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प्रश्न: मैं बाइबिल की पढ़ाई करना चाहता हूँ। लेकिन मुझे नहीं मालूम कि कहाँ से शुरू करूं, क्या मैं इसे उपन्यास की तरह शुरू से अंत तक पढूं? क्या मैं किसी भी पन्ने को ऐसे ही खोलकर पढ़ना शुरू करूँ? आप की क्या सलाह है?
उत्तर: बाइबिल येशु का साक्षात्कार पाने का शक्तिशाली माध्यम है। संत जेरोम ने कहा है: “पवित्र ग्रन्थ की अज्ञानता येशु के प्रति अज्ञानता है”। आपने इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने का निर्णय लिया है, इसलिए आप को बधाइयां।
पहली नज़र में बाइबिल बोझिल लग सकती है, एक दुसरे से भिन्न अलग अलग बिखरी हुई कहानियाँ, लम्बी वंशावलियां, कानून और भविष्यवाणियाँ, पद्य और गीत आदि इत्यादि से यह भरी हुई है। मेरा सुझाव है कि आप बाइबिल को दो तरीके से पढ़ सकते हैं। सबसे पहले ध्यान दें कि बाइबिल को आरम्भ से अंत तक न पढ़ें, क्योंकि बाइबिल की कुछ किताबें समझने में आपको कठिनाई होगी। इसके बजाय, डॉ. जेफ़ कैविंस द्वारा लिखित “दी ग्रेट एडवेंचर बाइबिल टाइम लाइन” नामक किताब पढने से मुक्ति इतिहास की कहानी आप की समझ में आएगी – हमें अपने पापों से बचाने के लिए ईश्वर ने किस तरह सम्पूर्ण मानव इतिहास में कार्य किया है, इसकी कहानी उत्पत्ति से शुरू होती है। ईश्वर ने संसार की सुन्दर रचना की, और उसे यह अच्छा लगा, लेकिन मानव ने आदि पाप के कारण विनाश का रास्ता अपनाया और इस तरह वह संसार में बुराई लाया। लेकिन ईश्वर ने हमें त्याग नहीं दिया। इसके बदले उसने इब्राहिम, मूसा और दाऊद के द्वारा हमारे साथ रिश्ता जोड़ा और विधान को स्थापित किया। व्यवस्था के माध्यम से उनका अनुसरण करने के लिए उसने हमें सिखाया, और उसने अपनी प्रतिज्ञाओं के प्रति विश्वस्तता के जीवन में लौटने के लिए नबियों के द्वारा हमारा आह्वान किया। आखिर में, पाप के कारण उत्पन्न मानवीय बिखराव, पीड़ा, और उत्कंठा के सम्मुख निश्चित समाधान के रूप में ईश्वर ने अपने पुत्र येशु को भेजा। अपने जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान द्वारा येशु ने हमें हमेशा के लिए ईश्वर से मेलमिलाप कराया और संसार के कोने कोने तक मुक्ति को पहुंचाने के लिए अपनी कलीसिया को स्थापित किया।
मुक्ति इतिहास की इस अद्भुत कथा को बाइबिल हमें विभिन्न पुस्तकों के अलग अलग हिस्सों में बताती है। आदम से येशु तक की सम्पूर्ण कहानी को समझने और विभिन्न किताबों और अध्यायों के माध्यम से निर्देश पाने के लिए आपको डॉ. कैविंस का टाइम लाइन पढ़ना चाहिए।
बाइबिल को पढने के दूसरे तरीके को ‘लेक्शियो डिवीना’ या ‘पवित्र वाचन’ कहते हैं। एक छोटे पाठांश को लेकर उसके माध्यम से ईश्वर को आपसे बात करने के लिए इस पवित्र वाचन का तरीका अवसर देता है। अच्छा होगा कि आप सुसमाचारों से या संत पौलुस के पत्रों से कोई छोटा पाठांश – 10 या 20 पद लें और ईश्वर को मौका दें कि वह आपसे इसके द्वारा बात करें।
वाचन (लेक्शियो): पहले पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें । उसके बाद पाठ को एक बार धीमी गति से पढ़ें (यदि हो सके तो जोर से पढ़ें)। कोई शब्द, वाक्यांश या बिम्ब जो आपका ध्यान आकर्षित करता है, उस पर ध्यान केन्द्रित करें।
ध्यान (मेडिटेशियो): उसी पाठ को दुबारा पढ़ें, और ईश्वर से पूछें कि वह उस शब्द, वाक्यांश या बिम्ब के द्वारा आप को क्या सन्देश संप्रेषित करना चाहता है। किस तरह यह आपके जीवन में प्रयोग में आता है?
प्रार्थना (ओरेशियो): इस पाठ को तीसरी बार पढ़ें, और जिस शब्द, वाक्यांश या बिम्ब ने आपका ध्यान आकर्षित किया, उसके बारे में ईश्वर से बात करें। ईश्वर के बारे में यह वाक्य क्या प्रकट करता है? उसके वचन के प्रत्युत्तर में आपको कुछ परिवर्तन लाने के लिए क्या ईश्वर आपसे कह रहा है? उसके प्रति और अधिक विश्वस्त रहने का संकल्प लें।
मनन (कोंटाम्प्लाशियो): ईश्वर की उपस्थिति में शांत बैठें। आपकी सोच में आ रहे किसी शब्द, बिम्ब या स्मृति पर मनन करें – इस तरह से परमेश्वर मौन में अपने सन्देश का संचार करता है।
सुसमाचार या पौलुस के पत्र को पढ़कर लाभ उठाने के लिए इस तरीके का प्रतिदिन प्रयोग करें। आप पायेंगे कि ईश्वर आपको बहुत सी प्रेरणा और ज्ञान देगा जिसकी आप ने कभी अपेक्षा नहीं की थी। ईश्वर के वचन के द्वारा उसे जानने के आपके प्रयासं में वह आपको आशीषें दे। चाहे आप इसे मुक्ति-इतिहास को समझने या अतीत में ईश्वर के किये कार्य को समझने के लिए आप पढ़ रहे हैं, या वर्त्तमान में ईश्वर किस तरह कार्य कर रहा है, यह जानने के लिए आप लेक्शियो डिविना के द्वारा प्रार्थना कर रहे हैं, दोनों स्थितयों में ईश्वर का वचन जीवंत और प्रभावशाली है, और यह आपके जीवन को बदल सकता है।
'सबसे महान पिता को खोजने में मेरे पिताजी ने मेरी मदद की।
15 जून, 1994 को मेरे पिताजी ने अपने स्वर्गिक पिता के पास रहने के लिए इस दुनिया से विदा ले लिया। यद्यपि शारीरिक रूप से वे मेरे साथ नहीं है, उनकी आत्मा मेरी स्मृति में जीवित है। मेरे सम्पूर्ण जीवन के अंतराल में उनके द्वारा जो भी बातें सिखाईं गई, उस के कारण आज मुझे ऐसा व्यक्ति बनने में मदद मिली है, जिस प्रकार के व्यक्ति बनने के लिए मैं लगातार कोशिश कर रही थी। उन्होंने मेरे अन्दर, छोटे बड़े, बुजुर्ग, सभी लोगों के लिए आदर और सम्मान की भावना भर दी। मेरे जीवन की अन्य बहुत सारी बातों की तरह, दूसरों को आदर देने की सीख भी मुझे कठिन प्रक्रिया से सीखनी पड़ी। मुझे वह दिन याद है जब मैंने अपनी माँ को कड़े शब्दों में जवाब दिया था, और अपना जीभ दिखाकर मैं उसे मुंह चिढाने लगी थी। मेरे पिताजी बस इतनी दूर पर थे कि वे मुझे सुन सकते थे, देख सकते थे। यह बताने की ज़रूरत नहीं, कि उस दिन मुझे खूब डांट मिली और माँ को आदर देने के बारे में लंबा लेक्चर सुनना पड़ा। कुछ लोग कह सकते हैं कि माँ को देखकर मुंह चिढाना बालकपन का खेल समझना चाहिए, लेकिन पिता जी केलिए यह अनादर का मामला था, और उनके विचार में इसे ठीक करने की ज़रुरत थी। परिणाम यह हुआ कि माँ को, और अधिकारप्राप्त बड़ों को आदर देने के विषय में मैं ने उस दिन बड़ी शिक्षा पायी।
मेरे पिताजी मोंटाना के बुट्टे में ताम्बे के खदानों में काम करने वाले खादानी मजदूर थे और बहुत ही मेहनती थे। वे कठिन परिश्रम पर और अपनी सर्वोत्तम क्षमता द्वारा परिवार को सहारा देने में विश्वास करते थे। खदान का काम जोखिम से भरा था। अपने काम के दौरान बहुत बार वे जख्मी हो गए थे। 1964 में एक भयानक खदान दुर्घटना में वे चोटिल हो गए, और इस से उन्होंने अपना खदान करियर और फिर से काम करने की क्षमता खो दी।
वह हमारे परिवार के लिए बहुत ही कठिन और नाजुक दौर था। अब आगे बिलकुल ही काम नहीं कर पायेंगे, और आगे चलकर विकलांग पेंशन से गुज़ारा करना पडेगा, इस सच्चाई को स्वीकार करने में उन्हें दिक्कत हुई। अपने परिवार को इज्जत की रोटी और बच्चों को अच्छी परवरिश करनेवाले उस कर्मठ पिता और पति के लिए, यह बहुत ही दुखदायी था। पिताजी बहुत ज़्यादा पीने लगे, अपने दुःख दर्द को शराब के बोत्तल में डुबाने की कोशिश वे कर रहे थे। हालांकि, कुछ महीनों के अन्दर, पिताजी के दिल में कुछ कुछ होने लगा। उन्होंने पीना छोड़ दिया और बाइबिल पढ़ना शुरू किया। मेरे पिताजी जिन्हें सिर्फ पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई हासिल थी, बहुत कष्ट सहकर परमेश्वर के वचन को बारीकी से अध्ययन करने और उसे अपने दिल में आत्मसात करने लगे। रोज़ ब रोज़, घड़ी दर घड़ी, उन्होंने ईश वचन का अध्ययन और मनन-चिन्तन किया। ईश्वर ने मेरे पिताजी के दिल को बदल डाला। वे ईश्वर के प्रेम का अनुभव करते हुए, प्रतिदिन का जीवन भरपूर जीने लगे।
एक कार दुर्घटना में अपनी 18 वर्ष की बेटी को खोने और अन्य बहुत से दिल तोड़नेवाले दौर से गुजरने के बावजूद, उन्होंने जीवन का श्रेष्ठ आनंद उठाया। हम भाई बहनों के चार नाती पोते और एक पोती हुए । एक दादा और नाना के तौर पर उनमें से किसी बच्चे के प्रति उन्होंने विशिष्ट प्रेम प्रकट नहीं किया। हर नाती-पोते को लगा कि वही दादा/नाना की आँखों की पुतली है ।
यद्यपि खदान की दुर्घटना के कारण काम करने की उनकी क्षमता ख़तम हो गयी, लेकिन यह हम सब केलिए एक चमत्कार पूर्ण आशीष बन गयी। हर नाती पोते के साथ अपना वक्त बिताने और उसका पूरा ख्याल करने और उसे प्यार करने का उनके पास काफी समय था। कानूनी तौर पर ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने की उम्र पंहुंचने से बहुत पहले ही, उन चारों नाती पोते को पिताजी नें अपने पुराने डाटसन पिकअप वैन चलाना सिखाया। खदान की दुर्घटना के कारण वे लंगड़ कर चलते थे, और उनके सभी नाती पोतों ने दादा/नाना की तरह ही चलकर उनकी नक़ल करने की कोशिश की। पिताजी और उन बच्चों का सड़क पर एक साथ चलना एक अभूतपूर्व दृश्य बनता था, क्योंकि सब के सब लंगड़ कर चलते थे। वे सभी दादा/नाना को अपना आदर्श मानते थे और उन्हीं की तरह बनना चाह रहे थे। वे बड़े क्षमावान और सब्र के आदमी थे, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनमें में से एक एक के साथ उन्होंने समय बिताया और इस अनुभव के हर पल का आनंद उन्होंने उठाया ।
