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सन 1926 में जब क्रिस्टेरो युद्ध की शुरुआत हुई तब मेक्सिकी लोगों को धर्म के नाम पर काफी उत्पीडन झेलना पडा था | चर्चों को ज़ब्त करके उन पर ताला लगा दिया गया| धार्मिक शिक्षाओं और प्रार्थना सभाओं पर पाबंदी लगा दी गई| पुरोहितों और चर्च से जुड़े बाकी लोगों को मजबूरी में सरकार से छिपकर भूमिगत होना पड़ा|
एक रात की बात है| पुलिस कर्मियों ने सादे कपड़ों में एक घर को घेर लिया क्योंकि उन्हें शक था कि उस घर में लोग परम प्रसाद ग्रहण करने केलिए इकट्ठा हुए थे| एक व्यक्ति उनके पास आया और अपनी जैकेट का ज़िप खोलकर अन्दर के शर्ट पर लगे लेफ्टिनेंट के बैज की ओर इशारा किया||
“यह सब क्या हो रहा है?” उसने उन से सवाल किया| “हमें लगता है कि अंदर एक पुरोहित है” उन्होंने जवाब दिया| “ मैं अंदर जाकर जाँच करता हूँ, तब तक तुम सब लोग यहीं रुको”, उसने उन्हें आदेश दिया| पुलिसवालों को बाहर पहरे पर बिठाकर वे अंदर गए और उन्होंने इंतज़ार कर रहे सारे विश्वासियों को परमप्रसाद वितरित किया |
फादर मिगुएल प्रो वेश बदलने और बहुरूपिया बनने की अपनी इस खूबी केलिए बेहद मशहूर थे| वे अपना रूप बदलने में बहुत माहिर थें और इसी के सहारे वे अक्सर देर रात बड़ी ही बहादुरी के साथ कभी किसी के बच्चे को बपतिस्मा देने, तो कभी किसी की शादी कराने, तो कभी कहीं मिस्सा बलिदान अर्पित करने, या पापस्वीकार कराने, या बीमारों को रोगी लेपन का संस्कार देने निकल पड़ते थे| एक से ज़्यादा बार वे पुलिस अफसर के हुलिए में जेल में घुसे, ताकि जो कैथलिक कैदी सज़ा-ए-मौत के दंड के इंतज़ार में है उन्हें अंतिम संस्कार दिया जा सकें| कभी कभी वे किसी अमीर कारोबारी की तरह सजधज कर रईसों के इलाकों में, या अपने दुश्मनों के घरों के आसपास घूमा करते थे, ताकि वह ग़रीबों केलिए कुछ सामान इकट्ठा कर सकें|
कभी किसी नवयुवती की बाहों में बाहें डालकर, तो कभी किसी भिखारी के फाटे पुराने कपड़ों में, उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी सामाजिक और आध्यात्मिक तौर पर परेशानी में पड़े मेक्सिकी ख्रीस्तविश्वासियों की मदद की| और इसके लिए उन्होंने कई बार बिना डरे अपनी जान जोखिम में डाली| वे अपनी हाज़िर-जवाबी केलिए जाने जाते थे और उन्होंने हँसते हँसते मौत का सामना करते हुए कहा, “अगर मैं स्वर्ग जाकर उदास चहरे वाले संतों से मिलूंगा तो मैं उन्हें अपने मेक्सिकी टोपी नाच से उल्लासित कर दूँगा”| उन्होंने लगभग एक साल से ज़्यादा समय तक इसी तरह गुप्त रूप से सेवकाई की, जिस बीच उनके दुश्मन बड़ी उत्सुकता से उनकी सेवकाई रोकने का मौका खोज रहे थे| आखिरकार लोगों ने किसी की जान लेने की कोशिश का झूठा इलज़ाम उनपर लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया | गिरफ्तारी के तुरंत बाद उन्हें बिना किसी कारवाई के मौत की सज़ा दी गई|
उस समय सत्ता में रहे प्रेसिडेंट कालेस ने दुनिया भर के पत्रकारों को फादर प्रो की मौत का साक्षी बनने का न्यौता भेजा| वहां पहुंचे पत्रकार सोच रहे थे कि गोली चलाने के लिए तैयार जल्लादों को देखकर फादर प्रो बिखर जायेंगे, और मारे जाने के डर से अपने विश्वास को त्याग देंगे| इसके विपरीत पत्रकारों ने फादर प्रो के शांति से रौशन चेहरे की तस्वीर खींची| इन तस्वीरों में फादर प्रो अपने दुश्मनों को माफ़ करते और उन केलिए प्रार्थना करते दिखते हैं| मरते वक़्त उन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बाँधने से इंकार किया और खुली बाहों से अपने ऊपर चली गोलियों का स्वागत करते हुए चिल्लाया: “वीवा क्रिस्तोरे!” (ख्रीस्त राजा की जय!)
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एक तीव्र बुलाहट
मुझे याद है कि जब मैं आठ साल का बालक था, मैं अपनी मां के साथ बैठकर टीवी पर, अफ्रीका के गरीब और भूखे बच्चों के लिए दान करने की एक अपील देख रहा था। मेरे हम-उम्र एक लड़के को रोते हुए दिखाया गया था जिसे देखकर मुझे उसके प्रति एक प्रकार का दर्द और लगभग चुंबकीय आकर्षण महसूस हुआ। जब उसके होंठ पर एक मक्खी आ बैठी और और उसने उसकी ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया तो मुझे लगा कि मेरी आँखों में उसकी आँखें प्रवेश करके जल रही हैं। उसी समय, प्रेम और दु:ख की लहरों में मैं डूब गया |
एक तरफ भोजन की कमी से मर रहे इन लोगों को मैं देख रहां था, और उसी समय, भरे पूरे रेफ्रिजरेटर से कुछ ही मीटर दूर मैं आराम से बैठा था। मैं अन्याय का पूरा अंदाजा नहीं कर पा रहा था और सोचता रहा कि मैं क्या कर सकता हूं। जब मैंने अपनी मां से पूछा कि मैं कैसे उन भूखों की मदद कर सकता हूं तो माँ ने कहा कि हम पैसे भेज देंगे। लेकिन मैंने अपने अन्दर एक मजबूरी को महसूस किया कि मुझे व्यक्तिगत रूप से, प्रत्यक्ष रूप से कुछ करना चाहिए। यह एहसास मेरे जीवन के विभिन्न आयामों में मेरे दिल में गूँजता रहा। लेकिन मुझे कभी नहीं पता था कि व्यक्तिगत रूप से या प्रत्यक्ष रूप से कार्य करने का मतलब क्या हो सकता है। जैसे मैं उम्र में बढ़ रहा था, मुझे विश्वास हो रहा था कि मेरे जीवन में एक बुलाहट है, कि बदलाव लाने के लिए ही मेरा अस्तित्व है, और मैं दूसरों से प्यार, सेवा और मदद करने के लिए पैदा हुआ हूँ। लेकिन उन दृढ धारणाओं को कार्यान्वित करने में अक्सर जीवन की वास्तविकताएं बाधा बनती थी।
जीवन का यात्रा वृत्तांत
सन 2013 में मैंने इंग्लैंड के एक जेल में समय बिताया। यहीं पर अपने जीवन के सबसे प्रभावी जीवन-परिवर्तन के अनुभव के बीच में पुनर्जीवित प्रभु से मैंने मुलाक़ात की। इसे विस्तार में बताने में मुझे अधिक स्थान चाहिए| (शालोम वर्ल्ड टीवी कार्यक्रम “येशु मेरा मुक्तिदाता” (Jesus My Saviour) जहां मैं अपने जीवन कथा के उस हिस्से का वर्णन करता हूँ, उस एपिसोड के लिंक प्राप्त करने के लिए लेख के अंत में दिए गए मेरे परिचय पत्र को देखें|) लेकिन प्रभु के साथ हुए उस साक्षात्कार के बाद मैं ने प्रभु के सम्मुख अपना आत्मसमर्पण कर दिया। और तब से अब तक की यात्रा सबसे अविश्वसनीय रही है ।
2015 में, जब मैं भारत के कोलकत्ता में गरीबों के साथ काम कर चुके एक अमेरिकी धर्मसंघी बंधु से मिला, तो मैंने आखिरकार पहचान लिया कि गरीबों की सेवा ही मेरी बुलाहट है। चंद महीनों के अन्दर ही, मदर तेरेसा के मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी में स्वयंसेवक के रूप में काम करने के लिए मैं हवाई जहाज़ में बैठकर कोलकत्ता पहुँच गया।
जैसे ही मैं कोलकता एयरपोर्ट पर उतरा, मैंने रात में आसमान की ओर देखा और ईश्वर की उपस्थिति महसूस की। जब मैं टैक्सी में बैठा था, तो तुरंत मैंने सोचा, ‘मैं घर पर हूँ’। लेकिन यहाँ मैं एक ऐसी जगह पर था जहाँ मैं पहले कभी नहीं आया था। जब मैंने स्वयंसेवक का सेवाकार्य शुरू किया, तो मुझे समझ में आया कि मुझे क्यों ‘घर पर होने’ का एहसास हुआ: क्योंकि घर वह है जहाँ दिल है।
मैंने भारत के गरीब और मनमोहक लोगों में अनगिनत बार येशु को देखा। मदर तेरेसा ने कहा था कि सुसमाचार को पांच अंगुलियों पर वर्णित किया जा सकता है: “तुमने… यह… मेरे… लिए… किया’ (मत्ती 25:40), और इसलिए मैंने हर बार गरीबों के चेहरों पर येशु की आंखों को देखा। मैं भोर में जिस पल उठता था, और प्रार्थना करता था, उस पल से, रात के जिस पल मैं बिस्तर पर लेटता था, तब तक मुझे प्यार का अनुभव हुआ। प्रत्येक रात को सोने से पहले आधी रात तक मैं छत पर बैठकर डायरी लिखता था। लोग सोचते थे कि मैं कैसे इतना काम लगातार कर पा रहा हूं, जबकि मुझे, थकान से चूर चूर होकर, टूटकर गिर जाना चाहिए था । मेरे न गिरने का केवल एक ही कारण है – मेरे दिल में पवित्र आत्मा की आग की उपस्थिति ।
आत्मा की खिडकियाँ
कहा जाता है कि आंखें आत्मा की खिड़कियां हैं। मैं अक्सर आँखों के माध्यम से लोगों से जुड़ता हूँ। मैं इसी तरह एक विकलांग युवक के साथ जुड़ गया जिसकी देखभाल मैं करता था। वह मुझे अपने साथ ताश खेलने के लिए रोज़ आमंत्रित करता था। वह मूक था और अपने हाथों और पैरों से भी कुछ नहीं कर पाता था | इसलिए वह इशारे से बताता था कि मुझे उसके किस ताश को पलटना चाहिए। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, हमने खूब संवाद किया, भले ही उसके मुंह से कोई शब्द नहीं निकलता था। हमने आंखों के माध्यम से प्रेम की सार्वभौमिक भाषा में सम्प्रेषण किया।
एक दिन व्हील चेयर पर उसने घर के अंदर उसे घुमाने के लिए मुझसे कहा और उसके दिशानिर्देश पर हम लोग प्रार्थनालय के दरवाजे तक पहुँच गए। मैंने उससे पूछा कि क्या तुम येशु से प्यार करते हो ? उसने मुस्कुराया और सिर हिलाया। हमने प्रार्थनालय के अन्दर प्रवेश किया। मैंने उसे दैविक करुणा की आदमकद तस्वीर के करीब पहुंचाया, तुरंत उसने खुद को व्हीलचेयर से बाहर नीचे की ओर फेंक दिया। यह सोचकर कि वह गिर गया है, मैं उसकी मदद करने के लिए नीचे झुका, लेकिन उसने मुझे इशारे से दूर कर दिया और ऐसा कार्य किया जो मेरी निगाह में भक्ति के सबसे सुंदर कृत्यों में से एक था। अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल करते हुए उसने खुद को अपने घुटनों पर खडा कर दिया। मैंने भी आंसू भरी आँखों के साथ उसके बगल में घुटने टेक दिए। जैसे ही मैं ‘हे हमारे पिता..’, ‘प्रणाम मरिया…’ और पवित्र त्रीत्व की महिमा की प्रार्थना बोल रहा था, उसने भी मेरे शब्दों के ताल और स्वर के साथ पूरी तरह से मेल करते हुए आवाज़ निकाली। जन्म से इस युवक ने पीड़ा, तिरस्कार और अलगाव का जीवन झेला था। उसका शरीर अपंग था, फिर भी उसने घुटने टेक कर प्रार्थना की, वह ईश्वर को धन्यवाद देते हुए एक अद्भुत प्रकाश प्रसारित कर रहा था और मुझे सिखा रहा था कि प्रार्थना कैसे की जानी चाहिए।
