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“मांगो और तुम्हें दिया जाएगा। ढूँढो और तुम्हें मिल जाएगा। खटखटाओ और तुम्हारे लिये खोला जाएगा।” – मत्ती 7:7
सन 2020 का पतझड़ का मौसम था, और वह दिन भी उन खूबसूरत दिनों में से एक था। मेरे पति मार्क, और मैं घर के आसपास कुछ काम कर रहे थे। मैं कोविड के कारण घर के अन्दर और आसपास ही पूरा दिन बिताकर बोर हो चुकी थी, इसलिए मैंने मार्क से कहा कि मैं एक ड्राइव के लिए बाहर जा रही हूं और कुछ घंटों में घर वापस आ जाऊंगी। उसने मुझे ड्राइव करके खुश रहने के लिए शुभकामनाएं दी और कहा कि हम बाद में एक-दूसरे से मिलेंगे।
अपनी कार में बैठने के बाद, मैंने मॉल की ओर जाने का फैसला किया। जब मैं मॉल के नज़दीक पहुँच रही थी तो मैंने ज़ोर से प्रभु से पूछा, “प्रभु, मुझे कहाँ जाना चाहिए?” मैंने तुरंत अपने दिल में सुना, “पैट्रीशिया”।
पैट्रीशिया मेरी पुरानी पड़ोसिन है जो अपने स्वाश्य की बेहतर देखभाल ले लिए इन दिनों एक संस्था में भर्त्ती कर दी गयी है। मैंने सोचा कि पैट्रीशिया के पास जाना एक अच्छा विचार है, और मुझे उससे मिले हुए काफी समय हो चुका था। अब तक मैं आधा रास्ता पार चुकी थी। मैंने फैसला किया कि पहुँचने के पहले फोन नहीं करूंगी, बल्कि पार्किंग में पहुँचने के बाद फोन करूंगी। उस समय कोविड की पाबंदियों ने मुझे उस संस्था के अंदर जाने से रोक दिया था। मैंने सोचा कि शायद पैट और मैं बाहर घूम सकती हैं। शायद मुझे कुछ देर इंतजार करना होगा।
मैंने सीधे पार्किंग में पहुंचकर पैट को फोन किया। उसने तुरंत जवाब दिया! मुझे लगा कि फोन बजा ही नहीं है। पैट के पहले शब्द थे, “कैरोल, तुम कहाँ हो?”, मानो कि वह जानती थी कि मैं आ रही हूँ। मैंने उससे कहा कि मैं उस संस्था के स्थान पर पार्किंग में थी। उसने मुझे बताया कि वह बाहर आँगन में है और मैं वहाँ मास्क पहन कर उसके साथ जा सकती हूँ। इसलिए, मैं गाड़ी लेकर आँगन की ओर गयी, मास्क लगायी और गेट पर उससे मिली। वह मुझे अंदर ले गयी। हम दोनों एक दूसरे को देखकर बहुत खुश हुई।
सूरज हमारे चेहरों पर चमक रहा था; और प्रभु येशु हमारे दिलों में चमक रहा था। वहाँ हम आँगन में बैठी थीं, बस हम दोनों; एक घंटे से अधिक देर तक बातें करती और हँसती रहीं। हमने एक साथ प्रार्थना भी की। क्या अद्भुत मुलाकात है! मुझे कहना चाहिए, वह ईश्वरीय विधान था।
ज़रा सोचिए, अगर मैंने उस शांत स्वर को, उस छोटी सी आवाज़ को, जो घर पर, मुझे धूप में बाहर निकलने के लिए उकसा रही थी, उस आवाज़ को जो बाद में गाडी चलाते समय भी, नहीं सुना होता, तो मैं अपनी दोस्त, पैट्रीशिया के साथ एक शानदार मुलाक़ात से चूक जाती!
धन्यवाद, येशु, तू जिस तरह से मुझे प्यार करता हैं, उसके लिए धन्यवाद!
'उस दिन मैं हताश और अकेली महसूस कर रही थी, लेकिन मुझे क्या पता था, कुछ खास होने वाला था…
जब संत पापा फ्रांसिस ने 8 दिसंबर 2020 से शुरू होने वाले “संत जोसेफ का वर्ष” घोषित किया, तो मुझे वह दिन याद आया जब मेरी मां ने मुझे इस महान संत की एक सुंदर मूर्ति दी थी जिसे मैंने अपने प्रार्थनाकक्ष में गहरी श्रद्धा के साथ रखा था। इन वर्षों में, मैंने संत जोसेफ के लिए कई नवरोज़ी प्रार्थनाएं की हैं, लेकिन मुझे हमेशा यह महसूस होता था कि संत जोसफ शायद मेरी प्रार्थनाओं से अवगत नहीं होंगे। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैंने संत जोसफ पर बहुत कम ध्यान दिया।
पिछले साल, मेरे एक पुरोहित मित्र ने मुझे संत जोसेफ से 33 दिन की प्रार्थना करने की सलाह दी, इसलिए मैंने फादर डोनाल्ड एच. कॉलोवे द्वारा रचित संत जोसेफ के प्रति समर्पण की 33 दिन प्रार्थना की। समर्पण प्रार्थना के अंतिम दिन मुझे इस बात का अंदाजा नहीं था कि मेरे जीवन में कुछ खास होने वाला है। रविवार का दिन था। मैं बहुत उदास महसूस कर रही थी, हालाँकि, उदास होना मेरे स्वभाव में बिल्कुल नहीं है। लेकिन वह दिन बहुत अलग था। इसलिए पवित्र मिस्सा बलिदान के ठीक बाद, मैंने आराधना में जाने का फैसला किया। क्योंकि मेरी इच्छा थी कि परम पवित्र संस्कार के सम्मुख बैठकर मैं कुछ पा लूं, क्योंकि मुझे विश्वास था कि जो कोई अपने दिल की गहराइयों से प्रार्थना करेगा, उसे सांत्वना ज़रूर मिलेगी।
ऊपर से प्यार
एक बार, जब मैं म्यूनिख में भूमिगत मेट्रो रेल सेवा यू-बान में मेट्रो गाडी की प्रतीक्षा कर रही थी, मैंने देखा कि एक महिला अनियंत्रित रूप से रो रही है। इसे देखकर मैं हिल गयी थी और उसे सांत्वना देना चाहती थी। उसके ज़ोरदार विलाप ने सबका ध्यान आकर्षित किया था और हर कोई उसे घूर रहा था, जिससे मेरे जाने और उससे बात करने की इच्छा कम हो गयी थी। कुछ देर बाद वह जाने के लिए उठी, लेकिन अपना दुपट्टा पीछे छोड़ गई। अब मेरे पास उसके पीछे जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। जैसे ही मैंने दुपट्टा वापस दिया, मैंने उससे कहा, “मत रोओ … आप अकेली नहीं हैं। येशु आपसे प्यार करते हैं और वह आपकी मदद करना चाहते हैं। अपनी सभी परेशानियों के बारे में उससे बात करें… वह आपकी मदद जरूर करेंगे।” मैंने उसे कुछ पैसे भी दिए। फिर उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं उसे अपनी बाहों में ले सकती हूं। मैं थोड़ी अनिच्छुक थी, लेकिन पल में इस अनिच्छा को एक तरफ धकेलकर, मैं ने उस महिला को गर्मजोशी से गले लगाया और धीरे से उसके गालों को छुआ। इस कृत्य से मैं स्वयं आश्चर्यचकित थी क्योंकि उस दिन मैं बहुत खालीपन और आत्मा में उदासीपन महसूस कर रही थी। और सच में मैं कह सकती हूं कि यह प्यार मेरी तरफ से नहीं था। वह येशु ही थे जो इस तरह उसके पास पहुंचे थे!
अंत में, जब मैं आराधना के लिए गिरजाघर पहुंची, तो ईश्वर से मदद की गुहार लगाई और मेरा जीवन उसके नियंत्रण में है इस बात का एक संकेत के लिए मदद माँगी। जैसे ही मैंने संत जोसेफ वाली अपनी प्रार्थना और समर्पण को पूरा किया, मैंने संत जोसेफ की मूर्ति के सामने एक मोमबत्ती जलाई। तब इस बात पर विचार करते हुए कि उन्होंने मुझे कभी जवाब क्यों नहीं दिया, मैंने सहज भाव से संत जोसेफ से पूछा कि क्या वह वास्तव में मेरी परवाह करते हैं, या नहीं।
बड़ी मुस्कान
वापस ट्रेन की ओर जाते समय, एक महिला ने मुझे गली में रोक दिया। वह 50 के आसपास की लग रही थी और मेरी उससे यह पहली और आखिरी मुलाक़ात थी, लेकिन उसने मुझसे जो कहा वह अभी भी मेरे कानों में गूँज रहा है। जैसे ही मैंने उसकी ओर देखा और सोच रही थी कि वह मुझसे क्या चाहती है, उसने अचानक अपने चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान के साथ कहा “ओह! संत जोसेफ आपसे बहुत प्यार करते हैं, आपको पता नहीं है।” मैं हतप्रभ रह गयी और उसने जो कहा उसे दोहराने के लिए मैंने उससे कहा। मैं इसे फिर से सुनना बहुत चाहती थी और मेरे पास जो भावना थी वह शब्दों से परे है। उस पल मुझे पता चल गया था कि मैं कभी अकेली नहीं हूं। खुशी के आंसू मेरे गालों पर लुढ़कते गए, क्योंकि मैंने उससे कहा कि मैं प्रार्थना कर रही थी और एक संकेत मांग रही थी। मंत्रमुग्ध कर देने वाली एक मुस्कान के साथ उसने उत्तर दिया, “प्रिय, यह पवित्र आत्मा का कार्य है”
फिर उसने पूछा, “क्या आप जानती हैं कि संत जोसेफ आपसे सबसे ज्यादा किस बात केलिए प्यार करते हैं?” मैंने हतप्रभ स्थिति में पीछे मुड़कर उसकी ओर देखा। मेरे गालों को धीरे से छूते हुए (ठीक वैसे ही जैसे मैंने पहले मेट्रो में दूसरी महिला के साथ किया था) वह फुसफुसाई, “तुम्हारा कोमल और विनम्र दिल से।” फिर वह चली गई।
मैंने इस भली महिला से इससे पहले या बाद में कभी नहीं मिली। यह बात असामान्य थी, क्योंकि ज्यादातर हमारे गिरजाघरों में हम एक-दूसरे को जानते हैं, लेकिन मुझे अभी भी स्पष्ट रूप से याद है कि वह कितनी प्यारी और खुशी से भरी थी।
उस दिन मैं इतना हताश महसूस कर रही थी इसलिए मुझे वास्तव में यह महसूस करने की ज़रूरत थी कि प्रभु वास्तव में मुझसे प्यार करते हैं और मेरी परवाह करते हैं । संत जोसेफ के संदेश से मेरी चिंता दूर हुई। संत जोसफ इतने वर्षों तक मेरे साथ रहे, हालांकि मैंने अक्सर उनकी उपेक्षा की थी।
मेरा दृढ़ विश्वास है कि उस दिन की शुरुआत में मेट्रो में रोनेवाली महिला से मुलाक़ात की घटना बाद में इस दयालु और भली अपरिचित महिला के साथ मेरी मुलाकात से जुड़ी हुई थी। उसने मुझे ज्ञान का एक महत्वपूर्ण सन्देश दिया। हम जो कुछ भी दूसरों के लिए करते हैं, हम येशु के लिए करते हैं, भले ही हमारा ऐसा करना हमारी इच्छा के अनुरूप न हो। जब हम दूसरों तक पहुँचने के लिए अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलते हैं तो येशु और भी अधिक खुश होते हैं। तब से, मैं हर दिन अपने प्रिय संत जोसेफ की शक्तिशाली मध्यस्थता मांगती हूं, बिना किसी असफलता के!