एक शादीशुदा औरत और बच्चों की माँ होने के नाते, बहुत बार मैं अपने पिताजी की सलाह लेने और उनके प्रोत्साहन प्राप्त करने उनके पास जाया करती थी। वह अपने दिल से मुझे सुना करते थे और कभी दोष नहीं लगाते थे, लेकिन मुझे प्रार्थना करने और ईश्वर पर भरोसा करने का प्रोत्साहन देकर मेरी समस्याओं का समाधान ढूँढने का वे प्रयास करते थे। उनसे सीख लेकर मैं भी बाइबिल पढने लगी। पिताजी की बहुत सारी अमूल्य स्मृतियाँ मेरे मन में हैं। सबसे महत्वपूर्ण सीख जो उन्होंने मुझे दी है, वह मेरे स्वर्गिक पिता की प्रेममय उपस्थिति में प्रातिदिन स्वयं को समर्पित करने की सीख है। इस के द्वारा दुनिया के सबसे महान, और सबके अच्छे पिता से मैं प्रतिदिन कुछ न कुछ सीख ग्रहण कर सकूं।
'तीन ज्ञानियों के साथ यात्रा में चलिए और आश्चर्य पूर्ण बातों का आनंद लें ।
प्रभु प्रकाश का पर्व ज्योति का पर्व है। यशायाह नबी कहते हैं, “उठकर प्रकाशमान हो जा ! क्योंकि तेरी ज्योति आ रही है, और प्रभु ईश्वर की महिमा तुझ पर उदित हो रही है” (इसायाह 60:1)। संसार की ज्योति और मुक्ति के रूप में प्रकट किये गए प्रभु येशु की ओर यात्रा में हमारे मार्गदर्शन केलिए हमें ज्ञानियों के कार्यों की ओर देखना चाहिए। यदि हमें येशु से मुलाक़ात करनी है, तो ज्ञानियों ने जो किया, उस पर हमें ध्यान देना होगा। उन्होंने क्या किया? उन्होंने तीन कार्य किये: उन्होंने तारे को देखने केलिए ऊपर की ओर सर उठाया; उन्होंने इस तारे के अर्थ को समझते हुए उस प्रकाश तक पहुँचने केलिए अपने घर और कार्य कलापों को छोड़ दिया; और प्रभु की अराधना करने के लिए वे मूल्यवान उपहार लेकर आये।
ऊपर की ओर देखिये
यात्रा यहीं से शुरू होती है। क्या आप ने कभी सोचा है कि क्यों उन ज्ञानियों ने ही तारे को देखा और उसके अर्थ को समझा? शायद बहुत कम लोग स्वर्ग की ओर देख रहे थे, क्योंकि रोज़मर्रा की बातो पर केन्द्रित होकर उनकी नज़रें ज़मीन पर ही टिकी हुई थी। मेरे मन में सवाल उठता है कि हम में से कितने लोग आकाश की ओर देखते होंगे? हम में से कितने लोग स्तोत्र ग्रन्थ की रचयिता की तरह कह सकते हैं, “भोर की प्रतीक्षा करनेवाले पहरेदारों से भी अधिक मेरी आत्मा प्रभु की राह देखती है ….।” (स्तोत्र 130:6), या हम यह मानते हैं, “अरे, बस यही काफी है कि मेरा स्वास्थ्य अच्छा रहे, मेरा बैंक बैलेंस सही रहे, 5-जी नेटवर्क मुझे मिलता रहे, और कुछ मनोरंजन, विशेषकर रविवार के दिन क्रिकेट या फुटबाल का खेल देखने का मौक़ा मुझे मिले!” क्या हमें ईश्वर की प्रतीक्षा करना आता है, जीवन में वह जो ताजगी लाता है, उसकी हम प्रतीक्षा करते हैं, या हम खुद को ज़िन्दगी की तेज रफ़्तार में उडाये या बहाए जाने देते हैं? ज्ञानियों ने समझा कि पूरी तरह जीवित रहने केलिए ऊँचे आदर्शों की ज़रूरत है, और साथ साथ बड़े सपने देखने की ज़रुरत है तथा हमें ऊपर की ओर ताकने की ज़रूरत है।
आगे बढिए
ज्ञानियों ने येशु को पाने के लिए जो दूसरा बहुत ही आवश्यक काम किया, वह है उठना और यात्रा को आरम्भ करना। जब हम येशु के सामने खड़े होते हैं, एक विचलित करने वाले विकल्प के सवाल का जवाब हाँ या ना में हमें देना पडेगा । क्या वह बालक इम्मानुएल यानी ‘ईश्वर हमारे साथ’ है या नहीं? यदि वह इम्मानुएल है, तो अपना सम्पूर्ण बेशर्त समर्पण देने की ज़िम्मेदारी हमारी है, ताकि हमारा जीवन उस पर केन्द्रित हो। उसके तारे की तलाश में निकलना उसी की ओर बढ़ने का निर्णय है और जिस मार्ग को उसने हमारे लिए प्रशस्त किया उसी पर निरंतर आगे बढ़ने की ज़रुरत है। अक्सर हमारा सफ़र दो कदम आगे, एक कदम पीछे है, और इस यात्रा की अहम् बात येशु पर नज़र टिकाकर चलने में है, जब हम नीचे गिर जाते हैं तब उसकी मदद से स्वयं को उठाना और आगे की ओर बढ़ते रहना होगा।
लेकिन, जब तक हम अपने आरामदायक पलंग से बाहर निकलेंगे नहीं, जब तक हम अपने आराम को, अपनी सुविधाओं और सुरक्षाओं को त्यागेंगे नहीं, और सीधे खड़े रहने के बजाय जब तक बाहर यात्रा पर निकलेंगे नहीं, तब तक हम येशु की ओर बढ़ने के कार्य नहीं कर पायेंगे। येशु कुछ मांग रखते हैं: वह कहते हैं कि हम या तो उसके साथ रहें या उसके खिलाफ रहें। आत्मिक मार्ग में सिर्फ दो ही दिशाएँ हैं: या तो हम ईश्वर की ओर बढ़ रहे हैं या ईश्वर से दूर जा रहे हैं। यदि हम येशु की तरफ बढना चाहते हैं, तो हमें जोखिम उठाने के डर पर, अपनी आत्म संतुष्टि पर, और अपने आलस्य पर काबू पाना होगा। सरल भाषा में कह सकते हैं कि यदि हमें बालक येशु को खोज पाना है तो हमें खतरा मोलना होगा, और अपने के महिमान्वित करने की जीवन शैली को त्यागना होगा। लेकिन ये जोखिम, अधिक सार्थक तभी साबित होंगे, जब हम बालक येशु को खोज लेंगे, तब हम उसकी कोमलता, सौम्यता और प्रेम का अनुभव करेंगे और अपनी पहचान को पुन: प्राप्त करेंगे।
उपहारों को ले आइये
अपनी लम्बी यात्रा के अंत में ज्ञानी लोग वही कार्य करते हैं, जो ईश्वर करता है: वे उपहारों की वर्षा करते हैं। ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार स्वर्गीय जीवन है, जिसे उसके साथ अनंतता में जीवन बिताने के लिए वह हमें आमंत्रित करता है। ज्ञानियों ने अपनी समझ के आधार पर सबसे मूल्यवान उपहारों को अर्पित किया: सोना, लोबान और गंधरस। ये उपहार उस बात के प्रतीक हैं जिन्हें संत जॉन पॉल द्वितीय ने उपहार के कानून का दर्जा दिया: अर्थात स्वयं को अर्पित करनेवाले प्रेम के आधार पर ईश्वर जिस तरह कार्य करता है, उसी तरह हम अपना जीवन बिताएं, तो हम ईश्वर के साथ सच्चे रिश्ते में बने रहेंगे। जो सर्वश्रेष्ठ उपहार आप येशु को दे सकते हैं, वह है आपका अपना जीवन। मुफ्त में दे दीजिये, बिना कोई हिचक के, कुछ भी अपने लिए मत रखिये। बदले में कुछ भी पाने की इच्छा रखे बिना दीजिये – स्वर्गरूपी पुरस्कार की इच्छा रखे बिना। यह इसका सच्चा संकेत है कि आपने येशु को ढूंढ लिया है। क्योंकि येशु कहते हैं: “तुम्हें मुफ्त में मिला है, मुफ्त में दे दो” (मत्ती 10:8): मूल्य की गिनती किये बिना, दूसरों के लिए अच्छा कार्य कीजिये, जब इसकी मांग नहीं की जाती, तब भी, और बदले में कुछ भी न मिले, तब भी। जब यह असुविधाजनक हो, तब भी दूसरों की भलाई कीजिये। ईश्वर आपसे यही कार्य चाहता है, क्योंकि ईश्वर हमारे साथ ऐसा ही व्यवहार करता है।
ईश्वर अपने आप को हमारे बीच कैसे प्रकट करता है, उसे देखिये, समझिये: वह एक शिशु के रूप में अपने को प्रकट करता है – वह हमारे लिए छोटा बना। हम प्रभु प्रकाश पर्व मनाते समय, अपने हाथों को देखें: वे हाथ आत्म-दान से रिक्त हो गए हैं, या हम बदले में कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा रखे बिना, अपने जीवन के मुफ्त उपहार को समर्पित कर रहे हैं? और हम येशु से मांगे: “प्रभु, अपनी आत्मा को भेज दें, ताकि मेरा नवीकरण हो जाए: ताकि देने के आनंद की मैं पुनर्प्राप्ति कर सकूं।“
'अब चूँकि मेरी शादी हो चुकी थी, मैं ने सोचा कि मैं अतीत की घटनाओं को भूलकर जीवन में आगे बढ़ सकती हूँ, मानो कि मेरे साथ अतीत में कुछ भी नहीं हुआ हो, और मेरी सारी पीड़ा समाप्त हो जाएगी, लेकिन मेरे अन्दर के अवसाद और क्रोध के साथ मैं संघर्ष करने लगी।
एक बड़े आइरिश कैथलिक परिवार की नवीं संतान के रूप में मेरा जन्म हुआ था। मेरी माँ एक भक्त कैथलिक महिला थी, लेकिन मेरे पिताजी शराब के प्रति आसक्त थे, और इस कारण बहुत सी समस्याएँ खड़ी हो गयीं, और इस लिए मेरा बचपन बहुत ही नाजुक दौर से गुज़रा। जब मैं चौदह साल की थी, मेरा बलात्कार हुआ, लेकिन मैं ने जब इसके बारे में किसी को बताया, तो उसने कहा, “तुम्हें यह होने नहीं देना चाहिए था, अब तुम एक वेश्या की तरह हो”। उस व्यक्ति का कथन सही नहीं था, फिर भी मैं अपने को पतिता और पापिनी मानने लगी। चूँकि मैं वेश्या नहीं बनना चाहती थी, इसलिए मैं ने एक लड़के को अपना प्रेमी बनाया। मेरे आसपास के समाज की तरह सोचते हुए अनैत्कता के बहाव में बहकर मैं ने नैतिकता की गलत धारणा बना ली, और मैं मानने लगी कि जब तक आप किसी के साथ दोस्ती में है, तो यौन सम्बन्ध बनाने में कोई गलती नहीं है।
जब मैं सोलह साल की हुई, मैं गर्भवती हो गयी। उस लड़के ने मुझे गर्भपात के लिए मजबूर किया, ताकि हम दोनों हाई स्कूल की पढ़ाई पूरा कर सकें। मैं बीमार, विचलित और डरी सहमी थी, लेकिन मैं ने समझा कि मैं समस्या में डूबी हूँ जिसका समाधान ढूंढना पडेगा। जब वह मुझे एबॉर्शन क्लिनिक ले गया, तब मैं डर के मारे इतनी काँप रही थी, कि मुझे शांत करने केलिए नर्स ने मुझे शांत करने के लिए वैलियम का डोज़ दिया। तब उस नर्स ने मुझसे कहा, “चिंता मत करो बेटी, यह बच्चा नहीं है, समझो कि बस कुछ कोशिकाओं का पिण्ड है। मैं पूरी तरह से स्तब्ध रह गयी। लेकिन गर्भपात करनेवाले उस डॉक्टर की अट्टहास भरी आवाज़ “हा हा हा, मैं इसी तरीके से भ्रूण ह्त्या करना चाहता हूँ” मेरे कानों में गूँजता रहता है। मेरे आंसू मेरे गालों से लरज़ते हुए, कागज़ की जिस चादर पर मुझे लिटाया गया था, उस पर फ़ैल गया, जिसकी नमी का एहसास मुझे अभी भी होता है।
जिस दिन मैं स्कूल में लौटी, उस दिन की याद मेरे दिमाग में स्पष्ट अंकित है, मैं बरामदे में खड़ी थी, और एक बच्ची मेरे पास आकर बड़ी दयालुता के साथ मुझे देखकर कहने लगी, “आइलीन, तुम्हें क्या हो गया?” तुरंत इनकार की तरंग मुझ में उठ खड़ी हो गयी और मैं ने तपाक से जवाब दिया, “कुछ नहीं, क्यों ऐसे पूछ रही हो?”