एक और दिन उसने मुझे अपनी सारी सांसारिक संपत्ति दिखाई। उसने एक छोटा सा जूते का बॉक्स खोला जिसमें कुछ फोटो थे, जिन्हें वह मुझे दिखाने के लिए उत्सुक था। फ़ोटोज़ तब की हैं जब मिशनरीज ऑफ चैरिटी के ब्रदर्स ने उसे पहली बार पाया था और उन्हें अपने घर में लाये थे। एक और फोटो उसके बपतिस्मा का, एक उसके पहली बार पवित्र परम प्रसाद लेने का, और एक फोटो उसके दृढीकरण संस्कार का। उसे फोटो दिखाना बहुत अच्छा लग रहा था और उसे दिखाने में उसकी ख़ुशी देखकर मुझे भी बहुत अच्छा लगा।
जब मेरे घर लौटने का समय आया, तब मेरे आंसू नहीं रुक रहे थे | अपने नए दोस्त को अलविदा कहना मेरे लिए लगभग असंभव सा लग रहा था। हम दोनों उसके बिस्तर के बगल में थे जब उसने अपने तकिये की ओर इशारा किया। मुझे समझ में नहीं आया, लेकिन मानसिक रूप से कुछ कमज़ोर एक बालक ने, मेरे दोस्त का तकिया उठाया और वहां मोतियों की एक माला दिखाई दी। अपने अपंग हाथ से मेरे दोस्त जितनी अच्छी तरह उस जपमाला को पकड़ सकता था, उसने उसे पकड़ा और मुझे देने के लिए मेरी ओर बढ़ा। यह जानते हुए कि उसके पास इस तरह की चीज़ें कितनी कम थी, मैंने उसे बताया कि मैं यह नहीं ले जा सकता। उसने मुझे अपनी घूरती आँखें से कहा कि मुझे लेना ही पड़ेगा। अनिच्छा से मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसने वह जपमाला मेरी हथेली में डाल दी। जैसे ही माला से मेरा स्पर्श हुआ, मुझे लगा कि मेरे पूरे शरीर में प्यार की एक अद्भुत धारा बह रही है। वह रोज़री माला धागा और प्लास्टिक से बनाई गई थी, लेकिन यह सोने या कीमती पत्थरों से भी अधिक मूल्यवान थी। मैंने उसे और उस जपमाला को चूम लिया और मैं अचम्भित होकर सोच रहा था कि इस अद्भुत इंसान की सुंदरता और प्यार के माध्यम से ईश्वर ने मुझे कितना बड़ा आशीर्वाद दिया है। सुसमाचार की विधवा की तरह, इसने अपनी अत्यधिक गरीबी में से सब कुछ दान कर दिया।
4 सितंबर 2016 को, मदर तेरेसा संत घोषित की गयी। रोम के सेंट पीटर स्क्वायर में संत घोषण के मिस्सा बलिदान में भाग लेने का मुझे सौभाग्य मिला। वापस घर जाने के लिए उड़ान लेने के पहले, यानी अगली सुबह (5 सितंबर, मदर तेरेसा के पर्व के दिन), ईश्वर को अपने अनुभवों केलिए, साथ साथ मदर तेरेसा के लिए भी धन्यवाद देने के विचार से मैंने संत जॉन लातेरन महागिरजाघर जाने का फैसला किया। सुबह-सुबह, मैंने गिरजाघर में प्रवेश किया। मैं ने पाया कि पूरा गिरजाघर सुनसान था। मेरे सामने सिर्फ दो साध्वी थीं, जो मदर तेरेसा के प्रथम श्रेणी के अवशेष के बगल में खडी थी। मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं प्रार्थना करते समय अपनी नयी रोजरी माला को मदर के अवशेषों पर स्पर्श कर सकता हूं। उन्होंने मुझे इसकी अनुमति दी। मैं ने उन्हें धन्यवाद देते हुए यह भी बताया कि किसने यह जपमाला मुझे दी थी। जैसे ही उन्होंने मुझे जपमाला मदर के पवित्र अवशेष पर स्पर्श कराकर दिया वैसे ही मैं ने उसे चूमा। उन्होंने मुझे मदर तेरेसा का एक पवित्र कार्ड दिया जिसके पीछे लिखा था ‘मरियम के माध्यम से सब कुछ येशु के लिए‘। इस वाक्यांश ने मेरे दिल में एक विस्फोट कर दिया। मैं येशु से लगातार प्रार्थना कर रहा था कि वे मुझे दिखायें कि मैं किस तरीके से उन्हें सबसे अधिक प्रसन्न करूं? इस कार्ड ने मेरी प्रार्थना का उत्तर किया। जैसे ही मैंने धन्यवाद की प्रार्थना की, मुझे अपने कंधे पर किसी के स्पर्श का एहसास हुआ। सर्जिकल मास्क पहनी एक महिला सीधे मेरी आँखों में देख रही थी। उन्होंने कहा, “आप जो भी प्रार्थना कर रहे हैं, डरिये मत, ईश्वर आपके साथ है।” मैं तुरंत उठ खड़ा हुआ और मेरे अन्त:स्थल से आभार भरा प्रेम उमड़ रहा था, उस प्रेम से मैं ने उस औरत की हथेली को चूम लिया।
महिला ने बताया कि उन्हें कैंसर की बीमारी है। “लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि मैं अपने को ठीक नहीं कर सकती”। मैंने कहा, “यह सच है कि आप अपने को ठीक नहीं कर सकती हैं, लेकिन ईश्वर ठीक कर सकता है, और इसके लिए आपको विश्वास होना चाहिए। ”
उस महिला ने जवाब दिया कि उन्हें थोड़ा ही विश्वास है। मैंने उसे बताया कि यह ठीक है क्योंकि येशु ने हमें बताया कि पहाड़ों को स्थानांतरित करने के लिए केवल ‘सरसों के बीज के आकार का विश्वास‘ ही काफी है (मारकुस 11: 22-25)। मैं ने यह भी कहा कि “अगर हम पहाड़ों को स्थानांतरित कर सकते हैं, तो हम निश्चित रूप से कैंसर को हटा सकते हैं।” मैंने उन्हें मेरे साथ यह दोहराने के लिए कहा: “मुझे विश्वास है कि मुझे मिल गया है” (मारकुस 11:24)। उन्होंने इसे दोहराया और जैसे ही हम एक दुसरे से विदा ले रहे थे, मैंने उन्हें एक रोजरी माला भेंट कर दी जिसे मैंने मेडजुगोर्ज से प्राप्त किया था। हमने फोन नंबरों का आदान-प्रदान किया। अगले हफ़्तों में मैंने येशु पर भरोसा करने और चंगाई प्राप्त करने के लिए ईमेल के माध्यम से पवित्र वचन देकर उन्हें प्रोत्साहित किया।
अवर्णनीय शक्ति
कुछ हफ्ते बीत गए। एक दिन दोपहर के समय जैसे मैं प्रार्थना करने के लिए गिरजाघर में प्रवेश कर रहा था, उस महिला ने मुझे एक सन्देश भेजा। वह जांच के लिए अस्पताल जा रही थी और उसने प्रार्थना करने के लिए कहा। इसके पहले की जांच से पता चला कि कैंसर फैल गया था। जैसे मैं उस दिन गिरजाघर में प्रार्थना कर रहा था, मुझे लगा कि गिरजाघर के कांच की खिड़की से होकर मुझ पर सूरज की रोशनी चमक रही है। बाद में, उसने फिर से सन्देश भेजा कि डॉक्टर लोग “नहीं समझा पाए हैं”!
उनकी हालत न केवल बेहतर था, कैंसर पूरी तरह से अदृश्य हो गया था| मैं ने उस पल को याद किया जब उसने रोम शहर में मेरे कंधे पर स्पर्श किया था और उस समय उनकी हथेली का चुंबन करने की मुझे तीव्र इच्छा हुई थी। उस चुंबन से चंद लम्हें पहले, मैं ने मदर तेरेसा के अवशेष पर स्पर्श कराये गए जपमाला की मोतियों को चूमा था। जब मैंने उन्हें इस के बारे में समझाया तो वे दंग रह गई और मुझे बताया कि वर्षों पहले जब वे मदर तेरेसा से मिली थीं, उस समय मदर ने उन्हें अपने मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी समुदाय में शामिल होने के लिए कहा था। उस बुलावे के लिए हाँ कहने के बजाय, उन्होंने शादी करने का फैसला किया। लेकिन अब इस नाटकीय चंगाई में वे अप्रत्याशित रूप से मेरे, रोम के महागिरजाघर के, और पवित्र अवशेष के माध्यम से उस पवित्र नारी मदर तेरेसा के साथ जुड़ गई थी, जिनसे कई साल पहले वे मिली थीं।
मेरे जीवन की घटनाओं से मुझे पता चला है कि ईश्वर प्रार्थना का जवाब देता है, कि येशु इस समय भी चंगा करता है, और वह चमत्कार अभी भी होता है। हमारे पास मदद करने के लिए संतों की मध्यस्थता और रोज़री माला की शक्ति है। और वह शक्ति पहाड़ को भी हटाने के लिए काफी है।
प्रिय येशु, इस दुनिया की सारी बातों से ऊपर मैं तुझे प्यार करता हूं। अपने आस-पास के लोगों में, विशेष रूप से मेरे परिवार में तुझे देखने, और तुझे प्य्रार करने की खुशी को उनके साथ साझा करने में मेरी मदद कर। मैं तुझसे प्रति दिन अधिक से अधिक प्यार करना चाहता हूँ। आमेन।
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कभी आपने सोचा है कि जो हमें चोट पहुंचाते हैं उन्हें माफ करने की क्या ज़रुरत है?
क्षमा करना कठिन है; यह आसानी से कैसे किया जा सकता है यह जानने के लिए आगे पढ़ें ।
सीमा से परे
यदि तुम दुसरो को क्षमा नहीं करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेगा। (मत्ती 6:15)
एक ख्रीस्तीय के रूप में, हमारी सारी आशा पूरी तरह से एक ही बात पर निर्भर करती है – ईश्वर से क्षमा। यह स्पष्ट है कि जब तक वह हमारे पापों को माफ नहीं करता हम स्वर्ग के भागीदार कभी नहीं बन सकते। परमेश्वर का धन्यवाद करो, जो प्रेमी पिता होने की वजह से अपने बच्चों को माफ करने के कारणों की तलाश करता है। हमारे पापों की गंभीरता और संख्या कितनी भी क्यों न हो, पिता ईश्वर हमें क्षमा करना चाहता है । हमें बस अपने द्वारा किए गए गलतियों को स्वीकार करने, उन के लिए क्षमा मांगने और दूसरों को भी क्षमा करने की ज़रुरत है। मानो कि हमारी परीक्षा लिखने के पूर्व ही प्रश्न पत्र आउट हो चुका है। फिर भी, हम में से अधिकांश इस न्यूनतम कसौटी को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
हमारे पापी स्वभाव के कारण, बिना शर्त माफ करना हमारी क्षमता से परे है। इस के लिए हमें दिव्य आशीष की आवश्यकता है। हालांकि, हमारे उद्देश्यपूर्ण इच्छा और कदम महत्वपूर्ण है। एक बार जब हम ये कदम उठाते हैं, तो प्रभु की ओर से हम पर बहने वाले अनुग्रह का हम अनुभव करना शुरू कर देंगे।
हम कैसे अपनी भूमिका निभाते हैं? एक बात हम कर सकते हैं: वह है क्षमा करने का कारण खोजना। क्षमा करने के कुछ कारण मैं यहां दे रहा हूँ ।
मुझे क्यों माफ़ करना चाहिए?
