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हमारे पास जो कुछ भी है वह ऊपर से एक उपहार है, लेकिन कभी सोचा है कि जब ईश्वर ने आपको यह दिया तो उसका क्या इरादा था?
जब मैं तीन भाइयों में सबसे छोटा था, तब तक मेरा परिवार ख्रीस्तीय परिवार था, लेकिन मेरा परिवार कोई ख्रीस्तीय रीति रिवाज़ का पालन नहीं करता था। मेरे माता-पिता शुरू से कैथलिक नहीं थे, इसलिए मुझे याद है कि प्रोविडेंस कैथलिक हाई स्कूल में एक नए छात्र के रूप में मेरे पहले दिन, मैं बिलकुल डर गया था, क्योंकि कभी किसी पुरोहित या धर्म बहन से मेरी भेंट नहीं हुई थी। मुझे कैथलिक मिस्सा के बारे में कुछ भी नहीं पता था, लेकिन मुझे स्कूल में सभी मिस्साओं में भाग लेने के लिए कहा गया था। मुझे ईश शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी हिस्सा लेना था, लेकिन उसके अंतर्गत नियमित रूप से आयोजित बेसबॉल कार्यक्रम में मुझे रूचि थी, इसलिए बेसबॉल खेलने के इरादे से मैं ने ईश शास्त्र की कक्षा में भाग लेने से कोई आपत्ति नहीं जताई।
कुछ ढूँढ रहे हो …
14 साल की उम्र में, मेरे साथियों के सामने विश्वास की बातों को लेकर शर्मिन्दगी का एहसास होने का बड़ा डर मुझे सताता था – मुझे दर था कि मुझसे कैथलिक विश्वास के बारे में बुनियादी सवाल पूछा जाएगा और मैं जवाब नहीं दे पाऊँगा। लेकिन हम नए छात्रों को ईशशास्त्र पढ़ाने वाली सिस्टर मार्गरेट ने कभी भी मुझे असहज नहीं किया। एक दिन कक्षा के बाद, वह मेरे लिए दरवाज़े पर इंतज़ार कर रही थी। मेरा इरादा सीधे उनके बगल से निकल जाने का था, लेकिन उन्होंने मुझे रोका, मेरी आँखों में देखा और कहा: “बर्क, तुम कुछ ढूँढ रहे हो।” मैंने वहाँ से जाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फिर से मुझे रोका और कहा: “इसे पढ़ो।” उन्होंने मुझे मेरी पहली बाइबल दी।
उस शाम, बेसबॉल का अभ्यास, होमवर्क और रात के खाने के बाद, मैं अपने कमरे में गया, दरवाज़े बंद किए और बाइबल से मत्ती के सुसमाचार को पढ़ना शुरू किया। इसने मुझे वास्तव में इस तरह से आकर्षित किया कि यह मेरी आदत बन गई। धीरे-धीरे, ईशशास्त्र मेरी पसंदीदा कक्षाओं में से एक बन गया।
पूरे स्कूल केलिए होने वाले मिस्सा समारोहों के दौरान, मैं अपने दोस्तों को परम प्रसाद स्वीकार करने के लिए जाते हुए देखता था और जिस रोटी के टुकड़े को वे ग्रहण कर रहे थे, उसके प्रति उनकी श्रद्धा के बारे में जानने के लिए मैं उत्सुक रहता था। हम कानिष्ठ लोगों के लिए आयोजित एक साधना के अवसर पर, अंतिम दिन के मिस्सा बलिदान के दौरान, परम प्रसाद से मेरी गहन साक्षात्कार हुआ, इसके द्वारा मेरे भीतर ईश्वर की शक्ति का एहसास हुआ।
पुरोहित ने हमें परम प्रसाद की अभिषेक प्रार्थना और वितरण के लिए पवित्र वेदी की चारों ओर इकट्ठा किया; मैं पवित्र वेदी के इतने करीब कभी नहीं गया था। परम प्रसाद वितरण के दौरान, पुरोहित परमप्रसाद लेकर हम में से प्रत्येक के पास आये; मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। जैसे ही वे मेरे पास आये और कहा: “ख्रीस्त का शरीर”, मेरा इरादा उन्हें यह बताना था कि मैं कैथलिक नहीं हूं। लेकिन यह कहने केलिए जैसे ही मैंने अपना मुंह खोला, उन्होंने परम प्रसाद को मेरी जीभ पर रख दिया। मैंने उस क्षण महसूस किया कि ईश्वर की शक्ति मेरे पूरे शरीर से गुजर रही है। हालाँकि अब मैं जानता हूँ कि बपतिस्मा न पाए हुए व्यक्ति के लिए – यहाँ तक कि जो परम प्रसाद में येशु मसीह की वास्तविक उपस्थिति पर विश्वास नहीं करने वाले बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति के लिए भी – परम प्रसाद ग्रहण करना सही नहीं है, परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि मैंने अपना पहला पवित्र संस्कार संयोग से ग्रहण किया! इस घटना ने मेरे जीवन को बहुत गहराई से बदल दिया; मैंने विश्वास के बारे में और अधिक अध्ययन करना शुरू किया, और जब मैं मिसिसिपी चला गया, तब तक मैं एक कैथलिक बन चुका था जो हर दिन वास्तव में येशु मसीह को ग्रहण कर सकता था।
उतार-चढ़ाव
बेसबॉल अच्छा चल रहा था, और टीम अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर रैंक करती थी। अपने अंतिम वर्ष के दौरान, जब मैं ज़ोन में आया, तो मैंने एक ग्रैंड स्लैम मारा (चौका, जो बेसबॉल खेल में बहुत कम लोग मार पाते हैं), जिस के कारण हम कॉलेज वर्ल्ड सीरीज़ में पहुँच गए। मुझे उस टूर्नामेंट का सबसे मूल्यवान खिलाड़ी नामित किया गया। लेकिन अगले तीन खेलों में कुछ त्रुटियों ने सब कुछ खत्म कर दिया। वर्ल्ड सीरीज़ मेजर लीग ड्राफ्ट के दौरान, मेरे आठ साथियों को ड्राफ्ट किया गया, लेकिन मेरे फोन की घंटी नहीं बजी।
मैं टूट गया। मैं घर आया और मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मेरे हाई स्कूल के पूर्व बेसबॉल कोच, शिकागो व्हाइट सॉक्स के कोच बन चुके थे। कुछ हफ़्तों बाद उन्होंने मुझे फ़ोन किया और पेशेवर बेसबॉल खेलने के लिए ट्रायल के बारे में बताया। यह मेरे लिए अच्छा रहा, और अगले दिन, मैंने व्हाइट सॉक्स टीम के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। लेकिन यह वैसा नहीं हुआ जैसा मैंने योजना बनाई थी। सीज़न के अंत में, उन्होंने कहा: “बर्क, तुम सब कुछ अच्छा करते हो, लेकिन तुम कुछ भी महान नहीं करते, हम महानता की तलाश में हैं।” उन्होंने मेरे अनुबंध को नवीनीकृत नहीं किया। मैं कुछ समय तक कोशिश करता रहा, लेकिन आखिरकार मुझे इस सच्चाई का सामना करना पड़ा कि यह सब खत्म हो चुका है। मैं 23 साल का था और मेरे पास सिर्फ़ गणित की डिग्री थी।
किसी ने बताया कि बीमांक विज्ञान (एक्चुरियल साइंस) में करियर बनाना संभव है, इसलिए मैंने वह पढ़ाई की, मुझे नौकरी मिल गई और मैंने खूब पैसे कमाए। लेकिन काम का तनाव इतना कम था कि मैं ऊब गया और मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी। ओहियो विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद, मुझे एक माइनर लीग बेसबॉल टीम, केन काउंटी कुगर्स, में नौकरी मिल गई। चार साल बाद, मेरे पास दो नौकरियों के प्रस्ताव आये – एक ही समय में बेसबॉल में दो नौकरी! मेरे सपनों के मुताबिक़!
