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अपनी चिंताओं को दूर भगाने का एक तरीका यहां बताया जा रहा है …
प्रत्येक दिन, हमें अपनी मानसिकता को और हृदय को भी बदलने का अवसर मिलता है। मैं प्रार्थना करने के लिए दृढ़ता से वकालत करती हूं, लेकिन यह हमेशा मेरे व्यवहार में परिणत नहीं होता है। बहुतों की तरह, मैं प्रार्थना करने के बजाय चिंता करने की प्रवृत्ति रखती हूँ, ‘अगर… तो क्या होगा’ की सोच में फँसी रहती हूँ। बार-बार, मुझे अपनी मानसिकता को बदलने का सबक सीखने की जरूरत है, जो बदले में मेरा ह्रदय परिवर्तित कर देता है। येशु ने हमें चिंता न करने के लिए प्रोत्साहित किया, और इसलिए प्रतिदिन मैं अपनी चिंताओं को प्रार्थनाओं में बदलने का प्रयास कर रही हूं और इस तरह उन चिंताओं को मुझसे दूर जाने देती हूं।
वर्ष 2021 के अधिकांश समय में एक लोकप्रिय कैथलिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए मैं ने कुछ पैसे की बचत की। लेकिन खर्च मेरी अपेक्षा से अधिक लग रहा था। मैं वर्षों से इस सम्मेलन में भाग लेना चाहती थी और उम्मीद नहीं थी कि यह अवसर इसी वर्ष आयेगा। एक दम्पंती, दोनें जो मेरे करीबी दोस्त हैं, और मेरे जीवन में प्रभावशाली रहे हैं, उन्होंने मुझे यह बताने के लिए फोन किया कि वे भी इस साल इस सम्मेलन में भाग लेंगे और मुझे इसमें शामिल होने के लिए दृढ़ता से प्रोत्साहित किया। उनके बोलने के तरीके में कुछ ऐसी शक्ति थी, जिससे मुझे लगा कि पवित्र आत्मा मुझे इस केलिए कुरेद रहा है। फोन पर उस बातचीत के बाद, मैं निःसंदेह जान गयी थी कि मेरे लिए उस सम्मेलन में इसी वर्ष भाग लेना बहुत ज़रूरी है। उस कर्यक्रम में भागीदारी के बारे में सोचकर मुझे अपार खुशी और उम्मीद का अनुभव हुआ।
जैसे-जैसे सम्मेलन में भाग लेने से संबंधित लागत बढ़ती जा रही थी, मैंने देखा कि मैं चिंता जाल फंसी जा रही थी। ईश्वर ने हमेशा कैसे कैसे मेरी ज़रूरतों को पूरा किया है, यह याद रखने के बजाय, मुझे इस बात की चिंता थी कि क्या मेरे पास उचित समय पर आवश्यक धन होगा।
एक दिन, मुझे प्रेरणा मिली कि मैं चिंता करना छोड़ दूं और सभी अच्छे उपहारों के दाता ईश्वर की ओर मुड़ जाऊं! जैसे ही चिंता प्रार्थना में बदल गई, मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई। मुझे याद आया कि परमेश्वर विश्वासयोग्य है, और परमेश्वर स्वयं यह सुनिश्चित करेगा कि मेरे पास उस कार्यक्रम में भाग लेने केलिए पर्याप्त धन हो जाएगा। मैंने प्रार्थना की, “हे स्वर्गीय पिता, तू ने मुझे जो भी अवसर दिया है, उन सभी अवसरों के लिए तुझे धन्यवाद। कृपया सम्मेलन में भाग लेने केलिए मेरी जरूरतों को तू पूरा कर। तू हमेशा अपनी पूर्णता के तरीके से मेरी ज़रूरतों को पूरा करता है, उसके लिए धन्यवाद।”
मेरी चिंताओं से अवगत हो जाना, बल्ब की रोशनी जैसा हो गया है। अँधेरे में बल्ब का स्विच ऑन किया जाता है, और वह रोशानी बिखेरता है और उसी तरह जब चिंता का अन्धेरा छा जाता है, तुरंत मैं अपनी चिंताओं को प्रार्थनाओं में बदलने का ध्यान रखती हूँ। मेरा मन और दिल शांत हो जाते हैं। मुझे याद है कि मेरे स्वर्गीय पिता ने मेरे जीवन के हर क्षेत्र में लगातार मेरी ज़रूरतों की पूर्ती की है। वह मेरी चिंता के इस क्षेत्र में मेरा भरण-पोषण क्यों नहीं करेगा? अब, मैं अपने जीवन के हर क्षेत्र में, अपनी चिंताओं को प्रार्थना में बदलने की आदत विकसित करने के लिए दैनिक प्रयास करती हूं और इस तरह मेरी चिंताओं को दूर कर देती हूं।
ईश्वर ने अद्भुत तरीके से मेरे लिए ज़रूरी धन उपलब्ध कराया और सम्मेलन में भाग लेने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। हालांकि जिस दिन मुझे जाना था, उस दिन सुबह एक बर्फीले तूफान के कारण मुझे अपनी उड़ान रद्द करने का खतरा खडा हो गया। अंततोगत्वा ईश्वर की ही जीत हुई और मैं सम्मलेन स्थल पर समय पर और सुरक्षित पहुंच गयी। अति सुंदर तरीके से सजाया गया सम्मेलन स्थल और अपने आरामदायक होटल के कमरे को देखकर मैं आश्चर्य चकित थी। मुझे यह भी पता चला कि मैंने सम्मलेन के अपने खर्चों के लिए जरूरत से ज्यादा पैसा जुटाया था! मैं क्यों परेशान थी? परमेश्वर पिता ने वही किया, जो वह हमेशा सबसे अच्छे ढंग से करता है, और उसने अपनी इस संतान की जरूरतों को पूरा किया है। मैं इस अनुभव के लिए ईश्वर की आभारी हूँ, और एक बार फिर से चिंता करने के बजाय, अपने मन को ईश्वर की ओर मोड़ने की सीख देने के लिए आभारी हूं। जैसे हम अपने विचार बदलते हैं, वैसे ही हम अपना जीवन बदलते हैं। जैसे-जैसे हम अपने दिलों को नकारात्मकता के बजाय ईश्वर की ओर मोड़ते हैं, हम और अधिक ईश्वर के जैसे हो जाते हैं। यदि हम लगातार अपनी चिंताओं को प्रार्थनाओं में बदलते रहेंगे, तो हमारी चिंताएं और उत्कंठायें कितनी कम होंगी, और हम अपने स्वर्गीय पिता के प्रति कितने अधिक आभारी होंगे? अगर हम अपनी चिंताओं को दूर कर दें तो जीवन कितना अधिक शांतिपूर्ण होगा? धन्यवाद, स्वर्गीय पिता, कि केवल एक प्रार्थना करने से तेरे और हमरे बीच की दूरी मिट जाती है!
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क्या आप इस चालीसा काल में परिवर्तन लाने वाले किसी अनुभव की तलाश कर रहे हैं? अगर हां, तो यह लेख आपके लिए है
जब हम नए साल को मनाने के लिए इकट्ठा हुए थे, तब एक दोस्त ने मज़ाक में यह सवाल पूछा, “चालीसा काल के संकल्प नए साल की शुरुआत में लिए गए संकल्पों की तरह अधूरे क्यों रह जाते हैं?” ऑस्ट्रेलिया में हम सब नए साल का स्वागत स्वादिष्ट खाने और स्विमिंग पूल के पास आराम करते हुए बिताते हैं। उस दिन जब हम रात के खाने के बाद आराम कर रहे थे, और मच्छरों को दूर भगा रहे थे, तब किसी वजह से हम बड़ी गहरी और आध्यात्मिक बातें करने लगे।
इन्हीं सब के बीच मेरी दोस्त के किए सवाल का जवाब यह निकला: “क्योंकि हम अपनी हार को दूसरों के साथ साझा करने और उसे अपनाने से डरते हैं!” देखा जाए तो हमारे कैथलिक समाज में ऐसी सोच रखना आम बात है, लेकिन एक पुरानी कहावत है ना, कि मज़ाक मज़ाक में इंसान गहरे सच कह डालता है।
हम पापियों के लिए चालीसा काल एक मुश्किल भरा समय हो सकता है। नए साल के संकल्पों की ही तरह, हम चालीसा काल भी उसी उत्साह के साथ शुरू करते हैं, यह सोच कर कि इस साल हम चालीसा काल को बड़ी श्रद्धा के साथ बिताएंगे। हमारे इरादे अच्छे होते हैं लेकिन हम अक्सर आलस को आने देते हैं, या कुछ दिन बाद ही हार मान लेते हैं।
लेकिन चालीसा काल अभी खत्म नहीं हुआ है, और हमारे पास अब भी चालीसा काल के प्रयासों को ठीक करने के लिए समय है, चाहे हमारे प्रयास अभी तक कितने भी निराशाजनक क्यों ना रहे हों।
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अपूर्ण रहें
हालांकि मेरी दोस्त की बातें सिर्फ एक मज़ाक थी फिर भी ईश्वर द्वारा पकड़े जाने से हमें कोई डर नहीं होना चाहिए। ईश्वर हमारी तरह हमें अपनी असफलताओं के आधार पर चिन्हित नहीं करते हैं। और ना ही वे हमें कमतर समझ कर हमें खुद को पुनः समर्पित करने की मांग करते हैं। क्योंकि ईश्वर की कृपा अनंत है।
सच बात तो यह है कि कलवारी के रास्ते पर चलते हुए बार बार गिरना तो नियति है — क्या हम क्रूस रास्ता की प्रार्थना बोलते वक्त प्रभु के बार बार गिरने पर मनन चिंतन नहीं करते हैं? हां यह बात सच है कि प्रभु के गिरने में और हमारे पापों में गिरने में ज़मीन आसमान का फर्क है, पर वह अहसास, वह पीड़ा तो हम भी महसूस करते हैं।
ईश्वर इस बात की उम्मीद नहीं रखते कि हम अपने चालीसा काल के संकल्पों को पूर्णता के साथ पूरा कर पाएंगे। वे तो बस इन तपस्याओं का इस्तेमाल करते हैं हमारे जीवन में पवित्रता, नम्रता और ईश्वरीय इच्छा की स्वीकृति को बढ़ाने के लिए। वे जानते हैं कि हम अपने आप में परिपूर्ण नहीं हैं, इसलिए वे हमारी मदद करते हैं ताकि हम बेहतर बन सकें और ईश्वर की तरह बन सकें।
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ज़िम्मेदार बनें
एक बार जब हम अपने पापी स्वभाव और इसकी अपूर्ण प्रवृत्ति को स्वीकार कर लेते हैं, तो फिर खुद को जवाबदेह ठहराना हमारे लिए चालीसा काल का लाभ उठाने का एक उपयोगी साधन है। ऐसा करने के सबसे सरल तरीका यह है कि हम हर दिन के अंत में रात को अपने अंतकरण की जांच के माध्यम से अपनी आध्यात्मिक प्रगति का मूल्यांकन करते रहें।
अपने अंतकरण की जांच ध्यान करने की वह प्रक्रिया है जहाँ हम अपने आप को प्रार्थनापूर्वक परमेश्वर की उपस्थिति में रखते हैं और अपने विचारों की जाँच करते हैं। हम अपने आप से इस तरह के सवाल पूछ सकते हैं: क्या मैंने आज अपना चालिसा काल के संकल्पों का पालन किया? क्या मैंने इन संकल्पों को खुश हो कर या अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर पूरा किया?