उत्तर 1: क्योंकि, मैं एक स्वस्थ जीवन का हकदार हूँ
माफ करना कैदी को मुक्त करना जैसा है, और पता चलता है कि कैदी आप स्वयं थे!
– लुईस बी. स्मीडेस
धर्मग्रन्थ ने बहुत पहले जो सिखाया था उसे आधुनिक शोध ने स्वीकार किया है- क्षमा करने की आवश्यकता! क्षमा करने से क्रोध, चोट, अवसाद और तनाव कम हो जाते हैं और आशावाद, उम्मीद और करुणा की भावना बढ़ती है। क्षमा उच्च रक्तचाप को कम करती है। क्षमावान लोगों में न केवल तनाव कम रहता है, बल्कि वे बेहतर रिश्ते बनाते हैं| ऐसे लोगों को सामान्य प्रकार के स्वास्थ्य समस्याओं और सबसे गंभीर बीमारियों को बहुत कम झेलना पड़ता है- इनमें अवसाद, हृदय रोग, मस्तिष्क का आघात और कैंसर शामिल हैं ।
यहाँ, मेरा ध्यान मेरी अपनी भलाई पर है। जीवन सृष्टिकर्ता से मिला एक उपहार है, और यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं एक अच्छा जीवन जीऊँ। क्षमाशीलता की कमी मुझे गुणवत्तापूर्ण जीवन का आनंद लेने से रोकती है। इसलिए, मुझे क्षमा करने की आवश्यकता है।
उत्तर 2: क्योंकि, ईश्वर मुझे क्षमा करना चाहता है
ख्रीस्तीय होने का मतलब अक्षम्य को क्षमा करना है क्योंकि ईश्वर ने आप में अक्षम्य को माफ कर दिया है – सी.एस. लुईस
यह बहुत ही सीधी बात है। मैं क्षमा करने का फैसला लेता हूँ, क्योंकि ईश्वर मुझसे यह उम्मीद करता है। मेरा ध्यान ईश्वर के प्रति आज्ञाकारी होना है। मैं माफ करने की शक्ति के लिए उनकी कृपा पर निर्भर हूँ।
उत्तर 3: क्योंकि, मैं बेहतर नहीं हूँ
कोई भी धार्मिक नहीं रहा – एक भी नहीं (रोमियों 3:10)
मेरी भरसक कोशिश है कि मैं अपना ध्यान मेरे पापी स्वभाव पर केन्द्रित करूँ। मैं खुद को दूसरे व्यक्ति की दृष्टि से देखने की कोशिश करता हूँ। यदि मैं उसकी जगह पर होता तो मेरी प्रतिक्रिया क्या होती? कई बार, जब हम अपने न्यायसंगत स्पष्टीकरण को त्याग देते हैं और दूसरों को चोट पहुँचाये गए अवसरों पर ध्यान देना शुरू करते हैं तब हमें यह एहसास होने लगता है कि हम दूसरों से बेहतर नहीं हैं। यह अहसास हमारे काम को आसान कर देगा।
उत्तर ४: क्योंकि ईश्वर मेरी भलाई के लिए उन दर्दभरी स्थितियों का उपयोग कर रहा है
हम जानते हैं, कि जो लोग ईश्वर को प्यार करते हैं, और उसके विधान के अनुसार बुलाए गए हैं, ईश्वर उनके कल्याण केलिये सब बातों में उनकी सहायता करता है।(रोमियों 8:28)
संत स्तेफनुस की मृत्यु के विषय में हम प्रेरित चरित में पढ़ते है। मरने से ठीक पहले, स्तेफनुस ने ईश्वर की महिमा को और ईश्वर के दाहिने येशु को देखा! जब भीड़ उस पर पत्थर मार रही थी, तब स्तेफनुस ने अपने अत्याचारियों के लिए प्रार्थना की, “हे प्रभु यह पाप उनपर मत लगा”। हमें मिलने वाले पुरस्कार को ध्यान में रखते हुए हमें दूसरों को क्षमा करने में मदद दे रही एक मुख्य बिंदु यहाँ हम देखते हैं। स्तेफनुस ने ईश्वर की महिमा को देखा। ऐसा अनुभव करने के बाद, मुझे विश्वास है कि स्तेफनुस जितना जल्दी हो सके ईश्वर के साथ रहना चाहता था। शायद इसलिए उसे अपने अत्याचारियों को क्षमा करना और भी आसान हो गया था, क्योंकि वह अपने अंतिम गंतव्यस्थान तक जल्द पहुंचने में मदद करनेवालों के रूप में उन अत्याचारियों को देख पाता था।
पिछली चोटिल घटना के नकारात्मक परिणामों के बारे में सोचना एक मानवीय प्रवृत्ति है। अगर हम उद्देश्यपूर्ण ढंग से उस तरह से सोचना बंद कर देते हैं और उन घटनाओं के कारण हमें मिलने वाले लाभों को गिनना शुरू कर देते हैं, तो यह बड़े आश्चर्य पूर्ण कार्य होगा। उदाहरण के लिए, मैंने अपने कार्यालय के एक पुराने सहयोगी की गंदी राजनीति के कारण अपनी नौकरी खो दी होगी, लेकिन इसी के कारण मुझे एक बेहतर नौकरी के लिए आवेदन करने और उसमे सफलता हासिल करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था! मैं गैर-भौतिक लाभों को भी गिन सकता हूँ। उन घटनाओं ने शायद मुझे आध्यात्मिकता में बढ़ने में मदद की होगी या हो सकता है कि उन घटनाओं ने मुझे एक मजबूत व्यक्ति बनाया है, आदि इत्यादि। एक बार जब हम इसे मूर्तरूप होते देखना शुरू कर देंगे, तो हमें चोट पहुँचानेवालों को माफ़ करना हमारे लिए बहुत आसान होगा।
उत्तर 5: उसे माफ करें ? किस लिए? उसने क्या किया?
मैं उनके पापों को याद नहीं रखूंगा (इब्रानी 8: 12 )
जब मुझे लगता है कि दूसरे व्यक्ति ने मुझे चोट पहुंचाने के उद्देश्य से कार्य किया है तभी क्षमा करने का एक कारण बनता है! यदि उसके कार्य ने मुझे आहत नहीं किया, तो क्षमा करने की बात कहना अप्रासंगिक हो जाता है।
मेरे मित्र के जीवन की एक घटना इस प्रकार है: एक बार वह किसी बहुत ही महत्वपूर्ण साक्षात्कार के लिए बाहर जाने वाला था| इसलिए विशेष रूप से चुने गए, अच्छी तरह से इस्त्री किए गए कपड़े पहन लिया था| घर छोड़ने से ठीक पहले, उसने देखा कि उसकी छोटी बच्ची एक सुंदर मुस्कान के साथ उसके पास रेंगकर चली आ रही थी। उसने तुरंत उसे अपनी बाहों में ले लिया और एक पल के लिए उसे पुचकारा। कुछ ही पलों के बाद, उसने अपने शर्ट पर गीलापन महसूस किया और उसे पता चला कि बच्ची ने लंगोट नहीं पहनी है। वह बहुत परेशान हो गया और अपना क्रोध पत्नी पर उतार दिया।
उसने जल्दी अपने कपड़े बदल दिए और निकल गया। रास्ते में, प्रभु उससे बात करने लगे:
“क्या तुमने उसे माफ कर दिया?”
“यह उसकी गलती थी … उसे और अधिक जिम्मेदार होना चाहिए था” उसने बड़बड़ाया।
प्रभु ने सवाल दोहराया, “मेरा मतलब, क्या तुमने अपनी बच्ची को माफ कर दिया?”
“मैं अपनी बच्ची को माफ करूँ? किस लिए? उसने क्या गलती की? वह क्या सही और गलत को जानती है? ”
उस यात्रा के दौरान, प्रभु ने मेरे दोस्त के सम्मुख अपना दिल खोलकर अपने दिव्य शब्दकोश में ‘क्षमा’ का अर्थ समझा दिया।
याद करो येशु ने क्रूस पर जो प्रार्थना की, “हे पिता, उन्हें क्षमा कर; क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।“ (लूकस 23:34)
येशु ने जिस तरह क्षमा की उसी तरह क्षमा करना हमारे लिए आदर्श है, लेकिन यह केवल प्रभु की प्रचुर कृपा से ही हासिल किया जा सकता है। हम क्षमा करने का निर्णय लेकर अपनी इस सच्ची इच्छा को स्वर्ग की ओर उठा सकते हैं। हमारे पास माफ करने के कारणों की कमी नहीं है। आइए हम शिशु की तरह छोटे छोटे कदम बढायें और प्रभु से कहे कि वह हमारी मदद करें।
प्यारे प्रभु, मैं अनुभव करता हूँ कि तेरे प्रिय पुत्र ने मुझे इतना प्यार किया कि वह पृथ्वी पर उतर आया और अकल्पनीय पीड़ा से गुज़रा ताकि मुझे क्षमा मिल सके। मेरी गलतियों और असफलताओं के बावजूद उसके घावों से तेरी दया बहती रहती है। मेरी मदद कर ताकि मैं येशु के पदचिन्हों पर चलते हुए मुझे चोट पहुँचाने वाले सब लोगों को माफ़ कर सकूँ। इस तरह मैं करुणा का अनुभव करूँ जो वास्तव में पूर्ण क्षमा करने से ही आती है। आमेंन।
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प्रश्न: ऐसा लगता है कि यह साल दिन-ब-दिन और भी अजीब होता जा रहा है। जब भी समाचार देखो कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ बुरा होने की खबर सुनाई देती है: पहले वायरस, फिर नस्लीय भेदभाव पर बहस, ऊपर से लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था। यह सब मुझे सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम दुनिया के अंतिम दिनों में जी रहे हैं?
उत्तर: क्या यह अंतिम समय है? यह सवाल लोग कईं सदियों से पूछते आ रहे हैं। लेकिन ख्रीस्तीय होने के नाते हमारा विश्वास यह कहता है कि मानव इतिहास सिर्फ कुछ बेमतलब की घटनाओं का सिलसिला नहीं है, और हम सब एक बड़ी कहानी का हिस्सा हैं, वह कहानी जिसे ईश्वर ने अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए लिखा है। हर कहानी के तीन हिस्से होते है: शुरुआत (दुनिया की सृष्टि और मनुष्य का पहला पाप), मध्य भाग (येशु का जन्म और उनके दुखभोग का रहस्य), और अंत (ख्रीस्त का पुनरागमन)। तो आपको क्या लगता है, क्या हम दुनिया के अंतिम दिनों में हैं?
