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प्रश्न: मैं बाइबिल की पढ़ाई करना चाहता हूँ। लेकिन मुझे नहीं मालूम कि कहाँ से शुरू करूं, क्या मैं इसे उपन्यास की तरह शुरू से अंत तक पढूं? क्या मैं किसी भी पन्ने को ऐसे ही खोलकर पढ़ना शुरू करूँ? आप की क्या सलाह है?
उत्तर: बाइबिल येशु का साक्षात्कार पाने का शक्तिशाली माध्यम है। संत जेरोम ने कहा है: “पवित्र ग्रन्थ की अज्ञानता येशु के प्रति अज्ञानता है”। आपने इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने का निर्णय लिया है, इसलिए आप को बधाइयां।
पहली नज़र में बाइबिल बोझिल लग सकती है, एक दुसरे से भिन्न अलग अलग बिखरी हुई कहानियाँ, लम्बी वंशावलियां, कानून और भविष्यवाणियाँ, पद्य और गीत आदि इत्यादि से यह भरी हुई है। मेरा सुझाव है कि आप बाइबिल को दो तरीके से पढ़ सकते हैं। सबसे पहले ध्यान दें कि बाइबिल को आरम्भ से अंत तक न पढ़ें, क्योंकि बाइबिल की कुछ किताबें समझने में आपको कठिनाई होगी। इसके बजाय, डॉ. जेफ़ कैविंस द्वारा लिखित “दी ग्रेट एडवेंचर बाइबिल टाइम लाइन” नामक किताब पढने से मुक्ति इतिहास की कहानी आप की समझ में आएगी – हमें अपने पापों से बचाने के लिए ईश्वर ने किस तरह सम्पूर्ण मानव इतिहास में कार्य किया है, इसकी कहानी उत्पत्ति से शुरू होती है। ईश्वर ने संसार की सुन्दर रचना की, और उसे यह अच्छा लगा, लेकिन मानव ने आदि पाप के कारण विनाश का रास्ता अपनाया और इस तरह वह संसार में बुराई लाया। लेकिन ईश्वर ने हमें त्याग नहीं दिया। इसके बदले उसने इब्राहिम, मूसा और दाऊद के द्वारा हमारे साथ रिश्ता जोड़ा और विधान को स्थापित किया। व्यवस्था के माध्यम से उनका अनुसरण करने के लिए उसने हमें सिखाया, और उसने अपनी प्रतिज्ञाओं के प्रति विश्वस्तता के जीवन में लौटने के लिए नबियों के द्वारा हमारा आह्वान किया। आखिर में, पाप के कारण उत्पन्न मानवीय बिखराव, पीड़ा, और उत्कंठा के सम्मुख निश्चित समाधान के रूप में ईश्वर ने अपने पुत्र येशु को भेजा। अपने जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान द्वारा येशु ने हमें हमेशा के लिए ईश्वर से मेलमिलाप कराया और संसार के कोने कोने तक मुक्ति को पहुंचाने के लिए अपनी कलीसिया को स्थापित किया।
मुक्ति इतिहास की इस अद्भुत कथा को बाइबिल हमें विभिन्न पुस्तकों के अलग अलग हिस्सों में बताती है। आदम से येशु तक की सम्पूर्ण कहानी को समझने और विभिन्न किताबों और अध्यायों के माध्यम से निर्देश पाने के लिए आपको डॉ. कैविंस का टाइम लाइन पढ़ना चाहिए।
बाइबिल को पढने के दूसरे तरीके को ‘लेक्शियो डिवीना’ या ‘पवित्र वाचन’ कहते हैं। एक छोटे पाठांश को लेकर उसके माध्यम से ईश्वर को आपसे बात करने के लिए इस पवित्र वाचन का तरीका अवसर देता है। अच्छा होगा कि आप सुसमाचारों से या संत पौलुस के पत्रों से कोई छोटा पाठांश – 10 या 20 पद लें और ईश्वर को मौका दें कि वह आपसे इसके द्वारा बात करें।
वाचन (लेक्शियो): पहले पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें । उसके बाद पाठ को एक बार धीमी गति से पढ़ें (यदि हो सके तो जोर से पढ़ें)। कोई शब्द, वाक्यांश या बिम्ब जो आपका ध्यान आकर्षित करता है, उस पर ध्यान केन्द्रित करें।
ध्यान (मेडिटेशियो): उसी पाठ को दुबारा पढ़ें, और ईश्वर से पूछें कि वह उस शब्द, वाक्यांश या बिम्ब के द्वारा आप को क्या सन्देश संप्रेषित करना चाहता है। किस तरह यह आपके जीवन में प्रयोग में आता है?
प्रार्थना (ओरेशियो): इस पाठ को तीसरी बार पढ़ें, और जिस शब्द, वाक्यांश या बिम्ब ने आपका ध्यान आकर्षित किया, उसके बारे में ईश्वर से बात करें। ईश्वर के बारे में यह वाक्य क्या प्रकट करता है? उसके वचन के प्रत्युत्तर में आपको कुछ परिवर्तन लाने के लिए क्या ईश्वर आपसे कह रहा है? उसके प्रति और अधिक विश्वस्त रहने का संकल्प लें।
मनन (कोंटाम्प्लाशियो): ईश्वर की उपस्थिति में शांत बैठें। आपकी सोच में आ रहे किसी शब्द, बिम्ब या स्मृति पर मनन करें – इस तरह से परमेश्वर मौन में अपने सन्देश का संचार करता है।
सुसमाचार या पौलुस के पत्र को पढ़कर लाभ उठाने के लिए इस तरीके का प्रतिदिन प्रयोग करें। आप पायेंगे कि ईश्वर आपको बहुत सी प्रेरणा और ज्ञान देगा जिसकी आप ने कभी अपेक्षा नहीं की थी। ईश्वर के वचन के द्वारा उसे जानने के आपके प्रयासं में वह आपको आशीषें दे। चाहे आप इसे मुक्ति-इतिहास को समझने या अतीत में ईश्वर के किये कार्य को समझने के लिए आप पढ़ रहे हैं, या वर्त्तमान में ईश्वर किस तरह कार्य कर रहा है, यह जानने के लिए आप लेक्शियो डिविना के द्वारा प्रार्थना कर रहे हैं, दोनों स्थितयों में ईश्वर का वचन जीवंत और प्रभावशाली है, और यह आपके जीवन को बदल सकता है।
फादर जोसेफ गिल हाई स्कूल पादरी के रूप में एक पल्ली में जनसेवा में लगे हुए हैं। इन्होंने स्टुबेनविल के फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय और माउंट सेंट मैरी सेमिनरी से अपनी पढ़ाई पूरी की। फादर गिल ने ईसाई रॉक संगीत के अनेक एल्बम निकाले हैं। इनका पहला उपन्यास “Days of Grace” (कृपा के दिन) amazon.com पर उपलब्ध है।
मैंने अपनी पढ़ाई में सफलता के लिए प्रभु से संपर्क किया, लेकिन प्रभु यहीं नहीं रुके... अपने हाई स्कूल के वर्षों के दौरान, मैंने आस्था और शैक्षणिक विकास की एक उल्लेखनीय यात्रा का अनुभव किया। एक धर्मनिष्ठ कैथलिक के रूप में, मेरा दृढ़ विश्वास था कि ईश्वर की उपस्थिति हमेशा मेरे साथ थी, खासकर जब बात मेरी पढ़ाई की आती थी। मुझे एक खास सेमेस्टर याद है; मैं परीक्षाओं और असाइनमेंट के बोझ से जूझ रहा था। पढने के विषयों का ढेर बढ़ रहा था, और बहुत सारी जानकारी हासिल करने की ज़रूरत से मैं घबरा रहा था। मेरे मन में संदेह पैदा होने लगा, जिससे मैं अपनी क्षमताओं पर सवाल उठाने लगा। अनिश्चितता के उन क्षणों में, मैंने प्रार्थना को अपने सांत्वना और मार्गदर्शन के स्रोत के रूप में अपनाया। हर शाम, मैं अपने कमरे में वापस चला जाता, एक मोमबत्ती जलाता, और क्रूस के सामने घुटने टेकता। मैंने अपने दिल की बात ईश्वर के सामने रखी, अपने डर और संदेह को व्यक्त करते हुए अपनी पढ़ाई में शक्ति, ज्ञान और स्पष्टता की माँग की। एक अदृश्य मार्गदर्शक जैसे-जैसे सप्ताह बीतते गए, मैंने कुछ असाधारण घटित होते देखा। जब भी मुझे कोई चुनौतीपूर्ण विषय मिलता या मैं किसी कठिन अवधारणा से जूझता, तो मुझे अप्रत्याशित स्पष्टता मिलती। ऐसा लगता था जैसे मेरे रास्ते पर रोशनी पड़ रही हो, जो आगे बढ़ने का रास्ता रोशन कर रही हो। मैं किताबों में मददगार संसाधन या अंश पा लेता जो जटिल विचारों को पूरी तरह से समझाते हैं या सहपाठियों और शिक्षकों से अप्रत्याशित समर्थन प्राप्त करता। मुझे एहसास होने लगा कि ये महज़ संयोग नहीं थे, बल्कि ईश्वर की उपस्थिति और मेरी शैक्षणिक यात्रा में मदद के संकेत थे। ऐसा लग रहा था जैसे प्रभु मेरा मार्गदर्शन कर रहा था, मुझे धीरे-धीरे सही संसाधनों, सही लोगों और सही मानसिकता की ओर धकेल रहा था। जैसे-जैसे मैंने ईश्वर के मार्गदर्शन पर भरोसा करना जारी रखा, मेरा आत्मविश्वास बढ़ता गया और मेरे ग्रेड में सुधार होने लगा। मैंने जानकारी को आत्मसात करने और जटिल अवधारणाओं को समझने की अपनी क्षमता में एक उल्लेखनीय अंतर देखा। मैं अब अकेले अध्ययन नहीं कर रहा था; मेरे पास एक अदृश्य साथी था, जो हर चुनौती के दौरान मेरा मार्गदर्शन करता था और मुझे दृढ़ रहने के लिए प्रोत्साहित करता था। लेकिन यह केवल ग्रेड के बारे में नहीं था। इस अनुभव के माध्यम से, मैंने आस्था और भरोसे के बारे में मूल्यवान सबक सीखे। मैंने सीखा कि ईश्वर की मदद आध्यात्मिक मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हमारे जीवन के हर पहलू तक फैली हुई है, जिसमें हमारी पढ़ाई भी शामिल है। मैंने सीखा कि जब हम सच्चे दिल से ईश्वर की ओर मुड़ते हैं, तो वह न केवल हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है, बल्कि हमें वह सहायता भी प्रदान करता है जिसकी हमें आवश्यकता होती है। धार्मिकता से जुड़ाव इस यात्रा ने मुझे ईश्वर के साथ एक मजबूत संबंध बनाए रखने, उनके मार्गदर्शन की तलाश करने और उनकी योजना पर भरोसा करने का महत्व सिखाया। यह मुझे याद दिलाता है कि सच्ची सफलता केवल अकादमिक उपलब्धियों से नहीं बल्कि चरित्र, लचीलापन और विश्वास के विकास से भी मापी जाती है। पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो उस सेमेस्टर के दौरान सामना की गई चुनौतियों के लिए मैं आभारी हूँ, क्योंकि उन समस्याओं ने ईश्वर के साथ मेरे रिश्ते को गहरा किया और उनकी अचूक सहायता से मेरे विश्वास को मजबूत किया। आज, जैसा कि मैं अपनी शैक्षणिक गतिविधियों को जारी रखता हूँ, मैं उस समय के दौरान सीखे गए सबक को साथ लेकर चलता हूँ, यह जानते हुए कि ईश्वर का दिव्य मार्गदर्शन हमेशा मुझे ज्ञान और पूर्णता के मार्ग पर ले जाने के लिए मौजूद रहेगा। ऐसी दुनिया में जहाँ अकादमिक दबाव अक्सर हमें खा जाते हैं, यह याद रखना ज़रूरी है कि हम अपनी यात्रा में अकेले नहीं हैं। कैथलिक विश्वासी होने के नाते, हमें हर समय ईश्वर का मार्गदर्शन प्राप्त करने और उनकी उपस्थिति में सांत्वना पाने का सौभाग्य प्राप्त है। इस व्यक्तिगत कहानी के माध्यम से, मैं दूसरों को न केवल अपने अध्ययन में बल्कि अपने जीवन के हर पहलू में ईश्वर के अटूट समर्थन पर भरोसा करने के लिए प्रेरित करना चाहता हूँ। हम सभी को यह जानकर सुकून मिले कि ईश्वर हमारे परम शिक्षक हैं, जो हमें ज्ञान, समझ और अटूट विश्वास की ओर मार्गदर्शन करते हैं।
By: डेलोन रोजस
Moreयदि आपको ऐसा लगता है कि आपने जीवन में अपने सारे मूल्य और उद्देश्य खो दिए हैं, तो यह लेख आपके लिए है। मेरे 40 वर्षों के पुरोहिताई जीवन में, आत्महत्या करने वाले लोगों के अंतिम संस्कार मेरे लिए सबसे कठिन कार्य रहा है। और यह केवल एक सामान्य कथन नहीं है, क्योंकि हाल ही में मैंने अपने ही परिवार में एक युवा व्यक्ति को खो दिया। उसकी आयु केवल 18 वर्ष थी। उसने अपने जीवन की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के कारण आत्महत्या कर ली। आजकल आत्महत्या की दर बढ़ रही है, और इसके निवारण के उपायों में दवाएँ, मानसिक चिकित्सा और यहाँ तक कि पारिवारिक प्रणाली चिकित्सा भी शामिल हैं। हालांकि, उन कई चीजों में से एक जो अक्सर चर्चा में नहीं आती है, वह है आध्यात्मिक उपाय। अवसाद और आत्महत्या के पीछे एक मुख्य मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक मुद्दा जीवन के आध्यात्मिक अर्थ और उद्देश्य की कमी हो सकती है - यह विश्वास कि हमारे जीवन में आशा और मूल्य है, सबसे अहम् सोच है; इस सोच की कमी खतरनाक है। एक पिता का प्रेम हमारे जीवन का लंगर, हमारे पिता परमेश्वर का प्रेम है, जो हमें उन अंधेरे स्थानों से बाहर निकालता है। मैं यह भी तक कहूंगा कि येशु मसीह ने हमें जो उपहार दिए हैं (हे ईश्वर, वे बहुत सारे उपहार हैं), उनमें सबसे अच्छा और सबसे मूल्यवान उपहार है कि येशु ने अपने पिता को हमारा पिता बना दिया। येशु ने परमेश्वर को एक प्रेममय अभिभावक के रूप में प्रकट किया जो अपने बच्चों से गहरा प्रेम करता है और उनकी परवाह करता है। इस ज्ञान की पुष्टि तीन विशेष तरीकों से होती है: 1. ‘आप कौन हैं’ इसकी पहचान आपकी नौकरी, आपकी सामाजिक सुरक्षा नंबर, आपका ड्राइवर लाइसेंस नंबर या 'सिर्फ' अस्वीकार किए गए कोई प्रेमी, इनमें से कोई भी बात ‘आप कौन है’ इस सवाल का जवाब नहीं हैं। आप परमेश्वर की संतान है- आप परमेश्वर की प्रतिछाया और सादृश्य में बने व्यक्ति हैं। आप वास्तव में उनकी कारीगरी हैं। यही हमारी पहचान है, परमेश्वर में हम यही हैं। 