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जब अयोग्यता के विचार मन में आएं, तो यह आजमायें…
उससे बदबू आ रही थी. उसका गंदा, भूखा शरीर उसकी बर्बाद विरासत की तरह नष्ट हो रहा था। उसे लज्जा ने घेर लिया। उसने सब कुछ खो दिया था – अपनी संपत्ति, अपनी प्रतिष्ठा, अपना परिवार – उसका जीवन टूटकर बिखर गया था। निराशा ने उसे निगल लिया था। फिर, अचानक, उसे अपने पिता का सौम्य चेहरा याद आया। सुलह असंभव लग रही थी, लेकिन अपनी हताशा में, वह “उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पडा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया, और दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया। तब पुत्र ने उससे कहा, “पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरूद्ध और आपके विरुद्ध पाप किया है; मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा।’… लेकिन पिता ने कहा… ‘मेरा यह पुत्र मर गया था और फिर से जी गया है; वह खो गया था और फिर मिल गया है!’ और वे आनंद मनाने लगे” (लूकस 15:20-24)।
ईश्वर की क्षमा स्वीकार करना कठिन है। अपने पापों को स्वीकार करने का अर्थ है यह स्वीकार करना कि हमें अपने पिता की आवश्यकता है। और जब आप और मैं पिछले अपराधों के कारण अपराधबोध और शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं, तो आरोप लगाने वाला शैतान हम पर अपने झूठ से हमला करता है: “तुम प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हो।” लेकिन प्रभु हमें इस झूठ को अस्वीकार करने के लिए कहते हैं!
बपतिस्मा के समय, ईश्वर की संतान के रूप में आपकी पहचान, आपकी आत्मा पर हमेशा के लिए अंकित हो गई। और उड़ाऊ पुत्र की तरह, आप अपनी असली पहचान और योग्यता की खोज करने के लिए बुलाये गए हैं। चाहे आपने कुछ भी किया हो, ईश्वर आपसे प्यार करना कभी नहीं छोड़ते। “जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा।” (योहन 6:37)।
आप और मैं कोई अपवाद नहीं हैं! तो, हम ईश्वर की क्षमा को स्वीकार करने के लिए व्यावहारिक कदम कैसे उठा सकते हैं? प्रभु को खोजें, उनकी दया को अपनाएं, और उनकी शक्तिशाली कृपा से बहाल हो जायें।
प्रभु को खोजें
अपने निकटतम गिरजाघर या आराधनालय को ढूंढें और प्रभु से आमने-सामने मुलाक़ात कर ले। ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह अपनी दयालु आँखों से, अपने निस्वार्थ प्रेम के माध्यम से स्वयं को देखने और पहचानने में आपकी मदद करे।
इसके बाद, अपनी आत्मा की एक ईमानदार और साहसी सूची बनाएं। बहादुर बनो और मनन चिंतन करते हुए क्रूसित प्रभु येशु को देखो – अपने आप को प्रभु के पास लाओ। हमारे पापों की वास्तविकता को स्वीकार करना कठिन है, लेकिन एक सच्चा, कमजोर हृदय क्षमा का फल प्राप्त करने के लिए तैयार है।
याद रखें, आप ईश्वर की संतान हैं—प्रभु आपको विमुख नहीं करेंगे!
ईश्वर की दया को अपनायें
अपराधबोध और शर्मिंदगी के साथ लड़ना, पानी की सतह के नीचे गेंद को पकड़ने की कोशिश करने जैसा हो सकता है। इसमें बहुत मेहनत लगती है! इसके अलावा, शैतान अक्सर हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम ईश्वर के प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हैं। लेकिन क्रूस से, मसीह का रक्त और जल हमें शुद्ध करने, चंगा करने और बचाने के लिए बहता रहा। आप और मैं इस दिव्य दया पर मूल रूप से भरोसा करने के लिए बुलाये गए हैं। यह कहने का प्रयास करें: “मैं ईश्वर की संतान हूँ। येशु मुझसे प्यार करते हैं। मैं क्षमा के योग्य हूँ।” इस सत्य को हर दिन दोहराएँ। इसे ऐसी जगह लिखें, जहां आप अक्सर दृष्टि दौडाते हैं। प्रभु से प्रार्थना करें कि उनकी दया के कोमल आलिंगन में स्वयं को देने में वह आपकी सहायता करें। गेंद को जाने दो और इसे येशु को सौंप दो—ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है!
बहाल हो जाएँ
पापस्वीकार संस्कार में, हम ईश्वर के उपचार और शक्ति की कृपा से बहाल होते हैं। शैतान के झूठ के विरुद्ध लड़ें और इस शक्तिशाली संस्कार में मसीह से मुलाकात कर लें। यदि आप अपराधबोध या शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं तो पुरोहित को बताएं, और जब आप अपने पश्चाताप के कार्य के बारे में बताएं, तो अपने दिल को प्रेरित करने के लिए पवित्र आत्मा को आमंत्रित करें। जैसे ही आप पाप मुक्ति के शब्द सुनते हैं, ईश्वर की असीम दया पर विश्वास करना चुनें: “ईश्वर आपको क्षमा और शांति दे, और मैं आपको पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर पापक्षमा प्रदान करता हूँ।” अब आप ईश्वर के अनंत प्रेम और क्षमा में बहाल हो गए हैं!
अपनी असफलताओं के बावजूद, मैं हर दिन ईश्वर से उनके प्रेम और क्षमा को स्वीकार करने में मेरी मदद करने के लिए कहता हूं। हो सकता है कि हम उड़ाऊ पुत्र की तरह गिर गए हों, लेकिन आप और मैं अभी भी ईश्वर के बेटे और बेटियाँ हैं, उनके अनंत प्रेम और करुणा के योग्य हैं। ईश्वर आपसे प्रेम करता है, यहीं, इसी क्षण — उसने प्रेम के कारण आपके लिए अपना जीवन त्याग दिया। यह सुसमाचार की परिवर्तनकारी आशा है! इसलिए, ईश्वर की क्षमा को अपनाएं और साहसपूर्वक उसकी दिव्य दया को स्वीकार करने का साहस करें। ईश्वर की अनंत करुणा आपका इंतजार कर रही है! “नहीं डरो, मैंने तुम्हारा उद्धार किया है। मैंने तुमको अपनी प्रजा के रूप में अपनाया है।” (इसायाह 43:1)
'कलकत्ता की सड़कों पर तपती दोपहरी में मेरी मुलाकात एक लड़के से हुई…
प्रार्थना प्रत्येक मसीही के जीवन का एक निर्विवाद, केंद्रीय और महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालाँकि, येशु ने दो और चीजों पर जोर दिया जो स्पष्ट रूप से प्रार्थना के साथ-साथ चलती थीं – उपवास और दान (मत्ती 6:1-21)। चालिसे का तपस्याकाल और आगमन काल के दौरान, हम विशेष रूप से उपरोक्त तीनों तपस्वी प्रथाओं के लिए अधिक समय और प्रयास समर्पित करने के लिए बुलाये जाते हैं। ‘अधिक’ महत्वपूर्ण शब्द है. हम जिस भी काल में हों, आमूल-चूल आत्म-त्याग और दान प्रत्येक बपतिस्मा प्राप्त विश्वासी के लिए एक निरंतर आह्वान है। लगभग आठ साल पहले, ईश्वर ने सचमुच इसके बारे में सोचने पर मुझे मजबूर किया।
अप्रत्याशित मुलाकात
2015 में, मुझे भारत के कोलकत्ता में दुनिया भर के सबसे जरूरतमंद भाइयों और बहनों के साथ रहने और उनकी सेवा करने का आजीवन सपना पूरा करने का महान सौभाग्य और आशीर्वाद मिला, जहां गरीबों को न केवल गरीब बल्कि ‘सबसे गरीब’ के रूप में वर्णित किया जाता है। जिस क्षण मैं हवाई जहाज से उतरा, उसी क्षण से ऐसा लगा मानो मेरी रगों में बिजली दौड़ रही हो। संत मदर तेरेसा के धार्मिक समूह, मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के साथ ईश्वर की सेवा करने का यह अद्भुत अवसर प्राप्त होने पर मुझे अपने दिल में बड़ी कृतज्ञता और प्यार का एहसास हुआ। दिन बड़े थे लेकिन वे विभिन्न गतिविधियों से भरपूर और कृपा से भरे हुए थे। जब मैं वहां था, मेरा एक क्षण भी बर्बाद करने का इरादा नहीं था। प्रत्येक दिन सुबह 5 बजे एक घंटे की प्रार्थना के साथ शुरुआत करने के बाद, पवित्र मिस्सा और नाश्ते के बाद, हम बीमार, निराश्रित और मरणासन्न वयस्कों के लिए बने एक सेवा-आश्रम में सेवा कार्य करने के लिए निकल पड़ते थे। मध्यान्ह भोजन के अवकाश के लिए हम लौटते थे, उस दौरान हल्के भोजन खाने के बाद, जिन धर्मसंघी भाइयों के साथ मैं रह रहा था उनमें से कई ने अपनी बैटरी को रीचार्ज करने के लिए आराम किया, ताकि अपराह्न में और शाम को फिर से उस सेवा-आश्रम जाने के लिए तैयार हो सकें।