हां यह बात तो है कि हम इस कहानी के मध्य भाग से गुज़र चुके है जो लगभग 2000 साल पुराना है और अब्राहम से ले कर येशु मसीह की कहानी कहता है। लेकिन इस सवाल का जवाब कोई नहीं जानता कि हम अंतिम भाग के कितने नज़दीक हैं। हो सकता है कि यह अंतिम भाग एक साल दूर हो, या पांच साल दूर, या सौ साल दूर, या हज़ार साल दूर। पर वह “अंत” एक लम्हे की बात नहीं है, यह अपने आप में एक प्रक्रिया है। देखा जाए तो हम अंत की इस शुरुआत को आज से 1400 साल पहले के नवजागरण या रेनेसां के आगमन से जोड़ कर देख सकते हैं। क्योंकि रेनेसां काल ने ही ईश्वर से ध्यान हटा कर इन्सान को जीवन का केंद्र बना दिया था, और सृष्टि को सृष्टिकर्ता से अलग देखने की सोच पर ज़ोर दिया था।
जब हम यह सोचने लगते हैं कि हम अंतिम दिनों में जी रहे हैं तो हम खुद को इस कहानी में कुछ ज़्यादा ही महत्व देने लगते हैं। देखा जाए तो हम सारी ज़िन्दगी मामूली चीज़ों की बात करते हैं, क्योंकि हमारी ज़िन्दगी मामूली चीज़ों और मामूली सिलसिलों से भरी पड़ी है। लेकिन इन मामूली चीज़ों का भी कहीं ना कहीं अपना महत्व है। मुझे एक बात की याद आती है जो कई साल पहले मेरी बहन ने मुझसे कही थी। उस दिन हम ‘लॉर्ड ऑफ द रिंग्स’ चलचित्र देख कर लौट रहे थे। शाम का वक्त था और ढलते हुए सूरज को देखते हुए उसने कहा “काश असल ज़िंदगी भी इसी तरह होती! किसी बड़ी तलाश, किसी रोमांचक कहानी की तरह!”
मैं अक्सर अपनी बहन के विचारों को अपने व्याख्यानों में शामिल करता हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि बहन को इन्सानी दिल में उठते खयालों की अच्छी समझ थी। इन्सान यह जानना चाहता है कि उसकी ज़िन्दगी बस एक इत्तेफाक नहीं है, और उसकी इस दुनिया में कोई अहमियत है, कोई मायना है। देखा जाए तो इन्सान के दिल में यह ख्याल ईश्वर ने ही डाला है, क्योंकि ईश्वर की मुक्ति की इस कहानी या महाकाव्य में इन्सान आखिर एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता ही है।
तो अगर ध्यान से देखा जाए तो वे काम जिन्हें हम मामूली समझते हैं, उनका इस कहानी में योगदान है। उदाहरण के तौर पर, अगर आप अपने बच्चों की देखभाल करते हैं, उनके लिए खाना बनाते हैं, तो आप उन अमर आत्माओं की शारीरिक ज़रूरतों का खयाल रख रहे हैं जो आगे चल कर अनंत काल के लिए या तो स्वर्ग या नरक का हिस्सा बनेंगे। वे या तो आगे चल कर धरती पर ईश्वर के राज्य का प्रचार करेंगे, या ईश्वर के राज्य को ही खंडित करेंगे। इस लिहाज़ से जो भी हम करते हैं, उन मामूली से मामूली कार्यों का असर मानव इतिहास और अनंत काल दोनों में पड़ता है। हम एक बड़ी लम्बी कहानी का हिस्सा हैं, हम अच्छाई और बुराई के बीच की लड़ाई का हिस्सा है। और हम यह लड़ाई अपनी-अपनी जगहों, अपने-अपने हालातों में रह कर लड़ रहे हैं।
इन सब बातों पर मनन चिंतन करना मेरे लिए आध्यात्मिक रूप से लाभकारी होता है, क्योंकि अब मुझे पता है कि ईश्वर की इस कहानी के आख़िरी मोड़ पर हम क्या भूमिका निभा रहे हैं। एक और बात जो मैंने समझी है वह यह है कि हम रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में कितनी हीं बातों की चिंता करते हैं जिनका इस महाकाव्य में शायद ही कोई वजूद होगा। चाहे वो रोज़ का ट्रैफिक जाम हो, या पैसे की चिंता, क्या अंत के दिनों में यह सब कोई मायने रखेगा? क्योंकि चाहे इस दुनिया का अंत नज़दीक हो ना हो, हमारा अंत तो नज़दीक भी है और सुनिश्चित भी। देखा जाए तो, “मौत निश्चित है” यह याद रखना ही जीवन का सार है। क्योंकि यह बात हमें इसे याद रखने में मदद करती है कि यह ज़िन्दगी हमारी छोटी छोटी चिंताओं से बढ़कर है और हमें उन चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करना है जो असल में अहमियत रखती हैं। और वह इस सच्चाई को याद रखने में है कि हमें मसीह के आगमन के लिए खुद को तैयार करना है।
एक पुरोहित के तौर पर मुझे इस बात ने हमेशा आश्चर्यचकित किया है कि हमारी पूजा विधि कितनी सारी जगहों पर येशु के पुनरागमन की बात करती है। मैंने हाल ही में मिस्सा बलिदान अर्पित करते समय इस बात पर गौर किया कि यूखरिस्त की हमारी सारी प्रार्थनाएं और सारा नया विधान सिर्फ और सिर्फ मसीह की राह देखने की बात करता है। हमारा धर्म परलोकी सिद्धांत पर चलता है, और हम हर वक्त चीज़ों के समाप्त होने की बाट जोहते हैं।
क्रूस पर अपनी मृत्यु द्वारा मसीह ने जिस मुक्ति को हमारे लिए जीत लिया वह अभी भी जारी है, या यूं कहे तो अधूरी है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि ख्रीस्त को इस मुक्ति कार्य में और कुछ जोड़ना बाकी है, दरअसल ईश्वर की इतनी भरपूर कृपा के बावजूद इस दुनिया में पाप चौगुनी तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। क्रूस के बलिदान ने ईश्वर से हमारा मेल मिलाप कराया लेकिन यह कृपा सिर्फ उनके लिए है जिन्होंने ईश्वर की पुकार को हाँ कहा, ईश्वर की यह कृपा अभी तक पूरे विश्व में, सब लोगों के दिलों पर राज नहीं कर पाई है। हाँ ईश्वर सबों के स्वामी हैं, पर वे भी सब बातों के पूरे होने पर ही अपनी पूरी शक्ति और सामर्थ का प्रदर्शन करेंगे। इसी वजह से हर सदी में कलीसिया ने पुकार पुकार कर कहा है “आइये प्रभु येशु, आइये!” कैथलिक होने के नाते हम सब उस दिन कि बाट जोह रहे हैं जब ईश्वर की मुक्ति पूरी होगी और जब मृत्यु रूपी उस आख़िरी दुश्मन का सर्वनाश होगा।
इसीलिए जब हम इस आख़िरी जीत का इंतजार करते हैं तब ख्रीस्त हमें जागरूक रहने और समय के संकेतों पर ध्यान देने के लिए आह्वान करते है। हर सदी ने खुद से यह सवाल किया है कि “क्या यही अंतिम दिन हैं?” हमारी सदी भी उनकी तरह इसी सवाल में उलझी है। इसीलिए नबी, ज्ञानी पुरुष और जिन जिन लोगों का मन मसीह में लगा रहता है, वे सब लोग इस सवाल पर चर्चा करते रहेंगे। ये बात और है कि हमारी सदी और बीती सदियों में काफी फर्क रहा है, फिर भी हमारी सदी में भी हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह समय के संकेतों को ध्यान में रख कर इस सवाल पर मनन चिंतन करे।
और हालांकि इस बात पर कोई ठोस निष्कर्ष निकालना हमारे बस की बात नहीं है, फिर भी हमें प्रार्थना के मार्गदर्शन में सत्ता, समाज, प्रकृति और दर्शन शास्त्र में आ रहे बदलावों पर ध्यान देना चाहिए। यहीं बातें आध्यात्मिक तौर पर हमारी सहायता कर सकती हैं। क्योंकि देखा जाए तो नए विधान के वचन हमें बार बार अपनी आध्यात्मिक आंखों से अपने आसपास की दुनिया को जांचने परखने के लिए कहते हैं।
अंत समय के ऊपर मनन चिंतन का यह मतलब नहीं है कि हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ लें, क्योंकि अंत समय का ख्याल हमें अपनी ज़िम्मेदारियों को और भी हार्दिक इच्छा शक्ति के साथ निभाने के लिए प्रोत्साहित करता है। और बाइबल भी हमें यही सिखाती है कि अगर हम आधे मन से काम कर रहे होंगे या सो रहे होंगे तो जब दूल्हा आएगा, वह मूर्ख कुंवारियों को बिना साथ लिए लौट जाएगा। और अगर मैं यह सोचूं कि मेरी ज़िन्दगी सिर्फ मामूली और बेमतलब की बातों से भरी हुई है, या ख्रीस्त के आने में समय है इसीलिए मैं बाद में पश्चाताप और पाप स्वीकार कर लूंगा, तो ऐसा सोचना भी ग़लत होगा। क्योंकि बाइबल कहती है कि मसीह चोर की तरह रात को आएंगे। और यह बात दुनिया के हर व्यक्ति पर लागू होती है। तो अब सवाल यह उठता है कि क्या इन सब बातों के लिए कलीसिया तैयार है? क्या दुनिया तैयार है? अगर नहीं, तो फिर हमें किन बातों के द्वारा खुद को मसीह के पुनरागमन के लिए खुद को तैयार करना चाहिए?
