दिखाया कि कैसे समय बर्बाद नहीं करना है। येशु के जीवन का प्रत्येक क्षण परमेश्वर की महिमा थी।” कार्लो ने इस बात को अच्छी तरह से समझा और उसने वर्तमान में जीने के महत्व पर जोर दिया। उसने आग्रह किया, "दिन को जब्त कर लो! क्योंकि बर्बाद किया गया हर मिनट ईश्वर की महिमा करने के लिए नष्ट किया हुआ एक एक मिनट है।" यही कारण है कि इस किशोर ने वीडियो गेम खेलने केलिए प्रति सप्ताह केवल एक घंटे का समय बिताया! कार्लो के बारे में पढ़ने वाले कई लोगों ने उसके प्रति जो आकर्षण महसूस किया, वह उसके पूरे जीवन की विशेषता थी। उसकी माँ ने कहा "चूंकि वह एक छोटा लड़का था, लोग स्वाभाविक रूप से उसकी ओर आकर्षित होते थे - इसलिए नहीं कि वह एक नीली आंखों वाला, गोरा-बालों वाला बच्चा था, बल्कि इसलिए कि उसके अंदर कुछ ख़ास था। उसके पास असाधारण लोगों से जुड़ने का एक तरीका था।" स्कूल में भी वह लोकप्रिय था। "येशु समाजी फादर लोगों ने उसके इस गुण पर ध्यान दिया।" उसके सहपाठी उच्च और कुलीन वर्ग के प्रतिस्पर्धी बच्चे थे, जिनका फोकस उपलब्धि और सफलता पर ही केंद्रित था। "स्वाभाविक रूप से, सहपाठियों के बीच बहुत ईर्ष्या होती है, लेकिन कार्लो के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। उसने उन चीजों को जादू की तरह पिघला दिया; अपनी मुस्कान और हृदय की पवित्रता से उसने सभी को जीत लिया। उसमें लोगों के दिलों में जोश भरने, उनके ठंडे दिलों को प्रज्वलित करने की क्षमता थी।" उसके जीवन का राज़ येशु था। वह येशु से इतना भरा हुआ था, दैनिक मिस्सा बलिदान, मिस्सा से पहले या बाद में आराधना, और मरियम के निर्मल हृदय के प्रति भक्ति के साथ साथ उसने अपना जीवन येशु के साथ, येशु के लिए और येशु में बिताया। स्वर्ग का एक पूर्वाभास "वास्तव में, कार्लो ने अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किया," उसकी माँ ने कहा, "और इसने लोगों के उसे देखने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया। लोग समझ गए थे कि इस लड़के में कुछ खास है।" अजनबी, शिक्षक, सहपाठी, एक पवित्र पुरोहित, सभी ने इस लड़के में कुछ अनोखी बात को पहचाना। और वह विशिष्टता परम पवित्र संस्कार के प्रति उसके प्रेम में सबसे अधिक स्पष्ट थी। कार्लो कहता था, "जितना अधिक हम परम प्रसाद ग्रहण करते हैं, उतना अधिक हम येशु के समान बनेंगे, इस तरह हमें पृथ्वी पर स्वर्ग का स्वाद मिलेगा।" उसने अपने पूरे जीवन में स्वर्ग की ओर देखा और वह कहता था कि परम प्रसाद उसका "स्वर्ग का राजमार्ग ... हमारे पास उपलब्ध सबसे अलौकिक चीज" था। एंटोनिया ने कार्लो से सीखा कि परम प्रसाद आध्यात्मिक पोषण है जो ईश्वर और पड़ोसी से प्रेम करने की हमारी क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है - और पवित्रता में विकसित होता है। कार्लो कहा करता था "जब हम सूर्य का सामना करते हैं तो हमारे त्वचा का रंग बदलता है, लेकिन जब हम परम पवित्र संस्कार में येशु के सामने खड़े होते हैं तो हम संत में बदल जाते हैं।" कार्लो की सबसे प्रसिद्ध उपलब्धियों में से एक उसकी वेबसाइट है, जो विश्व के सम्प्पोर्ण इतिहास में परम प्रसाद के चमत्कारों का वर्णन करती है। इसी वेबसाइट से विकसित एक प्रदर्शनी, यूरोप से जापान तक, अमेरिका से चीन तक, दुनिया की यात्रा करना जारी रखी हुई है। प्रदर्शनी में आगंतुकों की अद्भुत संख्या के अलावा, कई चमत्कारों का दस्तावेजीकरण किया गया है, इनमे सबसे महत्वपूर्ण चमत्कार यही है कि इसके द्वारा बहुत सारे लोग फिर से संस्कारों को अपनाने और परम प्रसाद को ग्रहण करने केलिए प्रेरित किये गये हैं। घटाव की प्रक्रिया कार्लो को धन्य घोषित किया गया है और उसको संत घोषित किया जाना सुनिश्चित है। बस एक दूसरे चमत्कार का प्रमाणीकरण ही बाकी है। लेकिन एंटोनिया ने यह भी बताया कि कार्लो चमत्कारों के कारण नहीं बल्कि उसके पवित्र जीवन के कारण संत घोषित किया जाएगा। पवित्रता किसी के जीवन की गवाही द्वारा निर्धारित की जाती है कि उस व्यक्ति ने सद्गुणों को - विश्वास, आशा, दान, विवेक, न्याय, संयम और धैर्य को - कितनी अच्छी तरह जीया। कैथलिक चर्च की धर्म शिक्षा "गुणों को वीरता से जीने" की परिभाषा इस प्रकार देती है: 'अच्छे कार्य करने के लिए एक आदत और दृढ़ स्वभाव' - वही स्वभाव एक संत बनाता है।" और कार्लो ने ठीक यही करने का प्रयास किया। वह बहुत ज्यादा बात करता था, इसलिए उसने कम बोलने की कोशिश की। जब कभी उसने देखा कि भोजन के प्रति उसका आकर्षण बढ़ रहा है, तब वह कम खाने का प्रयास करता। रात में, सोने से पहले उसने दोस्तों, शिक्षकों, माता-पिता के साथ अपने व्यवहार के बारे में अपनी अंतरात्मा की जांच की। उसकी माँ ने कहा, "वह समझ गया कि मन परिवर्तन जोड़ने की प्रक्रिया नहीं है बल्कि घटाव की प्रक्रिया है।" इतने कम उम्र के बालक केलिए इतना गहन अंतर्दृष्टि! और इसलिए कार्लो ने अपने जीवन से हर लघुपाप के हर निशान को खत्म करने के लिए भी काम किया। वह कहा करता था, "मैं नहीं, बल्कि ईश्वर... मुझे घटने की जरूरत है ताकि मैं ईश्वर को रहने केलिए और जगह छोड़ सकूं।" इस प्रयास ने उसे इस बात का अहसास कराया कि सबसे बड़ी लड़ाई खुद से होती है। एक सवाल उसके सबसे प्रसिद्ध उद्धरणों में से ख़ास है, "यदि आप एक हजार लड़ाई जीतते हैं, लेकिन अपने स्वयं के भ्रष्ट जुनूनों के खिलाफ नहीं जीत सकते, तो इससे क्या फायदा है?" एंटोनिया ने कहा, “हमें आध्यात्मिक रूप से कमजोर बनाने वाले उन दोषों को दूर करने का प्रयास हृदय की पवित्रता है। जब कार्लो छोटा था, वह जानता था कि "आदि पाप के कारण हमारे अंदर की भ्रष्ट प्रवृत्ति का विरोध करने के हमारे प्रयास के पीछे पवित्रता है।" एक डरावनी अंतर्दृष्टि बेशक, अपने इकलौते बच्चे को खोना एंटोनिया के लिए एक भारी क्रूस धोना जैसा अनुभव था। लेकिन सौभाग्य से, जब तक कार्लो की मृत्यु हुई, तब तक एंटोनिया अपने विश्वास में वापस आ गई थी और यह जान चुकी थी कि "मृत्यु ही सच्चे जीवन का मार्ग है।" वह कार्लो को खो देगी, इस सत्य को जानने के झटके के बावजूद, अस्पताल में अपने बेटे के साथ बिताये गए समय के दौरान उसके अंदर जो शब्द गूंजते थे, वे अय्यूब की किताब से थे: "प्रभु ने दिया था, प्रभु ने ले लिया। धन्य है प्रभु का नाम !" (अय्यूब 1:21)। कार्लो की मृत्यु के बाद, एंटोनिया को अपने बेटे के कंप्यूटर पर उसके द्वारा बनाई गई एक वीडियो दिखाई दी। हालांकि उस समय उसे अपने ल्यूकेमिया बीमारी के बारे में कुछ नहीं पता था, लेकिन वीडियो में वह कहता है कि जब उसका वजन सत्तर किलो हो जाएगा, तब उसकी मृत्यु हो जाएगी। किसी तरह वह अपनी मृत्यु के बारे में जानता था। फिर भी, वह मुस्कुरा रहा है और अपनी भुजाओं को ऊपर उठाकर आकाश की ओर देख रहा है। अस्पताल में, उसने अपनी खुशी और शांति के बीच एक डरावनी अंतर्दृष्टि का खुलासा किया: "याद रखें," उसने अपनी मां से कहा, "मैं इस अस्पताल से जीवित नहीं निकलूंगा, लेकिन मैं आपको कई, कई संकेत दूंगा।" और उसने जो संकेत दिए हैं - स्तन कैंसर से पीड़ित एक महिला ने कार्लो की अंत्येष्टि के दौरान उससे प्रार्थना की थी, वह बिना किसी कीमोथेरेपी के स्तन कैंसर से ठीक हो गई। एक 44 वर्षीय महिला, जिसके कभी कोई बच्चा नहीं था, उस ने भी कार्लो के अंतिम संस्कार के समय उससे प्रार्थना की और एक महीने बाद वह गर्भवती हुई। कई मनपरिवर्त्तन हुए हैं, लेकिन एंटोनिया कहती है कि शायद सबसे खास चमत्कार कार्लो ने अपनी "माँ को भेंट किया।" कार्लो के जन्म के वर्षों बाद एंटोनिया ने गर्भ धारण करने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कार्लो की मृत्यु के बाद, एक सपने में वह अपनी माँ के पास आया और कहा कि वह फिर से माँ बनेगी। 