एक दिन, घर में आराम करने के बजाय, मैंने अपने परिवार से ईमेल द्वारा संपर्क करने के लिए एक स्थानीय इंटरनेट कैफे खोजने के लिए टहलने का फैसला किया। जैसे ही मैं एक कोने पर मुड़ा, मुझे लगभग सात या आठ साल का एक लड़का मिला। उसके चेहरे पर हताशा, क्रोध, उदासी, चोट और थकान के मिश्रित भाव व्यक्त हो रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे जीवन ने उस पर अपना प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। वह अपने कंधे पर बहुत बड़ा पारदर्शी प्लास्टिक बैग ले जा रहा था, इतना बड़ा भारी भरकम बैग मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था। इसमें प्लास्टिक की बोतलें और अन्य प्लास्टिक के सामान थे और वह भरा हुआ था।
सड़क किनारे हम दोनों चुपचाप खड़े होकर एक-दूसरे का निरीक्षण कर रहे थे, और उसी समय मेरा दिल टूट गया। तब मेरे मन में विचार आया कि मैं इस लड़के को क्या दे सकता हूँ। जैसे ही मैंने अपनी जेब की ओर हाथ बढ़ाया, मेरा दिल बैठ गया, यह महसूस करते हुए कि मेरे पास इंटरनेट उपयोग करने के लिए केवल थोड़ी सी नकदी थी जो एक पाउंड से भी कम था। उसकी आँखों में देखते हुए, जैसे ही मैंने उसे वह सारा पैसा दे दिया, ऐसा लगा मानो उसका पूरा अस्तित्व बदल रहा है। वह बहुत उत्साहित हो गया और उसके चेहरे पर आभार का भाव था, क्योंकि उसकी खूबसूरत मुस्कान उसके सलौने चेहरे पर चमक ला रही थी। हमने हाथ मिलाया और वह आगे बढ़ गया। जब मैं कलकत्ता की उस गली में खड़ा था, तो मैं आश्चर्यचकित रह गया, क्योंकि मुझे पता था कि सर्वशक्तिमान ईश्वर ने इस मुलाकात के माध्यम से मुझे व्यक्तिगत रूप से जीवन बदलने वाला इतना शक्तिशाली सबक सिखाया था।
आशीर्वाद प्राप्त करना
मुझे लगा कि ईश्वर ने उस पल में मुझे खूबसूरती से सिखाया था कि महत्व हमारे उपहार में नहीं है, जिसे हम ज़रूरतमंद को देते हैं, बल्कि जिस आचरण, इरादा और प्यार के साथ उपहार दिया जाता है, वही महत्वपूर्ण है। संत मदर तेरेसा ने इसे खूबसूरती से संक्षेप में रखते हुए कहा, “हम में से हर एक बड़े और महान काम नहीं कर सकते, लेकिन हम बड़े प्यार से छोटे काम कर सकते हैं।” वास्तव में, संत पौलुस ने कहा है, यदि हम अपना सब कुछ दे देते हैं, लेकिन हम में “प्रेम का अभाव है “, तो इससे हमें कुछ भी लाभ नहीं” (1 कुरिन्थी 13:3)।
येशु देने की सुंदरता का वर्णन करते हैं, कि “दो और तुम्हें भी दिया जाएगा;” दबादबा कर, हिला हिलाकर, भरी हुई, ऊपर उठी हुई, पूरी की पूरी नाप तुम्हारी गोद में दाल दी जायेगी, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए नापा जाएगा” (लूकस 6:38)। संत पौलुस हमें यह भी याद दिलाते हैं कि “मनुष्य जो बोता है वही लुनता है” (गलाती 6:7)। हम पाने के लिए नहीं देते हैं, परन्तु जब हम प्रेम में आगे कदम रखते हैं, तब परमेश्वर अपनी अनंत बुद्धि और भलाई में हमें व्यक्तिगत रूप से इस जीवन में और अगले जीवन में भी आशीर्वाद देता है । जैसा कि येशु ने हमें सिखाया, “लेने की अपेक्षा देना अधिक सुखद है” (प्रेरित 20:35)।
'जिंदगी हर किसी पर जोरदार प्रहार करती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ लोग क्यों कभी हारते नहीं हैं?
सऊदी अरब में काम करने वाले प्रत्येक प्रवासी के लिए वार्षिक छुट्टियां वर्ष का मुख्य आकर्षण होती हैं। मैं भी भारत की ओर अपनी वापसी यात्रा का इंतज़ार कर रहा था। यह वार्षिक अवकाश हमेशा क्रिसमस के आसपास होता था।
यात्रा के लिए बस कुछ ही हफ्ते बचे थे, जब मुझे अपने परिवार से एक ईमेल मिला। हमारी एक घनिष्ठ मित्र नैन्सी ने मेरे परिवार को यह कहने के लिए फोन किया था कि येशु मेरी छुट्टियों के लिए विशेष प्रार्थनाएँ माँग रहे हैं। बेशक, मैंने इसे अपनी दैनिक प्रार्थना सूची में शामिल किया।
मेरे अधिकांश प्रवास के दौरान कोई खास असाधारण घटना नहीं हुई। एक एक सप्ताह ज़्यादतर घर में ही तेजी से बीत गए। क्रिसमस आया और परम्परागत उत्साह के साथ मनाया गया। डेढ़ महीने के मौज-मस्ती भरे दिनों के बाद, मेरी छुट्टियों के दिन लगभग ख़त्म हो चुके थे। कुछ भी असाधारण नहीं हुआ और नैंसी का वह संदेश धीरे-धीरे भुला दिया गया।
एक जोरदार मुक्का
अपनी वापसी यात्रा से दो दिन पहले मैंने अपना बैग पैक करने का फैसला किया। सूची में पहला आइटम मेरा पासपोर्ट था, और मैं इसे कहीं भी नहीं ढूंढ पा रहा था! तब एक स्तब्ध कर देने वाला एहसास हुआ: मैं दो दिन बाद की अपनी उड़ान की पुष्टि के लिए उस सुबह इसे ट्रैवल एजेंट के पास ले गया था, और वह पासपोर्ट शायद अभी भी मेरी जींस की जेब में था, जिसे मैं आज सुबह पहना था। हालाँकि, मैंने पहले इस जीन्स को धोने योग्य कपड़ों की टोकरी में फेंक दिया था! और अफ़सोस की बात, मैं ने उस जीन्स को टोकरी में फेंकने के पहले जेब की जांच नहीं की थी।
मैं वॉशिंग मशीन की ओर दौड़ा और ढक्कन खोला। मशीन के अन्दर जींस इधर उधर घूम रही थी। जितनी तेजी से हो सकता था मैंने जींस को बाहर निकाला और अपना हाथ सामने की जेब में डाला; जैसे ही मैंने गीला पासपोर्ट निकाला तो मेरे मन में भय की भावना फैल गई।
अंदर के अधिकांश पन्नों पर लगी सरकारी मुहरें क्षतिग्रस्त हो चुकी थीं। कुछ यात्रा की मुहरें धूमिल हो चुकी थीं और सबसे दु:खद बात यह है कि सऊदी अरब का प्रवेश वीज़ा की स्याही भी धुंधली हो चुकी थी। अब मैं क्या करूं, इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं था। एकमात्र अन्य विकल्प नए पासपोर्ट के लिए आवेदन करना और राजधानी शहर में आगमन पर नया प्रवेश वीजा प्राप्त करने का प्रयास करना था। हालाँकि, मेरे पास इसके लिए पर्याप्त समय नहीं बचा था। मेरी नौकरी संकट में थी।
बचाव के लिए तैयार मेरी फ़ौज
मैंने पासपोर्ट को अपने बिस्तर पर खुला रख दिया और इसे सूखने की उम्मीद में छत का पंखा चालू कर दिया। मैंने अपने परिवार के बाकी सदस्यों को सब कुछ बता दिया। हमेशा की तरह, हम एक साथ प्रार्थना में शामिल हुए, उस स्थिति को येशु के हाथों में सौंपा और उनसे मार्गदर्शन मांगा। मैंने नैंसी को भी फोन करके हादसे के बारे में बताया। वह हमारे लिए भी प्रार्थना करने लगी; इससे अधिक हम और कुछ नहीं कर सकते थे।
उस रात को, नैन्सी ने मुझे यह कहने के लिए फोन किया कि येशु ने उससे कहा था कि उनका दूत मुझे रियाद तक ले जाएगा! दो दिन बाद, प्रार्थना में शक्ति पाकर, मैंने अपने परिवार को अलविदा कहा, अपना सामान चेक किया और रियाद की ओर अपनी पहली उड़ान में चढ़ गया।
मुंबई हवाई अड्डे पर जहां मैंने उड़ानें बदलीं, मैं अंतरराष्ट्रीय टर्मिनल पर आव्रजन मंजूरी के लिए लाइन में शामिल हो गया। थोड़ा चिंतित महसूस करते हुए, मैंने अपना पासपोर्ट खोलकर इंतजार किया। शुक्र है, अधिकारी ने बमुश्किल नीचे देखा और फिर बिना सोचे-समझे पन्ने पर मोहर लगाकर मुझे विदा कर दिया!