“पता नहीं, तुम ठीक नहीं लग रही हो”।
मैं दूसरों से भिन्न थी!
मेरी ज़िन्दगी नीचे की और लुढ़कती गयी। अपने आप को दूसरों से दूर रखने और उस प्रेमी के साथ समबन्ध को बरकरार रखने के लिए मैं शराब पीने और मादक द्रव्य लेने लगी। जब मैं अठारह साल की हुई तो फिर गर्भवती हो गयी और फिर गर्भपात किया। इस अनुभव से मैं इतना अधिक भयभीत हो गयी थी कि मुझे कुछ भी याद नहीं है, यहाँ तक वह जगह भी नहीं मालूम। लेकिन मेरी बहन और मेरा प्रेमी को सब याद है। मैं इतनी पीड़ा को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
मेरे प्रेमी के साथ संबंध टूट गया और मैं ने नए प्रेमी को ढूंढ लिया और शारीरिक संबंध में रहे। यदि उस समय की मेरी आत्मा की स्थित के बारे बोलूँ, तो बस इतना कह सकती हूँ की वह पूरी तरह नाशवान स्थिति में थी, उस समाज की अपसंस्कृति की तरह जिसे मैं ने अपनाया था।
जब मैं तेईस साल की थी, मेरे जीवन की सबसे खराब घटना के कारण मुझे अपने काहिल जीवन का बड़ा भयंकर धक्का लग गया। एक शराबी ड्राईवर के कारण मेरी माँ एक दुर्घटना में चल बसी। दफ़न विधि के दौरान मैं ने देखा कि ताबूत के ऊपर से धुप का धुवां उठ रहा है। यह ईश्वर की ओर हमारी प्रार्थना के उठने का प्रतीक है, लेकिन मुझे लगा कि मेरी माँ की आत्मा ईश्वर की ओर उड़ान ले रही है। मेरी माँ एक वफादार विश्वासी थी, इसलिए मुझे पक्का विश्वास था कि वह ईश्वर के पास जा रही है । मैं उस से फिर मिलना चाहती थी, इसलिए स्वर्ग जाने की इच्छा मुझ में हुई, लेकिन मुझे पता था कि इस केलिए मुझे अपनी ज़िन्दगी में परिवर्त्तन लाना होगा। उसी समय मैं अपने घुटनों के बल पर झुक गयी और प्रभु को रो रोकर पुकारने लगी। मैं फिर से गिरजाघर जाने लगी, लेकिन एक महीने के अन्दर मैं ने पाया कि मैं फिर से गर्भवती हूँ। मुझे यह डरावनी अनुभूति हुई की मेरी माँ सब कुछ जानती है क्योंकि वह ईश्वर के साथ है।
वह दर्द जिसे भुला नहीं पा रही हूँ
मेरी बेटी की परवरिश के लिए मैं ने एक नौकरी ढूंढ ली, और मैं ने उसे प्यार दिया और उसकी देखभाल की जिसकी चाहत स्वयं मुझे थी। प्रभु मेरे जीवन में एक अच्छे आदमी लाया, इसलिए विवाह की तैयारी में मैं ने सारे पापों को, उन सारे गर्भ पात के बारे में भी बताकर पाप स्वीकार किया। जब पुरोहित ने मुझे पाप क्षमा दी और मुझसे कहा कि “येशु आपको प्यार करता है” तो मुझे विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि मुझे लगा कि मैं ने सबसे घोर अक्षम्य पाप किया है। जितना अधिक पीड़ा को मैं भोग रही थी, उसे मैं नकार रही थी, जबकि प्रतिदिन मैं इस पीड़ा के बारे में सोचती थी।
मेरे अन्दर यह सोच थी कि चूँकि मेरी शादी हो चुकी है, इसलिए अब सब कुछ ठीक हो जाएगा और जिस आनंदमय जीवन की मैं रोज़ आशा करती थी, उसका आनंद मैं अभी उठा सकती हूँ। मैं ने सोचा कि अब मैं आगे बढ़ सकती हूँ, मानो कि मेरे अतीत में कुछ भी न हुआ हो, और सारी पीड़ा अप्रत्यक्ष हो जायेगी ।
लेकिन इसके विपरीत, मैं अवसाद और क्रोध के साथ संघर्ष करने लगी। दूसरों के साथ घनिष्ठता मेरे लिए सबसे बड़ी समस्या थी। इसलिए मुझे अपने व्यक्तित्व को पूरी तरह से जीना कठिन हो गया, और दूसरों से दोस्ती बनाना और उसे निभाना मेरे लिए बहुत ही कठिन कार्य हो गया। अपने बारे में मुझमें एक खंडित समझ थी, जबकि गर्भपात किये गए उन बच्चों के बारे में मैं सोचती थी, लेकिन मैं किसी से उनके बारे में बोलती नहीं थी बात नहीं करती थी।
लेकिन प्रभु ने मेरी उपेक्षा नहीं की। मेरी दोस्ती ग्रेस से हुई, जिसने मुझे सिस्टर हेलेन से परिचय कराया। सिस्टर हेलेन को चंगाई का वरदान प्राप्त था।
जब सिस्टर हेलेन ने मेरे ऊपर प्रार्थना की, उन्होंने मेरे बारे में ऐसी बात कही जिसकी जानकारी होना उनके लिए असंभव था । इस से मैं भयभीत हो गयी। गर्भपात के कारण महिलाओं में विभिन्न स्तर के असर पड़ते हैं और उनमें से एक असर है येशु से भयभीत रहना। जब मैं गिरजाघर जाती हूँ, तो मैं ठीक रहती थी, क्योंकि मुझे लगता था कि येशु दूर कहीं स्वर्ग में विराजमान है। सिस्टर हेलेन ने मुझ से कहा: “आइलीन, पता नहीं, यह क्या है, लेकिन येशु चाहता है कि आप मुझे इसके बारे में बतावें। मैं ने उन्हें गर्भपात के बारे में बताया और में खूब रोई। उन्होंने बड़ी सौम्यता के साथ फुसफुसाया: अच्छा, अब मैं समझ रही हूँ, मैं चाहती हूँ कि पहले आप इसके बारे में प्रार्थना करें। येशु से बोलिए कि वह आपको इन बच्चों के नाम बताएं।´ जैसे मैं ने प्रार्थना की, मुझे लगा कि प्रभु मुझे बोल रहा है कि मेरी एक छोटी बच्ची थी जिसका नाम ऑटम था और एक बेटा जिसका नाम केनेथ था। वे अनंतता तक मेरे जीवन के हिस्से बनेंगे। इसलिए उनको तिरस्कृत करने के बजाय मुझे उन्हें स्वीकार करना होगा। इससे मुझे उनके बारे में सोचकर शोक मनाने का अवसर मिला, तकिये को अपने आंसुओं से भिंगोकर बड़ी गमी के साथ।
उनके बाहों में
एक दिन मेरा पति अपने काम से जल्दी घर आया, और पाया कि मैं घर के तहखाने में साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में बैठकर रो रही थी। क्योंकि उस दिन मैं ने आखिरकार स्वीकार किया था कि मैं ने अपने ही बच्चों की जान लेने के जुर्म में भाग लिया था। मेरे पति ने मुझे प्यार से ऊपर उठाया और उन्होंने मुझसे पूछा: “प्रिये, क्या हुआ?” गर्भपात के बारे में अपने पति को खुलकर बताने की कृपा प्रभु ने उस वक्त मुझे दी। उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भरकर कहा : सब कुछ ठीक हो जाएगा, मेरा प्यार अब भी तुम्हारे साथ रहेगा।“
जब मैं सिस्टर हेलेन के साथ फिर से और चंगाई प्रार्थना के लिए फिर गयी, तो मैं ने अपने मन की आँखों से देखा कि मैं येशु की गोद में बैठी हूँ, और मेरा सिर येशु के सीने पर टिका हुआ है। तब मैं ने देखा की धन्य माँ मरियम मेरे बच्चों को अपने आँचल में लेकर उन्हें प्यार दे रही है। माँ मरियम उन बच्चों को मेरे पास लाई और मुझे दी। मैं ने उन्हें अपने गोद में लेकर उनसे कहा कि मैं उन्हें बहुत प्यार करती हूँ, और मैं ने उनके साथ जो किया, उसके बारे में सोचकर मैं बहुत दुखी हूँ। उन्हें माँ मरियम के प्रेमभरे हाथों में सौंपने से पहले मैं ने बच्चों से क्षमा माँगी। माँ ने मुझसे वादा इया कि ये बच्चे उसके और येशु के साथ अनंतकाल तक स्वर्ग में रहेंगे। उसके बाद येशु और मरियम ने मेरा आलिंगन किया और येशु को यह कहते हुए मैं ने सुना: “मैं तुम से प्यार करता हूँ“।