हो सकता है कि कभी कभी हमें उन सवालों के जो जवाब मिले वे संतोषजनक ना हों, लेकिन इसी परेशानी को हल करने के लिए हमें अगले कदम की मदद लेनी चाहिए।
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विनम्र रहें
अपनी अंतरात्मा की जांच परख करने के बाद, और चालीसा काल में अनेक प्रयास करने के बाद, अपनी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की असफलता के लिए, हम परमेश्वर से क्षमा मांग सकते हैं। साथ ही साथ हम कल फिर से प्रयास करने का संकल्प लेने के लिए परमेश्वर की सहायता मांग सकते हैं।
यहाँ याद रखने वाली महत्वपूर्ण बात यह है: कि ‘ईश्वर की मदद से’ हम सब कुछ कर सकते हैं। हमें केवल खुद के बलबूते पर चालीसा काल की तपस्या को पूरा करने की ज़रूरत नहीं है। पवित्रता में बढ़ने और परमेश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी बने रहने का मतलब वास्तव में यह समझना है कि ईश्वर हमारे लिए क्या चाहता है और इसके बाद ईश्वर को हमारी सहायता करने की अनुमति देना है।
यह समझना और स्वीकार करना कि हमें ईश्वर की सहायता की आवश्यकता है अक्सर हमारे लिए थोड़ा सा मुश्किल होता है। हम नियंत्रण में रहना पसंद करते हैं। लेकिन, यदि हम अपनी पवित्रता के बारे में गंभीर हैं, तो हमें यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि हम नियंत्रण में नहीं हैं और हमें परमेश्वर की योजना पर भरोसा करते की ज़रूरत हैं।
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विचारशील बनें
संत मत्ती के सुसमाचार में, येशु विशेष रूप से उस स्वभाव और दृष्टिकोण के बारे में बात करते हैं जो हमें उपवास और तपस्या करने के लिए अपनाना चाहिए: “और जब तुम उपवास करते हो, तब ढोंगियों की तरह मुंह उदास बना कर उपवास नहीं करो। क्योंकि वे अपना मुंह मलिन बना लेते हैं, जिससे लोग यह समझें कि वे उपवास कर रहे हैं। मैं तुम से सच कहता हूं, कि वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं। जब तुम उपवास करते हो, तो अपने सिर पर तेल लगाकर अपना मुंह धो लो, जिससे लोगों को नहीं, केवल तुम्हारे पिता को, जो अदृश्य है, यह दिखाई दे कि तुम उपवास कर रहे हो।” (मत्ती 6:16-18)
छिपे हुए बलिदान वे होते हैं जिनके लिए अक्सर हमें सबसे ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती हैं – इसके साथ ही साथ – यही बलिदान हमें सबसे ज़्यादा आध्यात्मिक फल प्रदान करते हैं। क्योंकि अगर केवल ईश्वर ही आपके जीवन में झांक कर देख पाते हैं कि बिना चीनी की कॉफी पीने से, या अपने खाने में नमक कम डालने से, या प्रार्थना में अधिक समय बिताने के लिए 15 मिनट पहले उठने से आपको कितना फर्क पड़ता है, तो इससे बड़ी आध्यात्मिक जीत और क्या होगी।
जब हम दूसरों से शिकायत करते हैं या चालीसा काल की कठिनाइयों के लिए सहानुभूति मांगते हैं, तो हम ईश्वर से प्राप्त किए हुए बलिदानों और तपस्याओं पर पानी फेर देते हैं।
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रूपांतरित हो जाइए
रोमियों को लिखे अपने पत्र में, संत पौलुस ने उन्हें और हमें समझाया, कि हमें इस दुनिया के अनुसार खुद को बांधना नहीं चाहिए। उनके शब्द इस बात की सही अभिव्यक्ति हैं कि चालीसा काल आपके लिए क्या बन सकता है, यदि आप इस समय को दृढ़ता से स्वीकार करेंगे, और ईश्वर के नज़दीक बढ़ने का प्रयास करेंगे:
“इसलिए, भाइयो और बहनो, मैं परमेश्वर के नाम पर अनुरोध करता हूं कि आप जीवंत, पवित्र तथा सब कुछ नई दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें। इस प्रकार आप जान जाएंगे कि परमेश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है। (रोमियों 12:1-2)
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पिछले सप्ताह मुझे जॉर्डन पीटर्सन, जोनाथन पगेओ और जॉन वेर्वाके के साथ एक ज़ूम साक्षात्कार में बैठने का सुन्दर अवसर मिला था। टोरंटो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीटर्सन से शायद आप परिचित होंगे, जो आज की संस्कृति में सबसे प्रभावी व्यक्तित्व हैं। पगेओ एक कलाकार हैं, जो ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियन परम्परा में काम कर रहे मूर्तीविद्या विशेषज्ञ हैं और वेर्वाके टोरंटो विश्वविद्यालय में संज्ञानात्मक मनोविज्ञान के प्राध्यापक हैं। सोशल मीडिया में इन तीनों भद्र पुरुषों की शक्तिशाली उपस्थिति बनी रहती है। हमारी बातचीत ऐसे विषय पर थी, जो हम चारों के लिए महत्वपूर्ण था – हमारी संस्कृति के लिए, विशेषकर युवा वर्ग के लिए सार्थकता का संकट। संवाद को शुरू करने के लिए प्रोफेसर पीटर्सन ने हम में से हर एक से ‘सार्थकता’, और विशेषकर ‘धार्मिक सार्थकता’ की परिभाषा देने के लिए कहा। जब मेरा मौक़ा आया, मैं ने कहा: सार्थक जीवन जीने का मतलब है, मूल्य को लक्ष्य में रखकर उद्देश्यपूर्ण रिश्ता जोड़ना; और धार्मिक रूप से सार्थक जीवन का मतलब है: परम मूल्य या परम सत्य के साथ उद्देश्यपूर्ण रिश्ते को निभाना।
दीत्रीच वोन हिल्देब्रांड की शिक्षा से प्रेरणा लेकर, मैं ने यह तर्क दिया कि ज्ञान मीमांसा, नैतिकता और कलात्मकता जैसे कुछ ख़ास मूल्य दुनिया में दिखाई देते हैं, और ये हम लोगों को अपनी छोटी दुनिया से बाहर निकाल लाते हैं, और उन मूल्यों का सम्मान करने और अपने अपने जीवन के साथ उन्हें एकीकृत करने में प्रेरणा देते हैं। इसलिए, गणित और दार्शनिक सत्य मन को मोह या छल लेते हैं, और तलाश की यात्रा करने केलिए हमें प्रेरित करते हैं; परम्परा और इतिहास के संतों और वीरों की जीवन कथा में उजागर हुए नैतिक सत्य की खोज में हम निकल पड़ते हैं, जो मन को अनुकरणात्मक कार्य केलिए प्रेरित करते हैं; और इसी तरह कलात्मक सुन्दरता के लिए – शांत अर्थपूर्ण मनन चिंतन का जीवन, बीथवन जैसे संगीतकारों का उत्तम संगीत, महान चित्रकारों की अनूठी कलाकृतियों – जो अपने सफ़र की राह में पड़ाव के लिए हमें रोकते हैं, और अद्भुत दृष्टि से इन बातों पर मनन करने के लिए मजबूर करते हैं, और परिणाम स्वरूप, नयी रचना या सृष्टि करने केलिए हमें अवसर देते हैं। इस तरह लगातार मूल्यों की खोज का जीवन जीने केलिए एक अनुशासनात्मक जीवन ज़रूरी है, ताकि हमारा जीवन सही दिशा में सार्थक बन जाए।
अब, मैंने जारी रखा, बोधगम्य आत्मा का अनुमान है कि इन मूल्यों का एक उत्कृष्ट स्रोत है: एक सर्वोच्च या बिना शर्त अच्छाई, सत्य और सौंदर्य। पूरी तरह से सार्थक जीवन वह है जो अंततः उस वास्तविकता को समर्पित हो। इस लिए, प्लेटो ने कहा कि सभी विशेष वस्तुओं से परे, “अच्छाई के रूप” की खोज करना ही दार्शनिक उद्यम का चरम बिंदु है; अरस्तू ने कहा कि सर्वोत्तम उद्गम या सर्वप्रमुख प्रवर्तक के बारे में मनन चिंतन करना सर्वोच्च जीवन का हिस्सा है; और बाइबिल कहती है कि हम अपने प्रभु परमेश्वर को अपने सारे प्राण, अपनी सारी बुद्धि, अपनी सारी शक्ति से प्रेम करें। थॉमस एक्विनास को प्रतिध्वनित करते हुए जॉर्डन पीटर्सन ने इसे इस प्रकार व्यक्त किया: मनोशक्ति का प्रत्येक विशेष कार्य कुछ मूल्य, अर्थात कुछ ठोस अच्छाई पर आधारित होता है। लेकिन वह मूल्य एक उच्च मूल्य या मूल्यों के समूह में निवास करता है, जो आगे चलकर और भी ऊँचे और उत्तम मूल्य में निवास बनाता है। उन्होंने कहा कि अंततः अपने सभी अधीनस्थ अच्छाइयों को निर्धारित और व्यवस्थित करने वाले कुछ सर्वोच्च भलाई को हम खोज पा लेते हैं ।
यद्यपि हमने विषय को अलग-अलग तरीकों से और अपनी विशेषज्ञता के विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार व्यक्त किया, हम चारों इस निष्कर्ष पर पहुँच गए कि “ज्ञान परंपरा”, जिसने शास्त्रीय रूप से इन सत्यों को प्रस्तुत किया और समर्थन किया, वह आज की संस्कृति के सामने एक रोड़ा बनकर खड़ी है, और सार्थकता के संकट को बढाने में यह रोड़ा काम कर रहा है। बहुत से तथ्यों ने मिलकर इस संकट को बढ़ावा दिया है, लेकिन हम लोगों ने विशेष रूप से दो कारणों पर जोर दिया: वैज्ञानिकता और मूल्य की भाषा का उत्तर-आधुनिक संदेह। सभी वैध ज्ञान को ज्ञान के वैज्ञानिक रूप में सीमित रखना वैज्ञानिकता है। यह वैज्ञानिकता मूल्य के दावों को प्रभावी रूप से गैर-गंभीर मानती है, उसे केवल व्यक्तिपरक मानती है और भावनाओं की अभिव्यक्ति मानती है लेकिन वस्तुनिष्ठ सत्य नहीं मानती। वैज्ञानिकता के इस न्यूनीकरणवाद ने आज बहुत सारे युवा लोगों के दिमाग में एक भ्रम पैदा किया है; वह भ्रम यह दावा करता है कि सत्य और मूल्य सिर्फ उसके निर्माताओं केलिए, या एक भ्रष्ट संस्थागत अधिरचना को बनाए रखने के लिए, उन लोगों की शक्ति को बढ़ाने के लिए एक प्रच्छन्न प्रयास है। तद्नुसार, इन अभिकथनों के मिथकों को तोड़ना होगा, उनका विनाश करके उन्हें विखंडित करना होगा। मूल्यों के क्षेत्र पर इस सांस्कृतिक हमले के साथ साथ, मूल्यों को एक ठोस और सम्मोहक तरीके से प्रस्तुत करने में, विशेषकर वर्त्तमान संस्कृति के कई महान संस्थानों और विशेष रूप से धार्मिक संस्थानों की विफलता हमने देखा है। बहुत बार, समकालीन धर्म, सतही राजनीतिक पैरवी या सांस्कृतिक पर्यावरण के पूर्वाग्रहों की एक भयावह प्रतिध्वनि में बदल गया है।