ईश्वरीय कृपा से भरा हुआ, मैं ने शांति का अनुभव किया। सऊदी अरब में हवाई जहाज के उतरने के बाद, मैंने प्रार्थना करना जारी रखा और अपना सामान उठाया और आव्रजन जांच चौकी पर लंबी लाइनों में से एक में शामिल हो गया। लाइन धीरे-धीरे आगे बढ़ी क्योंकि अधिकारी प्रवेश वीजा पर मुहर लगाने से पहले प्रत्येक पासपोर्ट की सावधानीपूर्वक जांच कर रहे थे। आख़िरकार, मेरी बारी आ गयी। अपने पासपोर्ट का सही पृष्ठ को खोलकर, मैं उनकी ओर आगे बढ़ा। उसी क्षण, एक अन्य अधिकारी आये और इनसे बातचीत करने लगे। जब वे चर्चा में डूबे हुए थे, आव्रजन अधिकारी ने मेरे पासपोर्ट पर प्रवेश वीजा की मोहर लगा दी, और बमुश्किल पन्नों पर नज़र डाली।
मैं रियाद सकुशल वापस आ गया था, अपने रखवाल स्वर्गदूत को धन्यवाद, जिसने बिल्कुल सही समय पर मुझे “आग की भट्टी में से बाहर निकाला था”।
संरक्षक-अभी, तब और हमेशा
निस्संदेह, इस यात्रा ने रखवाल दूत के साथ मेरे रिश्ते को समृद्ध और सुदृढ़ बना दिया। हालाँकि, येशु ने मेरे लिए एक और सबक रेखांकित किया: मेरा मार्गदर्शन और नेतृत्व एक जीवित ईश्वर द्वारा किया जा रहा है जो मेरे रास्ते में आने वाले हर संकट का मुझे पूर्वाभास दिलाता है। उसकी अंगुली पकड़कर चलने से, उसके निर्देशों को सुनने से, और उसका पालन करने से, मैं किसी भी बाधा को संभाल सकता हूं। “यदि तुम सन्मार्ग से दायें या बाएं भटक जाओगे, तो तुम पीछे से यह वाणी अपने कानों में सुनोगे – सच्चा मार्ग यही है, इसी पर चलो” (इसायाह 30:21)।
अगर नैन्सी ईश्वर की आवाज़ नहीं सुन रही होती, और अगर हम निर्देशानुसार प्रार्थना नहीं कर रहे होते, तो शायद मेरा जीवन पटरी से उतर जाता। तब से हर क्रिसमस, तथा अपनी मातृभूमि की ओर मेरी हर यात्रा, ईश्वर की अग्रणी व्यवस्था और सुरक्षात्मक आलिंगन की याद दिलाती है।
'मैंने एक साल पहले अपना आई-फोन खो दिया था। पहले तो ऐसा लगा जैसे शरीर का कोई अंग कट गया हो। मेरे पास तेरह साल से यह आई-फोन था और यह मेरे स्वयं के एक हिस्से की तरह था। शुरूआती दिनों में, मैंने “नए आई-फोन” को सिर्फ एक फ़ोन की तरह इस्तेमाल किया, लेकिन जल्द ही यह अलार्म घड़ी, कैलकुलेटर, अखबार, मौसम, बैंकिंग और बहुत कुछ बन गया…और फिर…यह हाथ से निकल गया।
आई फोन खो जाने के बाद जब मुझे डिजिटल डिटॉक्स, यानी आई फोन के कारण मेरे मन में व्याप्त विष उन्मूलन की प्रक्रिया में जाने के लिए मजबूर किया गया, तो मेरे सामने कई गंभीर समस्याएँ खड़ी हो गईं। अब से मुझे अपनी शॉपिंग की सूची को कागज़ पर लिखने की ज़रूरत पड़ी। मैं ने एक अलार्म घड़ी और एक कैलकुलेटर खरीदा। पूर्व में, मुझे रोज़ाना सन्देश आने पर जो ‘पिंग’ आवाज़ आई-फोन से सुनाई देती थी और उन संदेशों को जल्दी जल्दी देखने की होड़ थी (और दूसरों द्वारा स्वीकृत किये जाने और चाहने का एहसास), ये सारी बातें अब केवल स्मृतियाँ रह गयीं।
लेकिन अब इस छोटे से धातु का टुकड़ा मेरे जीवन पर हावी नहीं हो रही है, और उससे अब मैं अपार शांति महसूस कर रही थी।
जब यह यंत्र मेरे हाथ से चला गया, तभी मुझे यह एहसास हुआ कि यह मुझसे कितनी प्रकार की मांग करती थी, और मुझ पर हावी होकर मेरा नियंत्रण करती थी। तब भी दुनिया रुकी नहीं। मुझे बस दुनिया के साथ बातचीत करने के नए-पुराने तरीके सीखने थे, जैसे लोगों से आमने-सामने बात करना और घटनाओं की योजना बनाना। मैं इसे बदलने की जल्दी में नहीं थी। वास्तव में, इसके खत्म होने से मेरे जीवन में एक स्वागत योग्य क्रांति आई।
मैंने अपने जीवन में मीडिया का न्यूनतम प्रयोग करना शुरू कर दिया। अब से कोई अखबार, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न या फ़ोन नहीं। मैंने काम के ईमेल, सप्ताहांत पर चुनिंदा यू ट्यूब वीडियोज़ और कुछ स्वतंत्र समाचार पोर्टल के लिए एक आइ-पैड रखा। यह एक प्रयोग था, लेकिन इसने मुझे अमन और शांति महसूस कराया, जिससे मैं अपना समय प्रार्थना और धर्म ग्रन्थ के अध्ययन के लिए उपयोग कर सकी।
मैं अब और अधिक आसानी से परमेश्वर से जुड़ सकती हूँ, जो “कल, आज और युगानुयुग एकरूप रहते हैं।” (इब्रानी 13:8)। पहली आज्ञा “अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे ह्रदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी बुद्धि और सारी शक्ति से प्यार करने और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करने” के लिए हमें कहती है (मारकुस 12:30-31)। मुझे आश्चर्य होता है कि जब हमारा दिमाग दिन के ज़्यादातर समय हमारे फ़ोन पर लगा रहता है, तब हम ऐसा कैसे कर सकते हैं !
क्या हम वाकई अपनी बुद्धि से परमेश्वर से प्यार करते हैं? रोमी 12:2 कहता है: “आप इस संसार के अनुकूल न बने, बल्कि सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें।”
मैं आपको चुनौती देती हूँ कि आप मीडिया से विरक्त रहें, चाहे थोड़े समय के लिए ही क्यों न हो। अपने जीवन में उस परिवर्तनकारी अंतर को महसूस करें। जब हम खुद को थोड़ा आराम देंगे तभी हम अपने प्रभु परमेश्वर को नवीकृत मन से प्रेम कर पायेंगे।
'प्रश्न – मुझे कैसे पता चलेगा कि खेलों के प्रति मेरा प्रेम मूर्तिपूजा है? मैं कॉलेज की छात्रवृत्ति पाने की उम्मीद से दिन में चार घंटे खेल का अभ्यास करता हूं और इसके बारे में हर समय सोचता रहता हूं| खेल में निपुण टीमों को ध्यानपूर्वक देखता रहता हूं। मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूं लेकिन परमेश्वर के प्रति मुझे वैसा आकर्षण नहीं होता जैसा खेलों के प्रति होता है। खेलों के प्रति मेरा जुनून कब मूर्तिपूजा की सीमा पार कर सकता है ?
उत्तर – मैं भी खेलों के प्रति बहुत लालायित हूँ। मैंने हाई स्कूल और कॉलेज में बेसबॉल खेला, और यहां तक कि एक पुरोहित के रूप में, मैं अल्टीमेट फ्रिसबी, सॉकर और अमेरिकी फुटबॉल खेलना जारी रखता हूं। संत पापा जॉनपॉल द्वितीय ने एक बार कहा था, खेल “सद्गुण का क्षेत्र” हो सकते हैं। लेकिन हमारे आधुनिक दुनिया में, हम अक्सर खेलों को बहुत ऊंचा स्थान देते हैं… शायाद बहुत ही अधिक ऊंचा स्थान|
मेरे कॉलेज के बेसबॉल कोच का एक महान कथन था: “खेलों में कुछ भी शाश्वत नहीं है।” इस कथन ने मुझे हर चीज़ को परिप्रेक्ष्य में रखने में मदद की है। चैंपियनशिप जीतने से या खेल हारने से अनंत जीवन पर कोई फरक नहीं पड़ेगा। इसका उद्देश्य आनंद लेना है और हमें व्यायाम करने और टीम वर्क, अनुशासन, साहस और निष्पक्षता का अभ्यास करने का अवसर देना है – लेकिन अगर किसी एथलेटिक प्रतियोगिता का शाश्वत जीवन पर कोई परिणाम नहीं होता।
तो हम खेलों को उसके उचित परिप्रेक्ष्य में कैसे रखें? हम यह जानने के लिए कि खेल (या कुछ और) कब एक मूर्ति बन गया है इस केलिए हम तीन बातों पर गौर करें:
पहला है, समय: – हम खेल में कितना समय बिताते हैं या हम परमेश्वर के साथ कितना समय बिताते हैं? मैंने एक बार एक कक्षा में बैठे युवाओं को प्रतिदिन अपने घर में जाकर दस मिनट प्रार्थना में बिताने की चुनौती दी थी, और एक लड़के ने मुझे बताया कि यह असंभव है क्योंकि वह वीडियो गेम खेलता था। मैंने उससे पूछा कि वह कितना समय विडियो गेम पर बिताता है, तो उसने मुझे बताया कि वह अक्सर दिन में आठ से ग्यारह घंटे खेलता है| यदि किसी व्यक्ति के पास गंभीर प्रार्थना जीवन के लिए प्रतिदिन पंद्रह से बीस मिनट का न्यूनतम समय नहीं है, क्योंकि वे युवा वह समय खेलों में बिता रहे हैं, तो यह वास्तव में मूर्तिपूजा है। इसका मतलब यह नहीं है कि ये दोनों पूरी तरह बराबर होना चाहिए – यदि आप प्रतिदिन दो घंटे अभ्यास करते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपको आवश्यक रूप से प्रतिदिन दो घंटे प्रार्थना करने की आवश्यकता है। लेकिन आपके प्रार्थनामय जीवन के लिए आपके पास पर्याप्त समय होना चाहिए ।
इसमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारा खेल रविवार की आराधना के साथ न टकराए। मेरा भाई, एक उत्कृष्ट फुटबॉल खिलाडी था, उन्हें एक बार खेल का एक महत्वपूर्ण अभ्यास छोड़ना पड़ा क्योंकि यह अभ्यास ईस्टर रविवार की सुबह हो रहा था। जो कुछ भी हम रविवार की मिस्सा के बजाय करते हैं वह हमारी मूर्ति बन जाता है |
परमेश्वर को हमारे बलिदान का एक अभिन्न हिस्सा बनाने के लिए समय देना भी इसमें शामिल है । क्या आपके पास अपने गिरजाघर के या अन्य कोई स्थानीय संस्था के दयाकार्य में स्वयंसेवा करने के लिए समय है? क्या आपके पास अपने दैनिक कर्तव्यों को अच्छी तरह से करने के लिए तथा (अपनी पढ़ाई को अपनी पूरी क्षमता के अनुसार करने, घरेलू काम करने और एक अच्छे बेटे/बेटी और मित्र होने) केलिए पर्याप्त समय है?? यदि खेलों में इतना समय लगता है कि दूसरों को देने के लिए कोई समय नहीं है, तो हम संतुलन से बाहर हैं।
दूसरा है पैसा: हम खेलों, उपकरणों, प्रशिक्षकों, जिम सदस्यताओं पर कितना पैसा खर्च करते हैं – यहाँ तक कि हम गिरजाघर में, दया के कार्य में या गरीबों को कितना पैसा देते हैं? हम जहां अपना पैसा खर्च करते हैं वह निर्धारित करता है कि हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं । फिर, यह आवश्यक रूप से पूरी तरह से समान अनुपात नहीं है – लेकिन उदारता परमेश्वर का एक प्रमुख गुण है, जिससे सभी अच्छी चीजें आती हैं।
अंत में है उत्साह: अमेरिका में, जहाँ मैं रहता हूँ, अमेरिकन फुटबॉल हमारा राष्ट्रीय धर्म है। जब मैं देखता हूँ कि कई पुरुष ग्रीन बे पैकर्स के खेल में शून्य से नीचे के तापमान में बाहर बैठते हैं, अपनी शर्ट उतारकर टीम के रंग में पेंट किए हुए अपने सीने का प्रदर्शन करते हैं, फोम की टोपी को पहने हुए है (यह एक अजीब परंपरा है!), अपने गला फाड़कर, फेफड़ा खोलकर चिल्लाते हैं तो मुझे आश्चर्य होता है उन्हें देखता हूँ… और इन्हीं में से कई पुरुष रविवार सुबह की आराधना में गिरजाघर में उबाऊ होंगे, मिस्सा बलिदान के जवाब को केवल अनमने ढंग से कम आवाज़ में बडबडाते हैं (यदि वे गिरजाघर तक पहुँच गए तो)।
आपको कौन सी चीज़ उत्साहित करता है? क्या आपको एक खेल प्रतियोगिता से अधिक उत्साह होता है, जिसे एक साल बाद याद नहीं किया जाएगा, या पवित्रता के लिए जोखिम भरी, संघर्ष भरी खोज की चुनौती और आनंद, जिससे ईश्वर के राज्य को आगे बढ़ाने, आत्माओं के लिए युद्ध करने का अवसर प्राप्त होता है, जिसके अनंत फल होते हैं? वह एक अनंत विजय की पीछे दौड़ लगाना जैसा है, और यह जीत आपको प्राप्त तमाम खेल के ट्राफियों को फीका बना देगीI
अगर आपको लगता है कि आपका खेल के प्रति उत्साह अभी भी मजबूत है, तो ख्रिस्तीय धर्म क्या है इसपर सोच विचार और ध्यान करें। संत बनने की खोज से अधिक रोमांचक और उत्कृष्ट इस पृथ्वी पर कुछ भी नहीं है। इसमें एक अच्छे खिलाड़ी के कई विशेषताएँ शामिल हैं: स्व-त्याग, समर्पण और एकल-मन से लक्ष्य की पुनरावृत्ति। लेकिन हमारा लक्ष्य अनंत जीवन से गुंजायमान है!
