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ज़िन्दगी आखिरकार अपने प्रक्षेप पथ को ढूंढने से सफल हो जाती है |
मैं अक्सर सोचती हूँ कि मैं कितनी सौभाग्यशाली हूँ कि मेरी परवरिश एक कैथलिक के रूप में हुई है | मुझे बचपन से ही सही राह दिखाई गयी | शुरू से ही मेरे अंदर विश्वास की ज्वाला जलाई गयी और वह ज्वाला जीवित रखी गयी | देखा जाए तो मुझे अपनी तरफ से कभी इसकी खोज करनी ही नहीं पड़ी|
क्या मैंने इन मान्यताओं को बढ़ाने के लिए अपनी तरफ से जायज़ कोशिश की? कई बार शक, आलस या निराशा ने मुझे घेरे रखा| इन सब के बीच भी मेरे विश्वास न केवल जीवित रहा, बल्कि खुद को और मज़बूत ही किया है| मुझे नहीं लगता कि मैं केवल अपनी समझदारी के बलबूते पर जीवन में आगे बढ़ पाती| तो यह सच है कि मुझे हमेशा बड़े पैमाने पर, ज़रुरत से ज़्यादा, मदद मिली है | अभी हाल ही में मुझे अपने बचपन की एक बात याद आयी| मेरा नौवां जन्मदिन आने वाला था जब माँ और मैं सेंट माइकल कैथलिक गिफ्ट शॉप में खरीदारी कर रहे थे| वहां रखी कई सारी धार्मिक तस्वीरों, मूर्तियों और मेडलों के बीच एक चीज़ ने मेरा ध्यान खींचा, और वह थी माँ मरियम की एक तस्वीर| मुझे बाद में बताया गया कि उसे “सदा सहायिका माता” की तस्वीर कहते हैं|
माँ मरियम से मेरी देखभाल करनेवाली प्यारी स्वर्गिक माँ के रूप में परिचय होना मेरे लिए आने वाले कई सालों तक कई अलग अलग मायनों में मददगार साबित हुआ| जब मेरी माँ ने मुझे एक किताब दी थी जिसका शीर्षक था “फातिमा की माँ मरियम की स्वर्गीय शान्ति योजना”, तब मुझे पता चला कि हमारी धन्य माँ हमसे कितना प्यार करती हैं और हमारी मुक्ति की कामना करती हैं| माँ मरियम के अलग अलग जगहों पर प्रकट होने के ऊपर बनी एक वीडियो ने इसके बारे में मेरी सोच और मज़बूत की|
तबसे मैंने माँ मरियम को एक ऐसी शख्सियत के रूप में जाना है जिनसे मैं कभी भी बात कर सकती हूँ| वे हमेशा मुझे ईश्वर के और नज़दीक ले आती हैं, और जब भी मुझे एक चमत्कार की ज़रूरत होती है, मैं उनकी मध्यस्थता से प्रार्थना करती हूँ| कई मौकों पर जब उन्होंने मेरी मदद की है तो उसका जवाब मुझे बुधवार को मिला है और बुधवार को हमेशा से सदा सहायिका माता के दिन के तौर पर देखा जाता रहा है|
माँ मरियम मुझे यह भी सिखाती है कि ईश्वर के बारे में हमारी हर इच्छा पूरा करनेवाले किसी जादूगर के रूप में दृष्टि नहीं रखनी चाहिए | इसके बदले उन्होंने मुझे शक्ति दी कि मैं उन मुश्किलों को पार कर सकूँ जो ईश्वर मेरी इच्छा पूरी करने से ठीक पहले, मेरे विश्वास को परखने लिए, मेरे सामने रखते हैं | अक्सर माँ की मध्यस्थता ने मुझे अपनी चिंताओं को उनको सुपुर्द कर अपनी ज़िन्दगी में और उनके बेटे येशु पर ध्यान लगाने में मदद की है|
जब मैं अपनी ज़िन्दगी में हुए हर आध्यात्मिक अनुभव, हर बोली गयी मध्यस्थता, हर आशीष को एक साथ जोड़ कर देखती हूँ तो मुझे अहसास होता है कि वे साड़ी आशीषें मिल कर मेरी ज़िन्दगी का प्रक्षेप पथ (यात्रा मार्ग) बनाती हैं| प्रक्षेप पथ की परिभाषा यह है कि वह तय की गयी राह है, जिस पर किसी वस्तु को भेजा जाना है और उस वस्तु को कुछ शक्तियां मिलकर किसी एक विशेष दिशा की ओर धकेलती है| मुझे लगता है कि इसे हमारी आध्यात्मिक यात्रा के रूप में देखा जा सकता है|
कितना अच्छा होगा अगर हम अपनी ज़िन्दगी से थोड़ा समय निकाल कर इस बारे में सोचें कि ईश्वर और हमारे बीच का सम्बन्ध असल में गहरा होना कब शुरू हुआ? कोई तो होगा इस धरती पर, जिसने स्वर्ग में किसी की सहायता से मिलकर इस यात्रा में हमारी मदद की| माँ मरियम, संत योसेफ, संत अन्थोनी, और बाकी सारे संत गण हमे येशु के नज़दीक लाते हैं, और उस समय के लिए हमें तैयार करते हैं जब येशु सच्चे गड़ेरिये के रूप में हमारे जीवन में आएंगे और हमारा मार्गदर्शन करना शुरू करेंगे|
आइये याद करें कितनी अनगिनत बार ईश्वर ने हमें हमारी ज़रुरत से ज़्यादा दिया है; वे अनगिनत संयोग जिन्होंने हमें हमारे दोस्तों, प्रियजनों से मिलवाया है; और वे छोटे छोटे चमत्कार जिन्होंने हमारी ज़िन्दगी में उस वक़्त रोशनी भरी जब हम अपने रोज़मर्रा के काम में व्यस्त थे, इस लिए हमने इन चमत्कारपूर्ण संयोगों पर ध्यान नहीं दिया| आइये हम उस प्रक्षेप पथ की खोज करें जिसे ईश्वर ने हमारे लिए तैयार किया है; हम उस प्रक्षेप पथ पर डटे रह कर अपनी पूरी शक्ति से प्रार्थना करें| पहले की तुलना में इस वक्त दुनिया को हमारी प्रार्थनाओं की सबसे ज़्यादा ज़रुरत है|
'किराने की दुकान पर एक आम सुबह खिली थी| एक बुज़ुर्ग दम्पति उस दुकान की गलियारी के बीच से तेज़ी से गुज़र रही थी | पत्नी लिए गए सामानों के कार्ट को संभाल रहीं थी जबकि पति आगे बढ़ कर अपनी सूची के हिसाब से सामान इकठ्ठा कर रहे थे| इन्हीं सब के बीच कार्ट घुमाते वक़्त वह कार्ट कांच और चीनी मिटटी के बर्तनों के शेल्फ से जा टकराया| बहुत सारे बर्तन टूटकर धमाके की आवाज़ के साथ नीचे फर्श पर बिखर गए | पूरी दुकान उस टक्कर की आवाज़ से गूँज उठी| लोग फुसफुसाते हुए हो चुके नुक्सान के बारे में बातें करने लगे| बेचारी बूढ़ी महिला घबराई हुई नज़रों से उस टूटे बर्तनों के सागर को देखने लगीं | शर्म के मारे वे अपने घुटनों के बल पर बैठकर हड़बड़ाहट में बिखरे हुए टुकड़ों को समेंटने लगीं| इसी बीच उनके पति खड़े खड़े बड़बड़ाने लगें, “अब हमें इन सब टूटे बर्तनों के पैसे देने पड़ेंगे !”
हर कोई बस उनके पास खड़ा उस बेचारी महिला को घूरते जा रहा था | इसी समय दुकान के मैनेजर ने आ कर उन लोगों को वहाँ से हटने के लिए कहा| फिर उस बुज़ुर्ग महिला के पास घुटनों के बल बैठ कर मैनेजर ने कहा, “आप यह सब छोड़ दीजिये, हमलोग साफ़ कर लेंगे| आप बस आ कर अपना नाम, पता नोट करा दीजिये, क्योंकि अभी आपको अस्पताल जा कर अपने हाथ पर लगी चोट पर मलहम पट्टी लगवाने की ज़्यादा ज़रुरत है|”
बूढ़ी महिला ने सहमी हुई निगाहों से अपनी’ चारों ओर फैले टूटे बर्तनों को देखते हुए कहा, “लेकिन मुझे पहले इस नुक्सान की भरपाई करनी होगी |” मैनेजर ने मुस्कुराते हुए उन्हें उनके पैरों पर खड़ा होने में मदद करते हुए कहा, “नहीं मैडम, हमारे पास इस नुक्सान के लिए बीमा है, आपको किसी भी तरह का भुगतान करने की कोई ज़रुरत नही हैं, पूरी तरह भुगतान किया जा चुका है !”
कल्पना कीजिये, उस बूढ़ी महिला को यह सुनकर कितनी राहत हुई होगी जब उन्हें समझ आया कि उनके ऊपर लगा दोष और उसका जुर्माना उनके कन्धों पर से हटा दिया गया था| आइये एक क्षण के लिए हम अपनी आँखें बंद करें और कल्पना करें कि ईश्वर हमारे लिए कुछ ऐसा ही कर रहे हैं!