44 साल की उम्र में, उसकी मृत्यु की चौथी वर्षगांठ पर, एंटोनिया ने जुड़वा बच्चों - फ्रांसिस्का और मिशेल - को जन्म दिया। अपने भाई की तरह, दोनों प्रतिदिन मिस्सा में भाग लेती हैं और माला विनती की प्रार्थना करती हैं, और उम्मीद है कि एक दिन वे अपने भाई के मिशन को आगे बढ़ाने में मदद करेंगी। जब उसके डॉक्टरों ने उससे पूछा कि क्या उसे दर्द हो रहा है, तो कार्लो ने जवाब दिया कि "ऐसे बहुत से लोग हैं जो मुझसे ज्यादा पीड़ित हैं। मैं प्रभु, संत पापा (बेनेडिक्ट सोलहवें) और कलीसिया के लिए अपना दुख अर्पित करता हूं।" जांच के परिणाम आने के तीन दिन बाद ही कार्लो की मृत्यु हो गई। अपने अंतिम शब्दों के साथ, कार्लो ने स्वीकार किया कि "मैं खुश होकर विदा ले रहा हूँ, क्योंकि मैंने अपने जीवन का कोई भी मिनट उन चीज़ों में नहीं बिताया जो परमेश्वर को पसंद नहीं हैं।" स्वाभाविक रूप से, एंटोनिया को अपने बेटे की कमी खलती है। उसने कहा, "मुझे कार्लो की अनुपस्थिति महसूस होती है, लेकिन कुछ मायनों में मुझे लगता है कि कार्लो पहले से कहीं अधिक मेरे साथ मौजूद है। मैं उसे एक खास तरीके से, आध्यात्मिक रूप से, उसे महसूस करती हूं। और मैं उसकी प्रेरणा को भी महसूस करती हूं। मैं देख रही हूँ कि उसका आदर्श युवा लोगों के लिए क्या फल ला रहा है। यह मेरे लिए बहुत बड़ी सांत्वना है। कार्लो के माध्यम से, ईश्वर एक उत्कृष्ट कृति बना रहा है और यह बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर इस अन्धकार के दौर में जब लोगों का विश्वास इतना कमजोर है, और ईश्वर हमारे जीवन में अनावश्यक प्रतीत होता हैं। मुझे लगता है कि कार्लो बहुत अच्छा काम कर रहा है।"
By: Graziano Marcheschi
Moreउस दिन मैं हताश और अकेली महसूस कर रही थी, लेकिन मुझे क्या पता था, कुछ खास होने वाला था... जब संत पापा फ्रांसिस ने 8 दिसंबर 2020 से शुरू होने वाले "संत जोसेफ का वर्ष" घोषित किया, तो मुझे वह दिन याद आया जब मेरी मां ने मुझे इस महान संत की एक सुंदर मूर्ति दी थी जिसे मैंने अपने प्रार्थनाकक्ष में गहरी श्रद्धा के साथ रखा था। इन वर्षों में, मैंने संत जोसेफ के लिए कई नवरोज़ी प्रार्थनाएं की हैं, लेकिन मुझे हमेशा यह महसूस होता था कि संत जोसफ शायद मेरी प्रार्थनाओं से अवगत नहीं होंगे। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैंने संत जोसफ पर बहुत कम ध्यान दिया। पिछले साल, मेरे एक पुरोहित मित्र ने मुझे संत जोसेफ से 33 दिन की प्रार्थना करने की सलाह दी, इसलिए मैंने फादर डोनाल्ड एच. कॉलोवे द्वारा रचित संत जोसेफ के प्रति समर्पण की 33 दिन प्रार्थना की। समर्पण प्रार्थना के अंतिम दिन मुझे इस बात का अंदाजा नहीं था कि मेरे जीवन में कुछ खास होने वाला है। रविवार का दिन था। मैं बहुत उदास महसूस कर रही थी, हालाँकि, उदास होना मेरे स्वभाव में बिल्कुल नहीं है। लेकिन वह दिन बहुत अलग था। इसलिए पवित्र मिस्सा बलिदान के ठीक बाद, मैंने आराधना में जाने का फैसला किया। क्योंकि मेरी इच्छा थी कि परम पवित्र संस्कार के सम्मुख बैठकर मैं कुछ पा लूं, क्योंकि मुझे विश्वास था कि जो कोई अपने दिल की गहराइयों से प्रार्थना करेगा, उसे सांत्वना ज़रूर मिलेगी। ऊपर से प्यार एक बार, जब मैं म्यूनिख में भूमिगत मेट्रो रेल सेवा यू-बान में मेट्रो गाडी की प्रतीक्षा कर रही थी, मैंने देखा कि एक महिला अनियंत्रित रूप से रो रही है। इसे देखकर मैं हिल गयी थी और उसे सांत्वना देना चाहती थी। उसके ज़ोरदार विलाप ने सबका ध्यान आकर्षित किया था और हर कोई उसे घूर रहा था, जिससे मेरे जाने और उससे बात करने की इच्छा कम हो गयी थी। कुछ देर बाद वह जाने के लिए उठी, लेकिन अपना दुपट्टा पीछे छोड़ गई। अब मेरे पास उसके पीछे जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। जैसे ही मैंने दुपट्टा वापस दिया, मैंने उससे कहा, "मत रोओ ... आप अकेली नहीं हैं। येशु आपसे प्यार करते हैं और वह आपकी मदद करना चाहते हैं। अपनी सभी परेशानियों के बारे में उससे बात करें... वह आपकी मदद जरूर करेंगे।" मैंने उसे कुछ पैसे भी दिए। फिर उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं उसे अपनी बाहों में ले सकती हूं। मैं थोड़ी अनिच्छुक थी, लेकिन पल में इस अनिच्छा को एक तरफ धकेलकर, मैं ने उस महिला को गर्मजोशी से गले लगाया और धीरे से उसके गालों को छुआ। इस कृत्य से मैं स्वयं आश्चर्यचकित थी क्योंकि उस दिन मैं बहुत खालीपन और आत्मा में उदासीपन महसूस कर रही थी। और सच में मैं कह सकती हूं कि यह प्यार मेरी तरफ से नहीं था। वह येशु ही थे जो इस तरह उसके पास पहुंचे थे! अंत में, जब मैं आराधना के लिए गिरजाघर पहुंची, तो ईश्वर से मदद की गुहार लगाई और मेरा जीवन उसके नियंत्रण में है इस बात का एक संकेत के लिए मदद माँगी। जैसे ही मैंने संत जोसेफ वाली अपनी प्रार्थना और समर्पण को पूरा किया, मैंने संत जोसेफ की मूर्ति के सामने एक मोमबत्ती जलाई। तब इस बात पर विचार करते हुए कि उन्होंने मुझे कभी जवाब क्यों नहीं दिया, मैंने सहज भाव से संत जोसेफ से पूछा कि क्या वह वास्तव में मेरी परवाह करते हैं, या नहीं। बड़ी मुस्कान वापस ट्रेन की ओर जाते समय, एक महिला ने मुझे गली में रोक दिया। वह 50 के आसपास की लग रही थी और मेरी उससे यह पहली और आखिरी मुलाक़ात थी, लेकिन उसने मुझसे जो कहा वह अभी भी मेरे कानों में गूँज रहा है। जैसे ही मैंने उसकी ओर देखा और सोच रही थी कि वह मुझसे क्या चाहती है, उसने अचानक अपने चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान के साथ कहा "ओह! संत जोसेफ आपसे बहुत प्यार करते हैं, आपको पता नहीं है।" मैं हतप्रभ रह गयी और उसने जो कहा उसे दोहराने के लिए मैंने उससे कहा। मैं इसे फिर से सुनना बहुत चाहती थी और मेरे पास जो भावना थी वह शब्दों से परे है। उस पल मुझे पता चल गया था कि मैं कभी अकेली नहीं हूं। खुशी के आंसू मेरे गालों पर लुढ़कते गए, क्योंकि मैंने उससे कहा कि मैं प्रार्थना कर रही थी और एक संकेत मांग रही थी। मंत्रमुग्ध कर देने वाली एक मुस्कान के साथ उसने उत्तर दिया, "प्रिय, यह पवित्र आत्मा का कार्य है" फिर उसने पूछा, "क्या आप जानती हैं कि संत जोसेफ आपसे सबसे ज्यादा किस बात केलिए प्यार करते हैं?" मैंने हतप्रभ स्थिति में पीछे मुड़कर उसकी ओर देखा। मेरे गालों को धीरे से छूते हुए (ठीक वैसे ही जैसे मैंने पहले मेट्रो में दूसरी महिला के साथ किया था) वह फुसफुसाई, "तुम्हारा कोमल और विनम्र दिल से।" फिर वह चली गई। मैंने इस भली महिला से इससे पहले या बाद में कभी नहीं मिली। यह बात असामान्य थी, क्योंकि ज्यादातर हमारे गिरजाघरों में हम एक-दूसरे को जानते हैं, लेकिन मुझे अभी भी स्पष्ट रूप से याद है कि वह कितनी प्यारी और खुशी से भरी थी। उस दिन मैं इतना हताश महसूस कर रही थी इसलिए मुझे वास्तव में यह महसूस करने की ज़रूरत थी कि प्रभु वास्तव में मुझसे प्यार करते हैं और मेरी परवाह करते हैं । संत जोसेफ के संदेश से मेरी चिंता दूर हुई। संत जोसफ इतने वर्षों तक मेरे साथ रहे, हालांकि मैंने अक्सर उनकी उपेक्षा की थी। मेरा दृढ़ विश्वास है कि उस दिन की शुरुआत में मेट्रो में रोनेवाली महिला से मुलाक़ात की घटना बाद में इस दयालु और भली अपरिचित महिला के साथ मेरी मुलाकात से जुड़ी हुई थी। उसने मुझे ज्ञान का एक महत्वपूर्ण सन्देश दिया। हम जो कुछ भी दूसरों के लिए करते हैं, हम येशु के लिए करते हैं, भले ही हमारा ऐसा करना हमारी इच्छा के अनुरूप न हो। जब हम दूसरों तक पहुँचने के लिए अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलते हैं तो येशु और भी अधिक खुश होते हैं। तब से, मैं हर दिन अपने प्रिय संत जोसेफ की शक्तिशाली मध्यस्थता मांगती हूं, बिना किसी असफलता के!
