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जब चिंता का आप पर हमला होता है, तो उसका सामना करना आसान नहीं होता है, लेकिन यकीन करें, आप अकेले नहीं हैं …
जैसे ही मैंने अपने सीने के अंदर धड़कन की आवाज़ सुनी, हर धडकन अगले धड़कन की तुलना में तेज़ थी, तब मुझे पता था कि आगे क्या होने वाला है। मैं याद करने की कोशिश कर रही थी कि मुझे साँस निकालने के लिए प्रयास करना चाहिए। मेरे पेट में दर्द की एक गाँठ बन गई, मानो उस गाँठ को पता था कि मुझे कुछ करने की जरूरत है, उथली सांस के बाद उथली सांस। मेरे शरीर में इस का भयानक परिवर्त्तन मेरे लिए परिचित लेकिन अवांछित अतिथि था। यहाँ चिंता फिर से सब कुछ अपने काबू में लेने की कोशिश कर रही थी। ऐसा लगता है कि जितना अधिक मैं उससे लडती हूँ, वह उतनी ही मजबूत होती जाएगी। मेरा ध्यान उसे तब तक भड़काता रहा जब तक मुझे एहसास हुआ कि जिस अतिथि का मैं स्वागत करना चाहती थी, यानी शांति, वह पहले ही मुझ से दूर जा चुकी थी।
एक तेज बुखार
चिंता एक ऐसा विषय है जिसके बारे में लिखने में मुझे झिझक होती है। मैं मानसिक स्वास्थ्य की विशेषज्ञ नहीं हूं। मैं इन मामलों पर सलाह देने की योग्य नहीं हूँ। लेकिन मेरे पास अपना अनुभव है, और मैं अपनी कहानी साझा करने के लिए योग्य हूं। मेरे लिए, चिंता एक बुखार की तरह रही है … वह एक लक्षण है जो मुझे कहीं कुछ संकेत देने के लिए दिखाई देता है, उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कभी-कभी, तेज बुखार जैसे लक्षण को बीमारी की स्थिति से उबरने के लिए सीधे मदद की आवश्यकता होती है, लेकिन दूसरी बार, “यह भी बीत जाएगा” ऐसे सोचने से मुझे बेचैनी में बैठने और सांत्वना पाने हेतु ईश्वर की प्रतीक्षा करना ही पर्याप्त है। बार-बार, प्रभु ने मेरे दिल के उन हिस्सों में प्रकाश और उपचार लाया है जो हिस्से उससे अलग-थलग महसूस करते थे।
पहली बार जब मैंने महसूस किया कि उसका उपचार करने वाला हाथ मेरे डर को दूर कर रहा है, तो मुझे लगा कि मैं ठीक हो गयी हूं; मैंने सोचा कि मुझे फिर कभी उस भयावह आतंक का अनुभव नहीं करना पड़ेगा। इसलिए जब यह फिर से हुआ, तो मैं उलझन में थी। क्या मैंने प्रभु को अपना अनुग्रह वापस लेने के लिए कुछ गलत किया? क्या मैं परीक्षा पास करने में असफल रही? नहीं… अभी और भी बहुत कुछ है जिसके चंगा होने करने की जरूरत है। हर बार जब मैं चिंता का अनुभव करती हूं, तो यह मेरी मदद करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने का अवसर बन जाता है। हर बार, मैं येशु को अपने दिल में शासन करने और मुझ में उनकी शांति लाने के लिए आमंत्रित करती हूं।
एक बड़ा झूठ
उन में से एक अवसर पर, मैंने सीखा कि कैसे मेरी आत्मा का दुश्मन मेरे खिलाफ मेरे डर का इस्तेमाल कर रहा था। हर बार जब मैं अपने जीवन में पाप के एक प्रतिमान की पहचान करने के करीब पहुंचती, तो डर अंदर प्रवेश करता था। डर इतना भयानक था कि मैं अपने दिमाग से उस झूठ को भी नहीं सुन पाती थी, जिस पर विश्वास करने का निर्णय मैं लेने वाली थी। जब तक मैं भागने के बजाय शांत नहीं हुई तब तक यह एक स्वचालित प्रतिक्रिया की तरह लगा। माँ मरियम के लिए शिमोन की भविष्यवाणी मुझे याद आ गई: “…. इस प्रकार बहुत से हृदयों के विचार प्रकट होंगे और एक तलवार आपके ह्रदय को आर पार बेधेगी” (लूकस 2:35)। मरियम के माध्यम से, मैंने येशु से मेरे ही हृदय के विचारों को मुझ पर प्रकट करने के लिए कहा।
हवा चलने लगी, और मेरे मन की भावना में, मैंने देखा कि रेत से बनी बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ एक-एक करके बिखरने लगी हैं। प्रत्येक झूठ शून्य से और ईश्वर की सच्चाई के खिलाफ बना था, वे झूठ ईश्वर के सम्मुख खड़ा नहीं हो पा रहे थे। लेकिन दूसरी तरफ मुझे क्या मिला? कोई खुशी नहीं, दिल में गहरा दर्द। मैं ने अपने पाप का सामना किया, छिपा हुआ गहरी जड़ वाला एक पेड़, लेकिन उसके बुरे फल मेरे पूरे जीवन में दिखाई दे रहे थे। जो चीज़ें अलग थलग लग रही थीं, वे सब मिलकर इस एक बड़े झूठ कह रही थी: “परमेश्वर तुम्हारा ख्याल नहीं करता; तुम इस जीवन में अकेली हो।”
इस एक झूठ से जो पाप निकला था, उसे देखकर दुख हुआ, लेकिन डर नहीं लगा। मन फिराव और पश्चाताप का अनुग्रह हर आंसू के साथ उँडेला… ”जहाँ पाप की वृद्धि हुई, वहाँ अनुग्रह की उससे कहीं और वृद्धि हुई” (रोमी 5:20)। पवित्र ग्रन्थ के एक वचन के बाद दूसरे वचन ने मेरे दिमाग को भर दिया, क्योंकि पवित्र आत्मा ने मेरे लिए हस्तक्षेप किया, और सत्य ने मेरे दिल को भर दिया। मैंने महसूस किया, कि मेरा ख्याल किया जा रहा है। मुझे प्रेम का एहसास हुआ। मुझे पता था कि मैं हूँ और कभी अकेली नहीं रहूंगी।
जैसा कि मैंने शुरुआत में कहा, मैं कोई मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं हूं, इसलिए मुझे नहीं पता कि आपको अपने डर का सामना करने में मदद करने के लिए क्या करना चाहिए। लेकिन मुझे पता है कि ईश्वर हम में से हर एक से प्यार करता है। परमेश्वर के प्रेम के साथ इस मुलाकात ने मुझमें कुछ और ही भर दिया। चिंता के सबसे भयानक पहलुओं में से एक तब होता है जब हम चिंता से ही डरते हैं। यह अनुभव इतना परेशान करने वाला और असहज करने वाला होता है कि हम हर संभव कोशिश करते हैं कि हमें फिर कभी इसका सामना करना न पड़े। लेकिन मुझे पता है कि अब डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि यह हमारे सबसे अंधेरे क्षणों में ही हमें सबसे चमकीला प्रकाश देगा। उसने मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है। उसका प्यार हमारे डर से बड़ा है।
किन्तु इन सब बातों पर हम उन्हीं के द्वारा सहज ही विजय प्राप्त करते हैं, जिन्होंने हमें प्यार किया। मुझे दृढ विश्वास है कि न तो मरण या जीवन, न स्वर्गदूत या नरकदूत, न वर्त्तमान या भविष्य, न आकाश या पाताल की कोई शक्ति और न समस्त सृष्टि में कोई या कुछ हमें ईश्वर के उस प्रेम से वंचित कर सकता है, जो हमें हमारे प्रभु येशु मसीह द्वारा मिला है (रोमी 8:37-39)।
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चमत्कार हर दिन होते हैं लेकिन हम शायद ही ध्यान देते हैं …
मैं आपको अनुग्रह की दो कहानियाँ बताना चाहता हूँ, अद्भुत अनुग्रह की घटनाएं, जो वास्तव में मेरी ज़रूरत के समय, मेरे मांगने पर घटित हुई थी। मुझे लगता है कि अनुग्रह के ये अनुभव चमत्कार पूर्ण थे, और इससे पहले कि मैं इन्हें आपके साथ साझा करूं, मैं चमत्कारों पर थोड़ा चिंतन करना चाहता हूं।
लोग आपको बताएंगे कि चमत्कार मांगने पर नहीं आते… और वे सही हैं। मांगने पर चमत्कार नहीं आते। परन्तु येशु हमें माँगने के लिए कहते हैं, और प्रतिज्ञा करते हैं कि यदि हम माँगें, तो हमें मिलेगा (मत्ती 7:7)। मेरा दृढ़ विश्वास है कि जब हम माँगते हैं, तो ईश्वर हमारी सुनता है और जिस बात की हमें वास्तव में ज़रूरत होती है, ईश्वर हमें वही देता है।
हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि चमत्कार एक ऐसा रहस्य है, जो मानवीय समझ से परे है। हमें रहस्यों की कुछ झलक मिल सकती है, हमारे पास अंतर्ज्ञान हो सकता है, लेकिन हम “चमत्कार” के रूप में प्रकट ईश्वर की कृपा के कार्यों को पूरी तरह से समझ नहीं पायेंगे या व्याख्या नहीं कर पायेंगे।
मुझे कुछ नहीं मिला!