ईश्वर की प्रेममय करुणा की गवाही देने वाले लोगों से मुझे प्रेरणा मिली है, इसलिए अब मुझे भी लगा कि मुझे भी अपनी जीवन की गवाही सुनाने की ज़रुरत है। गर्भपात के बुरे प्रभाव से चंगाई पाने की आशा में आ रही महिलाओं के लिए आयोजित ‘रेचल विनियार्ड’ साधना में एक थेरापिस्ट बनकर मैं मदद करने लगी।
जीवन में पुन:स्थापित
जब लोग मुझसे पूछते हैं, “एक थेरापिस्ट के रूप में जब आप इन सब लोगों की दर्द भरी कहानियों को सुनती हैं तो इन पीडाओं को आप अपने अन्दर कैसे संजोकर रख पाती हैं?” मैं उनसे कहती हूँ कि यह कार्य मैं अकेले नहीं करती हूँ। माँ मरियम मेरे साथ रहकर यह कार्य करती है। मैं मरियम के प्रति समर्पित हूँ, इसलिए मैं जो कुछ करती हूँ वह सब मरियम के द्वारा येशु के लिए करती हूँ। रोजाना की रोज़री माला से और मिस्सा में रोज़ाना परम प्रसाद में प्रभु को ग्रहण करने से मुझे ज़रूरी ताकत मिल जाती है। चूँकि मिस्सा बलिदान के दौरान सम्पूर्ण स्वर्ग मिस्सा की वेदी को घेरने केलिए उतर आता है, इसलिए मिस्सा में मैं प्रतिदिन अपने बच्चों से मुलाक़ात करती हूँ।
लगभग तीस से अधिक वर्षों बाद, मेरे गर्भपात किये गए बच्चों के पिता को मैं ने संपर्क किया, ताकि मैं अपनी चंगाई के बारे में उसे बता सकूं और उस उम्मीद की भेंट उन्हें दे सकूं। उसने मुझे धन्यवाद दिया क्योंकि इस से उसके दिशाहीन जीवन के बारे में उस को एक सन्देश मिला और प्रत्याशा मिली कि उसका जीवन बदल सकता है। जैसे उसने मुझसे कहा, “अब तक मुझसे सिर्फ वे दो ही बच्चे पैदा हुए हैं”, उसकी आवाज़ थरथरा रही थी।
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शालोम वर्ल्ड कार्यक्रम “मरियम मेरी माँ” के लिए दी गयी गवाही पर यह लेख आधारित है। आइलीन एक पत्नी, माँ और प्रमाणित काउंसिलर (सलाहकार) हैं। वे पिछले 34 वर्षों से विवाहित हैं, और अपने पति के साथ मिशिगन में रहती हैं। उनकी तीन वयस्क संतान हैं। उस एपिसोड को देखने केलिए shalomworld.org/mary-my-mother पर जाएँ।
'मेरा मन बहुत ही विचलित था। हताशा और आक्रोश का चक्रवात मेरे दिल में घुसपैठ करने की धमकी दे रहा था। मेरे पति और मेरे बीच बहस हुई, जिसके कारण मेरी तीव्र भावनाएं मेरे दिल पर छा गयी, और मेरे दिल में मेरे प्यारे पति के खिलाफ कड़वाहट पैदा कर दी। मेरे साथ क्या हो रहा था? मैं उस आदमी के बारे में ऐसा कैसे महसूस कर सकती हूं जिसे मैं पूरे दिल से प्यार करती हूं? झूठ का शहजादा और दाम्पत्य जीवन का दुश्मन शैतान द्वारा हमारे वैवाहिक जीवन पर हमला किया जा रहा था।
अगर एक चीज है जिससे शैतान नफरत करता है, तो वह है विवाह का संस्कार। क्योंकि एक पति और पत्नी हमारे त्रियेक परमेश्वर के शक्तिशाली संबंधपरक गुणों को प्रतिबिम्बित करते हैं, इसलिए हम पर शैतान का लगातार आक्रमण होता है। यह सच है कि दाम्पत्य जीवन कठिन है और कभी-कभी सलाहकारों के सहयोग की आवश्यकता होती है, लेकिन कई संघर्ष रोजमर्रा की जिंदगी में होते हैं। और यहीं पर शैतान सबसे अधिक बार गीदड़ गश्ती करते हुए दिखाई देता है। वह हम पर धूर्त प्रलोभनों से हमला करता है – स्वार्थ, अभिमान, आक्रोश के सुझाव – जो ज़हर की तरह हमारे भीतर और हमारे विवाह बंधन में एक ज़हरीली बीमारी का कारण बनते हैं। शैतान हमारे विवाह बंधन को खत्म करने के लिए हर संभव कोशिश करता है, क्योंकि वह जानता है कि एकता में दृढ पति-पत्नी मजबूत होते हैं, और वे शैतान को पहचानने और उसके खिलाफ लड़ने में बेहतर होते हैं। और जब येशु और उसकी कलीसिया हमारे साथ हैं, तो हमारे पास शैतान के विषाक्त सुरा के खिलाफ लड़ने के लिए मारक दवा है।
स्वार्थ बनाम उदारता
आदि पाप के कारण, हम स्वयं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मज़बूर हैं। शैतान यह जानता है और हमारे सामने झूठ परोसता है कि हम विशेषाधिकार के योग्य हैं और इस विशेषाधिकार को सिर्फ अपने लिए ग्रहण करने के हम हकदार हैं। वह हमें केवल अपनी भलाई की तलाश करने के लिए प्रलोभित करता है। स्वार्थ का ज़हर पति-पत्नी के बीच गहरी खाई का कारण बन सकता है। खासकर आपस में जब असहमति या गलत सम्प्रेषण होता है, तो हम में से कई लोग अपने जीवनसाथी से दूर होने के लिए ललचाते हैं। इसके बजाय हमें अपनी विवाह संस्कार की प्रतिज्ञाओं का उदारतापूर्वक नवीनीकरण करने की ज़रुरत है! इसलिए, यदि आप स्वार्थ के कारण स्वयं को पीछे हटते हुए पाते हैं, तो अपने जीवनसाथी को जानबूझकर स्नेह और प्रेम के संकेत देने का विशेष प्रयास करें। आपका दिल विद्रोह कर सकता है, लेकिन आपके कार्य ठोस हैं: “मैं तुमसे प्यार करने का निर्णय लेता/लेती हूँ।”
अहंकार बनाम विनम्रता
हम सभी अहंकार के साथ संघर्ष कर रहे हैं और शैतान को यह मालूम है, और वह हमें किसी भी मामूली या गलतफहमी का शिकार होने के लिए प्रेरित करता है। वह चाहता है कि हम अपने चोटिल अभिमान की लाड प्यार से परिचर्या करें, अवसाद की मनोदशा में हम लिप्त रहें, और यहाँ तक कि अपने जीवनसाथी को “मौन उपचार” दें। इस ज़हर से लड़ने के लिए, विनम्रता के मारक दवा को आगे बढ़ाने के व्यावहारिक कदम उठाने पर विचार करें। अपने जीवनसाथी में तीन गुणों की एक सूची लिखें जिसके लिए आप आभारी हैं। इस सूची को ज़ोर से पढ़ें और अपने जीवनसाथी को बताएं कि आप इन बातों के लिए आभारी हैं! किसी भी गलतफहमी में हमारे हिस्से की जिम्मेदारी स्वीकार करने की इच्छा भी विनम्रता होती है। इसे ज़ोर से बोलना पहली बार में असहज होता है लेकिन एक साथ विनम्रता की आदत बनाना हमारे दाम्पत्य जीवन को अहंकार के ज़हर से बचाना होता है।
मनमुटाव बनाम क्षमा
रिश्ते जोखिम भरे हैं। जब हम प्यार करते हैं, तो हमें चोट लग सकती है। लेकिन जब हम अपने जीवनसाथी से नाराज़ या आहत होते हैं तो हम क्या करते हैं? हम में से कई लोगों के लिए, क्षमा करना कठिन है, और यहीं पर शैतान घात में बैठा रहता है। वह चाहता है कि हम हर अपराध का लेखा-जोखा रखें, हमारे दिलों में गहरे विद्वेष को पकड़ कर रखें, जब तक कि हम मनमुटाव और आक्रोश के गुलाम नहीं बन जाते। इसके बजाय, हमें अपने जीवनसाथी को क्षमा करने के लिए जानबूझकर निर्णय लेने की ज़रूरत है। येशु चाहता है कि हम द्वेष रखना बंद करें और अपने जीवनसाथी को और स्वयं को उसकी करुणा के प्रति समर्पित कर दें। वैवाहिक जीवन में व्यावहारिक क्षमा को क्रियान्वित करने के लिए साहस चाहिए। क्या आप अपने जीवनसाथी को संदेह का लाभ देना चुनेंगे? क्या आप अपने जीवनसाथी को छोटी-छोटी बातों में माफ कर देंगे?