By: Ghislaine Vodounou
Moreक्या स्वर्गदूत वास्तव में हैं? यहां जानिए सच्चाई... हम अक्सर पवित्र ग्रन्थ बाइबल में स्वर्गदूतों को परमेश्वर के संदेशवाहकों के रूप में देखते हैं। कैथलिक कलीसिया केवल तीन स्वर्गदूतों के नामों को मान्यता देती है, जिनमें से सभी महादूतों की गायक मंडली के हिस्से हैं। हर साल कलीसिया 29 सितंबर को इन महादूतों: माइकल, गाब्रियल और रफाएल का पर्व मनाती है। संत माइकल महादूत का अर्थ है, "जो ईश्वर के समान है।" वह सैनिकों, पुलिस अधिकारियों और अग्निशामकों का संरक्षक है। परंपरागत रूप से, माइकल को इज़राइल के लोगों के संरक्षक स्वर्गदूत के रूप में माना गया है और अब उन्हें कलीसिया के रखवाल स्वर्गदूत के रूप में आदर दिया जाता है। प्रकाशन ग्रन्थ के अनुसार, जब लूसिफर / शैतान ने ईश्वर के खिलाफ विद्रोह किया था, तब संत माइकल ने उसे हराने के लिए स्वर्ग की सेना का नेतृत्व किया था। हम पवित्र धर्मग्रन्थ और परंपराओं से सीखते हैं कि संत माइकल की चार मुख्य जिम्मेदारियां हैं: शैतान का मुकाबला करना; विश्वासियों को उनकी मृत्यु की घड़ी में स्वर्ग तक पहुँचाना; सभी ख्रीस्तीयों और कलीसिया की अगुवाई करना; और सभी नर नारियों को पृथ्वी पर जीवन से उनके अंतिम स्वर्गीय न्यायविधि के लिए आमंत्रित करना। संत गाब्रिएल महादूत का अर्थ है, "ईश्वर मेरी शक्ति है"। गाब्रियल परमेश्वर का पवित्र संदेशवाहक है। वह नबी दानिएल के सम्मुख ईश्वर से उन्हें प्राप्त एक दर्शन की व्याख्या देने के लिए प्रकट हुआ। वह याजक जकरियस के सामने यह घोषणा करने के लिए प्रकट हुए कि उनका पुत्र, योहन बप्तिस्ता होगा, और वह प्रभु के शरीरधारण के सन्देश के समय कुँवारी मरियम को दिखाई दिया। कैथलिक परंपरा इंगित करती है कि गाब्रियल वह दूत था जो संत जोसेफ को उसके सपनों में दिखाई दिया था। ईश्वर ने गाब्रियल को हमारे कैथलिक विश्वास का सबसे महत्वपूर्ण संदेश कुँवारी मरियम तक पहुंचाने का कार्य सौंपा। इसलिए बह संदेशवाहकों, दूरसंचार कर्मचारियों और डाक कर्मियों के संरक्षक संत है। संत रफाएल महादूत का अर्थ है, "ईश्वर चंगा करता है।" पुराने नियम में तोबित के ग्रन्थ में, रफाएल को सारा के अन्दर से दुष्टात्मा को निकालने और तोबित की दृष्टि को बहाल करने का श्रेय दिया जाता है। रफाएल के इस अद्भुत कार्य के कारण तोबित ने स्वर्ग के प्रकाश को देखने और उसकी मध्यस्थता के माध्यम से सभी अच्छी चीजें प्राप्त करने का सौभाग्य पाया। रफाएल यात्रियों, अंधों, शारीरिक बीमारियों से पीड़ितों, आनंदमय मुलाकातों, नर्सों, चिकित्सकों और अन्य चिकित्साकर्मियों का संरक्षक संत है। स्वर्गदूत हमारी चारों ओर हैं “स्वर्गदूतों से परिचित हो जाइए, और उन्हें अपनी प्रार्थना में बार-बार निहारिए; क्योंकि वे न दिखाई दें, फिर भी आपके साथ हैं।”- संत फ्रांसिस डी सेल्स। क्या आपने स्वर्गदूतों द्वारा आपके जीवन के खतरों से आपकी रक्षा करने का अनुभव किया है? कभी-कभी लोग गहराई से जानते हैं कि कोई उनकी सहायता के लिए आया था। संभवत: हम में से कई लोगों ने महसूस किया है कि स्वर्गदूतों ने कई बार हमारी रक्षा की है और हमारी मदद की है। मेरी सहायता करने वाले स्वर्गदूतों के बारे में मेरा एक ख़ास अनुभव स्पष्ट रूप से मेरी स्मृति में हमेशा के लिए अंकित है। जब मेरी माँ का कैंसर का इलाज चल रहा था, तो हमें निकटतम कैंसर उपचार केंद्र जाने के लिए 240 मील का चक्कर लगाना पड़ता था। एक दिन घर की ओर लौटते समय, जैसे ही हम एक उप राजमार्ग पर गाडी चला रहे थे, मेरी कार की ऊर्जा समाप्त हो रही थी, जबकि इंजन ने अजीब आवाज़ निकालना शुरू कर दी और विभिन्न प्रकार की आवाज़ से ऐसा लग रहा था कि कार रस्ते में ही जल्दी बंद होने वाली थी। मेरी माँ थक गई थी और बहुत बीमार महसूस कर रही थी, इसलिए मुझे पता था कि अगर हम ग्रीष्मकाल की उस तपती गर्मी में सड़क के किनारे रुक जाते हैं तो यह विनाशकारी होगा। मैं बड़ी तीव्रता के साथ प्रार्थना करने लगी, पवित्र स्वर्गदूतों से हमारी सहायता के लिए हमारे पास आने और घर पहुँचने तक इंजन को चालू रखने के लिए मैं ने प्रार्थना की। लगभग एक या दो मील तक असंबद्ध रूप से घसीटने के बाद, अचानक गाड़ी सुचारू रूप से चलने लगी, इंजन को पूरी ताकत मिली और घर तक कार आराम से चली। हमारी सहायता हेतु हमें स्वर्गदूत भेजने के लिए हम परमेश्वर का धन्यवाद कर रहे थे। अगले दिन, मैं अपनी कार को मैकेनिक के गैरेज में ले आयी ताकि उसकी जाँच की जा सके। मैकेनिक ने जब कहा कि इंजन में किसी प्रकार की कमी नहीं दिखाई दी, तो मुझे बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ। मैं आभारी और आश्चर्यचकित महसूस कर रही थी कि हमारे अपने स्वर्गदूत मैकेनिक ने कार को ठीक कर दिया था ताकि यह पहले से भी बेहतर चल सके। "प्रभु का दूत उसके भक्तों के पास डेरा डालता, और विपत्ति से उसकी रक्षा करता है।" (स्तोत्र ग्रन्थ: 34:7) ईश्वर ने जिस क्षण में मेरी सृष्टि की, उसी क्षण से उसने मेरे लिए एक रखवाल स्वर्गदूत की नियुक्ति की। "हर विश्वासी के पास रक्षक और चरवाहे के रूप में एक दूत खड़ा रहता है जो उसे जीवन की ओर ले चलता है" (कैथलिक धर्मशिक्षा 336)। हमारा मानव जीवन उन रखवाल दूतों की चौकसी, देखभाल और हिमायत के सुरक्षित घेरे में है। हमारे रखवाल दूत का कार्य है हमें स्वर्ग तक पहुँचाना। हम कभी नहीं जान पाएंगे कि स्वर्ग के इस तरफ, कितनी बार हम इन रखवाल स्वर्गदूतों द्वारा खतरों से बचाया गए थे या कितनी बार गंभीर पाप में गिरने से बचने में उन दूतों ने हमारी मदद की थी। संत थॉमस एक्विनास कहते हैं कि “स्वर्गदूत हम सब की भलाई के लिए मिलकर काम करते हैं।” इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कैथलिक कलीसिया ने रखवाल दूत को याद करने के लिए 2 अक्टूबर को रखवाल स्वर्गदूत के पर्व का दिन निर्धारित किया है। अनेक संतों को अपने अपने स्वर्गदूत के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आर्क की संत जोआन (1412-1431) एक नव युवती थी जिसे संत माइकल महादूत और अन्य संतों ने सौ साल के युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ कई सैन्य लड़ाइयों में फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व करने और दूसरों को प्रेरणा देने के लिए बुलाया था। परमेश्वर ने अपनी ओर से युद्ध करने के लिए इस साहसी स्त्री को माध्यम बनाया। 19-वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कलीसिया के तत्कालीन शासक संत पापा लियो तेरहवें ने शैतान को देखा और उन्होंने संत माइकल को संबोधित निम्नलिखित प्रार्थना की रचना की, जिसे आज कई गिरजाघरों में मिस्सा बलिदान के बाद पढ़ा जाता है: “संत माइकल महादूत, संघर्ष की घड़ी में हमारी रक्षा कर। दुष्टता और शैतान के फन्दों से तू हमारा रक्षाकवच बन जा। हम विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर दुष्टात्मा को फटकारें, और हे स्वर्गीय सेनाओं के राजकुमार, ईश्वर की शक्ति से, आत्माओं के सर्वनाश की तलाश में दुनिया में विचरते शैतान को और सभी दुष्ट आत्माओं को नरक में डाल दे। आमेन।" जब हम परमेश्वर की स्तुति गाते हैं तो हम स्वर्गदूतों के साथ गा रहे होते हैं। हर मिस्सा बलिदान में, हम सीधे स्वर्ग में लिए जाते हैं। डॉ स्काउट हैन का कहना है कि "मिस्सा बलिदान के वह स्वर्गीय अनुष्ठान, पृथ्वी पर स्वर्ग के रूप में, एक रहस्यमय भागीदारी है। जब हम मिस्सा बलिदान में जाते हैं तो हम स्वर्ग जाते हैं, और यह हर उस मिस्सा की सच्चाई है जिसमें हम भाग लेते हैं।" स्वर्गीय राजा, तूने पृथ्वी पर हमारी तीर्थयात्रा के दौरान हमारी सहायता के लिए महादूत दिए हैं। संत माइकल हमारा रक्षक है; मैं उसे अपनी सहायता के लिए आमंत्रित करती हूं, मेरे सभी प्रियजनों के लिए लड़, और हमें खतरे से बचा। संत गाब्रियल शुभसंदेश का दूत है; मैं उससे आग्रह करती हूँ कि तेरी आवाज को स्पष्ट रूप से सुनने और सच सीखने में संत गाब्रिएल मेरी मदद करे। संत रफाएल चंगाई का स्वर्गदूत है; मैं उससे कहती हूं कि वह मेरे और मेरे जानने वाले सभी लोगों की चंगाई के निवेदन को स्वीकार करे, हमारे स्वास्थ्य को संत रफाएल तेरे अनुग्रह के सिंहासन तक उठाए और हमें स्वास्थ्यलाभ के भेंट से अनुग्रहीत करे। हे प्रभु, हमारी मदद कर ताकि हम महादूतों की वास्तविकता और हमारी सेवा करने की उनकी इच्छा को पूरी तरह से समझ सकें। हे पवित्र स्वर्गदूतो, हमारे लिए प्रार्थना कर। आमेन।
By: कॉनी बेकमैन