तो, एक सार्थक जीवन जीने के लिए हमें किस बात की आवश्यकता है? मैंने कहा कि मेरे दृष्टिकोण से, हमें महान कैथलिक विद्वानों की आवश्यकता है, जो हमारी बौद्धिक परंपरा को अच्छी तरह समझते हैं और जो इसमें विश्वास करते हैं, जो इस विशवास के नाम पर लज्जित नहीं होते हैं – और जो धर्मनिरपेक्षता के साथ सम्मानजनक, लेकिन आलोचनात्मक बातचीत में प्रवेश करने के लिए तैयार हैं। हमें महान कैथलिक कलाकारों की आवश्यकता है, जो डांते, शेक्सपियर, माइकल एंजेलो, मोज़ार्ट, हॉपकिंस और चेस्टरटन का सम्मान करते हैं, और जो कैथलिक संवेदनशीलता से प्रेरित होकर कला के नयी रचनाओं का निर्माण करने के लिए तत्पर हैं। और सबसे बढ़कर, हमें महान कैथलिक संतों की आवश्यकता है, जो अपने आदर्श जीवन द्वारा हमारे लिए नमूना बनकर हमें दिखाएँगे कि सर्वोच्च भलाई के उद्देश्यपूर्ण संबंध बनाकर हमें किस तरह जीवन जीना है। व्यर्थता के रेगिस्तान के निर्माण का दोषी यह आधुनिकता की संस्कृति ही है, क्योंकि इस आधुनिक संस्कृति में आज बहुत से लोग भटक रहे हैं। लेकिन हम धार्मिक ज्योति के रखवालों को भी अपनी विफलताओं को स्वीकार करते हुए अपनी जिम्मेदारी लेनी चाहिए, और अपने कर्त्तव्यों को निभाने का संकल्प लेना चाहिए।
आजकल, जब तक लोगों को, मूल्यों के साथ, और विशेषकर सर्वोच्च मूल्य के साथ संबंध जोड़ने के मार्ग दिखानेवाले आदर्श सलाहकार और परामर्शदाता नहीं मिल जाते, तब तक उनका इस मार्ग में प्रवेश होना संभव होगा।
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जागने, उजागर होने और तेजस्वी बनने का वक्त आ गया है।
संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने हम सब को यह उपदेश दिया था कि हम अपने दिल के दरवाज़े येशु के लिए खोल दें। ईश्वर की उपस्थिति में हमारे जीवन की पूर्णता को अनुभव करने केलिए संत पापा हमारा आह्वान करते हैं। लेकिन आज की दुनिया में, अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति की बात कहना अटपटा सा लगता है। बाइबिल ईश्वर को मुक्तिदाता यानी, गुलामी से हमें आज़ाद करनेवाला मानती है, परन्तु दुनिया इस बिम्ब को इससे बिलकुल भिन्न, ईश्वर को हमारी आजादी, मनमौजी, सुख, और उम्मीद के खिलाफ कार्य करनेवाला मानती है। लेकिन इस तरह की बातें करना तो सत्यता के तथ्यों से बिलकुल अदूर रहकर बात करना जैसा है।
पूरी तरह मानव बनने और पूरी तरह जीवन का आनंद लेने का मतलब है, हमारे जीवन में ईश्वर की उपस्थिति का होना। जब ईश्वर हमारे जीवन में निवास करता है, तब हम उसकी उपस्थिति के फलों को अनुभव करते हैं, शांति, प्रेम, आनंद, सौम्यता, और दयालुता के फल – ये सब फल हमें बेहतर और जिंदादिल इंसान बनाते हैं।
जीवन जीने का तरीका
येशु ने कहा, “मैं इसलिए आया हूँ कि तुम्हें जीवन मिले, और प्रचुर मात्रा में मिले”। मुझे बहुत सारे नौजवानों की ज़िंदगी में उनका हमसफ़र बनने का अवसर मिला, और अक्सर मैं ने देखा है कि वे अपने जीवन में बहुत से दबावों का अनुभव करते हैं। कॉलेज में एडमिशन लेने और नौकरी पाने के लिए वे दिन रात मेहनत करते हैं। अपने जीवन को जीने के लिए उनके पास समय ही नहीं रहता है। ज़िन्दगी सिर्फ चीज़ें हासिल करने और चीज़ों को बरकरार रखने की प्रक्रिया बन जाती है। ज़िंदगी कहीं और जगह पहुँचने की एक दौड़ बन जाती है। यह तरीका आपके लिए ज़िन्दगी जीने का तरीका नहीं हो सकता है।
आपको सही ढंग से ज़िन्दगी जीने के लिए अपनी ज़िन्दगी में, ईश्वर को बुलाना होगा, और आप के असली व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से जीने में मदद के लिए ईश्वर को अवसर देना होगा। ईश्वर ने हमें पूर्ण मानव बनने के लिए सृष्ट किया है, और हमारी मानवता पर उसे आनंद मिलता है। येशु हमारी टूटी और बिखरी हुई दुनिया में, पापियों और रोगियों से भरी हुई दुनिया में आये, जिसे ईश्वर की ज़रूरत है, जिसे प्यार, शांति और ख़ुशी की ज़रूरत है। और सच्चाई यह है कि हमारे जीवन में ईश्वर नहीं है तो हम इन चीज़ों को हासिल नहीं कर सकते हैं। ईश्वर के बिना अपने जीवन के बारे में सोचना मेरे लिए असंभव है।
एक अप्रतीक्षित बुलावा
एक बार एक महिला ने मुझसे संपर्क करके यह अनुरोध किया कि अस्पताल में पड़े उसके पति के साथ मैं कुछ समय गुज़ारूँ। उसका नाम पीटर था। उस महिला को इस बात का डर था कि जब पीटर के रोग की जांच परिणामों को उसे बताया जाएगा और उसे पता चलेगा कि उसकी ज़िन्दगी के बहुत कम महीने बचे हैं, तो उसकी प्रतिक्रिया किस तरह की होगी।
मैं पीटर के साथ कुछ वक्त गुज़ारने के लिए अस्पताल गया। जब हम दोनों बैठकर प्रार्थना कर रहे थे, तब डॉक्टर ने कमरे में प्रवेश किया। डॉक्टर ने उस दुखभरे सन्देश को सुनाया और वहां बस सन्नाटा छाया रहा। मैं ने बहुत प्रार्थना की थी कि इस वक्त ईश्वर हमारे साथ रहे। पीटर ने मेरी ओर देखा और मुझसे पूछा: “फादर, क्या इस में ईश्वर नहीं है?”
“ज़रूर, वह इस में ज़रूर है”, मैं ने कहा।
उसने कहा, “तब ठीक है, यदि ईश्वर इसमें है, तो मैं इसका सामना कर सकता हूँ।” जब येशु मानव बना, उसने मानव के सुख, दुःख और पीडाओं का अनुभव किया। हम जिन मुश्किल भरे रास्तों पर चलते हैं, उन सारी मुश्किलों से येशु भी गुज़रे। हम चाहे जहां भी जाएँ, येशु हमारे आगे आगे चलते रहते हैं। पीटर ने यह समझ लिया। उसे मालूम था, कि येशु उसके साथ हमसफ़र बनकर चल रहे हैं। चाहे उसे जो भी दुःख तकलीफों से होकर जाना पड़े, चाहे वह मौत भी हो, येशु उसके साथ रहेंगे। येशु उसकी दुःख पीडाओं को समझ लेंगे, क्योंकि येशु ने स्वयं गेद्सेमनी बाग में घोर दुःख संकट का सामना किया था।
बड़ा परिवर्त्तन
पीटर ने मुझे बताया कि वह अपने जीवन के आखिरी महीनों और आखिरी सप्ताहों को येशु के साथ, अपनी पत्नी और अपने बच्चों के साथ बितायेंगे। ऐसा लग रहा था कि जब मौत के साथ उसका सामना हो रहा था, तब वह अपने जीवन की सच्चाई का भी आमना सामना कर रहा था। येशु उसके साथ साथ हैं, इसे अनुभव करते हुए उसने कहा, “मैं इस जीवन को जी सकता हूँ, मैं इस बीमारी को जी सकता हूँ, मैं इसके उपचार को भी जी सकता हूँ, मैं अपने परिवार के साथ भी जी सकता हूँ।”
उस दिन पीटर की पत्नी के साथ मैं ने उसके कमरे में प्रवेश किया, इस चिंता के साथ कि हम उसकी मदद किस तरह कर पाएंगे। लेकिन अन्ततोगत्वा जीवन जीने में, उसे संपोषित करने में, और जहां कहीं येशु हैं वहां जीवन की पूर्णता है, यह जानने के तरीके को दिखाने में पीटर ने हमारी मदद की। हमारे जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे येशु स्पर्श नहीं कर सकता है। ऐसी सब जगह, जहां कहीं हम जाते हैं, हमारे प्रलोभन और कमजोरियों में भी, येशु हमारे साथ चलते हैं, क्योंकि येशु इन सब जगहों में स्वयं थे। जब आप चुपचाप बैठकर सोचते हैं, “क्या कोई मेरी चिंता को समझ रहा है? क्या कोई मेरे आंसुओं को देख पा रहा है? क्या कोई वास्तव में मुझे और मेरे जीवन में मैं क्या पाना चाहता हूँ, इसे समझ पा रहा है?” तो यकीन मानिये कि आपको समझने वाला और आपकी परवाह करनेवाला कोई अवश्य है।
आनंदित रहने के लिए हमारी सृष्टि हुई है
आपके आंसू व्यर्थ नहीं जाते; आपका दुःख भुलाया नहीं जाता। उत्पत्ति ग्रन्थ में एक महान कथन है: आदम की सृष्टि करने के बाद, ईश्वर ने कहा, “अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं।” (उत्पत्ति 2:18)। आदम के लिए एक साथी को ढूँढने की ज़रुरत के बारे में ईश्वर बात कर रहा था। लेकिन मुझे लगता है कि ईश्वर कुछ और गहरी और गंभीर बात के विषय में बात कर रहा था। वह हमारे अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति की ज़रूरत पर बात कर रहा था। ईश्वर आपके जीवन में रहना चाहता है, और यह अच्छा नहीं है कि पुरुष या स्त्री या बच्चा अकेला रहे। हम सभी सहभागिता और एकात्मकता के लिए सृष्ट किये गए हैं। हम दोस्ती के लिए सृष्ट किये गए हैं। हम जीवन का आनंद अनुभव करने के लिए सृष्ट किये गए हैं।
आविला की संत तेरेसा ने नरक का एक दर्शन देखा जिसमें कुछ लोग कारागार के अपने निजी तन्हाई के कमरों में अकेले बैठे हैं, उनकी पीठ दरवाजे की ओर है, और उनका सर उनकी हथेलियों में डूबे हुए हैं, जो अपने बारे में बहुत ही दुखी होकर चिंतित दिखाई दे रहे हैं। ईश्वर ने हमारी सृष्टि तन्हाई के लिए या दुखी होने के लिए नहीं की है। उसने हमारी सृष्टि इसलिए की है कि हम एक दूसरे के साथ और ईश्वर के साथ सहभागिता में रहें। हम पूर्ण रूप से मानव तब बनते हैं जब हम प्रेम का अनुभव करते हैं। पहाड़ की चोटी तक या समुद्र के सबसे निचले तह तक तीर्थयात्रा करने से हम ईश्वर को नहीं पाते हैं। हमें अपनी ही आत्माओं में, अपने ही ह्रदयों में, उसे ढूंढना होगा। और जब हम उसे वहां पायेंगे, तब हम समझ पायेंगे कि वह आनंद, शान्ति के फल देने के लिए आये हैं। येशु हमारे जीवन के ठीक बीच में खड़े होने केलिए आते हैं। वह हमारे टूटन और बिखराव में, हमारी ज़रूरतों में, हमारी गरीबी में आते हैं। हमें बस यह कहना है,
“हे प्रभु, मैं जहां भी हूँ, और मेरी ज़िन्दगी में जो भी हो रहा है, उस स्थिति में मैं चाहता हूँ कि तू मेरे साथ रहे। तेरी उपस्थिति और पवित्र आत्मा की शक्ति मुझ में हो इस केलिए मैं निवेदन करता हूँ, ताकि मेरा जीवन फलदायक हो जाये। मैं जीवन को पूरा का पूरा जीना चाहता हूँ। क्योंकि तू मेरे लिए जीवन की पूर्णता ही चाहता है। आमेन।”
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फादर जॉन हैरिस ओ.पी. डोमिनिकन धर्मसमाज के आयरिश प्रांत के प्रांतीय अध्यक्ष हैं। यह लेख उनके द्वारा शालोम वर्ल्ड प्रोग्राम “9 पी.एम्. सीरीज़” में साझा की गयी प्रेरणादायक शिक्षाओं पर आधारित है। इस एपिसोड को देखने केलिए देखें : shalomworld.org/episode/what-makes-us-fully-alive-fr-john-harris-op
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प्रश्न: मैं बाइबिल की पढ़ाई करना चाहता हूँ। लेकिन मुझे नहीं मालूम कि कहाँ से शुरू करूं, क्या मैं इसे उपन्यास की तरह शुरू से अंत तक पढूं? क्या मैं किसी भी पन्ने को ऐसे ही खोलकर पढ़ना शुरू करूँ? आप की क्या सलाह है?