मैं अपने दाम्पत्य जीवन के हर दिन शैतान के धूर्त प्रलोभनों को अस्वीकार करने का संघर्ष करती हूं। कई बार असफल हो जाती हूँ। लेकिन मैं और मेरे पति एक-दूसरे को, हमारी असफलताओं में क्षमा, जीवन में बढ़ने की गुंजाइश और साथ में हमारे जीवनयात्रा पर एक दूसरे को प्रोत्साहन की कृपा देना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए शैतान के खिलाफ लड़ाई में एकजुट, प्रतिबद्ध दो लोगों के टीम वर्क की जरूरत होती है। मुझे अपने विवाह पर विश्वास है, और मुझे आपके विवाह पर विश्वास है! अपने जीवनसाथी के लिए लड़ें और प्रभु को आपके दिल में और आपके वैवाहिक जीवन में अपना प्रकाश चमकाने के लिए आमंत्रित करें। उनकी कृपा और मारक दवा आपके विवाह को शत्रु के विष से बचाएंगी। “दृढ़ बने रहो और ढारस रखो! भयभीत न हो और उनसे मत डरो; क्योंकि तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम्हारे साथ चलता है। वह तुम्हें विनाश नहीं करेगा और तुमको नहीं छोड़ेगा।” (विधि-विवरण 31:6)
'आपके जीवन के लिए परमेश्वर की योजना पर ध्यान केंद्रित करने की एक सरल तकनीक यहाँ दिया जा रहा है।
कुछ वर्ष पहले, नव वर्ष के दिन, ‘ईश माता की पवित्रता का पर्व’ मनाते हुए, पुरोहित ने हमें आगामी वर्ष के लिए धन्य माँ से कोई “शब्द” मांगने के लिए प्रोत्साहित किया। यह शब्द एक विशेष अनुग्रह के रूप में दिया जा सकता है, जिसे माँ हमें देना चाहती हो, या हो सकता है कि यह जीवन में हमारे मिशन पर हमारा ध्यान पुन: केंद्रित करने वाला शब्द हो, या एक गुण जिसपर बढ़ने में वह हमें मदद करना चाहती हो। शब्द का चयन माँ मरियम पर निर्भर था – हमारी भूमिका प्रार्थना करने और उस शब्द को प्राप्त करने तक सीमित थी, और फिर आने वाले वर्ष में माँ मरियम उस शब्द से हमारे लिए इसका अर्थ को समझा देती। पुरोहित रुके और हम सभी को प्रार्थना करने के लिए कुछ समय दिया। मैंने माँ मरियम से मेरे लिए ‘शब्द’ मांगा और “विनम्रता” शब्द स्पष्ट रूप से मेरे दिमाग में सुनाई दिया। जैसे ही वह वर्ष आगे बढ़ता गया, मैंने माँ मरियम से विनम्रता के बारे में बहुत कुछ सीखा, और मुझे पता है कि उसने मुझे इस गुण को विकसित करने में मदद की जिसे वह स्वयं भी अपने जीवन में बड़ी खूबसूरती से जिया था।
अगले वर्ष, मुझे जो शब्द मिला था, वह था “संतोष।” आगामी महीनों में, माँ मरियम ने मुझे संत पौलुस फिलिप्पी 4:11 के द्वारा जिस विषय पर बात करते हैं उसे अच्छी तरह समझने में मदद की: “मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मुझे किसी बात की कमी है, क्योंकि मैंने हर परोस्थिति में स्वालंबी होना सीख लिया है।” मेरे आध्यात्मिक जीवन में इस प्रकार हर वर्ष धन्य माँ से यह वार्षिक विषय-शब्द माँगना मेरे लिए एक उपयोगी अभ्यास साबित हुआ है। इसलिए प्रत्येक नए वर्ष की शुरुआत में, मैं प्रार्थना करता हूं और धन्य माँ मरियम से आने वाले वर्ष के लिए मुझे अपना विशेष “शब्द” देने के लिए कहता हूं।
बीते वर्ष 2021 के लिए, मेरा शब्द “मध्यस्थ प्रार्थना” रहा है। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो मैं समझ सकता हूं कि यह विषय मेरे लिए कितना उपयुक्त था क्योंकि उन दिनों मैं अपनी बुजुर्ग मां की प्राथमिक देखभाल कर रहा था। मेरा जीवन अब उसकी देखभाल करने के इर्द-गिर्द घूमता है, जो एक विशेषाधिकार और सम्मान है, लेकिन इसके लिए मुझे लोगों और अपने सेवा कार्यों के साथ अपनी बाहरी भागीदारी को कम करने की भी आवश्यकता है। कभी-कभी इसके कारण मुझे अलग-थलग होने का और अकेलापन का एहसास हो जाता है। जैसे जैसे मेरी माँ की उम्र बढ़ती जा रही है, हमें डॉक्टर से बार बार मिलने, भौतिक चिकित्सा सत्रों, विभिन्न स्वास्थ्य जांच आदि में जाना पड़ता है और माँ की भावनात्मक जरूरतों के लिए नाजुक संचालन और बार बार आश्वासन देने की आवश्यकता होती है। इस कारण, दिन के अंत में, मेरे पास बहुत अधिक आंतरिक ऊर्जा नहीं रह जाती है।
लेकिन कार की सवारी के दौरान शांत क्षणों में, या जांच कक्षाओं में डॉक्टरों की प्रतीक्षा में बैठते हुए, मैं लोगों के लिए मध्यस्थ प्रार्थना कर सकता हूं। मैंने प्रभु से कहा कि जिनके लिए वह चाहता है कि मैं प्रार्थना करूं – मित्र, परिवार के सदस्य, हमारे स्वैच्छिक संगठन में सेवकाई के अगुवा, जिन लोगों की हम सेवा करते हैं, आदि लोगों को मेरे मन में लाया जाए। मैं प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रार्थना करता हूं क्योंकि वे मेरे विचारों में आ जाते हैं। मैं उनके लिए प्रभु के कोमल प्रेम, आशीर्वाद और चंगा करने और उनकी मदद करने की उनकी इच्छा को महसूस करता हूं। अच्छे चरवाहे के पास अपनी भेड़ों के लिए प्रेम और दया के कुओं में से जल निकालने में मेरे दिल को सुकून मिलता है।
चूँकि मैं इस मिशन में माता मरियम के साथ सहयोग करता हूं, कि उसने मुझे इस वर्ष के लिए अपना “शब्द” देकर मुझे अपनी प्राथमिक कार्य पर ध्यान लगाने में मदद की, इसलिए, किसी न किसी तरह, मैं लोगों से अधिक जुड़ाव महसूस करता हूं। अपने को दूसरों से अलग-थलग या हाशिए पर किये जाने का एहसास करने के बजाय, मसीह के शरीर में हमारे आंतरिक जुड़ाव का एक गहरा एहसास मेरे दिल को भर देता है। जैसा कि हम इस वर्ष के अंत और 2022 की शुरुआत के करीब हैं, जिस अभ्यास को हमारे पुरोहित ने सिफारिश की थी, उसे अपनाने के लिए मैं आपको प्रोत्साहित करता हूं। मौन प्रार्थना में कुछ समय बिताने के बाद माँ मरियम से कहें कि वह आपको इस नए साल के लिए उनका “शब्द” दें। इसे प्राप्त करें, और फिर माँ से कहें कि वह यह समझने में आपकी मदद करें कि इससे उसका क्या मतलब है, यह आपके जीवन के लिए परमेश्वर की योजना को बेहतर ढंग से जीने में आपकी मदद कैसे करेगा, और आप इसे अपनाकर अन्य लोगों को कैसे आशीर्वाद दे सकते हैं। आप पा सकते हैं कि यह सरल प्रार्थना और अभ्यास जिस तरह मेरे जीवन में फलदायी रहा उसी तरह आपके आध्यात्मिक जीवन में गहरा फलदायी होगा।
'सबसे बड़ी राहत आपको यह जानकर मिलती है कि कोई हर समय आप पर पूरा ध्यान दे रहा है!
अभी पिछले ही दिन मैंने अपनी चिंता को दूर करने के लिए बाहर घूमने का फैसला किया। जब मैं बाहर गई, तो मैंने देखा कि थोड़ी धूप, थोड़ी छांव निकली हुई थी। जब तक मैं फुटपाथ पर पहुंची, एक तेज़ हवा मुझसे जा टकराई! मैंने हँसते हुए कहा, ” मुझे धक्का देने की ज़रूरत नहीं है! मैं अपने आप चल सकती हूँ!”
जैसे ही मैंने उस अद्भुत हवा से ऐसा कहा, मुझे याद आया कि मैं अकेली नहीं हूं। और मैं कभी भी अकेली नहीं हूं। मैंने ऊपर की ओर देखा और सड़क पर चलते हुए प्रार्थना की: “प्रिय ईश्वर, आप अच्छी तरह जानते हैं कि आपको कब मुझे धक्का देना चाहिए और कब मैं अपने आप चलने में सक्षम हूं। मुझ पर इतना ध्यान देने के लिए आपको धन्यवाद!” इतना कहने के बाद, मैं अपने आस पड़ोस के परिचित नज़ारों का आनंद लेने लगी। अपने हर एक कदम के साथ, मेरे अंदर अपनापन की भावना ने उस गुस्से की जगह ले ली जिस गुस्से ने मुझे घर से बाहर निकलने पर मजबूर किया था।
मैं चिंतित थी क्योंकि दुनिया भर की खबरों ने मुझे मुस्कुराने की बहुत कम वजहें दी थी। यहां तक कि हमारी दुनिया की बिगड़ती हालत से मुझे विचलित करने में इस साल के ओलंपिक खेलों में खेल रहे वीर खिलाड़ी भी नाकाम रहे थे। जब हम में से सबसे स्वस्थ लोगों तक को भी कोई न कोई कोरोना संस्करण होने लगा था, तो मुझे यह चिंता सताने लगी कि क्या हम कभी इस बीमारी से छुटकारा पा पाएंगे? जब मैंने उस संभावना पर सोचना शुरू किया, मैंने दुनिया भर में मौजूद उन सभी लोगों के बारे में सोचा, जो हमेशा यह सोचा करते हैं कि क्या वे कभी अन्याय और गरीबी, युद्ध और उत्पीड़न, बीमारी और प्राकृतिक आपदाओं से छुटकारा पा सकेंगे।
सुसमाचार एक युवा लड़के की बात करते हैं जो उस दिन भीड़ में शामिल था जब पांच हजार लोग बिना अपने रात के खाने की चिंता किए, येशु को सुनने के लिए आए हुए थे। यह जानकर कि वहां एकत्रित लोग बहुत भूखे होंगे, येशु ने अपने शिष्यों की ओर देखा और पूछा कि उन सभी को खिलाने के लिए उन्हें भोजन कहाँ से मिलेगा। सुसमाचार हमें बताता है कि उस समय उन लोगों के पास जौ की पाँच रोटियों और दो मछलियों की टोकरी के अलावा कुछ भी उपलब्ध नहीं था, जिसे वह लड़का अपने साथ ले आया था।
बचपन से मैं इस बारे में सोचती रही हूँ कि कैसे वह लड़का उस भूखी भीड़ के बीच अपने भोजन को सुरक्षित रखने में कामयाब रहा होगा। मैं यह भी सोचा करती थी कि येशु ने उस लड़के के हाथों से वह खाने की टोकरी किस तरीके से आसानी से लेने की कोशिश की होगी। शायद उस लड़के के लिए उसका दिनभर का भोजन वाही पांच रोटियाँ और दो मछलियाँ रही होंगी या वह उसे बेचार कुछ कमाई करनेवाला था। किस बात ने उस लड़के को उन रोटियों को खाने की इच्छा तय्गने या बेच कर कुछ पैसे कमाने के लालच से दूर रखा? मुझे लगता है कि इस सवाल का जवाब उन परिस्थितियों में छुपा है जिनसे वह लड़का उस वक्त घिरा हुआ था। हो सकता है कि वह इलाका उस लड़के के घर के पास था, शायद उस लड़के के माता-पिता और पड़ोसी भीड़ में मौजूद थे, या शायद उसके लालच ना करने की वजह खुद येशु थे। हालाँकि वह येशु से नहीं मिला होगा, फिर भी उसने निश्चित रूप से उनकी कहानियाँ सुनी थीं और उनके गहरे प्यार को महसूस किया था।
हालाँकि मैं अपने आस-पड़ोस की सड़कों की किनारे लगे पेड़ों, फुलवारियों और घरों का आनंद लेती हूँ, फिर भी अपने पड़ोस में टहलने का मेरा सबसे पसंदीदा पहलू वे लोग हैं जिनसे मैं आते जाते हुए मिलती हूँ। मिलने वाले हर एक जन में, मुझे वह खुशी दिखाई देती है जो उनकी मुस्कुराहट का कारण है और वे आंसू जो उनके दुख के प्रतीक हैं। मैं उन नरम हाथों को देखती हूं जो बच्चों को गले लगाते हैं और उन खुरदुरे हाथों को भी जो अपने परिवार को कपड़े पहनने और उनके खाने का इंतेज़ाम करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। मैं उन मजबूत पैरों को देखती हूं जो किसी बुजुर्ग पड़ोसी को उनके पालतू कुत्ते को पकड़ने में मदद केलिए दौड़ते हैं और उन कोमल बाहों को भी देखती हूं जो एक दुखी पड़ोसी को गले लगाकर सांत्वना देते हैं।
मैं जिस भी व्यक्ति से मिलती हूं, उनमें मैं किसी ऐसे व्यक्ति को देखती हूं, जिसे कभी-कभी ईश्वर की ओर से एक धक्के की ज़रूरत होती है, और मैं किसी ऐसे व्यक्ति को देखती हूं जो कभी-कभी आत्मनिर्भर होकर अपने आप राह पर चल रहा होता है। मैं जिस भी व्यक्ति से मिलती हूं, मुझे उनमें एक आत्मा दिखाई देती है, जिसके बारे में ईश्वर कहते हैं, “मुझे अच्छी तरह पता है कि इन लोगों को कब धक्का देना है और कब वे अपने दम पर चलने में सक्षम हैं। मैं तुम में से हर एक व्यक्ति पर बहुत ध्यान देता हूं क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूं!”