कई लोग इस धारणा का उपहास उड़ाते हैं कि “अगर हम मांगेंगे” तो हम “प्राप्त करेंगे।” कुछ लोग कहेंगे कि “मैंने माँगा और मुझे कुछ नहीं मिला”। यह चमत्कार के रहस्य को और अधिक बढाता है। येशु चमत्कार करनेवाला व्यक्ति था, परन्तु उसने इस्राएल के सभी लोगों को चंगा नहीं किया। लूर्द्स में लाखों लोग जाते हैं, लेकिन कुछ ही चमत्कारों का दस्तावेजीकरण किया जाता है। क्या हम कह सकते हैं कि लोग “सही” बात के लिए नहीं मांगते हैं या जिस बात के लिए वे मांग रखते हैं उसकी उन्हें वास्तव में ज़रूरत नहीं है? नहीं! दिल को सिर्फ ईश्वर पढ़ता है; हम न्याय नहीं कर सकते।
लेकिन मेरा अनुभव और कई अन्य लोगों का भी अनुभव इस बात की पुष्टि करता है कि येशु का यह कथन बिलकुल सही है, जब उसने हमें अपने पिता परमेश्वर से उत्तर मांगने और उत्तर की अपेक्षा करने के लिए कहा था। इसलिए, मैं चमत्कारों में विश्वास करता हूं। यह केवल ईश्वर की कृपा की अभिव्यक्ति हैं- कभी नाटकीय अंदाज में और कभी-कभी इस तरह के किसी अंदाज के बिना; कभी-कभी इतना स्पष्ट कि कोई भी उन्हें पहचान सकता है; और कभी-कभी इतना सूक्ष्म और “संयोग” के रूप में वह प्रच्छन्न होता है कि केवल विश्वास की आंखें उन्हें अनुभव कर सकती हैं।
चमत्कारों की अपेक्षा करनी चाहिए… जैसे बच्चे अपेक्षा करते हैं कि भूख लगने पर उनकी माताएँ उन्हें खिलाएँगी। लेकिन क्या खाएं क्या न खाएं इस पर बच्चों का नियत्रण नहीं रहता। माँ तय करती है कि बच्चे क्या खायेंगे; नहीं तो बच्चे हर रात नूडल्स और पिज़्ज़ा खायेंगे। मां लोग अपने बच्चों को खाना खिलाते कभी थकती नहीं हैं। इसी तरह ईश्वर के साथ भी है। वह हमारे अनुरोधों से कभी नहीं थकता और हमारी माताओं की तरह वह हमें वही देता है जिसकी हमें ज़रुरत होती है, न कि वह जंक फूड जिसकी हम चाहत रखते हैं।
चमत्कार ईश्वर का किया गया कोई जादू नहीं है, जिस पर हम डींग मारें, “देखो ईश्वर ने मेरे लिए क्या किया!” परमेश्वर के चमत्कार हमारे दिलों की गहरी लालसाओं का जवाब हैं जो हमें हमेशा उस पर भरोसा करने की याद दिलाते हैं। जब परमेश्वर हमें चमत्कार देता है, तो वह उसका उपयोग उस अनुग्रह की ओर इंगित करने के लिए करता है जो जीवन के सामान्य क्षणों में हमारे चारों ओर विद्यमान है – प्रत्येक दिन का सूर्योदय, क्षमा की याचना करते हुए बढ़ा हुआ कोई हाथ, माफ़ी का आलिंगन, निस्वार्थ सेवा का कोई कार्य। अगर हम जीवन के उन साधारण चमत्कारों को पहचानते हैं तभी हम असाधारण चमत्कारों को देखने और पहचानने की उम्मीद कर सकते हैं।
चमत्कार विश्वास का निर्माण करते हैं, वे इसे प्रतिस्थापित नहीं करते हैं। जब हम लगातार चमत्कार देख रहे हैं, तो हमें ज्यादा विश्वास की जरूरत नहीं है। लेकिन जब ईश्वर मौन रहता है और साफ तौर पर दिख रहे उसके आशीर्वाद से हम वंचित रह जाते हैं, तो हमारे पास अपने विश्वास को और अधिक गहराई से जीने का अवसर होता है। इसलिए विश्वास में परिपक्व होने के समय की अपेक्षा, विश्वास में नए होने पर, हम अधिक चमत्कार देख सकते हैं।
कहानी – एक
सालों पहले, मैं और मेरी पत्नी नैन्सी एक बड़े कैथलिक शहरी विश्वविद्यालय में ग्रीष्मकालीन सेवा संस्थान में पढ़ाते थे। प्रत्येक गर्मी में हम नृत्य नाटिका का मंचन किया करते थे, जिस केलिए हम छह सप्ताह के ग्रीष्मकालीन सेवा के दौरान आलेख,गीत लिखकर और निर्देशन देकर अभ्यास कराते थे। हमारे कलाकार संस्थान के ही छात्र थे, जो पूरे देश और दुनिया भर से आते थे। इस तरह पांच साल गतिशील और रोमांचक कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक संपन्न कराने के बाद हम दोनों संस्थान के छात्रों और शिक्षकों के बीच समान रूप से प्रसिद्ध हुए और उनसे बहुत सम्मान और आदर के पात्र बने थे। हमने दुनिया भर में सेवाकार्य करने वाले पेशेवर कार्यकर्ताओं को प्रभावित करने के इस अद्भुत अवसर को संजोया, क्योंकि उन्होंने हमसे सीखा कि कैसे सेवकाई और अध्यापन के लिए नृत्य और नाटक की कलाओं को एक शक्तिशाली संसाधन के रूप में उपयोग करना है।
लेकिन हमारी छठी गर्मियों से पहले हमें बताया गया था कि हम अपने ग्रीष्मकालीन कला प्रदर्शन को अब और निर्देशित नहीं करेंगे और इसके बजाय हमें एक पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए निमंत्रण दिया गया। हमने स्वीकार किया, और अपनी कक्षा को पढ़ाया, आराधना विधि को कलात्मक रूप से आयोजित करने में हमने योगदान दिया, और जितना हो सके हर जगह अपनी सेवा द्वारा उपस्थित रहने की कोशिश की, लेकिन यह पहले के पांच वर्षों जैसा नहीं था। पिछले पांच गर्मियों में से प्रत्येक में किए गए सारे काम, आपसी प्रेमपूर्ण संवाद, रचनात्मकता और अद्वितीय योगदान से हम चूक गए।
एक दिन पूरे परिसर में टहलते हुए, अपनी घटती भूमिका के बारे में सोचकर मैंने पीड़ा का अनुभव किया। मैंने उस विश्वविद्यालय के एक भवन में दक्षिण छोर से प्रवेश किया और प्रभु से विलाप करते हुए कहा कि मुझे कुछ सबूत चाहिए कि हमारी उपस्थिति मायने रखती है या नहीं, कि हमने इस संस्थान पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है या नहीं। मैं भवन के प्रांगण से गुजरा और जब तक मैं भवन के उत्तरी दिशा से बाहर निकला तब तक मेरी प्रार्थना का उत्तर मुझे दिया गया। सीढ़ियों के एक लम्बी कतार के शीर्ष पर खड़े होकर मैंने देखा कि एक कार अचानक नीचे सड़क पर रुक गई। कार का इंजन चालू था, लेकिन एक महिला ने कार से बाहर निकलकर मेरा नाम पुकारा।
“ओह, ग्राज़”, वह बोली, “मैं आपको देखकर बहुत खुश हूं। मैं आपको बताना चाहती थी कि मुझे कितनी खुशी है कि आप यहां संस्थान में हैं। आप और नैन्सी इतना प्रभाव डालते हैं कि आपके बिना यहाँ का ग्रीष्मकालीन कार्यक्रम अधूरा है। आपने जो कुछ किया उन सबके लिए धन्यवाद।” इतना कहकर वह वापस अपनी कार में बैठी और चल दी। मैंने सोचा,”वाह, प्रभु, इतनी तेजी से तू ने जवाब दिया!”
कहानी – दो
उस घटना के बाद एक दर्जन साल आगे की ओर बढ़ते हैं। मैं शिकागो महाधर्मप्रांत के एक कार्यालय का निदेशक हूँ। मैं एक कठिन सप्ताह से गुज़र रहा हूं, निराश महसूस कर रहा हूं, मेरे मन में सवाल उठ रहा है कि क्या मैं वही कर रहा हूं जो ईश्वर मुझसे चाहता है? मैं अपने कार्यालय भवन की रसोई में हूं, अपने दोपहर के भोजन के बाद टिफ़िन बॉक्स धो रहा हूं और मैं प्रार्थना करता हूं, “हे ईश्वर, तू मुझे छोटे छोटे संकेत दिया करता था कि तू मेरी देखभाल कर रहा था, कि मैं तेरी इच्छा के अनुसार कार्य कर रहा था … अब ऐसे ही एक संकेत की मुझे ज़रुरत है।”
अगली सुबह। मैं अभी भी निराश हूँ, मैं काम छोड़ने का फैसला करता हूं। गर्मी का मौसम है, बच्चे स्कूल से बाहर हैं, इसलिए मैं घोषणा करता हूँ: “सुनो, तुम्हारा पापा आज काम पर न जाकर, मस्ती करेगा। ‘शिकागो कब खेल’ में कौन जाना चाहता है?” मुझे यह भी नहीं पता था कि ‘शिकागो कब’ शहर में हैं या नहीं, लेकिन जांच करने के बाद पता चला कि खेल उपलब्ध है, और हम सभी चले जाते हैं।
हम बच्चों को टिकट के लिए पहले प्रवेश द्वार के बगल में लाइन में खड़े होने केलिए छोड़ देते हैं और गाडी पार्क करने के लिए आगे बढ़ जाते हैं। वृग्ली मैदान में पार्किंग हमेशा बड़ी चुनौती का काम होता है। या तो आप बहुत दूर पार्क करते हैं, लेकिन आपको बहुत दूर पैदल चलना पडेगा, नहीं तो आप पार्किंग में मोटी रकम देकर भुगतान करते हैं। कोई भी विकल्प हमारे लिए व्यावहारिक नहीं है – लंबी देर पैदल चलने के लिए हमारे पास समय नहीं है और पार्किंग शुल्क की मोटी रकम का भुगतान करने से मेरा बजट चरमरा जाएगा। मैं सड़क किनारे, भुगतान किये बिना, पार्किंग की तलाश करने का विकल्प ढूँढता हूं, जिसका सौभाग्य मेरे लिए करीब करीब असंभव है।
प्रवेश द्वार के सीधे सामने मीटर के आधार पर पार्किंग करने की एक जगह है। दो डॉलर का भुगतान करने पर मुझे अधिकतम दो घंटे पार्किंग का अवसर मिलेगा, जिसका मतलब है कि मुझे खेल को बीच में छोड़ना होगा, मीटर के अनुसार पैसा का भुगतान करना होगा, और खेल में वापस जाना होगा (मुझे यह भी नहीं पता था कि खेल के बीच में छोड़ने और लौटने की अनुमति नहीं रहती है)। जैसे ही मैं अपनी कार से बाहर निकलता हूं, मैं देखता हूं कि सड़क की विपरीत दिशा में एक महिला पार्किंग स्थल से बाहर निकलने के लिए तैयार हो रही है। उस तरफ कोई मीटर नहीं है! मैं उसके पास दौड़ता हूं, उस महिला को अपनी स्थिति समझाता हूं और पूछता हूं कि क्या वह मेरे बाहर निकलने तक इंतजार करेंगी, ताकि मैं उसकी जगह ले सकूं। वह खुशी से मुझे अनुमति देती है।
वाह, मुझे वृग्ली फील्ड के प्रवेश द्वार के सीधे सामने, सिर्फ एक मिनट की दूरी पर मुफ्त में स्ट्रीट पार्किंग का मौक़ा मिल गया है। अविश्वसनीय! नैन्सी और मैं बच्चों के पास जाते हैं जहाँ और भी बड़ा आश्चर्य हमारा इंतज़ार कर रहा है। हमारी बेटी उत्साह से पुकारती है, “पापा,” वह कहती है, “हमें मुफ्त में टिकट मिल गया।”
“क्या?” अविश्वास और हैरानी के साथ मैं पूछता हूं।
वह हमें समझाती है: “एक आदमी ने मुझसे और क्रिस्टोफर से पूछा कि क्या तुम लोग खेल में जा रहे हो। मैंने कहा, हाँ; और उस आदमी ने कहा कि वे यहाँ एक बड़े दल के साथ आये थे और उनके दल के कुछ लोग नहीं पहुँच पाए, इसलिए उन्होंने मुझे दो टिकट दिए। फिर मैंने कहा, ‘मेरी माँ और पिताजी को टिकट कैसे मिलेंगे?’