इन तीन बातों को विचार कीजिये— कहां आप अपना समय बिताते हैं, आप अपने पैसे कैसे खर्च करते हैं, और आपको क्या उत्साहित करता है। कुछ चीज़ें हमारे लिए मूर्ती कब बन जाती हैं, इसे समझने केलिए यह प्रक्रिया हमें मदद देगी।
'बहुत धनी, सर्व-ज्ञानी, अति-सम्मानित और आदरणीय, शक्तिशाली असरदार व्यक्ति … सूची अंतहीन है, लेकिन आप कौन हैं, इस सवाल की बात जब आती है तो ये सब विशेषण मायने नहीं रखते।
60 के दशक की शुरुआत के दौर में, द बर्ड्स नामक लोक-रॉक समूह का एक प्रचलित और लोकप्रिय गाना था: टर्न! टर्न! टर्न! इसे बाइबिल के उपदेशक ग्रन्थ के तीसरे अध्याय से रूपांतरित किया गया था। मुझे यह गाना बहुत पसंद आया। इसने मुझे पूरा उपदेशक ग्रन्थ को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, जो मुझे बहुत अजीब लगा। यह इसलिए अजीब था क्योंकि, गाने के बोलों के विपरीत, मेरे लिए ग्रन्थ का बाकी हिस्सा, खासकर पहला अध्याय, मानवीय स्थिति का एक अविश्वसनीय वर्णन था।
उपदेशक ग्रन्थ के लेखक कोहेलेथ, अपने आप को बूढ़ा व्यक्ति कहता है जिसने जीवन में भौतिक वस्तुओं का यह सब सुख देखा है, यह सब किया है, और यह सब अनुभव किया है। उसने जीवन की हर चीज का सुख भोगा है: वह बहुत धनी है, उसने बहुत ज्ञान संचित किया है, अपने साथियों द्वारा अच्छी तरह से सम्मानित है, जीवन को सही दिशा में संचालित करने का सामर्थ्य है, और मूल रूप से उसके रास्ते में आ चुके हर सुख को भोगा है। लेकिन, यह सब देखते हुए, वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
क्यों नहीं? मुझे लगता है कि उसने गहराई से महसूस किया है कि आपके पास क्या है, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि आप कौन हैं। ऐसा क्यों? इसका कारण अपेक्षाकृत सीधा और सरल है – दुनिया की चीजें हमेशा हाथ से निकल जाती हैं और गायब हो जाती हैं क्योंकि वे क्षणभंगुर, अस्थाई, सीमित और अल्पकालिक हैं।
इससे पहले कि आप का जीवन आपसे ले लिया जाएं
हम कौन हैं यह हमारे नैतिक और आध्यात्मिक चरित्र का मामला है, हमारी आत्मा का मामला है। उत्पत्ति ग्रन्थ के शुरुआती अध्यायों में, हमें पता चलता है कि हम ईश्वर के प्रतिरूप और सादृश्य में बनाए गए हैं, जो हमें ईश्वर के असली अस्तित्व और अनंतता में भाग लेने के लिए तैयार करता है। सीधे शब्दों में कहें तो, हम ईश्वर के साथ अपने रिश्ते में वही हैं जो हम हैं, न कि हमारे पास क्या है। हम मूल रूप से आध्यात्मिक और धार्मिक प्राणी हैं।
सुसमाचार में धनी मूर्ख के दृष्टांत में, येशु उपरोक्त सत्य से मिलती जुलती बात कहते हैं, लेकिन इससे बढ़कर कहीं आगे जाते हैं। येशु प्रभावी रूप से उस व्यक्ति का मजाक उड़ाते हैं जो अपना पूरा भरोसा अपनी संपत्ति और सुरक्षा के प्रति रखता है, इस गलत धारणा में कि उसकी संपत्ति उसे आनंद देगी। वह व्यक्ति न केवल धनी है, बल्कि उसकी संपत्ति में नाटकीय रूप से वृद्धि होने वाली है क्योंकि उसकी फसल अच्छी हुई है। तो, वह क्या करता है? वह अपने पुराने खलिहानों को गिराने और अपने अतिरिक्त दौलत को संग्रहीत करने के लिए बड़े खलिहान बनाने का संकल्प लेता है। उस मनुष्य ने अपने जीवन को कई बातों पर आधारित किया है: (1) दुनिया की चीज़ें मूल्यवान हैं; (2) कई साल वह ऐसी जीवनशैली जियेगा जो उसकी महत्वाकांक्षाओं को साकार करने में काम आएगी; (3) उसका धन शांति और उन्मुक्त असीमित आनंद की भावना को बढ़ावा देगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, उसके पास किसी बात की कमी नहीं है।
इसके विपरीत, हे मूर्ख! कहकर परमेश्वर ने उससे जो वचन कहा, वह उसकी योजनाओं को निरर्थक कर देता है: “हे मूर्ख, इसी रात प्राण तुझ से ले लिए जायेंगे, और तू ने जो इकट्ठा किया है, वह अब किस का होगा?” (लूकस 12:20) येशु उसे बता रहे हैं कि परमेश्वर उसकी सम्पत्ति नहीं, बल्कि उसका जीवन माँग रहा है—वह कौन है! और यह माँग दूर के भविष्य में नहीं, बल्कि यहीं, अभी की जा रही है।
इस रात, तुम्हारी आत्मा, तुम्हारा हृदय, तुम्हारा जीवन तुमसे माँग लिया जाएगा। “इसलिए,” येशु कहते हैं, “यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं हैं।” (लूकस 12:21) ‘जीवन में सुख’ के बजाय, अर्थात्, संसार की वस्तुओं के संचय के बजाय, येशु उसे अपना जीवन समर्पित करने का प्रस्ताव देते हैं। “ईश्वर के राज्य की खोज में लगे रहो, ये सब चीज़ें भी तुम्हें यों ही मिल जाएँगी।” (लूकस 12:31)
अंततः वास्तविक
प्रिय पाठक, यह मुख्य बिंदु है – एक मौलिक या तो यह या वह विकल्प: क्या मेरी नज़र ईश्वर पर है या दुनिया की वस्तुओं पर? यदि पहला, तो हम मानव होने की अपनी सच्ची गरिमा को जीएँगे। हम ईश्वर को अपने पूरे दिल और आत्मा से प्यार करेंगे और अपने पड़ोसी को अपने जैसा ही प्यार करेंगे, क्योंकि हमारी नीव अंततः जो वास्तविक है, उसमें निर्मित है । हम ईश्वर, अपने पड़ोसी और पूरी सृष्टि के साथ सही रिश्ते में होंगे।
दुनिया की वस्तुओं से जुड़े रहना संभवतः दिल की इच्छा को संतुष्ट नहीं कर सकता, क्योंकि वे हमें प्यार नहीं कर सकते, और प्यार पाना ही आत्मा की मूल इच्छा है। इसके बजाय, दुनिया की वस्तुओं से प्यार पाने का जुनून और लत अधिक भूख का कारण बनती है और चिंता की अत्यधिक बढ़ी हुई भावना को जन्म देती है। सीधे शब्दों में कहें तो, अगर हम अपने जीवन में पवित्र और पारलौकिक को अस्वीकार करते हैं, तो हम अनिवार्य रूप से अपने अस्तित्व के प्रति भय, अपने साथी मनुष्यों से खालीपन और अलगाव की भावना, गहरे अकेलेपन तथा अपराधबोध का अनुभव करेंगे।
इसका अंत इस तरह नहीं होना चाहिए। येशु हमें इस बात पर यथार्थवादी नज़र डालने के लिए आमंत्रित करते हैं कि कैसे धन हमारे दिलों को गुलाम बना सकता है, और हमें उस जगह से विचलित कर सकता है जहाँ हमारा सच्चा खजाना है, जिसकी पूर्ती स्वर्ग में परमेश्वर के राज्य के रूप में होती है। इसी तरह, संत पौलुस ने कलोसियों को लिखे अपने पत्र में हमें याद दिलाया कि “आप पृ्थ्वी पर की नहीं, ऊपर की चीज़ों की चिंता किया करें” (3:1-2)।
इसलिए, हमारे लिए यह जाँचना ज़रूरी है कि हम वास्तव में किससे प्यार करते हैं। सुसमाचार के अनुसार जिया गया प्रेम सच्ची खुशी का स्रोत है, जबकि भौतिक वस्तुओं और धन की अतिरंजित और बिना किसी प्रतिफल की खोज अक्सर बेचैनी, चिंता, दूसरों के साथ दुर्व्यवहार, हेरफेर और वर्चस्व का कारण बन जाता है।
उपदेशक ग्रन्थ, लूकस के सुसमाचार और पौलुस के पत्र से प्राप्त सभी पाठ इस प्रश्न की ओर संकेत करते हैं: ‘मैं कौन हूँ?’, आप कौन है यह आपके पास जो है उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। जो बात मायने रखती है वह यह है कि आप ईश्वर की प्रिय संतान हैं, जिन्हें अंततः ईश्वर के प्रेम में विश्राम करने के लिए बनाया गया है।
'तपस्या काल आने वाला है। क्या आप को अपने पसंदीदा गाने छोड़ने में तकलीफ होगी?
