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मार्च 23, 2023 273 0 Sister M. Louise O’Rourke
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आँसू की शक्ति

हम सभी ने जीवन भर अनगिनत आँसू बहाए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ईश्वर ने उनमें से हर एक बूँद को इकट्ठा किया है?

हम क्यों रोते हैं? हम रोते हैं, क्योंकि हम दुखी हैं या हम किसी संकट से तंग आ चुके हैं। हम रोते हैं, क्योंकि हम आहत हैं और अकेले हैं। हम रोते हैं, क्योंकि हमें धोखा दिया गया है या हमारा मोहभंग हो गया है। हम रोते हैं, क्योंकि हमें खेद है, हम आश्चर्य करते हैं कि क्यों, कैसे, कहाँ, क्या। हम इसलिए रोते हैं, क्योंकि… कभी-कभी हमें पता ही नहीं चलता कि हम क्यों रो रहे हैं! यदि आपने कभी बच्चों की परवरिश की है, विशेषकर यदि आपने उन्हें खिलाया है, उनके कपडे बदल दिया है, उन्हें सुलाया है, तो आप ज़रूर जानते हैं कि बच्चा क्यों रो रहा है, यह पता लगाने की कोशिश करने का तनाव कितना है! कभी-कभी वे सिर्फ गोदी में, आपके बाहों में या आपके आलिंगन में रहना चाहते हैं। उसी तरह, कभी-कभी हम भी ईश्वर के आलिंगन में रहना चाहते हैं, लेकिन हम अपने पापपूर्णता के प्रति चिंतित रहते हैं, जो हमें उनसे दूर करती प्रतीत होती है।

आँखों से ईश्वर के दिल तक

पवित्र ग्रंथ हमें बताता है कि येशु भी रोया: “और येशु रो पड़े” (योहन 11:35); सुसमाचार का यह सबसे छोटा वाक्य येशु के दिल की तरफ एक खिड़की खोल देता है। लूकस 19:41-44 में हमें पता चलता है कि येशु ने ‘यरूशलेम के लिए आंसू बहाए’ क्योंकि उसके निवासियों को “(उनकी) मुलाक़ात का समय नहीं पता था।” प्रकाशना ग्रन्थ की पुस्तक में योहन फूट फूट कर रोया क्योंकि पुस्तक को खोलने और पढ़ने के योग्य कोई नहीं था (प्रकाशना ग्रन्थ 5:4)। मानवीय स्थिति के बारे में यह समझ जीवन की परिपूर्णता को समझने की हमारी क्षमता को सीमित कर सकती है, उस क्षमता को परमेश्वर हममें से प्रत्येक को लगातार प्रदान करता है। प्रकाशना ग्रन्थ 21:4 हमें स्मरण दिलाता है कि ‘परमेश्‍वर सब आंसू पोंछ डालेगा’। फिर भी स्तोत्र ग्रन्थ 80:6 कहता है कि ईश्वर ने ‘उसे विलाप की रोटी खिलाई, और उसे भरपूर आंसू पिलाए।’ तो सत्य क्या है? क्या परमेश्वर आंसुओं को पोंछ डालना और हमें दिलासा देना चाहता है, या वह हमें रुलाना चाहता है?

येशु रोये, क्योंकि आंसुओं में शक्ति है। आँसुओं में एकात्मता है। क्योंकि येशु प्रत्येक व्यक्ति से इतना अधिक प्रेम करते हैं कि वह उस अंधेपन को सहन नहीं कर सकता जो हमें उन अवसरों को स्वीकार करने से रोकता है, जो अवसर परमेश्वर हमें उसके निकट रहने, उसके द्वारा प्रेम किए जाने और उसकी महान दया का अनुभव करने के लिए देता है। जब येशु ने मार्था और मरियम को उनके भाई लाज़रुस की मौत का दुःख सहते देखा तो वह करुणा से भर गया। लेकिन उनके आंसू भी पाप के गहरे घाव की प्रतिक्रिया हो सकते हैं जो मृत्यु का कारण बनता है। आदम और हेवा के समय से ही मृत्यु ने परमेश्वर की सृष्टि को निगल लिया है। हाँ, येशु रोये … लाज़रुस और उसकी बहनों के लिए। फिर भी इस दर्दनाक अनुभव के दौरान येशु अपने सबसे बड़े चमत्कारों में से एक को अंजाम देते हैं: येशु कहते हैं, “बाहर निकल आओ!” और उसका अच्छा दोस्त लाज़रुस कब्र से बाहर निकल आता है। हमेशा प्रेम के शब्दों में बड़ी ताकत है।