'तीसरी कक्षा में पढ़ रहे मेरे बेटे के पाठ्यक्रम में, उसे तितली के जीवन चक्र के बारे में सीखना था। इसलिए, मैंने कुछ शोध किया ताकि इसके बारे में हम एक साथ चर्चा कर पायें। हालांकि मैं एक तितली के जीवन चक्र के चार चरणों को जानती थी, लेकिन मैंने कभी भी इसकी गहराई से जांच नहीं की थी।
जब मैंने इस छोटे, सुंदर प्राणी के विभिन्न चरणों के बारे में वीडियो और चित्रों की खोज की, तो मैं इसके विकास के तीसरे चरण से मोहित हो गयी, जब यह एक प्यूपा या कोषावस्था में कायापलट से गुजरता है। कैटरपिलर या सूंडी को वयस्क तितली में बदलने के लिए कुछ दिनों तक प्यूपा में रहना पड़ता है।
यदि आप कायापलट की प्रक्रिया के बीच में क्रिसलिस या कोष को खोलते हैं, तो आपको केवल एक चिपचिपा तरल पदार्थ मिलेगा। खोल के अंदर पंख पाने के पहले आरामदायक निद्रा में सूंडी या कैटरपिलर आपको नहीं दिखाई देगा। वास्तव में, इस चरण के दौरान, कैटरपिलर का पुराना शरीर मर जाता है और एक नया शरीर बनना शुरू हो जाता है। कैटरपिलर को पूरी तरह से उस खोल से अलग हो जाना है। पूरी तरह से द्रवीभूत होने के बाद ही, यह उस सुंदर प्राणी का रूप लेना शुरू करता है जिस रूप में सृष्टिकर्ता ने उसके लिए सोचा था।
एक और आश्चर्यजनक बात जो मैंने खोजी: क्रिसलिस (खोल) शब्द यूनानी भाषा के “स्वर्णिम” शब्द के लिए लिया गया है, क्योंकि हरे रंग की क्रिसलिस/खोल के आसपास सुनहरे या स्वर्णिम धागे हैं। आपने शायद क्रिसलिस/खोल चरण के बारे में कुछ आध्यात्मिक उपमाएँ सुनी होंगी, जो यह बताती है कि हमारे जीवन के कठिन समय वास्तव में कैसे हमें बदल देता है। हालाँकि, जब हम वास्तव में खुद को संकट में पाते हैं, तब हम ‘यह संकट मसीह में विश्वासियों के लिए नहीं है’ मानकर अक्सर दुख का अवमूल्यन करते हैं।.
हम ईश्वर से प्रार्थना करते रहते हैं कि हमारे जीवन से कष्टों और दुखों के असहज और कुरूप खोल को हटा दे। हम चाहते हैं कि वह हमारी परिस्थितियों को बदल दे, लेकिन उसकी इच्छा है कि इस प्रक्रिया द्वारा हमारा परिवर्त्तन हो।
क्योंकि, हमारी आत्मा के भीतर का गंभीर कार्य क्रिसलिस या खोल में होता है।
क्रिसलिस के अंदर रहने से हमारा विश्वास मजबूत होता है।
जीवन के सबसे आवश्यक पाठ क्रिसलिस में सीखे जाते हैं।
अपने सृष्टिकर्ता के साथ हमारा रिश्ता गहरा होता है क्योंकि हम क्रिसलिस या खोल में कायापलट करते हैं जबकि हमारे चरित्र के वे हिस्से जो जरूरी नहीं हैं, छीन लिए जाते हैं।
जिस तरह क्रिसलिस के अंधेरे, एकांत और विश्राम में कैटरपिलर एक सुंदर तितली में बदल जाता है, ऐसा समय हमें अपने अस्तित्व के उद्देश्य के लिए प्रकट और तैयार कर सकता है।
मुझे नहीं पता कि आप इस समय किस कायापलट की अवस्था में हैं। यदि आपके पंख हैं, तो प्रभु की स्तुति करें, लेकिन अगर आप खुद को क्रिसलिस में फंसा हुआ पाते हैं, जहां आपको लगता है कि कुछ भी नहीं हो रहा है, जहां आप अपने दर्द और कठिनाइयों का अंधेरा देखते हैं, जहां आपको लगता है कि आप हर दिन टूट रहे हैं और जहां सब कुछ इतना अटका हुआ, मृत और निष्क्रिय लगता है, तो मैं आपको इस प्रक्रिया पर भरोसा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हूं, इसके प्रति समर्पण कीजिये, इसे ख़ुशी से अपनाइये और तब तक प्रतीक्षा कीजिये जब तक कि यह प्रक्रिया अपने सर्वश्रेष्ठ काम न कर ले, आपको हर उस चीज में बदल दे जो आपको होना चाहिए, आपको अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए और अपने स्वर्गीय पिता की महिमा को दर्शाते हुए आपको शानदार पंख देता है।
कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका क्रिसलिस कैसा महसूस करता है, याद रखें कि यह हमेशा आपके मास्टर डिजाइनर से ताकत, आश्वासन, प्यार और अनुग्रह के सुनहरे धागे से ढका रहेगा। वह पूरी प्रक्रिया के दौरान आपको देखता रहेगा। उस पर भरोसा करें कि वह आपकी रक्षा और पुनर्निर्माण करेगा जैसे कि आप अपने क्रिसलिस में बैठकर प्रतीक्षा करते हैं। तब आपकी कायापलट आपको चौंका देगी।
'मैं 65 वर्ष का था और अपनी जीवन बीमा पॉलिसी बदलना चाह रहा था। जैसा अक्सर होता है, बीमा वालों को मेरे स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ जांच करनी थी। मैंने सोचा, “ठीक है, मैं सहयोग करूंगा।” उस समय तक, मैंने जो भी लैब टेस्ट लिया था, जैसे सीने का एक्स-रे, ईकेजी और कॉलोनोस्कोपी, ये सब सामान्य थे। मेरा रक्तचाप 126/72 था और मेरा बीएमआई 26 था। मैं प्रति सप्ताह चार बार व्यायाम करता था और काफी स्वस्थ भोजन खाता था। मैं अच्छा महसूस कर रहा था और किसी भी प्रकार की बीमारी के लक्षण मुझ में नहीं था।
मेरी सभी जांचों का परिणाम सामान्य आए … मेरे पीएसए को छोड़कर, जो 11 एनजी/एमएल था (सामान्य 4.5 एनजी/एमएल से कम होना चाहिए)। तीन साल पहले यह सामान्य था। एक झटका लगा ! इसलिए मैं अपना पीसीपी देखने गया। मलाशय की जांच के दौरान, उन्होंने पाया कि मेरा प्रोस्टेट बढ़ा हुआ और कुछ हिस्सा सिकुड़ा हुआ है। “मुझे कैंसर का संदेह है, मैं आपको एक मूत्र रोग विशेषज्ञ के पास भेजने जा रहा हूं,” उन्होंने कहा। एक और झटका।
प्रोस्टेट की ग्यारह बायोप्सियों में से ग्यारहों ने कैंसर पॉजिटीव दिखाया। मेरा ग्लीसन स्कोर 4+5 था जिसका मतलब था कि यह एक उच्च श्रेणी का कैंसर था और यह तेजी से बढ़ सकता है और फैल सकता है। इसलिए, मैंने ल्यूप्रोन के साथ एक गंभीर प्रोस्टेटैक्टोमी, विकिरण चिकित्सा और हार्मोन थेरेपी की। ऊह! वो गर्म गर्म लालिमा! जब मैं यह बोलता हूं तो महिलाएं ज़रूर मुझ पर विश्वास करेंगी; अब मुझे पता है कि आप किस दौर से गुजर रही हैं। एक बार फिर झटका!
आप सोचते होंगे कि “झटका” सिर्फ क्यों? “मेरा विश्वास उड़ गया है”, “यह नहीं हो सकता”, “मैं मरने जा रहा हूं”, “ईश्वर मुझे सजा दे रहा है” ऐसे ऐसे प्रलाप क्यों नहीं?