उत्तर: बाइबिल येशु का साक्षात्कार पाने का शक्तिशाली माध्यम है। संत जेरोम ने कहा है: “पवित्र ग्रन्थ की अज्ञानता येशु के प्रति अज्ञानता है”। आपने इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने का निर्णय लिया है, इसलिए आप को बधाइयां।
पहली नज़र में बाइबिल बोझिल लग सकती है, एक दुसरे से भिन्न अलग अलग बिखरी हुई कहानियाँ, लम्बी वंशावलियां, कानून और भविष्यवाणियाँ, पद्य और गीत आदि इत्यादि से यह भरी हुई है। मेरा सुझाव है कि आप बाइबिल को दो तरीके से पढ़ सकते हैं। सबसे पहले ध्यान दें कि बाइबिल को आरम्भ से अंत तक न पढ़ें, क्योंकि बाइबिल की कुछ किताबें समझने में आपको कठिनाई होगी। इसके बजाय, डॉ. जेफ़ कैविंस द्वारा लिखित “दी ग्रेट एडवेंचर बाइबिल टाइम लाइन” नामक किताब पढने से मुक्ति इतिहास की कहानी आप की समझ में आएगी – हमें अपने पापों से बचाने के लिए ईश्वर ने किस तरह सम्पूर्ण मानव इतिहास में कार्य किया है, इसकी कहानी उत्पत्ति से शुरू होती है। ईश्वर ने संसार की सुन्दर रचना की, और उसे यह अच्छा लगा, लेकिन मानव ने आदि पाप के कारण विनाश का रास्ता अपनाया और इस तरह वह संसार में बुराई लाया। लेकिन ईश्वर ने हमें त्याग नहीं दिया। इसके बदले उसने इब्राहिम, मूसा और दाऊद के द्वारा हमारे साथ रिश्ता जोड़ा और विधान को स्थापित किया। व्यवस्था के माध्यम से उनका अनुसरण करने के लिए उसने हमें सिखाया, और उसने अपनी प्रतिज्ञाओं के प्रति विश्वस्तता के जीवन में लौटने के लिए नबियों के द्वारा हमारा आह्वान किया। आखिर में, पाप के कारण उत्पन्न मानवीय बिखराव, पीड़ा, और उत्कंठा के सम्मुख निश्चित समाधान के रूप में ईश्वर ने अपने पुत्र येशु को भेजा। अपने जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान द्वारा येशु ने हमें हमेशा के लिए ईश्वर से मेलमिलाप कराया और संसार के कोने कोने तक मुक्ति को पहुंचाने के लिए अपनी कलीसिया को स्थापित किया।
मुक्ति इतिहास की इस अद्भुत कथा को बाइबिल हमें विभिन्न पुस्तकों के अलग अलग हिस्सों में बताती है। आदम से येशु तक की सम्पूर्ण कहानी को समझने और विभिन्न किताबों और अध्यायों के माध्यम से निर्देश पाने के लिए आपको डॉ. कैविंस का टाइम लाइन पढ़ना चाहिए।
बाइबिल को पढने के दूसरे तरीके को ‘लेक्शियो डिवीना’ या ‘पवित्र वाचन’ कहते हैं। एक छोटे पाठांश को लेकर उसके माध्यम से ईश्वर को आपसे बात करने के लिए इस पवित्र वाचन का तरीका अवसर देता है। अच्छा होगा कि आप सुसमाचारों से या संत पौलुस के पत्रों से कोई छोटा पाठांश – 10 या 20 पद लें और ईश्वर को मौका दें कि वह आपसे इसके द्वारा बात करें।
वाचन (लेक्शियो): पहले पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें । उसके बाद पाठ को एक बार धीमी गति से पढ़ें (यदि हो सके तो जोर से पढ़ें)। कोई शब्द, वाक्यांश या बिम्ब जो आपका ध्यान आकर्षित करता है, उस पर ध्यान केन्द्रित करें।
ध्यान (मेडिटेशियो): उसी पाठ को दुबारा पढ़ें, और ईश्वर से पूछें कि वह उस शब्द, वाक्यांश या बिम्ब के द्वारा आप को क्या सन्देश संप्रेषित करना चाहता है। किस तरह यह आपके जीवन में प्रयोग में आता है?
प्रार्थना (ओरेशियो): इस पाठ को तीसरी बार पढ़ें, और जिस शब्द, वाक्यांश या बिम्ब ने आपका ध्यान आकर्षित किया, उसके बारे में ईश्वर से बात करें। ईश्वर के बारे में यह वाक्य क्या प्रकट करता है? उसके वचन के प्रत्युत्तर में आपको कुछ परिवर्तन लाने के लिए क्या ईश्वर आपसे कह रहा है? उसके प्रति और अधिक विश्वस्त रहने का संकल्प लें।
मनन (कोंटाम्प्लाशियो): ईश्वर की उपस्थिति में शांत बैठें। आपकी सोच में आ रहे किसी शब्द, बिम्ब या स्मृति पर मनन करें – इस तरह से परमेश्वर मौन में अपने सन्देश का संचार करता है।
सुसमाचार या पौलुस के पत्र को पढ़कर लाभ उठाने के लिए इस तरीके का प्रतिदिन प्रयोग करें। आप पायेंगे कि ईश्वर आपको बहुत सी प्रेरणा और ज्ञान देगा जिसकी आप ने कभी अपेक्षा नहीं की थी। ईश्वर के वचन के द्वारा उसे जानने के आपके प्रयासं में वह आपको आशीषें दे। चाहे आप इसे मुक्ति-इतिहास को समझने या अतीत में ईश्वर के किये कार्य को समझने के लिए आप पढ़ रहे हैं, या वर्त्तमान में ईश्वर किस तरह कार्य कर रहा है, यह जानने के लिए आप लेक्शियो डिविना के द्वारा प्रार्थना कर रहे हैं, दोनों स्थितयों में ईश्वर का वचन जीवंत और प्रभावशाली है, और यह आपके जीवन को बदल सकता है।
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सबसे महान पिता को खोजने में मेरे पिताजी ने मेरी मदद की।
15 जून, 1994 को मेरे पिताजी ने अपने स्वर्गिक पिता के पास रहने के लिए इस दुनिया से विदा ले लिया। यद्यपि शारीरिक रूप से वे मेरे साथ नहीं है, उनकी आत्मा मेरी स्मृति में जीवित है। मेरे सम्पूर्ण जीवन के अंतराल में उनके द्वारा जो भी बातें सिखाईं गई, उस के कारण आज मुझे ऐसा व्यक्ति बनने में मदद मिली है, जिस प्रकार के व्यक्ति बनने के लिए मैं लगातार कोशिश कर रही थी। उन्होंने मेरे अन्दर, छोटे बड़े, बुजुर्ग, सभी लोगों के लिए आदर और सम्मान की भावना भर दी। मेरे जीवन की अन्य बहुत सारी बातों की तरह, दूसरों को आदर देने की सीख भी मुझे कठिन प्रक्रिया से सीखनी पड़ी। मुझे वह दिन याद है जब मैंने अपनी माँ को कड़े शब्दों में जवाब दिया था, और अपना जीभ दिखाकर मैं उसे मुंह चिढाने लगी थी। मेरे पिताजी बस इतनी दूर पर थे कि वे मुझे सुन सकते थे, देख सकते थे। यह बताने की ज़रूरत नहीं, कि उस दिन मुझे खूब डांट मिली और माँ को आदर देने के बारे में लंबा लेक्चर सुनना पड़ा। कुछ लोग कह सकते हैं कि माँ को देखकर मुंह चिढाना बालकपन का खेल समझना चाहिए, लेकिन पिता जी केलिए यह अनादर का मामला था, और उनके विचार में इसे ठीक करने की ज़रुरत थी। परिणाम यह हुआ कि माँ को, और अधिकारप्राप्त बड़ों को आदर देने के विषय में मैं ने उस दिन बड़ी शिक्षा पायी।
मेरे पिताजी मोंटाना के बुट्टे में ताम्बे के खदानों में काम करने वाले खादानी मजदूर थे और बहुत ही मेहनती थे। वे कठिन परिश्रम पर और अपनी सर्वोत्तम क्षमता द्वारा परिवार को सहारा देने में विश्वास करते थे। खदान का काम जोखिम से भरा था। अपने काम के दौरान बहुत बार वे जख्मी हो गए थे। 1964 में एक भयानक खदान दुर्घटना में वे चोटिल हो गए, और इस से उन्होंने अपना खदान करियर और फिर से काम करने की क्षमता खो दी।
वह हमारे परिवार के लिए बहुत ही कठिन और नाजुक दौर था। अब आगे बिलकुल ही काम नहीं कर पायेंगे, और आगे चलकर विकलांग पेंशन से गुज़ारा करना पडेगा, इस सच्चाई को स्वीकार करने में उन्हें दिक्कत हुई। अपने परिवार को इज्जत की रोटी और बच्चों को अच्छी परवरिश करनेवाले उस कर्मठ पिता और पति के लिए, यह बहुत ही दुखदायी था। पिताजी बहुत ज़्यादा पीने लगे, अपने दुःख दर्द को शराब के बोत्तल में डुबाने की कोशिश वे कर रहे थे। हालांकि, कुछ महीनों के अन्दर, पिताजी के दिल में कुछ कुछ होने लगा। उन्होंने पीना छोड़ दिया और बाइबिल पढ़ना शुरू किया। मेरे पिताजी जिन्हें सिर्फ पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई हासिल थी, बहुत कष्ट सहकर परमेश्वर के वचन को बारीकी से अध्ययन करने और उसे अपने दिल में आत्मसात करने लगे। रोज़ ब रोज़, घड़ी दर घड़ी, उन्होंने ईश वचन का अध्ययन और मनन-चिन्तन किया। ईश्वर ने मेरे पिताजी के दिल को बदल डाला। वे ईश्वर के प्रेम का अनुभव करते हुए, प्रतिदिन का जीवन भरपूर जीने लगे।
एक कार दुर्घटना में अपनी 18 वर्ष की बेटी को खोने और अन्य बहुत से दिल तोड़नेवाले दौर से गुजरने के बावजूद, उन्होंने जीवन का श्रेष्ठ आनंद उठाया। हम भाई बहनों के चार नाती पोते और एक पोती हुए । एक दादा और नाना के तौर पर उनमें से किसी बच्चे के प्रति उन्होंने विशिष्ट प्रेम प्रकट नहीं किया। हर नाती-पोते को लगा कि वही दादा/नाना की आँखों की पुतली है ।
यद्यपि खदान की दुर्घटना के कारण काम करने की उनकी क्षमता ख़तम हो गयी, लेकिन यह हम सब केलिए एक चमत्कार पूर्ण आशीष बन गयी। हर नाती पोते के साथ अपना वक्त बिताने और उसका पूरा ख्याल करने और उसे प्यार करने का उनके पास काफी समय था। कानूनी तौर पर ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने की उम्र पंहुंचने से बहुत पहले ही, उन चारों नाती पोते को पिताजी नें अपने पुराने डाटसन पिकअप वैन चलाना सिखाया। खदान की दुर्घटना के कारण वे लंगड़ कर चलते थे, और उनके सभी नाती पोतों ने दादा/नाना की तरह ही चलकर उनकी नक़ल करने की कोशिश की। पिताजी और उन बच्चों का सड़क पर एक साथ चलना एक अभूतपूर्व दृश्य बनता था, क्योंकि सब के सब लंगड़ कर चलते थे। वे सभी दादा/नाना को अपना आदर्श मानते थे और उन्हीं की तरह बनना चाह रहे थे। वे बड़े क्षमावान और सब्र के आदमी थे, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनमें में से एक एक के साथ उन्होंने समय बिताया और इस अनुभव के हर पल का आनंद उन्होंने उठाया ।