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ज़िन्दगी आखिरकार अपने प्रक्षेप पथ को ढूंढने से सफल हो जाती है |
मैं अक्सर सोचती हूँ कि मैं कितनी सौभाग्यशाली हूँ कि मेरी परवरिश एक कैथलिक के रूप में हुई है | मुझे बचपन से ही सही राह दिखाई गयी | शुरू से ही मेरे अंदर विश्वास की ज्वाला जलाई गयी और वह ज्वाला जीवित रखी गयी | देखा जाए तो मुझे अपनी तरफ से कभी इसकी खोज करनी ही नहीं पड़ी|
क्या मैंने इन मान्यताओं को बढ़ाने के लिए अपनी तरफ से जायज़ कोशिश की? कई बार शक, आलस या निराशा ने मुझे घेरे रखा| इन सब के बीच भी मेरे विश्वास न केवल जीवित रहा, बल्कि खुद को और मज़बूत ही किया है| मुझे नहीं लगता कि मैं केवल अपनी समझदारी के बलबूते पर जीवन में आगे बढ़ पाती| तो यह सच है कि मुझे हमेशा बड़े पैमाने पर, ज़रुरत से ज़्यादा, मदद मिली है | अभी हाल ही में मुझे अपने बचपन की एक बात याद आयी| मेरा नौवां जन्मदिन आने वाला था जब माँ और मैं सेंट माइकल कैथलिक गिफ्ट शॉप में खरीदारी कर रहे थे| वहां रखी कई सारी धार्मिक तस्वीरों, मूर्तियों और मेडलों के बीच एक चीज़ ने मेरा ध्यान खींचा, और वह थी माँ मरियम की एक तस्वीर| मुझे बाद में बताया गया कि उसे “सदा सहायिका माता” की तस्वीर कहते हैं|
माँ मरियम से मेरी देखभाल करनेवाली प्यारी स्वर्गिक माँ के रूप में परिचय होना मेरे लिए आने वाले कई सालों तक कई अलग अलग मायनों में मददगार साबित हुआ| जब मेरी माँ ने मुझे एक किताब दी थी जिसका शीर्षक था “फातिमा की माँ मरियम की स्वर्गीय शान्ति योजना”, तब मुझे पता चला कि हमारी धन्य माँ हमसे कितना प्यार करती हैं और हमारी मुक्ति की कामना करती हैं| माँ मरियम के अलग अलग जगहों पर प्रकट होने के ऊपर बनी एक वीडियो ने इसके बारे में मेरी सोच और मज़बूत की|
तबसे मैंने माँ मरियम को एक ऐसी शख्सियत के रूप में जाना है जिनसे मैं कभी भी बात कर सकती हूँ| वे हमेशा मुझे ईश्वर के और नज़दीक ले आती हैं, और जब भी मुझे एक चमत्कार की ज़रूरत होती है, मैं उनकी मध्यस्थता से प्रार्थना करती हूँ| कई मौकों पर जब उन्होंने मेरी मदद की है तो उसका जवाब मुझे बुधवार को मिला है और बुधवार को हमेशा से सदा सहायिका माता के दिन के तौर पर देखा जाता रहा है|
माँ मरियम मुझे यह भी सिखाती है कि ईश्वर के बारे में हमारी हर इच्छा पूरा करनेवाले किसी जादूगर के रूप में दृष्टि नहीं रखनी चाहिए | इसके बदले उन्होंने मुझे शक्ति दी कि मैं उन मुश्किलों को पार कर सकूँ जो ईश्वर मेरी इच्छा पूरी करने से ठीक पहले, मेरे विश्वास को परखने लिए, मेरे सामने रखते हैं | अक्सर माँ की मध्यस्थता ने मुझे अपनी चिंताओं को उनको सुपुर्द कर अपनी ज़िन्दगी में और उनके बेटे येशु पर ध्यान लगाने में मदद की है|
जब मैं अपनी ज़िन्दगी में हुए हर आध्यात्मिक अनुभव, हर बोली गयी मध्यस्थता, हर आशीष को एक साथ जोड़ कर देखती हूँ तो मुझे अहसास होता है कि वे साड़ी आशीषें मिल कर मेरी ज़िन्दगी का प्रक्षेप पथ (यात्रा मार्ग) बनाती हैं| प्रक्षेप पथ की परिभाषा यह है कि वह तय की गयी राह है, जिस पर किसी वस्तु को भेजा जाना है और उस वस्तु को कुछ शक्तियां मिलकर किसी एक विशेष दिशा की ओर धकेलती है| मुझे लगता है कि इसे हमारी आध्यात्मिक यात्रा के रूप में देखा जा सकता है|
कितना अच्छा होगा अगर हम अपनी ज़िन्दगी से थोड़ा समय निकाल कर इस बारे में सोचें कि ईश्वर और हमारे बीच का सम्बन्ध असल में गहरा होना कब शुरू हुआ? कोई तो होगा इस धरती पर, जिसने स्वर्ग में किसी की सहायता से मिलकर इस यात्रा में हमारी मदद की| माँ मरियम, संत योसेफ, संत अन्थोनी, और बाकी सारे संत गण हमे येशु के नज़दीक लाते हैं, और उस समय के लिए हमें तैयार करते हैं जब येशु सच्चे गड़ेरिये के रूप में हमारे जीवन में आएंगे और हमारा मार्गदर्शन करना शुरू करेंगे|
आइये याद करें कितनी अनगिनत बार ईश्वर ने हमें हमारी ज़रुरत से ज़्यादा दिया है; वे अनगिनत संयोग जिन्होंने हमें हमारे दोस्तों, प्रियजनों से मिलवाया है; और वे छोटे छोटे चमत्कार जिन्होंने हमारी ज़िन्दगी में उस वक़्त रोशनी भरी जब हम अपने रोज़मर्रा के काम में व्यस्त थे, इस लिए हमने इन चमत्कारपूर्ण संयोगों पर ध्यान नहीं दिया| आइये हम उस प्रक्षेप पथ की खोज करें जिसे ईश्वर ने हमारे लिए तैयार किया है; हम उस प्रक्षेप पथ पर डटे रह कर अपनी पूरी शक्ति से प्रार्थना करें| पहले की तुलना में इस वक्त दुनिया को हमारी प्रार्थनाओं की सबसे ज़्यादा ज़रुरत है|
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किराने की दुकान पर एक आम सुबह खिली थी| एक बुज़ुर्ग दम्पति उस दुकान की गलियारी के बीच से तेज़ी से गुज़र रही थी | पत्नी लिए गए सामानों के कार्ट को संभाल रहीं थी जबकि पति आगे बढ़ कर अपनी सूची के हिसाब से सामान इकठ्ठा कर रहे थे| इन्हीं सब के बीच कार्ट घुमाते वक़्त वह कार्ट कांच और चीनी मिटटी के बर्तनों के शेल्फ से जा टकराया| बहुत सारे बर्तन टूटकर धमाके की आवाज़ के साथ नीचे फर्श पर बिखर गए | पूरी दुकान उस टक्कर की आवाज़ से गूँज उठी| लोग फुसफुसाते हुए हो चुके नुक्सान के बारे में बातें करने लगे| बेचारी बूढ़ी महिला घबराई हुई नज़रों से उस टूटे बर्तनों के सागर को देखने लगीं | शर्म के मारे वे अपने घुटनों के बल पर बैठकर हड़बड़ाहट में बिखरे हुए टुकड़ों को समेंटने लगीं| इसी बीच उनके पति खड़े खड़े बड़बड़ाने लगें, “अब हमें इन सब टूटे बर्तनों के पैसे देने पड़ेंगे !”
हर कोई बस उनके पास खड़ा उस बेचारी महिला को घूरते जा रहा था | इसी समय दुकान के मैनेजर ने आ कर उन लोगों को वहाँ से हटने के लिए कहा| फिर उस बुज़ुर्ग महिला के पास घुटनों के बल बैठ कर मैनेजर ने कहा, “आप यह सब छोड़ दीजिये, हमलोग साफ़ कर लेंगे| आप बस आ कर अपना नाम, पता नोट करा दीजिये, क्योंकि अभी आपको अस्पताल जा कर अपने हाथ पर लगी चोट पर मलहम पट्टी लगवाने की ज़्यादा ज़रुरत है|”
बूढ़ी महिला ने सहमी हुई निगाहों से अपनी’ चारों ओर फैले टूटे बर्तनों को देखते हुए कहा, “लेकिन मुझे पहले इस नुक्सान की भरपाई करनी होगी |” मैनेजर ने मुस्कुराते हुए उन्हें उनके पैरों पर खड़ा होने में मदद करते हुए कहा, “नहीं मैडम, हमारे पास इस नुक्सान के लिए बीमा है, आपको किसी भी तरह का भुगतान करने की कोई ज़रुरत नही हैं, पूरी तरह भुगतान किया जा चुका है !”
कल्पना कीजिये, उस बूढ़ी महिला को यह सुनकर कितनी राहत हुई होगी जब उन्हें समझ आया कि उनके ऊपर लगा दोष और उसका जुर्माना उनके कन्धों पर से हटा दिया गया था| आइये एक क्षण के लिए हम अपनी आँखें बंद करें और कल्पना करें कि ईश्वर हमारे लिए कुछ ऐसा ही कर रहे हैं!
अपने टूटे दिल के बिखरे टुकड़ों को बटोरें, जो ज़िन्दगी की तकलीफों भरी धक्का-मुक्की का शिकार हो कर टूटा हुआ है | ईश्वर हमें इस नुक्सान और इस चोट के लिए जो बीमा की रकम देते हैं उसे कृपा कहते हैं| जब हम उन्हें अपने जीवन में अपनाएंगे, उनके रास्ते पर चलेंगे और उनसे माफ़ी मांगेंगे, तब इस संसार के मैनेजर – हमारे ईश्वर- हमसे कहेंगे, “सब कुछ का भुगतान किया जा चुका है!”
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एक संस्मरण
“तुमने मेरी कॉफ़ी को छुआ!” कॉफ़ी हॉउस में बैठी उस महिला ग्राहक ने युवा सेविका को देखकर चिल्लाया। वह नव युवती असहाय रूप से रोती रोती उस क्रुद्ध महिला को नया प्याला देने की कोशिश कर रही थी । हमें लगा कि वह महिला स्थानीय नहीं है । कॉफ़ी हाउस के स्थायी ग्राहक उस जवान लड़की की सुरक्षा में लामबंद हो गए। “यदि आप संदूषण या संक्रमण के बारे में बहुत चिंतित हैं, तो आपको घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए!” एक ने चिल्लाया। “घर पर ही रहो !” एक और ने साथ दिया |
एक आत्मिक सलाहकार की हैसियत से, मैंने उस युवा सेविका को सांत्वना के कुछ शब्द कहने का प्रयास किया । उसने सिसकियों के बीच मेरे लिए कॉफ़ी बनाया, उस दौरान मैंने उसे याद दिलाया कि वर्तमान परिवेश ने सभी को तनावग्रस्त कर दिया है, इसलिए उसे इसे व्यक्तिगत रूप से नहीं लेना चाहिए और इस घटना के कारण इस अच्छे दिन को खराब होने नहीं देना चाहिए। बस कुछ ही मिनटों बाद, मुझे अपनी उस सलाह को अपने को ही सुनाना पड़ा । जब मैंने गलती से किराने की दुकान पर डेढ़ मीटर के निशान का उल्लंघन किया, तो एक बुजुर्ग सज्जन ने मुझे बड़े गुस्से के साथ कहा: “अपने स्थान पर रहो!” अपनी बात को अतिरिक्त जोर देने के लिए उन्होंने अपने ही पंजे पर दूसरे हाथ से प्रहार किया। फिर, जब मैं अपनी छोटी पोती को ज़रूरी कसरत के लिए घर से बाहर निकालक्र ले जा रही थी, तो उसे एक राहगीर ने देख लिया, और चिल्लाया “डेढ़ मीटर!” और झुंझलाहट के साथ दूर हटकर चलने लगा !
