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नवम्बर 24, 2022 458 0 Deacon Doug McManaman, Canada
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आंखें जो देखती हैं, कान जो सुनते हैं

जब आप को नींद नहीं आती और आप बिस्तर पर करवटें लेते रहते हैं, तब क्या आपने कभी महसूस किया है कि ईश्वर आप से कह रहा है, “हमें आपस में बात करने की ज़रूरत है और क्या अब तुम्हारे पास इस केलिए समय है”?

मैं एक बार ग्रामीण इलाके के दौरे पर था, तब एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में, कक्षा पांच की एक बालिका ने मुझसे कहा कि वर्त्तमान महामारी के संबंध में उसे एक वयस्क व्यक्ति ने बताया था कि “ईश्वर छुट्टी पर चला गया है”। हालाँकि इस दावे में कुछ उम्मीद की बात है – छुट्टियां कभी समाप्त भी हो जाती हैं और छुट्टी पर गया व्यक्ति वापस आ जाता है और अपने व्यवसाय को संभाल लेता है – लेकिन मैं निश्चित रूप से इसे इस दृष्टिकोण से नहीं देखूँगा। इस तरह का दावा करना काफी खतरनाक है, क्योंकि ईश्वर हमें एक पल के लिए भी अकेले नहीं छोड़ता। वास्तव में, हमारे अस्तित्व के हर पल में हमारे ऊपर ईश्वर का अविभाजित ख्याल है, और सबसे बढ़कर बच्चों को इसे समझने की जरूरत है। एक सीमित मनुष्य के लिए एक ही समय में एक से अधिक व्यक्तियों पर अविभाजित ध्यान देना संभव नहीं है, लेकिन ईश्वर सभी को अपना अविभाजित ध्यान एक साथ दे सकता है, क्योंकि ईश्वर असीमित है।

एक शुद्ध उपहार

इसका क्या अर्थ है कि हमारे अस्तित्व के प्रत्येक क्षण में हमारे पास परमेश्वर का अविभाजित ध्यान है, इस पर विचार करना आवश्यक है; इसका मतलब है कि वह हम में से हर एक से प्यार करता है, मानो कि इस दुनिया में आप ही एक मात्र व्यक्ति हैं जिसे वह प्यार करता है। ऐसा लगता है कि ब्रह्मांड में सब कुछ अंततः आपके लिए ही बनाया गया था, यह सब आपके पोषण केलिए और आपकी सेवा करने के लिए मौजूद है – ग्रह का सम्पूर्ण वातावरण, गुरुत्वाकर्षण का नियम और भौतिकी के अन्य सभी नियम, प्रकृति का ऋतु चक्र और क्रम, इत्यादि। दरअसल, यदि आप या मैं वास्तव में जानते हैं कि परमेश्वर हमसे कितना प्यार करता है, तो हम खुशी से झूमते। प्यार किये जाने के बारे में ठीक उसी प्रकार सीख लेना ही इस जीवन का उद्देश्य है।

इसका मतलब है कि अपने आप को उस तरह से प्यार किये जाने की अनुमति देना; चूंकि हमारे पास अपने लिए न्याय की एक बहुत ही अडिग और संकीर्ण भावना है, इसलिए इस प्यार को पाने के लिए हम अपने को अनुमति नहीं देते हैं, और इस तरह हम खुद को उस प्यार के योग्य नहीं समझते हैं, इसलिए हम इसके लिए अपना दिल खोलकर रखने का निर्णय नहीं ले पाते हैं। परन्तु हमारे लिए उसका प्रेम न्याय या अधिकार का विषय नहीं है; बेशक, कोई भी इस तरह प्यार पाने का हकदार नहीं है; क्योंकि यदि कोई अस्तित्व में नहीं है तो उसे अस्तित्व में लाने का अधिकार अर्जित नहीं किया जा सकता है। और इसलिए यद्यपि मेरे लिए ईश्वर का प्रेम न्याय और अधिकार का विषय नहीं है, यह शुद्ध उपहार की बात है। आखिरकार, मसीह के व्यक्तित्व में परमेश्वर का न्याय पूर्ण दया के रूप में प्रकट हुआ है।

उस ईश्वरीय प्रेम और अपने बारे में हमारी समझ के बीच एक रिश्ता है। ईश्वर के द्वारा किसी व्यक्ति को कितना प्यार किया जाता है, उस हिसाब से वास्तव में वह व्यक्ति अपने आप को जानता है, और इसलिए जितना अधिक हम खुद को “उस तरह से प्यार किये जाने” की अनुमति देते हैं (मानो कि हम में से यह प्यार पाने वाला सिर्फ “मैं” अकेला ही हूँ), हमारी खुद की समझ उतनी ही गहरी होगी; क्योंकि जैसा ईश्वर हमें देखता है, वैसे ही हम अपने आप को देखने लगेंगे। यदि हम स्वयं को उसकी आँखों से नहीं देखते हैं, तो हम स्वयं को वैसा ही देखने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जैसा दूसरे लोग हमें देखते हैं।