अच्छा, मैं बताता हूँ कि ऐसे प्रलाप मेरी तरफ से क्यों नहीं है। मेरी माँ के गुर्दे खराब होने से पहले, घर पर ही उन्हें पेरिटोनियल डायलिसिस की आवश्यकता थी, मेरे माता-पिता काफी यात्रा किया करते थे, खासकर मेक्सिको की तरफ। जब रोजाना डायलिसिस ने यात्राक्रम को रोक दिया, तो उन्होंने घर में बैठकर पहेलियों पर काम करने, अपनी बाइबल पढ़ने और उसका अध्ययन करने में अधिक समय बिताया। इससे वे प्रभु के काफी करीब आ गए। इसलिए, जब माँ के डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि वे उसके स्वास्थ्य के लिए और कुछ नहीं कर सकते, तो माँ विचलित नहीं थी। उसने मुझसे कहा, “मैं थक गई हूँ, मैं अपने स्वर्गिक पिता के साथ रहने के लिए तैयार हूँ। मैं परिवार और दोस्तों के साथ और अपने साथ भी शांति का अनुभव कर रही हूँ, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करती हूँ।” कुछ दिनों बाद, चेहरे पर मुस्कान के साथ, बड़ी अपार शांति के साथ उसने इस दुनिया से विदा ली।
”मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करती हूँ”। मैं भी यही चाहता था। मैं अब केवल रविवारीय मिस्सा में भाग लेने वाला नामधारी कैथलिक बने रहना नहीं चाहता था। उस समय से मैंने उस रास्ते पर चलना शुरू किया जो मुझे ईश्वर के करीब ले आया है: अंग्रेजी और स्पेनिश दोनों भाषाओं में बाइबल पढ़कर उसकी गहराई से अध्ययन करना, प्रार्थना करना, माला विनती करना, जीवन में प्राप्त कृपाओं के लिए धन्यवाद देना, और एक धर्मशिक्षा के अध्यापक के रूप में स्वयंसेवा करना। आशा करता हूं कि जल्द ही, मैं एक अस्पताल के अध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में अपनी इंटर्नशिप पूरा कर लूँगा और मैं अपना आध्यात्मिक मार्गदर्शन पाठ्यक्रम पूरा करने वाला हूं।
तो, हाँ, प्रोस्टेट कैंसर होना एक झटका है, लेकिन वह बस एक झटका मात्र ही है, क्योंकि मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करता हूँ।
'क्या स्वर्गदूत वास्तव में हैं? यहां जानिए सच्चाई…
हम अक्सर पवित्र ग्रन्थ बाइबल में स्वर्गदूतों को परमेश्वर के संदेशवाहकों के रूप में देखते हैं। कैथलिक कलीसिया केवल तीन स्वर्गदूतों के नामों को मान्यता देती है, जिनमें से सभी महादूतों की गायक मंडली के हिस्से हैं। हर साल कलीसिया 29 सितंबर को इन महादूतों: माइकल, गाब्रियल और रफाएल का पर्व मनाती है।
संत माइकल महादूत का अर्थ है, “जो ईश्वर के समान है।” वह सैनिकों, पुलिस अधिकारियों और अग्निशामकों का संरक्षक है। परंपरागत रूप से, माइकल को इज़राइल के लोगों के संरक्षक स्वर्गदूत के रूप में माना गया है और अब उन्हें कलीसिया के रखवाल स्वर्गदूत के रूप में आदर दिया जाता है। प्रकाशन ग्रन्थ के अनुसार, जब लूसिफर / शैतान ने ईश्वर के खिलाफ विद्रोह किया था, तब संत माइकल ने उसे हराने के लिए स्वर्ग की सेना का नेतृत्व किया था। हम पवित्र धर्मग्रन्थ और परंपराओं से सीखते हैं कि संत माइकल की चार मुख्य जिम्मेदारियां हैं: शैतान का मुकाबला करना; विश्वासियों को उनकी मृत्यु की घड़ी में स्वर्ग तक पहुँचाना; सभी ख्रीस्तीयों और कलीसिया की अगुवाई करना; और सभी नर नारियों को पृथ्वी पर जीवन से उनके अंतिम स्वर्गीय न्यायविधि के लिए आमंत्रित करना।
संत गाब्रिएल महादूत का अर्थ है, “ईश्वर मेरी शक्ति है”। गाब्रियल परमेश्वर का पवित्र संदेशवाहक है। वह नबी दानिएल के सम्मुख ईश्वर से उन्हें प्राप्त एक दर्शन की व्याख्या देने के लिए प्रकट हुआ। वह याजक जकरियस के सामने यह घोषणा करने के लिए प्रकट हुए कि उनका पुत्र, योहन बप्तिस्ता होगा, और वह प्रभु के शरीरधारण के सन्देश के समय कुँवारी मरियम को दिखाई दिया। कैथलिक परंपरा इंगित करती है कि गाब्रियल वह दूत था जो संत जोसेफ को उसके सपनों में दिखाई दिया था। ईश्वर ने गाब्रियल को हमारे कैथलिक विश्वास का सबसे महत्वपूर्ण संदेश कुँवारी मरियम तक पहुंचाने का कार्य सौंपा। इसलिए बह संदेशवाहकों, दूरसंचार कर्मचारियों और डाक कर्मियों के संरक्षक संत है।
संत रफाएल महादूत का अर्थ है, “ईश्वर चंगा करता है।” पुराने नियम में तोबित के ग्रन्थ में, रफाएल को सारा के अन्दर से दुष्टात्मा को निकालने और तोबित की दृष्टि को बहाल करने का श्रेय दिया जाता है। रफाएल के इस अद्भुत कार्य के कारण तोबित ने स्वर्ग के प्रकाश को देखने और उसकी मध्यस्थता के माध्यम से सभी अच्छी चीजें प्राप्त करने का सौभाग्य पाया। रफाएल यात्रियों, अंधों, शारीरिक बीमारियों से पीड़ितों, आनंदमय मुलाकातों, नर्सों, चिकित्सकों और अन्य चिकित्साकर्मियों का संरक्षक संत है।
स्वर्गदूत हमारी चारों ओर हैं
“स्वर्गदूतों से परिचित हो जाइए, और उन्हें अपनी प्रार्थना में बार-बार निहारिए; क्योंकि वे न दिखाई दें, फिर भी आपके साथ हैं।”– संत फ्रांसिस डी सेल्स।
क्या आपने स्वर्गदूतों द्वारा आपके जीवन के खतरों से आपकी रक्षा करने का अनुभव किया है? कभी-कभी लोग गहराई से जानते हैं कि कोई उनकी सहायता के लिए आया था। संभवत: हम में से कई लोगों ने महसूस किया है कि स्वर्गदूतों ने कई बार हमारी रक्षा की है और हमारी मदद की है।
मेरी सहायता करने वाले स्वर्गदूतों के बारे में मेरा एक ख़ास अनुभव स्पष्ट रूप से मेरी स्मृति में हमेशा के लिए अंकित है। जब मेरी माँ का कैंसर का इलाज चल रहा था, तो हमें निकटतम कैंसर उपचार केंद्र जाने के लिए 240 मील का चक्कर लगाना पड़ता था। एक दिन घर की ओर लौटते समय, जैसे ही हम एक उप राजमार्ग पर गाडी चला रहे थे, मेरी कार की ऊर्जा समाप्त हो रही थी, जबकि इंजन ने अजीब आवाज़ निकालना शुरू कर दी और विभिन्न प्रकार की आवाज़ से ऐसा लग रहा था कि कार रस्ते में ही जल्दी बंद होने वाली थी। मेरी माँ थक गई थी और बहुत बीमार महसूस कर रही थी, इसलिए मुझे पता था कि अगर हम ग्रीष्मकाल की उस तपती गर्मी में सड़क के किनारे रुक जाते हैं तो यह विनाशकारी होगा।
मैं बड़ी तीव्रता के साथ प्रार्थना करने लगी, पवित्र स्वर्गदूतों से हमारी सहायता के लिए हमारे पास आने और घर पहुँचने तक इंजन को चालू रखने के लिए मैं ने प्रार्थना की। लगभग एक या दो मील तक असंबद्ध रूप से घसीटने के बाद, अचानक गाड़ी सुचारू रूप से चलने लगी, इंजन को पूरी ताकत मिली और घर तक कार आराम से चली। हमारी सहायता हेतु हमें स्वर्गदूत भेजने के लिए हम परमेश्वर का धन्यवाद कर रहे थे। अगले दिन, मैं अपनी कार को मैकेनिक के गैरेज में ले आयी ताकि उसकी जाँच की जा सके। मैकेनिक ने जब कहा कि इंजन में किसी प्रकार की कमी नहीं दिखाई दी, तो मुझे बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ। मैं आभारी और आश्चर्यचकित महसूस कर रही थी कि हमारे अपने स्वर्गदूत मैकेनिक ने कार को ठीक कर दिया था ताकि यह पहले से भी बेहतर चल सके। “प्रभु का दूत उसके भक्तों के पास डेरा डालता, और विपत्ति से उसकी रक्षा करता है।” (स्तोत्र ग्रन्थ: 34:7)
ईश्वर ने जिस क्षण में मेरी सृष्टि की, उसी क्षण से उसने मेरे लिए एक रखवाल स्वर्गदूत की नियुक्ति की। “हर विश्वासी के पास रक्षक और चरवाहे के रूप में एक दूत खड़ा रहता है जो उसे जीवन की ओर ले चलता है” (कैथलिक धर्मशिक्षा 336)। हमारा मानव जीवन उन रखवाल दूतों की चौकसी, देखभाल और हिमायत के सुरक्षित घेरे में है। हमारे रखवाल दूत का कार्य है हमें स्वर्ग तक पहुँचाना। हम कभी नहीं जान पाएंगे कि स्वर्ग के इस तरफ, कितनी बार हम इन रखवाल स्वर्गदूतों द्वारा खतरों से बचाया गए थे या कितनी बार गंभीर पाप में गिरने से बचने में उन दूतों ने हमारी मदद की थी। संत थॉमस एक्विनास कहते हैं कि “स्वर्गदूत हम सब की भलाई के लिए मिलकर काम करते हैं।” इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कैथलिक कलीसिया ने रखवाल दूत को याद करने के लिए 2 अक्टूबर को रखवाल स्वर्गदूत के पर्व का दिन निर्धारित किया है।
अनेक संतों को अपने अपने स्वर्गदूत के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आर्क की संत जोआन (1412-1431) एक नव युवती थी जिसे संत माइकल महादूत और अन्य संतों ने सौ साल के युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ कई सैन्य लड़ाइयों में फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व करने और दूसरों को प्रेरणा देने के लिए बुलाया था। परमेश्वर ने अपनी ओर से युद्ध करने के लिए इस साहसी स्त्री को माध्यम बनाया।
19-वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कलीसिया के तत्कालीन शासक संत पापा लियो तेरहवें ने शैतान को देखा और उन्होंने संत माइकल को संबोधित निम्नलिखित प्रार्थना की रचना की, जिसे आज कई गिरजाघरों में मिस्सा बलिदान के बाद पढ़ा जाता है:
“संत माइकल महादूत, संघर्ष की घड़ी में हमारी रक्षा कर। दुष्टता और शैतान के फन्दों से तू हमारा रक्षाकवच बन जा। हम विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर दुष्टात्मा को फटकारें, और हे स्वर्गीय सेनाओं के राजकुमार, ईश्वर की शक्ति से, आत्माओं के सर्वनाश की तलाश में दुनिया में विचरते शैतान को और सभी दुष्ट आत्माओं को नरक में डाल दे। आमेन।”
जब हम परमेश्वर की स्तुति गाते हैं तो हम स्वर्गदूतों के साथ गा रहे होते हैं। हर मिस्सा बलिदान में, हम सीधे स्वर्ग में लिए जाते हैं। डॉ स्काउट हैन का कहना है कि “मिस्सा बलिदान के वह स्वर्गीय अनुष्ठान, पृथ्वी पर स्वर्ग के रूप में, एक रहस्यमय भागीदारी है। जब हम मिस्सा बलिदान में जाते हैं तो हम स्वर्ग जाते हैं, और यह हर उस मिस्सा की सच्चाई है जिसमें हम भाग लेते हैं।”
स्वर्गीय राजा, तूने पृथ्वी पर हमारी तीर्थयात्रा के दौरान
हमारी सहायता के लिए महादूत दिए हैं।
संत माइकल हमारा रक्षक है;
मैं उसे अपनी सहायता के लिए आमंत्रित करती हूं,
मेरे सभी प्रियजनों के लिए लड़,
और हमें खतरे से बचा।
संत गाब्रियल शुभसंदेश का दूत है;
मैं उससे आग्रह करती हूँ कि तेरी आवाज को स्पष्ट रूप से सुनने
और सच सीखने में संत गाब्रिएल मेरी मदद करे।
संत रफाएल चंगाई का स्वर्गदूत है;
मैं उससे कहती हूं कि वह मेरे और मेरे जानने वाले
सभी लोगों की चंगाई के निवेदन को स्वीकार करे,
हमारे स्वास्थ्य को संत रफाएल तेरे अनुग्रह के सिंहासन तक उठाए
और हमें स्वास्थ्यलाभ के भेंट से अनुग्रहीत करे।
हे प्रभु, हमारी मदद कर ताकि हम महादूतों की वास्तविकता और हमारी सेवा करने की उनकी इच्छा को पूरी तरह से समझ सकें। हे पवित्र स्वर्गदूतो, हमारे लिए प्रार्थना कर।
आमेन।
'प्रश्न: मेरे दो छोटे बच्चे हैं, और मुझे इस बात की चिंता है कि उन्हें विश्वास में कैसे मज़बूत किया जाए। हमारी दुनिया में जो साल-दर-साल अत्यधिक धर्मविहीन होती जा रही है, क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे मैं उनके भीतर कैथलिक आस्था को इतनी गहराई से स्थापित कर सकूं कि जैसे-जैसे वे बड़े होते जाएंगे वे कैथलिक बने रहेंगे?