2. परमेश्वर हमें उद्देश्य देता है परमेश्वर में, हमें एहसास होता है कि हम यहाँ क्यों हैं - हमारे जीवन को जो परमेश्वर ने हमें दिया है, उसमें एक योजना, उद्देश्य और संरचना है। परमेश्वर ने हमें इस दुनिया में - उसे जानने, प्यार करने और उसकी सेवा करने के उद्देश्य के लिए बनाया है 3. आपकी एक नियति है हमारी नियति इस दुनिया में रहने के लिए नहीं, बल्कि अनंतता में अपने पिता के साथ रहने और उनके अटूट प्यार को प्राप्त करने के लिए है। पिता को प्रेम की रचयिता के रूप में जानने से हमें उस जीवन को प्राप्त करने, उस जीवन को सम्मान देने और जो ईश्वर हमसे चाहता है उस भरपूर जीवन को साझा करने केलिए आमंत्रण मिलता है । यह हमें इस अर्थ में बढ़ने के लिए प्रेरित करता है कि हम कौन हैं - हमारी अच्छाई, विशिष्टता और सुंदरता क्या है इसे जानने के लिए भी । पिता का प्रेम एक ठोस प्रेम है: "ईश्वर के प्रेम की पहचान इस में है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं, बल्कि ईश्वर ने हमको प्यार किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा।" (1 योहन 4:10) ईश्वर का प्रेम इस तथ्य पर विचार नहीं करता है कि हम हर दिन परिपूर्ण होते हैं, या हम कभी उदास या निराश नहीं होते हैं। यह तथ्य कि ईश्वर ने हमसे प्रेम किया है और अपने पुत्र को हमारे पापों के लिए बलिदान के रूप में भेजा है, वह एक प्रोत्साहन है जो हमें अवसाद के अंधेरे का मुकाबला करने में मदद कर सकता है। अपने मूल में, ईश्वर दंड देने वाला कोई न्यायाधीश नहीं, बल्कि प्यार करने वाला माता-पिता है। चाहे हमारे आस-पास कोई भी कुछ भी करे, ईश्वर ने हमसे प्यार किया है और हमें प्यार करता है, यह समझ हमें सहारा देती है। यह वास्तव में हमारी सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता है। हम सब अकेले हैं; हम सभी, कुछ ऐसी चीज़ की खोज और तलाश कर रहे हैं जो यह दुनिया हमें नहीं दे सकती। हर दिन हमारे ईश्वर की प्रेमपूर्ण दृष्टि में शांत बैठें और ईश्वर को आपसे प्रेम करने दें। कल्पना कीजिए कि ईश्वर आपको गले लगा रहा है, आपका पोषण कर रहा है और आपके डर, घबराहट और चिंता को दूर कर रहा है। परमपिता परमेश्वर का प्रेम प्रत्येक कोशिका, मांसपेशी और रक्त की धमनियों में प्रवाहित होने दें। उसी प्रेम को हमारे जीवन से अंधकार और भय को दूर करने दें। दुनिया कभी भी एक आदर्श स्थान नहीं बन सकती, इसलिए हमें ईश्वर को अपनी आशा से भरने के लिए आमंत्रित करने की आवश्यकता है। यदि आप आज संघर्ष कर रहे हैं, तो किसी मित्र के पास पहुंचें और अपने मित्र को ईश्वर के हाथ और आंखें बनने दें, उन्हें आपको गले लगाने दे और आपसे प्यार करने दे। मेरे 72 वर्षों में कई बार ऐसा हुआ है जब मैं उन दोस्तों के पास पहुंचा हूं जिन्होंने मुझे संभाला, मेरा पालन-पोषण किया और मुझे सिखाया। अपनी माँ की गोद में बैठे बच्चे जैसे ईश्वर की उपस्थिति में बैठे रहें, और तब तक संतुष्ट बैठे रहें जब तक कि आपका शरीर और मन यह सच्चाई न सीख ले कि आप ईश्वर की एक अनमोल, सुंदर संतान हैं, कि आपके जीवन का अपना एक मूल्य, उद्देश्य, अर्थ और दिशा है। ईश्वर को अपने जीवन में बहने दे।
By: फादर रॉबर्ट जे. मिलर
Moreमैंने एक साल पहले अपना आई-फोन खो दिया था। पहले तो ऐसा लगा जैसे शरीर का कोई अंग कट गया हो। मेरे पास तेरह साल से यह आई-फोन था और यह मेरे स्वयं के एक हिस्से की तरह था। शुरूआती दिनों में, मैंने "नए आई-फोन" को सिर्फ एक फ़ोन की तरह इस्तेमाल किया, लेकिन जल्द ही यह अलार्म घड़ी, कैलकुलेटर, अखबार, मौसम, बैंकिंग और बहुत कुछ बन गया...और फिर...यह हाथ से निकल गया। आई फोन खो जाने के बाद जब मुझे डिजिटल डिटॉक्स, यानी आई फोन के कारण मेरे मन में व्याप्त विष उन्मूलन की प्रक्रिया में जाने के लिए मजबूर किया गया, तो मेरे सामने कई गंभीर समस्याएँ खड़ी हो गईं। अब से मुझे अपनी शॉपिंग की सूची को कागज़ पर लिखने की ज़रूरत पड़ी। मैं ने एक अलार्म घड़ी और एक कैलकुलेटर खरीदा। पूर्व में, मुझे रोज़ाना सन्देश आने पर जो 'पिंग' आवाज़ आई-फोन से सुनाई देती थी और उन संदेशों को जल्दी जल्दी देखने की होड़ थी (और दूसरों द्वारा स्वीकृत किये जाने और चाहने का एहसास), ये सारी बातें अब केवल स्मृतियाँ रह गयीं। लेकिन अब इस छोटे से धातु का टुकड़ा मेरे जीवन पर हावी नहीं हो रही है, और उससे अब मैं अपार शांति महसूस कर रही थी। जब यह यंत्र मेरे हाथ से चला गया, तभी मुझे यह एहसास हुआ कि यह मुझसे कितनी प्रकार की मांग करती थी, और मुझ पर हावी होकर मेरा नियंत्रण करती थी। तब भी दुनिया रुकी नहीं। मुझे बस दुनिया के साथ बातचीत करने के नए-पुराने तरीके सीखने थे, जैसे लोगों से आमने-सामने बात करना और घटनाओं की योजना बनाना। मैं इसे बदलने की जल्दी में नहीं थी। वास्तव में, इसके खत्म होने से मेरे जीवन में एक स्वागत योग्य क्रांति आई। मैंने अपने जीवन में मीडिया का न्यूनतम प्रयोग करना शुरू कर दिया। अब से कोई अखबार, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न या फ़ोन नहीं। मैंने काम के ईमेल, सप्ताहांत पर चुनिंदा यू ट्यूब वीडियोज़ और कुछ स्वतंत्र समाचार पोर्टल के लिए एक आइ-पैड रखा। यह एक प्रयोग था, लेकिन इसने मुझे अमन और शांति महसूस कराया, जिससे मैं अपना समय प्रार्थना और धर्म ग्रन्थ के अध्ययन के लिए उपयोग कर सकी। मैं अब और अधिक आसानी से परमेश्वर से जुड़ सकती हूँ, जो "कल, आज और युगानुयुग एकरूप रहते हैं।" (इब्रानी 13:8)। पहली आज्ञा "अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे ह्रदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी बुद्धि और सारी शक्ति से प्यार करने और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करने" के लिए हमें कहती है (मारकुस 12:30-31)। मुझे आश्चर्य होता है कि जब हमारा दिमाग दिन के ज़्यादातर समय हमारे फ़ोन पर लगा रहता है, तब हम ऐसा कैसे कर सकते हैं ! क्या हम वाकई अपनी बुद्धि से परमेश्वर से प्यार करते हैं? रोमी 12:2 कहता है: "आप इस संसार के अनुकूल न बने, बल्कि सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें।" मैं आपको चुनौती देती हूँ कि आप मीडिया से विरक्त रहें, चाहे थोड़े समय के लिए ही क्यों न हो। अपने जीवन में उस परिवर्तनकारी अंतर को महसूस करें। जब हम खुद को थोड़ा आराम देंगे तभी हम अपने प्रभु परमेश्वर को नवीकृत मन से प्रेम कर पायेंगे।
By: Jacinta Heley
Moreप्रश्न – मुझे कैसे पता चलेगा कि खेलों के प्रति मेरा प्रेम मूर्तिपूजा है? मैं कॉलेज की छात्रवृत्ति पाने की उम्मीद से दिन में चार घंटे खेल का अभ्यास करता हूं और इसके बारे में हर समय सोचता रहता हूं| खेल में निपुण टीमों को ध्यानपूर्वक देखता रहता हूं। मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूं लेकिन परमेश्वर के प्रति मुझे वैसा आकर्षण नहीं होता जैसा खेलों के प्रति होता है। खेलों के प्रति मेरा जुनून कब मूर्तिपूजा की सीमा पार कर सकता है ? उत्तर – मैं भी खेलों के प्रति बहुत लालायित हूँ। मैंने हाई स्कूल और कॉलेज में बेसबॉल खेला, और यहां तक कि एक पुरोहित के रूप में, मैं अल्टीमेट फ्रिसबी, सॉकर और अमेरिकी फुटबॉल खेलना जारी रखता हूं। संत पापा जॉनपॉल द्वितीय ने एक बार कहा था, खेल "सद्गुण का क्षेत्र" हो सकते हैं। लेकिन हमारे आधुनिक दुनिया में, हम अक्सर खेलों को बहुत ऊंचा स्थान देते हैं... शायाद बहुत ही अधिक ऊंचा स्थान| मेरे कॉलेज के बेसबॉल कोच का एक महान कथन था: "खेलों में कुछ भी शाश्वत नहीं है।" इस कथन ने मुझे हर चीज़ को परिप्रेक्ष्य में रखने में मदद की है। चैंपियनशिप जीतने से या खेल हारने से अनंत जीवन पर कोई फरक नहीं पड़ेगा। इसका उद्देश्य आनंद लेना है और हमें व्यायाम करने और टीम वर्क, अनुशासन, साहस और निष्पक्षता का अभ्यास करने का अवसर देना है - लेकिन अगर किसी एथलेटिक प्रतियोगिता का शाश्वत जीवन पर कोई परिणाम नहीं होता। तो हम खेलों को उसके उचित परिप्रेक्ष्य में कैसे रखें? हम यह जानने के लिए कि खेल (या कुछ और) कब एक मूर्ति बन गया है इस केलिए हम तीन बातों पर गौर करें: पहला है, समय: - हम खेल में कितना समय बिताते हैं या हम परमेश्वर के साथ कितना समय बिताते हैं? मैंने एक बार एक कक्षा में बैठे युवाओं को प्रतिदिन अपने घर में जाकर दस मिनट प्रार्थना में बिताने की चुनौती दी थी, और एक लड़के ने मुझे बताया कि यह असंभव है क्योंकि वह वीडियो गेम खेलता था। मैंने उससे पूछा कि वह कितना समय विडियो गेम पर बिताता है, तो उसने मुझे बताया कि वह अक्सर दिन में आठ से ग्यारह घंटे खेलता है| यदि किसी व्यक्ति के पास गंभीर प्रार्थना जीवन के लिए प्रतिदिन पंद्रह से बीस मिनट का न्यूनतम समय नहीं है, क्योंकि वे युवा वह समय खेलों में बिता रहे हैं, तो यह वास्तव में मूर्तिपूजा है। इसका मतलब यह नहीं है कि ये दोनों पूरी तरह बराबर होना चाहिए - यदि आप प्रतिदिन दो घंटे अभ्यास करते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपको आवश्यक रूप से प्रतिदिन दो घंटे प्रार्थना करने की आवश्यकता है। लेकिन आपके प्रार्थनामय जीवन के लिए आपके पास पर्याप्त समय होना चाहिए । इसमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारा खेल रविवार की आराधना के साथ न टकराए। मेरा भाई, एक उत्कृष्ट फुटबॉल खिलाडी था, उन्हें एक बार खेल का एक महत्वपूर्ण अभ्यास छोड़ना पड़ा क्योंकि यह अभ्यास ईस्टर रविवार की सुबह हो रहा था। जो कुछ भी हम रविवार की मिस्सा के बजाय करते हैं वह हमारी मूर्ति बन जाता है | परमेश्वर को हमारे बलिदान का एक अभिन्न हिस्सा बनाने के लिए समय देना भी इसमें शामिल है । क्या आपके पास अपने गिरजाघर के या अन्य कोई स्थानीय संस्था के दयाकार्य में स्वयंसेवा करने के लिए समय है? क्या आपके पास अपने दैनिक कर्तव्यों को अच्छी तरह से करने के लिए तथा (अपनी पढ़ाई को अपनी पूरी क्षमता के अनुसार करने, घरेलू काम करने और एक अच्छे बेटे/बेटी और मित्र होने) केलिए पर्याप्त समय है?? यदि खेलों में इतना समय लगता है कि दूसरों को देने के लिए कोई समय नहीं है, तो हम संतुलन से बाहर हैं। दूसरा है पैसा: हम खेलों, उपकरणों, प्रशिक्षकों, जिम सदस्यताओं पर कितना पैसा खर्च करते हैं – यहाँ तक कि हम गिरजाघर में, दया के कार्य में या गरीबों को कितना पैसा देते हैं? हम जहां अपना पैसा खर्च करते हैं वह निर्धारित करता है कि हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं । फिर, यह आवश्यक रूप से पूरी तरह से समान अनुपात नहीं है - लेकिन उदारता परमेश्वर का एक प्रमुख गुण है, जिससे सभी अच्छी चीजें आती हैं। अंत में है उत्साह: अमेरिका में, जहाँ मैं रहता हूँ, अमेरिकन फुटबॉल हमारा राष्ट्रीय धर्म है। जब मैं देखता हूँ कि कई पुरुष ग्रीन बे पैकर्स के खेल में शून्य से नीचे के तापमान में बाहर बैठते हैं, अपनी शर्ट उतारकर टीम के रंग में पेंट किए हुए अपने सीने का प्रदर्शन करते हैं, फोम की टोपी को पहने हुए है (यह एक अजीब परंपरा है!), अपने गला फाड़कर, फेफड़ा खोलकर चिल्लाते हैं तो मुझे आश्चर्य होता है उन्हें देखता हूँ... और इन्हीं में से कई पुरुष रविवार सुबह की आराधना में गिरजाघर में उबाऊ होंगे, मिस्सा बलिदान के जवाब को केवल अनमने ढंग से कम आवाज़ में बडबडाते हैं (यदि वे गिरजाघर तक पहुँच गए तो)। आपको कौन सी चीज़ उत्साहित करता है? क्या आपको एक खेल प्रतियोगिता से अधिक उत्साह होता है, जिसे एक साल बाद याद नहीं किया जाएगा, या पवित्रता के लिए जोखिम भरी, संघर्ष भरी खोज की चुनौती और आनंद, जिससे ईश्वर के राज्य को आगे बढ़ाने, आत्माओं के लिए युद्ध करने का अवसर प्राप्त होता है, जिसके अनंत फल होते हैं? वह एक अनंत विजय की पीछे दौड़ लगाना जैसा है, और यह जीत आपको प्राप्त तमाम खेल के ट्राफियों को फीका बना देगीI अगर आपको लगता है कि आपका खेल के प्रति उत्साह अभी भी मजबूत है, तो ख्रिस्तीय धर्म क्या है इसपर सोच विचार और ध्यान करें। संत बनने की खोज से अधिक रोमांचक और उत्कृष्ट इस पृथ्वी पर कुछ भी नहीं है। इसमें एक अच्छे खिलाड़ी के कई विशेषताएँ शामिल हैं: स्व-त्याग, समर्पण और एकल-मन से लक्ष्य की पुनरावृत्ति। लेकिन हमारा लक्ष्य अनंत जीवन से गुंजायमान है! इन तीन बातों को विचार कीजिये— कहां आप अपना समय बिताते हैं, आप अपने पैसे कैसे खर्च करते हैं, और आपको क्या उत्साहित करता है। कुछ चीज़ें हमारे लिए मूर्ती कब बन जाती हैं, इसे समझने केलिए यह प्रक्रिया हमें मदद देगी।
