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जुलाई 27, 2021
Engage जुलाई 27, 2021

बच्चों को इस विश्वास में बढ़ाना कोई आसान काम नहीं है।

क्योंकि जो इसकी कोशिश करते हैं उनकी राहें अचरज से भरी पड़ी हैं।

बढ़ती ख़ुशी

“बच्चे मेरे जीवन में अपनी खुशियां और अपने गीत ले कर आते है।

कब मैं उन की जैसी बन पाऊंगी ? मुझे उनके संग गुनगुनाने सिखा दे |”

जब भी मैं “जीवित झरने बहता जा” गीत के इन बोलों को गुनगुनाती थी, मेरा दिल खुद मेरे अपने बच्चे को पाने की आशीष के लिए तड़प उठता था। मैं अपने माता पिता की इकलौती संतान हूं, और बचपन से ही मेरा बच्चों के प्रति एक अलग खिंचाव था। बच्चों के बीच रहना मुझे सबसे ज़्यादा ख़ुशी देता था। यहां तक कि मैंने शादी ही इसीलिए की ताकि मैं मां बन सकूं।

मुझे याद है कि उन दिनों जब मैं डायरी लिखा करती थी तो मैं उसमे उन सब गानों के नाम और उन सारी संतों की कहानियों के नाम लिखा करती थी जिसे मैं अपनी होने वाली संतानों को सुनाना चाहती थी। और इसी तरह मैं सोचा करती थी कि मैं अपने बच्चों को धार्मिकता में बड़ा करूंगी। मैं उन्हें येशु और मां मरियम को दिल से प्रेम करना सिखाऊंगी, इसी उत्साह में मैंने शादी से पहले ही बच्चों की बाइबल भी खरीद ली। मेरा दिल इन्हीं सारी बातों से भरा हुआ था इसीलिए अपनी गर्भावस्था की शुरुआत से ही मैंने अपने बच्चे को प्रार्थना, ईश्वर की स्तुति और अनेक क्रूस के चिन्हों से घेरे रखा। जब मुझे बिस्तर पर पूर्ण विश्राम दिया गया, तब मैंने अपनी प्रार्थनाओं को दुगना कर दिया। मुझे तो इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि ईश्वर ने मेरे बच्चे को सत्ताइसवें हफ्ते में ही दुनिया में लाने की योजना बनाई थी। जब मैंने पहली बार अपनी बच्ची को अपनी गोद में लिया तब मेरा दिल ईश्वर की स्तुति से भर गया। और हालांकि हमें उसे पैंतालीस दिन तक अस्पताल में रखना पड़ा, फिर भी ईश्वर ने हमें एक बेटी का तोहफा दिया था इस बात से मेरा दिल फूला नहीं समा रहा था।

मैं हर रोज़ अपनी बेटी अन्ना से येशु के बारे में बात किया करती थी। और हालांकि मुझे बस कुछ ही देर उससे मिलने दिया जाता था फिर भी जहां तक हो सके मैं उसके शरीर के किसी कोने पर क्रूस का चिन्ह बना दिया करती थी, और उससे कहती थी कि वह अकेली नहीं है क्योंकि मां मरियम और येशु हमेशा उसके साथ हैं। कभी कभी जब मैं उसके लिए कोई भजन गुनगुनाती थी तो पास ही खड़ी नर्सें भी साथ में गाने लगती थीं और पूरा कमरा ईश्वर की स्तुति से भर जाता था। आखिर में जब मुझे अपनी बेटी को घर ले जाने की इजाज़त मिली तो मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

आंसुओं के द्वारा

अन्ना के जन्म के तीन महीने बाद हमें पता चला कि अन्ना बाकी बच्चों की तरह एक आम ज़िन्दगी नहीं जी पाएगी। शारीरिक विकलांगता के साथ साथ वह मानसिक रूप से भी कमज़ोर थी। डॉक्टरों का कहना था कि उसके जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी की वजह से उसका दिमाग सिकुड़ गया था। इन सब के बीच भी मैंने उसे प्रार्थना और भजन से घेरे रखा। और ईश्वर की कृपा से इतनी तकलीफों के बीच भी मेरी बच्ची के चेहरे पर एक दैविक ख़ुशी थी। जब भी मैं उसके सामने पवित्र माला विनती कहती थी वह रोना बंद करके मुस्कुराने लगती थी। उस वक्त ऐसा लगता था जैसे हम फरिश्तों के बीच हैं जो हमारे साथ प्रार्थना कर रहे हैं। मैं उसे संतों की कहानियां सुनाती सुनाती थकती ही नहीं थी, मुझे इस बात की फ़िक्र नहीं थी कि मेरी बच्ची को कुछ समझ आ भी रहा है या नहीं। कुछ दिन ऐसे भी गुज़रते थे जब मैं माला विनती कहते हुए रो पड़ती थी, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि मेरी नन्ही अन्ना कभी मेरे साथ रोज़री कहने लायक हो पाएगी या नहीं।

अन्ना के जन्म को चार साल गुज़र चुके थे, इस बीच मेरा तीन बार गर्भपात हो चुका था। डॉक्टरों का कहना था कि मैं कभी स्वस्थ बच्चों को जन्म नहीं दे पाऊंगी और यह बात मुझे अंदर तक तोड़ रही थी। मुझे कहा गया की बस कोई चमत्कार ही इसे बदल सकता है और ईश्वर की असीम कृपा और प्रेम ने मुझे वह चमत्कार दिया इसा और आरिक के रूप में। मेरे ये दो फरिश्ते दो सालों के अंतराल में पैदा हुए। मेरी अन्ना छह साल की हो चुकी थी जब ईश्वर ने उसे एक भाई और बहन का तोहफा दिया।

इसा और आरिक के साथ भी मैं वैसे ही प्रार्थना किया करती थी जिस तरह मैं अन्ना के साथ प्रार्थना किया करती थी। पर इनके साथ मुझे ना जाने क्यों एक खालीपन सा महसूस होता था। जब मैं आरिक के सर पर हाथ रखने या क्रूस का चिन्ह बनाने की कोशिश करती थी तो वह ना जाने क्यों डर के मारे भाग जाता था। जबकि इसा बस अविश्वास भरी नज़रों से मुझे घूरा करती थी।

मुझे बड़ी कठिनाइयों के बाद यह समझ आया कि अपने बच्चों को अपने विश्वास में बड़ा करना कोई आसान काम नहीं है!

आपको लग रहा होगा कि मेरा अपने बच्चों की धार्मिकता की चिंता करना, वह भी तब जब वे महज़ दो साल या पांच महीने के हैं किसी मज़ाक से कम नहीं है। पर मैं मज़ाक नहीं कर रही हूं, उस वक्त मैं सच में यह सोचने लगी थी कि “क्या मैं कुछ ग़लत कर रही हूं? क्या मेरे बच्चे ईश्वर के नज़दीक जाने के बजाय ईश्वर से दूर जा रहे हैं? क्या मैं ईश्वर के प्रेम को उन पर ज़बरदस्ती थोप रही हूं?”

मेरा दिल जैसे रुक सा गया

एक शाम की बात है, मैं इन्हीं सवालों में उलझी हुई थी। इसा पास ही में एक झूमाझूमी पर बैठकर डोल रही थी, इसी बीच आरिक बिस्तर पर चढ़ा, उसने बिस्तर से लगे धर्मग्रन्थ के वचन के उद्धरण पर (मढवाकर दीवार पर टांग दिया गया था) अपना हाथ फेरा और फिर उसी हाथ से इसा के होठों को छू लिया। तभी मुझे समझ आया कि आरिक सब समझता है! मैं हर रोज़ आरिक को येशु के पवित्र हृदय की तस्वीर के सामने लाया करती थी, फिर मैं तस्वीर को छू कर उसके होठों को उन्हीं हाथों से छुआ करती थी। मुझे समझ आया कि इस समय आरिक बस मेरी नकल नहीं उतार रहा था, बल्कि जब वह दीवार को छू रहा था तब उस पवित्र वचन के उद्धरण पर हाथ लगने पर उसे समझ आया कि उसने कुछ पवित्र छुआ है। इस बात का अहसास होते ही मुझे नबी यिर्मियाह 15:16 की यह बातें याद आई:

तेरी वाणी मुझे प्राप्त हुई

और मैं उसे तुरंत निगल गया।

वह मेरे लिए आनंद और उल्लास का विषय थी;

क्योंकि तूने मुझे अपनाया,

विश्व मण्डल के प्रभु ईश्वर!

इस घटना ने मुझे यह सिखाया कि मुझे अपने बच्चों पर अपने विश्वास को थोपने की ज़रूरत नहीं है। बल्कि मेरे बच्चे ही मुझे नए सिरे से ईश्वर से प्रेम करना सिखाएंगे।

जब मेरे बच्चे मेरा ध्यान अपनी ओर करने के लिए इतनी ज़ोर ज़ोर से रोते हैं कि मैं उनके सामने से हिल भी नहीं पाती, तब मुझे याद आते हैं वे पल जब मैंने अपनी प्रार्थनाओं द्वारा ईश्वर का ध्यान अपनी ओर किया। और तब मैं खुद से यह सवाल करती हूं “क्या मैं उसी तरह ईश्वर के नज़दीक रहने की कोशिश करती हूं जिस तरह मेरे बच्चे हर वक्त मेरे नज़दीक रहने की ज़िद करते है?”

जब मैं अपने बेटे को किसी बात के लिए डांट लगाती हूं तो वह तुरंत मुझ से लिपट कर सुलह करने की कोशिश करता है। लेकिन जब मैं कोई गलती करती हूं, कोई ग़लत बात कहती हूं तब मुझे ईश्वर की ओर मुड़ने और उनसे माफी मांग कर सुलह करने में कितना वक्त लगता है? ईश्वर भी हमें कभी कभी डांट लगाते हैं और हमारे उन्हें गले लगाने और उनसे सुलह करने का इंतज़ार करते हैं।

और अगर मैं अपने बच्चों से इतना प्यार करती हूं जब कि वे रोज़ ही कोई ना कोई शरारत, कोई ग़लती करते हैं, तो सोचो ईश्वर हमारी गलतियों के बावजूद हमसे कितना ज़्यादा प्यार करता होगा।”

आंखों की चमक

एक बार जब मैं टी.वी. पर आराधना का लाइव कार्यक्रम में भाग ले रही थी, तब मैंने देखा कि आरिक ने भी अपने दोनों हाथ उठाए और इसा भी भजन सुन कर झूमने लगी। तब मुझे अहसास हुआ कि हमारे बच्चे हमारे विश्वास की अभिव्यक्ति की नकल करते हैं। चाहे मैं उन्हें येशु या संतों की अनेक कहानियां सुनाऊं, उनका ध्यान सिर्फ और सिर्फ मेरे कार्यों पर रहता है। क्या मैं येशु की तरह विनम्र और सौम्य हूं? क्या मैं येशु की तरह उन सब से प्रेम रखती हूं जो शायद मुझसे प्रेम नहीं रखते? जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं, बच्चे हमारे कर्मों को हमारी बातों से ज़्यादा देखते और याद करते हैं।

मैं तब सबसे ज़्यादा अचंभे में पड़ जाती हूं जब नन्ही अन्ना पवित्र मिस्सा बलिदान सुनने चली आती है। वह हमेशा इतनी शांत रहती है। मिस्सा बलिदान के वक्त उसकी सारी शरारतें, उसकी तेज़ आवाज़, सब थम सी जाती है। वह बिल्कुल मौन रह कर ईश्वर की आराधना करती है। और जब पुरोहित कहते हैं “और हम भी सब दूतों और संतों के साथ मिल कर युगानुयुग तेरा स्तुतिगान करते हुए निरंतर एक स्वर से कहते हैं: पवित्र पवित्र पवित्र, हे स्वर्ग और पृथ्वी के परमेश्वर” तब अन्ना की आंखे ऐसे बड़ी हो जाती हैं जैसे वह उड़ते स्वर्गदूतों को देख पा रही हो। वह इतनी खुश और उत्साहित हो जाती है कि अगर कोई उसे उस समय देखेगा तो यह यकीन कर बैठेगा कि स्वर्ग सच में होता है। अन्ना के इसी उत्साह ने मुझे भी यकीन दिलाया कि स्वर्गदूत और संत हमारे आसपास ही रहते हैं और वे हमारे साथ ही मिस्सा बलिदान में भाग लेते हैं।