उत्तर: यह वास्तव में बहुत सारे माता-पिता के लिए एक कठिन स्थिति है, क्योंकि हमारी संस्कृति अक्सर खुले तौर पर हमारे कैथलिक विश्वास के खिलाफ है। जब ऐसा लगता है कि हवा उलटी दिशा में ही बह रही है तो इस हवा के बीच में कैसे उन्हें कैथलिक धर्म में मज़बूत किया जाए?
चुनौती का एक हिस्सा यह है कि ईश्वर की कृपा एक रहस्य है। सौ लोग एक ही बात या प्रवचन सुन सकते हैं, और इससे कुछ लोगों का जीवन बदल जाएगा, जबकि दूसरों को यह उबाऊ और अर्थहीन प्रवचन लगेगा। मेरे अपने परिवार में, मेरा एक भाई है जो खुद को नास्तिक कहता है – एक ही परिवार से एक पुरोहित और एक नास्तिक, दोनों एक ही माता-पिता और एक ही परवरिश के साथ एक ही छत के नीचे! इसलिए, हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि अनुग्रह एक रहस्य है — लेकिन हम यह भी आश्वस्त हैं कि परमेश्वर आपके बच्चों को आपसे कहीं अधिक प्यार करता है, और वह उनके दिलों को जीतने और उन्हें उद्धार की ओर ले जाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है।
इसके साथ ही, कुछ ऐसी चीजें हैं जो माता-पिता अपने बच्चों को येशु मसीह का साक्षात्कार करने और उनके प्रति वफादार रहने में मदद करने के लिए कर सकते हैं। हालांकि मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, मैंने युवाओं के बीच सेवा कार्य करते हुए पिछले सत्रह वर्षों में हजारों बच्चों और किशोरों के साथ काम किया है, और मैंने कुछ सफल रणनीतियों को देखा है जो परिवार अपने बच्चों को वफादार रखने के लिए नियोजित करते हैं।
सबसे पहले, रविवार की मिस्सा-पूजा के साथ कोई समझौता न करें। मुझे याद है कि मेरे माता-पिता हमें छुट्टी पर मिस्सा में ले जा रहे थे, और वे हमारे किसी भी खेलकूद को मिस्सा पूजा में दखल देने की अनुमति नहीं देते थे। अपने बच्चों पर एक पिता का सामूहिक मिसाल विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। एक कहावत है कि, “यदि एक माँ मिस्सा में जाती है तो बच्चे भी मिस्सा में जाते हैं, लेकिन अगर एक पिता मिस्सा में जाता है तो पोते-पोते भी मिस्सा में जाते हैं।” जब मैं और मेरे भाई स्काउट शिविरों में घर से बाहर रहते थे, तो मेरे पिता जी हम दोनों को मिस्सा में ले जाने के लिए हमारे स्काउट कैंपआउट की और आते थे, हमें मिस्सा में ले जाते, और जब मिस्सा खत्म हो जाती है तो हमें वापस शिविर में पहुंचा देते थे! इस अनुभव ने मुझ पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला और मुझे सिखाया कि हमारे और रविवारीय मिस्सा बलिदान के बीच कोई भी दखल नहीं, हाँ बिल्कुल भी नहीं आने दिया गया। यही हमारे परिवार की असली आधारशिला थी। यदि आप कभी छुट्टी पर होते हैं, तो आप www.masstimes.org पर जा सकते हैं, जिसमें पूरी दुनिया के सभी जनसमूह की सूची है—इसलिए चाहे आप पेरिस में हों या ब्यूनस आयर्स या डिज्नी वर्ल्ड में हों, फिर भी आप रविवारीय मिस्सा पा सकते हैं!
दूसरा महत्वपूर्ण बात है कि आप एक परिवार के रूप में एक साथ प्रार्थना करें। मिस्सा पूजा के लिए जाते वक्त रास्ते में मेरा परिवार रोज़री माला की प्रार्थना करता था, और आगमन काल में पुष्प चक्र की जो परम्परा है, उस पर हमारे परिवार की विशेष भक्ति थी। चालीसा काल में हम एक साथ क्रूस यात्रा में भाग लेते थे, और मेरे माता-पिता हमें अक्सर परम प्रसाद की आराधना में ले जाते थे। हालाँकि कई बार मैं ने इन चीजों में घसीटे जाने की शिकायत भी की, फिर भी परिणाम यह निकला कि उन्होंने मुझे येशु मसीह के साथ एक व्यक्तिगत संबंध से परिचित कराया, जो आज तक मजबूत बना हुआ है।
इसके अलावा, अपने बच्चों के लिए प्रार्थना और उपवास करना कभी न भूलें—प्रतिदिन!
तीसरा, पाप को अपने घर से बाहर रखें। अगर आप अपने बच्चों को स्मार्टफोन देते हैं, तो उस पर एक फिल्टर लगाएं। सुनिश्चित करें कि वे जो टीवी शो और फिल्में देखते हैं, जो संगीत वे सुनते हैं, और जो किताबें वे पढ़ते हैं, वे स्वस्थ हैं। हालाँकि आपके बच्चे शिकायत कर सकते हैं, फिर भी माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को एक बुरी फिल्म देखने का त्वरित अस्थायी आनंद देने से अधिक, बच्चों की शाश्वत खुशी के बारे में चिंता करें!
एक और कार्य आप कर सकते हैं: आप अपने घर को एक पवित्र मंदिर बनाएं। इसमें क्रूसित प्रभु की मूर्ती, पवित्र तस्वीरों, संतों की मूर्तियों और साथ साथ कैथलिक विश्वास पर लिखित पुस्तकों से भरें। पुरानी कहावत सच है: “दृष्टि से बाहर, दिमाग से बाहर।” जितना अधिक हम शाश्वत वास्तविकताओं को ध्यान में रख सकते हैं, उतना ही अधिक हम उनके प्रति वफादार रहेंगे।
पांचवां, अपने बच्चों को एक अच्छे कैथलिक समुदाय के इर्दगिर्द रखें, दोनों, बच्चों के हमउम्र साथियों के साथ और वयस्कों के साथ भी। उन्हें अच्छे दोस्तों की ज़रूरत है जिनके मूल्य और सिद्धांत समान हैं, इसलिए संभव है तो उन्हें एक युवा समूह में शामिल होना चाहिए या कैथलिक ग्रीष्मकालीन शिविरों में हिस्सा लेना चाहिए। उन्हें वयस्क सलाहकारों की भी आवश्यकता है जो कैथलिक विश्वास से प्यार करते हैं, इसलिए अन्य अच्छे कैथलिक परिवारों से मित्रता करें। अपने पल्ली पुरोहित को भोजन के लिए आमंत्रित करें। पल्ली के अन्य सदस्यों के साथ कभी-कभार सामूहिक पार्टी का आयोजन करें। जब मैं छोटा था, मेरे पिता कभी-कभी मुझे शनिवार की सुबह अपने पुरुषों के समूह में ले जाते थे, और मैं इन पुरुषों को देखने के प्रभाव को कभी नहीं भूलूंगा – जिन पुरुषों को मैं जानता था और सम्मान करता था और पसंद करता था, जो प्लंबर और वकील और खेल प्रशिक्षक थे, प्रार्थना और गायन करते थे – और वे येशु के बारे में भावुक भी थे । इससे मुझे एहसास हुआ कि प्रभु में विश्वास करना अच्छा और सामान्य था!
एक संबंधित प्रश्न यह है कि अपने बच्चे को किस स्कूल में भेजा जाए। इसका उत्तर काफी सरल है: कौन किसे बदल रहा है? अगर आपका बच्चा स्कूल जाता है और वहां येशु मसीह का प्रकाश ले जा पाता है, तो यह एक अच्छा वातावरण है। लेकिन अगर आपका बच्चा दुनिया के मूल्यों को अपनाना शुरू कर देता है, तो शायद स्कूल बदलने का समय आ गया है। अफसोस की बात है कि कई कैथलिक स्कूल वास्तव में मसीह-केंद्रित वातावरण प्रदान नहीं करते हैं, इसलिए सावधान रहें, भले ही आप कैथलिक स्कूल चुनते हों।
अंत में, बच्चों में विश्वास की ज्योति प्रज्वलित बनाए रखने का सबसे अच्छा और सबसे प्रभावी तरीका ऐसे माता-पिता बनना है जो अपने निजी जीवन में प्रभु की तलाश कर रहे हैं! मेरे पिता ने हमेशा मेरे जन्म से पहले से ही प्रतिदिन रोजरी माला की प्रार्थना की थी, और मेरे माता-पिता दोनों घर पर अपने विश्वासी जीवन पर आराम से चर्चा करते थे। मैं उन्हें स्वयं ही विश्वास का अध्ययन करते, संतों या आध्यात्मिकता के बारे में पुस्तकें पढ़ते हुए देखता था। जैसा कि पुरानी कहावत है, “विश्वास कम सिखाया जाता है, लेकिन अधिक हासिल किया जाता है” – और हमारे कार्य शब्दों से अधिक जोर से बोलते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हम परिपूर्ण हैं, लेकिन हमें अपने दिलों में प्रभु के चेहरे की तलाश में ईमानदार होना चाहिए।
निश्चित रूप से उपरोक्त में से कोई भी बात हमें गारंटी नहीं देती है, क्योंकि हमारे बच्चों की अपनी स्वतंत्र इच्छा हैं और प्रभु का अनुसरण करना है या नहीं यह चुनने में वे सक्षम हैं। लेकिन इन कामों को करने में, हम उन्हें मज़बूत नींव दे रहे हैं, और परमेश्वर को उनका दिल जीतने का मौका दे रहे हैं। यह उसकी ही कृपा है जो बच्चों को कैथलिक बनाए रखती है—हम केवल उस अनुग्रह के वाहक हैं! यह कभी न भूलें कि जितना आप अपने बच्चों से प्रेम करते हैं, परमेश्वर असीम रूप से उनसे अधिक प्रेम करता है—और उनके उद्धार की कामना करता है!