मैंने स्टेफ़नी को डेट करना शुरू ही किया था, जिससे मैं स्थानीय गिरजाघर में मिला था। एक रात, हम डिनर के लिए बाहर गए और जब हम रेस्तराँ से निकल रहे थे, तो उसने कहा: “चलो परम प्रसाद की आराधना के लिए गिरजाघर चलते हैं।” हालाँकि मैं कम से कम आठ या नौ साल से कैथलिक था, लेकिन मैंने परम प्रसाद की आराधना के बारे में कभी नहीं सुना था। स्टेफ़नी ने समझाया कि हम परम प्रसाद के संस्कार के सामने एक घंटे की शांत प्रार्थना करेंगे। उस आराधना के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मौन में, हमारी मुलाक़ात ईश्वर से होती है।
हम हर मंगलवार की रात को एक घंटे की आराधना के लिए जाने लगे, और मौन से मेरा डर मौन की लालसा में बदल गया। यह मेरे हर सप्ताह का सबसे शांतिपूर्ण घंटा बन गया। और मेरे दिल में, पुरोहित बनने की भावना सतह पर उभरती रही। ऐसा लग रहा था जैसे ईश्वर मुझसे पुरोहित बनने के लिए कह रहा था; बार-बार एक सौम्य निमंत्रण। मेरे परिवार के सदस्य, दोस्त और यहाँ तक कि पूरी तरह से अजनबी लोग भी मेरे पास आने लगे और कहने लगे कि उन्हें लगता है कि तुम एक अच्छा पुरोहित बन सकता हो। मुझे लगा कि पवित्र आत्मा आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से काम कर रही है। इसलिए, मैंने स्टेफ़नी से बात की, और उसने मुझसे कहा कि अगर यह मेरी बुलाहट है, तो मुझे इसका पालन करना होगा।
मेरा इरादा था कि मैं एक साल के लिए सेमिनरी जाऊँ और फिर स्टेफ़नी के पास लौट आऊँ। लेकिन जैसे ही मैं सेमिनरी के दरवाज़े से अंदर गया, मुझे ऐसी शांति महसूस हुई जो कभी खत्म नहीं हुई।
मई 1998 में, जब मैं सेमिनरी का पहला साल पूरा कर रहा था, मुझे अपने पिता का फोन आया और उन्होंने मुझे तुरंत घर जाने के लिए कहा, क्योंकि मेरी माँ को फेफड़ों के कैंसर का पता चला था, जो मस्तिष्क और कलेजे तक फैल गया था। मैंने सब कुछ छोड़ दिया और घर चला गया। कैंसर की बीमारी चौथे चरण पर पहुँच चुकी थी। हालाँकि हम उम्मीद करते रहे, दो महीने बाद, माँ टेलीविजन देखती हुई मेरी बाहों में गिर पड़ी और चली गयी। यह भयानक था।
जब मैंने खिड़की से बाहर देखा और ड्राइव वे में अपनी माँ की कार देखी, तो मैंने कल्पना की कि मेरी माँ ईश्वर के आमने-सामने आ रही हैं। ईश्वर उनसे यह नहीं पूछ रहा था कि वह किस तरह की कार चलाती हैं या वह कितना पैसा कमाती हैं, बल्कि इसके बजाय, कुछ और बुनियादी बात पूछ रहा था, जैसे: “क्या तुमने अपने पूरे दिल, दिमाग और आत्मा से अपने ईश्वर से प्यार किया है, और अपने पड़ोसी से अपने जैसा प्यार किया है?” भले ही मेरी माँ, गिरजाघर नहीं जाती थीं, फिर भी उन्होंने हमें ईश्वर के प्यार के बारे में सिखाया था।
सबसे बेहतर आनंद
मैं आस्था के संकट से गुज़रा। मैंने यह भी सोचा कि क्या मृत्यु के बाद भी जीवन है। मैं अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को मुझसे दूर करने के लिए ईश्वर से नाराज़ था, लेकिन ऐसा हुआ कि ईश्वर ने मुझे इससे बाहर निकाला।
मैं सेमिनरी वापस गया और कुछ वर्षों बाद मुझे पुरोहिताई का अभिषेक मिला। मैं ईश्वर का शुक्रिया अदा करता हूँ कि मैं कभी भी बेसबॉल के प्रमुख दलों में नहीं पहुँच पाया, क्योंकि पुरोहित के रूप में मैंने जो आनंद और शांति का अनुभव किया है, वह बेसबॉल के मैदान पर मेरे द्वारा अनुभव की गई किसी भी आनंद से कहीं ज़्यादा है।
मैं न केवल शिकागो के बेसबॉल क्लबों के लिए धार्मिक परामर्शदाता रहा हूँ, बल्कि मैंने कैथलिक खेल शिविरों को स्थापित और संचालित किया है, जिनका अब विस्तार हो रहा है। यह ईश्वर का अनोखा तरीका था, जिस तरीके से खेलों में मेरे शौक और मेरी पसंद को आत्मसात करने और इसे अपने सेवा क्षेत्र में लाने की ईश्वर ने मुझे अनुमति दी।
ईश्वर हमें एक उद्देश्य के साथ उपहार देता है, और वह चाहता है कि जिन तरीकों से हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी, उन तरीकों से हम उनकी महिमा के लिए उन उपहारों का उपयोग करें।
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फादर बर्क मास्टर्स इलिनोई के हिंसडेल में सेंट आइजैक जोग्स पल्ली में सेवा करते हैं। वे ‘ए ग्रैंड स्लैम फॉर गॉड: ए जर्नी फ्रॉम बेसबॉल स्टार टू कैथलिक प्रीस्ट’ नामक पुस्तक के लेखक हैं।

मुझे आखिरकार यह स्वीकार करना पड़ा कि मेरा गायन बहुत खराब है, लेकिन मैं हार मानने के लिए तैयार नहीं थी, अभी नहीं…
“अगर ईश्वर आपको धर्मसंघी साध्वी बनने के लिए बुलाता हैं, तो एक धर्मसंघी साध्वी बनने केलिए आपको जो कुछ चाहिए वे सब ईश्वर आपको देगा!” मैरी इमैकुलेट प्रांत की डोमिनिकन सिस्टर्स की अभ्यर्थी बनने से पूर्व मुझे प्राप्त कुछ सलाहों में यही सबसे अस्पष्ट सलाह थी। हालाँकि, यह मेरे धार्मिक जीवन के पहले वर्ष में सबसे व्यावहारिक सलाह साबित हुई जब मुझे एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा – मेरी गायन आवाज़ की चुनौती।
बेशक, मैं गा सकती हूँ!
मैंने यह सोचकर कान्वेंट में प्रवेश किया और विश्वास किया कि मेरी आवाज़ बहुत सुंदर है; एक ऐसी आवाज़ जिसका उपयोग मैं ईश्वर की स्तुति करने के लिए कर सकती हूँ। और मैंने कॉन्वेंट के प्रार्थनालय में प्रतिदिन होने वाली श्रद्धापूर्ण आराधना में भाग लेने के लिए इसका उपयोग किया। मैंने भजन गाए और अपने पूरे अस्तित्व और निश्चित रूप से, अपनी पूरी ताकत और आवाज़ के साथ ईश्वर के वचन का पाठ किया। मुझे लगा कि मैंने ईश्वर को प्रसन्न किया है और हमारी सार्वजनिक प्रार्थना समय के दौरान सभी को प्रभावित किया है। हालाँकि, दो सप्ताह के पश्चात, मेरी तरह एक अभ्यर्थी सहपाठी फी ने मुझे यह दर्दनाक सच्चाई बताई कि मैं गा नहीं सकती। सराहनीय साहस के साथ, फी ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रखा और एक दिन ईमानदारी से मुझसे पूछा: “क्या तुम जानती हो कि तुम फ्लैट (सपाट) गाती हो?” हालाँकि मैंने कॉलेज में संगीत की समझ की कक्षा में भाग लिया था और मुझे पता था कि फी के कहने का क्या मतलब है, फिर भी मैंने बेशर्मी से पूछा: “फ्लैट क्या है?” “तुम जानती हो, यह तब होता है जब तुम्हारी आवाज़ धुन से बाहर हो जाती है और तुम उच्चस्वर में नहीं गा सकती हो …” फी ने समझाने की कोशिश की। शर्मिंदा होकर, मैंने उसे न समझने का नाटक किया। “मुझे नहीं पता कि तुम्हारा क्या मतलब है।” मैं यह सोचकर उससे दूर चली गयी कि उसे मेरी आवाज़ से जलन हो रही होगी।
लेकिन यह मोहभंग ज़्यादा समय तक नहीं चला। एक नवशिष्या बहन ने शाम को संध्या कालीन प्रार्थना से पहले मेरे बारे में सीधे बात किए बिना ही चतुराई से एक संकेत दिया: “पिछले कुछ दिनों से प्रार्थनालय में कितना अजीब शोर हो रहा है!” मुझे उसके शब्दों का अहसास हुआ, लेकिन फिर भी, मैंने सच्चाई को स्वीकार नहीं किया। मेरे अभिमान ने मेरे दिमाग को ढक लिया। हालाँकि, एक अन्य अभ्यर्थी, करेन ने मुझे प्रोत्साहित किया: “यदि आप गा सकती हैं, तो ज़ोर से गाएँ। यदि आप नहीं गा सकती हैं, तो दोगुना ज़ोर से गाएँ ताकि ईश्वर से बदला लिया जा सके।” मैंने उसकी सलाह मानी और मुझे एक सुंदर गायन आवाज़ का उपहार न देने के लिए ईश्वर से बदला लेते हुए पहले से भी ज़्यादा ज़ोर से गाया। जब भी मैं प्रार्थनालय में जाती थी, मेरा धार्मिक समुदाय मेरी वजह से प्रताड़ित हुआ करता था।
अगर तुम नहीं कर सकती तो क्या होगा?
जब मुझे अन्य अभ्यर्थियों की तरह वांछित पियानो कक्षा के बजाय स्वर की कक्षा में पढ़ाया गया, तभी मुझे सच्चाई का पूरा अहसास हुआ – मैंने बहुत बुरा गाया होगा। मेरा अभिमान टूट गया। मैं निराश हो गई थी। फिर, मुझे वह सलाह याद आई जो मुझे दी गई थी: ““अगर ईश्वर आपको धर्मसंघी साध्वी बनने के लिए बुलाता है, तो धर्मसंघी साध्वी बनने केलिए आपको जो कुछ चाहिए वे सब ईश्वर आपको देगा!” आँसू और शर्मिंदगी में, मैं प्रार्थनालय गई और ईश्वर से कहा कि “हे प्रभु, तेरी स्तुति करने के लिए मुझे एक अच्छी गायन आवाज़ की आवश्यकता है, ताकि मैं अपनी बहनों के कानों को नुकसान न पहुँचा सकूं।“ हालाँकि मैंने इस अनुरोध में एक मोड़ जोड़ा – कि अगर मैं समुदाय के रविवार की मिस्सा में भी गायक मंडली में शामिल की जाती हूँ तो यह एक डोमिनिकन साध्वी के रूप में मेरी बुलाहट का संकेत भी होगा।
ईश्वर ने मेरे अनुरोध और चुनौती को स्वीकार किया। लेकिन निश्चित रूप से, उसने मेरे लिए तुरंत कोई चमत्कार नहीं दिया। मुझे इस केलिए पसीना बहाना होगा नहीं तो यह मुझे पूरी तरह से बिगाड़ देता! फिर भी एक बेहतरीन पिता की तरह, उसने मुझे संगीत स्वर के तीव्र प्रशिक्षण के दर्द को अनुभव करने और रोज़ाना अभ्यास में दृढ़ रहने की अनुमति दी। उसने मुझे वह भी दिया जिसकी मुझे ज़रूरत थी, यानी संगीत स्वर प्रशिक्षण के लिए समय, जगह और एक समर्पित और धैर्यवान प्रशिक्षक, सिस्टर अन्ना पॉलीन। संगीत स्वर के उन साप्ताहिक तीव्र प्रशिक्षणों के ज़रिए, मैंने धीरे-धीरे सुधार किया। छठे महीने के अंत में, मुझे समुदाय की मिस्सा में और उसके बाद कई बार भी गायक मंडली में नेतृत्व करने के लिए कहा गया।
मैं गाती रहूँगी….