मेरे बच्चे मुझे हर समय येशु की बातों की याद दिलाते हैं “जब तक तुम खुद को इन बच्चों जेसे नहीं बना लेते, तुम स्वर्गराज में प्रवेश नहीं करोगे”। तो आइए हम सादगी और बच्चों जैसे विश्वास के साथ अपनी प्रार्थनाएं भेजें और मुझे यकीन है कि वे बादलों को चीर कर स्वर्ग पहुंच जाएंगी।

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By: Reshma Thomas

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जुलाई 27, 2021
Engage जुलाई 27, 2021

नल खोलते ही पानी बहने लगता है

बटन दबाते ही बत्तियां बुझ जाती है

अलमारियों को खोलो तो खाना निकाला आता है

आजकल सुविधाएं इतनी बढ़ी हैं कि हम कितने लापरवाह हो गए हैं|

ईश्वर को धन्यवाद देने की आदत डालना आज के समय में बहुत ज़रूरी है| थेसलोनिकियों को लिखे गए पहले पत्र में संत पौलुस कहते हैं, “सब बातों के लिए ईश्वर को धन्यवाद् दें; क्यूंकि येशु मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है|” ईश्वर क्यों हमें सब बातों में धन्यवाद देने को कहते हैं? संत पौलुस कहते हैं कि ऐसा करने से “ईश्वर की शान्ति जो हमारी समझ के परे है, आपके हृदयों और विचारों को येशु मसीह में सुरक्षित रखेगी|” इसीलिए अगर आप खुद को उत्तेजित, चिंतित, परेशान, या अशांत पाते हैं तो इससे निजात पाने का एक बढ़िया उपाय है ईश्वर को छोटी छोटी चीज़ों के लिए धन्यवाद देने की आदत डालना|

मैंने कई सालों पहले एक तीर्थ यात्रा के दौरान कृतज्ञता के बारे में कई महत्त्वपूर्ण बातें सीखीं| इस तीर्थ यात्रा के लिए मैंने और मेरे दोस्त ने 180 मील की दूरी एकसाथ तय करने का फैसला लिया| हम पैदल चल कर स्पेन के कमीनो डी संतियागो जाने वाले थे| एक दिन हम 15 मील लगातार चले, जिसके बाद हम रुक कर आराम करने के लिए बिलकुल तैयार थे| हम पसीने से लतपत और भूख व थकान से बेहाल थे| इसीलिए हमने नज़दीकी शहर में रुकने का फैसला किया| लेकिन जब हम नज़दीकी शहर पहुंचे तब हमें पता चला कि उस वक़्त उस शहर में एक महोत्सव चल रहा था जिसके चलते उस शहर के सारे होटल भर चुके थे| जब आप पैदल यात्रा करते करते इतना थक चुके हों, तब आराम करने की जगह ना मिलने से बुरा क्या ही हो सकता है?

थकान से हमारी हालत खराब हो रही थी, और हमें किसी तरह रात में सोने की जगह चाहिए थी| हमने कई होटलों में पूछा पर सब जगहें भरी हुई थीं जिसकी वजह से हमें काफी चिंता होने लगीं थी| फिर किसी ने हमें ठहरने की एक जगह के बारे में बताया जो शहर से थोड़ी दूर पर थी, जहाँ जगह मिलने की उम्मीद थी| उस व्यक्ति ने उस होटल में फ़ोन करके हमारे लिए पूछताछ भी की, और वाकई वहाँ किस्मत से एक डारमेट्री में दो बिस्तर खाली थे| हालांकि वहाँ पहुंचने के लिए हमें एक मील और चलना पड़ा और जब हम वहाँ पहुंचे तो वह जगह काफी गन्दी और लोगों से भरी हुई थी| पर उस वक़्त हम इसी बात से इतने खुश थे कि हमें ठहरने की एक जगह और सोने को एक बिस्तर मिल पाया, कि हमने बाकी किसी चीज़ की शिकायत नहीं की| कम से कम उस रात हमें ज़मीन पर, खुले आसमान के नीचे तो नहीं सोना पड़ा|

अगले दिन जब हम बस स्टेशन गए तब वहाँ हमने कई अफ़्रीकी शरणार्थियों को बस का इंतज़ार करते हुए देखा| वे किस चीज़ से दूर भाग रहे थे? उन्होंने कितनी दूर तक का सफर तय किया था? उन्होंने स्पेन तक आने के लिए कितनी दुःख, तकलीफों का सामना किया होगा, हम इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते थे| उन्हें ऐसे देख कर हमारे दिल करुणा और दया से भर गए|

इस घटना के बारे में सोच विचार करते हुए मैंने खुद से एक सवाल किया, “कितनी बार मैंने ईश्वर को इस बात के लिए शुक्रिया कहा होगा कि आज रात मेरे पास सोने के लिए एक बिस्तर है?” शायद ही कभी मैंने इन बातों के लिए ईश्वर को याद किया होगा| उस रात, एक ऐसी चीज़ से वंचित रह जाने का डर, जिसके बारे में मुझे पहले कभी सोचना भी नहीं पड़ा, और फिर उन शरणार्थियों को मुझसे कहीं ज़्यादा बदतर हालत में देखकर मेरा ध्यान मेरे जीवन में मौजूद अनेक आशीषों की ओर गया, और इन सब बातों ने मुझे किसी भी बात के बारे में शिकायत ना करना सिखाया| इन सब के बाद मैंने अपने दिल में एक हल्कापन और ख़ुशी महसूस की| और इन सब बातों ने मुझे ईश्वर को छोटी छोटी बातों के लिए धन्यवाद कहना सिखाया| जैसे, अपनी तीर्थ यात्रा के दौरान मैंने और मेरे दोस्त ने पानी तक के लिए ईश्वर को धन्यवाद देना सीखा| कमीनो डी संतियागो की तीर्थ यात्रा के दौरान हमें अपने पीठ पर पानी ले कर चलना पड़ा, और पानी का वह बोझ काफी भारी होता है| लेकिन तीर्थ यात्रा करते वक़्त हम कई जगहों से गुज़रते हैं जहां पानी की कमी है, इसीलिए हमें अपने साथ काफी मात्रा में पानी ले कर चलना पड़ता है| हमारे साथ कई बार ऐसा हुआ की हमारा पानी ख़तम हो गया, उस वक़्त जब हमें पानी भरने और अपनी प्यास बुझाने के लिए कोई जगह दिखी तो हमने कितने दिल से ईश्वर को धन्यवाद कहा| हर दिन, शाम ढलने पर जब हम अपने डेरे में वापस जा कर ठन्डे पानी से नहा पाते थे तो हमारे दिल को एक अनोखा सुकून मिलता था|

जब हम तीर्थ से लौटे, तब हम ईश्वर को हर छोटी बात के लिए धन्यवाद देने की इस आदत को जारी रखना चाहते थे| बजाय इसके कि हमारे जीवन में किसी बात की कमी आए तभी हम ईश्वर की आशीषों के लिए ईश्वर को धन्यवाद देंगे, क्यों ना हम हर रोज़ ईश्वर को उन छोटी छोटी बातों के लिए धन्यवाद दें जिन्हें हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं| ईश्वर हमारी स्तुति और धन्यवाद के योग्य हैं, और जब हम हर दिन ईश्वर की आशीषों को खोजते हैं और उनके लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं, तब हमारे जीवन की तकलीफें और चिंताएं जिन्हें हम अपने दिल में लिए फिरते हैं वे सारे बोझ हलकी लगने लगती हैं| और हम ईश्वर की उपस्थिति और उनके मार्गदर्शन पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं|

कृतज्ञता सच में वह दरवाज़ा है जो हमें “उस शान्ति की ओर ले जाता है जो सारी समझ के परे है”| एक बार कृतज्ञ हो कर देखें और सोचें की आप किन बातों के लिए अभी इसी वक़्त ईश्वर को धन्यवाद दे सकते हैं?

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By: Ellen Hogarty

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जुलाई 27, 2021
Engage जुलाई 27, 2021

तकलीफ के दिन ही तुम्हें सिखायेंगे कि अकेले बैठने में हिम्मत उठाना है 

और जानो की तुम अकेले नहीं हो |

टेलीफोन मौन है | दरवाजे की घंटी पर अनछुआ पडी है, यानी किसी मेहमान के आने की सूचना के लिए वह अब बजती नहीं है | सारे मित्र और उनके परिवार मानो बहुत दूर चले गए हैं, शायद वे अपने ही कार्यों में व्यस्त हैं | इसलिए ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि मैं इन दिनों अपने रेफ्रिजरेटर को घूरकर देखती हूँ, इस उम्मीद से कि उसके अन्दर की खाद्य सामग्री से कुछ सुकून मिलगा | पूरा दिन कुछ न कुछ काम करती रहती हूँ, लेकिन उन कार्यों में बी कोई अर्थ नहीं निकलते | क्या अपने कभी पुरे दिन को उदासी और हताशा के भाव को देखा है, और यह भाव को पनपने दिया है, परिणाम स्वरूप आप दुःख और चिंताओं से भर गए हैं? हम में से बहुत सारे लोग इन दिनों यही करते हैं | सबसे सुखमय समय में भी एकाकीपन को सुलझाना कठिन कार्य है, लेकिन इन दिनों समूची दुनिया कोविड-१९ महामारी से जूझ रही है, यदि हम दुर्बल है तो एकाकीपन हमें बुरी तरह जकड सकता है | तो, हम क्या करें ?

सबकी परिस्थितियाँ भिन्न भिन्न हैं | तो भी, जब कभी मुझे अकेलापन महसूस होता है, मैं घर से बाहर निकलती हूँ, और एक लम्बी सांस लेती हूँ | कभी मैं अपने दरवाजे से बहार निकलकर सिर्फ दस १० कदम चलती हूँ, कभी लंबा देर के लिए टहल हो जाती है | दरवाज़ा खोलने के कार्य से ही हवा मेरे घर के अन्दर प्रवेश करती है, और अपने आसपास का एक भिन्न पहलू मुझे दिखाता है, और चाहे सिर्फ छह फीट के दूरी पर ही कोई व्यक्ति गुज़रता है तो यह एकाकीपन को दूर कर लेता है |

हल ही में एक दिन सुबह, अपनी सोच और नज़रिया बदलने के उद्देश से मैं हाथ में रोज़री माला लिए टहलने गयी | वह ऐसा दिन था जिस दिन आनंद के भेद पर मनन किया जाता है | धन्य माँ मरियम के साथ आनंद के साथ चलने की सोच से ही मेरे दृष्टिकोण में तत्काल अच्छा प्रभाव पड़ गया | टहलते हुए माला विनती करने से मेरे अन्दर एक शांतिपूर्ण लय बन जाती है, और अनायास ही ध्यान में मगन हो जाती हूँ | हर भेद पर मनन करते हुए मैं ने माँ मरियम से कहा कि वह उन भेदों के आनंद का खुलासा कर दें | उसके द्वारा प्रकाशित बातें विभिन्न तरीकों से प्रकट हो जाती हैं, लेकिन उस दिन वह बिलकुल अप्रतीक्षित बातें थीं |

मैं आनंद के अंतिम भेद पर मनन करने लगी जहां मरियम और जोसेफ येशु को मन्दिर में पाते हैं | जैसे ही मैं ने भेद का उच्चारण किया, उसी समय एक महिला जॉगिंग करती हुई निकल गयी | मैं ने अपने मन में सोचा, कितनी अच्छी बात है कि वह अपने शरीर रूपी मंदिर का ख्याल कर रही है और स्वस्थ रहने केलिए म्हणत कर रही है | मेरे मन में यह भी सवाल उठा कि उसका आत्मिक मंदिर कितना स्वस्थ होगा? जैसे ही यह सोच मेरे मन में आयी, अगली सोच उभरकर आयी: “तुम अपने मंदिर के बारे में मानंद करों” | तुरंत माँ मरियम ने मुझ से सवाल पूछा | “ तेरेसा, क्या तुमने आज अपने मंदिर में येशु को पाया है? जब तुम येशु को अपने मंदिर में खोजोगी, और उसे पाओगी, तब वह तुम्हें आनंद लाएगा” |

मैं कितनी मूर्ख थी | मैं कभी भी अकेली या एकाकी नहीं हूँ | येशु मेरे साथ हमेशा रहते हैं | पवित्र ग्रन्थ में येशु हमसे कहते हैं कि वह हमारे साथ हैं और हमें अकेले नहीं छोड़ेंगे | मत्ती 7:7 में येशु हमसे कहते हैं कि हम उनका द्वार खटखटायें और वह द्वार हमारे लिए खुल जाएगा | इसलिए मैं अपने मंदिर के द्वार खटखटाती हूँ और येशु को खोजती हूँ | वह हमेशा मेरा स्वागत करता है, अपने आनंद मुझे देता है, और

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By: Teresa Ann Weider

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जुलाई 27, 2021
Engage जुलाई 27, 2021

प्रश्न: इस वायरस के संकट ने मुझे एहसास दिलाया है कि मेरा जीवन कितना छोटा है, और अब मुझे चिंता होने लगी है – बीमार होने की चिंता, और मृत्यु से डर। जब मुझे पता ही नहीं होगा कि मैं कोरोना वायरस से बीमार हो जाऊंगा या नहीं, तो मैं शांति से कैसे रह सकता हूं?