'जब डॉक्टर कहते हैं कि तुम्हारी मृत्यु निकट है, उस भयानक क्षण में…..
मैं मृत्योपरांत प्रबंधक का कार्य करता हूँ। लोग अपनी मृत्यु के पूर्व मुझे भुगतान करते हैं, ताकि मैं उनके मरने के बाद उनकी भौतिक चीज़ों के प्रबंध की व्यवस्था करूं। एक अच्छा प्रबंधक भविष्य के लिए योजना बनाता है। मरने से पूर्व अपनी संपत्ति के लिए योजना बनाना उचित है, लेकिन जहां आप अनंत काल बिताएंगे, अपने उस आध्यात्मिक घर को व्यवस्थित करना, इसकी तैयारी करना, यह कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
बहुत से लोग यह शब्द सुनते हैं, “अपने आध्यात्मिक घर को व्यवस्थित करो। ईश्वर के साथ मेलमिलाप कर लो”। लेकिन वे हिचकिचाते हैं और उन्हें पता नहीं हैं कि यह कैसे करना है। कुछ लोग इस बात से भली-भांति जानते हैं कि उन्होंने अपना जीवन ऐसे जिया है, मानो सब कुछ सिर्फ उनके सांसारिक अस्तित्व के इर्द-गिर्द ही घूमता हो। क्योंकि वे अपने सम्पूर्ण ह्रदय, अपनी सम्पूर्ण आत्मा, और अपनी सम्पूर्ण बुद्धि से अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करने में असफल रहे हैं, वे परमेश्वर के सामने न्याय के लिए खड़े होने से डरते हैं। दूसरे लोग केवल अज्ञात से डरते हैं। कुछ दूसरे लोग इसके बारे में सोचना ही नहीं चाहते।
परमेश्वर पश्चातापी और दीन हीन ह्रदय को नहीं ठुकराता; लेकिन जब परमेश्वर की प्रेममयी भलाई और दया पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय स्वयं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, तो अपने पाप को स्वीकार करने और परमेश्वर की भलाई की घोषणा करने के लिए परमेश्वर के सामने विनम्रतापूर्वक आना कठिन होता है। बीसवीं सदी की शायद सबसे बेहतरीन आध्यात्मिक किताब ही “एंड आई” (वह और मैं) में गैब्रिएल बोसिस ने 1 जून 1939 को येशु के निम्नलिखित संदेश को रिकॉर्ड किया:
“लिख लो! मैं नहीं चाहता कि लोग मुझसे अब और डरें, लेकिन मेरे प्रेम से भरे हुए मेरे हृदय को देखें और मेरे साथ बात करें, जैसा कि वे अपने किसी प्रिय भाई के साथ करते हैं। कुछ के लिए मैं अनजान हूँ। दूसरों के लिए, एक अजनबी, एक सख्त गुरु या उन पर आरोप लगाने वाला। बहुत कम लोग मेरे पास मेरे प्रिय परिवार के सदस्य के रूप में आते हैं। और फिर भी मेरा प्यार वहाँ है, मेरा प्यार उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। इसलिए उनसे कहें कि वे आएं, प्रवेश करें, जैसे वे हैं वैसे ही प्रेम के लिए स्वयं को त्याग दें। मैं उन्हें पुनर्स्थापित करूंगा। मैं उन्हें बदल दूंगा। और वे उस आनंद को जानेंगे जिसे उन्होंने पहले कभी नहीं जाना। वह आनंद मैं ही दे सकता हूं। काश वे आते! उन्हें आने के लिए कहो।”
“दाखबारी के मजदूर” का दृष्टांत (मत्ती 20) परमेश्वर के दयालु, उदार, प्रेमपूर्ण स्वभाव को प्रकट करता है – हमने जितना “कमाया”, उस के अनुसार नहीं, बल्कि परमेश्वर हमारी आवश्यकता के अनुसार आशीष देता है। ग्यारहवें घंटे आने वाले मजदूरों ने केवल एक घंटे काम किया, फिर भी उन्हें पूरे दिन का वेतन मिला।
कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें परमेश्वर केवल एक दिन के लिए माँगता है, और उनका करुणामय हृदय उन्हें पूरे जीवन पर लागू करता है। परमेश्वर ने आपको जीवन दिया। यह एक मुफ्त उपहार था। फिर भी, उसे आपकी सारी कृतघ्नता का पूर्वाभास था, जब पतरस ने शपथ ली थी कि प्रभु मैं आपका कभी इन्कार नहीं करूंगा, लेकिन तब प्रभु ने पतरस के इनकार करने की भविष्यवाणी की। यहूदा इस्करियोती के विपरीत, पतरस ने क्षमा मांगी, येशु के लिए अपने प्रेम की पुष्टि की, और एक महान संत बन गया। मूसा, दाऊद और पौलुस हत्यारे थे, लेकिन वे भी महान संत बन गए, क्योंकि उन्होंने पश्चातापी ह्रदय से येशु पर भरोसा किया और विनम्रतापूर्वक उससे क्षमा मांगी।
परमेश्वर हमेशा आपके साथ हैं। वह बेसब्री से आपका इंतजार कर रहा है। उड़ाऊ पुत्र के पिता की तरह, वह आपको उत्तम वस्त्र पहनाना चाहता है, आपकी अंगुलि में अँगूठी और पांवों में जूतों को पहनाना चाहता है। वह एक बड़े प्रीतिभोज की दावत देना चाहता है क्योंकि उसका बच्चा मर गया था, और फिर से जीवित हो गया है; वह खो गया था, और पाया गया है। परमेश्वर के पास आपके लिए इतना प्यार है कि वह आपकी धीमी सी पुकार को भी सुन लेता है। अपनी बात उसे सुनाने से डरो मत। अपना मुँह उसके कान में लगाओ। वह सुन रहा है। जब आप छोटे थे, तो आप चाहते थे कि सड़क पार करते समय कोई आपका हाथ पकड़ ले। येशु को अपना हाथ थामने के लिए कहें, क्योंकि आप हमेशा छोटे होते हैं। येशु को सब कुछ दे दो। पूरे रास्ते आगे बढ़ जाओ। परमेश्वर आपकी कमियों के साथ-साथ आपके अच्छे बनने के प्रयासों को भी स्वीकार कर लेता है। आप जैसे हैं वैसे ही खुद को परमेश्वर को दें। वह मानव स्वभाव के बारे में सब कुछ जानता है। वह मदद करने और सब कुछ को बहाल करने के लिए आया था। येशु वह पवित्र रोटी है। आप उस पवित्र रोटी के लिए मंजूषा है।
जब आपको उपचार की आवश्यकता होती है, तो आप अपने आप को एक चिकित्सक के हाथों में सौंप देते हैं। खामोश और स्थिर होकर, अपनी आत्मा को येशु के हाथों में सौंप दो। वह आपको ठीक करेगा। आपका प्यार, और प्यार करने का आपका इरादा, आपके कार्यों को और उंचाई देगा। अपना जीवन वापस परमेश्वर को दे दो। उसे अपने कष्ट और अपना दुख दो। उनसे आप कहें कि वे आपको पवित्र आत्मा में सुला दें, क्योंकि आपकी अंतिम सचेत सांस प्रेम में होनी चाहिए।
अपनी डायरी में, सेंट फॉस्टिना ने येशु से दिव्य करुणा की विनती के बारे में यह संदेश दर्ज किया:
मेरी बेटी, आत्माओं को प्रोत्साहित करो कि जो विनती मैंने तुम्हें दी है, वे उसे बोलें। वे उस विनती बोलकर मुझसे जो कुछ भी मांगते हैं, वे सब प्रदान करने में मुझे प्रसन्नता होती है। जब कठोर पापी इस विनती को बोलते हैं, तब मैं उनके मन को शांति से भर दूंगा, और उनकी मृत्यु की घड़ी आनंदमय होगी। …. लिख लो कि जब मरने वाले की उपस्थिति में यह विनती कही जाती है, तब मैं अपने पिता और मरने वाले के बीच न्यायी न्यायाधीश के रूप में नहीं, बल्कि दयालु उद्धारकर्ता के रूप में खड़ा रहूंगा। ”(डायरी, 1541)
यदि आप जीवन की आखिरी घड़ी के निकट है, तो यह आपके परीक्षण की घड़ी है। डरिये नहीं। जैसा जैसे आप विश्वास करते हैं, वैसा ही आपको कृपा प्राप्त होगी। ईश्वर के साथ शांति और मेलमिलाप करें। उस पर भरोसा करें। उसे एक विनम्र और पश्चातापी हृदय प्रदान करें। पापस्वीकार करने जाएं। अंतिम संस्कार देने के लिए कहें। सुखमय मृत्यु के संरक्षक संत जोसफ से कहें कि वह आपको ईश्वर से आमने-सामने मिलने के लिए तैयार करे। दिव्य करुणा की विनती का पाठ करें। स्तोत्र संख्या 51 का पाठ करें। यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो मृत्यु के निकट है, तो उनके साथ दिव्य करुणा की विनती की प्रार्थना करें। उन्हें एक अच्छा पाप स्वीकार करने और अंतिम संस्कार प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें।
डरिये मत।
येशु पर भरोसा रखें।
'उनके पास ज्यादा समय नहीं बचा था, लेकिन फादर जॉन हिल्टन ने प्रभि की प्रतिज्ञाओं पर भरोसा करते हुए जीवन जिया, और इस तरह लाखों लोगों को प्रेरित करने और जीवन बदलने में कामयाब हुए।
मेरी जीवन यात्रा बहुत आसान नहीं रही है, लेकिन जिस क्षण से मैंने येशु का अनुगमन करने का फैसला किया, उसके बाद मेरा जीवन कभी भी पहले जैसा नहीं रहा है। मैं अपने सामने प्रभु ख्रीस्त का क्रूस है और मेरे पीछे वह दुनिया है जिसे मैं ने त्याग दिया है, इसलिए मैं दृढ़ता से कह सकता हूं, “पीछे हटने का नाम नहीं लूंगा …”
मेंटोन के बीड्स कॉलेज में अपने स्कूली दिनों के दौरान, मुझे अन्दर से एक मजबूत बुलाहट महसूस हुई। ब्रदर ओवेन जैसे महान गुरुओं ने येशु के प्रति मेरे ह्रदय में प्यार के बीज को अंकुरित और पल्लवित किया। 17 साल की छोटी सी उम्र में, मैं सेक्रेड हार्ट मिशनरीज धर्मं समाज में शामिल हो गया। कैनबरा विश्वविद्यालय में अध्ययन और मेलबर्न में ईशशास्त्र की डिग्री सहित 10 वर्षों के अध्ययन के बाद, मैं अंततः पुरोहित के रूप में अभिषिक्त हुआ।
भाग्य के साथ एक मुलाक़ात