बचपन में, मैं बहुत ही शोरगुल करने वाली बच्ची थी; मैं बहुत अधिक गपशप करती थी और संगीत के प्रति मेरा गहरा प्रेम था। मेरी सबसे पुरानी यादों में से एक है, जब मैं अकेले ही रेडियो चालू करती थी और उस छोटे से बक्से से जादुई तरीके से निकलता हुआ संगीत सुनकर आनंद विभोर हो जाती थी। यह मेरे लिए एक पूरी नई दुनिया में प्रवेश करने जैसा था!
मेरा पूरा परिवार संगीत से प्यार करता था, और हम अक्सर गाते थे, पियानो बजाते थे, गिटार बजाते थे, शास्त्रीय संगीत सुनते थे, या अपनी खुद की धुनें बनाते थे। मुझे याद है कि मैं सोचती थी कि अगर बैकग्राउंड में कोई मधुर साउंडट्रैक बज रहा होता तो जीवन कितना बेहतर होता।
मैंने संगीत के प्रति अपने प्यार को अपने बच्चों में भी डाला। एक युवा परिवार के रूप में, हमारे पास प्रार्थना के समय केलिए और लगभग हर अवसर के लिए गाने होते थे। अब, हम सभी किसी न किसी रूप में संगीत का नेतृत्व करते हैं, और मैं वर्तमान में दो पल्लियों के लिए गायक मंडली की अगुआ के रूप में सेवा करती हूँ। संगीत बहुत खुशी देता है और यह जीवन का स्रोत है!
हालांकि, एक दिन मुझे अचानक एहसास हुआ कि मुझे संगीत से ज़रुरत से ज़्यादा लगाव था।
उस तपस्या काल में, मैंने कार में संगीत सुनना छोड़ दिया। यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि मैं हमेशा गाड़ी चलाते समय संगीत सुनती थी। इस आदत को छोड़ना बहुत मुश्किल था। हर बार जब मैं अपनी कार में बैठती, तो मेरा हाथ गाने की सी.डी. लगाने के लिए उठता।
लेकिन मैंने दृढ़ता से मेहनत की और अंततः अपने हाथ को इस तरह प्रशिक्षित किया कि वह किसी भी बटन को न छुए, बल्कि इसके बजाय क्रूस का चिह्न बनाए। फिर, मैंने संगीत सुनने की जगह प्रार्थना करना शुरू कर दिया, खास तौर पर रोज़री माला जपना। यह सात साल पहले की बात है, और मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मुझे प्राप्त इस आराम के समय केलिए मैं इश्वर के प्रति बहुत आभारी हूँ।
ईश्वर के साथ आराम का समय हमें वह जगह देता है जिससे हमें बाहरी चीजों से अलग थलग होकर अपने आंतरिक जीवन से जुड़ने के लिए अवसर मिलता है। यह हमें शांति पाने में मदद करता है। यह हमें ईश्वर की ओर झुकने और उसे बेहतर ढंग से सुनने में मदद करता है। याद करें कि कैसे प्रेरित संत योहन ने अंतिम भोज में येशु की छाती से सटकर आराम किया था। अब, कल्पना करें कि आप येशु के इतने करीब झुके हुए हैं कि आप उनके दिल की धड़कन को महसूस कर सकते हैं।
ईश्वर चाहता है कि हम उसके पास झुकें। ईश्वर चाहता है कि हम अपने दैनिक जीवन में एक ऐसा स्थान बनाएँ जहाँ हम उनके पवित्र हृदय पर अपना सिर टिकाएँ और उससे सीखें या बस अपनी थकी हुई आत्माओं को आराम दें।
संगीत का प्रेमी होने के नाते, मेरे दिमाग में हमेशा एक धुन चलती रहती थी, और कई बार, इससे वास्तव में विकर्षण होता था। अब, अगर मेरे दिमाग में कोई धुन चलती है, तो मैं रुक जाती हूँ और ईश्वर से पूछती हूँ कि क्या वह इसके माध्यम से मुझसे कुछ संवाद कर रहा है। उदाहरण के लिए, आज सुबह, मैं एक ऐसी धुन के साथ उठी जो मैंने वर्षों से नहीं सुनी थी, “मैं हमेशा प्रभु की दया के बारे में गाऊंगा; मैं गाऊंगा, मैं गाऊंगा।”
संगीत दिल की भाषा है। मेरा मानना है कि ईश्वर हमारे द्वारा गाए गए भजनों से प्रसन्न होता है और वह अक्सर हमारे लिए गाता है। इसलिए, मैं अभी भी गाती हूँ! हालाँकि, मैं विशेष रूप से धन्य महसूस करती हूँ जब गायन शान्ति या मौन की जगह पर ले जाता है; इसे मैं ‘गर्भवती मौन’ कहना पसंद करती हूँ, क्योंकि इससे हमें प्रभु के साथ गहन अंतरंगता का स्थान प्राप्त होता है। मैं पवित्र संस्कार प्राप्त करने के ठीक बाद इस शांत स्थान का विशेष रूप से आनद लेती हूँ।
हमारे व्यस्त जीवन में, प्रभु के साथ आराम का समय निकालना अक्सर एक संघर्ष होता है। रोजरी माला की प्रार्थना करने से मुझे इस संघर्ष में बहुत मदद मिलती है, चूँकि हमारी धन्य माँ चिंतन की चैंपियन हैं इसलिए यह समझ में आता है। “मरियम ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा और वह इन पर विचार किया करती थी ।” (लूकस 2:19)
येशु ने स्वयं हमें मौन में प्रवेश करने के महत्व का उदाहरण दिया, क्योंकि वह अक्सर अपने स्वर्गीय पिता के साथ अकेले समय बिताने के लिए एक शांत स्थान पर चले जाते थे।
पिछली गर्मियों में एक दिन, हमारे परिवार के पुनर्मिलन के दौरान, भीड़ भरे समुद्र तट पर, मैंने खुद को जपमाला से विरक्त और बेचैन पाया। मैं प्रभु के साथ शांत समय बिताना चाहती थी। मेरी बेटी ने पहचान लिया कि मैं प्रसन्न नहीं थी और उसने हलके में इसका जिक्र भी किया। मैंने एक घंटे के लिए अकेले झील के अन्दर जाने का फैसला किया और पाया कि अगर मैं पानी के नीचे चली गयी, तो मुझे अपना शांत क्षेत्र मिल जाएगा। मैंने उस दोपहर तैराकी करते हुए एक बार रोजरी माला की प्रार्थना की और अपनी शांति वापस पा ली।
“जितना अधिक हम प्रार्थना करते हैं, उतना ही अधिक हममें प्रार्थना करने की इच्छा पैदा होती है। एक मछली की तरह, जो पहले पानी की सतह पर तैरती है, और बाद में नीचे गोता लगाती है, और हमेशा गहराई में जाती है; उसी तरह आत्मा है, डुबकी लगाती है, गोता लगाती है, और ईश्वर के साथ बातचीत की मिठास में खुद को गहराई में खो देती है।” – संत जॉन विएनी।
हे पवित्र आत्मा, हमें वह शांत समय खोजने में मदद कर, जिसकी हमें बहुत ज़रूरत है, ताकि हम तेरी आवाज़ को बेहतर ढंग से सुन सकें और बस तेरे आलिंगन में आराम कर सकें।
'प्रश्न: मेरे प्रोटेस्टेंट मित्र कहते हैं कि कैथलिक लोगों की यह मान्यता है कि हमें अपना उद्धार अर्जित करने या मेहनत करके खरीदने की ज़रुरत है। वे कहते हैं कि उद्धार केवल विश्वास से होता है, और जिसे येशु ने क्रूस पर हमारे लिए पहले ही कर दिया है हम उस बात में कुछ भी नहीं जोड़ सकते। लेकिन क्या हमें स्वर्ग जाने के लिए अच्छे काम नहीं करने चाहिए?