Moreउनके पास ज्यादा समय नहीं बचा था, लेकिन फादर जॉन हिल्टन ने प्रभि की प्रतिज्ञाओं पर भरोसा करते हुए जीवन जिया, और इस तरह लाखों लोगों को प्रेरित करने और जीवन बदलने में कामयाब हुए। मेरी जीवन यात्रा बहुत आसान नहीं रही है, लेकिन जिस क्षण से मैंने येशु का अनुगमन करने का फैसला किया, उसके बाद मेरा जीवन कभी भी पहले जैसा नहीं रहा है। मैं अपने सामने प्रभु ख्रीस्त का क्रूस है और मेरे पीछे वह दुनिया है जिसे मैं ने त्याग दिया है, इसलिए मैं दृढ़ता से कह सकता हूं, "पीछे हटने का नाम नहीं लूंगा ..." मेंटोन के बीड्स कॉलेज में अपने स्कूली दिनों के दौरान, मुझे अन्दर से एक मजबूत बुलाहट महसूस हुई। ब्रदर ओवेन जैसे महान गुरुओं ने येशु के प्रति मेरे ह्रदय में प्यार के बीज को अंकुरित और पल्लवित किया। 17 साल की छोटी सी उम्र में, मैं सेक्रेड हार्ट मिशनरीज धर्मं समाज में शामिल हो गया। कैनबरा विश्वविद्यालय में अध्ययन और मेलबर्न में ईशशास्त्र की डिग्री सहित 10 वर्षों के अध्ययन के बाद, मैं अंततः पुरोहित के रूप में अभिषिक्त हुआ। भाग्य के साथ एक मुलाक़ात मेरी पहली नियुक्ति पापुआ न्यू गिनी में हुई थी, जहां मुझे साधारण लोगों के बीच रहने का एक व्यावहारिक आधार मिला जिसकी वजह से वर्तमान क्षण में जीने की एक महान भावना का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। बाद में, मुझे धार्मिक विधि का अध्ययन करने के लिए पेरिस भेजा गया। तनाव और सिरदर्द के कारण रोम में डॉक्टरेट की पढ़ाई बाधित हुई और मैं इसे पूरा नहीं कर पाया। और जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि मेरी बुलाहट सेमनरी में पढ़ाने की नहीं है। ऑस्ट्रेलिया वापस आने पर, मैं पल्ली सेवकाई करने लगा और देश भर के कई अलग-अलग राज्यों में 16 पल्लियों का अनुभव मीठा अनुभव पाया। विवाह और पारिवारिक जीवन को पोषित और पुनर्जीवित करनेवाले दो शानदार अभियानों के साथ भागीदारी करने से मेरे अन्दर बड़ी ऊर्जा और स्फूर्ति आई: वे हैं- टीम्स ऑफ अवर लेडी और मैरिज एनकाउंटर। अपने सेवा कार्य में मैं ने आत्म संतुष्टि का अनुभव किया। जीवन बहुत अच्छा चल रहा था। लेकिन 22 जुलाई 2015 को अचानक सब कुछ बदल गया। यह पूरी तरह से अचानक नहीं था। पिछले छह महीनों से, मैंने कई मौकों पर अपने पेशाब में खून पाया था। लेकिन अब मैं मूत्र विसर्जन कर भी नहीं पा रहा था। आधी रात में, मैं खुद अस्पताल चला गया। कई परीक्षणों के बाद, मुझे एक चौंकाने वाली खबर मिली। मुझे किडनी का कैंसर हो गया है जो अब तक चौथे चरण में पहुंच चुका था। मैं सदमे की स्थिति में था। मैं सामान्य लोगों से कटा हुआ महसूस कर रहा था। डॉक्टर ने मुझे सूचित किया था कि दवा के सेवन करने पर भी, मेरे जीने की उम्मीद केवल साढ़े तीन साल तक थी। मैं अपनी बहन के छोटे-छोटे बच्चों के बारे में सोचता रहा कि मैं इन आकर्षक बच्चों को बढ़ते हुए भविष्य में नहीं देख पाऊँगा। मुझे प्रातःकाल में ध्यान-मनन करना अच्छा लगता था, लेकिन जब से यह संकट आया, तब से मुझे ध्यान और मनन चिंतन के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। कुछ दिन बाद, मुझे ध्यान करने का एक आसान तरीका मिल गया। ईश्वर की उपस्थिति के सामने आराम करते हुए, विख्यात कवि डांते से प्रेरणा लेकर मैं ने एक मंत्र दोहराया, "तेरी इच्छा ही मेरी शांति है।" ध्यान-मनन के इस सरल रूप ने मुझे ईश्वर में अपनी शांति और विश्वास बहाल करने में सक्षम बनाया। लेकिन जैसा कि मैं अपने सामान्य दिनचर्या को करने लगा, मुझे यह और अधिक कठिन लगा। 'मैं ज्यादा दिन तक नहीं रहूंगा ...', इस तरह के विचारों से मैं अक्सर विचलित हो जाता था। सबसे अच्छी सलाह तीन महीने के उपचार के बाद, दवा ठीक से काम कर रही है या नहीं, यह देखने के लिए जांच की गयी। परिणाम सकारात्मक थे। अधिकांश हिस्सों में कैंसर की उल्लेखनीय कमी आई थी, और मुझे सलाह दी गई थी कि क्षतिग्रस्त गुर्दे को निकालने के लिए एक सर्जन से परामर्श कर लूं। मुझे एक राहत की अनुभूति हुई, क्योंकि मेरे दिमाग में बराबर यह सवाल उठता था कि क्या दवा वास्तव में काम कर रही है या नहीं। तो यह वाकई बहुत अच्छी खबर थी। ऑपरेशन के बाद, मैं स्वस्थ हो गया और एक पल्ली पुरोहित के रूप में लौट आया। इस बार, मैं सुसमाचार प्रचार के प्रति अधिक ऊर्जावान महसूस कर रहा था। न जाने कब तक मैं इस काम को कर पाऊंगा, ऐसा सोचकर मैंने अपना सम्पूर्ण ह्रदय उन सारी बातों में लगा दिया जिन्हें मैं ने शुरू किया था। हर छह महीने में, मेरा स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता था। शुरुआत में परिणाम अच्छे रहे, लेकिन कुछ समय बाद, मैं जो दवा ले रहा था वह कम असर करने लगी। मेरे फेफड़ों में और मेरी पीठ में कैंसर बढ़ने लगा, जिससे मुझे सियाटिका हो गई और मुझे चक्कर आने लगे। कीमोथेरेपी से मुझे गुजरना पड़ा और एक नया इम्यूनोथेरेपी उपचार शुरू करना पड़ा। यह निराशाजनक था, लेकिन आश्चर्य की बात नहीं थी। कैंसर से पीड़ित कोई भी व्यक्ति जानता है कि हालात बदल जाती हैं। आप एक पल ठीक हैं तो अगले ही पल आपदा आपको जकड ले सकती है। मेरी एक खूबसूरत मित्र कई सालों से ऑन्कोलॉजी विभाग में नर्स रही है। उसी ने मुझे सबसे अच्छी सलाह दी: जितना हो सके अपने जीवन को सामान्य रूप से जीते रहें। यदि आप कॉफी का आनंद लेते हैं, तो कॉफी लें, या दोस्तों के साथ भोजन कर लें। सामान्य चीजें करते रहें। मुझे पुरोहित का कार्य करना पसंद था और हमारी पल्ली में हो रही अद्भुत बातें मुझे उत्साहित करती थीं। हालांकि पहले की तुलना में अब जीवन यात्रा आसान नहीं थी, फिर भी मैंने जो भी किया मैं उसे पसंद करता था। मैं हमेशा मिस्सा बलिदान को अर्पित करना और संस्कारों का अनुष्ठान करना पसंद करता था। इन बातों को मैंने अपने जीवन में बहुत मूल्य दे रखा है और मैं इस महान कृपा के लिए ईश्वर का हमेशा आभारी हूं। क्षितिज से परे मेरा दृढ़ विश्वास था कि गिरजाघर में आने वाले लोगों की घटती संख्या की समस्या को दूर करने के लिए हमें सक्रिय होकर अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। अपनी पल्ली में हमने रविवार की आराधना में और अधिक लोगों की भागीदारी हो इसके लिए प्रयास किया। चूँकि मैं कलीसिया की मननशील पक्ष से हमेशा प्यार करता आया था, इसलिए मैं अपनी पल्ली में थोड़ा सा मठवासी भावना लाकर उसे प्रार्थना और शांति से भरपूर मरुस्थल का उद्यान बनाना चाहता था। इसलिए प्रत्येक सोमवार की रात, हमने आनंददायक मननशील संगीत के साथ, मोमबत्ती की रोशनी में मिस्सा बलिदान का आयोजन किया। प्रवचन देने के बजाय, मैंने मनन चिंतन का एक पाठ पढ़ा। मैट रेडमैन द्वारा गाया गया ग्रैमी विजेता एकल गीत "10,000 कारण” (ब्लेस दि लार्ड) ने मुझे गहराई से स्पर्श किया है। जब भी मैं गीत का तीसरा छंद गाता, भावुक होकर मेरा दम घुट जाता था। और उस दिन जब मेरी ताकत विफल हो रही है अंत निकट आता है और मेरा समय आ गया है फिर भी मेरी आत्मा तेरी स्तुति गाएगी अंतहीन दस हजार साल और फिर सदा सर्वदा के लिए मुझे यह गीत बहुत ही हृदयस्पर्शी लगा, क्योंकि हम अंततः जो करने की कोशिश कर रहे हैं वह परमेश्वर की स्तुति और येशु के साथ हमारे संबंध को मज़बूत करना है। बीमारी के बावजूद, एक पुरोहित के रूप में यह मेरे जीवन का सबसे रोमांचक समय था। इस स्थिति ने मुझे येशु द्वारा कहे गए शब्दों की याद दिला दी, "मैं इसलिए आया हूं कि वे जीवन प्राप्त करें, और परिपूर्ण जीवन प्राप्त करें।" योहन 10:10 ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------- "मेरे पति कैथलिक नहीं हैं और कैथलिक विश्वास के बारे में अभी अभी सीखना शुरू किया है; संयोग से उनकी मुलाक़ात फादर जॉन से हुई। बाद में उन्होंने कहा “मैं येशु नामक व्यक्ति के बारे में जो जानता हूं,... फादर जॉन उसके जैसे ही लगते हैं। यह जानना कि आप मरने वाले हैं और इसके बावजूद आप अपने आप को अधिक से अधिक दूसरों को देना जारी रखते हैं, भले ही आपके आस-पास के लोगों को यह एहसास न हो कि ये आपके अंतिम दिन हैं… यह वाकई अद्भुत है” कैटिलिन मैकडॉनेल फादर जॉन जीवन में अपने लक्ष्य को लेकर बिलकुल स्पष्ट थे। वह एक सर्वगुण संपन्न अगुवा थे और उन्होंने येशु को इस दुनिया में वास्तविक बनाया। मैं अक्सर सोचता था कि अगर वे अपने विश्वास और मूल्यों के मामले में मजबूत नहीं होते तो क्या होता। यह उनके लिए भले ही काफी चुनौतीपूर्ण रहा हो लेकिन हर रविवार जब हम उनसे मिले तो उनमें वही ऊर्जा थी। उनके आस-पास या उनके साथ, या उन पर जो कुछ भी हुआ, लेकिन उनके अन्दर और उनकी चारों तरफ शांति ही विराजती थी। यह हम सब के लिए एक अविश्वसनीय उपहार था। डेनिस होइबर्ग हमें बार बार उन्हें याद दिलाना पड़ता था कि उनकी सीमाएँ थीं, लेकिन इस के बावजूद उनका रफ्तार कभी कम नहीं हुआ। वे एक प्रेरणा थे, क्योंकि यहां एक व्यक्ति है जिसे बताया गया है कि आपके पास सीमित समय है। फिर भी वे अपनी बीमारी से उबरने और उसके बारे में सोचने के बजाय अपने आप को दूसरों को देते रहे।