मेरी पहली नियुक्ति पापुआ न्यू गिनी में हुई थी, जहां मुझे साधारण लोगों के बीच रहने का एक व्यावहारिक आधार मिला जिसकी वजह से वर्तमान क्षण में जीने की एक महान भावना का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। बाद में, मुझे धार्मिक विधि का अध्ययन करने के लिए पेरिस भेजा गया। तनाव और सिरदर्द के कारण रोम में डॉक्टरेट की पढ़ाई बाधित हुई और मैं इसे पूरा नहीं कर पाया। और जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि मेरी बुलाहट सेमनरी में पढ़ाने की नहीं है। ऑस्ट्रेलिया वापस आने पर, मैं पल्ली सेवकाई करने लगा और देश भर के कई अलग-अलग राज्यों में 16 पल्लियों का अनुभव मीठा अनुभव पाया। विवाह और पारिवारिक जीवन को पोषित और पुनर्जीवित करनेवाले दो शानदार अभियानों के साथ भागीदारी करने से मेरे अन्दर बड़ी ऊर्जा और स्फूर्ति आई: वे हैं- टीम्स ऑफ अवर लेडी और मैरिज एनकाउंटर।
अपने सेवा कार्य में मैं ने आत्म संतुष्टि का अनुभव किया। जीवन बहुत अच्छा चल रहा था। लेकिन 22 जुलाई 2015 को अचानक सब कुछ बदल गया। यह पूरी तरह से अचानक नहीं था। पिछले छह महीनों से, मैंने कई मौकों पर अपने पेशाब में खून पाया था। लेकिन अब मैं मूत्र विसर्जन कर भी नहीं पा रहा था। आधी रात में, मैं खुद अस्पताल चला गया। कई परीक्षणों के बाद, मुझे एक चौंकाने वाली खबर मिली। मुझे किडनी का कैंसर हो गया है जो अब तक चौथे चरण में पहुंच चुका था। मैं सदमे की स्थिति में था। मैं सामान्य लोगों से कटा हुआ महसूस कर रहा था। डॉक्टर ने मुझे सूचित किया था कि दवा के सेवन करने पर भी, मेरे जीने की उम्मीद केवल साढ़े तीन साल तक थी। मैं अपनी बहन के छोटे-छोटे बच्चों के बारे में सोचता रहा कि मैं इन आकर्षक बच्चों को बढ़ते हुए भविष्य में नहीं देख पाऊँगा।
मुझे प्रातःकाल में ध्यान-मनन करना अच्छा लगता था, लेकिन जब से यह संकट आया, तब से मुझे ध्यान और मनन चिंतन के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। कुछ दिन बाद, मुझे ध्यान करने का एक आसान तरीका मिल गया। ईश्वर की उपस्थिति के सामने आराम करते हुए, विख्यात कवि डांते से प्रेरणा लेकर मैं ने एक मंत्र दोहराया, “तेरी इच्छा ही मेरी शांति है।” ध्यान-मनन के इस सरल रूप ने मुझे ईश्वर में अपनी शांति और विश्वास बहाल करने में सक्षम बनाया। लेकिन जैसा कि मैं अपने सामान्य दिनचर्या को करने लगा, मुझे यह और अधिक कठिन लगा। ‘मैं ज्यादा दिन तक नहीं रहूंगा …’, इस तरह के विचारों से मैं अक्सर विचलित हो जाता था।
सबसे अच्छी सलाह
तीन महीने के उपचार के बाद, दवा ठीक से काम कर रही है या नहीं, यह देखने के लिए जांच की गयी। परिणाम सकारात्मक थे। अधिकांश हिस्सों में कैंसर की उल्लेखनीय कमी आई थी, और मुझे सलाह दी गई थी कि क्षतिग्रस्त गुर्दे को निकालने के लिए एक सर्जन से परामर्श कर लूं। मुझे एक राहत की अनुभूति हुई, क्योंकि मेरे दिमाग में बराबर यह सवाल उठता था कि क्या दवा वास्तव में काम कर रही है या नहीं। तो यह वाकई बहुत अच्छी खबर थी। ऑपरेशन के बाद, मैं स्वस्थ हो गया और एक पल्ली पुरोहित के रूप में लौट आया।
इस बार, मैं सुसमाचार प्रचार के प्रति अधिक ऊर्जावान महसूस कर रहा था। न जाने कब तक मैं इस काम को कर पाऊंगा, ऐसा सोचकर मैंने अपना सम्पूर्ण ह्रदय उन सारी बातों में लगा दिया जिन्हें मैं ने शुरू किया था। हर छह महीने में, मेरा स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता था। शुरुआत में परिणाम अच्छे रहे, लेकिन कुछ समय बाद, मैं जो दवा ले रहा था वह कम असर करने लगी। मेरे फेफड़ों में और मेरी पीठ में कैंसर बढ़ने लगा, जिससे मुझे सियाटिका हो गई और मुझे चक्कर आने लगे। कीमोथेरेपी से मुझे गुजरना पड़ा और एक नया इम्यूनोथेरेपी उपचार शुरू करना पड़ा। यह निराशाजनक था, लेकिन आश्चर्य की बात नहीं थी। कैंसर से पीड़ित कोई भी व्यक्ति जानता है कि हालात बदल जाती हैं। आप एक पल ठीक हैं तो अगले ही पल आपदा आपको जकड ले सकती है।
मेरी एक खूबसूरत मित्र कई सालों से ऑन्कोलॉजी विभाग में नर्स रही है। उसी ने मुझे सबसे अच्छी सलाह दी: जितना हो सके अपने जीवन को सामान्य रूप से जीते रहें। यदि आप कॉफी का आनंद लेते हैं, तो कॉफी लें, या दोस्तों के साथ भोजन कर लें। सामान्य चीजें करते रहें।
मुझे पुरोहित का कार्य करना पसंद था और हमारी पल्ली में हो रही अद्भुत बातें मुझे उत्साहित करती थीं। हालांकि पहले की तुलना में अब जीवन यात्रा आसान नहीं थी, फिर भी मैंने जो भी किया मैं उसे पसंद करता था। मैं हमेशा मिस्सा बलिदान को अर्पित करना और संस्कारों का अनुष्ठान करना पसंद करता था। इन बातों को मैंने अपने जीवन में बहुत मूल्य दे रखा है और मैं इस महान कृपा के लिए ईश्वर का हमेशा आभारी हूं।
क्षितिज से परे
मेरा दृढ़ विश्वास था कि गिरजाघर में आने वाले लोगों की घटती संख्या की समस्या को दूर करने के लिए हमें सक्रिय होकर अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। अपनी पल्ली में हमने रविवार की आराधना में और अधिक लोगों की भागीदारी हो इसके लिए प्रयास किया। चूँकि मैं कलीसिया की मननशील पक्ष से हमेशा प्यार करता आया था, इसलिए मैं अपनी पल्ली में थोड़ा सा मठवासी भावना लाकर उसे प्रार्थना और शांति से भरपूर मरुस्थल का उद्यान बनाना चाहता था। इसलिए प्रत्येक सोमवार की रात, हमने आनंददायक मननशील संगीत के साथ, मोमबत्ती की रोशनी में मिस्सा बलिदान का आयोजन किया। प्रवचन देने के बजाय, मैंने मनन चिंतन का एक पाठ पढ़ा।
मैट रेडमैन द्वारा गाया गया ग्रैमी विजेता एकल गीत “10,000 कारण” (ब्लेस दि लार्ड) ने मुझे गहराई से स्पर्श किया है। जब भी मैं गीत का तीसरा छंद गाता, भावुक होकर मेरा दम घुट जाता था।
और उस दिन
जब मेरी ताकत विफल हो रही है
अंत निकट आता है
और मेरा समय आ गया है
फिर भी मेरी आत्मा
तेरी स्तुति गाएगी
अंतहीन दस हजार साल
और फिर
सदा सर्वदा के लिए
मुझे यह गीत बहुत ही हृदयस्पर्शी लगा, क्योंकि हम अंततः जो करने की कोशिश कर रहे हैं वह परमेश्वर की स्तुति और येशु के साथ हमारे संबंध को मज़बूत करना है। बीमारी के बावजूद, एक पुरोहित के रूप में यह मेरे जीवन का सबसे रोमांचक समय था। इस स्थिति ने मुझे येशु द्वारा कहे गए शब्दों की याद दिला दी, “मैं इसलिए आया हूं कि वे जीवन प्राप्त करें, और परिपूर्ण जीवन प्राप्त करें।” योहन 10:10
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“मेरे पति कैथलिक नहीं हैं और कैथलिक विश्वास के बारे में अभी अभी सीखना शुरू किया है; संयोग से उनकी मुलाक़ात फादर जॉन से हुई। बाद में उन्होंने कहा “मैं येशु नामक व्यक्ति के बारे में जो जानता हूं,… फादर जॉन उसके जैसे ही लगते हैं। यह जानना कि आप मरने वाले हैं और इसके बावजूद आप अपने आप को अधिक से अधिक दूसरों को देना जारी रखते हैं, भले ही आपके आस-पास के लोगों को यह एहसास न हो कि ये आपके अंतिम दिन हैं… यह वाकई अद्भुत है”
- कैटिलिन मैकडॉनेल
फादर जॉन जीवन में अपने लक्ष्य को लेकर बिलकुल स्पष्ट थे। वह एक सर्वगुण संपन्न अगुवा थे और उन्होंने येशु को इस दुनिया में वास्तविक बनाया। मैं अक्सर सोचता था कि अगर वे अपने विश्वास और मूल्यों के मामले में मजबूत नहीं होते तो क्या होता। यह उनके लिए भले ही काफी चुनौतीपूर्ण रहा हो लेकिन हर रविवार जब हम उनसे मिले तो उनमें वही ऊर्जा थी। उनके आस-पास या उनके साथ, या उन पर जो कुछ भी हुआ, लेकिन उनके अन्दर और उनकी चारों तरफ शांति ही विराजती थी। यह हम सब के लिए एक अविश्वसनीय उपहार था।
- डेनिस होइबर्ग
हमें बार बार उन्हें याद दिलाना पड़ता था कि उनकी सीमाएँ थीं, लेकिन इस के बावजूद उनका रफ्तार कभी कम नहीं हुआ। वे एक प्रेरणा थे, क्योंकि यहां एक व्यक्ति है जिसे बताया गया है कि आपके पास सीमित समय है। फिर भी वे अपनी बीमारी से उबरने और उसके बारे में सोचने के बजाय अपने आप को दूसरों को देते रहे।
'तलाश का हर पल एक साक्षात्कार का पल है। जीवन-परिवर्त्तन के उन पलों को पहचानिए।
संत पापा फ्रांसिस अपने परिपत्र का शुभारम्भ इस पंक्ति से शुरू करते हैं: “सुसमाचार का आनंद उन सभी लोगों के दिल और जीवन को भर देता है जिनका येशु से साक्षात्कार होता है।“ इसके बाद वे बड़ी हिम्मत के साथ आमंत्रण देते हैं: “सभी ख्रीस्तीय, हर जगह, इसी पल, येशु ख्रीस्त के साथ साक्षात्कार के लिए बुलाये गए हैं, नहीं तो उनके साथ साक्षात्कार के लिए येशु को अनुमति देने के लिए वे कम से कम अपने दिल के दरवाजा खुला रखें ….. ।“
“साक्षात्कार” शब्द संत पापा फ्रांसिस के लिए आत्मिक जीवन की एक कुंजी है, और यह शब्द मेरी आनेवाली आत्मिक साधना के मूल विषय के रूप में मुझे प्रकट हुआ।
भटकाव
हमारे समाज में वास्तविक साक्षात्कार को पोषित नहीं किया जाता है। टी. वी. स्क्रीन पर हो रही गतिविधियों में हम डूब जाते हैं, निरर्थक गपशप और कार्यकलाप आपसी साक्षात्कार में बाधा बनते हैं। हम दूसरे व्यक्ति के अन्दर की बातों को समझने के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं, बल्कि अक्सर उसके बाहरी बातों के आधार पर उसके बारे में हम फैसला लेते हैं।