उत्तर: यह प्रोटेस्टेंट और कैथलिक दोनों समुदायों की एक बहुत बड़ी गलतफहमी है। यह छोटी-छोटी ईश शात्रीय मुद्दे लग सकते हैं, लेकिन वास्तव में इसका हमारे आध्यात्मिक जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। सच्चाई यह है: हम विश्वास का जीवन जीने से मुक्ति पाते हैं, अर्थात येशु मसीह में हमारा विश्वास जो हमारे शब्दों और कार्यों में व्यक्त होता है, उसे जीने से हमें मुक्ति मिलती है।
हमें स्पष्ट मालूम होना चाहिए – हमें अपने उद्धार को अर्जित करने या खरीदने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ऐसा नहीं है कि उद्धार कोई पुरस्कार हो जिसे हम अच्छे कर्मों को करने के एक निश्चित स्तर तक पहुँचकर पा सकते हैं। इस पर विचार करें: सबसे पहले किसकी रक्षा हुई? येशु के अनुसार, वह भला डाकू था। जब उसे उसके बुरे कर्मों के लिए सही तरीके से सूली पर चढ़ाया जा रहा था, तो उसने येशु से दया के लिए पुकारा, और प्रभु ने उससे वादा किया: “मैं तुमसे यह कहता हूँ, तुम आज ही परलोक में मेरे साथ होगे।” (लूकस 23:43) तो, उद्धार उस मज़बूत विश्वास, भरोसे और समर्पण में निहित है जो येशु ने ईश्वर की दया मोलने के लिए क्रूस पर किया था।
यह क्यों महत्वपूर्ण है? क्योंकि कई कैथलिक लोग सोचते हैं कि हमें बचाए जाने के लिए बस इतना करना है कि ‘हम अच्छा इंसान बनें’ – भले ही उस व्यक्ति का वास्तव में प्रभु के साथ कोई जीवंत संबंध न हो। कितने लोग मुझसे ऐसा कहते हैं: “ओह, मेरे चाचा कभी मिस्सा में नहीं गए या प्रार्थना नहीं की, लेकिन वे एक अच्छे इंसान थे जिन्होंने अपने जीवन में कई अच्छे काम किए, इसलिए मुझे पता है कि वे स्वर्ग में हैं।” जबकि हम निश्चित रूप से आशा करते हैं कि चाचा ईश्वर की दया से बच जाएंगे, यह हमारी दयालुता या अच्छे कार्य नहीं हैं जो हमें बचाते हैं, बल्कि क्रूस पर येशु की मुक्तिदायी मृत्यु हमें बचाती है।
क्या होगा अगर किसी मुज़रिम पर किसी अपराध के लिए मुकदमा चलाया जाए, लेकिन वह न्यायाधीश से कहे, “महोदय, मैंने अपराध किया है, लेकिन यह भी देखिये कि मैंने अपने जीवन में कितने अच्छे काम किए हैं!” क्या न्यायाधीश उसे छोड़ देंगे? नहीं—उसे अभी भी अपने किए गए अपराध की कीमत चुकानी होगी। इसी तरह, हमारे पापों का कर्ज है —और येशु मसीह को उन पापों का कर्ज चुकाना पडा। पाप के कर्ज का यह भुगतान हमारी आत्माओं पर विश्वास के माध्यम से लागू किया जाता है।
लेकिन, विश्वास केवल एक बौद्धिक अभ्यास नहीं है। इसे जीना चाहिए। जैसा कि संत याकूब लिखते हैं: “मनुष्य केवल विशवास से नहीं, बल्कि कर्मों से धार्मिक बनता है” (2:24)। यह कहना गलत होगा: “ठीक है, मैं येशु पर विश्वास करता हूँ, इसलिए अब मैं जितना चाहूँ उतना पाप कर सकता हूँ।” इसके विपरीत, क्योंकि हमें क्षमा कर दिया गया है और हम ईश्वर के राज्य के वारिस बन गए हैं, ठीक इसलिए हमें ईशराज के वारिसों की तरह, राजा के बेटे और बेटियों की तरह व्यवहार करना चाहिए।
यह हमारे उद्धार को खरीदने या कमाने की कोशिश करने से बिलकुल भिन्न है। चूंकि हमें माफ़ी मिलने की उम्मीद है – इसलिए हम अच्छे काम नहीं करते, बल्कि इसलिए कि हमें पहले ही क्षमा कर दिया गया है। हमारे अच्छे काम इस बात का संकेत हैं कि येशु की क्षमा हमारे जीवन में जीवित और सक्रिय है। आखिरकार, येशु हमें बताते हैं: “यदि तुम मुझे प्यार करोगे, तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे।” (योहन 14:15) यदि कोई पति अपनी पत्नी से प्रेम करता है, तो वह उसे प्यार का तोहफा देने के लिए ठोस तरीके खोजेगा – उसे फूल देगा, बर्तन धोएगा, उसे प्रेम पत्र लिखेगा। वह कभी नहीं कहेगा: “ठीक है, हम शादीशुदा हैं, और वह जानती है कि मैं उससे प्यार करता हूँ, इसलिए अब मैं जो चाहूँ कर सकता हूँ।” इसी तरह, एक आत्मा जिसने येशु के दयालु प्रेम को जाना है, वह स्वाभाविक रूप से उसे प्रसन्न करना चाहेगी।
तो, आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए, कैथलिक और प्रोटेस्टेंट वास्तव में इस मुद्दे पर जितना वे जानते हैं, उससे कहीं ज़्यादा करीब हैं! हम दोनों का मानना है कि हम विश्वास से बचाए गए हैं – एक जीवंत विश्वास से, जो उद्धार के भव्य, मुफ़्त उपहार के लिए धन्यवाद के संकेत के रूप में अच्छे कार्यों के जीवन में व्यक्त होता है जिसकी जीत मसीह ने क्रूस पर हमारे लिए हासिल की थी।
'मेरे काम से थोड़ा सा भी परिचित कोई भी व्यक्ति जानता है कि मैं धार्मिक सत्य की ओर से जोरदार तर्कों की वकालत करता हूं। मैंने लंबे समय से उस चीज़ को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है जिसे शास्त्रीय रूप से धर्मशास्त्र तार्किक मंडन के रूप में जाना जाता है, जो संशयवादी विरोधियों के खिलाफ आस्था के दावों के मंडन का तरीका है। और मैंने बार-बार मूर्खतापूर्ण कैथलिकवाद का विरोध किया है। इसके अलावा, मैंने कई वर्षों से सुसमाचारीकरण की सेवा में सुंदरता के महत्व पर जोर दिया है। सिस्टाइन चैपल की छत्त, सैंटे चैपल, डांटे की डिवाइन कॉमेडी, बाख द्वारा संत मत्ती रचित पीड़ा-वर्णन की संगीतमय प्रस्तुति, टी.एस. एलियट की चार चौकियाँ, और कैथेड्रल ऑफ़ चार्ट्रेस सभी में कला के माध्यम से सुसंचार के सन्देश को असाधारण तरीके से समझाने की शक्ति है, जो कई मायनों में औपचारिक तर्कों से भी आगे निकल जाती है। इसलिए मैं सत्य के मार्ग और सौंदर्य के मार्ग की पुष्टि करता हूं। लेकिन मैं विश्वास को प्रचारित करने के साधन के रूप में, पारलौकिक तत्वों में से तीसरे, अर्थात्, भलाई की भी सिफारिश करता हूं। नैतिक शुद्धता, मसीही तरीके से ठोस जीवन जीना, खासकर जब यह वीरतापूर्ण तरीके से किया जाता है, यहां तक कि सबसे कठोर अविश्वासी को भी विश्वास में ले जा सकता है, और इस सिद्धांत की सच्चाई सदियों से बार-बार साबित हुई है।
ईसाई आंदोलन के शुरुआती दिनों में, जब यहूदी और यूनानी दोनों ही नवजात विश्वास को या तो निंदनीय या तर्कहीन मानते थे, यह येशु के अनुयायियों की नैतिक अच्छाई और सेवा थी जो कई लोगों को विश्वास में लाई। कलीसिया के आचार्य तेर्तुलियन अपनी प्रसिद्ध कहावत में प्रारंभिक कलीसिया के प्रति गैर विश्वासियों की आश्चर्यजनक प्रतिक्रिया व्यक्त की: “ये ईसाई एक दूसरे से कैसे प्यार करते हैं!” ऐसे समय में जब विकृत शिशुओं को तिरस्कृत किया जाना आम बात थी, जब गरीबों और बीमारों को अक्सर उनके हाल पर छोड़ दिया जाता था, और जब जानलेवा प्रतिशोध या बदला लेना स्वाभाविक बात थी, प्रारंभिक ईसाई अवांछित बच्चों की देखभाल करते थे, बीमारों और मरनेवालों को सहायता देते थे, और विश्वास के उत्पीड़कों को माफ करने का कार्य करते थे। और यह अच्छाई न केवल उनके अपने भाइयों और बहनों तक फैली, बल्कि आश्चर्यजनक रूप से, बाहरी लोगों और दुश्मनों तक भी फैली। नैतिक शालीनता के इस विशिष्ट रूप से अत्यधिक रूप ने कई लोगों को आश्वस्त किया कि येशु के इन शिष्यों के बीच कुछ अजीब और अनोखी बात चल रही थी, कुछ शानदार और दुर्लभ। इस भलाई की सेवा कार्य ने उन्हें इसाई धर्म को गहराई से देखने और समझने के लिए मजबूर किया।
रोमन साम्राज्य के पतन के बाद सांस्कृतिक और राजनीतिक अराजकता के दौरान, कुछ आध्यात्मिक वीर ईसाई जीवन का एक क्रांतिकारी रूप जीने के लिए गुफाओं, रेगिस्तानों और पहाड़ियों पर चले गए। इन प्रारंभिक तपस्वियों से, मठवासी जीवन का उदय हुआ, जो एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक आंदोलन था जिसने समय के साथ यूरोप की पुन: सभ्यता की अगुवाई की। बहुत से लोगों को जो बात आकर्षक लगी वह थी मठों के तपस्वियों की प्रतिबद्धता की बड़ी तीव्रता, गरीबी को अपनाना और ईश्वरीय विधान में उनका अटूट विश्वास। एक बार फिर, यह सुसमाचार के आदर्श को जीने का तरीका ही था जो ठोस साबित हुआ। ऐसा ही कुछ तेरहवीं शताब्दी में सामने आया, जब कलीसिया में, विशेषकर पादरियों के बीच बड़े घोटालों और भ्रष्टाचारों का समय था। फ्रांसिस, डोमिनिक और उनके सहयोगियों ने भिक्षुक धर्मसंघों की शुरुवात की, जो भीख मांगने वाले धर्मसंघ कहने का एक आकर्षक तरीका है। डोमिनिकन और फ्रांसिस्कन के विश्वास, सादगी, गरीबों की सेवा और नैतिक निष्कलंकता ने कलीसिया में क्रांति ला दी और ईसाइयों को जो अपने विश्वास में ढीले और उदासीन हो गए थे, उन्हें प्रभावी ढंग से फिर से सुसमाचार से मज़बूत करने में ये भिक्षुक धर्मसंघ कामयाब हुए।
और हम अपने समय में भी वही गतिशीलता पाते हैं। जॉन पॉल द्वितीय बीसवीं सदी के दूसरे सबसे शक्तिशाली सुसमाचार प्रचारक थे, लेकिन निर्विवाद रूप से पहली सुसमाचार के प्रचारक एक महिला थीं, जिन्होंने कभी भी ईश मीमांसा या धर्मशास्त्र मंडन का कोई बड़ा काम नहीं लिखा, जिन्होंने कभी भी सार्वजनिक बहस में संशयवादियों को शामिल नहीं किया, और जिन्होंने कभी भी धार्मिक कला का कोई सुंदर कलाकृति का निर्माण नहीं किया। निस्संदेह, मैं कोलकाता की संत टेरेसा की बात कर रहा हूँ। पिछले सौ वर्षों में किसी ने भी इस साधारण साध्वी से अधिक प्रभावी ढंग से ईसाई धर्म का प्रचार नहीं किया। वे बेहद गरीबी में रहती थी और उसने हमारे समाज में सबसे उपेक्षित लोगों की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया था।
ग्रेगरी नामक युवक के बारे में एक अद्भुत कहानी बताई गई है, जो ईसाई धर्म के मूल सिद्धांतों को सीखने के लिए अलेक्सांद्रिया के महान ओरिजिन के पास आया था। ओरिजन ने उससे कहा, “पहले आओ और हमारे समुदाय के जीवन को साझा करो और तब तुम हमारे सिद्धांतों को समझोगे।” युवा ग्रेगरी ने उस सलाह को माना, समय आने पर उसने ईसाई धर्म को उसकी संपूर्णता में अपना लिया, और अब इतिहास में वह चमत्कार करनेवाले संत ग्रेगरी के नाम से जाना जाता है। ईसाई धर्म की सच्चाइयों को स्वीकार करने के लिए संघर्ष कर रहे एक पादरी को जेरार्ड मैनली हॉपकिंस ने जो शब्द कहे, उसके पीछे भी कुछ ऐसा ही आवेग छिपा था। उस येशुसंघी कवि ने अपने सहकर्मी को कोई किताब पढ़ने या बहस करने का निर्देश नहीं दिया, बल्कि “भिक्षा दो” कहा। ईसाई आस्था को जीने से बड़ी प्रेरक शक्ति उपजती है।
हम हाल के कलीसियाई इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक से गुज़र रहे हैं। पुरोहितों द्वारा यौन शोषण घोटालों ने अनगिनत लोगों को कैथलिक धर्म से दूर कर दिया है, और धर्मविहीनता का ज्वार लगातार बढ़ रहा है, खासकर युवाओं के बीच। मेरे गुरु, दिवंगत महान कार्डिनल जॉर्ज, इस दृश्य का सर्वेक्षण करते हुए कहा करते थे, “मैं धर्मसंघों की तलाश में हूं; मैं आन्दोलनों की तलाश कर रहा हूं।” मुझे लगता है कि उनका मतलब संकट के समय में, पवित्र आत्मा पवित्रता में उत्कृष्ट पुरुषों और महिलाओं को ऊपर उठाती है जो आत्यंतिक या अतिवादी और सार्वजनिक तरीके से सुसमाचार को जीने का प्रयास करते हैं। एक बार फिर, मेरा पक्का मानना है कि, इस समय, हमें अच्छे तर्कों की आवश्यकता है, लेकिन मैं और अधिक मानता हूं कि हमें संतों की आवश्यकता है।
'एक विजयी संयोजन भीतर पक रहा है। क्या आप उसका स्वाद चखना चाहते हैं?