हालाँकि, डोमिनिकन साध्वी के रूप में मेरी बुलाहट की निश्चित पुष्टि एक दिन सुखद आश्चर्य के रूप में हुई जब मैं एक धर्मशिक्षा की कक्षा में पढ़ा रही थी। जबकि नर्सरी के मेरे अधिकांश छात्र चुपचाप बैठे थे और अच्छे चरवाहे की कहानी को ध्यान से सुन रहे थे, कुछ बच्चे बेचैन और विचलित थे। मैंने उनका ध्यान इस प्रेमपूर्ण कहानी की ओर आकर्षित करने का फैसला किया, इसलिए मैंने कथा पाठ करने के बजाय गीत गाया। गैबी, जो अपने बाकी सहपाठियों से अलाल्ग होकर थोड़ी दूर कक्षा के गलीचे पर पडी थी, अचानक बोली: “सिस्टर, आपकी आवाज़ बहुत सुंदर है!” फिर वह मेरे करीब आ गई। किसी तरह, मेरे गायन ने उस दिन गैबी और बाकी कक्षा का ध्यान आकर्षित किया।
इसलिए, एक प्राथमिक धर्म शिक्षक के रूप में अपने बाकी वर्षों के लिए, मैंने अपने छात्रों को ईश्वर के प्यार के बारे में उन्हें सिखाने के लिए उस ईश्वर प्रदत्त आवाज़ का इस्तेमाल किया। मुझे यकीन है कि ईश्वर ने मुझे अच्छे गायन केलिए योग्य स्वर दिया है, मेरे अभिमान को बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि उस ईश्वर के राज्य के प्रति मेरी सेवा में मेरी मदद के लिए दी है। इस प्रकार मेरी बुलाहट पुष्ट हुई।
यदि ईश्वर आपको किसी भी सेवाकार्य केलिए बुलाता है, तो आश्वस्त रहें कि वह आपको वह सब कुछ देगा जिसकी आपको आवश्यकता है – यहाँ तक कि गायन का स्वर भी।
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सिस्टर तेरेसा जोसेफ गुयेन ओ.पी. टेक्सास प्रांत के ह्यूस्टन में मैरी इमैकुलेट प्रांत की डोमिनिकन सिस्टर हैं। वे कैथलिक यूनिवर्सिटी ऑफ़ अमेरिका में पवित्र बाइबिल का अध्ययन कर रही हैं। उनके पास चित्र बनाने की प्रतिभा है और ईश वचन का प्रचार करने की अदम्य इच्छा है।

एक व्यक्ति जो 800 साल पहले धरती पर चला था, उसे आज भी उसकी सादगी के लिए याद किया जाता है…
इसकी कल्पना कीजिए: मध्ययुगीन इटली का एक युवक जिसकी ज़िंदगी पार्टियों, फैशन और हर उस चीज़ से भरी हुई थी जो उस समय को कोई आदमी चाहता था। लेकिन अचानक, कुछ बदल जाता है। एक निर्णायक क्षण, एक ‘अहा’ क्षण जो उसके जीवन को एक बिल्कुल नए रास्ते पर ले जाता है। असीसी के संत फ्रांसिस से मिलिए, जो पार्टियों में शामिल होकर सबका दिल जीतनेवाला बेहतरीन युवा है, वह आध्यात्मिक सुपरस्टार बन गया! वह अपने भूरे रंग के लबादे और प्रकृति के प्रति प्रेम के लिए जाना जाता है। जानवरों के साथ उसका व्यवहार ऐसा था कि डॉक्टर डूलिटल भी ईर्ष्यालु हो जाता था। पक्षी उसके चारों ओर इकट्ठा होते थे, खरगोश उसके पैरों पर उछलते थे, और यहाँ तक कि क्रूर भेड़िये भी उसकी मौजूदगी में प्यारे साथी बन जाते थे। एक वास्तविक जीवन के सुपरहीरो के बारे में बात करें!
वीरतापूर्ण जीवन
संत फ्रांसिस, एक ऐसा नायक था जिसका दिल सोने जैसा था! वह केप पहनने और लेजर शूट करने वाले सुपरहीरो नहीं था; उसकी असली महाशक्ति करुणा थी। फ्रांसिस को दूसरों की मदद करने में खुशी मिलती थी, खासकर कम भाग्यशाली लोगों की। वह एक वास्तविक जीवन के एवेंजर की तरह थे (लेकिन हिंसा के बिना), गरीबी से लड़ते थे और जहाँ भी जाते थे प्यार फैलाते थे। बैटमोबाइल के बजाय, उन्होंने एक साधारण लबादा और सैंडल पहना, मदद के लिए शहर में घूमते रहे। चाहे वह भूखे को खाना खिलाना हो, बीमार को दिलासा देना हो, या जानवरों से बात करना हो, संत फ्रांसिस ने हमें दिखाया कि नायक बनना प्रसिद्धि या धन के बारे में नहीं है, बल्कि अपनी शक्तियों का उपयोग अच्छे के लिए करने में है। शांति गुरु फ्रांसिस की कल्पना कीजिए, जो ‘शांति, प्रेम और एवोकैडो टोस्ट’ लिखी टी-शर्ट पहनकर शहर की सड़कों पर घूम रहे हैं। हाँ, वे सचमुच में बिल्कुल हमारे जैसे हैं, (800 साल पहले ऐसा लगता था कि यह पागलपन है), आधुनिक जीवन की अराजकता को शांत और केंद्रित भाव से पार कर रहे हैं। संत फ्रांसिस जानते थे कि हमारी तेज़-रफ़्तार दुनिया में आंतरिक शांति पाना सबसे व्यस्त और चरम समय में भीड़-भाड़ वाली मेट्रो में यात्रा करने जैसा है – चुनौतीपूर्ण लेकिन संभव है। वे पहाड़ की चोटी पर बैठे कोई रहस्यमय गुरु नहीं थे; वे एक वास्तविक इंसान थे जो हमारे दैनिक संघर्षों का सामना करते थे। डेडलाइन से लेकर ट्रैफ़िक जाम तक, वे समझते थे कि शांति हमारे भीतर से शुरू होती है, यहाँ तक कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी की भागदौड़ के बीच भी। संत फ्रांसिस अक्सर मौन साधना में और प्रार्थना में बैठते थे, ईश्वर से बात करते थे जबकि सभी जानवर सुनते थे। उनके पास एक ऐसी शांति थी जिसका हम केवल सपना देख सकते हैं। हमें संत फ्रांसिस से यह शांति माँगनी चाहिए; मैं वादा करता हूँ कि वह शान्ति आपको मिलेगी।
हम संत फ्रांसिस के जीवन से कई सबक सीख सकते हैं, जिनमें से कुछ सादगी और विनम्रता हैं। वह एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने गरीबी में जीवन जिया, फिर भी गरीबी का सामना कर रहे लोगों की देखभाल करने में सक्षम थे। गरीबी की इस अवधारणा को आज कई युवा अक्सर गलत समझते हैं या यहाँ तक कि इसे खारिज भी कर देते हैं। इस पीढ़ी के युवा सोशल मीडिया, महत्वाकांक्षाओं और संपत्ति की दुनिया में फंस गए हैं, अक्सर 'कूल दिखने' के लिए जूते, कपड़े और फोन पर सैकड़ों डॉलर खर्च कर देते हैं। संत फ्रांसिस के जीवन पर एक नज़र डालें; वह एक अमीर व्यापारी के बेटे थे, उनके पास बहुत सारी दौलत और सांसारिक सुख थे, लेकिन उन्होंने येशु का अनुसरण करने के लिए सब कुछ छोड़ दिया। उन्होंने दरिद्रता या अपरिग्रह का व्रत लिया और अपना जीवन येशु को समर्पित कर दिया।
हो सकता है कि वह नई पीढ़ी के न हों, लेकिन उनके जीवन से सीखने के लिए बहुत सारे सबक हैं- उनकी सादगी, विनम्रता, शांति और आंतरिक परिवर्तन। हम सोच सकते हैं कि यह जॉर्डन और आईफोन ही हैं जो मायने रखते हैं, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है?
संत फ्रांसिस हमें याद दिलाते हैं कि हमें उन चीज़ों को प्राथमिकता देनी चाहिए जो वास्तव में मायने रखती हैं – सच्चे रिश्ते, निस्वार्थ सेवा और आंतरिक शांति। उनकी शिक्षाओं को अपनाकर, हम सरल जीवन जीने, दूसरों के प्रति दयालुता दिखाने और अपने स्वयं के कल्याण को पोषित करने में पूर्णता पा सकते हैं। संत फ्रांसिस का उदाहरण एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में कार्य करता है, जो हमें आधुनिक जीवन के शोर और व्यस्तता से दूर रहने और मानव होने के अर्थ के सार से फिर से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। आइए हम उनकी विरासत को आगे बढ़ाएँ, उनके ज्ञान को अपने दैनिक जीवन में शामिल करें और अपने आस-पास की दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव डालें।
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सालों तक, मेरी माँ ने मुझे मेरे पिता के प्यार का अनुभव करने से रोका, लेकिन मैंने उन दोनों के साथ और खुद के साथ सामंजस्य स्थापित करने का एक रास्ता खोज लिया!