उत्तर: हर समाचार चैनल नियमित रूप से कोरोना महामारी की खबर देता आ रहा है। इस बीमारी की खबरों से बचना कठिन है – ये खबरें प्राय: हर जगह मौजूद है। यहां तक कि इस साल की शुरुआत में कई महीनों के लिए पूरे देश के गिरजाघरों में सार्वजनिक मिस्सा बलिदान  को बंद कर दिया। मैंने एक गिरजाघर में पवित्र जल कुंड में आशीष किया गया हैण्ड सैनिटाइज़ेर भी देखा है!

सावधानी ज़रूरी है, लेकिन घबराहट बिलकुल अलग चीज़ है। मुझे लगता है कि बहुत से लोग (और संस्थाएं) एक आतंक-मोड के शिकार हो गए हैं जो ऐसे समय में न तो यथार्थवादी है, न ही सहायक है। इस वायरस के दौरान स्वस्थ रहने के लिए हम तीन चीजों को याद रखें:

सबसे पहले, डरिये नहीं। यह बाइबल में सबसे अधिक बार-बार कही गई वचनों में से एक है। वास्तव में, यह “डरो मत” वाक्यांश बाइबल में 365 बार दिखाई देता है – वर्ष के प्रत्येक दिन के लिए एक, क्योंकि हमें इसे हर दिन सुनने की आवश्यकता है।

हमें क्यों नहीं डरना चाहिए? क्योंकि सब कुछ ईश्वर के नियंत्रण में है। हमारी तर्कसंगत, विज्ञान-आधारित संस्कृति में, हम यह भूल जाते हैं – हम सोचते हैं कि मानव जाति की नियति हमारे ही हाथ में है। इसके विपरीत- सब कुछ पर ईश्वर का नियंत्रण है, और उसकी इच्छा की हमेशा जीत होगी। अगर यह उसकी इच्छा है कि हम इस बीमारी से ग्रसित होते हैं, तो हमें अपनी इच्छा को उसकी इच्छा के प्रति समर्पण करना होगा। हाँ, एहतियात बरतें, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा जीवन उसके हाथों में है। वह एक अच्छा पिता है जो अपने बच्चों का परित्याग नहीं करता है, लेकिन हमारी अच्छाई के लिए सब कुछ करता है। हां, “जो लोग ईश्वर से प्यार करते हैं, ईश्वर उनके कल्याण केलिए सभी बातो में उनकी सहायता करता है” – हाँ सभी बातों में: कोरोना महामारी में भी |

दूसरा, एक ख्रीस्तीय विश्वासी के रूप में हमें इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि हम सभी मरेंगे। यह पवित्र ग्रन्थ में कहा गया है (रोमियों 14: 8) कि “यदि हम जीते रहते हैं, तो हम प्रभु के लिए जीते हैं, और यदि मरते हैं, तो हम प्रभु के लिए मरते हैं; इस प्रकार, हम चाहे जीते रहें या मर जाएँ, हम प्रभु के ही हैं।” हम कभी-कभी सोचते हैं कि हम हमेशा के लिए मृत्यु से बच सकते हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते। हमारा जीवन हमारे लिए नहीं है जिस से कि हम उससे चिपके रहें – वह जीवन हमें प्रभु द्वारा ऋण पर दिया हुआ है, और हमें उसे किसी न किसी मौके पर येशु को लौटाना होगा। जिस दिन हम अनुभव करेंगे कि कभी इन उपहारों को हम पिता को लौटा देंगे, तो उस दिन हम अभूत पूर्व शांति का अनुभव करेंगे !

जैसा कि विख्यात ख्रीस्तीय लेखक जॉन एल्ड्रिज ने एक बार कहा था, “पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली व्यक्ति वह है जिसने अपनी ही मृत्यु को परखा है।” दूसरे शब्दों में, यदि आपको मृत्यु का भय नहीं है, तो आप अजेय हैं। उसी तरह, एक बार ख्रीस्तीय लोग इस तथ्य को स्वीकार कर लेते हैं कि उनका जीवन उनका अपना नहीं है, कि हमें किसी न किसी तरीके से ईश्वर के पास आना होगा, तो यह समझ हमें मृत्यु की डर से मुक्त करती है। यह समझ हमें जीवन के प्रति हमारे ऐसा अन्दर उन्मत्त लोभीपन या मोह से भी मुक्त करती है, जिसके कारण हम ऐसा जववन जीते है मानो कि इस भौतिक जीवन की रक्षा और संरक्षण ही सबसे महत्वपूर्ण बात है । हां, जीवन एक उपहार है, और हमें इसकी रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाना चाहिए। लेकिन जीवन का उपहार पूर्ण नहीं है – हम सभी को किसी न किसी समय पर वह उपहार प्रभु को लौटाना होगा। चाहे वह कोरोनो वायरस हो या कैंसर, कार दुर्घटना की त्रासदी हो या बुढ़ापा, हम सभी को मरना होगा। ख्रीस्तीय विश्वासी अपनी निगाहें उस अनंत जीवन की ओर लगाकर रहता है, जहां जीवन कभी समाप्त नहीं होगा।

अंत में,  बीमारों के प्रति हमें अपने कर्तव्यों को याद रखना चाहिए। हमारा कर्तव्य है कि हम बीमारों को न छोड़ें- भले ही वे संक्रामक बीमारी हों। जैसा कि 1576 के प्लेग के दौरान संत चार्ल्स बोरोमियो ने कहा था, “तुम्हारे जिम्मे में दिए गए लोगों की देखभाल करने के वास्ते इस नश्वर जीवन को त्यागने के लिए तैयार रहो।” हाल ही में, हमने रोम की संत फ्रांसेस की स्मृति का जश्न मनाया, जो 1440 के दशक में बड़े सामाजिक उथल-पुथल के समय में जीवित थी। उस संत ने अपना जीवन बीमारों को समर्पित कर दिया। उनके समकालीन एक धर्मबहन के शब्दों को सुनिये :

रोम में कई अलग-अलग बीमारियाँ व्याप्त थीं। घातक बीमारियां और प्लेग हर जगह थीं, लेकिन संत ने छूत के जोखिम को नजरअंदाज कर दिया और गरीबों और जरूरतमंदों के प्रति गहरी दया प्रदर्शित की। वे उनकी खोज में उन्हीं की झोपड़ियों और सार्वजनिक अस्पतालों में जाती थी, और उनकी प्यास को बुझाती, उनके बिस्तर को ठीक करती और उनके घावों पर मलहम पट्टी बांधती थी। दुर्गन्ध जितना अधिक घिनौना और अस्वस्थ करता था, उतना ही वे अधिक प्यार और देखभाल के साथ उनका इलाज करती थी । तीस वर्षों के लिए फ्रांसेस ने बीमार और अजनबी लोगों के लिए इस सेवा को जारी रखा… (सिस्टर मैग्डलीन एंगुलारिया द्वारा “रोम के संत फ्रांसेस का जीवन”)।

हमें भी, इस बीमारी से पीड़ित लोगों की देखभाल करने के तरीकों की तलाश करनी चाहिए । जो लोग इसके शिकार हो गए हैं, उनका तिरस्कार मत कीजिये ! यह हमारा ख्रीस्तीय कर्तव्य है,  करुणा और दया के पवित्र कार्यों में से एक है। सावधानी ज़रूर बरतें,  लेकिन जिन्हें हम सेवा दे रहे हैं अगर हम उनमे से किसी संक्रमित व्यक्ति से विषाणु की चपेट में आते हैं, तो यह श्वेत शहादत, प्रेम के क्रियान्वयन का एक रूप है।

और अंत में, हम खुद को याद दिलाएं कि यह सब ईश्वर के हाथों में है। अगर यह उसकी इच्छा है कि हम स्वस्थ रहें, इसके लिए हम ईश्वर की प्रशंसा करें। अगर यह उसकी इच्छा है कि हम बीमार हो जाएं, तो हम प्रभु के लिए अच्छे ढंग से पीड़ा भोगें । और अगर यह उसकी इच्छा है कि हम इस वायरस से मर जाएँ, तो हम अपने जीवन को उसके हाथों में सौंप दें।

तो, हाँ, सावधानी बरतें, यदि आप बीमार हैं तो घर पर रहें (बीमारी के कारण मिस्सा बलिदान छूट जाएँ तो   आप कोई पाप नहीं कर रहे हैं!), अपने हाथों को धोएँ और स्वस्थ रहने की कोशिश करें। और बाकी सब ईश्वर पर छोड़ दें ।

 

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By: फादर जोसेफ गिल

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जुलाई 27, 2021
Engage जुलाई 27, 2021

आपके जीवन में ईश्वर की एक योजना है, लेकिन यदि उनकी योजना आपकी योजना से मेल ना खाती हो तो क्या होगा ?

 

“थोड़ी चिंता की बात है”, अल्ट्रासाउंड तकनीशियन ने गंभीर होकर कहा| यह सुनकर हमारे दिल धक् धक् करने लगे| अपने नन्हें शिशु को देखने की जिस ख़ुशी और उत्सुकता को इतने दिनों से अपने मन में लिए हम चल रहे थे, अल्ट्रासाउंड तकनीशियन की बातों से उस सर्री ख़ुशी पर जैसे ग्रहण सा लग गया| ऐसा तो हमने कभी नहीं सोचा था|

हमारी शादी को बस डेढ़ साल ही हुए थे| हम एक दूसरे के साथ बहुत खुश थे और अपने जीवन में एक बच्चे की आशीष का इंतज़ार कर रहे थे| हमने अपने परिवार के लिए ढेर सारे प्यारे ख़्वाब देखे थे| हम एक नन्ही सी जान को इस दुनिया में लाने, उसे बड़े लाड़ प्यार से पाल पोस कर बड़ा करने, और इसके द्वारा खुद बेहतर इंसान बनने के लिए बेताब थे| हमें उम्मीद थी कि हम अपने होने वाले बच्चों के लिए अच्छे माता पिता साबित होंगे| और ये सारी बातें हमें बहुत ख़ुशी देती थीं|

डेढ़ साल की कोशिश के बाद जब हमें कोई फल नहीं मिला, तब हमें निराशा ने घेर लिया| गर्भधारण की हर जांच का नेगेटिव रिपोर्ट हमारे दुःख को और बढ़ा रहा था| इन सब के बीच जब हमें आखिरकार गर्भधारण का एक पॉजिटिव रिपोर्ट देखने को मिला तो हमारी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा| हम आखिरकार माता पिता बनने वाले थे! हम जल्द ही अपने बच्चे को अपनी गोदी में खिला पाएंगे यह सोच कर हम बहुत उत्साहित थे|

हमने अपने पहले अल्ट्रासाउंड के लिए तीन हफ्ते इंतज़ार किया और इस बीच हमने एक बार भी नहीं सोचा कि कोई चिंता की बात हो सकती है| हमारी मुलाक़ात के अंत में, तकनीशियन ने हमें एक हफ्ते बाद डॉक्टर से दोबारा अल्ट्रासाउंड कराने को कहा, क्योंकि उसकी जांच के मुताबिक़ हमारे बच्चे की बढ़त और उसका माप उतना नही था जितना एक आठ हफ्ते के बच्चे का होना चाहिए|

यह सब सुन कर चिंता और डर में डूब जाने के बदले हमने आपस में यह तय किया कि हम येशु को इस नए जीवन के उपहार के लिए धन्यवाद देंगे| और उसकी योजना पर भरोसा रखेंगे, चाहे उसकी योजना जो भी हो| हमने इस विश्वास के साथ प्रार्थना की कि जो पहला अल्ट्रासाउंड हुआ था वह गलत हो और हमारी नन्ही सी जान बिलकुल सही सलामत हो| हमने बड़े विश्वास और भरोसे के साथ यह प्रार्थना की |

लेकिन कभी कभी, ज़िंदगी में चीज़ें आपकी इच्छा के हिसाब से नही चलती| और कभी कभी आपको सारी ज़िंदगी इस बात का जवाब नही मिलता कि आपके साथ जो हुआ वह क्यों हुआ| हम अपने पहले अल्ट्रासाउंड के दस दिन बाद दूसरे अल्ट्रासाउंड के लिए गए, जिसमें हमें यह बुरी खबर दी गई कि बच्चे के दिल की धड़कन बिलकुल नही मिल रही है और  गर्भपात हो जाना निश्चित है|

उस दिन जब मैं और मेरे पति अपने दूसरे अल्ट्रासाउंड के लिए हॉस्पिटल गए थे, तब हमें विश्वास था कि ईश्वर हमें डॉक्टर के कंप्यूटर स्क्रीन पर एक स्वस्थ बच्चा दिखाएंगे| हमें इस बात पर पूरा भरोसा था कि हमारी प्रार्थना सुनी जाएगी और ईश्वर हमारी इच्छा को नही ठुकराएंगे| पर ईश्वर को उस वक़्त कुछ और ही मंज़ूर था, और इस बार ईश्वर को जोमंजूर था, उसे अपनाना हमारे लिए काफी मुश्किल हो रहा था|

जहां कुछ ही समय पहले तक हम अपने परिवार को बढ़ते हुए, नए कल के सपने देख रहे थे, वहीं अब हम अपने बच्चे को खो देने का मातम मना रहे थे| इस दुखभरी खबर पर मैं विश्वास नहीं करना चाह रही थी| मैं परिणाम को अपने हिसाब से पाना चाह रही थी| और मैंने इस दू:खद सच्चाई को कभी नहीं चाहा था | लेकिन अब मैं कर ही क्या सकती थीं?