By: फादर जोसेफ गिल
Moreक्या मेरा जीवन कभी सामान्य हो पाएगा? मैं अपना काम कैसे जारी रख सकती हूँ? इन पर विचार करते हुए, मेरे दिमाग में एक अद्भुत समाधान आया... मुझे अपना जीवन बेहद तनावपूर्ण लग रहा था। कॉलेज में अपने पाँचवें वर्ष में, द्विध्रुवी विकार (बाईपोलर डिसऑर्डर) की शुरुआत के कारण पढ़ाई पूरी करने के मेरे प्रयासों में बाधा बन रही थी। मुझे अभी तक कोई निदान नहीं हुआ था, लेकिन मैं अनिद्रा से ग्रस्त थी, और मैं थकी हुई और अव्यवस्थित दिखती थी। इसके कारण शिक्षक के रूप में रोजगार की मेरी संभावनायें बाधित हुई। चूँकि मेरे पास पूर्णतावाद की ओर मजबूत प्राकृतिक प्रवृत्ति थी, इसलिए मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और डर लगा कि मैं सभी को निराश कर रही हूँ। मैं गुस्से, निराशा और अवसाद में घिर गयी। लोग मेरी गिरावट के बारे में चिंतित थे और मदद करने की कोशिश कर रहे थे। मुझे स्कूल से एम्बुलेंस द्वारा अस्पताल भी भेजा गया था, लेकिन डॉक्टरों को उच्च रक्तचाप के अलावा कुछ भी गलत नहीं मिला। मैंने प्रार्थना की लेकिन कोई सांत्वना नहीं मिली। यहाँ तक कि ईस्टर मिस्सा के दौरान -ईस्टर की रात मेरा सबसे पसंदीदा समय है - भी दुष्चक्र जारी रहा। येशु मेरी मदद क्यों नहीं कर रहा है? मुझे उससे बहुत गुस्सा आया। अंत में, मैंने प्रार्थना करना ही बंद कर दिया। जैसे-जैसे यह चलता रहा, दिन-ब-दिन, महीने-दर-महीने, मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। क्या मेरी ज़िंदगी कभी सामान्य हो पाएगी? यह असंभव लग रहा था। जैसे-जैसे मेरे स्नातक की परीक्षा नज़दीक आ रही थी, मेरा डर बढ़ता जा रहा था। पढ़ाना एक मुश्किल काम है जिसमें बहुत कम ब्रेक मिलते हैं, और छात्रों को मेरी ज़रूरत होगी ताकि मैं उनकी कई ज़रूरतों को पूरा करती हुई और सीखने का एक अच्छा माहौल प्रदान करती रहूँ। मैं अपनी मौजूदा स्थिति में यह कैसे कर सकती थी? मेरे दिमाग में एक भयानक समाधान आया: "तुम्हें बस खुद को मार देना चाहिए।" उस विचार को नरक में होना चाहिए, लेकिन उसे त्यागने और उसे सीधे नरक में वापस भेजने के बजाय, मैंने उसे वहीं मेरे मन में ही रहने दिया। यह मेरी दुविधा का एक सरल, तार्किक उत्तर लग रहा था। मैं बस लगातार हमले के बजाय सुन्न होना चाहती थी। अफ़सोस की बात है कि मैंने निराशा को चुना। लेकिन, जब मुझे लगा कि यह मेरे आखिरी पल होंगे, तो मैंने अपने परिवार के बारे में और मेरे उस व्यक्तित्व के बारे में सोची जो मैं कभी थी। सच्चे पश्चाताप में, मैंने अपना सिर आसमान की ओर उठाया और कहा: "मुझे बहुत खेद है, येशु। इन सब बातों केलिए मुझे क्षमा कर। बस मुझे वह दे जिसकी मैं हकदार हूँ।" मुझे लगा कि ये मेरे इस जीवन के आखिरी शब्द होंगे। लेकिन परमेश्वर की कुछ और ही योजना थी। ईश्वर की आवाज़ का श्रवण मेरी माँ, ईश्वर की कृपा से, उसी क्षण करुणा की माला विनती बोल रही थी। अचानक, माँ ने अपने दिल में ज़ोर से और स्पष्ट शब्दों में सुना “एलन को खोजो।” उन्होंने आज्ञाकारी होकर अपनी माला के मोतियों को एक तरफ रख दिया और मुझे गैरेज के फर्श पर पाया। वह जल्दी से समझ गई, और भयभीत होकर बोली: “तुम क्या कर रहे हो?!” और उन्होंने मुझे घर के अंदर खींच लिया। मेरे माता-पिता का दिल टूट गया था। ऐसे समय के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, लेकिन उन्होंने मुझे मिस्सा में ले जाने का फैसला किया। मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी, और मुझे पहले से कहीं ज़्यादा उद्धारकर्ता प्रभु की ज़रूरत थी। मैं येशु के पास आने के पल के लिए तरस रही थी, लेकिन मुझे यकीन था कि मैं दुनिया की आखिरी इंसान हूँ जिसे वह कभी देखना चाहेगा। मैं यह विश्वास करना चाहती थी कि येशु मेरा चरवाहा है और अपनी खोई हुई भेड़ों को वापस लाएगा, लेकिन यह मुश्किल था क्योंकि कुछ भी नहीं बदला था। मैं अभी भी गहन आत्म-घृणा से ग्रस्त थी, अंधकार से पीड़ित थी। यह लगभग शारीरिक रूप से दर्दनाक था। उपहारों की तैयारी के दौरान, मैं फूट-फूट कर रो पड़ी। मैं बहुत लंबे समय से रोई नहीं थी, लेकिन एक बार जब मैंने रोना शुरू किया, तो मैं रुक नहीं पाई। मैं अपनी ताकत के आखिरी छोर पर थी, मुझे नहीं पता था कि आगे कहाँ जाना है। लेकिन जैसे-जैसे मैं रोती गई, मेरा बोझ धीरे-धीरे कम होता गया, और मैंने खुद को उनकी दिव्य दया में लिपटी हुई महसूस किया। मैं इसके लायक नहीं थी, लेकिन उन्होंने मुझे खुद का उपहार दिया, और मुझे पता था कि वह मेरे सबसे निचले बिंदु पर भी मुझसे उतना ही प्यार करता था जितना कि उन्होंने मेरे सबसे ऊंचे बिंदु पर किया था। प्यार की तलाश में आने वाले दिनों में, मैं मुश्किल से ईश्वर का सामना कर पाती, लेकिन वह छोटी-छोटी चीजों में दिखाई देता रहा और मेरा पीछा करता रहा। मैंने हमारे आतंरिक कक्ष में लगी येशु की दिव्य दया की तस्वीर की मदद से येशु के साथ फिर से संवाद स्थापित किया। मैंने बात करने की कोशिश की, ज्यादातर संघर्ष के बारे में शिकायत की और फिर हाल ही में हुए मेरे बचाव के मद्देनजर इसके बारे में बुरा महसूस किया। अजीब तरह से, मुझे लगा कि मैं एक कोमल आवाज़ को फुसफुसाते हुए सुन सकती हूँ: "क्या तुमने सच में सोचा था कि मैं तुम्हें मरने के लिए छोड़ दूँगा? मैं तुमसे प्यार करता हूँ। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडने का वादा करता हूँ। सब कुछ माफ़ है। मेरी दया पर भरोसा रखो।" मैं इस पर विश्वास करना चाहती थी, लेकिन मैं इस बात पर भरोसा नहीं कर पा रही थी कि यह सच था। मैं उन दीवारों से निराश हो रही थी, जिन्हें मैं खादी कर रही थी, लेकिन मैं येशु से बात करती रही: "येशु, मैं तुझ पर भरोसा करना कैसे सीख सकती हूँ?" जवाब ने मुझे चौंका दिया। जब आपको लगता है कि कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन आपको जीना जारी रखना है, तो आप कहाँ जायेंगे? जब आप पूरी तरह से अप्रिय महसूस करते हैं, और घमंड के कारण कुछ भी स्वीकार करने में दिक्कत महसूस करते हैं, फिर भी किसी न किसी तरह विनम्र होना चाहते हैं? दूसरे शब्दों में, जब आप पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के साथ पूर्ण सामंजस्य चाहते हैं, लेकिन अपने घर का रास्ता खोजने के लिए प्यार भरे स्वागत से बहुत डरते हैं और अविश्वास करते हैं, तो आप कहाँ जाना चाहते हैं? इसका उत्तर है ईश्वर की माँ और स्वर्ग की रानी धन्य कुँवारी मरियम। जब मैं भरोसा करना सीख रही थी, तो मेरे अजीब प्रयासों ने येशु को नाराज़ नहीं किया। वह मुझे अपनी धन्य माँ के माध्यम से अपने पवित्र हृदय के करीब बुला रहे थे। मैं उनसे और उनकी वफादारी से प्यार करने लगा। मैं माँ मरियम के सामने सब कुछ स्वीकार कर सकती थी। हालाँकि मुझे डर था कि मैं अपनी सांसारिक माँ से किया गया वादा पूरा नहीं कर पाऊँगी क्योंकि, अपने दम पर, मैं अभी भी मुश्किल से जीने की इच्छाशक्ति जुटा पा रही थी, मेरी माँ ने मुझे मरियम को अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित किया, इस विश्वास के साथ कि वह मुझे इससे बाहर निकलने में मदद करेगी। मुझे इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी कि इसका क्या मतलब है, लेकिन फादर माइकल ई. गेटली, एम.आई.सी. द्वारा लिखित ‘प्रातःकालीन महिमा और येशु के हृदय को सांत्वना देने के लिए 33 दिन’ नामक पुस्तिका ने मुझे समझने में मदद की। धन्य माँ मरियम हमेशा हमारी मध्यस्थ बनने के लिए तैयार रहती हैं, और वह कभी भी किसी बच्चे के अनुरोध को नहीं ठुकराएँगी जो येशु के पास वापस लौटना चाहता है। जैसे-जैसे मैं समर्पण की प्रार्थना कर रही थी, "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं हार नहीं मानूँगी " इन्हीं शब्दों के साथ मैंने फिर कभी आत्महत्या का प्रयास न करने का संकल्प लिया। इस बीच, मैंने समुद्र तट पर लंबी सैर करना शुरू कर दिया, जबकि मैं परमेश्वर पिता से बात करती थी, और उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत पर ध्यान करती थी। मैंने खुद को उड़ाऊ पुत्र के स्थान पर रखने की कोशिश की, लेकिन परमेश्वर पिता के करीब आने में मुझे कुछ समय लगा। पहले, मैंने कल्पना की कि वह कुछ दूरी पर है, फिर मेरी ओर चल रहा है। दूसरे दिन, मैंने कल्पना की कि वह मेरी ओर दौड़ रहा है, भले ही यह पिता ईश्वर के दोस्तों और पड़ोसियों के लिए हास्यास्पद लग रहा हो। आखिरकार, वह दिन आया जब मैं खुद को पिता की बाहों में देख सकती थी, फिर न केवल उनके घर में बल्कि स्वर्गीय परिवार की मेज पर मेरे लिए निर्धारित मेरी सीट पर मेरा स्वागत किया जा रहा था। जब मैंने कल्पना की कि वह मेरे लिए एक कुर्सी खींच रहा है, तो मैं अब एक जिद्दी युवती नहीं थी, बल्कि नयी पीढ़ी का मजेदार चश्मा और बॉब हेयरकट वाली 10 वर्षीय लड़की थी। जब मैंने अपने लिए पिता के प्यार को स्वीकार किया, तो मैं फिर से एक छोटे बच्चे की तरह हो गई, मैं वर्तमान क्षण में जी रही थी और पूरी तरह से उन पर भरोसा कर रही थी। मैं परमेश्वर और उनकी वफादारी से प्यार करने लगी। मेरे अच्छे चरवाहे ने मुझे भय और क्रोध की कैद से बचाया है, वह मुझे सुरक्षित मार्ग पर ले जाता है और जब भी मैं लड़खड़ाती हूँ तो वह मुझे सहारा देता है। अब, मैं अपनी कहानी साझा करना चाहती हूँ ताकि हर कोई ईश्वर की अच्छाई और प्रेम को जान सके। उसका पवित्र हृदय सिर्फ़ आपके लिए कोमल प्रेम और दया से भरा हुआ है। वह आपसे भरपूर प्रेम करना चाहता है, और मैं आपको प्रोत्साहित करती हूँ कि बिना किसी डर या संकोच के आप ईश्वर का स्वागत करें। वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा या आपको निराश नहीं करेगा। उसके प्रकाश में कदम रखें और उसके आलिंगन में वापस लौटें।
By: Ellen Wilson