By: Late Father John Hilton Rate
Moreअपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलना कभी भी आसान काम नहीं होता, तो फिर क्यों परेशानी उठानी है? जीवन के किसी मोड़ पर, येशु हम सभी से पूछते हैं: “क्या तुम मेरे राज्य के लिए बाहर निकलने को तैयार हो?” इसके लिए कोई योग्यता की ज़रुरत नहीं है; कोई नौकरी का विवरण नहीं, कोई बायोडाटा स्क्रीनिंग नहीं… यह एक सरल हाँ या नहीं वाला प्रश्न है। जब मुझे यह बुलावा मिला, तो मेरे पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं था। मैंने जब अपने सेवा क्षेत्र में प्रवेश किया, तब किसी प्रकार का लाभ पाने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी। समय ने साबित कर दिया कि येशु के लिए एक इच्छुक और प्रेमपूर्ण हृदय ही वह सब था जिसकी मुझे आवश्यकता थी। उसने बाकी सब संभाल लिया। एक बार जब आप हाँ कहते हैं, तो आप अपने आप में बदलाव देख सकते हैं! जीवन अधिक सार्थक, आनंदमय और रोमांचकारी हो जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि दुख कभी मौजूद नहीं होगा। "जब येशु के लिए इस संसार को छोड़कर अपने पिता के पास लौटने का समय निकट था, तो उसने अपने शिष्यों के पैर धोए। उसने पेत्रुस से कहा: 'यदि मैं तुम्हारे पैर न धोऊँगा, तो तुम्हारा मेरे साथ कोई सम्बन्ध नहीं रह जाएगा।'" उसने आगे कहा: "इसलिए यदि मैं - तुम्हारे प्रभु और गुरु – ने तुम्हारे पैर धोए हैं, तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिए।" (योहन 13:14) एक तरह से, येशु पूछ रहे हैं: "क्या तुम भीगने के लिए तैयार हो?" पेत्रुस की तरह, हम स्वाभाविक रूप से सूखे और आरामदायक रहना पसंद करते हैं, लेकिन वह हमें अपने प्यार और अनुग्रह के जल में भीगने के लिए बुला रहा है। सबसे खूबसूरत बात यह है कि वह हमें अपने लिए नहीं बुला रहा है... जब येशु अपने शिष्यों के पैर धोने के लिए नीचे झुका, तो न केवल उसके शिष्य भीग गए, बल्कि इस प्रक्रिया में येशु के हाथ भी गीले और गंदे हो गए। जब हम मसीह के पदचिन्हों पर चलते हैं, तो उसके नाम पर दूसरों की सेवा करते हुए, हम भी उस बोझ और दर्द का हिस्सा बनेंगे जिससे दूसरा व्यक्ति गुज़र रहा है। पवित्र बाइबिल हमें निर्देश देती है: “भारी बोझ धोने में एक दूसरे की सहायता करें, और इस प्रकार तुम मसीह की विधि पूरी करें।” (गलाती 6:2) येशु के रूपान्तरण के बाद, पेत्रुस ने कहा: “प्रभु, यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है; आप चाहें, तो मैं यहाँ तीन तम्बू खड़ा कर दूंगा - एक आपके लिए, एक मूसा, और एक एलियस के लिए।” (मत्ती 17:4) ऐसा लगता है कि हम कई मायनों में पेत्रुस के जैसे हैं। तंबू लगाना और उस आरामदायक क्षेत्र में रहना हम पसंद करते हैं, चाहे वह हमारा गिरजाघर हो, घर हो या कार्यस्थल। सौभाग्य से, हमारे लिए पवित्र बाइबिल हमें ऐसे कई योग्य उदाहरण प्रदान करती है जिनसे हम सीख सकते हैं। होना या न होना हमारे पल्ली पुरोहित श्रद्धेय क्रिस्टोफर स्मिथ ने एक बार इस बात पर मनन किया कि कैसे योहन बपतिस्ता ने अपने आराम क्षेत्र जंगल को छोड़ दिया और मसीहा के आने की घोषणा करने के लिए शहर में आया। मूसा मिस्र से भाग गया और अपने ससुर के साथ अपने लिए एक तम्बू बनाया लेकिन परमेश्वर ने उसे बाहर निकाला और उसे एक मिशन सौंपा। उसे उसी मिस्र में वापस लाया गया जहाँ से वह भागा था, और परमेश्वर ने उसे अपने लोगों को बचाने के लिए शक्तिशाली रूप से इस्तेमाल किया। एलियस ईज़ेबेल से भाग गया और एक झाड़ी के नीचे शरण ली (1 राजा 19:4), लेकिन परमेश्वर ने उसे अपने लोगों के लिए अपनी योजना को स्थापित करने के लिए वापस लाया। अब्राहम को अपने रिश्तेदारों को छोड़ना पड़ा और यात्रा करनी पड़ी जहाँ परमेश्वर उसे ले गया, लेकिन उस राज्य को देखें जो परमेश्वर में अब्राहम के भरोसे के कारण विकसित हुआ! अगर मूसा घर पर रहता, तो इस्राएलियों का क्या हश्र होता? और अगर एलियस डर के मारे पीछे हट जाता और वापस आने से इनकार कर देता तो क्या होता? पेत्रुस को देखें, जिसने समुद्र में उग्र लहरों पर अपने पैर रखने के लिए नाव से विश्वास की छलांग लगाई। वह बिलकुल अकेला था, डूबने का डर उसके मन में था, लेकिन येशु ने उसे डगमगाने नहीं दिया। बाहर निकलने की उसकी इच्छा ने एक अविस्मरणीय चमत्कार की शुरुआत की, जिसका आनंद नाव के अंदर मौजूद अन्य डर से भरे शिष्यों में से कोई भी नहीं ले सका, क्योंकि उन्होंने अपने आराम के क्षेत्र से बाहर निकलने से इनकार कर दिया था। और इसी तरह, हमारे जीवन में भी, अपने तंबू से बाहर निकलने का पहला कदम उठाने केलिए परमेश्वर हमारा इंतज़ार कर रहा है। जब पवित्र आत्मा ने मुझे लेखन के माध्यम से सुसमाचार प्रचार करने के लिए प्रेरित किया, तो मेरे लिए पहले इसे हाँ कहना बहुत मुश्किल था। मैं स्वभाव से डरपोक और शर्मीली हूँ, और जैसे पेत्रुस लहरों को देखता था, वैसे ही मैं केवल अपनी अक्षमताओं को देखती थी। लेकिन जब मैंने खुद को परमेश्वर की इच्छा के आगे समर्पित कर दिया और उस पर भरोसा करना शुरू कर दिया, तो उसने मुझे अपनी महिमा के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। आइए हम अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलें और पवित्र आत्मा के अभिषेक में भीगें, क्योंकि यह जलती हुई झाड़ी की शक्तिशाली आग थी जिसने मूसा का अभिषेक किया था। याद रखें कि कैसे (एक मिस्री को मारकर!) इस्राएलियों को 'बचाने' का मूसा का पहला प्रयास उन इस्राएलियों के द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था? ऊपर से आने वाले आह्वान का धैर्यपूर्वक इंतज़ार करें, उसका अभिषेक प्राप्त करें, और उसके नाम का प्रचार करने के लिए दुनिया में जाएँ! ------------------------- लिडिया बोस्को एक कार्मेलाइट धर्म बहन हैं जो कैथलिक सेवा ‘अभिषेकाग्नि’ के माध्यम से प्रभु की सेवा करती हैं। वे अपने पति और तीन बच्चों के साथ दक्षिणी यू.एस.ए के दक्षिण कैरोलिना में रहती हैं।
By: लीडिया बोस्को
Moreड्राइविंग सीखना मेरे जीवन में बार-बार आने वाली एक बड़ी बाधा थी। इस घटना ने मेरे लिए इसे बदल दिया! दस साल पहले, ईश्वर ने मुझे पहली बार मेरे होने वाले पति से मुलाक़ात कराई। मैं उस समय श्रीलंका में रह रही थी जबकि वह ऑस्ट्रेलिया में रहता था। प्यार में पड़ने से मिलने वाली नई ऊर्जा से भरकर, श्रीलंका में रहते हुए, ड्राइविंग की तैयारी के लिए एक ड्राइविंग स्कूल में मैंने दाखिला लिया। पहले कभी गाड़ी न चलाने के कारण, मैं चिंतित थी, फिर भी दृढ़ थी, और ईश्वर की कृपा से, मैंने पहले प्रयास में ही अपना ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त कर लिया। छोटी शुरुआत ऑस्ट्रेलिया पहुँचने के तुरंत बाद, मैंने एक स्थानीय ड्राइविंग स्कूल में दाखिला लिया और अभ्यास जारी रखने के लिए एक सेकंड-हैंड कार खरीदी। मेरी पहली गलती यह थी कि मैंने अपने पति को मुझे सिखाने का मौक़ा दिया। आप अच्छी तरह से कल्पना कर सकते हैं कि इसका क्या परिणाम हुआ होगा! चाहे मैं जितनी भी सीखती रही, मेरे अन्दर का डर मुझे पीछे खींचता रहा। मैं तब तक ठीक-ठाक गाडी चलाती थी, जब तक कि कोई कार मेरे पीछे नहीं आ जाती और यह मुझे परेशान कर देता, मानो मैं जांच के दायरे में हूं। मेरी उम्र पच्चीस के आसपास थी| ऐसी उम्र में इस तरह का डर बहुत ही अतार्किक था। पेशेवर ड्राइविंग प्रशिक्षक से सबक लेने से भी कोई मदद नहीं मिली। मैं अभ्यास करने में हिचकिचाने लगी और मेरी कार धीरे-धीरे धूल जमा करने लगी, जबकि मैं खुद को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि ड्राइविंग मेरे लिए नहीं है। काम पर जाने और वापस आने के लिए, मैंने दो बसें और एक ट्रेन ली, लेकिन खुद को ड्राइव करने के लिए मजबूर नहीं कर सकी। मैंने अपनी कार बेच दी। हार मानने को तैयार नहीं यह जीवन शैली स्पष्ट रूप से हमारे लिए काम नहीं कर रही थी, इसलिए मैंने एक बार फिर कोशिश करने का फैसला किया। अब 2017 था और मैंने एक नए प्रशिक्षक के साथ साइन अप किया। लग रहा था कि कुछ सुधार हो रहा है। हालांकि, मेरा पहला ड्राइविंग टेस्ट फिर से बहुत ही बेचैनी भरा था। मेरा प्रशिक्षक काफी क्रोधित था, और जब परीक्षक मेरे स्कोर का मूल्यांकन करने के लिए चला गया, तो उसने कहा “तुम निश्चित रूप से असफल हो जाओगी”। निराश और भारी मन से, मैं फैसला सुनने के