अपने टूटे दिल के बिखरे टुकड़ों को बटोरें, जो ज़िन्दगी की तकलीफों भरी धक्का-मुक्की का शिकार हो कर टूटा हुआ है | ईश्वर हमें इस नुक्सान और इस चोट के लिए जो बीमा की रकम देते हैं उसे कृपा कहते हैं| जब हम उन्हें अपने जीवन में अपनाएंगे, उनके रास्ते पर चलेंगे और उनसे माफ़ी मांगेंगे, तब इस संसार के मैनेजर – हमारे ईश्वर- हमसे कहेंगे, “सब कुछ का भुगतान किया जा चुका है!”
'एक संस्मरण
“तुमने मेरी कॉफ़ी को छुआ!” कॉफ़ी हॉउस में बैठी उस महिला ग्राहक ने युवा सेविका को देखकर चिल्लाया। वह नव युवती असहाय रूप से रोती रोती उस क्रुद्ध महिला को नया प्याला देने की कोशिश कर रही थी । हमें लगा कि वह महिला स्थानीय नहीं है । कॉफ़ी हाउस के स्थायी ग्राहक उस जवान लड़की की सुरक्षा में लामबंद हो गए। “यदि आप संदूषण या संक्रमण के बारे में बहुत चिंतित हैं, तो आपको घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए!” एक ने चिल्लाया। “घर पर ही रहो !” एक और ने साथ दिया |
एक आत्मिक सलाहकार की हैसियत से, मैंने उस युवा सेविका को सांत्वना के कुछ शब्द कहने का प्रयास किया । उसने सिसकियों के बीच मेरे लिए कॉफ़ी बनाया, उस दौरान मैंने उसे याद दिलाया कि वर्तमान परिवेश ने सभी को तनावग्रस्त कर दिया है, इसलिए उसे इसे व्यक्तिगत रूप से नहीं लेना चाहिए और इस घटना के कारण इस अच्छे दिन को खराब होने नहीं देना चाहिए। बस कुछ ही मिनटों बाद, मुझे अपनी उस सलाह को अपने को ही सुनाना पड़ा । जब मैंने गलती से किराने की दुकान पर डेढ़ मीटर के निशान का उल्लंघन किया, तो एक बुजुर्ग सज्जन ने मुझे बड़े गुस्से के साथ कहा: “अपने स्थान पर रहो!” अपनी बात को अतिरिक्त जोर देने के लिए उन्होंने अपने ही पंजे पर दूसरे हाथ से प्रहार किया। फिर, जब मैं अपनी छोटी पोती को ज़रूरी कसरत के लिए घर से बाहर निकालक्र ले जा रही थी, तो उसे एक राहगीर ने देख लिया, और चिल्लाया “डेढ़ मीटर!” और झुंझलाहट के साथ दूर हटकर चलने लगा !
ये सिर्फ कुछ घटनाएं हैं, जो कोविड-19 महामारी से छिपी हुई त्रासदियों में से कुछ हैं । जो भय और चिंताएँ व्याप्त हैं, उन के कारण जीवन के प्रेम, आनंद और अनुग्रह नष्ट हो चुके हैं । शायद ही कोई मुस्कुराया हो। लोग सिर झुकाकर चल रहे हैं, आँखें सतर्क रूप से सजग हैं, लेकिन शरीर की भाषा स्पष्ट रूप से संकेत देती है: “मुझसे दूर रहो |” ऐसी प्रतिक्रियाएं आसानी से समझी जा सकती हैं, क्योंकि हम एक खतरनाक, अदृश्य दुश्मन का सामना कर रहे हैं और हमें नहीं पता कि महामारी समाप्त होने से पहले इसकी तलवार की मार से किस किस का पतन होगा | हजारों जीवन और आजीविका प्रभावित हैं; सामाजिक दूरी और स्व-अलगाव इस नए और अज्ञात वायरस के खिलाफ बहुत ज़रूरी ढाल बन चुके हैं |
छिपे और अनछिपे हताहत और त्रासदियाँ
हम सभी इससे प्रभावित हुए हैं। हमारे प्रियजनों की मौत और अग्रिम पंक्ति में रहकर संघर्ष कर रहे समर्पित स्वास्थ्य कर्मियों और कोरोना योद्धाओं की क्षति पर हमारा दुःख बहुत भारी और अविश्वसनीय है। प्रियजनों की मृत्यु का कारण जो भी हो, पर उदासी भारी हो जाती है और विशेषकर इस परिस्थिति में जब शोक करने वाले अपने मित्रों और सम्बन्धियों की दिलासा को प्राप्त करने में हम असमर्थ होते हैं। मेरी संवेदनाएं उनके दिलों के दर्द के प्रति जागृत है और मैं केवल उनकी आत्माओं और उनके परिवारों की सांत्वना के लिए प्रार्थना कर सकती थी। सरकार और स्वास्थ्य अधिकारियों ने इसे नियंत्रित करने और इसे रोकने के लिए सबसे अच्छे उपाय निर्देशित किये हैं, और जो कुछ संभव था वह सब किया जा रहा है। उनमें से कई लोगों ने माना कि यह लड़ाई युद्ध में जाने के बराबर है। और वास्तव में बहुत सारे हताहत हुए हैं। हर राष्ट्र अपने घुटनों पर गिर गया।
लेकिन व्यक्तिगत रूप से मुझ पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है? जब लॉकडाउन और शटडाउन लगाए गए थे, मैंने अपनी उन परियोजनाओं को देखा, जिन पर मुझे काम करना था। उस पल में, वे अप्रासंगिक लग रहे थे। यह जानते हुए कि मैं अब उन पर काम नहीं कर पाऊँगी, मैंने उन्हें ठन्डे बस्ते में डालकर भविष्य में उन पर काम करने का फैसला किया । मेरा दृष्टिकोण जल्दी ही बदल गया | अब मुझे भविष्य नहीं बल्कि पल-पल का जीवन बस दिखाई दिया और मैं ने समझा कि स्वास्थ्य और सुरक्षा से बढ़कर कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं। जब मुझे एक चिकित्सा के मुद्दे पर डॉक्टर से मिलने जाना पड़ रहा था, उस समय मैंने ईश्वर से अनुनय विनय किया कि मुझे अस्पताल जाने की स्थिति से बचा लें, क्योंकि मैं वहां के वातावरण से भयभीत थी।
मैं और अधिक चिंतनशील हो गयी और यह जांचने लगी कि मेरे जीवन के किन हिस्सों को बदलने की जरूरत है। हर दिन मैंने अपने घुटनों पर प्रार्थना करते हुए प्रभु से मदद मांगी। प्रत्येक घंटे में, मैंने सभी के लिए प्रभु के संरक्षण हेतु अपना पसंदीदा स्त्रोत्र 91 की प्रार्थना करना शुरू किया | साथ साथ “हे प्रभु येशु मसीह, परमेश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कर” यह प्रार्थना मैं निरंतर बोलने लगी|
अनजाने आशीर्वाद
मैं आमतौर पर भविष्य की परियोजनाओं के बारे में उत्साहित हूं, लेकिन कोविड-19 के साथ, भविष्य धुंधला हो गया। अनिश्चितता मेरी दैनिक वास्तविकता बन गई। क्योंकि मैं एक व्यस्त जीवन का आदी हूं, मुझे लॉकडाउन का सामना करने के लिए कुछ नयी गतिविधियों को खोजने की ज़रुरत थी। मैं परिवार के लिए, पहले से ज्यादा रसोई में खाना बनाने के काम में लग गयी । जब से मेरी बेटी और दामाद ने घर से काम करना शुरू किया किया, मैं रसोई में बहुत सारे काम करने लगी। पारिवारिक जीवन हमारी नींव बन गया। पहले के कुछ हफ्ते घर में 24 X 7 रहना मुश्किल हो रहा था लेकिन परिवार की एकजुटता को ज्यादा महत्व दिया गया और हमने एक-दूसरे की सराहना की और इस तरह पारिवारिक रिश्ता मज़बूत हुआ । हम में से प्रत्येक ने घर के कामों में अधिक योगदान दिया।
प्रतिदिन कपड़ा धोना अब एक राहत भरा काम बन गया, वाशिंग मशीन की आवाज स्वाभाविक और सुखद मालूम हो रहा है | अलमारियों को साफ़ करने और घर को व्यवस्थित करने के लिए खूब वक्त था, और इस से मुझे जीने का कुछ लक्ष्य निर्धारित करने में मदद मिली | नींद जबरदस्त आने लगी तो मुझे लगा कि यह काम से भागने की प्रवृत्ति है, लेकिन बाद में मैं ने एहसास किया कि पिछले कुछ वर्षों में मेरे शरीर से ऊर्जा निकल गयी थी, इसलिए मैं ने नींद का स्वागत किया और धीमी गति से जीना सीखा | सुबह का स्नान दोपहर के बाद का रिवाज़ बन गया, क्योंकि मुझे घर के लिए अनिवार्य चीज़ों को खरीदने सुबह दूकानों में जाना होता था |
छोटे चमत्कार भी हुए | कभी टॉयलेट पेपर को, कभी हाथ पोंछने के लिए नैपकिन्स को, तो कभी रोगाणुनाशी स्प्रे को खोजती खोजती मैं परेशान हो जाती थी | इन में से कुछ भी आलमारी में नहीं दिखाई दिया, तो अचानक मुझे सुखद आश्चर्य हुआ जब मैं ने देखा कि ये चीज़ें ट्राली में उपेक्षित पड़े हैं |
ईश्वर कहाँ है ?