Moreरोज़मर्रा की ज़िंदगी के व्यस्त और बोझिल जाल में फँसे व्यक्ति केलिए, क्या खुद को ईश्वर के साथ संपर्क में रहना मुमकिन है? कभी-कभी, ऐसा लगता है जैसे मेरा विश्वास हर साल बदलते मौसमों के साथ गुज़रता है। कुछ समय में, यह गर्मियों के धूप सेंकने वाले फूलों की तरह खिलता है। यह आमतौर पर छुट्टियों के समय होता है। अन्य समय में, मेरा विश्वास सर्दियों की सोई हुई दुनिया की तरह लगता है - निष्क्रिय, न खिला हुआ विश्वास। यह स्कूल वर्ष के दौरान आम बात बन जाती है जब विद्यालय की व्यस्तता के बीच में दैनिक आराधना या प्रति घंटे प्रार्थना के लिए मुझे अवकाश नहीं मिलता है, जबकि छुट्टियों के दिनों में मैं ये सब कर पाती हूँ। शैक्षणिक सत्र के व्यस्त महीने आमतौर पर कक्षाओं, विद्यालय और घर की गतिविधियों, विभिन्न शैक्षणिक कार्य योजनाओं तथा परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने में बीत जाते हैं। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में ईश्वर को भूलना आसान नहीं, बल्कि उन्हें अपने जीवन की पृष्ठभूमि में धकेल देना आसान है। हम हर रविवार को गिरजाघर जा सकते हैं, प्रार्थना कर सकते हैं और यहां तक कि रोज़ाना माला विनती भी कर सकते हैं, लेकिन हम अपने विश्वास और 'सामान्य' जीवन को अलग-थलग रखते हैं। धर्म और ईश्वर को सिर्फ़ रविवार या गर्मी की छुट्टियों के लिए नहीं रखा जाना चाहिए। विश्वास ऐसी चीज़ नहीं है जिससे हमें सिर्फ़ संकट के समय ही चिपके रहना चाहिए या फिर सिर्फ़ धन्यवाद देने के लिए वापस लौटना चाहिए और फिर भूल जाना चाहिए। बल्कि, विश्वास को हमारे दैनिक जीवन के हर क्षेत्र में भी शामिल किया जाना चाहिए। रोज़मर्रा की नीरसता चाहे हमारे पास अपना घर हो, चाहे हम कॉलेज के छात्रावास में रहें या अपने परिवार के साथ रहें, कुछ ऐसे काम हैं जिनसे हम बच नहीं सकते। घर साफ होना चाहिए, कपड़े धुले होने चाहिए, खाना बनना चाहिए...अब, ये सभी काम रोज़मर्रा की ज़रूरतों की तरह उबाऊ लगते हैं - वे ऐसी चीज़ें जिनका कोई मतलब नहीं है, फिर भी हमें उन्हें करना ही पड़ता है। जिस समय का इस्तेमाल हम तीस मिनट के लिए आराधनालय में जाने या दैनिक प्रार्थना में भाग लेने के लिए कर सकते थे, ऐसे काम के कारण वह समय भी हमसे छीना जाता है। फिर भी, जब हमारे घर में छोटे बच्चे हों जिन्हें साफ कपड़ों की जरूरत हो या जब माता-पिता काम से घर आएं और वे हमारे घर के फर्श को साफ़ देखना चाहते हैं, ऐसी परिस्थिति में विश्वास और प्रार्थना को समय देना हमेशा यथार्थवादी विकल्प नहीं होता। हालाँकि, इन ज़रूरतों को पूरा करने में अपना समय बिताना, ईश्वर से समय छीनना नहीं होता। लिस्यू की संत तेरेसा अपने "छोटे मार्ग" के लिए प्रसिद्ध हैं। यह मार्ग बहुत प्यार और इरादे के साथ छोटी चीज़ों पर केंद्रित है। संत तेरेसा के बारे में मेरी पसंदीदा कहानियों में से एक में, उन्होंने रसोई में एक बर्तन के बारे में लिखा था जिसे धोना उन्हें पसंद नहीं था (हाँ, संतों को भी बर्तन धोने पड़ते हैं!)। उन्हें यह काम बेहद अप्रिय लगा, इसलिए उन्होंने इसे ईश्वर को अर्पित करने का फैसला किया। वह इस काम को बहुत खुशी के साथ पूरा करती, यह जानते हुए कि ईश्वर को समीकरण में लाने से कुछ अर्थहीन लगने वाले काम को लक्ष्य और सार्थकता मिल गयी है। चाहे हम बर्तन धो रहे हों, कपड़े तह कर रहे हों, या फर्श साफ़ कर रहे हों, हर उबाऊ काम ईश्वर को समर्पित करके प्रार्थना बन सकता है। उत्तम आनद कभी-कभी, जब नास्तिक समाज धार्मिक समुदाय को देखता है, तो वे यह मानकर चलते हैं कि इन दो दुनियाओं के बीच कभी मेल नहीं हो सकता। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि इतने सारे लोग सोचते हैं कि आप बाइबल का पालन करते हुए जीवन में आनंदमय मनोरंजन नहीं प्राप्त कर सकते! लेकिन यह सच्चाई नहीं है। मेरी कुछ पसंदीदा गतिविधियों में सर्फिंग, नृत्य, गायन और फ़ोटोग्राफ़ी शामिल हैं; मेरा ज़्यादातर समय इन गतिविधियों को करने में ही व्यतीत होता है। अक्सर, मैं धार्मिक संगीत पर नृत्य करती हूँ और अपने इन्स्टााग्राम के लिए वीडियो बनाती हूँ, जिसमें आस्था के संदेश के साथ कैप्शन लिखती हूँ। मैं गिरजाघर में एक गायिका के रूप में गाती हूँ और अपनी प्रतिभा का उपयोग सीधे ईश्वर की सेवा में उपयोग करना पसंद करती हूँ। फिर भी, मुझे ‘द विजार्ड ऑफ़ ओज़’ जैसे शो में प्रदर्शन करना या फ़ुटबॉल खेलों की तस्वीरें लेना भी पसंद है - ये धर्म से परे कार्य हैं जो मुझे बहुत खुशी देती हैं। यह खुशी तब और बढ़ जाती है जब मैं इन गतिविधियों को ईश्वर को अर्पित करती हूँ। किसी संगीत या नृत्य कार्यक्रम के बैकस्टेज पर, आप हमेशा मुझे मंच पर अपने प्रवेश से पहले प्रार्थना करती हुई, ईश्वर को वह प्रदर्शन अर्पित करती हुई, और नाचती या गाती समय ईश्वर से मेरे साथ रहने के लिए कहती हुई पाएंगे। बस सही आकार में रहने के लिए व्यायाम करना एक और बात है जिसका मैं आनंद लेती हूँ और अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए इसे महत्व देती हूँ। दौड़ने से पहले, मैं इसे ईश्वर को अर्पित करती हूँ। अक्सर, इसके बीच में, मैं अपनी थकान को उनके हाथों में सौंप देती हूँ और उनसे अंतिम मील तक पहुँचने में मदद करने के लिए शक्ति मांगती हूँ। व्यायाम करने और ईश्वर की आराधना करने के मेरे पसंदीदा तरीकों में से एक है तीव्र गति से माला विनती करते हुए टहलने जाना, जिससे मेरे शरीर और मेरी आध्यात्मिक भलाई दोनों को लाभ मिलता है! हर बात में, हर जगह पर हम अक्सर दूसरों में ईश्वर को ढूँढना भूल जाते हैं, है न? मेरी पसंदीदा किताबों में से एक मदर तेरेसा की जीवनी है। लेखक, फादर लियो मासबर्ग, उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते थे। उन्हें याद है कि एक बार उन्होंने मदर को प्रार्थना में डूबी हुई देखा था, जबकि उन्होंने देखा कि कोई रिपोर्टर डरते डरते बड़ी हिचक के साथ उनके पास आया, और वह सवाल पूछने से डर रहा था। फादर मासबर्ग के मन में बड़ी उत्सुकता थी कि मदर तेरेसा कैसी प्रतिक्रिया देंगी, लेकिन फादर को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि मदर रिपोर्टर की ओर खुशी और प्यार से देख रही थीं, न कि झुंझलाहट से। उन्होंने टिप्पणी की कि कैसे, मदर ने अपने मन में, बस अपना ध्यान येशु से हटाकर येशु पर लगा दिया था। येशु हमें बताते हैं: "मैं तुमसे सच कहता हूँ, जैसे तुमने मेरे भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए किया।" (मत्ती 25:40)। लेकिन येशु केवल गरीबों या बीमारों में ही नहीं पाए जाते। वे हमारे भाई-बहनों, हमारे दोस्तों, हमारे शिक्षकों और सहकर्मियों में भी पाए जाते हैं। हमारे रास्ते में आने वाले लोगों के प्रति बस प्यार, दया और करुणा दिखाना, हमारे व्यस्त जीवन में ईश्वर को प्यार देने का एक और तरीका हो सकता है। जब आप किसी मित्र के जन्मदिन के लिए कुकीज़ बनाते हैं या किसी ऐसे व्यक्ति, जिसे आपने काफी समय से नहीं देखा है, उसके साथ आप दोपहर के भोजन के लिए बाहर जाते हैं, तो आप उनके जीवन में परमेश्वर के प्रेम को ला सकते हैं और उसकी इच्छा को पूरा कर सकते हैं। आप चाहे जहाँ भी हों... हम अपने जीवन में, हमारी उम्र बढ़ने और समय आगे बढ़ने के साथ-साथ अलग-अलग चरणों से गुज़रते हैं। किसी पादरी या साध्वी की दैनिक दिनचर्या किसी परिवार की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी निभा रहे वफादार लोक धर्मी व्यक्ति से बहुत अलग होगी। इसी तरह एक हाई स्कूल के छात्र की दैनिक दिनचर्या वयस्क व्यक्ति की दिनचर्या से अलग होगी। यही बात येशु के बारे में इतनी खूबसूरत है—येशु हमसे वहीं मिलते हैं, जहाँ हम हैं। वे नहीं चाहते कि हम उसे वेदी पर छोड़ दें; उसी तरह, जब हम उसके गिरजाघर से बाहर निकलते हैं, तो वे हमें यूँ ही नहीं छोड़ देते। इसलिए, अपने जीवन में व्यस्त होने के कारण आप ईश्वर को छोड़ रहे हैं, ऐसी बोझिल सोच ढोने के बजाय, अपने हर काम में उसे आमंत्रित करने के तरीके खोजें, और आप पाएंगे कि आपके जीवन में हर बात में अधिक प्रेम, लक्ष्य और उद्देश्य हैं और आप के अन्दर विश्वास पर आधारित जीवन जीने की एक नयी ऊर्जा है।
By: Sarah Barry
More'ना' कहने का मतलब अपने परिवार को आर्थिक तंगी के अँधेरे में धकेलना होगा, फिर भी उसने वह कड़ा कदम उठाया... मैं भारत की रहनेवाली 31 वर्षीय पूर्व सहायक प्रोफेसर हूं। 'पूर्व' इसलिए कि कई महीनों पहले मैं उस उपाधि को छोड़ चुकी हूँ। 2011 में कॉलेज से स्नातक की डिग्री पाने के बाद, मैंने अगले चार साल चार्टर्ड अकाउंटेंसी कोर्स की तैयारी में बिताए। मुझे जल्द ही एहसास हुआ कि सी.ए. करना मेरी बुलाहट नहीं थी, और मैं उससे बाहर हो गयी। सपना साकार हो गया आकर्षक करियर को छोड़ना बहुतो को मूर्खतापूर्ण लग सकता है, लेकिन मेरे निर्णय ने मुझे अपने वास्तविक जुनून को पहचानने और स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। वह है अध्यापन, एक ऐसा कार्य जिस का सपना मैं बचपन से देखा करती थी। जब मैंने अपना ध्यान अध्यापन करियर पर स्थानांतरित कर दिया, तब ईश्वर ने मुझे एक प्रसिद्ध विद्यालय के प्राथमिक खंड में पढ़ाने का वरदान दिया। हालाँकि मैंने उस स्कूल में चार साल तक पढ़ाया था, लेकिन मैं संतुष्ट नहीं थी, क्योंकि मेरे बचपन का सपना कॉलेज में प्रोफेसर बनने का था। ईश्वर की कृपा से, लगभग चार वर्षों के अध्यापन के बाद, मुझे एक स्थानीय कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में आवेदन करने का अवसर प्राप्त हुआ। जब मुझे नौकरी की पेशकश की गई, तो मैंने खुशी-खुशी एक सहायक प्रोफेसर के रूप में अपने सपने को पूरा किया और दो साल के लिए मेरे छात्रों की जरूरतों को पूरा किया। मुश्किल निर्णय मेरे तीसरे वर्ष के बीच में, हमारे कॉलेज ने गुणवत्ता दर्जा (अक्रेडिटेशन) की प्रक्रिया शुरू की, जो कि उच्च शिक्षा के संस्थानों को 'गुणवत्ता की स्थिति' का प्रमाण देती है । हालांकि यह एक लंबी, श्रमसाध्य प्रक्रिया थी, जिसमें बहुत अधिक कार्यभार था, लेकिन शुरुआत में चीजें सुचारू रूप से आगे बढ़ीं। लेकिन अंततः, हम पर अनैतिक व्यवहार में भाग लेने के लिए दबाव डाला गया जिससे मैं बहुत परेशान होने लगी। प्रशासन ने हमें नकली रिकॉर्ड बनाने और ऐसी अकादमिक गतिविधियों (जो गतिविधियाँ कभी हुई ही नहीं) का दस्तावेजीकरण करने के लिए दबाव बनाया। मेरे मन में असंतोष और नाराजगी उत्पन्न हुई – वह इतनी मजबूत कि मैं अपनी नौकरी छोड़ना चाहती थी। हालांकि घर में चीजें ठीक नहीं थीं। परिवार में हम चार लोग हैं। मेरे माता-पिता काम नहीं कर रहे थे, और मेरे भाई की नौकरी चली गई थी। परिवार में कमाने वाली मैं इकलौती होने के कारण मेरे लिए नौकरी छोड़ना मुश्किल होगा। महामारी के कारण दूसरी नौकरी ढूंढना भी मुश्किल होगा। इन सबके बावजूद मैंने किसी तरह हिम्मत जुटाई और अपना इस्तीफा सौंप दिया। लेकिन मेरे पर्यवेक्षकों ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया, यह वादा करते हुए कि मुझे अब झूठे दस्तावेज़ बनाने की आवश्यकता नहीं होगी और मैं घर से भी काम कर सकती हूँ। अनिच्छा से, मैंने शर्तों को स्वीकार कर लिया। हालाँकि, महीनों के भीतर, मुझे फिर से एक अकादमिक संगोष्ठी का दस्तावेजीकरण करने के लिए कहा गया, जो संगोष्ठी कभी नहीं हुई थी। हर बार जब मैं इस तरह के कदाचार में लिप्त होती, मुझे ऐसा लगता था कि मैं प्रभु को धोखा दे रही हूँ। मैंने इस दुविधा को अपने आध्यात्मिक गुरुओं के सामने रखा जिन्होंने मुझे ऐसी नौकरी को छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जिसमें प्रभु की महिमा नहीं थी। किस्मत का खेल अंत में, मैंने हिम्मत जुटाई और मैंने अपने पर्यवेक्षकों को 'ना' कहा। और यह एक मज़बूत और बड़ा 'ना' था। मैंने सौंपे गए कार्य को जमा करने के बजाय अपना इस्तीफा सौंप दिया। मैंने तुरंत नौकरी छोड़ दी और पिछले महीने के अपने वेतन को लेने से इनकार कर दिया क्योंकि मैं बिना नोटिस दिए जा रही थी। आर्थिक रूप से, मैं घोर अंधकार में कूद चुकी थी। मेरा परिवार मेरी आय पर निर्भर था। मेरी मां की हाल की सर्जरी ने परिवार की बचत को खत्म कर दिया था। मेरे पास मुश्किल से सिर्फ अगले महीने के खर्चे को पूरा करने के लिए पर्याप्त पैसा था। मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मैंने अपने पिता और भाई को अपनी नौकरी छोड़ने के बारे में नहीं बताया क्योंकि वे कभी स्वीकृति नहीं देते। मैंने केवल वही किया जो मैं कर सकती थी — मैंने प्रभु को दृढ़ता से थामे रखा और उसकी शक्ति और सामर्थ्य पर भरोसा किया। मैंने लगातार पवित्र मालाविनती करके माँ मरियम की मध्यस्थता मांगी। दिन और सप्ताह बीत गए, और मुझे साक्षात्कार के लिए कोई कॉल नहीं आया। डर मेरी आत्मा को जकड़ने लगा। जिन सभी रिक्रूट करनेवालों से मैंने संपर्क किया था, सितंबर के अंत तक, उनकी तरफ से मेरे पास कोई निर्धारित साक्षात्कार नहीं था। मैं हताश थी। एक अविश्वसनीय आश्चर्य आखिरकार, 30 सितंबर को, मेरे घर के पास स्थित एक इंटरनेशनल स्कूल से एक फोन आया। मैंने कॉलेज में जिन विषयों को पढ़ाया था, उन्हीं विषयों को इस स्कूल में पढ़ाने के लिए साक्षात्कार का आमंत्रण मुझे मिला। यह एक अविश्वसनीय आश्चर्य था। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम पर आधारित इस स्कूल को किसी भारतीय विश्वविद्यालय में स्नातक संकाय के बराबर विषय ज्ञान के स्तर की आवश्यकता होती है। मेरे सामने अध्यापक पद की पेशकश की गई और अक्टूबर 2021 की शुरुआत में मेरे रोजगार को अंतिम रूप दिया गया। और ईश्वर की कृपा से पूर्व कॉलेज में मैं जितना वेतन पाती थी, उसकी तुलना में मुझे अधिक वेतन दिया गया। ईश्वर की स्तुति हो! आज, जब लोग पूछते हैं कि मैंने हाई स्कूल में पढ़ाने के लिए कॉलेज क्यों छोड़ा, तो मैं बताती हूं कि मेरे ईश्वर मेरे लिए कितने अद्भुत हैं। यहां तक कि अगर मेरा नया पद, कम वेतन के साथ एक छोटी नौकरी होती, तो भी मैं इसे अपने प्रभु येशु के लिए खुशी से स्वीकार करती। जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मुझे एहसास होता है कि सांसारिक पद, उपाधि और खिताब मायने नहीं रखते। हम शाश्वत मुकुट को जीतें यही मायने रखता है। इब्रानियों के नाम पत्र कहता है, "आओ... हमारे अगुआ और विश्वास के प्रवर्तक येशु पर अपनी दृष्टि लगाकर, धैर्य के साथ उस दौड़ में आगे बढ़ते जाएँ, जिसमें हमारा नाम लिखा गया है" (12:1ब-2)। मैं अपनी गवाही को आनंद के साथ साझा करती हूं, अपने पिछले नियुक्तिकर्ता को बदनाम करने के लिए नहीं, या यह शेखी बघारने के लिए भी नहीं कि ईश्वर ने मुझे आशीर्वाद दिया है क्योंकि मैं कितनी प्रार्थनापूर्ण रही हूं। ऐसा बिलकुल मेरा उद्देश नहीं है। मेरा उद्देश्य मेरे विश्वास को साझा करना है कि जब हम प्रभु के लिए एक कदम उठाएंगे, तो वह हमारे लिए सौ कदम उठाएगा। यदि कभी भी आप परमेश्वर की आज्ञाओं से समझौता करने के लिए बाध्य किये जाते हैं, लेकिन आपको डर है कि आप के ना कहने से आप और आपके परिवार पर नकारात्मक वित्तीय परिणाम होगा, मेरे प्यारे भाई या बहन, मैं सिफारिश करने का साहस करूंगी, कि आप प्रभु की खातिर वित्तीय अंधेरे में कूदने का जोखिम उठावें … और उसकी दया पर भरोसा करें। संतों का अनुभव, और मेरा अपना विनम्र अनुभव, मुझे विश्वास दिलाता है कि हमारा ईश्वर हमें कभी नहीं छोड़ता।
By: Suja Vithayathil
Moreशराब पीने, धूम्र पान करने और अपने मन मुताबिक़ कुछ भी बिंदास करने से मैं बिलकुल खोखली हो गयी । मेरी पूरी ज़िन्दगी में, ईश्वर ने मुझ पर कृपा की है, भले ही मैं उनकी कृपा के लायक नहीं थी। मैं अक्सर यह सवाल पूछती थी, “क्यों प्रभु? मैं कितनी अयोग्य पापी हूँ।” बिना किसी हिचकिचाहट के, एक उत्तर हमेशा मेरे लिए उसकी ओर से मिलता था: उसके प्रेम के बारे में आश्वस्त करता हुआ उत्तर। संत फाउस्टीना की डायरी, ईश्वर की दया का इतनी खूबसूरती से वर्णन करती है, "हालांकि पाप दुष्टता और कृतघ्नता का रसातल है, फिर भी हमारे लिए चुकाई गई कीमत की कभी भी बराबरी नहीं की जा सकती है। इसलिए, प्रत्येक आत्मा प्रभु की दु:ख-पीड़ा पर भरोसा करे, और उसकी दया पर अपनी आशा रखे। परमेश्वर किसी पर भी अपनी दया से तिरस्कृत नहीं करेगा। स्वर्ग और पृथ्वी बदल सकते हैं, लेकिन ईश्वर की दया कभी समाप्त नहीं होगी। ” (संत मारिया फाउस्टीना कोवाल्स्का की डायरी, 72)। हमारे प्रभु की कृपा और करुणा के अनगिनत प्रत्यक्ष अनुभव ने मेरे विश्वास को बदल दिया है और उसके साथ गहरी घनिष्ठता में बढ़ने में मेरी मदद की है। दुनियावी तौर तरीके आज के समाज में प्रतिदिन अपने विश्वास को जीनेवाले नौजवानों और किशोरों को ढूंढ पाना मुश्किल है। भौतिक दुनिया के आकर्षण बहुत ही मजबूत है। मैं ने अपने 24 वर्ष के जीवन में इसे व्यक्तिगत तौर पर अनुभव किया है। करीब आठ साल तक, एक किशोरी और एक नव जवान के रूप में मैं ने दुनिया के लोगों के अभिप्राय को ईश्वर से ऊपर माना। मैं पार्टी गर्ल के नाम से विख्यात थी – मैं शराब पीने, धूम्र पान करने और अपने मन मुताबिक़ कुछ भी बिंदास करने वाली युवती थी। मेरी चारों ओर जो भी थे, वे सभी मेरी तरह उसी नाव में सवार थे, यद्यपि हम जो कर रहे थे उसमें आत्म संतुष्टि नहीं थी, फिर भी हम जो कुछ कर रहे थे, उसमें हम लोगों ने कुछ सुख पाया। मेरे जीवन की इस अवधि में मैं ने रविवार को गिरजाघर जाना नहीं छोड़ा था, लेकिन मैं अपने विश्वास को पूरी तरह नहीं समझ पा रही थी। जब मैं उम्र में बढ़ रही थी, तब मेरे माता पिता ने मुझे बहुत सारी आत्मिक साधनाओं में भेजा। यद्यपि इन साधनाओं में मुझे अलौकिक अनुभव मिलता था और येशु के साथ साक्षात्कार और दर्शन होते थे, इसके बावजूद, मैं दुनिया के तौर तरीकों में फँसी हुई थी। साधानाओं में प्राप्त अनुभव अपने ख्रीस्तीय विश्वास के प्रति मेरी उत्सुकता को बढ़ाया, लेकिन यह उत्सुकता ज्यादा दिन नहीं टिकी। मैं पुन: अपने दोस्तों के साथ पार्टियों में शराब पीने जाती थी और अपने सारे अच्छे संकल्पों को भूल जाती थी। मुझे लगता है कि मेरी उम्र के कई लोगों की कहानी मेरी जैसी है। मुझे यह महसूस करने में लगभग आठ साल लग गए कि भौतिक सुखों से अधिक जीवन में कुछ और भी है। ईश्वर की कृपा और सहायता से मैं दुनिया के इन बुरे तौर-तरीकों से दूर हो गयी और ईश्वर को हर बात में ढूंढने में मुझे मदद मिली। मैंने अंततः ईश्वर में संतुष्टि पाई, क्योंकि वह एक ऐसा आनंद देता है जो चिरस्थायी है, क्षणभंगुर नहीं। हालाँकि, इससे पहले कि मैं सांसारिक सुखों से पूरी तरह से दूर हो पाती, मैंने मोह-माया के संसार में एक पैर रखने की कोशिश की, और साथ साथ प्रभु ने मेरे लिए जो मार्ग निर्धारित किया था, उस मार्ग पर बने रहने की भी मैं कोशिश करती रही। मैंने पाया कि दोनों मार्ग पर चलना सर्कस में रस्सी पर चलने जैसा बहुत ही कठिन कार्य था, जिसे मैं संभाल नहीं पा रही थी। चंगाई प्रारंभ में, मुझे लगा कि मैं अपनी विश्वास-यात्रा में अच्छा कर रही हूं, और यहां तक कि ईशशास्त्र की डिग्री पाने केलिए मैं ने अध्ययन भी किया। हालाँकि, मैंने हमेशा लड़कों के साथ संबंधों से अधिक अधिक ध्यान केंद्रित किया था, मैं ईश्वर के साथ अपने रिश्ते को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाने की कोशिश कर रही थी। हालांकि, मैंने शराब, मादक द्रव्य और पार्टी जीवनशैली से अपना लगाव नहीं छोड़ा था। एक लड़के के साथ एक नया रिश्ता तेजी से बढ़ने लगा और हम दोनों अंतरंग यौन सम्बन्ध बनाने लगे, हालांकि मुझे पता था कि ईश्वर मुझसे इस सम्बन्ध से दूर होने के लिए कह रहा है। शराब और नशीले पदार्थों की वजह से मैं पाप में जीने और अपने प्रलोभनों पर काबू पाने में बुरी तरह असफल हो रही थी। लेकिन, प्रभु की करुणा ने मुझे जगाया। दूसरी बार जब मैं इस आदमी के साथ यौन संबंध बना रही थी, तब मुझे अचानक भयानक दर्द हुआ, मानो कि मेरे शरीर पर छुरा घोंपा गया हो। यह क्रिसमस की पूर्व संध्या थी। मैं एक अस्पताल के आपात कक्ष में गयी जहाँ, डॉक्टरों ने पाया कि यौन सम्बन्ध के दौरान मेरी पुटी फट गई थी। उन्होंने सिफारिश की कि मैं जल्द से जल्द अपने स्त्रीरोग विशेषज्ञ को दिखाऊं। लेकिन क्रिसमस की छुट्टी और सप्ताह का आखिरी दिन होने के कारण, मेरी चिकित्सा नहीं हो पायी। डॉक्टर से मुलाकात से पूर्व मैं कई दिन दर्द से कराहती रही। बाद में मेरी जब डॉक्टर से भेंट हुई, तब उन्होंने मेरे असहनीय दर्द के कारण का पता लगाने के लिए और जांच की और उन्होंने मुझसे कहा कि जैसे ही परिणाम आएगा वे मुझे फोन करेंगी। नए साल की पूर्व संध्या पर, मैंने गिरजाघर जाकर मिस्सा बलिदान में, और पवित्र मंजूषा में हमारे प्रभु के सामने प्रार्थना में काफी समय बिताया। मैं बहुत शर्मिंदा और अयोग्य महसूस कर रही थी, और लगातार दर्द का अनुभव कर रही थी। मुझे अपने अंदर और बाहर चोट का एहसास हो रहा था। मैंने बाइबिल से एक अंश पढ़ने के लिए अपना फोन निकाला और देखा कि मेरे डॉक्टर के क्लिनिक से एक कॉल आया हुआ है, इसलिए मैं डॉक्टर को कॉल करने के लिए बाहर निकली। नर्स ने फोन पर मुझे बताया कि जब उन्होंने यौन संचारित रोगों के लिए मेरी जांच की, तो मुझ में सूजाक की बीमारी का पॉजिटिव परिणाम मिला है। मैं वहीँ चौंक कर खड़ी रही, समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहूं, इसलिए मैंने नर्स से उस बात को दोहराने केलिए कहा। यह अभी भी वास्तविक नहीं लग रहा था, लेकिन उसने मुझसे कहा कि अगर मैं सिर्फ एक बार सुई लगवाने के लिए जाऊं तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। एक बार फिर मैं गिरजाघर जाकर फर्श में गिरकर, अपने पापों के लिए पश्चाताप करती हुई, इन परिणामों के लिए अपार दुःख का अनुभव करती हुई, और राहत के लिए ईश्वर के सम्मुख प्रार्थना करती हुई अपने दिल से रोती रही। मैंने प्रभु को बार-बार धन्यवाद दिया और वादा किया कि मैं सुधर जाऊंगी। सुई लगने के बाद, मैं निराश थी, क्योंकि दर्द कायम था। यह दर्द आखिर कब तक रहेगा? एक और दिन घर के भीतर दर्द से कराहती हुई दुबकी रहने के बाद, और इस पीड़ा के अंत होने की बेसब्री से प्रतीक्षा करती हुई, जब मैंने ब्रैंडन लेक का गीत "हाउस ऑफ मिरेकल्स" सुन रही थी, तब मुझे एहसास हुआ कि पवित्र आत्मा मुझे चंगाई की प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। गीत के उस भाग में पहुँचने पर, जहां चंगाई की प्रार्थना शुरू होती है, मैंने महसूस किया कि पवित्र आत्मा मुझमें कार्य कर रहा है। मेरे हाथ जो प्रभु की स्तुति करने के लिए हवा में उठे हुए थे, धीरे-धीरे प्रभु की आज्ञा से मेरे पेट के निचले हिस्से पर चलने लगे। जैसे ही मेरे हाथ वहाँ टिके हुए थे, मैंने बार-बार ठीक होने के लिए प्रार्थना की और ईश्वर से इस दर्द से राहत देने की मैं ने अनुनय विनय किया। मैं अनायास ही अन्य भाषाओं में प्रार्थना करने लगी। जैसे ही प्रार्थना समाप्त हुई और गीत समाप्त हुआ, मुझे लगा कि मेरे देह से कुछ शारीरिक बोझ निकल गया है। मैं इसे पूरी तरह से समझा नहीं सकती, लेकिन मुझे लगा कि कुछ अलौकिक शक्ति की मदद से मेरा शरीर साफ हो रहा है। मैंने अपने पेट के निचले हिस्से को दबा दिया, जहां सारा दर्द था, लेकिन एक झुनझुनी तक नहीं रह गई। मैं स्तब्ध थी कि कष्टदायी दर्द से शुरू होकर एक गीत के दौरान सब दर्द चला गया है। येशु ने मेरे लिए जो किया उसके लिए मैं ने अपने अन्दर बहुत आभार महसूस किया। मुझे दर्द के वापस आने की आधी उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उस पूरे दिन में कभी कोई दर्द नहीं हुआ, और मैं जानती थी कि उस पल में येशु ने मुझे चंगा किया था। मैंने अपने जीवन में पहले भी शारीरिक और आंतरिक रूप से चंगाई का अनुभव किया था, लेकिन यह अलग तरह की चंगाई थी। हालाँकि मैं उसकी चंगाई पाने में अपने आप को इतनी अयोग्य महसूस कर रही थी, क्योंकि मैंने खुद अपने ऊपर बीमारी ला दी थी, फिर भी मैंने परमेश्वर की स्तुति और प्रशंसा की और मुझे ऐसी दया दिखाने के लिए धन्यवाद दिया। उस पल में, मैंने महसूस किया कि परमेश्वर के दयालु प्रेम में फिर से मैं डूबी हुई हूँ। परिवर्तन हम पापपूर्ण संसार में रहते हैं, और सभी किसी न किसी समय और विभिन्न तरीकों से हमारे जीवन के लिए प्रभु की योजना से वंचित रह जाएंगे। हालाँकि, परमेश्वर नहीं चाहता है कि हम अपने पाप में फँसे रहें। इसके बजाय, वह हमें वापस लेने के लिए अनुग्रह और दया के साथ प्रतीक्षा करता है और हमें वह अपने पास वापस ले जाता है। वह खुले हाथों से धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करता है। मैंने इसे और भी कई बार अनुभव किया है। जब मैं उसे अपने दर्द और अपनी टूटन में उपस्थित होने के लिए आमंत्रित करती हूं, तो वह मुझे बदल देता है, मेरे विश्वास का पोषण करता है और उसे और अधिक गहराई से समझने में मेरी मदद करता है। दुनिया में कई विकर्षण हैं जिनमें हम अस्थायी सुख पा सकते हैं, लेकिन येशु ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जो पूरी तरह से, सम्पूर्ण रूप से और अंतहीन रूप से संतुष्ट कर सकता है। पार्टी, शराब, ड्रग्स, पैसा या सेक्स की कोई भी राशि उसके बराबर नहीं हो सकती जो वह हम में से प्रत्येक को दे सकता है। मैंने कड़वे अनुभव से सीखा है कि सच्चा आनंद केवल पूरी तरह से आत्मसमर्पण करने और हर चीज में उस पर भरोसा करने से ही मिल सकता है। जब मैं उसके प्रेम के चश्मे से अपने इरादों की जांच करता हूं, तो मुझे सच्ची खुशी मिलती है और उसके प्रेम को साझा करने में ईश्वर की महिमा होती है।