यह जानकारी कि ईश्वर मुझसे प्यार करता है, इसी जानकारी से हमारे जीवन में बहुत फर्क पड़ता है। यह जानना कि ईश्वर मेरे साथ है मुझे प्रेरणा से भर देता है। यह जानना कि ईश्वर मेरे आनंद और मेरे दुख पर पूरा ध्यान देता है मुझे सशक्त करता है, कि मैं अपने जीवन की मुसीबतों का सामना अकेले नहीं कर रही हूं।
अगर हम इस परेशानी भरी दुनिया में रह कर एक दूसरे के लिए कुछ कर सकते हैं, तो वह एक दूसरे को याद दिलाना होगा कि हम इन चीजों का एक साथ सामना कर रहे हैं, हम एक दूसरे के साथ हैं और ईश्वर हमारे पक्ष में हैं। चूंकि ईश्वर हमसे प्यार करता है और हमेशा हम पर ध्यान देता है, इसीलिए हमारे लिए बड़ी से बड़ी त्रासदी भी सहन कर पाना मुश्किल नहीं है!
'जब मैं पल्ली में पूर्णकालीन सेवकाई कर रहा था, तो मेरी पसंदीदा गतिविधियों में से एक बपतिस्माओं का अनुष्ठान करना था। मैंने इस शब्द को बहुवचन में रखा है, क्योंकि मैंने शायद ही कभी एक बार में एक बच्चे को बपतिस्मा दिया हो, लेकिन आमतौर पर दस या एक दर्जन बच्चों को एक साथ बप्तिस्मा दिया करता था। रविवार दोपहर लगभग दो बजे साधारणत:, परिवार और दोस्तों का काफी बड़ा समूह सेंट पॉल ऑफ़ क्रॉस चर्च की पहली पंक्तियों में इकट्ठा होता, मैं उनका स्वागत करता और जो कुछ होने वाला था उसका एक बहुत ही संक्षिप्त विवरण देता था। और फिर अनिवार्य रूप से बारह बच्चों के एक साथ रोने की खुशनुमा बेमेल कुसंगीत शुरू हो जाता है। मैं चिल्ला चिल्लाकर प्रार्थना और बपतिस्मा का रस्म पूरा कर देता था और अक्सर एक अनोखा आनंद प्राप्त कर लेता था। इन दिनों जबकि मैं एक धर्माध्यक्ष हूँ, मेरे पास बपतिस्मा देने का अवसर कम है, और मुझे यह कमी खलती है। लेकिन पिछले हफ्ते एक अवसर प्राप्त हुआ। डग कमिंस और उनकी पत्नी एरिका की बेटी हेज़ल रोज कमिंस को चर्च में स्वागत करते हुए मुझे बड़ी खुशी हुई। सांता बारबरा में वर्ड ऑन फायर कार्यक्रम के सहयोगी निर्माता के रूप में डग कमिंस हमें सहयोग करते हैं।
मैंने उस बपतिस्मा समारोह के लिए सांता बारबरा में संत रोक चर्च के बाहर एकत्रित समूह (वह कोविड का समय था) को संबोधित करते हुए जो प्रवचन दिया था उसे मैं आप सभी के साथ साझा करना चाहता हूं। मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने डेट्रॉइट महाधर्मप्रांत के पुरोहित फादर मैथ्यू हूड की कहानी सुनी है। उन्होंने अपने स्वयं के बपतिस्मा का एक वीडियो देखने के बाद पता लगाया, कि उनका बपतिस्मा अवैध था। बपतिस्मा की धर्मविधि को संपन्न करने वाले डीकन ने सही शब्दों का प्रयोग नहीं किया, और परिणामस्वरूप, फादर हूड का कलीसिया में सही रूप से प्रवेश नहीं हुआ था। और इसके कारण, फादर हूड ने प्रथम परम प्रसाद का संस्कार, दृढीकरण का संस्कार, या पुरोहिताभिषेक का संस्कार भी वैध रूप से प्राप्त नहीं किया था, क्योंकि ये सभी संस्कार बपतिस्मा की वैधता पर निर्भर करते हैं। अब, यह पता चलने के बाद, डेट्रॉइट के आर्चबिशप ने फादर हुड के लिए बपतिस्मा से लेकर पुरोहिताभिषेक तक के सभी संस्कारों को विधिवत संपन्न किया। अब इसके बाद, नवजवान फादर हूड एक पुरोहित के रूप में अपनी सेवा देने में सक्षम हो गए। आप सोच सकते हैं, “ठीक है, यह एक अजीब कहानी है, जिसका अंत सुखान्त है।” लेकिन यह घटना, वास्तव में, बपतिस्मा के बारे में कलीसिया की समझ के बारे में कुछ बेहद महत्वपूर्ण जानकारी हमें देती है। हम मानते हैं कि संस्कार की विधि में प्रयुक्त शब्दों और चिन्हों द्वारा कुछ ख़ास बात घटित होती है। बपतिस्मा केवल एक नए जीवन का उत्सव नहीं है, या यहाँ तक कि एक बच्चे के लिए प्रार्थना करने और ईश्वर को समर्पित करने का सिर्फ एक कार्य भी नहीं है। यदि यह सब है, तो फ्लैनरी ओ’कॉनर के शब्दों में बपतिस्मा येशु के रहस्यमय शरीर का अंग बनने के अदृश्य अनुग्रह का दृश्य संकेत है। हम मानें या न मानें, यह संस्कार वास्तविकता की वस्तुनिष्ठ स्थिति को बदल देता है।
यह सब कहने के बाद, मैंने बपतिस्मा के व्यक्तिपरक पक्ष पर प्रकाश डाला। चूँकि वहाँ कुछ युवा लोग मौजूद थे, मैंने बाज के अंडे के पुराने दृष्टांत का इस्तेमाल किया, जिसके अनुसार एक बाज का अंडा ऊपर घोंसले से बाहर होकर नीचे मुर्गियों के झुंड के बीच गिर गया। जब बाज के चूजे का जन्म हुआ, तो उसे केवल मुर्गियों की दुनिया के बारे में पता चला, और इसलिए उसने अपना पहला साल जमीन पर चोंचते हुए बिताया और कभी भी अपने महान पंखों को नहीं फैलाया। एक दिन, एक राजसी बाज ऊपर उड़ रहा था और देखा कि नीचे एक कम उम्र का बाज मुर्गे की तरह चल फिर रहा है। “तुम्हारा यह क्या मामला है?” उसने पूछा। “क्या तुम नहीं जानते कि तुम कौन हो?” फिर उसने उस बाज को सिखाया कि कैसे अपने पंखों को फैलाना और उड़ना है।
यह दृष्टांत आध्यात्मिक क्षेत्र में भी चलता है। प्रत्येक बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति, वस्तुनिष्ठ रूप से, ईश्वर की संतान है, दिव्य है, और एक महान संत बनना उसकी नियति में है। लेकिन समस्या यह है कि जिन लोगों ने यह नई पहचान प्राप्त की है उनमें से अधिकांश इसे तुरंत भूल जाते हैं और दुनिया की मान्यताओं, प्रथाओं और आस्थाओं को अपना लेते हैं। टेलीविजन, फिल्मों, सोशल मीडिया, पॉप सितारों और धर्मविरोधी विचारकों की सोच और संकेतों को अपनाने के बाद, हम धन या शक्ति या भौतिक सफलता या प्रसिद्धि की प्राप्ति के लिए खुद को समर्पित करते हैं। ये चीजें अपने आप में बुरी नहीं हैं, लेकिन इन्हें अपना सर्वोच्च मूल्य मानना और अपनी सारी शक्तियों के साथ इनके पीछे दौड़ना मुर्गियों की तरह जमीन पर चोंच मारने के बराबर है। हेज़ल के बपतिस्मा के लिए इकट्ठी छोटी मण्डली से मैंने कहा कि हमें एक मजबूत समुदाय की ज़रूरत है, जो इस छोटी बालिका को याद दिला सकें कि वह कौन है। हेज़ल को परमेश्वर की सन्तान उन्होंने नहीं बनायी; मसीह ने बपतिस्मा के माध्यम से ऐसा किया। लेकिन वे वास्तव में उसे सिखा सकते हैं कि उसे जो होना चाहिए, वही बने, और कुछ बनने का कोई दयनीय बहाना लेकर समझौता बिलकुल न करें। वे जो कुछ भी उसे सिखाएंगे, जो कुछ करने के लिए उसे प्रोत्साहित करेंगे, वे सब उसे एक महान संत बनने के लक्ष्य की ओर एक मार्गदर्शन होना चाहिए।
मुझे विश्वास है कि अभी भी अधिकांश राष्ट्रों में बपतिस्मा लेने वाले बहुत सारे लोग हैं, इसलिए मैंने अक्सर इस पर कल्पना की है कि अगर बपतिस्मा लेने वाला हर व्यक्ति परमेश्वर की संतान के रूप में अपनी पहचान के साथ रहता है तो यह दुनिया कैसी होती। अगर आसमान पर उड़ने के लिए सृष्ट हर व्यक्ति, आखिरकार, जमीन पर इधर-उधर चोंच मारना बंद करके ऊपर उड़ता फिरता रहता तो कितना अच्छा होता? यह एक सच्ची क्रांति होगी।
'मैं उससे पहले कभी नहीं मिली थी… फिर भी उसने कहा कि मैंने उसकी जान बचाई…
4 जुलाई की शाम थी। मेरी पंद्रह वर्षीय बेटी बेला और उसके कई दोस्त ऊपर वीडियो गेम खेल रहे थे। वे सीढ़ियों से नीचे उतरे और रसोई में आ गए, जहाँ मैं और मेरे पति बातें कर रहे थे।
“माँ, हम सब भूखे हैं। क्या आप हमारे लिए कुछ पनीर सैंडविच बना सकती हैं,” बेला ने पूछा?
“ज़रूर,” मैंने कहा।
“सैम आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता है,” बेला ने कहा।
सैम चूल्हे की ओर यानी मेरी तरफ बढ़ गया।
एक कड़ाही चूल्हे पर रखकर और चूल्हे को चालू करते हुए, मैंने उससे पूछा “तुम यहाँ एक बार पहले भी आ चुके हो, है ना?”
“हाँ, एक महीना या उससे भी पहले,” उसने एक बड़ी आकर्षक मुस्कान के साथ उत्तर दिया।
“सही बात है। तुम कहां के रहने वाले हो?” मैंने पूछ लिया।
“जी, मेरा परिवार मोरोक्को से है,” उसने कहा।
सैम की उपस्थिति से माहौल खुशनुमा और प्यारभरा बन रहा था। मुझे पता नहीं था कि वह बेला के साथ हाई स्कूल में पढ़ाई करता था या वे एक दुसरे को सोशल मीडिया, फुटबॉल गेम्स या किसी पार्टी के माध्यम से जानते थे।
“वाह, कितनी अच्छी बात है,” मैंने बड़ी मुस्कराहट के साथ कहा। “तो क्या तुम बेला के स्कूल में पढ़ते हो?”