दुनिया के कुछ हिस्सों से आई रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रकृति एक पुनरावर्ती विश्राम ले रही थी क्योंकि प्रदूषण कम हो रहा था और आकाश, सागर, वन पुनर्जीवित हो रहे थे । चालीसा के तपस्या काल में और ईस्टर के दौरान हमारे गिरजाघरों को बंद करना ख़ास तौर पर मुश्किल था, और मुझे ताज्जुब हो रहा है कि प्रभु हमें क्या संदेश देना चाह रहे हैं। कई लोगों ने पूछा कि इन सब में प्रभु ईश्वर कहाँ है? आध्यात्मिक संदेश बहुतायत से मिल रहे हैं। उनमें से अधिकांश प्रोत्साहित करने वाले सन्देश हैं, क्योंकि ये सन्देश यह पुष्टि करते हैं कि इस त्रासदी का कारण ईश्वर नहीं है | क्योंकि वह कोई बुराई नहीं करता, लेकिन इस दर्दनाक सफ़र पर वह हमारे साथ यात्रा कर रहा है, ठीक उसी तरह जब उसने हमारे साथ यहां पृथ्वी पर पीड़ा भोगी थी, और उसका पुनरुत्थान हमें आशा देता है कि हम इस विपत्ति को झेल लेंगे ।
हमारा प्रार्थना दल जो पिछले 22 वर्षों से साप्ताहिक बैठक कर रहा है, तालाबंदी से हतोत्साहित नहीं हुआ। पवित्र आत्मा के मार्ग निर्देशन पर, हमने हर शुक्रवार को फोन सम्मेलन द्वारा अपनी प्रार्थना सभा और आध्यात्मिक संगति का आयोजन किया, और इस मुश्किल अवधि के लिए भविष्य वाणी या नबूबत के संदेश और उपदेश एकत्रित किए ।
प्रौद्योगिकी के उपयोग को अपनाते हुए हम अपने धर्मगुरुओं से जुड़े रहे | उन्होंने हमारे लिए मिस्सा बलिदान अर्पित करना जारी रखा । इस से यह फायदा हुआ कि बहुत से लोग जो पहले मिस्सा बलिदान में उपस्थित नहीं थे, वे गिरजाघर की सभाओं और उपदेशों को सुनाने के लिए टेलीविज़न कार्यक्रमों को देखने लगे | इस प्रकार विश्वास का गहरी, आंतरिक मनन चिंतन और समझ का मार्ग प्रशस्त हुआ। आगे कभी भी मैं यूखरिस्त के महान उपहार को हलके में नहीं लूंगी। यह मेरे लिए अब तक का सबसे गहन उपवास का अनुभव था।
हाल ही में, मुझे एक मित्र का फोन आया जो एक गंभीर बीमारी से रोज़ लड़ रही है – दिल और गुर्दे की बीमारियों से किसी भी समय उसकी मौत हो सकती है । जब वह इन जटिलताओं की एक और लड़ाई के दौर के बाद अस्पताल से बाहर आई, तो उसने मुझे बताया कि उसकी सोच बस एक-एक दिन जीने के बारे में है। मैंने मनन किया तो लगा कि हम सभी एक ही नाव में हैं।
कोविड-19 ने हमें एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया है – सुबह जब हम जागते हैं तब से लेकर दिन भर हमें प्रत्येक पल को महत्व देना चाहिए, और ईश्वर के प्रति कृतज्ञ बने रहना चाहिए। प्यार भरे शब्दों को अभी और यहीं पर बोला जाना चाहिए, प्यार भरे कार्यों को आज ही कर लेना चाहिए, कल के लिए नहीं टालना चाहिए।
किसी ऐसे व्यक्ति जिसने आज के दिन हमारी सेवा की है, क्या हमने कभी उसे दिल से धन्यवाद कहा है? ” हे महान प्रकाश पुंज ईश्वर, हर सुबह तेरा प्यार नवस्फूर्ति से भरपूर है, और दिन भर तू दुनिया की भलाई के लिए कार्य कर रहा है। तेरी सेवा करने, पड़ोसियों और तेरी सम्पूर्ण रचना के साथ शांति से रहने की तीव्र तृष्णा हमारे अन्दर जगा दे । हर एक दिन तेरे पुत्र, हमारे उद्धारकर्ता येशु मसीह को समर्पित करने की इच्छा हम में जगा दे ।” – आमेन।
(प्रात:कालीन प्रार्थना की धर्म विधि “अपर रूम आराधना क्रम” से उद्धृत।)
'प्रश्न:- मैं अपने जीवन में बहुत एकाकीपन महसूस करता हूं। मैं अपने परिवार से अलग हो गया हूँ, और मेरे कोई दोस्त भी नहीं हैं। अगर मैं इसी दर्दभरे अकेलापन में ही रहूँ तो मेरे जीवन में कभी आनंद का अनुभव होगा ?
उत्तर:- अकेलापन दर्दनाक है | लेकिन यह आम जीवन का हिस्सा बन चुका है। विख्यात औषधि कंपनी सिगना द्वारा प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि 46% अमेरिकियों को “कभी-कभी या हमेशा” अकेलापन महसूस होता है, और अकेलेपन की उच्चतम दर युवा लोगों (18-22 वर्ष की आयु) में होती है। इसलिए, यदि आप ‘अकेले’ हैं, तो जान लें कि आप ‘अकेले’ नहीं हैं!
हम सभी कभी न कभी अकेलापन महसूस करते हैं। एक धर्मगुरु के रूप में, निश्चित रूप से, मुझे भी अकेलापन का दर्द होता है। मेरे लिए, रविवार की दोपहर के बाद सबसे अधिक अकेलापन का एहसास होता है । रविवार की सुबह अक्सर भक्ति से सराबोर उत्साही विश्वासियों की संगति में हर्षोल्लास के साथ बीता जाता है, लेकिन जब वे सभी अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए घर चले जाते हैं, तब मैं अपने खाली आवास पर लौट जाता हूं।
लेकिन जब ऐसा होता है, तो मैं अपने अकेलापन को ‘एकांत’ में बदलने की कोशिश करता हूं। ‘अकेलापन’ और ‘एकांत’ में क्या फर्क है? अन्य मनुष्यों के साथ संबंध की कमी को अकेलापन का दर्द कह सकते हैं । प्रभु से घनिष्ठ या अन्तरंग रूप से जुड़े रहकर जिस शांति का अनुभव किया जाता है उसे एकांत कहा जा सकता है । अकेलापन चाहे जितना भी दर्दनाक हो, प्रभु के साथ एक गहरी घनिष्ठता के लिए यह एक निमंत्रण हो सकता है। जब हम मानवीय संपर्क के लिए इस लालसा या दर्द को महसूस करते हैं, तब हम उस खालीपन को भरने के लिए प्रभु को आसानी से आमंत्रित कर सकते हैं। वह हमारा सबसे करीबी दोस्त है; वह हमारी आत्माओं से प्रेम करता है।
और वह जानता है कि अकेला होने का म तलब क्या है! उनके दुखभोग के दौरान, उनके लगभग सभी दोस्तों ने उन्हें त्याग दिया, जिससे उनका पवित्र ह्रदय चोटिल हुआ। हम अपने अकेलापन को उसके साथ साझा कर सकते हैं।
लेकिन सच्चाई यह भी है कि “अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं !” (उत्पत्ति 2:18)। अच्छी बात है कि हम एक बड़े समुदाय का हिस्सा हैं: मसीह का शरीर अर्थात कलीसिया । हम हर समय अपने कलीसिया परिवार से घिरे रहते हैं – न केवल विश्वासियों के सांसारिक समुदाय से, बल्कि स्वर्गदूतों और संतों (“विजयी कलीसिया”) से भी हम घिरे हैं । उन सबकी जीवन कथाएं हमें प्रेरणा और सांत्वना दे सकती हैं। संत जॉन बोस्को, संत पंक्रास, मदर टेरेसा जैसे कई संत हैं जिनसे मैं व्यक्तिगत रूप से जुड़ा हुआ महसूस करता हूं । वे मेरे दोस्त हैं, हालांकि इस समय हमारी मित्रता ‘पत्र मित्र’ के स्तर पर है। जब मैं उनकी मध्यस्थता की विनती करता हूं, तो वे मेरे लिए प्रार्थना करते हुए मेरी प्रार्थना का परिणाम अंतर्दृष्टि के रूप में मुझे देते हैं ! लेकिन किसी दिन, मैं उनसे आमने-सामने मिलने और हमेशा के लिए उनके सान्निध्य का आनंद लेने की आशा करता हूं।
जब हम शोधन स्थान (“दुख भोग रही कलीसिया”) की पवित्र आत्माओं के लिए प्रार्थना करते हैं, तो हम अपने उन प्रियजनों से भी जुड़ते हैं जो हमसे पहले इस दुनिया से चले गए हैं, और जिन्हें याद करने वाले और प्रार्थना करने वाले कोई नहीं है क्योंकि उन्हें धरती पर अकेलापन सहना पड़ा। हमारे अकेलापन के दर्द को उनके लिए समर्पित करने से और बदले में उनकी प्रार्थनाओं को स्वीकार करने से, हम अपने दुख को योग्यता में बदल देते हैं।
हमारे स्वर्गीय मित्रों के अलावा, “प्रयतमान कलीसिया” (कलीसिया के सदस्य जो यहाँ पृथ्वी पर हैं), उनके द्वारा भी हमारे लिए एक समुदाय प्रदान किया जाना चाहिए। आप अपनी कलीसिया में सक्रिय रूप से शामिल हो जाएँ तो आप प्रेरक और मिलनसार लोगों से मिलेंगे। शायद आपके यहाँ का बाइबल अध्ययन दल आपकी कलीसिया में सक्रिय भागीदारी केलिए मौक़ा दे रहा है। आप अपने उम्र के या काम के स्तर के लोगों के लिए निर्धारित किसी समूह में भाग ले सकते हैं या यदि कोई ऐसा दल नहीं है तो एक नया समूह आप बना सकते हैं | आप विन्सेंट डी पॉल सोसाइटी, मरिया की सोडालिटी या सेवा के लिए तत्पर किसी भी समूह के साथ जुड़कर दूसरों की मदद कर सकते हैं | कभी कभी हमें अपनी पल्ली सीमा से बाहर खोजना पडेगा |
क्या आपके शहर में जीवंत गतिविधियों में संलिप्त अन्य कैथलिक समुदाय हैं या ऐसा कोई समुदाय है जिनके साथ आसानी से आप जुड़ पाएंगे ? मैं कुछ ऐसी पल्लियों में रहा हूँ जहाँ सामुदायिक वातावरण हार्दिक और प्यार भरा रहा है, और कुछ अन्य स्थानों पर भी रहा हूँ जहाँ इसकी कमी थी। मेरी नियुक्ति ऐसी एक विशेष पल्ली में हुई थी, जहां बहुत कम सामुदायिक गतिविधियाँ होती थीं । पल्लीवासी मिस्सा बलिदान में आते थे और तुरंत चले जाते थे । इसलिए, एक समुदाय की तलाश में, मैं एक स्थानीय कैथलिक स्कूल में स्वेच्छा से कार्य करने लगा जहाँ मुझे कुछ अच्छे और जोशीले परिवार मिले जो आज भी मेरे मित्र हैं। मैं गारंटी देता हूं कि समुदाय वहां “बाहर” है, हमें बस उन्हें ढूँढने की हिम्मत रखनी चाहिए !