ये सिर्फ कुछ घटनाएं हैं, जो कोविड-19 महामारी से छिपी हुई त्रासदियों में से कुछ हैं । जो भय और चिंताएँ व्याप्त हैं, उन के कारण जीवन के प्रेम, आनंद और अनुग्रह नष्ट हो चुके हैं । शायद ही कोई मुस्कुराया हो। लोग सिर झुकाकर चल रहे हैं, आँखें सतर्क रूप से सजग हैं, लेकिन शरीर की भाषा स्पष्ट रूप से संकेत देती है: “मुझसे दूर रहो |” ऐसी प्रतिक्रियाएं आसानी से समझी जा सकती हैं, क्योंकि हम एक खतरनाक, अदृश्य दुश्मन का सामना कर रहे हैं और हमें नहीं पता कि महामारी समाप्त होने से पहले इसकी तलवार की मार से किस किस का पतन होगा | हजारों जीवन और आजीविका प्रभावित हैं; सामाजिक दूरी और स्व-अलगाव इस नए और अज्ञात वायरस के खिलाफ बहुत ज़रूरी ढाल बन चुके हैं |
छिपे और अनछिपे हताहत और त्रासदियाँ
हम सभी इससे प्रभावित हुए हैं। हमारे प्रियजनों की मौत और अग्रिम पंक्ति में रहकर संघर्ष कर रहे समर्पित स्वास्थ्य कर्मियों और कोरोना योद्धाओं की क्षति पर हमारा दुःख बहुत भारी और अविश्वसनीय है। प्रियजनों की मृत्यु का कारण जो भी हो, पर उदासी भारी हो जाती है और विशेषकर इस परिस्थिति में जब शोक करने वाले अपने मित्रों और सम्बन्धियों की दिलासा को प्राप्त करने में हम असमर्थ होते हैं। मेरी संवेदनाएं उनके दिलों के दर्द के प्रति जागृत है और मैं केवल उनकी आत्माओं और उनके परिवारों की सांत्वना के लिए प्रार्थना कर सकती थी। सरकार और स्वास्थ्य अधिकारियों ने इसे नियंत्रित करने और इसे रोकने के लिए सबसे अच्छे उपाय निर्देशित किये हैं, और जो कुछ संभव था वह सब किया जा रहा है। उनमें से कई लोगों ने माना कि यह लड़ाई युद्ध में जाने के बराबर है। और वास्तव में बहुत सारे हताहत हुए हैं। हर राष्ट्र अपने घुटनों पर गिर गया।
लेकिन व्यक्तिगत रूप से मुझ पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है? जब लॉकडाउन और शटडाउन लगाए गए थे, मैंने अपनी उन परियोजनाओं को देखा, जिन पर मुझे काम करना था। उस पल में, वे अप्रासंगिक लग रहे थे। यह जानते हुए कि मैं अब उन पर काम नहीं कर पाऊँगी, मैंने उन्हें ठन्डे बस्ते में डालकर भविष्य में उन पर काम करने का फैसला किया । मेरा दृष्टिकोण जल्दी ही बदल गया | अब मुझे भविष्य नहीं बल्कि पल-पल का जीवन बस दिखाई दिया और मैं ने समझा कि स्वास्थ्य और सुरक्षा से बढ़कर कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं। जब मुझे एक चिकित्सा के मुद्दे पर डॉक्टर से मिलने जाना पड़ रहा था, उस समय मैंने ईश्वर से अनुनय विनय किया कि मुझे अस्पताल जाने की स्थिति से बचा लें, क्योंकि मैं वहां के वातावरण से भयभीत थी।
मैं और अधिक चिंतनशील हो गयी और यह जांचने लगी कि मेरे जीवन के किन हिस्सों को बदलने की जरूरत है। हर दिन मैंने अपने घुटनों पर प्रार्थना करते हुए प्रभु से मदद मांगी। प्रत्येक घंटे में, मैंने सभी के लिए प्रभु के संरक्षण हेतु अपना पसंदीदा स्त्रोत्र 91 की प्रार्थना करना शुरू किया | साथ साथ “हे प्रभु येशु मसीह, परमेश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कर” यह प्रार्थना मैं निरंतर बोलने लगी|
अनजाने आशीर्वाद
मैं आमतौर पर भविष्य की परियोजनाओं के बारे में उत्साहित हूं, लेकिन कोविड-19 के साथ, भविष्य धुंधला हो गया। अनिश्चितता मेरी दैनिक वास्तविकता बन गई। क्योंकि मैं एक व्यस्त जीवन का आदी हूं, मुझे लॉकडाउन का सामना करने के लिए कुछ नयी गतिविधियों को खोजने की ज़रुरत थी। मैं परिवार के लिए, पहले से ज्यादा रसोई में खाना बनाने के काम में लग गयी । जब से मेरी बेटी और दामाद ने घर से काम करना शुरू किया किया, मैं रसोई में बहुत सारे काम करने लगी। पारिवारिक जीवन हमारी नींव बन गया। पहले के कुछ हफ्ते घर में 24 X 7 रहना मुश्किल हो रहा था लेकिन परिवार की एकजुटता को ज्यादा महत्व दिया गया और हमने एक-दूसरे की सराहना की और इस तरह पारिवारिक रिश्ता मज़बूत हुआ । हम में से प्रत्येक ने घर के कामों में अधिक योगदान दिया।
प्रतिदिन कपड़ा धोना अब एक राहत भरा काम बन गया, वाशिंग मशीन की आवाज स्वाभाविक और सुखद मालूम हो रहा है | अलमारियों को साफ़ करने और घर को व्यवस्थित करने के लिए खूब वक्त था, और इस से मुझे जीने का कुछ लक्ष्य निर्धारित करने में मदद मिली | नींद जबरदस्त आने लगी तो मुझे लगा कि यह काम से भागने की प्रवृत्ति है, लेकिन बाद में मैं ने एहसास किया कि पिछले कुछ वर्षों में मेरे शरीर से ऊर्जा निकल गयी थी, इसलिए मैं ने नींद का स्वागत किया और धीमी गति से जीना सीखा | सुबह का स्नान दोपहर के बाद का रिवाज़ बन गया, क्योंकि मुझे घर के लिए अनिवार्य चीज़ों को खरीदने सुबह दूकानों में जाना होता था |
छोटे चमत्कार भी हुए | कभी टॉयलेट पेपर को, कभी हाथ पोंछने के लिए नैपकिन्स को, तो कभी रोगाणुनाशी स्प्रे को खोजती खोजती मैं परेशान हो जाती थी | इन में से कुछ भी आलमारी में नहीं दिखाई दिया, तो अचानक मुझे सुखद आश्चर्य हुआ जब मैं ने देखा कि ये चीज़ें ट्राली में उपेक्षित पड़े हैं |
ईश्वर कहाँ है ?
दुनिया के कुछ हिस्सों से आई रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रकृति एक पुनरावर्ती विश्राम ले रही थी क्योंकि प्रदूषण कम हो रहा था और आकाश, सागर, वन पुनर्जीवित हो रहे थे । चालीसा के तपस्या काल में और ईस्टर के दौरान हमारे गिरजाघरों को बंद करना ख़ास तौर पर मुश्किल था, और मुझे ताज्जुब हो रहा है कि प्रभु हमें क्या संदेश देना चाह रहे हैं। कई लोगों ने पूछा कि इन सब में प्रभु ईश्वर कहाँ है? आध्यात्मिक संदेश बहुतायत से मिल रहे हैं। उनमें से अधिकांश प्रोत्साहित करने वाले सन्देश हैं, क्योंकि ये सन्देश यह पुष्टि करते हैं कि इस त्रासदी का कारण ईश्वर नहीं है | क्योंकि वह कोई बुराई नहीं करता, लेकिन इस दर्दनाक सफ़र पर वह हमारे साथ यात्रा कर रहा है, ठीक उसी तरह जब उसने हमारे साथ यहां पृथ्वी पर पीड़ा भोगी थी, और उसका पुनरुत्थान हमें आशा देता है कि हम इस विपत्ति को झेल लेंगे ।
हमारा प्रार्थना दल जो पिछले 22 वर्षों से साप्ताहिक बैठक कर रहा है, तालाबंदी से हतोत्साहित नहीं हुआ। पवित्र आत्मा के मार्ग निर्देशन पर, हमने हर शुक्रवार को फोन सम्मेलन द्वारा अपनी प्रार्थना सभा और आध्यात्मिक संगति का आयोजन किया, और इस मुश्किल अवधि के लिए भविष्य वाणी या नबूबत के संदेश और उपदेश एकत्रित किए ।
प्रौद्योगिकी के उपयोग को अपनाते हुए हम अपने धर्मगुरुओं से जुड़े रहे | उन्होंने हमारे लिए मिस्सा बलिदान अर्पित करना जारी रखा । इस से यह फायदा हुआ कि बहुत से लोग जो पहले मिस्सा बलिदान में उपस्थित नहीं थे, वे गिरजाघर की सभाओं और उपदेशों को सुनाने के लिए टेलीविज़न कार्यक्रमों को देखने लगे | इस प्रकार विश्वास का गहरी, आंतरिक मनन चिंतन और समझ का मार्ग प्रशस्त हुआ। आगे कभी भी मैं यूखरिस्त के महान उपहार को हलके में नहीं लूंगी। यह मेरे लिए अब तक का सबसे गहन उपवास का अनुभव था।
हाल ही में, मुझे एक मित्र का फोन आया जो एक गंभीर बीमारी से रोज़ लड़ रही है – दिल और गुर्दे की बीमारियों से किसी भी समय उसकी मौत हो सकती है । जब वह इन जटिलताओं की एक और लड़ाई के दौर के बाद अस्पताल से बाहर आई, तो उसने मुझे बताया कि उसकी सोच बस एक-एक दिन जीने के बारे में है। मैंने मनन किया तो लगा कि हम सभी एक ही नाव में हैं।
कोविड-19 ने हमें एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया है – सुबह जब हम जागते हैं तब से लेकर दिन भर हमें प्रत्येक पल को महत्व देना चाहिए, और ईश्वर के प्रति कृतज्ञ बने रहना चाहिए। प्यार भरे शब्दों को अभी और यहीं पर बोला जाना चाहिए, प्यार भरे कार्यों को आज ही कर लेना चाहिए, कल के लिए नहीं टालना चाहिए।
किसी ऐसे व्यक्ति जिसने आज के दिन हमारी सेवा की है, क्या हमने कभी उसे दिल से धन्यवाद कहा है? ” हे महान प्रकाश पुंज ईश्वर, हर सुबह तेरा प्यार नवस्फूर्ति से भरपूर है, और दिन भर तू दुनिया की भलाई के लिए कार्य कर रहा है। तेरी सेवा करने, पड़ोसियों और तेरी सम्पूर्ण रचना के साथ शांति से रहने की तीव्र तृष्णा हमारे अन्दर जगा दे । हर एक दिन तेरे पुत्र, हमारे उद्धारकर्ता येशु मसीह को समर्पित करने की इच्छा हम में जगा दे ।” – आमेन।
(प्रात:कालीन प्रार्थना की धर्म विधि “अपर रूम आराधना क्रम” से उद्धृत।)
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प्रश्न:- मैं अपने जीवन में बहुत एकाकीपन महसूस करता हूं। मैं अपने परिवार से अलग हो गया हूँ, और मेरे कोई दोस्त भी नहीं हैं। अगर मैं इसी दर्दभरे अकेलापन में ही रहूँ तो मेरे जीवन में कभी आनंद का अनुभव होगा ?
उत्तर:- अकेलापन दर्दनाक है | लेकिन यह आम जीवन का हिस्सा बन चुका है। विख्यात औषधि कंपनी सिगना द्वारा प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि 46% अमेरिकियों को “कभी-कभी या हमेशा” अकेलापन महसूस होता है, और अकेलेपन की उच्चतम दर युवा लोगों (18-22 वर्ष की आयु) में होती है। इसलिए, यदि आप ‘अकेले’ हैं, तो जान लें कि आप ‘अकेले’ नहीं हैं!