लिए ड्राइविंग सेंटर में चली गयी। परीक्षक ने कहा “आप पास हो गयी हैं”! हैरान और अविश्वास में, मैंने पूरे दिल से ईश्वर का शुक्रिया अदा किया। मेरे पति भी बहुत खुश थे और मेरे नए आत्मविश्वास के आधार पर हमने फिर से एक सेकंड-हैंड कार खरीदी, बहुत उम्मीद थी कि इस बार यह काम करेगी। इसकी शुरुआत अच्छी रही और फिर धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से, यह सब वापस आने लगा - घबराहट, डर, झिझक। छह महीने से थोड़ा ज़्यादा समय बीतने के बाद, मैंने फिर से अपना सारा आत्मविश्वास खो दिया। मैंने अपनी कार बेच दी। मेरे धैर्यवान पति का मानना था कि मैं अपनी क्षमताओं के साथ न्याय नहीं कर रही थी, इसलिए उन्होंने न केवल मेरे लिए प्रार्थना की बल्कि जब मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, तब भी उन्होंने मुझ पर विश्वास बनाए रखा। उस समस्या के जड़ का पर्दाफाश साल बीतते गए...2020 में, हम एक ऑनलाइन आतंरिक चंगाई सेवा में भाग ले रहे थे। वह असरदार और प्रभावशाली सेवा अपने अंत के करीब थी, और तब तक मुझे कुछ खास महसूस नहीं हुआ था। यह मेरे पति की प्रार्थना ही रही होगी जिसने स्वर्ग को हिला दिया, क्योंकि जब पुरोहित आंतरिक घावों की चंगाई के लिए प्रार्थना कर रहे थे, तो मुझे थीम पार्क में बम्पर कार खेलने की एक ज्वलंत घटना की स्पष्ट याद आई। मैं लगभग छह साल की रही होगी और इस खेल को आज़माने के लिए बहुत उत्सुक थी। मैंने एक छोटी गुलाबी कार को चुना, मैं उसमें कूद गई और खुशी से उसे चला रही थी, जब अचानक मुझे लगा कि पीछे वाली कार बार-बार मेरी कार से टकरा रही है। हालाँकि यह खेल का हिस्सा था, मुझे लगा कि मुझ पर हमला हुआ है, और अब उस वर्तमान क्षण में, मैं उस डरावनी और भयंकर भय और बेचैनी को फिर से महसूस कर रही हूँ जो बिल्कुल वैसा ही था जैसा मुझे गाड़ी चलाते समय महसूस होता था! मुझे याद है कि मैं अपने पिता को जल्द से जल्द वहाँ से निकलने के लिए बेचैनी से उकसा रही थी। यह एक ऐसी याद थी जो उस घटना के बाद से इतने सालों में एक बार भी मेरे मन में नहीं आई थी। मेरी समस्या के मूल कारण से हमारे प्रभु येशु मसीह मुझे ठीक कर रहे थे। यह मेरे लिए एक बहुत बड़ा बयान था कि हमारे पिता परमेश्वर ने गाड़ी चलाने की क्षमता के साथ मेरी सृष्टि की है, जिस पर मैं लगातार सवाल उठाती रही थी। सड़क पर वापस आने के लिए उत्सुक, मैंने अपने पति के साथ लंबी दूरी तक गाड़ी चलाई और इस डर से मेरी मुक्ति स्पष्ट थी। ड्राइविंग में मैं ने अच्छी प्रगति कर ली थी और अब मुझे मेरे पीछे वाली कार से कोई परेशानी नहीं थी। कोई सोच सकता है कि यही आखिरी झटका था जिसकी अपनी ज़िंदगी को बदलने के लिए मुझे ज़रूरत थी। मैं जितना भी सुधार करने वाली थी, और चूँकि मेरी ड्राइविंग का अभ्यास लगातार नहीं चल रहा था, मैं अभी भी अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर नहीं थी। हमारे नवजात शिशु ने मेरे जीवन का अधिक समय ले लिया था, इसलिए मेरी प्राथमिकताएँ बदल गई थीं। हम जिस छोटे से शहर के अपार्टमेंट में रहते थे, वह हमारे छोटे बच्चे के पालन-पोषण के लिए उपयुक्त नहीं था। हम जो परवरिश उसे देना चाहते थे उस केलिए उपनगरीय जीवन ज़्यादा अनुकूल होगा, और जब तक मैं आसानी से गाड़ी नहीं चला पाती हूँ, तब तक हम यह कदम नहीं उठा सकते हैं। सैंतो निनोटो द्वारा मेरा बचाव उस समय मेरी सास हमसे मिलने आई थीं। वे प्राग के शिशु येशु की उत्साही भक्त थी, उन्होंने मुझे शिशु येशु के प्रति नव रोज़ी प्रार्थना (नोवेना) दी, और मैंने चमत्कार के लिए मन्नत रखती हुई प्रतिदिन प्रार्थना की। नोवेना पूरा करने के तुरंत बाद एक प्रथम शुक्रवार को, हम येशु के पवित्र हृदय के सम्मान में पवित्र मिस्सा में भाग लेने के लिए किसी गिरजाघर की तलाश कर रहे थे। हमने जितने भी गिरजाघर देखे वे सभी बंद थे, आखिरकार हम एक ऐसे गिरजाघर में पहुँचे जो न केवल खुला था बल्कि जहां सैंतो निनो* (पवित्र शिशु) का पर्व मनाया जा रहा था। समारोही पवित्र मिस्सा और गिरजाघर की सारी गतिविधियाँ शिशु येशु के प्रति श्रद्धा और प्रेम से भरी हुई थी। समारोह के अंत में गायक मंडली ने एक शक्तिशाली, गूंजती हुई ढोल की थाप बजाई, जिसने पूरे वातावरण को भर दिया। उस ढोल की हर थाप मेरी आत्मा को छेदती थी और मुझे लगता था कि मेरे सारे डर उड़ गए हैं। एक नया साहस और आशा ने डर की जगह ले ली। मेरा आत्मविश्वास अब मेरी अपनी क्षमताओं पर निर्भर नहीं था, बल्कि येशु मेरे भीतर क्या कर सकते हैं, इस पर निर्भर था। मेरी कमियों के बावजूद ईश्वर का अटल प्रेम मेरे पीछे दौड़ रहा था और अब समय आ गया था कि मैं सब कुछ उनके हवाले कर दूँ। ड्राइविंग प्रशिक्षक के साथ प्रशिक्षण के नए सत्रों को पूरा करने के बाद, हमने घर के सारे सामान समेट लिए और उपनगर में चले गए। मेरे पिता और ससुर ने मेरी ड्राइविंग में बाकी बची कुछ कमियों को दूर करने में मेरी मदद की और मेरी माँ ने मेरे लिए प्रार्थना की। लाइसेंस प्राप्त करने के सात साल बाद, मैं अब रोज़ाना आसानी से गाड़ी चला रही हूँ। हाईवे के पाँच लेन वाले हिस्से पर 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से गाड़ी चलाना मुझे हमारे ईश्वर की अथाह शक्ति और दया की निरंतर याद दिलाता है। सारी महिमा, सम्मान और प्रशंसा येशु को मिले, जिसने स्टीयरिंग व्हील संभाला और मेरे परिवार के जीवन को बदल दिया। "जो मुझे बल प्रदान करते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ।" – फिलिप्पी 4:13 * सैंतो नीनो डे सेबू शिशु येशु की एक चमत्कारी छवि है, जिसका आदर फिलिपिनो कैथलिक समुदाय द्वारा किया जाता है|
By: मिशेल हेरोल्ड
Moreहमारे पास जो कुछ भी है वह ऊपर से एक उपहार है, लेकिन कभी सोचा है कि जब ईश्वर ने आपको यह दिया तो उसका क्या इरादा था? जब मैं तीन भाइयों में सबसे छोटा था, तब तक मेरा परिवार ख्रीस्तीय परिवार था, लेकिन मेरा परिवार कोई ख्रीस्तीय रीति रिवाज़ का पालन नहीं करता था। मेरे माता-पिता शुरू से कैथलिक नहीं थे, इसलिए मुझे याद है कि प्रोविडेंस कैथलिक हाई स्कूल में एक नए छात्र के रूप में मेरे पहले दिन, मैं बिलकुल डर गया था, क्योंकि कभी किसी पुरोहित या धर्म बहन से मेरी भेंट नहीं हुई थी। मुझे कैथलिक मिस्सा के बारे में कुछ भी नहीं पता था, लेकिन मुझे स्कूल में सभी मिस्साओं में भाग लेने के लिए कहा गया था। मुझे ईश शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी हिस्सा लेना था, लेकिन उसके अंतर्गत नियमित रूप से आयोजित बेसबॉल कार्यक्रम में मुझे रूचि थी, इसलिए बेसबॉल खेलने के इरादे से मैं ने ईश शास्त्र की कक्षा में भाग लेने से कोई आपत्ति नहीं जताई। कुछ ढूँढ रहे हो ... 14 साल की उम्र में, मेरे साथियों के सामने विश्वास की बातों को लेकर शर्मिन्दगी का एहसास होने का बड़ा डर मुझे सताता था – मुझे दर था कि मुझसे कैथलिक विश्वास के बारे में बुनियादी सवाल पूछा जाएगा और मैं जवाब नहीं दे पाऊँगा। लेकिन हम नए छात्रों को ईशशास्त्र पढ़ाने वाली सिस्टर मार्गरेट ने कभी भी मुझे असहज नहीं किया। एक दिन कक्षा के बाद, वह मेरे लिए दरवाज़े पर इंतज़ार कर रही थी। मेरा इरादा सीधे उनके बगल से निकल जाने का था, लेकिन उन्होंने मुझे रोका, मेरी आँखों में देखा और कहा: "बर्क, तुम कुछ ढूँढ रहे हो।" मैंने वहाँ से जाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फिर से मुझे रोका और कहा: "इसे पढ़ो।" उन्होंने मुझे मेरी पहली बाइबल दी। उस शाम, बेसबॉल का अभ्यास, होमवर्क और रात के खाने के बाद, मैं अपने कमरे में गया, दरवाज़े बंद किए और बाइबल से मत्ती के सुसमाचार को पढ़ना शुरू किया। इसने मुझे वास्तव में इस तरह से आकर्षित किया कि यह मेरी आदत बन गई। धीरे-धीरे, ईशशास्त्र मेरी पसंदीदा कक्षाओं में से एक बन गया। पूरे स्कूल केलिए होने वाले मिस्सा समारोहों के दौरान, मैं अपने दोस्तों को परम प्रसाद स्वीकार करने के लिए जाते हुए देखता था और जिस रोटी के टुकड़े को वे ग्रहण कर रहे थे, उसके प्रति उनकी श्रद्धा के बारे में जानने के लिए मैं उत्सुक रहता था। हम कानिष्ठ लोगों के लिए आयोजित एक साधना के अवसर पर, अंतिम दिन के मिस्सा बलिदान के दौरान, परम प्रसाद से मेरी गहन साक्षात्कार हुआ, इसके द्वारा मेरे भीतर ईश्वर की शक्ति का एहसास हुआ। पुरोहित ने हमें परम प्रसाद की अभिषेक प्रार्थना और वितरण के लिए पवित्र वेदी की चारों ओर इकट्ठा किया; मैं पवित्र वेदी के इतने करीब कभी नहीं गया था। परम प्रसाद वितरण के दौरान, पुरोहित परमप्रसाद लेकर हम में से प्रत्येक के पास आये; मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। जैसे