जो लोग किसी न किसी कारण से घर के अन्दर काम करते हैं, वे अन्य तरीकों से सम्बन्ध जोड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए मसीही कैदियों को पत्र लिखना शुरू करें जिन्हें समर्थन और प्रोत्साहन की आवश्यकता है। हम कभी भी फोन उठाकर परिवार के सदस्यों या पुराने दोस्तों के साथ संपर्क शुरू कर सकते हैं। कभी-कभी बस एक अनपेक्षित ‘थैंक यू’ कार्ड भेजने से दोस्ती को फिर से स्थापित या मज़बूत की जा सकती है।
यद्यपि अकेलापन ईश्वर के साथ रिश्ते को और गहरा और सक्रिय करनेवाला उत्प्रेरक बन सकता है, तो भी ईश्वर की इच्छा है कि हम दूसरे लोगों का समर्थन करते हुए उनकी संगति में रहें। परिवार और दोस्तों के समुदाय को एक दूसरे के प्यार और देखभाल के लिए विकसित करने के लिए हम सृष्ट किये गए हैं । उन्हें ढूंढो — और तुम उन्हें पाओगे।
'रोमियों के नाम संत पौलुस के पत्र के तीसरे अध्याय में एक बहुत ही उत्सुकता भरने वाली और संशय पूर्ण हिस्सा है, जो कैथलिक नीति शास्त्र के पिछले 2000 वर्ष के इतिहास का अहम् कोने का पत्थर साबित होता है | अपने कुछ आलोचकों को जवाब देते हुए संत पौलुस कहते हैं : “हम बुराई क्यों न करें ताकि भलाई उत्पन्न हो?” ऐसा कहनेवाले “दण्डाज्ञा के योग्य है” (रोमी ३:८) पौलुस के जटिल कथन को इस प्रकार कहा जा सकता है: “भलाई का परिणाम पाने के लिए हमें कभी भी बुराई नहीं करनी चाहिए ।“
वास्तव में दुनिया में ऐसे दुष्ट लोग हैं जो नश्वर सुख पाने केलिए बुराई करने में लगे रहते हैं। अरस्तू के अनुसार वे शातिर हैं या कभी कभार वे “जानवर जैसा” हैं । लेकिन हममें से ज्यादातर लोग अपने बुरे काम के लिए आम तौर पर एक अच्छे अंत की अपील के माध्यम से अपने व्यवहार के लिए एक स्पष्टीकरण ढूंढ लेते हैं, जिसे हम अपने कार्य के माध्यम से प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं । मैं अपने आप से कह सकता हूँ कि “मैं ने जो किया उस पर वास्तव में गर्व नहीं करता, लेकिन कम से कम यह कुछ सकारात्मक परिणाम लाया।” लेकिन संत पौलुस के निर्देश का अनुपालन करते हुए कलीसिया लगातार इस तरह की सोच की निंदा करती आयी है क्योंकि ऐसी सोच नैतिक अराजकता के लिए द्वार खोलती है। नतीजतन, कलीसिया ने दासता, व्यभिचार, बच्चों का यौन शोषण, निर्दोषों की प्रत्यक्ष हत्या आदि कुछ कृत्यों को “आंतरिक रूप से बुरा” होने की मान्यता दी है | कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसी सोच प्रेरणादायक नहीं है, परिस्थितियों के लुप्त होने पर भी, या परिणाम न रहने पर भी यह न्यायसंगत होने में असमर्थ है । अब तक इतना सरल और स्पष्ट है।
लेकिन यह सिद्धांत मेरे दिमाग में हाल ही में आया है, व्यक्तियों के नैतिक कृत्यों के संबंध में नहीं, बल्कि हमारे समाज का बहुत कुछ मार्गदर्शन कर रही उन नैतिक धारणाओं के सम्बन्ध में । मैं उदाहरण दे सकता हूँ: 1995 में ओ.जे.सिम्पसन की अदालती जांच के साथ एक बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ था। मुझे लगता है कि यह कहना उचित है कि बहुसंख्यक तर्कसंगत लोग इस बात से सहमत होंगे कि सिम्पसन पर आरोपित उन भयानक अपराधों को उसने अंजाम दिया था, फिर भी उस समय के न्यायाधीशों के दल ने उन्हें दोष मुक्त कर दिया और हमारे समाज के बहुत बड़े वर्गों द्वारा बड़ी ताकत से न्यायाधीशों के फैसले का समर्थन भी किया गया | कई लोगों के मन में ओ.जे. सिम्पसन को बरी करना उचित था, क्योंकि यह विशेष रूप से लॉस एंजिल्स पुलिस विभाग द्वारा और सामान्य रूप से देश भर के पुलिस के द्वारा अफ़्रीकी अमेरिकन लोगों के प्रति नस्लीय भेदभाव का व्यवहार और उत्पीड़न के व्यापक सामाजिक बीमारी के समाधान में एक योगदान के रूप में देखा गया था। एक दोषी आदमी को दोषमुक्त करने की अनुमति देने के साथ बड़े पैमाने पर हुए एक अन्याय को अनसुना करना, सहन किया गया, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि इस से कुछ बड़ी भलाई के कार्य को अंजाम दिया जाएगा ।
हाल ही में घटित कार्डिनल जॉर्ज पेल के दुखद मामले में भी हमारी कानूनी सोच का सिम्पसनीकरण प्रबल रूप से दिखाई दिया था। एक बार फिर, आरोपों की प्रभावहीनता और किसी भी सबूतों के पूरे अभाव को देखते हुए, सामान्य बुद्धि के लोग यह निष्कर्ष निकालने के लिए बाध्य थे कि कार्डिनल पेल को मुकदमे में नहीं लाया जाना चाहिए था और सजा देने का सवाल ही नहीं उठता था । इसके बावजूद पेल को दोषी माना गया और कारावास की सजा सुनाई गई, और बाद में एक अपील ने मूल आरोप की पुष्टि की। हम कैसे इस सम्बन्ध विहीनता को समझा सकते हैं? पुरोहितों द्वारा बच्चों के साथ यौन शोषण तथा कुछ अधिकारियों द्वारा वैध तरीके से इस मुद्दे पर चादर ओढाने के बाद ऑस्ट्रेलियाई समाज में कई लोगों ने नाराजगी प्रकट की, और उन्हें लगा कि कार्डिनल पेल का कारावास किसी तरह इस अतिरंजित मुद्दे पर चर्चा का विषय बनेगा । इसलिए एक बार फिर, संत पौलुस के सिद्धांत का उल्लंघन करते हुए इस लिए बुराई की गई ताकि इसमें से कुछ अच्छाई निकल सकती है ।
महिलाओं के खिलाफ यौन आक्रामकता के संबंध में भी यही समस्या स्पष्ट है। हार्वे वीनस्टीन की परिस्थिति और उसके बाद ‘मी टू’ आन्दोलन के दौर में कोई भी गंभीर सोच का व्यक्ति संदेह नहीं करता है कि कई महिलाओं के साथ शक्तिशाली पुरुषों द्वारा जाने या अनजाने में गलत व्यवहार किया गया है और इस तरह का शोषण राजनीति का कैंसर है। इसलिए, इस समस्या को हल करने की भलाई प्राप्त करने के लिए, कभी-कभी जांच या अदालती प्रक्रिया के बिना, पुरुषों पर अभियोग लगाया जाता है, परेशान किया जाता है और प्रभावी रूप से सजा भी दी जाती है। मेरी निष्पक्षता साबित करने के लिए मैं जस्टिस ब्रेट कावनोह और हाल ही में जो बिडेन के साथ घटित वाकया पर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ |
हमारे समाज में इस नैतिक परिणामवाद की व्यापकता बेहद खतरनाक है | जब हम कहते हैं कि अच्छाई के लिए बुराई की जा सकती है, तब हम कोई भी आंतरिक रूप से बुरे कार्य होने की बात से इनकार कर देते है| और जब हम ऐसा करते हैं, तब हमारी नैतिक प्रणाली के लिए बौद्धिक समर्थन अनायास ही रास्ता खोल देता है। और फिर उपद्रव आते हैं। इस सिद्धांत का एक बहुत ही शिक्षाप्रद उदाहरण फ्रांसीसी क्रांति के उपरांत का आतंक है । चूंकि अठारहवीं शताब्दी के फ्रांस में आभिजात्य वर्ग द्वारा गरीबों के प्रति निस्संदेह जबरदस्त अन्याय किया गया था, इसलिए जो भी क्रांति का दुश्मन माना जाता था, उसे बिना किसी भेदभाव के, मृत्युदंड दिया जाता था । लोग मानते थे कि अगर दोषियों के साथ-साथ कुछ निर्दोष लोग मारे जाते हैं, तो कोई बात नहीं – क्योंकि यह नए समाज के निर्माण में काम आता है। मेरा मानना है कि यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि उस समय के घातक परिणामवाद से उत्पन्न नैतिक अव्यवस्था और अराजकता से पश्चिमी समाज अभी तक उबर नहीं पाया है |
'क्या पिता परमेश्वर ने अपने पुत्र की मृत्यु को चाहा था ताकि उससे भलाई निकाली जा सके?