मेरे पांच दिवसीय आत्मिक साधना के दौरान मैं ने प्रतिदिन के मनन-चिंतन के लिए आनंद के पांच रहस्यों में से रोज़ एक रहस्य को चुना। प्रात:काल के शारीरिक कसरत के दौरान मैं ने हर रहस्य पर मनन-चिंतन किया और उस रहस्य को एक नया नाम दिया:
– मरियम के साथ महादूत गाब्रियल का साक्षात्कार।
– मरियम का एलिज़ाबेथ, येशु और योहन के साथ साक्षात्कार।
– मरियम और जोसफ के साथ येशु का पहला आमने-सामने साक्षात्कार।
– जब मंदिर में येशु लाये गए, तब शिमोन, फिर अन्ना के साथ साक्षात्कार।
– येशु को खोने और खोजने के बाद मरियम और जोसफ का साक्षात्कार।
जब मेरा मन भटक जाता, तो मैं अपना ध्यान वापस मुख्य साक्षात्कार की ओर केन्द्रित करती।
मेरी आत्मा के भीतर
कभी कभार, मैं जब भजन संहिता और दनिंक प्राथना बोलती हूँ और पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाती हूँ, तब मैं इसे पिता के साथ, येशु के साथ, पवित्र आत्मा के साथ, मरियम के साथ, या संतों के साथ एक साक्षात्कार के रूप में फिर से स्थापित करने की कोशिश करती हूं। कभी-कभी, एक मजबूत भटकाव मुझे गुमराह कर दूर ले जाता है। उदाहरण के लिए, यदि मैं किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचती हूँ जिसने मुझे चोट पहुँचाई है, और अनजाने में ही उस आक्रोश को अपने अंदर प्रवेश करने देती हूँ, तो मुझे प्रभु की चंगाई का साक्षात्कार पाने की आवश्यकता है। अक्सर जो बात हमें किसी और के बारे में परेशान करती है, वही बात वास्तव में हमारे अपने बारे में ही कुछ दर्शाती है। इसलिए, हमें खुद से पूछना चाहिए: “इस व्यक्ति के बारे में मेरा गुस्सा या नाराजगी मुझे अपने बारे में क्या बताती है?”
येशु के साथ दोस्ती निभाएं
स्वयं को शुद्ध करने, व्यवस्थित और संगठित करने के मेरे सतत् प्रयासों में, अपने से यह सवाल पूछने से मुझे लाभ मिला है: “क्या यह पुस्तक, कागज, सी.डी., फोटो, वास्तव में बहुत उपयोगी है, या क्या मैं इस का सही उपयोग किए बिना इसे अपने साथ निरंतर ले चली हूँ? अगर मेरा इस के साथ साक्षात्कार नहीं हुआ है, तो क्या मैं इसे छोड़ सकती हूं, इसे बाहर फ़ेंक सकती हूं, या इसका कुछ बेहतर उपयोग कर सकती हूं?”
प्रतिदिन मेरी प्रार्थना है कि वास्तव में येशु से गहराई से मुलाकात की जाए, फिर बाहर जाकर उन लोगों से मुलाकात की जाए जिनमें वह वास्तव में मौजूद हैं। जैसा कि संत पापा फ्राँसिस कहते हैं: हमें “मसीह की मित्रता और उनके संदेश का आनंद लेने के निरंतर नए अनुभव के साथ हमें स्वयं को संपोषित करना चाहिए, …. हमें व्यक्तिगत अनुभव के द्वारा आश्वस्त होने की ज़रुरत है कि येशु को जानना और उसे नहीं जानना दोनों में बहुत अंतर है …..।
हम प्रार्थना करते हैं कि धन्य कुँवारी मरियम हमारी मदद करेगी जैसा उसने किया: “हे माँ मरियम, सुसमाचार की घोषणा करने के लिए हमें अपनी और से ‘हां’ कहने में, और दूसरों की सेवा के द्वारा ईश्वर का साक्षात्कार करने में हमारी मदद कर!”
'जब दुख का पहाड़ आप पर गिरता है…
जैसे ही मेरी बेटी सोने के लिए बिस्तर पर लेटी थी, मैंने उसके मासूम चेहरे को देखा, और मेरा दिल पिघल गया। मैं उसे अपने करीब लायी और उसके माथे को चूमा, और उसी समय मैंने अचानक दिल का दर्द महसूस किया और उसके लिए मैं खूब रोयी। अपने सात वर्षों के छोटे जीवन में, वह कई अस्पतालों में रही, उसने कई स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना किया। हम जिस आघात से गुज़रे, वह मेरे दिमाग में ताज़ा था, खासकर उस दिन जब उसकी जांच रिपोर्ट में उसे स्थायी मस्तिष्क क्षति का गंभीर रोग होने की खबर हमें मिली। उसका जीवन किस तरह आनंद विहीन होगा, ऐसा सोचते हुए मेरा दिल टूट गया। मैं सोचती थी कि मैं भावनात्मक रूप से बहुत मजबूत थी, लेकिन मैं मज़बूत नहीं थी।
स्विस-अमेरिकी मनोचिकित्सक, एलिजाबेथ कुबलर-रॉस के अनुसार, दुःख के 5 चरण हैं: इनकार, क्रोध, सौदेबाजी, अवसाद और स्वीकृति।
दुःख के प्रति हमारी पहली प्रतिक्रिया इनकार है। जो घटना हुई, उसके सदमे में, हम नई वास्तविकता को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं।
दूसरा चरण क्रोध है। हम इस असहनीय स्थिति और इसके कारण होनेवाली किसी भी बात पर क्रोधित हो जाते हैं, यहाँ तक कि अपने आस-पास के लोगों के प्रति, या ईश्वर के प्रति बेवजह गुस्सा करते हैं।
जैसे ही हम अपनी नई वास्तविकता से बचना चाहते हैं, हम तीसरे चरण में प्रवेश करते हैं: वह है सौदेबाजी। उदाहरण के लिए, हम संकट और उससे संबंधित दर्द को टालने के लिए ईश्वर के साथ एक गुप्त सौदा करने का प्रयास कर सकते हैं।
चौथा चरण अवसाद है। जैसे-जैसे वास्तविकता धीरे-धीरे सामने आती है, हम अक्सर अपने लिए खेद महसूस करते हैं, सोचते हैं कि हमारे साथ ये सब क्यों होता है। अवसाद की भावना अक्सर स्वयं पर दया और पीड़ित की तरह महसूस करने में होती है।
पांचवें चरण में स्वीकृति आती है, क्योंकि हम दुःख के कारण के बारे में जानते हैं और भविष्य पर ध्यान देना शुरू करते हैं।
अप्रत्याशित आवर्तन
एक बार जब हम अपने दुःख से निपटने के लिए स्वीकृति की अवस्था में पहुँच जाते हैं, तो हम पुन: ऊर्जा प्राप्त करने की स्थिति की ओर बढ़ते हैं। इस चरण में हम अपने आप पर, अपनी भावनाओं पर और अपनी हालात पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं और यह सोचने लगते हैं कि आगे बढ़ने के लिए हमें क्या क्या करना चाहिए।
मेरी बेटी के स्वास्थ्य की हालात में, मैंने इन चारों चरणों से होकर आगे बढ़ी थी और मुझे लगा कि मैं पुन: ऊर्जा पाने की स्थिति में थी: अपने जीवन के लिए ईश्वर की योजना में निरंतर विश्वास और आशा बनाए रखती हुई, प्रत्येक दिन के अनुभवों से प्रेरणा पाती हुई मैं अपनी भावुकताओं को अनुशासन में बनाए रखने में सक्षम हो रही थी। लेकिन हाल ही में मैंने दु:ख और निराशा के अचानक, गंभीर आवर्तन का अनुभव किया। मैं पूरी तरह टूटी और बिखरी हुई महसूस कर रही थी ।
मेरा दिल बेटी के लिए इतना दुखी था कि मैं बस चीखना चाहती थी; “हे ईश्वर, मेरी बच्ची को क्यों ये सब भुगतना पड़ता है? उसे इतना कठिन जीवन क्यों जीना पड़ रहा है? वह भयंकर पीड़ा भोग रही है क्या यह उचित है? आजीवन दूसरों पर निर्भर रहकर उसे अपना जीवन क्यों बिताना पड़ता है? उसके जीवन में उसे इतना संघर्ष क्यों करना पड़ रहा है?” जैसे ही मैंने उसे अपने पास रखा, मैंने अपने आँसू बहने दिए। एक बार फिर, मैं उसके जीवन की कठोर वास्तविकताओं को स्वीकार नहीं कर सकी और मैं सिसकने लगी। रात के वक्त ऐसा लग रहा था कि मैं पुन: इनकार के चरण में पूरी तरह से वापस आ गयी हूँ।
पूरी तस्वीर
हालाँकि, दुःख के इस अचानक दौर में, क्रूस पर टंगे येशु को और उस पीड़ा को, जिसे उसने सहन किया था, याद करते हुए मैंने उसके लिए प्रार्थना की। क्या यह उचित था कि परमेश्वर ने मेरे पापों के लिए अपने पुत्र को मरने के लिए भेजा? नहीं! यह उचित नहीं था कि येशु ने मेरे लिए अपना निर्दोष लहू बहाया। यह उचित नहीं था कि उनका बेरहमी से मज़ाक उड़ाया गया, उनके कपड़े उतारे गए, उन पर कोड़े मारे गए, वे पीटे गए और उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया। परम पिता परमेश्वर ने क्रूस पर निंदा और क्रूस मरण के दर्दनाक दृश्य देखकर उसे सहा, सिर्फ मेरे प्यार के लिए। जब मैं अपनी बच्ची को पीड़ित होती देखती हूं तो मेरा दिल दुखता है, उसी तरह पिता का दिल दुखी हो गया येशु की पीड़ा को देखकर। उसने इसे सहन किया ताकि मुझे स्वीकार किया जा सके, क्षमा किया जा सके और प्यार किया जा सके।
ईश्वर वास्तव में मेरे दर्द का ख्याल करता है और मैं कैसा महसूस करता हूं इसे वह समझता है। इस अंतर्दृष्टि ने जेनी के लिए प्रभु की जो भी सर्वोच्च योजनायेन हैं, उन सारी योजनाओं को प्रभु के सम्मुख समर्पण करने में उसने मुझे सक्षम बनाया, यह जानते हुए कि वह उससे भी अधिक मुझसे प्यार करता है। हालाँकि मेरे पास सभी उत्तर नहीं हैं, और मैं केवल आधी तस्वीर देख सकती हूँ, लेकिन जो उसके जीवन की पूरी तस्वीर देखता है, मैं उसे जानती हूँ। मुझे बस उस पर अपना विश्वास और भरोसा रखने की जरूरत है।
प्रभु के प्रेम से सांत्वना पाकर आखिरकार मैं सो गयी। मैं नई आशा के साथ जाग उठी। वह मुझे प्रत्येक दिन के लिए पर्याप्त अनुग्रह देता है। मैं समय-समय पर भावनात्मक रूप से टूट जाती हूं, लेकिन ईश्वर की दया मुझे आगे बढ़ा देती है। मुझे आशा देने के लिए वह मेरे साथ है, और मुझे विश्वास है कि मैं हमेशा उसकी महिमा के प्रकाश में अपने दर्द और पीड़ा को देखकर पुन: ऊर्जा प्राप्त कर लूंगी!