ही वे मेरे पास आये और कहा: "ख्रीस्त का शरीर", मेरा इरादा उन्हें यह बताना था कि मैं कैथलिक नहीं हूं। लेकिन यह कहने केलिए जैसे ही मैंने अपना मुंह खोला, उन्होंने परम प्रसाद को मेरी जीभ पर रख दिया। मैंने उस क्षण महसूस किया कि ईश्वर की शक्ति मेरे पूरे शरीर से गुजर रही है। हालाँकि अब मैं जानता हूँ कि बपतिस्मा न पाए हुए व्यक्ति के लिए - यहाँ तक कि जो परम प्रसाद में येशु मसीह की वास्तविक उपस्थिति पर विश्वास नहीं करने वाले बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति के लिए भी – परम प्रसाद ग्रहण करना सही नहीं है, परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि मैंने अपना पहला पवित्र संस्कार संयोग से ग्रहण किया! इस घटना ने मेरे जीवन को बहुत गहराई से बदल दिया; मैंने विश्वास के बारे में और अधिक अध्ययन करना शुरू किया, और जब मैं मिसिसिपी चला गया, तब तक मैं एक कैथलिक बन चुका था जो हर दिन वास्तव में येशु मसीह को ग्रहण कर सकता था। उतार-चढ़ाव बेसबॉल अच्छा चल रहा था, और टीम अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर रैंक करती थी। अपने अंतिम वर्ष के दौरान, जब मैं ज़ोन में आया, तो मैंने एक ग्रैंड स्लैम मारा (चौका, जो बेसबॉल खेल में बहुत कम लोग मार पाते हैं), जिस के कारण हम कॉलेज वर्ल्ड सीरीज़ में पहुँच गए। मुझे उस टूर्नामेंट का सबसे मूल्यवान खिलाड़ी नामित किया गया। लेकिन अगले तीन खेलों में कुछ त्रुटियों ने सब कुछ खत्म कर दिया। वर्ल्ड सीरीज़ मेजर लीग ड्राफ्ट के दौरान, मेरे आठ साथियों को ड्राफ्ट किया गया, लेकिन मेरे फोन की घंटी नहीं बजी। मैं टूट गया। मैं घर आया और मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मेरे हाई स्कूल के पूर्व बेसबॉल कोच, शिकागो व्हाइट सॉक्स के कोच बन चुके थे। कुछ हफ़्तों बाद उन्होंने मुझे फ़ोन किया और पेशेवर बेसबॉल खेलने के लिए ट्रायल के बारे में बताया। यह मेरे लिए अच्छा रहा, और अगले दिन, मैंने व्हाइट सॉक्स टीम के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। लेकिन यह वैसा नहीं हुआ जैसा मैंने योजना बनाई थी। सीज़न के अंत में, उन्होंने कहा: "बर्क, तुम सब कुछ अच्छा करते हो, लेकिन तुम कुछ भी महान नहीं करते, हम महानता की तलाश में हैं।" उन्होंने मेरे अनुबंध को नवीनीकृत नहीं किया। मैं कुछ समय तक कोशिश करता रहा, लेकिन आखिरकार मुझे इस सच्चाई का सामना करना पड़ा कि यह सब खत्म हो चुका है। मैं 23 साल का था और मेरे पास सिर्फ़ गणित की डिग्री थी। किसी ने बताया कि बीमांक विज्ञान (एक्चुरियल साइंस) में करियर बनाना संभव है, इसलिए मैंने वह पढ़ाई की, मुझे नौकरी मिल गई और मैंने खूब पैसे कमाए। लेकिन काम का तनाव इतना कम था कि मैं ऊब गया और मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी। ओहियो विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद, मुझे एक माइनर लीग बेसबॉल टीम, केन काउंटी कुगर्स, में नौकरी मिल गई। चार साल बाद, मेरे पास दो नौकरियों के प्रस्ताव आये - एक ही समय में बेसबॉल में दो नौकरी! मेरे सपनों के मुताबिक़! मैंने स्टेफ़नी को डेट करना शुरू ही किया था, जिससे मैं स्थानीय गिरजाघर में मिला था। एक रात, हम डिनर के लिए बाहर गए और जब हम रेस्तराँ से निकल रहे थे, तो उसने कहा: "चलो परम प्रसाद की आराधना के लिए गिरजाघर चलते हैं।" हालाँकि मैं कम से कम आठ या नौ साल से कैथलिक था, लेकिन मैंने परम प्रसाद की आराधना के बारे में कभी नहीं सुना था। स्टेफ़नी ने समझाया कि हम परम प्रसाद के संस्कार के सामने एक घंटे की शांत प्रार्थना करेंगे। उस आराधना के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मौन में, हमारी मुलाक़ात ईश्वर से होती है। हम हर मंगलवार की रात को एक घंटे की आराधना के लिए जाने लगे, और मौन से मेरा डर मौन की लालसा में बदल गया। यह मेरे हर सप्ताह का सबसे शांतिपूर्ण घंटा बन गया। और मेरे दिल में, पुरोहित बनने की भावना सतह पर उभरती रही। ऐसा लग रहा था जैसे ईश्वर मुझसे पुरोहित बनने के लिए कह रहा था; बार-बार एक सौम्य निमंत्रण। मेरे परिवार के सदस्य, दोस्त और यहाँ तक कि पूरी तरह से अजनबी लोग भी मेरे पास आने लगे और कहने लगे कि उन्हें लगता है कि तुम एक अच्छा पुरोहित बन सकता हो। मुझे लगा कि पवित्र आत्मा आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से काम कर रही है। इसलिए, मैंने स्टेफ़नी से बात की, और उसने मुझसे कहा कि अगर यह मेरी बुलाहट है, तो मुझे इसका पालन करना होगा। मेरा इरादा था कि मैं एक साल के लिए सेमिनरी जाऊँ और फिर स्टेफ़नी के पास लौट आऊँ। लेकिन जैसे ही मैं सेमिनरी के दरवाज़े से अंदर गया, मुझे ऐसी शांति महसूस हुई जो कभी खत्म नहीं हुई। मई 1998 में, जब मैं सेमिनरी का पहला साल पूरा कर रहा था, मुझे अपने पिता का फोन आया और उन्होंने मुझे तुरंत घर जाने के लिए कहा, क्योंकि मेरी माँ को फेफड़ों के कैंसर का पता चला था, जो मस्तिष्क और कलेजे तक फैल गया था। मैंने सब कुछ छोड़ दिया और घर चला गया। कैंसर की बीमारी चौथे चरण पर पहुँच चुकी थी। हालाँकि हम उम्मीद करते रहे, दो महीने बाद, माँ टेलीविजन देखती हुई मेरी बाहों में गिर पड़ी और चली गयी। यह भयानक था। जब मैंने खिड़की से बाहर देखा और ड्राइव वे में अपनी माँ की कार देखी, तो मैंने कल्पना की कि मेरी माँ ईश्वर के आमने-सामने आ रही हैं। ईश्वर उनसे यह नहीं पूछ रहा था कि वह किस तरह की कार चलाती हैं या वह कितना पैसा कमाती हैं, बल्कि इसके बजाय, कुछ और बुनियादी बात पूछ रहा था, जैसे: "क्या तुमने अपने पूरे दिल, दिमाग और आत्मा से अपने ईश्वर से प्यार किया है, और अपने पड़ोसी से अपने जैसा प्यार किया है?" भले ही मेरी माँ, गिरजाघर नहीं जाती थीं, फिर भी उन्होंने हमें ईश्वर के प्यार के बारे में सिखाया था। सबसे बेहतर आनंद मैं आस्था के संकट से गुज़रा। मैंने यह भी सोचा कि क्या मृत्यु के बाद भी जीवन है। मैं अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को मुझसे दूर करने के लिए ईश्वर से नाराज़ था, लेकिन ऐसा हुआ कि ईश्वर ने मुझे इससे बाहर निकाला। मैं सेमिनरी वापस गया और कुछ वर्षों बाद मुझे पुरोहिताई का अभिषेक मिला। मैं ईश्वर का शुक्रिया अदा करता हूँ कि मैं कभी भी बेसबॉल के प्रमुख दलों में नहीं पहुँच पाया, क्योंकि पुरोहित के रूप में मैंने जो आनंद और शांति का अनुभव किया है, वह बेसबॉल के मैदान पर मेरे द्वारा अनुभव की गई किसी भी आनंद से कहीं ज़्यादा है। मैं न केवल शिकागो के बेसबॉल क्लबों के लिए धार्मिक परामर्शदाता रहा हूँ, बल्कि मैंने कैथलिक खेल शिविरों को स्थापित और संचालित किया है, जिनका अब विस्तार हो रहा है। यह ईश्वर का अनोखा तरीका था, जिस तरीके से खेलों में मेरे शौक और मेरी पसंद को आत्मसात करने और इसे अपने सेवा क्षेत्र में लाने की ईश्वर ने मुझे अनुमति दी। ईश्वर हमें एक उद्देश्य के साथ उपहार देता है, और वह चाहता है कि जिन तरीकों से हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी, उन तरीकों से हम उनकी महिमा के लिए उन उपहारों का उपयोग करें। ------------------------- फादर बर्क मास्टर्स इलिनोई के हिंसडेल में सेंट आइजैक जोग्स पल्ली में सेवा करते हैं। वे ‘ए ग्रैंड स्लैम फॉर गॉड: ए जर्नी फ्रॉम बेसबॉल स्टार टू कैथलिक प्रीस्ट’ नामक पुस्तक के लेखक हैं।
By: फादर बर्क मास्टर्स