एक शादीशुदा औरत और बच्चों की माँ होने के नाते, बहुत बार मैं अपने पिताजी की सलाह लेने और उनके प्रोत्साहन प्राप्त करने उनके पास जाया करती थी। वह अपने दिल से मुझे सुना करते थे और कभी दोष नहीं लगाते थे, लेकिन मुझे प्रार्थना करने और ईश्वर पर भरोसा करने का प्रोत्साहन देकर मेरी समस्याओं का समाधान ढूँढने का वे प्रयास करते थे। उनसे सीख लेकर मैं भी बाइबिल पढने लगी। पिताजी की बहुत सारी अमूल्य स्मृतियाँ मेरे मन में हैं। सबसे महत्वपूर्ण सीख जो उन्होंने मुझे दी है, वह मेरे स्वर्गिक पिता की प्रेममय उपस्थिति में प्रातिदिन स्वयं को समर्पित करने की सीख है। इस के द्वारा दुनिया के सबसे महान, और सबके अच्छे पिता से मैं प्रतिदिन कुछ न कुछ सीख ग्रहण कर सकूं।
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तीन ज्ञानियों के साथ यात्रा में चलिए और आश्चर्य पूर्ण बातों का आनंद लें ।
प्रभु प्रकाश का पर्व ज्योति का पर्व है। यशायाह नबी कहते हैं, “उठकर प्रकाशमान हो जा ! क्योंकि तेरी ज्योति आ रही है, और प्रभु ईश्वर की महिमा तुझ पर उदित हो रही है” (इसायाह 60:1)। संसार की ज्योति और मुक्ति के रूप में प्रकट किये गए प्रभु येशु की ओर यात्रा में हमारे मार्गदर्शन केलिए हमें ज्ञानियों के कार्यों की ओर देखना चाहिए। यदि हमें येशु से मुलाक़ात करनी है, तो ज्ञानियों ने जो किया, उस पर हमें ध्यान देना होगा। उन्होंने क्या किया? उन्होंने तीन कार्य किये: उन्होंने तारे को देखने केलिए ऊपर की ओर सर उठाया; उन्होंने इस तारे के अर्थ को समझते हुए उस प्रकाश तक पहुँचने केलिए अपने घर और कार्य कलापों को छोड़ दिया; और प्रभु की अराधना करने के लिए वे मूल्यवान उपहार लेकर आये।
ऊपर की ओर देखिये
यात्रा यहीं से शुरू होती है। क्या आप ने कभी सोचा है कि क्यों उन ज्ञानियों ने ही तारे को देखा और उसके अर्थ को समझा? शायद बहुत कम लोग स्वर्ग की ओर देख रहे थे, क्योंकि रोज़मर्रा की बातो पर केन्द्रित होकर उनकी नज़रें ज़मीन पर ही टिकी हुई थी। मेरे मन में सवाल उठता है कि हम में से कितने लोग आकाश की ओर देखते होंगे? हम में से कितने लोग स्तोत्र ग्रन्थ की रचयिता की तरह कह सकते हैं, “भोर की प्रतीक्षा करनेवाले पहरेदारों से भी अधिक मेरी आत्मा प्रभु की राह देखती है ….।” (स्तोत्र 130:6), या हम यह मानते हैं, “अरे, बस यही काफी है कि मेरा स्वास्थ्य अच्छा रहे, मेरा बैंक बैलेंस सही रहे, 5-जी नेटवर्क मुझे मिलता रहे, और कुछ मनोरंजन, विशेषकर रविवार के दिन क्रिकेट या फुटबाल का खेल देखने का मौक़ा मुझे मिले!” क्या हमें ईश्वर की प्रतीक्षा करना आता है, जीवन में वह जो ताजगी लाता है, उसकी हम प्रतीक्षा करते हैं, या हम खुद को ज़िन्दगी की तेज रफ़्तार में उडाये या बहाए जाने देते हैं? ज्ञानियों ने समझा कि पूरी तरह जीवित रहने केलिए ऊँचे आदर्शों की ज़रूरत है, और साथ साथ बड़े सपने देखने की ज़रुरत है तथा हमें ऊपर की ओर ताकने की ज़रूरत है।
आगे बढिए
ज्ञानियों ने येशु को पाने के लिए जो दूसरा बहुत ही आवश्यक काम किया, वह है उठना और यात्रा को आरम्भ करना। जब हम येशु के सामने खड़े होते हैं, एक विचलित करने वाले विकल्प के सवाल का जवाब हाँ या ना में हमें देना पडेगा । क्या वह बालक इम्मानुएल यानी ‘ईश्वर हमारे साथ’ है या नहीं? यदि वह इम्मानुएल है, तो अपना सम्पूर्ण बेशर्त समर्पण देने की ज़िम्मेदारी हमारी है, ताकि हमारा जीवन उस पर केन्द्रित हो। उसके तारे की तलाश में निकलना उसी की ओर बढ़ने का निर्णय है और जिस मार्ग को उसने हमारे लिए प्रशस्त किया उसी पर निरंतर आगे बढ़ने की ज़रुरत है। अक्सर हमारा सफ़र दो कदम आगे, एक कदम पीछे है, और इस यात्रा की अहम् बात येशु पर नज़र टिकाकर चलने में है, जब हम नीचे गिर जाते हैं तब उसकी मदद से स्वयं को उठाना और आगे की ओर बढ़ते रहना होगा।
लेकिन, जब तक हम अपने आरामदायक पलंग से बाहर निकलेंगे नहीं, जब तक हम अपने आराम को, अपनी सुविधाओं और सुरक्षाओं को त्यागेंगे नहीं, और सीधे खड़े रहने के बजाय जब तक बाहर यात्रा पर निकलेंगे नहीं, तब तक हम येशु की ओर बढ़ने के कार्य नहीं कर पायेंगे। येशु कुछ मांग रखते हैं: वह कहते हैं कि हम या तो उसके साथ रहें या उसके खिलाफ रहें। आत्मिक मार्ग में सिर्फ दो ही दिशाएँ हैं: या तो हम ईश्वर की ओर बढ़ रहे हैं या ईश्वर से दूर जा रहे हैं। यदि हम येशु की तरफ बढना चाहते हैं, तो हमें जोखिम उठाने के डर पर, अपनी आत्म संतुष्टि पर, और अपने आलस्य पर काबू पाना होगा। सरल भाषा में कह सकते हैं कि यदि हमें बालक येशु को खोज पाना है तो हमें खतरा मोलना होगा, और अपने के महिमान्वित करने की जीवन शैली को त्यागना होगा। लेकिन ये जोखिम, अधिक सार्थक तभी साबित होंगे, जब हम बालक येशु को खोज लेंगे, तब हम उसकी कोमलता, सौम्यता और प्रेम का अनुभव करेंगे और अपनी पहचान को पुन: प्राप्त करेंगे।
उपहारों को ले आइये
अपनी लम्बी यात्रा के अंत में ज्ञानी लोग वही कार्य करते हैं, जो ईश्वर करता है: वे उपहारों की वर्षा करते हैं। ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार स्वर्गीय जीवन है, जिसे उसके साथ अनंतता में जीवन बिताने के लिए वह हमें आमंत्रित करता है। ज्ञानियों ने अपनी समझ के आधार पर सबसे मूल्यवान उपहारों को अर्पित किया: सोना, लोबान और गंधरस। ये उपहार उस बात के प्रतीक हैं जिन्हें संत जॉन पॉल द्वितीय ने उपहार के कानून का दर्जा दिया: अर्थात स्वयं को अर्पित करनेवाले प्रेम के आधार पर ईश्वर जिस तरह कार्य करता है, उसी तरह हम अपना जीवन बिताएं, तो हम ईश्वर के साथ सच्चे रिश्ते में बने रहेंगे। जो सर्वश्रेष्ठ उपहार आप येशु को दे सकते हैं, वह है आपका अपना जीवन। मुफ्त में दे दीजिये, बिना कोई हिचक के, कुछ भी अपने लिए मत रखिये। बदले में कुछ भी पाने की इच्छा रखे बिना दीजिये – स्वर्गरूपी पुरस्कार की इच्छा रखे बिना। यह इसका सच्चा संकेत है कि आपने येशु को ढूंढ लिया है। क्योंकि येशु कहते हैं: “तुम्हें मुफ्त में मिला है, मुफ्त में दे दो” (मत्ती 10:8): मूल्य की गिनती किये बिना, दूसरों के लिए अच्छा कार्य कीजिये, जब इसकी मांग नहीं की जाती, तब भी, और बदले में कुछ भी न मिले, तब भी। जब यह असुविधाजनक हो, तब भी दूसरों की भलाई कीजिये। ईश्वर आपसे यही कार्य चाहता है, क्योंकि ईश्वर हमारे साथ ऐसा ही व्यवहार करता है।
ईश्वर अपने आप को हमारे बीच कैसे प्रकट करता है, उसे देखिये, समझिये: वह एक शिशु के रूप में अपने को प्रकट करता है – वह हमारे लिए छोटा बना। हम प्रभु प्रकाश पर्व मनाते समय, अपने हाथों को देखें: वे हाथ आत्म-दान से रिक्त हो गए हैं, या हम बदले में कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा रखे बिना, अपने जीवन के मुफ्त उपहार को समर्पित कर रहे हैं? और हम येशु से मांगे: “प्रभु, अपनी आत्मा को भेज दें, ताकि मेरा नवीकरण हो जाए: ताकि देने के आनंद की मैं पुनर्प्राप्ति कर सकूं।“
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अब चूँकि मेरी शादी हो चुकी थी, मैं ने सोचा कि मैं अतीत की घटनाओं को भूलकर जीवन में आगे बढ़ सकती हूँ, मानो कि मेरे साथ अतीत में कुछ भी नहीं हुआ हो, और मेरी सारी पीड़ा समाप्त हो जाएगी, लेकिन मेरे अन्दर के अवसाद और क्रोध के साथ मैं संघर्ष करने लगी।
एक बड़े आइरिश कैथलिक परिवार की नवीं संतान के रूप में मेरा जन्म हुआ था। मेरी माँ एक भक्त कैथलिक महिला थी, लेकिन मेरे पिताजी शराब के प्रति आसक्त थे, और इस कारण बहुत सी समस्याएँ खड़ी हो गयीं, और इस लिए मेरा बचपन बहुत ही नाजुक दौर से गुज़रा। जब मैं चौदह साल की थी, मेरा बलात्कार हुआ, लेकिन मैं ने जब इसके बारे में किसी को बताया, तो उसने कहा, “तुम्हें यह होने नहीं देना चाहिए था, अब तुम एक वेश्या की तरह हो”। उस व्यक्ति का कथन सही नहीं था, फिर भी मैं अपने को पतिता और पापिनी मानने लगी। चूँकि मैं वेश्या नहीं बनना चाहती थी, इसलिए मैं ने एक लड़के को अपना प्रेमी बनाया। मेरे आसपास के समाज की तरह सोचते हुए अनैत्कता के बहाव में बहकर मैं ने नैतिकता की गलत धारणा बना ली, और मैं मानने लगी कि जब तक आप किसी के साथ दोस्ती में है, तो यौन सम्बन्ध बनाने में कोई गलती नहीं है।
जब मैं सोलह साल की हुई, मैं गर्भवती हो गयी। उस लड़के ने मुझे गर्भपात के लिए मजबूर किया, ताकि हम दोनों हाई स्कूल की पढ़ाई पूरा कर सकें। मैं बीमार, विचलित और डरी सहमी थी, लेकिन मैं ने समझा कि मैं समस्या में डूबी हूँ जिसका समाधान ढूंढना पडेगा। जब वह मुझे एबॉर्शन क्लिनिक ले गया, तब मैं डर के मारे इतनी काँप रही थी, कि मुझे शांत करने केलिए नर्स ने मुझे शांत करने के लिए वैलियम का डोज़ दिया। तब उस नर्स ने मुझसे कहा, “चिंता मत करो बेटी, यह बच्चा नहीं है, समझो कि बस कुछ कोशिकाओं का पिण्ड है। मैं पूरी तरह से स्तब्ध रह गयी। लेकिन गर्भपात करनेवाले उस डॉक्टर की अट्टहास भरी आवाज़ “हा हा हा, मैं इसी तरीके से भ्रूण ह्त्या करना चाहता हूँ” मेरे कानों में गूँजता रहता है। मेरे आंसू मेरे गालों से लरज़ते हुए, कागज़ की जिस चादर पर मुझे लिटाया गया था, उस पर फ़ैल गया, जिसकी नमी का एहसास मुझे अभी भी होता है।
जिस दिन मैं स्कूल में लौटी, उस दिन की याद मेरे दिमाग में स्पष्ट अंकित है, मैं बरामदे में खड़ी थी, और एक बच्ची मेरे पास आकर बड़ी दयालुता के साथ मुझे देखकर कहने लगी, “आइलीन, तुम्हें क्या हो गया?” तुरंत इनकार की तरंग मुझ में उठ खड़ी हो गयी और मैं ने तपाक से जवाब दिया, “कुछ नहीं, क्यों ऐसे पूछ रही हो?”