By: Mary Smith
Moreप्रश्न: मैं अपनी बहन के बहुत करीब हूं, लेकिन हाल ही में उसने मुझे बताया कि उसने ईसाई धर्म का पालन करना बंद कर दिया है। उसने एक साल से मिस्सा बलिदान में भाग नही लिया है, और उसे अब लगने लगा है कि शायद कैथलिक विश्वास में कोई सच्चाई नही है। मैं उसे किस प्रकार चर्च जाने के लिए फिर से प्रोत्साहित कर सकता हूं? उत्तर: आजकल कई परिवारों में यह परिस्थिति देखी जाती है। जब भाई बहन, बच्चे या दोस्त चर्च से मुंह मोड़ लेते हैं तब जो उनसे प्रेम करते हैं उनका दिल बहुत टूटता है। मेरे दो भाई बहन हैं जो अब कैथलिक विश्वास का पालन नहीं करते हैं और यह बात मुझे बहुत दुखी करती है। मैं इस परिस्थिति में क्या कर सकता हूं? सबसे पहला और सबसे सरल उपाय (जो कि हमेशा सबसे आसान नही होता) है कि उनके लिए प्रार्थना और उपवास करें। यह उपाय लगता सरल है, लेकिन यह बहुत प्रभावशाली है। आखिर में ईश्वर की कृपा ही भूली भटकी आत्माओं को वापस ला सकती हैं। इसीलिए इस भटकी हुई भेड़ के मामले में कुछ भी कहने, करने से पहले हमें ईश्वर से विनती करनी चाहिए कि वह आपकी बहन का दिल नरम करे, उसके मन को आलोकित करे, और उसकी आत्मा को अपने प्रेम के स्पर्श से भर दे। आप बाकी लोगों से भी निवेदन करें, कि वे प्रार्थना करें कि ईश्वर आपकी बहन की आत्मा को परिवर्तित करे। प्रार्थना करने के पश्चात हमें अपने कार्यों द्वारा आनंद और दयालुता का प्रदर्शन करना चाहिए। संत फ्रांसिस डी सेल्स को अक्सर उनकी विनम्रता के कारण "सज्जन संत" कहा जाता है। उन्होंने कहा है "जितना हो सके सौम्य आचरण रखें, और हमेशा याद रखें कि पूरे डब्बे भर सिरके ले कर चलने वालों की तुलना में चम्मच भर शहद ले कर चलने वाले लोग ज़्यादा मक्खियां आकर्षित करते हैं।" अक्सर लोग भटके हुए लोगों को वापस लाने की कोशिश में उन्हें डांटने लगते हैं या उन्हें दोष देने लगते हैं। लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि हम ख्रीस्त विश्वासी सिर्फ इसलिए नहीं हैं कि हम कैथलिक पैदा हुए हैं और इस नाते कैथलिक विश्वास का पालन हमारा फर्ज़ है, बल्कि हम ख्रीस्त विश्वासी इसलिए हैं क्योंकि हमें ख्रीस्त से आलौकिक आनंद प्राप्त होता है। अगर ख्रीस्त सच में हमारा जीवन, हमारे आनंद का स्त्रोत हैं तो हमारी खुशी हमारे चेहरे में झलकनी चाहिए। इस प्रकार हम बिना येशु का नाम लिए भटकी आत्माओं को येशु के पास ला सकते हैं, क्योंकि खुशी और दयालुता अपने आप में बहुत आकर्षक होती है। आखिरकार, फ़्रांसीसी येसु समाजी पियरे तेयार्ड डी शार्दीन ने कहा है, "आनंद ईश्वर की उपस्थिति का अचूक संकेत है।" देखा जाए तो पूछे गए सवाल में एक और सवाल छिपा है: क्या हम सांस्कृतिक रूप से अपने विश्वास को जी रहे हैं? अगर हमारी जीवन शैली लौकिक संस्कृति से पूरी तरह मेल खाती है तब हमें खुद से यह सवाल करने की ज़रूरत है कि क्या हम ख्रीस्त की परिवर्तन शक्ति के प्रबल साक्षी हैं? अगर हम निरंतर अपनी संपत्ति की चर्चा करते हैं या हमें प्रशंसा पाने की अत्यधिक इच्छा है या अपनी नौकरी से अत्याधिक लगाव है, या हम दिन रात गपशप करते हैं, या बेमतलब के टीवी कार्यक्रम देखते हैं, तो हम किसी भी सूरत में औरों को ख्रीस्त का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर सकते हैं। आदिम ख्रीस्तीय लोग सुसमाचार के प्रचार में इतने सफल इसलिए हुए थे, क्योंकि उनका जीवन उनके आसपास रहने वालों की तुलना में ज़्यादा पवित्र और भक्तिमय था। हम आज भी गुज़रे ज़माने की तरह एक पापमय पर्यावरण में रहते हैं, इसीलिए अगर हम चाहें तो हमारा जीवन भी पवित्र और भक्तिमय हो कर औरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। आपके लिए आपकी बहन से बात करना भी बहुत ज़रूरी है। हो सकता है कि वह इसलिए कैथलिक विश्वास से दूर हुई हो, क्योंकि किसी पुरोहित के साथ उसके अनुभव अच्छे नहीं रहां हो, या हो सकता है कि उसके मन में ख्रीस्त द्वारा दी गई किसी शिक्षा के बारे में गलतफहमी हो। हो सकता है कि वह अपने व्यक्तिगत जीवन में पाप से संघर्ष कर रही हो, और यही मानसिक अंतर्द्वंद उसके चर्च ना जाने की वजह हो। उससे लड़ाई ना कर बैठें, बल्कि धैर्य के साथ उसकी बातें सुनें और अगर वह कुछ अच्छा या सही कहती है तो उस बात का समर्थन करें। अगर उसके कुछ सवाल हैं, तो उनके जवाब देने के लिए तैयार रहें। ध्यान रखें कि आपको चर्च की शिक्षाओं के बारे में सही तरीके से सबकुछ पता हो, और अगर उसके किसी सवाल का आपके पास जवाब ना हो तो आप उसे आश्वस्त कीजिए कि आप और पढ़कर, समझकर उसके सवाल का जवाब देंगे। अगर आपको लगता है कि वह कैथलिक विश्वास को नए सिरे से समझने के लिए तैयार है, तो आप उसे अपने साथ किसी सत्संग पर जाने के लिए या किसी धार्मिक प्रवचन को सुनने के लिए आमंत्रित करें। आप उसे तोहफे में कोई धार्मिक किताब या किसी अच्छे प्रवचन की सी.डी. दे सकते हैं। अगर उसकी मंज़ूरी है तो किसी पुरोहित के साथ उसकी मुलाकात तय करें। मैं समझता हूं कि यह राह कठिन है, क्योंकि आपको इस बात का हर समय ध्यान रखना है कि आप उसके साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं कर रहे हैं। आखिर में, ईश्वर पर विश्वास रखें। ईश्वर आपकी बहन से अत्याधिक प्रेम करता है, आपसे भी ज़्यादा प्रेम, और वह हर संभव प्रयास कर रहा है कि आपकी बहन उसके सानिध्य में वापस आ जाए। यह जान कर धैर्य रखें कि हर व्यक्ति एक व्यक्तिगत आध्यात्मिक सफर का राही है। हो सकता है कि आपकी बहन संत अगस्टीन की तरह बन जाए, जिन्होंने ईश्वर से दूर जाने के बाद, जब कलीसिया में वापसी की, तब वे चर्च के डॉक्टर कहलाए। अपनी बहन से प्रेम बनाए रखें और ईश्वर की कृपा पर भरोसा रखें, क्योंकि ईश्वर हर आत्मा को अनंत जीवन प्रदान करना चाहता है।
By: फादर जोसेफ गिल
Moreयह सच है कि किसी भी क्षण हम में से कोई भी दुखी और निराश होने की हज़ार वजहें सोच सकता है। हमारी ज़िंदगी कभी हमारी उम्मीदों के हिसाब से चलती ही नही। लेकिन अगर हम तथ्यों की ओर ध्यान दें - वासना के प्रलोभन की कल्पनाओं का विरोध करते हुए, हम देखते हैं कि हमारी आंखें किसी और दुनिया, किसी और नौकरी, किसी और ज़िंदगी की चाह में लगी होती हैं जो हमारी असल ज़िंदगी से बिल्कुल अलग है, और तब हमें यह अहसास होता है कि खुश रहना एक आंतरिक फैसला है। खुशी एक चयन है। मठों में बुज़ुर्ग साधुओं में एक कथन काफी प्रचलित है: "वह साधु दीवार के उस पार झांक रहा है।" एक दुखी साधु हमेशा मठ के बाहर रहने वाले लोगों के जीवन में झांकता रहेगा और सोचता रहेगा कि वे लोग असीम आनंद भरा जीवन बिता रहे हैं। लेकिन योहन के सुसमाचार में इस प्रलोभन का एक तोड़ छिपा है। योहन के सुसमाचार के नौवें अध्याय में बाइबिल के एक कम प्रसिद्ध नायक की कहानी है: जन्म से अंधे व्यक्ति की कहानी। वह एक कम प्रसिद्ध नायक इसलिए नहीं है कि वह जन्म से अंधा था, बल्कि इसलिए कि कहानी में हम उसे आलसी, हठी, अवज्ञाकारी, अनादर करने वाला और बेअदबी से पेश आने वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं। जब फरीसी लोग उससे उसकी चंगाई के बारे में सवाल करते हैं, तब वह कहता है, "तुम लोग मेरी बात नहीं सुन रहे हो, या बात यह है कि तुम लोग भी उसके शिष्य बनना चाहते हो?" वह जन्मांध बड़ा ही चालाक था और मुझे पूरा भरोसा है कि वह अपनी किशोरावस्था में रहा होगा। (स्कूलों में बीस साल गुज़ारने के बाद मैं यह कह सकता हूं कि मैं अपने आप को आलस्य, हठ, अवज्ञा, अनादर और अपमान के मामले में ज्ञानी समझता हूं। और तो और, यहूदियों के वे प्राधिकारी जन उस जन्मांध के माता पिता की राय लेने क्यों जाएंगे? और उसके माता-पिता को यह बताने की आवश्यकता क्यों होगी कि वह अपने लिए बोलने के लिए परिपक्व है)। देखा जाए तो पूरी कहानी में सिर्फ येशु ही उस जन्मांध से परेशान नहीं होते दिखाई देते हैं। लेकिन अगर हम धार्मिक दृष्टिकोण से उसे देखें तो इस नवयुवक में एक अच्छा गुण है - चाहे वह नवयुवक अपमानित हो या अड़ियल, परंतु "वह तथ्यों पर कायम रहता है"। "तुम्हें अपनी दृष्टि कैसे वापस मिली?" प्राधिकारियों ने पूछा। "मुझे नहीं पता। उसने मेरी आंखों पर मिट्टी लगाई और अब मैं देख पा रहा हूं।" "लेकिन वह मनुष्य पापी है।" "हो सकता है। मुझे नहीं पता। पहले मैं अंधा था और अब मैं देख सकता हूं।" "पर हमें कोई अंदाज़ा नहीं है कि यह व्यक्ति कहाँ से है।" "किसे पड़ी है? पहले मैं अंधा था और अब मैं देख पा रहा हूं। मैं एक ही बात कितनी बार और दोहराऊं?" ध्यान दीजिए कि वह कहीं पर भी विश्वास की बात नहीं करता है। और अथक पूछताछ के बाद ही वह अंत में स्वीकार करता है कि यह व्यक्ति येशु (जो कोई भी है) ईश्वर की ओर से होगा। वह तो आखिर में येशु को धन्यवाद भी नहीं कहता है। येशु ही उसे खोजते हैं। "क्या तुम मानव पुत्र पर विश्वास करते हो?" येशु उससे पूछते हैं। "वह कौन है?" येशु जवाब देते हैं, "तुम उसी से बात कर रहे हो।" अब मैं इस कहानी के वैकल्पिक अंत की कल्पना कर सकता हूँ जहाँ वह युवक कहता है, “ओह! अच्छा ठीक है। आपको हर बात के लिए धन्यवाद। लेकिन मेरा मानना हैं, कि शायद वह आप नहीं थे जिन्होंने वास्तव में मुझे चंगा किया था। शायद यह सब महज एक इत्तेफाक था। शायद मेरा अंधापन शुरुआत से ही मनोवैज्ञानिक था। शायद उस कीचड़ में कुछ था। मैं काफी सोच विचार के बाद ही इस बारे में ठीक तरह से कुछ कह पाऊंगा।" लेकिन याद करें : यह युवक व्यवहारवादी है। इसे उसकी अच्छाई समझे या बुराई, पर वह हमेशा तथ्यों पर कायम रहता है। संत योहन अपने सुसमाचार में हमें बताते हैं कि उस युवक ने जवाब में बस इतना कहा, "मैं विश्वास करता हूं, प्रभु।" और फिर उसने येशु की आराधना की। एक बार मैंने अपने धार्मिक गुरु से सवाल किया कि मैं किस प्रकार निश्चित रूप से यह जान सकता हूं कि ईश्वर ने मुझे संत लुइस मठ में साधु बनने के लिए बुलाया है? "तुम ही सोचो" उन्होंने कुछ सोच विचार के बाद कहा, "इस समय तुम कहीं और ना हो कर संत लुइस मठ में हो। क्यों हो?" तुम कहीं और ना हो कर यहां हो। ईश्वर में आनंद मनाने के लिए यह एक वजह काफी है।
By: फादर जे. ऑगस्टीन वेट्टा ओ.एस.बी.