ईश्वर के मन में हमारे लिए अलग योजनाएं थी, ऐसी योजनाएं जिन में अपने जीवन की इतनी अनमोल चीज़ को खो देने का दुःख, ह्रदय विदारक दर्द और मातम लिखा था| इतने दुःख के बीच भी हमने ईश्वर की योजना को स्वीकार करने का फैसला किया और उसकी मर्ज़ी की खोज में अपनी ज़िंदगी को आगे बढ़ाने की कोशिश की| इन सब के बावजूद, यह नही कहा जा सकता कि ईश्वर की योजना को अपनाना और ईश्वर की मर्ज़ी को समझ पाने के  बराबर नहीं है| ईश्वर की मर्ज़ी को समझ पाने का मतलब ईश्वर की मर्ज़ी से सहमत होना या अच्छा लगना नहीं है | हम चाहते थें कि ईश्वर की योजनाएं हमारे मन मुताबिक़ हों लेकिन इन सब के बीच हमें खुद से यह सवाल करना पड़ रहा था कि अब क्या हमें ईश्वर से नाराज़ हो जाना चाहिए या हमें उनकी योजनाओं को अपना कर उन पर भरोसा करना चाहिए?

आखिर ईश्वर ने अपने वचन में यह कहा है,
क्योंकि मैं मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएँ जानता हूँ – तुम्हारे हित की योजनाएँ, अहित की नहीं, तुम्हारे लिए आशामय भविष्य की योजनाएँ | जब तुम मुझे पुकारोगे और मुझ से प्रार्थना करोगे, तो मैं तुम्हारी प्रार्थना सुनूंगा| जब तुम मुझे ढूंढोगे, तो तुम मुझे पा जाओगे| यदि तुम मुझे सम्पूर्ण ह्रदय से ढूंढोगे तो मैं तुम्हें मिल जाऊँगा और मैं तुम्हारा भाग्य पलट दूँगा|” (यिर्मयाह 29:11-14)

अगर हम येशु में विश्वास करते हैं तो हमें उनके किये गए वादों पर भी भरोसा करना पडेगा, है ना? फादर जो मैकमोहन कहते हैं, “या तो येशु हमसे झूठ बोले थे या हम उसकी बातों पर भरोसा नही कर रहे हैं|” येशु हमारा भरोसा चाहते हैं| वह हमारा विश्वास चाहते हैं| वह हमारी आस्था चाहते हैं|

इसीलिए जब भी मैं उस गर्भपात द्वारा लाये गए ख़ालीपन और एकाकीपन के कारण मेरे जीवन की बर्बादी को महसूस करती हूँ, मैं यिर्मयाह 29:11-14 के वचनों को याद करती हूँ| जब भी इस बात से मेरा दिल दुखता है कि मैं इस जीवन में अपनी उस शिशु को अपनी गोद में ले नही पाउंगी, तब तब मैं उन वचनों से शक्ति पाती हूँ|

क्या मुझे लगता है कि येशु हमसे झूठ बोले थे? या क्या यह हो सकता है कि मैं अपने दुःख दर्द में उसपर पूरी तरह भरोसा नही कर पा रही हूँ? क्या मुझे लगता है कि येशु झूठे हैं, या क्या है संभव है कि मैंने अपनी पीड़ा में डूब कर खुद को उनसे दूर कर लिया?

आप अपने बारे में बताइये| क्या आप उन पर भरोसा रखते हैं जिन्होंने अपनी वाणी को उच्चारित करके आपकी सृष्टि की? क्या आप उस कहानी पर विश्वास करते हैं जिसे ईश्वर ने आपके जीवन के लिए लिखा है? क्या आप विश्वास करते हैं कि ईश्वर आपके जीवन को मार्गदर्शन दे रहा है? क्या आप अपनी दुःख तकलीफों के बीच ईश्वर पर भरोसा रख पाते हैं?

चाहे आपने अपने जीवन में बहुत सारे दुःख तकलीफें झेली हो, यह समय उन सब दुखों को क्रूसित येशु के पैरों के   नीचे छोड़ने का अवसर है| ताकि आपके सृष्टिकर्ता उन बातों को निपट सकें और चंगा कर सकें| दुःख तकलीफों का समय ही वह समय है जब हमें ईश्वर में अपने विश्वास को बढ़ाना चाहिए, ऐसा करना चाहे कितना ही तकलीफदेह हो|

अपने आप से पूछिए, क्या आप विशवास करते हैं कि येशु हमसे  झूठ बोले हैं ? क्या आपको लगता है कि उन्होंने हमारे भविष्य के लिए समृद्धि और आशा की योजनाएं नही बनाई हैं? या फिर इसकी संभावना है कि आप उनपर अभी तक पूरा भरोसा ही नही कर पाए हैं?

ईश्वर पर अपने भरोसे को बढ़ाइए| उन्हें अपनी दुःख तकलीफें सौंपिए ताकि वह आपको नया बना कर आपको अपने जीवन के लक्ष्य प्रकट कर सके| अपने आप को उनके सामने नम्र और छोटा बनाइये, ताकि वह आपको दिखा सकें कि वे कितने बड़े और महान हैं|

हे येशु, जब मैं कमज़ोर और निस्सहाय महसूस करता हूँ तब मुझे तेरी उपस्थिति का अनुभव करा दे| मुझे तेरी सुरक्षापूर्ण प्रेम और तेरी शक्तिशाली ताकत पर विश्वास करना सिखा, ताकि मुझे किसी बात की चिंता और किसी बात का डर ना लगे| मेरी सहायता कर कि मैं तेरे करीब रहकर सब कुछ में तेरा हाथ, तेरा उद्देश्य और तेरी योजनाको समझ सकूं| आमेन|

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By: Jackie Perry

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जुलाई 27, 2021
Engage जुलाई 27, 2021

क्या आप जानते हैं कि आपके एक पिता हैं जो हमेशा आपके आस-पास, आपकी देख-रेख करते रहते हैं? अगर आप उनके प्यार केलिए तरस रहे हैं तो उनके बारे में जानने केलिए आगे पढ़िए|

जब आप उनसे अपना मुँह फेरते हैं

सोलह साल पहले मैं कैलिफ़ोर्निया शहर की सबसे कड़ी सुरक्षित जेल फोलसोम में एक धर्मशिक्षा क्लास का संचालन कर रहा था| उस धर्मशिक्षा क्लास में जुआन नाम का कैदी सबके सामने अपनी जीवन-कहानी बता रहा था| उसने हमें बताया कि उसके असली पिता ने उसे तब छोड़ा जब वह एक नवजात था, और उसका सौतेला पिता बहुत बद्तमीज़ और गैरज़िम्मेदार इंसान था| जुआन ने कई बार अलग अलग तरह से यह जताया कि उसकी ज़िंदगी में एक पिता की कमी रही है और उसकी ज़िंदगी में जिसने भी एक पिता की भूमिका निभाने की कोशिश की, उससे उसके सम्बन्ध कभी ठीक नही रहे| उसने कहा कि शायद यही कारण उसे उसके बचपन के ईश्वर पर विश्वास में वापस ले आया — वह अब भी अपने पिता को खोज रहा था|

मैंने उससे कहा, “जुआन ईश्वर तुम्हारे पिता हैं, और येशु तुम्हें उस पिता को “अब्बा” कहने केलिए आमंत्रित करते हैं|”

“अब्बा का मतलब क्या होता है?” उसने मुझ से पूछा|

“अब्बा का मतलब होता है पिता, जैसे पापा| येशु तुम्हें ईश्वर को पापा कहकर पुकारने की इजाज़त देते हैं,” मैं ने कहा|

जुआन के गालों पर आंसू बह रहे थे| वह धीरे धीरे और बड़े आदर और श्रद्धा से “हे हमारे पिता” प्रार्थना कहने लगा| वह इस प्रार्थना को इतने विश्वास और दृढ़ता के साथ बोला जैसे वह इस प्रार्थना को ज़िंदगी में पहली बार बोल रहा हो|

“हे हमारे पिता” प्रार्थना की सरलता और इसे आसानी से बोलने की हमारी आदत के कारण हम भूल जाते हैं कि हमारे धर्म के इतिहास में इस का कितना बड़ा योगदान रहा है| इस प्रार्थना में येशु ईश्वर को न्यायाधीश, या सर्वज्ञानी, या आसमानी दिव्य शक्ति, या ऐसी कोई अनोखी उपाधि देकर नही बुलाते हैं| इसकी जगह, येशु ईश्वर को पिता कहकर पुकारते हैं, जो कि हमारे अंदर एक अपनापन के भाव को जगाता है, और हमें यह याद दिलाता है कि कैसे छोटे बच्चे अपने पिता को खोजते हैं, उनके पास दौड़े चले आते हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का यकीन होता है कि उनके पिता उन से बेहद प्यार करते हैं|

 ख़ालीपन को भरने की कोशिश

अगर कुछ लोग अपने जीवन में अपने पिता को घर से गायब, या जल्दी गुस्सा करते हुए, या कड़ा बर्ताव रखते हुए देखते हैं, तो यह मुमकिन है कि वह ईश्वर के व्यवहार को भी वैसा ही समझने की भूल कर बैठते हैं| अगर वे अपने पिता से कम उम्मीद रखते हुए बड़े हुए हैं, तो मुमकिन है कि वे ईश्वर से भी कम या कोई उम्मीद ना रखने लगें| अगर उनके पिता उन से बात नहीं किया करते थे तो मुमकिन है कि वे ईश्वर को भी अपने भक्तों से बात ना करने वाला समझते हों| पर येशु ने हमे ईश्वर को “अब्बा” कहना सिखाया है, और अब्बा का मतलब होता है “मेरे पिता”| ईश्वर को इस तरह पुकारना हमारे अंदर नज़दीकी, प्यार, सुरक्षा और अपनापन के भावों को जगाता है|

ईश्वर के परम प्रिय पिता के रूप के बारे में हमें नबी होशेआ की किताब में पढ़ते हैं| उन्होंने ईश्वर के उस प्यार भरे पिता-पुत्र के रिश्ते के बारे में लिखा जिसे महसूस करने केलिए येशु हमें न्यौता देते हैं|

इज़राइल जब बालक था, तब मैं उसे प्यार करता था

और मैंने मिस्र देश में अपने पुत्र को बुलाया

मैं उन लोगों को जितना अधिक बुलाता था,

वे मुझसे उतना ही दूर होते जाते थे |

वे बाल देवताओं को बलि चढ़ाते

और अपनी मूर्तियों के सामने धूप जलाते थे |

मैंने एफ्राइम को चलना सिखाया |

मैं उन्हें गोद में उठाया करता था |

किन्तु वे नहीं समझे कि मैं उनकी देखरेख करता था |

मैं उन्हें दया तथा प्रेम की बागडोर से टहलाता था

जिस तरह कोई बच्चे को उठा कर गले लगाता है,

उसी तरह मैं भी उनके साथ व्यवहार करता था |

मैं झुककर उन्हें भोजन दिया करता था | (होशेआ11:1-4)

बच्चे को उठा कर गले लगाने वाले ईश्वर का यह रूप कितना प्यारा है|

ईश्वर के इसी रूप ने जेल में जुआन नाम के उस कैदी के दिल को पिघला दिया और उसकी आँखों में ख़ुशी के आंसुओं से भर दिया| कई लोग सारी ज़िंदगी उस पिता को खोजने में बिता देते हैं| लेकिन येसु हमें बताते हैं कि हमारे पास पहले से ही एक ऐसे पिता हैं जो हमारे दुनियावी माता-पिता से कहीं ज़्यादा हमें प्यार करते है| हमें बस उनके सामने जाना हैं और बचपन की मासूमियत भरी आवाज़ में उनको पुकारते हुए कहना है, “अब्बा!”