‘ओह, तुम्हारे माता-पिता भी यहाँ हैं? ये लो, और दो टिकट, पकड़ो।”
वाह, अविश्वसनीय! खेल के लिए मुफ्त पार्किंग और मुफ्त टिकट! ईश्वर ने मुझे संकेत दिया जिसे पिछले दिन मैंने माँगा था।
तथ्यपरक विशलेषण करते हुए, आप कहेंगे कि मुझे केवल एक बार थोड़ा सा पुष्टिकरण मिला था और अगली बार मुझे कुछ मुफ्त उपहार मिला होगा। हालाँकि, सच्चाई यह है कि ईश्वर ने कृपापूर्वक मुझे वही प्रदान किया जिसकी मुझे आवश्यकता थी, और मैं ने इसकी मांग की थी, और वही चमत्कार है।
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“यह दुनिया आपका जहाज है, आपका घर नहीं”। यह लिस्यू की संत तेरेस का एक प्रसिद्ध उद्धरण है। वास्तव में, हम सभी अपने अंतिम गंतव्य की यात्रा पर हैं…
जब मैं बच्ची थी, मेरी माँ ने एक बार मुझे आश्वासन दिया था कि ईश्वर किसी आत्मा को अपने घर तभी ले जाता है, जब वह उस यात्रा के लिए बिलकुल तैयार हो जाती है। यह मेरे लिए एक ऐसा सुकून देने वाला विचार था कि मैंने इसे अपने दिल में बैठा लिया, और जब कभी मेरे अपने प्रियजन ने इस दुनिया से विदा ले लिया, तब इस आश्वासन को मैं ने कसकर पकड़ लिया, ताकि मैं कुछ सांत्वना पा सकूं। जब मेरा प्रिय पति अपने जीवन के अंतिम दिनों में था, तब इस उत्साहजनक कथन का मैंने सबसे अद्भुत नमूना देखा।
अंत का प्रारंभ
क्रिस तीन साल से अधिक समय से मस्तिष्क के कैंसर से जूझ रहा था – यह एक भयानक बीमारी थी और उसे केवल एक वर्ष जीने की उम्मीद थी। उपचार के दौरान वह लगभग असहनीय पीड़ा का अनुभव कर रहा था। यह तीन साल की एक आनंदमय और दर्दनाक यात्रा थी – आशान्वित ऊंचाइयों और उतनी ही तादाद में विनाशकारी उतार चढ़ावों से भरी हुई यात्रा। जब क्रिस का कैंसर फैलने लगा, उसे काबू में लाने की कोई उम्मीद नहीं थी, तथा सभी विकल्प समाप्त हो गए, तब क्रिस ने इलाज बंद करने और अपने बचे हुए समय का आनंद लेने का निर्णय लिया, जो हम लोगों के लिए दिल दहला देने वाला निर्णय था। उसने सब कुछ ईश्वर के हाथों में समर्पित कर दिया। क्रिस के इस निर्णय ने उसके अंत की शुरुआत को चिह्नित किया। उसे खोने के बारे में सोचकर मैंने अपने दिल में असह्य दर्द महसूस किया। इतने साहस पूर्ण संघर्ष के बाद हम उम्मीद कर रहे थे कि वह लड़ना जारी रखेगा, लेकिन उसका यह नया फैसला मेरे बर्दाश्त के बाहर था। मैंने इस संकल्प के साथ क्रिस को अस्पताल में रखा कि हमारे बच्चे और मैं उसकी इस इच्छा का सम्मान करेंगे और घर पर उसकी देखभाल अंत तक करेंगे।
क्रिस के अंतिम दिनों के बारे में सोचकर मैं भयभीत थी। इस परिस्थिति का मुझे कोई प्रशिक्षण या अनुभव नहीं था, इसलिए मैंने ईश्वर पर अपना पूरा विश्वास रखा, और मैं ने उसकी दया और मार्गदर्शन की याचना की। इस हताशा भरी याचना के कारण, हमारे परिवार ने क्रिस के जीवन के अंतिम सप्ताहों में स्वर्गीय अनुग्रह और आशीषों की वर्षा का अनुभव किया।
सिर्फ एक फुसफुसाहट
इलाज बंद करने के बाद, क्रिस के अनमोल मस्तिष्क में तेजी से फैलने वाली बीमारी के प्रभाव दिखाई पड़ने लगे। पहले मामूली स्मृति हानि होने लगी, जो बाद में बड़ी स्मृति हानि में बदल गई, और फिर कुछ हफ्तों के भीतर ही उसे दौरे पड़ने शुरू हो गए। एक शाम, बिना किसी चेतावनी के, क्रिस एक गंभीर दौरे का शिकार हो गया। एक बार ऐसे एक दौरे के बाद उसे सोफे पर बैठाया गया, मैं और मेरे बच्चे सोफे के चारों ओर इकट्ठे हो गए, क्योंकि हमें लगा कि कुछ गड़बड़ है। मैंने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया और जैसे ही मैंने ऐसा किया, मुझे लगा कि उसका पूरा शरीर अकड़ने लगा है। उसकी भूरी आँखें अन्दर की ओर वापस लुढ़क गईं और वह अनियंत्रित रूप से काँपने लगा – फिर उसने दर्द की एक ज़ोरदार चीख निकाली।
इस दृश्य को देखकर बड़े अविश्वास और भयावह स्थिति में, मैंने अपने बच्चों को शांत करने और अपने पति के लिए शक्ति और ईश्वरीय सहायता प्राप्त करने का प्रयास किया। मुझे बस एक ही तरीका मालूम था – प्रार्थना। जैसे ही मैंने क्रिस को पकड़ रखा, मैं अपने बच्चों के साथ प्रभु की प्रार्थना बोलने लगी – उसके बाद हम लोगों ने माँ मरियम से प्रार्थना की। क्रिस माँ मरियम के प्रति बहुत समर्पित था। कुछ क्षण बाद क्रिस का दौरा कम होने लगा। वह वहीं पड़ा रहा, गतिहीन, अपने आस-पास के भयभीत और आंसुओं से सने चेहरों को देखने में असमर्थ। पूरी तरह से होश में आने के बाद जब उसने अपनी आँखें खोलीं, तो उसने अपने आस-पास को बड़े आश्चर्य की नज़र से देखना शुरू किया। उसकी नज़र मेरी आँखों से टकरायी और मैंने धीरे से उसे आश्वासन दिया कि वह ठीक है – और तुरंत मैंने यह पता लगाने की कोशिश की कि वह उस क्षण हमसे किस तरह की मदद चाहता है।
बातचीत करने में वह सक्षम नहीं था, और एक फुसफुसाहट के अलावा कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। क्रिस ने इन शब्दों में फुफुसाया, “मैं …ईश्वर को… चाहता हूं ।” मुझे पता था, यही वह क्षण था। मैं जानती थी कि परमेश्वर उसे तैयार कर रहा है, और मैं जानती थी कि विश्वास से भरा मेरा पति घर जाने के लिए और अपने अनन्त जीवन को प्राप्त करने के लिए तरस रहा था। हालाँकि इस अहसास से कि उसका अंत निकट आ रहा था, वह मेरे लिए एक तबाही जैसी थी, फिर भी मेरे मन में इस क्षण को स्वीकार करने, और इस अनमोल कृपा के लिए, अत्यधिक कृतज्ञता का भाव महसूस हुआ। इस दुनिया में अपने परिवार को पीछे छोड़ने के दर्दनाक विचार से क्रिस का मन अब बोझिल नहीं था। वह उस भारी जंझीर से मुक्त हो गया था, और उसे शांति का एक अथाह उपहार दिया गया था, और साथ ही साथ अगले जीवन में क्या महिमा और भव्यता है, इसकी गहरी समझ दी गई थी। मेरा अनमोल, वफादार पति तैयार था। अगले सप्ताह के अंत में, शांति से बिस्तर पर आराम करते हुए और परिवार से घिरे हुए, हमारे द्वारा मंद स्वर में माला विनती की प्रार्थना के दौरान, हमारे प्यारे क्रिस ने हमसे विदा लिया। वह प्रभु का दिन था, और मरियम के पवित्र नाम का पर्व था। और वह सुंदर आत्मा उस यात्रा के लिए बिलकुल तैयार थी।
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जब आप को नींद नहीं आती और आप बिस्तर पर करवटें लेते रहते हैं, तब क्या आपने कभी महसूस किया है कि ईश्वर आप से कह रहा है, “हमें आपस में बात करने की ज़रूरत है और क्या अब तुम्हारे पास इस केलिए समय है”?
मैं एक बार ग्रामीण इलाके के दौरे पर था, तब एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में, कक्षा पांच की एक बालिका ने मुझसे कहा कि वर्त्तमान महामारी के संबंध में उसे एक वयस्क व्यक्ति ने बताया था कि “ईश्वर छुट्टी पर चला गया है”। हालाँकि इस दावे में कुछ उम्मीद की बात है – छुट्टियां कभी समाप्त भी हो जाती हैं और छुट्टी पर गया व्यक्ति वापस आ जाता है और अपने व्यवसाय को संभाल लेता है – लेकिन मैं निश्चित रूप से इसे इस दृष्टिकोण से नहीं देखूँगा। इस तरह का दावा करना काफी खतरनाक है, क्योंकि ईश्वर हमें एक पल के लिए भी अकेले नहीं छोड़ता। वास्तव में, हमारे अस्तित्व के हर पल में हमारे ऊपर ईश्वर का अविभाजित ख्याल है, और सबसे बढ़कर बच्चों को इसे समझने की जरूरत है। एक सीमित मनुष्य के लिए एक ही समय में एक से अधिक व्यक्तियों पर अविभाजित ध्यान देना संभव नहीं है, लेकिन ईश्वर सभी को अपना अविभाजित ध्यान एक साथ दे सकता है, क्योंकि ईश्वर असीमित है।
एक शुद्ध उपहार
इसका क्या अर्थ है कि हमारे अस्तित्व के प्रत्येक क्षण में हमारे पास परमेश्वर का अविभाजित ध्यान है, इस पर विचार करना आवश्यक है; इसका मतलब है कि वह हम में से हर एक से प्यार करता है, मानो कि इस दुनिया में आप ही एक मात्र व्यक्ति हैं जिसे वह प्यार करता है। ऐसा लगता है कि ब्रह्मांड में सब कुछ अंततः आपके लिए ही बनाया गया था, यह सब आपके पोषण केलिए और आपकी सेवा करने के लिए मौजूद है – ग्रह का सम्पूर्ण वातावरण, गुरुत्वाकर्षण का नियम और भौतिकी के अन्य सभी नियम, प्रकृति का ऋतु चक्र और क्रम, इत्यादि। दरअसल, यदि आप या मैं वास्तव में जानते हैं कि परमेश्वर हमसे कितना प्यार करता है, तो हम खुशी से झूमते। प्यार किये जाने के बारे में ठीक उसी प्रकार सीख लेना ही इस जीवन का उद्देश्य है।
इसका मतलब है कि अपने आप को उस तरह से प्यार किये जाने की अनुमति देना; चूंकि हमारे पास अपने लिए न्याय की एक बहुत ही अडिग और संकीर्ण भावना है, इसलिए इस प्यार को पाने के लिए हम अपने को अनुमति नहीं देते हैं, और इस तरह हम खुद को उस प्यार के योग्य नहीं समझते हैं, इसलिए हम इसके लिए अपना दिल खोलकर रखने का निर्णय नहीं ले पाते हैं। परन्तु हमारे लिए उसका प्रेम न्याय या अधिकार का विषय नहीं है; बेशक, कोई भी इस तरह प्यार पाने का हकदार नहीं है; क्योंकि यदि कोई अस्तित्व में नहीं है तो उसे अस्तित्व में लाने का अधिकार अर्जित नहीं किया जा सकता है। और इसलिए यद्यपि मेरे लिए ईश्वर का प्रेम न्याय और अधिकार का विषय नहीं है, यह शुद्ध उपहार की बात है। आखिरकार, मसीह के व्यक्तित्व में परमेश्वर का न्याय पूर्ण दया के रूप में प्रकट हुआ है।
उस ईश्वरीय प्रेम और अपने बारे में हमारी समझ के बीच एक रिश्ता है। ईश्वर के द्वारा किसी व्यक्ति को कितना प्यार किया जाता है, उस हिसाब से वास्तव में वह व्यक्ति अपने आप को जानता है, और इसलिए जितना अधिक हम खुद को “उस तरह से प्यार किये जाने” की अनुमति देते हैं (मानो कि हम में से यह प्यार पाने वाला सिर्फ “मैं” अकेला ही हूँ), हमारी खुद की समझ उतनी ही गहरी होगी; क्योंकि जैसा ईश्वर हमें देखता है, वैसे ही हम अपने आप को देखने लगेंगे। यदि हम स्वयं को उसकी आँखों से नहीं देखते हैं, तो हम स्वयं को वैसा ही देखने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जैसा दूसरे लोग हमें देखते हैं।
हालाँकि, इसके साथ समस्या यह है कि दूसरे शायद ही कभी हमें वैसे ही देखते हैं जैसे हम वास्तव में हैं – खासकर, अगर हमारे जीवन में वे हमें ईश्वर की नज़र से नहीं देखते हैं – और अगर वे हमें वैसे नहीं देखते हैं जैसे हम वास्तव में हैं, तो जिस प्रकार हमें प्यार किया जाना चाहिए, उस प्रकार वे हमसे प्यार नहीं कर पाते हैं। जब दुनिया आपको देखती है, तो उसे आप में एक महान और अद्भुत रहस्य नहीं दिखाई देता; बल्कि, उसे एक वस्तु दिखाई देती है, जिसका मूल्य उसकी उपयोगिता के अनुसार लगाया जाता है। लेकिन वस्तुओं के बारे में रहस्यमय कुछ भी नहीं है। दूसरी ओर, जब ईश्वर आपको देखता है, तो वह एक वास्तविक रहस्य देखता है, क्योंकि प्रत्येक मानव ईश्वर की प्रतिछाया और ईश्वर के प्रतिरूप में बनाया गया है और ईश्वर अवर्णनीय भेद है। इसलिए, प्रत्येक मानव व्यक्ति एक महान और अद्भुत भेद है, जिसका रहस्य ईश्वर के महान और अद्भुद भेद की गहराइयों में छिपा हुआ है।
आतंरिक ब्रह्मांड