कोई भी यह नहीं जानना चाहता कि जिससे वह प्यार करता है और जिस पर वह भरोसा करता है, वही उससे झूठ बोला है, लेकिन ऐसा होता है। पहली बार मेरे साथ ऐसा हुआ, मैं एक बच्ची थी और अपनी माँ के साथ रहकर मैं बड़ी हो रही थी। मुझे पत्रों का एक पार्सल मिला जिसमें वे सारे पात्र थे जिन्हें मैंने अपने पिता को काफी समय के अंतराल में लिखा था। सिर्फ उसी दिन मुझे पता चला कि उन पत्रों को कभी मेरे पिता के पास नहीं भेजा गया था। फेंके गए बंडल से, मैंने उनके लिए बनाया हुआ एक कार्ड निकाला, जिस पर मैंने लिखा था ‘हैप्पी फादर्स डे, डैड, आई लव यू’, और उन पत्रों के मिलने के कुछ ही पल बाद मुझे बड़ी उलझन का एहसास हो गया जिससे मैं बुरी तरह प्रभावित हो गयी थी। उससे भी ज़्यादा मेरे भीतर क्रोध और अन्याय के शिकार होने की भावना उठ रही थी।
जब मैंने अपनी माँ से उन अप्राप्त पत्रों के बारे में पूछा, तो वह उदासीन और बेफिक्र थी, उसने सहजता से कहा कि उसे हमेशा से पता था कि मैं उसके प्रति बेवफ़ा हूँ, और मेरे पिता को लिखे गए पत्र मेरे बारे में उसके संदेह के सबूत थे – मैंने उन्हें ‘डैड’ कहा था, जिसका माँ केलिए यही मतलब था कि मैंने उसे धोखा दिया है। सच्चाई का पता चलने पर मुझे जो पीड़ा हुई वह असहनीय थी, मेरे लिए नहीं, बल्कि मेरे पिता के लिए। मैंने उनके द्वारा लिखे गए पत्रों का कभी जवाब नहीं दिया, यह जानकर उन्हें कितना दर्द हुआ होगा,.. और फिर भी, मुझे आश्चर्य हुआ कि इतने समय के बाद भी मुझसे कोई बात न सुनने के बाद भी, वे मुझे पत्र क्यों लिखते रहे, विदेश में अपने रोमांच, अपने दैनिक जीवन, उनकी देखी गई दिलचस्प चीज़ों या मिले लोगों के बारे में मुझे बताते रहे। यह जानते हुए कि उसके प्रति मेरे प्यार को कभी नहीं समझा गया, मुझे जो अपराधबोध महसूस हुआ, मैं उसको कभी नहीं भूल पाऊँगी। मुझे विश्वासघात महसूस हुआ। क्योंकि जो शब्द मैंने सिर्फ़ अपने पिता के लिए बचाकर रखे थे, उनमें किसी और ने घुसपैठ कर ली थी। मुझे लगा कि मेरे पिता को जानने का और उन्हें मुझे जानने का अधिकार छीन लिया गया है।
एक और वंचित प्रेम कहानी
लगभग तीस साल बाद, मुझे एक और पिता का पता चला, जिनसे मुझे दूर रखा गया था। ईश्वर और कैथलिक कलीसिया की वास्तविकता जानने के बाद, मुझे लगा कि मेरे स्वर्गिक पिता के साथ मेरा रिश्ता छीन लिया गया है, जिससे मुझे कुछ समय के लिए नष्ट और अपराध बोध की भावना हुई, उसके बाद उस पिता के प्यार के अयोग्य होने का और भी बड़ा एहसास हुआ – कि रिश्ते में मेरी अनुपस्थिति के बावजूद उस पिता को मेरी तलाश जारी रखनी चाहिए।
अब तक के मेरे जीवन ने ईश्वर के प्रेम और दया का सामना करने और उससे भी महत्वपूर्ण रूप से उसे स्वीकार करने से मुझे रोका था। जबकि मुझे लगा होगा कि ईश्वर को जानने से मैं रोकी गयी थी, जो कि एक तरह से मेरे पालन-पोषण के आधार पर सच है, अब मुझे पता है कि मुझे जानने से कोई भी ईश्वर को कभी रोक नहीं सका। सच्चाई यह है कि स्वर्ग में हमारा पिता अपने सभी बच्चों को अपने साथ रखना चाहता है, और वह हमें वापस लाने के लिए कुछ भी करने से नहीं चूकेगा। हमसे बस इतना ही अपेक्षित है कि हम समर्पण करें और उसे अपनी हाँ कहें।
मेरी व्यक्तिगत ‘हाँ’ ने मुझे एहसास दिलाया कि जब हम ईमानदारी से ईश्वर के प्रेम को पहचानते और जानते हैं, तो हम अपने दिलों को उसके पवित्र हृदय के साथ जोड़ते हैं और फिर, हम केवल उसके प्रेम के द्वारा ही प्रेम कर सकते हैं। जो हमें चोट पहुंचाते हैं, उन लोगों के घाव को देखने में ईश्वर का यह अलौकिक प्रेम हमें मदद करता है। उसका दयालु प्रेम हमारे गहरे घावों को भरने में मदद करता है, उन घावों को अत्यंत कोमलता, सम्मान और देखभाल के साथ एक-एक करके सतह पर लाता है…
उनके असीम प्रेम और दया ने मुझे यह समझने में मदद की कि क्षमा केवल चोट और क्रोध को दूर करने के बारे में नहीं है, बल्कि अपराधबोध और आक्रोश के बोझ को छोड़ने के बारे में भी है जिसे मैं इतने लंबे समय से ढो रहा था। प्रार्थना और चिंतन के माध्यम से, मैं यह देखने लगा कि जिस तरह मेरे सांसारिक पिता मेरी चुप्पी के बावजूद प्यार से मेरे पास पहुँचते रहे, उसी तरह मेरे स्वर्गीय पिता भी अटूट प्रेम और करुणा के साथ मेरा पीछा करता रहता है।
क्यों? क्योंकि पहले उसी ने हमसे प्रेम किया, और वह हमें सबसे अंतरंग तरीके से जानता है।
क्षमा की प्राप्ति
पिता ईश्वर की कृपा से ही मैं अपने पिता के साथ खोए हुए प्यार के वर्षों के लिए खुद को क्षमा करने में सक्षम बनी। इस अलौकिक प्रेम ने अपनी माँ के द्वारा मुझे दिए गए दर्द के लिए भी उन्हें क्षमा करने में मुझे प्रेरित किया। ईश्वर के प्रेम ने मुझे दिखाया कि मैं अतीत की गलतियों या दुखों के बावजूद क्षमा और मुक्ति के योग्य हूँ। और उसके प्रेम ने मेरे दिल में यह प्रेरणा दी कि मेरी माँ भी उसी क्षमा और मुक्ति की हकदार हैं।
उसके प्रेम ने मेरे दर्द को करुणा और सहानुभूति के स्रोत में बदल दिया, जिससे मुझे हर टूटी हुई स्थिति में उपचार की सुंदरता और क्षमता देखने को मिली। ईश्वर के प्रेम की उपचार शक्ति के माध्यम से, मैंने सीखा कि क्षमा सिर्फ हमारे द्वारा दूसरों को दिया जा रहा उपहार ही नहीं, बल्कि एक ऐसा उपहार है जो हम खुद को देते हैं। यह स्वतंत्रता और शांति का मार्ग है, अतीत को छोड़ने और नए विश्वास और प्रेम के साथ भविष्य को गले लगाने का एक माध्यम है।
मेरी प्रार्थना है कि हम सभी अपने स्वर्गीय पिता के असीम प्रेम से प्रेरित हों, जो हमें प्रचुर मात्रा में क्षमा, चंगाई और मुक्ति प्रदान करता है। बदले में, हम भी उसी प्रेम और क्षमा को अपने और अपने आस-पास के सभी लोगों तक पहुँचाएँ, जिससे अनुग्रह, करुणा और मेल-मिलाप से भरी दुनिया बने।
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फ़ियोना मैककेना ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा में रहती हैं, जहाँ वे अपनी पल्ली में धर्मविधि की प्रभारी, पवित्र संस्कारों की समन्वयक और गायिका के रूप में कार्य करती हैं। उन्होंने एनकाउंटर स्कूल ऑफ़ मिनिस्ट्री से कैथलिक मिनिस्ट्री इक्विपिंग कोर्स पूरा किया और ईश शास्त्र में मास्टर डिग्री के लिए अध्ययन कर रही हैं।

एक रेडियो रिपोर्टर के रूप में, मैंने राष्ट्रपति के दौरे से लेकर जेल में हुए दंगों तक सब कुछ कवर किया था, दिन में घटित हो रही समाचार के लायक विभिन्न घटनाओं के पीछे स्थायी अर्थ खोजने की कोशिश की थी। इतिहास का गवाह बनना – यह रोमांचक हो सकता है, लेकिन दिल तोड़ने वाला भी। यह ऐसा काम था जिसे मैं शुरू से ही पसंद करती थी, और मुझे हर दिन अपने काम को छोड़ना और घर के मोर्चे पर वापस आना मुश्किल लगता था। ऐसा लगता था जैसे हमेशा ऐसी घटनाएं होती हैं जिन्हें कवर किए जाने की माँग आती रहती हैं, और मैं उन घटनाओं की निरंतर खोज में थी जो मुझे अगले पुरस्कार की ओर ले जाए – जिससे एक मान्यता जो मेरे दिल के भीतर के छेद को भर दे, जिसे केवल सर्वशक्तिमान ही भर सकता है और मुझे सच्ची चंगाई प्रदान कर सकता है।
एक धर्मनिरपेक्ष समाचार रिपोर्टर के रूप में मैंने जो अंतिम कहानियाँ कवर कीं थीं, उनमें से किसी नर्सिंग होम में एक सेवा परियोजना के बारे में साधारण सी खबर थी। यह कभी भी राष्ट्रीय समाचार नहीं बन पाया, लेकिन इसने मेरे जीवन को इस तरह से बदल दिया जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
नर्सिंग होम में एक बगीचा बनाने के लिए किशोरों के एक समूह को भर्ती किया गया था। किशोरों ने अपनी-अपनी परेशानियों का अनुभव किया था, और परियोजना के आयोजक ने सोचा कि शारीरिक श्रम उनकी आत्माओं को कुछ अच्छा कर सकता है। इस कहानी में आश्चर्यजनक तत्व यह था कि ये युवा इस बगीचे को बनाने के लिए कितने उत्साही थे। उन्होंने असाइनमेंट की आवश्यकताओं से कहीं आगे जाकर एक पुष्प के आकार की खूबसूरत कृति तैयार की, जिसमें एक झरना भी शामिल था। यह बगीचा वृद्धाश्रम में रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों के लिए शांति का नखलिस्तान साबित हुआ। उस आश्रम की एक अन्तेवासिन जो काफी हद तक संवादहीन थी, वह इन अजनबियों की दयालुता से प्रभावित हुई, और दुनिया का उसका वह छोटा कोना और भी खूबसूरत हो गया था।
मुझे लगा कि इन किशोरों ने अपने व्यक्तिगत संघर्षों पर काबू पा लिया है और ईश्वर द्वारा इच्छित सपने को पूरा किया है। उस स्थिति ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या मैं वह जीवन जी रही हूँ जो ईश्वर ने चाहा था? अंततः, मैंने पत्रकारिता के धर्महीन प्रसारण की दुनिया को पीछे छोड़ दिया और गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों की जरूरतों के लिए समर्पित गैर-लाभकारी संस्था के लिए काम करना शुरू कर दिया। विडंबना यह है कि पॉडकास्ट, रेडियो और टेलीविजन साक्षात्कारों के माध्यम से, मैं अभी भी अपनी आवाज का उपयोग उन कहानियों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कर रही हूं जो मानव आत्मा की शक्ति और संभावनाओं का बखान करती हैं।
अनुभव से बोलते हुए, मैं अब कह सकती हूँ कि जीवन वास्तव में तब अधिक सुंदर होता है जब मेरे उस्ताद माली, सभी चीजों के निर्माता को मैं अपने दिनों की योजना बनाने की अनुमति देती हूँ। मैंने उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया है और ऐसी शांति पाई है जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मैं आपको उसकी ओर मुड़ने और उसे अपना मार्ग निर्देशित करने को कहने के लिए आमंत्रित करती हूँ। एक बार जब आप प्रभु को अपने दिल की गहराई में स्थित गुप्त बगीचे में जाने देते हैं, तो आप वहाँ पाए जाने वाले सुन्दर गुलाबों से आश्चर्यचकित होंगे।
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मारिया वी. गैलाघर पेंसिल्वेनिया में रहती हैं। वे लेखिका, अधिवक्ता और जीवन प्रशिक्षक हैं। वे अपना समय गर्भवती महिलाओं, उनके बच्चों और विकलांग लोगों की वकालत करने में बिताती हैं। वे कैथलिक विश्वव्यापी कर्सिलो आंदोलन की सदस्य हैं।

सारा की महाशक्ति यह है कि वह हर जगह चमत्कार देख सकती है; क्या आप चाहते हैं कि आपके पास भी ऐसा गुण होना चाहिए… >.