Moreसबसे महान प्रचारक, बेशक, येशु स्वयं हैं, और एम्माऊस के रास्ते पर शिष्यों के बारे में लूकस के शानदार वर्णन से बेहतर येशु की सुसमाचार प्रचार तकनीक की कोई और वर्णन नहीं है। गलत रास्ते पर दो लोगों के जाने के वर्णन से कहानी शुरू होती है। लूकस के सुसमाचार में, यरूशलेम आध्यात्मिक गुरुत्वाकर्षण का केंद्र है - अंतिम भोज, क्रूस पर मृत्यु, पुनरुत्थान और पवित्र आत्मा के उतर आने का स्थान यही है। यह वह आवेशित स्थान है जहाँ उद्धार की पूरी योजना का पर्दाफाश होता है। इसलिए राजधानी से दूर जाने के कारण, येशु के ये दो पूर्व शिष्य परम्परा के विपरीत जा रहे हैं। येशु उनकी यात्रा में शामिल हो जाते हैं - हालाँकि हमें बताया जाता है कि उन्हें पहचानने से शिष्यों को रोका गया है - और येशु उन शिष्यों से पूछते हैं कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं। अपने पूरे सेवा कार्य के दौरान, येशु पापियों के साथ जुड़े रहे। यार्दन नदी के कीचड़ भरे पानी में योहन के बपतिस्मा के माध्यम से क्षमा मांगने वालों के साथ येशु कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे; बार-बार, उन्होंने बदनाम लोगों के साथ खाया पिया, और यह वहां के धर्मी लोगों के नज़र में बहुत ही निंदनीय कार्य था; और अपने जीवन के अंत में, उन्हें दो चोरों के बीच सूली पर चढ़ा दिया गया। येशु पाप से घृणा करते थे, लेकिन वे पापियों को पसंद करते थे और लगातार उनकी दुनिया में जाने और उनकी शर्तों पर उनसे जुड़ने के लिए तैयार रहते थे। और यही पहली महान सुसमाचारीय शिक्षा है। सफल सुसमाचार प्रचारक पापियों के अनुभव से अलग नहीं रहते, उन पर आसानी से दोष नहीं लगाते, उन पर फैसला पारित नहीं करते, उनके लिए प्रार्थना दूर से नहीं करते; इसके विपरीत, वे उनसे इतना प्यार करते हैं कि वे उनके साथ जुड़ जाते हैं और उनके जैसे चलने और उनके अनुभव को महसूस करते हैं। येशु के जिज्ञासु प्रश्नों से प्रेरित होकर, यात्रियों में से एक, जिसका नाम क्लेओपस था, नाज़रेथ के येशु के बारे में सभी 'बातें' बताता है: "वे ईश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे। हमारे महायाजकों और शासकों ने उन्हें प्राणदंड दिलाया और क्रूस पर चढ़ाया। हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करनेवाले थे। आज सुबह, ऐसी खबरें आईं कि वे मृतकों में से जी उठे हैं।" क्लेओपस के पास सारे सीधे और स्पष्ट 'तथ्य' हैं; येशु के बारे में उसने जो कुछ भी कहा है, उसमें एक भी बात गलत नहीं है। लेकिन उसकी उदासी और यरूशलेम से उसका भागना इस बात की गवाही देता है कि वह पूरी तस्वीर को नहीं देख पा रहा है। मुझे न्यू यॉर्कर पत्रिका के कार्टून बहुत पसंद हैं, जो बड़ी चतुराई और हास्यास्पद तरीके से बनाए जाते हैं, लेकिन कभी-कभी, कोई ऐसा कार्टून होता है जिसे मैं समझ नहीं पाता। मैं सभी विवरणों को समझ लेता हूँ, मैं मुख्य पात्रों और उनके आस-पास की वस्तुओं को देखता हूँ, मैं कैप्शन को समझ लेता हूँ। फिर भी, मुझे समझ में नहीं आता कि यह हास्य कैसे पैदा करता है। और फिर एक पल आता है जब मुझे समझ में आता है: हालाँकि मैंने कोई और विवरण नहीं देखा है, हालाँकि पहेली का कोई नया टुकड़ा सामने नहीं आया है, लेकिन मैं उस पैटर्न को समझ जाता हूँ जो उन्हें एक सार्थक तरीके से एक साथ जोड़ता है। एक शब्द में, मैं कार्टून को 'समझ' जाता हूँ। क्लेओपस का वर्णन सुनकर, येशु ने कहा: “ओह, निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मंदमति हो।” और फिर येशु उनके लिए धर्मग्रन्थ के प्रतिमानों का खुलासा करते हैं, जिन घटनाओं को उन्होंने देखा है, उनका अर्थ बताते हैं। अपने बारे में कोई नया विवरण बताए बिना, येशु उन्हें रूप, व्यापक योजना और सरंचना, और उसका अर्थ दिखाते हैं - और इस प्रक्रिया के माध्यम से वे उसे 'समझना' शुरू करते हैं: उनके दिल उनके भीतर जल रहे हैं। यही दूसरी सुसमाचार शिक्षा है। सफल प्रचारक धर्मग्रन्थ का उपयोग दिव्य प्रतिमानों और विशेषकर उस प्रतिमान को प्रकट करने के लिए करते हैं, जो येशु में देहधारी हुआ है। इन प्रतिमानों का स्पष्टीकरण किये बिना, मानव जीवन एक अस्तव्यस्तता है, घटनाओं का एक धुंधलापन है, अर्थहीन घटनाओं की एक श्रृंखला है। सुसमाचार का प्रभावी प्रचारक बाइबल का व्यक्ति होता है, क्योंकि पवित्र ग्रन्थ वह साधन है जिसके द्वारा हम येशु मसीह को 'पाते' हैं और उसके माध्यम से, हमारे अपने जीवन को भी। जब वे एम्माउस शहर के पास पहुँचते हैं, तो वे दोनों शिष्य अपने साथ रहने के लिए येशु पर दबाव डालते हैं। येशु उनके साथ बैठते हैं, रोटी उठाते हैं, आशीर्वाद की प्रार्थना बोलते हैं, उसे तोड़ते हैं और उन्हें देते हैं, और उसी क्षण वे येशु को पहचान लेते हैं। हालाँकि, वे पवित्र ग्रन्थ के हवाले से देखना शुरू कर रहे थे, फिर भी वे पूरी तरह से समझ नहीं पाए थे कि वह कौन था। लेकिन यूखरिस्तीय क्षण में, रोटी तोड़ने पर, उनकी आँखें खुल जाती हैं। येशु मसीह को समझने का अंतिम साधन पवित्रग्रन्थ नहीं बल्कि पवित्र यूखरिस्त है, क्योंकि यूखरिस्त स्वयं मसीह है, जो व्यक्तिगत रूप से और सक्रिय रूप से उसमें मौजूद हैं। यूखरिस्त पास्का रहस्य का मूर्त रूप है, जो अपनी मृत्यु के माध्यम से दुनिया के प्रति येशु का प्रेम, सबसे हताश पापियों को बचाने के लिए पापी और निराश दुनिया की ओर ईश्वर की यात्रा, करुणा के लिए उनका संवेदनशील हृदय है। और यही कारण है कि यूखरिस्त की नज़र के माध्यम से येशु सबसे अधिक पूर्ण और स्पष्ट रूप से हमारी दृष्टि के केंद्र में आते हैं। और इस प्रकार हम सुसमाचार की तीसरी महान शिक्षा पाते हैं। सफल सुसमाचार प्रचारक यूखरिस्त के व्यक्ति हैं। वे पवित्र मिस्सा की लय की लहरों में बहते रहते हैं; वे यूखरिस्तीय आराधना का अभ्यास करते हैं; जिन्होंने सुसमाचार को स्वीकार किया है, उन लोगों को वे येशु के शरीर और रक्त में भागीदारी के लिए आकर्षित करते हैं। वे जानते हैं कि पापियों को येशु मसीह के पास लाना कभी भी मुख्य रूप से व्यक्तिगत गवाही, या प्रेरणादायक उपदेश, या यहाँ तक कि पवित्रग्रन्थ के व्यापक सरंचना के संपर्क का मामला नहीं होता है। यह मुख्य रूप से यूखरिस्त की टूटी हुई रोटी के माध्यम से ईश्वर के टूटे हुए दिल को देखने का मामला है। तो सुसमाचार के भावी प्रचारको, वही करो जो येशु ने किया। पापियों के साथ चलो, पवित्र ग्रन्थ खोलो, रोटी तोड़ो।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
Moreएक आकर्षक पहली मुलाकात, दूरी, फिर पुनर्मिलन...यह अनंत प्रेम की कहानी है। मुझे बचपन की एक प्यारे दिन की याद आती है, जब मैंने यूखरिस्तीय आराधना में येशु का सामना किया था। एक राजसी और भव्य मोनस्ट्रेंस या प्रदर्शिका में यूखरिस्तीय येशु को देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गई थी। सुगन्धित धूप उस यूखरिस्त की ओर उठ रही थी। जैसे ही धूपदान को झुलाया गया, यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की ओर धूप उड़ने लगी, और पूरी मंडली ने एक साथ गाया: " परम पावन संस्कार में, सदा सर्वदा, प्रभु येशु की स्तुति हो, महिमा हो, आराधना हो।" वह बहुप्रतीक्षित मुलाकात मैं खुद धूपदान को छूना चाहती थी और उसे धीरे से आगे की ओर झुलाना चाहती थी ताकि मैं धूप को प्रभु येशु तक पहुंचा सकूं। पुरोहित ने मुझे धूपदान को न छूने का इशारा किया और मैंने अपना ध्यान धूप के धुएं पर लगाया जो मेरे दिल और आंखों के साथ-साथ यूखरिस्त में पूरी तरह से मौजूद प्रभु की ओर बढ़ रहा था। इस मुलाकात ने मेरी आत्मा को बहुत खुशी से भर दिया। सुंदरता, धूप की खुशबू, पूरी मंडली का एक सुर में गाना, और यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की उपासना का दृश्य... मेरी इंद्रियाँ पूरी तरह से संतुष्ट थीं, जिससे मुझे इसे फिर से अनुभव करने की लालसा हो रही थी। उस दिन को याद करके मुझे आज भी बहुत खुशी होती है। हालाँकि, किशोरावस्था में, मैंने इस अनमोल निधि के प्रति अपना आकर्षण खो दिया, और खुद को पवित्रता के ऐसे महान स्रोत से वंचित कर लिया। हालांकि उन दिनों मैं एक बच्ची थी, इसलिए मुझे लगता था कि मुझे यूख्ररिस्तीय आराधना के पूरे समय लगातार प्रार्थना करनी होगी और इसके लिए एक पूरा घंटा मुझे बहुत लंबा लगता था। आज हममें से कितने लोग ऐसे कारणों से - तनाव, ऊब, आलस्य या यहाँ तक कि डर के कारण - यूखरिस्तीय आराधना में जाने से हिचकिचाते हैं? सच तो यह है कि हम खुद को इस महान उपहार से वंचित करते हैं। पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत अपनी युवावस्था में संघर्षों, परीक्षाओं और पीडाओं के बीच, मुझे याद आया कि मुझे पहले कहाँ से इतनी सांत्वना मिली थी, और उस सांत्वना के स्रोत को याद करते हुए मैं शक्ति और पोषण के लिए यूखरिस्तीय आराधना में वापस लौटी। पहले शुक्रवार को, मैं पूरे एक घंटे के लिए पवित्र संस्कार में येशु की उपस्थिति में चुपचाप आराम करती, बस खुद को उनके साथ रहने देती, अपने जीवन के बारे में प्रभु से बात करती, उनकी मदद की याचना करती और बार-बार तथा सौम्य तरीके से उनके प्रति अपने प्यार का इज़हार करती। यूखरिस्तीय येशु के सामने आने और एक घंटे के लिए उनकी दिव्य उपस्थिति में रहने की संभावना मुझे वापस खींचती रही। जैसे-जैसे साल बीतते गए, मुझे एहसास हुआ कि यूखरिस्तीय आराधना ने मेरे जीवन को गहन तरीकों से बदल दिया है क्योंकि मैं ईश्वर की एक प्यारी बेटी के रूप में अपनी सबसे गहरी पहचान के बारे में अधिक से अधिक जागरूक होती जा रही हूँ। हम जानते हैं कि हमारे प्रभु येशु वास्तव में और पूरी तरह से यूखरिस्त में मौजूद हैं - उनका शरीर, रक्त, आत्मा और दिव्यता यूखरिस्त में हैं। यूखरिस्त स्वयं येशु हैं। यूखरिस्तीय येशु के साथ समय बिताने से आप अपनी बीमारियों से चंगे हो सकते हैं, अपने पापों से शुद्ध हो सकते हैं और अपने आपको उनके महान प्रेम से भर सकते हैं। इसलिए, मैं आप सभी को नियमित रूप से यूखरिस्तीय प्रभु के सम्मुख पवित्र घड़ी बिताने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ। आप जितना अधिक समय यूखरिस्तीय आराधना में प्रभु के साथ बिताएँगे, उनके साथ आपका व्यक्तिगत संबंध उतना ही मजबूत होगा। शुरुआती झिझक के सम्मुख न झुकें, बल्कि हमारे यूखरिस्तीय प्रभु, जो स्वयं प्रेम और दया, भलाई और केवल भलाई हैं, उनके साथ समय बिताने से न डरें।
By: पवित्रा काप्पन
Moreजब आपका रास्ता मुश्किलों से भरा हो और आप को आगे का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा हो, तो आप क्या करेंगे? 2015 की गर्मी अविस्मरणीय थी। मैं अपने जीवन के सबसे निचले बिंदु पर थी - अकेली, उदास और एक भयानक स्थिति से बचने के लिए अपनी पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी। मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से थकी और बिखरी हुई थी, और मुझे लगा कि मेरी दुनिया खत्म होने वाली है। लेकिन अजीब बात यह है कि चमत्कार तब होते हैं जब हम उन चमत्कारों की कम से कम उम्मीद करते हैं। असामान्य घटनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से, ऐसा लग रहा था जैसे परमेश्वर मेरे कान में फुसफुसा रहा था कि वह मुझे संरक्षण दे रहा है। उस विशेष रात को, मैं निराश होकर, टूटी और बिखरी हुई बिस्तर पर लेटने गयी थी। सो नहीं पाने के कारण, मैं एक बार फिर अपने जीवन की दुखद स्थिति पर विचार कर रही थी और मैं अपनी रोज़री माला को पकड़ कर प्रार्थना करने का प्रयास कर रही थी। एक अजीब तरह के दर्शन या सपने में, मेरे सीने पर रखी रोज़री माला से एक चमकदार रोशनी निकलने लगी, जिसने कमरे को एक अलौकिक सुनहरी चमक से भर दिया। जैसे-जैसे यह रोशनी धीरे-धीरे फैलने लगी, मैंने उस चमकदार वृत्त के किनारे पर काले, चेहरेहीन, छायादार आकृतियाँ देखीं। वे अकल्पनीय गति से मेरे करीब आ रहे थे, लेकिन सुनहरी रोशनी तेज होती गई और जब भी वे मेरे करीब आने की कोशिश करते, तो वह सुनहरी रोशनी उन्हें दूर भगा देती। मैं स्तब्ध थी, और उस अद्भुत दृश्य की विचित्रता पर प्रतिक्रिया करने में असमर्थ थी। कुछ पलों के बाद, दृश्य अचानक समाप्त हो गया, कमरे में फिर से गहरा अंधेरा छा गया। बहुत परेशान होकर सोने से डरती हुई , मैंने टी.