हालाँकि, इसके साथ समस्या यह है कि दूसरे शायद ही कभी हमें वैसे ही देखते हैं जैसे हम वास्तव में हैं – खासकर, अगर हमारे जीवन में वे हमें ईश्वर की नज़र से नहीं देखते हैं – और अगर वे हमें वैसे नहीं देखते हैं जैसे हम वास्तव में हैं, तो जिस प्रकार हमें प्यार किया जाना चाहिए, उस प्रकार वे हमसे प्यार नहीं कर पाते हैं। जब दुनिया आपको देखती है, तो उसे आप में एक महान और अद्भुत रहस्य नहीं दिखाई देता; बल्कि, उसे एक वस्तु दिखाई देती है, जिसका मूल्य उसकी उपयोगिता के अनुसार लगाया जाता है। लेकिन वस्तुओं के बारे में रहस्यमय कुछ भी नहीं है। दूसरी ओर, जब ईश्वर आपको देखता है, तो वह एक वास्तविक रहस्य देखता है, क्योंकि प्रत्येक मानव ईश्वर की प्रतिछाया और ईश्वर के प्रतिरूप में बनाया गया है और ईश्वर अवर्णनीय भेद है। इसलिए, प्रत्येक मानव व्यक्ति एक महान और अद्भुत भेद है, जिसका रहस्य ईश्वर के महान और अद्भुद भेद की गहराइयों में छिपा हुआ है।

आतंरिक ब्रह्मांड

हमारे दो अंदरूनी भाग हैं: 1) एक भौतिक आंतरिक भाग, और 2) एक आध्यात्मिक आंतरिक भाग। कोई सर्जन भौतिक आंतरिक भाग तक पहुंच सकता है, लेकिन वह आध्यात्मिक आंतरिक भाग तक पहुंच नहीं सकता है। केवल आप और ईश्वर ही आपके आध्यात्मिक आंतरिक भाग तक पहुँच सकते हैं। वास्तव में,  ईश्वर हमेशा उस आंतरिक हिस्से के सबसे गहरे क्षेत्र में रहता है। ईश्वर आपको अच्छी तरह जानता है; इस अवधारणा को प्राप्त करने का तरीका है उस “ब्रह्मांड” में प्रवेश करना। अपने को ईश्वर की उपस्थिति में स्थापित करने का यही अर्थ है। उस स्थान के भीतर किसी शब्द की ज़रुरत नहीं है; केवल बार-बार यह दोहराना पर्याप्त है: “प्रभु येशु ख्रीस्त, ईश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कर”।

जितना अधिक समय हम उस स्थान के भीतर, बिना विचलित हुए बिताएंगे, उतना ही हमें यह एहसास होगा कि हमारा ख्याल किया जा रहा है, कि हम पर किसी का ध्यान है। यह एक बहुत ही सकारात्मक और ज्ञानवर्धक अनुभव है; क्योंकि हम स्वयं को ध्यान देने योग्य या ख्याल किये जाने लायक व्यक्ति के रूप में देखने लगते हैं। हम स्वयं को व्यक्तित्व के रूप में देखना शुरू करते हैं, न कि केवल निरे भौतिक वस्तु के रूप में। लेकिन यह शुरू होता है, “आतंरिक ब्रह्मांड” में प्रवेश करने के साथ, और यह अनुभव हमें इस दुनिया का सबसे अच्छा और अनोखा एहसास दिलाता है, क्योंकि हम में से अधिकांश लोग अपने जीवन के ज्यादतर समय वस्तुओं में सिमट गए हैं, लेकिन हम जानते हैं कि हम वस्तु नहीं, बल्कि मूल्यवान व्यक्तित्व हैं – आंतरिक मूल्य के व्यक्तित्व। यह “वस्तुकरण” कई मायनों में व्यक्तिगत क्रोध और अलगाव की भावनाओं का बड़ा कारण बनता है, लेकिन जैसे-जैसे हम उस अन्तरंग हिस्से में अधिक समय बिताते हैं जहां ईश्वर हमारी प्रतीक्षा करता है, वैसे वैसे हम अपने अन्दर कम अकेलापन महसूस करना शुरू करेंगे और हमारा जीवन और अधिक शांतिपूर्ण बन जाता है।

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Deacon Doug McManaman

Deacon Doug McManaman is a retired teacher of religion and philosophy in Southern Ontario. He lectures on Catholic education at Niagara University. His courageous and selfless ministry as a deacon is mainly to those who suffer from mental illness.

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