विषाणु का दोस्त
चित्रकार जेम्स थॉर्नहिल लंदन के सेंट पॉल कथीड्रल की छत से कुछ ही कदम नीचे बने मचान पर खड़े होकर छत पर भित्ति चित्रों को बना रहे थे | वे अपनी सुन्दर चित्रकारी से इतने उत्साहित हो गए कि उन्होंने इसे बेहतर तरीके से देखने के लिए पीछे कदम रखा | वे इस बात से अनजान थे कि वे मचान के बिलकुल किनारे पहुँच गए थे जहां से नीचे गिरना निश्चित था । यह देखकर उनका सहायक भयभीत हो गया । उसने समझ लिया कि बॉस को चिल्लाकर रोकूँ तो यह आपदा होने में बिलकुल देर नहीं लगेगी । उसने कोई सोचा सोची नहीं की, तुरंत अपने पेंट के डिब्बे में एक ब्रश डुबोया और उसे भित्ति चित्र पर फेंक दिया। सुन्दर चित्र को बदरंग होते देखकर जेम्स थॉर्नहिल चकित रह गए और दो कदम आगे बढ़ गये। उनकी खूबसूरत कलाकृति खराब हो गयी थी, लेकिन उनकी जान बच गयी |
ईश्वर कभी-कभी हमारे साथ ऐसा ही करता है। वह हमारा चैन और हमारी परियोजनाओं को बाधित करता है ताकि हमें अपने सामने मौजूद गहरी खाई से बचाया जा सके। लेकिन हमें सावधान रहने की जरूरत है ताकि हम धोखा नहीं खाए । हमारे आधुनिक तकनीकी समाज के चमचमाते भित्तिचित्र को बदरंग करनेवाला व्यक्ति ईश्वर नहीं है । ईश्वर हमारा सहयोगी है, विषाणु का सहयोगी नहीं! वह स्वयं बाइबल में कहता है, “मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनायें जानता हूँ’ – यह प्रभु की वाणी है “”तुम्हारे हित की योजनायें, अहित की नहीं, तुम्हारे लिए आशामय भविष्य की योजनाएं |” (यिरमियाह 29:11)। यदि ये सारे संकट परमेश्वर की ओर से दंड होते, तो अच्छे और बुरे दोनों पर समान रूप से मार नहीं पड़ता । और न ही गरीबों को इसके बुरे परिणाम भुगतना पड़ता । क्या गरीब सबसे बुरे पापी हैं? बिलकुल नहीं!
येशु अपने मित्र लाज़रुस की मृत्यु के बाद रोये थे | आज येशु सम्पूर्ण मानवता के सम्मुख संकट बनकर खड़े इस महामारी के लिए हमारे साथ रो रहे हैं । हाँ, जिस तरह जब बच्चा दर्द से कराहता है तो उसके मातापिता दुःख झेलते हैं, उसी तरह परमेश्वर “पीड़ा भोग रहा है” । जिस दिन हम इस सच्चाई को जानेंगे, उसी दिन हम उन सारे इल्ज़ामों के बारे में सोचकर शर्मिंदा होंगे जिन्हें हमने परमेश्वर पर लगाया था । ईश्वर हमारी पीड़ा को हमसे दूर करने केलिए उस पीड़ा में भाग लेता है। संत अगुस्तिन ने लिखा है ” ईश्वर भलाई का सर्वश्रेष्ठ होने के कारण, अपने कामों में कोई बुराई नहीं होने देता | हाँ, उनकी सर्वश्रेष्ठता और भलाई में, वह बुराई में से भलाई को भी उत्पन्न कर सकता है |”
असीमित स्वतंत्रता
क्या पिता परमेश्वर ने अपने पुत्र की मृत्यु को चाहा था ताकि उससे भलाई निकाला जा सके ? नहीं, उसने बस मानव की स्वतंत्रता को अपना कार्य पूरा कर लेने की अनुमति दी। हालाँकि, उसने इसे सभी मनुष्यों के लाभ के लिए एक महती उद्देश्य के काम में आने दिया । भूकंप और महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी यही उद्देश्य है। आपदाएं ईश्वर के द्वारा नहीं लाये जाते हैं । उसने प्रकृति को भी स्वतंत्रता दी है, जो गुणात्मक रूप से मनुष्य की तुलना में बिलकुल अलग तरह की स्वतंत्रता है, हाँ, वह भी स्वतंत्रता का एक रूप है । उसने दुनिया को उस घड़ी की तरह नहीं बनाई जो पहले से ही प्रोग्राम्ड है, और जिसकी गति का अनुमान लगाया जा सकता था। कुछ लोग इसे संयोग कहते हैं, लेकिन पवित्र बाइबिल इसे “ईश्वरीय प्रज्ञा” कहती है।
क्या ईश्वर चाहता है कि हम उसके सम्मुख याचिका दायर करें ताकि वह हमें अपनी ओर से कुछ खैरात प्रदान कर सके? क्या परमेश्वर की योजना को बदलने में हमारी प्रार्थना में ताकत है? नहीं, लेकिन ऐसी चीजें हैं जो ईश्वर ने हमें उनकी कृपा और हमारी प्रार्थना दोनों के फल के रूप में देने का फैसला किया है। वह अपने सृष्ट प्राणियों को दिए गए लाभ का श्रेय अपने तक सीमित नहीं रखना चाहता है लेकिन उन प्राणियों के साथ साझा करना चाहता है । परमेश्वर ही हमें यह करने के लिए प्रेरित करता है: यीशु ने कहा: “ढूंढो और तुम्हें मिल जाएगा, खटखटाओ और तुम्हारे लिए खोला जाएगा” (मत्ती 7:7) |
जब इस्राएलियों को रेगिस्तान में जहरीले सर्पों ने काटा था, तब परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी कि वह एक कांसे के सर्प को एक डंडे पर खड़ा करें । जिन सबों ने इसे देखा वे नहीं मरे । येशु ने इस प्रतीक को अपने लिए उपयोग किया जब उन्होंने निकोदेमुस से कहा, “जिस तरह मूसा ने मरुभूमि में सांप को ऊपर उठाया था, उसी तरह मानव पुत्र को भी ऊपर उठाया जाना है, जिससे जो उस में विश्वास करता है, वह अनन्त जीवन प्राप्त करे” (योहन 3:14-15)। इन दिनों एक अदृश्य विषैले “सर्प” ने हमें डंस लिया है। जो हमारे लिए क्रूस पर “उठाया गया” था हम उसी पर टकटकी लगाएं । आइए अपनी और पूरी मानव जाति की ओर से हम उसकी आराधना करें। जो विश्वास के साथ उस की ओर देखेगा, वह मरेगा नहीं । जब कभी मृत्यु आएगी, तब विश्वास करने वाले को शाश्वत जीवन की प्रतिज्ञा की जाती है ।
'दुनिया भर में फैली महामारी कोरोना वायरस के बीच हम अपनी ज़िन्दगी को तेज़ी से बदलते हुए देख रहे हैं| कितनी ही बातें, कितनी ही चीज़ें, जो कभी हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा हुआ करती थीं, वे हम से छिन गयीं हैं| और हम इस तेज़ी से बदलती हुई तस्वीर के बीच खड़े, यह सोचने पर मजबूर हैं कि इस नए माहौल में हम दरअसल हैं कौन?