हे स्वर्गिक पिता, मैं अपने आप को एक छोटे शिशु की तरह आप के हाथों में सौंपता हूँ, और मैं आप की दिव्य योजना पर विश्वास करता हूँ| मुझे हर दिन आपकी उन अदृश्य प्रेम की बागडोर का अनुभव कराइयेगा जो मुझे आप से बांधे रखतीं हैं|

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By: डीकन जिम मैकफैडेन

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जुलाई 27, 2021
Engage जुलाई 27, 2021

बात 18 अगस्त, 1996 की है| कबालितो अल्मागरो के संत मरिया गिरजाघर में मिस्सा के ठीक बाद एक महिला ने आकर बताया कि उसने गिरजाघर के पीछे वाले हिस्से में एक पुराने, धूल से सने कैंडल स्टैंड पर एक परम प्रसाद के टुकड़े को पाया| धूल की वजह से उसे खाया नहीं जा सकता था, इसीलिए पुरोहित ने उसे अपनी जानकारी के हिसाब से पानी में डालकर वेदी की मंजूषा में रख देना ही ठीक समझा|

अगले सोमवार को जब वेदी की मंजूषा को खोला गया तब वह परम प्रसाद खून से सना हुआ पाया गया| इस बात के बारे में बिशप जॉर्ज बर्गोगलियो (जो कि आगे चलकर ब्यूनोस आइरेस के आर्चबिशप और फिर पोप फ्रांसिस बने) को खबर दी गयी| फिर उस परम प्रसाद को एक सुरक्षित जगह ले जाया गया,  जहां उस मे निरंतर बदलाव आता रहा और अंत में वह माँस का टुकड़ा बन गया और बिलकुल भी खराब नही हुआ | इसलिए आर्चबिशप जॉर्ज बर्गोगलिओ ने उसपे जांच बिठाई|

अक्टूबर 5, 1999 को आर्चबिशप के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में एक वैज्ञानिक ने उस टुकड़े का एक छोटा सा नमूना लेकर उसे जांच के लिए न्यूयॉर्क भेजा| वहां के वैज्ञानिकोण को यह बताया नहीं  गया  कि वह टुकड़ा कहाँ से आया था| जाने-माने ह्रदय रोग विशेषज्ञ और फॉरेंसिक पैथोलोजिस्ट डॉ. फ्रेडरिक ज़ुगीबा ने अपनी जांच में पाया कि वह टुकड़ा असली इंसानी माँस है, और वह दिल का माँस है और उस मे लगा खून भी असली है | उनके हिसाब से उसमे से लिए गए खून के डी.एन.ए. से पता चलता है कि यह मांस का टुकडा किसी ऐसे इंसान का है जिसे मरने से पहले काफी तड़पाया गया था|

डॉ. फ्रेडरिक ने प्रमाणित किया कि जिस मांस के टुकड़े की उन्होंने जांच की वह “दरअसल एक दिल की उस मांसपेशी से लिया गया था जिसके बल पर ह्रदय का सिकुड़न और फूलना होता है | जिस दिल से यह टुकड़ा लिया गया था उस मे सूजन थी और उसके खून में सफ़ेद रक्त कोशिकाओं की तादाद ज़्यादा थी| मेरा मानना है कि जब यह टुकड़ा लिया गया था, तब वह दिल ज़िंदा था| ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इंसान के मरते ही उसके अंदर पायी जानेवाली सफ़ेद रक्तकोशिकाएं भी तुरंत ही मर जाती हैं| चूँकि लिए गए नमूने में सफ़ेद रक्तकोशिकाएं मौजूद थी, तो यह बात पक्की थी कि वह टुकड़ा किसी ज़िंदा दिल का हिस्सा था| गौर करने वाली बात यह भी है कि यह सफ़ेद रक्तकोशिकाएं दिल के टिश्यू के अंदर तक घुस आयी थीं, जो कि तभी होता है जब कोई बहुत ज़्यादा तनाव में हो और उसकी छाती पर बड़ी बेरहमी से वार किया गया हो|”

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By: Shalom Tidings

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जुलाई 27, 2021
Engage जुलाई 27, 2021

सन 1926 में जब क्रिस्टेरो युद्ध की शुरुआत हुई तब मेक्सिकी लोगों को धर्म के नाम पर काफी उत्पीडन झेलना पडा था | चर्चों को ज़ब्त करके उन पर ताला लगा दिया गया| धार्मिक शिक्षाओं और प्रार्थना सभाओं पर पाबंदी लगा दी गई| पुरोहितों और चर्च से जुड़े बाकी लोगों को मजबूरी में सरकार से छिपकर भूमिगत होना पड़ा|

एक रात की बात है| पुलिस कर्मियों ने सादे कपड़ों में एक घर को घेर लिया क्योंकि उन्हें शक था कि उस घर में लोग परम प्रसाद ग्रहण करने केलिए इकट्ठा हुए थे| एक व्यक्ति उनके पास आया और अपनी जैकेट का ज़िप खोलकर अन्दर के शर्ट पर लगे लेफ्टिनेंट के बैज की ओर इशारा किया||

“यह सब क्या हो रहा है?” उसने उन से सवाल किया| “हमें लगता है कि अंदर एक पुरोहित है” उन्होंने जवाब दिया| “ मैं अंदर जाकर जाँच करता हूँ, तब तक तुम सब लोग यहीं रुको”, उसने उन्हें आदेश दिया| पुलिसवालों को बाहर पहरे पर बिठाकर वे अंदर गए और उन्होंने इंतज़ार कर रहे सारे विश्वासियों को परमप्रसाद वितरित किया |

फादर मिगुएल प्रो वेश बदलने और बहुरूपिया बनने की अपनी इस खूबी केलिए बेहद मशहूर थे| वे अपना रूप बदलने में बहुत माहिर थें और इसी के सहारे वे अक्सर देर रात बड़ी ही बहादुरी के साथ कभी किसी के बच्चे को बपतिस्मा देने, तो कभी किसी की शादी कराने, तो कभी कहीं मिस्सा बलिदान अर्पित करने, या पापस्वीकार कराने, या बीमारों को रोगी लेपन  का संस्कार देने निकल पड़ते थे| एक से ज़्यादा बार वे पुलिस अफसर के हुलिए में जेल में घुसे, ताकि जो कैथलिक कैदी सज़ा-ए-मौत के दंड के इंतज़ार में है उन्हें अंतिम संस्कार दिया जा सकें| कभी कभी वे किसी अमीर कारोबारी की तरह सजधज कर रईसों के इलाकों में, या अपने दुश्मनों के घरों के आसपास घूमा करते थे, ताकि वह ग़रीबों केलिए कुछ सामान इकट्ठा कर सकें|

कभी किसी नवयुवती की बाहों में बाहें डालकर, तो कभी किसी भिखारी के फाटे पुराने कपड़ों में, उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी सामाजिक और आध्यात्मिक तौर पर परेशानी में पड़े मेक्सिकी ख्रीस्तविश्वासियों की मदद की| और इसके लिए उन्होंने कई बार बिना डरे अपनी जान जोखिम में डाली| वे अपनी हाज़िर-जवाबी केलिए जाने जाते थे और उन्होंने हँसते हँसते मौत का सामना करते हुए कहा, “अगर मैं स्वर्ग जाकर उदास चहरे वाले संतों से मिलूंगा तो मैं उन्हें अपने मेक्सिकी टोपी नाच से उल्लासित कर दूँगा”| उन्होंने लगभग एक साल से ज़्यादा समय तक इसी तरह गुप्त रूप से सेवकाई की, जिस बीच उनके दुश्मन बड़ी उत्सुकता से उनकी सेवकाई रोकने का मौका खोज रहे थे| आखिरकार लोगों ने किसी की जान लेने की कोशिश का झूठा इलज़ाम उनपर लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया | गिरफ्तारी के तुरंत बाद उन्हें बिना किसी कारवाई के मौत की सज़ा दी गई|

उस समय सत्ता में रहे प्रेसिडेंट कालेस ने दुनिया भर के पत्रकारों को फादर प्रो की मौत का साक्षी बनने का न्यौता भेजा| वहां पहुंचे पत्रकार सोच रहे थे कि गोली चलाने के लिए तैयार  जल्लादों को देखकर फादर प्रो बिखर जायेंगे, और मारे जाने के डर से अपने विश्वास को त्याग देंगे| इसके विपरीत पत्रकारों ने फादर प्रो के शांति से रौशन चेहरे की तस्वीर खींची| इन तस्वीरों में फादर प्रो अपने दुश्मनों को माफ़ करते और उन केलिए प्रार्थना करते दिखते हैं| मरते वक़्त उन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बाँधने से इंकार किया और खुली बाहों से अपने ऊपर चली गोलियों का स्वागत करते हुए चिल्लाया: “वीवा क्रिस्तोरे!” (ख्रीस्त राजा की जय!)

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By: Shalom Tidings

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जुलाई 27, 2021
Engage जुलाई 27, 2021

एक तीव्र बुलाहट

मुझे याद है कि जब मैं आठ साल का बालक था, मैं अपनी मां के साथ बैठकर टीवी पर, अफ्रीका के गरीब और भूखे बच्चों के लिए दान करने की एक अपील देख रहा था। मेरे हम-उम्र एक लड़के को रोते हुए दिखाया गया था जिसे देखकर मुझे उसके प्रति एक प्रकार का दर्द और लगभग चुंबकीय आकर्षण महसूस हुआ। जब उसके होंठ पर एक मक्खी आ बैठी और और उसने उसकी ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया तो मुझे लगा कि मेरी आँखों में उसकी आँखें प्रवेश करके जल रही हैं। उसी समय, प्रेम और दु:ख की लहरों में मैं डूब गया |

एक तरफ भोजन की कमी से मर रहे इन लोगों को मैं देख रहां था, और उसी समय, भरे पूरे रेफ्रिजरेटर से कुछ ही मीटर दूर मैं आराम से बैठा था। मैं अन्याय का पूरा अंदाजा नहीं कर पा रहा था और सोचता रहा कि मैं क्या कर सकता हूं। जब मैंने अपनी मां से पूछा कि मैं कैसे उन भूखों की मदद कर सकता हूं तो माँ ने कहा कि हम पैसे भेज देंगे। लेकिन मैंने अपने अन्दर एक मजबूरी को महसूस किया कि मुझे व्यक्तिगत रूप से, प्रत्यक्ष रूप से कुछ करना चाहिए। यह एहसास मेरे जीवन के विभिन्न आयामों में मेरे दिल में गूँजता रहा। लेकिन मुझे कभी नहीं पता था कि व्यक्तिगत रूप से या प्रत्यक्ष रूप से कार्य करने का मतलब क्या हो सकता है। जैसे मैं उम्र में बढ़ रहा था, मुझे विश्वास हो रहा था कि मेरे जीवन में एक बुलाहट है, कि बदलाव लाने के लिए ही मेरा अस्तित्व है, और मैं दूसरों से प्यार, सेवा और मदद करने के लिए पैदा हुआ हूँ। लेकिन उन दृढ धारणाओं को कार्यान्वित करने में अक्सर जीवन की वास्तविकताएं बाधा बनती थी।