जब हम चमत्कारों के बारे में सोचते हैं, तो हमारा दिमाग पानी के दाखरस में बदल जाने, अंधे को अचानक दृष्टि मिलने और मृतकों के फिर से जी उठने जैसे ज्वलंत परिदृश्यों की ओर जाता है। हम अक्सर यह समझने में विफल हो जाते हैं कि चमत्कार हर दिन होते हैं। वे बाइबल की प्राचीन कहानियों तक सीमित नहीं हैं, न ही वे संतों के जीवन में दुर्लभ, चमत्कारी घटनाओं तक सीमित हैं – ऐसा कुछ जिसके बारे में हम सोचते हैं कि हमारे साथ कभी घटित नहीं हो सकता। अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बार कहा था: “जीने के दो तरीके हैं – या तो आप ऐसे जी सकते हैं जैसे कि कुछ भी चमत्कार नहीं है, या आप ऐसे जी सकते हैं जैसे कि सब कुछ चमत्कार है।” इस प्रकार की जीवन शैली को खोलने की कुंजी हमारे भीतर है। जब हम अपने जीवन में होने वाली हर छोटी-छोटी बात में ईश्वर के दर्शन की अनुमति अपने आप को देते हैं, तो हम चमत्कार प्राप्त करने के लिए खुद तैयार हो जाते हैं।
भूल जा!
मेरे बचपन का एकमात्र उपदेश, जो मेरी स्मृति में है, उस उपदेश ने मेरे भीतर इस मानसिकता को खोल दिया। मुझे वह कहानी याद है जो पुरोहित ने वेदी से सुनाई थी। एक महिला ने एक बार बताया था कि वह एक मीटिंग के लिए देर से जा रही थी और पूरी तरह से भीड़भाड़ वाली जगह में पार्किंग की जगह की तलाश कर रही थी। हताश होकर, उसने ईश्वर से प्रार्थना की और कहा कि ईश्वर उसके लिए एक खुली जगह ढूंढ कर दे। बदले में, उसने स्थानीय परोपकार की संस्था को बड़ी मात्रा में भोजन दान करने का वादा किया। जैसे ही उसने अपनी प्रार्थना समाप्त की, एक कार उसके सामने एक स्थान से निकल गई। यह सोचकर कि उसे खुद पार्किंग की जगह मिल गई है, उसने तुरंत ईश्वर को जवाब दिया: “भूल जा।” हम ईश्वर के हस्तक्षेप और हमारे सामने प्रतिदिन होने वाले चमत्कारों को कितनी जल्दी खारिज कर देते हैं!
मेरा दैनिक जीवन चमत्कारों से भरा हुआ है, लेकिन मैं किसी और से ज्यादा धन्य या खास नहीं हूं। मैं बस उन चमत्कारों को हर दिन पाती हूं। आप जो खोजते हैं, वह आपको मिल जाएगा, और जिसे आप देखने से इनकार करते हैं, वह आपको कभी नहीं मिलेगा। मेरे अपने जीवन में, अनगिनत बार मुझे अप्रत्याशित तरीकों से परमेश्वर की कृपा और मध्यस्थता का सामना करना पड़ा है, ऐसी घटनाएं जिन्हें अधिकांश लोग अनदेखा कर देते हैं और जिन पर ध्यान नहीं देते।
जहाँ कोई रास्ता नहीं है…
जिन दिनों मैं गहरी आस्था विकसित करना शुरू कर रही थी, तो मैं अपने स्कूल के अध्ययन यात्रा पर कनाडा के क्यूबेक की ओर गयी थी। यह पहला वर्ष था जब मैंने हर रविवार को मिस्सा बलिदान में जाना शुरू किया था, लेकिन अपने विश्वास में नयी होने के कारण, मेरे दिमाग में यह बात नहीं आई थी कि मैं उस रविवार को मिस्सा में शामिल नहीं हो पाऊँगी। यह पर्यटन पूरी तरह से एक सख्त कार्यक्रम के साथ निर्देशित थी और गाइड लोग बड़ी सख्ती के साथ हमारी सभी गतिविधियों पर नज़र रख रहे थे। हमने शहर का दौरा किया, दुकानों का दौरा किया, और एक झरने की सैर की, और वे सभी सामान्य गतिविधियाँ जो फ्रांस के आम धर्मनिरपेक्ष कक्षा की अध्ययन यात्रा में अपेक्षित हैं।
फिर भी उस रविवार को, हम अप्रत्याशित रूप से एक स्थानीय कैथीड्रल का दौरा करने के लिए रुके। जब हम अंदर गए, तो अधिकांश छात्र गिरजाघर के संग्रहालय की ओर जा रहे थे या वहां की कलाकृतियों की तारीफ कर रहे थे, मुझे एहसास हुआ कि हमारे पहुँचने से थोड़ा पहले मिस्सा बलिदान शुरू हो गया था। मैं न केवल मिस्सा में शामिल होने में सक्षम थी, बल्कि मैं अपनी बस में फिर से सवार होने से ठीक पहले परम प्रसाद ग्रहण करने में भी कामयाब रही! वास्तव में, जब ऐसा लगता है कि कोई रास्ता नहीं है, तब परमेश्वर कोई रास्ता बनाता है।
काँटे रहित गुलाब
मेरी पसंदीदा नोवेना में से एक है संत पुष्पा या लिस्यु की संत तेरेसा के प्रति नोवेना प्रार्थना। अपनी मृत्यु से पहले, संत तेरेसा ने उनसे प्रार्थना करने वालों पर गुलाबों की वर्षा करने का वादा किया था। नोवेना के शब्द इस प्रकार शुरू होते हैं: “हे पुष्पा संत तेरेसा, कृपया मुझे स्वर्गीय उद्यान से एक गुलाब चुनकर दे और इसे प्यार के संदेश के साथ मेरे पास भेजे, जो अनुग्रह मैं तुझसे माँगता हूँ, मुझे वह अनुग्रह प्रदान करने के लिए ईश्वर से कह दें, और प्रभु से कहें कि मैं हर दिन उससे और अधिक प्यार करूँगा।”
हर नोवेना के अंत में, विश्वासियों को संत तेरेसा से संकेत के रूप में एक गुलाब प्राप्त होता है। बिना किसी असफलता के, हर बार, मेरे रास्ते में एक अप्रत्याशित गुलाब दिखाई दिया है, यहाँ तक कि सर्दियों में भी। एक अवसर पर, मैंने तेरेसा से नोवेना प्रार्थना की, और आखिरी दिन, मुझे बेतरतीब ढंग से एक रोजरी माला का उपहार प्राप्त हुआ – “रोजरी” शब्द का अर्थ है “गुलाबों की एक श्रृंखला।”
लगातार दो सप्ताह तक, मैंने किसी को बताए बिना एक महत्वपूर्ण इरादे के लिए नोवेना प्रार्थना की; दोनों सप्ताह, आखिरी दिन, मेरे पास दो अलग-अलग लोग थे जो बगीचे में सुंदर गुलाब दिखा रहे थे। एक अन्य अवसर पर, मैं यह जानने के लिए नोवेना प्रार्थना कर रही थी कि मेरे भाई को नए स्कूल में जाना चाहिए या नहीं; हम गाड़ी चलाते समय रास्ता भटक गए, और हमारा जी.पी.एस. हमें एक जटिल, दूर-दराज के रास्ते पर ले गया, जिस के कारण हम एक इमारत के ठीक सामने पहुँचे, जिस इमारत के किनारे एक विशाल लकड़ी का गुलाब था!
सटीक क्लिक
जब मेरी पीठ में चोट लगी और नृत्य नाटिका के अपने कैरियर को खोने में मैं मजबूर थी, तो मुझे लगा कि मैं दिशाहीन हो गयी हूँ। धर्महीन दुनिया ने मुझे यह महसूस कराया कि मेरे जीवन के लिए ईश्वर के उद्देश्य को मैं पूरी तरह से भूल रही हूँ। मुझे याद है कि एक दिन मैं रो रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि मुझे क्या करना चाहिए।
मैंने अपने भाई की फुटबॉल टीम के लिए फ़ोटो लेना शुरू किया था; उसके कुछ दोस्तों ने मुझसे फोटो माँगा था और उन्होंने मेरे खींचे फ़ोटो का आनंद भी लिया था। जब मैंने रुककर अपना फ़ोन खोला, तो मैंने अपने भाई और उसके दोस्तों की फ़ोटो वाली एक इनस्टाग्राम पोस्ट पर एक टिप्पणी देखी: “ये फ़ोटो अद्भुत हैं; बस अपनी फ़ोटोग्राफ़ी के साथ वही करती रहो जो तुम अब कर रही हो।”
ये वो शब्द थे जिन्हें सुनने की मुझे ज़रूरत थी – एक ऐसे सवाल का बिल्कुल सही जवाब जो केवल ईश्वर ही जानता था जिसे मैं मांग रही थी। मैं फ़ोटो लेती रही| उन लड़कों ने उन्हें प्राप्त किया और यह उन के लिए बहुत मायने रखता था।
ईश्वर हमसे बहुत प्यार करता है। वह हमें रोज़ाना साधारण, सरल तरीकों से अपना प्यार दिखाना चाहता है। इस प्यार को पाने के लिए तैयार रहें, और एक बार जब हम ऐसा कर लेते हैं, तो वह इसे उन जगहों पर प्रकट करता है, जहाँ हमने पहले कभी नहीं सोचा था। सामान्य पलों पर चमत्कार देखें। अपने रास्ते में खूबसूरत बातें घटित होने की उम्मीद करें। ईश्वर द्वारा लगाए गए फूलों का आनंद लें ताकि आप अपने काम पर जाते समय उनका आनंद ले सकें। जब भी आपको ज़रूरत हो, तब मदद के लिए भेजे गए अजनबी की सराहना करें। जानें कि आप कभी अकेले नहीं हैं, बल्कि ईश्वर रोज़ाना आपके साथ चलता है। बस उसे अंदर आने दें।
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सारा बैरी स्कॉटलैंड में सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय में बाइबिल अध्ययन में डिग्री हासिल कर रही एक छात्रा हैं। लेखन के प्रति उनके प्यार के कारण उन्हें अपने इन्स्टाग्राम ब्लॉग @theartisticlifeofsarahbarry के माध्यम से आत्माओं को छूने की अनुमति मिली है। सारा ईश्वर के प्रेम को फैलाने के लिए अपने उपहारों का उपयोग करने की उम्मीद करती हैं।

आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि मेरे बॉयफ्रेंड ने मुझे हमारी पहली डेटिंग पर कहाँ बुलाया था!