1953 में, बिशप फुल्टन शीन ने लिखा, “पश्चिमी सभ्यताओं में अधिकांश लोग धन संपत्ति और दौलत प्राप्त करने के कार्य में लगे हुए हैं।” इन शब्दों में आज भी उतनी ही सच्चाई है।
हम ईमानदारी से विचार करें। इन दिनों, प्रभावशाली लोगों की एक पूरी उपसंस्कृति है, और जिन विशेष उत्पादों की वे वकालत करते हैं, उन्हें खरीदने केलिए उनके अनुयायियों को सफल रूप से प्रेरित करने हेतु उनकी भव्य और अति महंगी जीवन शैली को प्रायोजित किया जाता है।
आज प्रभाव, उपभोक्तावाद और लालच प्रचुर मात्रा में है। हम स्मार्टफ़ोन के नवीनतम मॉडल की चाहत उसके बाज़ार में आने से पहले ही रखते हैं। हम सबसे आधुनिक वस्तुओं पर, प्रचलन में आने से पूर्व ही, अपना हाथ जमाना चाहते हैं। हम जानते हैं कि लगातार बदलते रुझान के पैटर्न को देखते हुए, इन्हीं उत्पादों को ‘उत्कृष्ट प्रयुक्त स्थिति में’ या इससे भी बदतर, ‘टैग के साथ बिल्कुल नया’ लेबल वाले वैकल्पिक मीडिया के माध्यम से विज्ञापित किए जाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
शीन कहती है, “धन का संचयन आत्मा पर एक अजीब प्रभाव डालता है; यह और अधिक पाने की इच्छा को तीव्र करता है।” दूसरे शब्दों में, जितना अधिक हम प्राप्त करते हैं, उतना ही अधिक हम बटोरना चाहते हैं। धन के माध्यम से संतुष्टि की यह अंतहीन खोज हमें थका देती है और हमारे अस्तित्व में थकान पैदा कर देती है, चाहे हमें इसका एहसास हो या न हो।
तो फिर, अगर धन इकट्ठा करना अनिवार्य रूप से एक निर्विवाद इच्छा है, तो जिस उपभोक्तावादी दुनिया में हम रहते हैं उसमें हमें खुशी, आत्म-सम्मान और संतुष्टि कैसे मिलेगी?
धैर्य और कृतज्ञता
संत पौलुस हमें निर्देश देते हैं, “आप लोग हर समय प्रसन्न रहें, निरंतर प्रार्थना करते रहें, सब बातों केलिए ईश्वर को धन्यवाद दें; क्योंकि येशु मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है” (1 थेसलनीकी 5:16-18)। हममें से अधिकांश लोग यह स्वीकार करेंगे कि यह कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि यह असंभव है?
जोखिम और संघर्ष का जीवन जीने के बावजूद, मसीही धर्म के पूर्वजों में से एक, संत पौलुस ने नमूना पेश किया। क्या उन्हें मसीही धर्म का प्रचार करने के लिए जेल में डाल दिया गया था? बिल्कुल सही। क्या उसकी जान ख़तरे में थी? निरंतर खतरे में थी। क्या उनका जहाज़ पोतभंग होकर नष्ट किया गया, उन पर पथराव किया गया और उनको ताना मारा गया? जी बिलकुल, बिना किसी संशय के।
और इन सब के, और अधिक चुनौतियों के बावजूद, संत पौलुस नियमित रूप से मसीहियों को प्रोत्साहित करते थे, “किसी बात की चिंता न करें। हर ज़रुरत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ ईश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करें और ईश्वर की शांति, जो हमारी समझ से परे है, आपके हृदयों और विचारों को येशु मसीह में सुरक्षित रखेगी” (फिलिप्पियों 4:6-7)।
वास्तव में, ईश्वर के प्रति कृतज्ञता और उचित धन्यवाद और प्रशंसा करना, कलीसियाओं के साथ पौलुस के पत्राचार का एक आवर्ती और निरंतर विषय था। रोम से कुरिंथ, एफेसुस से फिलिप्पी तक, प्रारंभिक ईसाइयों को सभी परिस्थितियों में – न कि केवल अच्छे परिस्थितियों में – धन्यवाद देने यानी आभारी होने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
फिर, जैसा कि अब है, यह प्रोत्साहन सामयिक और संघर्षपूर्ण दोनों है। हालाँकि, सभी परिस्थितियों में आभारी होने के लिए प्रार्थना, प्रयास और दृढ़तापूर्ण निरंतरता की आवश्यकता होती है।
आभारी और उदार परोपकार
यदि हम संत पौलुस के उदाहरण का अनुसरण करें और जो हमारे पास है उसकी कृतज्ञता के साथ जांच करें, तो वह कैसा दिखेगा? हमारे सिर के ऊपर छत है , बिलों का भुगतान करने और परिवार को खिलाने के लिए पैसा है, और रास्ते में छोटी-छोटी सुविधाओं पर खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा है – क्या हम इसके लिए आभारी होंगे? क्या हम अपने परिवार और आसपास मौजूद अन्य परिवारों, मित्रों, व्यवसायों और ईश्वर द्वारा हमें प्रदान की गई प्रतिभाओं के प्रति आभारी होंगे?
क्या हम अब भी जो चलन में है उसका आंख मूंदकर अनुसरण करना चाहेंगे और अपना पैसा, ऊर्जा और खुशियां उन चीजों पर बर्बाद कर देंगे जिनकी हमें जरूरत नहीं है और जिन्हें हम नहीं चाहते हैं? क्या हमारे पास जो कुछ है और जिस पर हम अपना पैसा खर्च करते हैं, उसके प्रति अधिक व्यवस्थित और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है?