हम सभी कभी न कभी अकेलापन महसूस करते हैं। एक धर्मगुरु के रूप में, निश्चित रूप से, मुझे भी अकेलापन का दर्द होता है। मेरे लिए, रविवार की दोपहर के बाद सबसे अधिक अकेलापन का एहसास होता है । रविवार की सुबह अक्सर भक्ति से सराबोर उत्साही विश्वासियों की संगति में हर्षोल्लास के साथ बीता जाता है, लेकिन जब वे सभी अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए घर चले जाते हैं, तब मैं अपने खाली आवास पर लौट जाता हूं।
लेकिन जब ऐसा होता है, तो मैं अपने अकेलापन को ‘एकांत’ में बदलने की कोशिश करता हूं। ‘अकेलापन’ और ‘एकांत’ में क्या फर्क है? अन्य मनुष्यों के साथ संबंध की कमी को अकेलापन का दर्द कह सकते हैं । प्रभु से घनिष्ठ या अन्तरंग रूप से जुड़े रहकर जिस शांति का अनुभव किया जाता है उसे एकांत कहा जा सकता है । अकेलापन चाहे जितना भी दर्दनाक हो, प्रभु के साथ एक गहरी घनिष्ठता के लिए यह एक निमंत्रण हो सकता है। जब हम मानवीय संपर्क के लिए इस लालसा या दर्द को महसूस करते हैं, तब हम उस खालीपन को भरने के लिए प्रभु को आसानी से आमंत्रित कर सकते हैं। वह हमारा सबसे करीबी दोस्त है; वह हमारी आत्माओं से प्रेम करता है।
और वह जानता है कि अकेला होने का म तलब क्या है! उनके दुखभोग के दौरान, उनके लगभग सभी दोस्तों ने उन्हें त्याग दिया, जिससे उनका पवित्र ह्रदय चोटिल हुआ। हम अपने अकेलापन को उसके साथ साझा कर सकते हैं।
लेकिन सच्चाई यह भी है कि “अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं !” (उत्पत्ति 2:18)। अच्छी बात है कि हम एक बड़े समुदाय का हिस्सा हैं: मसीह का शरीर अर्थात कलीसिया । हम हर समय अपने कलीसिया परिवार से घिरे रहते हैं – न केवल विश्वासियों के सांसारिक समुदाय से, बल्कि स्वर्गदूतों और संतों (“विजयी कलीसिया”) से भी हम घिरे हैं । उन सबकी जीवन कथाएं हमें प्रेरणा और सांत्वना दे सकती हैं। संत जॉन बोस्को, संत पंक्रास, मदर टेरेसा जैसे कई संत हैं जिनसे मैं व्यक्तिगत रूप से जुड़ा हुआ महसूस करता हूं । वे मेरे दोस्त हैं, हालांकि इस समय हमारी मित्रता ‘पत्र मित्र’ के स्तर पर है। जब मैं उनकी मध्यस्थता की विनती करता हूं, तो वे मेरे लिए प्रार्थना करते हुए मेरी प्रार्थना का परिणाम अंतर्दृष्टि के रूप में मुझे देते हैं ! लेकिन किसी दिन, मैं उनसे आमने-सामने मिलने और हमेशा के लिए उनके सान्निध्य का आनंद लेने की आशा करता हूं।
जब हम शोधन स्थान (“दुख भोग रही कलीसिया”) की पवित्र आत्माओं के लिए प्रार्थना करते हैं, तो हम अपने उन प्रियजनों से भी जुड़ते हैं जो हमसे पहले इस दुनिया से चले गए हैं, और जिन्हें याद करने वाले और प्रार्थना करने वाले कोई नहीं है क्योंकि उन्हें धरती पर अकेलापन सहना पड़ा। हमारे अकेलापन के दर्द को उनके लिए समर्पित करने से और बदले में उनकी प्रार्थनाओं को स्वीकार करने से, हम अपने दुख को योग्यता में बदल देते हैं।
हमारे स्वर्गीय मित्रों के अलावा, “प्रयतमान कलीसिया” (कलीसिया के सदस्य जो यहाँ पृथ्वी पर हैं), उनके द्वारा भी हमारे लिए एक समुदाय प्रदान किया जाना चाहिए। आप अपनी कलीसिया में सक्रिय रूप से शामिल हो जाएँ तो आप प्रेरक और मिलनसार लोगों से मिलेंगे। शायद आपके यहाँ का बाइबल अध्ययन दल आपकी कलीसिया में सक्रिय भागीदारी केलिए मौक़ा दे रहा है। आप अपने उम्र के या काम के स्तर के लोगों के लिए निर्धारित किसी समूह में भाग ले सकते हैं या यदि कोई ऐसा दल नहीं है तो एक नया समूह आप बना सकते हैं | आप विन्सेंट डी पॉल सोसाइटी, मरिया की सोडालिटी या सेवा के लिए तत्पर किसी भी समूह के साथ जुड़कर दूसरों की मदद कर सकते हैं | कभी कभी हमें अपनी पल्ली सीमा से बाहर खोजना पडेगा |
क्या आपके शहर में जीवंत गतिविधियों में संलिप्त अन्य कैथलिक समुदाय हैं या ऐसा कोई समुदाय है जिनके साथ आसानी से आप जुड़ पाएंगे ? मैं कुछ ऐसी पल्लियों में रहा हूँ जहाँ सामुदायिक वातावरण हार्दिक और प्यार भरा रहा है, और कुछ अन्य स्थानों पर भी रहा हूँ जहाँ इसकी कमी थी। मेरी नियुक्ति ऐसी एक विशेष पल्ली में हुई थी, जहां बहुत कम सामुदायिक गतिविधियाँ होती थीं । पल्लीवासी मिस्सा बलिदान में आते थे और तुरंत चले जाते थे । इसलिए, एक समुदाय की तलाश में, मैं एक स्थानीय कैथलिक स्कूल में स्वेच्छा से कार्य करने लगा जहाँ मुझे कुछ अच्छे और जोशीले परिवार मिले जो आज भी मेरे मित्र हैं। मैं गारंटी देता हूं कि समुदाय वहां “बाहर” है, हमें बस उन्हें ढूँढने की हिम्मत रखनी चाहिए !
जो लोग किसी न किसी कारण से घर के अन्दर काम करते हैं, वे अन्य तरीकों से सम्बन्ध जोड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए मसीही कैदियों को पत्र लिखना शुरू करें जिन्हें समर्थन और प्रोत्साहन की आवश्यकता है। हम कभी भी फोन उठाकर परिवार के सदस्यों या पुराने दोस्तों के साथ संपर्क शुरू कर सकते हैं। कभी-कभी बस एक अनपेक्षित ‘थैंक यू’ कार्ड भेजने से दोस्ती को फिर से स्थापित या मज़बूत की जा सकती है।
यद्यपि अकेलापन ईश्वर के साथ रिश्ते को और गहरा और सक्रिय करनेवाला उत्प्रेरक बन सकता है, तो भी ईश्वर की इच्छा है कि हम दूसरे लोगों का समर्थन करते हुए उनकी संगति में रहें। परिवार और दोस्तों के समुदाय को एक दूसरे के प्यार और देखभाल के लिए विकसित करने के लिए हम सृष्ट किये गए हैं । उन्हें ढूंढो — और तुम उन्हें पाओगे।
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रोमियों के नाम संत पौलुस के पत्र के तीसरे अध्याय में एक बहुत ही उत्सुकता भरने वाली और संशय पूर्ण हिस्सा है, जो कैथलिक नीति शास्त्र के पिछले 2000 वर्ष के इतिहास का अहम् कोने का पत्थर साबित होता है | अपने कुछ आलोचकों को जवाब देते हुए संत पौलुस कहते हैं : “हम बुराई क्यों न करें ताकि भलाई उत्पन्न हो?” ऐसा कहनेवाले “दण्डाज्ञा के योग्य है” (रोमी ३:८) पौलुस के जटिल कथन को इस प्रकार कहा जा सकता है: “भलाई का परिणाम पाने के लिए हमें कभी भी बुराई नहीं करनी चाहिए ।“
वास्तव में दुनिया में ऐसे दुष्ट लोग हैं जो नश्वर सुख पाने केलिए बुराई करने में लगे रहते हैं। अरस्तू के अनुसार वे शातिर हैं या कभी कभार वे “जानवर जैसा” हैं । लेकिन हममें से ज्यादातर लोग अपने बुरे काम के लिए आम तौर पर एक अच्छे अंत की अपील के माध्यम से अपने व्यवहार के लिए एक स्पष्टीकरण ढूंढ लेते हैं, जिसे हम अपने कार्य के माध्यम से प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं । मैं अपने आप से कह सकता हूँ कि “मैं ने जो किया उस पर वास्तव में गर्व नहीं करता, लेकिन कम से कम यह कुछ सकारात्मक परिणाम लाया।” लेकिन संत पौलुस के निर्देश का अनुपालन करते हुए कलीसिया लगातार इस तरह की सोच की निंदा करती आयी है क्योंकि ऐसी सोच नैतिक अराजकता के लिए द्वार खोलती है। नतीजतन, कलीसिया ने दासता, व्यभिचार, बच्चों का यौन शोषण, निर्दोषों की प्रत्यक्ष हत्या आदि कुछ कृत्यों को “आंतरिक रूप से बुरा” होने की मान्यता दी है | कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसी सोच प्रेरणादायक नहीं है, परिस्थितियों के लुप्त होने पर भी, या परिणाम न रहने पर भी यह न्यायसंगत होने में असमर्थ है । अब तक इतना सरल और स्पष्ट है।
लेकिन यह सिद्धांत मेरे दिमाग में हाल ही में आया है, व्यक्तियों के नैतिक कृत्यों के संबंध में नहीं, बल्कि हमारे समाज का बहुत कुछ मार्गदर्शन कर रही उन नैतिक धारणाओं के सम्बन्ध में । मैं उदाहरण दे सकता हूँ: 1995 में ओ.जे.सिम्पसन की अदालती जांच के साथ एक बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ था। मुझे लगता है कि यह कहना उचित है कि बहुसंख्यक तर्कसंगत लोग इस बात से सहमत होंगे कि सिम्पसन पर आरोपित उन भयानक अपराधों को उसने अंजाम दिया था, फिर भी उस समय के न्यायाधीशों के दल ने उन्हें दोष मुक्त कर दिया और हमारे समाज के बहुत बड़े वर्गों द्वारा बड़ी ताकत से न्यायाधीशों के फैसले का समर्थन भी किया गया | कई लोगों के मन में ओ.जे. सिम्पसन को बरी करना उचित था, क्योंकि यह विशेष रूप से लॉस एंजिल्स पुलिस विभाग द्वारा और सामान्य रूप से देश भर के पुलिस के द्वारा अफ़्रीकी अमेरिकन लोगों के प्रति नस्लीय भेदभाव का व्यवहार और उत्पीड़न के व्यापक सामाजिक बीमारी के समाधान में एक योगदान के रूप में देखा गया था। एक दोषी आदमी को दोषमुक्त करने की अनुमति देने के साथ बड़े पैमाने पर हुए एक अन्याय को अनसुना करना, सहन किया गया, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि इस से कुछ बड़ी भलाई के कार्य को अंजाम दिया जाएगा ।
हाल ही में घटित कार्डिनल जॉर्ज पेल के दुखद मामले में भी हमारी कानूनी सोच का सिम्पसनीकरण प्रबल रूप से दिखाई दिया था। एक बार फिर, आरोपों की प्रभावहीनता और किसी भी सबूतों के पूरे अभाव को देखते हुए, सामान्य बुद्धि के लोग यह निष्कर्ष निकालने के लिए बाध्य थे कि कार्डिनल पेल को मुकदमे में नहीं लाया जाना चाहिए था और सजा देने का सवाल ही नहीं उठता था । इसके बावजूद पेल को दोषी माना गया और कारावास की सजा सुनाई गई, और बाद में एक अपील ने मूल आरोप की पुष्टि की। हम कैसे इस सम्बन्ध विहीनता को समझा सकते हैं? पुरोहितों द्वारा बच्चों के साथ यौन शोषण तथा कुछ अधिकारियों द्वारा वैध तरीके से इस मुद्दे पर चादर ओढाने के बाद ऑस्ट्रेलियाई समाज में कई लोगों ने नाराजगी प्रकट की, और उन्हें लगा कि कार्डिनल पेल का कारावास किसी तरह इस अतिरंजित मुद्दे पर चर्चा का विषय बनेगा । इसलिए एक बार फिर, संत पौलुस के सिद्धांत का उल्लंघन करते हुए इस लिए बुराई की गई ताकि इसमें से कुछ अच्छाई निकल सकती है ।
महिलाओं के खिलाफ यौन आक्रामकता के संबंध में भी यही समस्या स्पष्ट है। हार्वे वीनस्टीन की परिस्थिति और उसके बाद ‘मी टू’ आन्दोलन के दौर में कोई भी गंभीर सोच का व्यक्ति संदेह नहीं करता है कि कई महिलाओं के साथ शक्तिशाली पुरुषों द्वारा जाने या अनजाने में गलत व्यवहार किया गया है और इस तरह का शोषण राजनीति का कैंसर है। इसलिए, इस समस्या को हल करने की भलाई प्राप्त करने के लिए, कभी-कभी जांच या अदालती प्रक्रिया के बिना, पुरुषों पर अभियोग लगाया जाता है, परेशान किया जाता है और प्रभावी रूप से सजा भी दी जाती है। मेरी निष्पक्षता साबित करने के लिए मैं जस्टिस ब्रेट कावनोह और हाल ही में जो बिडेन के साथ घटित वाकया पर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ |
हमारे समाज में इस नैतिक परिणामवाद की व्यापकता बेहद खतरनाक है | जब हम कहते हैं कि अच्छाई के लिए बुराई की जा सकती है, तब हम कोई भी आंतरिक रूप से बुरे कार्य होने की बात से इनकार कर देते है| और जब हम ऐसा करते हैं, तब हमारी नैतिक प्रणाली के लिए बौद्धिक समर्थन अनायास ही रास्ता खोल देता है। और फिर उपद्रव आते हैं। इस सिद्धांत का एक बहुत ही शिक्षाप्रद उदाहरण फ्रांसीसी क्रांति के उपरांत का आतंक है । चूंकि अठारहवीं शताब्दी के फ्रांस में आभिजात्य वर्ग द्वारा गरीबों के प्रति निस्संदेह जबरदस्त अन्याय किया गया था, इसलिए जो भी क्रांति का दुश्मन माना जाता था, उसे बिना किसी भेदभाव के, मृत्युदंड दिया जाता था । लोग मानते थे कि अगर दोषियों के साथ-साथ कुछ निर्दोष लोग मारे जाते हैं, तो कोई बात नहीं – क्योंकि यह नए समाज के निर्माण में काम आता है। मेरा मानना है कि यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि उस समय के घातक परिणामवाद से उत्पन्न नैतिक अव्यवस्था और अराजकता से पश्चिमी समाज अभी तक उबर नहीं पाया है |
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क्या पिता परमेश्वर ने अपने पुत्र की मृत्यु को चाहा था ताकि उससे भलाई निकाली जा सके?