“नहीं,” उसने कहा। “हम लोग इस गर्मी में समुद्र तट पर मिले थे।”
“ओह, ठीक है, तुम मुझसे क्या सवाल पूछना चाहते हो सैम?”
“जब मैं अपनी माँ के गर्भ में था, उन दिनों क्या आपने मेरी माँ से गर्भपात नहीं करने की बात की थी?”
वह सालों पुरानी बातचीत
मैं पूरी तरह स्तब्ध रह गयी। यह लड़का कौन है? यह कहाँ रहता है, मैं सोचने लगी और उसे घूर कर देखती हुई, अपने दिमाग में यह याद करने की कोशिश कर रही थी, कि मैं ने इसकी माँ के साथ पूर्व में कहीं बातचीत की थी क्या?
मुझे यकीन था कि वह मैं नहीं हो सकती। जैसे ही मैं ने बेला और सैम को कंधे से कंधा मिलाकर खड़े देखा, अचानक, मुझे एक युवा महिला के साथ बातचीत की याद आई जब बेला मेरी कोख में थी।
“तुम्हारी माँ का नाम क्या है?” मैंने पूछ लिया
“मरियम,” उसने कहा।
यह नाम सुनते ही अवाक् होकर मैं बस उसे देखती रही। मरियम का बेटा मेरी रसोई में कैसे आया … और वह बेला का दोस्त? मैंने उसके चेहरे को ध्यान से देखा।
“हाँ, तुम्हारी माँ के साथ मेरी बातचीत हुई थी।” मैंने कहा।
सैम मेरे पास दौड़ आया और उसने अपनी बाहों से मुझे लपेट लीं। उसने मुझे कसकर पकड़ ली।
“आपने मेरी जान बचाई। आपने मेरी जान बचाई। धन्यवाद। धन्यवाद,” वह बोलता गया।
हम कई मिनट तक एक दूसरे के आलिंगन में बंद होकर रसोई में खड़े रहे।
वे यादें
मैं अपने पति की ओर मुड़ी, “क्या आप इस पर विश्वास कर पा रहे हैं?
“नहीं, मैं नहीं कर पा रहा हूँ,” उन्होंने अविश्वास में घूरते हुए कहा।
सैम ने अपनी माँ को फोन किया और हमारी मुलाक़ात और बातचीत के बारे में बात करता रहा । फिर उसने फोन मुझे थमा दिया।
“मैंने ईश्वर से प्रार्थना की थी कि वह आपको फिर से खोजने में मेरी मदद करें और देखिये, उसने मदद की! क्या आप को पता है, सैम और बेला दोस्त हैं”, यह कहते वक्त मरियम की आवाज भावुकता से भर गई थी।
मैंने उससे कहा “मरियम, मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। सच में, मैं अभिभूत हूँ मरियम”।
फोन बंद करने से पहले, हमने अपने जीवन के पिछले पंद्रह वर्षों के बारे में बातचीत करने के लिए एक साथ आने की योजना बनाई।
मेरे पति आश्चर्य प्रकट करते हुए सिर हिलाते रहे।
उन्होंने कहा: “मुझे याद है वह रात, जब तुम घर आई थी, मैंने तुमसे कहा था कि तुम पागल हो, क्योंकि गर्भपात रोकने के बारे में उस महिला को समझाने का कोई मतलब नहीं था।“
मैंने लगभग सोलह साल पहले की उस रात को याद किया। शनिवार का दिन था और मैं अपनी बहनों और कुछ दोस्तों के साथ रेस्तरां में डिनर पर थी। मैं मेज के शीर्ष पर बैठी थी, क्योंकि हम अपनी चौथी गर्भावस्था का जश्न मना रहे थे। हमारी वेट्रेस एक सुंदर, खूबसूरत काले बालों वाली युवती थी जो खुद गर्भवती थी।
अन्दर का खजाना
रात के भोजन के बाद, वेट्रेस ने बचा हुआ भोजन मुझे पैक करके दिया और फिर मेरे बगल में बैठ गई और फुसफुसाई, “काश मैं भी अपनी गर्भावस्था का जश्न मना पाती, लेकिन मैं नहीं कर सकती। आने वाले बुधवार की सुबह मैं गर्भपात करने जा रही हूँ।”
यह सुनकर मैं हैरान और दुखी हो गयी।
“आप गर्भपात क्यों करवा रही हैं?” मैंने पूछ लिया।
“मैं शादीशुदा नहीं हूं, और मेरे देश में अगर किसी को पता चलता है कि मैं अविवाहित रहती हुई गर्भवती हूँ, तो मेरे माता-पिता को उनके शहर से निर्वासित कर दिया जाएगा और वे अपने काम-धंधे से वंचित रह जायेंगे।”
“यह बहुत खराब स्थिति है, लेकिन उन्हें कैसे पता चलेगा?”
वे जान जाएंगे। आप नहीं समझ पाएंगी”, उसने कहा।
“आप सही कह रहे हैं, मैं शायद समझ नहीं पाऊंगी, लेकिन मैं जो जानती हूं वह यह है कि ईश्वर चाहता है कि आपके पास यह बच्चा हो, नहीं तो ईश्वर आपके कोख में इस बच्चे को पनपने नहीं देता।”
उसने कहा, “मैं आपकी तरह ईसाई नहीं हूं, मैं मुस्लिम हूं। मेरे पास आपकी तरह का ईश्वर नहीं है”।
“नहीं बहन, दो तरह के ईश्वर नहीं होते। केवल एक ही ईश्वर है,” मैंने कहा।
“मैं और मेरा प्रेमी बड़े संकट से गुज़र रहे हैं; हम दोनों के बीच हालात अच्छी नहीं है।”
“मुझे खेद है कि आप संकट से गुज़र रहे हैं। मेरे तीन और बच्चे हैं। जब हमें पता चला कि बहुत छोटे में ही मेरे सबसे बड़े बेटे को एक दुर्लभ और घातक बीमारी हुई है, तब हम सोच भी नहीं सकते थे कि वह आज भी हमारे साथ जीवित होगा। और अब 42 साल की उम्र में मैं अपने चौथे बच्चे को जन्म देनेवाली हूँ और अपने चौथे सिजेरियन ऑपरेशन का सामना करने जा रही हूं। लेकिन उसके बावजूद, मैं आपको बता सकती हूं कि आपके प्रेमी के साथ चाहे कुछ भी हो जाए, और आपकी कठिन परिस्थितियों के बावजूद, यह बच्चा आपका खजाना होगा, आप देखेंगी।”
“मेरे पास कोई नहीं है, मैं इसे जन्म नहीं दे सकती।”
“आपके पास मैं हूँ। मुझे अपना नंबर दीजिये और मैं आपको सुबह फोन करूंगी।”
जब वह जल्दी जल्दी मेरे भोजन के पैकेट के ऊपर अपना सेल फोन नंबर लिख रही थी, उसी समय मैंने उसकी कमीज़ पर लगे उसके नेमटैग को पढ़ा और हमने अलविदा कह दिया।
मैंने अगली सुबह मरियम को फोन किया। उसने अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताया और अपने प्रेमी के साथ अपने संबंधों के कुछ विवरण साझा किए। मैं समझ गई कि उसने किस कारण गर्भपात को ही अपना एकमात्र रास्ता चुना था। मैं उसकी दुर्दशा की कल्पना पूरी तरह नहीं कर पा रही थी। मैंने उसे एक स्थानीय प्रसूता केंद्र के बारे में बताया और उनका फोन नंबर उसे दिया।
सभी बाधाओं के विरुद्ध
मरियम के गर्भपात केलिए निर्धारित दिन से एक दिन पहले, मैंने उसको फिर से फोन किया। उसने आश्चर्यजनक समाचार साझा किया कि प्रसूता केंद्र उसकी मदद करने जा रहा है और उसने गर्भपात करने का फैसला रद्द कर दिया है। हम दोनों ने अपनी गर्भावस्था के दौरान आपस में बातचीत करना जारी रखा, लेकिन प्रसव के बाद हमने एक-दूसरे से संपर्क खो दिया।
मैंने सैम को देखा।
“तुम्हारी माँ एक खूबसूरत युवती थी जो गर्भवती हो गई और उसने अपने आप को एक निराशाजनक स्थिति में पाया। जिस रात हम दोनों मिली, वह अकेलापन, शर्म और तिरस्कृत किये जाने की भावना से गुज़र रही थी। मैंने केवल उसे याद दिलाया था कि शर्म के घर ईश्वर नहीं बनाते, लोग बनाते हैं। ईश्वर अनुग्रह के घर बनाता है, और वह उसे तुम्हारे माध्यम से एक अनोखा खजाना देना चाहता है। आपकी माँ के अन्दर सभी बाधाओं के विरुद्ध लड़ने का वीर साहस था। मैं आभारी हूं कि मैं उन छोटे तिनकों में से एक था जिन्हें परमेश्वर ने एक साथ जोड़ा था, बस यह संयोग था, ईश्वर की योजना के अंतर्गत एक अप्रतीक्षित मुलाक़ात के द्वारा।
इसके बाद मैं बेला की तरफ मुड़ी।
“और तुम भी इस योजना की एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, क्योंकि अगर तुम मेरे गर्भ में नहीं होती, तो मरियम ने कभी मुझ पर विश्वास नहीं किया होता।”
बेला की आँखे, हाँ बादाम के आकार की वे खूबसूरत आंखें, गर्व से मुस्कुराने लगीं।
उस रात को मरियम को प्यार करना और उसे सुनना मेरे लिए बहुत मुश्किल काम नहीं था। आखिरकार, वह मेरी अविवाहित, गर्भवती बेटी नहीं थी। मैंने सोचा कि अगर उसकी जगह मेरी बेटी होती तो क्या मैं यही प्रतिक्रिया देती? मरियम के साथ मेरी बातचीत से मुझे एक ऐसी माँ बनने की चुनौती मिलती है जो मेरे बच्चों की गलतियों और असफलताओं के बदले में, शर्म महसूस करने और दोष लगाने के बजाय उनकी अच्छाई में विश्वास करते हुए अनुग्रह के साथ व्यवहार करने में प्रेरणा मिलती है। मैं वह व्यक्ति बनना चाहती हूं जिसके पास वे अपनी मुसीबत में आ सकते हैं, मैं उन्हें याद दिला सकूं कि मुसीबतें उनकी गलती नहीं हैं। मैं चाहती हूं कि उन्हें पता चले कि मैंने अपनी गलतियों, असफलताओं और पापों के माध्यम से अपने जीवन में कई गड़बड़ियां की हैं, लेकिन उनके माध्यम से मैंने ईश्वर के उद्धार और परिवर्तनकारी प्रेम का अनुभव किया है, और वे भी ऐसे प्रेम का अनुभव कर सकते हैं।
'जीवन की उथल-पुथल के बीच, क्या आपने कभी सोचा है कि यह सब कहाँ समाप्त होगा? तो यह लेख आपके लिए है!