वी. चालू किया। एक पुरोहित, संत बेनेदिक्त की ताबीज़ (मेडल) पकड़े हुए थे और बता रहे थे कि यह ताबीज़ कैसे दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है। जब वे उस ताबीज़ पर अंकित प्रतीकों और शब्दों पर चर्चा कर रहे थे, मैंने अपनी रोज़री माला पर नज़र डाली - यह मेरे दादाजी की ओर से एक उपहार थी - और मैंने देखा कि मेरी रोज़री माला पर टंगे क्रूस में वही ताबीज़ जड़ी हुई थी। इससे एक आभास हुआ। मेरे गालों पर आँसू बहने लगे क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि जब मैं सोच रही थी कि मेरा जीवन बर्बाद हो रहा है तब भी परमेश्वर मेरे साथ था और मुझे संरक्षण दे रहा था। मेरे दिमाग से संदेह का कोहरा छंट गया, और मुझे इस ज्ञान में सांत्वना मिली कि मैं अब अकेली नहीं थी। मैंने पहले कभी संत बेनेदिक्त की ताबीज़ के अर्थ को नहीं समझा था, इसलिए इस नए विश्वास ने मुझे बहुत आराम दिया, जिससे परमेश्वर में मेरा विश्वास और आशा मजबूत हुई। अपार प्रेम और करुणा के साथ, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ मौजूद था, जब भी मैं फिसली तो मुझे बचाने के लिए वह तैयार था। यह एक सुकून देने वाला विचार था जिसने मेरे अस्तित्व को जकड लिया, मुझे आशा और शक्ति से भर दिया। मेरी आत्मा को प्राप्त नया रूप मेरे दृष्टिकोण में इस तरह के बदलाव ने मुझे आत्म-खोज और विकास की यात्रा पर आगे बढ़ाया। मैंने आध्यात्मिकता को अपने रोजमर्रा के जीवन से दूर की चीज़ के रूप में देखना बंद कर दिया। इसके बजाय, मैंने प्रार्थना, चिंतन और दयालुता के कार्यों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध विकसित करने की कोशिश की, यह महसूस करते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति केवल भव्य इशारों तक सीमित नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के सबसे सरल क्षणों में महसूस की जा सकती है। एक रात में पूरा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन मैंने अपने भीतर हो रहे सूक्ष्म बदलावों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। मैं अधिक धैर्यवान हो गयी हूं, तनाव और चिंता को दूर करना सीख गयी हूं, और इस तरह मैंने एक नए विश्वास को अपनाया है कि अगर मैं ईश्वर पर अपना भरोसा रखूंगी तो चीजें उसकी इच्छा के अनुसार सामने आएंगी। इसके अलावा, प्रार्थना के बारे में मेरी धारणा बदल गई है, जो इस समझ से उपजी एक सार्थक बातचीत में बदल गई है कि, भले ही उनकी दयालु उपस्थिति दिखाई न दे, लेकिन ईश्वर हमारी बात सुनता है और हम पर नज़र रखता है। जैसे कुम्हार मिट्टी को उत्कृष्ट कलाकृति में ढालता है, वैसे ही ईश्वर हमारे जीवन के सबसे निकृष्ट हिस्सों को ले सकता है और उन्हें कल्पना की जा सकने वाली सबसे सुंदर आकृतियों में ढाल सकता है। उन पर विश्वास और आशा हमारे जीवन में बेहतर चीजें लाएगी जो हम कभी भी अपने दम पर हासिल नहीं कर सकते हैं, और हमें अपने रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों के बावजूद मजबूत बने रहने में सक्षम बनाती हैं। * संत बेनेदिक्त का मेडल उन लोगों को दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद देते हैं जो उन्हें पहनते हैं। कुछ लोग उन्हें नई इमारतों की नींव में गाड़ देते हैं, जबकि अन्य उन्हें रोज़री माला से जोड़ते हैं या अपने घर की दीवारों पर लटकाते हैं। हालाँकि, सबसे आम प्रथा संत बेनेदिक्त के मेडल को ताबीज़ बनाकर पहनना या इसे क्रूस के साथ जोड़ना है।
By: अन्नू प्लाचेई
Moreमैं विश्वविद्यालय की एक स्वस्थ छात्रा थी, अचानक पक्षाघात वाली बन गयी, लेकिन मैंने व्हीलचेयर तक अपने को सीमित रखने से इनकार कर दिया… विश्वविद्यालय के शुरुआती सालों में मेरी रीढ़ की डिस्क खिसक गई थी। डॉक्टरों ने मुझे भरोसा दिलाया कि युवा और सक्रिय होने के कारण, फिजियोथेरेपी और व्यायाम के द्वारा मैं बेहतर हो जाऊंगी, लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद, मैं हर दिन दर्द में रहती थी। मुझे हर कुछ महीनों में गंभीर दौरे पड़ते थे, जिसके कारण मैं हफ्तों तक बिस्तर पर रहती थी और बार-बार अस्पताल जाना पड़ता था। फिर भी, मैंने उम्मीद बनाई रखी, जब तक कि मेरी दूसरी डिस्क खिसक नहीं गई। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी बदल गई है। ईश्वर से नाराज़! मैं पोलैंड में पैदा हुई थी। मेरी माँ ईशशास्त्र पढ़ाती हैं, इसलिए मेरी परवरिश कैथलिक धर्म में हुई। यहाँ तक कि जब मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए स्कॉटलैंड और फिर इंग्लैंड गयी, तब भी मैंने इस धर्म को बहुत प्यार से थामे रखा, करो या मरो के अंदाज़ में शायद नहीं, लेकिन यह हमेशा मेरे साथ था। किसी नए देश में जाने का शुरुआती दौर आसान नहीं था। मेरा घर एक भट्टी की तरह था, जहाँ मेरे माता-पिता अक्सर आपस में लड़ते रहते थे, इसलिए मैं व्यावहारिक रूप से इस अजनबी देश की ओर भाग गयी थी। अपने मुश्किल बचपन को पीछे छोड़कर, मैं अपनी जवानी का मज़ा लेना चाहती थी। अब, यह दर्द मेरे लिए नौकरी करना और खुद को आर्थिक रूप से संतुलित रखना मुश्किल बना रहा था। मैं ईश्वर से नाराज़ थी। फिर भी, वह मुझे जाने देने को तैयार नहीं था। भयंकर दर्द में कमरे के अन्दर फँसे होने के कारण, मैंने एकमात्र उपलब्ध शगल का सहारा लिया—मेरी माँ की धार्मिक पुस्तकों का संग्रह। धीरे-धीरे, मैंने जिन आत्मिक साधनाओं में भाग लिया और जो किताबें पढ़ीं, उनसे मुझे एहसास हुआ कि मेरे अविश्वास के बावजूद, ईश्वर वास्तव में चाहता था कि उसके साथ मेरा रिश्ता मजबूत हो। लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी कि वह अभी तक मुझे चंगा नहीं कर रहां था। आखिरकार, मुझे विश्वास हो गया कि ईश्वर मुझसे नाराज़ हैं और मुझे ठीक नहीं करना चाहता, इसलिए मैंने सोचा कि शायद मैं उन्हें धोखा दे सकती हूँ। मैंने चंगाई के लिए विख्यात और अच्छे 'आँकड़ों' वाले किसी पवित्र पुरोहित की तलाश शुरू कर दी ताकि जब ईश्वर दूसरे कामों में व्यस्त हों तो मैं ठीक हो सकूँ। कहने की ज़रूरत नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ। मेरी यात्रा में एक मोड़ एक दिन मैं एक प्रार्थना समूह में शामिल थी, मैं बहुत दर्द में थी। दर्द की वजह से एक गंभीर प्रकरण होगा, इस डर से, मैं वहाँ से जाने की योजना बना रही थी, तभी वहाँ के एक सदस्य ने पूछा कि क्या कोई ऐसी बात है जिसके लिए मैं उनसे प्रार्थना की मांग करना चाहूँगी। मुझे काम पर कुछ परेशानी हो रही थी, इसलिए मैंने हाँ कह दिया। जब वे लोग प्रार्थना कर रहे थे, तो उनमें से एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या कोई शारीरिक बीमारी है जिसके लिए मुझे प्रार्थना की ज़रूरत है। चंगाई करनेवाले लोगों की मेरी ‘रेटिंग' सूची के हिसाब से वे बहुत नीचे थे, इसलिए मुझे भरोसा नहीं था कि मुझे कोई राहत मिलेगी, लेकिन मैंने फिर भी 'हाँ' कह दिया। उन्होंने प्रार्थना की और मेरा दर्द दूर हो गया। मैं घर लौट आयी, और वह दर्द अभी भी नहीं थी। मैं कूदने, मुड़ने और इधर-उधर घूमने लगी, और मैं अभी भी ठीक थी। लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मैं ठीक हो गयी हूँ, तो किसी ने मुझ पर विश्वास नहीं किया। इसलिए, मैंने लोगों को बताना बंद कर दिया; इसके बजाय, मैं माँ मरियम को धन्यवाद देने के लिए मेडजुगोरे गयी। वहाँ, मेरी मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जो रेकी कर रहा था और मेरे लिए प्रार्थना करना चाहता था। मैंने मना कर दिया, लेकिन जाने से पहले उसने अलविदा कहने के लिए मुझे गले लगाया, जिससे मैं चिंतित हो गयी क्योंकि उसने कहा कि उसके स्पर्श में शक्ति है। मैंने डर को हावी होने दिया और गलत तरीके से मान लिया कि इस दुष्ट का स्पर्श ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। अगली सुबह मैं भयंकर दर्द में उठी, चलने में असमर्थ थी। चार महीने की राहत के बाद, मेरा दर्द इतना तीव्र हो गया कि मुझे लगा कि मैं वापस ब्रिटेन भी नहीं जा पाऊँगी। जब मैं वापस लौटी, तो मैंने पाया कि मेरी डिस्क नसों को छू रही थी, जिससे महीनों तक और भी ज़्यादा दर्द हो रहा था। छह या सात महीने बाद, डॉक्टरों ने फैसला किया कि उन्हें मेरी रीढ़ की हड्डी पर जोखिम भरी सर्जरी करने की ज़रूरत है, जिसे वे लंबे समय से टाल रहे थे। सर्जरी से मेरे पैर की एक नस क्षतिग्रस्त हो गई, और मेरा बायाँ पैर घुटने से नीचे तक लकवाग्रस्त हो गया। वहाँ और फिर एक नई यात्रा शुरू हुई, एक अलग यात्रा। मुझे पता है कि तू यह कर सकता है जब मैं पहली बार व्हीलचेयर पर घर पहुची, तो मेरे माता-पिता डर गए, लेकिन मैं खुशी से भर गयी। मुझे सभी तकनीकी चीजें पसंद थीं...हर बार जब कोई मेरी व्हीलचेयर पर बटन दबाता था, तो मैं एक बच्चे की तरह उत्साहित हो जाती थी। क्रिसमस की अवधि के दौरान, जब मेरा पक्षाघात ठीक होने लगा, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी नसों को कितना नुकसान हुआ है। मैं कुछ समय के लिए पोलैंड के एक अस्पताल में भर्ती थी। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे जीने वाली थी। मैं बस ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि मुझे एक और उपचार की आवश्यकता है: "तुझे फिर से खोजने की मेरी आवश्यकता है क्योंकि मुझे पता है कि तू यह कर सकता है।" इसलिए, मुझे एक चंगाई सभा के बारे में जानकारी मिली और मुझे विश्वास हो गया कि मैं ठीक हो जाऊंगी। एक ऐसा पल जिसे आप खोना नहीं चाहेंगे वह शनिवार का दिन था और मेरे पिता शुरू में नहीं जाना चाहते थे। मैंने उनसे कहा: "आप अपनी बेटी के ठीक होने पर उस पल को खोना नहीं चाहेंगे।" मूल कार्यक्रम में मिस्सा बलिदान था, उसके बाद आराधना के साथ चंगाई सभा थी। लेकिन जब हम पहुंचे, तो पुरोहित ने कहा कि उन्हें योजना बदलनी होगी क्योंकि चंगाई सभा का नेतृत्व करने वाली टीम वहां नहीं थी। मुझे याद है कि मेरे मन में उस समय यह सोच आई थी कि मुझे किसी टीम की ज़रूरत नहीं है: "मुझे केवल येशु की ज़रूरत है।" जब मिस्सा बलिदान शुरू हुआ, तो मैं एक भी शब्द सुन नहीं पाई। हम उस तरफ बैठे थे जहाँ दिव्य की करुणा की तस्वीर थी। मैंने येशु को ऐसे देखा जैसे मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। यह एक आश्चर्यजनक छवि थी। येशु बहुत सुंदर लग रहे थे! मैंने उसके बाद कभी भी वह तस्वीर नहीं देखी। पूरे मिस्सा बलिदान के दौरान, पवित्र आत्मा मेरी आत्मा को घेरा हुआ था। मैं बस अपने मन में 'धन्यवाद' कह रही थी, भले ही मुझे नहीं पता था कि मैं किसके लिए आभारी हूँ। मैं चंगाई की प्रार्थना का निवेदन नहीं कह पा रही थी, और यह निराशाजनक था क्योंकि मुझे चंगाई की आवश्यकता थी। जब आराधना शुरू हुई तो मैंने अपनी माँ से कहा कि वे मुझे आगे ले जाएँ, जितना संभव हो सके येशु के करीब ले जाएँ। वहाँ, आगे बैठे हुए, मुझे लगा कि कोई मेरी पीठ को छू रहा है और मालिश कर रहा है। मुझे इतनी तीव्रता का अनुभव और साथ साथ आराम भी मिल रहा था कि मुझे लगा कि मैं सो जाऊँगी। इसलिए, मैंने बेंच पर वापस जाने का फैसला किया, लेकिन मैं भूल गयी थी कि मैं 'चल' नहीं सकती। मैं बस वापस चली गई और मेरी माँ मेरी बैसाखियों के साथ मेरे पीछे दौड़ी, ईश्वर की स्तुति करते हुए, माँ कह रही थी: "तुम चल रही हो, तुम चल रही हो।" मैं पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु द्वारा चंगी हो गयी थी। जैसे ही मैं बेंच पर बैठी, मैंने एक आवाज़ सुनी: "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है।" मेरे दिमाग में, मैंने उस महिला की छवि देखी जो येशु के गुजरने पर उनके लबादे को छू रही थी। उसकी कहानी मुझे मेरी कहानी की याद दिलाती है। जब तक मैं इस बिंदु पर नहीं पहुँची जहाँ मैंने येशु पर भरोसा करना शुरू किया, तब तक कुछ भी मदद नहीं कर रहा था। चंगाई तब हुई जब मैंने उसे स्वीकार किया और उससे कहा: "तुम ही मेरी ज़रूरत हो।" मेरे बाएं पैर की सभी मांसपेशियाँ चली गई थीं और वह भी रातों-रात वापस आ गई। यह बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि डॉक्टर लोग पहले भी इसका माप ले रहे थे और उन्होंने एक आश्चर्यजनक, अवर्णनीय परिवर्तन पाया। ऊंची आवाज़ में गवाही इस बार जब मुझे चंगाई मिली, तो मैं इसे सभी के साथ साझा करना चाहती थी। अब मैं शर्मिंदा नहीं थी। मैं चाहती थी कि सभी को पता चले कि ईश्वर कितना अद्भुत है और वह हम सभी से कितना प्यार करता है। मैं कोई खास नहीं हूँ और मैंने इस चंगाई को प्राप्त करने के लिए कुछ खास नहीं किया है। ठीक होने का मतलब यह भी नहीं है कि मेरा जीवन रातों-रात बहुत आरामदायक हो गया। अभी भी कठिनाइयाँ हैं, लेकिन वे बहुत हल्की हैं। मैं उन कठिनाइयों को यूखरिस्तीय आराधना में ले जाती हूँ और येशु मुझे समाधान देता है, या उनसे कैसे निपटना है इस बारे में विचार देता है, साथ ही आश्वासन और भरोसा भी देता है कि वह स्वयं उनसे निपटेगा।
By: एनिया ग्रेग्लेवस्का
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