हमारे दो अंदरूनी भाग हैं: 1) एक भौतिक आंतरिक भाग, और 2) एक आध्यात्मिक आंतरिक भाग। कोई सर्जन भौतिक आंतरिक भाग तक पहुंच सकता है, लेकिन वह आध्यात्मिक आंतरिक भाग तक पहुंच नहीं सकता है। केवल आप और ईश्वर ही आपके आध्यात्मिक आंतरिक भाग तक पहुँच सकते हैं। वास्तव में, ईश्वर हमेशा उस आंतरिक हिस्से के सबसे गहरे क्षेत्र में रहता है। ईश्वर आपको अच्छी तरह जानता है; इस अवधारणा को प्राप्त करने का तरीका है उस “ब्रह्मांड” में प्रवेश करना। अपने को ईश्वर की उपस्थिति में स्थापित करने का यही अर्थ है। उस स्थान के भीतर किसी शब्द की ज़रुरत नहीं है; केवल बार-बार यह दोहराना पर्याप्त है: “प्रभु येशु ख्रीस्त, ईश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कर”।
जितना अधिक समय हम उस स्थान के भीतर, बिना विचलित हुए बिताएंगे, उतना ही हमें यह एहसास होगा कि हमारा ख्याल किया जा रहा है, कि हम पर किसी का ध्यान है। यह एक बहुत ही सकारात्मक और ज्ञानवर्धक अनुभव है; क्योंकि हम स्वयं को ध्यान देने योग्य या ख्याल किये जाने लायक व्यक्ति के रूप में देखने लगते हैं। हम स्वयं को व्यक्तित्व के रूप में देखना शुरू करते हैं, न कि केवल निरे भौतिक वस्तु के रूप में। लेकिन यह शुरू होता है, “आतंरिक ब्रह्मांड” में प्रवेश करने के साथ, और यह अनुभव हमें इस दुनिया का सबसे अच्छा और अनोखा एहसास दिलाता है, क्योंकि हम में से अधिकांश लोग अपने जीवन के ज्यादतर समय वस्तुओं में सिमट गए हैं, लेकिन हम जानते हैं कि हम वस्तु नहीं, बल्कि मूल्यवान व्यक्तित्व हैं – आंतरिक मूल्य के व्यक्तित्व। यह “वस्तुकरण” कई मायनों में व्यक्तिगत क्रोध और अलगाव की भावनाओं का बड़ा कारण बनता है, लेकिन जैसे-जैसे हम उस अन्तरंग हिस्से में अधिक समय बिताते हैं जहां ईश्वर हमारी प्रतीक्षा करता है, वैसे वैसे हम अपने अन्दर कम अकेलापन महसूस करना शुरू करेंगे और हमारा जीवन और अधिक शांतिपूर्ण बन जाता है।
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पवित्र मिस्सा शुरू होने में सिर्फ एक मिनट बाकी है, और मुझे लगता है कि हर बार की तरह, इस बार भी मिस्सा हमारे परिवार के लिए बड़े संघर्ष का कार्य होने जा रहा है। जब तक पुरोहित सुसमाचार पढ़कर समाप्त कर लेता है, तब तक मैं थक हारकर चूर चूर हो जाती हूँ। फिर जैसे ही धर्मसार की प्रार्थना होती है – मैं यह चिल्लाने की इच्छा को दबा रही हूं, कि “हम बाथरूम की ओर कोई और यात्रा नहीं करनेवाले हैं!” – तब तक मेरा तीन साल का बच्चा जो हमेशा “काम में व्यस्त” रहता है, घुटने टेकने के आसन पर अपना जीभ लगाकर चाटता है, जबकि मेरा सात साल का बच्चा मुझसे कहता है कि वह फिर से प्यासा है और पूछता है कि परम प्रसाद के “अभिन्न तत्व” का क्या अर्थ है। मिस्सा पूजा में जाना हमेशा बड़ा संघर्ष का काम रहा है। मिस्सा में बेहतर ध्यान न देने के लिए मैं निराशा और शर्मिंदगी महसूस करती हूं। अपने ध्यान और एकाग्रता को बनाए रखने केलिए इतनी सारी मांगों को पूरा करती हुई मैं ईश्वर की आराधना कैसे कर पाऊँगी? मेरा उत्तर है: सादगी भरा ह्रदय।
मुझे लगता था कि “मिस्सा में सक्रिय भागीदारी” वाक्यांश का अर्थ यह है कि हर एक शब्द जो मैं सुनती हूँ, उस के गहरे अर्थ को अपने अन्दर समाहित करना है। लेकिन जिंदगी के इस दौर में एकाग्र चित्त रहना एक विलासिता है। जब मैं अपने बच्चों की परवरिश करती हूं, तो मैं यह समझने लगती हूं कि ईश्वर अपने निमंत्रण या अपनी उपस्थिति से सिर्फ इसलिए मुझे वंचित नहीं रखता है क्योंकि मेरा जीवन अस्त व्यस्त रहता है। वह मुझसे प्यार करता है और मुझे वैसे ही स्वीकार करता है जैसी मैं हूं – गड़बड़, अस्त-व्यस्त, अव्यवस्थित और बाकी सब कुछ – यहां तक कि एक अस्त-व्यस्त मिस्सा बलिदान की अव्यवस्था या अराजकता के अनुभव के मध्य में भी। यदि हम इसे याद रखें, तो आप और मैं यूखरिस्त रूपी परम पवित्र संस्कार में परमेश्वर के प्रेम के सर्वोच्च उपहार हेतु अपने हृदयों को तैयार करने के लिए सरल कदम उठा सकते हैं।
एक लघु वाक्यांश ढूंढ लें
प्रत्येक मिस्सा बलिदान के दौरान मैं जिन शब्दों को सुनती हूँ, उनके बारे में सोचकर मैं अक्सर अभिभूत हो जाती हूं। मेरा ध्यान भटक जाता है, और मैं बोले गए कई भागों पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए संघर्ष करती हूं। यदि आप इस चुनौती पर भी जीत पा लेते हैं, तो जान लें कि अभी भी आप और मैं मिस्सा को भक्ति के साथ सुनने और उसमें सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए बुलाये गए हैं। कैसे? आइए इसे सरल बना लेते हैं। आप किसी एक छोटा वाक्यांश को सुनें, जो आपका ध्यान आकर्षित करता है। उस पर चिंतन करें। इसे दोहरावें। इसे येशु के पास लायें और उनसे कहें कि वे आपको दिखाएं कि यह वाक्यांश क्यों महत्वपूर्ण है। इस वाक्यांश को पूरे मिस्सा बलिदान में अपने दिल में रखें और जिस समय आप अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं, उस समय इसे आपके मनन चिंतन का एक लंगर बनने दें। आपका खुला हृदय येशु मसीह के अनुग्रह केलिए एक परिदृश्य हैं।
प्रेमपूर्ण दृष्टि
प्यार को हमेशा शब्दों की जरूरत नहीं होती। कभी-कभी एक साधारण नज़र प्यार के सागर को प्रकट कर सकती है। यदि शब्द आप पर हावी हो जाते हैं, तो अपने हृदय की आवाज़ सुन लें और अपनी आँखों को क्रूस पर या क्रूस यात्रा के किसी एक स्थान पर केंद्रित करके अपने प्रेम को प्रभु की ओर मोड़ दें। जो चीज़ें आप को दिखाई देती हैं उन पर मनन करें: येशु का चेहरा, उनका कांटों का ताज, उनका रक्त रंजित ह्रदय ….। आपके द्वारा चुना गया प्रत्येक विवरण आपके हृदय को येशु के करीब खींच लाता है और आपको परम प्रसाद में हमारे प्रभु के प्रेम के अपार उपहार को प्राप्त करने के लिए तैयार करता है।
अपना दिल लायें
यदि सब कुछ विफल हो जाता है, तो अपने आप को येशु केलिए प्रेम की भेंट के रूप में उस के पास ले आवें। प्रभु आपके इरादों और आपकी सच्ची इच्छाओं को जानता है। यदि आप अपने नियंत्रण से बाहर की चीज़ों से व्याकुल और भूले भटके हुए महसूस करते हैं, तब भी आप प्रभु की आराधना करने, उनका स्वागत करने और उनसे प्रेम करने के लिए हृदय से उनके सामने आ सकते हैं। अपने दिल के स्नेह को जगायें और दोहरायें “हे प्रभु, मैं यहाँ हाजिर हूँ। मैं आपको स्वीकार करता हूँ। मेरे दिल को बदल दे प्रभु!”
जब भी हम अपने प्रभु से मिस्सा बलिदान में मुलाकात करते हैं, तब प्रभु हर बार आनन्दित होते हैं, चाहे हमारी परिस्थितियाँ जो भी हो, उन बातों की वे परवाह नहीं करते। येशु मानव थे — वे थक गए थे, उनके कार्य में बाधाएं आ गयीं थीं। इसलिए हमारे प्रभु जीवन की गड़बड़ियों और परेशानियों को समझते हैं! और इन सब गड़बड़ियों के बीच में भी, वे अपने आप को परम प्रसाद के रूप में आपको देना चाहते हैं। तो अगली बार जब आप मिस्सा बलिदान में जाएँ, तब येशु को अपना इच्छुक हृदय समर्पित करें, और जैसे आप हैं, वैसे ही उसके सामने आने के लिए अपनी “हाँ” उसे दें। गिरजा घर में बच्चों के साथ आपकी प्रार्थना के दौरान हो रही पारिवारिक अराजकता से बढ़कर, मसीह का प्रेम सबसे महत्त्वपूर्ण सच्चाई है।
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हन्ना एलिस साइमन जन्म से अंधी थी, फिर भी हममें से अधिकांश जो देखते हैं, उससे आगे वह देखती है! पेश है उनके जीवन की एक कहानी जो निश्चित रूप से आपको छू जाएगी
एक बहुत ही भावुक व्यक्ति होने के नाते, दो साल पहले, मैं छोटी छोटी चीजों पर आंसू बहाती थी। यह स्थिति तब बदल गयी जब मुझे बच्चों के एक समूह से बात करने के लिए एक गिरजाघर में आमंत्रित की गयी थी। उस समय मुझे उन बच्चों से मिलने का अवसर प्राप्त करके बड़ी खुश थी, इसलिए मैं बड़े आत्म विश्वास के साथ बाहर निकली। मुझे नहीं पता था कि मेरे साथ क्या होनेवाला है।
वहां पहुँचने पर, वे मुझे गिरजाघर के अन्दर ले गए और मैं बच्चों के दोपहर के भोजन के बाद लौट आने का इंतजार करने लगी। धीरे-धीरे, एक-एक करके, वे अंदर आए और मेरी चारों ओर भीड़ लगा दी। उन्होंने बात की कि मैं कितनी अजीब दीखती थी और उनमें से कुछ ने मुझे भूतनी कहा। वे मुझे अपने हाथों से चीजें बनाकर दिखा रहे थे, लेकिन मुझे नहीं पता था कि क्या हो रहा है। जैसे ही उनके क्रूर शब्द मेरे अन्दर दुबकी लगा रहे थे, मुझे लगा कि मैं टूटने और रोने वाली हूँ। जैसे ही मेरी पलकों में आंसू छलक पड़े, मैं चुपचाप प्रार्थना करने लगी, लेकिन मैं बस उस जगह से भाग जाना चाहती थी। मैं अभी भी अपने दिल में ईश्वर से प्रार्थना करती रही, “हे ईश्वर… कृपया… मैं इनके सामने रोना नहीं चाहती… कृपया मजबूत बनने में मेरी मदद कर …”
मेरी माँ यह सब देख रही थी। माँ ने मुझसे कहा, “हन्ना… यह रोने का समय नहीं है और हालांकि यह गुस्सा करने का भी समय नहीं है, फिर भी तुम उनको बता दो कि उन्होंने जो किया वह गलत है। उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए। तुम्हें यह बात उन सबको बता देना चाहिए।”
घबराहट के साथ, मैंने उन बच्चों का सामना किया जिन्होंने मेरा अपमान किया था और अचानक ईश्वर ने मेरे होठों पर सही शब्द डाल दिए। मैंने उनसे कहा, “आप मुझे अजीब कह सकते हैं लेकिन मैं अजीब नहीं हूँ। मै खास व्यक्ति हूँ। मैं ईश्वर के लिए खास हूं। मैं उसकी प्रिय हूँ। अगली बार जब आप लोग किसी ऐसे व्यक्ति को देखें जो आप की नज़र में अलग या अजीब लगता है, तो उसके पास जाएं और उससे कहें कि ‘तुम खास हो और मैं तुम्हें उसके लिए प्यार करता हूं।’
उस दिन ईश्वर ने मुझ पर और बच्चों की उस पूरी भीड़ पर एक चमत्कार किया। मेरे बोलने के बाद, वे सभी मेरे पास आए और जिन बच्चों ने मेरा अपमान किया था, उन्होंने माफी मांगी, लेकिन यह सबसे ख़ास बात यह नहीं है। भीड़ के बीच में मुझसे छोटी एक और लड़की थी, जो दिव्यांग भी थी। वह मेरे पास आई और बोली, “भले ही मुझे स्कूल में बहुत अपमान का सामना करना पड़ा हो, लेकिन आज आपने जो कहा वह मुझे मजबूत करता है। मुझे एहसास हुआ कि मैं भी खास हूं।” तब मुझे समझ में आया कि ईश्वर ने मुझे उन सभी अपमानों का सामना करने की अनुमति क्यों दी। मेरी नियति भीड़ में उस एक शख्स को ताकत देना था, जिसे इसकी जरूरत थी।
उत्पत्ति ग्रन्थ, अध्याय 12, श्लोक 2 में यह कहा गया है, “मैं तुम्हारे द्वारा एक महान राष्ट्र उत्पन्न करूंगा, तुम्हें आशीर्वाद दूंगा और तुम्हारा नाम इतना महान बनाऊंगा कि वह कल्याण का स्रोत बन जाएगा।” इसलिए, अपने दिल के दर्द-पीड़ा और अपने डर को ईश्वर पर डाल दो। भले ही पूरी दुनिया आपके खिलाफ हो और एक भी व्यक्ति आपसे प्यार न करे… भले ही आपका दिन रात के समान अंधेरा हो, जान लें कि एक ईश्वर है जो आपकी परवाह करता है… जो दुनिया की सभी वस्तुओं से ज्यादा, सभी व्यक्तियों से अधिक आप से प्यार करता है। जान लीजिये कि परमेश्वर आप को चाहता है, आप उसके लिए अनमोल हैं। आप एक आशीर्वाद हैं!