एक और सुंदर पवित्र वचन जो आँसुओं की बात करता है और एक छवि पेश करता है जिसे मैं संजोता हूँ, वह स्तोत्र ग्रन्थ 56:9 में पाया जाता है: “मेरी विपत्तियों का विवरण और मेरे आंसुओं का लेखा तेरे पास है; क्या मेरे आंसू तेरी कुप्पी में नहीं रखे हैं।” प्रभु हमारे आंसुओं को एकत्रित करता है, ऐसी सोच विनम्र और सांत्वना देने वाली सोच है। वे आंसू परम पिता के लिए अनमोल हैं; वे हमारे दयालु परमेश्वर के लिए हमारी भेंट जैसी हैं।

शब्दहीन प्रार्थनाएँ

आँसू हृदय को ठीक कर सकते हैं और आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं और हमें ईश्वर के करीब ला सकते हैं। अपनी महान कृति, ‘द डायलॉग’ में, सिएना की संत कैथरीन ने आंसुओं के आध्यात्मिक महत्व के लिए एक पूरा अध्याय समर्पित किया। उनके अनुसार, आँसू “एक उत्कृष्ट, गहन संवेदनशीलता है, संवेदनशीलता, भावुकता और कोमलता की क्षमता” को व्यक्त करते हैं। अपनी पुस्तक, ‘डिसेर्निंग हार्ट्स’ में, डॉ. एंथोनी लिलेस कहते हैं कि संत कैथरीन “उस पवित्र प्रेम को क्रूस पर चढ़ाए गए ख्रीस्त में प्रकट किए गए महान प्रेम के लिए एकमात्र उचित प्रतिक्रिया के रूप में प्रस्तुत करती है। ये आंसू हमें पाप से दूर और परमेश्वर के हृदय में ले जाते हैं।” उस स्त्री को याद कीजिये, जिसने अपने आँसुओं से येशु के चरणों को धोया, जटामांसी के बहुमूल्य इत्र से उन चरणों का विलेपन किया, और अपने केशों से उनके चरण पोंछे। उस स्त्री का दर्द वास्तविक है, लेकिन असीम रूप से प्यार किए जाने का उसका अनुभव भी ऐसा ही वास्तविकं है।

हमारे आंसू हमें याद दिलाते हैं कि अपनी तीर्थयात्रा के मार्ग में हमारे साथ चलने के लिए हमें ईश्वर और दूसरों की जरूरत है। जीवन की परिस्थितियाँ हमें रुला सकती हैं, लेकिन कभी-कभी वे आँसू हमारे भविष्य की खुशियों के बीजों को सींच सकते हैं। चार्ल्स डिकेंस ने हमें याद दिलाया कि ‘हमें अपने आँसुओं पर कभी शर्म नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वे हमारे कठोर हृदयों पर हावी होकर हमें अंधा करनेवाली धरती की धूल पर बरस रहे हैं।’ कभी-कभी, ईश्वर तक पहुँचने के लिए, मृत्यु से जीवन तक पहुँचने केलिए, क्रूसारोहण से पुनरुत्थान तक पहुँचने के लिए आँसू ही एकमात्र सेतु होते हैं। पुनरुत्थान के दिन जब येशु का सामना मरियम मगदलेना से हुआ, तो येशु ने पूछा, “भद्रे, आप क्यों रोती हैं?” लेकिन वह जल्द ही उसके आँसुओं को पास्का खुशी के विस्फोट में बदल देते हैं,  जैसे वह उसे पुनरुत्थान की पहली संदेशवाहक बनाते हैं।

जैसा कि हम अपनी तीर्थ यात्रा जारी रखते हैं, कई बार क्रूस की मूर्खता को समझने के लिए संघर्ष करते हैं, हम उन बातों के लिए रोयें जिनके लिए येशु रोते हैं – युद्ध, बीमारी, गरीबी, अन्याय, आतंकवाद, हिंसा, घृणा, कुछ भी जो हमारे भाइयों और बहनों को दुखी बनाते हैं। हम उनके साथ रोते हैं; हम उनके लिए रोते हैं। और जब सबसे अप्रत्याशित क्षणों में हमारे गालों पर आंसू बहते हैं, तब हम यह जानकर शांति से आराम करें कि हमारा परमेश्वर हर एक को कोमलता और सौम्यतापूर्ण परवाह के साथ संभालता है। वह हर आंसू को जानता है और वह जानता है कि उस आंसू के पीछे क्या कारण है। वह उन्हें इकट्ठा करता है और उन्हें अपने पुत्र के दिव्य आँसुओं के साथ मिलाता है। एक दिन, मसीह के साथ संयुक्त होकर, हमारे आंसू खुशी के आंसू बनेंगे!

 

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Sister M. Louise O’Rourke

Sister M. Louise O’Rourke is a Disciple of the Divine Master (PDDM), a religious order founded to evangelise through social communications and more specifically through art and beauty. She currently serves in Dublin, Ireland. She blogs over at: https:// pilgrimsprogresspddm.blogspot.com/.

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