“पता नहीं, तुम ठीक नहीं लग रही हो”।
मैं दूसरों से भिन्न थी!
मेरी ज़िन्दगी नीचे की और लुढ़कती गयी। अपने आप को दूसरों से दूर रखने और उस प्रेमी के साथ समबन्ध को बरकरार रखने के लिए मैं शराब पीने और मादक द्रव्य लेने लगी। जब मैं अठारह साल की हुई तो फिर गर्भवती हो गयी और फिर गर्भपात किया। इस अनुभव से मैं इतना अधिक भयभीत हो गयी थी कि मुझे कुछ भी याद नहीं है, यहाँ तक वह जगह भी नहीं मालूम। लेकिन मेरी बहन और मेरा प्रेमी को सब याद है। मैं इतनी पीड़ा को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
मेरे प्रेमी के साथ संबंध टूट गया और मैं ने नए प्रेमी को ढूंढ लिया और शारीरिक संबंध में रहे। यदि उस समय की मेरी आत्मा की स्थित के बारे बोलूँ, तो बस इतना कह सकती हूँ की वह पूरी तरह नाशवान स्थिति में थी, उस समाज की अपसंस्कृति की तरह जिसे मैं ने अपनाया था।
जब मैं तेईस साल की थी, मेरे जीवन की सबसे खराब घटना के कारण मुझे अपने काहिल जीवन का बड़ा भयंकर धक्का लग गया। एक शराबी ड्राईवर के कारण मेरी माँ एक दुर्घटना में चल बसी। दफ़न विधि के दौरान मैं ने देखा कि ताबूत के ऊपर से धुप का धुवां उठ रहा है। यह ईश्वर की ओर हमारी प्रार्थना के उठने का प्रतीक है, लेकिन मुझे लगा कि मेरी माँ की आत्मा ईश्वर की ओर उड़ान ले रही है। मेरी माँ एक वफादार विश्वासी थी, इसलिए मुझे पक्का विश्वास था कि वह ईश्वर के पास जा रही है । मैं उस से फिर मिलना चाहती थी, इसलिए स्वर्ग जाने की इच्छा मुझ में हुई, लेकिन मुझे पता था कि इस केलिए मुझे अपनी ज़िन्दगी में परिवर्त्तन लाना होगा। उसी समय मैं अपने घुटनों के बल पर झुक गयी और प्रभु को रो रोकर पुकारने लगी। मैं फिर से गिरजाघर जाने लगी, लेकिन एक महीने के अन्दर मैं ने पाया कि मैं फिर से गर्भवती हूँ। मुझे यह डरावनी अनुभूति हुई की मेरी माँ सब कुछ जानती है क्योंकि वह ईश्वर के साथ है।
वह दर्द जिसे भुला नहीं पा रही हूँ
मेरी बेटी की परवरिश के लिए मैं ने एक नौकरी ढूंढ ली, और मैं ने उसे प्यार दिया और उसकी देखभाल की जिसकी चाहत स्वयं मुझे थी। प्रभु मेरे जीवन में एक अच्छे आदमी लाया, इसलिए विवाह की तैयारी में मैं ने सारे पापों को, उन सारे गर्भ पात के बारे में भी बताकर पाप स्वीकार किया। जब पुरोहित ने मुझे पाप क्षमा दी और मुझसे कहा कि “येशु आपको प्यार करता है” तो मुझे विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि मुझे लगा कि मैं ने सबसे घोर अक्षम्य पाप किया है। जितना अधिक पीड़ा को मैं भोग रही थी, उसे मैं नकार रही थी, जबकि प्रतिदिन मैं इस पीड़ा के बारे में सोचती थी।
मेरे अन्दर यह सोच थी कि चूँकि मेरी शादी हो चुकी है, इसलिए अब सब कुछ ठीक हो जाएगा और जिस आनंदमय जीवन की मैं रोज़ आशा करती थी, उसका आनंद मैं अभी उठा सकती हूँ। मैं ने सोचा कि अब मैं आगे बढ़ सकती हूँ, मानो कि मेरे अतीत में कुछ भी न हुआ हो, और सारी पीड़ा अप्रत्यक्ष हो जायेगी ।
लेकिन इसके विपरीत, मैं अवसाद और क्रोध के साथ संघर्ष करने लगी। दूसरों के साथ घनिष्ठता मेरे लिए सबसे बड़ी समस्या थी। इसलिए मुझे अपने व्यक्तित्व को पूरी तरह से जीना कठिन हो गया, और दूसरों से दोस्ती बनाना और उसे निभाना मेरे लिए बहुत ही कठिन कार्य हो गया। अपने बारे में मुझमें एक खंडित समझ थी, जबकि गर्भपात किये गए उन बच्चों के बारे में मैं सोचती थी, लेकिन मैं किसी से उनके बारे में बोलती नहीं थी बात नहीं करती थी।
लेकिन प्रभु ने मेरी उपेक्षा नहीं की। मेरी दोस्ती ग्रेस से हुई, जिसने मुझे सिस्टर हेलेन से परिचय कराया। सिस्टर हेलेन को चंगाई का वरदान प्राप्त था।
जब सिस्टर हेलेन ने मेरे ऊपर प्रार्थना की, उन्होंने मेरे बारे में ऐसी बात कही जिसकी जानकारी होना उनके लिए असंभव था । इस से मैं भयभीत हो गयी। गर्भपात के कारण महिलाओं में विभिन्न स्तर के असर पड़ते हैं और उनमें से एक असर है येशु से भयभीत रहना। जब मैं गिरजाघर जाती हूँ, तो मैं ठीक रहती थी, क्योंकि मुझे लगता था कि येशु दूर कहीं स्वर्ग में विराजमान है। सिस्टर हेलेन ने मुझ से कहा: “आइलीन, पता नहीं, यह क्या है, लेकिन येशु चाहता है कि आप मुझे इसके बारे में बतावें। मैं ने उन्हें गर्भपात के बारे में बताया और में खूब रोई। उन्होंने बड़ी सौम्यता के साथ फुसफुसाया: अच्छा, अब मैं समझ रही हूँ, मैं चाहती हूँ कि पहले आप इसके बारे में प्रार्थना करें। येशु से बोलिए कि वह आपको इन बच्चों के नाम बताएं।´ जैसे मैं ने प्रार्थना की, मुझे लगा कि प्रभु मुझे बोल रहा है कि मेरी एक छोटी बच्ची थी जिसका नाम ऑटम था और एक बेटा जिसका नाम केनेथ था। वे अनंतता तक मेरे जीवन के हिस्से बनेंगे। इसलिए उनको तिरस्कृत करने के बजाय मुझे उन्हें स्वीकार करना होगा। इससे मुझे उनके बारे में सोचकर शोक मनाने का अवसर मिला, तकिये को अपने आंसुओं से भिंगोकर बड़ी गमी के साथ।
उनके बाहों में
एक दिन मेरा पति अपने काम से जल्दी घर आया, और पाया कि मैं घर के तहखाने में साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में बैठकर रो रही थी। क्योंकि उस दिन मैं ने आखिरकार स्वीकार किया था कि मैं ने अपने ही बच्चों की जान लेने के जुर्म में भाग लिया था। मेरे पति ने मुझे प्यार से ऊपर उठाया और उन्होंने मुझसे पूछा: “प्रिये, क्या हुआ?” गर्भपात के बारे में अपने पति को खुलकर बताने की कृपा प्रभु ने उस वक्त मुझे दी। उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भरकर कहा : सब कुछ ठीक हो जाएगा, मेरा प्यार अब भी तुम्हारे साथ रहेगा।“
जब मैं सिस्टर हेलेन के साथ फिर से और चंगाई प्रार्थना के लिए फिर गयी, तो मैं ने अपने मन की आँखों से देखा कि मैं येशु की गोद में बैठी हूँ, और मेरा सिर येशु के सीने पर टिका हुआ है। तब मैं ने देखा की धन्य माँ मरियम मेरे बच्चों को अपने आँचल में लेकर उन्हें प्यार दे रही है। माँ मरियम उन बच्चों को मेरे पास लाई और मुझे दी। मैं ने उन्हें अपने गोद में लेकर उनसे कहा कि मैं उन्हें बहुत प्यार करती हूँ, और मैं ने उनके साथ जो किया, उसके बारे में सोचकर मैं बहुत दुखी हूँ। उन्हें माँ मरियम के प्रेमभरे हाथों में सौंपने से पहले मैं ने बच्चों से क्षमा माँगी। माँ ने मुझसे वादा इया कि ये बच्चे उसके और येशु के साथ अनंतकाल तक स्वर्ग में रहेंगे। उसके बाद येशु और मरियम ने मेरा आलिंगन किया और येशु को यह कहते हुए मैं ने सुना: “मैं तुम से प्यार करता हूँ“।
ईश्वर की प्रेममय करुणा की गवाही देने वाले लोगों से मुझे प्रेरणा मिली है, इसलिए अब मुझे भी लगा कि मुझे भी अपनी जीवन की गवाही सुनाने की ज़रुरत है। गर्भपात के बुरे प्रभाव से चंगाई पाने की आशा में आ रही महिलाओं के लिए आयोजित ‘रेचल विनियार्ड’ साधना में एक थेरापिस्ट बनकर मैं मदद करने लगी।
जीवन में पुन:स्थापित
जब लोग मुझसे पूछते हैं, “एक थेरापिस्ट के रूप में जब आप इन सब लोगों की दर्द भरी कहानियों को सुनती हैं तो इन पीडाओं को आप अपने अन्दर कैसे संजोकर रख पाती हैं?” मैं उनसे कहती हूँ कि यह कार्य मैं अकेले नहीं करती हूँ। माँ मरियम मेरे साथ रहकर यह कार्य करती है। मैं मरियम के प्रति समर्पित हूँ, इसलिए मैं जो कुछ करती हूँ वह सब मरियम के द्वारा येशु के लिए करती हूँ। रोजाना की रोज़री माला से और मिस्सा में रोज़ाना परम प्रसाद में प्रभु को ग्रहण करने से मुझे ज़रूरी ताकत मिल जाती है। चूँकि मिस्सा बलिदान के दौरान सम्पूर्ण स्वर्ग मिस्सा की वेदी को घेरने केलिए उतर आता है, इसलिए मिस्सा में मैं प्रतिदिन अपने बच्चों से मुलाक़ात करती हूँ।
लगभग तीस से अधिक वर्षों बाद, मेरे गर्भपात किये गए बच्चों के पिता को मैं ने संपर्क किया, ताकि मैं अपनी चंगाई के बारे में उसे बता सकूं और उस उम्मीद की भेंट उन्हें दे सकूं। उसने मुझे धन्यवाद दिया क्योंकि इस से उसके दिशाहीन जीवन के बारे में उस को एक सन्देश मिला और प्रत्याशा मिली कि उसका जीवन बदल सकता है। जैसे उसने मुझसे कहा, “अब तक मुझसे सिर्फ वे दो ही बच्चे पैदा हुए हैं”, उसकी आवाज़ थरथरा रही थी।
