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जून 03, 2023 253 0 डीकन जिम मैकफैडेन
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आज ही अपना सर्वश्रेष्ठ निर्णय लें!

सही निर्णय लेना महत्वपूर्ण है; आपका क्या निर्णय है?

चालीस साल पहले, मशहूर गायक बॉब डिलन ने ईसाई धर्म की खोज में खुद को डुबो दिया, जो उनके ‘स्लो ट्रेन कमिंग’ नामक एल्बम (1979) में स्पष्ट झलकता था। निम्नलिखित गीत में, डिलन प्रश्न पूछते हैं ‘आप अपनी परम निष्ठा किसे देते हैं?’

“हाँ, आपको किसी की सेवा करनी होगी। खैर, यह शैतान हो सकता है, या यह ईश्वर हो सकता है, लेकिन आपको किसी की सेवा करनी होगी।”

हम इस प्रश्न को टाल नहीं सकते, क्योंकि हम वास्तव में “किसी की सेवा करने के लिए” बने हैं। ऐसा क्यों है? हम किसी भी चीज या किसी के प्रति अपनी निष्ठा दिए बिना सिर्फ एक अनुभव से दूसरे अनुभव की ओर क्यों नहीं उछल सकते? उत्तर हमारे मानव स्वभाव से आता है: हमारे पास एक मन (चिंतनशील चेतना) और एक इच्छा है (जो अच्छाई की इच्छा रखता है)। हमारे दिमाग में, हमारे मानव अस्तित्व में अर्थ तलाशने की अंतर्निहित क्षमता है। अन्य प्राणियों के विपरीत, हम केवल अनुभव नहीं करते हैं; बल्कि, हम एक कदम पीछे जाते हुए जो अभी-अभी हुआ उसकी व्याख्या करते हैं और उसे अर्थ देते हैं। अपने अनुभवों से अर्थ निकालने की हमारी प्रक्रिया में, हमें डिलन के प्रश्न का सामना करना चाहिए: मैं किसकी सेवा करूं?

क्या आप अपने अंत की ओर बढ़ रहे हैं?

येशु अपनी आदत के अनुसार निर्णय को सरल व्याख्या देते हुए कहते हैं, “कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से घृणा करेगा और दूसरे से प्रेम, या एक के प्रति समर्पित रहेगा और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते” (मत्ती 6:24)।

येशु जानते हैं कि हम या तो हमारे अस्तित्व का स्रोत ईश्वर के साथ संबंध में रहकर पूर्णता की तलाश करते हैं, या हम ईश्वर से अलग रहकर खुशी की तलाश करते हैं। हम दोनों तरीकों से एक साथ जीवन नहीं जी सकतें: “…या तो शैतान, नहीं तो ईश्वर, लेकिन आपको किसी की सेवा तो करनी ही होगी।” हम जो चयन करते हैं, वही हमारे भविष्य को निर्धारित करता है।

जब हम ‘धन’ के प्रति अपनी निष्ठा देते हैं तो हम अपने सच्चे आत्मन् को अस्वीकार कर देते हैं, क्योंकि हमारे अस्तित्व का सही अर्थ ईश्वर और पड़ोसी के साथ वास्तविक संबंध होना है। ‘धन’ को चुनने में हम उपभोग करने वाले व्यक्ति में बदल जाते हैं, जो संपत्ति, प्रतिष्ठा, शक्ति और आनंद में अपनी पहचान पाता है। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम खुद को केवल वस्तु या भौतिक चीज़ के समान देखते हैं। समकालीन शब्दों में, हम इसे ‘स्वयं का भौतिकीकरण’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, हम वही हैं जिसपर हम स्वामित्व रखते हैं।