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क्या ईश्वर पर मेरा भरोसा मेरे बैंक खाते, संपत्ति और संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर करता है? या क्या मैं सच में परमेश्वर पर भरोसा रखती हूँ?
तीसरी दुनिया के देश में सेवा दे रहा एक मिशनरी परिवार अपने मिशन केंद्र से लौटने के बाद आराम करने केलिए हमारे साथ रहने के लिए आया था। दोपहर के भोजन के समय, एक दिन उन्होंने प्रभु द्वारा प्रदान किये गए कृपाओं के बारे में एक अद्भुत गवाही साझा की। वे बहुत गरीब इलाके में रह रहे थे और लोग अक्सर उनके पास मदद मांगने आते थे। उस मिशनरी परिवार को उनके अपने जीवन यापन के खर्च के लिए एक मासिक वजीफा मिलता था, और आमतौर पर प्रत्येक महीने के अंत तक यह वजीफा ख़तम हो जाता था। उनके घर में रेफ्रिजरेटर या कोई अलमारी भी नहीं थी, इसलिए प्रति दिन के लिए उन्हें जो भी खाना चाहिए था, वे उसी दिन बाजार से खरीद लेते थे और वही खाते थे।
एक महीने जब वे बजट देख रहे थे, तो उन्होंने देखा कि उनके पास कुछ भी नहीं बचा है – अगले वजीफा आने तक कुछ साडा भोजन करने के लिए भी शायद ही पर्याप्त था। और फिर उन्होंने अपने दरवाजे पर दस्तक सुनी। दरवाजे पर दस्तक का आमतौर पर मतलब होता था कि कोई जरूरतमंद कुछ मांगने आ रहा है। माता-पिता ने बच्चों से कहा, “दरवाजा मत खोलो। हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है।” माँ और पिताजी जानते थे कि उनके पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कुछ भी पर्याप्त नहीं था। लेकिन बच्चों ने मातापिता के व्यवहार से आशरी चकित होकर अपने माता-पिता से कहा, “आपका विश्वास कहाँ है?” बच्चों में से एक ने कहा, “यदि आप खुद पर भरोसा करते हैं, तो आप ईश्वर को चमत्कार करने के लिए कोई जगह नहीं छोड़ रहे हैं।”
अपने बच्चों की प्रतिक्रिया से परेशान माता-पिता ने दरवाजा खोला। दरअसल, कोई मदद मांगने के लिए ही आया था, और बच्चों ने अपने पास जो कुछ था वह सब उस परिवार के लिए दिया जो ज्यादा जरूरतमंद था। पिटा जी ने दरवाजा बंद करने के बाद कहा, “ठीक है, अब हमें पूरे सप्ताह भूखे रहना पडेगा।”
उस घटना के बारे में हमें बताते हुए उन्होंने कहा, “मैं अल्प विश्वास वाला था! उस सप्ताह में जो अनाज और अन्य सामग्री हमें जो मिली, उसे देखकर आप विश्वास नहीं करेंगे! कोई हमारे लिए कुछ चावल लाया, कोई नारियल से भरा हुआ ठेला लाया, किसी और व्यक्ति ने हमारे लिए गन्ना ला दिया। कुछ लोगों ने हफ्ते भर हमें रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए आमंत्रित किया। हमें एक बार फिर परमेश्वर के वचन की सच्चाई दिखाई गई, ‘दो और तुम्हें भी दिया जाएगा।”
वह लूकस 6:38 को उद्धृत कर रहा था जब येशु ने अपने शिष्यों से कहा था, “दो और तुम्हें भी दिया जाएगा। दबा-दबा कर, हिला-हिला कर, भरी हुई, ऊपर उठी हुई, पूरी की पूरी नाप तुम्हारी गोद में डाली जायेगी; क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा।”
बाद में जब मैंने इस अद्भुत गवाही पर विचार किया, तो मैंने अपने आप से पूछा, “मेरा भरोसा कहाँ है? क्या यह मेरे संसाधनों, मेरे बैंक खाते, मेरी संपत्ति में है? या यह ईश्वर में है?” उन मिशनरी बच्चों में से एक ने जो कहा था, उस पर मैं ने मनन किया, “यदि आप खुद पर भरोसा करते हैं, तो आप ईश्वर को चमत्कार करने के लिए कोई जगह नहीं छोड़ रहे हैं।” क्या मैं अपने जीवन में परमेश्वर को चमत्कार करने के लिए कोई जगह छोड़ता हूँ?
जैसे हम तपस्या काल के करीब आते हैं, कलीसिया हमें और अधिक प्रार्थना, उपवास और भिक्षा दान के रिवाजों को कार्यान्वित करने के लिए आमंत्रित करती है। भिक्षा दान देना, विशेष रूप से जब हम केवल अपने अधिकता में से नहीं, बल्कि त्याग करके अपनी कमी में देते हैं, तब हम अपने दिलों को और विशाल बना सकते हैं और हम अपने कुछ स्वार्थों से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं। भिक्षा दान देने से, हमें अपने जीवन में परमेश्वर के लिए जगह बनाने में भी मदद मिल सकती है क्योंकि हमारे भिक्षा दान के द्वारा परमेश्वर अपनी अद्भुत और भरपूर देखभाल और प्रावधान से हमें आश्चर्यचकित कर सकता है।
इस तपस्या काल में, आइए हम प्रार्थनापूर्वक प्रभु से पूछें कि उसके द्वारा दिए गए उन उपहारों के साथ – चाहे वह हमारा समय हो, हमारी ऊर्जा हो, या हमारी मुस्कान हो – लेकिन विशेष रूप से हमारे बैंक के क्रेडिट कार्ड्स या बटुआ, इन सारे उपहारों के साथ हम और अधिक उदार कैसे हो सकते हैं। जब आप भिक्षादान करने के लिए उन प्रार्थनापूर्ण सुझावों का अनुसरण करते हैं, तो आश्चर्यचकित न हों, क्योंकि लूकस 6:38 में किये गए अपने वादे को परमेश्वर पूरा करता है, “दबा-दबा कर, हिला-हिला कर, भरी हुई, ऊपर उठी हुई, पूरी की पूरी नाप तुम्हारी गोद में डाली जायेगी; क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा।…” मेरे पिताजी अक्सर हमसे कहा करते थे, “उदारता के मामले में कभी भी आप प्रभु को पछाड़ नहीं सकते!”
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अकेलेपन का इलाज आपके पास ही है!
साठ के दशक के दौरान रॉक ग्रुप थ्री डॉग नाइट का एक पॉप गीत बड़ा हिट हुआ था, एक सबसे अकेला नंबर है, जिसने अलगाव से जुड़े दर्द के बारे में बात की थी। उत्पत्ति की पुस्तक में हम देखते हैं कि आदम बगीचे में अकेला रह रहा था। निश्चित रूप से, उसे ईश्वर की ओर से अनुमति मिली थी कि वह अपना प्रभुत्व प्रकट करने के लिए सभी प्राणियों को नाम दे सकता था। इसके बावजूद भी, कुछ कमी थी: वह अकेला महसूस करता था क्योंकि “उसे अपने लिए कोई उपयुक्त सहायक नहीं मिला” (उत्पत्ति 2:20)।
बिना शर्त का प्रेम
एकांत के इस नाटक का अनुभव आज अनगिनत स्त्री-पुरुष कर रहे हैं। लेकिन, ऐसा होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इस अकेलेपन का इलाज सीधे आपके सामने है: वह परिवार, जिसके बारे में “समाज का मौलिक प्रकोष्ठ” में संत पापा फ्राँसिस हमें याद दिलाते हैं, (इवेंजेलियम गौदियम, 66)। देखा जाए तो, परिवार वह है जहाँ युवा लोग अपनी आँखों से देख सकते हैं कि मसीह का प्रेम जीवित है और अपने माता पिता के प्रेम में वह प्रेम मौजूद है, जो इस बात की गवाही देते हैं कि बिना शर्त का प्रेम संभव है।
इसलिए हम अलग-थलग, अकेले और आत्मनिर्भर व्यक्तियों के रूप में जीवन जीने के लिए नहीं बनाए गए हैं, बल्कि हम अन्य व्यक्तियों के साथ संबंधों का आनंद लेने के लिए बनाए गए हैं। यही कारण है कि ईश्वर ने कहा, “मनुष्य का अकेला रहना अच्छा नहीं। मैं उसके लिए एक उपयुक्त सहायक बनाऊँगा” (2:18)। इन सरल शब्दों से पता चलता है कि मनुष्य के दिल को तभी सबसे ज़्यादा खुशी मिलती है, जब वह अपने दिल को किसी दूसरे के दिल से जोड़ता है। एक दिल जो उसे बिना शर्त के और कोमलता से प्यार करे और उसके अकेले होने के एहसास छीन ले। ये वचन हमें दर्शाते हैं कि परमेश्वर ने हमें अलग-थलग रहने के लिए नहीं बनाया, जिसके कारण हमें अनिवार्य रूप से उदासी, दुःख और चिंता का सामना करना पड़ता है। उसने हमें अकेले रहने के लिए नहीं बनाया। उन्होंने पुरुषों और महिलाओं को खुश रहने के लिए बनाया, ताकि वे अपनी कहानी और यात्रा को दूसरे के साथ तब तक साझा कर सकें जब तक कि मृत्यु उन्हें अलग ना कर दे। पुरुष स्वयं को खुश नहीं रख सकता है। स्त्री स्वयं को सुखी नहीं रख सकती है। लेकिन, किसी के साथ अपनी यात्रा साझा करना उन्हें पूर्ण बनाता है, ताकि वे प्यार के अद्भुत अनुभव को जी सकें, एक दूसरे से प्रेम रख सकें, और बच्चों में अपने प्रेम को फलते हुए देख सकें। भजनकार इसे इस तरह कहता है: “तेरी पत्नी तेरे घर में फलवंत अंगूर बेल के सदृश रहेगी; तेरी चौकी के चारो ओर ज़ैतून के अंकुरों के समान तेरे बाल बच्चे होंगे। देखो, जो व्यक्ति प्रभु का भक्त है, वह आशीष पाएगा” (भजन संहिता 128:3-4)।
गौरव की रक्षा
अपनी प्यारी रचना के लिए ईश्वर का एक सपना है: जिस प्रकार ईश्वर एक दिव्य प्रकृति को साझा करने वाले तीन व्यक्ति हैं, जिस प्रकार पुनर्जीवित मसीह हमेशा के लिए अपनी कलीसिया से जुड़ चुके हैं, उसी प्रकार उनका आलौकिक शरीर, उस संबंध और प्रेम का प्रतीक है जिसे एक पुरुष और स्त्री अपनी यात्रा को एक दूसरे के साथ साझा कर, और एक दूसरे से प्रेम रख कर प्रदर्शित करते हैं।