जब हमारी मुलाकात हुई, तब मैं अपनी उम्र के बीसवें दशक की आखिरी वर्षों मैं थी। हमारी पहली डेट पर, उसने पूछा कि क्या तुम पवित्र संस्कार की आराधना में जाना चाहती हो। उस पल से, हम एक-दूसरे के प्रेमी बन गए। एक साल बाद, उसने मुझे वहाँ प्रपोज़ किया और तब से हमारा रिश्ता पवित्र यूखरिस्त में उपस्थित येशु पर आधारित है।
हर बार जब मैं पवित्र संस्कार के सामने बैठती हूँ, तो मैं उस बच्चे की तरह महसूस करती हूँ जिसने प्रभु को पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ दीं थीं। जब मैं अपना एक घंटा देती हूँ, तो वह उस एक घंटे को मेरे जीवन में कई अनुग्रहों में बदल देता है। जब मैं अपनी कमियों, समस्याओं, दुखों, सपनों और इच्छाओं को वेदी पर लाती हूँ, तो मैंने जो सबसे खूबसूरत चीज़ अनुभव की है, वह यह है कि मुझे बदले में शांति, आनंद और प्रेम मिलता है।
जब मैंने पहली बार आराधना शुरू की, तो मैं ईश्वर से लोगों या उनके जीवन को बदलने के लिए कहने का इरादा रखती थी। लेकिन जब आप आराधना में बैठते हैं, तो उसकी कृपापूर्ण उपस्थिति के सामने, वह आप पर पवित्र आत्मा के उपहार और फल उंडेलते हैं, जिससे हमें धीरे-धीरे क्षमा करने और अधिक धैर्यवान, प्रेमपूर्ण और दयालु बनने की सीख पाने में मदद मिलती है। मेरी स्थिति नहीं बदल रही थी; इसके बजाय, मैं बदल रही थी। जब आप प्रभु के साथ बैठते हैं, तो वह आपके दिल, दिमाग और आत्मा को इस तरह से बदल देता है कि आप चीजों को एक अलग दृष्टिकोण से देखना शुरू कर देते हैं – मसीह के दृष्टिकोण से।
पहले, मैं धन दौलत, प्रसिद्धि और रिश्तों की तलाश में थी, लेकिन जब मैंने उसे पवित्र संस्कार में पहचाना, तो मुझे यह अविश्वसनीय प्रेम महसूस हुआ जो मेरे दिल में उमड़ पड़ा, मेरे जीवन को बदल दिया और मेरे दिल के खालीपन को भर दिया।
वह मेरे दिल से बात करता है और इससे मुझे प्यार और सांत्वना मिलती है। यह एक प्रेम संबंध की तरह है… मैं हमेशा अपने दिल में प्यार की इस अविश्वसनीय भावना को चाहती थी। वह उद्धारकर्ता है जिसकी मुझे तलाश थी और मैंने उसे आराधना में पाया। वह आपको पा लेगा, और आप उसकी आराधना करते हुए उसमें विश्राम करके अपने दिल में आराम पाएँगे।
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नादिया कनाडा के ओंटारियो शहर में हाई स्कूल की शिक्षिका हैं। आराधना केलिए जाएँ: https://www.shalomworld.org/episode/nadia-masucci
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अक्सर, किसी वाद्य यंत्र से सुंदर धुनें बजाने के लिए किसी उस्ताद की ज़रूरत होती है।
यह एक भयंकर प्रतिस्पर्धा थी जिसमें खरीदार हर चीज़ के लिए एक-दूसरे से ज़्यादा बोली लगाने की होड़ में थे। उन्होंने उत्सुकता के साथ सभी वस्तुओं को खरीद लिया और नीलामी बंद होने वाली थी, सिवाय एक वस्तु के – एक पुराना वायलिन।
खरीदार खोजने के लिए उत्सुक, नीलामीकर्ता ने तार वाले वाद्य को अपने हाथों में लिया और जो कीमत उसे आकर्षक लगी, उसे पेश किया: “अगर किसी को दिलचस्पी है, तो मैं इसे 100 डॉलर में बेचूंगा।”
कमरे में मौत जैसी खामोशी छा गई।
जब यह स्पष्ट हो गया कि पुराने वायलिन को खरीदने के लिए यह कीमत भी किसी को भी राजी करने के लिए पर्याप्त नहीं थी, तो उसने कीमत घटाकर 80 डॉलर, फिर 50 डॉलर और अंत में, हताश होकर 20 डॉलर कर दी। एक और चुप्पी के बाद, पीछे बैठे एक बुजुर्ग सज्जन ने पूछा: “क्या मैं वायलिन को देख सकता हूँ?” नीलामीकर्ता ने राहत महसूस की कि कोई पुराने वायलिन में दिलचस्पी दिखा रहा है, इसलिए उसने हाँ कह दी। कम से कम उस तार वाले वाद्य को एक नया मालिक और नया घर मिलने की संभावना बन रही थी।
एक उस्ताद का स्पर्श
बूढ़ा आदमी पीछे की सीट से उठा, धीरे-धीरे आगे की ओर चला, और पुराने वायलिन की सावधानीपूर्वक जांच की। अपना रूमाल निकालकर, उसने उसकी सतह को झाड़ा और जब तक कि एक-एक करके, वे सारे तार सही स्वर में आ गए, तब तक प्रत्येक तार को धीरे-धीरे ट्यून किया।
आखिरकार, और केवल तभी, उसने पुराने वायलिन को अपनी ठोड़ी और बाएं कंधे के बीच रखा, अपने दाहिने हाथ से गज़ को उठाया, और संगीत का एक अंश बजाना शुरू किया। पुराने वायलिन से निकलने वाला प्रत्येक संगीत स्वर कमरे में सन्नाटे को भेदता हुआ हवा में खुशी से नाच रहा था। सभी चकित रह गए, और उन्होंने वाद्य से निकल रहे संगीत के कमाल को ध्यान से सुना जो सभी के लिए स्पष्ट था – एक उस्ताद के हाथों का कमाल।
उन्होंने एक परिचित शास्त्रीय भजन बजाया। धुन इतनी सुंदर थी कि इसने नीलामी में मौजूद सभी लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया और वे अचंभित रह गए। उन्होंने कभी किसी को इतना सुंदर संगीत बजाते हुए नहीं सुना था या देखा भी नहीं था, एक पुराने वायलिन पर तो बिल्कुल भी नहीं। और उन्होंने एक पल के लिए भी नहीं सोचा था कि नीलामी फिर से शुरू होने पर इससे उन्हें खूब मज़ा आएगा।
उन्होंने उस वायलिन को बजाना समाप्त किया और शांत भाव से उसे नीलामीकर्ता को लौटा दिया। इससे पहले कि नीलामीकर्ता कमरे में मौजूद सभी लोगों से पूछ पाता कि क्या वे अब भी इसे खरीदना चाहेंगे, हाथ उठाने की होड़ लग गई। अचानक से किए गए इस शानदार प्रदर्शन के बाद हर कोई तुरंत इसे चाहता था। कुछ समय पहले तक एक अवांछित वस्तु से, पुराना वायलिन अचानक नीलामी की सबसे तीव्र बोली का केंद्र बन गया। 20 डॉलर की शुरुआती बोली से, कीमत तुरंत 500 डॉलर तक बढ़ गई। अंततः उस पुराने वायलिन को 10,000 डॉलर में बेचा गया, जो इसकी सबसे कम कीमत से 500 गुना अधिक था।
आश्चर्यजनक परिवर्तन
पुराने वायलिन को सबकी नापसंद वास्तु से सबकी पसंदीदा और नीलामी का सितारा बनने में केवल 15 मिनट लगे। और इसके तारों को ट्यून करने और एक अद्भुत धुन बजाने के लिए एक उस्ताद संगीतकार की ज़रूरत पड़ी। उसने दिखाया कि जो बाहर से बदसूरत लग रहा था, वास्तव में उस वाद्य यंत्र के अंदर एक सुंदर और अमूल्य आत्मा थी।
शायद, पुराने वायलिन की तरह, हमारे जीवन का पहले तो कोई खास मूल्य नहीं लगता। लेकिन अगर हम उन्हें येशु को सौंप दें, जो सभी उस्तादों से ऊपर उस्ताद हैं, तो वे हमारे ज़रिए सुंदर गीत बजाने में सक्षम होंगे और उनकी धुनें श्रोताओं को और भी ज़्यादा चौंका देंगी। तब हमारा जीवन दुनिया का ध्यान आकर्षित करेगा। तब हर कोई उस संगीत को सुनना चाहेगा जिसे प्रभु येशु हमारे जीवन से उत्पन्न करते हैं।
इस पुराने वायलिन की कहानी मुझे मेरी अपनी कहानी की याद दिलाती है। मैं भी उस पुराने वायलिन की तरह ही था और किसी ने नहीं सोचा था कि मैं किसी काम का हो सकता हूँ या अपने जीवन में कुछ सार्थक कर सकता हूँ। वे मुझे ऐसे देखते थे जैसे मेरा कोई मूल्य ही न हो। हालाँकि, येशु को मुझ पर दया आ गई। वह पलटा, मेरी ओर देखा और मुझसे पूछा: “पीटर, तुम अपने जीवन में क्या करना चाहते हो?” मैंने कहा: “गुरुवर, आप कहाँ रहते हैं?” “आओ और देखो,” येशु ने उत्तर दिया। इसलिए मैं आया और देखा कि वह कहाँ रहते हैं, और मैं उनके साथ रहा। पिछले 16 जुलाई को, मैंने अपने पुरोहिताई अभिषेक की 30-वीं वर्षगांठ मनाई। मेरे लिए येशु के महान प्रेम को जानने और अनुभव करने के लिए… मैं उनका कितना धन्यवाद कर सकता हूँ? उन्होंने पुराने वायलिन को कुछ नया बना दिया है और उसे बहुत मूल्यवान बना दिया है।
हे प्रभु, हमारा जीवन भी उस पुराने वायलिन की तरह तेरा संगीत वाद्य बन जाए, ताकि हम ऐसा सुंदर संगीत बना सकें जिसे लोग तेरे अद्भुत प्रेम के लिए धन्यवाद और प्रशंसा देते हुए हमेशा गा सकें।
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क्या आपने कभी किसी की आँखों में अंतहीन आश्चर्य देखा है, और यह उम्मीद रखी है कि वह पल कभी नहीं गुज़रेगा?