बेशक, कृतज्ञता के अभ्यास में हमारी सफलता का माप हमारे द्वारा इसमें लगाई गई ऊर्जा से तय होता है। किसी भी आध्यात्मिक प्रयास की तरह, हम रातोंरात कृतज्ञता में कुशल नहीं बनने जा रहे हैं। इसमें समय और प्रयास लगने वाला है।
धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, कृतज्ञता दुनिया को देखने के हमारे तरीके को बदल देगी। हमारे पास जो कुछ भी है उसकी सराहना करने और उसके लिए आभारी होने और जरूरत से ज्यादा चीज़ों के पीछे न भागने से, हम खुद को अपने लिए चीज़ें बटोरने या पाने के बजाय दूसरों को देने के लिए बेहतर तरीके से प्रवृत्त होते हैं। कृतज्ञता और उदारता से दूसरों को देने का यह संयोजन एक विजयी संयोजन है।
एक बार फिर, बिशप फुल्टन शीन सहमत हैं, “लेने की तुलना में देना अधिक धन्य है क्योंकि यह आत्मा को भौतिक और लौकिक से अलग करने में मदद करता है ताकि उसे परोपकारिता और दान की भावना से जोड़ा जा सके जो कि धर्म का सार है।” अपनी भलाई में आनंदित होने की अपेक्षा दूसरों की भलाई में आनंदित होने में अधिक खुशी है। लेने वाला अपनी भलाई से आनन्दित होता है; दाता दूसरों की खुशी में आनन्दित होता है, और इस तरह के लोगों को ऐसी शांति मिलती है जो दुनिया की कोई भी चीज़ नहीं दे सकती है।”
कृतज्ञता को आगे बढ़ाएँ
आभार व्यक्त करने में आगे बढ़ने की मानसिकता शामिल होती है। कृतज्ञता में बढ़ने का अर्थ है आत्म-ज्ञान, ईश्वर के ज्ञान और हमारे लिए उनकी योजना में आगे बढ़ना। धन इकट्ठा करने की चक्रीय प्रकृति और खुशी की व्यर्थ खोज से खुद को अलग करके, हम जहां हैं वहीं खुशी खोजने के लिए खुद को खोल देते हैं।
हम ईश्वर की भलाई के परिणामस्वरूप अपने और अपने लाभों की सही प्राथमिकता भी सुनिश्चित करते हैं। संत पौलुस की तरह, हम पहचान सकते हैं, “ईश्वर सबकुछ का मूल कारण, प्रेरणा स्रोत तथा लक्ष्य है। उसी को अनंत काल तक महिमा! आमेन!” (रोमी 11:30)
कृतज्ञता का यह रवैया – जो जीभ से लयबद्ध और काव्यात्मक रूप से निकलता है – हमें उन चीजों में उम्मीद की किरण देखने में भी मदद करता है जो हमेशा उस तरह से नहीं बनती हैं जैसा हम चाहते हैं। और यह कृतज्ञता का सबसे मार्मिक और सुंदर पहलू है, यह आभार का आध्यात्मिक पहलू है। जैसा कि संत अगस्तीन बताते हैं, “ईश्वर इतना अच्छा है कि उसके हाथ में बुराई भी अच्छाई लाती है। यदि वह अपनी संपूर्ण अच्छाई के कारण इसका उपयोग करने में सक्षम नहीं होता, तो वह कभी भी बुराई घटित नहीं होने देता।”
'प्रश्न – पवित्र यूखरिस्त में मसीह की वास्तविक उपस्थिति में अधिक विश्वास को प्रेरित करने के प्रयास में इन दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका तीन साल का “यूखरिस्तीय पुनर्जागरण” अभियान चला रहा है। ऐसे कौन से पारंपरिक तरीके हैं जिनसे मेरा परिवार यूखरिस्त के प्रति अधिक श्रद्धा का अभ्यास कर सकता है?
उत्तर – एक कैथलिक अध्ययन में कहा गया है कि केवल एक–तिहाई कैथलिक विश्वास करते हैं कि येशु मसीह वास्तव में पवित्र यूखरिस्त में मौजूद हैं। इसलिए इस के प्रत्त्युत्तर में, कलीसिया वह बात फिर से जागृत करने की कोशिश कर रही है जिसे संत जॉन पॉल द्वितीय “यूखरिस्तीय विस्मय” कहते हैं – वास्तविक उपस्थिति में एक विस्मय और आश्चर्य: येशु, यूखरिस्त में छिपा हुआ फिर भी वास्तव में मौजूद है।
हम एक परिवार के रूप में यूखरिस्त के प्रति श्रद्धा कैसे विकसित कर सकते हैं? यहाँ कुछ सुझाव हैं:
पहला, उपस्थिति
यदि हमें पता होता कि कोई व्यक्ति किसी निश्चित स्थान पर हर सप्ताह एक हजार डॉलर मुफ्त में दे रहा है, तो हम निश्चित रूप से वहां मौजूद रहेंगे। हमें इससे कहीं अधिक मूल्यवान चीज़ यूखरिस्त में प्राप्त होती है — स्वयं परमेश्वर। वह ईश्वर जिसने ब्रह्मांड का सारा सोना बनाया। वह ईश्वर जिसने आपको प्रेम करके आपके व्यक्तित्व को अस्तित्व में लाया। वह परमेश्वर जो आपके लिए शाश्वत उद्धार को खरीदने के लिए क्रूस पर अपनी जान दी। वह ईश्वर जो अकेले ही हमें अनन्त जीवन में खुश रख सकता है।
यूखरिस्तीय जीवन के लिए पहला कदम कम से कम साप्ताहिक (या यदि आवश्यक हो तो और अधिक बार) मिस्सा बलिदान तक पहुंचने के लिए आवश्यक त्याग उठाना है। स्काउट में कैंप–आउट के बाद मेरे पिता अक्सर मुझे और मेरे भाइयों को मिस्सा में ले जाने के लिए हर संभव कोशिश करते थे। मेरा भाई एक विशिष्ट बेसबॉल टीम के ट्रायल में भागीदारी नहीं कर सका क्योंकि ट्रायल रविवार की सुबह था। हम जहां भी छुट्टियों पर जाते थे, मेरे माता–पिता निकटतम कैथलिक चर्च का पता लगाना सुनिश्चित करते थे। यह देखते हुए कि यूखरिस्त कितना मूल्यवान है, वह प्रभु हर त्याग और बलिदान से भी बढ़कर है!
दूसरा, पवित्रता
यह सुनिश्चित करना कि हमारी आत्माएँ गंभीर पापों की अशुद्धता से विरत हैं, यह यूखरिस्तीय भोज की एक शर्त है। कोई भी व्यक्ति बड़े भोज में अपने हाथ धोए बिना नहीं बैठेगा – न ही किसी मसीही को पाप स्वीकार द्वारा अपने आप को शुद्ध हुए बिना यूखरिस्त या परम प्रासाद के पास जाना नहीं चाहिए।
तीसरा, जुनून
पूरे इतिहास को पढने से पता चलता है कि कैथलिक लोगों ने मिस्सा बलिदान में भाग लेने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली है। आज भी दुनिया में, चीन, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे कम से कम 12 देश ऐसे हैं जहां कैथलिकों पर कड़े प्रतिबंध हैं। इन चुनौतियों के बावजूद कैथलिक लोग अभी भी मिस्सा बलिदान में भाग लेने के इच्छुक हैं। क्या हमारे अंदर भी उसके लिए वही भूख है? इस भूख को अपने दिल में जगाओ! एहसास करें कि हमें राजा के सिंहासन कक्ष में बुलाया गया है; हमें कलवारी के बलिदान के लिए अग्रिम पंक्ति की सीट मिलती है। हमें वास्तव में प्रत्येक मिस्सा बलिदान द्वारा स्वर्ग के पूर्वाभास में भाग लेने की अनुमति है!
चौथा, प्रार्थना
एक बार जब हमने प्रभु को ग्रहण कर लिया, तो हमें प्रार्थना में महत्वपूर्ण समय व्यतीत करना चाहिए। रोम के महान प्रचारक, संत फिलिप नेरी, परम प्रसाद प्राप्त करने के बाद, मिस्सा समाप्ती से पहले गिरजाघर से बाहर निकलने वाले किसी भी व्यक्ति के पीछे जलती हुई मोमबत्तियों के साथ दो वेदी सेवकों को भेजते थे – इस सत्य को पहचानते हुए कि मसीह को प्राप्त करने के बाद वह व्यक्ति सचमुच एक जीवित मंजूषा है ! प्रभु को ग्रहण करने के तुरंत बाद, उसके साथ अपने दिल की बात साझा करने का सौभाग्यशाली समय हमारे पास होता है, क्योंकि वह काफी हद तक हमारे दिल से केवल कुछ इंच नीचे, हमारे शरीर में रहता है!
लेकिन मसीह की यूखरिस्तीय उपस्थिति के लिए प्रार्थना मिस्सा समाप्त होने के बाद भी लंबे समय तक चलनी चाहिए। एक बार एक संत थी जो यूखरिस्तीय जीवन जीना चाहती थी, लेकिन केवल रविवार को ही मिस्सा बलिदान में जा पाती थी। उन्होंने गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को पवित्र भोज की आध्यात्मिक तैयारी के लिए समर्पित किया। फिर रविवार को, उन्हें खुशी हुई कि वे प्रभु को ग्रहण कर सकी – और सोमवार, मंगलवार और बुधवार को उसे प्राप्त करने के लिए धन्यवाद देने में बिताया! इसलिए, हमें प्राप्त यूखरिस्त के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने और इस उपहार को दोबारा प्राप्त करने के लिए अपने दिलों को तैयार करने के लिए पूरे सप्ताह प्रार्थना में समय बिताना चाहिए!
पांचवां, आराधना
यूखरिस्तीय जीवन यूखरिस्तीय आराधना के साथ जारी रहता है, जो हमारे यूखरिस्तीय ईश्वर की पूजा को जारी रखता है। जितनी बार संभव हो, आराधना में जाएँ। जैसा कि धन्य कार्लो अक्यूटिस ने कहा, “जब हम सूरज का सामना करते हैं, तो हम भूरे हो जाते हैं, लेकिन जब हम खुद को यूखरिस्तीय येशु के सामने रखते हैं, तो हम संत बन जाते हैं।” वह जानता था कि केवल परमेश्वर ही है जिसने हमें पवित्र बनाया है, और उसकी उपस्थिति में रहकर, येशु कार्य करेगा!
मैं इसकी गवाही दे सकता हूं. जब मैं किशोर था तब मेरे पल्ली ने सतत या अनवरत आराधना (प्रति दिन 24 घंटे, सप्ताह के सातों दिन) शुरू की और मैंने साप्ताहिक आराधना में एक घंटा बिताना शुरू कर दिया। वहां मुझे एहसास हुआ कि प्रभु मुझसे कितना प्यार करते हैं और वहीँ मैं एक पुरोहित के रूप में अपना जीवन उन्हें देने के लिए बुलाया गया था। यह मेरे अपने मन परिवर्त्तन का एक बड़ा हिस्सा था। वास्तव में, मेरी गृह पल्ली में, 160 से अधिक वर्षों से किसी युवा पल्लीवासी को धर्मसंघी बुलाहट प्राप्त नहीं हुआ था। सतत आराधना के केवल 20 वर्षों के बाद, हमारी पल्ली से 12 से अधिक धर्मसंघी बुलाहट हुए हैं !
धन्य कार्लो अक्यूटिस हमें फिर से याद दिलाते हैं, “यूखरिस्त स्वर्ग के लिए मेरा राजमार्ग है।“
हमें यह जानने के लिए दूर तक देखने की ज़रूरत नहीं है कि ईश्वर कहाँ रहता है और उसे कैसे खोजा जाए – वह दुनिया के हर कैथलिक गिरजाघर के हर पवित्र मंजूषा में रहता है!
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