मैं प्रार्थना करती हूं कि आप भी अपने जीवन के सबसे दर्दनाक और अनिश्चितता के क्षणों में प्रभु परमेश्वर की ताकत और आश्वासन पाएं, ताकि आप उसकी गहरी और स्थायी आशा का अनुभव कर सकें। जब आप कमजोर हों, तो वह आपके बोझ को उठाने में आपकी मदद करे और अपनी महिमा के प्रकाश में आपके दुखों को देखे। जब भी आपके विचारों में “क्यों प्रभु मुझे….?” ऐसा प्रश्न प्रवेश करता है, तो प्रभु आपके हृदय को अपनी प्रेममयी दया के लिए खोल दे, क्योंकि वह आपके साथ बड़ा भार लेकर चलता है।
“सांझ को भले ही रोना पड़े, भोर में आनंद-ही-आनन्द है।” स्तोत्र ग्रन्थ 30:6
'क्या बड़े सपने देखने में कोई अदृश्य खतरा है? यदि फिलहाल के मूक, सूक्ष्म और वीर कर्तव्य हमसे चूक नहीं जाते हैं, तो कोई खतरा नहीं।
अक्सर हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा उसके बहुत ही सामान्य स्वभाव के कारण हमारी नज़रों से ओझल रहती है। मुझे इस सच्चाई का अनुभव कुछ हफ्ते पहले फिर से हुआ।
पिछले साल जब मेरी बुजुर्ग माँ मेरे साथ रहने लगी, तब उनकी प्राथमिक ज़रूरतों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी मैं संभालने लगी, तब यह स्पष्ट हो गया कि माँ अब अपने बलबूते जीने में असमर्थ हैं। वह न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि भावुकता के मामले में भी नाजुक है। उसकी दिनचर्या में कोई भी बदलाव उसे भावनात्मक रूप से परेशान कर सकता है।
मेरे साथ आकर रहने केलिए उन्हें अपने राज्य से दूसरे राज्य आकर रहना पडा, इसलिए उन्हें मेरे घर के नए माहौल को अपनाने में कुछ हफ्ते लग गए। कुछ महीनों बाद परिस्थितियां ऐसी बदल गई की हमें एक नए घर में स्थानांतरित होना पड़ा। माँ को यह बताने में मुझे बड़ा डर सताने लगा, क्योंकि मैं जानती थी कि इससे माँ को फिर से नए स्थान से उखाड़े जाने की चिंता और दुविधा होगी। मैं माँ को यह सूचना देने के कार्य को टालती रही, जितने दिन मैं उसे टाल सकती थी, लेकिन अन्ततोगत्वा मुझे उन्हें बताना ही पड़ा।
लेकिन हमारी उम्मीद से बिलकुल उलटा, माँ ने यह खबर पाकर बड़ा ऊधम मचाया। वह रोने लगी, डरने लगी, और बहुत ज्यादा चिंतित रहने लगी। उन्हें दूसरी चीज़ों पर मन लगाने के लिए और खुश रखने केलिए मैं ने अपने पुराने सारे हथकंडे अपनाए, लेकिन कोई तरकीब काम नहीं आया। घर बदलने के कुछ दिन पूर्व, मैं माँ को नए घर दिखाने ले गई। उन्हें वह घर पसंद आया, फिर भी बदलाव को लेकर चिंतित रहने लगी।
नयी जगह देखकर लौटने के बाद मुझे लगा कि माँ की इच्छा के अनुरूप उस दिन के बाकी घंटे भी मुझे उन्हीं के साथ बिताना होगा। वह टी.वी. में फिल्म देखना पसंद करती है, लेकिन फिल्म के मामले में हम दोनों की रूचि अलग अलग है, इसलिए अक्सर मैं किसी एक चैनल को चालू करके छोड़ देती हूँ ताकि माँ अकेले बैठकर उसे देख लें। लेकिन इस बार मैं जान बूझकर उनके साथ फिल्म देखने की इच्छा लेकर उनके बगल में बैठ गई, यह जानते हुए कि इससे इस अफरातफरी के बीच में उन्हें कुछ तसल्ली मिलेगी।
फिल्म तो मुझे बेकार और उबाऊ लगी, लेकिन मुझे पता था कि माँ के बगल में मेरी शारीरिक रूप से उपस्थिति के कारण माँ को हिम्मत और भरोसा प्राप्त हो रहे थे। मुझे बहुत सारे अन्य कार्य निपटाने थे और मैं उन सारे कामों को कर लेती, लेकिन मैं अपने दिल में महसूस कर रही थी कि मेरी माँ के बगल में बैठना ही मेरे लिए इस समय ईश्वर की योजना थी। इसलिए मैं ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करने और प्रार्थाना के द्वारा इसे ईश्वर को अर्पित करने का प्रयास करने लगी। मैं ने उन सारे लोगों के लिए प्रार्थना की, जो अपने जीवन में ईश्वर की योजना को ढूँढने के लिए संघर्ष कर रहे थे, जो अकेलापन या तिरस्कार का अनुभव कर रहे थे, जिन्होंने ईश्वर के प्रेम को अब तक अनुभव नहीं किया था, हमारी दुनिया में दुःख पीड़ा भोगने वाले, ऐसे उन तमाम लोगों के लिए भी मैं प्रार्थना करने लगी। जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ रही थी, बेसब्र और चिंतित होने के बजाय मैं शांत और प्रसन्न थी, क्योंकि मुझे पता था कि फिलवक्त मेरे लिए ईश्वर की योजना के ह्रदय में मैं थी।
बाद में इस बात पर मनन करते हुए मैं ने अनुभव किया कि हमारे आसपास के बहुत सारे मामूली कार्यों की आकृति में इश्वर की इच्छा छिपी हुई है। मैडोना हाउस की संस्थापिका और प्रभु की दासी धन्य कैथरीन डोहर्टी ने इसे “फिलहाल का कर्त्तव्य” नाम दिया है। उन्होंने कहा: “मेरे सम्पूर्ण बचपन और जवानी की आरंभ की दशा में मैं इस बात से प्रेरित थी कि फिलहाल का कर्त्तव्य ही मेरा कर्त्तव्य है जिसे ईश्वर ने मुझे दिया है। बाद में भी मैं यही विशवास करती थी कि ईश्वर द्वारा दिया हुआ ‘फिलहाल का कर्त्तव्य’ ही मेरा कर्त्तव्य है। फिलहाल के कर्त्तव्य के द्वारा ईश्वर हमसे बात करता है। चूँकि फिलवक्त का यह कर्त्तव्य ही परमपिता ईश्वर की इच्छा है, इसलिए हमें अपना सर्वस्व इस केलिए दे देना चाहिए। जब हम फिलवक्त का कर्त्तव्य पूरा कर लेते हैं, तब हमें निश्चिंत होना चाहिए कि हम सत्य में जी रहे हैं, और इसलिए हम प्रेम में जी रहे हैं और इसलिए प्रभु ख्रीस्त में …… (“ग्रेस इन एवेरी सीजन, मैडोना हॉउस प्रकाशन, 2001)।
जैसे मैं ने अपने अतिव्यस्त कार्यों की सूचि को नज़रंदाज़ करके अपनी माँ के सबसे प्रिय कार्य को उसके साथ बैठकर किया, तो इसके द्वारा माँ को उस दिन तसल्ली मिली और उसे आश्वासन दिया गया। मुझे भी तसल्ली मिली कि प्रभु मेरे इस छोटी भेंट से आनंदित है।
जैसे आप अपने नए दिन का और उस दिन के बहुत सारे कार्यों का सामना करने जा रहे हैं, चाहे वे कार्य कितने ही बोझिल, बोरियत से भरे और उबाऊ काम हो, एक निर्णय लीजिये कि आप अपने ह्रदय को ईश्वर के साथ जोड़ेंगे और उस कार्य को, उस दिन किसी प्रकार की बड़ी ज़रूरत में पड़े व्यक्ति केलिए अर्पित करेंगे। उसके बाद जिस फिलवक्त कार्य के लिए आप बुलाये गए हैं उसी कार्य को कीजिये, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि हमारे प्रतिदिन के साधारण कार्यों को ले कर उन्हें कृपाओं की असामान्य स्रोत में, और दुनिया के परिवर्तन के लिए बदलने की क्षमता ईश्वर रखता है।
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