“आप लोग हर समय प्रसन्न रहें। निरंतर प्रार्थना करते रहें। सब बातों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें।” (1 थेसलनीकी 5: 16-18)
लोग अक्सर यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न पूछते हैं: “मानव जीवन का उद्देश्य क्या है?” वास्तविकता को अधिक सरलीकृत करने के जोखिम पर, मैं यह कहूंगा और मैंने इसे अक्सर वचन की वेदी से घोषणा की है: ” प्रार्थना करना सीखना ही इस जीवन का उद्देश्य है।” हम ईश्वर से आए हैं और हमारी नियति ईश्वर के पास लौटना है, और प्रार्थना करने की शुरुवात करना ईश्वर के पास वापस जाने का रास्ता बनाना है। संत पौलुस हमें इससे भी आगे जाने के लिए कहते हैं, यानी ‘निरंतर प्रार्थना करना’। लेकिन यह कैसे होगा? हम निरंतर कैसे प्रार्थना कर सकते हैं?
हम समझते हैं कि मिस्सा बलिदान से पहले प्रार्थना करना, भोजन से पहले प्रार्थना करना या सोने से पहले प्रार्थना करना क्या होता है, लेकिन कोई निरंतर यानी बिना रुके कैसे प्रार्थना कर सकता है? 19-वीं सदी के एक अज्ञात रूसी किसान द्वारा लिखी गई महान आध्यात्मिक क्लासिक ‘ एक तीर्थयात्री का मार्ग’ (द वे ऑफ ए पिलग्रिम) इसी प्रश्न से निपटती है। यह कार्य ‘येशु प्रार्थना’ पर केंद्रित है: “हे प्रभु येशु मसीह, ईश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कर।” पूर्वी कलीसिया के लोग माला या रस्सी बनाकर इस प्रार्थना को बार-बार दोहराते हैं, जो रोज़री माला की तरह होती है, लेकिन इसमें 100 या 200 गांठें होती हैं, कुछ में 300 गांठें होती हैं।
जलती हुई मोमबत्ती
जाहिर है, कोई लगातार उस प्रार्थना को नहीं कह सकता है, उदाहरण के लिए जब हम किसी से बात कर रहे हों, या किसी मीटिंग में हों, या किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हों… तो यह निरंतर वाली बात कैसे काम करेगी? इस निरंतर दोहराव के पीछे का उद्देश्य आत्मा में एक आदत, एक स्वभाव बनाना है। मैं इसकी तुलना किसी ऐसे व्यक्ति से करता हूँ जिसका स्वभाव संगीतमय है। जो लोग संगीत के प्रति प्रतिभाशाली होते हैं, उनके दिमाग में लगभग हमेशा एक गाना बजता रहता है, शायद कोई गाना जो उन्होंने रेडियो पर सुना हो, या अगर वे संगीतकार हैं तो कोई गाना जिस पर वे काम कर रहे हों । गाना उनके दिमाग में सबसे आगे नहीं बल्कि पीछे होता है।
इसी तरह, निरंतर प्रार्थना करना अपने दिमाग में लगातार प्रार्थना करना है। इस प्रार्थना के लगातार दोहराव के परिणामस्वरूप प्रार्थना करने की प्रवृत्ति विकसित होती है: “हे प्रभु येशु मसीह, परमेश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कर।” लेकिन यही बात उन लोगों के लिए भी हो सकती है, जो रोज़री माला बहुत बार प्रार्थना करते हैं: “प्रणाम मरिया, कृपापूर्ण, प्रभु तेरे साथ है; धन्य तू स्त्रियों में, और धन्य है तेरे गर्भ का फल, येशु। हे संत मरिया, परमेश्वर की माँ, प्रार्थना कर हम पापियों के लिए अब और हमारी मृत्यु के समय।“
ऐसा होता है कि अंततः, वास्तविक शब्दों की आवश्यकता नहीं रह जाती, क्योंकि शब्दों द्वारा व्यक्त किया गया अर्थ अवचेतन में अंकित एक आदत बन चुका होता है, और इसलिए भले ही मन किसी मामले में व्यस्त हो, जैसे कि फ़ोन बिल का भुगतान करना या खरीदारी करना या कोई महत्वपूर्ण फ़ोन कॉल लेना, लेकिन आत्मा पृष्ठभूमि में, बिना शब्दों के, लगातार जलती हुई मोमबत्ती की तरह प्रार्थना कर रही होती है। तब हम बिना रुके, निरंतर, प्रार्थना करना शुरू कर देते हैं। हम शब्दों से शुरू करते हैं, लेकिन अंततः, हम शब्दों से आगे निकल जाते हैं।
आश्चर्य की प्रार्थना
प्रार्थना के विभिन्न प्रकार हैं: याचना की प्रार्थना, मध्यस्थता की प्रार्थना, धन्यवाद की प्रार्थना, स्तुति की प्रार्थना और आराधना की प्रार्थना। हममें से प्रत्येक सर्वोच्च प्रकार की प्रार्थना अर्थात आराधना की प्रार्थना करने केलिए बुलाया गया है। फादर जेराल्ड वॉन के शब्दों में, यह आश्चर्य की प्रार्थना है: “आराधना की शांत, शब्दहीन दृष्टि, जो प्रेमी के लिए उचित है। आप बात नहीं कर रहे हैं, व्यस्त नहीं हैं, चिंतित या उत्तेजित नहीं हैं; आप कुछ भी नहीं मांग रहे हैं: आप शांत हैं, आप बस साथ हैं, और आपके दिल में प्यार और आश्चर्य है।”
यह प्रार्थना जितनी हम सोचते हैं, उससे कहीं अधिक कठिन है। यह अपने आप को ईश्वर की उपस्थिति में, मौन में, अपना सारा ध्यान ईश्वर पर केंद्रित करने के बारे में है। यह कठिन है, क्योंकि जल्द ही ऐसा होता है कि हम विभिन्न प्रकार के विचारों से विचलित हो जाते हैं, और बिना हमारी जानकारी के हमारा ध्यान इधर-उधर खींचा जाता है। हालाँकि, एक बार जब हम इसके बारे में जागरूक हो जाते हैं, तो हमें बस अपना ध्यान ईश्वर पर केंद्रित करना होता है, उनकी उपस्थिति में रहना होता है। लेकिन, एक मिनट के भीतर ही मन पुनः विचारों से विचलित हो जाएगा।
यहीं पर छोटी प्रार्थनाएँ बहुत महत्वपूर्ण और सहायक होती हैं, जैसे कि येशु प्रार्थना, या स्तोत्र ग्रन्थ का एक छोटा सा वाक्यांश, जैसे कि “हे ईश्वर मेरी रक्षा कर, हे प्रभु शीघ्र आकर मेरी सहायता कर। ” (स्तोत्र 69:2) या “मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों में सौंपता हूँ, प्रभु।” (स्तोत्र 31:6) दोहराए गए ये छोटे वाक्यांश हमें अपने भीतर उस आंतरिक निवास स्थान पर लौटने में मदद करेंगे। निरंतर अभ्यास से, अंततः लंबे समय तक बिना किसी विकर्षण के, व्यक्ति अपने भीतर ईश्वर की उपस्थिति में, मौन में रहने में सक्षम हो जाता है। यह भी एक तरह की प्रार्थना है जो अवचेतन में जबरदस्त उपचार लाती है। इस दौरान सतह पर आने वाले कई विचार अक्सर अवचेतन में संग्रहीत अस्वास्थ्यकर यादें होती हैं, और उन्हें पीछे छोड़ना सीखना गहन उपचार और शांति लाता है; क्योंकि हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन का अधिकांश हिस्सा अचेतन में इन अस्वास्थ्यकर यादों से प्रेरित होता है, यही वजह है कि आम तौर पर विश्वासियों के आंतरिक जीवन में बहुत अधिक उथल-पुथल होती है।
शांतिपूर्ण प्रस्थान
इस दुनिया में दो तरह के लोग हैं: वे जो मानते हैं कि यह जीवन अनंत जीवन की तैयारी है, और वे जो मानते हैं कि यह जीवन ही सब कुछ है और हम जो कुछ भी करते हैं वह इसी दुनिया के जीवन की तैयारी मात्र है। मैंने पिछले कुछ महीनों में अस्पताल में बहुत से लोगों को देखा है, जो अपनी गतिशीलता खो चुके हैं, जिन्हें महीनों अस्पताल के बिस्तर पर बिताना पड़ा है, जिनमें से कई लंबे समय के बाद इस दुनिया से चले गए।
जिन लोगों का आंतरिक जीवन नहीं है और जिन्होंने अपने पूरे जीवन में प्रार्थना की आदत नहीं डाली है, उनके लिए जीवन के ये आखिरी वर्ष और महीने अक्सर बहुत दर्दनाक और बहुत अप्रिय होते हैं, यही वजह है कि इच्छामृत्यु अधिक लोकप्रिय हो रही है। लेकिन जिन लोगों का आंतरिक जीवन समृद्ध है, जिन्होंने अपने जीवन के समय का उपयोग निरंतर प्रार्थना करना सीखकर अनंत जीवन की तैयारी के लिए किया है, उनके अंतिम महीने या वर्ष शायद अस्पताल के बिस्तर पर असहनीय नहीं होते। इन लोगों से मिलने पर अक्सर हमें खुशी मिलती है, क्योंकि उनके भीतर एक गहरी शांति होती है, और वे आभार से भरे होते हैं। और उनके बारे में आश्चर्यजनक बात यह है कि वे इच्छामृत्यु नहीं मांग रहे हैं। अपने अंतिम कार्य को विद्रोह और हत्या का कार्य बनाने के बजाय, उनकी मृत्यु उनकी अंतिम प्रार्थना, अंतिम भेंट, उनके जीवन भर में प्राप्त सभी चीज़ों के लिए स्तुति और धन्यवाद का बलिदान बन जाती है।
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आपके पास किसी संभावित अच्छे काम को ‘नहीं’ कहने के लिए लाखों कारण हो सकते हैं, लेकिन क्या वे सभी कारण वास्तव में सही हैं?