आम तौर पर, हम अपनी ज़िन्दगी बड़ी मेहनत से अपनी पहचान बनाने में, अपना मुकाम बनाने में गुज़ार देते हैं| हम लोगों को कैसे नज़र आते हैं, हम इसे भी अपने काबू में करना चाहते हैं| अपनी रुचि के हिसाब से हम अपना समय अलग अलग तरह के शौक, खेल, आदि उन कामों में लगा देते हैं जिन कामों ने मिलकर बाकी दुनिया के सामने हमारी एक छवि बनाई है| हम चाहते हैं कि लोग हमें इसी तरह देखें या जानें और कभी कभी हम अपनी इन खूबियों, इन उपलब्धियों के बारे में लोगों को बड़े गुरूर से बताते भी हैं| हम कहीं न कहीं यह विश्वास कर लेते हैं कि जो हमारे पास है, या जो हम करते हैं, या जो भी कुछ हमने अपनी ज़िन्दगी में हासिल किया है उन्हीं से हम हैं – कि यही हमारी पहचान है|
और फिर एक दिन अचानक पूरी दुनिया थम सी जाती है|
न कोई खेल
न कोई संगीत सम्मलेन
न बड़ी सामाजिक सभाएं
न दोस्तों के साथ अंतरतम मुलाकातें और ना पार्टियाँ
न घूमना फिरना
न सुरक्षित रहने का भरोसा
और कुछ लोगों के लिए
पैसों का नुक्सान
रोज़गार का नुक्सान
– धंधे में नुक्सान
तबियत में गिरावट
प्रियजनों की मौत
खुद की मौत
हम से काफी कुछ छिन गया| हम जो सोचते थे कि हम यह हैं, और हम जो सोचते थे कि ये हमारी ज़रूरतें हैं, हम से वे सब सोच और समझ छीन ली गयी | इतना बड़ा बदलाव बहुत कठिन, दर्द भरा और अक्सर काफी डरावना होता है|कभी कभी, इतने बड़े विश्व व्यापी संकट के बिना भी ईश्वर हमें उन चीज़ों और उन राहों से अलग करते हैं जिनके माध्यम से हम अपनी पहचान बना लेते थे, ताकि हम अपनी असल पहचान की खोज कर सकें|
यह जायज़ बात है कि अगर हम नहीं जानते कि हम कौन है और हमारी अहमियत क्या है, तो हम खुद को दुनियावी चीज़ों से जोड़ते हैं जिनका कोई भरोसा नही हैं और वे हम से कभी भी छीन ली जा सकती हैं| हमारा एक सच्चा और मज़बूत सहारा सिर्फ और सिर्फ ईश्वर हैं| और उन्हें करीब से जानने की ज़रूरत है| क्योंकि जब हम ऐसा करेंगे तब हमें अहसास होगा कि ईश्वर की दृष्टि में हम कितना महत्व रखते हैं|
प्रिय मित्र, आप और मैं सब से पहले उस प्यारे पिता की दुलारी संतानें हैं| यही हमारी सच्ची पहचान है| और आखिर में यही पहचान मायने रखती है| आपके दोस्त शायद आपको कुछ और समझाने की कोशिश करेंगे| यह दुनिया आपको बहलाने की कोशिश करेगी| बहकानेवाला दुष्टात्मा आपको कुछ और बातें बताएगा | लेकिन कोई भी आपकी असल पहचान के सच को नही बदल सकता| यह आपका, मेरा, हम सब का सच है| और इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि हम इस बात को अपनाते हैं और इस पे विश्वास करते हैं या नही| हमारा कुछ भी कहना या करना इस सच को नही बदल सकता| हमारी पहचान उस पिता में है जिस में हम जीवन पाते हैं| जब हम सोचते हैं कि हमारे पास कुछ नही बचा है, हमें अहसास होता है कि हमारे पास हमारी ज़रुरत की सारी चीज़ें है|
अभी इस संकट के बीच जब हम सब की पुरानी ज़िन्दगी से कुछ न कुछ छीन लिया गया है, तभी यह सही वक़्त है अपनी असल पहचान की तलाश कर उसे अपनाने का|
तो ठीक है, मैं शुरू करती हूँ । मैं जैकी पेरी, हमारे दयालु पिता की एक प्यारी बेटी हूं।
आप कौन हैं ?
'क्षमा को गले लगाएं और इसके द्वारा येशु के चंगाई भरे स्पर्श का अनुभव करें|
आइरीन ला पालंबोरा अपने दर्दभरे अतीत को येशु को सौंपने और येशु के द्वारा उनके जीवन को बदलने की असाधारण कहानी साझा करती है |
मेरे बचपन के दिनों से मेरे माता-पिता का मेरी ज़िन्दगी से कोई ख़ास लेना देना नहीं था, जिसकी वजह से मैं ने और मेरे भाई-बहनों ने काफी हद तक अपनी परवरिश खुद ही की है| मेरी माँ काफी खुले मिजाज़ की थीं और उन्हें लोगों से मिलना जुलना, पार्टी करना, बहुत पसंद था| लेकिन इन सब चीज़ों में उन्हें अपने बच्चों को शामिल करना पसंद नही था| पापा वर्कहोलिक थे, हमेशा किसी ना किसी काम में व्यस्त| उन्हें शिकार पर जाने और मछलियां पकड़ने का भी शौक था तो वे ज़्यादा समय घर से बाहर ही बिताते थें| उन दोनों को शायद कभी इस बात का ख़याल ही नहीं आया कि हमें उनके प्यार और उनकी देख भाल की ज़रुरत थी| मुझे कभी माँ का प्यार से मुझसे बात करना या दुलार करना याद नहीं| एक दिन जब मुझे जंगली मशरुम खा लेने की वजह से उल्टियां होने लगी थीं, तब भी माँ ने मुझे बस डांटा और सारी गन्दगी खुद साफ़ करने के लिए कहा|
मैं लापरवाही के साथ, अव्यवस्थित ढंग से बड़ी हो रही थी इसी लिए पापा ने मुझे बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने भेजने का फैसला किया| स्कूल की छुट्टियों में मुझे दादा-दादी के घर भेज दिया जाता था| वे लोग कैथलिक विश्वासी थे और मेरे अंदर प्रेम की जो कमी थी उन्होंने वह कमी पूरी की|
वह रात जब मेरी ज़िन्दगी बिखर सी गयी
काफी समय बाद जब मैं घर गयी, तब पता चला कि माँ ने कुछ ही समय पहले मेरे सब से छोटे भाई को सीजेरियन ऑपरेशन के द्वारा जन्म दिया था| हमें तो पता भी नहीं था कि वे माँ बननेवाली थीं इसीलिए हम सब काफी चौंक गए थे, और माँ की हालत उस वक़्त काफी खराब भी थी| मेरे दादा-दादी मेरे भाई-बहनों को अपने घर ले गए थे इसी लिए पापा और उनके दोस्त पहले अस्पताल गए और फिर बच्चे के जन्म की ख़ुशी में जश्न मनाने केलिए दारूखाना | मैं उनके साथ थी | लेकिन क्योंकि दोनों जगहों में मुझे अंदर जाने की इजाज़त नहीं थीं, इसीलिए मेरा सारा समय अकेले कार में बैठे बैठे गुज़रा|
जब वे दोनों दरूखाने से बाहर आये तब दोनों की हालत कार चलाने लायक नहीं थी| घर की ओर जाते वक़्त दोनों में बहस हो गयी कि गाड़ी किस ओर मोड़नी है| पापा ने एक गलत मोड़ लिया, कार को एक सुनसान, अंधियारी जगह रोका और फिर इंजन बंद कर के स्टीयरिंग के ऊपर सर रखकर सो गए| इसी बीच मैं थोड़ा टहलने केलिए कार से बाहर निकली| अचानक मुझे किसी ने पीछे से अपनी ओर ज़ोर से खींचा| मेरे पापा के दोस्त ने मेरे कपड़े फाड़ डाले और बेरहमी से मेरा बलात्कार किया, फिर मुझे ज़मीन पर रोता छोड़कर कार में वापस चले गए|
दर्द और घबराहट से कांपते हुए मैंने अपने कपड़ों को ठीक किया| हालांकि डर के मारे मेरा हाल बहुत बुरा था, फिर भी मुझे इस बात का अहसास था कि घर जाने केलिए मुझे कार में वापस जाना ही होगा| जब मैं वापस गयी तब न ही पापा ने मेरी हालत पर कोई ख़ास ध्यान दिया, न ही मैं उनसे कुछ कह पायी| जब हम आखिरकार घर पहुंचे तब वे लोग सीधे रसोई से खाना निकाल कर खाने में व्यस्त हो गए, जब कि मैं ने दौड़कर सब से पहले खुद को बाथरूम में बंद कर लिया| फिर मैं ने गरम पानी वाला शॉवर चला दिया और उसमे खुद को डुबोकर जो हुआ था उसे भुलाने की कोशिश करने लगी| किसी को कभी पता नही चला कि उस रात मेरे साथ क्या हुआ था, लेकिन उस हादसे ने मेरी ज़िन्दगी में काफी बुरा असर डाला|
हालांकि स्कूल में मुझे प्रार्थना का समय बहुत सुकून मिलता था और मैं बड़ी ख़ुशी के साथ माँ मरियम संगत से जुड़ने केलिए पढ़ाई कर रही थी, लेकिन छात्रावास का कठिन अनुशासन मेरे लिए थोड़ा भारी पड़ रहा था| वहां जिस सिस्टर को हम छात्राओं की ज़िम्मेदारी थी उन्हें शुरू से ही मुझसे कुछ अरुचि थी | वे अक्सर मेरी सबसे अधिक आलोचना करती थीं, और कभी भी किसी काम में मुझे मौक़ा नही देती थीं, चाहे वो सोने से पहले अपना मनपसंद भजन गाने का मौका ही क्यों ना हो| कभी भी कुछ भी गलत होता तो उस का इलज़ाम मुझ पर लगाया जाता चाहे उसमें मेरी गलती हो या न हो| एक दिन मुझसे और सहा नही गया| आर्ट प्रोजेक्ट केलिए क्या पेंट करना चाहिए, इस का आदेश सिस्टर ने खुद दिया | जब मैं ने देखा मेरी इच्छा का कोई सम्मान ही नहीं है, तब मैं स्कूल से भाग आयी और अपना पूरा दिन एक बंद पड़ी मखन फैक्ट्री में गुज़ार दिया| फिर रात होने पर मैंने गिरजाघर में शरण ली| पुलिस ने मुझे वहाँ पाया और मुझे स्कूल वापस ले गयी, जिसके बाद मुझे सब के सामने डांट पड़ी और सब को यह आदेश मिला कि कोई मुझसे अगले दो दिन तक बात नही करेगा|
मैं खुद को बहुत अकेला और अनचाहा सा महसूस करने लगी थी| यह एहसास सबसे ज़्यादा तब हुआ जब मेरा साप्ताहिक खत जो मैंने अस्पताल में भर्ती अपनी माँ को लिखा था, वह घूमकर वापस मेरे ही पास आया और उस पर लिखा हुआ था “पता गलत है, प्रेषक को वापस भेजें” | मुझे ऐसा लगा जैसे सब ने मुझे अकेला छोड़ दिया, जैसे किसी ने मेरी आत्मा को ही कुचल दिया, और अब मुझे किसी पर भी भरोसा नही रह गया था| इस निराशा भरे समय में मेरे पल्ली पुरोहित ने मेरी काफी मदद की| उन्होंने मुझे अपनी बेटी की तरह प्यार दिया और हर निराशा की घड़ी में अपनी सांत्वना से संभाला| वे मुझे कहते थे, “ याद रखो कि तुम्हारी आत्मा एक संगमरमर के टुकड़े की तरह है| इसे एक खूबसूरत चीज़ में बदलने केलिए तुम्हें इसे तराशना ही होगा|” माँ मरियम ने भी मुझे बहुत शक्ति दी| आखिरकार मुझे माँ मरियम संगत में स्वीकार कर लिया गया|अब मुझे जब भी रात को नींद नही आती थी, तब मैं माँ मरियम का आँचल ओढ़ सो जाती थी|
क्या मैं एक गलती हूँ?