यह वही योजना है जिसकी कल्पना येशु ने मानवता के लिए की थी। “सृष्टि की आरंभ से ही, परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी बनाया’। इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और अपनी पत्नी के साथ रहेगा, और वे दोनों एक शरीर होंगे। इस प्रकार अब वे दो नहीं, बल्कि एक शरीर हैं” (मरकुस 10:6-8; में उत्पत्ति, 2:24 की तुलना)। इसीलिए, वे यह निष्कर्ष निकालते हैं, “इसलिये जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे कोई मनुष्य अलग न करे” (मारकुस 10:9)। यह अंतिम पंक्ति महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि सृष्टिकर्ता की मूल योजना में कोई फेरबदल नहीं है। ऐसा नहीं है कि एक पुरुष एक महिला से शादी करता है और, अगर चीजें ठीक नहीं होती हैं, तो वह उसे ठुकरा देता है और प्लान बी पर चला जाता है। नहीं, बल्कि, पुरुष और स्त्री को एक-दूसरे को पहचानने, एक-दूसरे को पूरा करने, एक दूसरे की मदद करने के लिए बुलाया जाता है। ताकि वे एक दूसरे को अपने उद्देश्य और भाग्य का एहसास करा सकें।
उत्पत्ति ग्रन्थ के शुरुआती अध्यायों पर आधारित येशु की यह शिक्षा, विवाह के संस्कार का आधार है, जो कि एक दिव्य आदेश है, जैसा कि धर्मग्रन्थ में और परमेश्वर के पुत्र के शब्दों के माध्यम से प्रकट होता है। समकालीन सोच के विपरीत, यह एक ऐतिहासिक या सांस्कृतिक निर्माण नहीं है, चाहे कोई विधायी या न्यायिक संस्थान कुछ भी कहे।
येशु की शिक्षा बहुत स्पष्ट है और विवाह की गरिमा की रक्षा करती है जो कि एक पुरुष और महिला के बीच का वह प्रेम है जो कि संवैधानिक है। इसके अलावा बाकी कुछ भी शादी नहीं है। इसके अलावा, एक पुरुष और महिला के मिलन का अर्थ है निष्ठा। जो बात पति-पत्नी को विवाह में एकता में रहने की अनुमति देती है, वह है मसीह के अनुग्रह से प्रभावित आपसी आत्म-दान का प्रेम। लेकिन, इस मिलन का पोषण करने में कड़ी मेहनत लगती है: यदि पति-पत्नी अपने निजी हितों का पीछा करते हैं, या किसी की अहंकारी संतुष्टि को बढ़ावा देते हैं, तो यह संबंध टिक नहीं सकता।
पति या पत्नी या दोनों व्यक्ति इस तरह का व्यवहार कर सकते हैं जो कि उनके संबंध को संकट में डाल सकता हैं। यही कारण है कि येशु इस बात को सृष्टि की शुरुआत में वापस लाते हैं ताकि वे हमें यह सिखा सकें कि ईश्वर मानव प्रेम को आशीर्वाद देता है, कि वह ईश्वर है जो एक दूसरे से प्रेम करने वाले पुरुष और महिला के दिलों को जोड़ता है। वह उन्हें अविभाज्यता में उसी तरह शामिल करता है जैसे वह अपनी कलीसिया के साथ एकजुट होता है। यही कारण है कि कलीसिया परिवार की सुंदरता की पुष्टि करते नहीं थकती क्योंकि यह हमें शास्त्र और परंपरा द्वारा प्राप्त हुआ है। साथ ही साथ, वह उन लोगों पर अपना मातृ स्नेह प्रदान करने का प्रयास करती है, जिन्होंने ऐसे रिश्तों का अनुभव कर किया है जो कि टूट गए हैं या मुश्किल और दर्द भरे बन गए हैं।
टूटे हुए और अक्सर विश्वासघाती लोगों के साथ परमेश्वर का कार्य करने का तरीका हमें सिखाता है कि परमेश्वर की दया और क्षमा के द्वारा घायल प्रेम को ठीक किया जा सकता है। इस कारण से, कलीसिया निंदा या दोषारोपण के साथ नेतृत्व नहीं करती है। इसके विपरीत, पवित्र माता कलीसिया को प्रेम, दान और दया प्रदर्शित करने के लिए बुलाया गया है, ताकि घायल और खोए हुए दिलों को ठीक किया जा सके और उन्हें ईश्वर के आलिंगन में वापस लाया जा सके।
आइए हम याद रखें कि हमारे पास कलीसिया की माता, धन्य कुंवारी मरियम के रूप में एक महान सहयोगी है, जो कि विवाहित जोड़ों को प्रामाणिक रूप से एक साथ रहने और उनके मिलन का नवीनीकृत करने में मदद करती है, जिसकी शुरुआत भगवान के मूल उपहारों से होती है।
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प्रश्न:
क्या यह सच है कि येशु मसीह ही उद्धार का एकमात्र मार्ग है? मेरे परिवार के कुछ सदस्य येशु पर विश्वास नहीं करते हैं। उन जैसे लोगों का क्या होगा ? क्या उन्हें बचाया जा सकता है?
उत्तर:
वास्तव में, येशु अपने बारे में कुछ साहसिक दावे करते हैं कि वे कौन है। वे कहते हैं कि वे “मार्ग, सत्य, जीवन” हैं — वे बहुतों में से केवल एक मार्ग या जीवन के अलग अलग मार्गों में से एक मार्ग नहीं है। वे आगे कहते हैं कि “मुझ से होकर गए बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।” (योहन 14:6)।
मसीही होने के नाते, हम मानते हैं कि केवल येशु मसीह ही दुनिया के उद्धारकर्ता हैं। जो कोई उद्धार पाता है, वह येशु में और उसके द्वारा उद्धार पाता है—उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान ने संसार के पापों को उठा लिया गया और पिता के साथ हमारा मेल करा लिया; और उस पर हमारे विश्वास के माध्यम से हमें उसकी कृपाओं और दया तक पहुँचने की अनुमति मिलती है। मुक्ति केवल येशु के द्वारा ही है—बुद्ध द्वारा नहीं, मुहम्मद, या अन्य कोई महान आध्यात्मिक नेता द्वारा नहीं।
लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि केवल ईसाई ही स्वर्ग जाते हैं? यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस व्यक्ति ने सुसमाचार सुना है या नहीं। अगर किसी ने कभी येशु का नाम नहीं सुना है, तो उसे बचाया जा सकता है, क्योंकि ईश्वर ने प्रत्येक मानव हृदय में “ईश्वर के लिए क्षमता” और प्राकृतिक कानून (हमारे दिलों पर लिखे गए सही और गलत की सहज भावना) को रखा है। जिस व्यक्ति ने कभी भी सुसमाचार की घोषणा नहीं सुनी है, वह येशु के बारे में अपनी अज्ञानता के लिए दोषी नहीं है, और वे अपने ज्ञान के अनुसार परमेश्वर को सर्वोत्तम तरीके से खोजकर और प्राकृतिक नियमों का पालन करके, मोक्ष की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन अगर किसी ने येशु के बारे में सुना है और उसे अस्वीकार करने का निर्णय लिया है, तो जिस उद्धार को येशु ने उस व्यक्ति के लिए हासिल किया है, वह व्यक्ति उस उद्धार को अस्वीकार करने का फैसला करता है। कभी-कभी लोग येशु का अनुसरण नहीं करने का निर्णय लेते हैं क्योंकि, शायद उनका परिवार उन्हें अस्वीकार कर देगा, या उन्हें एक पापी जीवन शैली को छोड़ना होगा, या उनका अभिमान उन्हें एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता को स्वीकार करने की अनुमति नहीं देता है। जो उद्धार मसीह हम में से प्रत्येक को देना चाहता है, उस अविश्वसनीय उपहार से मुंह मोड़ना कितना दु:खद होगा!
इसके साथ ही, हम मानते हैं कि हम किसी व्यक्ति की आत्मा के उद्धार के बारे में फैसला नहीं कर सकते। शायद किसी ने सुसमाचार सुना था, लेकिन वह सही रीति से नहीं सुनाया गया था; हो सकता है कि वे येशु के बारे में जो कुछ भी जानते हैं वह किसी टी.वी. सीरियल से आता विकृत जानकारी हो; हो सकता है कि वे ईसाइयों के बुरे व्यवहार के कारण मसीही विश्वास के बारे में गलतफहमी रखते हों और इस तरह वे मसीह को स्वीकार करने में असमर्थ हों। गांधी के जीवन का एक प्रसिद्ध वाकया है, जिसमें वह महान हिंदू व्यक्ति ईसाई धर्म की प्रशंसा करते हैं। गांधी सुसमाचार पढ़ना पसंद करते थे और उसमें निहित ज्ञान का आनंद लेते थे। लेकिन जब उनसे पूछा गया, “यदि आप स्पष्ट रूप से मसीह में विश्वास करते हैं, तो आप अपना धर्मांतरण करके ईसाई क्यों नहीं बन जाते हैं?” उन्होंने जवाब दिया, “आह, मैं आपके मसीह से प्यार करता हूँ, लेकिन आप ईसाई लोग उस मसीह से बिलकुल विपरीत हैं!” ईसाइयों के बुरे व्यवहार ने इस महान नेता को ईसाई बनने से रोका!
तो, उत्तर को सारांशित कर लेते हैं: परमेश्वर, उन तरीकों के माध्यम से, जो केवल स्वयं वही जानता है, उन लोगों को बचा सकता है जिन्होंने कभी सुसमाचार नहीं सुना है, या शायद इसे प्रचारित करते हुए नहीं सुना है, या इसे सही ढंग से नहीं सुना है, या इसे ईसाइयों के जीवन में अमल होते हुए नहीं देखा है। हालाँकि, जिन्होंने सुसमाचार को सुना है, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया है, वे उद्धार के उपहार से दूर हो गए हैं।
यह जानते हुए कि आत्माएं स्वर्ग और नरक के बीच लटकी हुई हैं, इसलिए हम जो प्रभु को जानते हैं, हमें सुसमाचार प्रचार का महत्वपूर्ण कार्य दिया जाता है! हमें अपने अविश्वासी मित्रों और उनके परिवार के सदस्यों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, अपने आनंद और अपने प्रेम के साथ उन्हें अपनी गवाही देनी चाहिए, और उन्हें “हमारी आशा के आधार” समझाने में सक्षम होना चाहिए (1 पतरस 3:15)। शायद हमारे शब्द या हमारे कर्म आत्मा को अंधकार से के उद्धार वाले विश्वास के प्रकाश में लाएंगे!
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आगे पढ़ें और आप निश्चित रूप से परमेश्वर के हृदय की कुंजी पाएंगे!