मैं अपनी वैन में बैठी अपनी बेटी के घुड़सवारी का प्रशिक्षण समाप्त होने का इंतज़ार कर रही थी। जिस खेत में वह घुड़सवारी करती है, वहाँ घोड़े, भेड़, बकरियाँ, खरगोश और बहुत सारी खलिहानी बिल्लियाँ हैं।
मेरी बेटी से मेरी नज़र तब हट गयी जब मैंने देखा कि एक लड़का एक नए मेमने को, जिसका ऊन कतरा हुआ था, उसे उसके बाड़े में ले जा रहा है। अचानक, जानवर ने फैसला किया कि वह चरागाह में नहीं जाना चाहता और वहीं रास्ते में लेट गया।
उस लड़के ने बहुत प्रयास किया, लेकिन वह मेमने को हिला नहीं पाया (एक पूरी तरह से विकसित मेमना छोटी नहीं होती, उसका वजन औसतन 100 पाउंड से अधिक होता है)। उसने पट्टा खींचा। वह मेमने के पीछे गया और पीछे के हिस्से को धक्का देने की कोशिश की। उसने उसे उसके पेट के नीचे से उठाने का प्रयास किया। उसने मेमने से तर्क करने, उससे बात करने और वादा करने की भी कोशिश की कि अगर वह उसके पीछे आए तो वह उसे कुछ खिलाएगा। फिर भी, मेमना रास्ते के बीच में पड़ा रहा।
मैं मुस्कुरायी और अपने मन में सोचने लगी: “मैं वह मेमना हूँ!”
जहाँ प्रभु मुझे ले जाने की कोशिश कर रहा है, वहाँ जाने से मैं कितनी बार इनकार करती हूँ?
कभी-कभी, मैं वह करने से डरती हूँ जो येशु मुझसे करने के लिए कह रहे हैं। यह मेरे आराम क्षेत्र से बाहर है। अगर मैं सच बोलती हूँ तो शायद कोई मुझे पसंद न करे; इससे उन्हें ठेस पहुँच सकती है। क्या मैं इस कार्य के लिए योग्य भी हूँ? मेरे लिए परमेश्वर की अविश्वसनीय योजना को पूरा करने से मेरा डर मुझे रोकता है।
कई बार, मैं बहुत थकी हुई या बिल्कुल आलसी होती हूँ। दूसरों की मदद करने में समय लगता है, वह समय जो मैंने कुछ और करने के लिए तय किया था—कुछ ऐसा कार्य जो मैं करना चाहती थी । कई बार मुझे लगता है कि मेरे पास और काम करने के लिए ऊर्जा नहीं है। दु:ख की बात है कि मैं खुद का और थोड़ा समय और ऊर्जा दूसरों को देने से इनकार करती हूँ। मेरा स्वार्थ मुझे ईश्वर द्वारा भेजी जा रही कृपा पाने से रोकता है।
मुझे मालूम नहीं कि उस मेमने ने आगे बढ़ने से क्यों इनकार कर दिया। क्या वह डर गया था? या थका हुआ था? या बस आलसी था? मुझे नहीं पता। आखिरकार, छोटा चरवाहा अपने मेमने को फिर से चलने के लिए मनाने में सक्षम हो गया और उसे हरे-भरे चरागाहों में ले गया जहाँ वह सुरक्षित रूप से लेट सकता था।
उस चरवाहे बालक की तरह, येशु मुझे भी उकसाते हैं और धकेलते हैं, लेकिन अपनी ज़िद में, मैं आगे बढ़ने से इनकार करती हूँ। कितना दु:खद है! मैं अवसरों को खो रही हूँ, शायद चमत्कारों को भी। सच में, डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि येशु ने वादा किया था कि वह मेरे साथ रहेगा (स्तोत्र 23:4)। जब येशु मुझसे कुछ माँगते हैं, तो “मुझे किसी बात की कमी नहीं है” (स्तोत्र 23:1), समय या ऊर्जा की भी नहीं। अगर मैं थक जाती हूँ: “वह मुझे शांत जल के पास ले जाकर मुझ में नवजीवन का संचार करता है।” (स्तोत्र 23:2,3) येशु मेरा अच्छा चरवाहा है।
हे प्रभु, मुझे माफ़ कर। जहाँ भी तू मुझे ले जाए, मुझे हमेशा तेरा अनुसरण करने में मदद कर। मुझे भरोसा है कि तू जानता है कि मेरे लिए सबसे अच्छा क्या है। तू मेरा भला चरवाहा है। आमेन।
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उस दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने मुझे कुछ पलों तक स्थिर और मौन रहने पर मजबूर किया… और सब कुछ बदल गया।
मैं वृद्धाश्रम में भर्त्ती बुजुर्ग मरीजों की देखभाल करती हूँ। एक दिन जब मैं अपने रोज़री समूह की जपमाला प्रार्थना शुरू करने ही वाली थी, तब मैंने देखा कि 93 वर्षीय नॉर्मन प्रार्थनालय में अकेले बैठे हैं, उदास दिख रहे हैं। उन पर पार्किंसन के झटके काफी स्पष्ट दीख रहे थे।
मैं उनके पास गयी और पूछा कि आप कैसे हैं। हार स्वीकारने के प्रतीक के रूप में कंधे उचकाते हुए उन्होंने इतालवी भाषा में कुछ कहा और रो पड़े। मुझे पता था कि उनकी हालत अच्छी नहीं हैं। उनके हाव-भाव से मैं बहुत ही परिचित थी। मैंने अपने पिता की मृत्यु से कुछ महीने पहले उनमें यह सब देखा था – निराशा, उदासी, अकेलापन, यह पीड़ा भरा मौन सवाल कि ‘मुझे इस तरह क्यों जीना पड़ रहा है’, झुर्रीदार सिर और काँच जैसी आँखों से स्पष्ट दीख रही शारीरिक दर्द…
मैं भावुक हो गयी और कुछ पलों तक बोल नहीं सकी। चुपचाप मैंने उनके कंधों पर हाथ रखा और उन्हें भरोसा दिलाया कि मैं उनके साथ हूँ।
पूरी तरह एक नई दुनिया
सुबह की चाय का समय था। मुझे पता था कि जब तक वे भोजनालय में पहुंचेंगे, तब तक वे चाय से वंचित रह जायेंगे। इसलिए, मैंने उन केलिए एक कप चाय बनाने की पेशकश की। अपनी न्यूनतम इतालवी भाषा में, मैं उनकी पसंद को समझने में सक्षम थी।
पास में बने स्टाफ की रसोई में, मैंने उन केलिए दूध और चीनी के साथ एक कप चाय बनाई। मैंने उन्हें आगाह किया कि चाय काफी गर्म है। वे मुस्कुराये, यह संकेत देते हुए कि उन्हें यह पसंद है। मैंने चाय को कई बार चम्मच से हिलाया क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि उनका जीभ जल जाए, और जब हम दोनों को लगा कि चाय का तापमान सही है, तो मैंने उन्हें चाय पेश की। पार्किंसन की बीमारी के कारण, वे कप को स्थिर नहीं पकड़ पा रहे थे। मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि मैं कप को पकड़ूंगी; मेरे और उनके कांपते हाथ से, उन्होंने चाय की चुस्की ली, इतनी खुशी से मुस्कुराते हुए जैसे कि यह उनके जीवनकाल का सबसे अच्छा पेय था। उन्होंने एक-एक बूँद पी ली! उनका कांपना जल्द ही बंद हो गया, और वे और अधिक सतर्क होकर बैठ गये। अपनी विशिष्ट मुस्कान के साथ, उन्होंने कहा: “धन्यवाद!” वह अन्य अन्तेवासियों के साथ प्रार्थानालय में चले गए और वे रोजरी प्रार्थना के लिए वहीं रुक गए।
यह केवल एक कप चाय थी, फिर भी यह उनके लिए पूरी दुनिया को जीतना जैसा था – न केवल शारीरिक प्यास बुझाने के लिए, बल्कि भावनात्मक भूख को भी शांत करने के लिए!
मेरी पुरानी स्मृतियाँ
जब मैं उन्हें चाय पीने में मदद कर रही थी, तो मुझे अपने पिता की याद आ गई। वे पल… जब बिना किसी जल्दबाजी के हम एक साथ खाना खाते थे, सोफे पर उनके पसंदीदा स्थान पर उनके साथ बैठते थे, जब वे कैंसर के दर्द से जूझ रहे थे, उनके बिस्तर पर उनके साथ बैठकर उनका पसंदीदा संगीत सुनते थे, साथ मिलकर चंगाई के मिस्सा बलिदान को ऑनलाइन देखते थे …
उस सुबह नॉर्मन से मिलने के लिए मुझे किस बात ने आकर्षित किया? निश्चित रूप से यह मेरा कमज़ोर और कामुक स्वभाव नहीं था। मेरी योजना जल्दी से प्रार्थनालय को व्यवस्थित करने की थी क्योंकि मुझे देर हो रही थी। एक काम मुझे पूरा करना था।
मुझे किस बात ने स्थिर रहने पर मजबूर किया? यह येशु ही थे, जिन्होंने किसी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मेरे दिल में अपनी कृपा और दया को स्थापित किया। उस पल, मुझे संत पौलुस की शिक्षा की गहराई का एहसास हुआ: “मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझमें जीवित है।” (गलाती 2:20)
मैं सोचती हूँ कि जब मैं नॉर्मन की उम्र में पहुँचूँगी और मुझे ‘बादाम के दूध के साथ, अतिरिक्त गर्म’ कैपुचीनो पेय की लालसा होगी, तो क्या कोई मेरे लिए भी ऐसी दया और कृपा के साथ एक कैपुचीनो पेय बनाएगा?
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