जीवन का यात्रा वृत्तांत

सन 2013 में मैंने इंग्लैंड के एक जेल में समय बिताया। यहीं पर अपने जीवन के सबसे प्रभावी जीवन-परिवर्तन के अनुभव के बीच में पुनर्जीवित प्रभु से मैंने मुलाक़ात की। इसे विस्तार में बताने में मुझे अधिक स्थान चाहिए| (शालोम वर्ल्ड टीवी कार्यक्रम “येशु मेरा मुक्तिदाता (Jesus My Saviour) जहां मैं अपने जीवन कथा के उस हिस्से का वर्णन करता हूँ, उस एपिसोड के लिंक प्राप्त करने के लिए लेख के अंत में दिए गए मेरे परिचय पत्र को देखें|) लेकिन प्रभु के साथ हुए उस साक्षात्कार के बाद मैं ने प्रभु के सम्मुख अपना आत्मसमर्पण कर दिया। और तब से अब तक की यात्रा सबसे अविश्वसनीय रही है ।

2015 में, जब मैं भारत के कोलकत्ता में गरीबों के साथ काम कर चुके एक अमेरिकी धर्मसंघी बंधु से मिला, तो मैंने आखिरकार पहचान लिया कि गरीबों की सेवा ही मेरी बुलाहट है। चंद महीनों के अन्दर ही, मदर तेरेसा के मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी में स्वयंसेवक के रूप में काम करने के लिए मैं हवाई जहाज़ में बैठकर कोलकत्ता पहुँच गया।

जैसे ही मैं कोलकता एयरपोर्ट पर उतरा, मैंने रात में आसमान की ओर देखा और ईश्वर की उपस्थिति महसूस की। जब मैं टैक्सी में बैठा था, तो तुरंत मैंने सोचा, ‘मैं घर पर हूँ। लेकिन यहाँ मैं एक ऐसी जगह पर था जहाँ मैं पहले कभी नहीं आया था। जब मैंने स्वयंसेवक का सेवाकार्य शुरू किया, तो मुझे समझ में आया कि मुझे क्यों ‘घर पर होने’ का एहसास हुआ: क्योंकि घर वह है जहाँ दिल है।

मैंने भारत के गरीब और मनमोहक लोगों में अनगिनत बार येशु को देखा। मदर तेरेसा ने कहा था कि सुसमाचार को पांच अंगुलियों पर वर्णित किया जा सकता है: “तुमनेयहमेरे… लिए… किया (मत्ती 25:40), और इसलिए मैंने हर बार गरीबों के चेहरों पर येशु की आंखों को देखा। मैं भोर में जिस पल उठता था, और प्रार्थना करता था, उस पल से, रात के जिस पल मैं बिस्तर पर लेटता था, तब तक मुझे प्यार का अनुभव हुआ। प्रत्येक रात को सोने से पहले आधी रात तक मैं छत पर बैठकर डायरी लिखता था। लोग सोचते थे कि मैं कैसे इतना काम लगातार कर पा रहा हूं, जबकि मुझे, थकान से चूर चूर होकर, टूटकर गिर जाना चाहिए था । मेरे न गिरने का केवल एक ही कारण है – मेरे दिल में पवित्र आत्मा की आग की उपस्थिति ।

आत्मा की खिडकियाँ

कहा जाता है कि आंखें आत्मा की खिड़कियां हैं। मैं अक्सर आँखों के माध्यम से लोगों से जुड़ता हूँ। मैं इसी तरह एक विकलांग युवक के साथ जुड़ गया जिसकी देखभाल मैं करता था। वह मुझे अपने साथ ताश खेलने के लिए रोज़ आमंत्रित करता था। वह मूक था और अपने हाथों और पैरों से भी कुछ नहीं कर पाता था | इसलिए वह इशारे से बताता था कि मुझे उसके किस ताश को पलटना चाहिए। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, हमने खूब संवाद किया, भले ही उसके मुंह से कोई शब्द नहीं निकलता था। हमने आंखों के माध्यम से प्रेम की सार्वभौमिक भाषा में सम्प्रेषण किया।

एक दिन व्हील चेयर पर उसने घर के अंदर उसे घुमाने के लिए मुझसे कहा और उसके दिशानिर्देश पर हम लोग प्रार्थनालय के दरवाजे तक पहुँच गए। मैंने उससे पूछा कि क्या तुम येशु से प्यार करते हो ? उसने मुस्कुराया और सिर हिलाया। हमने प्रार्थनालय के अन्दर प्रवेश किया। मैंने उसे दैविक करुणा की आदमकद तस्वीर के करीब पहुंचाया, तुरंत उसने खुद को व्हीलचेयर से बाहर नीचे की ओर फेंक दिया। यह सोचकर कि वह गिर गया है, मैं उसकी मदद करने के लिए नीचे झुका, लेकिन उसने मुझे इशारे से दूर कर दिया और ऐसा कार्य किया जो मेरी निगाह में भक्ति के सबसे सुंदर कृत्यों में से एक था। अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल करते हुए उसने खुद को अपने घुटनों पर खडा कर दिया। मैंने भी आंसू भरी आँखों के साथ उसके बगल में घुटने टेक दिए। जैसे ही मैं ‘हे हमारे पिता..’, ‘प्रणाम मरिया…’ और पवित्र त्रीत्व की महिमा की प्रार्थना बोल रहा था, उसने भी मेरे शब्दों के ताल और स्वर के साथ पूरी तरह से मेल करते हुए आवाज़ निकाली। जन्म से इस युवक ने पीड़ा, तिरस्कार और अलगाव का जीवन झेला था। उसका शरीर अपंग था, फिर भी उसने घुटने टेक कर प्रार्थना की, वह ईश्वर को धन्यवाद देते हुए एक अद्भुत प्रकाश प्रसारित कर रहा था और मुझे सिखा रहा था कि प्रार्थना कैसे की जानी चाहिए।

एक और दिन उसने मुझे अपनी सारी सांसारिक संपत्ति दिखाई। उसने एक छोटा सा जूते का बॉक्स खोला जिसमें कुछ फोटो थे, जिन्हें वह मुझे दिखाने के लिए उत्सुक था। फ़ोटोज़ तब की हैं जब मिशनरीज ऑफ चैरिटी के ब्रदर्स ने उसे पहली बार पाया था और उन्हें अपने घर में लाये थे। एक और फोटो उसके बपतिस्मा का, एक उसके पहली बार पवित्र परम प्रसाद लेने का, और एक फोटो उसके दृढीकरण संस्कार का। उसे फोटो दिखाना बहुत अच्छा लग रहा था और उसे दिखाने में उसकी ख़ुशी देखकर मुझे भी बहुत अच्छा लगा।

जब मेरे घर लौटने का समय आया, तब मेरे आंसू नहीं रुक रहे थे | अपने नए दोस्त को अलविदा कहना मेरे लिए लगभग असंभव सा लग रहा था। हम दोनों उसके बिस्तर के बगल में थे जब उसने अपने तकिये की ओर इशारा किया। मुझे समझ में नहीं आया, लेकिन मानसिक रूप से कुछ कमज़ोर एक बालक ने, मेरे दोस्त का तकिया उठाया और वहां मोतियों की एक माला दिखाई दी। अपने अपंग हाथ से मेरे दोस्त जितनी अच्छी तरह उस जपमाला को पकड़ सकता था, उसने उसे पकड़ा और मुझे देने के लिए मेरी ओर बढ़ा। यह जानते हुए कि उसके पास इस तरह की चीज़ें कितनी कम थी, मैंने उसे बताया कि मैं यह नहीं ले जा सकता। उसने मुझे अपनी घूरती आँखें से कहा कि मुझे लेना ही पड़ेगा। अनिच्छा से मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसने वह जपमाला मेरी हथेली में डाल दी। जैसे ही माला से मेरा स्पर्श हुआ, मुझे लगा कि मेरे पूरे शरीर में प्यार की एक अद्भुत धारा बह रही है। वह रोज़री माला धागा और प्लास्टिक से बनाई गई थी, लेकिन यह सोने या कीमती पत्थरों से भी अधिक मूल्यवान थी। मैंने उसे और उस जपमाला को चूम लिया और मैं अचम्भित होकर सोच रहा था कि इस अद्भुत इंसान की सुंदरता और प्यार के माध्यम से ईश्वर ने मुझे कितना बड़ा आशीर्वाद दिया है। सुसमाचार की विधवा की तरह,  इसने अपनी अत्यधिक गरीबी में से सब कुछ दान कर दिया।

 4 सितंबर 2016 को, मदर तेरेसा संत घोषित की गयी। रोम के सेंट पीटर स्क्वायर में संत घोषण के मिस्सा बलिदान में भाग लेने का मुझे सौभाग्य मिला। वापस घर जाने के लिए उड़ान लेने के पहले, यानी अगली सुबह (5 सितंबर, मदर तेरेसा के पर्व के दिन), ईश्वर को अपने अनुभवों केलिए, साथ साथ मदर तेरेसा के लिए भी धन्यवाद देने के विचार से मैंने संत जॉन लातेरन महागिरजाघर जाने का फैसला किया। सुबह-सुबह, मैंने गिरजाघर में प्रवेश किया। मैं ने पाया कि पूरा गिरजाघर सुनसान था। मेरे सामने सिर्फ दो साध्वी थीं, जो मदर तेरेसा के प्रथम श्रेणी के अवशेष के बगल में खडी थी। मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं प्रार्थना करते समय अपनी नयी रोजरी माला को मदर के अवशेषों पर स्पर्श कर सकता हूं। उन्होंने मुझे इसकी अनुमति दी। मैं ने उन्हें धन्यवाद देते हुए यह भी बताया कि किसने यह जपमाला मुझे दी थी। जैसे ही उन्होंने मुझे जपमाला मदर के पवित्र अवशेष पर स्पर्श कराकर दिया वैसे ही मैं ने उसे चूमा। उन्होंने मुझे मदर तेरेसा का एक पवित्र कार्ड दिया जिसके पीछे लिखा था मरियम के माध्यम से सब कुछ येशु के लिए। इस वाक्यांश ने मेरे दिल में एक विस्फोट कर दिया। मैं येशु से लगातार प्रार्थना कर रहा था कि वे मुझे दिखायें कि मैं किस तरीके से उन्हें सबसे अधिक प्रसन्न करूं? इस कार्ड ने मेरी प्रार्थना का उत्तर किया। जैसे ही मैंने धन्यवाद की प्रार्थना की, मुझे अपने कंधे पर किसी के स्पर्श का एहसास हुआ। सर्जिकल मास्क पहनी एक महिला सीधे मेरी आँखों में देख रही थी। उन्होंने कहा, आप जो भी प्रार्थना कर रहे हैं, डरिये मत, ईश्वर आपके साथ है।” मैं तुरंत उठ खड़ा हुआ और मेरे अन्त:स्थल से आभार भरा प्रेम उमड़ रहा था, उस प्रेम से मैं ने उस औरत की हथेली को चूम लिया।

महिला ने बताया कि उन्हें कैंसर की बीमारी है। “लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि मैं अपने को ठीक नहीं कर सकती”। मैंने कहा, “यह सच है कि आप अपने को ठीक नहीं कर सकती हैं, लेकिन ईश्वर ठीक कर सकता है, और इसके लिए आपको विश्वास होना चाहिए। ”

उस महिला ने जवाब दिया कि उन्हें थोड़ा ही विश्वास है। मैंने उसे बताया कि यह ठीक है क्योंकि येशु ने हमें बताया कि पहाड़ों को स्थानांतरित करने के लिए केवल सरसों के बीज के आकार का विश्वासही काफी है (मारकुस 11: 22-25)। मैं ने यह भी कहा कि “अगर हम पहाड़ों को स्थानांतरित कर सकते हैं, तो हम निश्चित रूप से कैंसर को हटा सकते हैं।” मैंने उन्हें मेरे साथ यह दोहराने के लिए कहा: “मुझे विश्वास है कि मुझे मिल गया है” (मारकुस 11:24)। उन्होंने इसे दोहराया और जैसे ही हम एक दुसरे से विदा ले रहे थे, मैंने उन्हें एक रोजरी माला भेंट कर दी जिसे मैंने मेडजुगोर्ज से प्राप्त किया था। हमने फोन नंबरों का आदान-प्रदान किया। अगले हफ़्तों में मैंने येशु पर भरोसा करने और चंगाई प्राप्त करने के लिए ईमेल के माध्यम से पवित्र वचन देकर उन्हें प्रोत्साहित किया।

अवर्णनीय शक्ति

कुछ हफ्ते बीत गए। एक दिन दोपहर के समय जैसे मैं प्रार्थना करने के लिए गिरजाघर में प्रवेश कर रहा था, उस महिला ने मुझे एक सन्देश भेजा। वह जांच के लिए अस्पताल जा रही थी और उसने प्रार्थना करने के लिए कहा। इसके पहले की जांच से पता चला कि कैंसर फैल गया था। जैसे मैं उस दिन गिरजाघर में प्रार्थना कर रहा था, मुझे लगा कि गिरजाघर के कांच की खिड़की से होकर मुझ पर सूरज की रोशनी चमक रही है। बाद में, उसने फिर से सन्देश भेजा कि डॉक्टर लोग “नहीं समझा पाए हैं”!