लिस्यू की संत तेरेसा ने एक बार समझाया था कि प्रार्थना “दिल का उछाल” है; यह स्वर्ग की ओर मुड़ी हुई एक सरल दृष्टि है, यह पहचान और प्रेम की पुकार है, जिसमें पीड़ा और आनंद दोनों शामिल हैं।”
उसने मेरे दिल में घोंसला बना लिया
जब मेरे पति और मैं पालक माता-पिता बन गए, हम दोनों, तीन भयभीत, पीड़ित और बेसहारे बच्चों की जरूरतों को पूरा करने में असहाय महसूस कर रहे थे, और दु:खी होकर अपने आप को इस कार्य के लिए अयोग्य और अशिक्षित या कुशलहीन समझ रहे थे, तभी मैंने एक नए तरीके से “दिल के उछाल” को अपने अन्दर अनुभव किया। वे तीनों बहुत ही प्यारे और सुन्दर बच्चे थे – चार साल की एक लड़की, ढाई साल का उसका भाई, और सिर्फ छः महीने की उनकी छोटी बहन।
जैसे जैसे हमने निद्राविहीन उन पहले कुछ हफ्तों को गुज़ारा, वैसे ही हमने एक तरीका अपनाया, जिसके कारण धीरे-धीरे मेरे लिए अपने ईशशास्त्र के अध्ययन को फिर से चालू करना संभव हो गया, और सप्ताह में एक दो बार, मैं घर से थोड़ी दूर पर स्थित प्रार्थनालय की ओर चली जाती थी और वहां के शांत वातावरण में सुकून पाती थी। फिर भी, मेरे दिमाग में तूफ़ान उठा हुआ करता था। उस समय तक मेरे लिए यह स्पष्ट था कि मेरे सर पर ये तीन बच्चे सवार थे, जिनमें से प्रत्येक अपने पूर्व माता-पिता और बड़े भाई से अलग किये जाने के बाद हमारे साथ जीवन को समायोजित करने के लिए संघर्ष कर रहा था। फिर भी मैं यह भी जानती थी कि अगर मैं उन तीनों की देखभाल करने में असमर्थ थी, तो यह संभावना नहीं थी कि मैं उनमें से किसी को भी रख पाऊंगी – जिसमें वह सुंदर, छोटी, भूरी आंखों वाली बच्ची भी शामिल है, जिसने मेरे दिल में अपना घोंसला बना लिया है।
देर रात, मैं उनके बगल में झूले में बैठ जाती, बच्चों में से किसी एक के साथ झपकी लेती और ईश्वर से पूछती कि वह मुझसे क्या चाहता है। जब तक वे बच्चे हमारे पास लगभग एक वर्ष बिता चुके थे, तब तक यह स्पष्ट नहीं था कि क्या हम उन्हें गोद ले पाएंगे, या वे अपने माता-पिता के पास लौट जाएंगे। (जबकि हमारे जैसे संरक्षक पालकों केलिए बच्चों का उनके अपने मातापिता से पुनर्मिलन कराना ही प्राथमिक लक्ष्य है। दुर्भाग्य से बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे कभी घर नहीं लौट पाते हैं।) इसलिए, मैंने परमेश्वर के हृदय की कुंजी की तलाश की। सेमिनरी के एक प्रोफेसर ने मुझे धन्य चार्ल्स डी फुकॉल्ड द्वारा रचित एक प्रार्थना दी थी। इसे “समर्पण की प्रार्थना” कहते हैं। मुझे यकीन था कि ईश्वर ने मुझे उस विशेष प्रार्थना के द्वारा एक जीवन रेखा दी थी, जिसमें निम्नलिखित पंक्तियाँ थीं जिन्हें मैंने बार-बार दोहराया था।
तू जो कुछ कर सकता है, उसके लिए तुझे धन्यवाद;
मैं सब कुछ के लिए तैयार हूं, मुझे सब कुछ स्वीकार्य है।
मुझ में केवल तेरी ही इच्छा पूरी हो,
और तेरे सभी प्राणियों मे भी,
इससे अधिक मेरी कोई कामना नहीं है प्रभु।
मैंने पाया कि परित्याग की यह मुद्रा मध्यस्थता का एक शक्तिशाली उपकरण हो सकती है – अनिवार्य रूप से यह परमेश्वर के हृदय की कुंजी है। जब हम परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने की अपनी इच्छा को प्रकट करते हैं—और उस इच्छा को पहचानने में हमारी कठिनाइयों को स्वीकार करते हैं — तब परमेश्वर हर कदम पर हमारा मार्गदर्शन करेगा। यह एक निष्क्रिय “खुदाई” या आध्यात्मिक गतिरोध नहीं है, बल्कि येशु में एक बच्चे जैसा भरोसा है, जिसे एक महान पुराने गीत में, “सब कुछ अच्छी तरह से करता है”, ऐसे शब्दों में वर्णित किया गया है।
मैं ने देखा है कि सभी विश्वासियों की आत्मिक माँ, मरियम के सन्दर्भ में यह बात विशेष रूप से सही है। एक नए कैथलिक के रूप में, मुझे मरियम के साथ अपने रिश्ते को बढाने में दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि मैंने हमेशा ईश्वर से सीधे प्रार्थना की थी। लेकिन जब मैं अविवाहित थी, कैथलिक धर्म में दृढीकरण संस्कार प्राप्त करने के कुछ ही समय बाद, एक मित्र ने मुझे एक चमत्कारी पदक दिया था और मुझे जब भी अकेलापन महसूस हुआ तब “मरियम को इसके बारे में बताने” के लिए उस मित्र ने प्रोत्साहित किया। मैं हाल ही में नए स्थान पर आयी थी, और नयी जगह, नए दोस्तों की संगति के लिए प्रार्थना कर रही थी, तब जल्द ही मुझे एक अप्रत्याशित तरीके से मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर मिला। लगातार तीन सप्ताह, मैंने मरियम से प्रार्थना की, कि वह किसी को मेरे साथ मिस्सा बलिदान में साथ बैठने के लिए भेज दे और लगातार तीन सप्ताह एक नए नए अजनबी लोग मेरे बगल में बैठे, जिनसे मेरी पहचान बनी। उस समय से, मैं मरियम को एक ऐसा व्यक्ति मानने लगी जो मेरी मानवीय जरूरतों और कमजोरियों को समझती है, और जब मेरे पास ईश्वर को अर्पित करने के लिए अपने शब्द नहीं होते हैं, तब वह मेरे लिए प्रार्थना करती है।
सब केलिए तीन प्रार्थनायें
जैसे-जैसे मेरे बच्चे बड़े हो गए (दोनों छोटे बच्चों को गोद लेने में हम सफल हो गए थे, जबकि उनकी बड़ी बहन को दूसरे परिवार ने गोद लिया था) और जैसे वे तीनों ने युवावस्था में प्रवेश किया, मैं ने उनके लिए प्रार्थना करने का तरीका बदला है … लेकिन कभी-कभी मैं किसी विशेष स्थिति के लिए प्रार्थना कैसे करूं ऐसी पशोपेश महसूस करती हूं। जब ऐसा होता है, तो तीन प्रार्थनाएँ होती हैं, जो परमेश्वर के हृदय की कुंजी को बदल सकती हैं। वे तीनों प्रार्थनाएं मेरे दिमाग को साफ करने में मेरी मदद करती हैं, और एक नए तरीके से पवित्र आत्मा को मेरे दिल में आमंत्रित करती हैं:
प्रभु, तुझे धन्यवाद
सबसे बुरे दिनों में भी, ईश्वर हमारे साथ इतने उदार हैं। हमारे लिए और हमारे परिवारों के लिए उनकी उदारता और सुरक्षा को स्वीकार करने पर, हमें सांसारिक बातों और छोटी छोटी क्षुद्र बातों से ऊपर उठने में यह स्वीकृति मदद करती है और परमेश्वर हमें क्या बताना चाहता है, यह सुनने में भी यह स्वीकृति मदद करती है। स्तोत्र ग्रन्थ को खोलने और स्तोत्रकार के साथ प्रार्थना करने से, मेरे दिल पर दबाव डाल रही उन बातों के नाम लेकर बताने में मुझे मदद मिलती है।
प्रभु मुझे क्षमा कर
सबसे अच्छे दिनों में भी, वैसी परिस्थिति की ज़रुरत के अनुसार मैं उतनी कृपापूर्ण व्यवहार नहीं करती जितनी की आवश्यकता होती है। अपनी कमियों को स्वीकार करने से उन लोगों को क्षमा करना आसान हो जाता है, जो हमें परेशान करते हैं या हमें चोट पहुँचाते हैं। मेरी एक दोस्त बुद्धिमानी से “नौ कष्टप्रद बातों की नवरोज़ी” प्रार्थना करती है ताकि उसकी दैनिक झुंझलाहट को मज़बूत विश्वास के अवसरों में बदल दिया जा सके।
प्रभु मेरी मदद कर
ऐसा कहा जाता है कि “ईश्वर योग्य या गुणवान व्यक्ति को नहीं बुलाता, बल्कि बुलाए गए को योग्य और गुणवान बनाता है।” जब परमेश्वर हमसे हमारे विश्वास (या हमारे पालन-पोषण के कौशल) को नए तरीकों से विकसित करने के लिए कहता है, यदि हम इसकी मांग उससे करें, तो इस काम को अच्छी तरह से करने के क्षमता और ज्ञान वह हमें प्रदान करता है। हो सकता है कि हम आगे स्वयं बढ़ने और इसे अपने दम पर संभालने के प्रलोभन में पड़ जाएँ, लेकिन अगर हम प्रत्येक कार्य को परमेश्वर को सौंप दें, तो वह हमें दिखाएगा कि उन सभी कार्यों को प्यार से कैसे संभालना है।
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जब मेरे पति घर से काम करने लगे, और हमें दिन के 24 घंटे एक साथ गुज़ारने पड़े, मैंने खुद को फिर से किसी ज्वालामुखी की तरह गुस्से से लाल होता महसूस किया जो कि किसी भी वक्त फूटने ही वाला था …
यह साल 2020 का वसंत था और कोविड-19 पूरे देश और दुनिया के अधिकांश हिस्सों में फैल चुका था। हम सब “सामाजिक दूरी,” और “घर पर रहने” जैसी नई जीवन शैली को अपना रहे थे। इसके चलते दूसरों से जुड़े रहने के लिए हम टेक्नोलॉजी के दायरों में बंधे थे। इसीलिए मेरी एक दोस्त ने मुझे और बाकी कुछ दोस्तों को एक ऑनलाइन बाइबल अध्ययन में उसके साथ जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। इसमें हम एक वीडियो के अनुभागों को देखने और उससे जुड़े बाइबल के कुछ हिस्सों को पढ़ने के बाद, अपने विचारों और टिप्पणियों को एक दूसरे को लिख कर भेजा करते थे।
अध्ययन के पहले अध्याय में मुझे “सहनशीलता” शब्द मिला। कई सालों से धर्म ग्रन्थ की छात्रा होने के बावजूद, मैंने महसूस किया कि यह शब्द तो मेरी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं था! ऐसा नहीं है कि यह शब्द मेरे लिए अनदेखा सा था, क्योंकि मैंने इसे पूरी बाइबल में देखा था, लेकिन मुझे हमेशा सहनशीलता शब्द इतिहास में गुम किसी प्राचीन काल के लिए बेहतर अनुकूल लगता था। लेखक ने इस गुण को खुद की शक्तियों को नियंत्रित करने की क्षमता के रूप में वर्णित किया, भले ही किसी के पास अपनी शक्ति का उपयोग करने का अधिकार हो, क्योंकि औरों की भलाई अक्सर खुद की इच्छाओं की पूर्ति से बढ़कर होती है। उसने व्याख्या करने के लिए एक रूपक का इस्तेमाल करते हुए कहा: कल्पना कीजिए कि ईश्वर के पास दो हाथ हैं, दोनों शक्तिशाली हैं। कभी कभी अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए जब अपने दाहिने हाथ को फैलाते हैं, तो वे अपने बाएं हाथ का उपयोग दूसरे हाथ को वापस खींचने के लिए करते हैं, ताकि उनकी शक्ति हद से ज़्यादा ना निकले।
मैंने अपने इन विचारों को अपने साथियों के साथ साझा किया। एक प्रतिभागी ने जवाब दिया कि “ईश्वर मुझे संघर्ष करने देता है ताकि मैं अपने अंदर ईश्वर के हृदय के प्रति एक गहरी समझ और एक गहरा संबंध स्थापित कर सकूं।” मैंने इसे अपने जीवन में साल दर साल इस बात को बार-बार देखा है। जिन 40 वर्षों को मैंने स्वास्थ्य सेवा में काम करते हुए बिताया, वे मेरे लिए उन 40 वर्षों के समान लगने लगे, जो इस्राएलियों ने रेगिस्तान में सफर करते हुए बिताए। हमने बड़बड़ाते और शिकायत करते हुए अपनी व्यक्तिगत यात्रा को चिह्नित किया है फिर भी प्रभु ने मेरी और इस्राएलियों की जरूरतों को पूरा करना जारी रखा और हमें आज्ञाकारिता सिखाई, जिसके परिणाम स्वरूप हमें धैर्य मिला, जो कि “आत्मा के फलों” में से एक है।