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शालोम वर्ल्ड कार्यक्रम “मरियम मेरी माँ” के लिए दी गयी गवाही पर यह लेख आधारित है। आइलीन एक पत्नी, माँ और प्रमाणित काउंसिलर (सलाहकार) हैं। वे पिछले 34 वर्षों से विवाहित हैं, और अपने पति के साथ मिशिगन में रहती हैं। उनकी तीन वयस्क संतान हैं। उस एपिसोड को देखने केलिए shalomworld.org/mary-my-mother पर जाएँ।
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मेरा मन बहुत ही विचलित था। हताशा और आक्रोश का चक्रवात मेरे दिल में घुसपैठ करने की धमकी दे रहा था। मेरे पति और मेरे बीच बहस हुई, जिसके कारण मेरी तीव्र भावनाएं मेरे दिल पर छा गयी, और मेरे दिल में मेरे प्यारे पति के खिलाफ कड़वाहट पैदा कर दी। मेरे साथ क्या हो रहा था? मैं उस आदमी के बारे में ऐसा कैसे महसूस कर सकती हूं जिसे मैं पूरे दिल से प्यार करती हूं? झूठ का शहजादा और दाम्पत्य जीवन का दुश्मन शैतान द्वारा हमारे वैवाहिक जीवन पर हमला किया जा रहा था।
अगर एक चीज है जिससे शैतान नफरत करता है, तो वह है विवाह का संस्कार। क्योंकि एक पति और पत्नी हमारे त्रियेक परमेश्वर के शक्तिशाली संबंधपरक गुणों को प्रतिबिम्बित करते हैं, इसलिए हम पर शैतान का लगातार आक्रमण होता है। यह सच है कि दाम्पत्य जीवन कठिन है और कभी-कभी सलाहकारों के सहयोग की आवश्यकता होती है, लेकिन कई संघर्ष रोजमर्रा की जिंदगी में होते हैं। और यहीं पर शैतान सबसे अधिक बार गीदड़ गश्ती करते हुए दिखाई देता है। वह हम पर धूर्त प्रलोभनों से हमला करता है – स्वार्थ, अभिमान, आक्रोश के सुझाव – जो ज़हर की तरह हमारे भीतर और हमारे विवाह बंधन में एक ज़हरीली बीमारी का कारण बनते हैं। शैतान हमारे विवाह बंधन को खत्म करने के लिए हर संभव कोशिश करता है, क्योंकि वह जानता है कि एकता में दृढ पति-पत्नी मजबूत होते हैं, और वे शैतान को पहचानने और उसके खिलाफ लड़ने में बेहतर होते हैं। और जब येशु और उसकी कलीसिया हमारे साथ हैं, तो हमारे पास शैतान के विषाक्त सुरा के खिलाफ लड़ने के लिए मारक दवा है।
स्वार्थ बनाम उदारता
आदि पाप के कारण, हम स्वयं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मज़बूर हैं। शैतान यह जानता है और हमारे सामने झूठ परोसता है कि हम विशेषाधिकार के योग्य हैं और इस विशेषाधिकार को सिर्फ अपने लिए ग्रहण करने के हम हकदार हैं। वह हमें केवल अपनी भलाई की तलाश करने के लिए प्रलोभित करता है। स्वार्थ का ज़हर पति-पत्नी के बीच गहरी खाई का कारण बन सकता है। खासकर आपस में जब असहमति या गलत सम्प्रेषण होता है, तो हम में से कई लोग अपने जीवनसाथी से दूर होने के लिए ललचाते हैं। इसके बजाय हमें अपनी विवाह संस्कार की प्रतिज्ञाओं का उदारतापूर्वक नवीनीकरण करने की ज़रुरत है! इसलिए, यदि आप स्वार्थ के कारण स्वयं को पीछे हटते हुए पाते हैं, तो अपने जीवनसाथी को जानबूझकर स्नेह और प्रेम के संकेत देने का विशेष प्रयास करें। आपका दिल विद्रोह कर सकता है, लेकिन आपके कार्य ठोस हैं: “मैं तुमसे प्यार करने का निर्णय लेता/लेती हूँ।”
अहंकार बनाम विनम्रता
हम सभी अहंकार के साथ संघर्ष कर रहे हैं और शैतान को यह मालूम है, और वह हमें किसी भी मामूली या गलतफहमी का शिकार होने के लिए प्रेरित करता है। वह चाहता है कि हम अपने चोटिल अभिमान की लाड प्यार से परिचर्या करें, अवसाद की मनोदशा में हम लिप्त रहें, और यहाँ तक कि अपने जीवनसाथी को “मौन उपचार” दें। इस ज़हर से लड़ने के लिए, विनम्रता के मारक दवा को आगे बढ़ाने के व्यावहारिक कदम उठाने पर विचार करें। अपने जीवनसाथी में तीन गुणों की एक सूची लिखें जिसके लिए आप आभारी हैं। इस सूची को ज़ोर से पढ़ें और अपने जीवनसाथी को बताएं कि आप इन बातों के लिए आभारी हैं! किसी भी गलतफहमी में हमारे हिस्से की जिम्मेदारी स्वीकार करने की इच्छा भी विनम्रता होती है। इसे ज़ोर से बोलना पहली बार में असहज होता है लेकिन एक साथ विनम्रता की आदत बनाना हमारे दाम्पत्य जीवन को अहंकार के ज़हर से बचाना होता है।
मनमुटाव बनाम क्षमा
रिश्ते जोखिम भरे हैं। जब हम प्यार करते हैं, तो हमें चोट लग सकती है। लेकिन जब हम अपने जीवनसाथी से नाराज़ या आहत होते हैं तो हम क्या करते हैं? हम में से कई लोगों के लिए, क्षमा करना कठिन है, और यहीं पर शैतान घात में बैठा रहता है। वह चाहता है कि हम हर अपराध का लेखा-जोखा रखें, हमारे दिलों में गहरे विद्वेष को पकड़ कर रखें, जब तक कि हम मनमुटाव और आक्रोश के गुलाम नहीं बन जाते। इसके बजाय, हमें अपने जीवनसाथी को क्षमा करने के लिए जानबूझकर निर्णय लेने की ज़रूरत है। येशु चाहता है कि हम द्वेष रखना बंद करें और अपने जीवनसाथी को और स्वयं को उसकी करुणा के प्रति समर्पित कर दें। वैवाहिक जीवन में व्यावहारिक क्षमा को क्रियान्वित करने के लिए साहस चाहिए। क्या आप अपने जीवनसाथी को संदेह का लाभ देना चुनेंगे? क्या आप अपने जीवनसाथी को छोटी-छोटी बातों में माफ कर देंगे?
मैं अपने दाम्पत्य जीवन के हर दिन शैतान के धूर्त प्रलोभनों को अस्वीकार करने का संघर्ष करती हूं। कई बार असफल हो जाती हूँ। लेकिन मैं और मेरे पति एक-दूसरे को, हमारी असफलताओं में क्षमा, जीवन में बढ़ने की गुंजाइश और साथ में हमारे जीवनयात्रा पर एक दूसरे को प्रोत्साहन की कृपा देना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए शैतान के खिलाफ लड़ाई में एकजुट, प्रतिबद्ध दो लोगों के टीम वर्क की जरूरत होती है। मुझे अपने विवाह पर विश्वास है, और मुझे आपके विवाह पर विश्वास है! अपने जीवनसाथी के लिए लड़ें और प्रभु को आपके दिल में और आपके वैवाहिक जीवन में अपना प्रकाश चमकाने के लिए आमंत्रित करें। उनकी कृपा और मारक दवा आपके विवाह को शत्रु के विष से बचाएंगी। “दृढ़ बने रहो और ढारस रखो! भयभीत न हो और उनसे मत डरो; क्योंकि तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम्हारे साथ चलता है। वह तुम्हें विनाश नहीं करेगा और तुमको नहीं छोड़ेगा।” (विधि-विवरण 31:6)
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आपके जीवन के लिए परमेश्वर की योजना पर ध्यान केंद्रित करने की एक सरल तकनीक यहाँ दिया जा रहा है।
कुछ वर्ष पहले, नव वर्ष के दिन, ‘ईश माता की पवित्रता का पर्व’ मनाते हुए, पुरोहित ने हमें आगामी वर्ष के लिए धन्य माँ से कोई “शब्द” मांगने के लिए प्रोत्साहित किया। यह शब्द एक विशेष अनुग्रह के रूप में दिया जा सकता है, जिसे माँ हमें देना चाहती हो, या हो सकता है कि यह जीवन में हमारे मिशन पर हमारा ध्यान पुन: केंद्रित करने वाला शब्द हो, या एक गुण जिसपर बढ़ने में वह हमें मदद करना चाहती हो। शब्द का चयन माँ मरियम पर निर्भर था – हमारी भूमिका प्रार्थना करने और उस शब्द को प्राप्त करने तक सीमित थी, और फिर आने वाले वर्ष में माँ मरियम उस शब्द से हमारे लिए इसका अर्थ को समझा देती। पुरोहित रुके और हम सभी को प्रार्थना करने के लिए कुछ समय दिया। मैंने माँ मरियम से मेरे लिए ‘शब्द’ मांगा और “विनम्रता” शब्द स्पष्ट रूप से मेरे दिमाग में सुनाई दिया। जैसे ही वह वर्ष आगे बढ़ता गया, मैंने माँ मरियम से विनम्रता के बारे में बहुत कुछ सीखा, और मुझे पता है कि उसने मुझे इस गुण को विकसित करने में मदद की जिसे वह स्वयं भी अपने जीवन में बड़ी खूबसूरती से जिया था।
अगले वर्ष, मुझे जो शब्द मिला था, वह था “संतोष।” आगामी महीनों में, माँ मरियम ने मुझे संत पौलुस फिलिप्पी 4:11 के द्वारा जिस विषय पर बात करते हैं उसे अच्छी तरह समझने में मदद की: “मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मुझे किसी बात की कमी है, क्योंकि मैंने हर परोस्थिति में स्वालंबी होना सीख लिया है।” मेरे आध्यात्मिक जीवन में इस प्रकार हर वर्ष धन्य माँ से यह वार्षिक विषय-शब्द माँगना मेरे लिए एक उपयोगी अभ्यास साबित हुआ है। इसलिए प्रत्येक नए वर्ष की शुरुआत में, मैं प्रार्थना करता हूं और धन्य माँ मरियम से आने वाले वर्ष के लिए मुझे अपना विशेष “शब्द” देने के लिए कहता हूं।