उनकी हालत न केवल बेहतर था, कैंसर पूरी तरह से अदृश्य हो गया था| मैं ने उस पल को याद किया जब उसने रोम शहर में मेरे कंधे पर स्पर्श किया था और उस समय उनकी हथेली का चुंबन करने की मुझे तीव्र इच्छा हुई थी। उस चुंबन से चंद लम्हें पहले, मैं ने मदर तेरेसा के अवशेष पर स्पर्श कराये गए जपमाला की मोतियों को चूमा था। जब मैंने उन्हें इस के बारे में समझाया तो वे दंग रह गई और मुझे बताया कि वर्षों पहले जब वे मदर तेरेसा से मिली थीं, उस समय मदर ने उन्हें अपने मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी समुदाय में शामिल होने के लिए कहा था। उस बुलावे के लिए हाँ कहने के बजाय, उन्होंने शादी करने का फैसला किया। लेकिन अब इस नाटकीय चंगाई में वे अप्रत्याशित रूप से मेरे, रोम के महागिरजाघर के, और पवित्र अवशेष के माध्यम से उस पवित्र नारी मदर तेरेसा के साथ जुड़ गई थी, जिनसे कई साल पहले वे मिली थीं।

मेरे जीवन की घटनाओं से मुझे पता चला है कि ईश्वर प्रार्थना का जवाब देता है, कि येशु इस समय  भी चंगा करता है, और वह चमत्कार अभी भी होता है। हमारे पास मदद करने के लिए संतों की मध्यस्थता और रोज़री माला की शक्ति है। और वह शक्ति पहाड़ को भी हटाने के लिए काफी है।

प्रिय येशु, इस दुनिया की सारी बातों से ऊपर मैं तुझे प्यार करता हूं। अपने आस-पास के लोगों में, विशेष रूप से मेरे परिवार में तुझे देखने, और तुझे प्य्रार करने की खुशी को उनके साथ साझा करने में मेरी मदद कर। मैं तुझसे प्रति दिन अधिक से अधिक प्यार करना चाहता हूँ। आमेन।

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By: Sean Booth

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जुलाई 27, 2021
Engage जुलाई 27, 2021

कभी आपने सोचा है कि जो हमें चोट पहुंचाते हैं  उन्हें माफ करने की क्या ज़रुरत है?

क्षमा करना कठिन है; यह आसानी से कैसे किया जा सकता है यह जानने के लिए आगे पढ़ें ।

सीमा से परे

यदि तुम दुसरो को क्षमा नहीं करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेगा। (मत्ती 6:15)

एक ख्रीस्तीय के रूप में, हमारी सारी आशा पूरी तरह से एक ही बात पर निर्भर करती है – ईश्वर से क्षमा। यह स्पष्ट है कि जब तक वह हमारे पापों को माफ नहीं करता हम स्वर्ग के भागीदार कभी नहीं बन सकते। परमेश्वर का धन्यवाद करो, जो प्रेमी पिता होने की वजह से अपने बच्चों को माफ करने के कारणों की तलाश करता है। हमारे पापों की गंभीरता और संख्या कितनी भी क्यों न हो, पिता ईश्वर हमें क्षमा करना चाहता है । हमें बस अपने द्वारा किए गए गलतियों को स्वीकार करने, उन के लिए क्षमा मांगने और दूसरों को भी क्षमा करने की ज़रुरत है। मानो कि हमारी परीक्षा लिखने के पूर्व ही प्रश्न पत्र आउट हो चुका है। फिर भी, हम में से अधिकांश इस न्यूनतम कसौटी को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

हमारे पापी स्वभाव के कारण, बिना शर्त माफ करना हमारी क्षमता से परे है। इस के लिए हमें दिव्य आशीष की आवश्यकता है। हालांकि, हमारे उद्देश्यपूर्ण इच्छा और कदम महत्वपूर्ण है। एक बार जब हम ये कदम उठाते हैं, तो प्रभु की ओर से हम पर बहने वाले अनुग्रह का हम अनुभव करना शुरू कर देंगे।

हम कैसे अपनी भूमिका निभाते हैं? एक बात हम कर सकते हैं: वह है क्षमा करने का कारण खोजना। क्षमा करने के कुछ कारण मैं यहां दे रहा हूँ ।

मुझे क्यों माफ़ करना चाहिए?

उत्तर 1: क्योंकि, मैं एक स्वस्थ जीवन का हकदार हूँ

माफ करना कैदी को मुक्त करना जैसा है, और पता चलता है कि कैदी आप स्वयं थे!

– लुईस बी. स्मीडेस

धर्मग्रन्थ ने बहुत पहले जो सिखाया था उसे आधुनिक शोध ने स्वीकार किया है- क्षमा करने की आवश्यकता! क्षमा करने से क्रोध, चोट, अवसाद और तनाव कम हो जाते हैं और आशावाद, उम्मीद और करुणा की भावना बढ़ती है। क्षमा उच्च रक्तचाप को कम करती है। क्षमावान लोगों में न केवल तनाव कम रहता है, बल्कि वे बेहतर रिश्ते बनाते हैं| ऐसे लोगों को सामान्य प्रकार के स्वास्थ्य समस्याओं और सबसे गंभीर बीमारियों को बहुत कम झेलना पड़ता है- इनमें अवसाद, हृदय रोग, मस्तिष्क का आघात और कैंसर शामिल हैं ।

यहाँ, मेरा ध्यान मेरी अपनी भलाई पर है। जीवन सृष्टिकर्ता से मिला एक उपहार है, और यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं एक अच्छा जीवन जीऊँ। क्षमाशीलता की कमी मुझे गुणवत्तापूर्ण जीवन का आनंद लेने से रोकती है। इसलिए, मुझे क्षमा करने की आवश्यकता है।

उत्तर 2: क्योंकि, ईश्वर मुझे क्षमा करना चाहता है

ख्रीस्तीय होने का मतलब अक्षम्य को क्षमा करना है क्योंकि ईश्वर ने आप में अक्षम्य को माफ कर दिया है – सी.एस. लुईस

यह बहुत ही सीधी बात है। मैं क्षमा करने का फैसला लेता हूँ, क्योंकि ईश्वर मुझसे यह उम्मीद करता है। मेरा ध्यान ईश्वर के प्रति आज्ञाकारी होना है। मैं माफ करने की शक्ति के लिए उनकी कृपा पर निर्भर हूँ।

उत्तर 3: क्योंकि, मैं बेहतर नहीं हूँ

कोई भी धार्मिक नहीं रहा –  एक भी नहीं (रोमियों 3:10)

मेरी भरसक कोशिश है कि मैं अपना ध्यान मेरे पापी स्वभाव पर केन्द्रित करूँ। मैं खुद को दूसरे व्यक्ति की दृष्टि से देखने की कोशिश करता हूँ। यदि मैं उसकी जगह पर होता तो मेरी प्रतिक्रिया क्या होती? कई बार, जब हम अपने न्यायसंगत स्पष्टीकरण को त्याग देते हैं और दूसरों को चोट पहुँचाये गए अवसरों पर ध्यान देना शुरू करते हैं तब हमें यह एहसास होने लगता है कि हम दूसरों से बेहतर नहीं हैं। यह अहसास हमारे काम को आसान कर देगा।

उत्तर ४: क्योंकि ईश्वर मेरी भलाई के लिए उन दर्दभरी स्थितियों का उपयोग कर रहा है

हम जानते हैं, कि जो लोग ईश्वर को प्यार करते हैं, और उसके विधान के अनुसार बुलाए गए हैं, ईश्वर उनके कल्याण केलिये सब बातों में उनकी सहायता करता है।(रोमियों 8:28)

संत स्तेफनुस की मृत्यु के विषय में हम प्रेरित चरित में पढ़ते है। मरने से ठीक पहले, स्तेफनुस ने ईश्वर की महिमा को और ईश्वर के दाहिने येशु को देखा! जब भीड़ उस पर पत्थर मार रही थी, तब स्तेफनुस ने अपने अत्याचारियों के लिए प्रार्थना की, “हे प्रभु यह पाप उनपर मत लगा”। हमें मिलने वाले पुरस्कार को ध्यान में रखते हुए हमें दूसरों को क्षमा करने में मदद दे रही एक मुख्य बिंदु यहाँ हम देखते हैं। स्तेफनुस ने ईश्वर की महिमा को देखा। ऐसा अनुभव करने के बाद, मुझे विश्वास है कि स्तेफनुस जितना जल्दी हो सके ईश्वर के साथ रहना चाहता था। शायद इसलिए उसे अपने अत्याचारियों को क्षमा करना और भी आसान हो गया था, क्योंकि वह अपने अंतिम गंतव्यस्थान तक जल्द पहुंचने में मदद करनेवालों के रूप में उन अत्याचारियों को देख पाता था।

पिछली चोटिल घटना के नकारात्मक परिणामों के बारे में सोचना एक मानवीय प्रवृत्ति है। अगर हम उद्देश्यपूर्ण ढंग से उस तरह से सोचना बंद कर देते हैं और उन घटनाओं के कारण हमें मिलने वाले लाभों को गिनना शुरू कर देते हैं, तो यह बड़े आश्चर्य पूर्ण कार्य होगा। उदाहरण के लिए, मैंने अपने कार्यालय के एक पुराने सहयोगी की गंदी राजनीति के कारण अपनी नौकरी खो दी होगी, लेकिन इसी के कारण मुझे एक बेहतर नौकरी के लिए आवेदन करने और उसमे सफलता हासिल करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था! मैं गैर-भौतिक लाभों को भी गिन सकता हूँ। उन घटनाओं ने शायद मुझे आध्यात्मिकता में बढ़ने में मदद की होगी या हो सकता है कि उन घटनाओं ने मुझे एक मजबूत व्यक्ति बनाया है, आदि इत्यादि। एक बार जब हम इसे मूर्तरूप होते देखना शुरू कर देंगे, तो हमें चोट पहुँचानेवालों को माफ़ करना हमारे लिए बहुत आसान होगा।

उत्तर 5: उसे माफ करें ? किस लिए? उसने क्या किया?

मैं उनके पापों को याद नहीं रखूंगा (इब्रानी 8: 12 )

जब मुझे लगता है कि दूसरे व्यक्ति ने मुझे चोट पहुंचाने के उद्देश्य से कार्य किया है तभी क्षमा करने का एक कारण बनता है! यदि उसके कार्य ने मुझे आहत नहीं किया, तो क्षमा करने की बात कहना अप्रासंगिक हो जाता है।

मेरे मित्र के जीवन की एक घटना इस प्रकार है: एक बार वह किसी बहुत ही महत्वपूर्ण साक्षात्कार के लिए बाहर जाने वाला था| इसलिए विशेष रूप से चुने गए, अच्छी तरह से इस्त्री किए गए कपड़े पहन लिया था| घर छोड़ने से ठीक पहले, उसने देखा कि उसकी छोटी बच्ची एक सुंदर मुस्कान के साथ उसके पास रेंगकर चली आ रही थी। उसने तुरंत उसे अपनी बाहों में ले लिया और एक पल के लिए उसे पुचकारा। कुछ ही पलों के बाद, उसने अपने शर्ट पर गीलापन महसूस किया और उसे पता चला कि बच्ची ने लंगोट नहीं पहनी है। वह बहुत परेशान हो गया और अपना क्रोध पत्नी पर उतार दिया।

उसने जल्दी अपने कपड़े बदल दिए और निकल गया। रास्ते में, प्रभु उससे बात करने लगे:

“क्या तुमने उसे माफ कर दिया?”

“यह उसकी गलती थी … उसे और अधिक जिम्मेदार होना चाहिए था” उसने बड़बड़ाया।

प्रभु ने सवाल दोहराया, “मेरा मतलब, क्या तुमने अपनी बच्ची को माफ कर दिया?”