समय के साथ, धैर्य एक आदत बन गई है, और मैं अब शायद ही कभी मौखिक रूप से जलन या गुस्सा व्यक्त करती हूँ – कम से कम घर के बाहर तो मैं ऐसा कर पाती हूं! और हालांकि मैंने अपने घर के अंदर भी अपने गुस्से को नियंत्रित करने की दिशा में प्रगति की थी, मुझे फिर भी ऐसा महसूस होता रहा कि मेरा घर वह स्थान हैं जहां क्रोध रूपी दूतों ने मुझे परेशान करने के लिए डेरा जमाया हुआ है। और हालाँकि मुझे आशीर्वाद स्वरूप एक अच्छा और प्यार करने वाला पति मिला था, फिर भी घर से काम करने की इस नई बाधा ने मुझे 24 घंटे उसके आसपास रहने के लिए मजबूर कर दिया था, जो कि मेरे लिए आसान नहीं था।
जैसे-जैसे हफ्ते बीतते गए, मैंने खुद को एक बार फिर से किसी ज्वालामुखी की तरह गुस्से से लाल होता महसूस किया जो कि किसी भी वक्त फूटने ही वाला था। मैंने इस इच्छा को दबाने की कोशिश की, लेकिन जब सौवीं बार डैन ने बर्फ के टुकड़ों से भरा चाय का एक पूरा गिलास, कोने की मेज पर गिरा दिया, तो मेरा गुस्सा फूट पड़ा और मैं गुस्से से लाल हो कर तौलिया लेने के लिए दौड़ी। बाद में जब मैंने माफी मांगी, तो मुझे याद आया कि मेरे पति ने बिग सिस्टर्स संगठन के एक प्रतिनिधि से जो कहा था, जब एक स्वयंसेवक के रूप में मेरी उपयुक्तता का निर्धारण करने के लिए उन्होंने मेरे पति को मेरे बारे में बात करने के लिए बुलाया था। उनकी लंबी बातचीत के बारे में मेरी जिज्ञासा को शांत करते हुए मेरे पति ने मुझे बताया कि उन्होंने मेरे बारे में यह कहा था, “मैंने तुम्हारे बारे में बहुत सारी अच्छी बातें कही हैं। और जब उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मुझे लगा कि तुम एक धैर्य रखने वाली इंसान हो, तो मैंने उनसे कहा कि तुम बहुत धैर्यवान हो… मेरे अलावा सबके साथ!” इस बात पर जब हम दोनों एक साथ हँसे, तो हम दोनों ने मेरे पति की कही बातों में मौजूद सच्चाई को पहचानते हुए महसूस किया कि धैर्य के क्षेत्र में, ईश्वर ने अभी तक मेरी प्रार्थना को पूरी तरह सुना नहीं था।
रिटायर होने के बाद से मैंने रोज सुबह आस-पड़ोस में घूमने का रूटीन अपना लिया था। यह व्यायाम मेरे विचारों को एकाग्र रखता था और इसके द्वारा मैं हर दिन अपना हृदय प्रभु के सामने उण्डेलती थी। मैं अपनी अधीरता को स्वीकार करती थी, क्षमा मांगती थी, अपने पति के अच्छे गुणों को गिना करती थी, और उनके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया करती थी। लेकिन जो मैं नहीं कर पाती थी वह सहनशीलता का अभ्यास था! मेरा जीवन किसी भी रूप से सहनशीलता की परिभाषा के अनुरूप नहीं था। एक सुबह, मेरे पति के घर से काम करने के एक और निराशाजनक दिन के बाद, मैंने प्रार्थना करते हुए अपने संघर्ष को ईश्वर के सामने रखा। “प्रभु, मैंने हर तरह से कोशिश की है कि मैं इसके बारे में प्रार्थना कर सकूं। मैं अपने जीवन में तेरे कार्य के प्रति समर्पण करती हूँ; मुझे सबके साथ, यहाँ तक कि मेरे पति के साथ भी, एक सच्चा धैर्यवान व्यक्ति बना दीजिए। मैं जो कुछ कर सकती हूं मैंने किया है; अब मैं तुझ से विनती करती हूं कि तू मुझ में वह कीजिए जो मैं अपने आप नहीं कर सकती।”
जैसे ही दिन समाप्त हुआ, मेरी नज़र कोने की मेज पर रखी भक्ति की किताबों के ढेर पर पड़ी। शायद छठी या सातवीं किताबों में से एक ने अपनी ओर मेरा ध्यान खींचा। मैंने इसे काफी दिनों से नहीं खोला था, और अब तो मुझे यह भी याद नहीं था कि इसका शीर्षक क्या था। फिर भी, मैं इसके प्रति आकर्षित थी। इसका शीर्षक था ‘बाइबल के उपदेश’ और इसे जर्मन धर्मशास्त्री कार्ल राह्नर ने लिखा था। मैंने वह अंक खोला जहाँ पर बुकमार्क लगा हुआ था और उस पन्ने पर लिखे शीर्षक को देख कर मुझे हंसी आ गई, क्योंकि उसमे लिखा था: “अगर तुम उसका साथ निभा सकते हो तो मैं भी तुम्हारा साथ निभा सकता हूं।”
फादर राह्नर ने 1 पेत्रुस 3:8-9 का उदाहरण दिया जो कि इस प्रकार है: “अंत में यह: आप सब के सब एक मत, सहानुभूतिशील, भ्रातृप्रेमी, दयालु तथा विनम्र बनें। आप बुराई के बदले बुराई ना करें और गाली के बदले गाली नहीं बल्कि आशीर्वाद दें। ऐसा ही करने के लिए आप बुलाए गए हैं, जिससे आप विरासत के रूप में आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।” मैंने उसके बाद का प्रवचन पढ़ा जो कि इस प्रकार है:
“इस सद्भाव और सहमति का अर्थ यह है कि हमें प्रार्थना में एकजुट होना चाहिए। निःसंदेह संत पेत्रुस का पत्र लोगों के साथ रहने के सामान्य स्वभाव को दर्शाता है।” यह विचारधारा काफी स्पष्ट है। हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि हम कैसे एक-दूसरे के लिए एक प्रलोभन हैं।” (मैं एक क्षण के लिए रुकी … फादर राह्नर को कैसे पता चला कि मेरे घर में क्या चल रहा है?!) “हम एक दूसरे से इतने अलग हैं: हमारे पास अलग-अलग अनुभव हैं, हम अलग-अलग स्वभाव के हैं, अलग-अलग जगहों से हैं, हम अलग-अलग परिवारों से आते हैं, हमारे पास अलग-अलग प्रतिभाएं और अलग-अलग काम हैं- इस प्रकार यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हम सभी के लिए एक विचारधारा का होना मुश्किल है। हमारे अलग-अलग विचार हैं और हम एक-दूसरे को अपूर्ण रूप से समझते हैं। और अन्य लोगों से इतने अलग होने के कारण हम लोगों पर किस प्रकार से अच्छी तरह से भरोसा कर सकते हैं? हम जो हैं, हम क्या सोचते हैं, हम क्या करते हैं, हम जो महसूस करते हैं, उससे अनजाने में ही हम खुद को और दूसरों को थका देते हैं। आपसी सद्भाव और समझ, एक मन का होना, हमारे लिए कठिन है। अब हम केवल एक साथ रह सकते हैं और एक दूसरे का साथ सहन कर सकते हैं, एक दूसरे के बोझ को सहन कर सकते हैं। अगर हम एक मन होने की पूरी कोशिश करते हैं, अगर हम आत्म-विस्मृत और आत्मनिर्भर हैं, अगर हम सही होने पर भी अपनी ज़बान पर काबू रख सकते हैं , “(अब मुझे यकीन हो चला था कि यह पुरोहित बीते हफ्तों में हमारे घर की खिड़की से मुझे देख रहा था!) ”अगर हम दूसरे इंसान को उसका जीवन जीने दे सकते हैं और उसे उसका हक दे सकते हैं, अगर हम जल्दबाजी में निर्णय लेने से बचते हैं और धैर्य रखते हैं।” (यह शब्द फिर से मेरे सामने था!) ”तब यह संभव है, कम से कम किसी न किसी तरीके से, कि हम एक मन के हो सकते हैं। हम शायद सहानुभूति प्राप्त नहीं कर पाएं, लेकिन हम मसीही सहनशीलता में एक मन के हो सकते हैं, “(सहनशीलता!!! वह शब्द जिस की ना मैंने कभी जांच की थी, ना कभी उस पर विचार किया था!) ”और एक दूसरे का बोझ उठा सकते हैं। इसका मतलब यह है कि मैं उस बोझ को उठा सकती हूं जो बाकी लोग सिर्फ अपनी उपस्थिति द्वारा मुझ पर डालते हैं, क्योंकि अब मैं जानती हूं कि मैं भी अपने कार्यों द्वारा दूसरों पर बोझ बनती हूं। ”
मुझे पहले से ही पता था कि मैं अपने अलावा किसी और को नहीं बदल सकती, और उस काम में भी मैं अभी तक नाकाम ही रही थी! इसीलिए अपने संघर्षों को इतनी स्पष्ट रूप से लिखा हुआ देख कर मुझे अपनी उलझन आसान होती नज़र आई, जैसे किसी ने पहेली के सारे टुकड़ों को मेरे लिए जोड़ दिया हो। डैन ने हमेशा मेरी कमजोरियों के बावजूद मुझे यह दिखाने के लिए कड़ी मेहनत की है कि वे मुझसे कितना प्यार करते हैं। उन्होंने मेरे लिए प्रेम के नियम को जिया है। मैंने धर्म ग्रन्थ में “सहनशीलता” के संदर्भ लेख खोजने के लिए ऑनलाइन जांच की। पता चला, संस्कृति और समय के आधार पर शब्द के अलग-अलग अनुवाद किए गए थे, जब मैंने उन सब को संकलित किया तब मुझे जो जवाब मिले वे इस प्रकार थे – धीरज, धैर्य जो सहन करता है, महान-हृदय, यहां तक कि “हालात के साथ रहने की इच्छा विकसित करना”। डैन के प्रति मेरी प्रतिक्रिया मुझे “धीरज” की तरह महसूस हुई, जबकि उसकी प्रतिक्रिया जो मेरे लिए थी वह “महान-हृदय” की तरह लगी। हमने एक ही गुण को अवतरित करने के अलग अलग तरीके खोजे थे।
मुझे सहनशीलता की वह परिभाषा याद आई जो मैंने बाइबल-अध्ययन के वीडियो में सुनी थी: खुद की शक्तियों को नियंत्रित करने की क्षमता, भले ही किसी के पास अपनी शक्ति का उपयोग करने का अधिकार हो, क्योंकि औरों की भलाई अक्सर खुद की इच्छाओं की पूर्ति से बढ़कर होती है। यह वही सबक था जो मैंने भौतिक चिकित्सा के अभ्यास के वर्षों के दौरान सीखा था – शांत प्रतिक्रियायें समय के साथ ज़्यादा असर दिखाती हैं। यह समझने के लिए समय निकाले बिना कि रोगी के उपचार के प्रति प्रतिरोध क्या है, कोई प्रगति प्राप्त नहीं की जा सकती। जब एक बार मेरे मरीज़ यह समझ जाते थे कि मैं उनकी समस्या को समझ चुकी हूं, फिर मेरे मरीजों का परिवर्तन शुरू हो जाता था। और उनकी प्रगति मेरे इस अतिरिक्त प्रयास का मूल्य चुका देती थी।
अब मैं यह समझने लगी कि ईश्वर मुझसे अपनी शक्ति को वापस लेने के लिए कह रहे थे – फिर चाहे वह मेरे शब्द हों या मेरे विचार – क्योंकि यह सब हमारी शादी की भलाई के लिए ज़रूरी था। इतने समय से मैं “राहत मांग रही थी;” लेकिन मैं यह देख सकने में असमर्थ थी कि वह मदद कैसे आएगी। यह उस व्यक्ति का बोझ उठाने से होना था, जिसे मैंने अच्छे समय में और बुरे में, मेरे जीवन के सभी दिनों में प्यार और सम्मान देने का वादा किया था, जैसा वादा उसने मुझसे किया था। मैं सहनशीलता का अभ्यास कैसे करूंगी? अपने पति की एक तस्वीर को देखते हुए, मुझे पता था: नमूना मेरी आंखों के सामने ही था।
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