विषाणु का दोस्त
चित्रकार जेम्स थॉर्नहिल लंदन के सेंट पॉल कथीड्रल की छत से कुछ ही कदम नीचे बने मचान पर खड़े होकर छत पर भित्ति चित्रों को बना रहे थे | वे अपनी सुन्दर चित्रकारी से इतने उत्साहित हो गए कि उन्होंने इसे बेहतर तरीके से देखने के लिए पीछे कदम रखा | वे इस बात से अनजान थे कि वे मचान के बिलकुल किनारे पहुँच गए थे जहां से नीचे गिरना निश्चित था । यह देखकर उनका सहायक भयभीत हो गया । उसने समझ लिया कि बॉस को चिल्लाकर रोकूँ तो यह आपदा होने में बिलकुल देर नहीं लगेगी । उसने कोई सोचा सोची नहीं की, तुरंत अपने पेंट के डिब्बे में एक ब्रश डुबोया और उसे भित्ति चित्र पर फेंक दिया। सुन्दर चित्र को बदरंग होते देखकर जेम्स थॉर्नहिल चकित रह गए और दो कदम आगे बढ़ गये। उनकी खूबसूरत कलाकृति खराब हो गयी थी, लेकिन उनकी जान बच गयी |
ईश्वर कभी-कभी हमारे साथ ऐसा ही करता है। वह हमारा चैन और हमारी परियोजनाओं को बाधित करता है ताकि हमें अपने सामने मौजूद गहरी खाई से बचाया जा सके। लेकिन हमें सावधान रहने की जरूरत है ताकि हम धोखा नहीं खाए । हमारे आधुनिक तकनीकी समाज के चमचमाते भित्तिचित्र को बदरंग करनेवाला व्यक्ति ईश्वर नहीं है । ईश्वर हमारा सहयोगी है, विषाणु का सहयोगी नहीं! वह स्वयं बाइबल में कहता है, “मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनायें जानता हूँ’ – यह प्रभु की वाणी है “”तुम्हारे हित की योजनायें, अहित की नहीं, तुम्हारे लिए आशामय भविष्य की योजनाएं |” (यिरमियाह 29:11)। यदि ये सारे संकट परमेश्वर की ओर से दंड होते, तो अच्छे और बुरे दोनों पर समान रूप से मार नहीं पड़ता । और न ही गरीबों को इसके बुरे परिणाम भुगतना पड़ता । क्या गरीब सबसे बुरे पापी हैं? बिलकुल नहीं!
येशु अपने मित्र लाज़रुस की मृत्यु के बाद रोये थे | आज येशु सम्पूर्ण मानवता के सम्मुख संकट बनकर खड़े इस महामारी के लिए हमारे साथ रो रहे हैं । हाँ, जिस तरह जब बच्चा दर्द से कराहता है तो उसके मातापिता दुःख झेलते हैं, उसी तरह परमेश्वर “पीड़ा भोग रहा है” । जिस दिन हम इस सच्चाई को जानेंगे, उसी दिन हम उन सारे इल्ज़ामों के बारे में सोचकर शर्मिंदा होंगे जिन्हें हमने परमेश्वर पर लगाया था । ईश्वर हमारी पीड़ा को हमसे दूर करने केलिए उस पीड़ा में भाग लेता है। संत अगुस्तिन ने लिखा है ” ईश्वर भलाई का सर्वश्रेष्ठ होने के कारण, अपने कामों में कोई बुराई नहीं होने देता | हाँ, उनकी सर्वश्रेष्ठता और भलाई में, वह बुराई में से भलाई को भी उत्पन्न कर सकता है |”
असीमित स्वतंत्रता
क्या पिता परमेश्वर ने अपने पुत्र की मृत्यु को चाहा था ताकि उससे भलाई निकाला जा सके ? नहीं, उसने बस मानव की स्वतंत्रता को अपना कार्य पूरा कर लेने की अनुमति दी। हालाँकि, उसने इसे सभी मनुष्यों के लाभ के लिए एक महती उद्देश्य के काम में आने दिया । भूकंप और महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी यही उद्देश्य है। आपदाएं ईश्वर के द्वारा नहीं लाये जाते हैं । उसने प्रकृति को भी स्वतंत्रता दी है, जो गुणात्मक रूप से मनुष्य की तुलना में बिलकुल अलग तरह की स्वतंत्रता है, हाँ, वह भी स्वतंत्रता का एक रूप है । उसने दुनिया को उस घड़ी की तरह नहीं बनाई जो पहले से ही प्रोग्राम्ड है, और जिसकी गति का अनुमान लगाया जा सकता था। कुछ लोग इसे संयोग कहते हैं, लेकिन पवित्र बाइबिल इसे “ईश्वरीय प्रज्ञा” कहती है।
क्या ईश्वर चाहता है कि हम उसके सम्मुख याचिका दायर करें ताकि वह हमें अपनी ओर से कुछ खैरात प्रदान कर सके? क्या परमेश्वर की योजना को बदलने में हमारी प्रार्थना में ताकत है? नहीं, लेकिन ऐसी चीजें हैं जो ईश्वर ने हमें उनकी कृपा और हमारी प्रार्थना दोनों के फल के रूप में देने का फैसला किया है। वह अपने सृष्ट प्राणियों को दिए गए लाभ का श्रेय अपने तक सीमित नहीं रखना चाहता है लेकिन उन प्राणियों के साथ साझा करना चाहता है । परमेश्वर ही हमें यह करने के लिए प्रेरित करता है: यीशु ने कहा: “ढूंढो और तुम्हें मिल जाएगा, खटखटाओ और तुम्हारे लिए खोला जाएगा” (मत्ती 7:7) |
जब इस्राएलियों को रेगिस्तान में जहरीले सर्पों ने काटा था, तब परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी कि वह एक कांसे के सर्प को एक डंडे पर खड़ा करें । जिन सबों ने इसे देखा वे नहीं मरे । येशु ने इस प्रतीक को अपने लिए उपयोग किया जब उन्होंने निकोदेमुस से कहा, “जिस तरह मूसा ने मरुभूमि में सांप को ऊपर उठाया था, उसी तरह मानव पुत्र को भी ऊपर उठाया जाना है, जिससे जो उस में विश्वास करता है, वह अनन्त जीवन प्राप्त करे” (योहन 3:14-15)। इन दिनों एक अदृश्य विषैले “सर्प” ने हमें डंस लिया है। जो हमारे लिए क्रूस पर “उठाया गया” था हम उसी पर टकटकी लगाएं । आइए अपनी और पूरी मानव जाति की ओर से हम उसकी आराधना करें। जो विश्वास के साथ उस की ओर देखेगा, वह मरेगा नहीं । जब कभी मृत्यु आएगी, तब विश्वास करने वाले को शाश्वत जीवन की प्रतिज्ञा की जाती है ।
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दुनिया भर में फैली महामारी कोरोना वायरस के बीच हम अपनी ज़िन्दगी को तेज़ी से बदलते हुए देख रहे हैं| कितनी ही बातें, कितनी ही चीज़ें, जो कभी हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा हुआ करती थीं, वे हम से छिन गयीं हैं| और हम इस तेज़ी से बदलती हुई तस्वीर के बीच खड़े, यह सोचने पर मजबूर हैं कि इस नए माहौल में हम दरअसल हैं कौन?
आम तौर पर, हम अपनी ज़िन्दगी बड़ी मेहनत से अपनी पहचान बनाने में, अपना मुकाम बनाने में गुज़ार देते हैं| हम लोगों को कैसे नज़र आते हैं, हम इसे भी अपने काबू में करना चाहते हैं| अपनी रुचि के हिसाब से हम अपना समय अलग अलग तरह के शौक, खेल, आदि उन कामों में लगा देते हैं जिन कामों ने मिलकर बाकी दुनिया के सामने हमारी एक छवि बनाई है| हम चाहते हैं कि लोग हमें इसी तरह देखें या जानें और कभी कभी हम अपनी इन खूबियों, इन उपलब्धियों के बारे में लोगों को बड़े गुरूर से बताते भी हैं| हम कहीं न कहीं यह विश्वास कर लेते हैं कि जो हमारे पास है, या जो हम करते हैं, या जो भी कुछ हमने अपनी ज़िन्दगी में हासिल किया है उन्हीं से हम हैं – कि यही हमारी पहचान है|
और फिर एक दिन अचानक पूरी दुनिया थम सी जाती है|
न कोई खेल
न कोई संगीत सम्मलेन
न बड़ी सामाजिक सभाएं
न दोस्तों के साथ अंतरतम मुलाकातें और ना पार्टियाँ
न घूमना फिरना
न सुरक्षित रहने का भरोसा
और कुछ लोगों के लिए
पैसों का नुक्सान
रोज़गार का नुक्सान
– धंधे में नुक्सान
तबियत में गिरावट
प्रियजनों की मौत
खुद की मौत
हम से काफी कुछ छिन गया| हम जो सोचते थे कि हम यह हैं, और हम जो सोचते थे कि ये हमारी ज़रूरतें हैं, हम से वे सब सोच और समझ छीन ली गयी | इतना बड़ा बदलाव बहुत कठिन, दर्द भरा और अक्सर काफी डरावना होता है|कभी कभी, इतने बड़े विश्व व्यापी संकट के बिना भी ईश्वर हमें उन चीज़ों और उन राहों से अलग करते हैं जिनके माध्यम से हम अपनी पहचान बना लेते थे, ताकि हम अपनी असल पहचान की खोज कर सकें|
यह जायज़ बात है कि अगर हम नहीं जानते कि हम कौन है और हमारी अहमियत क्या है, तो हम खुद को दुनियावी चीज़ों से जोड़ते हैं जिनका कोई भरोसा नही हैं और वे हम से कभी भी छीन ली जा सकती हैं| हमारा एक सच्चा और मज़बूत सहारा सिर्फ और सिर्फ ईश्वर हैं| और उन्हें करीब से जानने की ज़रूरत है| क्योंकि जब हम ऐसा करेंगे तब हमें अहसास होगा कि ईश्वर की दृष्टि में हम कितना महत्व रखते हैं|
प्रिय मित्र, आप और मैं सब से पहले उस प्यारे पिता की दुलारी संतानें हैं| यही हमारी सच्ची पहचान है| और आखिर में यही पहचान मायने रखती है| आपके दोस्त शायद आपको कुछ और समझाने की कोशिश करेंगे| यह दुनिया आपको बहलाने की कोशिश करेगी| बहकानेवाला दुष्टात्मा आपको कुछ और बातें बताएगा | लेकिन कोई भी आपकी असल पहचान के सच को नही बदल सकता| यह आपका, मेरा, हम सब का सच है| और इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि हम इस बात को अपनाते हैं और इस पे विश्वास करते हैं या नही| हमारा कुछ भी कहना या करना इस सच को नही बदल सकता| हमारी पहचान उस पिता में है जिस में हम जीवन पाते हैं| जब हम सोचते हैं कि हमारे पास कुछ नही बचा है, हमें अहसास होता है कि हमारे पास हमारी ज़रुरत की सारी चीज़ें है|
अभी इस संकट के बीच जब हम सब की पुरानी ज़िन्दगी से कुछ न कुछ छीन लिया गया है, तभी यह सही वक़्त है अपनी असल पहचान की तलाश कर उसे अपनाने का|
तो ठीक है, मैं शुरू करती हूँ । मैं जैकी पेरी, हमारे दयालु पिता की एक प्यारी बेटी हूं।
आप कौन हैं ?
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