Moreहर क्रिया के साथ, हम एक तीर लक्ष्य की ओर निशाना साध रहे हैं। क्या हम हर बार कहते हैं "अरे निशाने पर सही नहीं गया! क्या मैं इसे फिर से कर सकता हूं?" बातचीत पिछली रात शुरू हुई थी, जैसे कई अन्य बातचीत होती हैं, पूरी तरह से निर्दोष बातचीत। घर के रास्ते पर, मुझे असहजता का एहसास हुआ। उन शब्दों पर विचार करते हुए जो मैंने पहले अपनी दोस्त से साझा किए थे, मुझे लगा कि क्या मैं वही पुराना संकेत महसूस कर रही हूं जो शायद पवित्र आत्मा की ओर से मुझे मिल रहा है। रात के अँधेरे में भी ईश्वर का आत्मा मुझे सलाह देता है, जिसे स्तोत्र 16:7 में वर्णित किया गया है? “मैं अपने परामर्शदाता ईश्वर को धन्य कहता हूँ। रात को भी मेरा अंत:करण मुझे पथ दिखाता है।” गेराज में गाड़ी लगाते हुए, मैंने तुरंत उस विचार को नकार दिया... आखिरकार, यह महिला कुछ अन्य महिलाओं के साथ कुछ समस्या का सामना कर रही थी, इसलिए उसने उन समस्याओं को लेकर मुझसे संपर्क किया, और मैं अपनी प्रतिक्रिया में सहानुभूति और समझदारी दिखाने की कोशिश कर रही थी। अगली सुबह, हालांकि, यह स्पष्ट था कि स्तोत्रकार का अनुभव अब मेरा था: प्रभु वास्तव में “मेरा परामर्शदाता ईश्वर मुझे परामर्श देता है; रात को भी मेरा अंत:करण मुझे पथ दिखाता है।” मुझे कुछ साल पहले शब्दों की शक्ति के बारे में मैंने जो सीखा था, जागते ही वह तुरंत याद आया। हाँ, जो कुछ मैंने पिछली रात साझा किया था, वह सत्य था। यह उस संदर्भ में सहायक भी था, जो मेरी इस व्यक्ति के साथ संबंधों के संदर्भ में था। मेरी प्रतिक्रिया प्रेरणादायक नहीं थी! अफसोस, इसे आवश्यक भी नहीं कहा जा सकता था! सौभाग्य से, मेरा आंकलन सकारात्मक नोट पर समाप्त हुआ, क्योंकि मेरी टिप्पणियों को दयालु माना जा सकता था, क्योंकि जब हम अपनी दोस्त की चिंताओं पर चर्चा कर रहे थे, तब मैंने इन महिलाओं के उन सुंदर गुणों को याद किया। जैसे हम में से अधिकांश किसी न किसी विशेष प्रकार का आइस क्रीम या अन्य पसंदीदा भोजन के स्वाद का बार-बार आनंद लेते हैं, वैसे ही हम में से कुछ के पास एक विशेष पाप होता है जिसका बार-बार स्वाद लेने का हमारा मन करता है। (एक कहानी याद आती है कि एक व्यक्ति पुरोहित के पास जाकर हर बार पाप स्वीकार में यह कहता है कि वह अशुद्ध विचारों में उलझा हुआ था...पुरोहित पूछते हैं: “क्या आपने उन विचारों के साथ रहकर पाप किया ?” पाप स्वीकार करनेवाला व्यक्ति जवाब देता है: “नहीं, लेकिन उन विचारों ने मेरे साथ रहकर पाप किया होगा!”) मैंने महसूस किया कि मैंने अपने विशेष 'स्वाद' वाले पाप के सामने समर्पण कर दिया था, जिसे मैं अक्सर स्वीकार करती थी, लेकिन फिर भी उसे दोहराती रहती थी... लेकिन जैसा कि कहानी में उस आदमी के पापस्वीकार से हमें हंसी आती है, उसी तरह मेरे पापस्वीकार के बारे में सोचकर मुझसे उस तरह की हंसी नहीं निकलती! अपने इस द्वंद्व पर विचार करते हुए, मैंने सोचा कि समान स्थिति में क्या कोई और इस तरह की सोच रख सकते हैं... किसी और का 'पसंदीदा पाप' क्या हो सकता है? क्या उन्होंने भी उसे बार-बार ईश्वर, पुरोहित या यहां तक कि किसी ऐसे दोस्त के सामने, जिसे वे विश्वास करते हैं, इस तरह बार बार पाप स्वीकार किया होगा,? बचपन से बड़े होने के पल बाइबिल में 'पाप' शब्द का यूनानी अनुवाद 'हमार्टानो' है, जिसका मतलब है कि एक व्यक्ति तीर चला रहा है, लेकिन निशाना चूक जाता है। जो व्यक्ति निशाने से चूकता था, उसे पापी कहा जाता था। मेरी सारी कोशिशों के बावजूद, मैं भी निशाने से चूक गयी थी! उस सुबह ईश्वर से बात करने के बाद, मैंने अपनी दोस्त को संदेश भेजा। माफी मांगने के लिए टाइप करते हुए एक ऐसा विचार जो मेरे मन में आया उसे भी साझा करने के बाद, मुझे अंततः अपने 'हमार्टानो' की जड़ समझ में आई। मैंने अपने संदेश में लिखा: “मेरे शब्दों का उपयोग करने और लोगों के साथ कहानियाँ और बातचीत साझा करने की मस्ती मुझ पर हावी थी, जिसके कारण मुझे अनावश्यक और प्रेरणा न देनेवाले कार्यों के लिए इसका उपयोग करने की अपनी इच्छाओं को मैं रोक नहीं पाती थी।” मैंने संदेश समाप्त करते हुए अपनी दोस्त से कहा कि अगर मैं भविष्य में इन 'सीमाओं' से बाहर जाऊं, तो वह मुझे जवाबदेह ठहराए। मुझे जल्द ही जवाब में एक संदेश मिला: "चाहे हम कितने भी समय से येशु के साथ चल रहे हों, हमारे पास हमेशा और प्रगति करने के अवसर होते हैं। तुम माफ़ किए गए हो! मैं सहमत हूँ कि हमारी बातचीत जितनी देर तक चली, उतनी लंबी नहीं होनी चाहिए थी, जिससे हम एक खतरनाक क्षेत्र में पहुंच गए थे। मैं उन परिस्थितियों के प्रति अधिक सचेत रहने की पूरी कोशिश करूंगी और जरूरत पड़ने पर तुम्हें जवाबदेह ठहराऊँगी, और तुम्हारे लिए भी वही करने की उम्मीद करती हूं। प्रभु का धन्यवाद कि उसने हमें अपनी कृपा और दया से दिखाया, और हमें यह समझाया कि हमें कहां बेहतर करने की आवश्यकता है।" मेरी दोस्त की कृपालु प्रतिक्रिया और ईमानदारी की सराहना करते हुए, मुझे 'बेहतर करने' की प्रेरणा मिली! मुझे एहसास हुआ कि चूंकि यह स्पष्ट है कि हमारे भीतर कुछ ऐसा है, जिसे हम अपने सामान्य प्रलोभन में शामिल होकर या उसे बढ़ावा देकर पोषित कर रहे हैं, इसलिए इस परिणामी व्यवहार की जड़ तक पहुंचना अनिवार्य है। पवित्र आत्मा से यह जड़ हमारे सामने प्रकट करने के लिए कहने से, हमें यह समझने में मदद मिलती है कि हम इस क्षेत्र में बार-बार निशाना क्यों चूकते हैं। हमारे साथ अतीत में क्या हुआ था, जिसके कारण हमारे अंदर एक खालीपन पैदा हो गया था, जिसे हम अपने पाप के स्वाद से भरना चाहते हैं? इस भोग-विलास से हम किस ज़रूरत या इच्छा को पूरा कर रहे हैं? क्या हमारे टूटेपन के कारण कोई घाव सड़ रहा है, जिसे भरने की ज़रूरत है? हम किस तरह की स्वस्थ प्रतिक्रिया पर विचार कर सकते हैं, जिससे न केवल दूसरों को चोट पहुँचने से रोका जा सके, बल्कि हम अपनी कमज़ोरियों में खुद के प्रति करुणा और अनुग्रह भी दिखा सकें? यह जानते हुए कि हमें ‘अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना है, दूसरों से प्रेम करने की कोशिश करने से खुद से भी प्रेम करने की ज़रूरत बढ़ती है, है न? बोयें, उगाएं और छांटें कभी-कभी, हम सालों तक एक ही व्यवहार में बने रहते हैं। मेरी दोस्त के अन्दर जवाब देने का साहस था, लेकिन बहुत से लोगों के पास ऐसा साहस नहीं होता है, इस कारण, हम ऐसे पैटर्न में बने रहते हैं जो पवित्र आत्मा के प्रयासों को सीमित करते हैं ताकि हम मसीह की प्रतिछाया के अनुरूप बन सकें। हम बदलने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन जब तक हम पर्याप्त रूप से प्रेरित नहीं होते हैं, शायद किसी और को अपना जवाबदेही के भागीदार बनाने के द्वारा, हम हार मान सकते हैं और अपनी पसंद के स्वाद पर वापस जा सकते हैं। चाहे वह रॉकी रोड आइसक्रीम हो, या मेरे द्वारा अनावश्यक शब्दों का चयन, प्रभु चाहते हैं कि हम जानें कि यदि हम उनकी आत्मा को हमें अन्य विकल्पों की ओर ले जाने देते हैं तो हमारा जीवन और हमारे आस-पास के अन्य लोगों का जीवन कितना अधिक सुखद हो सकता है । मुझे पता था कि जिस प्रवृत्ति में मैं इतनी आसानी से फंस गयी थी, उसको बदलने का तरीका खोजने की मुझे ज़रूरत है। जब मेरी दोस्त ने देखा कि मैं फिर से उस परिचित रास्ते पर चलना शुरू कर रही हूँ, तब मैंने उससे जवाबदेह होने में मेरी मदद करने के लिए कहा। चूँकि पाप से बचने के हमारे सभी प्रयास येशु के चरित्र का बेहतर अनुकरण करने की ओर ले जाते हैं, इसलिए गलाती 5:22-23 मेरे मन में आया। मैं पाप के अपने विशेष स्वाद के बजाय आत्मा के फलों में से किसी एक के साथ अपनी भूख को संतुष्ट करना चुन सकती थी। प्रेम, आनंद, शांति, सहनशीलता, मिलनसारी, दयालुता, भलाई, ईमानदारी, सौम्यता और आत्म-संयम के फल उत्पन्न करना येशु मसीह के समान बनने केलिए हमारे प्रयासों में पवित्र आत्मा के साथ हमारी भागीदारी का प्रमाण है। अभ्यास से परिपूर्णता नहीं मिलती, लेकिन यह प्रगति जरूर करता है! इन गुणों में से किसी एक का अभ्यास करने की दिशा में अपने इरादे को निर्देशित करके मुझे पता था कि मैं अंततः धार्मिकता का फल देखूंगी। प्रत्येक फल एक बीज बोने से शुरू होता है, फिर अंततः जब तक कि हम सही प्रकार का फल नहीं देखते, तब तक खाद देकर, उगाकर और छंटाई की जाती है। इस बीच, मैं अपने मन को अनुस्मारकों से खाद देना शुरू करूँगी, ऐसी कहावत के द्वारा: "शब्द तीर की तरह होते हैं; एक बार कमान से छोड़े जाने के बाद उन्हें वापस नहीं बुलाया जा सकता।" जब मैं अपने व्यवहार की जड़ जानती हूँ, और मैंने अपनी मित्र को मुझे जवाबदेह ठहराने के लिए आमंत्रित किया है, तब मैं आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करने पर ध्यान केंद्रित करने का विकल्प चुन रही हूँ, जैसा कि मेरी मित्र ने बहुत ही संक्षेप में बताया, उसी तरह जब मुझे लगता है कि दूसरे लोग हमें 'खतरनाक क्षेत्र में डाल रहे हैं', तब उनके साथ बातचीत समाप्त कर रही हूँ। यह देखने और चखने के बाद कि प्रभु अच्छे हैं, मैं जानती हूँ कि केवल वही वास्तव में मेरे दिल की इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। स्तोत्र 16:8 आगे कहता है: "मैं प्रभु को सदा अपनी आँखों के सामने रखता हूँ; वह मेरे दाहिने विराजमान है, मैं विचलित नहीं होऊँगा।" मैं लक्ष्य पर निशाना लगाने के लिए एक बार फिर अपना तीर उठाती हूँ। प्रभु की कृपा से, समय के साथ, मेरा तीर निशाने के करीब पहुँच जाएगा। येशु की शिष्य बनने के लिए प्रतिबद्ध, मैं अपने स्वर्ग रुपी घर का मार्ग येशु का अनुसरण करूँगी। निश्चय ही तेरी भलाई और तेरी कृपा से मैं जीवन भर घिरा रहता हूँ। मैं चिरकाल तक प्रभु के मंदिर में निवास करूँगा। (स्तोत्र 23:6)
By: करेन एबर्ट्स
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