बीते वर्ष 2021 के लिए, मेरा शब्द “मध्यस्थ प्रार्थना” रहा है। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो मैं समझ सकता हूं कि यह विषय मेरे लिए कितना उपयुक्त था क्योंकि उन दिनों मैं अपनी बुजुर्ग मां की प्राथमिक देखभाल कर रहा था। मेरा जीवन अब उसकी देखभाल करने के इर्द-गिर्द घूमता है, जो एक विशेषाधिकार और सम्मान है, लेकिन इसके लिए मुझे लोगों और अपने सेवा कार्यों के साथ अपनी बाहरी भागीदारी को कम करने की भी आवश्यकता है। कभी-कभी इसके कारण मुझे अलग-थलग होने का और अकेलापन का एहसास हो जाता है। जैसे जैसे मेरी माँ की उम्र बढ़ती जा रही है, हमें डॉक्टर से बार बार मिलने, भौतिक चिकित्सा सत्रों, विभिन्न स्वास्थ्य जांच आदि में जाना पड़ता है और माँ की भावनात्मक जरूरतों के लिए नाजुक संचालन और बार बार आश्वासन देने की आवश्यकता होती है। इस कारण, दिन के अंत में, मेरे पास बहुत अधिक आंतरिक ऊर्जा नहीं रह जाती है।
लेकिन कार की सवारी के दौरान शांत क्षणों में, या जांच कक्षाओं में डॉक्टरों की प्रतीक्षा में बैठते हुए, मैं लोगों के लिए मध्यस्थ प्रार्थना कर सकता हूं। मैंने प्रभु से कहा कि जिनके लिए वह चाहता है कि मैं प्रार्थना करूं – मित्र, परिवार के सदस्य, हमारे स्वैच्छिक संगठन में सेवकाई के अगुवा, जिन लोगों की हम सेवा करते हैं, आदि लोगों को मेरे मन में लाया जाए। मैं प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रार्थना करता हूं क्योंकि वे मेरे विचारों में आ जाते हैं। मैं उनके लिए प्रभु के कोमल प्रेम, आशीर्वाद और चंगा करने और उनकी मदद करने की उनकी इच्छा को महसूस करता हूं। अच्छे चरवाहे के पास अपनी भेड़ों के लिए प्रेम और दया के कुओं में से जल निकालने में मेरे दिल को सुकून मिलता है।
चूँकि मैं इस मिशन में माता मरियम के साथ सहयोग करता हूं, कि उसने मुझे इस वर्ष के लिए अपना “शब्द” देकर मुझे अपनी प्राथमिक कार्य पर ध्यान लगाने में मदद की, इसलिए, किसी न किसी तरह, मैं लोगों से अधिक जुड़ाव महसूस करता हूं। अपने को दूसरों से अलग-थलग या हाशिए पर किये जाने का एहसास करने के बजाय, मसीह के शरीर में हमारे आंतरिक जुड़ाव का एक गहरा एहसास मेरे दिल को भर देता है। जैसा कि हम इस वर्ष के अंत और 2022 की शुरुआत के करीब हैं, जिस अभ्यास को हमारे पुरोहित ने सिफारिश की थी, उसे अपनाने के लिए मैं आपको प्रोत्साहित करता हूं। मौन प्रार्थना में कुछ समय बिताने के बाद माँ मरियम से कहें कि वह आपको इस नए साल के लिए उनका “शब्द” दें। इसे प्राप्त करें, और फिर माँ से कहें कि वह यह समझने में आपकी मदद करें कि इससे उसका क्या मतलब है, यह आपके जीवन के लिए परमेश्वर की योजना को बेहतर ढंग से जीने में आपकी मदद कैसे करेगा, और आप इसे अपनाकर अन्य लोगों को कैसे आशीर्वाद दे सकते हैं। आप पा सकते हैं कि यह सरल प्रार्थना और अभ्यास जिस तरह मेरे जीवन में फलदायी रहा उसी तरह आपके आध्यात्मिक जीवन में गहरा फलदायी होगा।
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सबसे बड़ी राहत आपको यह जानकर मिलती है कि कोई हर समय आप पर पूरा ध्यान दे रहा है!
अभी पिछले ही दिन मैंने अपनी चिंता को दूर करने के लिए बाहर घूमने का फैसला किया। जब मैं बाहर गई, तो मैंने देखा कि थोड़ी धूप, थोड़ी छांव निकली हुई थी। जब तक मैं फुटपाथ पर पहुंची, एक तेज़ हवा मुझसे जा टकराई! मैंने हँसते हुए कहा, ” मुझे धक्का देने की ज़रूरत नहीं है! मैं अपने आप चल सकती हूँ!”
जैसे ही मैंने उस अद्भुत हवा से ऐसा कहा, मुझे याद आया कि मैं अकेली नहीं हूं। और मैं कभी भी अकेली नहीं हूं। मैंने ऊपर की ओर देखा और सड़क पर चलते हुए प्रार्थना की: “प्रिय ईश्वर, आप अच्छी तरह जानते हैं कि आपको कब मुझे धक्का देना चाहिए और कब मैं अपने आप चलने में सक्षम हूं। मुझ पर इतना ध्यान देने के लिए आपको धन्यवाद!” इतना कहने के बाद, मैं अपने आस पड़ोस के परिचित नज़ारों का आनंद लेने लगी। अपने हर एक कदम के साथ, मेरे अंदर अपनापन की भावना ने उस गुस्से की जगह ले ली जिस गुस्से ने मुझे घर से बाहर निकलने पर मजबूर किया था।
मैं चिंतित थी क्योंकि दुनिया भर की खबरों ने मुझे मुस्कुराने की बहुत कम वजहें दी थी। यहां तक कि हमारी दुनिया की बिगड़ती हालत से मुझे विचलित करने में इस साल के ओलंपिक खेलों में खेल रहे वीर खिलाड़ी भी नाकाम रहे थे। जब हम में से सबसे स्वस्थ लोगों तक को भी कोई न कोई कोरोना संस्करण होने लगा था, तो मुझे यह चिंता सताने लगी कि क्या हम कभी इस बीमारी से छुटकारा पा पाएंगे? जब मैंने उस संभावना पर सोचना शुरू किया, मैंने दुनिया भर में मौजूद उन सभी लोगों के बारे में सोचा, जो हमेशा यह सोचा करते हैं कि क्या वे कभी अन्याय और गरीबी, युद्ध और उत्पीड़न, बीमारी और प्राकृतिक आपदाओं से छुटकारा पा सकेंगे।
सुसमाचार एक युवा लड़के की बात करते हैं जो उस दिन भीड़ में शामिल था जब पांच हजार लोग बिना अपने रात के खाने की चिंता किए, येशु को सुनने के लिए आए हुए थे। यह जानकर कि वहां एकत्रित लोग बहुत भूखे होंगे, येशु ने अपने शिष्यों की ओर देखा और पूछा कि उन सभी को खिलाने के लिए उन्हें भोजन कहाँ से मिलेगा। सुसमाचार हमें बताता है कि उस समय उन लोगों के पास जौ की पाँच रोटियों और दो मछलियों की टोकरी के अलावा कुछ भी उपलब्ध नहीं था, जिसे वह लड़का अपने साथ ले आया था।
बचपन से मैं इस बारे में सोचती रही हूँ कि कैसे वह लड़का उस भूखी भीड़ के बीच अपने भोजन को सुरक्षित रखने में कामयाब रहा होगा। मैं यह भी सोचा करती थी कि येशु ने उस लड़के के हाथों से वह खाने की टोकरी किस तरीके से आसानी से लेने की कोशिश की होगी। शायद उस लड़के के लिए उसका दिनभर का भोजन वाही पांच रोटियाँ और दो मछलियाँ रही होंगी या वह उसे बेचार कुछ कमाई करनेवाला था। किस बात ने उस लड़के को उन रोटियों को खाने की इच्छा तय्गने या बेच कर कुछ पैसे कमाने के लालच से दूर रखा? मुझे लगता है कि इस सवाल का जवाब उन परिस्थितियों में छुपा है जिनसे वह लड़का उस वक्त घिरा हुआ था। हो सकता है कि वह इलाका उस लड़के के घर के पास था, शायद उस लड़के के माता-पिता और पड़ोसी भीड़ में मौजूद थे, या शायद उसके लालच ना करने की वजह खुद येशु थे। हालाँकि वह येशु से नहीं मिला होगा, फिर भी उसने निश्चित रूप से उनकी कहानियाँ सुनी थीं और उनके गहरे प्यार को महसूस किया था।
हालाँकि मैं अपने आस-पड़ोस की सड़कों की किनारे लगे पेड़ों, फुलवारियों और घरों का आनंद लेती हूँ, फिर भी अपने पड़ोस में टहलने का मेरा सबसे पसंदीदा पहलू वे लोग हैं जिनसे मैं आते जाते हुए मिलती हूँ। मिलने वाले हर एक जन में, मुझे वह खुशी दिखाई देती है जो उनकी मुस्कुराहट का कारण है और वे आंसू जो उनके दुख के प्रतीक हैं। मैं उन नरम हाथों को देखती हूं जो बच्चों को गले लगाते हैं और उन खुरदुरे हाथों को भी जो अपने परिवार को कपड़े पहनने और उनके खाने का इंतेज़ाम करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। मैं उन मजबूत पैरों को देखती हूं जो किसी बुजुर्ग पड़ोसी को उनके पालतू कुत्ते को पकड़ने में मदद केलिए दौड़ते हैं और उन कोमल बाहों को भी देखती हूं जो एक दुखी पड़ोसी को गले लगाकर सांत्वना देते हैं।
मैं जिस भी व्यक्ति से मिलती हूं, उनमें मैं किसी ऐसे व्यक्ति को देखती हूं, जिसे कभी-कभी ईश्वर की ओर से एक धक्के की ज़रूरत होती है, और मैं किसी ऐसे व्यक्ति को देखती हूं जो कभी-कभी आत्मनिर्भर होकर अपने आप राह पर चल रहा होता है। मैं जिस भी व्यक्ति से मिलती हूं, मुझे उनमें एक आत्मा दिखाई देती है, जिसके बारे में ईश्वर कहते हैं, “मुझे अच्छी तरह पता है कि इन लोगों को कब धक्का देना है और कब वे अपने दम पर चलने में सक्षम हैं। मैं तुम में से हर एक व्यक्ति पर बहुत ध्यान देता हूं क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूं!”
यह जानकारी कि ईश्वर मुझसे प्यार करता है, इसी जानकारी से हमारे जीवन में बहुत फर्क पड़ता है। यह जानना कि ईश्वर मेरे साथ है मुझे प्रेरणा से भर देता है। यह जानना कि ईश्वर मेरे आनंद और मेरे दुख पर पूरा ध्यान देता है मुझे सशक्त करता है, कि मैं अपने जीवन की मुसीबतों का सामना अकेले नहीं कर रही हूं।
अगर हम इस परेशानी भरी दुनिया में रह कर एक दूसरे के लिए कुछ कर सकते हैं, तो वह एक दूसरे को याद दिलाना होगा कि हम इन चीजों का एक साथ सामना कर रहे हैं, हम एक दूसरे के साथ हैं और ईश्वर हमारे पक्ष में हैं। चूंकि ईश्वर हमसे प्यार करता है और हमेशा हम पर ध्यान देता है, इसीलिए हमारे लिए बड़ी से बड़ी त्रासदी भी सहन कर पाना मुश्किल नहीं है!
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