कार्ली साइमन के 1970 के दशक के लोकप्रिय गाने में यह घोषणा हुई, “इंतज़ार की वजह से मुझे देरी हो रही है, मुझे प्रतीक्षा करना पड़ रहा है।” कलीसिया अर्थात येशु के रहस्यमय शरीर के सदस्यों के रूप में, यह गीत हमें याद दिलाता है कि हमारे दिलों में मसीह के आने का इंतज़ार लेकर हम कड़ी मेहनत कर रहे हैं। मसीह को हमारे दिलों में आने केलिए, हमें सतर्क, प्रतीक्षारत और आशान्वित रहने की जरूरत है, खासकर अनिश्चितता, परेशानी और बेचैनी के इस दौर में।
बेचैनी का यह दौर
महामारी के दौरान, हम सभी ने आपदा और बड़े नुकसान का अनुभव किया है। दुनिया भर में, लाखों लोग इस ख़तरनाक वायरस से संक्रमित हो चुके हैं या उससे हार चुके हैं। शायद इस लेख का कोई भी पाठक कोविड-19 से अप्रभावित नहीं रहा है।
इस बेचैनी के दौर से जैसे ही हम गुजरते हैं, हम कभी-कभी अकेला महसूस कर सकते हैं। जैसे प्राचीन इस्राएलियों को बाबुल में गुलामी में रखा गया था, वैसे ही हम भी ऐसा महसूस कर सकते हैं कि जिन ताकतों पर हम जीत हासिल नहीं कर सकते, उन्हीं ताकतों द्वारा हम बंदी बना लिये गए हैं। अनिश्चितता और अंधकार से निपटते हुए, हम सोच सकते हैं, “यह सब कब समाप्त होगा, परमेश्वर कब अंधकार का अंत करेगा और हमें इस अराजकता में उसे खोज पाने का अवसर कब देगा?” इन कोशिशों के दौरान ऐसा लग सकता है कि ईश्वर अपने “कार्य से लापता” है।
तो, इन सब घटनाओं का हमारे लिए क्या मायना है? इस्राएलियों को निर्वासन से लौटने पर, नबी यशायाह ने उन्हें संबोधित करते हुए एक ज्वलंत छवि की पेशकश की। इस बेचैनी के सत्य को हमारे समकालीन अनुभव के साथ प्रकट करने में हमारी मदद करने के लिए नबी कहता है, “हे प्रभु, तू हमारा पिता है; हम मिट्टी हैं, और तू कुम्हार है; तूने हम सबों को बनाया है” (64:7)।
ईश्वर की कलाकृति?
आइए इस रहस्य पर से पर्दा हटा लें। जैसा कि पुराने नियम में बताया गया है, परमेश्वर मुक्ति के इतिहास, सृष्टि और उद्धार के कार्य में गंभीरता से सक्रिय है। जलती हुई झाड़ी में (देखें: निर्गमन 3:7-10), परमेश्वर ने मूसा के सामने स्वयं को ‘यहोवा’ के रूप में प्रकट किया: “मैं हूँ”। इसलिए, ईश्वर हमेशा “कार्य” या “कृत्य” है — हमेशा हमारे लिए यहां और अभी वर्त्तमान में मौजूद है – अतीत में नहीं, भविष्य में नहीं, बल्कि इस क्षण में, शाश्वत वर्त्तमान में। कलीसिया के महान आचार्य संत इरेनियस (202 ई.) ने कहा कि “ईश्वर सृष्ट किया गया नहीं है; वह सृष्टिकर्ता है। लेकिन हम उसकी सृष्टि, लगातार सृष्ट किये जा रहे हैं।” हमें एक कलाकार द्वारा आकार दिया जा रहा है। हममें उसकी इच्छा के अनुरूप ढाले जाने की यदि इच्छा है, तो हम उसकी पसंद की कलाकृति के रूप में बनाए जा रहे हैं, और यह रचनात्मक क्रिया यहीं हो रही है, अभी वर्त्तमान में – इसमें कोई अपवाद नहीं है!
ईश्वर हमें कैसे ढालते हैं? जैसा कि समकालीन आध्यात्मिक लेखक पाउला डी’आर्सी ने कहा है, “ईश्वर हमारे जीवन के छद्मवेश में हमारे पास आते हैं।” हमारे साथ होने वाली हर बात या कार्य के माध्यम से परमेश्वर हमें आकार देता है: सफलता और असफलता; लाभ और हानि; बीमारी और स्वास्थ्य; भौतिक और वित्तीय समृद्धि तथा भौतिक और वित्तीय पतन के दौर। ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे ईश्वर हमें आकार देने के लिए उपयोग नहीं कर सकता। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ईश्वर महामारी जैसी घटनाओं को पैदा करता है, लेकिन वह अपने उद्देश्यों के लिए हर कार्य का उपयोग कर सकता है।
और, इसलिए, निर्वासन में फंसा प्राचीन इस्राएल की तरह, हम प्रत्याशा के साथ इंतज़ार करते हैं। हम प्रतीक्षा करते हैं, हम बाट जोहते हैं, हम प्रभु को पुकारते हैं। लेकिन, जब हम ऐसा करते हैं, हम कुम्हार की छवि को मन में रखते हैं। हम ईश्वर के हाथ की मिट्टी हैं। इसके अलावा, यह कुम्हार हमसे दूर या हमसे अलग नहीं है। जैसे ही हमारा पवित्र जीवन सामने आता है, वह तुरंत और अंतरंग रूप से यहां उपस्थित होता है। जिस रूप में वह हमें चाहता है, बड़ी सावधानी से उस व्यक्ति के रूप में वह हमें ढाल रहा है।
अपने जीवन में उस दिव्य कार्य होने की प्रतीक्षा करें; इसके लिए इंतज़ार करें, और इसका उत्सव मनाएं, इन अनिश्चित दिनों में भी।
'प्रश्न – मुझे संदेह होने लगा है कि क्या मेरी शादी कभी होगी। मुझे एक अच्छा जीवनसाथी नहीं मिल रहा है जो मसीह के प्रति विश्वस्त हो। मेरे लिए एक अच्छा भावी जीवनसाथी कैसे मिल सकता है—और मुझे कैसे पता चलेगा कि वह “वही” है?
उत्तर – युवाओं और युवा वयस्कों के साथ अपने काम के दौरान, मुझे लगता है कि यह एक आम दिक्कत है: आज की दुनिया में एक अच्छा, विश्वास से भरा जीवनसाथी कैसे खोजा जाए। मैं हमेशा हंसता हूं क्योंकि मेरे युवा वयस्क समूह में, सभी लड़कियां मुझसे शिकायत करती हैं, “कोई अच्छा लड़का नहीं दिखाई दे रहा है, जिससे मैं दोस्ती कर सकती हूं!” और लड़के लोग शिकायत करते हैं, “ऐसी कोई अच्छी लड़की नहीं खोज पा रहा हूँ जिससे मैं दोस्ती कर सकता हूं!” कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि मुझे सिर्फ जोड़ी बनानेवाला होना चाहिए और उन्हें एक साथ जोड़ने का काम करना चाहिए!
जीवन साथी को खोजने सम्बन्धी सबसे अच्छी सलाह जो मैंने कभी सुनी, वह एक पुरोहित की थी; उन्होंने कहा, “येशु के पीछे दौड़ना शुरू करो। जब तुम येशु के पीछे दौड़ रहे हो, तो कुछ समय बाद चारों ओर देखो और पहचानो कि कौन तुम्हारे साथ दौड़ रहा है। वे ही लोग हैं जिन्हें तुम्हें साथी बनाना चाहिए।” दूसरे शब्दों में, पहले मसीह का अनुसरण करें—और एक ऐसे जीवनसाथी की तलाश करें जो पहले से मसीह का अनुसरण कर रहा हो।
लेकिन ऐसा जीवनसाथी कहां मिलता है? ऐसे लोग आमतौर पर मधुशाला में नहीं मिलते,—लेकिन ऐसे अच्छे अच्छे कैथलिक युवा समूह कई शहरों में हैं जहां आप ऐसे लोगों से मिल सकते हैं जो मसीह के बारे में गंभीर हैं और जीवनसाथी खोजने के बारे में भी गंभीर हैं। उनके साथ जुड़िये, क्योंकि मैं गारंटी देता हूं कि आपको ऐसे और लोग भी मिलेंगे जो विवाह के बारे में विवेक के साथ समझदारी बढ़ा रहे हैं। और वे आपके जैसे ही लोग हैं।
यदि आपके पास स्थानीय कैथलिक युवा समूह नहीं है, तो आप या तो स्वयं ऐसा एक समूह शुरू कर सकते हैं या अपनी पल्ली या अन्य धर्मार्थ स्थानों पर स्वयंसेवा का कार्य करते हुए अन्य युवाओं की तलाश कर सकते हैं। कोई भी युवा जो अपना समय स्वेच्छा से देता है, उसकी प्राथमिकताएं सही क्रम में होने की संभावना है!
जीवनसाथी खोजने के लिए कैथलिक ऑनलाइन मैरिज ब्यूरो भी उपयोगी स्थान हो सकता है। मेरी बहन कैथलिक मैच डॉट कॉम पर अपने पति से मिली, और मैं ऐसे कई अन्य युवाओं को जानता हूं जिन्होंने इसी तरह ऑनलाइन सफलता पाई हैं। ऑनलाइन में प्रवेश होने पर, आप कौन हैं, इसके बारे में ईमानदार रहें, और सुनिश्चित करें कि आपके पास दूसरे व्यक्ति के समान मूल्य हैं (कैथलिक मैरिज ब्यूरो साइटों पर हर कोई गंभीरता से कैथलिक नहीं है – कुछ प्रामाणिक रूप से कैथलिक होने की अपेक्षा “सांस्कृतिक रूप से” कैथोलिक हो सकते हैं और प्रभु के बारे में शायद ही गंभीर हो सकते हैं)।
एक अच्छे रिश्ते के लिए आवश्यक है कि विवाह बंधन में प्रवेश कर रहे दोनों लोग विश्वास, धन, बच्चे, परिवार आदि मूल्यों पर सामान रूप से विचार रखें, कि वे एक साथ रहने का आनंद लें और समान गतिविधियों का आनंद लें, और निश्चित रूप से, वे एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हों। यदि ये बातें मौजूद हैं – और आप रिश्ते में पवित्र आत्मा की उपस्थिति को महसूस करते हैं – तो आपको पता होना चाहिए कि वह व्यक्ति “यही” है! मुझे नहीं लगता कि ईश्वर ने हम में से प्रत्येक के लिए “जीवन साथी” बनने लायक केवल एकमात्र व्यक्ति को बनाया है; इसके बजाय, शायद ऐसे कई व्यक्ति हैं जिनके साथ कोई न कोई व्यक्ति अच्छी संगति और खुशी का अनुभव कर सकता है। यदि आप रिश्ते में शांति महसूस करते हैं, और यदि यह मसीह पर केंद्रित रिश्ता है, यदि आप एक-दूसरे के साथ रहना पसंद करते हैं और आप दोनों के व्यक्तित्व और रुचियाँ मेल खाते हैं, तो आपने शायद उस व्यक्ति को ढूंढ लिया है जिसके साथ विवाह के लिए ईश्वर आपको बुला रहा है! “यह वही व्यक्ति है जिससे आपको शादी करनी चाहिए”, ऐसे स्पष्ट चिन्ह को परमेश्वर आमतौर पर नहीं दिखाता है, बल्कि आपके रिश्ते में अनुकूलता, सामंजस्य और एक दूसरे को स्वर्ग की ओर यात्रा में मदद देने की प्रबल इच्छा, ये ही परमेश्वर के चिन्ह हैं।
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