संपत्ति, प्रतिष्ठा, शक्ति और आनंद का मार्ग एक गतिरोध की ओर ले जाता है। क्यों? क्योंकि वे हैं…
• दुर्लभ — हर कोई धन, प्रशंसा, आनंद और शक्ति का वारिस नहीं हो सकता। यदि संसार की वस्तुओं का होना सुख का द्वार है, तो अधिकांश मनुष्यों के पास सुख का कोई अवसर नहीं हो सकता है।
• विशिष्ट – जो उनकी कमी का परिणाम है। जीवन शून्य-राशि का खेल बन जाता है, जिसमें समाज ‘अमीर’ और ‘गरीब’ में बंट जाता है। ब्रूस स्प्रिन्गस्टन अपने एक गीत में लिखते हैं, “इधर केवल विजेता और कायर हैं, बस तुम उस लकीर के गलत पाले में मत फंसो”।
• परिवर्त्तनशील – जिसका मतलब है कि हमारी ज़रूरतें और चाहें बदलती रहती हैं; हम कभी भी किसी अंतिम बिंदु तक नहीं पहुंच पाते क्योंकि पाने के लिए हमेशा कुछ और होता है।
• अल्पकालिक – उनका मुख्य दोष सतहीपन है। जबकि भौतिकतावाद, प्रशंसा, स्थिति और नियंत्रण में रहना हमें कुछ समय के लिए संतुष्ट कर सकता है, वे हमारी गहरी लालसा को संबोधित नहीं करते हैं। अंत में, वे गुजर जाते हैं: “व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ, सब कुछ व्यर्थ है” (उपदेशक 1:2ख)।

हमारी सही पहचान

इस दुनिया के धन और सुखों का पीछा करने से मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप में विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। यदि मेरा आत्म-मूल्य मेरी संपत्ति और उपलब्धियों पर निर्भर करता है, तो नवीनतम गैजेट्स की कमी या कुछ विफलता का अनुभव करने का अर्थ है कि मेरे पास न केवल दूसरों की तुलना में कम है या मैं किसी प्रयास में विफल रहा हूं, बल्कि यह गलत सोच है कि मैं एक व्यक्ति के रूप में विफल रहा हूं। खुद की तुलना दूसरों से करना और खुद से पूर्णता की उम्मीद करना आज इतने सारे युवाओं द्वारा अनुभव की गई चिंता को समझाता है। और जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है और हम कम उत्पादक होते जाते हैं, हम अपनी उपयोगिता और आत्म-मूल्य की भावना खो सकते हैं।

येशु हमें बताते हैं कि हमारा दूसरा विकल्प “प्रभु की सेवा करना” है जो प्रभु स्वयं जीवन है और जो अपने जीवन को हमारे साथ साझा करना चाहता है ताकि हम उसके जैसा बन सकें और उसके अस्तित्व के आश्चर्य को प्रतिबिंबित कर सकें। मिथ्यापूर्ण व्यक्तित्व, पुराना व्यक्तित्व, भौतिक वस्तुओं पर केन्द्रित व्यक्तित्व हमें आत्म-अवशोषण और आध्यात्मिक मृत्यु की ओर ले जाता है। लेकिन “प्रभु की सेवा” करने से हम प्रभु के आत्मन् में प्रवेश करते हैं। नया आत्मन्, सच्चा आत्मन् मसीह हम में बसा हुआ है; यह वह आत्मन् है जिसे प्रेम करने का आदेश दिया गया है, क्योंकि संत योहन हमें याद दिलाते हैं, “ईश्वर प्रेम है” (1 योहन 4:7ब)। संत पोलुस कहते हैं कि जब हमारे पास वह सच्चा आत्मन् है, तो हम अपने निर्माता की छवि में नए हो रहे हैं (कलोसी 3: 1-4)।

‘हम कौन हैं’ यह जानना, ‘हमें क्या करना है’ इस के बारे में जानने में हमारी मदद करता है। हमारे पास जो है उससे कहीं अधिक मायने रखता है कि हम कौन हैं। क्योंकि यदि हम जानते हैं कि हम कौन हैं तो इससे हमें पता चलेगा कि हमें क्या करना है। हम ईश्वर के प्रिय बच्चे हैं जिन्हें ईश्वर के प्रेम में बसने के लिए बनाया गया है। यदि हम उस सत्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं; तो यह जानना कि किसकी सेवा करनी है, यह कोई कठिन निर्णय नहीं होगा। योशुआ की प्रतिध्वनि करते हुए, हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं, “मैं और मेरा परिवार, हम सब प्रभु की उपासना करना चाहते हैं” (योशुआ 24:15)।

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डीकन जिम मैकफैडेन

डीकन जिम मैकफैडेन कैलिफोर्निया के फॉल्सम में संत जॉन द बैपटिस्ट कैथलिक चर्च में सेवारत हैं। वह ईशशास्त्र के शिक्षक हैं और वयस्क विश्वास निर्माण और आध्यात्मिक निर्देशन के क्षेत्र में कार्य करते हैं।

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