हमें हमेशा से यह बताया जाता है कि ईश्वर प्रेम हैं, लेकिन यह बात कभी मुझे ठीक से समझ नही आयी| जैसे जैसे मैं बड़ी हुई, मेरी शादी हुई, मेरे बच्चे हुए, मैं हमेशा से उस ईश्वर की तलाश में थी जो मुझ से प्यार करता है| मुझे इसकी थोड़ी बहुत समझ थी| मैं ने एक अच्छी कैथोलिक बनने की कोशिश की; मैं चर्च में गाती थी, पल्ली की मदद करती थी, लेकिन यह सब मुझे बस काम भर लगता था|
एक दिन मेरी मौसी ने मुझे बताया कि मेरी माँ किसी और इंसान से प्यार करती थीं पर उन्हें मेरे पापा से इसलिए शादी करनी पड़ी क्योंकि पापा की वजह से मैं माँ की कोख में थी| शायद इसीलिए माँ ने कभी मुझे प्यार नहीं किया| मैं एक गलती थी| मेरी दूसरी मौसी ने मुझे बताया कि 18 महीने की उम्र में मैं कुपोषण से मरने की कगार पर थी, क्योंकि मैं कुछ खाती पीती नहीं थी| इस बात ने मुझे उलझन में डाल दिया| कोई बच्ची आखिर मरना क्यों चाहेगी? कई सालों तक मैं ने पवित्र आत्मा से यह सवाल किया कि आखिर मैं ने बचपन में खुद को मरने की कगार तक क्यों भूखा रखा?
एक दिन जब मैं पेंटिंग कर रही थी, उस दौरान मेरे अंदर अचानक एक प्रेरणा मिली कि किसी पुरोहित के सामने मुझे उन साड़ी बातों को कहने की ज़रुरत है जो आज तक मुझे परेशान करती आयी थीं| पाप स्वीकार करने का मेरा मन तो नहीं था, लेकिन एक लम्बी बातचीत के बाद मैंने एक अच्छा पापस्वीकार किया| उसी क्षण मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे एक प्रेम के बादल ने चारों ओर से घेर लिया हो| येशु मेरे दिल में आ बसे और मैंने यह जाना कि मैं जैसी हूँ येशु मुझे उसी तरह प्यार करते हैं| यह मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव था|
इस शक्तिशाली अनुभव के बाद मुझे पता था कि मुझे उन सब को माफ़ करने की ज़रुरत थी जिन्होंने मेरे साथ बुरा किया, मुझे चोट पहुंचाई थी | लेकिन मेरे लिए यह काफी मुश्किल था| मैं अब ‘हे पिता हमारे’ की प्रार्थना भी नहीं बोल पा रही थी क्योंकि मैं अपने अपराधियों को क्षमा नहीं करना चाहती थी| एक दिन जब मैं इस बात को लेकर येशु से प्रार्थना कर रही थी, तब मैंने उन्हें क्रूस पर लटके, खून में लिपटे, दर्द से कराहते, बड़ी मुश्किल से सांस लेते हुए देखा| वह बहुत ही भयानक दृश्य था| उनकी आँखें प्रेम और कोमलता से भरी थीं और मैंने उन्हें कहते सुना, “अत्याचारियों की तरफ अपना दूसरा गाल भी कर दो | जैसे मैंने तुम्हें माफ़ किया है, तुम भी दूसरों को माफ़ कर दो|” मैं ने सोचा, यह सच है कि मैं अपने दुःख से ऐसे लिपटी नहीं रह सकती, क्योंकि मुझे मेरे सारे पापों की क्षमा मिली थी|
इसीलिए मैं ने पवित्र आत्मा से प्रार्थना की कि वे मुझे हर उस इंसान का चेहरा दिखाएं जिसे मुझे माफ़ करना था| सबको एक एक कर के माफ़ करने में काफी वक़्त लगा लेकिन जब बारी मेरे मातापिता की आयी तब मुझे सब से ज़्यादा तकलीफ हुई| मैं ने येशु से कहा, “ मैं अपने पापा को माफ़ करने केलिए तैयार हूँ लेकिन आपको इसमें मेरी मदद करनी होगी| जब मैं घर गयी तब मैं ने खुद को और पापा को अपने अचानक बदले हुए व्यवहार से हैरान कर दिया| घर आते ही मैं पापा के पास जाकर बैठी और उनसे कहा “ पापा मुझे आप से प्यार है|” उन्होंने इसका कोई जवाब तो नहीं दिया पर वे मेरी ओर देख कर मुस्करा दिए| जिस वक़्त मैं ने उनसे यह बात कही उसी वक़्त मुझे अहसास हुआ कि मैं ने दिल से उन्हें माफ़ कर दिया था और अब मैं सचमुच उनसे प्यार करती थी|
निराशा से उत्सुकता की ओर
कुछ हफ़्तों बाद पापा को कैंसर हो गया, जिसके बाद उन्हें हमारे साथ सिर्फ सात महीने नसीब हुए| इन सब के बाद जब मैं एकदिन चर्च में बैठी हुई थी तब मैंने येसु से सवाल किया, “आप ने क्यों इतनी जल्दी पापा को हम से छीन लिया? मैं ने अभी अभी तो उन्हें जानना शुरू किया था|” आंसुओं से भीगे हुए अपने चेहरे को जब मैंने वेदी की ओर किया तब मैंने येशु को मेरे पापा के कंधे पर हाथ रखते हुए देखा| वे दोनों साथ खड़े मुस्करा रहे थे| मेरे पापा काफी जवान और खूबसूरत भी दिख रहे थे| येशु ने मुझे प्यार से बताया, “ आयरीन, अब तुम कभी भी अपने पापा से बात कर सकती हो|” तुरंत ही मैं ने खुद को निराशा के दलदल से आज़ाद पाया| अब मैं खुश थी कि मेरे पापा येशु के साथ थे और मैं उन्हें फिर देखूंगी|
इसके साथ ही मुझे माँ को भी माफ़ करने और उन्हें सच्चे दिल से प्यार करने की कृपा मिली| उनके बुढ़ापे में मैं ने बड़े प्यार से उनकी सेवा की| जब उन्हें दिल का दौरा पड़ा, उस वक़्त मैं ने उन्हें बड़े प्यार से संभाला और उनकी आखिरी सांस तक उन से प्रेम रखा| मैं खुद को काफी सौभाग्यशाली समझती हूँ कि मुझे उनके आखिरी लम्हों तक उनके साथ रहने की कृपा मिली| इसके बाद मैं अपने बलात्कारी को भी माफ़ कर पायी| आखिरकार मैं ने खुद को उन से भी आज़ाद कर लिया था|
ईश्वर ने मेरे जीवन में एक ऐसे पुरोहित को भी भेजा जो मेरी तकलीफों को बिना मेरे कहे ही समझ गए| वे मेरे आध्यात्मिक निर्देशक बने और मेरे लिए पिता जैसे थे| उन्होंने ईश्वर के संकरे मार्ग पर बने रहने में मेरा मार्गदर्शन किया| वे हमेशा मुझ से कहते थे, “अगर तुम्हें किसी बात में मानवीय सहायता की आवश्यकता है, तो ईश्वर तुम्हारे पास किसी इंसान को भेजेंगे चाहे वह इंसान दुनिया के दूसरे छोर पर ही क्यों ना हो|” उस पुरोहित की मौत के बाद, मुझे ऐसे किसी इंसान की ज़रुरत थी जिस से मैं बात कर सकूँ| एक दिन मैं मिस्सा केलिए गई तब जो पुरोहित उस वक़्त मिस्सा बलिदान अर्पित कर रहे थे वे भारत से आये हुए थे| मुझे उसी वक़्त यह एहसास हो गया था कि वे मेरे लिए भेजे गए थे और उन की बातों से मुझे वही मार्गदर्शन मिला जिसे मैं खोज रही थी|
चंगी और परिपूर्ण
एक दिन पवित्र आत्मा ने मेरे सालों पुराने सवाल का जवाब दिया: “ उस बच्ची के साथ क्यों दुष्कर्म हुआ था?” उसी वक़्त मुझे सर से पाँव तक तेज़ दर्द होने लगा| मुझे यह समझ नही आ रहा था कि मैं घर वापस कैसे जाउंगी लेकिन ईश्वर ने मेरा ख्याल रखा| येशु आये और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उस “बच्ची” के पास ले गए| उन्होंने उस बालिका आयरीन को उठाया और बड़ी कोमलता से उसे देखते हुए अपनी बाहों में झुलाने लगे| फिर उन्होंने उसके चेहरे पर हलके से फूँक मार कर उसके अंदर जीवन भर दिया|