“मैं अपनी बच्ची को माफ करूँ? किस लिए? उसने क्या गलती की? वह क्या सही और गलत को जानती है? ”

उस यात्रा के दौरान, प्रभु ने मेरे दोस्त के सम्मुख अपना दिल खोलकर अपने दिव्य शब्दकोश में ‘क्षमा’ का अर्थ समझा दिया।

याद करो येशु ने क्रूस पर जो प्रार्थना की, “हे पिता, उन्हें क्षमा कर; क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।“ (लूकस 23:34)

येशु ने जिस तरह क्षमा की उसी तरह क्षमा करना हमारे लिए आदर्श है, लेकिन यह केवल प्रभु की प्रचुर कृपा से ही हासिल किया जा सकता है। हम क्षमा करने का निर्णय लेकर अपनी इस सच्ची इच्छा को स्वर्ग की ओर उठा सकते हैं। हमारे पास माफ करने के कारणों की कमी नहीं है। आइए हम शिशु की तरह छोटे छोटे कदम बढायें और प्रभु से कहे कि वह हमारी मदद करें।

प्यारे प्रभु, मैं अनुभव करता हूँ कि तेरे प्रिय पुत्र ने मुझे इतना प्यार किया कि वह पृथ्वी पर उतर आया और अकल्पनीय पीड़ा से गुज़रा ताकि मुझे क्षमा मिल सके। मेरी गलतियों और असफलताओं के बावजूद उसके घावों से तेरी दया बहती रहती है। मेरी मदद कर ताकि मैं येशु के पदचिन्हों पर चलते हुए मुझे चोट पहुँचाने वाले सब लोगों को माफ़ कर सकूँ। इस तरह मैं करुणा का अनुभव करूँ जो वास्तव में पूर्ण क्षमा करने से ही आती है। आमेंन।

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By: आन्टनी कलापुराक्कल

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जुलाई 27, 2021
Engage जुलाई 27, 2021

प्रश्न: ऐसा लगता है कि यह साल दिन-ब-दिन और भी अजीब होता जा रहा है। जब भी समाचार देखो कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ बुरा होने की खबर सुनाई देती है: पहले वायरस, फिर नस्लीय भेदभाव पर बहस, ऊपर से लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था। यह सब मुझे सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम दुनिया के अंतिम दिनों में जी रहे हैं?

उत्तर: क्या यह अंतिम समय है? यह सवाल लोग कईं सदियों से पूछते आ रहे हैं। लेकिन ख्रीस्तीय होने के नाते हमारा विश्वास यह कहता है कि मानव इतिहास सिर्फ कुछ बेमतलब की घटनाओं का सिलसिला नहीं है, और हम सब एक बड़ी कहानी का हिस्सा हैं, वह कहानी जिसे ईश्वर ने अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए लिखा है। हर कहानी के तीन हिस्से होते है: शुरुआत (दुनिया की सृष्टि और मनुष्य का पहला पाप), मध्य भाग (येशु का जन्म और उनके दुखभोग का रहस्य), और अंत (ख्रीस्त का पुनरागमन)। तो आपको क्या लगता है, क्या हम दुनिया के अंतिम दिनों में हैं?

हां यह बात तो है कि हम इस कहानी के मध्य भाग से गुज़र चुके है जो लगभग 2000 साल पुराना है और अब्राहम से ले कर येशु मसीह की कहानी कहता है। लेकिन इस सवाल का जवाब कोई नहीं जानता कि हम अंतिम भाग के कितने नज़दीक हैं। हो सकता है कि यह अंतिम भाग एक साल दूर हो, या पांच साल दूर, या सौ साल दूर, या हज़ार साल दूर। पर वह “अंत” एक लम्हे की बात नहीं है, यह अपने आप में एक प्रक्रिया है। देखा जाए तो हम अंत की इस शुरुआत को आज से 1400 साल पहले के नवजागरण या रेनेसां के आगमन से जोड़ कर देख सकते हैं। क्योंकि रेनेसां काल ने ही ईश्वर से ध्यान हटा कर इन्सान को जीवन का केंद्र बना दिया था, और सृष्टि को सृष्टिकर्ता से अलग देखने की सोच पर ज़ोर दिया था।

जब हम यह सोचने लगते हैं कि हम अंतिम दिनों में जी रहे हैं तो हम खुद को इस कहानी में कुछ ज़्यादा ही महत्व देने लगते हैं। देखा जाए तो हम सारी ज़िन्दगी मामूली चीज़ों की बात करते हैं, क्योंकि हमारी ज़िन्दगी मामूली चीज़ों और मामूली सिलसिलों से भरी पड़ी है। लेकिन इन मामूली चीज़ों का भी कहीं ना कहीं अपना महत्व है। मुझे एक बात की याद आती है जो कई साल पहले मेरी बहन ने मुझसे कही थी। उस दिन हम ‘लॉर्ड ऑफ द रिंग्स’ चलचित्र देख कर लौट रहे थे। शाम का वक्त था और ढलते हुए सूरज को देखते हुए उसने कहा “काश असल ज़िंदगी भी इसी तरह होती! किसी बड़ी तलाश, किसी रोमांचक कहानी की तरह!”

मैं अक्सर अपनी बहन के विचारों को अपने व्याख्यानों में शामिल करता हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि बहन को  इन्सानी दिल में उठते खयालों की अच्छी समझ थी। इन्सान यह जानना चाहता है कि उसकी ज़िन्दगी बस एक इत्तेफाक नहीं है, और उसकी इस दुनिया में कोई अहमियत है, कोई मायना है। देखा जाए तो इन्सान के दिल में यह ख्याल ईश्वर ने ही डाला है, क्योंकि ईश्वर की मुक्ति की इस कहानी या महाकाव्य में इन्सान आखिर एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता ही है।

तो अगर ध्यान से देखा जाए तो वे काम जिन्हें हम मामूली समझते हैं, उनका इस कहानी में योगदान है। उदाहरण के तौर पर, अगर आप अपने बच्चों की देखभाल करते हैं, उनके लिए खाना बनाते हैं, तो आप उन अमर आत्माओं की शारीरिक ज़रूरतों का खयाल रख रहे हैं जो आगे चल कर अनंत काल के लिए या तो स्वर्ग या नरक का हिस्सा बनेंगे। वे या तो आगे चल कर धरती पर ईश्वर के राज्य का प्रचार करेंगे, या ईश्वर के राज्य को ही खंडित करेंगे। इस लिहाज़ से जो भी हम करते हैं, उन मामूली से मामूली कार्यों का असर मानव इतिहास और अनंत काल दोनों में पड़ता है। हम एक बड़ी लम्बी कहानी का हिस्सा हैं, हम अच्छाई और बुराई के बीच की लड़ाई का हिस्सा है। और हम यह लड़ाई अपनी-अपनी जगहों, अपने-अपने हालातों में रह कर लड़ रहे हैं।

इन सब बातों पर मनन चिंतन करना मेरे लिए आध्यात्मिक रूप से लाभकारी होता है, क्योंकि अब मुझे पता है कि ईश्वर की इस कहानी के आख़िरी मोड़ पर हम क्या भूमिका निभा रहे हैं। एक और बात जो मैंने समझी है वह यह है कि हम रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में कितनी हीं बातों की चिंता करते हैं जिनका इस महाकाव्य में शायद ही कोई वजूद होगा। चाहे वो रोज़ का ट्रैफिक जाम हो, या पैसे की चिंता, क्या अंत के दिनों में यह सब कोई मायने रखेगा? क्योंकि चाहे इस दुनिया का अंत नज़दीक हो ना हो, हमारा अंत तो नज़दीक भी है और सुनिश्चित भी। देखा जाए तो, “मौत निश्चित है” यह याद रखना ही जीवन का सार है। क्योंकि यह बात हमें इसे याद रखने में मदद करती है कि यह ज़िन्दगी हमारी छोटी छोटी चिंताओं से बढ़कर है और हमें उन चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करना है जो असल में अहमियत रखती हैं। और वह इस सच्चाई को याद रखने में है कि हमें मसीह के आगमन के लिए खुद को तैयार करना है।

एक पुरोहित के तौर पर मुझे इस बात ने हमेशा आश्चर्यचकित किया है कि हमारी पूजा विधि कितनी सारी जगहों पर येशु के पुनरागमन की बात करती है। मैंने हाल ही में मिस्सा बलिदान अर्पित करते समय इस बात पर गौर किया कि यूखरिस्त की हमारी सारी प्रार्थनाएं और सारा नया विधान सिर्फ और सिर्फ मसीह की राह देखने की बात करता है। हमारा धर्म परलोकी सिद्धांत पर चलता है, और हम हर वक्त चीज़ों के समाप्त होने की बाट जोहते हैं।

क्रूस पर अपनी मृत्यु द्वारा मसीह ने जिस मुक्ति को हमारे लिए जीत लिया वह अभी भी जारी है, या यूं कहे तो अधूरी है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि ख्रीस्त को इस मुक्ति कार्य में और कुछ जोड़ना बाकी है, दरअसल ईश्वर की इतनी भरपूर कृपा के बावजूद इस दुनिया में पाप चौगुनी तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। क्रूस के बलिदान ने ईश्वर से हमारा मेल मिलाप कराया लेकिन यह कृपा सिर्फ उनके लिए है जिन्होंने ईश्वर की पुकार को हाँ कहा, ईश्वर की यह कृपा अभी तक पूरे विश्व में, सब लोगों के दिलों पर राज नहीं कर पाई है। हाँ ईश्वर सबों के स्वामी हैं, पर वे भी सब बातों के पूरे होने पर ही अपनी पूरी शक्ति और सामर्थ का प्रदर्शन करेंगे। इसी वजह से हर सदी में कलीसिया ने पुकार पुकार कर कहा है “आइये प्रभु येशु, आइये!” कैथलिक होने के नाते हम सब उस दिन कि बाट जोह रहे हैं जब ईश्वर की मुक्ति पूरी होगी और जब मृत्यु रूपी उस आख़िरी दुश्मन का सर्वनाश होगा।

इसीलिए जब हम इस आख़िरी जीत का इंतजार करते हैं तब ख्रीस्त हमें जागरूक रहने और समय के संकेतों पर ध्यान देने के लिए आह्वान करते  है। हर सदी ने खुद से यह सवाल किया है कि “क्या यही अंतिम दिन हैं?” हमारी सदी भी उनकी तरह इसी सवाल में उलझी है। इसीलिए नबी, ज्ञानी पुरुष और जिन जिन लोगों का मन मसीह में लगा रहता है, वे सब लोग इस सवाल पर चर्चा करते रहेंगे। ये बात और है कि हमारी सदी और बीती सदियों में काफी फर्क रहा है, फिर भी हमारी सदी में भी हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह समय के संकेतों को ध्यान में रख कर इस सवाल पर मनन चिंतन करे।

और हालांकि इस बात पर कोई ठोस निष्कर्ष निकालना हमारे बस की बात नहीं है, फिर भी हमें प्रार्थना के मार्गदर्शन में सत्ता, समाज, प्रकृति और दर्शन शास्त्र में आ रहे बदलावों पर ध्यान देना चाहिए। यहीं बातें आध्यात्मिक तौर पर हमारी सहायता कर सकती हैं। क्योंकि देखा जाए तो नए विधान के वचन हमें बार बार अपनी आध्यात्मिक आंखों से अपने आसपास की दुनिया को जांचने परखने के लिए कहते हैं।

अंत समय के ऊपर मनन चिंतन का यह मतलब नहीं है कि हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ लें, क्योंकि अंत समय का ख्याल हमें अपनी ज़िम्मेदारियों को और भी हार्दिक इच्छा शक्ति के साथ निभाने के लिए प्रोत्साहित करता है। और बाइबल भी हमें यही सिखाती है कि अगर हम आधे मन से काम कर रहे होंगे या सो रहे होंगे तो जब दूल्हा आएगा, वह मूर्ख कुंवारियों को बिना साथ लिए लौट जाएगा। और अगर मैं यह सोचूं कि मेरी ज़िन्दगी सिर्फ मामूली और बेमतलब की बातों से भरी हुई है, या ख्रीस्त के आने में समय है इसीलिए मैं बाद में पश्चाताप और पाप स्वीकार कर लूंगा, तो ऐसा सोचना भी ग़लत होगा। क्योंकि बाइबल कहती है कि मसीह चोर की तरह रात को आएंगे। और यह बात दुनिया के हर व्यक्ति पर लागू होती है। तो अब सवाल यह उठता है कि क्या इन सब बातों के लिए कलीसिया तैयार है? क्या दुनिया तैयार है? अगर नहीं, तो फिर हमें किन बातों के द्वारा खुद को मसीह के पुनरागमन के लिए खुद को तैयार करना चाहिए?

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By: फादर जोसेफ गिल

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