मेरा दिल आभार से भर गया और मैं यह देख कर हैरान रह गयी कि येशु ने उस बच्ची में जान भरी, मुझ में जान भरी| पर फिर मैं ने सोचा, “ येशु अगर तूने उस बच्ची में जान भरी तो फिर तूने मेरे जीवन में वे सारी बातें क्यों होने दी? तू उस वक़्त कहाँ था?” इस पर उन्होंने जवाब दिया, “आयरीन, मैं भी तुम्हारे साथ इस पूरी अवधि में सब कुछ झेल रहा था, लेकिन मैं ने हमेशा तुम्हें बड़ी कोमलता से अपने दिल में रखा है| तुम मेरे लिए बहुत ख़ास हो|”
जब मेरे बच्चे हुए तब मैंने यह ठान लिया कि मैं बड़े लाड़ प्यार से उनकी देख भाल करुँगी| क्योंकि मैं ने बचपन में इसकी कमी महसूस की थी, इसीलिए मैं ने इस बात का बहुत ज़्यादा ध्यान रखा कि मेरे बच्चों को इसकी कमी ना हो| हालांकि मेरे साथ बचपन में काफी कुछ ठीक नही हुआ, फिर भी मैं कहीं न कहीं उन चीज़ों की आभारी हूँ क्योंकि उन्होंने ही मुझे तराशा है| मैं आज भी मुश्किलों से गुज़रती हूँ पर उनमें ईश्वर मेरी मदद करते हैं क्योंकि मैं ने खुद को ईश्वर की कृपा के भरोसे छोड़ दिया है|
उदाहरण केलिए, एक बार जब परम प्रसाद में येशु की उपस्थिति के बारे में संदेह कर रही थी उसके अगले ही दिन मुझे एक साधना कार्यक्रम केलिए जाना था| मेरा जाने का मन नहीं था, फिर भी मैं ने जाने का फैसला किया क्योंकि मैं उस साधना के लिए पहले से पैसे दे चुकी थी| प्रार्थनालय में आराधना के वक़्त मैं पीछे बैठकर सोचने लगी, “ ये लोग कैसे ऐसी बकवास बात पर भरोसा कर सकते हैं?” फिर मैं ने बार बार कहना शुरू किया, “मैं विश्वास करती हूँ, मेरे अविश्वास को हटाइये” (मारकुस 9:24)| अचानक मैं एक तेज़ रौशनी से भर गयी और मेरा सारा संदेह दूर चला गया|
अब मेरी पूरी ज़िन्दगी येशु और उसके महान प्रेम की वजह से शान्ति और आनंद से भरी हुई है| उन्होंने मुझे हिम्मत करना सिखाया ताकि मैं अपने सामने आनेवाली हर मुसीबत का सामना कर सकूं| हर दिन मैं पिता ईश्वर को उनके जीवनदान के लिए, नए दिन दिन केलिए और उनके सानिध्य में जीवन जीने की शक्ति केलिए धन्यवाद देती हूँ|
'मुझे याद है माँ का पापा के कन्धों पर सर रख कर रोना और मेरे रिश्तेदारों, दोस्तों और यहाँ तक कि अनजान लोगों का मेरे लिए रो-रो कर प्रार्थना करना| ऑपरेशन रूम में लेटे हुए जब मैंने डॉक्टरों को घबराहट के साथ आपस में फुसफुसाते हुए सुना जैसे कि मेरे बचने की कोई उम्मीद नही थी, तब मैंने आँखें बंद करके प्रार्थना की कि मैं एक दिन और ज़िंदा रह सकूं|
उस भयंकर क़यामत की तारीख
साल 2007 में जब मैं चौथी कक्षा में था, तब मेरे चाचा ने मुझे एक नया कम्प्यूटर ला कर दिया| रोज़ मैं उसपर गेम्स खेलने का इंतज़ार करता था| एक दोपहर, मैं स्कूल से भाग कर घर आया| मेरे माता पिता, मैं, और मेरा छोटा भाई, हम सब एक अपार्टमेंट के पहली मंजिल पर रहते थे| मैंने अपना स्कूल बैग फेंका, कपड़े बदले और बिजली की तेज़ी से कंप्यूटर पर गेम्स खेलने के लिए दौड़ा| इसी बीच मेरी दादी गरम पानी की एक बड़ी हांडी लिए गलियारे से गुज़र रही थीं|
जब मैं तेज़ी से भागता हुआ अंदर आया तब मैंने दादी को अपनी ओर आते देखा| मुझे अपनी ओर आते देख मुझे चेतावनी देने के उद्देश्य से दादी ज़ोर से चीखीं, पर मैं होनेवाले खतरे से बेखबर उन्हें गले लगाने को उनकी ओर दौड़ा| इस दौरान उनका संतुलन बिगड़ा और हांडी का सारा गरम पानी मेरे ऊपर जा गिरा| इसके तुरंत बाद मेरे लिए सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा था | मेरी दादी की चीखें मेरे कानों में गूँज रही थी जब मैं ज़मीन पर पड़ा था, इस बात से अनजान कि मेरे साथ अभी अभी क्या घट चुका था| मैंने माँ को घबराई हालत में अपनी ओर आते देखा| उन्होंने इतना शोर मचाया कि सारे पड़ोसी घर पर एकत्रित हो गए | मेरी हालत देख कर वे सभी घबरा गए | इसी बीच मुझे अपने पेट में तेज़ दर्द महसूस होने लगा| मुझे जल्द ही नज़दीकी अस्पताल में ले जाया गया|
दुःख का चिन्ह
दादी मुझे जैसे-तैसे संभालने और सांत्वना देने की कोशिश कर रही थीं, इसी बीच माँ का रो-रो के बुरा हाल था| लेकिन इमरजेंसी कक्ष में ले जाए जाने से ठीक पहले दादी ने मुझसे येशु, मरियम और संत योसेफ के पवित्र नाम को लेते रहने केलिए कहा | जब डॉक्टर ने मेरी जांच की, तभी मुझे पता लगा कि मेरी हालत असल में कितनी बुरी थी| मेरे पेट की चमड़ी जल कर ख़तम हो चुकी थी और अंदर का लाल मांस देखा जा सकता था| जब डॉक्टर मेरा इलाज करने में व्यस्त थे तब मेरे माता-पिता और सगे सम्बन्धी एकजुट हो कर माता मरियम की शक्तिशाली मध्यस्थता केलिए प्रार्थना कर रहे थे| लेकिन सभी को इस बात का अंदाज़ा था कि मेरे ठीक होने की उम्मीद काफी कम थी|
अस्पताल में लगभग एक महीना बिताने के बाद मैं आखिरकार घर जाने लायक हो गया | मेरे एक चाचा ने मेरी देखभाल की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली | मेरे माता पिता के लिए अब मैं निरंतर चिंता और दुःख का कारण बन गया था| बचपन में मैंने पापा को कभी रोते हुए नहीं देखा था, लेकिन एक दिन मुझे ऐसे दर्द में लिपटे देख उनकी आँखें भर आयी थीं| मेरी ज़िन्दगी अब बस बिस्तर पर पड़े पड़े गुज़र रही थी| हर कोई जो मुझसे मिलने आता था वे मुझसे कहते थे कि वे मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं| मेरे दोस्त, अध्यापक, पल्लीवासी, धर्मगुरु, धर्मबहनें, सब मेरे ऊपर प्रार्थना कर चुके थे| हर ओर, हर जगह मेरे लिए निरंतर प्रार्थना की जा रही थीं| अब मैं जानता हूँ कि उनमें से किसी की भी प्रार्थना अनसुनी नही की गयी थी|
जले के निशान
डॉक्टरों को जितनी उम्मीद थी उससे काफी पहले ही मैं पूरी तरह चंगा हो गया| हर किसी ने कहा कि यह एक बड़ा चमत्कार है | दोस्तों और परिवार वाले इस बात पर एकमत थे | उन्होंने यह स्वीकार किया कि उन्हें मेरे बचने की उम्मीद बिलकुल नहीं थी| पर आज मैं उनके सामने था, चंगा और स्वस्थ| ये सब सिर्फ ईश्वर की कृपा, उन्हीं का करम था|
हालांकि उस वक़्त मैं सिर्फ एक छोटा बच्चा था, फिर भी, इस चमत्कारी अनुभव ने मेरे दिल में मेरे मसीहा के लिए प्रेम और विश्वास के बीज बो दिए| मैंने जाना कि ईश्वर हमेशा हर मुसीबत से बचाने के लिए मेरे साथ हैं | मेरे पेट पर अभी भी जले के निशान हैं, लेकिन जब मैं उन्हें देखता हूँ मुझे ईश्वर की चंगाई की शक्ति याद आती है, और मुझे इस बात का अहसास होता है कि मैं उनकी कृपा का एक जीता जागता सबूत हूँ|
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